पूर्णिमा को लोग रोज दुत्कारते थे. कोई भी उसे अपने दरवाजे पर नहीं ठहरने देता था. फिर भी वह जैसेतैसे इन झोंपडि़यों की बस्ती में एक कोने में जिंदा थी.
एक एनजीओ में काम करने की वजह से वह मेरी नजर में आई थी. मेरे लिए किसी को भूखे रहते देखना गवारा नहीं था. मैं ने बैग से रोटियों का एक पैकेट निकाल कर दिया कि तभी पड़ोस की एक झोंपड़ी से एक औरत ने मेरा हाथ रोक दिया और मुझे अंदर आने को कहा.
मैं ने उसे रोटियां पकड़ाईं और फिर उस औरत की झुग्गी में घुस गई. वहां एक पंडितनुमा जना भी बैठा था. वह बोला, ‘‘व्यभिचारात्तु भर्तु: स्री लोके प्रापोन्ति निन्द्यताम्, श्रृगालयोनिं प्रापोन्ति पापरोगैश्च पीडयते.
‘‘‘मनुस्मृति’ में ऐसा कहा गया है. तुम शहरी लड़कियों को क्या मालूम सनातन धर्म क्या होता है. इस का मतलब है कि जो औरत अपने पति को छोड़ कर किसी दूसरे मर्द के साथ रिश्ता बनाती है, वह श्रृंगाल यानी गीदड़ का जन्म पाती है. उसे पाप रोग यानी कोढ़ हो जाता है.’’
इस बस्ती के लोगों पर उस पंडित का बहुत असर दिख रहा था. ‘मनुस्मृति’ के ही आधार पर उस औरत के संबंध में जो कहानी बताई जा रही थी वह यह थी कि किसी औरत का मर्द कितना भी बदचलन क्यों न हो, औरत को उस की खिलाफत करने का हक नहीं है.
औरत तो गंवार, अनपढ़ और पशु की तरह पीटने लायक ही है. और जब कोई औरत मर्दों के इस अहम की खिलाफत में उतर आती है तो उस का मुकाबला इंद्र के समान कपटी भी नहीं कर सकता.
मैं अपनी एनजीओ का काम बंद नहीं कराना चाहती थी वरना क्या मुझे मालूम नहीं था. भारत में मठाधीशों, गुरुओं और साधुमहात्माओं की करतूतें जगजाहिर हैं.
ये धर्मगुरु अपने शिष्यों को त्याग, बलिदान और मोक्ष के प्रवचन देते हैं और खुद रंगीन जिंदगी बिताते हैं. ये महाशय भी पक्का इसी तरह की जिंदगी जी रहे हैं और इसीलिए पागल की बगल में झोंपड़ी में बैठे हैं.
इस झुग्गीझोंपड़ी के लोग भी निपट बेवकूफ हैं. वे गुरुओं की फौर्चुनर, मर्सिडीज गाड़ी, सोने के सिंहासन और चांदी के बरतनों की ओर खिंचते हैं और अपनी जिंदगीभर की सारी कमाई इन के चरणों में धर देते हैं.
कुछ साल पहले इस बस्ती के ज्यादातर परिवार रघुवीर गुरुजी के भक्त थे. हां, यही नाम बताया था उन त्रिपुंडधारी महाशय ने. रघुवीर गुरुजी ने बस्ती के तालाब के किनारे शिवालय बना कर जमीन पर कब्जा कर के एक विशाल आश्रम बना लिया था.
यह आश्रम नशे, हथियार और ऐयाशी का अड्डा था. बाद में मुझे पता चल गया कि उस पंडित ने नकली चमत्कार दिखा कर बस्ती की भोलीभाली जनता को अपना अंधभक्त बना लिया था. धीरेधीरे मुझे पूरी कहानी पता चली थी.
उस समय रघुवीर गुरुजी के इस आश्रम में हर 2-3 महीने में धर्म की आड़ में नशे और सैक्स के लिए पार्टियों का आयोजन किया जाता था, जिस में इस बस्ती की गरीब कमसिन लड़कियों को बुला कर परोसा जाता था. यह काम पिछले बहुत सालों से चल रहा था.
शहर के अमीर, ताकतवर और सरकारी अफसर रघुवीर गुरुजी के इस कारोबार के मुनाफे में साझेदार थे. रघुवीर गुरुजी के खिलाफ बोलने वाले लोग अकसर एक्सिडैंटों में मारे जाते थे और उन्हें ट्रैफिक तोड़ने वालों की लापरवाही का नाम दे दिया जाता था.
बस्ती की भोलीभाली औरतें अपनी बहूबेटियों को आश्रम की सेवा में भेज देती थीं. कुछ तो रघुवीर गुरुजी का स्वाद खुद भी चख आई थीं और वह उन्हें ब्लैकमेल कर उन की बेटियों को भी बुलाता था.
रघुवीर गुरुजी के शिष्यों द्वारा देवताओं के नाम पर शारीरिक शोषण मनमरजी से किया जाता था और ऊपर से उन की पैसे से मदद की जाती थी.
एक समय यहां एक आश्रम था, जिस का नाम बहुत दूरदूर तक था. रघुवीर गुरु के आश्रम में देशी शराब, अफीम और गांजे के लालच में आसपास का बस्तियों के दर्जनों गुंडे पलते थे. वे गुरुजी के गैरकानूनी साम्राज्य के सैनिक थे. इस तरह रघुवीर गुरुजी के जितने विरोधी थे, उस से ज्यादा उन के पाखंडी समर्थक थे.
पुरुषोत्तम मास में कृष्ण की सखियां बनाने के नाम पर एक महीने तक औरतों को सूरज उगने से पहले आश्रम में बुला कर बिना कपड़ों के स्नान और ध्यान के लिए मजबूर किया जाता था.
लोग कहते थे कि गुरुजी के पास सम्मोहन की कला थी, पर असलियत में औरतों को प्रसाद और धुएं से नशा दिया जाता था. नशे में मदहोश औरतों के पोर्नोग्राफिक वीडियो बना कर औनलाइन बेचे जाते थे.
जिन औरतों ने रघुवीर गुरुजी के जोरजुल्म के खिलाफ बोलने की हिम्मत की थी, उन्हें बदनाम कर दिया जाता था. ऐसी औरतों को अपनी जान या इज्जत गंवाने का खमियाजा भुगतना पड़ता था.
यही वजह थी कि ज्यादातर औरतों ने उस समय आश्रम की रंगीन दुनिया को अपना लिया था. गुरुजी का समर्थन कर के वे न सिर्फ अपने शौक पूरे कर सकती थीं, बल्कि पैसे भी मिलते थे. बदले में उन्हें सिर्फ शर्म छोड़नी होती थी.
जिन औरतों ने गुरुजी के खिलाफ बोलने की हिम्मत की, उन्हें न तो बस्ती के लोग और न उन के ही परिवार वालों ने स्वीकार किया. मतलब पूरी बस्ती ने ही गुरुभक्ति की आड़ में अपने परिवार की इज्जत को ताक पर रख दिया था.
रघुवीर गुरुजी के एक प्रकांड भक्त पांडेयजी, जो मोक्ष, वेद और उपनिषद के ज्ञाता थे, ने अपने लड़के की शादी में भरपूर दहेज लिया था, पर फिर भी वे और ज्यादा दहेज के लिए अपनी बहू पूर्णिमा को सताते थे.
पांडेयजी को अपनी खूबसूरत और पढ़ीलिखी बहू की कोई कद्र नहीं थी. परंपरा के मुताबिक पांडेयजी की बहू को भी शादी के बाद अपना कुंआरापन खोने से पहले 3 दिनों तक आश्रम में देवताओं की उपासना के लिए जाना पड़ा था.
शहर के स्कूल में पलीबढ़ी पांडेयजी की बहू पूर्णिमा ने तुरंत ही आश्रम में पल रहे गिद्धों को पहचान लिया. उस ने अपनी ससुराल और बस्ती के लोगों को रघुवीर गुरुजी के ढोंग से बचाने की भरसक कोशिश की, लेकिन उस की एक न सुनी गई.
पूर्णिमा ने साइंस के प्रयोगों द्वारा रघुवीर गुरुजी के चमत्कारों को समझाने की कोशिश की, लेकिन उसे झुठला दिया गया. इतना ही नहीं, उसे ही आवारा और बदचलन कहते हुए उस के मायके के लोगों को भलाबुरा कहा जाने लगा.
पूर्णिमा की इस करतूत पर गुस्सा हो कर एक दिन पूर्णिमा की सास और पति ने लातघूंसों से पिटाई कर दी, तब जा कर उस का समाज सुधार का भूत उतरा. तब हार कर उसे रघुवीर गुरुजी की बुराई करने के लिए कान पकड़ कर माफी मांगनी पड़ी, पर मन ही मन बदला लेने के लिए वह नागिन की तरह तड़प उठी.
एक बार सालाना जलसे के लिए बस्ती में रघुवीर गुरुजी ने पूर्णिमा के घर का चुनाव किया था. पूर्णिमा के पति और सास खुशी से फूले न समा रहे थे. पूर्णिमा को उन्होंने खातिरदारी में कोई कमी न रखने की सख्त हिदायत दी.
पूर्णिमा यह अच्छी तरह जान चुकी थी कि अगर घर से अपनी इस बेइज्जती का बदला चुकाना है तो इस ढोंगी गुरुजी की कृपा हासिल करनी ही होगी.
पूर्णिमा ने गुरुजी के चरण गोद में रख कर पानी से साफ किए. चरणों को अपने उभारों का सहारा देते हुए तौलिया से सुखाया और फिर माथे से लगा लिया. पूर्णिमा के इस बदले हुए मिजाज से सब बहुत खुश हुए.
रघुवीर गुरुजी ने पूर्णिमा की सेवा से गदगद होते हुए अपने चरणों की गंदगी से गंदे हुए चरणामृत को ग्रहण करने और पूरे घर में उस गंदे पानी छिड़काव करने का आदेश दिया.
रघुवीर गुरुजी ने पूर्णिमा के हाथों से स्वादिष्ट भोजन और प्रसाद ग्रहण किया. वह भी अब तन व मन से उन की खुशामद में लगी हुई थी. अपने साथ दहेज में आए सुहागरात के बिस्तर को उस ने गुरुजी के आराम के लिए तैयार कर दिया.
पति को बाहर के कमरे में सुला कर पूर्णिमा देर रात तक गुरुजी की सेवा करती रही. पहली ही रात में गुरुजी को अपने काबू में लेने के लिए उस ने कामशास्त्र का इस्तेमाल किया.
रघुवीर गुरुजी को सपने में भी अंदाजा नहीं था कि यह शहरी लड़की इतनी धार्मिक हो चुकी हैं. गुरुजी से उम्र में आधी पूर्णिमा ने रात के 12 बजे तक उन्हें स्वर्ग की अप्सरा के जैसा आनंद दिया. उस ने सारे कपड़े उतार कर रख कर दिए, पर उन कपड़ों में मोबाइल छिपा था और उस का वीडियो औन था. 2 घंटे की रिकौर्डिंग हुई.
दोपहर को आराम के समय पूर्णिमा गुरुजी के लिए आम का शरबत ले कर हाजिर हुई तो काम के जोश में गुरुजी ने उसे जबरदस्ती अपनी गोद में बैठा लिया और उस के कपड़ों को हटा कर उस
के शरीर को अपनी प्रेमिका की तरह दुलारना शुरू कर दिया. अगले ही दिन गुरुदीक्षा और समाधि के नाम पर पूर्णिमा को अपने साथ कमरे में बंद कर उन्होंने उस का पूरी तरह फिर उपभोग किया.
इस के बाद तो पूर्णिमा महीनों गुरुजी के आश्रम पर रह कर उन की सेवाभक्ति कर लाभ लेने लगी. अब उसे अपनी ससुराल के कामकाज से भरी हुई जिंदगी अच्छी नहीं लगती थी, बल्कि उसे तो गुरुजी की सखी की तरह रहने में मजा आता था, जहां कोई काम नहीं. सास और पति की दखलअंदाजी भी नहीं. पैसे की कमी नहीं. लेकिन वह लगातार मोबाइल पर वीडियो पर वीडियो बनाए जा रही थी.
पूर्णिमा की इस गुरुभक्ति के चलते पांडेयजी के पूरे परिवार को आश्रम में सब से ज्यादा इज्जत मिलने लगी थी. गुरुजी के आशीर्वाद से पूर्णिमा के बेरोजगार पति को एक फैक्टरी में नौकरी मिल गई थी. पूर्णिमा के धार्मिक संस्कारों की अब हर जगह तारीफ होने लगी थी.
यही वजह थी कि रघुवीर गुरुजी की सभी शिष्याएं अपनीअपनी बहुओं को पूर्णिमा की तरह बनने के लिए उकसाती थीं. पूर्णिमा भी बेवकूफ औरतों का
पूरा फायदा उठाने लगी, पर उन में से उस ने 3-4 जवान बहुओं को अपने साथ मिला लिया.
जैसजैसे युवतियां बढ़ने लगीं, वैसेवैसे रघुवीर गुरुजी के आश्रम पर भौतिक सुखसुविधाओं का अंबार लगने लगा. उन के सोने के कमरे में ऐशोआराम की सभी सुविधाएं आ गई थीं. हमेशा जवान बनाए रखने के लिए चीन से लाई गई मसाज मशीनें खरीद ली गई थीं. अमेरिका से लाया गया एक करोड़ का सोना बाथ आ गया था.