Manohar Kahaniya: 2 महिलाओं की बलि देकर बच्चा पाने का ऑनलाइन अनुष्ठान- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

ग्वालियर पुलिस एक औरत की लाश की पहचान को ले कर उलझी हुई थी. लाश 21 अक्तूबर, 2021 की सुबह साढ़े 5 बजे के करीब ग्वालियर से आगरा की ओर जाने वाले हाईवे पर स्थित ट्रिपल आईटीएम कालेज के निकट सड़क किनारे मिली थी. हजीरा थाना पुलिस को इस की सूचना एक राहगीर ने दी थी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी आलोक सिंह परिहार एसआई अभिलाख सिंह तोमर, त्रिवेणी राजावत, आनंद कुमार, नरेंद्र छिकारा, हैडकांस्टेबल जयसिंह और मनोज शर्मा को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए थे. तब तक वहां लोगों की अच्छीखासी भीड़ जमा हो गई थी. सभी लाश को ले कर तरहतरह की बातें कर रहे थे.

थानाप्रभारी ने लाश के चेहरे से दुपट्टे को हटवाया. मृतका के गले पर निशान नजर आए. लाश के किसी वाहन से दुर्घटनाग्रस्त होने के कोई ठोस सबूत नजर नहीं आए. कहीं भी खून का एक कतरा नहीं नजर आया और न ही उसे घसीटे जाने का कोई निशान ही दिखा.

इस आधार पर अनुमान लगाया गया कि मृतक की हत्या गला घोंट कर की गई होगी और दुर्घटना दिखाने के लिए उसे सड़क के किनारे फेंक दिया. पहली जरूरत मृतका की शिनाख्त करने की थी.

मृतका चौकलेटी कलर की लैगी और पिंक कुरती पहने हुए थी. उस के पैरों में कोई चप्पल या जूती नहीं थी. शरीर पर कहीं भी खरोंच के कोई निशान नहीं थे.

मामला गंभीर था, इसलिए थानाप्रभारी ने यह सूचना अपने आला अधिकारियों के अलावा क्राइम इन्वैस्टीगेशन और फोरैंसिक टीम को भी दे दी थी.

कुछ समय में ही एसपी अमित सांघी, एडिशनल एसपी हितिका वासल और एसपी (सिटी) रवि भदौरिया भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

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उन्होंने क्राइम सीन को समझने के साथसाथ वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त करवाई. इस में उन्हें सफलता मिल गई. लाश की पहचान लक्ष्मी उर्फ आरती मिश्रा के रूप में हुई. यह भी मालूम हुआ कि वह चारशहर के नाका की निवासी थी, लेकिन नरसिंह नगर हजीरा में मंशाराम कुशवाह के मकान में किराए पर रह रही थी.

मृतका की इस संक्षिप्त शिनाख्त के बाद सामान्य औपचारिकताएं पूरी कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

हजीरा थाने की पुलिस उसी दिन मृतका के उस निवास पर गई, जहां वह किराए पर रहती थी. वहां उस के बारे में कुछ अन्य जानकारी मालूम हुई. पता चला कि 2 साल पहले उस का पति सुनील दुबे से तलाक हो चुका था और वह अकेली किराए पर घरपरिवार से अलग रहती थी.

उस के बारे में अन्य जानकारियां जुटाने के लिए पुलिस ने अपने तमाम तंत्र फैला दिए. जल्द ही पुलिस को उस के बारे में चौंकाने वाली कुछ जानकारियां मिलीं. उस में एक जानकारी आरती के चालचरित्र के बारे में थी, जबकि एक अन्य जानकारी उस जैसी चालचरित्र वाली मीरा राजावत नाम की औरत के बारे में थी.

दोनों के बारे में कई तरह की बातें सुनने को मिलीं. जैसे वे छिपे तौर पर सैक्स वर्कर का काम करती थीं. उन के लिवइन रिलेशन के पार्टनर थे. उन के संबंध कई अनैतिक काम करने वाले लोगों के साथ थे, आदिआदि…

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इसी के साथ एक और जानकारी इलाके में सक्रिय कुछ वैसे ढोंगी बाबाओं के बारे में भी मिली, जो अकेली रहने वाली औरतों को बेवकूफ बना कर ठगी किया करते थे. हालांकि उन के खिलाफ कोई ठोस सबूत पुलिस को हाथ नहीं लग पाया था.

आरती के बारे में पुलिस को यह भी मालूम हुआ कि उस के कई लोगों के साथ अवैध संबंध थे. यहां तक कि उस की जानपहचान संदिग्ध चरित्र वाली महिलाओं से भी थी. दरअसल, वह एक कालगर्ल ही थी, जो किसी के बुलावे पर ही आतीजाती थी.

पुलिस ने सब से पहले महिला के पास अकसर आनेजाने वाले घासमंडी निवासी एक आटो चालक राहुल को दबोचा. उस ने आरती से जानपहचान की बात तो स्वीकार कर ली, लेकिन उस की हत्या में खुद को निर्दोष बताया.

हालांकि राहुल ने बताया कि उस की मौत के एक सप्ताह पहले ही आटो समय पर नहीं लाने को ले कर आरती से उस की तकरार हो गई थी. उस के बाद वह उस से नहीं मिला था.

रोशनी से पुलिस को मिली अहम जानकारी

आरती के साथ उस का कोई गलत संबंध नहीं था. वह केवल उसे कहीं लाने ले जाने के लिए बुलाती थी. किंतु राहुल ने इतना जरूर बताया कि उस की गतिविधियां संदेह भरी थीं.

कहां जाती थी, क्या करती थी, नहीं मालूम, लेकिन कई बार काफी सजसंवर कर जाती थी. राहुल के बयान के मुताबिक वह उस से मिलनाजुलना बंद कर चुका था. इस का एक कारण उस ने यह बताया कि पैसे को ले कर वह बहुत चिकचिक करती थी.

पुलिस को राहुल से भी आरती की हत्या से संबंधित कोई ठोस सबूत नहीं मिले, सिवाय उस के मोबाइल नंबर के. जांच में वह भी पुलिस संदेह के घेरे से बाहर हो गया. उस के बाद एएसपी हितिका वासन और सीएसपी रवि भदौरिया व आलोक परिहार ने राहुल से मिले आरती के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई.

अगले भाग में पढ़ें- नीरज के फोन से पुलिस को मिलीं खास तसवीरें

Manohar Kahaniya: प्यार के जाल में फंसा बिजनेसमैन- भाग 1

भाजपा नेता और प्रतिष्ठित मानसी की अदाओं और खूबसूरती का दीवाना बन चुके कारोबारी संजीव जैन ने उसे फोन किया, ‘‘यार मानसी, तुम कहां हो? मिलना है…’’

‘‘… लेकिन मैं तो आज ही मेरठ आई हूं.’’ मानसी की आवाज आई.

‘‘मेरठ कब? क्यों गई हो मेरठ? कोई खास बात है क्या?’’ संजीव लगातार बोलता चला गया.

‘‘इतने सवाल एक साथ मत करो. मेरी ससुराल है मेरठ में. मेरी भी तो कुछ पर्सनल है. मैं अपने चाचा के यहां भाई की शादी में आई हूं. कल शाम ही रायपुर से आई थी… कुछ जरूरी बात है तो बताओ, अभी के अभी आती हूं…’’ मानसी मिठास भरी शब्दों में बोली.

‘‘अरे यार, तुम्हारी बहुत याद आ रही है. मैं आज रायपुर पहुंच रहा हूं. सोचा था तुम से भी मिलता चलूं.’’ संजीव जैन ने मानसी के प्रति प्यार दर्शाते हुए धीरे से कहा.

‘‘अच्छा तो ये बात है,’’ मानसी बोली, ‘‘कोई बात नहीं, एक दिन वहां रुक सकते हो तो होटल में ठहरो.’’

‘‘तुम ने न जाने कैसा जादू कर दिया है मुझ पर, जब तक तुम से बात न कर लूं, मिल न लूं, मन नहीं लगता… और तुम से मिले हुए भी तो कई दिन हो गए हैं,’’ संजीव ने कहा.

संजीव की इस बात पर मानसी हंसती हुई बोली, ‘‘मैं भी तो तुम्हें हमेशा याद करती हूं. तुम्हारे इंतजार में कई बार घंटों बैठी रही हूं. और वैसे भी जब तुम ने फोन कर ही दिया है तो मेरी एक छोटी सी प्राब्लम दूर कर दो न प्लीज!’’

‘‘बताओ न प्राब्लम. मेरी तो जान हाजिर है तुम्हारे लिए,’’ संजीव चहकते हुए बोला.

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‘‘अरे, नहींनहीं, मैं भला तुम्हारी जान क्यों मांगने लगी… मेरा एक छोटा सा काम कर दो. मैं जानती हूं तुम वहीं से बैठेबैठे कर दोगे.’’ मानसी बोली.

‘‘काम बोलो तो सही.’’ संजीव बोला.

‘‘अरे! यहां शादी में आई हूं लेनदेन के खर्च में पैसे कम पड़ रहे हैं…’’ मानसी अपनी बात पूरी करने वाली ही थी कि संजीव ने कहा, ‘‘बस, इतनी सी बात… मैं हूं न. अभी ट्रांसफर करता हूं. और हां, 2 दिन तुम्हारे लिए रायपुर में ठहरूंगा.’’ कह कर संजीव ने फोन कट कर दिया और उस के अकाउंट में 20 हजार रुपए ट्रांसफर करने के लिए गूगलपे ऐप खोल लिया.

‘‘चैक कर लो,’’ 2 मिनट बाद संजीव ने दोबारा मानसी को काल किया.

‘‘अरे, चैक क्या करना, मुझे जितना तुम पर भरोसा है, उतना पति पर भी नहीं. रायपुर में मेरा इंतजार करना. कल शाम को मिलती हूं. आज ही ललित 3 दिनों के लिए बाहर जाने के लिए निकला है.’’ मानसी की इस जानकारी से संजीव जैन और भी खुश हो गया. उस ने मानसी के लिए एक गिफ्ट खरीदने के लिए कैब बुक कर ली.

छत्तीसगढ़ के जिला राजनंदगांव शहर की पहचान उस की सांस्कृतिक धरोहरों और साहित्यिक विरासत को ले कर है. यहां मुख्य रूप से कारोबार का काम जैनबंधु संभाले हुए हैं. भारत में उन की गिनती भले ही अल्पसंख्यकों में होती हो, किंतु राजनंदगांव में उन की संख्या बहुतायत में है.

उन का प्रमुख कारोबार राइस, पोहा और दाल मिल का है, उस के लिए उन्होंने बड़ेबड़े कारखाने लगा रखे हैं. वे एक विकसित उद्योग धंधे बने हुए हैं.

इसी शहर के हीरामोती लाइन इलाके में 75 वर्षीय सुरेशचंद्र जैन अपने भरेपूरे परिवार के साथ निवास करते हैं. उन के बड़े बेटे संजीव जैन, जिन की उम्र 56 वर्ष की थी, कुछ माह पहले तक अपने पुश्तैनी व्यवसाय को संभाले हुए थे. साथ ही वह न केवल भारतीय जनता पार्टी से जुड़ कर राजनीति में सक्रिय थे, बल्कि 2 साल पहले नगर पालिका में पार्षद का चुनाव भी जीत चुके थे.

अपने मृदुल व्यवहार और राजनीतिक रसूख के कारण संजीव जैन का शहर में अपना एक विशेष स्थान था. अपने व्यवसाय से समय निकाल कर वह सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी निभाया करते थे. इस वजह से ही उन की गिनती शहर में एक जानीमानी शख्सियत के रूप में होती थी. संयोग से वह अब इस दुनिया में नहीं हैं.

उन के साथ क्या हुआ? वह कैसे इंसान थे? कितने हमदर्द, हर दिल अजीज और प्रिय थे? लोकप्रियता की पहचान और रसूख के पहनावे में वे भीतर से कितने खोखले और खलबली से भरे थे, इस का थोड़ा अंदाजा मानसी के साथ उन की हुई बातचीत से लग ही चुका होगा. आगे क्या हुआ और मानसी से वे कैसे जुडे, इत्यादि के बारे में जानने के लिए संजीव और मानसी के संबंध की तह में जाना होगा, जो इस प्रकार है—

एक दिन संजीव जैन ने कारोबार के सिलसिले में मोबाइल पर उत्तम जैन काल किया. दूसरी तरफ से एक महिला की आवाज सुनाई दी, ‘‘हैलोहैलो! मेरी किस से बात हो रही है? आप कौन?’’

संजीव जैन ने अपने मित्र उत्तम जैन को काल लगाया था, वह सोच में पड़ गया कि उत्तम की जगह मोबाइल पर कालसेंटर वाली सधी हुई मधुर आवाज कैसे आने लगी, कहीं उस ने इस तरह का इंतजाम तो नहीं कर लिया है?’’

‘‘मैं संजीव जैन बोल रहा हूं, मगर आप कौन? मैं ने तो उत्तम भाई को फोन लगाया है.’’ संजीव बोले.

दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘मैं मानसी, मानसी यादव. यह तो मेरा नंबर है. आप ने कैसे लगाया? नंबर कहां से मिला?’’

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परवान चढ़ने लगी दोस्ती

संजीव समझ गए कि उन से कोई गलत नंबर लग गया है. फिर भी झल्लाने की बजाय उन्होंने फोन पर बातों का सिलसिला जारी रखा, ‘‘… मगर यह तो मेरे दोस्त का नंबर है. आप कहां से बीच में आ गईं? लगता है रौंग नंबर लग गया है.’’

‘‘कोई बात नहीं, इसी बहाने एक नई जानपहचान तो हो गई, वरना इस भीड़भाड़ वाली दुनिया में कौन किसी को याद करता है?’’ मानसी का यह अंदाज संजीव को और भी लुभावना लगा.

‘‘रौंग नंबर ही सही, आप से बातें करते हुए अच्छा लग रहा है. लगता है मैडम, आप बहुत ही मिलनसार किस्म की हैं,’’ संजीव तारीफ करते हुए बोले.

‘‘अरेअरे ये क्या कह दिया आप ने मैडम. मैं तो अभी मिस हूं. मिस मानसी यादव.’’ रस घोलती मानसी की इस आवाज ने मानो संजीव पर जादू कर दिया हो. उसे मानसी से बात कर के मजा आने लगा था.

‘‘वैसे आप कौन हैं? मेरा मतलब आप के नाम और काम से है. रहते कहां हैं?’’ मानसी बोली.

मौका नहीं चूकते हुए संजीव ने हंसते हुए कहा, ‘‘ मैं…मैं… संजीव जैन हूं. राजनंदगांव से बोल रहा हूं. मैं एक बिजनैसमैन हूं. भाजपा का सक्रिय कार्यकर्ता भी हूं.’’

इतना सुन कर मानसी तपाक से बोल पड़ी, ‘‘अरे वाह! तब तो आप बड़ी पहुंच वाले हैं, आप से दोस्ती करनी ही चाहिए. आप की बातें सुन कर मुझे पता नहीं क्यों लग रहा है आप एक सज्जन व्यक्ति हैं.’’

उस के बाद संजीव ने उत्तम का वेटिंग काल आने की आवाज सुन कर मानसी को सौरी बोल कर उस का काल कट कर दिया. तब तक उत्तम का काल बंद हो चुका था.

उसे दोबारा काल मिलाते हुए संजीव काफी अच्छा महसूस करने लगा था …चलो, नई जानपहचान के बहाने उन का एक और समर्थक मिल गया. अनजान ही सही, कभी न कभी तो वह उस के कोई काम आएगी ही. उसे भी सामाजिक काम में शामिल किया जा सकता है.

उधर मानसी के मन में भी कुछ ऐसी मेलजोल बढ़ाने की भावनाएं अंकुरित होने लगी थीं. अनजाने में ही सही, लेकिन आज उस की बात धनवान व्यक्ति से हुई थी, जो भाजपा का एक नेता भी है, तो उस की बड़े लोगों से जानपहचान जरूर होगी. फिर उस ने संजीव का नंबर शौर्ट में ‘बीएमएन’ यानी बिजनेसमैन नेता के नाम से सेव कर लिया. यह वाकया साल 2013 का है.

संजीव और मानसी की फोन पर हुई पहली बातचीत कब दोनों के लिए अनंत काल का सिलसिला बन गई, उन्हें पता ही नहीं चला. उन की आपस में अकसर बातें होने लगीं.

मैसेजिंग का दौर भी चलने लगा. एक दिन संजीव को अचानक रायपुर जाना हुआ. उन्होंने तुरंत फोन कर मानसी को मैग्नेटो माल के निकट आने को कहा.

तब तक मानसी भी संजीव जैन से फोन पर बातें करतेकरते काफी खुल चुकी थी. दोनों ‘आप’ से ‘तुम’ पर आ चुके थे. यह कहना गलत नहीं होगा कि वह भी उस की तरफ आकर्षित हो चुकी थी. संजीव के बुलावे पर मैग्नेटो माल के पास पहुंचने में जरा भी देरी नहीं की.

यह दोनों की पहली मुलाकात थी. अभी तक वे एकदूसरे की सिर्फ तस्वीरों से ही पहचानते थे. संजीव अपनी कार में था. उस ने मानसी को अपनी साथ वाली सीट पर बैठा लिया.

पहली डेटिंग रही यादगार

मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाली मानसी के लिए गाड़ी में बैठने का एक सुखद अनुभव था. वह खुश थी. संजीव की पर्सनैलिटी को ले कर जैसी उस ने कल्पना की थी, वह उस से कहीं अधिक बेहतर लग रहा था.

मानसी और संजीव के दिलों में एकदूसरे के लिए कितनी जगह बन चुकी थी, इस से दोनों अनजान थे, लेकिन उन के बीच मधुरता के बीज अवश्य अंकुरित हो चुके थे.

संजीव कार को धीरेधीरे बढ़ाते हुए उस की मुसकराहट की तारीफ कर बैठा, ‘‘आप बहुत खुश दिख रही हैं, सुंदर चेहरे पर मुसकान अच्छी लग रही है… आप ऐसे ही हमेशा रहती हैं?’’

इस के जवाब में मानसी की मुसकान और फैल गई. संजीव दोबारा बोला, ‘‘सच कहूं तो मैं ने नहीं सोचा था कि आप इतनी खूबसूरत और अच्छी दिखती होंगी.’’

अगले भाग में पढ़ेंकिसी न किसी बहाने से ऐंठती रही रुपए

Satyakatha: पति बदलने वाली मनप्रीत कौर को मिली ऐसी सजा- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

शादी के बाद ही उन का बड़ा बेटा गुरमुख सिंह अपनी बीवी को ले कर अलग हो गया था. सुखबीर सिंह ने अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए ड्राइवरी को ही अपना पेशा बनाया था. सुखबीर की शादी के कुछ समय बाद ही हरनाम सिंह भी किसी बीमारी के चलते चल बसा. उस के बाद सुखवीर अपनी पत्नी मनप्रीत कौर के साथ ही अपने पिता के घर में अकेला ही रहने लगा था.

मनप्रीत कौर के साथ शादी हो जाने के बाद दोनों खुशहाल जिंदगी गुजारने लगे थे. सुखवीर सिंह एक सीधेसादे स्वभाव का था. वह कार ड्राइवरी करता था. वह सुबह ही अपनी कार ले कर रोजीरोटी की तलाश में निकल जाता. फिर मनप्रीत कौर घर पर अकेली ही रह जाती थी.

हालांकि सुखवीर सिंह और उस के भाई गुरमुख सिंह का घर एकदूसरे से सटा हुआ था, लेकिन बीच में दीवार होने के कारण दोनों का अपना ही रहना, खानापीना था. जिस कारण मनप्रीत कौर का मन घर से उचटने लगा था.

मनप्रीत कौर और सुखवीर की शादी को 2 साल गुजर गए. लेकिन उन का आंगन फिर भी सूनासूना ही था. जिस कारण दोनों ही परेशान रहने लगे थे. अपनी परेशानी को देखते हुए सुखवीर सिंह ने मनप्रीत कौर को कई डाक्टरों को दिखाया.

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शादी के 2 साल के बाद मनप्रीत एक बच्ची की मां बनी. उन के घर के आंगन में बच्चे की किलकारी गूंजी

तो सुखवीर सिंह की खुशी का ठिकाना न रहा.

लेकिन एक बच्ची की मां बन जाने के बाद भी मनप्रीत कौर का मन घर की तरफ से उखड़ाउखड़ा रहने लगा था. जिस के बाद वह अपनी बेटी परबदीप को साथ ले कर अधिकांश समय अपने मायके में ही गुजारने लगी थी.

मनप्रीत कौर के मायके चले जाने के बाद सुखवीर सिंह के सामने खाना बनाने की दिक्कत आने लगी थी. अपनी परेशानी को देखते हुए उस ने कई बार अपनी बीवी मनप्रीत से घर आ कर रहने को कहा, लेकिन वह कुछ समय के लिए ही अपनी ससुराल रुकती और फिर मायके चली जाती थी. जिस कारण दोनों की जिंदगी में खटास आनी शुरू हो गई थी.

घरगृहस्थी में मनमुटाव के कारण एक दिन मनप्रीत कौर सुखवीर को छोड़ कर घर से अचानक ही गायब हो गई. मनप्रीत कौर के गायब होते ही उस के घर वालों ने उसे हर जगह ढूंढा, लेकिन उस का कहीं भी अतापता नहीं चला.

लेकिन 10-15 दिन बाद वह खुद ही अपने घर चली आई. जिस के बाद दोनों में काफी विवाद भी हुआ. लेकिन फिर भी बच्ची के भविष्य को देखते हुए सुखवीर ने उसे माफ कर दिया और फिर से वह उसी के साथ रहने लगी.

उसी दौरान एक दिन मनप्रीत कौर काशीपुर नगर से अपनी बच्ची के लिए कपड़े खरीदने गई. वहां पर उस की मुलाकात आईसा से हुई. आईसा की कपड़ों की दुकान थी. उस ने वहीं से अपनी बच्ची के लिए कपड़े भी खरीदे. कपड़े खरीदने के दौरान उस ने आईसा से जानपहचान बढ़ा ली.

मनप्रीत कौर देखनेभालने में सुंदर और बोलचाल में तेज थी. तभी आईसा ने उस से जानपहचान बढ़ाते हुए पूछा, ‘‘आप क्या कोई जौब करती हो?’’

‘‘अरे दीदी, क्यों मजाक करती हो. जौब हमारी किस्मत में कहां है.’’ मनप्रीत ने टूटे दिल से जबाव दिया.

‘‘लेकिन एक बात है मनप्रीतजी, आप को कोई भी देख कर यही कहेगा कि आप कोई जौब करती होंगी.’’

‘‘मेरे बारे में कोई कुछ भी समझे. लेकिन शायद मेरी किस्मत बिन स्याही की कलम से लिखी है. किस्मत में एक ड्राइवर लिखा था. जिस के साथ अपनी टूटीफूटी जिंदगी को जैसेतैसे काट रही हूं.’’ मनप्रीत ने आईसा के सामने अपना दुखड़ा रोया.

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‘‘मनप्रीतजी, आप परेशान क्यों हो रही हो. अगर आप चाहो तो मेरी शौप पर आ जाओ. मुझे काफी समय से आप जैसी ही एक लड़की की तलाश है.’’

‘‘दीदी, क्यों मजाक कर रही हो.’’

‘‘नहींनहीं, मैं मजाक नहीं कर रही. अगर आप चाहो तो कल से ही काम पर आ जाओ.’’

आईसा की बात सुनते ही मनप्रीत कौर का चेहरा खिल उठा. उस ने उसी समय आईसा की शौप पर काम करने की हामी भर ली.

मनप्रीत का मायका काशीपुर के पास ही था. उस के बाद वह अपनी बेटी को ले कर अपने मायके आ गई. फिर उस ने बच्ची को अपने मायके में छोड़ा और वह वहीं से आईसा की शौप पर काम करने आने लगी.

कपड़े की दुकान पर काम करने के दौरान ही एक दिन उस की मुलाकात नफीस से हुई. नफीस उस दिन वहां कपड़े खरीदने आया था. उसी मुलाकात के दौरान मनप्रीत ने नफीस की जानकारी लेते ही बता दिया था कि उस का पति भी एक ड्राइवर ही है.  मनप्रीत की सुंदरता को देख कर वह उस का इतना दीवाना हो गया कि उस ने उस का मोबाइल नंबर तक ले लिया था.

मनप्रीत को मायके गए हुए काफी समय हो गया तो सुखवीर उसे बुलाने के लिए ससुराल गया. उसे ससुराल जा कर ही पता चला कि वह काशीपुर में किसी कपड़े की दुकान पर काम करने लगी है.

सुखवीर ने उस से घर चलने को कहा तो उस ने साफ शब्दों में कहा कि उस का मन गांव में नहीं लगता. अगर उसे उस के साथ रहना है तो काशीपुर में कमरा ले कर रह ले.

पत्नी की बात सुनते ही सुखवीर परेशान हो उठा. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वह मनप्रीत को कैसे समझाए. उस ने उसे समझाने की कोशिश भी की. लेकिन मनप्रीत ने उस की एक न चलने दी. उस के बाद सुखवीर परेशान हो कर अपनी बेटी परबदीप को साथ ले कर अपने गांव लौट गया.

अगले भाग में पढ़ें- मनप्रीत कौर भी उस की एक बहुत बड़ी कमजोरी थी

Manohar Kahaniya: कातिल घरजमाई- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

गुजरात के जानेमाने शहर बड़ौदा के न्यू समा रोड पर स्थित चंदन पार्क सोसायटी के मकान नंबर सी-48 की तीसरी मंजिल पर तेजस पटेल अपनी पत्नी शोभना और 6 साल की बेटी काव्या के साथ रहता था.

10 अक्तूबर दिन रविवार की रात को तेजस और शोभना की बेटी काव्या मामी के साथ गरबा खेल कर हंसीखुशी से ऊपर आई तो रात के साढ़े 11 बज रहे थे. ऊपर आते समय काव्या ने दूसरी मंजिल पर रहने वाले अपने मामा जितेंद्र बारिया को गुडनाइट कहा था. उस समय वह बहुत खुश थी.

बेटी के आने पर तेजस ने पहले से ला कर फ्रिज में रखी आइसक्रीम निकाली और एकएक आइसक्रीम पत्नी और बेटी को दी तथा एक आइसक्रीम खुद खाई. आइसक्रीम खा कर तीनों सोने के लिए लेट गए.

रात डेढ़ बजे के आसपास तेजस ने दूसरी मंजिल पर रहने वाले अपने साले जितेंद्र बारिया से आ कर बताया कि पता नहीं क्यों शोभना और काव्या उठ नहीं रही हैं? यह सुन कर जितेंद्र पत्नी के साथ तुरंत ऊपर पहुंचा. बहन और भांजी की हालत देख कर जितेंद्र घबरा गया.

पत्नी और बहनोई की मदद से वह बहन और भांजी को पास के ही एक प्राइवेट अस्पताल में ले गया, जहां डाक्टर ने दोनों को देखते ही कहा, ‘‘इन की तो मौत हो चुकी है. इन का अब कुछ नहीं किया जा सकता.’’

इतना सुनते ही जितेंद्र रोने लगा. उस के साथ उस की पत्नी भी रोने लगी थी. पर तेजस की आंखों से एक बूंद भी आंसू नहीं गिरा. वह इस तरह मुंह लटकाए खड़ा था, जैसे वह वहां संवेदना व्यक्त करने आया हो और मरने वालों से उस का कोई खास संबंध न हो.

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मांबेटी की मौत डाक्टर को संदेहास्पद लगी थी, इसलिए डाक्टर ने इस बात की सूचना क्षेत्रीय थाना समा पुलिस को दे दी थी.

उस समय रात के यही कोई ढाई बज रहे थे. फिर भी बात 2 लोगों की संदेहास्पद मौत की थी, इसलिए थानाप्रभारी इंसपेक्टर एन.एच. ब्रह्मभट्ट 2 सिपाहियों के साथ कुछ ही देर में अस्पताल पहुंच गए. डाक्टर की मौजूदगी में उन्होंने लाशों का निरीक्षण किया.

लाशों को देख कर ही लग रहा था कि इन्हें गला दबा कर मारा गया है या फिर इन्हें जहर दिया गया है. पर जहर पीने या खाने से मुंह से झाग निकलता है, जबकि इन दोनों के मुंह से झाग बिलकुल नहीं निकला. उन के होंठ एकदम सूखे हुए थे.

इस के अलावा जहर खा कर मरने वाले के शरीर से जहर की गंध भी आती है. लेकिन यहां ऐसा भी कुछ नहीं था. निरीक्षण के दौरान थानाप्रभारी ने ही नहीं, किसी ने भी इस तरह की कोई गंध नहीं महसूस की थी. हां, शोभना के गले पर नाखून की खरोंच का निशान जरूर साफ दिखाई दे रहा था.

इस के अलावा उस ने गले में जो चेन पहनी थी, उस की रगड़ का भी निशान था. इस से डाक्टर और थानाप्रभारी को लगा कि कहीं गला दबा कर तो इन दोनों की हत्या नहीं की गई?

पर जब इस बारे में मृतका शोभना के पति तेजस से पूछताछ की गई तो उस ने साफ मना कर दिया. उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं अपनी पत्नी और बेटी की हत्या क्यों करूंगा? हम सब तो रात को प्रेम से साथ खाना खा कर रात साढ़े 11 बजे के करीब आइसक्रीम खा कर सोए थे. रात में मैं डेढ़ बजे उठा तो इन लोगों को देख कर मुझे कुछ गड़बड़ लगी. मैं ने शोभना को जगाना चाहा, तो वह नहीं उठी. मैं घबरा गया. नीचे जा कर साले को बुला लाया. उस के बाद हम सभी दोनों को अस्पताल ले आए.’’

‘‘तुम जब रात में उठे तो तुम्हें क्या गड़बड़ लगी, जो तुम पत्नी को जगाने लगे?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, बेटी के सो जाने के बाद मैं उठ कर पत्नी के बगल जा कर लेट गया था. मैं ने उसे जगाना चाहा, पर वह हिली भी नहीं. तब मुझे पता चला कि यह तो बेहोश है. उस के बाद मैं नीचे भागा.’’ तेजस ने बताया.

‘‘यह सब कैसे हुआ?’’ थानाप्रभारी ब्रह्मभट्ट ने अगला सवाल किया.

‘‘सर, मैं क्या बताऊं. मैं भी तो सो रहा था,’’ तेजस ने कहा.

इस के बाद थानाप्रभारी एन.एच. ब्रह्मभट्ट ने तेजस के साले जितेंद्र बारिया से पूछा, ‘‘तुम्हें क्या लगता है, इन की हत्या की गई है या इन्होंने आत्महत्या की है? क्योंकि देखने से ही लग रहा है कि ये स्वाभाविक मौतें नहीं हैं.’’

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जितेंद्र ने रोते हुए कहा, ‘‘सर, मुझे पूरा विश्वास है कि मेरी बहन ने आत्महत्या नहीं की है. शाम को दोनों बहुत खुश थीं. फिर आत्महत्या करने की कोई वजह भी तो होनी चाहिए. मेरी बहन को कोई तकलीफ नहीं थी, जो वह आत्महत्या करती.’’

‘‘इस का मतलब इन की हत्या की गई है? खैर, इस का भी पता हम लगा ही लेंगे. पहले दोनों लाशों का पोस्टमार्टम करा लें, उस से साफ हो जाएगा कि इन की मौत कैसे हुई है?’’ थानाप्रभारी ने कहा.

अगले भाग में पढ़ें- जहर से मौत की हुई पुष्टि

Manohar Kahaniya: करोड़ों की चोरियां कर बना रौबिनहुड- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

महानगरों की कोठी और बंगलों में चोरी होना कोई नई बात नहीं है. लेकिन देश की राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद के कवि नगर इलाके की कोठी नंबर केडी-12 में रहने वाले स्टील कारोबारी कपिल गर्ग के घर में 3 सितंबर, 2021 की रात को हुई चोरी की वारदात कुछ अलग थी.

पहली खास बात तो यह थी कि कपिल गर्ग उत्तर प्रदेश के चिकित्सा स्वास्थ्य राज्यमंत्री अतुल गर्ग के मकान से चंद कदमों की दूरी पर रहते थे, जिस से वहां की सुरक्षा चाकचौबंद थी.

दूसरी बात यह थी कि चोरों ने कपिल गर्ग के मकान में खिड़की की ग्रिल तोड़ कर प्रवेश किया था और वह अलमारी में रखे हुए हीरे व सोने के करोड़ों रुपए के जेवर व नकदी चुरा ले गए थे. यही कारण था कि चोरी की इस घटना को पुलिस ने असाधारण मान कर इस की गंभीरता से तफ्तीश शुरू की थी.

कारोबारी कपिल कुमार गर्ग की कविनगर औद्योगिक क्षेत्र में हरि स्टील एंड क्रेन सर्विस के नाम से फर्म है. यहां इस कोठी में वह अपने बेटे वंश गर्ग, पुत्रवधू शिवानी और 8 माह की पोती के साथ रह रहे थे. कुछ महीने पहले उन की पत्नी की कोरोना से मृत्यु हो गई थी.

3 सितंबर, 2021 की रात कपिल और उन का बेटा वंश एक कमरे में सोए हुए थे, जबकि पुत्रवधू व पोती दूसरे कमरे में सो रही थी. इस दौरान रात के किसी वक्त कोठी के पीछे की तरफ से छत से होते हुए चोर कोठी में दाखिल हुए और प्रथम तल पर बनी खिड़की की ग्रिल तोड़ कर कोठी के भीतर प्रवेश किया.

चोर सीधे उन की बहू के कमरे में पहुंचे और कमरे के भीतर बने स्टोर में रखी अलमारी में से सोने व हीरे के जेवर चोरी कर ले गए.

सुबह उठने पर वारदात का पता चला तो घर में कोहराम मच गया. हैरानी यह थी कि परिवार में सोते हुए किसी भी सदस्य को इस की भनक तक नहीं लगी. तत्काल पुलिस को सूचना दी गई.

वारदात चूंकि शहर की सब से पौश कालोनी की थी. इसलिए कविनगर थानाप्रभारी संजीव शर्मा टीम के साथ तत्काल मौके पर पहुंच गए.

एसएसपी पवन कुमार, एसपी (सिटी प्रथम) निपुण अग्रवाल ने भी मौके पर पहुंच कर घटनास्थल का निरीक्षण किया. मौके पर फोरैंसिक टीम ने भी पहुंच कर जांच के लिए नमूने एकत्र किए. डौग स्क्वायड को भी मौके पर बुलाया गया, लेकिन उन से कोई खास मदद नहीं मिली.

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शुरुआत में कपिल गर्ग इतना ही बता सके कि घर में करीब एक करोड़ रुपए से अधिक के गहनों व नकदी की चोरी हुई है. चोरी हुए जेवरों में उन की विवाहित बेटी के भी आभूषण थे, जो उन के पास ही रखे थे.

चोरों ने जिस तरह सफाई के साथ घर में प्रवेश किया था और उस स्थान को ही निशाना बनाया था, जहां कीमती गहने रखे थे, उस से साफ था कि चोरी की वारदात में किसी पहचान वाले का ही हाथ होगा.

दरअसल, चोरों ने मकान के पिछले हिस्से से, जोकि बंद रहता है, उस तरफ से कोठी में प्रवेश किया. उन को शायद जानकारी थी कि जेवर कहां रखे हैं. इस के चलते वह कोठी में बने सिर्फ उस कमरे में पहुंचे, जहां जेवर रखे हुए थे.

गार्ड व घरेलू सहायक को भी पता नहीं चला कि घर में चोर घुसे हैं. घटना के समय गार्ड व घरेलू सहायक भी घर में मौजूद थे. घरेलू सहायक मनोज पहली मंजिल पर बने कमरे में सोया हुआ था, जबकि गार्ड दिल बहादुर बाहर गार्डरूम में तैनात झपकी ले रहा था.

पुलिस ने दोनों से ही पूछताछ की और उन की बैकग्राउंड के बारे में जानकारी हासिल की. लेकिन कपिल गर्ग ने उन में से किसी पर भी शक जाहिर नहीं किया था. पुलिस ने तहकीकात के लिए दोनों के पहचानपत्र और मोबाइल नंबर ले लिए ताकि उन के फोन की काल डिटेल्स निकाली जा सके.

घर में सीसीटीवी कैमरे भी लगे थे, इसलिए पुलिस को लगा कि चलो जिस ने भी चोरी की है, वह सावधानी बरतने के बावजूद पकड़ में आ जाएगा. लेकिन जब कैमरों की जांच की गई तो पता चला कि पिछले काफी समय से सीसीटीवी कैमरे खराब पड़े हुए थे.

पुलिस ने परिवार की इस लापरवाही पर माथा पीट लिया. अकसर ऐसा ही होता है लोग हजारों रुपए खर्च कर देते हैं, लेकिन अपनी हिफाजत के लिए लगे सीसीटीवी कैमरे लगवाने के बाद कभी यह देखने की कोशिश नहीं करते कि वे काम कर भी रहे हैं या नहीं.

एसएसपी पवन कुमार के निर्देश पर कपिल गर्ग की शिकायत पर कविनगर थाने में 4 सितंबर, 2021 को भारतीय दंड संहिता में चोरी की धारा 380, 457 के अंतर्गत केस दर्ज कर के थाने के एसएसआई देवेंद्र कुमार सिंह को जांच की जिम्मेदारी सौंप दी.

पहले दिन से ही पुलिस पर वारदात का खुलासा करने के लिए उच्चाधिकारियों का जबरदस्त दबाव था. इसीलिए एसपी (सिटी) निपुण अग्रवाल ने थानाप्रभारी संजीव शर्मा के साथ क्राइम ब्रांच प्रभारी सचिन मलिक की एक विशेष टीम का गठन कर दिया.

थाना पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीमें इलाके में मुखबिरों की सहायता से सुरागसी के काम में जुट गईं. थाने की पुलिस कपिल गर्ग के परिचितों, उन के घर आने वाले लोगों, फैक्ट्री में काम करने वाले लोगों के साथ कालोनी में आने वाले वेंडरों की लिस्ट बना कर उन से पूछताछ का काम करने लगी.

सीसीटीवी फुटेज से दिखी आशा की किरण

दूसरी तरफ क्राइम ब्रांच की टीम ने केडी ब्लौक में सभी कोठियों और रोड साइड में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालने का काम शुरू कर दिया. पुलिस की टीमों में 2 दिन के भीतर 25 से अधिक सीसीटीवी के फुटेज देखे तो क्राइम ब्रांच की टीम को आशा की किरण दिखाई देनी शुरू हो गई.

दरअसल, घटना वाली रात 3 से 4 बजे के बीच एक काले रंग की स्कौर्पियो गाड़ी कपिल गर्ग के घर के आसपास तथा उन की गली के बाहर मंडराती नजर आई.

लेकिन फुटेज इतनी धुंधली थी कि उस में सवार लोगों व गाड़ी का नंबर स्पष्ट नहीं दिखा. लेकिन इस से उम्मीद का एक सिरा पुलिस के हाथ लग गया था.

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जिस जगह चोरी हुई, वहां से 3 रास्ते शहर से बाहर जाने वाले थे. पुलिस ने उन सभी रास्तों पर आगे की तरफ बढ़ते हुए जितने भी सीसीटीवी कैमरे रोड साइडों में लगे थे, उन्हें खंगालने का काम शुरू कर दिया.

जैसेजैसे टीम वहां के सीसीटीवी फुटेज खंगालती रही, वैसेवैसे सुराग पुख्ता होता चला गया. ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रैसवे पर बने टोल प्लाजा की तरफ बढ़ते हुए ये काली स्कौर्पियो गाड़ी एक के बाद एक कई सीसीटीवी में कैद हो गई, लेकिन कहीं भी गाडी का नंबर साफतौर पर दिखाई नहीं दिया.

सीसीटीवी की जांच में ये गाड़ी जब टोल प्लाजा के पास एक पैट्रोल पंप पर पहुंची, गाड़ी कुछ देर वहां रुकी, लेकिन उस ने पैट्रोल पंप से उस में तेल नहीं भरवाया. वह गाड़ी थोड़ी देर रुक कर टोल को पार कर ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रैसवे पर चढ़ गई, जिस से साफ हो गया कि ये गाड़ी गाजियाबाद से बाहर चली गई थी.

लेकिन इस पूरी कवायद का फायदा ये हुआ कि पुलिस को टोल प्लाजा के सीसीटीवी से स्कौर्पियो कार का नंबर मिल गया. इस जगह मिली सीसीटीवी में यह भी साफ हो गया कि गाड़ी में ड्राइवर समेत कुल 2 लोग सवार थे.

पुलिस ने टोल प्लाजा के सीसीटीवी फुटेज को भी जांच के लिए कब्जे में ले लिया. टोल प्लाजा के फास्टटैग एकाउंट की जांचपड़ताल की तो पता चला कि किसी इरफान नाम के व्यक्ति के वालेट से ये पेंमेट हुई थी.

टोल प्लाजा और परिवहन विभाग से सभी डिटेल्स निकलवा कर जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि ये गाड़ी और फास्टटैग से जुड़ा बैंक खाता इरफान पुत्र मोहम्मद अख्तर, निवासी गांव जोगिया गाढ़ा, थाना पुपरी, जिला सीतामढ़ी, बिहार के नाम पर है.

कविनगर थानाप्रभारी संजीव कुमार शर्मा ने जब इस जांच प्रगति से एसपी (सिटी) निपुण अग्रवाल को अवगत कराया तो उन्होंने एक टीम तत्काल बिहार के सीतामढ़ी रवाना करने का आदेश दिया. उसी दिन आरटीओ विभाग से भी स्कौर्पियो गाड़ी के बारे में जानकारी हासिल कर ली गई थी.

यूपी पुलिस टीम पहुंची सीतामढ़ी

एसएसआई देवेंद्र सिंह और क्राइम ब्रांच प्रभारी सचिन मलिक के नेतृत्व में पुलिस की एक टीम सीतामढ़ी के लिए भेज दी गई. 7 सितंबर, 2021 को पुलिस की टीम ने स्थानीय पुपरी थाने से इरफान के बारे में जानकारी हासिल की तो पता चला कि इरफान एक शातिर अपराधी है. उस के खिलाफ पुपरी थाने में ही झगड़ा, जानलेवा हमला करने और धमकी देने के मामले दर्ज हैं.

स्थानीय पुलिस से गाजियाबाद पुलिस को पता चला कि दिल्ली, पंजाब, गोवा, कर्नाटक, ओडिशा व तेलंगाना की पुलिस इरफान की तलाश में अकसर उस के गांव में छापा मारती रहती है लेकिन वह इतना शातिर है कि पुलिस के हत्थे नहीं चढता.

स्थानीय पुलिस को साथ ले कर जब पुलिस की टीम ने इरफान के गांव जोगिया गाढ़ा में उस के घर पर छापा मारा तो वहां इरफान नहीं मिला, लेकिन उस की पत्नी गुलशन परवीन पुलिस को मिल गई.

पुलिस को गांव में उस के घर में खड़ी वह स्कौर्पियो कार भी मिल गई, जिसे कविनगर में कपिल गर्ग के घर में चोरी के दौरान सीसीटीवी फुटेज में देखा गया था.

इतना ही नहीं, वहां बिहार नंबर की एक महंगी जगुआर कार भी मिली. पुलिस समझ गई कि गाजियाबाद में चोरी के बाद इरफान सीधे अपने गांव आया था और चोरी का माल ठिकाने लगाने के बाद वह वहां से खिसक गया.

पुलिस को पूरा यकीन था कि इतनी बड़ी चोरी करने के बाद इतनी जल्दी उस ने चोरी का सारा माल नहीं बेचा होगा, लिहाजा पुलिस ने इरफान के घर की तलाशी ली.

पुलिस को वहां से नकदी तो ज्यादा नहीं मिली, लेकिन कई लाख रुपए के गहने बरामद हुए जो कपिल गर्ग के घर हुई चोरी का माल था या नहीं, यह जानने के लिए पुलिस टीम ने घर से बरामद हुए सामान के फोटो खींच कर गाजियाबाद में एसएचओ संजीव शर्मा को भेजे.

संजीव शर्मा ने कपिल गर्ग के परिवार को बुला कर वाट्सऐप से आई फोटो जब परिजनों को दिखाई तो उन्होंने बता दिया कि इस में से अधिकांश गहने उन के घर से ही चोरी हुए हैं.

अब यह बात पूरी तरह साफ हो गई कि कपिल गर्ग के घर हुई चोरी में इरफान का ही हाथ है. पुलिस ने उस की पत्नी गुलशन उर्फ परवीन को चोरी का माल घर में रखने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस को स्थानीय पुलिस से इस बात की जानकारी भी मिल चुकी थी कि इरफान ने अपने गांव व आसपास के इलाकों में बहुत सारे लोगों को शार्टकट से पैसा कमाने का लालच दे कर अपने गैंग में शामिल कर लिया था.

इसलिए पुलिस ने उस की पत्नी गुलशन से स्थानीय थाने में महिला पुलिस की मदद से सख्ती के साथ पूछताछ की तो पता चला कि गाजियाबाद के कविनगर में हुई चोरी के दौरान पुपरी थाना क्षेत्र का ही इरफान का ड्राइवर मोहम्मद शोएब पुत्र गुलाम मुर्तजा निवासी राजाबाग कालोनी तथा विक्रम शाह पुत्र रामवृक्ष शाह निवासी गाढ़ा कालोनी भी शामिल था.

पुलिस ने उसी रात छापा मारा. संयोग से दोनों अपने घर पर ही मिल गए और दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया. उन के घर से भी तलाशी के दौरान चोरी के कुछ आभूषण बरामद हुए जो उन्होंने कपिल गर्ग के घर से चोरी किए थे.

तीनों आरोपियों को सीतामढ़ी की अदालत में पेश करने के बाद कविनगर पुलिस उन्हें ट्रांजिट रिमांड पर ले कर गाजियाबाद आ गई. यहां पर सक्षम न्यायालय में पेश कर तीनों को पुलिस ने 3 दिन की रिमांड पर ले लिया. जिस के बाद उच्चाधिकारियों ने गुलशन परवीन, शोएब और विक्रम से विस्तृत पूछताछ की.

शोएब तथा विक्रम ने घटनास्थल केडी 12 में कपिल गर्ग की कोठी पर जा कर इस बात की पहचान कर दी कि वे इरफान के साथ 3 सितंबर को चोरी करने आए थे. इस के बाद शुरू हुआ ताबड़तोड गिरफ्तारियों का सिलसिला.

पुलिस की टीमों ने इरफान के गिरोह में काम करने वाले इमरान पुत्र अकीउर्रहमान मूल निवासी एकता नगर, थाना क्वारसी, अलीगढ़ जो इन दिनों बरेली के खुशबू एनक्लेव इलाके में रहता था, को भी गिरफ्तार किया. इमरान चोरी के आभूषण बिकवाने में इरफान की मदद करता था.

पुलिस ने अलीगढ़ के रहने वाले 3 सर्राफा कारोबारियों मुरारी वर्मा, शिवम वर्मा तथा धीरज वर्मा को भी गिरफ्तार किया. जिन से चोरी के कुछ आभूषण भी बरामद किए गए.

इन चारों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस टीमों ने जांचपड़ताल और पूछताछ को आगे बढ़ाते हुए इरफान के गांव के रहने वाले मोहम्मद मुजाहिद और पड़ोस के जाहिदपुर गांव में रहने मोहम्मद सरबरूल हुदा को भी गिरफ्तार कर लिया. लेकिन यह सिलसिला यहीं खत्म होने वाला नहीं था.

छानबीन आगे बढ़ी तो पता चला कि अलीगढ़ में बरौला जाफराबाद में रहने वाली इरफान की प्रेमिका रूपाली उर्फ संगीता गांव गाढ़ा जोगिया में रहने वाली उस की विधवा बहन लाडली खातून को भी इरफान के चोरी के कारनामों की पूरी जानकारी रहती है.

वे दोनों न सिर्फ पुलिस से बचने के लिए छिपने में उस की मदद करती हैं, बल्कि चोरी के माल को ठिकाने लगाने से ले कर उस से ऐश भरी जिंदगी जीने में भी हिस्सेदार बनी रहती हैं.

एक के बाद एक पुलिस इरफान से जुड़े 11 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी थी, लेकिन पुलिस के लिए छलावा बन चुका इरफान उर्फ उजाला हर बार पुलिस की पकड़ से फिसल जाता था.

इस दौरान साक्ष्यों के अभाव में उस की बहन लाडली खातून तथा प्रेमिका रूपाली उर्फ संगीता की जमानत भी हो गई. लेकिन इरफान फिर भी पुलिस की पकड़ में नहीं आया.

कविनगर पुलिस तथा क्राइम ब्रांच की टीम लगातार उस की गिरफ्तारी के प्रयास में लगी रही. इस दौरान कविनगर थाने के प्रभारी संजीव शर्मा का तबादला हो गया था. उन की जगह अब्दुल रहमान सिद्दीकी कविननगर थाने के नए थानाप्रभारी बन कर आए.

उन्होंने जांच अधिकारी देवेंद्र सिंह के साथ मिल कर नई रणनीति तैयार की और अब तक पूछताछ में आए तमाम लोगों की निगरानी का काम शुरू करा दिया जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इरफान के साथ जुड़े थे.

लगातार प्रयास के बाद पुलिस टीम को जानकारी मिली कि इरफान 24 अक्तूबर को गाजियाबाद कोर्ट में अपने वकील से मिलने के लिए आएगा. क्योंकि उस ने अपने गिरोह के गिरफ्तार साथियों की जमानत करानी है. पुलिस ने 24 अक्तूबर को इरफान को पकड़ने के लिए बड़ा जाल बिछाया.

अगले भाग में पढ़ें- पहली चोरी में ही मिले थे 35 लाख रुपए

Manohar Kahaniya: बहन के प्यार का साइड इफेक्ट- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

Writer- आर. के. राजू

घर में सभी लोगों की लाडली नंदिनी की शादी को ले कर उस के पिता ओमप्रकाश चिंतित रहते थे. उस की शादी की उम्र हो चुकी थी. वह जितनी चंचल, उतनी ही हिम्मती और बातबात पर अड़ जाने वाली थी. जिद्दी इतनी कि एक बार जो मन में ठान लिया, उसे पूरा कर के ही छोड़ती थी. मुरादाबाद की एक एक्सपोर्ट कंपनी में काम करने वाले ओमप्रकाश के खातेपीते सुखीसंपन्न परिवार में पत्नी ओमवती के अलावा बेटी नंदिनी और बेटा गगन था.

मुरादाबाद की लालबाग रामगंगा कालोनी में रहने वाले इस परिवार के सभी सदस्य सौतेलेपन की कुंठा से ग्रसित थे. वहीं सौतेलापन नंदिनी को भी भीतर ही भीतर कुछ ज्यादा ही कुरेदता रहता था. उस की बड़ी बहन पूजा की शादी हो चुकी थी. वह अपने घर में खुश थी, लेकिन नंदिनी को पड़ोस में रहने वाले प्रदीप नाम के युवक से प्यार हो गया. लेकिन वह उस की बिरादरी का नहीं था. इस के अलावा वह बेरोजगार भी था.

इसी बात को ले कर गगन उस के प्रेम में रोड़ा बन बैठा था. नंदिनी गगन की भले ही सौतेली बहन थी, लेकिन वह नहीं चाहता था कि नंदिनी प्रदीप से प्यार करे. गगन अपने मातापिता को इस बारे में उकसाता भी रहता था. पिता भी गगन का ही पक्ष लेते थे. सौतेली मां कलावती का निधन भी बीते साल कैंसर से हो चुका था.

घर में नंदिनी की एकमात्र हमदर्द गगन की पत्नी राधा बन सकती थी, लेकिन उस की घर में जरा भी नहीं चलती थी. गगन नंदिनी के साथसाथ उसे भी काफी डांटडपट कर रखता था. कई बार इस वजह से नंदिनी काफी दुखी हो जाती थी और गगन के विरोधी तेवर को अपने दिल पर लेती हुई बिफर भी पड़ती थी.

उस के मुंह से निकल पड़ता था, ‘‘गगन उस का दुश्मन है, क्योंकि वह सौतेला भाई जो है, अपना होता तो…’’

अब नंदिनी को यह समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने दिल की बात कहे तो किस से? अपनी समस्या का समाधान निकाले भी तो किस की मदद ले? यही सोच कर वह हमेशा तनाव में रहती थी.

प्रेमी प्रदीप के साथ वह ज्यादा समय तक मिलबैठ भी नहीं सकती थी. क्योंकि गगन उस पर हमेशा पहरेदार की तरह तना रहता था. हर बात में मिर्चमसाला लगा कर पिता को बताता था और घर में बात का बतंगड़ बना डालता था.

और तो और, उस के प्रेमी को नाकारा निकम्मा कहता हुआ घर में सभी के सामने उसे काफी जलील करता था. इस बात को ले कर नंदिनी परेशान रहने लगी थी. उस के मन में तरहतरह के खयाल आतेजाते रहते थे.

अपनी समस्याओं को ले कर उधेड़बुन में एक बार नंदिनी बाजार से गुजर रही थी. तभी अचानक उस की मुलाकात ममता से हो गई. उसी ने टोका, ‘‘अरे नंदिनी तुम! काफी परेशान दिख रही हो? क्या बात है?’’

‘‘अरे ममता! तुम तो पहचानने में ही नहीं आ रही हो. तुम्हारी शादी होने वाली है क्या? बहुत दिनों बाद मिली… कैसी हो तुम?’’ नंदिनी ने चौंकते हुए उसी की तरह एक साथ कई सवाल दाग दिए.

‘‘मैं तो बस अपने दिल को बहला रही हूं. खुद को दिलासा दे रही हूं. तुम्हारे भाई ने जब से मुझे धोखा दिया है, उस के बाद समझो आज ही मूड फ्रैश करने के लिए थोड़ा बनठन कर निकली हूं… अच्छी लग रही हूं न?’’ ममता ने भी नंदिनी के अंदाज में जवाब दिया.

‘‘बहुत ही अच्छी, ग्लैमरस. तुम्हारी सुंदरता का कोई जवाब नहीं. तुम कुछ भी पहन लो हीरोइन दिखती हो…’’ नंदिनी बोली.

‘‘बसबस, किसी की अधिक तारीफ नहीं करते. उस से उस की मुराद पूरी होने में अड़चन आ जाती है.’’ ममता बोली.

‘‘तुम्हारी मुराद क्या है?’’ नंदिनी तपाक से पूछ बैठी.

‘‘बदला,’’ नंदिनी के लहजे में ममता बोली.

‘‘एेंऽऽ बदला… यह कोई मुराद हुई? मगर किस से?’’ चौंकती हुई नंदिनी ने पूछा.

‘‘तुम्हारे उसी भाई से, जो मेरी जिंदगी उजाड़ कर तुम्हारी जिंदगी भी बरबाद करने पर तुला है.’’ ममता गुस्से में बोली.

‘‘कह तो तुम बिलकुल सही रही हो, मगर क्या कर सकती हूं, समझ नहीं पा रही हूं.’’ नंदिनी ने कहा.

वह मायूसी के साथ आगे कहने लगी, ‘‘गगन सौतेला भाई है न, इसलिए अपना सौतेलापन खुल कर दिखा रहा है. प्रदीप को मेरा और पूरे परिवार का दुश्मन बताता है. पापा को उस के खिलाफ काफी भड़का दिया है. पापा से बोलता है कि उन की जायदाद पर प्रदीप की नजर है. तुम तो जानती हो उसे, वह ऐसा बिलकुल ही नहीं है. वह मुझे बहुत प्यार करता है. मैं भी उसे बहुत चाहती हूं.’’

‘‘देखो, नंदिनी तुम्हारे चाहने और नहीं चाहने से क्या होता है. गगन कभी नहीं चाहता है कि तुम्हारी प्रदीप के साथ शादी हो. इस के पीछे छिपा हुआ उस का मकसद समझो. वह जानता है कि तुम्हारी प्रदीप से शादी होने पर तुम इसी मोहल्ले में रहने लगोगी… और फिर अपने पिता की संपत्ति पर हक जताने लगोगी. इसलिए वह तुम्हारी शादी कहीं दूर करवाना चाहता है.’’ ममता ने समझाया.

इसी के साथ उस ने यह भी कह दिया कि उन दोनों का एक ही दुश्मन है गगन.

गगन की प्रेमिका थी ममता

यह बात नंदिनी के दिमाग में घर कर गई. उस वक्त तो ममता और नंदिनी अपनीअपनी उलझनों का बोझ एकदूसरे पर उतार कर विदा हो लिए, लेकन दोनों के दिमाग में गगन के विरोध की ज्वाला धधकने लगी.

ऐसा होना भी स्वाभाविक था. नंदिनी को गगन हमेशा कहता रहता था कि प्रदीप उस का हितैषी नहीं दुश्मन है, वह उस के साथ प्रेम का नाटक कर रहा है और उस की मंशा जमीनजायदाद हथियाने की है.

एक समय में लालबाग रामगंगा कालोनी निवासी रमेश कुमार की बेटी ममता गगन की प्रेमिका हुआ करती थी. गगन उस पर जान छिड़कता था. गगन भी ममता से बेइंतहा मोहब्बत करता था. उस का दीवाना था.

वह बेहद सुंदर और मांसलता के दैहिक आकर्षण से भरी हुई थी, अपनी खूबसूरती को आधुनिक पहनावे और स्टाइल से और भी ग्लैमर बना देती थी. बौडी लैंग्वेज से ले कर बोलचाल तक से किसी को भी पलक झपकते ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती थी.

उस के स्वच्छंद विचार और आधुनिक पहनावे से निखरे रूपरंग का कई लोग गलत अर्थ भी निकालते थे. दबी जुबान में उसे बदचलन तक कह देते थे. ऐसी धारणा रखने वालों में गगन के पिता ओमप्रकाश भी थे.

उन्होंने ममता को ले कर गगन को एक बार खूब डांटा था. उस से दूर रहने की चेतावनी दी. यहां तक कि उन्होंने भी उसे बदचलन करार दे दिया था. दुर्भाग्य से 2018 में गगन की मां कलावती का कैंसर से निधन हो गया.

करीब 25 साल पहले ही ओमप्रकाश ने अमरोहा निवासी विवाहिता कलावती से दूसरा विवाह तब किया था, जब उन की पहली पत्नी का आकस्मिक निधन हो गया था. विवाह के वक्त कलावती की गोद में 3 साल का गगन भी था. नंदिनी का बचपन उसी सौतेले भाई के साथ गुजरा, जो अब 28 साल का हो चुका था.

ओमप्रकाश की पहली पत्नी से उन के 2 बच्चे पूजा और नंदिनी थी. वे पूजा की शादी कर चुके थे और नंदिनी की शादी के प्रयास में थे.

कलावती के निधन के बाद ओमप्रकाश घर को संभालने के लिए गगन की शादी की योजना बनाने लगे थे. इसी सिलसिले में ममता के साथ उस के प्रेम संबंध का मामला सामने आ गया था. उन्होंने ममता से शादी करना सिरे से मना कर दिया था.

इस पर गगन न तो पिता का विरोध कर पाया, और न ही ममता की भावनाओं की कद्र. और फिर गगन की शादी 6 जुलाई 2018 को मुरादाबाद में ही बलदेवपुरी थाना कटघर निवासी कुंदन कुमार की बेटी राधा से हो गई.

गगन का राधा के साथ शादी होना ममता को अच्छा नहीं लगा. वह खुल कर विरोध नहीं कर पाई, लेकिन भीतर ही भीतर नफरत की आग में जल उठी. इस का जिक्र उस ने कई बार अपने दूसरे दोस्तों से भी किया, वह अकसर महीने-2 महीने के लिए दूसरे शहर चली जाया करती थी और लोगों को कभी बरेली तो कभी लखनऊ में नौकरी लगने की बातें बताती रहती थी.

यहां तक कि वह अपने मातापिता से अलग किराए का कमरा ले कर रहने लगी थी. वह जिगर कालोनी में स्थित एक्सपोर्ट फर्म में काम करती थी.

वह प्रदीप को भी ताने मारती थी, जो उस के दूर का रिश्तेदार था. ममता ने प्रदीप को एक बार तो साफसाफ कह दिया था कि जब तक गगन रहेगा तब तक उस की नंदिनी से शादी नहीं हो पाएगी.

यही बात वह नंदिनी को भी ताना देते हुए अकसर कहती थी कि गगन उसे उस के प्रेमी प्रदीप से कभी मिलने नहीं देगा. गगन भले ही उस का सौतेला भाई है, लेकिन उस की पिता की संपत्ति का वारिस वही बनेगा.

उस दिन बाजार में ममता ने नंदिनी को एक बार फिर उस के हरे जख्म को कुरेद दिया था. ममता से बात कर के नंदिनी विचलित हो गई थी. गगन चाहता था कि उस की बहन की शादी किसी रोजगारशुदा व्यक्ति से ही हो. इस में उसे सौतेले पिता का भी समर्थन मिला हुआ था.

नंदिनी के पिता हमेशा गगन का पक्ष ले कर नंदिनी को समझाते थे कि प्रदीप न तो बिरादरी का है, और न ही बराबरी का. जबकि इस की नंदिनी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती थी. वह मस्ती में रहती हुई अपनी जिद पर अड़ी थी.

कबाड़ी का कारोबार करने वाले गगन का यही सोचना था कि प्रदीप की निगाह उस के पिता की प्रौपर्टी पर टिकी है. ओमप्रकाश एक्सपोर्ट फर्म में काम करते थे. उन के लाड़प्यार में पली नंदिनी ही घर की देखभाल और खर्च की पूरी जिम्मेदारी संभाले हुई थी.

बाजार और बैंक आदि का हिसाबकिताब नंदिनी के जिम्मे था. फिर भी घर में गगन की ही मनमानी चलती थी. वह पत्नी राधा को इस से दूर रखता था.

नंदिनी नहीं चाहती थी कि उस की शादी किसी दूसरे शहर में हो. वह हमेशा पिता के मकान में ही रहना चाहती थी. प्रदीप को ले कर गगन के साथ नंदिनी का हमेशा झगड़ा होता रहता था.

बात जून 2021 की है. जब एक दिन नंदिनी के साथ गगन का झगड़ा काफी बढ़ गया था. इस कारण गगन अपनी ससुराल जा कर रहने लगा था. तब उस की पत्नी राधा भी अपने मायके में ही थी.

एक तरफ नंदिनी थी, और दूसरी तरफ ममता. दोनों के दिल में गगन को ले कर विरोध की सुलगती चिंगारी जबतब भड़क उठती थी. नंदिनी अपने प्रेमी से शादी में आई बाधा को ले कर परेशान थी तो ममता को गगन से शादी नहीं हो पाने का मलाल था. कारण ममता ने गगन के साथ कई साल साथ गुजारे थे और विवाह होने के कसमेवादे किए थे.

उन पलों को याद करके हुए ममता भावुक हो जाती थी. ममता ने प्रण कर लिया था कि वह गगन को जरूर सबक सिखाएगी. ममता को बस समय का इंतजार था.

नंदिनी से मिलने के बाद ममता ने अपने दिल की भड़ास निकाल दी थी. तभी ममता को मालूम हुआ था कि गगन 2 महीने से अपनी ससुराल बलदेवपुरी में रह रहा है.

नंदिनी से मुलाकात से कुछ दिन पहले ही ममता की मुलाकात प्रदीप से भी हुई थी. उस ने नंदिनी की परेशानी के बारे में उसे जानकारी दे दी थी. उस ने भी बदले की आग में जलती ममता और नंदिनी की पीड़ा गहराई से महसूस की. जल्द ही तीनों ने गगन को लक्ष्य बना कर एक मीटिंग की. विशेषकर नंदिनी और ममता ने प्रदीप को अपनी योजना में शामिल कर लिया.

योजना के मुताबिक प्रदीप ने अपने एक दोस्त वीरू उर्फ हरीश को भी साथ ले लिया. वीरू मुरादाबाद में थाना मझोला के गांव जयंतीपुर का रहने वाला एक बदमाश किस्म का युवक था.

तीनों ने वीरू से गगन को ठिकाने लगाने की बात कही. उन्होंने बदले में उसे 50 हजार रुपए दिए. दरअसल, नंदिनी और ममता ने मिल कर प्रदीप के माध्यम से गगन को रास्ते से हमेशा के लिए हटाने की योजना बनाई थी.

योजना के अनुसार नंदिनी ने ममता को गगन का मोबाइल नंबर दिया. ममता ने अपने पूर्व प्रेमी गगन को काल की, ‘‘हैलो गगन.’’

‘‘हां, कौन?’’ गगन ने पूछा

‘‘अरे मुझे पहचाना नहीं, मैं तुम्हारी ममता बोल रही हूं.’’ ममता ने उलझाया मीठी बातों में गगन अचानक ममता की आवाज सुन कर एकदम से भौचक्का रह गया. भले ही ममता से उस की शादी नहीं हुई थी, किंतु उस के दिल में ममता अभी भी बसी हुई थी. न चाहते हुए भी अचरज से बोला, ‘‘चलो, तुम्हें मेरी याद तो आई.’’

‘‘मुझ से मिलोगे नहीं? तुम्हें तो पता ही होगा कि अब मेरा घर वालों से कोई वास्ता नहीं रहा. मैं बंगला गांव में रह रही हूं किराए पर. पास ही जिगर कालोनी में जौब करती हूं, फोन में तुम्हारा नंबर अचानक दिख गया तो तुम्हारी याद आ गई. फिर मैं ने फोन कर लिया.’’ ममता बोली.

अगले भाग में पढ़ें- गगन को झाडि़यों में ले गई ममता

Manohar Kahaniya: आस्था की चोट- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

Writer- शाहनवाज 

बिजनैसमैन अरुण और डा. आस्था की गृहस्थी की गाड़ी हंसीखुशी से चल रही थी. लेकिन उन दोनों के बीच आए ‘वो’ ने गृहस्थी में नफरत का बीज अंकुरित कर दिया. इसी बीच डा. आस्था ने पति अरुण को ऐसी ठेस पहुंचाई कि अरुण ने एक खतरनाक फैसला ले लिया. फिर जो हुआ…

13अक्तूबर, 2021 की देर शाम को करीब साढ़े 8 बज रहे थे. उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में सिविल

लाइंस के रहने वाले तरुण अग्रवाल, अपने छोटे भाई अरुण अग्रवाल, जोकि अलीगढ़ शहर की रमेश विहार कालोनी में अपने परिवार के साथ रहता था, के घर पर पहुंचा था. तरुण का घर अरुण के घर से मात्र 20 मिनट की दूरी पर था, जो वह अकसर अपनी बाइक से तय किया करता था.

दरअसल, एक दिन पहले ही अरुण अपने दोनों बच्चों को तरुण के घर पर छोड़ने आया था और आज तरुण अपने भतीजेभतीजी के कपड़े लेने अरुण के घर पर आया था.

तरुण ने अपनी बाइक अरुण के घर के आगे रोकी और बाहर से देखा तो घर पर अंधेरा और काफी शांति छाई हुई थी. घर के बाहर बरामदे में बस एक लाइट ही जल रही थी, जिस से बाहर गली तक थोड़ीबहुत रौशनी फैल रही थी.

बाइक से उतर कर तरुण बरामदे से होते हुए मकान के मेनगेट पर पहुंचा तो देखा कि दरवाजे पर ताला लटका हुआ है. दरवाजे पर ताला लटका देख तरुण को थोड़ी हैरानी हुई कि अभी तक तो डा. आस्था (अरुण की पत्नी) घर वापस आ जाया करती है.

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उस ने डा. आस्था को फोन लगाया लेकिन आस्था का नंबर स्विच्ड औफ होने की वजह से कोई जवाब नहीं मिला. आस्था के बाद उस ने अरुण के नंबर पर भी फोन लगाया, लेकिन अफसोस अरुण का नंबर भी स्विच्ड औफ ही मिला. उस ने मकान के बाहर बरामदे पर नीचे बैठ कर 15-20 मिनट तक इंतजार किया, लेकिन घर खोलने के लिए कोई नहीं आया. काफी देर तक इंतजार करने के बाद हार मान कर तरुण ने अपनी जेब में हाथ डाला, अरुण के घर की चाबी निकाली और मेन गेट खोलने के लिए आगे बढ़ा.

दरअसल तरुण को अरुण ने ही पिछले दिन अपने घर की चाबी दी थी, लेकिन वह खुद दरवाजा नहीं खोलना चाहता था. वह नहीं चाहता था कि गलीमोहल्ले में अपने भाई के घर का दरवाजा खोलते हुए कोई उसे देखे और अपने मन में क्याक्या सोच ले. इसलिए दरवाजा खोलने से पहले काफी देर तक उस ने इंतजार किया. लेकिन जब कोई उम्मीद उसे नहीं दिखी तब जा कर उस ने अपने पास मौजूद चाबी से दरवाजा खोलना बेहतर समझा.

दरवाजा खोल कर तरुण ने सब से पहले कमरे की सभी लाइट्स औन कीं. कमरे का सारा सामान व्यवस्थित तरीके से अपनी जगह पर मौजूद था. उस ने सब से पहले बच्चों के कमरे में जा कर अलमारी से उन के 2-2 जोड़ी कपड़े निकाले और अपने हाथों में मौजूद कपड़े के थैले में उन्हें डाल दिया.

काफी देर तक बाहर इंतजार करने की वजह से तरुण का गला सूख गया था और उसे प्यास लगने लगी थी. क्योंकि तरुण अब घर के अंदर ही था तो वह घर में किचन की ओर बढ़ा.

किचन में पहुंच कर फ्रिज से पानी की बोतल निकाली और पानी पीते हुए उस की नजर छत की ओर गई. छत पर उस ने ऐसा कुछ देखा, जिस से उस की चीख निकल गई.

वह इतनी तेज चीखा कि उस का शोर घर के बाहर गली तक पहुंच गया था. चीख सुन कर गली के लोग चौंकते हुए वहां आ गए और अरुण के घर के आगे जमावड़ा लगा लिया.

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दरअसल, छत की तरफ तरुण ने एक लाश को लटका हुआ पाया जोकि किसी और की नहीं, बल्कि उस के छोटे भाई की पत्नी डा. आस्था की थी. तरुण बेशक से पानी पी चुका था लेकिन आस्था की लटकी हुई लाश देख कर उस का मन इतना बेचैन हो उठा और उस की दिलों की धड़कन इतनी तेज हो गई कि उसे फिर से प्यास महसूस होने लगी.

बहन ने जताया हत्या का शक

वह डरासहमा घर के बाहर आया तो देखा कि कुछ लोगों की भीड़ का जमावड़ा घर के आगे लग चुका था. गली में खड़े लोगों ने बाहर से तरुण को आवाज लगाते हुए पूछा कि आखिर हुआ क्या है. तरुण ने उन के सवालों को नजरअंदाज करते हुए अपनी जेब से फोन निकाला और पुलिस को फोन लगाया.

पुलिस को सूचित करने के बाद उस ने आस्था की छोटी बहन आकांक्षा, जोकि आगरा की रहने वाली थी, को फोन कर सूचना दी फिर घर के बाहर आ कर उस ने गली वालों को इस घटना के बारे में बताया.

अलीगढ़ का क्वार्सी थाना रमेश विहार कालोनी से बहुत दूर नहीं था. कुछ देर में ही पुलिस की टीम अरुण के घर आ पहुंची थी. मामले की जानकारी मिलते ही सीओ (तृतीय) श्वेताभ पांडेय भी तुरंत ही घटनास्थल पर पहुंच गए.

क्वार्सी पुलिस स्टेशन के थानाप्रभारी विजय सिंह, सीओ श्वेताभ पांडेय और उन की टीम घटनास्थल पर पहुंच कर बेहद सावधानी से उस कमरे की ओर आगे बढ़ी, जहां पर डा. आस्था की लाश लटकी हुई थी.

उस कमरे में घुसते ही सीओ श्वेताभ पांडेय को सड़ने की हलकी बदबू महसूस हुई. उन्होंने अपनी जेब से रुमाल निकाल कर अपनी नाक पर रखा. जैसेजैसे वे लाश के नजदीक पहुंचते जा रहे थे, वैसेवैसे बदबू और भी तीखी होती जा रही थी.

डा. आस्था की लाश के करीब पहुंच कर उसी अवस्था में श्वेताभ पांडेय ने डेडबौडी का मुआयना किया. हालांकि प्रथमदृष्टया सभी को यह मामला खुदकुशी का ही लग रहा था लेकिन श्वेताभ पांडेय की नजर एक ऐसी चीज पर गई, जिस से उन के दिमाग से आस्था की खुदखुशी का खयाल चला गया था. उन्होंने देखा कि आस्था की नाक से खून निकल कर सूख चुका था.

श्वेताभ पांडेय ने इस से पहले भी कई खुदखुशी के मामलों का निपटारा किया था, लेकिन कभी किसी भी मामले में इस तरह की चीज देखने को नहीं मिली थी. यह देख कर उन के मन में यह मामला खुदकुशी का कम, हत्या का ज्यादा महसूस होने लगा था.

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श्वेताभ पांडेय और थानाप्रभारी विजय सिंह के मन का शक पत्थर की तरह और मजबूत तब हो गया जब उन्होंने तरुण से मृतका के पति और बच्चों के बारे में पूछताछ की.

तरुण ने उन्हें बताया कि एक दिन पहले ही अरुण अपने बच्चों को उन के घर पर छोड़ कर कहीं चला गया था और बीते कल से ही उस का फोन भी नहीं लग रहा है.

यह सुन कर पुलिस की टीम एकदम से हरकत में आ गई. अभी पुलिस की टीम घटनाथल पर सबूतों के लिए खोजबीन कर ही रही थी कि आगरा से आस्था की छोटी बहन आकांक्षा भी अरुण के घर पर पहुंच गई. आकांक्षा को जब उस की बड़ी बहन के मरने की जानकारी मिली तो पहली ही नजर में उस ने इस घटना को हत्या करार दिया.

जब श्वेताभ पांडेय और विजय सिंह ने इस पूरे मामले को ले कर आकांक्षा से पूछताछ की तो उस ने चौंकाने वाले तथ्य पुलिस के सामने रखे.

आकांक्षा ने पुलिस को बताया कि उस की बहन डा. आस्था और उस के बिजनैसमैन पति अरुण के बीच पिछले काफी लंबे समय से नोकझोंक बनी हुई थी. उस ने बताया कि अरुण आस्था पर बेवजह शक किया करता था कि वह किसी और के साथ प्रेम संबंध में बंधी हुई है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था.

अरुण का अपनी पत्नी पर इस तरह से शक करना आस्था को नागवार गुजरता था, जिस के चलते उन दोनों के बीच पिछले कुछ सालों से खूब लड़ाइयां होती थीं. कभीकभार अरुण आस्था पर हाथ भी उठाया करता था.

यह सब कहते हुए आकांक्षा ने अरुण अग्रवाल (आस्था का पति), तरुण अग्रवाल (अरुण का बड़ा भाई), अनुज अग्रवाल (अरुण का छोटा भाई) और अर्पित अग्रवाल (अरुण का दोस्त) पर आस्था की हत्या का इलजाम लगाते हुए इन सभी के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाई.

आकांक्षा ने बताया कि आस्था पर शक करने का काम सिर्फ अरुण ही नहीं कर रहा था, बल्कि ये सब लोग आस्था पर हमेशा नजर बनाए रहते थे और झूठी बातें बना कर आस्था को फंसाने का काम किया करते थे.

थानाप्रभारी ने आकांक्षा से पूछताछ करने के बाद आस्था का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इस के बाद पुलिस मामले की जांच में जुट गई.

क्योंकि यह मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए डा. आस्था के शव का पोस्टमार्टम जल्द ही हो गया. 14 अक्तूबर की शाम को 4 डाक्टरों, जिस में डा. विशाका माधवी, डा. नीरज, डा. अनिल और डा. हारुन शामिल थे, के पैनल ने वीडियोग्राफी के बीच फोरैंसिक टीम की मौजूदगी में आस्था के शव का पोस्टमार्टम किया.

पोस्टमार्टम में पता चला कि डा. आस्था को गला दबा कर मारा गया था. उन के साथ इस से पहले मारपीट हुई थी, जिस से उन के पैरों पर नीले निशान व चेहरे, गरदन आदि पर भी मारपीट की खरोंच के निशान मौजूद थे. पोस्टमार्टम में उन की मौत का कारण गला दबा कर (स्ट्रांगुलेशन) हत्या करना आया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद पुलिस को यह गुत्थी सुलझती हुई नजर आ रही थी. इस का अर्थ यह था कि घटना को आत्महत्या दर्शाने के लिए आस्था की लाश को फंदे पर लटकाया गया था.

यह सब साफ होने के बाद पुलिस ने अरुण के बड़े भाई तरुण से पूछताछ की. तरुण पुलिस की पूछताछ के आगे ज्यादा देर तक टिक नहीं पाया.

उस ने पुलिस के सामने साफ शब्दों में इस बात को स्वीकार कर लिया कि अरुण ने उस के घर अपने बच्चों को सौंपते समय उसे आस्था की हत्या की सूचना दे दी थी.

तरुण ने बताई हकीकत

इस के साथ ही उस ने अपने घर की चाबियां भी उसे सौंपी थी ताकि वह अगले दिन शाम को उस के घर जाए और इस मामले को आत्महत्या साबित करे. परंतु अरुण ने तरुण को यह नहीं बताया था कि वह अपने बच्चों को उस के पास छोड़ कर आखिर जा कहां रहा है.

यह सब कुबूल करने के बाद पुलिस ने तरुण को 14 अक्तूबर को गिरफ्तार कर के अगले दिन 15 अक्तूबर को उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

लेकिन अब पुलिस को मामले के मुख्य आरोपी अरुण को पकड़ना था. तरुण तो इस हत्या में सिर्फ अरुण का सहयोगी था. उसे पकड़ना पुलिस के लिए काफी नहीं था.

पुलिस ने अपनी इनवैस्टीगेशन और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर यह भी पता लगा लिया था कि इस हत्याकांड में अकेला अरुण ही शामिल नहीं हो सकता. बल्कि इस में और भी लोगों के शामिल होने की संभावनाएं थीं.

अगले भाग में पढ़ें- आखिर अरुण ने अपनी डाक्टर पत्नी को क्यों मारा

आखिरी मंगलवार: भाग -3

वेणी शंकर पटेल ‘ब्रज’

सपना कालेज में मार्शल आर्ट में ब्लैक बैल्ट ले चुकी थी. कालेज की पढ़ाई के दौरान कई मनचलों को वह सबक सिखा चुकी थी. लिहाजा, उस ने सब से पहले तो सुभाष के सामने धर्मराज की पूरी सचाई खोल कर रख दी. इस के लिए उस ने सुभाष से माफी भी मांग ली.

सुभाष को धर्मराज के इस पाखंड पर पहले तो बहुत गुस्सा आया, लेकिन उस ने भी ठंडे दिमाग से धर्मराज को सबक सिखाने की बात सोची और सपना को ले कर दूसरे ही दिन शहर के पुलिस स्टेशन पहुंच गया. पुलिस स्टेशन में मौजूद महिला इंस्पैक्टर रीना को सपना ने उस के साथ हुई दरिंदगी की बात बताई. रीना धर्मराज की करतूत जानती थी.

सपना की बात सुन कर रीना को याद आया कि तकरीबन 4 महीने पहले धर्मराज स्वामी की इसी तरह की शिकायत एक अधेड़ औरत ने की थी. जब धर्मराज को उस मामले की जांच के लिए पुलिस स्टेशन में बुलाया गया था, तो शहर के नेताओं के साथ पुलिस के बड़े अफसरों के फोन आने शुरू हो गए थे. उस पर इतना दबाव बनाया गया कि मजबूरन उसे धर्मराज को छोड़ना पड़ा था.

लेकिन इंस्पैक्टर रीना इस बार धर्मराज को किसी भी सूरत में छोड़ना नहीं चाहती थी. उस ने सपना और सुभाष को पूरा प्लान समझते हुए अगले मंगलवार को दरबार में जाने को कहा. इंस्पैक्टर रीना के प्लान के मुताबिक अगले मंगलवार को सपना अकेले ही धर्मराज के दरबार में हाजिर थी. उस ने धर्मराज से एकांत में मिलने की इच्छा जाहिर की, तो पाखंडी धर्मराज खुशी से झूम उठा. उसे लगा कि शिकार फिर से जाल में फंस चुका है.

शाम होते ही सपना धर्मराज के आने के पहले ही उस के कमरे में आ गई थी. धर्मराज पर तो उस के हुस्न का जादू ऐसा चढ़ चुका था कि जैसे ही सपना को करीब देखा, उसे अपनी बांहों में भर लिया. आज सपना पूरे होश में थी और धर्मराज की किसी हरकत का विरोध भी नहीं कर रही थी. धर्मराज हवस की आग में जल रहा था. वह सपना के संग संबंध बनाने को उतावला हो रहा था.

तभी सपना ने पर्स की तरफ हाथ बढ़ा कर धर्मराज से कहा, ‘‘मैं अपना मोबाइल बंद कर देती हूं. मैं नहीं चाहती कि रंग में भंग पड़े.’’ इसी बहाने उस ने अपने मोबाइल से एक मिस्ड काल इंस्पैक्टर रीना को कर के मोबाइल का कैमरा औन कर बिस्तर के सामने वाली टेबल पर रख दिया.

इंस्पैक्टर रीना सादे लिबास में अपनी टीम के साथ पहले से ही दरबार में मौजूद थीं. जैसे ही सपना का मिस्ड काल आया, वे अपने साथी पुलिस वालों के साथ धर्मराज के गुप्त कमरे के पास पहुंच कर दरवाजा खटखटाने लगीं. धर्मराज को इस का अंदाजा नहीं था. दरवाजे पर किसी की आवाज सुन कर वह सकपका गया कि तभी सपना ने उठ कर कमरे का दरवाजा खोल दिया.

इंस्पैक्टर रीना ने कड़क आवाज में कहा, ‘‘धर्मराज, तुम रंगे हाथ पकड़े गए हो. अब तुम कानून के हाथों से बच नहीं सकते.’’ इंस्पैक्टर रीना का इशारा पाते ही पुलिस टीम ने धर्मराज को अपनी गिरफ्त में ले लिया. सपना ने अपने मोबाइल फोन के कैमरे में बने वीडियो को इंस्पैक्टर रीना को दिखाते हुए कहा, ‘‘धर्म की आड़ में न जाने इस पाखंडी ने कितनी औरतों को अपनी हवस का शिकार बनाया होगा. ऐसे ढोंगियों को छोड़ना नहीं. इसे कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए, जिस से कोई मजबूर और लाचार औरत इस की हवस का शिकार न बन सके.’’

सारे न्यूज चैनलों पर आज शाम से ही धर्मराज स्वामी की गिरफ्तारी के साथ उस की काली करतूतों की पोल खोलती खबरें दिखाई जा रही थीं. सपना और सुभाष यही सोचकर खुश हो रहे थे कि एक पाखंडी बाबा को कानून के हवाले कर उन्होंने समाज को धर्मराज के पाखंड से मुक्त कर दिया है.

डंकी फ्लाइट: दूसरे देश में घुसने का जोखिम भरा रास्ता

‘मृग मरीचिका’ कहनेसुनने में जितना जादुई शब्द लगता है, असलियत में उतना ही भयानक होता है. यह शब्द उस प्यासे हिरन की कहानी से उपजा है, जो गरम रेत के मरुस्थल में पानी होने का धोखा खाता गया, पर यहांवहां भटकने के बाद भी प्यास से मर गया.

जब किसी इनसान में ऐसी ही ‘मृग मरीचिका’ का भरम होता है, तो वह अपनी जान को जोखिम में डालने से नहीं चूकता है. अब एक और शब्द पर गौर फरमाते हैं, जिसे इंगलिश में ‘डंकी फ्लाइट’ कहते हैं. इस शब्द की तह में जाने से पहले यह जान लें कि अचानक यह शब्द क्यों सुर्खियों में आ गया है?

दरअसल ऐसी खबर आई है कि शाहरुख खान और राज कुमार हिरानी एक फिल्म पर काम कर रहे हैं, जो गैरकानूनी तरीके से किसी दूसरे देश में दाखिल होने वाले लोगों और उन की समस्याओं से जुड़ी हुई बताई जा रही है. शाहरुख खान इस फिल्म ऐसे इनसान का किरदार निभाएंगे, जो विदेश जाने के लालच में अपना सबकुछ दांव पर लगा देता है.

फिल्म की तो छोडि़ए, अगर असली जिंदगी की बात करें तो भारत में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो किसी भी कीमत पर और किसी भी तरीके से विदेश जाने का नशा पाले रखते हैं.

अकेले पंजाब राज्य के बहुत से नौजवान अमेरिका और कनाडा में घुसने के लिए दलालों को लाखों रुपए देने के लिए तैयार रहते हैं. यही वजह है कि न जाने कितने भारतीय नागरिक अपनी जान जोखिम में डाल कर लैटिन अमेरिका के रास्ते अमेरिका पहुंचने की कोशिश करते हैं.

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मैक्सिको ने साल 2019 में 311 भारतीय लोगों को वापस भारत भेज दिया था. वे सब गैरकानूनी तरीके से बौर्डर पार कर अमेरिका जाने की फिराक में थे. हद तो यह थी कि अमेरिका में घुसने के लिए उन्होंने मानव तस्करों को 20 लाख से 50 लाख रुपए दिए थे.

इन लोगों में से ज्यादातर भारत से पहले इक्वाडोर पहुंचे थे, उस के बाद कोलंबिया, पनामा और होंडुरास होते हुए आखिरकार मैक्सिको पहुंचे थे. उन में से ज्यादातर पंजाब और हरियाणा के किसान परिवारों के बेरोजगार नौजवान थे.

पनामा के जंगलों से गुजरते हुए उन नौजवानों ने कई लाशें देखी थीं, जो शायद उन लोगों की थीं, जो उन की ही तरह गैरकानूनी तरीके से अमेरिका जाना चाहते थे. जंगल में न खाना था और न ही पानी. पकड़े गए बहुत से नौजवानों ने बताया कि प्यास बु?ाने के लिए उन्हें अपनी कमीजों से पसीना निचोड़ कर पीना पड़ा था.

साल 2019 में ही एक बापबेटी की तसवीर ने पूरी दुनिया को ?ाक?ार दिया था, जो नदी के किनारे पड़े हुए थे. वह बाप अपनी मासूम बच्ची को टीशर्ट में छिपाए हुए था.

बाद में पता चला कि वह शख्स एल सल्वाडोर का रहने वाला था, जो अपनी तकरीबन 2 साल की बेटी के साथ अमेरिका में घुसने की कोशिश कर रहा था. रिपोर्टों के मुताबिक, वह आदमी काफी समय से अमेरिका में शरण लेने की कोशिश कर रहा था, पर नाकाम होने के बाद उस ने नदी के रास्ते अमेरिका में घुसने की कोशिश की और यह हादसा हो गया.

अमेरिकी कस्टम ऐंड बौर्डर पैट्रोल के मुताबिक, साल 2018 में मैक्सिको के रास्ते गैरकानूनी तरीके से अमेरिका में घुसने की कोशिश में तकरीबन 9,000 भारतीय लोगों को पकड़ा गया था. साल 2017 के मुकाबले यह तादाद तकरीबन 3 गुना ज्यादा थी. इसी साल अमेरिका की दक्षिणपश्चिमी सीमा के रास्ते गैरकानूनी तरीके से देश में घुसते पकड़े जाने वालों में सब से बड़ा समुदाय भारतीयों का था.

जब ऐसे लोग पकड़े जाते हैं, तो अमेरिका में बसने के लिए तरहतरह की दलील देते हैं, जैसे अपने देश में वे भुखमरी के शिकार हैं या जाति और धर्म के नाम पर उन्हें सताया जाता है या फिर वहां राजनीतिक तौर पर उन पर जुल्म होते हैं.

लेकिन किसी देश में घुसना आसान काम नहीं है. ऐसा ही एक मामला 6 साल की गुरुप्रीत कौर के साथ हुआ था, जो एरिजोना के मरुस्थल में अपनी मां के साथ सीमा पार करते हुए प्यास से मर गई थी.

हरियाणा के फरीदाबाद जिले के गांव में रहने वाले एक नौजवान ने नाम और पता न छापने की शर्त पर बताया कि वह भी एक एजेंट के भरोसे मैक्सिको से अमेरिका में घुसा था. यह 2-3 साल पुरानी बात है और इस के लिए लाखों रुपए का खर्च भी हुआ था.

एजेंट ने पक्के कागज बनवाने का दावा किया था और अमेरिका में घुसने में कोई दिक्कत नहीं होगी, यह भी वादा किया था, पर अमेरिका में जाने के बाद वहां के एयरपोर्ट पर अफसरों को शक हो गया. नौकरी की आस लिए वहां पहुंचे उस नौजवान के कागजात में उन्हें कमी लगी और उसे पूछताछ के बाद एक ऐसे कैंप में, जहां 2,000 से ज्यादा ऐसे लोग थे, जो अमेरिका में घुसने में नाकाम रहे थे.

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उस कैंप में वैसे तो हर तरह की सुविधा थी, खानापीना भी ठीक था, पर तकरीबन 10 महीने वहां रहने के बावजूद उसे अपने घर वालों से बात करने की इजाजत नहीं थी. वहां कई देशों के नौजवान थे, जिन में से ज्यादातर अमेरिका में बसने के लिए अपने घर से निकले थे.

जब उस नौजवान को इस बात की आस खत्म हो गई कि अब वह अमेरिका में किसी तरह दाखिल नहीं हो सकता है तो उस ने वापस लौटने की अपील की, जो वहां से जुड़े जज ने मंजूर कर ली.

क्यों है विदेश का लालच

अगर कानूनी तरीके से किसी देश में जा कर बसना हो, तो बहुत से नियमकानूनों का पालन करना होता है, जो हर किसी के बूते की बात नहीं है और इसीलिए दलाल पैसे ले कर नौजवानों को विदेश भेजने के सब्जबाग दिखाते हैं, जो असलियत के आसपास भी नहीं होते हैं.

सवाल उठता है कि लोग अपनी जान जोखिम में डाल कर विदेश क्यों जाना चाहते हैं? बेरोजगारी इस की सब से बड़ी वजह है. साथ ही, अमेरिका जैसे अमीर देशों की चकाचौंध और डौलर में कमाई का लालच उन्हें वहां जाने को उकसाता है.

हरियाणा और पंजाब के बहुत से किसान अपनी कीमती जमीन की वजह से अमीर हो गए हैं. उन के बच्चे खेती करना नहीं चाहते हैं और पढ़ाईलिखाई में भी वे तीसमारखां नहीं होते हैं. लिहाजा, जमीन बेच कर विदेश में जाना उन्हें आसान और सस्ता सौदा लगता है.

अकेले अमेरिका में साल 2019 में  7,720, साल 2017 में 4,620, साल 2016 में 3,544, साल 2015 में 3,091 और साल 2014 में 1,663 भारतीय मूल के लोग घुसपैठ करते हुए पकड़े गए थे, जिन में महिलाएं और नाबालिग भी शामिल थे.

बहुत से लोग हैं, जो जानते हैं कि इस तरह की समस्याएं आ सकती हैं और बहुत से तो भुगत भी चुके होते हैं, पर फिर भी न जाने क्यों वे इसी उम्मीद में बारबार कोशिश करते रहते हैं कि दांव लगते ही वे अमेरिका में घुस ही जाएंगे.

इस के लिए बहुत से घरपरिवार अपनी जमीन गिरवी रख देते हैं, कई बार बेच भी देते हैं या नातेरिश्तेदारों से उधार या ब्याज पर कर्ज भी ले लेते हैं, पर विदेश जाने की अपनी इच्छा को जिंदा रखते हैं.

मिडिल ईस्ट देशों में भी भारतीयों के जाने का चसका देखा जा सकता है. वहां तो बहुत से शेखों के जोरजुल्म सह रही औरतें डिटेंशन कैंपों से ज्यादा बदहाली में जीती हैं.

साल 2018 की बात करें, तो दुबई की एक गैरसरकारी भारतीय संस्था ‘सरबत दा भला’ के मुताबिक, मिडिल ईस्ट देशों में 100 से ज्यादा पंजाबी महिलाएं अमीर शेखों की कैद में थीं, जो भारत लौटना चाहती थीं.

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ऐसी औरतें जालसाजी और लालची ट्रैवल एजेंटों के चंगुल में फंस कर वहां नरक से बदतर जिंदगी जी रही थीं. इन यातनाओं में मारपीट, यौन शोषण, बहुत ज्यादा काम करवाना या फिर काम के बदले कोई पैसा न देना भी शामिल है.

कहने का मतलब है कि यह ‘डंकी फ्लाइट’ ज्यादातर नौजवानों पर भारी पड़ती है और उन की जिंदगी को नरक बना देती है.

Satyakatha: पति बदलने वाली मनप्रीत कौर को मिली ऐसी सजा- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

सुखवीर द्वारा बेटी को साथ ले जाते ही मनप्रीत ने काशीपुर में ही एक किराए का कमरा ले लिया था. कमरा लेते ही मनप्रीत ने ऊंची उड़ान भरनी शुरू कर दी थी. उसी दौरान उस ने फोन के जरिए नफीस से संपर्क बढ़ा लिए थे.

नफीस उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के थाना अफजलगढ़ के गांव मानियोवाला गढ़ी का रहने वाला था. वह पहले से ही शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था. उस का अपना ट्रक था, जिस के सहारे वह अपने परिवार का पालनपोषण करता था.

नफीस के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाते ही उस ने उसे अपने कमरे पर भी बुलाना शुरू कर दिया था. फिर उस के बाद उस ने अपने पति और अपनी बच्ची की ओर मुड़ कर भी नहीं देखा था. नफीस और मनप्रीत कौर पतिपत्नी की तरह ही रहने लगे.

नफीस का काम ही ऐसा था. वह अकसर ट्रक चलाने के कारण बाहर ही रहता था. इसी कारण उस की बीवी उस के कर्मों से अनजान बनी हुई थी.

कभीकभी तो नफीस अपनी पत्नी से काम का बहाना बना कर ट्रक ले कर जसपुर मनप्रीत कौर के पास ही चला जाता था, जहां पर वह सारी रात मौजमस्ती करने के बाद फिर सुबह ही अपने घर चला जाता था.

जब मनप्रीत कौर को लगने लगा कि नफीस उसे जीजान से चाहने लगा है तो उस ने भी उस का नाजायज फायदा उठाना शुरू कर दिया था. वह उस पर अपना पूरा अधिकार जमाने लगी थी, जिस के कारण वह उस की बीवीबच्चों से भी चिढ़ने लगी थी.

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उस ने नफीस से कई बार कहा कि अगर उसे उस के साथ रहना है तो वह अपने बीवीबच्चों को भूल जाए. मनप्रीत कौर उस पर बीवी को तलाक देने की बात करते हुए अपने साथ रहने का दबाव बनाने लगी थी, जिसे नफीस बरदाश्त नहीं कर पा रहा था.

लेकिन मनप्रीत कौर भी उस की एक बहुत बड़ी कमजोरी थी. वह उसे किसी भी कीमत पर छोड़ने को तैयार नहीं था.

गांव कादराबाद में नफीस का एक दोस्त रहता था. उस के साथ उस की बहुत पुरानी दोस्ती थी. किसी कारणवश कुछ समय पहले ही उस की बीवी खत्म हो गई थी. वह कई बार अपने दोस्त को साथ ले कर मनप्रीत के पास भी आया था. जब मनप्रीत नफीस पर शादी के लिए ज्यादा ही दबाव बनाने लगी तो उस के दिमाग में एक आइडिया आया.

उस ने सोचा क्यों न वह मनप्रीत की शादी अपने दोस्त के साथ करा दे. जिस के बाद उसे उस से मिलने में किसी तरह की अड़चन भी नहीं आएगी. वह जब चाहे उस के पास जा कर अपनी हसरतें भी पूरी कर सकता है.

नफीस के मन में यह विचार आया तो उस ने अपने दोस्त के सामने मनप्रीत के साथ शादी करने वाली बात रखी. मनप्रीत कौर के साथ शादी करने वाली बात सामने आते ही उस ने तुरंत ही अपनी सहमति दे दी. उस के बाद उस ने मनप्रीत के मन की बात लेते हुए अपने दोस्त को उस से मिलवा दिया.

पहले तो मनप्रीत कौर ने उस के साथ शादी करने से साफ ही मना कर दिया. लेकिन जब उसे पता चला कि उस के पास काफी जमीनजायदाद भी है. बाद में उस ने जमीनजायदाद के लालच में उस के साथ शादी करने की हामी भर ली.

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इस शादी से दोनों के मकसद पूरे होने के सपने साकार होते देख मनप्रीत जसपुर से काम छोड़ कर कादराबाद चली गई. उस के बाद वह उस के दोस्त के साथ उस की बीवी के तौर पर रहने लगी.

लेकिन नफीस का दोस्त उस के मन को नहीं भाया. वह मात्र 10 दिन उस के घर में रह कर एक रात अचानक ही वहां से गायब हो गई. उस के गायब होने से उस के दोस्त को तो ज्यादा परेशानी नहीं हुई, लेकिन नफीस उस के लिए परेशान हो उठा था. वह दिनरात उस की तलाश में जुट गया.

नफीस ने जैसेतैसे कर के उस का पता लगा ही लिया. वह हरियाणा के एक गांव में मिल गई. नफीस फिर उसे अपने साथ ले आया. वह फिर से वहीं जसपुर में आ कर रहने लगी थी.

उस के बाद उस का सारा खर्चा नफीस खुद ही उठाने लगा था. लेकिन इस के बाद भी मनप्रीत कौर उस के साथ शादी करने का दबाव बनाने लगी थी. जिस के कारण नफीस उस से तंग आ चुका था.

लौकडाउन के चलते नफीस के ट्रक के पहिए रुके तो वह भी आर्थिक तंगी से गुजरने लगा था. जिस के कारण उसे अपनी घरगृहस्थी भी चलानी मुश्किल पड़ रही थी. वहीं मनप्रीत कौर उस पर शादी करने का दबाव बना रही थी.

उसी दौरान मनप्रीत ने एक दिन नफीस से साफ शब्दों में कहा कि अगर उस ने उस के साथ शादी नहीं की तो वह उसे बलात्कार के केस में फंसा कर जेल भिजवा देगी.

मनप्रीत की धमकी सुन नफीस को दिन में ही तारे नजर आ गए. उस ने उसी दिन प्रण किया कि उसे अपनी इज्जत बचाने के लिए उस से किसी भी तरह से पीछा छुड़ाना ही होगा.

नफीस ने मनप्रीत की धमकी सुन कर भी एक साजिश के तहत उस का साथ नहीं छोड़ा था. उस के बाद वह उस से पूरी तरह से सतर्क हो गया. फिर उस के साथ पहले जैसा प्यार दिखाते हुए उस ने मनप्रीत पर पूरा विश्वास बनाए रखा. साथ ही वह उस से छुटकारा पाने के लिए हर पल नई योजनाओं को साकार रूप देने के लिए रूपरेखा भी तैयार करने लगा था.

अगले भाग में पढ़ें- नफीस की बात सुनते ही मनप्रीत का मुरझाया चेहरा खिल उठा

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