भांजे ने की मामा की हत्या

7 मई, 2017 की शाम 5 बजे गुड़गांव में नौकरी करने वाले देवेंद्र के फोन पर उस के भाई संदीप का मैसेज आया कि उस के मोबाइल फोन का स्पीकर खराब हो गया है, इसलिए वह बात नहीं कर सकता. वह रात को बस से निकलेगा, जिस से सुबह तक गुड़गांव पहुंच जाएगा. देवेंद्र खाना खा कर लेटा था कि संदीप का जो मैसेज रात 11 बजे उस के फोन पर आया, उस ने उस के होश उड़ा दिए. मैसेज में संदीप ने लिखा था कि वह कोसी के एक रेस्टोरेंट में खाना खा रहा था, तभी उस की तबीयत खराब हो गई. वह कुछ कर पाता, तभी कुछ लोगों ने उस का अपहरण कर लिया. इस समय वह एक वैन में कैद है. वैन में एक लाश भी रखी है. किसी तरह वह उसे छुड़ाने की कोशिश करे.

मैसेज पढ़ कर देवेंद्र के हाथपैर फूल गए थे. उस ने तुरंत गुड़गांव में ही रह रहे अपने करीबी धर्मेंद्र प्रताप सिंह को फोन कर के सारी बात बताई और किसी भी तरह भाई को मुक्त कराने के लिए कहा. देवेंद्र से बात होने के बाद धर्मेंद्र प्रताप सिंह उसे बाद में आने को कह कर खुद कोसी के लिए चल पड़े. रात में ही वह कोसी पहुंचे और थानाकोतवाली कोसी पुलिस को संदीप के अपहरण की सूचना दी.

कोतवाली प्रभारी ने तुरंत नाकाबंदी करा दी. सुबह 5 बजे देवेंद्र भी कोसी पहुंच गया. उस ने अपराध संख्या 129/2017 पर धारा 364 के तहत संदीप के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी. कोसी कोतवाली ने रिपोर्ट तो दर्ज कर ली, लेकिन जब देवेंद्र ने बताया कि संदीप आगरा आया था और वहीं से वह कोसी जा रहा था, तभी उस का अपहरण हुआ है. इस पर कोतवाली प्रभारी ने कहा कि उन्हें आगरा जा कर भी पता करना चाहिए, जहां वह ठहरा था. शायद वहीं से कोई सुराग मिल जाए. देवेंद्र धर्मेंद्र प्रताप सिंह के साथ आगरा के लिए चल पड़ा. संदीप आगरा के थाना सिकंदरा के अंतर्गत आने वाले मोहल्ला नीरव निकुंज में ठहरा था. देवेंद्र और धर्मेंद्र ने थाना सिकंदरा जा कर थानाप्रभारी राजेश कुमार को सारी बात बताई तो उन्होंने कहा, ‘‘आज सुबह ही बोदला रेलवे ट्रैक के पास तालाब में एक सिरकटी लाश मिली है. आप लोग जा कर उसे देख लें, कहीं वह आप के भाई की तो नहीं है?’’

लेकिन देवेंद्र ने कहा, ‘‘रात में 11 बजे तो भाई ने मुझे मैसेज किया था. उन के साथ ऐसी अनहोनी कैसे हो सकती है? फिर उन की हत्या कोई क्यों करेगा?’’

इस बीच देवेंद्र की सूचना पर घर के अन्य लोग भी रिश्तेदारों के साथ आगरा पहुंच गए थे. सभी लोग इस बात को ले कर परेशान थे कि कहीं संदीप के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई? सभी को शिवम ने अपने कमरे पर ठहराया था. शिवम संदीप और देवेंद्र का भांजा था. पूछताछ में संदीप के घर वालों ने थाना सिकंदरा पुलिस को बताया था कि संदीप जिस लड़की उमा (बदला हुआ नाम) से प्यार करता था, वह आगरा में ही रहती है. दोनों विवाह करना चाहते थे, लेकिन लड़की के घर वाले इस संबंध से खुश नहीं थे.

घर वालों की इस बात से पुलिस को उमा के घर वालों पर शक हुआ. लेकिन जब उमा को बुला कर पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि उस दिन दोपहर दोनों ने एक रेस्टोरेंट में साथसाथ खाना खाया था. उस समय संदीप की तबीयत काफी खराब थी.

उमा जिस तरह बातें कर रही थी, उस से किसी को भी नहीं लगा कि संदीप के साथ किसी भी तरह के हादसे में वह शामिल हो सकती थी. सभी शिवम के कमरे पर बैठे बातें कर रहे थे, तभी शिवम संदीप के बड़े भाई प्रदीप के साले कैलाश का फोन ले कर बाहर चला गया. वह काफी देर तक न जाने किस से बातें करता रहा. अंदर आ कर उस ने कैलाश का फोन वापस कर दिया. सुबह कैलाश ने अपना फोन देखा तो संयोग से उस में शिवम की बातें रिकौर्ड हो गई थीं. जब वह रिकौर्डिंग सुनी गई तो सभी अपनाअपना सिर थाम कर बैठ गए.

रिकौर्डिंग में शिवम अपने दोस्त आशीष से कह रहा था, ‘‘तुम अभी जा कर अपने मोबाइल फोन के गायब होने की रिपोर्ट दर्ज करा दो. उस के बाद किसी दूसरे सिम से संदीप मामा के भाई देवेंद्र को फोन कर के कहो कि संदीप मामा लड़की के चक्कर में मारे गए हैं. अब वे उन्हें ढूंढना बंद कर दें.’’

फिर क्या था, अब संदेह की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी. सभी शिवम को ले कर कोसी के लिए चल पड़े. रास्ते भर शिवम यही कहता रहा कि उस ने कुछ नहीं किया है. क्योंकि उसे पता नहीं था कि उस ने कैलाश के फोन से जो बातें की थीं, वे रिकौर्ड हो गई थीं और उन्हें सब ने सुन लिया था.

शिवम को थाना कोसी पुलिस के हवाले करने के साथ वह रिकौर्डिंग भी सुना दी गई, जो उस ने आशीष से कहा था. शिवम ने भी वह रिकौर्डिंग सुन ली तो फिर मना करने का सवाल ही नहीं रहा. उस ने अपने सगे मामा संदीप की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद की गई पूछताछ में उस ने संदीप की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला कासगंज के थाना सहावर से कोई 7 किलोमीटर दूर बसा है गांव म्यासुर. इसी गांव में विजय अपने 3 भाइयों प्रदीप, संदीप और देवेंद्र के साथ रहता था. उस की 2 बहनें थीं, मंजू और शशिप्रभा. मंजू की शादी फिरोजाबाद में संजय के साथ हुई थी. वह सरस्वती विद्या मंदिर में अध्यापक था. उस ने अपनी एक न्यू एवन बैंड पार्टी भी बना रखी थी. मंजू से छोटी शशिप्रभा की शादी एटा में हुई थी.

विजय और प्रदीप ज्यादा नहीं पढ़ पाए थे. शादी के बाद दोनों भाई खेती करने के अलावा खर्चे के लिए गांव में ही घर की जरूरतों के सामानों की एक दुकान खोल ली थी. दोनों भाई भले ही नहीं पढ़ पाए थे, लेकिन वे अपने छोटे भाइयों संदीप और देवेंद्र की पढ़ाई पर विशेष ध्यान दे रहे थे.

इसी का नतीजा था कि संदीप ने बीटेक कर लिया. इस के बाद उसे दिल्ली में नौकरी मिल गई तो वह देवेंद्र को भी अपने साथ दिल्ली ले आया. देवेंद्र नौकरी करने के साथसाथ सीए की तैयारी भी कर रहा था. विजय का अपना परिवार तो व्यवस्थित हो गया था, लेकिन बड़ी बहन मंजू के पति की मौत हो जाने से वह परेशानी में पड़ गई. उस के 3 बच्चे थे, 2 बेटे शिवम और दीपक तथा एक बेटी मानसी.

पति की मौत से मंजू को खर्चा चलाना मुश्किल हो गया तो विजय भांजों की पढ़ाई का नुकसान न हो, यह सोच कर उन्हें अपने घर ले आया. उधर मंजू को एक स्कूल में आया की नौकरी मिल गई तो उस की परेशानी थोड़ी कम हो गई.

शिवम ने मामा के घर रह कर इंटर तक की पढ़ाई की. बहन की परेशानी को देखते हुए विजय उसे अपने घर रख कर पढ़ा तो रहा था, लेकिन वह भांजे से खुश नहीं था. इस की वजह यह थी कि उस के खर्चे बहुत ज्यादा थे. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि वह रुपए कहां खर्च करता है.

जब तक शिवम ननिहाल में रहा, तब तक थोड़ाबहुत मामा के अंकुश में रहा. लेकिन 12वीं पास कर के वह मां के पास आ गया तो पूरी तरह से आजाद हो गया. फिरोजाबाद में उस ने बीएससी करने के लिए एक कालेज में दाखिला ले लिया.

ननिहाल से उसे पढ़ाई का खर्चा मिल रहा था, इस के बावजूद अपने अन्य खर्चों के लिए वह जब चाहता, घर का कोई न कोई सामान बेच देता. इसी तरह धीरेधीरे एकएक कर के उस ने पिता की बैंड पार्टी के सारे बाजे बेच दिए. उस की इन हरकतों से मां ही नहीं, मामा भी दुखी थे. लेकिन सब यही सोच रहे थे कि पढ़लिख कर वह कुछ करने लगेगा तो चिंता खत्म हो जाएगी. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.

सब की अपनीअपनी परेशानियां थीं, ऐसे में शिवम पर नजर रखना आसान नहीं था. शिवम ने बीएससी कर लिया तो विजय ने गुड़गांव में अच्छी कंपनी में इंजीनियर के रूप में काम करने वाले अपने छोटे भाई संदीप से कहा कि वह शिवम को अपने साथ रख कर कहीं कोई काम दिला दे, वरना वह हाथ से निकल जाएगा.

संदीप गुड़गांव में छोटे भाई देवेंद्र के साथ रहता था. वह वहां एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर था. उसे बढि़या तनख्वाह मिल रही थी. वह अपनी रिश्तेदारी की एक लड़की उमा से प्यार करता था. वह आगरा के दयालबाग में परिवार के साथ रहती थी. लेकिन उमा के घर वाले संदीप से उस की शादी नहीं करना चाहते थे.

जबकि उमा ने घर वालों से साफ कह दिया था कि वह शादी संदीप से ही करेगी. यही नहीं, वह संदीप से खुलेआम मिलनेजुलने भी लगी थी. दोनों जल्दी ही शादी करने वाले थे.

भाई के कहने पर संदीप ने शिवम को अपने पास गुड़गांव बुला लिया और किसी प्राइवेट कंपनी में उस की नौकरी लगवा दी. सब को लगा कि अब शिवम सुधर जाएगा. लेकिन ऐसा हो नहीं सका. उस ने करीब एक साल तक नौकरी की, लेकिन इस बीच एक पैसा उस ने न मां को दिया और न मामा को. देने की कौन कहे, वह उलटा मां या मामाओं से पैसे लेता रहा.

फिर एक दिन अचानक शिवम नौकरी छोड़ कर फिरोजाबाद चला गया. वहां वह एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने लगा. सब ने सोचा कि कुछ तो कर ही रहा है, इसलिए किसी ने कुछ नहीं कहा. लेकिन जब मंजू को पता चला कि शिवम जो कमाता है, वह जुए और शराब पर उड़ा देता है तो उसे चिंता हुई. उस ने यह बात भाइयों को बताई तो वे भी परेशान हो उठे.

मामा शिवम की जिंदगी बनाना चाहते थे. इस की वजह यह थी कि उन्हें बहन की चिंता थी. फिरोजाबाद में रहते हुए शिवम को किसी लड़की से प्यार हो गया. अब उस का एक खर्च और बढ़ गया. उस के इस प्यार की जानकारी संदीप को हुई तो उस ने उसे समझाया कि उस की कमाईधमाई है नहीं और वह लड़की के चक्कर में पड़ा है.

पर शिवम को कहां किस की फिक्र थी. वह तो अपने में ही मस्त था. उसी बीच एक दिन वह गुड़गांव पहुंचा और संदीप से कहा कि वह एक बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गया है.

उस की प्रेमिका गर्भवती हो गई है. अगर किसी को पता चल गया तो वह मुसीबत में फंस जाएगा. अगर वह उसे कुछ पैसे दे दें तो वह इस मुसीबत से छुटकारा पा ले.

शिवम की बात पर संदीप को गुस्सा तो बहुत आया, पर मरता क्या न करता. मुसीबत से बचने के लिए संदीप ने उसे 6 हजार रुपए दे दिए.

गुड़गांव में नौकरी करते हुए संदीप और देवेंद्र ने ब्राबो टेक्सटाइल्स नाम से एक कंपनी खोली. उन्हें उत्तर प्रदेश में मार्केटिंग के लिए एक तेजतर्रार आदमी की जरूरत थी. अब तक संदीप को पता चल चुका था कि शिवम ने प्रेमिका के गर्भवती होने की बात बता कर जो पैसे लिए थे, वह झूठी थी. इस के बावजूद उस ने सोचा कि अगर वह शिवम को उत्तर प्रदेश में मार्केटिंग में लगा दें तो शायद वह सुधर जाए.

संदीप ने शिवम को फोन कर के गुड़गांव बुलाया और ऊंचनीच समझा कर उस से अपने लिए काम करने को कहा. संदीप के कहने पर शिवम उस के लिए काम करने को तैयार हो गया. संदीप ने उसे 12 हजार रुपए प्रति महीना वेतन देने को कहा. कारोबार के लिए के.के. नगर, आगरा में एक कमरा भी ले लिया.

संदीप का सोचना था कि इसी बहाने वह आगरा आता रहेगा, जहां उसे प्रेमिका से मिलने में कोई परेशानी नहीं होगी. शिवम को लगभग 1 लाख रुपए के रेडीमेड कपड़े दिलवा दिए गए. जिस से कमा कर देने की कौन कहे, शिवम ने पूंजी भी गंवा दी. संदीप को गड़बड़ी का आभास हुआ तो वह देवेंद्र के साथ आगरा पहुंचा.

आगरा पहुंच कर दोनों भाइयों को पता चला कि शिवम ने व्यापारियों से पैसे ले कर जुए और शराब पर खर्च कर दिए हैं. यह जान कर संदीप ने शिवम की पिटाई तो की ही, फिरोजाबाद ले जा कर बहन से भी उस की शिकायत की. यही नहीं, उस की प्रेमिका को बुला कर उस से भी सारी बात बता दी. जब शिवम की प्रेमिका को पता चला कि उसे गर्भवती बता कर शिवम ने मामा से पैसे ठगे हैं तो उसे बहुत गुस्सा आया. उस ने उसी दिन शिवम से संबंध तोड़ लिए.

संदीप ने तो अपनी समझ से शिवम के लिए अच्छा किया था, पर उस की यह हरकत शिवम को ही नहीं, मंजू को भी नागवार गुजरी. बहन ने बेटे को समझाने के बजाय उस का पक्ष लिया. मां की शह मिलने से शिवम का हौसला और बुलंद हो गया. फिर क्या था, वह मामा से बदला लेने की सोचने लगा.

संदीप समझ गया कि अब शिवम कभी नहीं सुधरेगा, इसलिए उस ने सोच लिया कि अब वह उस की कोई मदद नहीं करेगा. दूसरी ओर शिवम मामा से अपने अपमान का बदला लेने की योजना बनाने लगा. इस के लिए उस ने आगरा के थाना सिकंदरा के मोहल्ला नीरव निकुंज में दीवानचंद ट्रांसपोर्टर के मकान में ऊपर की मंजिल में एक कमरा किराए पर लिया. अब वह इस बात पर विचार करने लगा कि मामा को कैसे गुड़गांव से आगरा बुलाया जाए, जिस से वह उस से बदला ले सके?

काफी सोचविचार कर उस ने एक कहानी गढ़ी और 6 मई, 2017 को गुड़गांव मामा के पास पहुंचा. क्योंकि उस दिन मकान मालिक परिवार के साथ कहीं बाहर गए हुए थे. घर खाली था. उसे देख कर न संदीप खुश हुआ और न देवेंद्र. इसलिए दोनों ने ही पूछा, ‘‘अब तुम यहां क्या करने आए हो?’’

‘‘मामा, मैं जानता हूं कि आप लोग मुझ से काफी नाराज हैं, इसीलिए मुझे आना पड़ा. क्योंकि मैं फोन करता तो आप लोग मेरी बात पर यकीन नहीं करते. एक व्यापारी ने पैसे देने को कहा है, मैं चाहता हूं कि आप खुद चल कर वह पैसा ले लें.’’ शिवम ने कहा.

‘‘भैया, इस की बात पर बिलकुल विश्वास मत करना.’’ देवेंद्र ने शिवम को घूरते हुए कहा.

लेकिन शिवम कसमें खाने लगा तो संदीप को उस की बात पर यकीन करना पड़ा. शिवम के झांसे में आ कर वह उसी दिन यानी 6 मई को शिवम के साथ चल पड़ा. शाम को संदीप शिवम के साथ उस के कमरे पर पहुंच गया. गुड़गांव से चलते समय संदीप ने उमा को फोन कर के आगरा आने की बात बता दी थी.

कमरे पर पहुंचते ही शिवम ने संदीप को कोल्डड्रिंक पिलाई, जिसे पीते ही उसे अजीब सा लगने लगा. कुछ देर बाद उमा आई तो उस ने यह बात उसे भी बताई. तब उमा ने शिवम से पूछा, ‘‘तुम ने कोल्डड्रिंक में कुछ मिलाया तो नहीं था?’’

उमा के इस सवाल पर शिवम एकदम से घबरा गया. लेकिन उस ने तुरंत खुद को संभाल कर कहा, ‘‘आप भी कैसी बातें कर रही हैं, मैं भला मामा के कोल्डड्रिंक में कुछ क्यों मिलाऊंगा?’’

इस के बाद यह बात यहीं खत्म हो गई. अगले दिन रेस्टोरेंट में मिलने का वादा कर के उमा चली गई. उस दिन शिवम सुबह ही से गायब हो गया. उस का मोबाइल फोन भी बंद हो गया. शिवम का कुछ पता नहीं चला तो संदीप ने उमा को फोन किया और कमलानगर स्थित एक रेस्टोरेंट में पहुंचने को कहा.

उमा के साथ खाना खाते हुए भी संदीप ने कहा कि अभी भी उस की तबीयत ठीक नहीं है. तब उमा ने कहा, ‘‘कहीं गरमी की वजह से तो ऐसा नहीं हो रहा?’’

‘‘जो कुछ भी हो, अब मैं कमरे पर जा कर आराम करना चाहता हूं.’’ संदीप ने कहा.

इस के बाद उमा अपने घर चली गई तो संदीप कमरे पर आ गया. संदीप कमरे पर पहुंचा तो शिवम कमरे पर ही मौजूद था. उस ने उसे डांटते हुए पूछा, ‘‘कहां था तू? तुझे पता था कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’

‘‘एक दोस्त से मिलने चला गया था.’’ शिवम ने कहा.

संदीप कुछ और कहता, उस के छोटे बहनोई कमल सिंह का फोन आ गया. उस ने बहनोई को बताया कि इस समय वह आगरा में शिवम के कमरे पर है. लेकिन उस की तबीयत ठीक नहीं है. ऐसा कोल्डड्रिंक पीने से हुआ है.

कमल सिंह ने उसे ग्लूकोन डी या नींबूपानी पीने की सलाह दी. शिवम तुरंत ग्लूकोन डी ले आया और पानी में घोल कर संदीप को पिला दिया. ग्लूकोन डी पीने के बाद संदीप की तबीयत ठीक होने की कौन कहे, वह बेहोश हो गया.

इस के बाद शिवम ने संदीप का ही नहीं, अपना फोन भी बंद कर दिया. वह बाजार गया और 2 नए ट्रौली बैग खरीद कर ले आया. ये बैग उस ने संदीप के पर्स से पैसे निकाल कर विशाल मेगामार्ट से खरीदे थे. चाकू उस ने पहले ही 2 सौ रुपए में खरीद कर रख लिया था. उस ने संदीप की कोल्डड्रिंक में भी नशीली दवा मिलाई थी और ग्लूकोन डी में भी. इसीलिए वह ग्लूकोन डी पीते ही बेहोश हो गया था. सारी तैयारी कर के पहले तो शिवम ने ईंट से संदीप के सिर पर वार किए, उस के बाद चाकू से उस का सिर धड़ से काट कर अलग कर दिया.

सिर को वह एक पौलीथिन में डाल कर बोदला रेलवे ट्रैक के पास की झाडि़यों में फेंक आया. इस के बाद धड़ से पैरों को अलग किया और ट्रौली बैग में भर कर बोदला रेलवे ट्रैक के पास तालाब में फेंक आया. चाकू भी उस ने उसी तालाब में फेंक दिया था.

वापस आ कर पहले उस ने कमरे का खून साफ किया, उस के बाद फिनायल से धोया. गद्दे में खून लगा था. उसे ठिकाने लगाने के लिए उस ने मकान मालिक से कहा कि उस के गद्दे में चूहा मर गया है, इसलिए वह उसे जलाने जा रहा है. इस के बाद पड़ोस के खाली पड़े प्लौट में गद्दे को ले जा कर जला दिया. इतना सब कर के वह निश्चिंत हो गया कि अब उस का कोई कुछ नहीं कर सकता.

लेकिन जिस तरह हर अपराधी कोई न कोई गलती कर के पकड़ा जाता है, उसी तरह शिवम भी कैलाश के फोन से आशीष को फोन करके पकड़ा गया. संदीप अब इस दुनिया में नहीं है, यह जान कर घर में कोहराम मच गया. पता चला कि थाना सिकंदरा द्वारा बरामद की गई लाश संदीप की ही थी. पुलिस को वह पौलीथिन तो मिल गई थी, जिस में संदीप का सिर रख कर फेंका गया था, लेकिन सिर नहीं मिला था. धड़ और पैर तालाब से बरामद हो गए थे.

पुलिस ने पोस्टमार्टम करा कर धड़ और पैर घर वालों को सौंप दिए थे. संदीप की मौत से पूरा गांव दुखी था, क्योंकि वह गांव का होनहार लड़का था. मंजू के लिए परेशानी यह है कि अब तक भाइयों से रिश्ता निभाए या बेटे की पैरवी करे. बड़े भाई विजय ने तो साफ कह दिया है कि वह बेटे की हो कर रहे या उन लोगों की. क्योंकि दोनों की हो कर वह नहीं रह सकती.

पूछताछ के बाद पुलिस ने शिवम को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. शिवम ने मामा की हत्या कर उस थाली में छेद किया है, जिस में खा कर वह इतना बड़ा हुआ है. ऐसे आदमी को जो भी सजा मिले, वह कम ही होगी.

एलईडी बल्ब का काला कारोबार

भले ही देश में लाइट एमिटिंग डियोड्स यानी एलईडी बल्ब का बाजार 10 हजार करोड़ रुपए से ऊपर चला गया है, लेकिन घीरेधीरे यह काले कारोबार में तबदील हो रहा है, जो निश्चितरूप से चिंता की बात है. मौजूदा समय में एलईडी बल्ब का बाजार नकली उत्पादों से भरा पड़ा है. कंपनियां इसे मुनाफा कमाने का एक बड़ा साधन मान कर चल रही हैं.

इलैक्ट्रिक लैंप ऐंड कंपोनैंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन यानी एलकोमा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2010 में एलईडी लाइटिंग का भारतीय बाजार महज 500 करोड़ रुपए का था, जो अब बढ़ कर 10 हजार करोड़  रुपए का हो गया है. यह 22 हजार करोड़ रुपए की पूरी लाइटिंग इंडस्ट्री का लगभग 45 प्रतिशत से भी ज्यादा है. दरअसल, एलईडी बल्ब में विद्युत ऊर्जा की कम खपत होती है और इस की रोशनी पारंपरिक बल्ब से ज्यादा होती है, फिर भी यह आंखों को नहीं चुभती है, जिस के कारण इस की लोकप्रियता में तेजी से इजाफा हो रहा है.

वैश्विक स्तर की ख्यातिप्राप्त एजेंसी नीलसन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि घरेलू बाजार में उलब्ध एलईडी बल्ब के 76 और एलईडी डाउनलाइटर के 71 प्रतिशत ब्रैंड सुरक्षामानकों के अनुकूल नहीं हैं. गौरतलब है कि ये मानक भारतीय मानक ब्यूरो यानी बीआईएस और इलैक्ट्रौनिक्स एवं सूचना प्रसारण मंत्रालय ने तैयार किए हैं. नीलसन ने अपने सर्वेक्षण में दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद और हैदराबाद में बिजली के उत्पादों की खुदरा बिक्री करने वाली 200 दुकानों के एलईडी बल्बों को नमूने के तौर पर शामिल किया था.

एलकोमा के अनुसार, बीआईएस मानकों के उल्लंघन के सब से ज्यादा मामले दिल्ली में देखे गए हैं. एलकोमा की मानी जाए तो अधिकृत मापदंडों पर खरा नहीं उतरने वाले उत्पादों से उपभोक्ता गंभीररूप से बीमार हो सकते हैं.

अमेरिकन मैडिकल एसोसिएशन यानी एएमए द्वारा 14 जून, 2016 को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार एलईडी द्वारा निकलने वाली रोशनी मानवस्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है. नकली उत्पाद से जोखिम की गंभीरता और भी ज्यादा बढ़ जाती है.

दूसरी तरफ नकली उत्पादों को बेचने से सरकार को भारीभरकम राजस्व का नुकसान हो रहा है क्योंकि ऐसे उत्पादों का निर्माण व उन की बिक्री गैरकानूनी तरीके से की जा रही है. देखा जाए तो नकली एलईडी बल्ब के कारोबार से सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ संकल्पना को भी नुकसान हो रहा है.

उल्लेखनीय है कि अगस्त 2017 में बीआईएस ने एलईडी बल्ब निर्माताओं को उन के उत्पाद की सुरक्षा जांच के लिए बीआईएस में पंजीकृत कराने का निर्देश दिया था, लेकिन कंपनियां इस आदेश की अनदेखी कर रही हैं. एलईडी बल्ब के काले कारोबार में बढ़ोतरी का एक बहुत बड़ा कारण भारतीय बाजार का चीन के उत्पादों से भरा हुआ होना भी है. आज की तारीख में एलईडी बल्ब बड़े पैमाने पर चीन से भारत गैरकानूनी तरीके से लाए जा रहे हैं.

सर्वेक्षण के मुताबिक, एलईडी बल्ब के 48 प्रतिशत ब्रैंडों पर बनाने वाली कंपनी का पता दर्ज नहीं है, जबकि 31 प्रतिशत ब्रैंडों की पैकिंग पर कंपनी का नाम नहीं लिखा है. साफ है, इन का निर्माण गैरकानूनी तरीके से किया जा रहा है. इसी तरह एलईडी डाउनलाइटर्स के मामले में भी 45 प्रतिशत ब्रैंडों की पैकिंग पर निर्माता का नाम दर्ज नहीं है और 51 प्रतिशत ब्रैंडों के उत्पादों पर कंपनी का नाम नहीं लिखा हुआ है.

नीलसन की रिपोर्ट के अनुसार, सर्वे में शामिल दिल्ली में बिकने वाले एलईडी बल्ब के तकरीबन तीनचौथाई ब्रैंड बीआईएस मानकों के अनुरूप नहीं हैं. एलईडी डाउनलाइटर्स के मामले की भी लगभग ऐसी ही स्थिति है. वर्तमान में घर, बाजार और दफ्तर में धड़ल्ले से एलईडी बल्बों का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसी वजह से रोशनी के बाजार में इस की हिस्सेदारी बढ़ कर आज 50 प्रतिशत हो गई है.

हाल ही में सरकार ने ‘उजाला’ योजना के तहत देशभर में 77 करोड़ पारंरिक बल्बों की जगह एलईडी बल्ब इस्तेमाल करने का लक्ष्य रखा है. इस आलोक में ऊर्जा दक्षता ब्यूरो ने आपूर्ति करने वाले निर्माताओं या डीलरों को स्टार रेटिंग वाले एलईडी बल्ब की आपूर्ति करने का निर्देश दिया है ताकि उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े.

बहरहाल, मौजूदा परिदृश्य में सरकार को नकली एलईडी बल्बों के प्रसार को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए, खासकर चीन से गैरकानूनी तरीके से आने वाले नकली व बिना ब्रैंड वाले उत्पादों को. नकली या बिना ब्रैंड वाले एलईडी बल्ब ईमानदार कारोबारियों, सरकार व उपभोक्ताओं सभी के लिए नुकसानदेह हैं.

बेटे के कातिल पर आया मां को रहम

बिहार के गया शहर के हाईप्रोफाइल आदित्य मर्डर केस में अदालत ने हत्यारे रौकी उर्फ राकेश रंजन यादव (25 साल), उस के साथी टेनी यादव उर्फ राजीव कुमार (23 साल), उस की मां मनोरमा देवी के सरकारी बौडीगार्ड राजेश कुमार (32 साल) को उम्रकैद तथा रौकी के पिता बिंदी यादव (55 साल) को 5 साल की कैद की सजा सुनाई है.

जदयू की निलंबित एमएलसी मनोरमा देवी और पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष बिंदी यादव के बिगड़ैल बेटे रौकी उर्फ राकेश रंजन यादव ने पिछले साल 7 मई को गया के बड़े कारोबारी श्याम सचदेवा के बेटे आदित्य सचदेवा की गोली मार कर हत्या कर दी थी.

आदित्य की गलती सिर्फ इतनी थी कि वह रौकी की लैंडरोवर कार को ओवरटेक कर के आगे निकल गया था. सत्ता और दौलत के नशे में चूर रौकी को आदित्य की इस हरकत पर इतना गुस्सा आया कि उस ने उसे गोली मार दी थी.

मृतक आदित्य की मां चंदा सचदेवा ने अदालत से अनुरोध किया था कि उन के मासूम बेटे के हत्यारों को फांसी की सजा न दी जाए. वह नहीं चाहतीं कि फांसी दे कर उन की तरह एक और मां की गोद सूनी कर दी जाए.

31 अगस्त को जब आदित्य की हत्या के मामले में रौकी और उस के साथियों को दोषी ठहरा दिया गया तो चंदा सचदेवा ने रोते हुए कहा था कि आखिर उन के बेटे का क्या कसूर था, जो उसे इस तरह मार दिया गया? उस ने तो अभी ठीक से दुनिया भी नहीं देखी थी. बेटे की मौत के बाद से आज तक उन के आंसू नहीं थमे हैं.

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शायद जिंदा रहने तक थमेंगे भी नहीं, इसीलिए वह नहीं चाहती थीं कि ऐसा दर्द किसी अन्य मां को मिले. उन्होंने अदालत का फैसला आने से पहले ही कहा था, ‘‘मेरा बेटा तो चला गया, पर मैं किसी और मां को ऐसा दर्द देने या दिलाने के बारे में कतई नहीं सोच सकती. रौकी को अदालत कड़ी से कड़ी सजा दे, पर फांसी न दे.’’ बाद में फैसला आने पर उन्होंने कहा, ‘‘अदालत ने जो फैसला सुनाया है, उस से मैं संतुष्ट हूं.’’

चंदा सचदेवा का कहना सही भी है. जवान बेटे के खोने का दर्द उन से बेहतर और कौन जान सकता है. वह अपना दर्द कम करने के लिए अन्य मां का बेटा नहीं छीनना चाहती थीं.

सरकारी वकील सरताज अली ने बहस के दौरान कहा था कि यह बहुत जघन्यतम मामला है, इसलिए हत्यारे रौकी को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए. जज ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा था कि यह मामला रेयरेस्ट औफ रेयर नहीं है, इसलिए 3 आरोपियों को उम्रकैद और एक को 5 साल की कैद की सजा दी जाती है.

आदित्य के पिता श्याम सचदेवा कहते ने कहा कि सरकार, पुलिस और प्रशासन ने उन का पूरा साथ दिया. इसी का नतीजा है कि आज उन्हें इंसाफ मिला है. इस हत्याकांड की जांच और सुनवाई के दौरान तमाम उतारचढ़ाव आए. वारदात के 3 दिनों बाद 10 मई को रौकी को गिरफ्तार किया गया था. 6 जून को सभी आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी गई थी. मुख्य आरोपी रौकी की जमानत की अर्जी को गया सिविल कोर्ट ने खारिज कर दिया था. इस के बाद रौकी ने पटना हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की थी.

19 अक्तूबर, 2016 को वहां से जमानत मिल गई थी. हाईकोर्ट द्वारा जमानत देने के विरोध में बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट गई, जहां रौकी की जमानत रद्द कर दी गई तो उसे दोबारा जेल जाना पड़ा. इस मामले में 29 लोगों की गवाही हुई थी.

क्यों मारा गया आदित्य

पिछले साल 7 मई की रात 8-9 बजे के बीच गया के कारोबारी श्याम कुमार सचदेवा का बेटा आदित्य सचदेवा अपने दोस्त की मारुति स्विफ्ट कार बीआर-02ए सी2699 से बोधगया से गया स्थित अपने घर की ओर आ रहा था.

वह अपने दोस्तों के साथ बर्थडे पार्टी में बोधगया गया था. रास्ते में जेल के पास ही सत्तारूढ़ दल जदयू की एमएलसी मनोरमा देवी के बेटे रौकी अपनी लैंडरोवर कार से आदित्य की कार को ओवरटेक करने की कोशिश करने लगा.

काफी देर तक आदित्य ने उसे आगे नहीं जाने दिया. जब खाली सड़क मिली, रौकी ने उस की कार को ओवरटेक कर के आदित्य की कार रुकवा ली. इस के बाद उस ने उसे कार से उतार कर जम कर पिटाई की.

पिटाई के बाद आदित्य और उस के साथियों ने उन से माफी मांग ली. वे अपनी कार की अेर जाने लगे तो बाहुबली बाप के बिगड़ैल बेटे रौकी ने पीछे से गोली चला दी, जो आदित्य के सिर में जा लगी. वह जमीन पर गिर पड़ा. थोड़ी देर तक वह तड़पता रहा, उस के बाद प्राण त्याग दिए.

आदित्य के दोस्तों के बताए अनुसार, रात पौने 8 बजे के करीब उन की कार ने एक लैंडरोवर एसयूवी कार को ओवरटेक किया. इस के बाद वह कार उन की गाड़ी के आगे जाने के लिए रास्ता मांगने लगी. उस कार से आगे निकल कर उन की कार सिकरिया मोड़ से गया शहर में पुलिस लाइन की ओर मुड़ गई.

इस के कुछ देर बाद लैंडरोवर कार आदित्य की स्विफ्ट कार के बगल में आई तो उस में बैठे लोगों ने शोर मचाते हुए कार रोकने का इशारा किया. कार चला रहे नासिर ने गाड़ी रोक दी तो उस कार से 4 लोग नीचे उतरे. उन में रौकी, बौडीगार्ड, ड्राइवर और एक अन्य आदमी था, जिसे वे नहीं पहचानते थे.

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रौकी ने आदित्य की पिटाई तो की ही, पिस्तौल की बट से नासिर पर भी हमला किया, जिस से उस ने गाड़ी को भगाने की कोशिश की. गाड़ी कुछ ही दूर गई थी कि पीछे से गोली चलने की आवाज आई. वह गोली आदित्य को लगी, जिस वह सीट पर ही लुढ़क गया.

हत्यारे की गिरफ्तारी

हत्या के इस मामले में पुलिस ने रौकी उर्फ राकेश रंजन यादव, उस के पिता और मनोरमा देवी के पति बिंदेश्वरी यादव उर्फ बिंदी यादव को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. मनोरमा देवी का सरकारी बौडीगार्ड राजेश कुमार भी हत्या के इस मामले में शामिल था.

पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया था. उस के पास से 70 राउंड गोली और कारबाइन जब्त कर ली गई थी. उस पर आरोप था कि उस ने रौकी को गोली चलाने से रोका नहीं था.

एडीजे मुख्यालय सुनील कुमार ने बताया था कि हथियार की फोरैंसिक जांच में पता चला था कि बौडीगार्ड के हथियार से गोली नहीं चलाई गई थी. पूछताछ में बौडीगार्ड ने बताया था कि रौकी ने ही आदित्य पर गोली चलाई थी.

रौकी के पिता बिंदी यादव का पुराना आपराधिक रिकौर्ड रहा है. वह और उस का बेटा रौकी, दोनों ही रिवौल्वर रखते थे. गया के थाना रामपुर में आदित्य के भाई आकाश सचदेवा की ओर से आदित्य की हत्या का मुकदमा अपराध संख्या 130/2016 पर आईपीसी की धारा 341, 323, 307, 427, 120बी और 27 आर्म्स एक्ट के तहत दर्ज किया गया था.

जबकि पुलिस यह मुकदमा दर्ज करने में टालमटोल कर रही थी. लेकिन आदित्य के घर वालों का कहना था कि जब तक मुकदमा दर्ज नहीं होगा, वे लाश का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे. सियासी और प्रशासनिक दांवपेच चलते रहे. पुलिस ने 5 बार मुकदमे का मजमून बदलवाया.

आदित्य के पिता श्याम कुमार सचदेवा गया के बड़े कारोबारी हैं. वह मूलरूप से पंजाब के रहने वाले हैं. थाना कोतवाली के स्वराजपुरी रोड पर महावीर स्कूल के पास उन की सचदेवा इंटरप्राइजेज के नाम से पाइप की दुकान है.

कौन था आदित्य

आदित्य ने गया के नाजरथ एकेडमी कौनवेंट स्कूल से 12वीं की परीक्षा दी थी. उस की मौत के बाद उस का परीक्षाफल आया था. आदित्य के चाचा राजीवरंजन के अनुसार, उन का परिवार करीब 65 साल पहले पाकिस्तान से आ कर गया में बसा था.

आदित्य से पहले उन के परिवार के एक अन्य सदस्य की हत्या हो चुकी थी. सन 1987 में उन के बड़े भाई हरदेव सचदेवा के बेटे डिंपल की हत्या पतरातू में कर दी गई थी. इस के बाद उन के छोटे भाई के छोटे बेटे को मार दिया गया.

7 मई को आदित्य की हत्या हुई थी. 10 और 11 मई की रात 2 बजे के करीब रौकी को उस के पिता बिंदी यादव के मस्तपुरा स्थित मिक्सचर प्लांट से गिरफ्तार किया गया था. उस के पास से हत्या में इस्तेमाल की गई विदेशी रिवौल्वर और गोलियों से भरी मैगजीन बरामद की गई थी. उस के पिस्तौल का लाइसैंस दिल्ली से जारी किया गया था.

पूछताछ में रौकी ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. लेकिन बाद में वह अपने अपराध से मुकर गया था. उस का कहना था कि उस ने आदित्य की हत्या नहीं की. घटना के समय वह दिल्ली में था. वह तो मां के बुलाने पर गया आया था. अपनी मां के कहने पर ही उस ने आत्मसमर्पण किया था, पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया.

जबकि एसएसपी का कहना था कि रौकी को गिरफ्तार किया गया था. आदित्य की हत्या के बाद एमएलसी मनोरमा देवी का पूरा परिवार और राजनीति चौपट हो गई. पहले बेटा रौकी हत्या के मामले में जेल गया, उस के बाद उस के पति बिंदी यादव को भी पुलिस ने हत्यारों को छिपाने और भगाने के आरोप में सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था.

इस के बाद रौकी की खोज में जब पुलिस ने मनोरमा के घर छापा मारा तो रौकी तो वहां नहीं मिला, लेकिन उन के घर से विदेशी शराब की 6 बोतलें बरामद हुई थीं. राज्य में शराबबंदी के बाद सत्तारूढ़ दल के एमएलसी के घर से शराब की बोतलें मिलने से सरकार को छीछालेदर से बचाने के लिए तुरंत मनोरमा देवी को जदयू से निलंबित कर दिया गया था.

हत्यारे की मां भी जेल में

मनोरमा देवी के घर से शराब मिलने के बाद आननफानन उन की गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया गया था. 11 मई को जिला प्रशासन, पुलिस और उत्पाद विभाग के अफसरों की मौजूदगी में मनोरमा देवी के घर को सील कर दिया गया था, जबकि वह फरार थीं. जिस घर से शराब बरामद हुई थी, वह मनोरमा देवी के नाम था, इसलिए इस मामले में उन्हें आरोपी बनाया गया. बाद में उन्हें गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया गया था.

पुलिस जांच से पता चला था कि रौकी ने जिस रिवौल्वर से आदित्य की हत्या की थी, वह इटली की बरेटा कंपनी का था. वह .380 बोर का था. पुलिस सूत्रों के अनुसार, आदित्य की हत्या करने के बाद रौकी पटना समेत राज्य के कई स्थानों पर छिपता रहा.

हत्या करने के तुरंत बाद रौकी भाग गया था. इस के बाद वह दिल्ली जाना चाहता था, लेकिन अचानक उस का प्लान बदल गया और वह गया चला गया. गिरफ्तारी के बाद उसे गया सैंट्रल जेल में रखा गया था, जहां उसे कैदी नंबर 22774 की पहचान मिली थी.

उस के बाहुबली पिता बिंदी यादव को कैदी नंबर 22758 की पहचान मिली थी. दोनों को जेल के एक ही वार्ड में रखा गया था. आदित्य हत्याकांड की जांच के दौरान यह भी खुलासा हुआ था कि देशद्रोह के आरोपी बिंदी यादव को किस तरह से सरकारी बौडीगार्ड मुहैया कराया गया था.

जिला सुरक्षा समिति ने 9 फरवरी, 2016 को बिंदी यादव को भुगतान के आधार पर एक पुलिसकर्मी मुहैया कराया था. बिंदी पर आरोप था कि उस ने प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा-माओवादी को प्रतिबंधित बोर की कई हजार गोलियां और हथियार उपलब्ध कराए थे. इस मामले में वह लंबे समय तक गया जेल में बंद रहा था.

ब्लैकमेलिंग का साइड इफेक्ट

‘‘रजनी, क्या बात है आजकल तुम कुछ बदलीबदली सी लग रही हो. पहले की तरह बात भी नहीं करती.

मिलने की बात करो तो बहाने बनाती हो. फोन करो तो ठीक से बात भी नहीं करतीं. कहीं हमारे बीच कोई और तो नहीं आ गया.’’ कमल ने अपनी प्रेमिका रजनी से शिकायती लहजे में कहा तो रजनी ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, मेरे जीवन में तुम्हारे अलावा कोई और आ भी नहीं सकता.’’

रजनी और कमल लखनऊ जिले के थाना निगोहां क्षेत्र के गांव अहिनवार के रहने वाले थे. दोनों का काफी दिनों से प्रेम संबंध चल रहा था.

‘‘रजनी, फिर भी मुझे लग रहा है कि तुम मुझ से कुछ छिपा रही हो. देखो, तुम्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है. कोई बात हो तो मुझे बताओ. हो सकता है, मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूं.’’ कमल ने रजनी को भरोसा देते हुए कहा.

‘‘कमल, मैं ने तुम्हें बताया नहीं, पर एक दिन हम दोनों को हमारे फूफा गंगासागर ने देख लिया था.’’ रजनी ने बताया.

‘‘अच्छा, उन्होंने घर वालों को तो नहीं बताया?’’ कमल ने चिंतित होते हुए कहा.

‘‘अभी तो उन्होंने नहीं बताया, पर बात छिपाने की कीमत मांग रहे हैं.’’ रजनी बोली.

‘‘कितने पैसे चाहिए उन्हें?’’ कमल ने पूछा.

‘‘नहीं, पैसे नहीं बल्कि एक बार मेरे साथ सोना चाहते हैं. वह धमकी दे रहे हैं कि अगर उन की बात नहीं मानी तो वह मेरे घर में पूरी बात बता कर मुझे घर से निकलवा देंगे.’’ रजनी के चेहरे पर चिंता के बादल छाए हुए थे.

‘‘तुम चिंता मत करो, बस एक बार तुम मुझ से मिलवा दो. हम उस की ऐसी हालत कर देंगे कि वह बताने लायक ही नहीं रहेगा. वह तुम्हारा सगा रिश्तेदार है तो यह बात कहते उसे शरम नहीं आई?’’ रजनी को चिंता में देख कमल गुस्से से भर गया.

‘‘अरे नहीं, मारना नहीं है. ऐसा करने पर तो हम ही फंस जाएंगे. जो बात हम छिपाना चाह रहे हैं, वही फैल जाएगी.’’ रजनी ने कमल को समझाते हुए कहा.

‘‘पर जो बात मैं तुम से नहीं कह पाया, वह उस ने तुम से कैसे कह दी. उसे कुछ तो शरम आनी चाहिए थी. आखिर वह तुम्हारे सगे फूफा हैं.’’ कमल ने कहा.

‘‘तुम्हारी बात सही है. मैं उन की बेटी की तरह हूं. वह शादीशुदा और बालबच्चेदार हैं. फिर भी वह मेरी मजबूरी का फायदा उठाना चाहते हैं.’’ रजनी बोली.

‘‘तुम चिंता मत करो, अगर वह फिर कोई बात करे तो बताना. हम उसे ठिकाने लगा देंगे.’’ कमल गुस्से में बोला.  इस के बाद रजनी अपने घर आ गई पर रजनी को इस बात की चिंता होने लगी थी.

ब्लैकमेलिंग में अवांछित मांग

38 साल के गंगासागर यादव का अपना भरापूरा परिवार था. वह लखनऊ जिले के ही सरोजनीनगर थाने के गांव रहीमाबाद में रहता था. वह ठेकेदारी करता था. रजनी उस की पत्नी रेखा के भाई की बेटी थी.

उस से उम्र में 15 साल छोटी रजनी को एक दिन गंगासागर ने कमल के साथ घूमते देख लिया था. कमल के साथ ही वह मोटरसाइकिल से अपने घर आई थी. यह देख कर गंगासागर को लगा कि अगर रजनी को ब्लैकमेल किया जाए तो वह चुपचाप उस की बात मान लेगी. चूंकि वह खुद ही ऐसी है, इसलिए यह बात किसी से बताएगी भी नहीं. गंगासागर ने जब यह बात रजनी से कही तो वह सन्न रह गई. वह कुछ नहीं बोली.

गंगासागर ने रजनी से एक दिन फिर कहा, ‘‘रजनी, तुम्हें मैं सोचने का मौका दे रहा हूं. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो घर में तुम्हारा भंडाफोड़ कर दूंगा. तुम तो जानती ही हो कि तुम्हारे मांबाप कितने गुस्से वाले हैं. मैं उन से यह बात कहूंगा तो मेरी बात पर उन्हें पक्का यकीन हो जाएगा और बिना कुछ सोचेसमझे ही वे तुम्हें घर से निकाल देंगे.’’

रजनी को धमकी दे कर गंगासागर चला गया. समस्या गंभीर होती जा रही थी. रजनी सोच रही थी कि हो सकता है उस के फूफा के मन से यह भूत उतर गया हो और दोबारा वह उस से यह बात न कहें.

यह सोच कर वह चुप थी, पर गंगासागर यह बात भूला नहीं था. एक दिन रजनी के घर पहुंच गया. अकेला पा कर उस ने रजनी से पूछा, ‘‘रजनी, तुम ने मेरे प्रस्ताव पर क्या विचार किया?’’

‘‘अभी तो कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं. देखिए फूफाजी, आप मुझ से बहुत बड़े हैं. मैं आप के बच्चे की तरह हूं. मुझ पर दया कीजिए.’’ रजनी ने गंगासागर को समझाने की कोशिश की.

‘‘इस में बड़ेछोटे जैसी कोई बात नहीं है. मैं अपनी बात पर अडिग हूं. इतना समझ लो कि मेरी बात नहीं मानी तो भंडाफोड़ दूंगा. इसे कोरी धमकी मत समझना. आखिरी बार समझा रहा हूं.’’ गंगासागर की बात सुन कर रजनी कुछ नहीं बोली. उसे यकीन हो गया था कि वह मानने वाला नहीं है.

रजनी ने यह बात कमल को बताई. कमल ने कहा, ‘‘ठीक है, किसी दिन उसे बुला लो.’’

इस के बाद रजनी और कमल ने एक योजना बना ली कि अगर वह अब भी नहीं माना तो उसे सबक सिखा देंगे. दूसरी ओर गंगासागर पर तो किशोर रजनी से संबंध बनाने का भूत सवार था.

सुबह होते ही उस का फोन आ गया. फूफा का फोन देखते ही रजनी समझ गई कि अब वह मानेगा नहीं. कमल की योजना पर काम करने की सोच कर उस ने फोन रिसीव करते हुए कहा, ‘‘फूफाजी, आप कल रात आइए. आप जैसा कहेंगे, मैं करने को तैयार हूं.’’

रजनी इतनी जल्दी मान जाएगी, गंगासागर को यह उम्मीद नहीं थी. अगले दिन शाम को उस ने रजनी को फोन कर पूछा कि वह कहां मिलेगी. रजनी ने उसे मिलने की जगह बता दी.

अपने आप बुलाई मौत

18 जुलाई, 2018 को रात गंगासागर ने 8 बजे अपनी पत्नी को बताया कि पिपरसंड गांव में दोस्त के घर बर्थडे पार्टी है. अपने साथी ठेकेदार विपिन के साथ वह वहीं जा रहा है.

गंगासागर रात 11 बजे तक भी घर नहीं लौटा तो पत्नी रेखा ने उसे फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद था. रेखा ने सोचा कि हो सकता है ज्यादा रात होने की वजह से वह वहीं रुक गए होंगे, सुबह आ जाएंगे.

अगली सुबह किसी ने फोन कर के रेखा को बताया कि गंगासागर का शव हरिहरपुर पटसा गांव के पास फार्महाउस के नजदीक पड़ा है. यह खबर मिलते ही वह मोहल्ले के लोगों के साथ वहां पहुंची तो वहां उस के पति की चाकू से गुदी लाश पड़ी थी. सूचना मिलने पर पुलिस भी वहां पहुंच गई. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और गंगासागर के पिता श्रीकृष्ण यादव की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

कुछ देर बाद पुलिस को सूचना मिली कि गंगासागर की लाल रंग की बाइक घटनास्थल से 22 किलोमीटर दूर असोहा थाना क्षेत्र के भावलिया गांव के पास सड़क किनारे एक गड्ढे में पड़ी है. पुलिस ने वह बरामद कर ली.

जिस क्रूरता से गंगासागर की हत्या की गई थी, उसे देखते हुए सीओ (मोहनलाल गंज) बीना सिंह को लगा कि हत्यारे की मृतक से कोई गहरी खुंदक थी, इसीलिए उस ने चाकू से उस का शरीर गोद डाला था ताकि वह जीवित न बच सके.

पुलिस ने मृतक के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन किया. इस के अलावा पुलिस ने उस की सालियों, साले, पत्नी सहित कुछ साथी ठेकेदारों से भी बात की. एसएसआई रामफल मिश्रा ने काल डिटेल्स खंगालनी शुरू की तो उस में कुछ नंबर संदिग्ध लगे.

लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी ने घटना के खुलासे के लिए एसपी (क्राइम) दिनेश कुमार सिंह के निर्देशन में एक टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी अजय कुमार राय के साथ अपराध शाखा के ओमवीर सिंह, सर्विलांस सेल के सुधीर कुमार त्यागी, एसएसआई रामफल मिश्रा, एसआई प्रमोद कुमार, सिपाही सरताज अहमद, वीर सिंह, अभिजीत कुमार, अनिल कुमार, राजीव कुमार, चंद्रपाल सिंह राठौर, विशाल सिंह, सूरज सिंह, राजेश पांडेय, जगसेन सोनकर और महिला सिपाही सुनीता को शामिल किया गया.

काल डिटेल्स से पता चला कि घटना की रात गंगासागर की रजनी, कमल और कमल के दोस्त बबलू से बातचीत हुई थी. पुलिस ने रजनी से पूछताछ शुरू की और उसे बताया, ‘‘हमें सब पता है कि गंगासागर की हत्या किस ने की थी. तुम हमें सिर्फ यह बता दो कि आखिर उस की हत्या करने की वजह क्या थी?’’

रजनी सीधीसादी थी. वह पुलिस की घुड़की में आ गई और उस ने स्वीकार कर लिया कि उस की हत्या उस ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर की थी.

उस ने बताया कि उस के फूफा गंगासागर ने उस का जीना दूभर कर दिया था, जिस की वजह से उसे यह कदम उठाना पड़ा. रजनी ने पुलिस को हत्या की पूरी कहानी बता दी.

गंगासागर की ब्लैकमेलिंग से परेशान रजनी ने उसे फार्महाउस के पास मिलने को बुलाया था. वहां कमल और उस का साथी बबलू पहले से मौजूद थे. गंगासागर को लगा कि रजनी उस की बात मान कर समर्पण के लिए तैयार है और वह रात साढ़े 8 बजे फार्महाउस के पीछे पहुंच गया.

रजनी उस के साथ ही थी. गंगासागर के मन में लड्डू फूट रहे थे. जैसे ही उस ने रजनी से प्यारमोहब्बत भरी बात करनी शुरू की, वहां पहले से मौजूद कमल ने अंधेरे का लाभ उठा कर उस पर लोहे की रौड से हमला बोल दिया. गंगासागर वहीं गिर गया तो चाकू से उस की गरदन पर कई वार किए. जब वह मर गया तो कमल और बबलू ने खून से सने अपने कपड़े, चाकू और रौड वहां से कुछ दूरी पर झाड़ के किनारे जमीन में दबा दिया.

दोनों अपने कपड़े साथ ले कर आए थे. उन्हें पहन कर कमल गंगासागर की बाइक ले कर उन्नाव की ओर भाग गया. बबलू रजनी को अपनी बाइक पर बैठा कर गांव ले आया और उसे उस के घर छोड़ दिया. कमल ने गंगासागर की बाइक भावलिया गांव के पास सड़क किनारे गड्ढे में डाल दी, जिस से लोग गुमराह हो जाएं. पुलिस ने बड़ी तत्परता से केस की छानबीन की और हत्या का 4 दिन में ही खुलासा कर दिया. एसएसपी कलानिधि नैथानी और एसपी (क्राइम) दिनेश कुमार सिंह ने केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की तारीफ की.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में रजनी परिवर्तित नाम है.

कैसे लुटा 27 किलो सोना

21 जुलाई, 2017 की बात है. जयपुर पुलिस उस दिन कुछ ज्यादा ही चाकचौबंद थी. उस दिन भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह 3 दिन के दौरे पर जयपुर आ रहे थे. इसी के मद्देनजर पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल उस दिन जल्दी उठ गए थे. उन्होंने अपने मातहत वरिष्ठ अधिकारियों को वायरलैस और फोन पर आवश्यक निर्देश दिए ताकि किसी भी तरह की गड़बड़ी की कोई गुंजाइश न रहे. सीआईडी, इंटेलीजेंस और पुलिस की विशेष शाखा के जवान अपनेअपने मोर्चे पर नजरें जमाए हुए थे. शहर के प्रमुख मार्गों पर पुलिस ने नाकेबंदी कर रखी थी ताकि आपराधिक प्रवृत्ति के लोग बाहर से शहर में आ न सकें.

दोपहर करीब पौने 2 बजे के आसपास पुलिस कमिश्नर अग्रवाल जब अपने औफिस में बैठे थे, तभी उन्हें जयपुर शहर में एक बड़ी वारदात की सूचना मिली. मातहत अधिकारियों ने बताया कि मानसरोवर में मुथूट फाइनैंस की शाखा में दिनदहाड़े डकैती हुई है. 4 बदमाश करोड़ों रुपए का सोना और लाखों रुपए नकद लूट ले गए हैं.

वारदात की सूचना मिलने पर पुलिस कमिश्नर खीझ उठे. शहर में सभी प्रमुख जगहों पर पुलिस तैनात होने के बावजूद बदमाश करोड़ों रुपए का सोना लूट ले गए थे. खास बात यह थी कि जयपुर में दिनदहाड़े बैंक लूट के 28 घंटे बाद ही गोल्ड लूट की बड़ी वारदात हो गई थी. पुलिस कमिश्नर ने अपने गुस्से पर काबू पाते हुए अधिकारियों को तुरंत मौके पर भेजा. साथ ही शहर के सभी मार्गों पर कड़ी नाकेबंदी कराने के भी निर्देश दिए.

मुथूट फाइनैंस की शाखा जयपुर के मानसरोवर इलाके में रजतपथ चौराहे पर पहली मंजिल पर है. उस दिन दोपहर करीब एक बजे की बात है. उस समय लंच शुरू होने वाला था. मुथूट के कार्यालय में मैनेजर सत्यनारायण तोषनीवाल अपने केबिन में बैठे थे. बंदूकधारी गार्ड दीपक सिंह गेट पर खड़ा था. कर्मचारी टीना शर्मा एवं मीनाक्षी अपने काउंटरों पर बैठी थीं. 2 ग्राहक नंदलाल गुर्जर और घनश्याम खत्री भी मुथूट के औफिस में मौजूद थे. मुथूट के उस औफिस में कुल 5 कर्मचारी थे. उस दिन एक कर्मचारी फिरोज छुट्टी पर था.

इसी दौरान एक युवक मुथूट के कार्यालय में आया. युवक ने सिर पर औरेंज कलर की कैप लगा रखी थी. उस ने अपने गले में पहनी एक चेन महिला कर्मचारी मीनाक्षी को दिखाई और कहा कि सोने की इस चेन के बदले मुझे लोन चाहिए, कितना लोन मिल सकता है?

मीनाक्षी उस युवक को दस्तावेज लाने की बात कह रही थी, तभी हेलमेट पहने 2 युवक अंदर आए. इन के तुरंत बाद चेहरे पर रूमाल बांधे तीसरा युवक अंदर गेट के पास आ कर खड़ा हो गया. उन तीनों युवकों के आने पर चेन दिखा रहा वह युवक भी उन के साथ हो गया.

उन में से हेलमेटधारी बदमाशों ने पिस्तौल निकाल ली और वहां मौजूद कर्मचारियों और ग्राहकों को धमका कर चुपचाप एक कोने में बैठने को कहा. इतनी देर में गेट के पास चेहरे पर रूमाल बांधे खड़े बदमाश ने गार्ड दीपक सिंह से उस की बंदूक छीन ली और उसे जमीन पर बैठने को कहा. बदमाशों के डर से गार्ड चुपचाप नीचे बैठ गया.

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कर्मचारियों व ग्राहकों को धमकाने के बाद पिस्तौल लिए एक बदमाश मैनेजर तोषनीवाल के पास पहुंचा. बदमाश ने उन की कनपटी पर पिस्तौल तानते हुए स्ट्रांगरूम की चाबी मांगी. मैनेजर ने चिल्लाते हुए अपने केबिन से निकल कर भागने की कोशिश की, लेकिन गेट पर खड़े बदमाश ने उन से मारपीट की और बंदूक दिखा कर अंदर धकेल दिया. साथ ही गोली मारने की धमकी भी दी.

खुद को चारों तरफ से घिरा देख कर भी मैनेजर ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने बदमाशों को गुमराह करने के लिए कहा, ‘‘मेरे पास एक ही चाबी है. स्ट्रांगरूम 2 चाबियों से खुलता है. दूसरी चाबी कैशियर के पास है, वह बैंक गया हुआ है.’’

बदमाशों ने मैनेजर से एक ही चाबी ले कर स्ट्रांगरूम खोलने की कोशिश की. मामूली कोशिश के बाद स्ट्रांगरूम खुल गया तो 2 बदमाशों ने स्ट्रांगरूम का सोना और नकदी निकाल कर अपने साथ लाए एक बैग में भर ली. 2 बदमाश जब स्ट्रांगरूम से बैग में सोना भर रहे थे तो मैनेजर ने बदमाशों से खुद को बीमार बताते हुए बाथरूम जाने देने की याचना की. इस पर बदमाशों ने मैनेजर को बाथरूम जाने दिया. मैनेजर सत्यनारायण तोषनीवाल ने बाथरूम में घुसते ही अंदर से गेट बंद कर लिया.

कंपनी के बाथरूम में इमरजेंसी अलार्म लगा हुआ था, मैनेजर ने वह अलार्म बजा दिया. साथ ही उन्होंने बाथरूम से ही मुथूट फाइनैंस कंपनी के जयपुर के ही एमआई रोड स्थित कार्यालय और पुलिस कंट्रोल रूम को फोन भी कर दिया. अलार्म बजने पर दोपहर करीब 1.22 बजे चारों बदमाश सोना व नकदी ले कर तेजी से सीढि़यों से नीचे उतर कर चले गए. बाद में पता चला कि बदमाश 2 मोटरसाइकिलों पर आए थे और मोटरसाइकिलों पर ही चले गए थे.

सूचना मिलने पर डीसीपी क्राइम डा. विकास पाठक, एसीपी देशराज यादव के अलावा मानसरोवर थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. एफएसएल टीम और डौग स्क्वायड को भी मौके पर बुला लिया गया. पुलिस ने जांचपड़ताल की. कर्मचारियों व वारदात के दौरान मौजूद रहे ग्राहकों से पूछताछ की.

पुलिस ने मौके पर एक काउंटर से दस्ताने बरामद किए. ये दस्ताने एक बदमाश छोड़ गया था. मैनेजर ने स्ट्रांगरूम और अन्य नकदी का हिसाबकिताब लगाने के बाद प्रारंभिक तौर पर पुलिस अधिकारियों को बताया कि बदमाश 31 किलोग्राम सोना और 3 लाख 85 हजार रुपए नकद लूट ले गए थे.

मैनेजर ने पुलिस को बताया कि अलार्म बज जाने से लुटेरे करीब 10 करोड़ रुपए कीमत का 35 किलो सोना नहीं ले जा सके थे. वारदात के समय स्ट्रांगरूम में 65 किलो से ज्यादा सोना रखा था. लुटेरे अपने साथ 2-3 बैग लाए थे, लेकिन वे एक बैग में ही सोना भर पाए थे, तभी अलार्म बज गया और जल्दी से भागने के चक्कर में वे बाकी सोना छोड़ गए.

मुथूट कंपनी की इस शाखा से करीब ढाई हजार ग्राहक जुडे़ हुए थे. लुटेरे इन में से करीब एक हजार ग्राहकों का सोना ले गए थे. हालांकि बाद में कंपनी के अधिकारियों ने सारा रिकौर्ड देखने के बाद बताया कि लूटे गए सोने का वजन करीब 27 किलो था.

वारदात के बाद मुथूट की महिला कर्मचारी टीना शर्मा बहुत डरी हुई थी. गर्भवती टीना शर्मा वारदात के बारे में पुलिस को बताते हुए रोने लगी. कर्मचारियों में से मीनाक्षी ने बताया कि बदमाश बोलचाल से उत्तर प्रदेश या हरियाणा के लग रहे थे. उन में एक की उम्र करीब 35 साल थी, जबकि बाकी लुटेरे 25 से 30 साल के थे.

मानसरोवर के भीड़भाड़ वाले इलाके में दिनदहाड़े इतनी बड़ी लूट हो गई, लेकिन किसी को इस का पता तक नहीं चला. इस का कारण यह था कि मुथूट फाइनैंस के पहली मंजिल स्थित औफिस में पहुंचने के लिए सीढि़यां दुकानों के पीछे से हैं. मानसरोवर में रजतपथ चौराहे के कौर्नर पर 2 मंजिला इमारत में ग्राउंड फ्लोर पर भारतीय स्टेट बैंक की शाखा और कपड़ों के शोरूम हैं. पहली मंजिल पर मणप्पुरम गोल्ड लोन कंपनी और एक तरफ मुथूट फाइनैंस के औफिस हैं. यह पूरा इलाका भीड़भाड़ वाला है.

पुलिस ने मुथूट फाइनैंस कार्यालय में तथा आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज खंगाले. इन फुटेज में सब से पहले अंदर आए औरेंज टोपी वाले बदमाश का चेहरा साफ नजर आ रहा था. बाकी तीनों बदमाशों की कदकाठी और हावभाव ही नजर आए थे. आसपास की फुटेज से पता चला कि बदमाश 2 मोटरसाइकिलों से आए थे. उन की मोटरसाइकिलों पर नंबर नहीं थे. इन्हीं मोटरसाइकिलों से वे सोना और नकदी ले कर भाग गए थे.

मुथूट के औफिस से लूटपाट के बाद सीढि़यों से उतरते हुए बदमाशों ने स्ट्रांगरूम की चाबी फेंकी थी. चाबी को सूंघ कर पुलिस के डौग ने बदमाशों का उन की गंध के आधार पर पीछा किया. डौग स्क्वायड रजतपथ चौराहे से मध्यम मार्ग से हो कर स्वर्णपथ चौराहे पर पहुंचा. वहां से वह न्यू सांगानेर रोड की तरफ गया, लेकिन कुछ देर पहले तेज बारिश होने से वहां पानी भर गया था. इस से डौग स्क्वायड को बदमाशों की आगे की गंध नहीं मिल सकी. बदमाशों की तलाश में पुलिस ने शहर में चारों तरफ कड़ी नाकेबंदी कराई, लेकिन लुटेरों का कोई सुराग नहीं मिला. कंपनी के गार्ड को थाने ले जा कर पुलिस ने पूछताछ की, लेकिन उस से भी कुछ खास जानकारी नहीं मिली. अंतत: पुलिस ने उसे छोड़ दिया. पुलिस ने कंपनी के अन्य कर्मचारियों की भूमिका की भी जांचपड़ताल की.

दूसरी ओर, लूट की वारदात होने के बाद मुथूट फाइनैंस में सोने के जेवर रख कर लोन लेने वाले ग्राहकों का तांता लग गया. ये ग्राहक अपने सोने के जेवर लूटे जाने की बात से चिंतित थे. इस पर कंपनी के अधिकारियों ने ग्राहकों को बताया कि लूटे गए सोने का बीमा करवाया हुआ है. किसी भी ग्राहक का नुकसान नहीं होने दिया जाएगा.

मुथूट फाइनैंस से करीब 8 करोड़ का सोना और इस से एक दिन पहले आदर्श नगर के राजापार्क में धु्रव मार्ग स्थित यूको बैंक की तिलक नगर शाखा में हुई 15 लाख रुपए की लूट ने जयपुर पुलिस की नींद उड़ा दी थी.

पुलिस ने बदमाशों की तलाश में जयपुर शहर सहित आसपास के जिलों में नाकेबंदी कराई, लेकिन बदमाशों का पता नहीं चला. पुलिस ने अनुमान लगाया कि लुटेरे जयपुर-आगरा हाईवे या जयपुर-दिल्ली हाईवे पर हो कर निकल भागे थे.

इन दोनों हाईवे की दूरी बैंक से दो-ढाई किलोमीटर है. जिस तरीके से वारदात हुई थी, उस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि बदमाशों ने कई दिन रैकी होगी. यह भी अनुमान लगाया गया कि बदमाशों के कुछ अन्य सहयोगी भी थे, जो बाहर खडे़ रह कर नजर रखे हुए थे.

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पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने मातहत अधिकारियों की बैठक कर वारदात का पता लगाने के लिए विशेष टीम का गठन किया. मुथूट फाइनैंस में हुई 8 करोड़ के सोने की लूट का राज फाश करने की जिम्मेदारी डीसीपी क्राइम डा. विकास पाठक, डीसीपी साउथ योगेश दाधीच और एसओजी के एएसपी करण शर्मा के नेतृत्व वाली टीम को सौंपी गई. पुलिस ने पूरे राजस्थान सहित उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व हरियाणा पुलिस से लूट और डकैती की वारदातों और उन्हें अंजाम देने वाले गिरोहों की जानकारी मांगी.

पुलिस को शक था कि वारदात करने वाले बदमाश लूटे गए सोने को कहीं किसी कंपनी में गिरवी न रख दें. पुलिस राजस्थान के अलावा अन्य राज्यों में संचालित ऐसी कंपनियों से संपर्क बनाए हुए थे. जयपुर में कुछ साल पहले गोल्ड लोन फर्म में हुई डकैती के लूटे गए सोने को बदमाशों ने दूसरी गोल्ड लोन कंपनी में गिरवी रख कर रकम ले ली थी.

दिलचस्प बात यह है कि देश का करीब 47 प्रतिशत सोना केरल की 3 कंपनियों मुथूट फाइनैंस, मणप्पुरम फाइनैंस व मुथूट फिनकौर्प के पास है. सितंबर 2016 तक इन कंपनियों के पास 263 टन सोना था. सोने की कीमत 7 खरब 36 अरब 40 करोड़ रुपए आंकी गई थी. इन में मुथूट फाइनैंस की गोल्ड होल्डिंग करीब 150 टन है. यह सोना कई अमीर देशों के स्वर्ण भंडार से भी ज्यादा है. मणप्पुरम फाइनैंस के पास 65.9 टन एवं मुथूट फिनकौर्प के पास 46.88 टन सोना होने का अनुमान है. जबकि भारत की कुल गोल्ड होल्डिंग 558 टन है.

देश की सब से बड़ी गोल्ड फाइनैंसिंग कंपनी के रूप में पहचान रखने वाली मुथूट फाइनैंस कंपनी की विभिन्न शाखाओं में 4 साल के दौरान लूट व डकैती की 7 वारदातें हुई हैं. इन में करीब डेढ़ क्विंटल सोना लूटा गया है. सन 2013 में 21 फरवरी को लखनऊ में इस कंपनी की शाखा से 6 करोड़ रुपए से ज्यादा का करीब 20 किलो सोना लूटा गया था. सन 2015 में 22 फरवरी को ढाई करोड़ रुपए से अधिक के करीब 10 किलो सोने की डकैती हुई. वर्ष 2016 में 30 जनवरी को पश्चिम बंगाल के चौबीस परगना जिले में 9 करोड़ रुपए मूल्य का 30 किलो सोना लूटा गया.

पिछले साल ही 16 मई, 2016 को पंजाब के पटियाला में करीब 3 करोड़ रुपए के 11 किलो सोने की लूट हुई. 28 दिसंबर, 2016 को हैदराबाद में 12 करोड़ रुपए का करीब 40 किलो सोना लूटा गया. 23 फरवरी, 2017 को पश्चिम बंगाल के पूर्वी कोलकाता स्थित बेनियापुकुर में 5 करोड़ से ज्यादा के करीब 20 किलो सोने की डकैती हुई.

जयपुर पुलिस ने 21 जुलाई, 2017 को मुथूट फाइनैंस की शाखा से करीब 27 किलो सोना लूटने के मामले में 21 अगस्त, 2017 को बिहार की राजधानी पटना से 3 आरोपियों शुभम उर्फ सेतू उर्फ शिब्बू भूमिहार, पंकज उर्फ बुल्ला यादव और विशाल कुमार उर्फ विक्की उर्फ रहमान यादव को गिरफ्तार किया. ये तीनों आरोपी बिहार के वैशाली जिले के हाजीपुर के रहने वाले थे. इन लोगों ने पुलिस को बताया कि उन्होंने यह वारदात गिरोह के सरगना सुबोध उर्फ राजीव और अन्नू उर्फ राहुल के साथ मिल कर की थी. लूट का सोना सुबोध के पास था.

योजना के अनुसार, इन लोगों ने 3 जुलाई को जयपुर आ कर मुथूट की शाखाओं की रैकी की. इस में मानसरोवर की शाखा को वारदात के लिए चुना गया. इस के बाद वारदात के लिए उन्होंने आगरा से एक नई और एक पुरानी मोटरसाइकिल खरीदी. इस के बाद वारदात से 5 दिन पहले राजस्थान के टोंक जिले के कस्बा निवाई पहुंच कर शुभम, पंकज व विशाल ने खुद को नेशनल हाईवे बनाने वाली कंपनी का अधिकारी बता कर निवाई में साढ़े 4 हजार रुपए महीना किराए पर मकान लिया था.

निवाई में उन्होंने दिल्ली से एक कार मंगवाई. यह पुरानी कार 40 हजार रुपए में खरीदी गई थी. 21 जुलाई को कार व चालक को निवाई में छोड़ कर वहां से 2 मोटरसाइकिलों पर सवार हो कर विशाल, सुबोध, अन्नू व शुभम जयपुर में मानसरोवर स्थित मुथूट फाइनैंस की शाखा पर पहुंचे.

सब से पहले विशाल अंदर घुसा. फिर सुबोध, अन्नू व शुभम अंदर गए. सुबोध व अन्नू ने बैग में सोना भरा. वारदात के बाद भागने के लिए इन्होंने पहले ही गूगल मैप देख कर रूट तय कर लिया था. वारदात के बाद विशाल व सुबोध एक मोटरसाइकिल से निवाई पहुंचे और कार में सोना रख कर पटना चले गए.

अन्नू व शुभम दूसरी मोटरसाइकिल से जयपुर से अजमेर पहुंचे और हाईवे पर बाइक छोड़ कर बस से आगरा गए. आगरा से ये लोग पटना चले गए. रैकी करने जयपुर आने और वारदात के बाद पटना में व्यवस्था संभालने में पंकज जुटा हुआ था. इस वारदात के लिए सुबोध ने अन्नू को 8 लाख रुपए, विशाल को 5 लाख और शुभम को एक लाख रुपए दिए थे.

3 आरोपियों की गिरफ्तारी के 2 दिन बाद पुलिस ने चौथे आरोपी अन्नू को यूपी की एसटीएफ की मदद से झारखंड के धनबाद से पकड़ लिया. बाद में 20 जनवरी, 2018 को जयपुर पुलिस ने पटना एसटीएफ की मदद से मुथूट फाइनैंस से सोना लूट के मास्टरमाइंड सुबोध सिंह उर्फ राजीव को पकड़ लिया. उस की निशानदेही पर 15 किलो सोना बरामद किया गया. सुबोध ने नागपुर व कोलकाता में भी डकैती की वारदातें करना कबूल किया.

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पुलिस का मानना है कि वह करीब 15 साल से इस तरह की वारदातें कर रहा है. उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक व छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों की पुलिस उसे तलाश रही थी. इस से पहले वह छत्तीसगढ़ में पकड़ा जा चुका था. 10-12 साल पहले सुबोध ने चेन्नै में बैंक लूटा था, तब वहां की पुलिस ने मुठभेड़ में उस के 3-4 साथी मार दिए थे, लेकिन सुबोध बच गया था.

सुबोध की निशानदेही पर पुलिस ने वह कार भी बरामद कर ली, जिस में सोना रख कर वह निवाई से पटना गया था. सुबोध के भाई रणजीत सिंह पर बिहार में हजारों लोगों से ठगी करने का आरोप है.

सुबोध पटना जिले का टौपर स्टूडेंट था. 10वीं में उस के 94 प्रतिशत अंक आए थे, लेकिन उसे नेपाल में कैसीनो जाने का शौक लग गया, जिस में वह लाखों रुपए हार गया था. इस के बाद उस ने लूट की वारदातें शुरू कीं. फिर गिरोह बना कर बैंक व गोल्ड लोन कंपनियों में डकैती डालने लगा. अब उस की महत्त्वाकांक्षा बिहार में चुनाव लड़ने की थी.

2 फरवरी को पुलिस ने इस मामले में पटना के रहने वाले छठे आरोपी राजसागर को गिरफ्तार कर लिया. वह लग्जरी कारों से अपने साथियों को घटनास्थल पर छोड़ने व वारदात के बाद वापस ले जाने का काम करता था. उस के खिलाफ लूट व डकैती के कई मामले दर्ज हैं. राजसागर ही सुबोध को कार से निवाई से पटना ले गया था.

– कथा पुलिस सूत्रों व विभिन्न रिपोर्ट्स पर आधारित

डौक्टर का काला धंधा

14 सितंबर, 2017 को उत्तराखंड की राजधानी देहरादून स्थित पुलिस मुख्यालय में चल रही उस बैठक में कई पुलिस अधिकारी मौजूद थे. इस मीटिंग में 11 सितंबर को फरार हुए देश के सब से बड़े किडनी सौदागर डा. अमित की गिरफ्तारी को ले कर रायमशविरा हो रहा था.

डा. अमित की सैकड़ों करोड़ की संपत्ति थी और वह हाईप्रोफाइल लाइफ जीता था. उसे विश्व की 14 भाषाओं का ज्ञान था, सैकड़ों बार विदेश यात्रा कर चुका था. उस के व्यावसायिक तार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जुड़े थे.

खाड़ी देशों के अमीर शेखों से ले कर कई देशों के लोग उस के क्लाइंट रह चुके थे. वह अपने देश के गरीबों को रुपयों का लालच दे कर उन की किडनी खरीद कर अमीरों को बेचता था. डा. अमित राउत किडनी सौदागर भी था और किडनी ट्रांसप्लांट करने वाला डाक्टर भी. इस काम में वह लाखों के वारेन्यारे करता था.

विचारविमर्श के बाद मीटिंग खत्म हो गई. डीजीपी अनिल कुमार रतूड़ी के निर्देशन में डीआईजी पुष्पक ज्योति और एसएसपी निवेदिता कुकरेती इस पूरे मामले की मौनिटरिंग कर रही थीं. सभी की नजर डा. अमित राउत पर टिकी थी.

दरअसल, 11 सितंबर, 2017 की सुबह देहरादून की एसएसपी निवेदिता कुकरेती को सूचना मिली थी कि डोईवाला थाना क्षेत्र के लाल तप्पड़ स्थित उत्तराखंड डेंटल कालेज में बने गंगोत्री चैरिटेबल हौस्पिटल में किडनी निकालने और ट्रांसप्लांट करने का अवैध कारोबार किया जा रहा है. यह भी पता चला था कि जो 4 लोग किडनी बेचने के लिए आए थे, वे हरिद्वार के रास्ते दिल्ली जाने वाले हैं.

एसएसपी ने अविलंब एक पुलिस टीम का गठन कर दिया, जिस में थाना डोईवाला के इंसपेक्टर ओमबीर सिंह रावत, हरिद्वार के इंसपेक्टर प्रदीप बिष्ट, एसआई सुरेश बलोनी, दिनेश सती, राकेश पंवार, महिला एसआई मंजुल रावत, आदित्या सैनी, कांस्टेबल गब्बर सिंह, भूपेंद्र सिंह, विनोद, नीरज और राजीव को शामिल किया गया. पुलिस टीम ने सप्तऋषि चौकी के पास चैकिंग अभियान शुरू कर दिया. इसी बीच पुलिस ने एक इनोवा कार नंबर यूए 08 टीए 5119 को रोका. कार की चालक सीट पर एक युवक बैठा था, जबकि कार की पिछली सीट पर 2 महिलाएं व 3 पुरुष बैठे थे.

पुलिस को देख कर पीछे बैठे लोगों में से एक व्यक्ति बुरी तरह घबरा गया और उस ने भागने का प्रयास किया, लेकिन पुलिस ने उसे दबोच लिया.

पुलिस पूछताछ में उन लोगों ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर पुलिसकर्मियों के रोंगटे खड़े हो गए. कार चालक का नाम दीपक था, जिसे किराए पर बुलाया गया था. जबकि अन्य लोगों में जावेद खान निवासी एस.बी. रोड सांताकु्रज, मुंबई, भावजी भाई निवासी जिला खेड़ा, गुजरात, शेखताज अली, 42 साल की सुसामा बनर्जी और 32 साल की कृष्णा दास. सुसामा बनर्जी और कृष्णा दास दक्षिण परगना, वेस्ट बंगाल की रहने वाली थीं.

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इन लोगों ने पुलिस को बताया कि अस्पताल का एजेंट जावेद खान उन्हें 3 लाख रुपए में किडनी खरीदने का वादा कर के अस्पताल लाया था. अस्पताल में कृष्णा दास व शेखताज अली की किडनी निकाल ली गई थी.

भावजी भाई और सुसामा बनर्जी को किडनी निकालने के लिए ले जाया गया. उन की किडनी निकालने की तैयारियां शुरू कर दी गई थीं. उसी बीच ठीक होने पर कृष्णा दास व शेखताज ने किडनी के बदले रुपए देने की मांग की तो एजेंट व अस्पताल संचालकों ने टालमटोल शुरू कर दी. यह देख कर भावजी भाई व सुसामा ने किडनी देने से इनकार कर दिया.

हंगामा बढ़ता देख अस्पताल वालों ने उन्हें एजेंट के साथ वापस भेज दिया. पैसों को ले कर हुए इस झगड़े की भनक किसी तरह सनीपुर कोतवाली में तैनात कांस्टेबल पंकज कुमार को लग गई थी.

झगड़ा किस बात को ले कर था, यह राज भी पता चल गया था. इस के बाद उस ने जरूरी जानकारियां जुटा कर एसएसपी निवेदिता कुकरेती को इस की सूचना दे दी थी. पुलिस ने कार की तलाशी ली तो उस में से ओमान सहित कुछ देशों के एयर टिकट मिले, जिस से पता चलता था कि गिरोह के तार विदेशों तक जुड़े हैं.

पुलिस ने जावेद खान से पूछताछ की तो उस ने चौंकाने वाला खुलासा किया कि वह हौस्पिटल के संचालक डा. अमित के लिए काम करता था. वह देश के अलगअलग हिस्सों से गरीब लोगों को रुपयों का लालच दे कर देहरादून लाता था. किडनी देने वालों को 3 लाख रुपए मिलते थे, जबकि उसे कमीशन मिलता था.

जावेद ने यह भी बताया कि हौस्पिटल के संचालक किडनी की खरीदफरोख्त करने के साथसाथ किडनी ट्रांसप्लांट भी करते थे. इस काम में उन्हें मोटी कमाई होती थी. यह खबर डीजीपी अनिल रतूड़ी, एडीजे (कानून व्यवस्था) राम सिंह मीना, डीआईजी पुष्पक ज्योति को मिली तो उन्होंने एसएसपी को इस मामले में तत्काल सख्त काररवाई करने के निर्देश दिए.

एसएसपी के निर्देशन में एसपी देहात सरिता डोभाल, एएसपी लोकेश्वर सिंह, मंजूनाथ टीसी सहित कई थानों की पुलिस टीम ने हौस्पिटल में रेड की, लेकिन तब तक अस्पताल का ज्यादातर स्टाफ और डा. अमित फरार हो चुका था.

स्वास्थ्य विभाग व एफएसएल की टीमों को भी मौके पर बुलवा लिया गया था. जांच के दौरान कई ऐसी दवाइयां मिलीं, जो किडनी ट्रांसप्लांट में काम आती थीं. औपरेशन थिएटर में भी ऐसे इंस्ट्रूमेंट मौजूद थे. पुलिस ने जरूरी रिकौर्ड व सबूतों को कब्जे में ले कर अस्पताल को सील कर दिया.

केस दर्ज कर के कार्रवाई

पुलिस ने इस संबंध में थाना डोईवाला में जावेद के अलावा डा. अमित कुमार, डा. अक्षय उर्फ राउत, डा. संजय दास, सुषमा कुमारी, राजीव चौधरी, चंदना गुडि़या के खिलाफ भादंवि की धारा 420, 120बी, 370, 342 और मानव अंगों के प्रत्यारोपण अधिनियम 1994 की धारा 18, 19, 20के  अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर लिया.

डा. अमित के अलावा अन्य लोग उस की टीम का हिस्सा थे. पुलिस ने भावजी भाई, शेखताज अली, सुसामा बनर्जी और कृष्णा दास को मैडिकल परीक्षण हेतु अस्पताल में भर्ती करा दिया. बाद में उन्हें कोर्ट में पेश कर के धारा 164 के तहत उन के बयान दर्ज कराए गए. पुलिस ने जरूरी पूछताछ के बाद जावेद को अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया. पुलिस जांच के साथ ही डा. अमित और उस के साथियों की तलाश में जुट गई. विवेचना के दौरान पुलिस ने अमित के साथियों अनुपमा, नसीम, प्रदीप उर्फ बिल्लू, सरला व अभिषेक को भी आरोपी बनाया.

किडनी के अवैध कारोबार के अब तक के सब से बड़े खुलासे ने पुलिस से ले कर सुरक्षा एजेंसियों तक को सकते में डाल दिया था. जो गंभीर बातें सामने आईं, उन के अनुसार, पिछले कुछ समय में खाड़ी देशों के शेखों के अलावा यूरोप व एशियाई देशों के विदेशी डा. अमित के यहां किडनी ट्रांसप्लांट करा कर जा चुके थे. ऐसे लोग टूरिस्ट वीजा ले कर उत्तराखंड घूमने के बहाने आते थे, लेकिन उन का वास्तविक मकसद किडनी ट्रांसप्लांट कराना होता था.

5 टीमें लगाई गईं

मामला गंभीर था, लिहाजा प्रदेश सरकार के प्रवक्ता कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक ने भी इस मामले में विस्तृत जांच करने के आदेश दे दिए. डा. अमित व उस के साथियों की गिरफ्तारी के लिए 5 पुलिस टीमों का गठन किया गया. 48 घंटे बीत चुके थे, लेकिन डाक्टर का कुछ पता नहीं चल रहा था. आरोपी विदेश भाग सकता था, इसलिए लुकआउट नोटिस जारी कर के हवाई अड्डों को भी सूचना दे दी गई थी. इसी बीच 13 सितंबर को पुलिस को सूचना मिली कि आरोपी डाक्टर डोईवाला इलाके के ही नेचर विला रिसौर्ट में रुका हो सकता है. पुलिस टीम सर्च वारंट ले कर वहां पहुंची. वहां की तलाशी ले कर पुलिस ने एंट्री रजिस्टर को अपने कब्जे में ले लिया. लेकिन आरोपी वहां नहीं मिला.

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पुलिस ने कमरा नंबर 103 की खासतौर पर तलाशी ली और जरूरी चीजों की जांच पड़ताल की. पुलिस डा. अमित व उस के साथियों की सरगर्मी से तलाश में जुटी थी. उस के करीबियों को उठा कर पूछताछ की जा रही थी. डा. अमित सहित सभी फरार आरोपियों के मोबाइल भी स्विच्ड औफ  आ रहे थे. पुलिस उन की काल डिटेल्स हासिल कर चुकी थी, लेकिन उस से भी कोई मदद नहीं मिल रही थी.

इस बीच पुलिस ने डा. अमित से जुडे़ 9 बैंक खातों को सीज करा दिया. डा. अमित की फरारी पुलिस के लिए चुनौती बन गई थी. पुलिस टीमों के काम की मौनिटरिंग आला अधिकारी खुद कर रहे थे. 14 सितंबर को एएसपी लोकेश्वर सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम डा. अमित के करीबियों की मोबाइल सर्विलांस व मुखबिरों से मिली सूचना के जरिए दिल्ली होते हुए पहले चंडीगढ़ और फिर पंचकूला पहुंची. दरअसल, डा. अमित के एक मोबाइल नंबर की लास्ट लोकेशन वहीं मिली थी, इसलिए पुलिस ने अपनी जांच का दायरा बढ़ा दिया था.

देहरादून से पंचकूला

इस पुलिस टीम मे एसओजी प्रभारी पी.डी. भट्ट, थानाप्रभारी रानीपोखरी धर्मेंद्र सिंह, एसएसआई मनोज रावत, रायवाला थानाप्रभारी आशीष गोसाई, एसआई ब्रजपाल सिंह, भुवनचंद्र पुजारी, मंजुल रावत, दिनेश सिंह सती, योगेश कुमार व दीपक सिंह पंवार आदि शामिल थे. पुलिस के पास सूचना थी कि डा. अमित व उस के साथी पंचकूला की साहिलपुरी कालोनी के सैक्टर-8 स्थित एक घर में छिपे हैं, लेकिन पुलिस ने वहां दबिश दी तो घर बंद मिला. अगले दिन यानी 15 सितंबर को पुलिस टीम सैक्टर-18 स्थित फाइव स्टार होटल पल्लवी पहुंची. होटल की पार्किंग में एक बीएमडब्ल्यू कार नंबर-डीएल 3 एफटी 5000 व मर्सिडीज कार नंबर यूपी 16 एआर 1100 खडी थीं, जिन्हें देख कर पुलिस को शक हुआ.

पुलिस टीम ने होटल का रजिस्टर देख कर और डा. अमित का फोटो दिखा कर होटल के स्टाफ से पूछमाछ की तो उन्होंने ऐसे व्यक्ति का अपने यहां ठहरना बताया. पुलिस ने एक कमरे मे दस्तक दी तो दरवाजा एक युवती ने खोला. पुलिस को देख कर युवती बुरी तरह घबरा गई. पुलिस उसे किनारे कर के अंदर दाखिल हो गई. डा. अमित कमरे में आराम से बैड पर लेटा विदेशी खजूर खा रहा था. पुलिस को देख कर उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं.

पुलिस ने डा. अमित के साथसाथ युवती व दूसरे कमरे में रुके उन के 2 साथियों को गिरफ्तार कर लिया. डा. अमित कसमसा कर रह गया. पकड़े गए लोगों में नर्स सरला, जीवन और मैनेजमैंट का काम देखने वाला प्रदीप शामिल था. पुलिस ने उन के कब्जे से दोनों कारों के अलावा 5 मोबाइल फोन, जिन में 2 आईफोन थे और 33 लाख 73 हजार रुपए नकद बरामद किए. डा. अमित 2 हजार के नए नोटों की गड्डियां बैग में लिए घूम रहा था. पुलिस टीम सभी को गिरफ्तार कर के देहरादून ले आई.

डा. अमित सहित अन्य से पुलिस ने गहराई से पूछताछ की. जांच व पूछताछ में डा. अमित के किडनी के गोरखधंधे की ऐसी कहानी निकल कर सामने आई, जिस ने पुलिस के आला अधिकारियों को भी चौंका दिया. कालाधंधा करने वाला यह डाक्टर देश का सब से बड़ा किडनी सौदागर निकला.

64 वर्षीय अमित राउत मूलरूप से महाराष्ट्र का रहने वाला था और पिछले कई सालों से इस काम में लिप्त था. बताते हैं कि एक नेफ्रोलौजिस्ट के अधीन काम कर के उस ने किडनी ट्रांसप्लांट में महारथ हासिल की और फिर राह से भटक कर रैकेट चलाना शुरू कर दिया. सन 1993 में उस पर मुंबई में किडनी ट्रांसप्लांट का पहला केस दर्ज हुआ. उसे जेल जाना पड़ा. तब तक देश में न तो कोई ऐसा कानून था और न ही ऐसी कोई परिभाषा कि मानव अंगों का प्रत्यारोपण किन मामलों में सही है.

सरकार ने इसे गंभीरता से ले कर मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम बना दिया, जिस में स्पष्ट किया गया कि डोनर कौन हो सकता है और ब्लड रिलेशन की परिभाषा क्या है. जेल से जमानत पर आ कर अमित जयपुर गया और फिर से इसी काम में जुट गया.

ठिकाने बदलबदल कर वह अपना काम करता रहा. जिस शहर या राज्य में भी वह पकड़ा जाता, उसे हमेशा के लिए छोड़ देता. न उसे कानून का डर था और न शर्म. उत्तराखंड उसे अपने लिए सुरक्षित ठिकाना लगा. कई साल पहले उस ने अपने एक दोस्त राजीव चौधरी के साथ मिल कर उत्तराखंड के डेंटल कालेज के अंदर 50 लाख रुपए की सालाना लीज पर जगह ले कर गंगोत्री चैरिटेबल हौस्पिटल खोल लिया. चैरिटेबल की आड़ भर थी, वास्तव में अमित का असली धंधा कुछ और था. कई लोगों की अच्छेबुरे कामों को ले कर अपनी धारणा होती है.

किडनी ट्रांसप्लांट को ले कर डा. अमित की धारणा थी कि यह सामाजिक काम है. इस से लोगों की जिंदगी बचती है. कानून से खेलने की उस की जैसे आदत बन चुकी थी. क्योंकि इस में मोटी कमाई थी. वह जरूरतमंद गरीब लोगों की किडनी 2 से 3 लाख रुपए में लेता था, जबकि उसे 40 से 50 लाख रुपए में ट्रांसप्लांट करता था. अपने इस काम का वह इतना एक्सपर्ट हो चुका था कि उस का कभी भी कोई औपरेशन असफल नहीं हुआ.

दूसरे डाक्टरों को इस काम में 6 घंटे लगते थे, जबकि यह काम वह महज 2 से ढाई घंटे में कर देता था. वह देशभर में फैले अपने एजेंटों के जरिए कई बार डोनरों को हवाईजहाज की यात्रा कराता था. गरीब डोनर स्वेच्छा से किडनी देते थे और ट्रांसप्लांट कराने वाले विदेशी होते थे, इसलिए मामला खुलता नहीं था. अमित का पूरा स्टाफ उस के इस धंधे को जानता था. लेकिन वह उन्हें न सिर्फ अच्छा पैसा देता था, बल्कि अपने धंधे को समाज सेवा बताता था. अमित शातिर दिमाग था, वह 5 मोबाइल नंबरों का इस्तेमाल करता था. इन में देशी एजेंटों, विदेशी एजेंटों, डाक्टरों व खरीददारों के लिए अलगअलग नंबर थे.

अरबों की संपत्ति का मालिक

अमित का अंतरराष्ट्रीय मैनेजमेंट नेटवर्क अमेरिका, श्रीलंका, नेपाल, तुर्किस्तान, ओमान, दुबई, इंग्लैंड समेत एक दर्जन से भी ज्यादा देशों में फैला हुआ था. विदेशी एजेंटों से संपर्क के लिए उस ने औनलाइन सिस्टम बनाया हुआ था. वह बड़े रईसों के औपरेशन के लिए विदेश भी जाता था. डा. अमित दिमाग का इतना तेज था कि उस की 14 भाषाओं पर पकड़ थी. इसी धंधे से अमित ने कई सौ करोड़ की संपत्ति जुटा ली थी.

भारत के दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मणिपुर, पंजाब, पश्चिम बंगाल व तमिलनाडु राज्यों के अलावा कनाडा, आस्ट्रेलिया, ग्रीस, नेपाल व हौंगकौंग में भी उस की संपत्तियां हैं.

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देहरादून में ही उस की 50 बीघा से ज्यादा जमीन है. मनी लौंड्रिंग के केस में प्रवर्तन निदेशालय उस की संपत्तियों को जब्त भी करता रहा है. लेकिन डा. अमित की कमाई ही इतनी थी कि उस पर कोई असर नहीं पड़ा. 11 सितंबर को पैसों को ले कर डोनर से झगड़ा न हुआ होता तो शायद ही उस की पोल खुलती.

पुलिस द्वारा एजेंट के पकड़े जाने की खबर लगते ही वह अपने खास स्टाफ के साथ फरार हो गया था. अमित जानता था कि पुलिस उसे भूखे शेर की तरह ढूंढ रही है. वह छिपताछिपाता पंचकूला के होटल में जा कर रुका. डा. अमित पूरी तरह आश्वस्त था कि पुलिस उस तक पहुंच नहीं पाएगी. वहां से उस का इरादा नेपाल भागने का था, लेकिन उस से पहले ही वह पुलिस की गिरफ्त में आ गया.

किडनी रैकेट के सरगना डा. अमित की फैमिली लाइफ भी अजीब निकली. उस की पहली शादी सुनीता के साथ हुई थी, जबकि दूसरी बीवी पूनम कनाडा में है. उस ने तीसरी शादी बुलबुल नाम की महिला से करने की बात पुलिस को बताई.

खुद को समाज सेवी समझता था डाक्टर

खास बात यह थी कि वह चौथी शादी करने की भी तैयारी में था, लेकिन किडनी कांड के उछलने के बाद उस की योजना पर पानी फिर गया. डा. अमित की पहली पत्नी का बेटा अक्षय एमबीबीएस और एमडी डिग्री धारक है और अमेरिका में रहता है. अपने काले धंधे को ले कर अमित को कोई अफसोस नहीं है. उस का कहना था कि कानून की नजर में वह भले ही अपराधी हो, लेकिन उस ने सैकड़ों जिंदगियां बचाई हैं. उन सब की दुआएं उस के साथ हैं.

पुलिस ने अमित सहित सभी आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक अमित की जमानत नहीं हो सकी थी. जबकि पुलिस उस के अन्य साथियों को तलाश रही थी.

17 सितंबर को पुलिस ने अमित के दोस्त राजीव चौधरी (जो अस्पताल के संचालन का काम देखता था) की पत्नी अनुपमा, मैडिकल स्टोर संचालक अभिषेक व अमित के एक अन्य साथी जगदीश को भी गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया था. राजीव के साथ अनुपमा भी हौस्पिटल का काम देखती थी. इतना ही नहीं, सर्जरी के लिए खरीदी जाने वाली दवाओं का भुगतान अनुपमा के खातों से ही होता था. पूछताछ के दौरान इन लोगों ने भी अमित के गोरधखंधे की पोल खोली है.

–  कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बाबाओं की अंधभक्ति का चक्रव्यूह

कुछ समय पहले की बात है. टैलीविजन के खबरिया चैनल और अखबार चीखचीख कर कह रहे थे कि डेरा सच्चा सौदा के गुरु राम रहीम को दिए जज के फैसले के चलते उन के अनुयायियों ने पंचकुला को धूंधूं कर जला डाला. हर तरफ आग ही आग, हिंसा पसरी हुई थी. सवाल उठा कि ये बाबा के कैसे अनुयायी हैं, जो हिंसक हो उठे? क्या यह भारत की ऐसी पहली घटना थी? क्या इस से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था?

एक जानेमाने अखबार से मालूम हुआ कि अदालतों में चल रहे ऐसे मुकदमों की फेहरिस्त बहुत लंबी है.

पिछले साल उत्तर प्रदेश में बाराबंकी जिले के एक बाबा परमानंद को गिरफ्तार किया गया था. औरतों के साथ जिस्मानी संबंध बनाते हुए उन के वीडियो सोशल मीडिया पर आए थे. अगर दक्षिण भारत की बात करें, तो स्वामी नित्यानंद की सैक्स सीडी साल 2010 में सामने आई थी.

इस तरह की घटनाएं बारबार होती हैं और हर बार अंधभक्ति की चपेट में आई जनता छली जाती रही है. कैसी धर्मांधता है यह? क्या हमारी सोचनेसमझने की ताकत खत्म हो चुकी है?

जिस उम्र में बच्चे खेलते हैं, जवान होती लड़कियां आनी वाली जिंदगी के सपने बुनती हैं, उस उम्र में उन को धार्मिक जगहों पर सेवा के काम में भेज कर क्या सच में पुण्य कमाया जा सकता है?

सड़क पर घायल पड़े किसी इनसान को देख लोग मुंह मोड़ कर चल देते हैं, मुसीबत में पड़े शख्स से किनारा कर लेते हैं, पर किसी बाबा पर आंच आ जाए, तो बवाल कर देते हैं. क्या यही धर्म है?

क्या वजह है इस धर्मांधता की? इस बारे में कई संस्थानों से जुड़े लोगों से बात की गई, तो मालूम हुआ कि कहीं न कहीं लोग शांति की तलाश में इन आश्रमों का रुख करते हैं.

भेदभाव भरा बरताव

आज समाज में फैले जातिगत भेदभाव, ऊंचनीच व अमीरीगरीबी का फर्क क्या लोगों को मजबूर नहीं करता इन बाबाओं की शरण में जाने को? अमीर दिनोंदिन अमीर व गरीब और गरीब होता जा रहा है. ऐसे में इन आश्रमों से अगर किसी गरीब को मुट्ठीभर अनाज और तन ढकने को कपड़ा मिल जाए, तो ये लोग उसे अपना मंदिर समझने लगते हैं और समाज से कटे हुए दलित, बाबा से मिली इज्जत के बदले व समाज से बदला लेने के लिए हिंसा करने पर उतारू हो जाते हैं.

अमीर अपने काले धन से किसी को दो गज जमीन नहीं देगा, पर इन मठों के नाम पर धर्मशालाएं बनवाएगा व जमीनें दान कर देगा, ताकि उस का काला धन भी ठिकाने लग जाए और समाज में रुतबा भी बढ़ जाए.

इस तरह यहां गरीब व अमीर सभी तरह के अंधभक्तों का स्वागत होता है. पर भेदभाव भी होता है. अमीर झाड़ू ले कर सेवा के नाम पर सिर्फ तसवीरें खिंचवाते हैं और गरीब को तसवीरें दिखा कर वही झाड़ू हमेशा के लिए थमा दी जाती है.

घरेलू हिंसा जिम्मेदार

क्या आएदिन घरपरिवारों में होने वाली हिंसा औरतों व बच्चों को इस अंधभक्ति की तरफ नहीं खींचती है? क्यों कोई अपने बच्चे इन बाबाओं व आश्रमों के सुपुर्द कर देता है? क्यों कोई औरत अपने परिवार को हाशिए पर रख कर इन बाबाओं के मायाजाल में फंसती चली जाती है?

अगर गंभीरता से सोचा जाए, तो शायद वह अपने वजूद की तलाश में यह रफ्तार पकड़ लेती है. जहां परिवारों में औरतों को इज्जत नहीं मिलती, उन्हें यहां प्यार के दो बोल भले महसूस होते हैं और वे सत्संग व प्रवचनों के बहाने इन की ओर खिंची चली जाती हैं और वहां पर हाजिरी देना अपना धर्म समझने लगती हैं.

टूटते परिवार व समाज

कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो इन आश्रमों में जाने वाले ऊंचे तबके के भक्तों की देखादेखी ऐसा करने लगते हैं और इन से जुड़ते चले जाते हैं. अमीर लोग भी इन के कार्यक्रमों व सत्संगों में जाना पसंद करते हैं.

यह सही है कि यह सामाजिक होने का एक जरीया भर है और इनसान सजधज कर कर रहना व संगीत सुनना पसंद करता है, इसलिए इन सत्संगों में उसे क्षणिक खुशी मिलती है.

पर सोचने की बात यह भी है कि यही खुशी वह इन के अनुयायी न बन कर अपने परिवार, दोस्तों व रिश्तेदारो में भी तो ढूंढ़ सकता है? क्या टूटते परिवार, बदलता सामाजिक माहौल इन बाबाओं को राह दिखाने के लिए जिम्मेदार नहीं है?

पीढ़ी दर पीढ़ी अंधभक्ति

कई घरों में इन बाबाओं के लिए खास दर्जा होता है. घर में कुछ अशुभ हुआ, तो बाबा से सलाहमशवरा किया जाता है और अगर कुछ शुभ हुआ, तो भी बाबा को चढ़ावा चढ़ाया जाता है. घर के बड़ेबुजुर्ग यह सब करते हैं व अपनी अगली पीढ़ी को भी मजबूर करते हैं कि वह इस का पालन करे.

ऐसा अकसर अपना कारोबार करने वाले परिवारों में होता है, जहां अगली पीढ़ी पहली पीढ़ी पर निर्भर होती है, इसलिए अगली पीढ़ी न चाहते हुए भी इस अंधभक्ति के चक्रव्यूह में फंस जाती है और इन बाबाओं के आश्रम फलतेफूलते रहते हैं.

कम मेहनत में शौहरत

आजकल इन आश्रमों में दान व चंदे के नाम पर खूब पैसा जमा होता है. इन्हें भी लोगों की जरूरत पड़ती है, ताकि इन का प्रचारप्रसार किया जा सके, इन के नाम के डंके बजाए जा सकें. ऐसे में पढ़ीलिखी बेरोजगार नौजवान पीढ़ी या वे औरतें, जो किसी वजह से नौकरी नहीं कर रही हैं, भी इन संगठनों से खूब जुड़ रही हैं.

जिन औरतों ने कभी सोचा भी न था कि शादी के बाद वे महज घरेलू औरत बन सिर्फ बच्चे ही पालती रह जाएंगी, उन्हें कुछ अलग करने की चाह इन आश्रमों से जुड़ने को मजबूर करती है.

ऐसी औरतें बड़ेबड़े स्टेजों पर खड़ी हो कर भीड़ को संबोधित कर अपनेआप को ऊंचा समझने की गलतफहमी में इन से जुड़ी रहती हैं और इस अंधभक्ति के चक्रव्यूह में फंसती चली जाती हैं.

ऐसी औरतें अपने आसपड़ोस की औरतों के लिए मिसाल बन जाती हैं और देखादेखी दूसरी औरतें भी इन आश्रमों से जुड़ने लगती हैं, जबकि इन के खुद के बच्चे दाइयों के भरोसे पलते हैं. वे भूल जाती हैं कि अपने बच्चे पालने का काम कोई छोटा काम नहीं है, बल्कि बहुत बड़ी जिम्मेदारी है.

हिम्मत हारना

कई बार अपने काम में बारबार नाकाम होने पर भी लोग मठोंमंदिरों का रुख करने लगते हैं. जो काम लगन व मेहनत से होना चाहिए, उस के लिए वे इन बाबाओं से आशीर्वाद लेने पहुंच जाते हैं. वहां आशीर्वाद के साथ मन को बहलाने वाली बातें सुन कर कभीकभार उन के काम बन भी जाते हैं और ऐसे लोग ही इस कामयाबी को बाबा का आशीर्वाद समझ कर उन के अनुयायी हो जाते हैं, जबकि यह हिम्मत, हौसला अगर उन के अपने परिवार से मिला होता, तो वह परिवार एकता के सूत्र में जुड़ जाता और वह सदस्य बाबा से न जुड़ता.

शांति की तलाश में

जब कभी परिवार के किसी सदस्य को कोई लंबी व बड़ी बीमारी का सामना करना पड़ता है, तो पूरा परिवार निराश हो जाता है. ऐसे में जब सभी दरवाजे बंद हों, तो वे इन बाबाओं का दरवाजा खटखटाते हैं और परिवार का सदस्य ठीक हुआ या नहीं, वह तो दूसरी बात है, पर वे अपना समय व दौलत इन आश्रमों में जरूर लुटाते हैं. हो सकता है कि इस से उन्हें शांति मिलती हो, पर यह शांति उन्हें किसी दूसरे नेक काम को कर के भी मिल सकती है.

कुलमिला कर एक इनसान दूसरे इनसान के लिए मददगार साबित हो, तो शायद इन बाबाओं, मठाधीशों का साम्राज्य खत्म हो जाए. धर्म के नाम पर हो रहे इस पाखंड का खात्मा होना चाहिए, तभी सही माने में इनसान अपने इनसानियत के धर्म को समझ सकेगा.

आखिर क्या था कमरा नंबर 104 का रहस्य

अमृतसर के सिटी सैंटर स्थित होटल सिंह इंटरनेशनल के रिसैप्शन पर बैठे मैनेजर दीपक से आने वाले युवक ने कहा था कि उसे ठहरने के लिए कमरा चाहिए तो उन्होंने रूम बौय को आवाज दे कर उसे कमरा दिखाने भेज दिया था. रूमबौय उस युवक को कमरा दिखाने फर्स्ट फ्लोर पर ले जाने लगा तो उस ने साथ आई युवती को स्वागतकक्ष में ही बैठा दिया था और खुद कमरा देखने चला गया था. युवक को कमरा पसंद आ गया तो दीपक ने एंट्री रजिस्टर उस की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘सर, इस में आप अपना नामपता और फोन नंबर आदि लिख कर अपनी और मैडम की आईडी दे दीजिए. कमरे का किराया एक हजार रुपए प्रतिदिन होगा और नियम के अनुसार चैकआउट का समय दोपहर 12 बजे होगा.’’

दीपक से एंट्री रजिस्टर ले कर उस ने युवक ने अपना नाम रणवीर सिंह और साथ आई युवती को पत्नी बता कर उस का नाम मोनिका लिख दिया. पता उस ने 26-ए, नियर केवीएस मालवीय रोड, जयपुर, राजस्थान लिखा. मोबाइल नंबर- 8766711800 लिख कर अपनी और पत्नी मोनिका की आईडी दीपक के पास जमा करा दी. इस के बाद रूम बौय ने उन्हें होटल के कमरा नंबर 104 में पहुंचा दिया. यह 12 नवंबर, 2016 की बात है. उस समय शाम के यही कोई साढे़ 4 बज रहे थे.

कुछ देर आराम करने के बाद दोनों ने चायनाश्ता किया और स्वर्णमंदिर श्री हरमिंदर साहिब के दर्शन करने चले गए. लौट कर उन्होंने रात का खाना होटल से ही मंगवा कर खाया. अगले दिन यानी 13 नवंबर को दोनों सुबह 11 बजे घूमने के लिए निकले तो रात करीब साढ़े 8 बजे लौटे. खाना वगैरह खा कर वे सो गए तो अगले दिन यानी 14 नवंबर को दोनों में से न कोई बाहर आया और न चायनाश्ता या खाना मंगाया.

पूरा दिन बीत गया और उस कमरे में कोई हलचल नहीं हुई तो रात 10 बजे के करीब होटल मैनेजर दीपक यह पता करने के लिए कमरा नंबर 104 के सामने जा पहुंचे कि आखिर ऐसा क्या हुआ है कि करीब 30 घंटे से इस कमरे से कोई बाहर नहीं निकला है.

दीपक ने दरवाजा भी खटखटाया और आवाजें भी दीं, लेकिन अंदर किसी तरह की हलचल नहीं हुई. उन्होंने डुप्लीकेट चाबी से दरवाजा खोला. अंदर उन्हें जो दिखाई दिया, वह परेशान करने वाला था. वह भाग कर नीचे आए और होटल के मालिक करनदीप सिंह को फोन कर के कहा, ‘‘सरदारजी, कमरा नंबर 104 में एक लाश पड़ी है.’’

करनदीप सिंह फौरन होटल पहुंचे तो सारा स्टाफ कमरा नंबर 104 के सामने खड़ा था. उन्होंने देखा, कमरे के बैड पर 24-25 साल की एक युवती की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. पूछने पर मैनेजर दीपक ने बताया, ‘‘यह युवती 2 दिनों पहले ही अपने पति रणवीर सिंह के साथ होटल में आई थी.’’

‘‘इस का पति कहां है?’’

‘‘13 नवंबर की रात से वह दिखाई नहीं दिया.’’ दीपक ने कहा.

इस के बाद करनदीप सिंह ने थाना रामबाग की बसअड्डा पुलिस चौकी को फोन कर के मुंशी संजीव कुमार को इस बात की सूचना दे दी. सूचना मिलते ही चौकीइंचार्ज एएसआई सुशील कुमार पुलिस बल के साथ होटल सिंह इंटरनेशनल आ पहुंचे. होटल में लाश मिलने की सूचना उन्होंने थाना रामबाग के थानाप्रभारी, एसीपी और क्राइम टीम को भी दे दी थी.

उन्हीं की सूचना पर थाना रामबाग के थानाप्रभारी इंसपेक्टर दलविंदर कुमार, एसीपी (ईस्ट) गुरमेल सिंह भी होटल आ पहुंचे थे. पुलिस ने कमरे और लाश का निरीक्षण किया. बैड पर लाश पड़ी थी. उसी के पास रखी टेबल पर खून सनी एक हथौड़ी रखी थी. उसी टेबल पर पानी का जग और 2 गिलास रखे थे.

मृतका के सिर के पिछले हिस्से में गहरे घाव थे. चेहरे पर भी चोटों के गंभीर निशान थे, जो संभवत: हथौड़ी के वार से हुए थे. फिंगरप्रिंट विशेषज्ञों के अनुसार, हत्यारा इतना चालाक था कि उस ने कमरे की इस तरह सफाई की थी कि कहीं भी उस की अंगुली के निशान नहीं मिले थे. हथौड़ी पर भी अंगुलियों के निशान नहीं थे.

चौकीइंचार्ज ने लाश को कब्जे में ले कर सारी काररवाई निपटाई और पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद थाने आ कर अपराध संख्या 460/2016 पर हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया.

पुलिस ने होटल में लगे सीसीटीवी कैमरों की 12 नवंबर से 15 नवंबर तक की फुटेज कब्जे में ले ली थी. रजिस्टर में दर्ज रणवीर और मोनिका का पता, फोन नंबर नोट कर के रणवीर द्वारा होटल में जमा कराई गई आईडी भी अपने कब्जे में ले ली.

पुलिस को पूरा विश्वास था कि हत्या रणवीर ने ही की है, इसलिए चौकीइंचार्ज सुशील कुमार ने उस की तलाश के लिए एक पुलिस टीम बनाई, जिस में उन्होंने एएसआई बलदेव सिंह, हैडकांस्टेबल बलविंदर सिंह, हीरा सिंह, बूटा सिंह, गुरचरण सिंह, गुरप्रीत सिंह, हरप्रीत सिंह, हरजिंदर सिंह और कांस्टेबल रणजीत सिंह को शामिल किया.

होटल के रजिस्टर में रणवीर द्वारा लिखवाया गया मोबाइल नंबर चैक किया गया तो वह फरजी पाया गया. जयपुर भेजी गई पुलिस टीम ने लौट कर बताया कि होटल में रणवीर ने जो पता लिखाया था और जो आईडी दी थी, वे सब फरजी थीं. इस के बाद सीसीटीवी फुटेज से मिले रणवीर और मोनिका के फोटो पंजाब और राजस्थान के सभी थानों को भेज कर कहा गया कि अगर इन के बारे में कोई जानकारी मिले तो सूचना दी जाए.

लाश का पोस्टमार्टम होने के बाद शिनाख्त न होने की वजह से चौकीइंचार्ज सुशील कुमार ने अपने खर्चे से उस का अंतिम संस्कार करा दिया. लाख प्रयास के बाद भी रणवीर और मृतका के बारे में कोई जानकारी न मिलने से सुशील कुमार भी शांत हो गए.

लेकिन 8 दिसंबर, 2016 को अचानक बाड़मेर, राजस्थान के पुलिस अधीक्षक गगन सिंगला के औफिस से एक संदेश मिला, जिस में कहा गया था कि अमृतसर के होटल सिंह इंटरनेशनल के कमरा नंबर 104 में पत्नी भावना चौधरी की हत्या कर के फरार हुआ हत्यारा राजेंद्र चौधरी उन की हिरासत में है.

सूचना महत्त्वपूर्ण थी, इसलिए चौकीइंचार्ज सुशील कुमार अपने साथ हैडकांस्टेबल हरप्रीत सिंह, हरजिंदर सिंह और बलविंदर सिंह को ले कर 9 दिसंबर को बाड़मेर पहुंच गए. थाना सदर के थानाप्रभारी जयराम चौधरी के सामने उन्होंने राजेंद्र चौधरी से शुरुआती पूछताछ कर के विस्तारपूर्वक पूछताछ करने एवं सबूत जुटाने के लिए 10 दिसंबर, 2016 को उसे बाड़मेर के जेएमसी अंबिका सोलंकी बल्होत्रा की अदालत में पेश कर के 3 दिनों के ट्रांजिट रिमांड पर ले लिया.

राजेंद्र चौधरी उर्फ रणवीर सिंह को अमृतसर ला कर ड्यूटी मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश कर के रिमांड पर लिया और पुलिस चौकी ला कर पूछताछ की गई तो होटल सिंह इंटरनेशनल के कमरा नंबर 104 में हुई युवती की हत्या के बारे में की गई पूछताछ में उस ने जो कहानी बताई, वह घरेलू कलह और संदेह के घेरे में कैद एक अविवेकी पुरुष की मानसिकता से जुड़ी कहानी थी.

राजेंद्र प्रकाश चौधरी राजस्थान के जिला बाड़मेर के सारणनगर-जालिया के रहने वाले तगाराम का बेटा था. राजेंद्र के अलावा उन की 2 संतानें और थीं, एक बेटा और एक बेटी. 12वीं करने के बाद राजेंद्र डिस्कौम कंपनी में इलैक्ट्रिशियन की नौकरी करने लगा था. पितापुत्र की कमाई से घर के खर्च आराम से चल जाते थे.

राजेंद्र की नौकरी लग गई तो घर वालों ने लड़की देख कर 10 जून, 2014 को भावना से उस की शादी कर दी. भावना बहुत खूबसूरत तो नहीं थी, लेकिन खराब भी नहीं थी. पतिपत्नी दोनों सामान्य शक्लसूरत के थे, इसलिए दोनों ही एकदूसरे को दिल से चाहते थे. पर इस में परेशानी तब खड़ी हुई, जब राजेंद्र पत्नी पर संदेह करने लगा.

दरअसल, भावना का हंसमुख स्वभाव ही उस के लिए दुश्मन बन गया. अपने इसी स्वभाव की वजह से वह हर किसी से हंसहंस कर बातें कर लेती थी. उस के इसी स्वभाव की वजह से घर वाले ही नहीं, बाहर वाले भी उसे पसंद करते थे. लेकिन राजेंद्र को उस का यह स्वभाव यानी हर किसी से हंसनाबोलना जरा भी पसंद नहीं था.

इसी बात को ले कर पहले तो थोड़ीबहुत कहासुनी होती रही, लेकिन धीरेधीरे इस कहासुनी ने झगड़े का रूप ले लिया. जब यह झगड़ा रोजरोज होने लगा तो राजेंद्र की मोहल्ले में बदनामी होने लगी. इस बदनामी से बचने के लिए उस ने घर छोड़ दिया और नेहरूनगर में किराए का मकान ले कर पत्नी के साथ रहने लगा.

राजेंद्र ने घर जरूर बदल लिया था, लेकिन न उस का स्वभाव बदला था और न भावना का. इसलिए घर वालों से अलग होने के बाद पतिपत्नी के बीच होने वाले झगड़े और ज्यादा होने लगे. वह भावना को किसी से बातें करते देख लेता तो उस का खून खौल उठता. भावना लाख सफाई देती, लेकिन वह उस की बातों पर बिलकुल विश्वास नहीं करता था. इसी वजह से वह शराब भी पीने लगा.

एक दिन झगड़ा करने के बाद राजेंद्र ने शराब पी तो उस के दिमाग में आया कि ऐसी बेशर्म और बदचलन औरत को मौत के घाट उतार देना ही ठीक है. यह जब तक जिंदा रहेगी, उसे इसी तरह जिल्लत और बदनामी झेलनी पड़ेगी. बस इसी के बाद वह भावना की हत्या के बारे में सोचने लगा.

वह भावना की हत्या कुछ इस तरीके से करना चाहता था कि किसी भी सूरत में पकड़ा न जाए. इस के लिए वह साइबर कैफे जा कर इंटरनेट पर भावना की हत्या के लिए आइडिया ढूंढ़ने लगा. आखिर एक दिन उसे आइडिया मिल गया. इस के बाद उस ने बाजार से एक सर्जिकल ब्लेड और हथौड़ी खरीद कर रख ली.

इस के बाद राजेंद्र ने साइबर कैफे से ही अपने और भावना के फरजी नाम रणवीर और मोनिका के नाम से पहचान पत्र बनाया. योजना के अनुसार, उस ने भावना से लड़ाईझगड़ा बंद कर दिया और उसे विश्वास में लेने के लिए प्यार से बातें करने लगा. फरजी पहचान पत्र से नया सिम खरीद कर उस ने भावना से कहा, ‘‘अब हमारे घर का झगड़ाक्लेश खत्म हो गया है, क्यों न हम कहीं घूमने चलें?’’

भावना को भला इस में क्या ऐतराज हो सकता था. वह तैयार हो गई तो 10 नवंबर, 2016 को फरजी पहचान पत्र से टिकट करा कर वह भावना के साथ अमृतसर आ गया. घर से चलते समय उस ने अपना मोबाइल फोन घर में ही खड़ी मोटरसाइकिल की डिक्की में रख दिया था, जिस से कभी कोई बात हो तो उस के फोन की लोकेशन घर की मिले.

अमृतसर में उस ने होटल सिंह इंटरनेशनल में कमरा नंबर 104 बुक कराया और उसी में भावना के साथ ठहर गया. 13 नवंबर को दिन में उस ने भावना को अमृतसर में घुमाया और रात 9 बजे लौट कर होटल के कमरे में ही शराब पीने बैठ गया. बातोंबातों में प्यार की दुहाई दे कर उस ने भावना को भी शराब पिला दी.

रात के 11 बजे के करीब राजेंद्र ने देखा कि भावना की नशे और नींद की खुमारी में आंखें बंद हो रही हैं तो पहले उस ने उसे पीटपीट कर अधमरा कर दिया. इस के बाद साथ लाई हथौड़ी से उस के सिर और चेहरे पर कई वार किए. वह बेहोश हो गई तो सर्जिकल ब्लेड से श्वांस नली काट दी.

भावना की हत्या करने के बाद उस ने कमरे में मौजूद एकएक चीज से अपनी अंगुलियों के निशान मिटाए. इस के बाद 12 बजे के करीब कमरे का दरवाजा बंद कर के वह होटल के बाहर निकल गया. रेलवे स्टेशन से उस ने ट्रेन पकड़ी और बाड़मेर पहुंच गया.

घर आने पर उसे पता चला कि उस की अनुपस्थिति में उस का साला देवेंद्र भावना के बारे में पता करने आया था. इस के बाद जब उस से भावना के बारे में पूछा गया तो सारी सच्चाई सामने आ गई और भावना की हत्या का राज खुल गया.

सबूत जुटाने के लिए राजेंद्र को 2 दिनों के रिमांड पर और लिया गया. इस बीच उस की निशानदेही पर उस के घर से सर्जिकल ब्लेड बरामद कर ली गई. हथौड़ी होटल के कमरे से बरामद ही हो चुकी थी, इसलिए 2 दिनों का रिमांड समाप्त होने पर उसे अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जब दोस्ती पर भारी पड़ गया शराब का नशा

उड़ीसा के रहने वाले 25 साल के कुमार मांझी की अपने से 10 साल बड़े सीतापुर निवासी पूरन से गहरी दोस्ती थी. दोनों साथ मिल कर कोई छोटामोटा काम करते और जो कमाते, उसी से गुजरबसर करते थे. इन के परिवार भी थे, लेकिन दोनों ही घर वालों के साथ नहीं रहते थे. ये दिन भर में जो कमाते थे, शाम को सीतापुर रोड पर कूड़ाखाना के पास स्थित देशी शराब के ठेके पर जा कर शराब में उड़ा देते थे.

मांझी और पूरन की दोस्ती इतनी गहरी थी कि दोनों को ही एकदूसरे के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता था. यहां तक कि उन्हें परिवार की भी कमी नहीं खलती थी. दोनों की उम्र में 10 साल का अंतर था, लेकिन वे लगते हमउम्र थे. इन की गहरी दोस्ती होने की वजह यह थी कि दोनों ही आपस में एक जैसा व्यवहार करते थे. दोनों की पसंद भी एक जैसी थी.

कई बार मांझी और पूरन के अन्य साथी इन के साथ रहना चाहते या बात करना चाहते तो दोनों ही उन से कन्नी काट लेते थे. दोनों ही पक्के शराबी थे. बिना शराब के वे एक भी दिन नहीं रह सकते थे. लेकिन शराब पीने के बाद अकसर दोनों में लड़ाई हो जाती थी. कई बार मारपीट भी हो जाती थी, इस के बावजूद दोनों देर तक एकदूसरे से अलग नहीं रह पाते थे.

रात में लड़ाई होती थी तो सवेरा होतेहोते सब ठीक हो जाता था. यह देख कर उन के अन्य दोस्त कहते भी थे कि मांझी और पूरन कब लड़ते हैं, पता ही नहीं चलता, सवेरे दोनों का चायनाश्ता एक साथ होता है. इस के बाद वे साथसाथ ही काम पर जाते थे.

पूरन और कुमार मांझी ने उस रात भी जम कर शराब पी थी. इस के बाद दोनों में लड़ाई शुरू हो गई. बात बढ़ी तो पूरन ने कहा, ‘‘मांझी, तू कभी पैसे खर्च नहीं करता. हमेशा मेरे पैसे ही खर्च कराता है.’’

‘‘हमारे बीच पैसा आ गया, इस का मतलब हमारी दोस्ती खतम.’’ मांझी ने कहा.

‘‘भई, दोस्ती रहे या खतम हो जाए, हम इस बारे में कुछ नहीं जानते. हम तो यह जानते हैं कि पैसे का सही से हिसाब होना चाहिए. पिछली बार के 100 रुपए अभी तक तुम ने नहीं दिए हैं.’’ पूरन ने कहा.

‘‘लेकिन मैं ने तो कई बार पैसे खर्च किए हैं, उन का क्या होगा?’’ मांझी ने कहा.

इस के बाद उन के बीच बात बढ़ गई. दोनों ही नशे में थे. ऐसे में आगापीछा सोचे बगैर आपस में हाथापाई करने लगे. मारपीट में उन्हें ध्यान ही नहीं रहा कि वे क्या कर रहे हैं. मांझी ज्यादा नशे में था, इसलिए पूरन ने उसे पीट दिया. मारपीट कर के पूरन बैठ गया. नशे की वजह से उसे झपकी आ गई.

नशा कम होने पर मांझी थोड़ा होश में आया तो उसे याद आया कि पूरन ने उसे मारा था. उसे गुस्सा आ गया और ईंट उठा कर उस ने पूरन के सिर पर दे मारी. तब उसे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि इस से पूरन मर भी सकता है.

रात में दोनों रघुवर पैलेस के पास खाली प्लौट में बैठे थे. सवेरे 4 बजे कुमार मांझी इंजीनियरिंग कालेज चौराहे पर स्थित अनिल की दुकान पर पहुंचा. दोनों अकसर यहीं चायनाश्ता करते थे. कुमार के कपड़ों में खून लगा देख कर अनिल ने पूछा, ‘‘तेरे कपड़ों में खून कहां से लगा, पूरन कहां गया?’’

मांझी ने कहा, ‘‘कल रात पूरन से सौ रुपए को ले कर लड़ाई हो गई थी. वह मुझे बेईमान कह रहा था. जब मैं ने उसे सच बताया तो वह झगड़ा करने लगा. झगड़ा ज्यादा बढ़ा तो मैं ने ईंट से मार कर उस की हत्या कर दी. लेकिन अनिल भाई, अब मुझे अपनी गलती का अहसास हो रहा है. उस की मौत का मुझे पछतावा हो रहा है.’’

उस से कुछ कहने के बजाय अनिल ने उसे दुकान पर बैठा दिया और पुलिस को सूचना देने के लिए फोन करने लगा. लेकिन दूसरी ओर से फोन उठा ही नहीं. करीब 7 बजे अनिल ने रघुवर पैलेस के मैनेजर वीरेंद्र को घटना की सूचना दी तो वीरेंद्र ने जानकीपुरम थाने में तैनात सबइंसपेक्टर को फोन कर के इस बात की जानकारी दे दी.

इस के बाद 9 बजे पुलिस मौके पर पहुंची और लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस में पुलिस को कुछ समय लग गया. तब तक कुमार मांझी को पूरी तरह होश आ गया था. होश में आने के बाद उसे पता चला कि मामला पुलिस तक पहुंच गया है तो पुलिस की मार की डर से वह कांपने लगा.

दोस्त की हत्या के साथसाथ पुलिस की मार का डर उसे सताने लगा. वहां मौजूद लोगों ने जब उसे बताया कि हत्या के बाद फांसी हो सकती है तो वह काफी डर गया. हत्या के आरोप में मिलने वाली सजा के डर से वह जंगल की ओर भागा.

अनिल ने मांझी को भागते देखा तो उसे पकड़ने के लिए शोर मचाने लगा. आसपास के लोगों ने उस का पीछा किया. लेकिन तब तक वह गुडंबा के जंगल में घुस गया, जहां एक पेड़ के पीछे छिप गया. पुलिस अन्य लोगों को साथ मिल कर मांझी की तलाश करती रही. करीब आधे घंटे की मशक्कत के बाद मांझी को पकड़ लिया गया और थाने लाया गया.

थाना जानकीपुरम के थानाप्रभारी इंसपेक्टर सतीश सिन्हा ने बताया कि अपने दोस्त की हत्या के आरोप में पकड़े गए कुमार मांझी ने स्वीकार कर लिया है कि सौ रुपए के विवाद में उस ने दोस्त की हत्या को अंजाम दिया था.

शुक्रवार की रात कुमार मांझी से मृतक पूरन ने सौ रुपए उधार मांगे थे. पैसे न होने पर कुमार ने देने से मना कर दिया, जिसे ले कर दोनों के बीच कहासुनी हो गई. बात हाथापाई तक पहुंच गई. मारपीट के दौरान कुमार ने ईंट से पूरन के सिर पर कई वार कर दिए, जिस से उस की मौके पर ही मौत हो गई.

मांझी और पूरन की दोस्ती पर शराब का नशा भारी पड़ा. अगर दोनों शराब न पीते होते तो सौ रुपए जैसी मामूली रकम के लिए मांझी अपने सच्चे दोस्त की हत्या कतई नहीं कर सकता था. पूछताछ के बाद पुलिस ने कुमार मांझी को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

भाई ने ही कराई अपने भाइयों की हत्या

24 नवंबर, 2016 की रात पटना के जमाल रोड स्थित कुमार कौंप्लेक्स की चौथी मंजिल पर स्थित फ्लैट में रहने वाले शिवराज चौधरी के बेटों अभिषेक और सागर चौधरी की हत्या हो गई थी. दोनों भाइयों की लाशें पुलिस ने फ्लैट के एक ही कमरे से बरामद की थीं. दोनों भाई यह फ्लैट किराए पर ले कर रह रहे थे. हत्यारों ने दोनों भाइयों की बड़ी बेरहमी से हत्या की थी. हत्या के बाद गुप्तांग भी काट लिए थे. अभिषेक का सिर धड़ से अलग कर दिया गया था. सागर के गले में प्लास्टिक की रस्सी लपेटी थी, जिस से अंदाजा लगाया गया था कि उस की हत्या गला दबा कर की गई थी.

हत्यारों ने अभिषेक और सागर की हत्या में चाकू का भी उपयोग किया गया था. उन के शरीर पर चाकुओं के करीब 25-30 घाव थे. शरीर का कोई भी अंग बाकी नहीं था, जहां चाकू का घाव न रहा हो. इस से साफ लग रहा था कि हत्यारों को मृतकों से काफी खुन्नस थी.

पुलिस ने रोहतास, पटना और भोजपुर के ऐसे 9 लोगों से पूछताछ की, जिन का अभिषेक से संबंध था. ये सभी अभिषेक और सागर के करीबी रिश्तेदार थे. इन लोगों से पूछताछ में पता चला था कि सासाराम के बंजारी इलाके की रहने वाली किसी लड़की से अभिषेक का विवाह होने वाला था.

उस लड़की से अभिषेक की सगाई 16 सितंबर, 2016 को रोहतास में हुई थी. 23 नवंबर को शादी होने वाली थी. सगाई के बाद लड़की से अभिषेक की फोन पर बातें होने लगी थीं. लेकिन कुछ दिनों बाद ही सगाई टूट गई थी.

पुलिस ने जब इस की वजह पता की तो घर वालों ने बताया कि लड़की के सुंदर न होने की वजह से यह सगाई टूटी थी. अभिषेक के पिता शिवराज चौधरी का कहना था कि अभिषेक की सगाई होने के कुछ दिनों बाद ही उस की मर्चेंट नेवी में नौकरी लग गई थी.

मई, 2017 में उसे मुंबई जा कर नौकरी जौइन करनी थी. इसी बात को ले कर उसे विवाह में मामला उलझ गया था. अभिषेक के कैरियर को देखते हुए लड़की के घर वालों से विवाह के लिए मना कर दिया गया था, जिस की वजह से दोनों परिवारों में काफी विवाद हुआ था. अभिषेक के घर वालों ने दहेज के रूप में लड़की वालों से एक लाख रुपए एडवांस ले रखे थे.

24 नवंबर की सुबह 7 बजे अभिषेक नारायणपुर गांव के अपने घर से पटना पहुंचा था, जहां उस की मुलाकात कुछ दोस्तों से हुई थी. दोपहर 2 बजे वह अपने जीजा अमित से मिला था. वह पटना हाइकोर्ट में वकालत करते हैं. उसी दिन अभिषेक के मंझले भाई सागर को किसी काम से घर जाना था. वह घर के लिए निकला जरूर, पर पहुंचा नहीं.

अभिषेक और सागर के सब से छोटे भाई का नाम अमित चौधरी उर्फ भोलू है. पहले पुलिस को उसी पर दोनों भाइयों की हत्या का शक था. पुलिस उस से पूछताछ करना चाहती थी, लेकिन घर वाले पुलिस से कह रहे थे कि वह बीमार है. घर वालों का कहना था कि 2 भाइयों की हत्या की वजह से वह गहरे सदमे में हैं.

गौरतलब है कि हत्या के बाद भोलू और उस के मामा ही सब से पहले कमरे में पहुंचे थे. पुलिस को यह भी लग रहा था कि कहीं दोनों भाइयों की हत्या प्रेमप्रसंग की वजह से तो नहीं हुई है. लेकिन घटनास्थल की स्थिति से लग रहा था कि इस हत्याकांड में किसी जानपहचान वाले का हाथ है. इस की वजह यह थी कि हत्यारा आराम से दोनों के कमरे में पहुंच गया था और दोनों की हत्या कर के चला गया था.

हत्या वाले दिन दोपहर 2 बजे अभिषेक ने पिता शिवराज चौधरी और मां रेणु देवी को फोन कर के बात की थी. अभिषेक का बहनोई अमित दोनों का खाना पहुंचाता था. दोनों भाई पटना में रह कर मोबाइल फोन एसेसरीज का कारोबार करते थे. इस के अलावा दोनों भाई आरा से बिहटा ट्रक चलवाते थे.

उन का बालू का ठेका भी था. बालू के ठेके और ट्रक को ले कर कई बार दोनों भाई विवादों में फंस चुके थे. उन का एक डंपर उत्तर प्रदेश में भी चलता था. शिवराज चौधरी का कहना था कि उन के बेटों की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. दोनों बेटों की हत्या से उन के परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था.

पहले दोनों भाई गांव में किराए पर जेनरेटर चलाते थे. इस के बाद उन्होंने पोल्ट्री फार्म और डेयरी फार्म का भी काम किया. पास में कुछ पैसे आए तो उन्होंने पटना में कारोबार करने का विचार किया. पटना आ कर दोनों ने 2 ट्रक खरीदे और उन्हें किराए पर चलाने लगे.

सन 2014 में जमाल रोड स्थित कुमार कौंप्लेक्स में उन्होंने रहने के लिए राजकुमार गुप्ता का फ्लैट किराए पर लिया था. मकान मालिक ने बताया था कि दोनों भाई काफी शांत स्वभाव के थे. उन का बाहरी लोगों से कोई लेनादेना नहीं था.

हत्यारा दोनों भाइयों के मोबाइल फोन भी ले गया था. शायद हत्यारों का सोचना था कि मोबाइल फोन गायब होने से पुलिस को कोई सबूत नहीं मिलेगा, लेकिन वही पुलिस के लिए तुरुप का पत्ता साबित हुआ.

पुलिस ने दोनों के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा ली थी. वहीं 24 साल के अमित को अपने भाइयों की हत्या करवाने का जरा भी मलाल नहीं था. उस का कहना था कि उसे अपने भाइयों से नफरत हो गई थी. बड़ा भाई अभिषेक हमेशा परेशान करता रहता था. मंझला भाई सागर हमेशा उसे डांटतामारता रहता था. उन्होंने अपना धंधा तो चमका लिया था, जबकि उसे कोई काम नहीं करने दे रहे थे.

जब अभिषेक ने उसे घर से भगा दिया तो उसे लगा कि अगर दोनों भाइयों को रास्ते से हटा दिया जाए तो पिता और भाइयों की सारी संपत्ति उस की हो जाएगी. उस के बाद वह अकेला ऐश करेगा. इसी लालच में उस ने अपने भाइयों अभिषेक और सागर की हत्या करने का विचार बना लिया था.

22 अक्तूबर को अभिषेक और सागर ने अमित को घर से भगा दिया था. पहले अभिषेक ने एक ट्रक खरीदा था, उस के कुछ दिनों बाद सागर ने एक ट्रक खरीदा था. दोनों मिल कर तीसरा ट्रक खरीदना चाहते थे. अमित भी अपना एक ट्रक खरीदना चाहता था, जिस के लिए वह भाइयों से रुपए मांग रहा था. लेकिन भाइयों ने रुपए देने से ही मना ही नहीं कर दिया, बल्कि उसे घर से भाग जाने के लिए कह दिया.

इसी से नाराज हो कर अमित ने दोनों बड़े भाइयों अभिषेक और सागर को सबक सिखाने का मन बना लिया. अभिषेक ने फ्लैट की 3 चाबियां बनवा रखी थीं, जिस में से एक चाबी अभिषेक के पास रहती थी तो दूसरी सागर के पास रहती थी. जबकि तीसरी चाबी दरवाजे के ऊपर वेंटीलेटर पर रखी रहती थी. उस के बारे में उन दोनों के अलावा अमित और उन के पिता शिवराज चौधरी को पता था.

अमित के रिश्तेदारों का कहना था कि अमित इधर गलत लोगों की संगत में पड़ गया था. ऐसे लोगों से दूर रखने के लिए अभिषेक ने उसे बालू के कारोबार में लगा दिया था, जहां वह रुपयों की हेराफेरी करने लगा था. अभिषेक ने उसे कई बार समझाया, पर वह नहीं माना. दिवाली के पहले अमित की चोरी पकड़ी गई तो सागर ने उस की पिटाई कर दी थी.

शायद पिटाई से ही नाराज हो कर अमित ने अपराधियों के साथ मिल कर भाइयों की हत्या की साजिश रच डाली थी. अमित अपना ट्रक खरीदना चाहता था, जिस के लिए वह भाइयों से रुपए मांग रहा था. रुपए देने के बजाय दोनों भाई यही सलाह दे रहे थे कि वह पहले ट्रक चलवाने वाले कारोबार को अच्छी तरह समझ ले, उस के बाद ही वह इस कारोबार को शुरू करे.

बगैर समझेबूझे कोई काम करने से रुपए डूब सकते हैं. अमित भाइयों की बात मानने के बजाय ट्रक खरीदने की जिद पर अड़ा था. अभिषेक ने रुपए देने से मना कर दिया तो अमित उस के दुश्मन संतोष से जा मिला. आरा के नारायणपुर गांव के ही रहने वाले संतोष से अभिषेक का कुछ दिनों पहले ही झगड़ा हुआ था.

अमित ने उसी के साथ मिल कर अभिषेक की हत्या की योजना बनाई. संतोष को भी अभिषेक से बदला लेना था, इसलिए वह तुरंत उस की हत्या करने को तैयार हो गया. उसे इस काम के लिए ढाई लाख रुपए देने को भी कहा था. संतोष ने उसे अपने गैंग में शामिल करने का वादा किया था.

कुमार कौंप्लेक्स से कुछ दूरी पर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में पुलिस को 3 सदिग्धों की फोटो मिली. उन फोटो को ले कर पुलिस आरा पहुंची तो तीनों की पहचान हो गई. पता चला कि वे आरा के छुटभैए अपराधी थे, जिन का नाम संतोष, नीतीश और सच्चिदानंद था. इस के बाद पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया तो उन्होंने तुरंत स्वीकार कर लिया कि अमित ने ही उन्हें भाइयों की हत्या की सुपारी दी थी.

पुलिस ने अमित को भी गिरफ्तार कर लिया था. इस के बाद उस की निशानदेही पर रितेश और रमेश को भी आरा से गिरफ्तार कर लिया गया. इन के पास से 8 मोबाइल फोन, 3 चाकू और एक हथौड़ा बरामद किया गया. संतोष अभी नहीं पकड़ा जा सका है. पुलिस उसे गिरफ्तार करने के लिए ताबड़तोड़ छापे मार रही है. आरा में उस के खिलाफ दरजनों मामले दर्ज हैं.

पुलिस ने अमित से सख्ती से पूछताछ की तो वह घबरा गया. पुलिस ने उस से पूछा कि वह घटना वाले दिन कहां था तो उस ने कहा कि वह आरा में ही था. लेकिन मोबाइल फोन की लोकेशन से उस का झूठ पकड़ा गया. लोकेशन के अनुसार उस दिन वह पटना में था. इस के बाद पुलिस ने सख्ती की तो उस ने सच्चाई उगल दी.

अमित ने जो बताया उस के अनुसार, 23 नवंबर, 2016 की रात सागर जमाल रोड वाले फ्लैट में अकेला था. अमित, संतोष, सच्चिदानंद और नीतीश को साथ ले कर फ्लैट पर पहुंचा. अमित खुद नीचे रह गया, जबकि तीनों अपराधियों को ऊपर भेज दिया. हत्यारों ने सागर के सिर पर हथौड़ा मार कर बेहोश कर दिया.

उस के बाद अंगौछे से गला कस कर हत्या कर दी. उन्होंने अमित को बताया कि सागर को मार दिया है तो वह ऊपर पहुंचा और सागर की लाश को घसीट कर पूजाघर में छिपा दिया. सागर की हत्या कर के सभी बाहर आ गए और दरवाजा लौक कर के अभिषेक के पीछे लग गए.

24 नवंबर, 2016 को 10 बजे अभिषेक फ्लैट पर पहुंचा तो पीछा करता हुआ अमित, संतोष, रितेश और रमेश के साथ फ्लैट पर पहुंच गया. इस बार भी अमित नीचे ही खड़ा रहा और तीनों अपराधी अभिषेक के फ्लैट पर जा पहुंचे.

उन्होंने अभिषेक के सिर पर भी हथौड़ा मार कर बेहोश कर दिया और फिर गला रेत कर हत्या कर दी. उस के प्राइवेट अंगों को भी काट दिया. इस के बाद अमित कमरे में पहुंचा और अभिषेक की लाश को भी पूजाघर में ले जा कर छिपा दिया.

इस के बाद दोनों लाशों पर एसिड डाल कर जलाने की कोशिश की. उस ने कमरे में फैले खून को साफ किया और बाहर से दरवाजा बंद कर के सब के साथ फरार हो गया.

पटना के एसएसपी मनु महाराज ने बताया कि संपत्ति विवाद और ईर्ष्या की वजह से अभिषेक और सागर के छोटे भाई अमित ने ही उन की हत्या करवाई थी. 3 भाइयों में अभिषेक सब से बड़ा था और सागर उस से छोटा, अमित सब से छोटा था. 23 नवंबर को अमित के मोबाइल फोन की लोकेशन पटना की पाई गई तो पुलिस का शक यकीन में बदल गया था.

बीए करने के बाद अमित नौकरी खोज रहा था. जब कहीं नौकरी नहीं मिली तो वह अपने दोनों बड़े भाइयों से रुपए मांगने लगा था. कुछ समय तक अभिषेक रुपए देता रहा. उस के बाद में उस ने अभिषेक से कहा कि वह अपना अलग धंधा करना चाहता है, जिस के लिए वह उसे रुपए दे.

पिछली दिवाली से ही अमित अपने भाइयों से कारोबार के लिए रुपए मांग रहा था. जबकि वे टालमटोल कर रहे थे. अभिषेक के रवैए से नाराज हो कर अकसर अमित घर में हंगामा करता रहता था.

शिवराज चौधरी के 7 बच्चे हैं. अभिषेक, सागर और अमित के अलावा उन की 4 बेटियां हैं. चारों बेटियों का विवाह हो चुका है. घर वालों का कहना है कि अमित के रवैए और उस की अपराधियों से दोस्ती की वजह से घर के सभी लोग परेशान थे. उस पर किसी के समझाने का असर नहीं हो रहा था. वह रातोंरात करोड़पति बनने के सपने देखा करता था.

अभिषेक और सागर को उस के ही छोटे भाई अमित ने मौत के घाट उतरवा दिया था. अब वह जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया है. एक साथ तीनों बेटों के खोने के दर्द में डूबे शिवराज चौधरी आंखों में आंसू लिए कहते हैं कि उन का परिवार और जिंदगी दोनों बरबाद हो गई.

उन की पत्नी रेणु चौधरी बुत बनी बैठी रहती हैं. उन्हें किसी चीज की सुध नहीं है. उन की सूनी आंखें मानो हर पल अपने बच्चों को ढूंढती रहती हैं. शिवराज कहते हैं कि दौलत के लिए भाइयों के झगड़े के बारे में कई कहानियां सुनी थीं, पर उन के ही बेटे ने एक दर्दनाक कहानी बना डाली. अब उन की जिंदगी बेकार है.

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