Satyakatha: पैसे का गुमान- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

मुस्तफा ने बताया कि दोपहर होने पर दुकान की चहलपहल थोड़ी कम हो गई. 12 बजे के बाद बगैर किसी सूचना के कुलदीप की पत्नी सुनीता जब दुकान पर पहुंची तो वह चौंक गया. उन्होंने अपने हैंडबैग से निकाल कर एक मोटा पैकेट पकड़ा दिया.

पैकेट के बारे में पूछने से पहले ही सुनीता ने बताया कि उस के पति ने 4 लाख रुपए बैंक से निकलवाए हैं. इस में वही पैसे हैं. इतना कह कर सुनीता जाने की जल्दबाजी के साथ बोलीं कि उसे पास में कुछ खरीदारी करनी है और घर पर बहुत काम पसरा पड़ा है, इसलिए वह तुरंत दुकान से चली गईं.

उन के जाने के तुरंत बाद मुस्तफा के पास कुलदीप का फोन आया. उन्होंने फोन पर कहा कि एक आदमी बाइक पर पैसे लेने आएगा. सुनीता जो पैसे दे गई है वह उसे दे देना.

मुस्तफा ने कुलदीप को बता दिया कि सुनीता मैडम पैसा अभीअभी दे गई हैं. इतनी मोटी रकम और उसे लेने के बारे में कुलदीप ने अधिक बातें नहीं बताईं.

दोपहर एक बजे के करीब कुलदीप के बताए अनुसार एक आदमी काले रंग की बाइक पर आया. उस में नंबर प्लेट नहीं लगी थी.

मुस्तफा ने समझा कि बाइक मरम्मत के दौरान ट्रायल पर होगी. हेलमेट पहने मास्क लगाए व्यक्ति ने मुस्तफा से कहा कि उसे कुलदीप ने पैसा लेने के लिए भेजा है.

मुस्तफा ने इशारे से सामने बैठने को कहा और कुलदीप को फोन लगाया. तुरंत फोन रिसीव कर कुलदीप बोले, ‘‘इस आदमी को पैसे दे दो.’’

मुस्तफा ने कुछ पूछना चाहा, किंतु कुलदीप ने फोन कट कर दिया. लग रहा था, जैसे वह काफी हड़बड़ी में थे.

तब तक वह व्यक्ति अपना हेलमेट उतार चुका था और मास्क हटा रहा था. मुस्तफा ने उस से बगैर कोई सवालजवाब किए पैसे का पैकेट उसे दे दिया.

पैकेट से पैसे निकाल कर वह वहीं काउंटर पर गिनने लगा. पैकेट में 2 हजार और 5 सौ के नोटों के बंडल थे. बंडल के नोट गिनते समय उस के मोबाइल पर फोन आया. उस ने फोन का स्पीकर औन कर बोला, ‘‘हां, पैसे मिल गए हैं, मैं अभी गिन रहा हूं.’’

दूसरी तरफ से डांटने की आवाज आई, ‘‘मैं ने तुम्हें पैसे लेने भेजा है या गिनने? पैसा ले और  वहां से निकल.’’ यह आवाज कुलदीप की नहीं थी. उस के बाद मुस्तफा दुकान के कामकाज में लग गया.

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उसे सुनीता का फोन शाम को 5 बजे के करीब आया. उन्होंने घबराई आवाज में कुलदीप का फोन बंद होने की बात बताई. यह सुन कर मुस्तफा कुछ समय में ही दुकान बंद कर कुलदीप के घर आ गया. उस दिन बिक्री का हिसाब और पैसे उन्हें दिए और कुछ देर रुक कर चला गया.

इतनी जानकारी मिलने के बाद एसपी प्रभाकर चौधरी ने मामले को अपने हाथों में ले लिया और एसओजी टीम के प्रभारी अजय पाल सिंह एवं सर्विलांस टीम के प्रभारी आशीष सहरावत के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी.

कुलदीप की गुमशुदगी की रिपोर्ट के आधार पर तलाशी की काररवाई की. शुरुआत फोन ट्रेसिंग से  की गई. इस जांच से संबंधित पलपल के जांच की जानकारी डीआईजी शलभ माथुर उन से ले रहे थे..

कुलदीप के फोन की आखिरी लोकेशन बिजनौर के नजीबाबाद कस्बे की मिली. मुरादाबाद पुलिस तुरंत वहां रवाना हो गई. इस की जानकारी बिजनौर पुलिस को भी दे दी गई. प्रभाकर चौधरी ने 3 अन्य टीमों का भी गठन किया.

बिजनौर जनपद की सीमाओं पर कुलदीप की आखिरी लोकेशन के आधार पर छानबीन जारी थी. फोन की लोकेशन कभी चांदपुर तो कभी नूरपुर और कभी नगीना की मिल रही थी. इस तरह से 5 जून का पूरा दिन ऐसे ही निकल चुका था.

रात के 8 बजे बिजनौर में कस्बा थाना स्यौहारा के गंगाधरपुर गांव में एक शव पड़े होने की सूचना मिली. इस की जानकारी स्यौहारा के थानाप्रभारी नरेंद्र कुमार को गांव वालों ने दी थी.

सूचना के आधार पर खून सनी लाश बरामद हुई. लाश सड़क के किनारे पड़ी हुई थी. उस के सिर और शरीर पर चोटों के निशान साफ दिख रहे थे.

लाश बरामदगी की सूचना और हुलिया समेत तसवीरें तुरंत मुरादाबाद पुलिस को भेज दी गईं. लाश कुलदीप गुप्ता के होने की आशंका के साथ उन के भाई संजीव गुप्ता को तुरंत शिनाख्त के लिए बुला लिया गया.

संजीव ने तसवीर और हुलिए के आधार पर लाश की पहचान अपने भाई कुलदीप के रूप में कर दी. इसी के साथ उन्होंने दुखी मन से इस की सूचना अपने परिवार वालों को भी दी.

कुलदीप की हत्या की सूचना से घर में कोहराम मच गया. सुनीता, इशिता, दिव्यांशु का रोरो कर बुरा हाल था. पूरे परिवार पर अचानक दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था.

मुरादाबाद की पुलिस के सामने अब सब से बड़ी चुनौती हत्या के बारे में पता लगाने और हत्यारे को धर दबोचने की थी. उसी रात लाश को पंचनामे के साथ बिजनौर अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई.

पोस्टमार्टम के बाद लाश कुलदीप के घर वालों को सौंप दी गई. उन का मुरादाबाद के लोकोशेड मोक्षधाम में अंतिम संस्कार कर दिया गया.

उधर बिजनौर और मुरादाबाद जिले की पुलिस ने दोनों जगहों पर ताबड़तोड़ छापेमारी की. कुलदीप की दुकान के कर्मचारियों से एक बार फिर डिटेल में पूछताछ हुई. पैसा लेने आए व्यक्ति के हुलिए के आधार पर छानबीन शुरू की गई.

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मुस्तफा ने घटना के दिन उस व्यक्ति और नंबर प्लेट के बगैर काली मोटरसाइकिल की मोबाइल से ली गई तसवीर पुलिस को उपलब्ध करवा दी. पुलिस को मृतक कुलदीप की काल डिटेल्स भी मिल चुकी थी.

जल्द ही 2 व्यक्तियों नंदकिशोर और कर्मवीर उर्फ भोलू को गिरफ्तार कर लिया. उन से कुलदीप की हत्या के कारण की जो कहानी सामने आई, वह पैसा, दोस्ती, गुमान और अपमान से पैदा हुई परिस्थितियों की दास्तान निकली—

मुरादाबाद के कस्बा पाकबाड़ा के रहने वाले कुलदीप के 2 बड़े भाई संजीव गुप्ता और राजीव गुप्ता के अलावा उन का अपना छोटा सा परिवार था. पत्नी सुनीता और 2 बच्चों में बेटा दिव्यांशु और बेटी इशिता के साथ मिलन विहार कालोनी में रह रहे थे.

Manohar Kahaniya- आसाराम बापू: जिसने आस्था को सब से बड़ी चोट पहुंचाई

सौजन्य- मनोहर कहानियां

शाहजहांपुर की एक युवती से बलात्कार के आरोप में जोधपुर की जिला अदालत में उम्रकैद की सजा काट रहा संत आसाराम बापू देश का पहला और सब से बड़ा संत था, जो स्वामी रामेश्वरानंद के बाद आस्था की आड़ में अय्याशी और व्यभिचार करने के आरोप में कानून के शिकंजे में फंसा.

17 अप्रैल, 1941 को बंटवारे से पहले के भारत के नवाबशाह जिले के बेराणी गांव, जो अब पाकिस्तान में है, वहां आसूमल सिरूमलानी का जन्म हुआ था. उस की मां का नाम महंगीबा एवं पिता का नाम थाऊमल सिरूमलानी था.

1947 में भारतपाक विभाजन के समय वह और उस के परिवार के सभी लोग भारत के गुजरात राज्य के अहमदाबाद में बस गए. धनवैभव सब कुछ छूट जाने के कारण परिवार आर्थिक संकट में फंस गया.

अहमदाबाद आने के बाद आजीविका के लिए थाऊमल ने शक्कर बेचने का धंधा शुरू किया. पिता के निधन के बाद, अपनी मां से ध्यान और आध्यात्मिकता की शिक्षा प्राप्त कर आसूमल ने घर छोड़ दिया और देश भ्रमण पर निकल गया. भ्रमण करतेकरते वह स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज के आश्रम नैनीताल पहुंच गए. नैनीताल में गुरु से दीक्षा लेने के बाद गुरु ने आसूमल को नया नाम दिया आसाराम.

इस के बाद आसाराम घूमघूम कर आध्यात्मिक प्रवचन के साथसाथ स्वयं भी गुरुदीक्षा देने लगा. उस के सत्संग में श्रद्धालु भारी संख्या में पहुंचने लगे. आसाराम बापू पहली बार अगस्त, 2013 में कानून के शिकंजे में फंसा, जब उस के ऊपर जोधपुर में उस के ही आश्रम में 16 साल की एक लड़की के साथ अप्राकृतिक दुराचार के आरोप लगे.

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लड़की के पिता ने दिल्ली जा कर पुलिस में इस कांड की रिपोर्ट दर्ज कराई. बाद में लड़की का बयान दर्ज कर सारा मामला राजस्थान पुलिस को ट्रांसफर कर दिया.

आसाराम को पूछताछ के लिए 31 अगस्त 2013 तक का समय देते हुए सम्मन जारी किया गया. इस के बावजूद जब वह हाजिर नहीं हुआ तो दिल्ली पुलिस ने उस के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 342 (गलत तरीके से बंधक बनाना), 376 (बलात्कार), 506 (आपराधिक हथकंडे) के अंतर्गत मुकदमा दर्ज करने हेतु जोधपुर की अदालत में सारा मामला भेज दिया.

फिर भी आसाराम गिरफ्तारी से बचने के उपाय करता रहा. पहली सितंबर 2013 को राजस्थान पुलिस ने आसाराम को गिरफ्तार कर लिया . इस मामले में 25 अप्रैल, 2018 को आसाराम को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

साबरमती नदी के किनारे एक झोपड़ी से शुरुआत करने से ले कर देश और दुनियाभर में 400 से अधिक आश्रम बनाने वाले आसाराम ने 4 दशक में 10,000 करोड़ रुपए का साम्राज्य खड़ा कर लिया था. आसाराम बापू को अब तक दुष्कर्म के 2 मामलों में अदालत से सजा मिल चुकी है.

अध्यात्म यूनिवर्सिटी के नाम पर अय्याशी का घिनौना सच

जिन दिनों देश में धर्म और अध्यात्म के नाम पर डेरा सच्चा सौदा प्रमुख बाबा राम रहीम के पाखंड और बड़ी संख्या  में महिलाओं के यौनशोषण की गूंज सुनी जा रही थी. उसी वक्त देश की राजधानी दिल्ली से एक ऐसे बाबा के रंगीन किस्से सामने आ रहे थे, जो महिलाओं को अध्यात्म दीक्षा के नाम पर उन का यौन शोषण करता था.

वीरेंद्र देव दीक्षित नाम के इस बाबा के आश्रमों से 190 नाबालिग व बालिग लड़कियों और महिलाओं को मुक्त  कराया गया, जिन्हें अध्यात्म के नाम पर यौनशोषण का शिकार बनाया गया था.

दिल्ली के रोहिणी, नांगलोई, द्वारका जैसे इलाकों में बड़े भूभाग पर आध्यात्मिक विश्वविद्यालय के नाम से बने इन आश्रमों के अलावा देश के करीब 9 राज्यों में इस रंगीनमिजाज बाबा के 80 आश्रम थे.

वीरेंद्र देव दीक्षित उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद जिले के गांव चौधरियान का रहने वाला है. 1975 में वीरेंद्र देव का अपने पिता से किसी बात को ले कर विवाद हो गया था.

इस से नाराज हो कर वह घर से निकल गया. इस के बाद उस ने गुजरात यूनिवर्सिटी में संस्कृत में शोध शुरू किया. बाद में वह राजस्थान के माउंट आबू में प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय से जुड़ गया, लेकिन जल्दी  ही उसे वहां से भगा दिया गया.

1984 में पिता की मृत्यु के बाद वीरेंद्र देव घर लौटा तो अपने पैतृक मकान में कुछ स्थानीय लोगों के सहयोग से आध्यात्मिक कार्यक्रम शुरू किया. कुछ समय बाद ही उस ने आश्रम का निर्माण कराया.

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यह आश्रम पहली बार 1998 में तब चर्चा में आया जब 3 अलगअलग राज्यों के लोगों की शिकायतों पर पुलिस ने 3 लड़कियों को बरामद कर उसे व उस के कई सेवादारों को गिरफ्तार किया. इस के बाद उस ने खुद को बाबा के तौर पर स्थापित किया और देशभर में 80 आश्रम खोले.

12 नवंबर को यह मामला तब सामने आया, जब राजस्थान के झुंझनूं व दिल्ली के 2 परिवारों ने रोहिणी के आध्यात्मिक विश्वविद्यालय पहुंच कर हंगामा करते हुए आरोप लगाया कि उन की बेटी वहां जबरन कैद है और उन के साथ सैक्सुअल हिंसा होती है.

मामला बढ़ा तो फाउंडेशन फौर सोशल एम्पावरमेंट नाम के एनजीओ ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इस आश्रम के क्रियाकलापों की जांच की मांग की. हाईकोर्ट के आदेश पर आश्रम की छानबीन के लिए बनी कमेटी में दिल्ली पुलिस के अलावा दिल्ली महिला आयोग और शिकायकर्ता पक्ष तथा कुछ अन्य एजेंसियों के सदस्यों को भी शामिल किया गया.

21 दिसंबर से छापेमारी शुरू हुई तो आध्यात्मिक विश्वविद्यालय की सच्चाई सामने आई. दिल्ली के 8 आश्रमों से शुरू हुई जांच दूसरे राज्यों तक पहुंच गई. हर जगह एक ही शिकायत मिली कि आश्रमों में लड़कियों का यौन शोषण होता था. बाबा खुद उन्हें अपनी हवस का शिकार बनाता था.

हाईकोर्ट ने अपराध का दायरा बढ़ता देख इस मामले की छानबीन और वीरेंद्र देव को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश करने का जिम्मा सीबीआई को सौंप दिया.

Manohar Kahaniya: कातिल घरजमाई- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

इस के बाद शोभना और काव्या की लाशों को कब्जे में ले कर घटनास्थल की सारी काररवाई पूरी कर दोनों ही लाशों को बड़ौदा के सयाजीराव गायकवाड़ अस्पताल भिजवा दिया गया, जहां अगले दिन यानी सोमवार को दोनों लाशों का पोस्टमार्टम डा. आर.वी. पटेल ने अपने 2 सहयोगियों के साथ किया.

जहर से मौत की हुई पुष्टि

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया कि मांबेटी की मौत जहर से हुई थी, गला दबाने से नहीं. पर जहर देने के बाद दोनों का गला दबाया गया था, जिस का निशान शोभना के गले पर पाया गया था.

दोनों की मौत जहर से ही हुई थी, इस की सहीसही जानकारी के लिए दोनों के विसरा जांच के लिए भेज दिए गए थे. पोस्टमार्टम होने के बाद मृतका के घर वालों ने दोनों लाशों को पंचमहल स्थित गांव ले जा कर अंतिम संस्कार कर दिया.

पुलिस ने उसी दिन तेजस के घर जा कर तलाशी ली तो घर से चूहा मारने वाली दवा मिली. इस के अलावा डस्टबीन से कोन आइसक्रीम के रैपर, फ्रिज में आधी चौकलेट तथा आइसक्रीम मिली थी.

पुलिस ने पड़ोसियों से पूछा कि यहां चूहे बहुत हैं क्या? पड़ोसियों ने बताया कि यहां चूहे बिलकुल नहीं हैं. तब पुलिस यह सोचने पर मजबूर हो गई कि जब यहां चूहे नहीं हैं तो तेजस के घर चूहा मारने की दवा कहां से और क्यों आई? कहीं यह दवा उस ने पत्नी और बेटी को तो नहीं खिलाई थी?

अब तक मिले तथ्यों से पूरी तरह साफ हो गया था कि शोभना और काव्या की हत्या की गई थी और यह हत्या किसी और ने नहीं शोभना के पति और काव्या के पिता तेजस पटेल ने ही की थी.

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शक के आधार पर पुलिस ने तेजस को हिरासत में ले लिया. तेजस को थाने ला कर थानाप्रभारी ने जोन-4 के डीसीपी लखधीर सिंह की मौजूदगी में पूछताछ शुरू की.

तेजस ने बहाने तो बहुत बनाए, पर पुलिस के आगे उस की एक नहीं चली. क्योंकि सारे सबूत उस के खिलाफ थे. आखिर रोते हुए उस ने पत्नी और बेटी की हत्या का अपराध स्वीकार करते हुए कहा, ‘‘क्या करता सर, मैं बहुत परेशान हो गया था अपनी इस पत्नी से. उस ने मेरा जीना हराम कर दिया था. इसलिए मजबूर हो कर मैं ने उस की हत्या की है.’’

इस के बाद तेजस पटेल ने पत्नी और बेटी की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.गुजरात के जिला पंचमहल के गांव एरडी में अपने परिवार के साथ रहते थे चंद्रकांत बारिया. उन के परिवार में पत्नी बिमलाबेन के अलावा बेटा जितेंद्र बारिया तथा एक बेटी शोभना थी. चंद्रकांत बड़ौदा में नौकरीकरते थे. इसलिए उन का परिवार बड़ौदा में ही रहता था.

पहले वह बड़ौदा शहर में किराए के मकान में रहते थे. लेकिन जब उन का बेटा भी कमाने लगा तो उन्होंने बड़ौदा शहर से बाहर न्यू समा रोड पर स्थित चंदन पार्क सोसायटी में अपना मकान खरीद लिया. इस के बाद उन्होंने अपने बेटे की शादी कर दी.

बापबेटे मिल कर ठीकठाक कमा रहे थे. इसलिए उन्होंने जो मकान खरीदा था, उस में दो मंजिल और बनवा कर किराए पर उठा दिया था.

उन की बेटी शोभना ने बीए पास कर के पढ़ाई छोड़ दी थी. पढ़ाई छोड़ कर वह घर में ही रहती थी. जब वह शादी लायक हुई तो चंद्रकांत ने सन 2012 में उस की शादी पंचमहल में ही अपने पुश्तैनी गांव से करीब 15 किलोमीटर दूर नांदरवा गांव में तेजस पटेल के साथ कर दी थी. 12वीं पास कर के तेजस गांव में खेती करता था. शोभना उम्र में तेजस से 6 साल बड़ी थी.

तेजस की क्रोमा स्टोर में लगी नौकरी

शोभना शहर में रह कर पलीबढ़ी थी. भला वह गांव में कैसे रह सकती थी. उस ने यह बात अपने भाई और पिता से कही तो उस के भाई जितेंद्र बारिया ने तेजस को शादी के लगभग साल भर बाद यानी 2013 में बड़ौदा बुला लिया और यहां गेंडा सर्कल के पास स्थित क्रोमा स्टोर में सेल्समैन की नौकरी लगवा दी.

बड़ौदा में नौकरी लग जाने के बाद तेजस बड़ौदा में किराए का मकान ले कर पत्नी शोभना के साथ रहने लगा. बड़ौदा आने के लगभग डेढ़ साल बाद उन के घर एक बेटी पैदा हुई, जिस का नाम उन्होंने काव्या रखा.

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तेजस को उस स्टोर से जितना वेतन मिलता था, उस से उस का खर्च किसी तरह चलता था. जबकि शोभना की अपेक्षाएं बहुत ज्यादा थीं. उस में कभी तेजस के घर से कोई आ जाता तो उस का बजट गड़बड़ा जाता. जिसे ठीक करने में उसे कई महीने लग जाते.

उस का बजट ठीक होतेहोते फिर कोई आ जाता, जिस की वजह से वह हमेशा परेशान ही रहता था. इस का असर शोभना पर भी पड़ता. बजट गड़बड़ होने की वजह से तेजस उस की अपेक्षाएं पूरी नहीं कर पाता था, जिस की वजह से उस की तेजस से लड़ाई होती रहती थी.

बेटी होने पर घर का खर्च और बढ़ गया. तेजस का वेतन उतना नहीं बढ़ा था, जितना खर्च बढ़ गया था. खर्च को ले कर तेजस तो परेशान रहता ही था, साथ ही शोभना भी परेशान रहती थी. उस ने यह बात अपने पिता चंद्रकांत बारिया से कही तो वह भी बेटी की परेशानी से परेशान हो गए.

अब तक उन्होंने अपने मकान पर एक मंजिल और बनवा ली थी, जिसे अभी उन्होंने किराए पर नहीं दिया था. बेटीदामाद को परेशान देख कर उन्होंने बेटी से कहा, ‘‘बेटा, तुम ऐसा करो, अपना किराए का मकान छोड़ कर यहीं मेरे मकान में आ जाओ. वहां जो किराया दे रही हो, वह बचेगा, जो तुम्हारे अन्य खर्च में काम आएगा.’’

‘‘पर तेजस यहां आने को तैयार नहीं होगा.’’ शोभना ने कहा.

‘‘क्यों?’’ चंद्रकांत ने पूछा.

‘‘ससुराल में रहना उसे पसंद नहीं है. यहां रहना वह अपनी बेइज्जती समझता है.’’

‘‘इस में बेइज्जती की क्या बात है बेटा. अरे, जैसे मेरे लिए जितेंद्र है, उसी तरह तेजस है. इसलिए उसे यहां रहने में क्या परेशानी है.’’ चंद्रकांत ने कहा.

‘‘पापा, मैं तो इस बारे में तेजस से कुछ बात कर नहीं सकती. क्योंकि मैं कहूंगी तो मेरी बात वह मानेगा नहीं. इसलिए जो कुछ भी कहना है, आप ही कहिए. आप कहेंगे तो आप की बात वह टालेगा नहीं.’’ शोभना बोली.

इस के बाद ससुर के कहने पर तेजस पत्नी और बेटी के साथ ससुर के चंदन पार्क सोसायटी स्थित मकान में रहने आ गया. उस मकान में पहली मंजिल पर उस के सासससुर और दूसरी मंजिल पर साला जितेंद्र अपनी पत्नी के साथ रहता था. तीसरी मंजिल खाली थी, जिस में तेजस शोभना बेटी काव्या के साथ रहने लगा.

अब शोभना अपने मायके में थी. घर उस के बाप का था. मांबाप और भाई साथ ही रहते थे, इसलिए वह पति पर हावी होने लगी. वहां तेजस की बिलकुल नहीं चलती थी. जब तक तेजस बड़ौदा में किराए के मकान में रहा, वहां उस के मांबाप और भाईबहन भी कभीकभार मिलने आ जाते थे. लेकिन जब से वह ससुराल में रहने आया, शोभना उन के आने पर रोक लगाने लगी.

वह तेजस से साफ कहती, ‘‘यह घर मेरे बाप का है, तुम्हारे बाप का नहीं. इसलिए यहां वही आएगा, जिसे मैं चाहूंगी. ये जो तुम्हारे घर वाले हमें लूटने आते हैं न,  इन से साफसाफ कह दो, अब तक उन्होंने बहुत लूट लिया. यहां हमारा ही खर्च नहीं पूरा होता, उसी में वे लोग भी भीख मांगने आ जाते हैं.’’

पति पर शोभना हो गई हावी

तेजस पत्नी की इन बातों का जवाब तो देना चाहता, पर अब उस में हिम्मत नहीं रह गई थी और न ही उस की कोई सुनता था.

ऐसा नहीं है कि उस ने जवाब नहीं दिया. शुरूशुरू में उस ने शोभना को जवाब दिया था. पर उस के जवाब देने पर शोभना ने उस की शिकायत अपने मांबाप और भाई से कर दी थी.

उस के बाद तो सासससुर ने ही नहीं, साले ने भी उस की ऐसी बेइज्जती की थी कि उस के बाद उस ने यही तय कर लिया कि अब सासससुर और साले की बातें सुनने से अच्छा है कि बीवी की ही 4 बातें सुन ले. इसलिए शोभना जो कुछ भी उस से कहती, वह चुपचाप सुन लेता.

शोभना की बातें तेजस सुन जरूर लेता था, पर था तो वह भी मर्द. पत्नी 4 अच्छी बातें कहे, जो मन को सुकून पहुंचाएं तो अच्छी लगती हैं. पर दिल को जलाने वाली बातें कहे तो सभी का खून खौल उठता है.

वह कैसा भी मर्द क्यों न हो. पत्नी की हों या किसी की भी हों, मजबूरी में ही आदमी किसी की जलीकटी सुनता है. तेजस भी मजबूरी में ही पत्नी की जलीकटी सुन रहा था. पर अंदर ही अंदर वह सुलग रहा था. अब उसे बीवी से यानी शोभना से नफरत होने लगी थी.

अगले भाग में पढ़ें- अपमान का घूंट पी कर रह जाता तेजस

Manohar Kahaniya- राम रहीम: डेरा सच्चा सौदा के पाखंडी को फिर मिली सजा- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

18अक्तूबर, 2021 को सुबह से ही पंचकूला की विशेष सीबीआई अदालत के बाहर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे. अदालत के आसपास धारा 144 लागू कर दी गई थी. हत्या के जिस मामले में विशेष सीबीआई कोर्ट के जज सुशील कुमार गर्ग सजा का ऐलान करने वाले थे, उस में 5 आरोपी उन के सामने कठघरे में खडे़ थे. जबकि एक आरोपी पिछले कई घंटों से रोहतक की सुनारिया जेल से वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के जरिए जुड़ा था. इसी शख्स के कारण सुरक्षा के तमाम इंतजाम किए गए थे.

क्योंकि प्रशासन को आशंका थी कि उस के खिलाफ सजा का ऐलान होने से कहीं उस के भक्त भड़क कर हिंसा पर उतारू न हो जाएं. यह शख्स कोई छोटामोटा व्यक्ति नहीं, बल्कि डेरा सच्चा सौदा का मुखिया संत गुरमीत राम रहीम था, जिस के देशविदेश में लाखों समर्थक थे.

सरकारी वकील और बचाव पक्ष के वकीलों की कई घंटे दलील चली. आखिरकार कई घंटों की बहस के बाद सीबीआई जज सुशील कुमार ने अपना फैसला देते हुए डेरे के सेवादार रणजीत कुमार की हत्या के आरोप में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख संत गुरमीत राम रहीम, अवतार सिंह, जसबीर सिंह, सर्बदिल सिंह और कृष्णलाल को धारा 120बी, 302 एवं 506 के साथ उम्रकैद की सजा सुनाई.

इस मामले में आरोपित इंद्रसेन की सुनवाई के दौरान 8 अक्तूबर, 2020 को मौत हो गई थी. जज ने गुरमीत राम रहीम को 32 लाख रुपए का जुरमाना अदा करने की सजा भी सुनाई. यह रकम पीडि़त परिवार को देने का आदेश दिया.

सजा का ऐलान होते ही रोहतक की सुनारिया जेल से वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के जरिए कोर्ट के साथ जुड़े राम रहीम ने अपना सिर पकड़ लिया और वहीं जमीन पर बैठ गया.

ये वही गुरमीत राम रहीम था, जिस के आगेपीछे कुछ साल पहले तक लाखों अनुयायियों की भीड़ जुटी रहती थी. लेकिन अपने कर्मों के कारण आज वह सलाखों के पीछे एक नहीं बल्कि 3 आपराधिक मामलों में सजा भोग रहा है.

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रणजीत सिंह हत्याकांड की कहानी को समझने के लिए हमें पहले राम रहीम और उस के उस साम्राज्य की बात करनी होगी, जिस के गुमान में वह अपराध दर अपराध करते हुए आज सलाखों के पीछे है.

गुरमीत सिंह के डेरा प्रमुख राम रहीम बनने की कहानी

गुरमीत सिंह अपने मातापिता की इकलौती संतान था. उस का जन्म 15 अगस्त, 1967 को राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के गुरुसर मोदिया में जट सिख परिवार में हुआ था. उस के पिता का नाम मघर सिंह व मां का नाम नसीब कौर है. मातापिता हरियाणा के सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी थे.

महज 7 साल की उम्र में मातापिता ने 31 मार्च, 1974 को अपने बेटे गुरमीत सिंह को तत्कालीन डेरा प्रमुख शाह सतनाम सिंह के चरणों में समर्पित कर दिया था. जिस के बाद डेरे में ही उस की शिक्षादीक्षा शुरू हुई.

23 सितंबर, 1990 को शाह सतनाम सिंह ने देशभर से अनुयायियों का सत्संग बुलाया. उसी समय उन्होंने गुरमीत सिंह को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. गुरमीत सिंह हरियाणा के सिरसा में स्थित आध्यात्मिक संस्था डेरा सच्चा सौदा के तीसरे प्रमुख बने. जिस की स्थापना 1969 में शाह सतनाम सिंह के गुरु शाह मस्तानाजी ने की थी.

डेरा प्रमुख बनने से पहले ही गुरमीत सिंह का गृहस्थ जीवन शुरू हो चुका था. गुरमीत सिंह की 2 बेटियां और एक बेटा है. बड़ी बेटी चरणप्रीत और छोटी का नाम अमरप्रीत है. उस ने इन 2 बेटियों के अलावा एक बेटी हनीप्रीत को गोद लिया हुआ था. इस की बड़ी बेटी चरणप्रीत कौर के पति का नाम डा. शान-ए-मीत इंसां जबकि छोटी बेटी अमरप्रीत के पति का नाम रूह-ए-मीत इंसां है.

गुरमीत सिंह के बेटे जसमीत की शादी बठिंडा के पूर्व एमएलए हरमिंदर सिंह जस्सी की बेटी हुस्नमीत इंसां से हुई थी. डेरा सच्चा सौदा का साम्राज्य विदेशों तक फैला हुआ है.

अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड से ले कर आस्ट्रेलिया और यूएई तक उन के आश्रम व अनुयायी हैं. डेरे की तरफ से दावा किया जाता है कि दुनिया भर में उन के करीब 5 करोड़ अनुयायी हैं, जिन में से 25 लाख अनुयायी अकेले हरियाणा में ही मौजूद हैं.

बहरहाल, गद्दी संभालने के बाद गुरमीत सिंह ने सर्वधर्म समभाव का संदेश देने के लिए अपने नाम में सभी धर्मों के नाम शामिल किए और अपना नाम गुरमीत सिंह से बदल कर गुरमीत राम रहीम सिंह रख लिया. जिस कारण चौतरफा उन की प्रशंसा हुई.

उन्होंने जाति प्रथा की समाप्ति का आह्वान किया तथा अपने भक्तों से जातिवाचक नाम हटा कर ‘इंसां’ नाम लगाने को प्रेरित किया. गुरमीत राम रहीम ने कई वेश्याओं को अपनी पुत्री का दरजा दे कर अपनाया व अनुयायियों से आह्वान कर उन के घर बसाए.

उन्होंने सफाई के कई अभियान चलाए. ऐसे कई काम थे, जिस कारण संत गुरमीत राम रहीम की शोहरत दुनिया भर में फैलने लगी और उन के भक्तों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी.

लेकिन इंसान चाहे साधारण हो या कोई संत, अगर अपनी इच्छाओं और कामनाओं पर अंकुश न रख सके तो शोहरत को कलंक लगने में देर नहीं लगती. गुरमीत राम रहीम के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.

गुरमीत राम रहीम सन 2002 में पहली बार सुर्खियों में तब आए, जब उन के ऊपर डेरे की साध्वियों के यौनशोषण के आरोप लगे. उसी साल उन के खिलाफ यौन शोषण की खबर छापने वाले सिरसा के एक स्थानीय पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या हो गई. इस के आरोप भी डेरामुखी पर ही लगे.

अचानक शोहरत की बुलंदियां छूते राम रहीम अपने किसी न किसी कारनामे के कारण आए दिन मीडिया की सुर्खियां बनने लगे. डेरामुखी राम रहीम ने अपने ऊपर लगे आरोपों से निकलने के लिए एक के बाद ऐसी गलतियां कीं, जिस से वह अपराध की दलदल में गहरे तक फंसते चले गए.

जब हुआ बेनकाब डेरे में चल रही अय्याशगाह का खेल

28 अगस्त, 2017 को सीबीआई कोर्ट ने पहली बार गुरमीत राम रहीम को 4 साध्वियों के बलात्कार मामले में 20 साल की जेल व 30 लाख रुपए जुरमाने की सजा सुनाई थी. जिस मामले में उन्हें सजा सुनाई गई थी. डेरे में चल रहे साध्वियों के यौन उत्पीड़न के खुलासे की कहानी बेहद रोचक है.

हुआ यूं कि साल 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को एक गुमनाम पत्र मिला. इस में एक गुमनाम साध्वी ने लिखा कि वह पंजाब की रहने वाली है और सिरसा के डेरा सच्चा सौदा में 5 साल से रह रही है. डेरे में साध्वियों का यौन शोषण किया जा रहा है. लेटर में बठिंडा, कुरुक्षेत्र की कुछ साध्वियों के यौन शोषण किए जाने की बात भी लिखी थी.

साध्वी के पत्र में लिखी बातों का कुछ हिस्सा बेहद आपत्तिजनक था. इस गुमनाम पत्र के बाद से ही बवाल शुरू हो गया था.

2002 में गुमनाम साध्वी की लिखी चिट्ठी की गोपनीय जांच शुरू हो गई, लेकिन इसी बीच ये चिट्ठी मीडिया के जरिए सार्वजनिक हो गई, जिस पर संज्ञान लेते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सीबीआई को मामले की जांच सौंप दी.

सीबीआई ने डेरे के मैनेजर इंद्रसेन से 1999 से 2001 तक की साध्वियों की लिस्ट मांगी तो 2005 में सीबीआई को 3 लिस्ट मिलीं. पहली लिस्ट में 53, दूसरी में 80 और तीसरी लिस्ट में 24 साध्वियों के नाम थे.

राम रहीम के खिलाफ सबूत जुटाने के लिए सीबीआई ने 1997 से 2002 के बीच डेरा छोड़ चुकी 24 साध्वियों पर फोकस किया. इन में से 18 को ही सीबीआई ट्रेस कर पूछताछ कर पाई. इन में भी सिर्फ 2 ही साध्वियां अदालत तक पहुंचीं और और अपने बयान दर्ज कराए. इन शादीशुदा साध्वियों के बच्चे भी हैं.

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जो साध्वी सीबीआई के सामने आईं, उस में से फतेहाबाद की एक पूर्व साध्वी ने 4 मई, 2006 को सीबीआई के सामने बयान दर्ज कराया. उस ने बताया कि 1998 में डेरा में बतौर साध्वी जौइन किया था. वह शाह सतनामजी स्कूल में पढ़ाती थी. 6 महीने बाद उस की बहन भी साध्वी बन गई. बाबा ने उस का नाम नाजम और बहन का तसलीम रखा.

बाबा गर्ल्स हौस्टल के पास बनी अपनी गुफा में रहता था और गुफा के बाहर साध्वियों को ही संतरी रखता था. जिन की ड्यूटी रात 8 बजे से 12 और 12 बजे से 4 बजे 2 शिफ्टों में होती थी.

एक दिन उसे रात को 10 बजे गुफा में बुलाया गया, जहां बाबा ने उस के साथ जबरन रेप किया. वह रोती हुई गुफा से निकली और हौस्टल चली गई. वहां पर उस ने किसी को कुछ नहीं बताया. मगर उस दिन उस की बहन ने बताया कि बाबा उस के साथ भी रेप कर चुका है.

रेप होने के एक साल बाद उसे डेरे के मैनेजर ने बुलाया और कहा कि बाबा ने उसे गुफा में बुलाया है. मगर पहले हुई घटना के कारण उस ने गुफा में जाने से मना कर दिया.

इस के बाद मैनेजर ने उसे ऐसा करने पर भूखा रखने की धमकी दी. मजबूर हो कर उसे गुफा में दोबारा जाना पड़ा और बाबा ने उस के साथ फिर रेप किया.

दोनों बहनों ने हौस्टल की दूसरी साध्वियों को भी बाबा की गुफा से कई बार रोते हुए निकलते देखा था. एक बहन ने तो अपने साथ हुई घटना के तुरंत बाद डेरा छोड़ दिया. दूसरी साध्वी बहन भी डेरा छोड़ना चाहती थी, मगर उस के भाई की बेटियां डेरे में बीए की पढ़ाई कर रही थीं. इस कारण उसे वहां रुकने के लिए मजबूर होना पड़ा.

फिर अप्रैल, 2001 में उस ने अपने भाई और उस की दोनों बेटियों समेत डेरा छोड़ दिया.

दोनों बहनों के डेरा छोड़ने के बाद ही प्रधानमंत्री कार्यालय को गुमनाम चिट्ठी मिली थी. बहरहाल, साध्वी के बयान कोर्ट में दर्ज कराने के बाद सीबीआई ने बाबा के साथ एक आरोपी अवतार सिंह, डेरा मैनेजर इंद्रसेन और मैनेजर कृष्णलाल को आरोपी बना कर उन का चंडीगढ़ और दिल्ली में लाई डिटेक्टर टेस्ट कराया.

जहां झूठ पकड़ने वाली मशीन से खुलासा हुआ कि डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम साध्वियों का यौन शोषण करता था.

दोनों साध्वियों ने सीबीआई और अदालत को अपनी जो आपबीती सुनाई, उस में कहा था कि बाबा हर रोज साध्वियों को गुफा में बुलाता था और रेप करता था. उस के शीश महल जिसे वह गुफा कहता था, वहां से साध्वियां हर रोज रोते हुए बाहर निकलती थीं.

गुफा के आसपास बने हौस्टलों में 200 से ज्यादा सुंदर साध्वियों को रखा गया था.  बाबा की गुफा के आसपास रात के वक्त महिला साध्वियों को गार्ड के रूप में तैनात किया जाता था.  साध्वियों से दुष्कर्म का यही वो केस था, जिस के बाद गुरमीत राम रहीम नायक से खलनायक और संत से अपराधी बन गया था.

प्रधानमंत्री कार्यालय में भेजे गए गुमनाम साध्वी के इस पत्र को पहले गृह मंत्रालय को सौंपा गया था. जहां से बाद में पत्र की जांच का जिम्मा सिरसा के सेशन जज को सौंपा गया. इसी दौरान हाईकोर्ट ने भी इस पर संज्ञान ले लिया था.

दिसंबर 2002 में  राम रहीम के खिलाफ धारा 376, 506 और 509 आईपीसी के तहत केस दर्ज किया गया था. दिसंबर 2003 में  इस केस की जांच सीबीआई को सौंपी दी गई. जांच अधिकारी सतीश डागर ने केस की जांच शुरू की और आखिर साल 2005-2006 में उस साध्वी को ढूंढ निकाला, जिस का यौन शोषण हुआ था.

जुलाई 2007 में  सीबीआई ने केस की जांच पूरी कर अंबाला सीबीआई कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी. अंबाला से केस की सुनवाई पंचकूला शिफ्ट कर दी गई. चार्जशीट के मुताबिक, डेरे में 1999 और 2001 में कुछ और साध्वियों का भी यौन शोषण हुआ, लेकिन वे मिल नहीं सकीं.

अगस्त 2008 में साध्वियों से दुष्कर्म  केस का ट्रायल शुरू हुआ और डेरा प्रमुख राम रहीम के खिलाफ आरोप तय कर दिए गए. साल 2011 से 2016 तक  केस का ट्रायल चला और डेरा प्रमुख राम रहीम की ओर से बड़ेबड़े वकील लगातार जिरह करते नजर आए.

जुलाई 2016 तक चली केस की सुनवाई के दौरान कुल 52 गवाह पेश किए गए, इन में 15 प्रौसिक्यूशन और 37 डिफेंस के थे. और फिर वह दिन आ गया, जब राम रहीम की गरदन इस केस में पूरी तरह फंसी नजर आई और जून 2017 में कोर्ट ने डेरा प्रमुख के विदेश जाने पर रोक लगा दी.

17 अगस्त, 2017 को दोनों पक्षों की ओर से चल रही जिरह खत्म हो गई और फैसले के लिए 25 अगस्त की तारीख तय की गई. 25 अगस्त, 2017 को पंचकूला सीबीआई कोर्ट के जज जगदीप सिंह ने राम रहीम को उम्र कैद की सजा सुनाई.

राम रहीम के खिलाफ सजा दिए जाने के आदेश के बाद डेरा सर्मथकों ने पंचकूला और सिरसा में जम कर उत्पात मचाया और हिंसा की, जिस में करीब 41 लोगों की मौत हुई. अदालत के फैसले के खिलाफ सिरसा व पंचकूला में हुई हिंसा के बाद गुरमीत राम रहीम के डेरा सच्चा सौदा पर पुलिस के छापे पडे़ तो वहां से हथियारों का जखीरा बरामद हुआ.

अगले भाग में पढ़ें- फ्रीज हुए डेरा के 90 बैंक एकाउंट

अपराध: लव, सैक्स और गोली

एक शादीशुदा और 2 बच्चों की मां खुशबू अपने पति राजीव सिंह के जिम ट्रेनर के गठीले बदन पर कुछ इस कदर फिदा हुई कि उस की मुहब्बत एक दिन नफरत में बदल गई और अपने आशिक की जान लेने के लिए कौंट्रैक्ट किलर की मदद से उस पर गोलियों की बौछार करवा दी.

लव, सैक्स और गोली के इस केस में खुशबू, राजीव समेत सभी आरोपी पुलिस के फंदे में फंस चुके हैं. राजीव फिजियो थैरेपिस्ट है और जनता दल (यू) के मैडिकल सैल का उपाध्यक्ष है. इस केस में नाम आने के बाद पार्टी ने उसे पद से हटा दिया है.

पिछले 18 सितंबर की सुबह 6 बजे विक्रम लोहानीपुर महल्ले के अपने घर से जिम जाने के लिए स्कूटी से निकला, तो रास्ते में कदमकुआं इलाके के बुद्ध मूर्ति के पास शूटरों ने उस पर गोलियां चला दीं.

विक्रम लहूलुहान हो कर स्कूटी से गिर पड़ा और आसपास खड़े लोगों से अस्पताल पहुंचाने की गुहार लगाने लगा. किसी ने दर्द से छटपटाते विक्रम की बात नहीं सुनी. आखिरकार खून से लथपथ विक्रम खुद ही उठा और स्कूटी चला कर पास के प्राइवेट अस्पताल पहुंचा.

प्राइवेट अस्पताल ने उसे भरती करने से इनकार कर दिया, तो वह पटना मैडिकल कालेज पहुंचा. वहां तुरंत आपरेशन किया गया और उस के जिस्म से 5 गोलियां निकाली गईं.

आशिकी के चक्कर में खुशबू ने विक्रम पर सुपारी किलर से गोलियां चलवाई थीं. इस के लिए पुराने दोस्त मिहिर सिंह के जरीए सुपारी किलर को ढाई लाख रुपए दिए गए थे.

पुलिस ने मामले का खुलासा करते हुए कहा कि राजीव, खुशबू, मिहिर

और 3 सुपारी किलरों को गिरफ्तार किया गया है. सुपारी किलर अमन कुमार, शमशाद और आर्यन उर्फ रोहित से पुलिस पूछताछ कर चुकी है और सभी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया है.

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18 सितंबर को सुपारी किलरों ने विक्रम के जिस्म में 5 गोलियां दागी थीं. अपराधियों ने कबूल किया कि उन्हीं लोगों ने विक्रम पर गोलियां चलाई थीं और इस काम के लिए मिहिर ने उन्हें रुपए दिए थे.

अमन एमबीए का स्टूडैंट है और डिलीवरी बौय का काम करता है. शमशाद गोवा में राजमिस्त्री का काम करता था और लौकडाउन की वजह से वह पटना आया हुआ था. अमन और शमशाद भागवतनगर में किराए के मकान में साथ रहते हैं. मकान का किराया 14,000 रुपए है. मिहिर के चचेरे भाई सूरज ने मिहिर की मुलाकात अमन से कराई थी.

जिम ट्रेनर को जान से मारने की धमकी देने का आडियो भी पुलिस को मिला. ट्रेनर की बीवी और परिवार वालों ने पुलिस को बताया कि आडियो में धमकी देने वाली महिला खुशबू की आवाज है, जो फिजियो थैरेपिस्ट राजीव कुमार सिंह की बीवी है.

ट्रेनर की बीवी वर्षा का आरोप है कि फिजियो थैरेपिस्ट की बीवी ने उस के पति को फोन पर गंदीगंदी गालियां भी दी थीं. उस ने बताया कि खुशबू अकसर पटना मार्केट के ‘द जिम सिटी’ पहुंच जाती थी.

पहले तो फिजियो थैरेपिस्ट राजीव ने पुलिस को बताया कि जिम ट्रेनर विक्रम पर हुए हमले में उस का और उस की बीवी का कोई हाथ नहीं है.

अलबम बनाने के नाम पर विक्रम ने 60,000 रुपए लिए थे. अलबम नहीं बनाने पर राजीव और विक्रम से तीखी नोकझोंक हुई थी और रुपया लौटाने की बात हुई थी. बाद में विक्रम ने राजीव के अकाउंट में 40,000 रुपए और खुशबू के अकाउंट में 20,000 रुपए डाल दिए थे. मई महीने के बाद से राजीव और विक्रम से कोई बातचीत नहीं हुई थी.

एसएसपी उपेंद्र शर्मा ने बताया कि खुशबू का कहना है कि विक्रम उस का पीछा नहीं छोड़ रहा था और वह उस से पीछा छुड़ाना चाह रही थी. खुशबू का कहना है कि 60,000 रुपए के लेनदेन को ले कर विवाद पैदा हुआ था.

पुलिस को दिए गए बयान में विक्रम ने कहा है कि खुशबू उसे पिछले एक साल से परेशान कर रही थी. एक साल तक वह राजीव को उन के पाटलीपुत्र कालोनी वाले घर में ऐक्सरसाइज कराने जाता था. पैसे को ले कर हिसाबकिताब ठीक नहीं रहने पर उस ने वहां जाना बंद कर दिया. उस के बाद खुशबू ने उसे सोशल मीडिया के जरीए तंग करना चालू कर दिया. एक बार खुशबू ने गुस्से में उस के सीने पर ब्लेड से हमला किया था.

पुलिस ने खुशबू और राजीव के मोबाइल फोन को खंगाला तो खुलासा हुआ कि जनवरी में खुशबू और विक्रम के बीच 1100 बार बातचीत हुई. राजीव से आखिरी बार 18 अप्रैल को बात

हुई थी. उन के बीच ह्वाट्सएप और वीडियो काल के जरीए बातचीत होती थी.

सितंबर, 2020 से मई, 2021 के बीच खुशबू ने विक्रम को 1875 काल की थी. दोनों के बीच साढ़े 5 लाख सैकंड बातचीत हुई थी. इतने ही समय के दौरान खुशबू ने अपने पति राजीव को महज 13 बार फोन किया. खुशबू और विक्रम के बीच अकसर घंटों बातें होती थीं.

मिहिर ने पुलिस को बताया कि वह 5-6 सालों से खुशबू को जानता था. खुशबू ने ही उस से कहा था कि विक्रम उसे परेशान करता है, इस वजह से वह उस की हत्या करवाना चाहती है. सुपारी किलर को जुलाई में ही एक लाख, 85 हजार रुपए दिए थे. एसएसपी ने बताया कि कुछ साल पहले मिहिर और खुशबू की पहचान भी फेसबुक के जरीए ही हुई थी.

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पुलिस की छानबीन से यह बात भी सामने आई कि 5-6 साल पहले खुशबू और मिहिर के बीच भी गहरा रिश्ता रहा था. मिहिर भी खुशबू का प्रेमी रह चुका है. जब विक्रम ने खुशबू से कन्नी काटना शुरू किया, तो खुशबू को पुराने आशिक मिहिर की याद आई. उस ने मिहिर से कहा कि विक्रम उसे बहुत परेशान कर रहा है और फिर दोनों ने मिल कर विक्रम को रास्ते से हटाने की साजिश रची.

खुशबू ने मिहिर से यह भी कहा कि विक्रम को ठिकाने लगाने के लिए वह रुपयों की चिंता न करे. विक्रम को मारने के लिए मिहिर ने खुशबू से 3 लाख रुपए मांगे. खुशबू ने 3 किस्तों में एक लाख, 85 हजार रुपए मिहिर को दिए.

मिहिर ने अपने चचेरे भाई सूरज के साथ मिल कर पूरी साजिश रची. उस के बाद शार्प शूटर अमन, आर्यन और शमशाद को विक्रम को मारने की सुपारी दी गई.

शूटरों के साथ यह डील अगस्त महीने की शुरुआत में ही हुई थी. अगस्त महीना खत्म हो गया और उस के बाद सितंबर भी आधा खत्म हो गया और विक्रम को ठिकाने नहीं लगाया जा सका तो खुशबू परेशान हो गई. उस ने मिहिर पर दबाव बनाना शुरू किया.

विक्रम राजीव को जिम ट्रेनिंग देने के लिए उस के घर पर जाता था. वहीं खुशबू से जानपहचान हुई और बातचीत शुरू हुई. विक्रम के गठीले बदन को देख खुशबू उस पर फिदा हो गई. वह धीरेधीरे विक्रम के करीब आती गई. वह पटना मार्केट के पास विक्रम के जिम में पहुंचने लगी और वहीं कईकई घंटों तक बैठी रहती थी.

विक्रम ने पुलिस को बताया कि वह उस के साथ जिस्मानी रिश्ता बनाना चाहती थी. ऐसा नहीं करने पर वह उसे फंसाने और ब्लैकमेल करने की धमकी देने लगी. जब विक्रम उस से दूर रहने की कोशिश करने लगा तो एक रात को विक्रम के घर पहुंच गई और हंगामा मचाने लगी.

खुशबू की हरकतों से आजिज आ कर विक्रम ने डाक्टर राजीव को फोन कर सारे मामले की जानकारी भी

दी. विक्रम ने उस से कहा कि खुशबू उसे पिछले कई दिनों से परेशान कर रही है.

डाक्टर राजीव ने विक्रम की बातों पर यकीन नहीं किया और उस से कहा कि सुबूत ले कर आओ, उस के बाद देखा जाएगा.

विक्रम के बयान पर कदमकुआं थाने में केस दर्ज किया गया. केस नंबर है-477/2021. आरोपियों पर आईपीसी की धारा-307, 120बी, 34 और 27 के तहत केस दर्ज किया गया है.

Satyakatha- केरला: अजब प्रेम की गजब कहानी- भाग 1

सौजन्य: सत्यकथा

Writer- शाहनवाज

8जून, 2021 का दिन था. केरल में पलक्कड़ जिले के एक छोटे से गांव अयालुर का रहने वाला

बशीर अपने काम से पास के छोटे शहर, विथानासेरी जाने के लिए घर से निकला. पेशे से ड्राइवर बशीर अकसर विथानासेरी आया करता था.

बशीर के गांव अयालुर से विथानासेरी गांव की दूरी सिर्फ 7 किलोमीटर (15 मिनट) ही थी. बशीर जो मिनीट्रक चलाया करता था, वह उस का खुद का नहीं था. उस का काम मालिक के कहे अनुसार ट्रक में सामान लोड करवा कर कहे गए एड्रेस पर पहुंचाना था.

विथानासेरी पहुंच कर बशीर ने अपने जानकार की दुकान पर मिनीट्रक में लोड किया हुआ सामान उतरवाया और अयालुर वापस जाने के लिए उस ने ट्रक घुमाया ही था कि उसे सड़क के दूसरी ओर बाइक पर सवार एक आदमी दिखाई दिया.

उस की बाइक की पिछली सीट पर काले रंग का मध्यम साइज का बैग, उस के कंधों से लटका हुआ था. उस ने अपने सिर पर हेलमेट नहीं पहना था और वह धीमी रफ्तार से बाइक चला रहा था.

बाइक चालक को देख कर बशीर एकदम से एक पल के लिए हैरान रह गया था. वह उसे देख कर कुछ पलों के लिए मानो थम सा गया.

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बशीर को उस के चेहरे में कुछ अपनापन सा महसूस हुआ. उसे देख कर वह अपने मन में खुद से सवाल पूछने लगा, ‘क्या ये वही है? लग तो वही रहा है. अगर यह वो नहीं हुआ तो..?’

मन ही मन खुद को सवालों के घेरे में डालते हुए उस ने देखा कि बाइक सवार की आंखें उस की आंखों से जा मिलीं.

आंखें मिलते ही बाइक सवार ने अचानक से अपनी स्पीड तेज कर ली. उस के चेहरे के हावभाव अचानक से बदल गए थे. यह देख कर बशीर ने अपने मन में फिर से कहा, ‘हां हां, यह वही है. पक्का वही है.’

उस की हरकत देख कर बशीर को यकीन हो गया था कि वह जो सोच रहा था, वह वही निकला.

इतने में तेजी से बाइक चलाते हुए वह शख्स आगे निकल गया. यह देख कर बशीर ने चीखते हुए उसे आवाज लगाई, ‘‘रहमान…रहमान… रुक जा रहमान.’’

बशीर को चीखता देख आसपास के लोग भी अचानक से सचेत हो गए थे. लेकिन बशीर ने किसी ओर ध्यान न देते हुए अपने मिनीट्रक को दोबारा से घुमाया और रहमान का पीछा करने लगा.

कुछ देर तक उस का पीछा करने के बाद, उस ने देखा कि रहमान ने अपनी बाइक शहर में उन संकरी गलियों की तरफ मोड़ ली, जहां पर उस का मिनीट्रक ले जाना मुमकिन नहीं था.

लेकिन बशीर ने फिर भी हार नहीं मानी. उस ने गली के मुहाने पर अपनी मिनीट्रक खड़ी की और भागते हुए गली में बाइक का पीछा करने लगा.

कुछ देर तक भागने के बाद बशीर की सांसें फूलने लगीं तो वह धीमा हो गया और अंत में हांफते हुए गली में एक घर के सामने जा कर बैठ गया.

उस की आंखों के सामने से रहमान धीरेधीरे ओझल होता हुआ नजर आया, लेकिन अफसोस वह अब और उस का पीछा नहीं कर पाया.

कुछ देर तक वहां सुस्ता कर जब उस के फेफड़ों में दोबारा से जान आई तो वह भारी कदमों से अपनी गाड़ी तक गया और अपने गांव वापस आ गया.

दरअसल, बशीर विथानासेरी में जिस शख्स के पीछे भाग रहा था, वह कोई अनजान इंसान नहीं था, बल्कि वह उस का छोटा भाई रहमान था. रहमान 2 मार्च को अपने घर से अचानक से गायब हो गया था. बड़े भाई बशीर और घर वालों ने रहमान के लापता होने की सूचना भी नेम्मारा पुलिस थाने में लिखवाई थी. जिस के बाद रहमान को ढूंढने के लिए सर्च औपरेशन भी चला था.

कुछ समय तक परिवार और पुलिस ने मिल कर रहमान को बहुत ढूंढा, लेकिन वह नहीं मिला. परिवार इस बात से काफी सदमे में था कि रहमान के इस तरह से घर छोड़ जाने की कोई खास वजह नहीं थी. बल्कि रहमान की मानसिक स्थिति पर उन को शक होता था कि वह मानसिक रूप से बीमार है.

बशीर के साथ शहर में जो कुछ हुआ था, उस ने यह बात अपने घरवालों को बताई. बशीर और रहमान के पिता मोहम्मद करीम और मां अथिका को यह खबर सुन कर खुशी तो हुई लेकिन उस से भी कहीं ज्यादा उन्हें आश्चर्य हुआ कि 3 महीनों बाद अचानक से रहमान दिखाई दिया पर वह बशीर को देख कर भाग क्यों गया?

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यह सवाल उन के दिमाग में शक के गहरे बीज बोने लगा था. इस शक को दूर करने के लिए पिता मोहम्मद करीम ने बशीर को नेम्मारा थाने में फिर से जाने के लिए कहा और रहमान को ढूंढने के लिए पुलिस की मदद लेने की सलाह दी.

बशीर ने वैसा ही किया. वह नेम्मारा थाने गया और थानाप्रभारी से मिल कर उस ने विस्तार से बीते कल की घटना का ब्यौरा दिया. बशीर ने थानाप्रभारी से रहमान की गुमशुदगी की बंद पड़ी फाइल को दोबारा से खोलने का निवेदन किया और वे मान गए.

थानाप्रभारी ने वक्त न गंवाते हुए पुलिसकर्मियों की कई टीमों का गठन किया और उस जगह पर छानबीन करनी शुरू दी, जहां पर रहमान को आखिरी बार देखा गया था.

लगातार 2 दिनों की तलाश के बाद पुलिस ने अंत में रहमान को ढूंढ ही निकाला. उसे उसी गली में एक मकान से ढूंढ निकाला गया, जहां पर बशीर ने उसे आखिरी बार देखा था. वह एक लड़की के साथ उस मकान में किराए पर रह रहा था.

रहमान की तलाश पूरी होने के बाद पुलिस ने उसे स्थानीय कोर्ट में पेश किया. जहां पर रहमान ने न्यायाधीश, पुलिस और अपने परिवार के सामने यह बात कुबूल की कि वह जानबूझ कर 3 महीने पहले मार्च में अपने घर से बिना किसी को बताए निकल गया था.

उस ने बताया कि वह एक लड़की से प्यार करता था और उसी के साथ वह पूरी जिंदगी गुजारना चाहता था.

लेकिन वह लड़की दूसरे धर्म की होने की वजह से उसे इस बात का डर था कि उस के परिवार वाले उस के रिश्ते को मंजूरी नहीं देंगे. जिस की वजह से उसे अपना घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा.

यह सुन कर माननीय अदालत ने पुलिस को रहमान की प्रेमिका को कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए. अगले दिन जब रहमान की प्रेमिका साजिता कोर्ट में दाखिल हुई तो रहमान के घर वाले उसे देख कर हैरान रह गए.

साजिता को देख कर वे हक्केबक्के रह गए कि उन्हें ऐसा महसूस होने लगा जैसे मानो उन के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई हो.

रहमान की प्रेमिका साजिता वही लड़की थी, जो 11 साल पहले एक दिन अचानक अपने घर से लापता हो गई थी. जिस के बाद उस का कहीं कोई नामोनिशान नहीं मिला था.

दरअसल साजिता भी रहमान के गांव की रहने वाली थी. साजिता का घर रहमान के घर से मात्र 500 मीटर की दूरी पर ही था. 11 सालों के बाद एक दिन अचानक साजिता का इस तरह से अवतरित हो जाना किसी करिश्मे से कम नहीं था.

यह बात फैलने में ज्यादा समय नहीं लगा. जब साजिता के मातापिता शांता और वेलायुधन को साजिता के दोबारा से मिलने की खबर मिली तो वह भी उसी तरह से हैरानपरेशान थे जिस तरह हर कोई था.

साजिता के मातापिता बहुत पहले ही अपनी बेटी को मरा हुआ समझ बैठे थे. उन्होंने साजिता के वापस आने की हर उम्मीदों को खो दिया था.

लोगों के मन में रहमान साजिता के मिलने की खुशी से ज्यादा सवाल उठ रहे थे. लोग सोच रहे थे कि 11 साल पहले लापता हुई साजिता आखिर इतने समय से थी कहां?

 

साजिता को ढूंढने के लिए परिवार समेत पुलिस के सारे तरीके नाकाम साबित हुए थे. आखिर साजिता इतने समय तक किस के साथ छिपी थी?

साजिता को कोर्ट में पेश किए जाने के बाद दोनों ने माननीय न्यायाधीश के सामने अपनी प्रेम कहानी बताई, जिसे सुन कर सब की आंखें खुली रह गईं.

साजिता रहमान के साथ रहने के लिए 11 साल पहले अपना घर छोड़ कर भागी जरूर थी, लेकिन वह कभी भी अपने गांव से बाहर ही नहीं निकल पाई.

घर से निकलने के बाद साजिता 11 सालों से रहमान के साथ उसी के घर में, उस के कमरे में ही रह रही थी जिस की किसी को कानोंकान खबर तक नहीं हुई.

रहमान और साजिता की यह अनोखी प्रेम कहानी उस समय शुरू हुई, जब वे दोनों ही अपनी किशोरावस्था में थे. वे दोनों एक ही गांव में, आसपड़ोस में रहते थे. दोनों के घर के बीच 500 मीटर से भी कम की दूरी थी. उन के घरपरिवार के आर्थिक हालात भी एक जैसे ही थे.

साजिता और रहमान दोनों ने ही गांव के सरकारी स्कूल से अपनी 12वीं की पढ़ाई पूरी की थी, जिस के बाद रहमान ने परिवार की स्थिति को देखते हुए गांव में एक इलैक्ट्रीशियन से बिजली का काम सीख लिया और साजिता ने अपने घर में ही छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया था.

उम्र में रहमान साजिता से मात्र 5 साल ही बड़ा था. वैसे तो रहमान और साजिता बचपन से ही एकदूसरे को जानते थे, लेकिन उन के बीच बातचीत तब शुरू हुई जब एक दिन रहमान उस के घर पर बिजली ठीक करने आया था. और ऐसा भी नहीं था कि दोनों के परिवार एकदूसरे को न जानते हों.

छोटे गांवों में आसपड़ोस में रहने का यही तो फायदा होता है कि वहां हर कोई एकदूसरे को जानतापहचानता और समझता है.

अगले भाग में पढ़ें- साजिता और रहमान के घर वाले भी गहरी नींद में थे सिवाय उन दोनों के…

Manohar Kahaniya: 2 महिलाओं की बलि देकर बच्चा पाने का ऑनलाइन अनुष्ठान- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

उस की मौत के कुछ दिन पहले की काल डिटेल्स का एनालिसिस किया गया. लिस्ट में अधिकांश महिलाओं के नाम थे. उन्हीं में से एक नाम रोशनी का भी था, जिस की पिछले 2 दिनों में आरती से कुछ ज्यादा ही बातें हुई थीं. रोशनी ने उसे कई बार काल की थी और बातचीत के कुछ काल 4-5 मिनट से भी अधिक के थे.

पुलिस ने रोशनी को पूछताछ के लिए थाने बुलवाया. उस ने भी राहुल की तरह सिरे से इनकार कर दिया कि लक्ष्मी उर्फ आरती की मौत से उस का कोई संबंध है. हालांकि वह दुखी हो कर बोली कि उस के मरने से उस का 2 हजार रुपया भी डूब गया.

उस ने बताया कि उस ने उसे एक काम के लिए 10 हजार रुपए दिलवाए थे. उस में से मुझे भी 2 हजार मिलने वाले थे. वह अकसर उसे काम दिलवाया करती थी. उस के बदले में उसे भी कुछ कमीशन मिल जाता था.

काम के बारे में पूछने पर उस ने ‘छोडि़ए न साहब’ कहते हुए टाल दिया था. बहुत कुरेदने पर बताया कि अमीरों की पर्टियों में उन्हें मेहमानों की खतिरदारी आदि के लिए बुलाया जाता था. यही उन का काम था.

रोशनी पर पुलिस ने अतिरिक्त दबाव बनाया. उन्हें लगा कि वह आरती के बारे में कुछ जानकारी दे सकती है. बातोंबातों में रोशनी ने स्वीकार कर लिया कि वह भी अपने परिवार से अलग रहती है. उस का परिवार में कोई नहीं है.

रोशनी आरती की तरह तलाकशुदा तो नहीं थी, लेकिन पति द्वारा दूसरी शादी करने के बाद से ही वह अलग रह रही थी. बदले में खर्च के लिए पति से महीने के 8000 रुपए  वसूलती है. पति उस का बच्चा अपने साथ रखता है. रोशनी ने यह भी बताया कि उस की जानपहचान मीरा राजावत के प्रेमी नीरज परमार से भी है.

रोशनी के मुंह से मीरा राजावत का नाम निकलते ही पुलिस के कान खडे़ हो गए, कारण मीरा के बारे में पुलिस को पहले भी काफी विरोधाभासी जानकारी मिल चुकी थी. उस में नई जानकारी उस के प्रेमी की जुड़ गई थी. रोशनी ने बताया कि मीरा और नीरज दोनों लिवइन रिलेशनशिप में हैं. उन की शादी नहीं हुई है, लेकिन साथसाथ रहते हैं.

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नीरज के फोन से पुलिस को मिलीं खास तसवीरें

नीरज ने ही आरती को एक रात के लिए 10 हजार रुपए देने की पेशकश की थी. काम कुछ खास बताया था. रोशनी के कहने पर आरती के साथ सौदा तय हुआ था. जिस में से आरती ने रोशनी को पैसे मिलने के बाद 21 अक्तूबर को कमीशन के 2 हजार रुपए देने का वादा किया था.

यह तारीख भी पुलिस के लिए महत्त्वपूर्ण थी, क्योंकि उसी दिन आरती की लाश बरामद हुई थी और पहली जांच के अनुसार उस की मौत होने का अनुमान भी 20 अक्तूबर की आधी रात का लगाया गया था. उस के बाद पुलिस को धीरेधीरे लगने लगा था कि उस की जांच सही दिशा में जा रही है.

पूछताछ की अगली कड़ी में 2 नाम मीरा राजावत और नीरज परमार के भी जुड़ गए थे. पुलिस ने बगैर देरी के मीरा और उस के प्रेमी नीरज परमार को थाने बुलवा लिया था. रोशनी को अलग कमरे में बिठा कर उन से दूसरे कमरे में पूछताछ की जाने लगी.

पहले तो दोनों ने रोशनी और आरती से संपर्क होने से इनकार कर दिया. किंतु पुलिसिया तेवर और मनोवैज्ञानिक तरीके के आगे उस की एक नहीं चली. पुलिस ने जैसे ही रोशनी को उन दोनों के सामने खड़ा किया, वे उसे देख अवाक रह गए. नीरज समझ गया कि उस की पोल खुल चुकी है. और फिर दोनों ने आरती को बुलाने की बात कुबूल कर ली.

पूछताछ के सिलसिले में ही पुलिस ने नीरज और मीरा के मोबाइल ले लिए. उन के वाट्सऐप मैसेजिंग को स्क्राल करने लगे. अंगुलियां सरकातेसरकाते अचानक नीरज के मोबाइल स्क्रीन पर आरती की सजीसंवरी तसवीर दिख गई. जांच अधिकारी ने पूछा, ‘‘बता तूने आरती की हत्या क्यों की?’’

अचानक यह सवाल सुन कर नीरज सकपकाता हुआ बोला, ‘‘ऐं…ये क्या कह रहे हैं साब… मैं ने कुछ नहीं किया है…’’

‘‘तो फिर उस की तसवीर तुम्हारे पास कैसे आई?’’ जांच अधिकारी बोले.

‘‘साबजी, आरती की ऐसी फोटो तो और भी मेरे मोबाइल में हैं. हमारी उस की जानपहचान है, इसलिए वह हमें अपनी फोटो भेजती रहती थी.’’ नीरज ने बताया.

‘‘और ये तसवीर भी आरती ने भेजी है?’’ इस बार जांच अधिकारी ने मीरा का मोबाइल नीरज के सामने कर दिया.

कुछ पल में वही तसवीर नीरज के मोबाइल स्क्रीन पर भी दिखा दी. अब जांच अधिकारी ने आक्रोश के साथ डपटते हुए पूछा, ‘‘यह तसवीर आरती की लाश ने तुम्हें भेजी है?’’

दरअसल, पुलिस को मीरा और नीरज के मोबाइल से आरती के शव की तसवीर मिल गई थी, जो नीरज ने मीरा को भेजी थी. वही तसवीर एक अन्य व्यक्ति गिरवर यादव को भी भेजी गई थी.

ऐसे खुला इस रहस्यमय केस का राज

फिर क्या था, जांच अधिकारी का पारा काफी गरम हो गया. उन्होंने दोनों को हिरासत में ले लिया और आरती की हत्या के बारे में उन से गहन पूछताछ होने लगी. मीरा और नीरज का कहना था कि आरती की हत्या के बारे उन्हें कोई जानकारी नहीं है. जबकि रोशनी से पुलिस को मालूम हुआ कि नीरज ने ही आरती को बेटू भदौरिया के घर 20 अक्तूबर की रात को भेजा था.

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नीरज ने बताया था कि बेटू के घर पर पूरी रात चलने वाला कोई धार्मिक आयोजन होना है, उस में ही उसे हाथ बंटाना था.

‘‘तुम दोनों झूठ बोल रहे हो. सचसच बताओ कि आरती बेटू भदौरिया के घर रात के वक्त क्यों गई थी?’’ थानाप्रभारी परिहार ने नीरज को एक थप्पड़ जड़ते हुए पूछा.

इस पर नीरज तिलमिला उठा. परिहार का हाथ दोबारा मीरा को थप्पड़ मारने के लिए उठा ही था कि वह बोल पड़ी, ‘‘बताती हूं साब, सब बताती हूं.’’

‘‘सचसच बताना, कुछ भी छिपा कर नहीं रखना. मुझे सच पहचानना और उगलवाना अच्छी तरह से आता है.’’ जांच कर रहे थाना प्रभारी बोले.

दोनों पर इस कदर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया गया कि उन्होंने सब कुछ बताना मान लिया. मीरा ने जब बताया कि बेटू भदौरिया कोई और नहीं, बल्कि उस का भाई है, तब जांच अधिकारी को और भी आश्चर्य हुआ. साथ ही उन का संदेह पुख्ता होने लगा कि सभी ने मिल कर ताकतवर दिखने वाली युवती आरती की हत्या की है.

मीरा ने बताया कि उन की मंशा आरती को मारने की नहीं थी, उन्होंने उस वक्त की परिस्थियों के अनुसार ऐसा करने पर मजबूर हो कर किया. आरती हत्याकांड का पूरा मामला जो सामने आया, उस में एक और ट्विस्ट तंत्रमंत्र, साधना और नरबलि से संतान की पूर्ति के घोर अंधविश्वास का था.

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Satyakatha: डॉक्टर की बीवी- रसूखदार के प्यार का वार- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

26वर्षीय विक्रम सिंह राजपूत बिहार की राजधानी पटना के लोहानीपुर गौरेया इलाके में रहता था. उस के घर में मातापिता के अलावा एक भाई सचिन था. विक्रम पटना मार्केट में स्थित एक जिम में बतौर ट्रेनर काम करता था. इस के अलावा वह मौडलिंग और भोजपुरी फिल्मों में भी काम करता था. 2015 में एक कांटेस्ट ‘देव एंड दिवा’ का विनर भी रहा था. इस के साथ ही उस के गानों के कई अलबम भी आए थे.

18 सितंबर को सुबह 6 बजे का समय था. पटना की सड़कों पर चहलपहल शुरू हो गई थी. कोई मौर्निंग वाक के लिए निकला था तो कोई काम पर जाने के लिए.

विक्रम का भी रोज यही समय होता था, जिम जाने का. वह अपनी स्कूटी से जिम जाने के लिए निकला. वह लोहा मंडी गली तक पहुंचा ही था कि वहां खड़े 2 बदमाशों ने उस पर ताबड़तोड़ फायरिंग करनी शुरू कर दी, जिस से वह गंभीर रूप से घायल हो गया.

विक्रम को गोलियां मारने के बाद वे दोनों बदमाश वहां से निकल गए. विक्रम को 5 गोलियां लगीं. उस ने मदद के लिए आसपास मौजूद लोगों को आवाज दी, लेकिन किसी ने उस की मदद नहीं की.

विक्रम ने हिम्मत नहीं हारी. वह खुद स्कूटी चला कर एक निजी अस्पताल पहुंचा. लेकिन पुलिस केस होने की वजह से वहां के डाक्टरों ने उसे भरती करने से मना कर दिया गया.

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इस के बाद वह घटनास्थल से लगभग ढाई किलोमीटर की दूरी पर स्थित पीएमसीएच पहुंच गया. वहां उसे डाक्टरों ने भरती कर लिया और औपरेशन कर के उस के शरीर से पांचों गोलियां निकाल दीं. जिस से उस की जान को कोई खतरा नहीं रहा.

पुलिस को सूचना दी जा चुकी थी. पुलिस अधिकारी घटनास्थल गए, वहां का निरीक्षण किया. आसपास के लोेगों से पूछताछ की, उस के बाद पीएमसीएच पहुंच गए. डाक्टरों ने जब घायल विक्रम को खतरे से बाहर बताया तो पुलिस अधिकारियों ने राहत की सांस ली.

पुलिस अधिकारियों ने विक्रम के बयान लिए. विक्रम ने अपने बयान में  पटना शहर के मशहूर फिजियोथैरेपिस्ट और जेडीयू नेता राजीव सिंह और उन की पत्नी खुशबू सिंह पर आरोप लगाया कि उन दोनों ने ही बदमाशों के जरिए उस पर जानलेवा हमला करवाया है.

वजह यह बताई कि उस का खुशबू सिंह से पैसों के लेनदेन का विवाद था. जो पैसे उस ने खुशबू सिंह से उधार लिए थे, वह सब उन को वापस कर चुका था. उस के बावजूद खुशबू उस की जान लेने पर आमादा थी. इस से पहले भी खुशबू ने उस पर ब्लेड से हमला किया था, जिस के कारण उसे 14 टांके लगे थे. चूंकि मामला हाईप्रोफाइल था. इसलिए पुलिस अधिकारियों ने उस के बयान का वीडियो बना लिया.

इसी बयान के आधार पर कदमकुआं थाने में डा. राजीव सिंह, उस की पत्नी खुशबू सिंह और अज्ञात के विरुद्ध भादंवि की धारा 307, 120बी, 34 और आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

डाक्टर दंपति से हुई पूछताछ

देर शाम पुलिस ने डाक्टर दंपति को पूछताछ के लिए थाने बुलाया. थाने आ कर डा. राजीव सिंह बड़ी ठसक के साथ कुरसी पर बैठ कर मोबाइल पर अपनी पार्टी के करीबी नेताओं से बात करते रहे और अपनी पैरवी करने के लिए कहते रहे. कुछ नेताओं ने उन की इस मामले में पैरवी भी की, लेकिन वह पैरवी किसी काम न आई.

पुलिस अधिकारियों ने डा. राजीव और खुशबू से पूछताछ की. राजीव सिंह ने बताया कि फरवरी 2020 में विक्रम उन के संपर्क में आया था. उन्होंने विक्रम को बच्चों को डांस की टे्रनिंग देने के लिए रख लिया. लौकडाउन में वह घर पर आ कर बच्चों को टे्रनिंग देने लगा.

समय के साथ उस से रिश्ता सा जुड़ गया था. उस ने खुशबू से कुछ पैसे उधार लिए थे. उन पैसों को ले कर उन के बीच विवाद तो था, लेकिन उन्होंने विक्रम को जान से मारने की कोशिश नहीं की. चूंकि पुलिस के पास उस समय उन के खिलाफ कोई सबूत नहीं थे, इसलिए पूछताछ के बाद उन दोनों को घर भेज दिया.

अगले दिन 19 सितंबर को पुलिस की 2 टीमें बनाई गईं. एक तो डाक्टर दंपति से संबंधित जानकारियां जुटाने में लगाई गई तो दूसरी टीम शूटर्स तक पहुंचने के लिए सीसीटीवी फुटेज खंगालने में लगाई गई.

डा. राजीव की पत्नी खुशबू की काल डिटेल्स में विक्रम से घटना से पहले 120 दिनों तक 1100 बार बात करने का पता चला. पिछले साल एक सितंबर से मई 2021 तक दोनों के बीच 1875 बार बात हुई. इन काल्स की कुल अवधि 5.50 लाख सैकेंड थी.

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इसी बीच सोशल मीडिया पर विक्रम और खुशबू के एक साथ घूमने और प्रेम दर्शाते फोटो वायरल हो गए. इस से काल डिटेल्स और दोनों के एक साथ फोटो देखने के बाद इस बात की पुष्टि हो गई कि मामला पैसों के लेनदेन का न हो कर प्रेम प्रसंग का है.

एक औडियो भी वायरल हुआ, जिस में एक महिला विक्रम की मां को विक्रम को जान से मारने की धमकी दे रही थी. जो महिला धमकी दे रही थी, वह डा. राजीव सिंह की पत्नी खुशबू बताई जा रही थी.

पुलिस की दूसरी टीम सीसीटीवी फुटेज खंगाल रही थी. घटनास्थल की सीसीटीवी फुटेज में बदमाशों के फोटो देखने के बाद इलाके के सभी कैमरों की सीसीटीवी फुटेज की जांच करते हुए पुलिस अगमकुआं थाना क्षेत्र के भागवत नगर इलाके तक पहुंच गई.

 अगले भाग में पढ़ें- सीसीटीवी फुटेज से मिले सुराग

Satyakatha: फरीदाबाद- नफरत का खतरनाक अंजाम- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

Writer- शाहनवाज

इस हत्या के दोनों आरोपियों को गिरफ्तार करने के बाद उन से पूछताछ के दौरान इस पूरे हत्याकांड की वजह सामने आई. दरअसल, नीरज और उस की पत्नी आयशा के जीवन में सब कुछ सही चल रहा था, लेकिन नीरज के मन में आयशा को ले कर उसे शक होता था.

आयशा अकसर अपने बचपन के दोस्तों के साथ फोन पर बातचीत किया करती थी. कई बार वह बातों में इतनी मशगूल हो जाती थी कि आयशा का ध्यान नीरज पर होता ही नहीं था.

इस के अलावा आयशा खुले दिमाग वाली युवती थी. दोस्तों के संग बातचीत, हंसीमजाक करना उसे बेहद पसंद था. लेकिन कहीं न कहीं आयशा का इस तरह का बर्ताव करना नीरज को पसंद नहीं आता था. इसी को ले कर अकसर नीरज और आयशा के बीच झगड़े होते रहते थे.

दोनों के बीच झगड़े इतने बढ़ जाते थे कि उन के बीच सुलह के लिए आयशा के मायके वालों को आना पड़ता था.

इसी बीच पिछले साल, नीरज ने आयशा के भाई यानी अपने साले गगन से 10 लाख रुपए उधार भी मांगे थे. एनआईटी फरीदाबाद का रहने वाला नीरज अपने इलाके में एक टेलर मैटेरियल की दुकान खोलना चाहता था, जिस के लिए उसे पैसों की जरूरत थी.

उस ने गगन से पैसे ले कर साल भर में वापस करने की बात भी कही थी. लेकिन जब एक साल से ज्यादा का समय हो गया तो गगन नीरज को पैसे लौटाने के लिए कहने लगा.

कोरोना की वजह से धंधा नहीं चलने के कारण नीरज के पास गगन को लौटाने के लिए पैसा इकट्ठे नहीं हो सके. वह गगन को आज कल कह कर हर दिन पैसे लौटाने की बात किया करता, लेकिन वह पैसों का जुगाड़ नहीं कर पा रहा था. ये बात कहीं न कहीं गगन को भी समझ आ गई थी कि उस के जीजा के पास पैसे नहीं है.

जब यह बात उस ने अपने घर वालों को बताई तो आएशा की मां सुमन ने नीरज को ताना मारना शुरू कर दिया. सुमन और गगन के साथसाथ आएशा को जब कभी मौका मिलता, वे सब उसे पैसे लौटाने के लिए कहते, नहीं तो उसे किसी न किसी बहाने ताने मारते थे.

यही नहीं, पिछले एक साल से आयशा अपने बेटे सक्षम के साथ अपने मायके में ही थी. दोनों के बीच झगड़े के बाद आयशा अपने बेटे को ले कर अपने मायके रहने के लिए आ गई थी. और यह बात नीरज को काफी खटकने लगी थी.

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ये सब देखते हुए और इन सभी चीजों से परेशान हो कर उस ने इस हत्याकांड की प्लानिंग अपने दिमाग में ही रच ली थी.

पूरी प्लानिंग के चलते नीरज ने बीते कुछ दिनों से ससुराल के लोगों को राजीनामे के बहाने अपनी बातों में फंसाना शुरू कर दिया, ताकि उस पर कोई शक न कर सके.

इसी के चलते 15-16 दिन पहले नीरज ससुराल के लोगों से राजीनामा करने के बहाने मोहब्ताबाद गया और पूरी कोठी को अपनी नजरों में उतार लिया था.

उस ने इस हत्याकांड को अंजाम देने के लिए पैसों का लालच दे कर अपने करीबी दोस्त लेखराज को भी इस में शामिल कर लिया था.

इस हत्याकांड को अंजाम देने के लिए नीरज ने एक महीने पहले हापुड़ से 35 हजार रुपए में 2 देसी तमंचे, 2 चाकू और कुछ कारतूस खरीद लिए थे.

नीरज ने कभी न तो हथियार रखे और न ही चलाए थे, लेकिन पत्नी के चरित्र और पैसे के लेनदेन के चलते तीनों की हत्या करने के लिए उस ने तमंचा चलाना भी सीख लिया था. फिर उस ने 21 अक्तूबर, 2021 की रात को घटना को अंजाम दे दिया.

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कोई भी जीवित न बचे, इसलिए नीरज और लेखराज ने गोली चलाने के साथसाथ चाकुओं से भी वार किए.

सास सुमन को एक गोली लगी और चाकू के कई वार किए गए. आयशा को 2 गोली लगी थीं. राजन शर्मा को एक गोली सीने में लगी, जबकि गगन के कमर में गोली लगी थी.

नीरज को अनुमान था कि इस गोली से गगन की मौत हो जाएगी. लेकिन वह जीवित बच गया. दोनों आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

Crime: अब यू ट्यूब पर लोभी लालची सीखते हैं तंत्र मन्त्र!

रुपए की लालची एक गुरु चेले की जोड़ी ने कई लोगो को तंत्र मन्त्र के झांसे में लेकर शिकार बनाया था. और इसका अंत हुआ एक हत्या से, अंततः दोनों आरोपी 9 वर्ष बाद पुलिस के हत्थे चढ़े और अब जेल की चक्की पीस रहे हैं.

आज आधुनिक सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव अब दिखाई देने लगे हैं. दुर्भाग्य है कि यूट्यूब ऐसा माध्यम बन गया है जहां से अपराध के गुर सीखे जाते हैं और उन्हें अंजाम देकर के अशिक्षित और पैसों के लालची अपनी जिंदगी दांव पर लगा करके जेल जा रहे हैं.

दरअसल, हुआ यह कि  राम प्रसाद साहू ने छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिला के थाना हिर्री आकर रिपोर्ट कराई कि उसके छोटे भाई सुरेश कुमार साहू को किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा धारदार हथियार  से गले व  चहरे में वार कर हत्या कर दी गई है.  हत्या कुछ रहस्यमय ढंग से की गई थी. जिसका अपराध पंजीबद्ध कर पुलिस विवेचना में लिया गया. मामले में पेंच दर पेंच देखते हुए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक  दीपक कुमार झा  द्वारा अधिनस्थों को आवश्यक दिशा निर्देश दिए गये जिनके अनुसार आरोपियों की लगातार पतासाजी की जा रही थी, परन्तु आरोपियों का कोई पता नहीं चल रहा था.मगर पुलिस द्वारा लगातार प्रयास जारी था.

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मृतक सुरेश साहू से सम्बंधित सभी व्यक्तियों के सम्बन्ध में पुलिस  पृष्ठभूमि की‌ भीतरी जानकारी निकाल रही थी, इसी दौरान मृतक सुरेश साहू के जादू टोन व गड़े धन को तलाश करने में संलग्न रहने का पता पुलिस को चला. पुलिस अधिकारी दीपक झा ने हमारे संवाददाता को बताया कि ऐसे में ऐसे व्यक्तियों जो मृतक से जुड़े थे उनकी पतासाजी प्रारम्भ की गयी. अनवरत प्रयास के बाद पुलिस को पता चला की घटना के बाद से सम्बंधित व्यक्तियों में आरोपी सुभाष दास मानिकपुरी एवं माखन दास दोनों ही आसपास से घटना के  बाद  से गायब है.

पुलिस ने अपने ढंग से इनके सम्बन्ध में पतासाजी प्रारम्भ की गयी परन्तु कई वर्षो से इन दोनों के परिवार वालो से इनका सम्बन्ध ख़राब होने के कारण कोई भी व्यक्ति इनके संपर्क में नहीं था , जिसके कारण इनके सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं मिल रही थी. इसी दौरान  जानकारी प्राप्त हुई कि घटना के कुछ दिन बाद माखन दास ने बताया था कि वह सुभाष के साथ जबलपुर, मध्य प्रदेश में रह रहे है.

इसी आधार पर आरोपियों की पतासाजी हेतु टीम रवाना की गयी जो जबलपुर जाकर पतासाजी करने पर आरोपी के सतना, मध्यप्रदेश में मेडिकल कालेज में काम करने की  जानकारी मिली. अब यहां पुलिस ने  गहन छानबीन करने के बाद बामुश्किल आरोपी माखन दास को हिरासत में लिया . पुलिस पूछताछ में उसने सुभाष को जबलपुर में गार्ड की नौकरी करना बताया जिसकी निशानदेही पर आरोपी सुभाष को भी पकड़ा गया. जिनसे घटना के सम्बन्ध में कड़ाई से पूछताछ करने पर अपना जुर्म कबूला और पुलिस को अपने दिए गए इकबालिया बयान ने बताया कि गड़े धन व हंडा के लालच में आकर मृतक सुरेश साहू की बलि दी गई थी.

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जादू टोना, तंत्र मंत्र का परिणाम हत्या

पुलिस ने हमारे संवाददाता को बताया कि पूछताछ करने पर  आरोपी सुभाष वर्ष 2012 से गड़े धन की तलाश कर रहा है व जादू टोना का काम कर रहा है जिसकी पहचान गड़े धन खोजने के चक्क्कर में माखन दास से हुई जो सुभाष को नए नए लोग से मिलवाता था जिनको कोई पारिवारिक समस्या रहती थी. जिसे सुभाष जादू टोने से ठीक करने का दावा कर पैसे वसूल लेता था. इसी दौरान माखन ने अपने पूर्व परिचित अपने गाँव के सुरेश साहू का भी परिचय सुभाष से कराया सुरेश भी कई वर्षो से गड़े धन की तलाश कर रहा था. जिससे इनके बीच घनिष्टता बढ़ गयी. आगे रुपयों पैसों के लालची यह लोग गुगल के ‌ यू ट्यूब पर जादू टोने के नए नए विडियो देखते व उसपर अलग अलग जगहों पर प्रयोग करते थे.

इसी बीच सुभाष और माखन ने सुरेश की बलि देकर गड़े खजाने को खोज निकालने का प्लान बनाया. जिसके लिए नवरात्रि के पहले की अमावस्या का दिन तय किया और उसी दिन मुरु पथराली खार क्षेत्र में तंत्र मन्त्र कर कुल्हाड़ी से सुरेश की हत्या कर दी हत्या के बाद जब कोई चमत्कार नहीं हुआ तंत्र मंत्र ने काम नहीं किया तो उन्हें हकीकत का एहसास हुआ कि हमारे हाथों को अपराध हो गया है और अब जेल जाना पड़ेगा और पकडे जाने के भय से फरार हो गये . कहते हैं ना कि अपराध छुपाए नहीं छुपता आखिर लगभग 9 वर्ष पश्चात मामले का खुलासा हुआ आरोपी जेल में चक्की पीसने के लिए मजबूर हो गए.

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