दोस्त न होता तो : क्या माया को मिल पाया पृथ्वीपाल जैसा दोस्त

कोरोना काल में पृथ्वीपाल का परिवार कई तरह की मुश्किलों का सामना बड़ी हिम्मत से कर रहा था. उस का गांव बहादुरपुर राजधानी लखनऊ से महज 5 किलोमीटर दूर है. वहां सिर्फ 6-7 परिवार अमीर हैं. 20-25 गरीब परिवार मजदूरी से गुजरबसर करते हैं, वहीं 60-70 परिवार पृथ्वीपाल के परिवार जैसे हैं.

ये परिवार न पूरी तरह से गरीब हैं, न अमीर ही. ये लोग ‘रोज कुआं खोदो रोज पानी पीयो’ वाली हालत में हैं. इन सब की आमदनी मजदूरों से थोड़ी सी ज्यादा है.

पृथ्वीपाल के पास 2 बीघा जमीन थी, लेकिन पत्नी रामरती के इलाज की खातिर जमीन बेच डाली थी. रामरती को 6 साल पहले कैंसर हो गया था. सारे जेवर और जमीन बेचने के बाद भी रामरती की मौत हो गई थी.

अब पृथ्वीपाल के परिवार में उस की 3 बेटियां और एक छोटा बेटा बचा था. उस ने परिवार को चलाने के लिए बैंक से कर्ज ले कर एक आटोरिकशा खरीदा था. वह पिछले 3 साल से लखनऊ में आटोरिकशा चला रहा था.

पृथ्वीपाल की बड़ी बेटी माया बीए करने के बाद एक निजी स्कूल में पढ़ाने लगी थी. बापबेटी की कमाई से परिवार ठीकठाक चलने लगा था.

माया ने अपनी दोनों छोटी बहनों और भाई का नाम उसी स्कूल में लिखवा दिया था. पृथ्वीपाल को अब माया की शादी की चिंता रहती थी.

पृथ्वीपाल आटोरिकशा की अदायगी अच्छे ढंग से कर रहा था.

3 महीने की ही किसतें बाकी रह गई थीं. बैंक ने उसे मई में दूसरा आटोरिकशा लेने की सलाह दी थी.

पृथ्वीपाल ने भी सोच लिया था कि इस रिकशे की अदायगी होते ही वह दूसरा रिकशा निकाल लेगा. नया वाला खुद चलाएगा, पुराना किसी को किराए पर दे देगा. इस से उस की आमदनी और बढ़ जाएगी. पर उसे क्या पता था कि मार्च आते ही कोरोना महामारी आ जाएगी. आमदनी बढ़ना तो दूर की बात, खानेपीने के भी लाले पड़ जाएंगे.

देश में कोरोना महामारी के चलते 5वां लौकडाउन चल रहा था. कोरोना के मरीज बढ़ रहे थे. सरकार नए नियमकानून और पैकेज का ऐलान कर रही थी. इसी बीच लाखों मजदूरों का पलायन जारी था.

सत्ता पक्ष कोरोना से निबट लेने के दावे पेश कर रहा था. सरकार द्वारा हर महीने किसानों, मजदूरों और दूसरे गरीबों को मुफ्त में राशन, गैस सिलैंडर और नकद रुपए भी दिए जा रहे थे. वहीं, विपक्ष कोरोना से हो रही बदहाली पर अपनी राजनीति चमका रहा था.

समाजसेवी मजदूरों की सेवा में जुटे थे. कोई मजदूरों को भोजनपानी बांट रहा था, कोई गरीबों को राशन, कपड़े, जूतेचप्पल दे रहा था.

ये सारी खबरें टैलीविजन पर सुबह से रात तक चल रही थीं. सुबह अखबार भी इन्हीं खबरों से रंगे होते थे.

पृथ्वीपाल इन खबरों को देख कर भी अनदेखी करने लगा था. ढाई महीने की बंदी के बाद भी उस की खबर लेने वाला कोई नहीं था, क्योंकि वह सरकार और समाज की नजर में गरीब नहीं था. उस का परिवार मध्यम वर्ग से ताल्लुक रखता था, इसलिए उसे न सरकार से और न ही समाजसेवियों से कोई मदद मिलनी थी.

पृथ्वीपाल ढाई महीने से घर में ही कैद था. आटोरिकशा दरवाजे पर धूल खा रहा था. पृथ्वीपाल ने लंबे समय से एक रुपया नहीं कमाया था. आटोरिकशा की किस्तें भी उस पर चढ़ती जा रही थीं.

वहीं, माया का भी स्कूल बंद हो गया था. पर वह स्कूल के बच्चों को रोज 4 घंटे औनलाइन पढ़ाती थी. स्कूल वालों ने बिना कुछ बताए उस की तनख्वाह आधी कर दी. अब उसे महज 3,500 रुपए मिल रहे थे. इस से घर का राशनपानी व खर्च नहीं चल पा रहा था.

बीते 3 महीने में चारों बच्चों की गुल्लक तोड़ी जा चुकी थी. अब घर में एक रुपया किसी के पास नहीं था. सारा राशन, तेल, मसाला और घरेलू गैस खत्म हो चुकी थी.

आज दूसरा दिन था, जब घर में चूल्हा नहीं जला था. माया गांव की दुकान से चीनी, चाय पत्ती, बिसकुट व दालमोठ उधार लाई थी. सुबहशाम पांचों प्राणी सिर्फ चाय पीते थे.

स्कूल ने इस महीने आधी तनख्वाह भी अब तक नहीं दी थी. दूध वाला और सब्जी वाला आज सुबह पैसों के लिए तगादा कर के गए थे. दोनों का 2 महीने से बकाया चल रहा था.

पृथ्वीपाल के बेटे की तबीयत भी खराब थी. उसे बुखार और दस्त की शिकायत थी. राशनपानी से ज्यादा जरूरी उस की दवा थी. पृथ्वीलाल किसी से कुछ ले भी नहीं सकता था. इस में उस का स्वाभिमान आड़े आ रहा था.

घर की इस दर्दनाक हालत को देख कर माया ने स्कूल के प्रिंसिपल को फोन लगाया. उस ने प्रिंसिपल से 2,000 रुपए एडवांस देने की गुहार लगाई, लेकिन प्रिंसिपल ने साफ इनकार कर दिया.

प्रिंसिपल फोन पर बोले, ‘‘माया, तुम जानती हो कि 3 महीने से स्कूल बंद है. किसी बच्चे की फीस जमा नहीं हो रही है. बड़ी मुश्किल से तुम लोगों को तनख्वाह दी जा रही हैं.’’

इतना सुन कर माया की आंखों से आंसू बहने लगे.

तभी माया के एक सहपाठी माधव का फोन आ गया. उस ने अपने को संभाला और फोन ले कर छत पर चली गई. तब वह रुंधे गले से ‘हैलो’ बोली.

माधव हैलो सुन कर बहुतकुछ समझ गया. उस ने माया से पूछा, ‘क्यों रो रही है? क्या मुझे नहीं बताओगी? आंसू पोंछो और मुझे बताओ कि क्या हुआ…?’

माया ने न चाहते हुए भी एक सांस में घर की पूरी कहानी बता डाली.

उस ने माधव को बता दिया कि घर में कई दिनों से एक रुपया नहीं है. 2 दिन से घर में चूल्हा नहीं जला है. भाई

की तबीयत खराब है. उस की दवा भी लानी है.

यह सुनते ही माधव आगबबूला हो गया. वह गुस्सा हो कर बोला, ‘जाओ, आज के बाद मैं तुम से कभी बात नहीं करूंगा. तुम ने मुझे कुछ नहीं समझ. अगर मुझे कुछ मानती तो बहुत पहले फोन करती.’

माया बोली, ‘‘गुस्सा न करो यार. तुम घर से इतनी दूर लौकडाउन में फंसे हो. ऐसे में तुम को क्या बताती.’’

माधव ने कहा, ‘चलो ठीक, कोई बात नहीं. तुम तुरंत अंकल के साथ आटोरिकशा से कसबे में जाओ. भाई को भी साथ ले जाओ. मैं तुम्हारे बैंक खाते में 5,000 रुपए ट्रांसफर कर रहा हूं. पहले बैंक से रकम निकालो, फिर भाई की दवा लो. उस के बाद घर का सारा राशनपानी खरीदो.’’

माधव की बात पूरी होते ही माया बोली, ‘‘नहीं माधव, ऐसा मत करो. मु?ो 2-3 दिन में स्कूल से तनख्वाह मिल जाएगी. तब यहां सब हो जाएगा. तुम परदेश में हो. तुम को अपने पास रुपए रखने चाहिए.’’

लेकिन माधव ने दोस्ती की कसम दे कर माया को रुपए लेने पर मजबूर कर दिया.

पृथ्वीपाल बरामदे में लेटा राशन न होने और बेटे की खराब तबीयत के बारे में सोच रहा था. उसे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. वह गांव में किसी से रुपए उधार नहीं लेना चाहता था.

तभी माया वहां आ कर बोली, ‘‘पापा तुरंत तैयार हो जाइए, कसबे में चलते हैं. छोटू को डाक्टर को दिखा कर दवा ले आएं. साथ ही, घर का राशनपानी और गैस सिलैंडर भी ले आएंगे. कल सुबह दूध वाले, सब्जी वाले और गांव की दुकान का बकाया भी चुका देंगे.’’

इतना सुन कर पृथ्वीपाल ने पूछा, ‘‘माया, क्या इस बार तुम्हें पूरी तनख्वाह मिल गई है?’’

माया ने ठंडी सांस भरी और बोली, ‘‘अरे, नहीं पापा. माधव ने मेरे बैंक खाते में जबरदस्ती 5,000 रुपए डाल दिए हैं. वह बाद में अपने रुपए ले लेगा.’’

पृथ्वीपाल ने कहा, ‘‘वह तो ठीक है, लेकिन तुम ने घर की परेशानी उसे क्यों बताई? वह बेचारा खुद लौकडाउन की वजह से बाहर फंसा है.’’

माया ने कहा, ‘‘पापा, अब कसबे में चलो, बाकी बातें बाद में करना.’’

पृथ्वीपाल आटोरिकशा से माया और छोटू को ले कर कसबे की ओर निकल पड़े. रास्ते में माया बारबार यही सोच रही थी कि अगर दोस्त न होता तो…

मिशन पूरा हुआ : जगह-जगह रावण है

‘‘अ रे ओ लक्ष्मी…’’ अखबार पढ़ते हुए जब लक्ष्मी ने ध्यान हटा कर अपने पिता मोड़ीराम की तरफ देखा, तब वह बोली, ‘‘क्या है बापू, क्यों चिल्ला रहे हो?’’

‘‘अखबार की खबरें पढ़ कर सुना न,’’ पास आ कर मोड़ीराम बोले.

‘‘मैं तुम्हें नहीं सुनाऊंगी बापू?’’ चिढ़ाते हुए लक्ष्मी अपने बापू से बोली.

‘‘क्यों नहीं सुनाएगी तू? अरे, मैं अंगूठाछाप हूं न, इसीलिए ज्यादा भाव खा रही है.’’

‘‘जाओ बापू, मैं तुम से नहीं बोलती.’’

‘‘अरे लक्ष्मी, तू तो नाराज हो गई…’’ मनाते हुए मोड़ीराम बोले, ‘‘तुझे हम ने पढ़ाया, मगर मेरे मांबाप ने मुझे नहीं पढ़ाया और बचपन से ही खेतीबारी में लगा दिया, इसलिए तुझसे कहना पड़ रहा है.’’

‘‘कह दिया न बापू, मैं नहीं सुनाऊंगी.’’

‘‘ऐ लक्ष्मी, सुना दे न… देख, दिनेश की खबर आई होगी.’’

‘‘वही खबर तो पढ़ रही थी. तुम ने मेरा ध्यान भंग कर दिया.’’

‘‘अच्छा लक्ष्मी, पुलिस ने उस के ऊपर क्या कार्यवाही की?’’

‘‘अरे बापू, पुलिस भी तो बिकी हुई है. अखबार में ऐसा कुछ नहीं लिखा है. सब लीपापोती है.’’

‘‘पैसे वालों का कुछ नहीं बिगड़ता है बेटी,’’ कह कर मोड़ीराम ने अफसोस जताया, फिर पलभर रुक कर बोला, ‘‘अरे, मरना तो अपने जैसे गरीब का होता है.’’

‘‘हां बापू, तुम ठीक कहते हो. मगर यह क्यों भूल रहे हो, रावण और कंस जैसे अत्याचारियों का भी अंत हुआ, फिर दिनेश जैसा आदमी किस खेत की मूली है,’’ बड़े जोश से लक्ष्मी बोली.

मगर मोड़ीराम ने कहा, ‘‘वह जमाना गया लक्ष्मी. अब तो जगहजगह रावण और कंस आ गए हैं.’’

‘‘अरे बापू, निराश मत होना. दिनेश जैसे कंस को मारने के लिए भी किसी न किसी ने जन्म ले लिया है.’’

‘‘यह तू नहीं, तेरी पढ़ाई बोल रही है. तू पढ़ीलिखी है न, इसलिए ऐसी बातें कर रही है. मगर यह इतना आसान नहीं है. जो तू सोच रही है. आजकल जमाना बहुत खराब हो गया है.’’

‘‘देखते जाओ बापू, आगेआगे क्या होता है,’’ कह कर लक्ष्मी ने अपनी बात कह दी, मगर मोड़ीराम की सम?ा में कुछ नहीं आया, इसलिए बोला, ‘‘ठीक है लक्ष्मी, तू पढ़ीलिखी है, इसलिए

तू सोचती भी ऊंचा है. मैं खेत पर जा

रहा हूं. तू थोड़ी देर बाद रोटी ले कर वहीं आ जाना.’’

‘‘ठीक है बापू, जाओ. मैं आ जाऊंगी,’’ लक्ष्मी ने बेमन से कह कर बात को खत्म कर दिया.

मोड़ीराम खेत पर चला गया. लक्ष्मी फिर से अखबार पढ़ने लगी. मगर उस का ध्यान अब पढ़ने में नहीं लगा. उस का सारा ध्यान दिनेश पर चला गया. दिनेश आज का रावण है. इसे कैसे मारा जाए? इस बात पर उस का सारा ध्यान चलने लगा. उस ने खूब घोड़े दौड़ाए, मगर कहीं से हल मिलता नहीं दिखा.

काफी सोचने के बाद आखिरकार लक्ष्मी ने हल निकाल लिया. तब उस के चेहरे पर कुटिल मुसकान फैल गई.

दिनेश और कोई नहीं, इस गांव का अमीर किसान है. उस के पास ढेर सारी खेतीबारी है. गांव में उस की बहुत बड़ी हवेली है. उस के यहां नौकरचाकर हैं. खेत नौकरों के भरोसे ही चलता है. रकम ले कर ब्याज पर पैसे देना उस का मुख्य पेशा है.

गांव के जितने गरीब किसान हैं, उन को अपना गुलाम बना रखा है. गांव की बहूबेटियों की इज्जत से खेलना उस का काम है. पूरे गांव में उस की इतनी धाक है कि कोई भी उस के खिलाफ नहीं बोलता है.

इस तरह इस गांव में दिनेश नाम के रावण का राज चल रहा था. उस के कहर से हर कोई दुखी था.

‘‘लक्ष्मी, रोटियां बन गई हैं, बापू को खेत पर दे आ,’’ मां कौशल्या ने जब आवाज लगाई, तब वह अखबार एक तरफ रख कर मां के पास रसोईघर में चली गई.

लक्ष्मी बापू की रोटियां ले कर खेत पर जा रही थी, मगर विचार उस के सारे दिनेश पर टिके थे. आज के अखबार में यहीं खबर खास थी कि उस ने अपने फार्म पर गांव के मांगीलाल की लड़की चमेली की इज्जत लूटी थी. गांव में यह खबर आग की तरह फैल गई थी, मगर ऊपरी जबान से कोई कुछ नहीं कह रहा था कि चमेली की इज्जत दिनेश ने ही लूटी है.

जब लक्ष्मी खेत पर पहुंची, तब बापू खेत में बने एक कमरे की छत पर खड़े हो कर पक्षी भगा रहे थे, वह भी ऊपर चढ़ गई. देखा कि वहां से उस की पूरी फसल दिख रही थी.

लक्ष्मी बोली, ‘‘बापू, रोटी खाओ. लाओ, गुलेल मुझे दो, मैं पक्षी भगाती हूं.’’

‘‘ले बेटी संभाल गुलेल, मगर किसी पक्षी को मार मत देना,’’ कह कर मोड़ीराम ने गुलेल लक्ष्मी के हाथों में थमा दी और खुद वहीं पर बैठ कर रोटी खाने लगा.

लक्ष्मी थोड़ी देर तक पक्षियों को भगाती रही, फिर बोली, ‘‘बापू, आप ने यह कमरा बहुत अच्छा बनाया है. अब मैं यहां पढ़ाई करूंगी.’’

‘‘क्या कह रही है लक्ष्मी? यहां तू पढ़ाई करेगी? क्या यह पढ़ाई करने की जगह है?’’

‘‘हां बापू, जंगल की ताजा हवा जब मिलती है, उस हवा में दिमाग अच्छा चलेगा. अरे बापू, मना मत करना.’’

‘‘अरे लक्ष्मी, मैं ने आज तक मना किया है, जो अब करूंगा. अच्छा पढ़ लेना यहां. तेरी जो इच्छा है वह कर,’’ हार मानते हुए मोड़ीराम बोला.

लक्ष्मी खुश हो गई. उस का कमरा इतना बड़ा है कि वहां वह अपनी योजना को अंजाम दे सकती है. इस मकान के चारों ओर मिट्टी की दीवारें हैं और दरवाजा भी है. एक खाट भीतर है. रस्सी और बिजली का इंतजाम भी है. फसलें जब भरपूर होती हैं, तब बापू कभीकभी यहां पर सोते हैं. मतलब वह सबकुछ है, जो वह चाहती है.

इस तरह दिन गुजरने लगे. लक्ष्मी दिन में आ कर अपने खेत वाले कमरे में पढ़ाई करने लगी, क्योंकि इस समय फसल में अंकुर फूट रहे थे, इसलिए बापू भी खेत पर बहुत कम आते थे. पढ़ाई का तो बहाना था, वह रोजाना अपने काम को अंजाम देने के लिए काम करती थी.

अब लक्ष्मी सारी तैयारियां कर चुकी थी, फिर मौके का इंतजार करने लगी. इसी दौरान बापू का उस ने पूरा भरोसा जीत लिया था. इसी बीच एक घटना हो गई.

बापू के गहरे दोस्त, जो उज्जैन में रहते थे, उन की अचानक मौत हो गई. तब बापू 13 दिन के लिए उज्जैन चले गए. तब लक्ष्मी का मिशन और आसान हो गया.

लक्ष्मी का खेत ऐसी जगह पर था, जहां कोई भी बाहरी शख्स आसानी से नहीं देख सकता था. अब वह आजाद हो गई, इसलिए इंतजार करने लगी दिनेश का. बापू के न होने के चलते लक्ष्मी अपना ज्यादा समय खेत में बने कमरे पर बिताने लगी. सुबह कालेज जाती थी, दोपहर को वापस गांव में आ जाती थी. और फिर खेत में फसल की हिफाजत के बहाने पक्षियों को भगाती और खुद अपने शिकार का इंतजार करती.

अचानक लक्ष्मी का शिकार खुद ही उस के बुने जाल में आ गया. वह कमरे की छत पर बैठ कर गुलेल से पक्षियों को भगा रही थी, तभी गुलेल का पत्थर उधर से गुजर रहे दिनेश को जा लगा.

दिनेश तिलमिलाता हुआ पास आ कर बोला, ‘‘अरे लड़की, तू ने पत्थर क्यों मारा?’’

‘‘अरे बाबू, मैं ने तुम पर जानबूझकर पत्थर नहीं मारा. खेत में बैठे पक्षियों को भगा रही थी, अब आप को लग गया, तो इस में मेरी क्या गलती है?’’

‘‘चल, नीचे उतर. अभी बताता हूं कि तेरी क्या गलती है?’’

‘‘मैं कोई डरने वाली नहीं हूं आप से. आती हूं, आती हूं नीचे,’’ पलभर में लक्ष्मी कमरे की छत से नीचे उतर

गई, फिर बोली, ‘‘हां बाबू, बोलो. कहां चोट लगी है तुम्हें? मैं उस जगह को सहला दूंगी.’’

‘‘मेरे दिल पर,’’ दिनेश उस का हाथ पकड़ कर बोला.

‘‘हाथ छोड़ बाबू, किसी पराई लड़की का हाथ पकड़ना अच्छा नहीं होता है,’’ लक्ष्मी ने हाथ छुड़ाने की नाकाम कोशिश की.

‘‘हम जिस का एक बार हाथ पकड़ लेते हैं, फिर छोड़ते नहीं,’’ दिनेश ने उस का हाथ और मजबूती से पकड़ लिया.

लक्ष्मी ने देखा कि उस ने खूब शराब पी रखी है. उस के मुंह से शराब का भभका आ रहा था.

लक्ष्मी बोली, ‘‘यह फिल्मी डायलौग मत बोल बाबू, सीधेसीधे मेरा हाथ छोड़ दे.’’

‘‘यह हाथ तो अब हवेली जा कर ही छूटेगा… चल हवेली.’’

‘‘अरे, हवेली में क्या रखा है? आज इस गरीब की कुटिया में चल,’’ लक्ष्मी ने जब यह कहा, तो दिनेश खुद ही कमरे के भीतर चला आया. उस ने खुद दरवाजा बंद किया और पलंग पर बैठ गया. ज्यादा नशा होने के चलते उस की आंखों में वासना के डोरे तैर रहे थे.

लक्ष्मी बोली, ‘‘जल्दी मत कर. मेरी झोपड़ी भी तेरे महल से कम नहीं है. देख, अब तक तो तू ने हवेली की शराब पी, आज तू झोपड़ी की शराब पी कर देख. इतना मजा आएगा कि तू आज मस्त हो जाएगा.’’

इस के बाद लक्ष्मी ने पूरा गिलास उस के मुंह में उड़ेल दिया. हलक में शराब जाने के बाद वह बोला, ‘‘तू सही कहती है. क्या नाम है तेरा?’’

‘‘लक्ष्मी. ले, एक गिलास और पी,’’ लक्ष्मी ने उसे एक गिलास और शराब पिला दी. इस बार शराब के साथ नशीली दवा थी. वह चाहती थी कि दिनेश शराब पी कर बेहोश हो जाए, फिर उस ने

2-3 गिलास शराब और पिला दी. थोड़ी देर में वह बेहोश हो गया.

जब लक्ष्मी ने अच्छी तरह देख लिया कि अब पूरी तरह से दिनेश बेहोश है, इस को होश में आने में कई घंटे लगेंगे, तब उस ने रस्सी उठाई, उस का फंदा बनाया और दिनेश के गले में बांध कर खींच दिया. थोड़ी देर बाद ही वह मौत के  आगोश में सो गया.

लक्ष्मी ने पलंग के नीचे पहले से एक गड्ढा खोद रखा था. उस ने पलंग को उठाया और लाश को गड्ढे में फेंक दिया.

लक्ष्मी ने गड्ढे में रस्सी और शराब की खाली बोतलें भी हवाले कर दीं. फिर फावड़ा ले कर वह मिट्टी डालने लगी.

मिट्टी डालते समय लक्ष्मी के हाथ कांप रहे थे. कहीं दिनेश की लाश जिंदा हो कर उस पर हमला न कर दे. जब गड्ढा मिट्टी से पूरा भर गया, तब उस ने उस जगह पर पलंग को बिछा दिया. फिर कमरे पर ताला लगा कर वह जीत की मुसकान लिए बाहर निकल गई.

News Kahani: दोस्ती प्यार और झांसा

नई दिल्ली का डिफैंस कालोनी इलाका. दोपहर के 2 बजे थे. सड़क सुनसान थी. इतने में वहां एक आटोरिकशा आ कर रुका, जिस में एक जवान लड़की बैठी थी. उस ने मिनी स्कर्ट और टाइट शर्ट पहनी हुई थी. आटोरिकशा वाले ने शायद शराब पी रखी थी, तभी तो वह उस लड़की को छेड़ने लगा था.

वह लड़की पहले तो सकपकाई, फिर जोरजोर से चीखनेचिल्लाने लगी, ‘‘बचाओ…बचाओ, यह शराबी मेरे साथ बदतमीजी कर रहा है,’’ और जल्दी से आटोरिकशा से बाहर आ गई.

तभी एक कोठी का दरवाजा खुला और एक कुत्ते के भूंकने की आवाज आई. फिर उस घर से एक नौजवान और उस के 2-3 नौकर बाहर की ओर दौड़ते से आए. यह देख कर वह आटोरिकशा वाला तेजी से निकल गया.

वह लड़की अभी भी डरी हुई थी. उस नौजवान ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘घबराइए मत, वह आटोरिकशा वाला भाग चुका है. लेकिन मैं ने उस

के आटोरिकशा का नंबर नोट कर लिया है.’’

‘‘थैंक्स. मु?ो नहीं पता था कि उस ने शराब पी रखी है, वरना मैं उस के आटोरिकशा में कभी नहीं बैठती.’’

‘‘मेरा नाम रोहन है. मैं सामने वाले घर में रहता हूं. आप चाहें तो थोड़ी देर हमारे घर में आराम कर सकती हैं,’’ उस नौजवान ने कहा.

‘‘मेरा नाम दीपा है और मैं नोएडा में रहती हूं. यहां किसी फ्रैंड से मिलने आई थी,’’ उस लड़की ने कहा.

थोड़ी देर में वे दोनों घर के अंदर थे. दीपा ने पानी पिया और वहां से जाने की बात कही.

रोहन ने दीपा को अपना विजिटिंग कार्ड दिया और बोला, ‘‘कभी भी मेरी याद आए, तो दिए गए नंबर पर काल कर लेना.’’

यह सुन कर दीपा शरमा गई. वह खूबसूरत और गोरी तो थी ही, शरमाते ही उस के चेहरे पर लाली छा गई. वैसे, रोहन भी एक हैंडसम लड़का था और करोड़पति भी.

दीपा रोहन के घर से बाहर निकली और फोन किया, ‘‘कहां है भई तू. बड़ी जल्दी आटोरिकशा ले कर भागा.’’

थोड़ी देर में वही आटोरिकशा वाला दीपा के सामने खड़ा था. वह बोला, ‘‘वह लड़का तेरे हुस्न के जाल में फंसा या नहीं… कहीं हमारी चाल फेल तो नहीं हो गई?’’

‘‘ऐसा कभी हुआ है. आज उस ने अपना विजिटिंग कार्ड दिया है, कल

दिल भी देगा,’’ दीपा ने सिगरेट जलाते

हुए कहा.

दरअसल, दीपा जो दिखती थी, वह थी नहीं. वह तो रोहन जैसे अमीर लड़कों को अपने हुस्न के जाल में फंसा कर उन्हें ब्लैकमेल करती थी. कुछ लड़कों को तो उस ने अपने गुरगों से पिटवा भी दिया था. पैसा पाने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती थी.

इस घटना को बीते 2 महीने हो गए थे और इस बीच दीपा और रोहन कई बार मिल चुके थे, पर ज्यादातर रोहन के औफिस में. दीपा उस के बारे में सबकुछ जान चुकी थी. यहां तक कि रोहन ने उसे बता रखा था कि उस के ब्रीफकेस में हमेशा बहुत सारे पैसे रखे रहते हैं.

अब दीपा ने जाल बुनना शुरू कर दिया था. वह चाहती थी कि रोहन उसे अकेले में किसी होटल में मिले, जहां उस के पास उस का ब्रीफकेस जरूर हो.

एक दिन दीपा ने कहा, ‘‘रोहन, मु?ो तुम्हारे साथ डेट पर जाना है. कब तक हम औफिसऔफिस खेलते रहेंगे…’’

‘‘ओह, तो यह बात है,’’ रोहन बोला. वह भी दीपा के साथ कौफी पीपी कर बोर हो गया था, ‘‘बोलो, कब और कहां मिलना है?’’

‘‘मेरी जानपहचान का एक होटल है,’’ दीपा ने कहा.

‘‘देखो दीपा, अगर होटल में मिलना है, तो वह होटल मेरी पसंद का होगा. वहां हमें कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा.’’

‘‘अच्छा,’’ दीपा ने कह तो दिया, पर किसी अनजान होटल में वह रोहन को अपने साथियों के साथ मिल कर लूटेगी कैसी, यह सम?ा नहीं आ रहा था, पर फिर भी वह बोली, ‘‘जहां तुम कहो, मैं आ जाऊंगी.’’

‘‘फिर ठीक है. हम कल ही मिलते हैं. मैं होटल की लोकेशन तुम्हें भेज दूंगा. मैं सीधा औफिस से वहां आ जाऊंगा.’’

‘‘यह ठीक रहेगा. नेक काम में देरी क्यों करें,’’ दीपा ने रोहन के पास जा

कर कहा.

दीपा के इतना करीब आते ही रोहन ने अपने होंठ उस के होंठों पर रख दिए. दीपा पीछे हटते हुए बोली, ‘‘अभी कुछ भी नहीं. जो भी करना है कल होटल

में कर लेना,’’ फिर वह जाने लगी.

आज रोहन ने दीपा को बड़े ध्यान से देखा था. वह लंबी और खूबसूरत तो थी ही, उस के नाजुक अंग भी जैसे तराशे हुए थे.

रोहन और दीपा ने अगले दिन यानी 24 अक्तूबर को शाम के 6 बजे तय होटल में मिलने का प्लान बनाया. रोहन ने उसे होटल की लोकेशन भेज दी थी.

रोहन समय से थोड़ा पहले ही होटल जा पहुंचा था और लौबी में बैठ कर दीपा का इंतजार कर रहा था. उस के मोबाइल फोन में चार्जिंग कम थी, तो टाइमपास करने के लिए उस ने सामने टेबल पर रखा एक हिंदी अखबार उठा लिया.

यों तो रोहन इंगलिश मीडियम स्कूल और कालेज से पढ़ा था, पर उस की हिंदी पर भी अच्छी पकड़ थी. कुछ

पन्ने पलटने के बाद उस की नजर एक सनसनीखेज खबर पर गई और उत्सुकता में वह खबर पढ़ने लगा.

मामला दिल्ली का था. अखबार के मुताबिक, राजधानी दिल्ली के भलस्वा डेयरी थाने की पुलिस उस समय हैरान रह गई, जब एक औरत थाने पहुंची और उस ने पुलिस वालों को बताया कि

उस ने अपने लिवइन पार्टनर की हत्या कर दी है.

शुरू में तो पुलिस वालों को लगा कि वह औरत शायद दिमागीतौर पर बीमार है, लेकिन उस के बारबार कहने पर पुलिस ने सोचा कि क्यों न एक बार चैक कर लिया जाए.

पुलिस जैसे ही उस औरत के साथ क्राइम सीन पर पहुंची, तो हैरत में पड़ गई. कमरे में फर्श पर खून से लथपथ एक नौजवान पड़ा था.

पुलिस वालों ने तुरंत मर्डर की तसदीक करते हुए थाने में बताया. मौकामुआयना करने पर पता चला कि उस औरत ने अपने साथी की पेचकस, सिलबट्टा, हथौड़े और चाकू से वार कर के हत्या की थी.

पुलिस ने उस नौजवान की लाश को फौरन ही पोस्टमौर्टम के लिए भेज दिया. उस औरत की निशानदेही पर वारदात

में इस्तेमाल सामान को भी जब्त कर लिया गया.

पुलिस के मुताबिक, यह वारदात मंगलवार, 22 अक्तूबर, 2024 की थी. भलस्वा डेयरी थाने में गली नंबर 1, रामा गार्डन, मुकुंदपुर में रहने वाली मुन्नी ने बताया कि वह मोहम्मद तवारक उर्फ साहिल खान के साथ काफी समय से लिवइन रिलेशनशिप में रह रही थी, जिस की घर में पत्थर (सिलबट्टा), हथौड़े और चाकू से हत्या कर दी.

पुलिस की पूछताछ में मुन्नी से पता चला कि उस के पति बंटी यादव की साल 2018 में मौत हो चुकी है. उस के 4 बच्चे हैं, एक लड़की और 3 लड़के. पति की मौत के बाद से वह मुकुंदपुर में रह रही थी.

मुन्नी पिछले 2 सालों से मोहम्मद तवारक उर्फ साहिल खान के साथ रिलेशनशिप में थी. साहिल खान पेशे से प्लंबर था. वह शादीशुदा था और उस का एक बच्चा भी है.

मुन्नी का आरोप है कि मोहम्मद तवारक उस के साथ बदसुलूकी करता था और शराब पीने का आदी था. वह उसे या उस के बच्चों को जान से मारने की धमकी देता था.

वारदात के समय मोहम्मद तवारक नशे की हालत में घर आया और उस के साथ बदसुलूकी करने लगा. फिर मुन्नी ने पत्थर, चाकू और हथौड़े से तवारक के सिर पर वार कर उस की हत्या कर दी.

रोहन यह खबर पढ़ कर चौकन्ना हो गया. वह दीपा के बारे में ज्यादा नहीं जानता था और आज रात होटल में वह उस के साथ पूरी रात बिताने वाला था.

रोहन ने एक गिलास पानी पिया और टहलते हुए लौबी के उस हिस्से में चला गया, जहां से होटल की पार्किंग का हिस्सा शीशे से दिखता था, पर बाहर से लौबी में देखना मुमकिन नहीं था.

रोहन का ध्यान अचानक पार्किंग में घुसती एक कार में गया. थोड़ा भीतर जाते ही वह कार रुकी और उस में से

4 लड़के और एक लड़की बाहर निकली. लड़की ने टीशर्ट और टाइट लैगिंग पहनी हुई थी.

‘अरे, यह तो दीपा है. पर इस के साथ ये 4 लड़के क्या कर रहे हैं?’ रोहन ने सोचा. पहले तो उस का मन पार्किंग में जाने को हुआ, पर फिर उस ने वहीं से दीपा पर नजर रखी.

उधर दीपा इस बात से बेखबर थी कि रोहन लौबी से उसे देख रहा है. वह उन चारों लड़कों के साथ हंसीमजाक

कर रही थी कि तभी एक लड़के ने

उस के पिछवाड़े पर चपत लगाई, तो दीपा ने एकदम से उस के पेट पर मुक्का मार दिया.

वह लड़का एक बार को तो दर्द से बिलबिला गया, फिर दीपा के गले लग गया. इसी बीच उन सब लड़कों ने दीपा को एक तरह से घेर लिया और वह

उन की ओट में वहीं पार्किंग में लैगिंग

पर साड़ी बांधने लगी और मेकअप

करने लगी.

रोहन को यह बात खटकी, पर वह जानना चाहता था कि दीपा उस से

क्या चाहती है, तो वह सावधान भी हो गया. उस के दिमाग में पेचकस से खून करने वाली खबर घूमने लगी.

थोड़ी ही देर में दीपा लौबी में आ गई. रोहन को वहां देख कर दीपा मुसकराई और उस के गले लग गई. सैक्सी स्टाइल में बंधी साड़ी में दीपा के नाजुक अंग उभर रहे थे. उस ने एक खुशबूदार इत्र लगाया हुआ था.

रोहन का मन मचलने लगा, पर पार्किंग वाला सीन उसे फिर सावधान कर रहा था.

रोहन बोला, ‘‘अरे यार, हमें होटल का कमरा शाम को 7 बजे के बाद ही मिलेगा. उस की सफाई हो रही है. तब तक क्यों न कौफी पी ली जाए?’’

‘‘वाह कौफी, इस की तो मु?ो बहुत जरूरत है. रात को मुझे नींद भी नहीं आएगी,’’ दीपा ने आंख मारते हुए कहा.

पर, रोहन के दिमाग में तो वे चारों लड़के घूम रहे थे. दीपा का उन के साथ होटल में आने का क्या मकसद है? यह सवाल रोहन को परेशान कर रहा था.

‘‘ओ हैंडसम, कहां खो गए… अभी तो हम रूम में भी नहीं गए और तुम मु?ो पाने के सपने भी देखने लगे,’’ दीपा इतराते हुए बोली.

‘‘उन पलों का तो मैं बेसब्री से इंतजार कर रहा हूं. और हां, जब तक कौफी आती है, तब तुम अगर फ्रैश

होना चाहती हो, तो वहां साइड में वाशरूम है,’’ रोहन ने अपनी चिंता छिपाते हुए कहा.

‘‘यह अच्छा आइडिया है. तुम बैठो, मैं अभी फ्रैश हो कर आई,’’ दीपा ने कहा और अपना बैग वहीं छोड़ कर वाशरूम में चली गई.

रोहन को जब तसल्ली हो गई कि अब कम से कम 5 मिनट तक दीपा बाहर नहीं आएगी, तो वह तेजी से लौबी के उसी हिस्से में गया, जहां से पार्किंग एरिया दिखता था. वे चारों लड़के और वह कार वहीं खड़ी थी.

रोहन तुरंत वापस आया और दीपा का बैग खंगालने लगा. उस में 2 बड़ीबड़ी छुरियां रखी थीं. एक शीशी में क्लोरोफार्म भी था.

रोहन के दिमाग में अखबार में छपी खबर पर गया और मुन्नी का खयाल आया. कहीं दीपा उसे लूटने के चक्कर में तो नहीं आई है, क्योंकि दीपा को पता था कि रोहन के ब्रीफकेस में हमेशा 5-10 लाख रुपए कैश रहता ही था?

इस से पहले कि दीपा वापस आती, रोहन ने अपना ब्रीफकेस उठाया और चुपचाप वहां से निकल गया. आज अगर उस ने यह खबर नहीं पढ़ी होती, तो पता नहीं उस के साथ क्या हो सकता था.

फ्रैंडशिप क्लब का चक्कर

दीपक को अचानक एक दिन एक ऐसा नौजवान मिला, जो उस की जानपहचान का था और शहर की एक नामी कंपनी में इंजीनियर था.  दीपक ने उस से पूछा, ‘‘बड़े परेशान लगते हो… कोई दिक्कत तो नहीं है?’’पर उस नौजवान ने कुछ नहीं बताया. तभी उस का मोबाइल फोन बजा और वह बात करने में लग गया.दीपक को उस की बात से यह एहसास हुआ कि कोई उस से किसी बैंक अकाउंट में पैसे जमा कराने को कह रहा था.दीपक ने उस से पूछा,

‘‘क्या बात हो रही थी? लगता है कि कुछ पैसे जमा कराने की बात है. संभल कर रहना, इस शहर में ठगों की कोई कमी नहीं है.’’इस पर वह बोला,

‘‘अंकलजी, मैं तो बेवकूफ बन गया.’’‘‘कैसे?’’ दीपक ने पूछा.‘‘मैं ने अखबारों में फ्रैंडशिप क्लबों के इश्तिहार देखे थे. उन में लड़कियों के साथ मौजमस्ती करने के साथ हजारों रुपए रोज कमाने की बातें लिखी थीं. मैं ने उन में से एक का नंबर मिला दिया.’’‘‘फिर क्या हुआ?’’ दीपक भी इस बारे में जानने को बेचैन था.

उस ने बताया, ‘‘अंकलजी, फोन की घंटी बजते ही उधर से किसी लड़की की सुरीली आवाज आई कि क्या आप क्लब के मैंबर बनना चाहते हैं?‘‘मैं ने कहा कि बनना तो चाहता हूं, पर इस के लिए क्या करना होगा?’’‘‘उस ने बताया कि पहले आप को हमारे बैंक अकाउंट में एक हजार रुपए जमा कराने होंगे, तब आप का मैंबर के रूप में रजिस्ट्रेशन हो जाएगा

‘‘इस के बाद आप को आप की पसंद के मुताबिक कालेज गर्ल्स, मौडल, खूबसूरत औरतों के मोबाइल नंबर दे दिए जाएंगे. वे भी हमारे क्लब की मैंबर हैं. फिर आप जब चाहें, उन से बात कर लें.‘‘इतना कह कर उस ने पूछा कि क्या आप पैसे जमा करा रहे हैं?

‘‘मैं ने कहा कि थोड़ा सोच लेता हूं. वैसे, मेरी सम?ा में यह बात नहीं आई थी कि मौजमस्ती करने के लिए लड़कियां जहां पैसे लेती हैं, वहां हमें ही हजारों रुपयों की आमदनी कैसे होगी?‘‘इस पर उस लड़की ने कहा कि देखिए, इस शहर में ऐसी न जाने कितनी लड़कियां और औरतें हैं, जिन की सैक्स की इच्छा पूरी नहीं हो पाती, क्योंकि उन के पति दिनरात कारोबार में फंसे रहते हैं. इन औरतों के पास पैसों की कोई कमी नहीं होती, इसलिए अगर कोई उन्हें खुश कर देता है,

तो उसे वे पैसे क्यों न देंगी?‘‘मैं ने भी सोचा कि मस्ती की मस्ती और पैसे के पैसे. क्यों न मजे लूं और उसी वक्त अकाउंट नंबर मांग कर उस में एक हजार रुपए जमा करा दिए.‘‘2 घंटे बाद ही मेरे मोबाइल फोन पर 4 मोबाइल नंबर मैसेज कर दिए गए. कुछ देर बाद मैं ने एक नंबर पर फोन मिलाया. उधर घंटी बजने लगी, इधर मेरे दिल की धड़कन तेज होने लगी.वहां से एक मर्द की आवाज आई,

तो मैं ने जल्दी से फोन काट दिया. दूसरे नंबर पर फोन मिलाया, तो एक औरत की आवाज आई, ‘हैलो…’ ‘‘मैं ने कहा, ‘जी, यह नंबर लवली फ्रैंडशिप क्लब ने मु?ो दिया है, दोस्ती और मौजमस्ती…’‘‘वह औरत मुझे गालियां देने लगी. कहने लगी, ‘मैं किसी फ्रैंडशिप क्लब को नहीं जानती.’‘‘उस की गालियां सुन कर मेरी हिम्मत अगले 2 नंबरों पर फोन मिलाने की नहीं हुई.‘‘जब दिमाग कुछ शांत हुआ, तो मैं फ्रैंडशिप क्लब के नंबरों पर फोन मिलाने लगा.

2 नंबर तो बंद मिले. एक लगातार बिजी जा रहा था.‘‘शाम को क्लब का नंबर मिला, तो उसी लड़की ने फोन उठाया. मैं ने उसे सारी दास्तान सुनाई. उस ने ‘सौरी’ कहते हुए बताया कि दरअसल, क्लर्क की गलती से आप को इस क्लब के पुराने मैंबरों के नंबर चले गए हैं. हम खुद आप को फोन करने वाले थे, पर कुछ जरूरी काम आ गया. हम क्या जानते थे कि आप इतने बेकरार हैं.‘‘फिर उस लड़की ने कहा कि आप आखिरी नंबर ट्राई कर के देखिए. आप का काम बन जाएगा.

‘‘यह कह कर उस ने फोन काट दिया.‘‘मैं ने दूसरे दिन वह आखिरी नंबर मिलाया. इस बार जवाब में एक प्यारी सी ‘हैलो’ सुनने को मिली. ‘‘मैं ने क्लब की बात की. उस लड़की ने कहा कि उसे सब पता है. क्लब के मैंबर ही उसे फोन कर सकते हैं. फिर उस ने कहा कि मिलने की जगह और समय बताओ. मैं ने उसे शाम के 6 बजे इंडिया गेट पर मिलने का समय दे दिया.

उस ने कहा कि वह जींस और लाल टीशर्ट में होगी.‘‘उसी दिन मु?ो तनख्वाह मिली थी. अपनी ?ि?ाक दूर करने के लिए मैं ने 3-4 पैग शराब के गटक लिए और ठीक पौने 6 बजे मैं इंडिया गेट पहुंच गया.‘‘कुछ ही देर में जींस और लाल टीशर्ट पहने एक लड़की आटोरिकशे से उतरते हुए दिखाई पड़ी. मैं ने उस का नंबर मिलाया, तो उस के मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी.

‘‘मैं लपक कर उस के पास गया. उस ने मु?ो देख कर कहा कि तो आप ही हैं. फिर मेरी कमर पर हाथ मारते हुए कहा कि चलो, कहीं बैठते हैं, वहीं मौजमस्ती की बातें होंगी.‘‘उस ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मु?ो खींचते हुए घास के मैदान के एक छोर पर ले गई.

वहां हम बैठ गए.‘‘उस ने कहा कि खुद तो शराब पी रखी है, हमें भी तो कुछ पिलाओ. उस के बिना मस्ती कैसे आएगी?‘‘हम ने एक आटोरिकशा लिया और कनाट प्लेस की तरफ चले गए. ‘‘रास्ते में ही उस लड़की ने मु?ा से लिपटनाचिपकना शुरू कर दिया. उस ने मेरी जांघों को सहलाना शुरू कर दिया. मैं काफी जोश में आ गया था.‘‘आटोरिकशा के पैसे उस लड़की ने ही दिए.

मैं ने कहा भी कि मैं पैसे दे दूं, तो उस ने कहा कि सारा खर्च हमारा होगा और ऊपर से आप को 10 हजार रुपए तो मिलेंगे ही.‘‘मेरे अलावा आप को एक और लड़की को भी संतुष्ट करना होगा. कुछ खानेपीने के बाद हम होटल के कमरे में चलेंगे. पहले से एयरकंडीशंड कमरा बुक करा रखा है. हम जो कहते हैं, वह करते भी हैं.‘‘बार में बैठ जाने के बाद उस लड़की ने ड्रिंक और स्नैक्स के और्डर दे दिए. मैं ने तो पहले से पी रखी थी, इसलिए सिर्फ 2 पैग लिए, पर वह लड़की देखते ही देखते 4 पैग गटक गई. साथ में आधी दर्जन सिगरेट उस ने फूंक डालीं. बार का बिल भी उस ने ही चुकाया.

‘‘बार से निकलने पर उस ने मु?ो 5 सौ का नोट पकड़ाते हुए वोदका का एक अद्धा लाने को कहा.‘‘मैं ने कहा, ‘पहले ही काफी ले चुके हैं. अब क्या जरूरत है?’‘‘इस पर उस ने कहा, ‘जरूरत है, रात को लंबा खींचने के लिए. और हां, वह भी तो आ रही है. वह अपने साथ एकाध अद्धापव्वा लेती आएगी, पर पहले से इंतजाम रखने में क्या हर्ज है?’‘‘मैं जा कर वोदका का अद्धा ले आया. फिर उस ने एक आटोरिकशा कर के उसे एक होटल में चलने को कहा. ‘‘10 मिनट के भीतर हम होटल की लौबी में थे.

होटल शानदार था. उस लड़की को देखते ही रिसैप्शन पर बैठी औरत ने उसे चाबी पकड़ा दी और कहा, ‘मैडमजी, आप का कमरा नंबर 25 है… इसी फ्लोर पर.’‘‘लड़की ने उस से चाबी ली और चल पड़ी. मैं उस लड़की के पीछेपीछे मानो किसी डोर से बंधा चला जा रहा था. कमरे में घुसते ही लगा, मानो स्वर्ग में आ गया हूं. शानदार डबल बैड, काफी बड़ा सोफा, मेज और कुरसियां. कमरा एयरकंडीशंड था.‘‘अंदर जाते ही लड़की सोफे पर पसर गई. मैं भी उस के बगल में जा बैठा. उस ने मु?ो दबोचते हुए किस कर लिया. फिर उस ने फोन उठाया और आमलेट, नमकीन, काजू, सोड़ा, बर्फ और कोल्ड ड्रिंक की बड़ी बोतल लाने का और्डर दिया.

‘‘10 मिनट के भीतर बैरा सारा सामान ले आया और मेज पर सजा दिया.‘‘लड़की छोटेछोटे पैग बनाने लगी. हम पी रहे थे और वह मेरे बदन से खेल रही थी. इसी बीच धीरेधीरे उस ने कपड़े उतारने शुरू कर दिए थे. मैं यह सब देख कर हैरान था.‘‘उस ने मु?ा से कहा, ‘तुम कपड़े क्यों नहीं उतार रहे?

खेल का एक दौर तो चले. फिर मेरी सहेली भी आती होगी.’‘‘इतना कह कर उस ने वोदका का एक बड़ा पैग गटका और मेरे कपड़े उतारने लगी. फिर उस ने मेरे नाजुक अंगों पर हाथ फेरना शुरू कर दिया. मैं अपना जोश संभाल न सका. इस पर वह लड़की खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘उस ने कहा, ‘कोई बात नहीं, शुरूशुरू में ऐसा होता है. हम तुम्हें तैयार कर देंगे. ‘‘‘अच्छा, यह बताओ कि तुम ने पहले किसी लड़की से सैक्स किया है या नहीं?’‘‘मैं ने कहा, ‘नहीं जी, कभी नहीं.’‘‘वह लड़की बोली, ‘तभी तो… चलो, कोई बात नहीं…’ ‘‘तभी दरवाजे की घंटी बजी. वह लड़की बोली, ‘लो, वह भी आ गई…’‘‘एक मोटीताजी लड़की मिनी स्कर्ट और टौप में थी.

मैं ने जल्दी से बैड की चादर से अपनेआप को छिपाने की कोशिश की, पर उस लड़की ने वह चादर हटा दी और बोली, ‘इस तरह शरमाओगे, तो कैसे काम चलेगा?’‘‘उस लड़की ने आते ही मु?ो बांहों में भरते हुए कहा, ‘चूजा तो अच्छा दिखता है. देखें, कमाल क्या दिखाता है?’‘‘उस ने भी अपने बैग से एक अद्धा निकाला और उस लड़की से कहा, ‘जल्दी खाना मंगवाओ. खाने के बाद ही खेल शुरू होगा.’‘‘उस लड़की ने कमरे में लगे फोन से खाने का और्डर दिया.‘‘15 मिनट के बाद खाना आ गया.

उन दोनों ने तो जम कर खाया, पर ज्यादा नशे में होने के चलते मैं ज्यादा नहीं खा सका.‘‘इस के बाद उस लड़की ने अपने सारे कपड़े उतार डाले और मु?ो पलंग पर धकेल दिया. उस ने मु?ो चूमनाचाटना और दांतों से काटना शुरू कर दिया.‘‘मैं बिलबिला उठा. उस ने अभी असली खेल शुरू ही किया था कि मैं फिर अपना जोश संभाल नहीं पाया. इस पर उस ने मु?ो पलंग से धक्का दे दिया और कपड़े पहनने लगी.‘‘उस ने कहा, ‘यह चूजा सिर्फ दिखने में ठीक है, पर किसी काम का नहीं.

’‘‘मैं बहुत शर्मिंदा हो रहा था. पहली वाली लड़की ने कहा, ‘यह एकदम कोरा है. मैं कोशिश करती हूं.’‘‘अब वह उछल कर पलंग पर आई और मु?ो दबोच लिया. फिर वही चूमनाचाटना और दांतों से काटना, पर उस की लाख कोशिशों के बावजूद मैं जोश में नहीं आ पा रहा था.

आखिर में निराश हो कर उस ने मु?ो एक जोरदार लात मारी और अपने कपड़े पहनने लगी.‘‘तब उस मोटी लड़की ने कहा, ‘इस चूजे को हम छोड़ेंगे नहीं. मैं कालू पठान को फोन लगाती हूं. वही इस का इलाज करेगा.’‘‘यह सुन कर मैं डर गया. उधर वह मोटी लड़की कालू पठान को फोन लगा कर बता रही थी, ‘अरे, एक चूजा जाल में फंसा था, पर किसी काम का नहीं है. तेरे लिए अच्छा रहेगा. जल्दी आ जा.’‘‘पता नहीं, उधर से क्या आवाज आई, पर आधे घंटे बाद दरवाजे की घंटी बजी. मोटी लड़की ने आगे बढ़ कर दरवाजा खोला, तो एक लंबाचौड़ा आदमी अंदर आया.

‘‘अंदर आते ही वह सोफे पर पसर गया और पूछा, ‘कुछ पीने को है?’‘‘अभी वोदका का एक अद्धा वैसे ही पड़ा था. उस ने 2-3 पैग लगाए. दोनों लड़कियों को बांहों में भर कर किस किया और मेरे पास आ कर मेरे गालों को सहलाते हुए बोला, ‘सच, तू तो बड़ा मजेदार चूजा है.’‘‘यह सुन कर मैं और ज्यादा डर गया कि कहीं यह मु?ा से सैक्स न करे. मैं चुपचाप पड़ा था. मेरे शरीर ने हरकत करनी बंद कर दी थी, इधर दोनों अधनंगी लड़कियां ठहाके लगा रही थीं. पठान ने मोटी लड़की से कहा,

‘फिल्म तो तू बनाएगी न? चल तैयार हो जा.’‘‘यह सुनते ही उस लड़की ने बैग से कैमरा निकाल लिया. फिर उस ने पहली वाली लड़की से कहा, ‘देख, यह पूरी तरह कोरा है. काफी चीखपुकार मचाएगा. मेरे बैग में रस्सी होगी. निकाल ला और अच्छी तरह से बांध दे.’‘‘अब मेरी सम?ा में आ गया कि मेरे साथ क्या होने जा रहा था. पठान ने मेरे गालों को काटते हुए कहा, ‘चल, अच्छे बच्चे की तरह पेट के बल लेट जा.’‘‘मैं ने जब कोई हरकत नहीं की, तो उस ने जबरदस्ती मु?ो पलट दिया. लड़कियां खिलखिला कर हंस रही थीं. पहली वाली ने मेरे पैरों को चौड़ा कर पलंग के किनारे वाले हुकों से बांध दिया.

उसी तरह हाथों को भी.‘‘पठान ने कहा, ‘देख, यह चिल्लाएगा. टैलीविजन को तेज आवाज में चला दे.’ ‘‘इस के बाद वह मु?ा पर लद गया. मु?ा पर बेहोशी छा गई. पता नहीं, पठान कब तक मु?ा पर लदा रहा.‘‘सुबह जब आंख खुली, तो दर्द से मैं बेहाल था.‘‘मैं ने समय देखने के लिए हाथ सीधा करना चाहा तो पाया कि घड़ी नहीं थी. गले में सोने की एक चेन थी, वह भी गायब. मोबाइल फोन की तरफ हाथ बढ़ाया, तो एक पुराना सस्ता सा मोबाइल दिखाई पड़ा.‘‘मेरा महंगा मोबाइल गायब हो चुका था.

पैंट की जेब में हाथ डाला, तो पर्स गायब. उस में 6-7 हजार रुपए थे.‘‘मैं बुरी तरह लुट गया था. यह तो कहिए कि मेरे फोन से सिम निकाल कर उन्होंने इस पुराने मोबाइल फोन में लगा दी थी.‘‘इतनी मेहरबानी उन्होंने क्यों की थी, इस का पता मु?ो बाद में चला. ‘‘सब से पहले तो मैं ने दफ्तर में फोन मिला कर सूचना दे दी कि अचानक तेज बुखार हो जाने के कारण आज नहीं आ पाऊंगा.

‘‘तभी होटल का बैरा आया. उस ने पूछा कि रात कैसी रही साहब? अभी कुछ नाश्ता और चाय लेंगे?‘‘मैं ने कहा कि चायनाश्ता ले लूंगा. ‘‘15 मिनट के भीतर चायनाश्ता ले कर आ गया. इस बीच मैं नहाधो कर कपड़े पहन कर तैयार हो गया था.‘‘मैं नाश्ता करने लगा, पर बैरा वहीं खड़ा रहा. उस ने पूछा कि साहब, आज रहोगे? मेरे नहीं कहने पर उस ने कहा कि फिर बिल ले आता हूं.

‘‘मैं ने कहा, ‘बिल? क्या उन लोगों ने बिल नहीं दिया?’‘‘जवाब में बेरे ने कहा कि नहीं, उन्होंने बिल नहीं दिया. उन्होंने तो कहा कि बिल आप देंगे. 8 हजार रुपए का बिल है.‘‘यह सुन कर मेरा दिमाग चकरा गया. इधर बैरे की निगाह वोदका की बोतल पर लगी थी. उस में काफी शराब बची हुई थी. मैं ने उस से कहा कि पीना है, तो पी ले. वह जल्दीजल्दी वोदका गटकने लग गया.

‘‘मैं सोचने लगा कि 8 हजार रुपए कहां से लाऊंगा. ‘‘इधर बैरे ने देखते ही देखते बोतल साफ कर दी. फिर उसी ने कहा कि साहब, आप लुट चुके हो. यहां रोजाना यही खेल होता है. इतने पैसे कहां से लाओगे? पर शराब पिला कर आप ने मु?ो खुश कर दिया. मैं यहां से निकलने में आप की मदद करूंगा.‘‘मैं ने पूछा, ‘वह कैसे?’‘‘उस ने कहा कि आप के पास कोई खास सामान तो है नहीं,

बस एक थैला है. उस थैले में भी कुछ खास नहीं होगा.‘‘मैं ने कहा, ‘कुछ नहीं, एक जोड़ी कपड़े हैं.’बैरे ने कहा कि आप बाहर निकलो और मैनेजर से कहो कि मु?ो आज रुकना है. वह कुछ एडवांस जमा कराने को कहेगा. आप कहना कि अभी एटीएम से पैसे निकलवा कर जमा कराता हूं.

मेरा सामान कमरे में है. इस तरह आप निकल भागना.‘‘मु?ो बैरे की सलाह अच्छी लगी. मैं ने वैसा ही किया. होटल से निकलते ही मु?ो जो बस दिखाई पड़ी, उसी को पकड़ लिया और अपने कमरे पर पहुंचा.‘‘लेकिन असली मुसीबत तो अब शुरू हुई है. फ्रैंडशिप क्लब वालों के दिन में 2-4 फोन आ जाते हैं कि 50 हजार रुपए खाते में जमा कराओ, नहीं तो तेरे साथ जो कुछ हुआ है, उस की फिल्म वे इंटरनैट पर डाल देंगे. ‘‘वे कहते हैं कि इंटरनैट पर तेरी फिल्म लाख रुपए में बिकेगी, हम तो बस 50 हजार रुपए ही मांग रहे हैं…‘‘अंकलजी, अब आप ही बताएं कि मैं अब क्या करूं?

’’दीपक ने उस से पूछा, ‘‘क्या तू ने इस की शिकायत पुलिस में की?’’उस ने बताया, ‘‘हां, मैं थाने गया था. पुलिस को सारी बातें बताईं, पर उन्होंने मु?ो ही धमकाना शुरू कर दिया. ‘‘अंकलजी, मैं तो बरबाद हो गया. मेरे क्रेडिट कार्ड को भी उन्होंने खंगाल डाला. 40-45 हजार रुपए थे. एक रुपया भी नहीं छोड़ा.’’दीपक ने कहा, ‘‘बेटा, गलती तो तू ने की है. इतना पढ़नेलिखने और इंजीनियर जैसी पोस्ट पर लगने के बाद भी तुम इन फर्जी फ्रैंडशिप क्लबों की असलियत को नहीं सम?ा सके?

‘‘खैर, जो हुआ सो हुआ. मु?ो तुम से पूरी हमदर्दी है. अब तू एक सलाह मान. सब से पहले यह कर कि इस फोन का सिम निकाल कर फेंक दे और दूसरा नया सिम ले ले. इस से उन के मोबाइल फोन आने बंद हो जाएंगे.‘‘बाकी एक शिकायत इलाके के डीसीपी के नाम लिख कर दे दे.

ऐसी फिल्म इंटरनैट कंपनियों को वे बेच सकते हैं, इस में कोई दोराय नहीं. पर अगर तू उन्हें 50 हजार रुपए दे भी देता है, तो इस की क्या गारंटी है कि वे फिल्म लौटा देंगे या तोड़ डालेंगे?’’उस नौजवान ने फोन से तुरंत सिम निकाल कर पर्स में रख लिया और अपने कमरे पर जा कर दस्तावेज और फोटो ले कर मोबाइल स्टोर पर चला गया.इस के बाद उस ने कसम खाई कि वह कभी इन चक्करों में नहीं पड़ेगा.

तू रुक, तेरी तो: रुचि की अनकही कहानी

‘‘चटाक…’’

समर्थ ने आव देखा न ताव, रुचि के गालों पर  झन्नाटेदार तमाचा आज फिर रसीद कर दिया. तमाचा इतनी जोर का था कि वह बिलबिला उठी. आंखों से गंगायमुना बह निकली. वह गाल पकड़े जमीन पर जा बैठी.

समर्थ रुका नहीं, ‘‘तू रुक तेरी तो बैंड बजाता हूं अभी,’’ कहते हुए खाने की थाली जमीन पर दे मारी, फिर इधरउधर से लातें ही लातें जमा कर अपना पूरा सामर्थ्य दिखा गया.

5 साल का बेटा पुन्नू डर कर मां की गोद में जा छिपा.‘‘चल छोड़ उसे, बाहर चल,’’ समर्थ उसे घसीटे जा रहा था, ‘‘चल, नहीं तो तू भी खाएगा…’’ वह गुस्से से बावला हो रहा था.‘‘नई…नई… जाना आप के साथ, आप गंदे हो,’’

पुनीत चीखते हुए रो रहा था.‘‘ठीक है तो मर इस के साथ,’’ समर्थ ने  झटके से उसे छोड़ा तो वह गिरतेगिरते बचा. अपने आंसू पोंछता हुआ भाग कर वह मां के आंसू पोंछने लगा.

रुचि का होंठ कोने से फट गया था, खून रिस रहा था.‘‘मम्मा, खून… आप को तो बहुत चोट आई है. गंदे हैं पापा. आप को आज फिर मारा. मैं उन से बात भी नहीं करूंगा. आप पापा से बात क्यों करते हो, आप कभी बात मत करना,’’

वह आंसुओं के साथ उस का खून भी बाजुओं से साफ करने लगा, ‘‘मैं डब्बे से दवाई ले आता हूं,’’ कह कर वह दवा लेने भाग गया.रुचि मासूम बच्चे की बात पर सोच रही थी, ‘कैसे बात न करूं समर्थ से. घर है, तमाम बातें करनी जरूरी हो जाती हैं, वरना चाहती मैं भी कहां हूं ऐसे जंगली से बात करना.

2 घरों से हैं, 2 विचार तो हो ही सकते हैं, वाजिब तर्क दिया जा सकता है कोई है तो, पर इस में हिंसा कहां से आ जाती है बीच में. समर्थ को बता कर ही तो सब साफ कर के खाना तैयार कर दिया था समय पर. अम्माजी को आने में देर हो रही थी.

फोन भी नहीं उठा रही थीं. खाना तैयार नहीं होता, तो भी सब चिल्लाते.’‘‘अपने को गलत साबित होते देख नहीं पाते ये मर्द. बस, यही बात है,’’

अपनी सूजी आंखों के साथ जब अपने ये विचार अंजलि को बताए तो वह हंस पड़ी.‘‘यार देख, मन तो अपना भी यही करता है.

कोई अपनी बात नहीं मानता तो उसे अच्छे से पीटने का ही दिल करता है. पर हम औरतों के शरीर में मर्दों जैसी ताकत नहीं होती, वरना हम भी न चूकतीं, जब मरजी, धुन कर रख देतीं, अपनी बात हर कोई ऊपर रखना चाहता है.’’

‘‘तू तो हर बात को हंसी में उड़ा देना चाहती है. पर बता, कोई बात सहीगलत भी तो होती है.’’‘‘हां, होती तो जरूर है पर अपनेअपने नजरिए से.’’‘‘फिर वही बात. ऐसे तो गोडसे और लादेन भी अपने नजरिए से सही थे. पर क्या वे वाकई में सही कहे जा सकते हैं?’’

अंजली को सम झ नहीं आ रहा था, वह रुचि का ध्यान कैसे हटाए. आएदिन मासूम सी रुचि के साथ समर्थ की मारपीट की घटनाएं उसे कहीं अंदर तक  झिझिक झोड़ रही थीं, बेचारे नन्हे पुन्नू के दिलोदिमाग पर क्या असर होता होगा. सारी बातें सुनी उस ने, किचन से सटे पूजाघर में सुबह से बह रहे दूध, बताशे, गुड़, खीर, मिष्ठान के चढ़ावे की सुगंध आकर्षित लग रही थी.

मक्खियों, चीटियों की बरात से परेशान हो कर रुचि ने लाईजोल डालडाल कर किचन के साथसाथ पूजाघर को भी अच्छी तरह चमका डाला था. किचन के चारों कोनों में पंडित मुखानंद के बताए 5-5 बताशे रख कर दूध चढ़ाने के टोटके का आज भी पालन कर के अपने भाई के घर गई.

सास को लौटने में देर हो रही थी. चींटियों, मक्खियों के बीच रात का खाना बनाना मुश्किल हो रहा था. रुचि ने तंग आ कर सफाई का कदम उठाया था, क्या गलत किया उस ने. रुचि की कोई गलती आज भी उसे नहीं लगी. और फिर, गलती हो भी तो क्या कोई जानवरों की तरह सुलूक करता है भला? रोजरोज ऐसे बेसिरपैर के टोटके, पूजा, पाखंड उन का चलता ही रहता.

हैरानी तो यह कि बहुत मौडर्न बनने वाला समर्थ भी ये सब मानता है. पहले ही मना किया था रुचि से कि समर्थ कुछ ज्यादा ही जता रहा है अपने को, अच्छे से एक बार और सोच ले, फिर शादी कर.

पर मानी नहीं. पापा के सिर का बो झ जल्द से जल्द उतार कर उन्हें खुश देखना चाहती थी वह तो?‘‘तू भी न, गौ बनी हुई है, गौ के भी 2 सींगें, 4 लातें और लंबी दुम होती है, वक्त आने पर इस्तेमाल भी करती है. पर तू तो बिलकुल सुशील, संस्कारी अबला नारी बनी हुई है, बड़ेबड़े मैडल मिलेंगे तु झे क्या?

इतनी ज्यादती सहती क्यों है? डिपैंडैंट है इसलिए…’’ इतनी पढ़ीलिखी है, बोला था जौब कर ले. पर नहीं, पतिपरमेश्वर नहीं मानते. अरे, मानेंगे कैसे भला, फुलटाइम की दासी जो छिन जाएगी,’’ उस ने चिढ़ते हुए उस की ही बात कही. अंजलि का घर रुचि से कुछ ही दूर था.

बचपन से कालेज तक साथ पढ़ी अंजलि अपनी शादी के 2 महीने बाद ही पति के हादसे में हुई मौत के बाद वापस आ कर उसी स्कूल में पढ़ाने लगी थी. पड़ोस के ब्लौक में ही रुचि की शादी हुई थी तो अकसर अंजलि लौटते समय रुचि से मिलने आ जाया करती.

खूबसूरत रुचि को स्मार्ट समर्थ ने अपने को खुलेदिमाग का जता, उस के पिता हरिभजन के आगे अपने को चरित्रवान बताया, महात्मा गांधी, विवेकानंद आदि पर अपना पुस्तक संग्रह दिखा कर अच्छे होने का प्रमाण देदे कर, उस से शादी तो कर ली पर शादी के बाद ही उस की 18वीं सदी की मानसिकता सामने आ गई.

खुलेदिमाग की हर तरह की सफाईपसंद रुचि जाहिलों में फंस कर रह गई. पिता के संस्कार थे, ‘बड़ों  की आज्ञा का पालन करना है सदैव, अवज्ञा कभी नहीं,’ सो, किए जा रही थी. मां तो थी नहीं. पर नेकी, ईमानदरी, सत्य पर चलने वाले पिता ने अच्छे संस्कार देने में कोई कसर नहीं छोड़ी. पर यहां उन बातों की न इज्जत है न जरूरत.

अब रुचि को कौन सम झाए, उस ने तो पिता की बातें गांठ बांध अंतस में बिठा ली हैं. बात वही है, ‘सबकुछ सीखा हम ने, न सीखी होशियारी.’ क्या करूं इस लड़की का? रोज ही मार खाए जा रही है. पर पिता से बताती भी नहीं कि वे आघात सह नहीं पाएंगे. लेदे के वही तो हैं उस के परिवार में.पुन्नू घर पर होता तो वे रोतेरोते अपनी मासूम जबां से मम्मा के साथ घटी पूरी हिंसा का ब्योरा अंजलि मौसी को देने की कोशिश करता.

‘कैसे दादी, बूआ, चाचू सभी पापा की साइड लेते हैं. कोई मम्मा को बचाने नहीं आता. कहते हैं, और मारो और मारो.’ अंजलि सोचती, वे बचाने क्या आएंगे, सभी एक थाली के चट्टेबट्टे हैं. जंगली गंवई हूश. छोटे से बच्चे में दिनबदिन कितना आक्रोश भरता जा रहा है, अंजलि देख रही थी.

इतनी नफरत, इतना गुस्सा उस अबोध के व्यक्तित्व को बरबाद किए जा रहा है. पर करती भी क्या? रुचि तो हठ किए बैठी थी कि उस की मूक सेवाकभी तो रंग लाएगी, एक दिन प्रकृति सब ठीक करेगी. अब तो पुन्नू भी पापा, चाचू के जैसे चीजें तोड़नेफेंकने लगा है.

गुस्सा होता तो घरवालों की तरह चीखता है. खाना उठा कर जमीन पर दे मारता, तो रुचि थप्पड़ रसीद करती. तो रुचि को ही डांट पड़ने लगती. उसे तुरंत साफ करने के लिए आदेश हो जाता. घर के लोग शह भी देते उसे. कितनी बार देखासुना है उन्हें कहते हुए, ‘लड़का है, लड़की थोड़ी ही है. मर्द है वह क्यों करेगा भला.

बहू, चल साफ कर जल्दी से, मुखानंद महाराज आते ही होंगे, इस की कुंडली का वार्षिक फल विचार कर के. आजा मेरे लाल, तू तो हमारे घर का वारिस है. तेरा कोई कुछ भी नहीं बिगड़ेगा. तु झे तो, मिनिस्टर बनना है.

आज वे तेरे और तेरे पापा समर्थ के लिए असरदार टोटका बताने वाले हैं. नई तावीज भी लाएंगे तेरे लिए.’उस दिन अंजलि स्कूल से लौटी तो रुचि के घर के आगे ऐंबुलैंस खड़ी देख कर माथा ठनका, किस को क्या हो गया? उस ने पांव तेजी से बढ़ाए, पास पहुंची तो देखा लोग रुचि को स्ट्रैचर पर डाले ऐंबुलैंस से निकाल कर घर में ले जा रहे हैं. रुचि बेसुध थी.

खून से लथपथ सिर फट गया था, खून बह कर माथेचेहरेगरदन, कपड़ों पर जम चुका था. कुछ अभी भी सिर से बहे जा रहा था. पड़ोसियों ने बताया, ‘घर मैं काफी देर तक आएदिन की तरह चीखपुकार होती रही थी. 2 घंटे से रुचि यों ही पड़ी रही.

तब जा कर ऐंबुलैंस ले आने का इन्हें होश आया. तब तक देर हो चुकी थी. रुचि ने ऐंबुलैंस में जाते ही दम तोड़ दिया.’रुचि के पिता हरिभजन को किसी भले मानस ने खबर दे दी थी. वह ही उन्हें थाम कर रुचि के अंतिम दर्शन करवाने ले आया था.

वे रुचि के खून सने सिर पर हाथ रख कर बिलख उठे. पुन्नू को लिपटा कर फूटफूट कर रो पड़े थे. हादसे से अवाक अंजलि के रुंधे गले से शब्द ही नहीं निकल रहे थे. अंकल को क्या और कैसे ढाढ़स बंधाए. उस को देखते ही रुचि के पिता विलाप करते हुए बोल पड़े, ‘‘बेटी, इतना सब हो रहा था उस के साथ, तू ने कुछ बताया क्यों नहीं कभी.

न उस ने कभी कोई भनक लगने दी. लकवे के कारण एक पैर से लाचार मु झे यह कह कर कि ‘ससुराल में यहां पूजा, पंडित, शकुन, अपशकुन बहुत मानते विचार करते हैं, घर नहीं आने देती थी मु झे. खुद ही पुन्नू को ले कर हफ्ते में एकदो बार आ जाती थी. तू तो उस की पक्की सहेली थी.

तु झ से पूछता तो तू कहती बिलकुल ठीक है, आप उस की चिंता मत कीजिए. अब बता, ठीक है? चली गई मेरी रुचि. ‘वे अंजलि को, तो कभी रुचि के शव को पकड़ कर लगातार हिचकियों से रोए जा रहे थे.उन का कं्रदन सुन अंजलि का दिल टूकटूक हुआ जा रहा था.

अपनी आंखों के सैलाब को किसी तरह रोकते हुए वह बोली, ‘‘अंकल, संभालिए अपने को, आप की तबीयत पहले ही ठीक नहीं. इसी से रुचि ने कसम दे रखी थी आप से कुछ न कहूं. मैं क्या करती अंकल.

यहां आप की अच्छी सीख ने उसे बांधे रखा, जिन का इन जाहिलों के यहां कोई मोल नहीं था,’’ पुन्नू अंजलि को देखते ही उस से लिपट गया.‘‘अंजलि मौसी, इन सब ने मिल कर मेरी मम्मा को मारा. पापा ने दीवार पर मम्मा का सिर दे मारा था.

वे गिर पड़ीं. मम्मा तभी से मु झ से बोली नहीं बिलकुल भी. दादी ने पापा, चाचू को भगा दिया. अब  झूठ कह रही हैं कि मम्मा सीढ़ी से गिर पड़ी,’’ वह रुचि से लिपट कर जोरजोर से रोने लगा. ‘‘उठो न मम्मा, अपने पुन्नू से बोलो न. मैं छोड़ूंगा नहीं किसी को. बड़ा हो कर बैंड बजा दूंगा इन सब की,’’ वह समर्थ से सीखे हुए शब्दों को दोहराने लगा.

रोजरोज की चीखनेचिल्लाने व मारपीट की आवाजों से तंग आ कर आज किसी पड़ोसी ने 100 नंबर डायल कर दिया था. पुलिस आ गई. नन्हे पुन्नू के बयान पर तफ्तीश हुई.

2 दिन के अंदर पुलिस ने समर्थ और उस के भाई को धरदबोचा. उन्हें जेल हो गई. नन्हा पुनीत किस के पास रहता, समस्या थी. क्योंकि पुन्नू अपनी दादी, बूआ के पास रहने को बिलकुल तैयार न था. अंजलि उसे यह कह कर अपने साथ ले गई.

‘‘अंकल, आज के दौर में सज्जनता, सिधाई, संस्कारों का मोल सम झने वाले बहुत कम हैं. दुनिया के हिसाब से अपने को तैयार करना चाहिए और सामने आई चुनौतियों को सिधाई से नहीं, चतुराई से निबटना चाहिए. सिधाई से अकसर आज की दुनिया मूर्ख बनाती है, दबाती है, अपना उल्लू सीधा करती है.

जो, रुचि  झेलती रही. कितना सम झाया था उसे. अंकल, पुन्नू चाहे कहीं भी रहे मैं उस को दूसरा समर्थ कभी नहीं बनने दूंगी. आप निश्चित रहें अंकल. शादी के 2 महीने बाद ही दुर्घटना में पति प्रशांत की मौत के बाद निरुद्देश्य बंजर से मेरे जीवन को पुनीत के रूप में एक नया लक्ष्य मिल गया है.

अब आप भी मु झे अपनी रुचि ही सम िझए अंकल. मैं इसे ले कर आप से मिलने उसी के जैसे आती रहूंगी.’’ रुचि के पिता हरिभजन के कांपते बूढ़े हाथ अंजलि के सिर पर जा रुके थे. उन से कुछ बोलते न बना, केवल आंसू आंखों से बहे चले जा रहे थे. अंजलि भीगे मन से उन्हें पोंछने लगी.

पुन्नू ने दोनों हाथों से नाना और अंजलि मौसी को कस कर पकड़ लिया और आंखें मीचे वह गालों पर ढुलकते आंसुओं में अपनी मम्मा का एहसास ढूंढ़ रहा था.‘‘मम्मा…’’ उस की हिचकियों के साथ निकलता बारबार वह एक शब्द सभी के हृदय को बींध रहा था.

एक ऐसी जिंदगी : इला की जिंदगी में क्या चल रहा था

18 साल की इला रामपुर में रहती थी. वह इसी साल कालेज में आई थी और हर रोज कालेज जाती थी. वह एक भी क्लास मिस नहीं करती थी. दरअसल, इला को पढ़ाईलिखाई बहुत ही खास लगती थी.

एक दिन इला मनोविज्ञान की क्लास में मगन हो कर व्यवहार मनोविज्ञान के एक बिंदु पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही थी कि उस के ठीक बगल में एक अजनबी लड़की आ कर बैठ गई.

इला ने चौंक कर देखा. वह एक जवान लड़की लग रही थी. इस से पहले कि इला कुछ कह पाती या कुछ सोचती, वह जवान लड़की आगे बढ़ कर इला से बोली, ‘‘हैलो, मेरा नाम गीता है. मैं ने आज ही कालेज में दाखिला लिया है.’’

इला को गीता की आवाज एकदम सच्ची और खरी सी लगी, इसलिए इला ने उस से बात करनी शुरू कर दी.

गीता इला से 2 साल बड़ी थी. किसी वजह से कालेज की पढ़ाई देर से शुरू कर रही थी. इला ने उसे मनोविज्ञान की प्रयोगशाला दिखाई. उसे पिछले नोट्स भी दे दिए.

धीरेधीरे गीता और इला की आपस में अच्छी ट्यूनिंग बन गई. गीता बहुत ही संयत और सुलझ हुई थी. गीता की कुछ बातें खास थीं. वह अपने हैंडबैग खुद ही बनाती थी. उस के हाथ में जो रूमाल रहता था, वह भी गीता किसी पुराने कुरते को काटछांट कर तैयार कर लेती थी.

इला आज तक गीता के घर नहीं गई थी, मगर इला मन ही मन में यह कल्पना करती थी कि गीता का परिवार बहुत ही शानदार होगा. मगर, गीता ने उसे कभी भी अपने घर नहीं बुलाया था. इला ने भी कभी जिद नहीं की थी.

वजह यह थी कि इला कालेज की पढ़ाई के बाद एक संस्थान से जुड़ कर समाजसेवा किया करती थी. यह संस्थान अपने शिविर लगा कर झुग्गी बस्ती में रहने वालों को साफसफाई की आदतें सिखाया करता था.

इला को उस संस्थान से बहुतकुछ सीखने को मिला था. उस ने यह जाना था कि इस दुनिया में करोड़ों लोग गरीबी में जी रहे हैं. उन्हें अगर हम कुछ भी दे सकें, तो हमारी जिंदगी उपयोगी हो जाएगी.

इला को इस तरह के काम करने में बहुत ही खुशी मिलती थी. एक बार रविवार के दिन उस के संस्थान ने एक बस्ती में ऐसा ही शिविर लगाया. इला समय पर बस्ती में पहुंच गई थी. उस के बैग में तमाम सामान था. पानी की बोतल, घर पर तैयार सूजी के बिसकुट, पुरानी जींस को साफधो कर काट कर तैयार किए गए छोटेछोटे थैले थे.

इला के सीनियर भी शिविर में पहुंच गए थे. अपने कार्यक्रम के तयशुदा एजेंडे के मुताबिक वे सभी एकएक कर हर ?ाग्गी के पास जा कर दरवाजा खटखटाते हुए बढ़ते रहे.

हौलेहौले उन के साथ 50 से ज्यादा झुग्गी वाले शामिल हो गए. अब वे सभी एक जगह पर खड़े हो कर आपस में चर्चा करने लगे. तभी एक लड़की नल से पानी भर कर ले जाती दिखाई दी.

इला ने उस लड़की की तरफ पहले तो सरसरी नजर से ही देखा, मगर दोबारा देखा तो उस के मुंह से बरबस ही निकल गया, ‘‘गीता… ओ गीता…’’

उधर पानी भर कर जाती हुई गीता ने भी इला की आवाज पहचान ली थी. वह ठिठक कर पलट गई और, ‘‘अरे, इला…’’ कह कर गीता ने बालटी उसी जगह पर रख दी और इला से जा कर मिली. उस दिन इला ने गीता की असलियत जानी थी.

अब, इला के कहने पर गीता भी उस शिविर में शामिल हुई, मगर इला को उस के बारे में जान कर बहुत ही अजीब सा लगा था. इला को झुग्गी बस्ती में रहने वाली गीता से दोस्ती करने की कोई फिक्र नहीं थी, मगर गीता इतनी गरीबी में भी इतनी सहज है, इला को इस बात पर बहुत हैरानी होती थी.

अब इला को गीता से और भी ज्यादा लगाव होने लगा था… इला को अब हर बात पता चल गई थी. गीता की सौतेली मां, गीता के 2 सौतेले भाईबहन. उस के पिता का लापरवाह स्वभाव…

इला का तो बड़ा मन होता कि वह गीता को अपने घर पर ले कर आए, मगर यह भी तो बहुत ही मुश्किल था. इलाका संयुक्त परिवार था. 4 कमरे का मकान था, मगर उस छोटे से घर में भी तो

10 लोग रहते थे. इला के मातापिता और चाचाचाची सभी टीचर थे. बेमतलब सुविधा बढ़ाना किसी को भी पसंद नहीं था. यही आदत इला की भी थी.

गीता और इला मन लगा कर पढ़ती थीं. कालेज में उन दोनों ने वृक्षारोपण अभियान और प्लास्टिकमुक्त शहर अभियान में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था.

गीता तो वैसे भी खूब मेहनती थी. कालेज के आखिरी दिन वे दोनों अपनी ग्रेजुएशन की डिगरी पा कर खुश थीं. इला और आगे पढ़ना चाहती थी, मगर गीता की शादी तय कर दी गई थी. इला ने उसे बहुत सम?ाया कि ऐसे बेमेल रिश्ते को मना कर दे, मगर गीता ने उस की सलाह पर एक खामोशी ओढ़ ली थी.

कुछ पल ठहर कर गीता ने जवाब दिया था, ‘‘जितनी अशांति और असंतोष इस घर में है, पति का घर शायद ठीकठाक ही होगा.’’

गीता वहां से चली गई. इला के मन में अजीब खालीपन आने लगा. उस ने एक रैस्टोरैंट में पार्टटाइम नौकरी शुरू कर दी.

इला को एक महीना भी नहीं हुआ था कि रैस्टोरैंट की मालकिन ने उसे एक मनपसंद काम दे दिया. वह काम था मालकिन की बेटी को पढ़ाना. इला ने उस लड़की को खुशीखुशी सब पढ़ाया.

इला की मुलाकात वहां अकसर एक लड़के से होती थी. उस का नाम शान था. वह रैस्टोरैंट की मालकिन का भतीजा था.

शान यहां रह कर वर्क फ्रौम होम कर रहा था. वह मन ही मन इला को बेहद चाहने लगा था. इला की सरलता शान को बेहद भाती थी. सच यह था कि आग दोनों तरफ बराबर लगी थी.

एक दिन उन दोनों ने एकदूसरे से अपने मन की बात कह दी. इला के मातापिता को कोई परेशानी नहीं थी. वे जातपांत, धर्मकर्म या किसी भी रीतिरिवाज में कतई भरोसा नहीं करते थे, इसलिए उन दोनों का चट मंगनी पट ब्याह हो गया.

शान की मुंबई में नई नौकरी लगी थी. शान और इला वहां आ गए. मुंबई की उन की नईनवेली जिंदगी शुरू हो गई.

एक दिन शान ने इला को खुशखबरी दी कि उसे एक खास ट्रेनिंग के लिए तकरीबन 3 महीने के लिए विदेश जाना है. शानदार मौका है, बहुतकुछ सीखने को मिलेगा.

इला को यह सुन कर बहुत खुशी हुई. वह शान की तरक्की से बेहद खुश थी.

शान विदेश चला गया. खाली समय में इला को यहां आ कर भी समाजसेवा और जनसेवा का मौका मिल गया. शान को उस की इस इच्छा से कोई परेशानी नहीं थी… फालतू समय बरबाद करने की जगह इला सम?ादारी ही कर रही थी.

अब इला साफसफाई की आदत सिखाने जबतब धारावी के तंग इलाके में जाती रहती थी. एक दिन इसी तरह इला मुंबई के धारावी के किसी तंग इलाके में साफसफाई की आदतें सिखा रही थी कि उस ने कुछ बच्चों के हाथ में रूमाल देखे.

वे रूमाल देख कर इला ठिठक गई. ऐसे रूमाल तो गीता तैयार करती थी, उसे अच्छी तरह से याद था. वह झट से बच्चों के पास आई.

एक बच्चे ने बताया कि बचपन फाउंडेशन की एक गीता दीदी हैं, उन्होंने ही ये रूमाल उन्हें दिए हैं.

वहां से घर लौट कर इला ने शान को आज की सारी बातें बताईं, उस के बाद गीता को फोन लगाया.

गीता ने आज तक इला को अपनी यह  सचाई नहीं बताई थी. वह हमेशा यही कहती थी कि ससुराल में सब

ठीक है, जबकि कुछ भी ठीक नहीं था. 3 महीने में ही गीता को उस घर से धक्के मार कर निकाल दिया गया था.

वजह यह थी कि गीता अपने से 12 साल बड़े पति को साफसफाई की आदत सिखाने लगती थी. यह बात उस के पति और सास को बिलकुल भी पसंद नहीं आई.

पर गीता ने हिम्मत नहीं हारी थी. वह अपने मन में हौसला रख कर अपने पैरों पर खड़ी होने का संकल्प ले चुकी थी. अब वह अपने दम पर जीना चाहती थी, इसलिए वापस रामपुर नहीं गई.

गीता अब मुंबई में ही रहती थी. वह नौकरी करती थी और अपना एक फाउंडेशन भी चला रही थी, मगर अभी बस शुरुआत ही थी. वह इला को सब बताने ही वाली थी.

इला को गीता का यही भोलापन बहुत पसंद था. इला को मालूम था कि गीता बहुत ही जरूरू है. वह कुछ बेहतर ही करेगी.

इला ने गीता को बताया कि वह भी मुंबई में आ कर रहने लगी है, तो गीता बहुत खुश हुई. गीता उस के लिए भेंट में अपने हाथों से बनाए रूमाल लाना चाहती थी, मगर इला को तो पूरी गीता ही मिल रही थी. वह समाज के लिए कुछ करना चाहती थी. अब तो उस की खुशी का ठिकाना न था. उसे उपयोगी जिंदगी जीने को मिल रही थी.

तेरा जाना: आखिर क्यों संजना ने लिया ऐसा फैसला?

दोमंजिले मकान के ऊपरी माले में अपनी पैरालाइज्ड मां के साथ अकेला बैठा अनिल खुद को बहुत ही असहाय महसूस कर रहा था. मां सो रही थी. कमरा बिखरा पड़ा था. उसे अपनी तबीयत भी ठीक नहीं लग रही थी. सुबह के 11 बज चुके थे. पेट में अन्न का एक भी दाना नहीं गया था. ऐसे में उठ कर नाश्ता बनाना आसान नहीं था. वैसे पिछले कई दिनों से नाश्ते के नाम पर वह ब्रेड बटर और दूध ले रहा था.

किसी तरह फ्रेश हो कर वह किचन में घुसा. दूध और ब्रेड खत्म हो चुके थे. घर में कोई ऐसा था नहीं जिसे भेज कर दूध मंगाया जा सके. खुद ही घिसटता हुआ किराने की शॉप तक पहुंचा. दूध, मैगी और ब्रेड के पैकेट खरीद कर घर आ गया.

अपनी पत्नी संजना के जाने के बाद वह यही सब खा कर जिंदगी बसर कर रहा था. घर आ कर जल्दी से उस ने दूध उबालने को रखा और ब्रेड सेकने लगा.

तभी मां ने आवाज लगाई,” बेटा जल्दी आ. मुझे टॉयलेट लगी है.”

अनिल ने ब्रैड वाली गैस बंद की और दूध वाली गैस थोड़ी हल्की कर के मां के कमरे की तरफ भागा. तब तक मां सब कुछ बिस्तर पर ही कर चुकी थीं. उन से कुछ भी रोका नहीं जाता. वह मां पर चीख पड़ा,” क्या मां, मैं 2 सेकंड में दौड़ता हुआ आ गया पर तुम ने बिस्तर खराब कर दिया. अब यह सब बैठ कर मुझे ही धोना पड़ेगा. कामवाली भी तो नहीं आ रही न.”

मां सकपका गईं. दुखी नजरों से उसे देखती हुई बोलीं,” माफ कर देना बेटा. पता नहीं कैसी हालत हो गई है मेरी. कितनी तकलीफ देती हूं तुझे. मैं मर क्यों नहीं जाती” कहते हुए वह रोने लगी थीं.

“ऐसा मत कह मां.”अनिल ने मां का हाथ पकड़ लिया.” पिताजी पहले ही हमें छोड़ कर जा चुके. भाई दूसरे शहर चला गया. संजना किसी और के साथ भाग गई. अब मेरा है ही कौन तेरे सिवा. तू भी चली जाएगी तो पूरी तरह अकेला हो जाऊंगा.”

अनिल की भी आंखें भर आई थीं. उसे संजना की याद तड़पाने लगी थी. संजना थी तो सब कुछ कितनी सहजता से संभाले रखती थी. मां की तबियत तब भी खराब थी मगर संजना इस तरह मां की सेवा करती थी कि तकलीफों के बावजूद वे हंसती रहती थीं. उस समय छोटा भाई और पिताजी भी थे. मगर घर के काम पलक झपकते निबट जाते थे.

अनिल की आंखों के आगे संजना का मुस्कुराता हुआ चेहरा आ गया जब वह ब्याह कर घर आई थी. नईनवेली बहू इधर से उधर फुदकती फिरती थी. मगर अनिल उस की मासूमियत को बेवकूफी का नाम देता था. वक्तबेवक्त उसे झिड़कता रहता था. वह घर से एक भी कदम बाहर रख देती थी तो घर सिर पर उठा लेता था. उस की सहेलियों तक से उसे मिलने नहीं देता था. समय के साथ चपल हिरनी सी संजना   पिंजरे में कैद बुलबुल जैसी गमगीन हो गई. हंसी के बजाय उस की आंखों में पीड़ा झांकने लगी थी. फिर भी कोई शिकायत किए बिना वह पूरे दिन घर के कामों में लगी रहती.

आज अनिल को याद आ रहा था वह दिन जब संजना की मौजूदगी में एक बार उसे बुखार आ गया था. उस वक्त उन की शादी को ज्यादा दिन नहीं हुए थे. तब संजना पूरे दिन  उस के हाथपैरों की मालिश करती रही थी. अनिल कभी संजना से सिर दबाने को कहता, कभी कुछ खाने को मंगाता तो कभी पत्रिकाओं में से कहानियां पढ़ कर सुनाने को कहता  हर समय संजना को अपनी सेवा में लगाए रखता.

एक दिन उस के मन की थाह लेने के लिए अनिल ने पूछा था,” मेरी बीमारी में तुम मुझ से परेशान तो नहीं हो गई? ज्यादा काम तो नहीं करा रहा हूं मैं ?”

संजना ने कुछ कहा नहीं केवल मुस्कुरा भर दिया तो अनिल ने उसे तुलसीदास का दोहा सुनाते हुए कहा था,” धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी…. आपद काल परखिए चारी…. जानती हो इस का मतलब क्या है?”

नहीं तो. आप बताइए क्या मतलब है?” संजना ने गोलगोल आंखें नचाते हुए पूछा तो अनिल ने समझाया,” इस का मतलब है खराब समय में ही धीरज, धर्म, मित्र और औरत की परीक्षा होती है. बुरे समय में पत्नी आप का साथ देती है या नहीं यह देखना जरूरी है. इसी से पत्नी की परीक्षा होती है.”

संजना के बारे में सोचतेसोचते काफी समय तक अनिल यों ही बैठा रहा. तभी उसे याद आया कि उस ने गैस पर दूध चढ़ा रखा है. वह दौड़ता हुआ किचन में घुसा तो देखा आधा से ज्यादा दूर जमीन पर बह गया है और बाकी जल चुका है. भगोना भी काला हो गया है. अनिल सिर पकड़ कर बैठ गया. किचन की सफाई का काम बढ़ गया था. दूध भी फिर से लाना होगा. उधर मां के बिस्तर की सफाई भी करनी थी.

सब काम निबटातेनिबटाते दोपहर के 2 बज गए. दूध के साथ ब्रेड खाते हुए अनिल को फिर से पुराने दिन याद आने लगे. संजना को उस के लिए पिताजी ने पसंद किया था. वह खूबसूरत, पढ़ीलिखी और सुशील लड़की थी. जबकि अनिल कपड़ों का थोक विक्रेता था.

घर में रुपएपैसों की कमी नहीं थी. फिर भी संजना जॉब करना चाहती थी. वह इस बहाने खुली हवा में सांस लेना चाहती थी. मगर अनिल ने उस की यह गुजारिश सिरे से नकार दी थी. अनिल को डर लगने लगा था कि कमला यदि बाहर जाएगी या अपनी सहेलियों से मिलेगी तो वे उसे भड़काएंगी. यही सोच कर उस ने संजना को जॉब करने या सहेलियों से मिलने पर पाबंदी लगा दी.

एक दिन वह दुकान से जल्दी घर लौट आया. उस ने देखा कि कपड़े प्रेस करतेकरते संजना अपनी किसी सहेली से बातें कर रही है. अनिल दबे पांव कमरे में दाखिल हुआ और बिस्तर पर बैठ कर चुपके से संजना की बातें सुनने लगा. वह अपनी सहेली से कह रही थी,” मीना सच कहूं तो कभीकभी दिल करता है इन को छोड़ कर कहीं दूर चली जाऊं. कभीकभी बहुत परेशान करते हैं. मगर उस वक्त सुनयना दीदी का ख्याल आ जाता है. वह इतनी सुंदर हैं पर विधवा होने की वजह से उन की कहीं शादी नहीं हो पाई. कितनी बेबस और अकेली रह गई हैं. एक औरत के लिए दूसरी शादी कर पाना आसान नहीं होता. कभी मन गवाह नहीं देता तो कभी समाज. एक बात बताऊं मीना…” संजना की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अनिल चीख पड़ा,” संजना फोन रखो. मैं कहता हूं फोन रखो.” डर कर संजना ने फोन रख दिया.

अनिल ने खींच कर एक झापड़ उसे रसीद किया. संजना बिस्तर पर बैठ कर सुबकने लगी. अनिल ने उस के कानों में तुलसीदास का दोहा बुदबुदाया,” ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी …. ये सब ताड़न के अधिकारी….”

संजना ने सवालिया नजरों से अनिल की ओर देखा तो अनिल फिर चीखा,”जानती है इस दोहे का मतलब क्या है? नहीं जानती न. इस का मतलब है कि औरतों को अक्ल सिखाने के लिए उन्हें पीटना जरूरी होता है. वे ताड़न की अधिकारी होती हैं और मैं तेरी जैसी औरतों को पीटना अच्छी तरह जानता हूं. पति की बुराई मोहल्ले भर में करती चलती हो. सहेलियों के आगे बुराइयों का पोथा खोल रखा है. छोड़ कर जाएगी मुझे? क्या कमी रखी है मैं ने? जाहिल औरत बता क्या कमी रखी है?” कहते हुए अनिल ने गर्म प्रेस उस की हथेली पर रख दी.

संजना जोर से चीख उठी. बगल के कमरे से पिताजी दौड़े आए.” बस कर अनिल क्या कर रहा है तू ? चल तेरी मां दवा मांग रही है.”

पिताजी अनिल को खींचते हुए ले गए. फिर संजना देर तक नल के नीचे बहते पानी में हाथ रखी रोती रही. उस दिन संजना के अंदर कुछ टूट गया था. यह चोट फिर कभी ठीक नहीं हुई. उस दिन के बाद संजना ने अपनी सहेलियों से भी बातें करना छोड़ दिया. हंसनाखिलखिलाना सब कुछ छूट गया. वह अनिल के सारे काम करती मगर बिना एक शब्द मुंह से निकाले. रात में जब अनिल उसे अपनी तरफ खींचता तो उसे महसूस होता जैसे बहुत सारे बिच्छूओं ने एक साथ डंक मार दिया हो. पर वह बेबस थी. उसे कोई रास्ता नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

इस तरह जिंदगी के करीब 3 साल बीत गए. उन्हें कोई बच्चा नहीं हुआ था. संजना वैसे भी बच्चे के पक्ष में नहीं थी. उसे लगता था कि इतने घुटन भरे माहौल में वह अपने बच्चे को कौन सी खुशी दे पाएगी?

एक दिन वह शाम के समय सब्जी लाने बाजार गई थी. वहीं उस की मुलाकात अपने सहपाठी नीरज से हुई. वह अपने भाई निलय के साथ के सब्जी और फल खरीदने आया था. संजना को देखते ही नीरज ने उसे पुकारा,” कैसी हो संजना पहचाना मुझे?”

नीरज को देख कर संजना का चेहरा खिल उठा,”अरे कैसे नहीं पहचानूंगी. तुम तो कॉलेज के जान थे.”

“पर तुम्हें पहचानना कठिन हो रहा है. कितनी मुरझा गई हो.सब ठीक तो है?” चिंता भरे स्वर में नीरज ने पूछा तो संजना ने सब सच बता दिया.

ढांढस बंधाते हुए नीरज ने संजना का परिचय अपने भाई से कराया,” यह मेरा भाई है. यहीं पास में ही रहता है. बीवी से तलाक हो चुका है. बीवी बहुत रुखे स्वभाव की थी जबकि यह बहुत कोमल हृदय का है. मैं तो जयपुर में रहता हूं मगर तुम्हें जब भी कोई समस्या आए तो मेरे भाई से बात कर सकती हो. यह तुम्हारा पूरा ख्याल रखेगा.”

इस छोटी सी मुलाकात में निलय ने अपना नंबर देते हुए हर मुश्किल घड़ी में साथ  निभाने का वादा किया था.

संजना को जैसे एक आसरा मिल गया था. वैसे भी निलय उसे जिन निगाहों से देख रहा था वे निगाहें घर आने के बाद भी उस का पीछा करती रही थीं. अजीब सी कशिश थी उस की निगाहों में. संजना चाह कर भी निलय को भूल नहीं पा रही थी.

करीब चारपांच दिन बीत गए. हमेशा की तरह संजना अपने घर के कामों में व्यस्त थी कि तभी निलय का फोन आया. उस का नंबर संजना ने सुधा नाम से सेव किया था. संजना ने दौड़ कर फोन उठाया.  निलय की आवाज में एक सुरुर था. वैसे उस ने संजना का हालचाल पूछने के लिए फोन किया था मगर उस के बात करने का अंदाज ऐसा था कि संजना दोतीन दिनों तक फिर से निलय के ख्यालों में गुम रही.

इस बार उसी ने निलय को फोन किया. दोनों देर तक बातें करते रहे. हालचाल से बढ़ कर अब जिंदगी के दूसरे पहलुओं पर भी बातें होने लगीं थीं. अब हर रोज दोपहर करीब 2- 3 बजे दोनों बातें करने लगे. दोनों ने अपनीअपनी फीलिंग्स शेयर की और फिर एक दिन एकदूसरे के साथ कहीं दूर भाग जाने की योजना भी बना डाली. संजना के लिए यह फैसला लेना कठिन नहीं हुआ था. वह ऐसे भी अनिल से आजिज आ चुकी थी. अनिल ने जिस तरह से उसे मारापीटा और गुलाम बना कर रखा था वह उस के जैसी स्वाभिमानी स्त्री के लिए असहनीय था.

एक दिन अनिल के नाम एक चिट्ठी छोड़ कर संजना निलय के साथ भाग गई. वह कहां गई इस की खबर उस ने अनिल को नहीं दी मगर क्यों गई और किस के साथ गई इन सब बातों की जानकारी खत के माध्यम से अनिल को दे दी. साथ ही उस ने खत में स्पष्ट रूप से लिख दिया था कि वह अनिल को तलाक नहीं देगी और उस के साथ रहेगी भी नहीं.

अनिल के पास हाथ मलने और पछताने के सिवा कोई रास्ता नहीं था. इस बात को डेढ़ साल बीत चुके थे. अनिल की जिंदगी की गाड़ी पटरी से उतर चुकी थी. मन में बेचैनी का असर दुकान पर भी पड़ा. उस का व्यवसाय ठप पड़ने लगा. अनिल के पिता की मौत हो गई और घर के हालात देखते हुए अनिल के भाई ने लव मैरिज की और दूसरे शहर में शिफ्ट हो गया.

अब अनिल अकेला अपनी बीमार मां के साथ जिंदगी की रेतीली धरती पर अपने कर्मों का हिसाब देने को विवश था.

पंडों का चक्रव्यूह : पूजा के नाम पर ठगी

आजमैं जब अपने चाचाजी को देखने उन के घर गई तो उन्हें देख कर बहुत दुख हुआ. चाचाजी की हालत बहुत गंभीर थी. मैं ने चाचीजी से पूछा कि डाक्टर क्या कह रहा है? किस डाक्टर को दिखाया? अचानक क्या हुआ? 5 महीने पहले तो चाचाजी ठीक थे? तो चाचीजी ने बताया, ‘‘बिटिया, 4 महीने पहले तुम्हारे चाचाजी को बुखार आया था. डाक्टर की दवा से फायदा नहीं हुआ तो पड़ोसिन पंडिताइन ने एक अच्छे हकीम की दवा दिलवाई. ये कुछ दिन तो ठीक रहे फिर हालत बिगड़ती गई. फिर डाक्टर को दिखाया, पर ये ठीक नहीं हुए. बहुत दिनों तक दवा खाते रहे पर कोई फायदा नहीं हुआ. तभी एक दिन पंडिताइन ने चाचाजी की जन्मपत्री एक बहुत बड़े पंडित को दिखाई तो मालूम चला कि तुम्हारे चाचाजी ठीक कैसे होंगे. इन की तो घोर शनि और केतु की दशा चल रही है. तब से हम ने डाक्टर की दवा कम कर दी और इन के लिए जाप वगैरह करा रहे हैं.’’

सुन कर मेरा माथा ठनका. मैं ने कहा, ‘‘चाचीजी, जाप वगैरह से कुछ नहीं होगा. डाक्टर को ठीक से दिखा कर टैस्ट वगैरह कराइए. आप जो पैसा जाप में खर्च कर रही हैं, इन के खाने और दवा पर खर्च करिए.’’

चाचीजी ने कहा, ‘‘बिटिया, डाक्टर क्या पंडित से ज्यादा जाने हैं? जब पंडितजी ने बता दिया कि क्यों बीमार हैं, तो डाक्टर के पास जाने से क्या फायदा? अब हम किसी डाक्टर को नहीं दिखाएंगे,’’ और वे तमतमा कर अंदर चली गईं.

मैं ने अपनी भाभी यानी उन की बहू को समझाया. पर वे तो चाचीजी से भी ज्यादा अंधविश्वासी थीं. मैं चाचाजी से मिल कर दुखी मन से घर लौट आई. मैं समझा गई कि उस पंडित ने चाचीजी को अपने जाल में फांस लिया है.

मेरी चाचीजी को हमेशा पंडितों की बातों और उन के अंधविश्वासों पर विश्वास रहा. मैं पहले जब भी चाचीजी से मिलने जाती तो अकसर किसी पंडे या पंडित को उन के पास बैठा देखती. वे उस से घर की सुखशांति व निरोग होने के लिए उपाय पूछती दिखतीं और वह पंडा या पंडित जन्म और अगले जन्म के विषय में इस तरह से बताता जैसे सब कुछ उस के सामने घटित हो रहा हो. वह अकसर कौन सा दान करना जरूरी है, किस दान से क्या फल मिलेगा और अगर फलां दान नहीं किया तो अगले जन्म में क्या नुकसान होगा वगैरह बातें कर के चाचीजी के मस्तिष्क को अंधविश्वासों में जकड़ता जा रहा था और चाचीजी बिना किसी विरोध के उस का कहना मानती थीं.

चाचाजी उम्र बढ़ने के साथ व्याधियों से भी घिरते जा रहे थे. चाचीजी उस का कारण चाचाजी का पंडितों पर विश्वास न होना मानती थीं. चाचीजी और चाचाजी की उम्र में 12 साल का अंतर था पर चाचीजी का कहना था कि मैं इसलिए स्वस्थ हूं क्योंकि मैं पंडितजी के कहे अनुसार सारे धर्मकर्म करती हूं और चाचाजी चूंकि पंडितजी की बात नहीं मानते, इसलिए रोगों से ग्रस्त रहते हैं. उन की इस तरह की बात बारबार सुन कर उन की बहू भी अंधविश्वासी हो गई थी.

एक घर में जब 2 महिलाएं पंडितों और पंडों के चक्कर में फंस जाएं तो वे रोज नए तरह के किस्सों और कर्मकांडों द्वारा दानपुण्य से लूटने की भूमिका तैयार करते रहते हैं. वही चाचीजी के घर में हो रहा था.

मैं हर दूसरे दिन फोन पर चाचाजी की खबर लेती रहती. कभी उन की तबीयत ठीक होती तो कभी ज्यादा खराब होती. 3 हफ्ते बाद मैं जब चाचाजी से मिलने गई तो पंडितजी बैठे थे और चाचीजी की बहू को कुछ सामग्री लिखा रहे थे.

मैं ने पूछा, ‘‘क्या हो रहा है, चाचीजी?’’

चाचीजी बोलीं, ‘‘बिटिया, पंडितजी कह रहे हैं अगर चाचाजी का तुलादान कर दिया तो ये ठीक हो जाएंगे. तुलादान व्यक्ति के वजन के बराबर अनाज वगैरह दान करने को कहते हैं और ये उसी का सामान लिखा रहे हैं.’’

फिर वे पंडितजी से बात करने में मशगूल हो गईं. पंडितजी चाचीजी की उदारता और पतिभक्ति की भूरिभूरि प्रशंसा कर रहे थे और मैं खड़ीखड़ी पंडित के ठगने के तरीके और अंधविश्वास में लिपटे इन लोगों को देख रही थी.

2 दिन बाद मैं ने फोन किया तो पता चला कि चाचाजी की तबीयत बहुत बिगड़ गई है. घर में मेरे भाई का डाक्टर दोस्त आया हुआ था. उसे खाना खिला कर मैं ने चाचाजी को देखने का प्रोग्राम बनाया. जब उसे मैं ने अपना प्रोग्राम बताया तो वह बोला, ‘‘दीदी, मैं आप को चाचाजी के घर छोड़ता चला जाऊंगा. हम घर से निकले और चाचाजी के घर पहुंचे तो मैं ने क्षितिज से कहा, ‘‘जब तुम यहां तक आ गए हो तो एक बार चाचाजी को देख लो.’’

‘‘ठीक है दीदी, मैं देख लेता हूं,’’ क्षितिज ने कहा. हम अंदर गए तो पंडितजी मंत्र का जाप कर रहे थे. पास में एक गाय खड़ी थी. चाचाजी बेसुध से पास की चारपाई पर लेटे थे और उन के हाथ को पकड़ कर चाचीजी ने उस में फूल, पानी, अक्षत, रोली वगैरह रखे हुए थे.

पूछने पर उन की बहू ने बताया, ‘‘दीदी, गौदान हो रहा है. पंडितजी कह रहे थे कि गाय के शरीर में 33 करोड़ देवीदेवता रहते हैं. इस का दान करने से बाबूजी तुरंत ठीक हो जाएंगे.’’

ये बातें सुन कर मेरा माथा ठनका. मुझे लगा इन पंडितों का जाल इन्हीं अज्ञानी लोगों की वजह से दिन पर दिन समाज में फैलता जा रहा है. मैं अपनी सोचों में ही डूबउतरा रही थी कि पंडितजी की पूजा समाप्त हुई. उन्हें दक्षिणा का लिफाफा चाचीजी ने थमाया तो वह गाय और साथ का सामान ले कर चलने लगे. धूप, अगरबत्ती के धुएं से चाचाजी को सांस लेने में कठिनाई हो रही थी और खांसतेखांसते उन का बुरा हाल था.

पंडितजी चाचीजी से बोले, ‘‘देखिए माताजी, बाबूजी का रोग कैसे

बाहर निकलने के लिए लालायित है. अब ये कल तक ठीक हो जाएंगे.’’

चाचीजी बड़े आग्रह के साथ पंडितजी को खाना खिलाने ले गईं. उन्होंने चाचाजी की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया.

जब पंडितजी चले गए तो मैं चाचाजी के पास गई. उन के सिर पर हाथ रखा, सीने को सहलाया तो उन्हें कुछ आराम मिला. उन्होंने आंखें खोल कर मुझे देखा. मैं ने तभी क्षितिज को उन से मिलाया, ‘‘चाचाजी, आप ठीक हो जाएंगे, ये डाक्टर क्षितिज हैं.’’

चाचाजी की दर्द और कातरता से भरी आंखें आशा के साथ क्षितिज को देखने लगीं. क्षितिज ने चाचाजी का चैकअप किया और कुछ दवाएं लिखीं. उस ने चाचाजी को ढाढ़स बंधाया और दवा लेने चला गया.

क्षितिज ने दवा की एक खुराक उसी समय दी और अपनी क्लीनिक चला गया. मैं शाम तक वहीं रही. रात को खाना खा कर जब मैं वहां से अपने पति के साथ वापस आ रही थी, तो चाचाजी दवा की 2 डोज ले चुके थे और कुछ स्वस्थ से लग रहे थे. इधर चाचीजी और उन की बहू इस बात से आश्वस्त थीं कि गौदान करने से बाबूजी ठीक हो रहे हैं.

2 दिन बाद मैं ने फोन किया तो पता चला कि चाचाजी की तबीयत बहुत खराब है. मैं जल्दीजल्दी जब वहां पहुंची तो चाचाजी अंतिम सांसें ले रहे थे और वही पंडितजी मंत्र पढ़पढ़ कर न जाने कौन से दान और कर्मकांड करवा रहे थे. मालूम चला कि चाचीजी ने चाचाजी की दवा बंद करवा दी थी. सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया पर मैं क्या कर सकती थी?

मेरे देखतेदेखते चाचाजी ने अंतिम सांस ली. चाचाजी की मृत्यु को रोका जा सकता था, अगर उन की दवा बंद न की गई होती. पर चाचीजी तो पंडित के चक्कर में इतनी फंसीं कि उन्हें कुछ और दिखाई ही नहीं दे रहा था.

फिर शुरू हुआ पंडित द्वारा भगवान की मरजी आदि बातों को बताना. थोड़ी देर बाद चाचाजी का लड़का सब को फोन कर रहा था तो चाचीजी चाचाजी के पास बैठी सुबकसुबक कर रो रही थीं. उन की बहू अगरबत्ती जलाने, बैठने का प्रबंध करने आदि में लगी थी. पंडितजी एक सज्जन के साथ सामान की लिस्ट बनवाने में व्यस्त थे. पंडितजी ने चाचाजी के जीतेजी जितनी लंबी लिस्ट बनवाई थी, यह लिस्ट उस से और लंबी हो गई थी और वे न करने या कम करने पर मरने वाले की आत्मा को कष्ट होगा, यह दुहाई देते जा रहे थे.शाम को जब चाचाजी का शरीर अंतिम यात्रा के लिए ले जाया गया तो घाट पर फिर वही सब पंडों के आदेश और उन पर चलता व्यक्ति. न खत्म होने वाली रस्में और उन में उलझते घर के लोग.

जब दाह संस्कार कर के लोग वापस आए तो सब थक कर भरे मन से अपनेअपने घर चले गए. पर पंडितजी एक कोने में बैठ कर अगले दिन की तैयारी व लिस्ट बनवाने में व्यस्त हो गए. उन का असली किरदार तो अब शुरू हुआ था. अब 10 दिन की कड़ी तपस्या, खानपान में परहेज, जमीन में सोना, अलग रहना, अपने प्रिय की जुदाई का दुख. फिर भी पंडितजी की लिस्ट में किसी तरह की कमी नहीं थी. बल्कि ऐसे भावुक समय को भुनाने की तो पंडों की पूरी कोशिश रहती है. ऐसे समय में कुटुंब और समाज के लोग भी पंडे की बातों का समर्थन कर के, ऊंचनीच सम?ा कर, दुख से पीडि़त व्यक्ति के घाव को हरा ही करते हैं.

एक तो व्यक्ति दुखी वैसे ही होता है. ऐसे में अगर यह कह दिया जाए कि अगर आप इतना सब नहीं करेंगे तो आप के पिता भूखे रहेंगे, दुखी रहेंगे, तो वह उधार कर के भी उस पंडे की हर बात मानने को मजबूर हो जाता है.

9 दिन इसी तरह लूटने के बाद 10वें दिन पंडित ने एक बड़ी लिस्ट थमाई जिस में दानपुण्य की सामग्री लिखी थी. जब चाचाजी के बेटे ने प्रश्नवाचक नजरों से पंडितजी को देखा तो पंडितजी सम?ाने लगे, ‘‘बेटा, इस समय जो दान जाएगा, वह तो शमशान के पंडित को ही जाएगा. यह सारी सामग्री इसलिए आवश्यक है, क्योंकि

9 दिन से तुम्हारे पिता प्रेतयोनि में ही हैं और प्रेम को कोई लगाव नहीं होता. अगर प्रेत असंतुष्ट रह गया तो वह तुम्हारा, तुम्हारे बच्चों या परिवार का अहित करने से नहीं चूकेगा. इसलिए 10वें के दिन वह सभी दान करना पड़ता है जो 13वीं के दिन किया जाता है. वरना प्रेत से छुटकारा पाना बहुत कठिन हो जाता है.

अपने भविष्य व अपने बच्चों के प्रति हम इतने सशंकित रहते हैं कि पंडों या पंडितों के चक्रव्यूह में बेबस हो कर फंस जाते हैं. इस पंडित ने जिस तरह से अपराधबोध और भय की सुरंग चारों तरफ फैला दी थी, उस से निकलने का कोई रास्ता चाचाजी के बेटे को नजर नहीं आ रहा था. इसलिए जैसाजैसा पंडित कहते जा रहे थे, वह बुरे मन से ही सही सब कर रहा था.

13वीं के लिए पंडितजी ने पुन: एक बार लंबी पूजा व दान की लिस्ट चाचाजी

के बेटे को पकड़ाई और सम?ाया, ‘‘जजमान, 13वीं को आप के पिता आप के द्वारा दिए गए दान व तर्पण से प्रसन्न हो कर प्रेतयोनि से मुक्त हो कर पितरों के साथ मिलेंगे. अत: आप इन को वस्त्र, आभूषण, बरतन और अन्य सामग्री से प्रसन्न कर के पितरों के साथ मिलने में इन की सहायता करें.’’

चाचाजी का बेटा यह सब करतेकरते थक गया था. उसे तो इन सब पर विश्वास ही नहीं था, पर मां और पत्नी के डर से कुछ कह नहीं पा रहा था. पर जब 10वां हो गया और पंडित की मांगें सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती ही गईं तो वह बिफर गया और 13वीं के दिन का सामान देने के लिए राजी नहीं हुआ.

पंडित का कहना था कि अगर यह सब दान नहीं किया तो मृतात्मा को मुक्ति नहीं मिलेगी. और भी कई भावुक बातें उस ने कहीं. चाचाजी के बेटे का सब्र का बांध टूट गया. उस ने कहा, ‘‘मैं अगर आप के कहे अनुसार चलता रहा तो यह सच है कि मैं इस जन्म में तो कर्ज से मुक्त नहीं हो पाऊंगा और जीतेजी मर जाऊंगा. अब बहुत हो गया. कृपया लूटने का नाटक बंद करें,’’ और उस की आंखों से आंसू बहने लगे. पता नहीं ये आंसू दुख के थे या पश्चात्ताप के.

उसी समय चाचीजी बेटे को दिलासा देने आईं और बोलीं, ‘‘बेटा, इतना सब अच्छे से किया है, तो अब आखिरी काम क्यों नहीं अच्छे से कर देता है? मेरे पास जो भी है, उन का दिया है. ले मेरे हाथ की चूडि़यों को. उन्हें बेच कर तू उन की गति संवार दें. मैं तेरे आगे हाथ जोड़ती हूं,’’ और चाचीजी सुबकने लगीं.

उस ने चूडि़यां मां को वापस कीं. निर्लिप्त भाव से वह सब करने लगा, जो पंडित उस से कह रहा था पर चिंता की लकीरें उस के माथे पर स्पष्ट दिख रही थीं, क्योंकि अभी 11 पंडितों का खाना, दक्षिणा और संबंधियों का भोज बाकी था. पर वह इन के भंवर में इतना फंस गया था कि कुछ कहना व्यर्थ था.

घर के किसी भी व्यक्ति के जाने के बाद पीछे रहा व्यक्ति दोहरी पीड़ा ?ोलता है. एक तो अपने प्रियजन के विछोह की तो दूसरी व्यर्थ के कर्मकांडों की. पर अंधविश्वास व पंडों द्वारा फैलाए डर तथा अनर्थ की आशंका के कारण व्यक्ति इन का अतिक्रमण नहीं कर पाता.

हम सब एकसाथ 2 तरह की दुनिया में रहते हैं. एक भौतिक साधनों से संपन्न आधुनिकता से भरी दुनिया, तो दूसरी पाखंड और पंडों के द्वारा बनाई गई भयभीत करने वाली दुनिया, जिस में सत्य का या वास्तविकता का कोई अंश नहीं होता. भगवान के नाम पर, मृतात्मा के नाम पर ये पंडे, जिस तरह से व्यक्ति को लूटते हैं उस के बारे में सब को पता है कि यह सब शायद सत्य नहीं है पर फिर भी कभी डर से, कभी मृतात्मा के प्रति उपजे प्यार और आदर से, हम सब कुछ करने को तैयार हो जाते हैं और इन पंडों की कुटिल चाल में फंस जाते हैं.

खैर पंडितजी ने अपना सामान बांधा, चाचाजी के बेटे को पता दिया और सामान घर पहुंचाने का आदेश दे कर चलते बने.

गर्ल्स होस्टल : पूर्णिमा के साथ क्या हुआ

अपने विधायक चाचा की दबंगई के चलते रोहित और उस के दोस्तों ने कालेज में कोहराम मचा रखा था. लड़कियों को छेड़ना उन का रोज का काम था. फिर कालेज में आई खूबसूरत पूर्णिमा. रोहित उसे पाने के लिए तिकड़म लड़ाने लगा. क्या पूर्णिमा रोहित के जाल में फंस पाई?

आ प के चाचा विधायक हैं, तो क्या आप कुछ भी कर देंगे? कानून को ही ताक पर रख देंगे? किसी लड़की की इज्जत धूल में मिला देंगे? हां, विधायक का भतीजा ऐसा भी कर सकता था, रोहित का तो कम से कम यही मानना था.

उस इलाके में नेताओं और विधायकों की गुंडागर्दी हद पर थी. कालेजों में रैगिंग और छात्राओं के साथ छेड़खानी बहुत ही आम घटनाएं होती थीं. सत्ता से जुड़े नेता लड़कियों की पढ़ाईलिखाई के खिलाफ हैं, क्योंकि उन के मन में तो संस्कृति और संस्कार भरे हैं, जिन की आड़ में कुछ भी किया जा सकता है.

झांसी यूनिवर्सिटी से एमबीए की डिगरी हासिल करते हुए रोहित ने आधा दर्जन अमीर और बिगड़े हुए लड़कों का झंडाधारी गैंग बना रखा था. लड़कियों के पास से तेज रफ्तार बाइक निकाल कर उन्हें डरा देना, उन के सीने को गंदे तरीके से घूरना, उन पर फब्तियां कसना, उन के साथ फ्लर्ट करना और उन्हें गर्लफ्रैंड बनने के लिए मजबूर करना उस का रोज का काम था.

सीनियर क्लास में आने के बाद तो उन लोगों की बदमाशियां और ज्यादा बढ़ गई थीं. जूनियर लड़कियों को तो जैसे वे लोग अपना स्वादिष्ठ खाना ही सम?ाते थे. प्रोक्टर भी रोहित को सिर्फ चेतावनी दे कर छोड़ देते थे, क्योंकि रोहित के चाचा विधायक थे.

रोहित और उस की मित्र मंडली नए छात्रों की रैगिंग का प्लान बना रहे थे. पर उत्तराखंड की दलित तबके की एक लड़की पूर्णिमा ने एडमिशन के पहले ही दिन भूचाल सा ला दिया था.

लंबी, छरहरी, खूबसूरत यह पहाड़ी लड़की यूनिवर्सिटी में लड़कों के आकर्षण का केंद्र बन गई. उस समय तक रोहित की अनेक गर्लफ्रैंड थीं. रोहित का रईसों की तरह लाइफस्टाइल और चाचा के विधायक होने के चलते कोई भी लड़की उस के साथ डेट करने और रात बिताने को आसानी से तैयार हो जाती थी. पूर्णिमा ऐसे तबके से थी, जिस के साथ मनमाना जोरजुल्म सदियों से होता आया है.

झांसी यूनिवर्सिटी में जूनियर छात्रों के साथ होने वाली रैगिंग बहुत बदनाम थी. कालेज के खाली हाल में सारे जूनियर छात्रों को बुलाया जाता और उन की लाइन लगवाई जाती, फिर उन के कपड़े उतरवाए जाते. इसे ‘गुरुदीक्षा’ बोला जाता था. इस का मतलब होता है था आप की शर्म उतर जाना.

इस के अलावा फिजिकल रैगिंग भी की जाती थी, जो एक तरह का मैंटल टौर्चर होता था. बहुत सारी चीजें कराई जाती थीं. न करने पर मार भी पड़ती थी. और कहा जाता था कि यह सब आप को मजबूत बनाने के लिए किया जा रहा है.

अनुशासन सिखाने के नाम पर रोहित और उस का गैंग जूनियर छात्रों को इस कदर डरा कर रखते थे कि वे खुद अपनी गर्लफ्रैंड को रोहित और उस के दोस्तों के पास उन का मनोरंजन करने के लिए छोड़ आते थे.

हालांकि, लड़कियों की फिजिकल रैगिंग कम ही होती थी यानी कि मारपिटाई नहीं होती थी, पर उन से भी उलटीसीधी चीजें कराई जाती थीं. जैसे दीवार से लग कर खड़े कर देना और कहना ‘जाओ छिपकली बन जाओ’ या सिसकियों की आवाज निकालने के लिए कहा जाता था या फिर किसी गंदे फिल्मी गाने पर मटकने के लिए कहा जाता था.

रोहित का क्रश होने के चलते पूर्णिमा को इस गंदी रैगिंग से तो नहीं गुजरना पड़ा, पर अब बदले में वह उसे अपने साथ डेट पर चलने के लिए मजबूर कर रहा था.

पूर्णिमा उस जैसे लड़के को अपने सीने से चिपकाना तो दूर की बात है, अपनी जूती की नोक पर भी जगह देने को तैयार नहीं थी.

पूर्णिमा ने जब रोहित के तीसरे प्रपोजल को ठुकरा दिया, तो वह किसी सरकारी सांड़ की तरह भड़क गया. अगर लंबे समय तक सैक्स सुख न मिले, तो सांड़ के दिमाग पर गरमी चढ़ जाती है और वह चारों तरफ तोड़फोड़ शुरू कर देता है, उसी तरह रोहित ने भी अपने दोस्तों के सामने पूर्णिमा की जिंदगी बरबाद करने की कसम खाई.

बार में शराब पीते हुए रोहित ने अपने दोस्तों को चुनौती दी कि पूर्णिमा उस की नहीं हुई तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा, उसे बदनाम कर देगा.

रोहित के चाचा विधायक थे, तो उस के दोस्तों को भी यह सब बहुत ही आसान काम और शरारत ही लगा था.

एक दिन कालेज में क्लास खत्म होने के बाद अकेले में मौका पाते ही रोहित ने गर्ल्स टौयलैट में घुस कर पूर्णिमा को बंधक बना लिया. उस दिन रोहित अपने मकसद में कामयाब हो ही गया होता, अगर ऐनवक्त पर पूर्णिमा की सहेली ने न देख लिया होता. उस ने छात्रों और प्रोक्टर को बुला कर भीड़ जुटा दी.

रोहित ने पूर्णिमा को तब तक टौयलैट के गंदे पानी से नहला दिया था, उस की शर्ट के बटन तोड़ दिए थे और जबरदस्ती उस से जिस्मानी रिश्ता बनाने की कोशिश में उस के कपड़े फाड़ दिए थे, फर्श पर गिरा कर उसे गंदा कर दिया था. उस से कहा था कि वह तो इसी गंद में रहने लायक है.

इतनी घिनौनी हरकत के बावजूद रोहित के विधायक चाचा के डर से उस के खिलाफ जरा भी ऐक्शन नहीं हुआ, उलटा कालेज प्रशासन ने पूर्णिमा पर ही समझाते का दबाव बनाया, तो वह भी रोहित से डरने लगी.

बेइज्जती होने के बावजूद पूर्णिमा को अपनी पढ़ाई और परिवार की इज्जत की चिंता थी. पढ़ाई और फीस बरबाद होने के डर से उस ने यह सब सह लिया.

3-4 दिन बाद फिर से रोहित और उस के दोस्तों ने सरेआम पूर्णिमा के साथ छेड़खानी शुरू कर दी. घूरना, मजाक करना, भद्दे कमैंट करने तक तो ठीक था, पर अब तो रोहित की हिमाकत और ज्यादा बढ़ गई थी.

रोहित अकसर ही पूर्णिमा को अकेले में रोक कर उसे जबरदस्ती गले लगाने या चूमने के लिए मजबूर करने लगा. पूर्णिमा ने उस का भी विरोध नहीं किया, पर जब वह जबरदस्ती उस के कपड़ों

के अंदर हाथ डाल कर उस के नाजुक अंगों को सहलाने की कोशिश करने लगा, तब उस के लिए यह हद से बाहर हो गया.

रोहित को पूर्णिमा की बदनामी से कोई मतलब नहीं था. उस ने धमकी दी कि अगर वह एक रात उस के साथ होटल के कमरे में रुक कर जिस्मानी रिश्ता बनाने को तैयार होती है तो ठीक है वरना एक दिन वह सभी छात्रों के सामने उस का रेप कर देगा.

पूर्णिमा ने रोते हुए रोहित के पैर पकड़ कर उस से रहम की भीख मांगी. उस ने बताया कि उसे होस्टल से गायब रहने की इजाजत नहीं मिलेगी. वार्डन मैडम उस के मांबाप को बता देंगी, उसे होस्टल के बाहर कदम भी नहीं रखने देंगी. लेकिन रोहित ने जरा भी रहम नहीं दिखाया.

तमाम बहस के बाद योजना बनी कि पूर्णिमा रोहित को अपने होस्टल में लड़की के वेश में ऐंट्री कराएगी और फिर वह पूरी रात पूर्णिमा के साथ उस के कमरे में ऐश करेगा.

अगले दिन पूर्णिमा ने रोहित से कहा कि अगर वह रात को अकेला लड़कियों के होस्टल में घुस सके, तो वह उसे छिपा कर अपने कमरे में ले जाएगी और रोहित को भरपूर मजा देगी. होस्टल में कैसे घुसेगा, यह रोहित का काम है, लेकिन किसी को पता चल गया, तो उस की खैर नहीं.

यह योजना तो रोहित के लिए हिमालय चढ़ने के समान थी. आज तक किसी लड़के ने गर्ल्स होस्टल की किसी लड़की से दोस्ती तक नहीं की और वह उसी होस्टल में घुस कर पूर्णिमा के साथ जिस्मानी रिश्ता बनाने वाला है.

बिस्तर पर पूर्णिमा का कचूमर बनाने के लिए रोहित ने एक विदेशी कंपनी का महंगा कंडोम पैकेट खरीदा था.

रात 10 बजे गर्ल्स होस्टल की दीवार फांदने के लिए रोहित ने एक सीढ़ी का इंतजाम किया और 10 बजे वह कूद गया. कैंटीन के पीछे के रास्ते पर पूर्णिमा उस का इंतजार करते हुए मिली.

होस्टल की झाड़ियों में से झगुरों की आवाज और होस्टल के दूसरी मंजिल के किसी कमरे से बाहर आती गाने की आवाज ‘बांहों में चले आओ, हम से सनम कैसा परदा…’ माहौल को और भी रोमांटिक बना रहा था.

छोटे और टाइट नाइट सूट में पूर्णिमा पूरी की पूरी खरबूजे की दुकान लग रही थी. रोहित को उस के सारे शरीर पर गोलमटोल, भरेपूरे, उभरे हुए, बड़ेबड़े, नरमनरम उभारों के अलावा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था.

रोहित लड़की की सलवारसूट में था, चुनरी से घूंघट डाले हुए था और पूर्णिमा का हाथ पकड़े हुए वह उस के पीछेपीछे चल रहा था.

रात का समय था. होस्टल में सारी लड़कियों ने बहुत ही कम, छोटेछोटे, नाममात्र के नाइटवियर और कैजुअल कपड़े पहने हुए थे. सभी एक से बढ़ कर एक खूबसूरत लग रही थीं.

रोहित एक लड़की को घूरना शुरू करता कि सामने से एक और लड़की टपक पड़ती, उसे घूरता उस के पहले ही तीसरी और चौथी लड़कियां उसे छूते हुए बगल से निकल जातीं.

रोहित का दिल बागबाग हो रहा था. खुली तिजोरी की तरह यहां हर तरफ हुस्न और जिस्म का मेला लगा हुआ था.

पूर्णिमा के रूम में पहुंच कर रोहित ने अभी कुछ ही कपड़े उतारे थे कि 4 अनजान लड़कियां ‘पहले हम करेंगे’ बोलते हुए जबरदस्ती उन के कमरे में घुस आईं.

रोहित को लगा कि वे सभी लोअर मिडिल क्लास लड़कियां उस जैसे शहजादे के साथ मजे करना चाहती हैं और वह खुशी के मारे झम उठा.

पर वहां तो कुछ और ही होने लगा. एक बहुत मोटी और सीनियर लड़की ने अधनंगे रोहित को बिस्तर पर रस्सी से बांध दिया और उस के बाकी कपड़ों को कैंची से काट कर पूरी तरह उसे नंगा कर दिया.

दूसरी बौडीबिल्डर जैसी लड़की ने रोहित के शरीर को जोश में लाना शुरू कर दिया, तो तीसरी फिल्म हीरोइन जैसी लंबी और छरहरी लड़की ने अपनी पैंटी उस के मुंह में घुसा दी और ऊपर से टेप चिपका दी.

चौथी, साइंटिस्ट की तरह पढ़ाकू दिखने वाली, चश्मा पहने एक लड़की ने रोहित के मर्दाना अंगों को तार और क्लिप से एक बैटरी जैसे उपकरण से जोड़ दिया.

इन सभी लड़कियों ने तितली जैसे नकाब पहने हुए थे और स्ट्रिपिंग करते हुए रोहित को बहलाने लगीं, जबकि बड़ी उम्र की दिखने वाली एक लड़की रोहित का वीडियो बनाने लगी.

रोहित अभी तक अपनेआप को हैंडसम हंक समझ कर रोमांचित हो रहा था, लेकिन जैसे ही इन लड़कियों ने उस के जिस्म को अपने नाखून और दांतों से घायल करना शुरू किया, तो वह समझ गया कि उसे प्यार नहीं, बल्कि बेइज्जत किया जा रहा है.

कुछ ही देर में रोहित के पूरे शरीर पर इन लड़कियों की लिपस्टिक और उन के ‘लव बाइट’ के निशान बन गए थे.

साइंटिस्ट जैसी लड़की रोहित के चेहरे पर सिगरेट का धुआं फेंकते हुए अपने विद्युत उपकरण से हलका करंट लगा रही थी. रस्सी से हाथ छुड़ाने की कोशिश में रोहित का हाथ कटने लगा था, जबकि लड़कियों ने उस के मुंह पर थूक कर और भद्दीभद्दी गालियां दे कर उसे जलील करना शुरू कर दिया था.

लेकिन अभी तो और भी ड्रामा बाकी था. मोटी लड़की ने रोहित को पोर्न फिल्मों की पोजीशन में घोड़े की तरह खड़ा कर दिया और फिर उस के पिछवाड़े को हौकी स्टिक से पीटने लगी. फिल्म हीरोइन की तरह दिखने वाली लड़की अपनी सैंडल की पैंसिल साइज एड़ी से रोहित की जांघों और पैरों को कुचलने लगी.

रोहित बहेलिया के जाल में फंसे हुए कबूतर की तरह मदद के लिए फड़फड़ाने लगा. एक लड़की रोहित की गोद में बैठ कर उस्तरे से उस के हर जगह के बाल घोंटने लगी. भौंह के बाल काट कर उस ने उसे ‘भूत’ बना दिया.

आखिर में पूर्णिमा ने रोहित के मर्दाना अंग और घाव पर पैट्रोल छिड़क दिया, जिस से अब वह दर्द के चलते बगैर पानी की मछली की तरह तड़पने लगा और कुछ देर के बाद वह बेहोश हो गया.

3-4 घंटे बाद जब रोहित को होश आया, तो उस के हाथपैर खुले हुए थे और वह पूरी तरह नंगा और घायल हालत में जमीन पर पड़ा हुआ था. वे लड़कियां सिगरेट और बीयर पीते हुए आगे की योजना बना रही थीं.

पूर्णिमा ने कहा, ‘‘इसे वार्डन के हवाले करे देते हैं. वही समझोंगी कि क्या करना है.’’

दूसरी लड़की ने कहा, ‘‘इसे पुलिस के हवाले करते हैं और कहेंगे कि यह जबरदस्ती होस्टल में घुस आया था.’’

फिल्म हीरोइन जैसी लड़की ने कहा, ‘‘लड़कियों के बीच इस की नंगी परेड कराते हैं.’’

चौथी लड़की ने कहा, ‘‘इसे फंदे पर लटका कर मौत के घाट उतार देते हैं.’’

साइंटिस्ट जैसी दिखने वाली लड़की बोली, ‘‘इस का एंटेना काट कर इस की परमानैंट नसबंदी किए देते हैं.’’

इन लड़कियों के खतरनाक इरादों को भांप कर बेहोशी का नाटक कर रहे रोहित के रोंगटे खड़े हो गए. वह पूरी ताकत लगा कर वहां से भाग निकला. कमरे के आगे का कौरिडोर, सीढ़ी, बरामदा, डाइनिंग हाल, हर जगह सुनसान हो चुकी थी, सुबह के 3 बज चुके थे.

दीवार फांदने के लिए रोहित ऊपर चढ़ गया, पर दूसरी तरफ 6 फुट का गड्ढा और कांटे थे. मरता क्या नहीं करता… दीवार फांदने से उस के पैर में मोच आ गई. लेकिन अगर रोहित वहां रुकता तो रोशनी होने पर बैगर कपड़ों के घर कैसे पहुंचता. गर्ल्स होस्टल से रोहित के विधायक चाचा का घर महज 2 किलोमीटर था, लेकिन उस की बुरी हालत की वजह से चलना तक मुश्किल हो रहा था.

अगली गली में कुत्तों ने रोहित को जानवर समझ कर दौड़ा दिया. किसी तरह उन से बचा तो उस के आगे चौकीदार ने उसे चोर समझ कर सीटी बजानी शुरू कर दी. जब तक भीड़ जुट कर उसे पकड़ती या पुलिस आती, तब तक वह सीधे भागते हुए चाचा के बंगले में जा छिपा.

4 दिन इलाज कराने के बाद जब रोहित अपनी इस बेइज्जती का बदला लेने की योजना बना रहा था, तभी उस के मोबाइल फोन पर एक वीडियो आया, जिस में कुछ नकाबपोश लड़कियां उस का रेप करते दिख रही थीं.

आगे की फुटेज में रोहित वहां से नंगे बदन भागता दिख रहा था. वह अपने होश संभालता, उस के पहले ही पूर्णिमा का फोन आ गया. उन वीडियो को वायरल होने से रोकने का एक ही उपाय था, वह यूनिवर्सिटी से नाम कटा ले और फिर कभी उस के या किसी और लड़की के रास्ते में आने की कोशिश न करे.

अपने चाचा की विधायकी बचाने के लिए रोहित को झक मार कर समझता करना पड़ा.

इस कांड ने बुंदेलखंड के मनचले लड़कों में इतनी दहशत भर दी थी कि फिर कभी यूनिवर्सिटी में लड़कियों से छेड़छाड़, उन की रैगिंग या उन्हें रेप की धमकी नहीं मिली. धीरेधीरे लड़कों के साथ भी रैगिंग की घटनाएं भी खत्म हो गईं.

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