साईको पीड़ित ने की मां की हत्या… और….!!

उस मांस के टुकड़ों को बरतन में रखकर वह उसे खाने की तैयारीमें था. तभी पुलिस आ पहुंची. छत्तीसगढ़ की इस लोमहर्षक घटना से बोतल्दा गांव से लेकर प्रदेश भर में आम जनमानस यह देख स्तब्ध रह गया. प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि अर्धविक्षिप्त युवक को मृतक माँ ने बड़ी मुश्किलों से पाला- पोसा था.
यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि यह पूरा मामला साइको बीमारी से संबंधित है. साइको पीड़ित युवक का इलाज परिवार जन नहीं कर सके अंततः उसका यह भयंकर परिणाम सामने आया है ऐसे में आप सकता है कि हम अपने आसपास ऐसे साइको विक्षिप्त लोगों पर निगाह पड़ते ही उनकी समुचित इलाज की पहल करें.

साइको पीड़ित सीताराम

जिला पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार  खरसिया थाना के दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित बोतल्दा गांव में एक अर्धविक्षिप्त युवक ने अपनी मां फुलोबाई उरांव (50 वर्ष) की दिनदहाड़े टांगी से मारकर हत्या कर दी. हत्या करने के बाद सिर का भेजा (मांस) निकालकर उसके टुकड़े-टुकड़े किये.  पड़ोसी से पुलिस को घटना की सूचना मिली और पुलिस दलबल के साथ तत्परता से पहुँच गई. आरोपी सीताराम उरांव (32 वर्ष) पिता बलेश्वर उराव  लंबे समय से अर्धविक्षिप्त है. और उसका इलाज नहीं कराया जा रहा था. इस दिल दह्लाने वाली घटना के पश्चात घटनास्थल पर लोगों की भीड़ जुट गई और घटना की जानकारी आग की तरह चारो ओर फैलती चली गई.

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पुलिस ने आरोपी को अपनी गिरफ्त में लेकर खानापूर्ति प्रारंभ कर दी अब सीतारामपुरा मां की हत्या के आरोप में जेल की सीखचो के पीछे होगा. इस घटना के बाद कई प्रश्न उठ खड़े होते हैं जैसे इस हत्या का दोषी कौन है क्या सीताराम मानसिक रूप से स्वस्थ होता तो क्या वह अपनी मां की हत्या कर सकता था?आज ऐसे प्रश्नों पर गंभीरता से चिंतन करने का समय है. आखिर इस घटना के पीछे दोषी कौन है क्या सीताराम दोषी है या उसका परिवार और अगर परिवार सक्षम था तो समाज और सरकार कहां है? यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि जो व्यक्ति अपने मां की हत्या कर सकता है क्या वह किसी और की हत्या नहीं कर सकता था आज ऐसे अनेक मामले देश विदेश में हो रहे हैं मगर इस और न को समाजिक संस्था चिंतन कर रही है और ना ही सरकार.

खानापूरी जारी है

पुलिस बड़े ही गर्व के साथ यह बता रही है कि हमने हत्या का मामला दर्ज कर लिया
है.खरसिया थाना के निरीक्षक एस आर साहू ने हमारे संवाददाता को बताया कि जिस समय यह घटना हुई उस समय घर के पिछवाड़े में आरोपित के छोटे भाई की पत्नी किसी काम में लगी थी. आरोपी सिरफिरा बेटा शराब का आदी था और नशा करने के लिए माँ से पैसे की मांग कर रहा था. पैसा नहीं होने के कारण माँ उसे पैसे नहीं दे पाई जिससे गुस्से में आकर बेटे ने टांगी से माँ की हत्या कर दी और सिर के अन्दर से भेजा निकालकर टुकड़े कर दिए. घर मे जब भाई की पत्नी आई व खून से लथपथ सास को देखा.

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जानकारी मिलने पर ग्रामीण जमा हो गए और 112 को सूचना दी. 112 ने पुलिस को जानकारी दी जिसके बाद पुलिस ने पहुंचकर शव बरामद कर लिया. साहू ने बताया कि पुलिस ने कडाही में रखे मांस के टुकडे को बरामद कर लिया है. उसने पुलिस को बताया कि वह उस मांस को पकाने की तैयारी में था मगर इतने में छोटे भाई की पत्नी आ गई जिससे वह भाग निकला.पुलिस के अनुसार घर में आरोपित और उसकी माँ एक साथ रहते थे जबकि उसका छोटा भाई अपनी पत्नी और बच्चे के साथ दूसरे कमरे में रहता था. एक ही घर में दो चूल्हे जलते थे. आरोपित युवक पहले स्वस्थ और कामकाजी था तथा गाड़ी चलाकर अपना और माँ का पेट पालता था. ड्राइवरी के दौरान ही गांजा-शराब की उसे लत लग गई और बाद में अर्धविक्षिप्त भी हो गया. साईको पीड़ित होने के बाद उसने काम छूट गया जिसके बाद माँ ही अर्धविक्षिप्त को स्वयं कमाकर पाल रही थी और नशे के लिए बेटे को पैसे भी देती थी. लेकिन कब क्या हो जाये इसका कोई अन्दाजा भी नहीं लगा सकता । क्या कोई बेटा ऐसा भी कर सकता है कि अपनी ही माँ की हत्या कर उसके माँस के छोटे छोटे टुकड़े को पकाकर खा जाये।

एक कोतवाल, रंगीन मिजाज ….

यहां भी अपने रंग दिखा रहे हैं. इधर जब जब विवाह के फोटो वायरल हुए तो युवती के माता-पिता को जानकारी मिली. उन्होंने पुलिस अधीक्षक के पास पहुंचकर अपनी लड़की को बरगला कर कोतवाल द्वारा विवाह किए जाने की शिकायत की है और मांग की है कि अगर कोतवाल ने विवाह किया है तो न्याय दिया जाए और कोतवाल पर कठोर कार्रवाई की जाए. यह कहानी है कांकेर जिला मुख्यालय स्थित कोतवाली थाना में पदस्थ थाना प्रभारी अमर सिंह कोमरे की. कानून की वर्दी पहनकर अमर सिंह द्वारा तीसरी शादी का मामला सामने आया है. पीड़ित मां के अनुसार, थाना प्रभारी अमर सिंह कोमरे ने चारामा क्षेत्र की रहने वाली 21 वर्षीय युवती को पहले अपने होटल में काम करने के लिए रखा था.

परिजनों ने युवती के कुछ दिनों तक वापस नहीं लौटने पर पतासाजी की, जिसमें पता चला की युवती वहीं रहकर काम कर रही है. उसे घर वापस लाने पर युवती फिर से भाग गई, जिसके बाद दोबारा युवती नहीं लौटी.

कानून के रखवाले की यह तीसरी शादी

छत्तीसगढ़ में इन दिनों अमर सिंह कोमरे अपनी आशिक मिजाजी और तीसरी शादी के कारण चर्चा में आ गए हैं मजे की बात यह है कि कोतवाल जैसे महत्वपूर्ण पद पर रहते हुए उन्होंने एक युवती को पहले अपने कंप्यूटर ऑपरेटर के पद पर रखा फिर उसे होटल में रखा और अंततः उसकी मांग में सिंदूर भर दिया. सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह रही कि उन्होंने युवती से विवाह करने की बात छुपाई नहीं और साफ मन से स्वीकार कर लिया। युवती अपनी मां को कोतवाली प्रभारी के साथ अपनी मांग में सिंदूर भरी हुई फोटो भेज रही है, जिसके बाद से परिजन काफी परेशान हो उठे हैं .युवती के परिजनों ने बताया कि कोतवाल की उम्र लगभग 49 के पेटे में है, उसने पहले से ही दो शादी कर रखी है. इस मामले पर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक का कहना है कि परिजनों के आवेदन के आधार पर थाना प्रभारी को बुलाकर पूछताछ की गई है.

वर्दी पहन कोतवाल उड़ा रहे कानून की धज्जियां

छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य पिछड़ा हुआ राज्य है अगर से यह घटना किसी महानगर में घटित हुई होती तो आज राष्ट्रीय चैनलों पर प्रमुखता के साथ परोस दी जाती.इस पर चर्चा बहस के दौर शुरू हो जाते. मगर छत्तीसगढ़ के बस्तर में घटित यह महिला विरोधी एवं पुलिस की वर्दी की एक तरह से धज्जियां उड़ाने की घटना सुर्खियां नहीं बटोर पाई. कोतवाल के रूप में एक जिम्मेदार अफसर अगर पूर्व पत्नी और बच्चों को छोड़कर एक कमसिन युवती से विवाह कर ले तो यह कोई छोटी विसंगति नहीं है.मगर छत्तीसगढ़ के सरकार और पुलिस प्रशासन मानो आंखों में पट्टी बांधकर सो रहा है. यह मामला निजी नहीं हो सकता नियमत: हिंदू विवाह अधिनियम के तहत कोई भी आम शख्स पहली पत्नी से तलाक के बगैर दूसरा विवाह नहीं कर सकता. यह जानकारी क्या छत्तीसगढ़ पुलिस को नहीं है जो उसका एक कारिंदा वर्दी पहनकर कानून को ठेंगा दिखा रहा है. इस संदर्भ में कांकेर पुलिस का दो टूक कहना है युवती ने कोतवाली प्रभारी के साथ शादी करना कबूल किया है. नियमों के आधार पर जो होगा कार्रवाई की जाएगी.

सोशल मीडिया क्राइम: नाइजीरियन ठगों ने किया कारनामा

यह ठगी की क्राइम स्टोरी पढ़कर आप भी चौंक जाएंगे की ठगी के कैसे-कैसे नायाब नमूने लोगों ने इजाद कर लिए हैं. इस संदर्भ में कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ की
राजनांदगांव पुलिस को बड़ी कामयाबी हासिल हुई है. सोशल मीडिया के जरिए आनलाइन ठगी करने वाले दो नाईनीरियन को पुलिस ने नईदिल्ली से गिरफतार किया है इनके नाम- किबी स्टेनली ओकवो और नवाकोर इमानुएल हैं.

दंपत्ति से 44 लाख की ठगी

पुलिस अधीक्षक कमललोचन कश्यप ने बताया कि राजनांदगांव निवासी श्रीमती सुनीता आर्य पति चैतूराम आर्य ने विगत एक दिसंबर को उक्त आरोपियों के खिलाफ एक रिपोर्ट दर्ज कराते हुए कहा था कि जुलाई 2018 में किसी डेविड सूर्ययन नामक व्यक्ति उन्हें फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी. तथा खुद को लंदन निवासी होना बताया. काफी दिनों तक दोनों के बीच चेटिंग होती रही और एक दिन उपरोक्त व्यक्ति ने कहा कि वह उसे मोबाइल, गोल्डन ज्वेलरी, रिंग, जूते, कोट, घडी चैनल, बैग इत्यादि सामान गिफट करना चाहता है परंतु उसका जहांज फिनलैण्ड में रूका पड़ा है, उसके बाद पीड़िता के पास एक व्यक्ति का फेान आया जिसने खुद को कस्टम अधिकारी बताया और कहा कि उपरोक्त सामान चाहिऐ तो उसे 62500 रूपये जमा कराने होंगे. इस तरह क्राइम प्रारंभ हो गया विश्वास करके आगे दंपत्ति ने यूपी जमाने प्रारंभ कर दिए और धीरे धीरे 44लाख रुपए की चपत उन्हें लग गई.

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ऐसे हुआ ठगी का एहसास

इधर पीड़िता ने उसके झांसे में आते हुए रकम जमा कर दी परंतु जब सामान नही पहुंचा तेा उसने डेविड सूर्ययन से संपर्क करना चाहा मगर उसका सोशल मीडिया एकाउंट और मोबाइल नम्बर बंद बताया जा रहा था. आश्चर्य कि इस तरह पीड़िता से कुल 44 लाख की आनलाइन धोखाधड़ी हो गई. उसके बाद पीड़िता ने राजनंदगांव पुलिस अधीक्षक एवं अधिकारियों से संपर्क किया जिन के निर्देश पर कोतवाली थाना में मामला दर्ज हुआ. रिपोर्ट
दर्ज करने के बाद पुलिस ने भादवि की धारा 420, 34 एवं 66 डी के तहत जुर्म दर्ज किया.

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अंततः अपराधी पकड़े गए

पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लिया और जाल बिछाकर ठगों को दबोच लिया। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव पुलिस ने ऑनलाइन साइबर क्राइम को बहुत गंभीरता से लिया और इसके लिए एक क्राइम इन्वेस्टिगेशन टीम बनाई गई जोशीला पुलिस कप्तान कश्यप को रिपोर्ट कर रही थी बहुत ही चालाकी से दोनों नाइजीरियन नागरिकों को पुलिस ने जाल में फंसाया और गिरफ्तार करके राजनंदगांव ले आई है पुलिस ने दोनों का बयान दर्ज किया उन्होंने स्वीकार किया कि यह काम वह विगत 2 वर्षों से कर रहे थे और अनेक लोगों को अपना शिकार बनाया है. पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया जहां से जमानत के अभाव में उन्हें जेल भेज दिया गया है.

सुलझ ना सकी वैज्ञानिक परिवार की मर्डर मिस्ट्री

लेखक- निखिल अग्रवाल  

एक जुलाई की बात है. सुबह के करीब 7 बजे का समय था. रोजाना की तरह घरेलू नौकरानी जूली डा. प्रकाश सिंह के घर पहुंची. उस ने मकान की डोरबैल बजाई. बैल बजती रही, लेकिन न तो किसी ने गेट खोला और न ही अंदर से कोई आवाज आई. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. डा. प्रकाश सिंह का परिवार सुबह जल्दी उठ जाता था. रोजाना आमतौर पर डा. सिंह की पत्नी सोनू सिंह उर्फ कोमल या बेटी अदिति डोरबैल बजने पर गेट खोल देती थीं. उस दिन बारबार घंटी बजाने पर भी गेट नहीं खुला तो जूली परेशान हो गई. वह सोचने लगी कि आज ऐसी क्या बात है, जो साहब की पूरी फैमिली अभी तक नहीं जागी है.

बारबार घंटी बजने पर घर के अंदर से पालतू कुत्तों के भौंकने की आवाजें आ रही थीं. कुत्तों की आवाज पर भी गेट नहीं खुलने पर जूली को चिंता हुई. उस ने पड़ोसियों को बताया. पड़ोसियों ने भी डोरबैल बजाई. दरवाजा खटखटाया और आवाजें दीं लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. थकहार कर पड़ोसियों ने पुलिस को सूचना दे दी.

यह बात हरियाणा के जिला गुरुग्राम के सेक्टर-48 के सेक्टर-49 स्थित पौश सोसायटी ‘उप्पल साउथ एंड’ की है. डा. प्रकाश इसी सोसायटी के एफ ब्लौक में 3 मंजिला बिल्डिंग के भूतल पर स्थित आलीशान फ्लैट में रहते थे.

वह वैज्ञानिक थे और नामी दवा कंपनी सन फार्मा में निदेशक रह चुके थे. करीब एक महीने पहले ही डा. सिंह ने इस सन फार्मा कंपनी की नौकरी छोड़ी थी. कुछ दिनों बाद ही उन्हें हैदराबाद की एक बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनी में नई नौकरी जौइन करनी थी.

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55 वर्षीय डा. सिंह के परिवार में उन की पत्नी डा. सोनू सिंह, 20 साल की बेटी अदिति और 14 साल का बेटा आदित्य था. चारों इसी फ्लैट में रहते थे. डा. प्रकाश सिंह दवा कंपनी में वैज्ञानिक की नौकरी करने के साथसाथ अपनी पत्नी के साथ स्कूल भी चलाते थे. गुरुग्राम और पलवल में उन के 4 स्कूल थे. बेटी अदिति भी बी.फार्मा की पढ़ाई कर रही थी जबकि बेटा नवीं कक्षा में पढ़ता था. सोसायटी के लोगों की सूचना पर कुछ ही देर में पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने भी पहले तो डा. सिंह के मकान की डोरबैल बजाई और कुंडी खटखटाई, लेकिन जब गेट नहीं खुला तो खिड़की तोड़ने का फैसला किया गया. खिड़की तोड़ कर पुलिस मकान के अंदर पहुंची तो भयावह नजारा देख कर हैरान रह गई.

बैडरूम में 3 लाशें पड़ी थीं. खून फैला हुआ था. घर की लौबी में लगे पंखे में बंधी नायलौन की रस्सी से एक अधेड़ आदमी लटका हुआ था. रूम में बैड पर एक लड़की का और बैड से नीचे एक किशोर के शव पड़े थे. इन से करीब 6 फुट दूर जमीन पर अधेड़ महिला की लाश पड़ी थी. तीनों पर हथौड़े जैसी भारी चीज से वार करने के बाद गला काटने के निशान थे.

पुलिस ने बैड और जमीन पर पड़े तीनों लोगों की नब्ज टटोल कर देखी, लेकिन उन की सांसें निकल चुकी थीं. उन के शरीर में जीवन के कोई लक्षण नहीं थे. पंखे से लटके अधेड़ की जान भी निकल चुकी थी.

पड़ोसियों ने की चारों लाशों की शिनाख्त

पड़ोसियों से पुलिस ने उन लाशों की शिनाख्त करवाई तो पता चला कि पंखे से लटका शव डा. प्रकाश सिंह का था और बैड पर उन की बेटी अदिति व बेटे आदित्य की लाशें पड़ी थीं. जमीन पर पड़ा शव डा. सिंह की पत्नी डा. सोनू सिंह का था.

पुलिस ने खोजबीन की तो डा. प्रकाश सिंह के पायजामे की जेब से 4 लाइनों का अंगरेजी में लिखा सुसाइड नोट मिला. सुसाइड नोट में उन्होंने परिवार संभालने में असमर्थता जताते हुए घटना के लिए खुद को जिम्मेदार बताया था. सुसाइड नोट पर एक जुलाई की तारीख लिखी थी.

डा. प्रकाश कोठारी के घर में पुलिस को 4 पालतू कुत्ते भी मिले. जमीन पर खून फैला होने के कारण कुत्ते भी खून से लथपथ थे. इन में 2 कुत्ते जरमन शेफर्ड और 2 कुत्ते पग प्रजाति के थे. परिवार के चारों सदस्यों ने ये अलगअलग कुत्ते पाल रखे थे.

जरमन शेफर्ड कुत्ते डा. प्रकाश और उन के बेटे आदित्य ने तथा पग प्रजाति के कुत्ते डा. सोनू व उन की बेटी आदित्य के प्रिय थे. ये चारों कुत्ते कमरे में शवों के पास बैठे थे. पुलिस के घर आने पर ये कुत्ते भौंकने लगे थे. नौकरानी जूली ने उन्हें पुचकार कर शांत किया.

प्रारंभिक तौर पर यही नजर आ रहा था कि डा. प्रकाश ने पत्नी, बेटी और बेटे की हत्या करने के बाद फांसी लगा कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली. डा. प्रकाश के पूरे परिवार की मौत की जानकारी मिलने पर पूरी सोसायटी में सनसनी फैल गई.

लोगों से पूछताछ में ऐसी कोई बात पुलिस के सामने नहीं आई, जिस से यह पता चलता कि डा. प्रकाश ने पत्नी, बेटी और बेटे की हत्या के बाद खुद फांसी क्यों लगा ली. पड़ोसियों ने बताया कि डा. प्रकाश और उन का परिवार खुशमिजाज था. उन्हें पैसों की भी कोई परेशानी नहीं थी.

पड़ोसियों से पूछताछ कर पुलिस ने डा. प्रकाश के परिजनों और रिश्तेदारों का पता लगाया. फिर उन्हें सूचना दी गई. सूचना मिलने पर सब से पहले डा. सोनू सिंह की बहन सीमा अरोड़ा वहां पहुंचीं. दिल्ली में रहने वाली सीमा अरोड़ा हाईकोर्ट में वकील हैं. उन्होंने पुलिस को बताया कि पिछली रात 11 बजे तक डा. प्रकाश के घर में सब कुछ ठीकठाक था. वह खुद रात 11 बजे तक अदिति से वाट्सऐप पर चैटिंग कर रही थीं.

सीमा अरोड़ा की बातों से यह तय हो गया कि यह घटना रात 11 बजे के बाद हुई. दूसरा यह भी था कि सुसाइड नोट पर एक जुलाई की तारीख लिखी थी. एक जुलाई रात 12 बजे शुरू हुई थी. सीमा अरोड़ा से बातचीत में पुलिस को ऐसा कोई कारण पता नहीं चला, जिस से इस बात का खुलासा होता कि डा. प्रकाश ने ऐसा कदम क्यों उठाया.

पुलिस ने शुरू की काररवाई

वैज्ञानिक के परिवार के 4 सदस्यों की मौत की जानकारी मिलने पर गुरुगाम पुलिस के तमाम आला अफसर मौके पर पहुंच गए. एफएसएल टीम भी बुला ली गई. फोरैंसिक वैज्ञानिकों ने घर में विभिन्न स्थानों से घटना के संबंध में साक्ष्य एकत्र किए. पुलिस ने डा. प्रकाश का शव फंदे से उतारा. दोपहर में चारों शवों को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया.

इस दौरान पुलिस ने घर के बाथरूम से 3 मोबाइल फोन बरामद किए. ये फोन पानी से भरी बाल्टी में पड़े थे. तीनों मोबाइलों के अंदर पानी चले जाने से ये चालू नहीं हो रहे थे. इसलिए तीनों मोबाइल फोरैंसिक लैब भेज दिए गए. पुलिस ने इस के अलावा मौके से रक्तरंजित एक तेज धारदार चाकू अैर एक हथौड़ा बरामद किया. माना गया कि इसी चाकू व हथौड़े से पत्नी, बेटी व बेटे की हत्या की गई.

पुलिस ने इसी दिन सीमा अरोड़ा के बयानों के आधार पर सेक्टर-50 थाने में मामला दर्ज कर लिया. डा. सिंह के परिवार के चारों कुत्ते देखभाल के लिए फिलहाल पड़ोसियों को सौंप दिए गए.

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अस्पताल में चारों शवों के मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने की काररवाई में रात हो गई. अगले दिन 2 जुलाई को डा. प्रकाश और डा. सोनू सिंह के परिवारों के लोग सुबह ही गुरुग्राम पहुंच गए. पुलिस ने दोनों पक्षों के बयान लिए और जरूरी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद सुबह करीब पौने 12 बजे चारों शव परिजनों को सौंप दिए.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आया कि सोनू के सिर व गले पर तेज धारदार हथियार से 20 से ज्यादा वार किए गए थे. बेटे व बेटी के सिर पर भी धारदार हथियार के 12 से 15 निशान मिले.

शवों को ले कर दोनों पक्षों में हुआ विवाद

शव सौंपे जाने पर अंत्येष्टि को ले कर डा. प्रकाश सिंह और उन की पत्नी के पक्ष के बीच विवाद हो गया. सोनू सिंह की बहन सीमा अरोड़ा ने कहा कि वह सोनू और दोनों बच्चों के शवों की अंत्येष्टि दिल्ली ले जा कर करेंगी. इस पर डा. प्रकाश के परिजन बिफर गए. उन की बहन शकुंतला ने कहा कि अंत्येष्टि कहीं भी करो, लेकिन चारों की एक साथ ही होनी चाहिए.

बाद में अन्य लोगों के दखल पर यह तय हुआ कि चारों की अंत्येष्टि गुरुग्राम में सेक्टर-32 के श्मशान घाट में की जाए. बाद में जब मुखाग्नि देने की बात आई तो इस बात को ले कर भी विवाद होतेहोते बचा. आपसी सहमति से सोनू, अदिति व आदित्य के शव को मुखाग्नि सीमा अरोड़ा के परिवार वालों ने दी. जबकि डा. प्रकाश के शव को उन की बहन के परिवार वालों ने मुखाग्नि दी.

उत्तर प्रदेश में वाराणसी के रघुनाथपुर गांव के रहने वाले डा. प्रकाश सिंह के पिता रामप्रसाद सिंह उर्फ रामू पटेल एक किसान थे. प्रकाश ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई की थी. सोनू सिंह भी उन के साथ ही पढ़ती थीं, इसलिए दोनों में जानपहचान हो गई. फिर वे एकदूसरे से प्यार करने लगे.

बाद में दोनों ने ही रसायन विज्ञान में एम.एससी. की. एम.एससी. में दोनों ने गोल्ड मैडल हासिल किए थे. इस के बाद दोनों ने डाक्टरेट की डिग्री हासिल की. डाक्टरेट की पढ़ाई के दौरान दोनों ने अपनेअपने घर वालों की इच्छा के खिलाफ 1996 में शादी कर ली.

दोनों ने भले ही शादी कर ली, लेकिन इस के बाद दोनों के ही परिवारों के बीच गांठ बन गई, जो नाराजगी के रूप में शवों की अंत्येष्टि के दौरान नजर आई.

विवाह के बाद डा. प्रकाश की पत्नी डा. सोनू ने पहले बेटी अदिति को जन्म दिया. इस के करीब 6 साल बाद बेटा हुआ. उस का नाम आदित्य रखा. डा. प्रकाश सिंह ने सब से पहले बेंगलुरु में नौकरी की थी. इस के बाद से ही उन का पैतृक गांव रघुनाथपुर में आनाजाना कम हो गया था.

करीब 12 साल पहले डा. प्रकाश और डा. सोनू सिंह नौकरी के सिलसिले में दिल्ली आ गए. दिल्ली में डा. प्रकाश ने रैनबैक्सी फार्मा कंपनी में नौकरी शुरू की. कुछ समय बाद वे गुरुग्राम आ कर बस गए और डा. प्रकाश सिंह सन फार्मा में नौकरी करने लगे. गुरुग्राम में उन्होंने ‘उप्पल साउथ एंड’ नाम की सोसायटी में फ्लैट ले लिया.

डा. सोनू सिंह करती थीं समाजसेवा

डा. प्रकाश की अच्छीखासी नौकरी थी. घर में सुखसुविधाओं और पैसे की कोई कमी नहीं थी. पतिपत्नी दोनों ही उच्चशिक्षित थे, इसलिए कोई परेशानी भी नहीं थी. डा. सोनू सिंह ऐशोआराम की जिंदगी जीने के बजाए सामाजिक कार्यों में रुचि लेती थीं. इसलिए एक एनजीओ बना कर उन्होंने गरीब बच्चों को पढ़ाने और उन का जीवनस्तर ऊंचा उठाने का बीड़ा उठाया.

सोनू सिंह ने करीब 8 साल पहले गुरुग्राम के फाजिलपुर में किराए का भवन ले कर गरीब बच्चों के लिए क्रिएटिव माइंड स्कूल खोला था. बाद में उन्होंने सेक्टर-49 में ‘दीप प्ले हाउस’ नाम से दूसरा स्कूल खोल लिया. इन दोनों स्कूलों का संचालन केवल गरीब बच्चों के उत्थान के लिए सोनू सिंह के एनजीओ के माध्यम से किया जाता था.

रसायन वैज्ञानिक होने के बावजूद डा. प्रकाश सिंह भी बच्चों को पढ़ाने का शौक रखते थे, इसलिए उन्होंने सोहना में ‘क्रिएटिव माइंड स्कूल’ खोल लिया. यह स्कूल बिना लाभहानि के चलाया जाता था. डा. प्रकाश ने अप्रैल 2018 में पलवल में व्यावसायिक नजरिए से एन.एस. पब्लिक स्कूल खोल लिया. पहले यह स्कूल एग्रीमेंट पर लिया गया बाद में दिसंबर, 2018 में इसे रजिस्ट्री करवा कर खरीद लिया गया.

डा. प्रकाश सिंह की बेटी अदिति जामिया हमदर्द से बी.फार्मा की पढ़ाई कर रही थी. इस साल वह अंतिम वर्ष की छात्रा थी. उस ने पढ़ाई के साथ सन फार्मा कंपनी में इंटर्नशिप भी शुरू कर दी थी. अदिति ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर पिछले साल सोप डायनामिक्स नाम से स्टार्टअप शुरू किया था. सब से छोटा बेटा गुरुग्राम के ही डीएवी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में कक्षा 9 में पढ़ रहा था.

डा. प्रकाश और उन की पत्नी सहित परिवार के चारों सदस्यों की मौत हो जाने से चारों स्कूलों के संचालन पर सवालिया निशान लग गए हैं. चारों स्कूलों में डेढ़ सौ से अधिक शैक्षणिक और गैरशैक्षणिक स्टाफ है. इन कर्मचारियों को वेतन और भविष्य की चिंता है. इस क ा मुख्य कारण है कि इन में 2 स्कूलों में खर्चे जितनी भी आदमनी नहीं होती है.

पुलिस को जांचपड़ताल में पता चला कि डा. प्रकाश के घर उन के रिश्तेदारों का बहुत कम आनाजाना था. ज्यादातर सोनू सिंह की बहन सीमा अरोड़ा ही यहां आती थीं. घटना से 10 दिन पहले भी वह परिवार के साथ यहां आई थीं. सीमा अरोड़ा के मुताबिक उस समय ऐसी कोई बात नजर नहीं आई थी, जिस का इतना भयावह परिणाम सामने आ सकता हो.

डा. प्रकाश के परिवार से बहुत कम लोग कभीकभार ही यहां आते थे. डा. प्रकाश की मां अपने अंतिम समय में यहां कुछ दिन रही थीं. डा. प्रकाश 5 भाईबहनों में तीसरे नंबर के थे. 2 बहनें उन से बड़ी थीं और 2 बहनें छोटी. इन में एक बड़ी बहन का निधन हो चुका है. एक बहन परिवार के साथ नोएडा में और 2 बहनें बनारस में ही रहती हैं. डा. प्रकाश के मातापिता का निधन हो चुका है.

पुलिस को आने लगी साजिश की गंध

पुलिस दूसरे दिन भी वैज्ञानिक के परिवार की मौत की गुत्थी सुलझाने में जुटी रही. हालांकि मौके के हालात और सुसाइड नोट से साफ था कि डा. प्रकाश ने पत्नी, बेटी व बेटे की हत्या के बाद खुद आत्महत्या की थी. लेकिन फिर भी पुलिस हर एंगल से जांच करती रही कि कहीं यह कोई साजिशपूर्ण तरीके से किसी बाहरी व्यक्ति की ओर से की गई वारदात तो नहीं है.

मामले की गुत्थी सुलझाने के लिए पुलिस को डा. प्रकाश के घर में बाथरूम में मिले 3 मोबाइल फोन से मदद मिलने की उम्मीद थी, इसलिए इन मोबाइलों की काल डिटेल्स निकलवाई गई. इस के अलावा इन मोबाइलों का डेटा रिकवर करने का प्रयास किया गया.

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फोरैंसिक लैब की जांच में पता चला कि बाथरूम में मिले 3 मोबाइलों में एक वाटरप्रूफ था, लेकिन उस पर पैटर्न लौक था, जिस से वह खुल नहीं सका. पुलिस को दूसरे दिन डा. प्रकाश के घर से 2 मोबाइल और मिले. ये मोबाइल भी बंद थे. इन को भी साइबर एक्सपर्ट के पास भेजा गया. उन के फ्लैट से मिले लैपटौप और आईपैड को जांच के लिए सीआईडी की साइबर लैब भेजा गया.

पुलिस ने अदिति के दोस्तों से भी अलगअलग पूछताछ की. इस में उन्होंने बताया कि अदिति ने उन से नौकरी छूटने की वजह से पापा के तनाव में होने की चर्चा की थी. अदिति के दोस्तों से पुलिस को ऐसी कोई ठोस वजह पता नहीं चली जिस से इस मामले की गुत्थी सुलझने में मदद मिलती. सन फार्मा कंपनी में पूछताछ में पता चला कि डा. प्रकाश ने स्वेच्छा से नौकरी छोड़ी थी. कंपनी में उन का पद और सैलरी पैकेज काफी अच्छा था. कंपनी में किसी से उन का कोई विवाद भी सामने नहीं आया.

बौद्ध धर्म से जुड़ी थीं डा. सोनू सिंह

डा. सोनू सिंह के बारे में पुलिस को पता चला कि उन का बौद्ध धर्म से जुड़ाव था. उन्होंने अपनी सोसायटी में बौद्ध धर्म के अनुयाइयों की कम्युनिटी भी बनाई हुई थी. इस कम्युनिटी की वह ग्रुप लीडर थीं. सोसायटी में सोनू सिंह को बोल्ड महिला माना जाता था जबकि प्रकाश सिंह सौम्य स्वभाव के थे.

तीसरे दिन भी काफी माथापच्ची और जांचपड़ताल के बावजूद पुलिस को इस मामले में कोई तथ्य हाथ नहीं लगा. यह जरूर पता चला कि सोनू सिंह, अदिति और आदित्य की हत्या में जिस चाकू का उपयोग किया गया था, वह करीब एक साल पहले डा. प्रकाश सिंह द्वारा ही खरीदा गया था. अदिति ने उस समय सोप डायनामिक्स स्टार्टअप शुरू किया था. वह घर में कौस्मेटिक व कुछ विशेष साबुन बनाती थी. साबुन व अन्य सामान के टुकड़े करने के लिए अदिति ने यह चाकू पिता से मंगवाया था.

डा. प्रकाश के घर मिले 4 कुत्तों को ले कर भी विवाद हो गया. ये कुत्ते अदिति का दोस्त उस की याद के रूप में सहेज कर अपने पास रखना चाहता था जबकि दूसरी तरफ अदिति की मौसी सीमा अरोड़ा इन कुत्तों को अपने साथ ले जाना चाहती थीं.

विवाद बढ़ने पर यह मामला पीपुल फौर एनिमल संस्था के जरिए सांसद मेनका गांधी तक पहुंच गया. मेनका गांधी के हस्तक्षेप से चारों कुत्तों को पुलिस की निगरानी में नैशनल डौग शेल्टर होम भेज दिया गया.

चौथे दिन नौकरानी जूली से पूछताछ में सामने आया कि सन फार्मा की नौकरी छोड़ने के बाद डा. प्रकाश अधिकांश समय घर पर रहते और यूट्यूब पर वीडियो देखते थे. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि डा. प्रकाश ने शायद यूट्यूब देख कर हत्याकांड की योजना बनाई होगी.

नौकरानी ने बताया कि कुछ दिन पहले फ्लैट में फरनीचर का काम हुआ था. उस दौरान कारपेंटर अपना एक हथौड़ा इसी घर में छोड़ गया था. संभवत: इसी हथौड़े से डा. प्रकाश ने परिवार के 3 सदस्यों की जान ली.

पांचवें दिन पुलिस ने दोनों पक्षों के रिश्तेदारों की मौजूदगी में डा. प्रकाश के घर की तलाशी ली. इस की वीडियोग्राफी भी कराई गई. घर की अलमारियों और लौकरों में रखे दस्तावेजों की भी जांच की गई. हालांकि पुलिस को तलाशी और जांचपड़ताल में ऐसे कोई तथ्य नहीं मिले, जिस से डा. प्रकाश की परेशानी और इस हत्याकांड के पीछे के कारणों का पता चलता.

मोबाइल फोन का डेटा मिला डिलीट

छठे दिन पुलिस को मोबाइल फोनों की जांच रिपोर्ट मिली. इस में बताया गया कि डा. सोनू व अदिति के मोबाइल में डेटा नहीं मिला. वाट्सऐप चैट व गैलरी से फोटो, वीडियो डिलीट थे. इस से यह नया सवाल खड़ा हो गया कि क्या डा. प्रकाश ने हत्या के बाद पत्नी व बेटी के मोबाइल का डेटा डिलीट किया था.

अगर उन्होंने डेटा डिलीट किया था तो उस में ऐसे क्या मैसेज व फोटो थे. रिपोर्ट आने के बाद पुलिस ने इन मोबाइल फोनों के डेटा रिकवर करने के लिए साइबर एक्सपर्ट की मदद ली.

बाद में की गई जांच में पुलिस को ऐसे कोई तथ्य नहीं मिले, जिन से इस मामले में रहस्य की कोई परत उजागर हो पाती. इस बीच 8 जुलाई को डा. प्रकाश के परिजनों ने पुलिस उपायुक्त (पूर्व) सुलोचना गजराज को एक पत्र दे कर इस पूरे मामले को एक साजिश का परिणाम बताया और मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग की. परिजनों ने सुसाइड नोट की हस्तलिपि पर भी सवाल उठाए.

डा. प्रकाश की बड़ी बहन के दामाद कौशल का कहना था कि इस वारदात के पीछे जमीन का विवाद भी हो सकता है. इस का कारण है कि उन की मामीजी यानी सोनू सिंह के पिता की वाराणसी की जमीन को ले कर सोनू सिंह और उन की बहन के बीच विवाद था. पलवल वाले स्कूल की जमीन को ले कर भी कुछ विवाद चल रहा था. यह जमीन डा. प्रकाश ने अपनी बहन शकुंतला से पैसे उधार ले कर खरीदी बताई. परिजनों का यह भी कहना था कि डा. प्रकाश का 2 साल पहले मेदांता अस्पताल में बाइपास औपरेशन हुआ था. औपरेशन से उन की जिंदगी तो बच गई थी, लेकिन वे अंदर से पूरी तरह खोखले हो गए थे.

कई बिंदुओं पर चल रही है जांच

कौशल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हरियाणा के मुख्यमंत्री को इस मामले में पत्र लिख कर सुसाइड नोट की हस्तलिपि और दस्तखतों पर भी सवाल उठाए हैं. इस के लिए उन्होंने डा. प्रकाश की ओर से कुछ दिन पहले दिए गए एक चैक की फोटोप्रति भी संलग्न की. कौशल के अनुसार, सुसाइड नोट पर किए हस्ताक्षर पर डा. प्रकाश के जैसे हस्ताक्षर बनाने का प्रयास किया गया है जबकि वे असली हस्ताक्षर नहीं हैं.

यह बात भी सामने आई कि डा. प्रकाश अपनी ससुराल वालों की वाराणसी की जमीन एकडेढ़ करोड़ रुपए में बेचना चाहते थे. इस जमीन पर सोनू सिंह की बहन भी दावा जता रही थीं. जमीन बेचने के सिलसिले में डा. प्रकाश जल्दी ही बनारस भी जाने वाले थे.

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चर्चा यह भी है कि डा. प्रकाश पर बैंकों और रिश्तेदारों का काफी कर्ज था. इस कर्ज को ले कर वह तनाव में थे. गुरुग्राम के मकान की किस्तें भी समय पर नहीं चुकाने की बात सामने आई थी.

सन फार्मा की नौकरी छोड़ने के बाद वह अलग से तनाव में थे. हालांकि कहा यही जा रहा है कि उन की हैदराबाद की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नई नौकरी की बात हो गई थी. इस के लिए वह 3 जुलाई को फ्लाइट से हैदराबाद भी जाने वाले थे, लेकिन इस से पहले ही यह मामला हो गया.

डा. प्रकाश की मौत के बाद उन की संपत्तियों को ले कर अलगअलग दावे जताने की चर्चा भी शुरू हो गई थी. हालांकि औपचारिक रूप से तो किसी पक्ष ने दावे नहीं किए थे, लेकिन दोनों ही पक्षों डा. प्रकाश और डा. सोनू सिंह के परिवार के लोग अपनेअपने तरीकों से डा. प्रकाश और उन की पत्नी की संपत्तियों और कर्ज के बारे में पता कर रहे थे.

कहा जा रहा है कि डा. प्रकाश की अधिकांश संपत्तियां उन की पत्नी सोनू सिंह के नाम से हैं. सोनू की बहन सीमा अरोड़ा ने डा. प्रकाश के कुछ स्कूल अभी खोलने के लिए स्टाफ को कह दिया है.

बहरहाल, डा. प्रकाश सिंह का हंसताखेलता खुशहाल परिवार उजड़ गया. कथा लिखे जाने तक पुलिस को इस मामले में ऐसा कोई सुराग नहीं मिला, जिस के जरिए रहस्य का वह परदा उठ पाए कि डा. प्रकाश ने अपनी जान से ज्यादा प्यारी बेटी और बेटे के अलावा पत्नी को मौत के घाट उतारने के बाद खुद आत्महत्या क्यों कर ली.

पुलिस को कोई चश्मदीद गवाह भी नहीं मिला. डा. प्रकाश के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों से भी पुलिस कोई सुराग नहीं लगा सकी. ऐसे भी कोई साक्ष्य नहीं मिले कि इस वारदात में किसी बाहरी व्यक्ति का हाथ हो. इन सभी कारणों से वैज्ञानिक प्रकाश के परिवार की हत्या और आत्महत्या का मामला फिलहाल मिस्ट्री बन कर रह गया.

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानी)

समाज की डोर पर 2 की फांसी

लेखक- सुरेशचंद्र मिश्र

डेयरी संचालक भूरा राजपूत अपना काम निपटा कर वापस घर आया तो उस की नजर घरेलू कामों में लगीं बेटियों पर पड़ी. उन की 4 बेटियों में 3 तो घर में थीं लेकन सब से बड़ी बेटी शैफाली घर में नजर नहीं आई. उन्होंने पत्नी से पूछा, ‘‘रेनू, शैफाली दिखाई नहीं दे रही. वह कहीं गई है क्या?’’

‘‘अपनी सहेली शिवानी के घर गई है. कह रही थी, उस की किताबें वापस करनी हैं.’’ रेनू ने पति को बताया.

पत्नी की बात सुन कर भूरा झल्ला उठा, ‘‘मैं ने तुम्हें कितनी बार समझाया है कि शैफाली को अकेले घर से मत जाने दिया करो, लेकिन मेरी बात तुम्हारे दिमाग में घुसती कहां है. उसे जाना ही था तो अपनी छोटी बहन को साथ ले जाती. उस पर अब मुझे कतई भरोसा नहीं है.’’  पति की बात सही थी. इसलिए रेनू ने कोई जवाब नहीं दिया. शैफाली सुबह 10 बजे अपनी मां रेनू से यह कह घर से निकली थी कि वह शिवानी को किताबें वापस कर घंटा सवा घंटा में वापस आ जाएगी. लेकिन दोपहर एक बजे तक भी वह घर नहीं लौटी थी. उसे गए हुए 3 घंटे हो गए थे. जैसेजैसे समय बीतता जा रहा था, वैसेवैसे रेनू और उस के पति भूरा की चिंता बढ़ती जा रही थी.

रेनू बारबार उस का मोबाइल नंबर मिला रही थी, लेकिन उस का मोबाइल स्विच्ड औफ था. जब भूरा से नहीं रहा गया तो शैफाली का पता लगाने के लिए घर से निकल पड़ा. उस ने बेटे अशोक को भी साथ ले लिया था.

शैफाली की सहेली शिवानी का घर गांव के दूसरे छोर पर था. भूरा राजपूत वहां पहुंचा तो घर का दरवाजा अंदर से बंद था. भूरा ने दरवाजा खटखटाया तो कुछ देर बाद शिवानी के भाई संदीप ने दरवाजा खोला. शैफाली के पिता को देख कर संदीप घबरा गया. लेकिन अपनी घबराहट को छिपाते हुए उस ने पूछा, ‘‘अंकल आप, कैसे आना हुआ?’’

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भूरा गुस्से में बोला, ‘‘शैफाली और शिवानी कहां हैं?’’

‘‘अंकल शैफाली तो यहां नहीं आई. मेरी बहन शिवानी मातापिता और भाई के साथ गांव गई है. वे लोग 2 दिन बाद वापस आएंगे.’’ संदीप ने जवाब दिया.

संदीप की बात सुन कर भूरा अपशब्दों की बौछार करते हुए बोला, ‘‘संदीप, तू ज्यादा चालाक मत बन. तू ने मेरी भोलीभाली बेटी को अपने प्यार के जाल में फंसा रखा है. तू झूठ बोल रहा है कि शैफाली यहां नहीं आई. उसे जल्दी से घर के बाहर निकाल वरना पुलिस ला कर तेरी ऐसी ठुकाई कराऊंगा कि प्रेम का भूत उतर जाएगा.’’  ‘‘अंकल मैं सच कह रहा हूं, शैफाली नहीं आई. न ही मैं ने उसे छिपाया है.’’ संदीप ने फिर अपनी बात दोहराई.

यह सुनते ही भूरा संदीप से भिड़ गया. उस ने संदीप के साथ हाथापाई की. फिर पुलिस लाने की धमकी दे कर चला गया. उस के जाते ही संदीप ने दरवाजा बंद कर लिया. यह बात 13 जून, 2019 की है. भूरा राजपूत लगभग 2 बजे पुलिस चौकी मंधना पहुंचा. संयोग से उस समय बिठूर थाना प्रभारी विनोद कुमार सिंह भी चौकी पर मौजूद थे. भूरा ने उन्हें बताया, ‘‘सर, मेरा नाम भूरा राजपूत है और मैं कछियाना गांव का रहने वाला हूं. मेरे गांव में संदीप रहता है. उस ने मेरी बेटी शैफाली को बहलाफुसला कर अपने घर में छिपा रखा है. शायद वह शैफाली को साथ भगा ले जाना चाहता है. आप मेरी बेटी को मुक्त कराएं.’’

चूंकि मामला लड़की का था. थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह पुलिस के साथ कछियाना गांव निवासी संदीप के घर जा पहुंचे. घर का मुख्य दरवाजा बंद था. थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने दरवाजे की कुंडी खटखटाई, साथ ही आवाज भी लगाई. लेकिन अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. संदीप के दरवाजे पर पुलिस देख कर पड़ोसी भी अपने घरों से बाहर आ गए. वे लोग जानने की कोशिश कर रहे थे कि आखिर संदीप के घर ऐसा क्या हुआ जो पुलिस आई है. जब दरवाजा नहीं खुला तो थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह सहयोगी पुलिसकर्मियों के साथ पड़ोसी विजय तिवारी की छत से हो कर संदीप के घर में दाखिल हुए.

घर के अंदर एक कमरे का दृश्य देख कर सभी पुलिस वाले दहल उठे. कमरे के अंदर संदीप और शैफाली के शव पंखे के सहारे साड़ी के फंदे से झूल रहे थे. इस के बाद गांव में कोहराम मच गया. भूरा राजपूत और उस की पत्नी रेनू बेटी का शव देख कर फफक पड़े. शैफाली की बहनें भी फूटफूट कर रोने लगीं. पड़ोसी विजय तिवारी ने संदीप द्वारा आत्महत्या करने की सूचना उस के पिता दिनेश कमल को दे दी.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने प्रेमी युगल द्वारा आत्महत्या करने की बात वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ देर बाद एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ अजीत कुमार घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया.

उस के बाद पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और फंदों से लटके शव नीचे उतरवाए. मृतक संदीप की उम्र 20-22 वर्ष थी, जबकि मृतका शैफाली की उम्र 18 वर्ष के आसपास. मौके पर फोरैंसिक टीम ने भी जांच की.

टीम ने मृतक संदीप की जेब से मिले पर्स व मोबाइल को जांच के लिए कब्जे में ले लिया. मृतका शैफाली की चप्पलें और मोबाइल भी सुरक्षित रख ली गईं. पुलिस टीम ने वह साड़ी भी जांच की काररवाई में शामिल कर ली. जिस से प्रेमीयुगल ने फांसी लगाई थी.

दोनों के परिजनों ने लगाए एकदूसरे पर आरोप

अब तक मृतक संदीप के मातापिता  व भाईबहन भी गांव से लौट आए थे और शव देख कर बिलखबिलख कर रोने लगे. संदीप की मां माधुरी गांव जाने से पहले उस के लिए परांठा सब्जी बना कर रख कर गई थी. संदीप ने वही खाया था.

पुलिस अधिकारियों ने मृतकों के परिजनों से घटना के संबंध में पूछताछ की और दोनों के शव पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपत राय अस्पताल कानपुर भिजवा दिए. मृतकों के परिजन एकदूसरे पर दोषारोपण कर रहे थे, जिस से गांव में तनाव की स्थिति बनती जा रही थी. इसलिए पुलिस अधिकारियों ने सुरक्षा की दृष्टि से गांव में पुलिस तैनात कर दी. साथ ही आननफानन में पोस्टमार्टम करा कर शव उन के घर वालों को सौंप दिए.

कानपुर महानगर से 15 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक कस्बा है मंधना. जो थाना बिठूर के क्षेत्र में आता है. मंधना कस्बे से कुरसोली जाने वाली रोड पर एक गांव है कछियाना. मंधना कस्बे से मात्र एक किलोमीटर दूर बसा यह गांव सभी भौतिक सुविधाओं वाला गांव है.

भूरा राजपूत अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता है. उस के परिवार में पत्नी रेनू के अलावा एक बेटा अशोक तथा 4 बेटियां शैफाली, लवली, बबली और अंजू थीं. भूरा राजपूत डेयरी चलाता था. इस काम में उसे अच्छी आमदनी होती थी. उस की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

भाईबहनों में बड़ी शैफाली थी. वह आकर्षक नयननक्श वाली सुंदर युवती थी. वैसे भी जवानी में तो हर युवती सुंदर लगती है. शैफाली की तो बात ही कुछ और थी. वह जितनी खूबसूरत थी, पढ़ने में उतनी ही तेज थी. उस ने सरस्वती शिक्षा सदन इंटर कालेज मंधना से हाईस्कूल पास कर लिया था. फिलहाल वह 11वीं में पढ़ रही थी.

पढ़ाईलिखाई में तेज होने के कारण उस के नाजनखरे कुछ ज्यादा ही थे. लेकिन संस्कार अच्छे थे. स्वभाव से वह तेजतर्रार थी, पासपड़ोस के लोग उसे बोल्ड लड़की मानते थे.

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कछियाना गांव के पूर्वी छोर पर दिनेश कमल रहते थे. उन के परिवार में पत्नी माधुरी के अलावा 2 बेटे थे. संदीप उर्फ गोलू, प्रदीप उर्फ मुन्ना और बेटी शिवानी थी. दिनेश कमल मूल रूप से कानपुर देहात जनपद के रूरा थाने के अंतर्गत चिलौली गांव के रहने वाले थे. वहां उन की पुश्तैनी जमीन थी. जिस में अच्छी उपज होती थी. दिनेश ने कछियाना गांव में ही एक प्लौट खरीद कर मकान बनवा लिया था. इस मकान में वह परिवार सहित रहते थे. वह चौबेपुर स्थित एक फैक्ट्री में काम करते थे.

दिनेश कमल का बेटा संदीप और बेटी शिवानी पढ़ने में तेज थे. इंटरमीडिएट पास करने के बाद संदीप ने आईटीआई कानपुर में दाखिला ले लिया. वह मशीनिस्ट ट्रेड से पढ़ाई कर रहा था.

शैफाली की सहेली का भाई था संदीप

शिवानी और शैफाली एक ही गांव की रहने वाली थीं, एक ही कालेज में साथसाथ पढ़ती थीं. अत: दोनों में गहरी दोस्ती थीं. दोनों सहेलियां एक साथ साइकिल से कालेज आतीजाती थीं. जब कभी शैफाली का कोर्स पिछड़ जाता तो वह शिवानी से कौपीकिताब मांग कर कोर्स पूरा कर लेती और जब शिवानी पिछड़ जाती तो शैफाली की मदद से काम पूरा कर लेती. दोनों के बीच जातिबिरादरी का भेद नहीं था. लंच बौक्स भी दोनों मिलबांट कर खाती थीं.

एक रोज कालेज से छुट्टी होने के बाद शिवानी और शैफाली घर वापस आ रही थीं. तभी रास्ते में अचानक शैफाली का दुपट्टा उस की साइकिल की चेन में फंस गया. शैफाली और शिवानी दुपट्टा निकालने का प्रयास कर रही थीं, लेकिन वह निकल नहीं रहा था.

उसी समय पीछे से शिवानी का भाई संदीप आ गया. वह मंधना बाजार से सामान ले कर लौट रहा था. उस ने शिवानी को परेशान हाल देखा तो स्कूटर सड़क किनारे खड़ा कर के पूछा, ‘‘क्या बात है शिवानी, तुम परेशान दिख रही हो?’’

‘‘हां, भैया देखो ना शैफाली का दुपट्टा साइकिल की चेन में फंस गया है. निकल ही नहीं रहा है.’’

‘‘तुम परेशान न हो, मैं निकाल देता हूं.’’ कहते हुए संदीप ने प्रयास किया तो शैफाली का दुपट्टा निकल गया. उस रोज संदीप और शैफाली की पहली मुलाकात हुई. पहली ही नजर में दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए. खूबसूरत शैफाली को देख कर संदीप को लगा यही मेरी सपनों की रानी है. हृष्टपुष्ट स्मार्ट संदीप को देख कर शैफाली भी प्रभावित हो गई.

सहेली के भाई से हो गया प्यार

उसी दिन से दोनों के दिलों में प्यार की भावना पैदा हुई तो मिलन की उमंगें हिलोरें मारने लगीं. आखिर एक रोज शैफाली से नहीं रहा गया तो उस के कदम संदीप के घर की ओर बढ़ गए. उस रोज शनिवार था. आसमान पर घने बादल छाए थे, ठंडी हवा चल रही थी. संदीप घर पर अकेला था. वह कमरे में बैठा टीवी पर आ रही फिल्म ‘एक दूजे के लिए’ देख रहा था. तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. संदीप ने दरवाजा खोला तो सामने खड़ी शैफाली मुसकरा रही थी.

‘‘शिवानी है?’’ वह बोली.

‘‘वह तो मां के साथ बाजार गई है, आओ बैठो. मैं शिवानी को फोन कर देता हूं.’’ संदीप ने कहा.

‘‘मैं बाद में आ जाऊंगी.’’ शैफाली ने कहा ही था कि मूसलाधार बारिश शुरू हो गई.

‘‘अब कहां जाओगी?’’

‘‘जी.’’ कहते हुए शैफाली कमरे में आ गई और संदीप के पास बैठ कर फिल्म देखने लगी.

कमरे का एकांत हो 2 युवा विपरीत लिंगी बैठे हों, और टीवी पर रोमांटिक फिल्म चल रही हो तो माहौल खुदबखुद रूमानी हो जाता है. ऐसा ही हुआ भी शैफाली ने फिल्म देखतेदेखते संदीप से कहा, ‘‘संदीप एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछो?’’

‘‘प्यार करने वालों का अंजाम क्या ऐसा ही होता है.’’

‘‘कोई जरूरी नहीं.’’ संदीप ने कहा, ‘‘प्यार  करने वाले अगर समय के साथ खुद अनुकूल फैसला लें और समझौता न कर के आगे बढ़ें तो उन का अंत सुखद होगा.’’

‘‘अपनी बात तो थोड़ा स्पष्ट करो.’’

‘‘देखो शैफाली, मैं समझौतावादी नहीं हूं. मैं तो तुरतफुरत में विश्वास करता हूं और दूसरे मेरा मानना है कि जो चीज सहज हासिल न हो उसे खरीद लो.’’

‘‘अच्छा संदीप अगर मैं कहूं कि मैं तुम से प्यार करती हूं, तब तुम मेरा प्यार हासिल करना चाहोगे या खरीदना पसंद करोगे?’’

शैफाली के सवाल पर संदीप चौंका. उस का चौंकना स्वाभाविक था. वह यह तो जानता था कि शैफाली बोल्ड लड़की है, लेकिन उस की बोल्डनैस उसे क्लीन बोल्ड कर देगी, वह नहीं जानता था. संदीप, शैफाली के प्रश्न का उत्तर दे पाता, उस के पहले ही शिवानी मां के साथ बाजार से लौट आई. आते ही शिवानी ने चुटकी ली, ‘‘शैफाली, संदीप भैया से मिल लीं. आजकल तुम्हारे ही गुणगान करता रहता है ये.’’

‘‘धत…’’ शैफाली ने शरमाते हुए उसे झिड़क दिया. फिर कुछ देर दोनों सहेलियां हंसीमजाक करती रहीं. थोड़ा रुक कर शैफाली अपने घर चली गई.

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बढ़ने लगा प्यार का पौधा

उस दिन के बाद दोनों में औपचारिक बातचीत होने लगी. दिल धीरेधीरे करीब आ रहे थे. संदीप शैफाली को पूरा मानसम्मान देने लगा था. जब भी दोनों का आमनासामना होता, संदीप मुसकराता तो शैफाली के होंठों पर भी मुसकान तैरने लगती. अब दोनों की मुसकराहट लगातार रंग दिखाने लगी थी.

एक रविवार को संदीप यों ही स्कूटर से घूम रहा था कि इत्तेफाक से उस की मुलाकात शैफाली से हो गई. शैफाली कुछ सामान खरीदने मंधना बाजार गई थी. चूंकि शैफाली के मन में संदीप के प्रति चाहत थी. इसलिए उसे संदीप का मिलना अच्छा लगा. उसने मुसकरा कर पूछा, ‘‘तुम बाजार में क्या खरीदने आए थे?’’  ‘‘मैं बाजार से कुछ खरीदने नहीं बल्कि घूमने आया था. मुझे पंडित रेस्तरां की चाय बहुत पसंद है. तुम भी मेरे साथ चलो. तुम्हारे साथ हम भी वहां एक कप चाय पी लेंगे.’’  ‘‘जरूर.’’ शैफाली फौरन तैयार हो गई.

पास ही पंडित रेस्तरां था. दोनों जा कर रेस्तरां में बैठ गए. चायनाश्ते का और्डर देने के बाद संदीप शैफाली से मुखातिब हुआ, ‘‘बहुत दिनों से मैं तुम से अपने मन की बात कहना चाह रहा था. आज मौका मिला है, इसलिए सोच रहा हूं कि कह ही दूं.’’

शैफाली की धड़कनें तेज हो गईं. वह समझ रही थी कि संदीप के मन में क्या है और वह उस से क्या कहना चाह रहा है. कई बार शैफाली ने रात के सन्नाटे में संदीप के बारे में बहुत सोचा था.

उस के बाद इस नतीजे पर पहुंची थी कि संदीप अच्छा लड़का है. जीवनसाथी के लिए उस के योग्य है. लिहाजा उस ने सोच लिया था कि अगर संदीप ने प्यार का इजहार किया तो वह उस की मोहब्बत कबूल कर लेगी.

‘‘जो कहूंगा, अच्छा ही कहूंगा.’’ कहते हुए संदीप ने शैफाली का हाथ पकड़ा और सीधे मन की बात कह दी, ‘‘शैफाली मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

शैफाली ने उसे प्यार की नजर से देखा, ‘‘मैं भी तुम से प्यार करती हूं संदीप, और यह भी जानती हूं कि प्यार में कोई शर्त नहीं होती. लेकिन दिल की तसल्ली के लिए एक प्रश्न पूछना चाहती हूं. यह बताओ कि मोहब्बत के इस सिलसिले को तुम कहां तक ले जाओगे?’’

साथ निभाने की खाईं कसमें

‘‘जिंदगी की आखिरी सांस तक.’’ संदीप भावुक हो गया, ‘‘शैफाली, मेरे लफ्ज किसी तरह का ढोंग नहीं हैं. मैं सचमुच तुम से प्यार करता हूं. प्यार से शुरू हो कर यह सिलसिला शादी पर खत्म होगा. उस के बाद हमारी जिंदगी साथसाथ गुजरेगी.’’

शैफाली ने भी भावुक हो कर उस के हाथ पर हाथ रख दिया, ‘‘प्यार के इस सफर में मुझे अकेला तो नहीं छोड़ दोगे?’’

‘‘शैफाली,’’ संदीप ने उस का हाथ दबाया, ‘‘जान दे दूंगा पर इश्क का ईमान नहीं जाने दूंगा.’’

शैफाली ने संदीप के होंठों को तर्जनी से छुआ और फिर उंगली चूम ली. उस की आंखों की चमक बता रही थी कि उसे जैसे चाहने वाले की तमन्ना थी, वैसा ही मिल गया है.

शैफाली और संदीप की प्रेम कहानी शुरू हो चुकी थी. गुपचुप मेलमुलाकातें और जीवन भर साथ निभाने के कसमेवादे, दिनोंदिन उन का पे्रमिल रिश्ता चटख होता गया. दोनों का मेलमिलाप कराने में शैफाली की सहेली शिवानी अहम भूमिका निभाती रही.

एक दिन प्यार के क्षणों में बातोंबातों में संदीप ने बोला, ‘‘शैफाली, अपने मिलन के अब चंद महीने बाकी हैं. मैं कानपुर आईटीआई से मशीनिस्ट टे्रड का कोर्स कर रहा हूं. मेरा यह आखिरी साल है. डिप्लोमा मिलते ही मैं तुम से शादी कर लूंगा.’’

संदीप की बात सुन कर शैफाली खिलखिला कर हंस पड़ी.

संदीप ने अचकचा कर उसे देखा, ‘‘मैं इतनी सीरियस बात कर रहा हूं और तुम हंस रही हो.’’

‘‘बचकानी बात करोगे तो मुझे हंसी आएगी ही.’’

‘‘मैं ने कौन सी बचकानी बात कह दी?’’

‘‘शादी की बात.’’ शैफाली ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘बुद्धू शादी के बाद पत्नी की सारी जिम्मेदारियां पति की हो जाती हैं. एक पैसा तुम कमाते नहीं हो, मुझे खिलाओगे कैसे? मेरे खर्च और शौक कैसे पूरे करोगे?’’

‘यह मैं ने पहले से सोच रखा है,’’ संदीप बोला, ‘‘डिप्लोमा मिलते ही मैं दिल्ली या नोएडा जा कर कोई नौकरी कर लूंगा. शादी के बाद हम दिल्ली में ही अपनी अलग दुनिया बसाएंगे.’’

बनाने लगे सपनों का महल

संदीप की यह बात शैफाली को मन भा गई. दिल्ली उस के भी सपनों का शहर था. इसीलिए संदीप ने उस से दिल्ली में बसने की बात कही तो उस का मन खुशी से झूम उठा.

संदीप और शैफाली का प्यार परवान चढ़ ही रहा था कि एक दिन उन का भांडा फूट गया. हुआ यूं कि उस रोज शैफाली अपने कमरे में मोबाइल पर संदीप से प्यार भरी बातें कर रही थी. उस की बातें मां रेनू ने सुनीं तो उन का माथा ठनका. कुछ देर बाद उन्होंने उस से पूछा, ‘‘शैफाली, ये संदीप कौन है? उस से तुम कैसी अटपटी बातें करती हो?’’

शैफाली न डरी न लजाई, उस ने बता दिया, ‘‘मां संदीप मेरी सहेली शिवानी का भाई है. गांव के पूर्वी छोर पर रहता है. बहुत अच्छा लड़का है. हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’

रेनू कुछ देर गंभीरता से सोचती रही, फिर बोली, ‘‘बेटी अभी तो तुम्हारी पढ़नेलिखने की उम्र है. प्यारव्यार के चक्कर में पड़ गई. वैसे तुम्हारी पसंद से शादी करने पर मुझे कोई एतराज नहीं है. किसी दिन उस लड़के को घर ले अना, मैं उस से मिल लूंगी और उस के बारे में पूछ लूंगी. सब ठीकठाक लगा तो तुम्हारे पापा को शादी के लिए राजी कर लूंगी.’’

3-4 दिन बाद शैफाली ने संदीप को चाय पर बुला लिया. होने वाली सास ने बुलाया है. यह जान कर संदीप के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. उसे विश्वास हो था कि शैफाली के घर वालों की स्वीकृति के बाद वह अपने घर वालों को भी मना लगा. उस ने अभी तक अपने मांबाप को अपने प्यार के बारे में कुछ भी नहीं बताया था. घर में उस की बहन शिवानी ही उस की प्रेम कहानी जानती थी.

शैफाली की मां रेनू ने संदीप को देखा तो उस की शक्ल सूरत, कदकाठी तो उन्हें पसंद आई. लेकिन जब जाति कुल के बारे में पूछा तो रेनू की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. संदीप दलित समाज का था.

नहीं बनी शादी की बात

संदीप के जाने के बाद रेनू ने शैफाली को डांटा, ‘‘यह क्या गजब किया. दिल लगाया भी तो एक दलित से. राजपूत और दलित का रिश्ता नहीं हो सकता. तू भूल जा उसे, इसी में हम सब की भलाई है. समाज उस से तुम्हारा रिश्ता स्वीकर नहीं करेगा. हम सब का हुक्कापानी बंद हो जाएगा. तुम्हारी अन्य बहनें भी कुंवारी बैठी रह जाएंगी. भाई को भी कोई अपनी बहनबेटी नहीं देगा.’’

शैफाली ने ठंडे दिमाग से सोचा तो उसे लगा कि मां जो कह रही हैं, सही बात है. इसलिए उस ने उस वक्त तो मां से वादा कर लिया कि वह संदीप को भूल जाएगी. लेकिन वह अपना वादा निभा नहीं सकी. वह संदीप को अपने दिल से निकाल नहीं पाई.

संदीप के बारे में वह जितना सोचती थी उस का प्यार उतना ही गहरा हो जाता. आखिर उस ने निश्चय कर लिया कि चाहे जो भी हो, वह संदीप का साथ नहीं छोड़ेगी. शादी भी संदीप से ही करेगी.

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भूरा राजपूत को शैफाली और संदीप की प्रेम कहानी का पता चला तो उस ने पहले तो पत्नी रेनू को आड़े हाथों लिया, फिर शैफाली को जम कर फटकार लगाई. साथ ही चेतावनी भी दी, ‘‘शैफाली, तू कान खोल कर सुन ले, अगर तू इश्क के चक्कर में पड़ी तो तेरी पढ़ाई लिखाई बंद हो जाएगी और तुझे घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं मिलेगी.’’

घर वालों के विरोध के कारण शैफाली भयभीत रहने लगी. वह अच्छी तरह जान गई थी कि परिवार वाले उस की शादी किसी भी कीमत पर संदीप के साथ नहीं करेंगे. उस ने यह बात संदीप को बताई तो उस का दिल बैठ गया. वह बोला, ‘‘शैफाली घर वाले विरोध करेंगे तो क्या तुम मुझे ठुकरा दोगी?’’

‘‘नहीं संदीप, ऐसा कभी नहीं होगा., मैं तुम से प्यार करती हूं और हमेशा करती रहूंगी. हम साथ जिएंगे, साथ मरेंगे.’’

‘‘मुझे तुम से यही उम्मीद थी, शैफाली.’’ कहते हुए संदीप ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. उस की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे.

रेनू अपनी बेटी शैफाली पर भरोसा करती थीं. उन्हें विश्वास था कि समझाने के बाद उस के सिर से इश्क का भूत उतर गया है. इसलिए उन्होंने शैफाली के घर से बाहर जाने पर एतराज नहीं किया. लेकिन उस का पति भूरा राजपूत शैफाली पर नजर रखता था. उस ने  पत्नी से कह रखा था कि शैफाली जब भी घर से निकले, छोटी बहन के साथ निकले.

संदीप ने बुला लिया शैफाली को

13 जून, 2019 की सुबह 8 बजे संदीप के पिता दिनेश कमल अपनी पत्नी माधुरी बेटी शिवानी तथा बेटे मुन्ना के साथ अपने गांव चिलौली (कानपुर देहात) चले गए. दरअसल, बरसात शुरू हो गई थी. उन्हें मकान की मरम्मत करानी थी. उन्हें वहां सप्ताह भर रुकना था. जाते समय संदीप की मां माधुरी ने उस से कहा, ‘‘बेटा संदीप, मैं ने पराठा, सब्जी बना कर रख दी है. भूख लगने पर खा लेना.’’.

मांबाप, भाईबहन के गांव चले जाने के बाद घर सूना हो गया. ऐसे में संदीप को तन्हाई सताने लगी. इस तनहाई को दूर करने के लिए उस ने अपनी प्रेमिका शैफाली को फोन किया, ‘‘हैलो, शैफाली आज मैं घर पर अकेला हूं. घर के सभी लोग गांव गए हैं. तुम्हारी याद सता रही थी. इसलिए जैसे भी हो तुम मेरे घर आ जाओ.’’

‘‘ठीक है संदीप, मैं आने की कोशिश करूंगी.’’ इस के बाद शैफाली तैयार हुई और मां से प्यार जताते हुए बोली, ‘‘मां, कुछ दिन पहले मैं अपनी सहेली शिवानी से कुछ किताबें लाई थी. उसे किताबें वापस करने उस के घर जाना है. घंटे भर बाद वापस आ जाऊंगी.’’ मां ने इस पर कोई ऐतराज नहीं किया.

शैफाली किताबें वापस करने का बहाना बना कर घर से निकली ओर संदीप के घर जा पहुंची. संदीप उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उस के आते ही संदीप ने उसे बांहों में भर कर चुंबनों की झड़ी लगा दी. इस के बाद दोनों प्रेमालाप में डूब गए.

दोनों ने लगा लिया मौत को गले

इधर भूरा राजपूत घर पहुंचा तो उसे अन्य बेटियां तो घर में दिखीं पर शैफाली नहीं दिखी. उस ने पत्नी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह सहेली के घर किताबें वापस करने लगने लगी थी. यह सुनते ही भूरा का मथा ठनका. उसे शक हुआ कि शैफाली बहाने से घर से निकली है और प्रेमी संदीप से मिलने गई है.

भूरा ने कुछ देर शैफाली के लौटने का इंतजार किया, फिर उस की तलाश में घर से निकल से निकल पड़ा. वह सीधा संदीप के घर पहुंचा. संदीप घर पर ही था. शैफाली के बारे में पूछने पर उस ने भूरा से झूठ बोल दिया कि शैफाली उस के घर नहीं है. शैफाली को ले कर भूरा की संदीप से हाथापाई भी हुई फिर वह पुलिस लाने की धमकी दे कर वहां से पुलिस चौकी चला गया.

संदीप ने शैफाली को घर में ही छिपा दिया था. पिता की धमकी से वह डर गई थी. उस ने संदीप से कहा, ‘‘संदीप, घर वाले हम दोनों को एक नहीं होने देंगे. और मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती. अब तो बस एक ही रास्ता बचा है वह है मौत का. हम इस जन्म में न सही अगले जन्म में फिर मिलेंगे.’’

संदीप ने शैफाली को गौर से देखा फिर बोला, ‘‘शैफाली मैं भी तुहारे बिना नहीं जी सकता. मैं तुम्हारा साथ दूंगा. इस के बाद दोनों ने मिल कर पंखे के कुंडे से साड़ी बांधी और साड़ी के दोनों किनारों का फंदा बनाया, एकएक फंदा डाल कर दोनों झूल गए. कुछ ही देर में उन की मौत हो गई.

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इधर भूरा राजपूत अपने साथ पुलिस ले कर संदीप के घर पहुंचा. बाद में पुलिस को कमरे में संदीप और शैफाली के शव फंदों से झूले मिले. इस के बाद तो दोनों परिवारों में कोहराम मच गया.

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानी )

पटना की सबसे बड़ी डकैती

उस दिन तारीख थी 21 जून. दोपहर करीब एक बजे का समय रहा होगा. सूरज अपने पूरे तेवर दिखा रहा था. लगता था जैसे आसमान से आग बरस रही हो. तेज गरमी और उमस के कारण बाजारों में ज्यादा भीड़भाड़ नहीं थी. बिहार की राजधानी पटना में दीघा-आशियाना रोड पर आभूषणों का नामी शोरूम पंचवटी रत्नालय है. इस शोरूम में उस समय कोई ग्राहक नहीं था. शोरूम मालिक रत्नेश शर्मा को भूख लगी थी. वैसे भी दोपहर के भोजन का समय हो गया था.

उन्होंने सोचा कि कोई ग्राहक नहीं है तो क्यों न इस समय का सदुपयोग कर के भोजन कर लें. शोरूम में 8 कर्मचारी अपनीअपनी सीट पर बैठे ग्राहकों का इंतजार कर रहे थे. गार्ड दीपू श्रीवास्तव शोरूम के अंदर गेट पर बैठा हुआ था.

रत्नेश शर्मा इसी उधेड़बुन में थे कि भोजन करने बैठें या कुछ देर और रुकें. इतनी देर में 2 ग्राहक गेट खोल कर शोरूम में आए. ग्राहकों को देख कर रत्नेश शर्मा और शोरूम के कर्मचारियों के चेहरे पर खुशी आ गई. दोनों ग्राहकों ने एक शोकेस पर पहुंच कर कहा, ‘‘भैया, हमें डायमंड के ईयरिंग्स लेने हैं, कोई लेटेस्ट डिजाइन वाले दिखाओ.’’

शोरूम के कर्मचारी ने दोनों ग्राहकों को शोकेस के सामने रखी आरामदायक कुरसी पर बैठने का इशारा किया और अलमारी से डायमंड के ईयरिंग्स निकालने लगा. शोरूम कर्मचारियों को अचानक याद आया कि ये ग्राहक तो 1-2 बार पहले भी आए थे, लेकिन खरीदारी कुछ नहीं की थी.

कर्मचारियों ने उन में से एक ग्राहक को पहचान लिया था, लेकिन आमतौर पर कई बार ऐसा होता है कि ग्राहक को भले ही किसी दुकान पर कोई चीज पसंद न आए. लेकिन वह दोबारा उस दुकान पर खरीदारी करने पहुंचता है.

उसी दौरान 8-10 युवक तेजी से शोरूम के अंदर घुस आए. इन में से 3 युवकों के चेहरे हेलमेट से ढंके हुए थे. 2-3 युवकों ने चेहरा गमछे से इस तरह ढंका हुआ था, जैसे गरमी से परेशान लोग ढंक लेते हैं. उन में से 2-3 युवकों के चेहरे खुले हुए थे. इन सभी युवकों के पास हाथ में या पीठ पर बैग था. इन में से कुछ युवक जींस और कुछ पैंट टीशर्ट पहने हुए थे.

शोरूम में घुसते ही 3-4 युवकों ने पिस्टल वगैरह निकाल ली. बाद में आए युवकों को देख कर डायमंड के ईयरिंग्स खरीदने आए दोनों युवकों ने भी अपने बैग से हथियार निकाल लिए. उन लोगों के हाथ में पिस्टल देख कर गार्ड दीपू श्रीवास्तव ने विरोध करने का प्रयास किया, तो एक युवक ने उस के सिर पर पिस्टल के बट से हमला कर दिया. इस से दीपक के सिर से खून बहने लगा.

गार्ड दीपू पर हमला होते देख कर शोरूम मालिक रत्नेश शर्मा आगे बढ़े तो एक युवक ने उन के सिर में भी पिस्टल से हमला कर दिया. उन के सिर से भी खून रिसने लगा. रत्नेश समझ गए कि वे लोग बदमाश हैं और शोरूम में डाका डालने आए हैं.

रत्नेश ने दुनिया देखी थी, उन्हें पता था कि ऐसे मौके पर विरोध करने का मतलब अपनी जान जोखिम में डालना होता है. इसलिए उन्होंने बदमाशों से कहा, ‘‘तुम्हें जो ले जाना है, ले जाओ लेकिन ये पिस्टल, तमंचे वगैरह दूर रखो.’’

शोरूम मालिक की बात सुन कर उन युवकों में हावभाव से सरगना नजर आ रहे अच्छी कदकाठी और खुले चेहरे वाले युवक ने कहा, ‘‘सेठजी, समझदार हो. तुम इस दुकान का बीमा करवाए हो न, ज्यादा होशियार बनोगे तो यहीं ठोंक देंगे.’’

ठोंकने की धमकी सुन कर शोरूम के कर्मचारी सहम गए. सरगना ने शोरूम के कर्मचारियों से अपनेअपने मोबाइल देने को कहा. कर्मचारियों ने अपने मोबाइल दे दिए तो सरगना ने शोरूम के कर्मचारियों को एक तरफ जमीन पर बैठा दिया.

इस के बाद सरगना ने शोरूम का गेट अंदर से बंद कर लिया और गेट पर एक कुरसी लगा कर बैठ गया. उस के निर्देशों पर उन बदमाशों ने शोरूम की एकएक अलमारी और शोकेसों को खंगाल कर सारे कीमती आभूषण निकाल लिए. इस बीच सरगना अपने गुर्गों को लगातार हिदायत देता रहा कि जल्दी करो और शांत रहो.वह शोरूम के कोने में जमीन पर बैठे कर्मचारियों को भी बीचबीच में धमकाता रहा कि हिलोगे तो गोली मार दूंगा.सरगना के कहे अनुसार बदमाशों ने सारे आभूषण अपने साथ लाए बैगों में भर लिए. तभी सरगना ने शोरूम मालिक रत्नेश से तिजोरी की चाबी मांगी. तिजोरी खोल कर सारे कीमती रत्नजवाहरात, डायमंड और सोने के आभूषण निकाल लिए. ये सभी जेवर भी एक बैग में भर लिए.

करीब आधे घंटे तक लूटपाट करने के बाद बदमाश जेवरों से भरे बैग ले कर एकएक कर शोरूम से बाहर निकल गए. सरगना नजर आ रहे खुले मुंह वाले बदमाश ने जाते समय शोरूम मालिक रत्नेश से कहा, ‘‘मुझे पहचान लो. हम मोस्टवांटेड हैं. पटना की पुलिस कई साल से हमारे पीछे पड़ी हुई है.’’ सरगना की भाषा लोकल थी. उस के गुर्गे भी स्थानीय भाषा में बात कर रहे थे.

भागने से पहले एक बदमाश ने शोरूम में लगे सीसीटीवी कैमरों का रिकौर्डर निकाल कर अपने बैग में रख लिया. जाते समय सरगना ने शोरूम के गार्ड दीपू श्रीवास्तव के सिर से खून बहता देख कर अपना गमछा उसे देते हुए कहा सिर पर बांध लो. इस के बाद सरगना व बाकी बदमाश शोरूम का गेट बाहर से बंद कर फरार हो गए. शोरूम मालिक व कर्मचारियों के मोबाइल वे अपने साथ ही ले गए थे.डकैतों के भागने के बाद शोरूम कर्मचारियों ने शोर मचा कर गेट खुलवाया. गेट खुला तो आसपास के लोगों को पता चला कि दिनदहाड़े ज्वैलरी शोरूम में डकैती डाली गई है. आसपास के दुकानदार और राहगीर वहां एकत्र हो गए.

पुलिस को सूचना दी गई तो करीब आधे घंटे बाद पुलिस पहुंची. पुलिस ने शोरूम मालिक रत्नेश शर्मा से पूछताछ की. रत्नेश ने मोटे तौर पर हिसाब लगा कर बताया कि डकैत लगभग 5 करोड़ रुपए के हीरेजवाहरात और कीमती आभूषणों के अलावा 13 लाख रुपए नकद लूट कर ले गए हैं. यह पटना की सब से बड़ी डकैती बताई गई.

दिनदहाड़े 5 करोड़ की डकैती की वारदात का पता चलने पर आईजी (जोन) सुनील कुमार, डीआईजी (सेंट्रल) राजेश कुमार, सीआईडी के डीआईजी पी.एन. मिश्रा और एसएसपी गरिमा मलिक सहित पुलिस के तमाम अफसर मौके पर पहुंच गए. शोरूम कर्मचारियों ने अधिकारियों से शिकायत करते हुए कहा कि अगर बाजार में पुलिस गश्त कर रही होती लुटेरे पकड़ लिए जाते.

पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू करते हुए शोरूम मालिक और कर्मचारियों से पूछताछ की. शोरूम के आसपास के लोगों से भी पूछताछ की गई. पूछताछ में पता चला कि शोरूम में घुसे 10 बदमाशों की उम्र 20 से 35 साल के बीच थी. वे स्थानीय भाषा में बोल रहे थे.

सुराग की तलाश

मौके पर पुलिस को बदमाशों द्वारा गार्ड को दिया गया केवल एक गमछा ही मिला. बदमाश इस के अलावा कोई चीज वहां नहीं छोड़गए थे, जिस से उन का सुराग मिलता. पुलिस ने बदमाशों का सुराग लगाने और साक्ष्य जुटाने के लिए एफएसएल टीम और डौग स्क्वायड को भी मौके पर बुला लिया.

बदमाशों का सुराग लगाने के लिए पुलिस ने बाजार में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली. आसपास के लोगों से पूछताछ में प्रारंभिक तौर पर पता चला कि बदमाश 3 बाइकों और एक कार में सवार हो कर भागे थे. ये बाइक और कार ज्वैलरी शोरूम से कुछ दूर खड़ी की गई थीं.

इस का मतलब था कि बदमाश अपने वाहनों को शोरूम से दूर खड़ा कर पैदल ही डकैती डालने पहुंचे थे और डकैती डालने के बाद आराम से पैदल ही अपने वाहनों तक गए थे. पुलिस ने अनुमान लगाया कि शोरूम में घुसे बदमाशों के अलावा एकदो बदमाश बाहर भी जरूर रहे होंगे. इस तरह वारदात में 10 से 12 बदमाश शामिल होने का अनुमान लगाया गया.

उसी दिन शोरूम मालिकों की ओर से पटना के राजीव नगर थाने में डकैती की रिपोर्ट दर्ज करा दी गई. दिनदहाड़े सरेबाजार शोरूम मालिक और कर्मचारियें को बंधक बना 5 करोड़ रुपए की ज्वैलरी लूट कर बदमाशों ने पुलिस के सामने चुनौती पैदा कर दी. इस पर आईजी ने बदमाशों का सुराग लगाने के लिए एसएसपी गरिमा मलिक के नेतृत्व में एसआईटी का गठन किया.

एफएसएल टीम ने जांचपड़ताल कर पंचवटी रत्नालय से बदमाशों के करीब 25-30 फिंगरप्रिंट लिए. डौग स्क्वायड को वह गमछा सुंघाया गया, जिसे बदमाश गार्ड को दे गया था. गमछा सूंघ कर खोजी कुत्ता दुकान से बाहर निकला और कुछ दूर दीघा रोड तक जा कर वापस लौट आया.

प्रारंभिक जांच में यह बात भी सामने आई कि बदमाशों ने पंचवटी रत्नालय में डकैती डालने से पहले कई दिन रेकी की थी. वारदात से 2 दिन पहले 2 लोग शोरूम पर खरीदारी करने आए थे. उस दिन उन्होंने डायमंड के आभूषण देखे और बाद में आ कर लेने की बात कही थी.

इस के दूसरे दिन भी वे दोनों दोपहर में करीब एकसवा बजे आए थे और सोने की चेन देखने के बाद एटीएम से पैसा निकालने की बात कह कर चले गए थे. इन में से एक व्यक्ति डकैती डालने वालों में शामिल था. मुंह ढंका न होने से कर्मचारियों ने उसे पहचान लिया था.

वारदात का तरीका जान कर पुलिस अफसर समझ गए कि इस में किसी प्रोफेशनल गिरोह का हाथ है. पुलिस ने बदमाशों का सुराग लगाने के लिए सब से पहले सोना और ज्वैलरी लूटने वाले गिरोहों का रिकौर्ड निकलवाया. उन गिरोहों के सरगनाओं की ताजा गतिविधियों की जानकारी जुटाने के लिए मुखबिर लगा दिए गए.

पता चला कि देश के सब से चर्चित सोना लूटने वाले गिरोह का सरगना सुबोध सिंह पटना के राजीव नगर इलाके का ही रहने वाला है और आजकल जेल में बंद है. लेकिन उस का गिरोह सक्रिय है. सुबोध सिंह कई राज्यों में सोना लूट की बड़ीबड़ी वारदातें कर चुका था. उस के गिरोह के एक बदमाश मनीष को एसटीएफ ने कुछ दिन पहले वैशाली जिले में मुठभेड़ में मार गिराया था.

नालंदा का रहने वाला सुबोध सिंह कुछ महीने पहले रूपसपुर में गिरफ्तार किया गया था. इस के बाद उसे सोना लूट की वारदातों के सिलसिले में जयपुर, कोलकाता, भुवनेश्वर व आसनसोल जेल ले जाया गया था. बाद में उसे आसनसोल से पटना की बेउर जेल में भेज दिया गया था.

बदमाशों की बातचीत के लहजे और वारदात के तरीके से पुलिस ने अनुमान लगाया कि इस में राजीव नगर के 5 किलोमीटर के दायरे में आने वाले फुलवारी शरीफ और दानापुर के बदमाशों का हाथ हो सकता है.

वारदात वाले दिन पुलिस बदमाशों की तलाश, नाकेबंदी और इस तरह की वारदात करने वाले बदमाशों की धरपकड़ व पूछताछ की छापेमारी में जुटी रही, लेकिन कहीं से कोई सुराग नहीं मिला. दूसरे दिन पुलिस अधिकारी फिर से इस वारदात को सुलझाने की मशक्कत करने लगे.

पुलिस को शोरूम के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की रिकौर्डिंग से बदमाशों के बारे में कुछ सुराग जरूर मिले, लेकिन उन के चेहरे साफ नहीं हुए. पुलिस को इतना जरूर पता चला कि बदमाशों ने वारदात में 3-4 बाइकों और एक फार्च्युनर गाड़ी इस्तेमाल की थी. बदमाशों के वाहनों की तसवीर रामनगरी से ले कर रूपसपुर नहर तक कैमरों में कैद हुई. रूपसपुर नहर से कुछ बदमाश जेपी सेतु से फरार हो गए और कुछ खगोल की ओर चले गए.

शोरूम मालिक और कर्मचारियों की ओर से बताए गए हुलिए के आधार पर पुलिस ने 2 बदमाशों के स्कैच बना कर जारी किए. ये स्कैच शोरूम में डकैती डालने वाले गिरोह के सरगना नजर आ रहे बदमाशों के थे.

पुलिस अधिकारियों ने स्कैच बनने के बाद अपराधियों की पहचान कर लेने का दावा किया, लेकिन उन के नामपते का खुलासा नहीं किया. पुलिस इन बदमाशों की तलाश में जुटी रही. इस के लिए अलगअलग जगहों से पचासों बदमाशों को थाने ला कर पूछताछ की गई.

वारदात के दूसरे ही दिन पंचवटी रत्नालय से करीब एक किलोमीटर दूर राजीव नगर नाला रोड साकेत भवन के पास लावारिस हालत में एक अपाचे बाइक खड़ी मिली. जांच में इस बाइक का नंबर फरजी निकला.

अपाचे बाइक पर रौयल एनफील्ड बुलेट का नंबर था. यह बाइक पटना के एक व्यक्ति के नाम पंजीकृत थी. पुलिस ने अनुमान लगाया कि यह बाइक बदमाशों के उन साथियों की हो सकती है, जो वारदात में लाइनर बन कर सहयोग कर रहे थे.

दिनदहाड़े 5 करोड़ की ज्वैलरी की लूट की वारदात को ले कर सर्राफा व्यापारियों में भारी आक्रोश था. पाटलिपुत्र सर्राफा संघ व अन्य व्यावसायिक संगठनों ने बिहार में आए दिन हो रही इस तरह की लूट की वारदातों के खिलाफ राज्यव्यापी अनिश्चित कालीन हड़ताल पर जाने की चेतावनी दी.

पुलिस पहुंची गर्लफ्रैंड तक

तीसरे दिन भी पटना पुलिस, सीआईडी और एसटीएफ  अपने तरीके से जांचपड़ताल और कई जिलों में छापेमारी कर बदमाशों का सुराग लगाने में जुटी रही, लेकिन इस का कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया. पुलिस ने बेउर जेल में बंद सोना लूटने वाले गिरोह के सरगना सुबोध सिंह से भी कई घंटों तक पूछताछ की. सुबोध से पूछताछ के बाद पुलिस ने बेउर जेल से पिछले दिनों छूटे 3-4 कुख्यात बदमाशों को संदिग्ध मानते हुए उन की तलाश शुरू की.

पुलिस ने 3 दिन में एक अपाचे बाइक के अलावा एक स्कौर्पियो और एक आई20 कार लावारिस हालत में बरामद की. इन वाहनों के नंबरों और चेसिस नंबरों के आधार पर भी पुलिस जांच करती रही. इस में अपाचे बाइक का वारदात में उपयोग होने की ज्यादा आशंका जताई गई.

चौथे दिन पुलिस को इस तरह की वारदात करने वाले एक कुख्यात बदमाश की गर्लफ्रैंड के बारे में पता चला. पुलिस ने दीघा इलाके में रहने वाली इस युवती से पूछताछ की. इस से पुलिस को कई अहम जानकारियां मिलीं. यह भी तय हो गया कि वारदात करने वाले कुछ बदमाश पटना सिटी और फुलवारी शरीफ के रहने वाले हैं.

पुलिस की कुछ टीमों ने इन बदमाशों पर फोकस कर दिया और उन की तलाश में जुट गईं. दूसरी तरफ  एसटीएफ  की टीमें नेपाल की सीमाओं, कोलकाता और ओडिशा में बदमाशों की तलाश करती रहीं.

एसटीएफ ने लूटे गए सोने की डीलिंग नेपाल के कसीनो में होने की आशंका में नेपाल पुलिस से भी सहयोग लिया. इस का कारण यह था कि सोना लूट के कुख्यात सरगना सुबोध सिंह का पुलिस मुठभेड़ में मारा गया साथी मनीष सिंह कुछ पार्टनरों के साथ नेपाल में कसीनो भी चलाता था.  पांचवें और छठे दिन भी पुलिस दावा करती रही कि बदमाशों की पहचान कर ली गई है, उन की तलाश में छापेमारी की जा रही है. लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद बदमाश पुलिस की पकड़ से दूर थे. उन का कोई अतापता नहीं मिल रहा था. पुलिस इस तरह की वारदात करने वाले 2-3 गिरोह के बदमाशों को ढूंढने में जुटी हुई थी.

इस बीच, 6 दिन से बंद रहे पंचवटी रत्नालय शोरूम की 27 जून को री-ओपनिंग की गई. शोरूम मालिक रत्नेश शर्मा ने अपने पुराने ग्राहकों, दोस्तों व रिश्तेदारों को बुलाया था. शोरूम को सजाया गया. ग्राहकों के आने से शोरूम में फिर से व्यापार शुरू कर दिया गया. पुलिस ने सुरक्षा के लिहाज से शोरूम पर 2 जवान तैनात कर दिए.

एक कुख्यात बदमाश की गर्लफ्रैंड से लगातार कई दिन की गई पूछताछ से 28 जून को पुलिस को भरोसा हो गया कि वारदात रवि गुप्ता और उस के गिरोह ने की है. पुलिस की ओर से बनवाए गए स्कैच भी रवि की शक्ल से मिलान कर रहे थे. सीसीटीवी फुटेज में भी रवि की तसवीर कुछ जगह नजर आई थी. पुलिस ने रवि के साथ वारदात करने वाले कुछ अपराधियों को सीसीटीवी फुटेज और स्कैच दिखाए तो उस की पुष्टि भी हो गई.

आखिर मिल गई सफलता

इस के बाद पुलिस ने रवि गुप्ता उर्फ नेताजी उर्फ रवि पेशेंट उर्फ मास्टरजी के साथ उस के गिरोह को तलाशने में अपनी सारी ऊर्जा लगा दी. रवि अपने ठिकानों पर नहीं मिला. वह अपनी गर्लफ्रैंड से भी काफी समय से नहीं मिला था. उस के मोबाइल व वाट्सऐप वगैरह भी बंद मिले. पुलिस लगातार जुटी रही. अंतत: उस की मेहनत का परिणाम सामने आ गया.

पंचवटी रत्नालय में हुई डकैती के मामले में पुलिस ने पहली जुलाई को रवि गुप्ता उर्फ रवि पेशेंट के अलावा उस के 2 साथी बदमाशों विकास कुमार और सिपू कुमार को गिरफ्तार कर लिया. एडीजी (मुख्यालय) जितेंद्र कुमार, डीआईजी राजेश कुमार और एसएसपी गरिमा मलिक ने पटना स्थित पुलिस मुख्यालय में प्रैस कौन्फ्रैंस कर वारदात का खुलासा कर दिया.

पुलिस अफसरों ने बताया कि उन के पास सूचना थी कि रवि गुप्ता और उस के गुर्गे दीघा थाना क्षेत्र के कुर्जी बालू में आएंगे. इस सूचना पर घेराबंदी और छापेमारी कर के रवि, विकास और सिपू को पकड़ लिया गया. जबकि इन के कुछ साथी बदमाश भाग गए.

पुलिस ने पूछताछ के बाद इन बदमाशों की निशानदेही पर कुर्जी बालू के विकास नगर में सिपू के ठिकाने से करीब एक करोड़

11 लाख रुपए के सोनेचांदी के आभूषण बरामद किए. बदमाशों से करीब एक लाख रुपए के रत्न, 6 लाख 30 हजार रुपए नकद, एक बाइक, एक बैग, 3 देसी पिस्तौल और 7 कारतूस भी बरामद किए.

डकैत गिरोह के सरगना रवि गुप्ता उर्फ रवि पेशेंट पर डकैती, हत्या, लूट आदि के 17 मामले दर्ज थे. वह पटना में आलमगंज थाना इलाके के मछुआ टोली में रहता है. दूसरे बदमाश विकास कुमार पर डकैती, लूट, आर्म्स एक्ट व अन्य गंभीर अपराधों के 19 मुकदमे चल रहे थे. वह पटना के आलमगंज में माली गायघाट दक्षिणी गली का रहने वाला था.

तीसरे बदमाश सिपू कुमार के खिलाफ  पुलिस रिकौर्ड में लूट का केवल एक मामला दर्ज था. वह मूलरूप से सारण का रहने वाला था और फिलहाल पटना के दीघा इलाके में कुर्जी बालू के विकास नगर में रहता था.

पुलिस की ओर से गिरफ्तार तीनों बदमाशों से की गई पूछताछ में रवि गुप्ता के कुख्यात अपराधी बनने और पंचवटी रत्नालय में डकैती डालने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार है—

रवि मूलरूप से अररिया के जोगबन का रहने वाला था. उस के पिता हिंदू और मां मुसलिम थी. रवि के जवान होने से पहले ही उस के मातापिता की हत्या हो गई थी. इस के बाद वह अररिया के अपराधियों के संपर्क में आया और छोटेमोटे अपराध करने लगा. बाद में वह पटना आ गया. पटना आ कर वह राजधानी और अन्य जिलों में बड़ी वारदातें करने लगा.

दिनदहाड़े डकैती डालना और विरोध करने पर गोलियां चलाना उस की फितरत थी. वह पटना से ले कर पूरे बिहार, झारखंड, ओडिशा और कोलकाता तक वारदातें करता था. इन सभी राज्यों के कुख्यात अपराधी उस के संपर्क में रहते थे.

वह अलगअलग वारदातों में दूसरे राज्यों के बदमाशों को शामिल करता था, ताकि पुलिस उन को पहचान न सके. आपराधिक वारदातों के बाद वह इन्हीं बदमाशों के जरिए दूसरे राज्यों में छिप जाता था.

रवि कई बार जेल जा चुका था. सन 2010 में उसे पटना की आलमगंज थाना पुलिस ने गिरफ्तार किया था. बाद में उसे जेल भेज दिया गया. जमानत पर छूटने के बाद वह फिर से एक अन्य आपराधिक मामले में जेल चला गया. सन 2017 में वह जेल से बाहर आया था. इस के बाद से वह फरार था. पुलिस उसे कई वारदातों में तलाश रही थी.

कुख्यात लुटेरा होने के साथ रवि अव्वल दरजे का अय्याश भी था. जेल से बाहर होने पर उस की अधिकांश रातें महंगे होटलों में अय्याशी करते हुए बीतती थीं. उस की एक गर्लफ्रैंड पटना सिटी में दीघा इलाके में रहती थी.

गर्लफ्रैंड के माध्यम से मिली सफलता

पुलिस ने इस युवती से पूछताछ की, तो पता चला कि रवि ने पिछले कई महीनों से कोई बड़ी वारदात नहीं की. इसलिए वह पैसे की तंगी से गुजर रहा था. वारदात के बाद रवि का अपनी गर्लफ्रैंड से संपर्क बना हुआ था. इसी से पुलिस को रवि का सुराग मिला था.

वारदात से करीब एक महीने पहले रवि ने पटना में ही बड़ी वारदात की योजना बनाई. इस के लिए उस ने राजधानी की करीब 10 ज्वैलरी शोरूमों की रैकी की. कई बार की रैकी के बाद उस ने पंचवटी रत्नालय को अपना निशाना बनाने का फैसला किया. यह बात रवि की गर्लफ्रैंड को पता थी.

वारदात में किनकिन बदमाशों को शामिल करना है, यह भी रवि ने तय कर लिया. इस में अधिकांश बदमाश धनबाद और झारखंड के थे. वारदात के लिए हथियार और गाडि़यों की व्यवस्था भी रवि ने ही की थी. वारदात से पहले सभी बदमाश दीघा के कुर्जी इलाके में एकत्र हुए. वहां रवि ने सभी बदमाशों को पूरी प्लानिंग समझाई. पंचवटी रत्नालय पहुंचने और वहां से फरार होने का रास्ता भी बताया. रवि की अगुवाई में कुल 10 बदमाशों की ओर से की गई इस वारदात में एक कार और 3 बाइकों का उपयोग किया गया. वारदात के बाद रवि व सिपू के साथ 2 अन्य बदमाश कार में बैठ कर फरार हुए. बाकी 6 बदमाश बाइकों से भागे. फरार होने के तुरंत बाद रवि ने कार में बैठेबैठे ही उन के पास मौजूद लूट के आभूषणों और नकदी का बंटवारा कर दिया.

कुछ किलोमीटर चलने के बाद बदमाश अलगअलग दिशाओं में बंट गए. जेपी सेतु पार कर रवि, सिपू और 2 अन्य बदमाश कार से छपरा की ओर भाग गए, जबकि बाइक पर सवार बदमाश रूपस नहर के सहारे खगोल स्टेशन की ओर चले गए. बाद में रवि और विकास धनबाद चले गए और सिपू अपने पैतृक गांव सारण चला गया. रवि बाद में गिरिडीह और कोलकाता भी गया था.

रवि ने अपने पास जो आभूषण रखे थे, उन में से कुछ गहने उस ने 20 लाख रुपए में एक दुकानदार को बेच दिए थे. रवि से बरामद 6 लाख 30 हजार रुपए उसी रकम में से बचे हुए थे. बाकी रकम रवि ने खर्च कर दी थी. रवि ने पुलिस को बताया कि लूट के बाकी जेवरात दूसरे फरार बदमाशों के पास हैं.

गिरफ्तार बदमाशों से पूछताछ में पुलिस को पता चला कि वारदात में शामिल रहे 4 बदमाश झारखंड के धनबाद व बोकारो के रहने वाले हैं, जबकि सारण के 2 और पटना का एक अन्य बदमाश भी पंचवटी रत्नालय की डकैती में शामिल था. कथा लिखे जाने तक ये सातों बदमाश फरार थे. पुलिस इन की तलाश कर रही थी. अभी करीब 4 करोड़ रुपए के जेवरात बरामद नहीं हुए हैं. द्य

(कहानी सौजन्य मनोहर कहानी)

पति को दी जलसमाधि

दूसरी लड़कियों की तरह बिंदिया की भी इच्छा थी कि उस की सुहागरात फिल्मों जैसी हो. शादी का धूमधड़ाका थम चुका था, अधिकांश मेहमान भी विदा हो गए थे. अपने कमरे में बैठी बिंदिया सुहागरात के खयालों में डूबी पति छोटेलाल का इंतजार कर रही थी. बिंदिया ने काफी दिन पहले से सुहागरात के बारे में न केवल काफी कुछ सोच रखा था, बल्कि मन ही मन उसे अमल में लाने की भी तैयारियां कर चुकी थी.

हालांकि बिंदिया बहुत ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी और न ही किसी मालदार घराने की थी. फिर भी सुहागरात और शादीशुदा जिंदगी को ले कर उस के सपने वैसे ही थे, जैसे उस ने फिल्मों और टीवी सीरियलों में देखे थे. मसलन पति कमरे में दाखिल होगा, फिर आहिस्ता से दरवाजे की कुंडी बंद कर पलंग तक आएगा, प्यार भरी रोमांटिक बातें करेगा, धीरेधीरे उस के अंगअंग को सहलाएगा चूमेगा. कब वह एक एकएक कर उस के सारे कपड़े उतार देगा, इस का उसे होश ही नहीं रहेगा. फिर दोनों जिंदगी के सब से हसीन सुख के समंदर में गोते लगाते हुए कब सो जाएंगे, उन्हें पता नहीं चलेगा.

इन्हीं खयालों में डूबी बिंदिया ने जैसे ही किसी के आने की आहट सुनी, उस के शरीर का रोआंरोआं खड़ा हो गया. उस का हलक सूखने लगा और मारे शरम व डर के वह दोहरी हो गई. जिस रात का ख्वाब वह सालों से देख रही थी, वह आ पहुंची थी. छोटेलाल कमरे में दाखिल हो चुका था.

पर यह क्या, छोटेलाल ने उसे कुछ सोचनेसमझने का मौका ही नहीं दिया. कमरे में आते ही वह उस पर जानवरों की तरह टूट पड़ा. उस के शरीर से इत्र या परफ्यूम नहीं महक रहा था, बल्कि मुंह से शराब की गंध आ रही थी. छोटेलाल ने उस से कोई बातचीत नहीं की और उस के कपड़े जिस्म से उतारे नहीं बल्कि खींच कर अलग कर दिए. उसे लाइट बुझाने का भी होश नहीं था.

सुहागरात बनी बलातरात

जैसे ही बिंदिया का सांवला बदन छोटेलाल की आंखों में नुमाया हुआ, वह बजाय रोमांटिक होने के पूरी तरह वहशी हो गया. उस की हालत वैसी ही थी जैसे लाश के पास बैठे गिद्ध की होती है.

देखते ही देखते वह बिंदिया पर छा गया और कुछ देर बाद यानी अपनी प्यास बुझाने के बाद करवट बदल कर खर्राटे भरने लगा. बिंदिया के सपने चूरचूर हो चुके थे, उसे लग रहा था कि उस ने सुहागरात नहीं बल्कि बलातरात मनाई है, जिस में उस का रोल हवस मिटाने वाली गुडि़या जैसा था.

कुछ देर बाद वह सामान्य हुई तो गहरी नींद में सोऐ छोटेलाल को देख कर उस का मन गुस्से से भर उठा. शराब से तो उसे बचपन से ही नफरत थी. उसे क्या पता था कि उसे एक शराबी के पल्लू से बांध दिया जाएगा.

न घूंघट उठा, न छेड़छाड़ हुई, न दूध पीया गया और न ही प्यारभरी बातें हुईं. जो हुआ उसे याद कर बिंदिया का रोमरोम सुलग रहा था. उसे लग रहा था कि इस गंवार और जाहिल आदमी की पीठ पर लात मार कर उसे उठा कर बताए कि एक पत्नी सुहागरात की रात क्या चाहती है और कैसे चाहती है.

पर बेबसी ने उस के होंठ बांध दिए, क्योंकि उसे पहले ही बता दिया गया था कि अब पति ही तुम्हारा सब कुछ है. उस की मरजी को हुक्म मानना और जैसे भी हो, उसे खुश रखना क्योंकि अब वही तुम्हारा सब कुछ है.

अकसर सुहागरात को ही तय हो जाता है कि आने वाली जिंदगी कैसी होगी. यह बात बिंदिया को अब समझ आ गई थी कि अब जैसे भी हो बाकी की जिंदगी उसे इसी छोटेलाल के साथ काटनी है. जिस में रत्ती भर भी शऊर नहीं है और न ही वह पत्नी और शादीशुदा जिंदगी के मायने समझता है. इतना सब कुछ समझ आ जाने के बाद दुखी और सुबकती बिंदिया ने कपड़े पहने और सोने की कोशिश करने लगी.

राजस्थान का धौलपुर जिला मध्य प्रदेश के मुरैना और उत्तर प्रदेश के जिले आगरा को मिलाता हुआ है. आगरा के आमदोह गांव की बिंदिया की शादी धौलपुर के गांव छातीपुरा के छोटेलाल निषाद से हुई थी.

दोनों ही गरीब घर के थे, लिहाजा शादी से पहले ही बिंदिया ने मन ही मन तय कर लिया था कि पति जो भी रूखासूखा खिलाएगा, खा लेगी. जो भी पहनाएगा, पहन लेगी और जैसे भी रखेगा, रह लेगी. लेकिन जिएगी प्यार से, यही जज्बा जिंदगी को खुशहाल बनाता है, जिस के लिए पैसों की रत्ती भर भी जरूरत नहीं पड़ती.

पहली ही रात बिंदिया को समझ आ गया था कि उस के सपने अब कभी पूरे नहीं होने वाले, क्योंकि छोटेलाल दिन भर मेहनतमजदूरी करता था और रात को अकसर शराब पी कर उस के बदन को नोचनेखसोटने लगता था. बेमन से बिंदिया उस का साथ देती थी, जिस के चलते पूरी तरह न तो उस के तन की प्यास बुझती थी और न छोटेलाल को उस के मन से कोई वास्ता ही था.

घरजमाई बन कर रहने लगा छोटेलाल

छीतापुरा में छोटेलाल को रोजाना काम नहीं मिलता था, इसलिए शादी के कुछ दिनों बाद वह आमदोह आ कर बस गया. यानी घरजमाई बन गया. मायके आ कर बिंदिया को भी थोड़ा सकून मिला. यहां कम से कम सब लोग जानेपहचाने तो थे, जिन से वह अपना दुखदर्द बांट सकती थी, हंसबोल सकती थी.

ससुराल आ कर भी छोटेलाल की आदतों में कोई बदलाव नहीं हुआ. उलटे उस की शराब की लत और बढ़ गई. जल्द ही उस की दोस्ती एक आटो ड्राइवर राजकुमार से हो गई, जो यारबाज आदमी था. वह छोटेलाल को कभीकभी दारूमुर्गे की पार्टी देता रहता था. देखतेदेखते दोनों में गहरी छनने लगी. राजकुमार कभीकभी छोटेलाल के घर यानी ससुराल में ही बैठ कर दावत देने लगा.

शराब से नफरत करने वाली बिंदिया को राजकुमार का आनाजाना खटका नहीं, क्योंकि उसे वह बचपन से ही जानती थी और यह भी जानती थी कि यह वही राजकुमार है, जिस ने जवानी के शुरुआती दिनों में उस के पीछे खूब चक्कर लगाए थे. उसे पटाने की कोशिश की थी, लेकिन बिंदिया ने ही उसे घास नहीं डाली थी.

बिंदिया जब पति के साथ आमदोह वापस आई तो उस की खिली और गदराई जवानी देख कर राजकुमार के मन में पुरानी हसरतें जोर मारने लगी थीं. बिंदिया के हावभाव और बातचीत से वह जल्द ही भांप गया था कि वह पति से खुश नहीं है.

एक सधे खिलाड़ी की तरह उस ने बिंदिया की तरफ प्यार या वासना कुछ भी कह लें, का दाना डाला तो यह जान कर उस का दिल बल्लियों उछलने लगा कि दाना चुगने में बिंदिया ने तनिक भी आनाकानी नहीं की थी. यानी आग दोनों तरफ बराबरी से लगी थी, इंतजार था मौके का. इस आग को धधकने में देर नहीं लगी और एक दिन जरा सी कोशिश करने पर बिंदिया पके आम की तरह राजकुमार की झोली में आ गिरी.

यह पका आम चोरी का था, जिसे राजकुमार मनमुआफिक अपनी मरजी से खा या चूस नहीं सकता था. दोनों को अपने तन और मन की आग बुझाने कस्बे से बाहर जंगलों में जाना पड़ता था. राजकुमार ठीक वैसी ही बातें करता था, जैसी कि बिंदिया चाहती थी. प्यार मोहब्बत और रोमांस की ये वे बातें थीं, जिन्हें वह पति छोटेलाल के मुंह से सुनने को तरसती रही थी.

छोटेलाल ने कभी उस की खूबसूरती की तारीफ नहीं की थी, पर राजकुमार तारीफों के पुल बांध देता था. बिंदिया इस पर और निहाल हो जाती थी. अब हालत यह थी कि छोटेलाल का हक उस के शरीर पर तो था, लेकिन मन पर नहीं. उस के मन पर तो राजकुमार ने कब्जा जमा लिया था.

गांव वालों ने आंखों में ही बना ली वीडियो

गांव में भले ही सीसीटीवी नहीं थे, लेकिन गांव वालों की नजर किसी कैमरे की मोहताज नहीं थी. जल्द ही लोगों को बिंदिया और राजकुमार के नाजायज संबंधों की भनक लग गई. किसी ने दोनों को जंगल में गुत्थमगुत्था होते देख लिया तो बिना स्मार्टफोन का इस्तेमाल किए दिमाग में बना उन के संबंधों का वीडियो औडियो गांव भर में वायरल हो गया.

हालांकि बिंदिया के पास मोबाइल फोन आ गया था, जिस के जरिए वह राजकुमार के संपर्क में रहती थी. दोनों घंटों प्यार और अभिसार की बातों में डूबे रहते थे. खासतौर से उस वक्त जब उस का पति घर पर नहीं होता था और जब होता था तब राजकुमार शराब की बोतल ले कर पहुंच जाता था. लेकिन इस बात की वह पूरी अहतियात बरतता था कि छोटेलाल के सामने कोई ऐसी बात या हरकत न हो, जिस से उस के मन में शक पैदा हो. क्योंकि इस से बनीबनाई बात बिगड़ने का पूरा अंदेशा था.

तमाम सावधानियों के बाद भी बात बिगड़ ही गई. गांव की चर्चा जब छोटेलाल के कानों में पहुंची तो पहले तो उसे यकीन नहीं हुआ, लेकिन इस धुएं की आग कहां है, यह देखने से वह खुद को रोक नहीं पाया. गलत नहीं कहा जाता कि शक का बीज एक बार दिमाग में घर कर ले तो बिना पेड़ बने सूखता या मरता नहीं.

यही छोटेलाल के साथ हुआ. लिहाजा उस ने मन का शक मिटाने या सच जान लेने की गरज से राजकुमार और बिंदिया की निगरानी शुरू कर दी. नतीजा भी जल्द सामने आ गया, जब उस ने एक दिन दोनों को आदिम हालत में रंगेहाथों पकड़ लिया.

रंगेहाथों पकड़ी गई बिंदिया

पत्नी को गैरमर्द की बाहों में बेशरमी से मचलता और लिपटता देख छोटेलाल का खून खौल उठा. उस ने राजकुमार को पकड़ने की कोशिश की तो वह अपने कपडे़ हाथ में ले कर नंगधडं़ग हालत में भाग निकला. लेकिन बेचारी बिंदिया इस हालत में कहां जाती. उस दिन छोटेलाल ने उस की तबीयत से धुनाई कर डाली. मार से बेहाल बिंदिया तरहतरह की कसमें खाते पति से माफी मांगती रही कि अब दोबारा ऐसा नहीं होगा.

छोटेलाल नाम का ही छोटा था, लेकिन दिल का बड़ा निकला. उस ने पत्नी को माफ कर दिया. इस पर बिंदिया ने चैन की सांस ली लेकिन अब राजकुमार का घर आनाजाना बंद हो गया था. दोनों में बातचीत भी नहीं होती थी. यह हालत ज्यादा दिनों तक नहीं रह पाई. छोटेलाल को पैसों की तंगी और शराब की तलब परेशान करने लगी थी.

पति को नर्म पड़ते देख बिंदिया ने राजकुमार को इशारा किया तो वह एक दिन छोटेलाल से माफी मांगने उस के घर जा पहुंचा. शराब की तलब की मजबूरी कह लें या फिर वाकई फिर बड़े दिल वाला कह लें, छोटेलाल ने उसे भी इस शर्त पर माफ कर दिया कि आइंदा वह कभी भी बिंदिया की तरफ आंख उठा कर नहीं देखेगा.

बात अंधा क्या चाहे दो आंखों वाली जैसी थी. दुश्मनी रफादफा हो गई तो फिर महफिल जमने लगी और दोनों दारूमुर्गे की दावत उड़ाने लगे. बिंदिया भी पति और यार की नजदीकियों से खुश थी. उसे राजकुमार से फिर आंख और इश्क लड़ाने का मौका मिल रहा था.

लेकिन अब छोटेलाल चौकन्ना था और पहले के मुकाबले सख्त भी हो चला था, इसलिए दोनों को परेशानी होने लगी. इतने नजदीक होने पर जिस्मों की दूरियां राजकुमार और बिंदिया की प्यास और भड़का रही थीं.

गांव में पहले ही इतनी बदनामी हो चुकी थी कि दोनों के दिलोदिमाग से शरमोहया नाम की चीज खत्म हो चुकी थी. तंग आ कर इन हैरानपरेशान प्रेमियों ने वासना की आग में जलते एक सख्त फैसला ले लिया, जिस की 2 महीने तक किसी को हवा नहीं लगी.

पुलिस पहुंची बिंदिया के पास

वह बीते 5 जून की तारीख थी, जब कुछ पुलिस वाले आमदोह गांव पहुंचे और बिंदिया का पता पूछने लगे. बिंदिया जब पुलिस के सामने आई तो उस के चेहरे की रंगत उड़ी हुई थी. पुलिस वालों ने छोटेलाल के बारे में पूछताछ की तो उस ने टरकाने की गरज से जवाब दिया कि वह तो कुछ दिनों से कहीं गए हुए हैं. बिंदिया को अहसास नहीं था कि पुलिस वाले अपना पूरा होमवर्क कर के आए हैं. उन्होंने शुरुआती पूछताछ में ढील दी और फिर बिंदिया की निगरानी और पूछताछ शुरू की तो पता चला कि छोटेलाल के जाने के बाद राजकुमार का बिंदिया के घर आनाजाना बढ़ गया था. कुछ लोगों ने दोनों के नाजायज ताल्लुकात होने की बात भी दबी जुबान से कही.

असल में हुआ यूं था कि 5 मार्च को मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के गांव गुलेंदा निवासी मुन्ना सिंह ने नूराबाद थाने में खबर दी थी कि सुनरेखा नदी के किनारे एक लाश तैर रही है. खबर मिलते ही थानाप्रभारी विनय यादव हरकत में आ गए. घटनास्थल पर पहुंच कर उन्होंने गांव वालों की मदद से लाश को बाहर निकाला.

लाश का मुआयना करने पर चोट के निशान नहीं पाए गए तो पुलिस वाले इसे हादसे से हुई मौत मानते रहे. लाश के पास से ऐसा कोई सबूत नहीं मिला था, जिस से उस की शिनाख्त हो पाती. लेकिन जब पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आई तो उस में मौत की वजह जहर बताया गया.

पुलिस की दिक्कत यह थी कि लाख कोशिशों के बाद भी मृतक की पहचान का कोई सुराग नहीं मिल रहा था. इस के बाद भी पुलिस वालों ने हिम्मत नहीं हारी.

एसपी मुरैना असित यादव ने इस ब्लाइंड मर्डर की गुत्थी सुलझाने के लिए एसडीपीओ ओ.पी. रघुवंशी के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी, जिस में विनय यादव के अलावा एएसआई जयपाल सिंह, अजय बेशांदर, रामदास सिंह, हैडकांस्टेबल केशवचंद, धर्मवीर, मुन्ना सिंह, सुनील, सुरेंद्र सिंह, अजय और दीनदयाल को शामिल किया गया.

एक महीने तक पुलिस टीम मृतक की शिनाख्त की कोशिश में जुटी रही, तब कहीं जा कर पता चला कि मृतक छोटेलाल निषाद पुत्र पूरन निषाद निवासी छीतापुरा है. यहीं से पुलिस टीम को पता चला कि छोटेलाल कुछ महीनों पहले अपनी ससुराल आमदोह जा कर रहने लगा था.

जब पुलिस वालों को बिंदिया और राजकुमार के संबंधों के बारे में पता चला तो उन्होंने गुपचुप तरीके से बिंदिया के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से पता चला कि न केवल उस की और राजकुमार की लंबीलंबी बातें होती थीं, बल्कि हादसे के दिन दोनों के ही फोन की लोकेशन भी घटनास्थल की आ रही थी. अब कहनेसुनने को कुछ खास नहीं बचा था.

पुलिस वालों ने जब बिंदिया से राजकुमार के बारे में पूछा तो वह यह कह कर साफ मुकर गई कि वह तो किसी राजकुमार को नहीं जानती. लेकिन पुलिस टीम जानती थी कि बिंदिया राजकुमार को कितने गहरे तक जानती है.

दोनों ने कबूला अपना गुनाह

राजकुमार और बिंदिया से अलगअलग पूछताछ की गई तो दोनों के बयानों में काफी विरोधाभास पाया गया. फिर जल्द ही दोनों ने अपना जुर्म कबूल लिया कि उन्होंने ही योजना बना कर छोटेलाल नाम का कांटा अपने रास्ते से हटाया था.

योजना के मुताबिक बिंदिया ने छोटेलाल के खाने में जहर मिला दिया था, जो राजकुमार ने उसे ला कर दिया था. जब जहर का असर हुआ तो छोटेलाल लुढ़क गया. उस के बेहोश होते ही दोनों एकदूसरे से लिपट गए और सब से पहले अपनी कई दिनों की हवस की प्यास बुझाई.

इस के बाद लाश ठिकाने लगाने के लिए राजकुमार ने फोन कर के अपने दोस्तों सुलतान कुशवाह व जंगबहादुर उर्फ गुड्डू जाटव को बुला लिया. चारों ने बेहोश छोटेलाल को आटोरिक्शा में बीच में इस तरह बैठाया कि कोई देखे तो लगे कि सवारियां बैठी हैं.

यह आटोरिक्शा आमदोह नगला थाना चौकी आगरा से होता हुआ गुलेंदा के पास पहुंचा, जहां सुनसान जगह देख इन्होंने छोटेलाल को नदी में फेंक दिया. जब 2 महीने तक कुछ नहीं हुआ तो दोनों बेफिक्र हो गए कि उन के गुनाह पर परदा पड़ा रहेगा. पुलिस ने चारों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. नाजायज संबंधों के चलते प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या की एक और कहानी खत्म हुई, जो अपने पीछे कई सवाल भी छोड़ गई. मसलन मौजमस्ती के लिए लोग क्या कुछ नहीं कर गुजरते.

बिंदिया बजाए राजकुमार को यार बनाने के छोटेलाल को ही रास्ते पर लाने की कोशिश करती तो इस से बात बन सकती थी, लेकिन उसे अपने सपनों का राजकुमार, राजकुमार कुशवाह में दिखा और सपनों की जिंदगी जीने के लिए पति को ही निपटा दिया, जिस की सजा वह भोगेगी, भोग रही है.

छोटेलाल जैसे पति भी अगर पत्नियों की भावनाओं को समझें, उन की कद्र करें तो न केवल हादसों से बच सकते हैं, बल्कि एक खुशहाल जिंदगी भी जी सकते हैं.

(कहानी सौजन्य मनोहर कहानी)

इस्लाम के नाम पर 4 हजार करोड़ की ठगी

लेखक-  शैलेंद्र कुमार ‘शैल’

जब सारे सुख त्याग कर किसी गुमनाम सी गली में मुंह छिपा कर जीने के लिए मजबूर हो जाएगा और लोग उसे भगोड़े की संज्ञा से नवाजेंगे.45 वर्षीय मोहम्मद मंसूर खान बेंगलुरु के शिवाजीनगर का रहने वाला था. उस ने सन 2006 में बेंगलुरु के शिवाजीनगर में 6 निदेशकों नासिर हुसैन, नाविद अहमद, निजामुद्दीन अजीमुद्दीन, अफसाना तबस्सुम, अफसर पाशा और अरशद खान के साथ मिल कर आई मोनेटरी एडवाइजरी के नाम से एक इसलामिक बैंक की नींव डाली थी.

इसलामिक बैंक की नींव डालने के पीछे उस का मकसद था कि इस बैंक में मुसलिम समाज का ही पैसा जमा हो.इस के लिए उस ने ऐसे लोगों को टारगेट कर के एक पोंजी स्कीम चलाई कि अगर वह उस की आईएमए कंपनी में पैसा निवेश करेंगे तो कंपनी उन्हें मूल धन के साथ हर महीने ढाई से 3 प्रतिशत और साल में 14 से 18 प्रतिशत का मुनाफा देगी.

वे खुद भी कंपनी के मालिक होंगे और उन की कंपनी में अच्छी हिस्सेदारी होगी, उस ने इस स्कीम को ब्याजमुक्त हलाल निवेश का नाम दिया था.

आज भी मुसलिम समाज में अधिकांश लोग ऐसे हैं जो ब्याज को हराम समझते हैं. जो लोग सूद को हराम समझते थे, उन्हें लगा कि एक तरह से वह कंपनी के हिस्सेदार हैं, मालिक हैं और हिस्सेदारी भी अच्छी भली है. लिहाजा कर्नाटक राज्य में रहने वाले सिर्फ मुसलिम समुदाय के तमाम लोगों ने अपनी बड़ीबड़ी रकम मोहम्मद मंसूर खान की आईएमए कंपनी में निवेश करनी शुरू कर दी.

समय आने पर कंपनी ने अपने निवेशकों को वादे के अनुसार मुनाफे के साथ पैसे लौटाए. इस से कंपनी के प्रति निवेशकों का भरोसा बढ़ गया और कंपनी में रकम जमा करने वालों की संख्या भी बढ़ गई. 4-5 साल के भीतर कंपनी में निवेशकों की संख्या करीब 40 हजार हो गई थी.

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आईएमए कंपनी में पैसे जमा होने के बाद मैनेजिंग डायरेक्टर मोहम्मद मंसूर खान और उस के निदेशकों ने कंपनी का विस्तार किया. इन लोगों ने इसलामिक बैंक के साथसाथ अच्छा मुनाफा कमाने के लिए कई और कंपनियों की बुनियाद डाल दी थी.

इन नई कंपनियों के नाम थे आई मोनेटरी एडवाइजरी प्राइवेट लिमिटेड, आईएमएम दबाब सेंटर, आईएमए बिल्डर्स ऐंड डेलवपर्स, आईएमए बुलियन ऐंड ट्रेडिंग सर्विस लिमिटेड, आईएमए बुलियन ऐंड ट्रेडिंग एलएलपी, आईएमए इंस्टीट्यूट औफ एजुकेशन, आईएमए ओमन इनवायरमेंट बिजनैस माड्यूल, आईएमए डब्ल्यू ज्वैलरी और आईएमए काउंसलिंग चैरिटेबल सोसायटी. कंपनी का विस्तार होने के साथ साथ मोहम्मद मंसूर खान दोनों हाथों से धन बटोरने लगा.

वादे के मुताबिक कुछ सालों तक मंसूर खान निवेशकों को मासिक और वार्षिक मुनाफे देता रहा. धीरेधीरे यह रिटर्न गिर कर पहले 14 से 9 प्रतिशत पर आया, फिर 7 से 5 प्रतिशत तक आ गया. सन 2018 आतेआते रिटर्न सिर्फ 3 फीसदी ही रह गया.

इस साल फरवरी में जब रिटर्न घट कर 1 फीसदी रह गया तो निवेशकों के सब्र का बांध टूट गया. निवेशकों के दिमाग तब बिलकुल घूम गए जब मई, 2019 तक एक फीसदी रिटर्न भी खत्म हो गया.

निवेशकों को तगड़ा झटका मई, 2019 में तब लगा, जब उन्हें पता चला कि आईएमए का औफिस ही बंद हो गया है. निवेशकों ने जब इस मुद्दे पर बात की तो मंसूर खान ने निवेशकों को भरोसा दिलाया कि वे चिंता न करें, उन के रुपए सुरक्षित हैं.

मंसूर खान ने पहले तो कहा कि ईद के चलते औफिस बंद था, मगर जब लगातार विदड्रौल रिक्वेस्ट आने लगीं तो वह अंडरग्राउंड हो गया. मंसूर के अंडरग्राउंड होते ही निवेशकों में खलबली मच गई. अपने रुपयों को ले कर वे सड़क पर उतर आए.

तब और ज्यादा हैरानी हुई जब कंपनी पार्टनर और मंसूर खान के करीबी दोस्त खालिद अहमद ने 4 जून, 2019 को बेंगलुरु के कार्शियल स्ट्रीट थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया. उन्होंने आईएमए के एमडी मंसूर पर 4 करोड़ 80 लाख रुपए की ठगी का आरोप लगाया था. खालिद अहमद की शिकायत पर भादंसं की धारा 406, 420 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

मुकदमा दर्ज होने के बाद इस मामले ने तूल पकड़ लिया. बात कर्नाटक के डीजीपी नीलमणि राजू तक पहुंची तो उन के कान खड़े हो गए. मामला अमानत में खयानत से जुड़ा हुआ था, उन्होंने इसे काफी गंभीरता से लिया और एएसपी (क्राइम) आलोक कुमार को मामले की जांच कर के रिपोर्ट देने को कहा.

6 जून, 2019 को आलोक कुमार ने एमडी मंसूर खान को पूछताछ के लिए औफिस बुलाया. मंसूर खान आ गया तो एएसपी कुमार ने उस से उस के बिजनैस पार्टनर खालिद अहमद द्वारा दर्ज कराए गए मुकदमे की बाबत एक घंटे तक पूछताछ की.

पूछताछ के बाद उन्होंने मंसूर खान से कंपनी की बैलेंस शीट और अन्य दस्तावेज पेश करने को कहा. इस पर मंसूर खान ने कंपनी की बैलेंस शीट और अन्य दस्तावेज पेश करने के लिए 9 जून तक का समय मांगा. एएसपी आलोक कुमार ने उसे 3 दिन की मोहलत दे दी.इसी बीच कहानी में एक नया मोड़ आ गया. 7 जून को मंसूर खान की एक औडियो क्लिप वायरल हुई. औडियो में खान ने कहा कि वह अधिकारियों की प्रताड़ना से आजिज आ कर आत्महत्या करने जा रहा है. उसे ढूंढने की कोशिश न की जाए. औडियो के वायरल होने के बाद उग्र लोगों ने आईएमए के औफिस पर हमला बोल दिया, लेकिन पुलिस ने किसी तरह स्थिति संभाल ली.

देश से भागने की तैयारी पहले से ही थी

पुलिस मंसूर खान के वायरल औडियो की सच्चाई जानने में जुटी हुई थी कि 8 जून को एक और चौंकाने वाली बात पता चली तो पुलिस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. पता चला कि मंसूर खान 8 जून की रात पौने 9 बजे की फ्लाइट से देश छोड़ कर दुबई चला गया.

छानबीन में जानकारी मिली कि उस ने प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से शाम के पौने 7 बजे इमिग्रेशन क्लियर करा लिया था और रात पौने 9 बजे उस ने दुबई की फ्लाइट पकड़ ली.

एयरपोर्ट के सीसीटीवी कैमरे की जांच करने पर पता चला कि शाम के समय मोहम्मद मंसूर खान अपनी कार खुद चला कर एयरपोर्ट पहुंचा था. अपनी कार उस ने एयरपोर्ट के बाहर खड़ी कर दी और पुलिस की गिरफ्त से बचने के लिए देश छोड़ कर फरार हो गया.

उस के देश छोड़ कर फरार होते ही निवेशकों में बेचैनी छा गई. निवेशक अपने पैसों को ले कर बुरी तरह परेशान थे. परेशानी स्वभाविक ही थी, क्योंकि निवेशक परेशान क्यों न हों? कंपनी में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाड़ के मुसलिम समाज के करीब 40 हजार निवेशकों ने कंपनी में पैसे जमा किए थे, जिस में 200 करोड़ रुपए तो सिर्फ मुसलिम महिलाओं द्वारा निवेश किए गए थे.

एमडी मोहम्मद मंसूर खान के फरार होते ही पुलिस सतर्क हो गई और अगले दिन यानी 9 जून को आईएमए के 6 अन्य डायरेक्टरों नासिर हुसैन, नाविद अहमद, निजामुद्दीन अजीमुद्दीन, अफसाना तबस्सुम, अफसर पाशा और अरशद खान को गिरफ्तार कर लिया. शिवाजीनगर स्थित मंसूर खान के आवास से उस की लग्जरी एसयूवी कार भी जब्त कर ली गई.

आईएमए के निदेशकों को पुलिस ने गिरफ्तार तो कर लिया लेकिन यह पता नहीं चल पा रहा था कि कंपनी ने लोगों को कितने का चूना लगाया है मोटे तौर पर 15 हजार करोड़ की ठगी का अनुमान लगाया जा रहा था. मंसूर खान के देश छोड़ कर फरार होते ही कर्नाटक सरकार की नींद टूटी.

सरकार ने मामले की जांच के लिए डीजीपी नीलमणि राजू को पत्र लिखा. मामले की जांच के लिए डीजीपी नीलमणि ने जांच के लिए 3 पुलिस टीमें बनाईं.

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एक टीम थाना स्तर से बनाई गई, जहां बड़े पैमाने पर निवेशकों ने थाने में कंपनी के खिलाफ मुकदमे दर्ज कराए थे. दूसरी टीम 11 सदस्यों की एसआईटी का गठन कर बनाई गई. तीसरी जांच टीम प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की बनाई गई थी. गिरफ्तार सभी निदेशकों से पुलिस और अन्य जांच कमेटी ने अलगअलग पूछताछ की. पूछताछ के बाद कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

बेंगलुरु के शिवाजीनगर का रहने वाला मोहम्मद मंसूर खान एक पढ़ालिखा जहीन इंसान था. पढ़लिख कर वह अच्छी नौकरी करना चाहता था. इस के लिए उस ने कई जगह हाथपैर मारे, लेकिन तकदीर के मारे मंसूर खान को कहीं अच्छी नौकरी नहीं मिली. इस के बाद उस ने नौकरी के पीछे दौड़ना छोड़ दिया. वह सोचने लगा कि क्यों न कुछ ऐसा किया जाए, जिस से 2 पैसे उसे भी मिलें और दूसरों के घर के भी चूल्हे जलते रहें.

शातिर दिमाग के मंसूर खान ने जल्द ही इस का भी उपाय ढूंढ लिया. उस ने एक ऐसा बैंक स्थापित करने की योजना बनाई जिस में सिर्फ मुसलिम समाज का ही पैसा निवेश हो और उन्हें ब्याज भी न देना पड़े. मंसूर खान ने योजना बनाई ही नहीं बल्कि सन 2006 में उसे धरातल पर भी उतार लिया. चूंकि इसलाम में ब्याज से मिली रकम को अनैतिक और इसलाम विरोधी माना जाता है. इस धारणा को तोड़ने के लिए मंसूर ने धर्म का कार्ड खेला और निवेशकों को बिजनैस पार्टनर का दरजा दिया.

साथ ही उन्हें भरोसा दिलाया कि 50 हजार के निवेश पर उन्हें मासिक ढाई से 3 प्रतिशत और वार्षिक 14 से 18 प्रतिशत रिटर्न दिया जाएगा. इस तरह वह मुसलमानों के बीच ‘ब्याज हराम है’ वाली धारणा तोड़ने में कामयाब रहा. अपनी स्कीम को आम मुसलमानों तक पहुंचाने के लिए उस ने स्थानीय मौलवियों और मुसलिम नेताओं को साथ लिया. सार्वजनिक तौर पर मंसूर खान और उस के कर्मचारी हमेशा साधारण कपड़ों में ही दिखते लंबी दाढ़ी रखते और औफिस में ही नमाज पढ़ते.

नियमित तौर पर ये लोग मदरसों और मसजिदों में दान दिया करते थे. निवेश करने वाले हर मुसलिम को कुरान भेंट की जाती थी. शुरुआत में निवेश के बदले रिटर्न आते और निवेशकों को बड़े चैक दिए जाते, जिस से उस की योजना का और ज्यादा प्रचार हुआ.

योजना के प्रचार और निवेशकों को मिले मुनाफे से मुसलिम समाज को भरोसा हो गया कि यह इसलामिक बैंक भरोसे का बैंक है. यहां जमापूंजी सुरक्षित है. मंसूर खान योजना को पोंजी स्कीम के तहत चला रहा था. पोंजी स्कीम क्या है, जरा इस पर भी एक नजर डालते हैं.

पोंजी स्कीम या धोखाधड़ी का यह सिलसिला हालफिलहाल से नहीं, बल्कि सालों से चलता आ रहा है. पोंजी स्कीम का जन्म इटली में जन्मे चार्ल्स पोंजी नाम के शख्स से हुआ है, जिस ने इटली, कनाडा और अमेरिका में अपने धोखेबाजी के धंधे की बुनियाद रखी थी. तब से ये निरंतर अग्रसर है.

पोंजी स्कीम किसी कंपनी द्वारा नियोजित होती है, जिन में लोगों को अपने पैसे उस योजना में निवेश करने होते हैं. उस के बाद उन्हें और भी लोगों को उस कंपनी से जोड़ना होता है, जिस के बदले उन्हें अतिरिक्त लाभ दिया जाता है.

पोंजी स्कीम में रिटर्न कई गुना ज्यादा और 100 फीसदी नो रिस्क के दावे पर मिलता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि नए जुड़े मेंबर का पैसा पुराने जुड़े मेंबर के पास जाता है और यह सिलसिला चलता रहता है. जनता कम समय में ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में धोखे का शिकार बनती रहती है.

रिजर्व बैंक औफ इंडिया ने कर्नाटक सरकार को किया था सचेत मंसूर खान भले ही कारपोरेट जगत में  मंसूर खान की ठगी का बिजनैस जोरों पर चल रहा था. निवेशकों द्वारा जमा किए पैसों से मंसूर ने कंपनी का विस्तार किया और 7 अन्य नई कंपनियां बनाईं. जिन के नाम हम शुरू में बता चुके हैं. नित नई ऊंचाइयों को छू रहा था, मगर वह यह भूल रहा था कि उस की निगरानी कोई और भी कर रहा है. भारतीय रिजर्व बैंक ने सन 2015 की शुरुआत में और फिर 2018 में बेंगलुरु में सब से वांछित संदिग्ध आईएमए को धोखधड़ी के रूप में चिह्नित किया था.

इस के बाद रिजर्व बैंक ने इस ओर इशारा करते हुए कर्नाटक सरकार को अलर्ट किया था. आरबीआई ने सरकार को बताया था कि आईएमए निवेशकों से रुपए जमा करा कर सिर्फ पोंजी स्कीम के तहत योजना चला रही है.

आरबीआई के अलर्ट के बावजूद सरकार ने आईएमए के खिलाफ कोई ठोस काररवाई नहीं की. सरकार ने आरबीआई को दलील दी कि आईएमए कंपनी निवेशकों से रुपए डिपोजिट नहीं करा रहा. वह लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप कंपनी है यानी डिपोजिट लेने के बजाए आईएमए निवेशकों को साझेदारी दे रहा है.

सरकार की यह दलील सुन कर आरबीआई चुप हो गई थी. बताया जाता है कि पैसों के बल पर मंसूर खान ने कर्नाटक सरकार में अपनी पैठ अंदर तक बना ली थी. उस के गुनाह न तो सरकार को दिख रहे थे और न ही उस की गूंज सुनाई दे रही थी. 3 सालों तक ऐसे ही चलता रहा. सरकार कान में तेल डाल कर सो गई थी.

आरबीआई ने सन 2018 में कर्नाटक सरकार को एक बार फिर चेतावनी भेजी. इस बार भी सरकार को अलर्ट किया गया कि कंपनी निवेशकों से अवैध तरीके से पैसे डिपोजिट करा रही है और निवेशकों को उन के लाभांश देने में असफल है. आरबीआई के अलर्ट के बाद इस बार सरकार नींद से जागी.

सरकार ने राजस्व विभाग के असिस्टेंट कमिश्नर को इस की जांच के लिए नियुक्त किया. असिस्टेंट कमिश्नर ने जब जांच की तो उस में बड़ा झोल पाया यानी आरबीआई द्वारा दी गई सूचना सच साबित हुई.

असिस्टेंट कमिश्नर ने इस मामले को गंभीरता से ले कर कई कठोर फैसले लिए. उन्होंने 16 नवंबर, 2018 को आईएमए के खिलाफ एक पब्लिक नोटिस सार्वजनिक किया.

नोटिस में उल्लेख किया, ‘सरकार के संज्ञान में आया है कि मेसर्स आई मोनेटरी एडवाइजरी प्राइवेट लिमिटेड और उस की सहयोगी कंपनियों ने अवैध रूप से जनता से पैसे वसूल किए हैं और उस धनराशि को अपने स्वयं के हित में लगाया है, जिस से भुगतान में चूक हुई है. जमाकर्ताओं के पैसे शीघ्र वापस करने के प्रबंध करें.’ इस के बाद उन्होंने धोखाधड़ी करने वाले सातों निदेशकों के नाम सूचीबद्ध किए. धीरेधीरे मंसूर खान के मंसूबे सामने आने लगे थे. उस ने कंपनी में जनता की निवेश रकम लौटाने का इरादा त्याग दिया था. दरअसल, इस के पीछे एक खास वजह सामने आई थी. केंद्र में भाजपा सरकार आने के बाद सरकार ने सन 2016 में अचानक नोटबंदी का फैसला लिया और रातोंरात पुराने नोट बंद कर दिए.

सरकार के इस निर्णय से कालाधन रखने वालों की कमर टूट गई. मंसूर भी इस का शिकार हुआ था. उसी साल सरकार ने जीएसटी भी लागू कर दिया था. जीएसटी की वजह से उस की पोंजी स्कीम भी चरमरा कर रह गई. उस के जनता से किए रिटर्न के वादे धराशाई हो गए तो निवेशकों के सब्र का बांध टूट गया.

बताते हैं कि बेंगलुरु के मैसूर रोड के ओल्ड गुड्डलाहल्ली के रहने वाले 55 वर्षीय अब्दुल पाशा ने कंपनी में 8 लाख रुपए का निवेश किया था. उन की 3 बेटियां और एक बेटा था. जुलाई, 2019 में उन की बेटी की शादी होनी थी. इस बीच आईएमए के द्वारा ठगी किए जाने की जानकारी मिलते ही उन के सीने में तेज दर्द उठा. दर्द की शिकायत मिलते ही घर वाले पाशा को इलाज के लिए अस्पताल ले गए. इलाज के दौरान उन की मौत हो गई.

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मंसूर के अंडरग्राउंड होते ही निवेशकों में खलबली मच गई. तब और ज्यादा हैरानी हुई जब कंपनी पार्टनर और मंसूर खान के करीबी दोस्त खालिद अहमद ने बेंगलुरु के कार्शियल स्ट्रीट थाने में शिकायत दर्ज कराई.

अरबों की चलअचल संपत्ति थी कंपनी के निदेशकों की

26 जून, 2019 को प्रवर्तन निदेशालय ने अनौपचारिक रूप से बेंगलुरु स्थित आईएमए ग्रुप औफ कंपनीज की 209 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त कर ली. इस अटैचमेंट में 197 करोड़ रुपए की अचल संपत्ति, 105 बैंक खातों का पता चला, जिन में से 51 बैंक खातों से 98 लाख रुपए, एचडीएफसी बैंक से 11 करोड़ रुपए और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण जमा योजना में जमा राशि शामिल थी.

प्रवर्तन निदेशालय ने यह काररवाई 4 जून, 2019 को कार्शियल स्ट्रीट थाने में एमडी मोहम्मद मंसूर खान के खिलाफ दर्ज की गई भादंसं की धारा 406 और 420 के आधार पर की थी. बेंगलुरु पुलिस ने आईएमए ग्रुप औफ कंपनीज और इस के प्रबंध निदेशक मोहम्मद मंसूर खान के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था.

मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने जांच की काररवाई शुरू की. जांच के दौरान पता चला कि आरोपी मंसूर खान ने संस्थाओं में पोंजी योजनाओं के माध्यम से 40 हजार से अधिक मध्यम वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग के लोगों से कंपनी में रुपए जमा कराए.

पुलिस की जांच जैसेजैसे आगे बढ़ती गई, वैसेवैसे आईएमए का कच्चा चिट्ठा खुलता गया. जांच में पता चला कि जनता द्वारा किए गए निवेश पर वादा किए गए मासिक रिटर्न का भुगतान करने के लिए आईएमए समूह कोई व्यवसाय नहीं कर रहा था बल्कि मोहम्मद मंसूर खान एक पोंजी योजना चला रहा था. मंसूर खान के निर्देशों पर ही उस के सभी निदेशक काम कर रहे थे.

जांच में प्रवर्तन निदेशालय ने अब तक मोहम्मद मंसूर खान और उस की संस्थाओं के नाम पर आयोजित 20 अचल संपत्तियों की पहचान की है, जिन्हें ठगी के रूप में अर्जित किया गया है. कुल अचल संपत्तियों का मूल्यांकन सरकारी मूल्यांकनकर्ताओं द्वारा 197 करोड़ आंका गया. ईडी ने एक प्रैस विज्ञप्ति के जरिए ये बात सार्वजनिक की है.

बैंक को भी 600 करोड़ का चूना लगाने के चक्कर में था मंसूर

विभिन्न निजी बैंकों और आईएमए समूह की कंपनियों की सहकारी समितियों के साथ 105 बैंक खातों की जांचपड़ताल करने पर ईडी को पता चला कि मोहम्मद मंसूर खान को निवेश के रूप में लगभग 4 हजार करोड़ मिले थे. जनता की यह रकम आरोपी खान और उस के निदेशकों ने अपने विभिन्न खातों में डाल ली थी. यही नहीं, खान ने निदेशकों और अन्य सहयोगियों के नाम पर विभिन्न अचल और चल संपत्तियों को सार्वजनिक कर दिया ताकि जांच में यह पता न चल सके कि इन बेनामी संपत्तियों के असल मालिक कौन हैं?

जांच के दौरान कंपनी के जिन 105 बैंक खातों की जानकारी मिली, उन में जमा 12 करोड़ रुपए ईडी ने जब्त कर लिए. मंसूर खान ने निवेशकों के रुपयों में से लगभग 44 करोड़ रुपए की नकदी विभिन्न बैंक खातों में जमा की थी.

जब आयकर विभाग को इस की भनक लगी तो उस के कान खड़े हो गए. इस पर आयकर विभाग ने काररवाई की तो पता चला कि आईएमए समूह ने आयकर विभाग को 22 करोड़ रुपए का इनकम टैक्स चुकाया था. इस में से 11 करोड़ रुपए की शेष राशि एक बैंक में पड़ी थी, जिस की पहचान जांच में की गई.

197 करोड़ रुपए की 20 अचल संपत्तियां और लगभग 12 करोड़ रुपए की चलअचल संपत्ति अधिनियम के तहत ईडी ने जब्त कर ली. ईडी फरार आरोपी मोहम्मद मंसूर खान के खिलाफ रेड कौर्नर नोटिस जारी करने की प्रक्रिया में है, जिस से भगोड़ा अपराधी अधिनियम को लागू करने की संभावनाएं तेज हो गईं.

जांच के दौरान एक और चौंकाने वाली बात पता चली. मोहम्मद मंसूर खान ने फरार होने से पहले आखिरी बार 600 करोड़ के भारीभरकम लोन लेने की कोशिश की थी. कर्नाटक सरकार के एक मंत्री ने उसे इस के लिए एनओसी लगभग दे भी दी थी, मगर एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी की सतर्कता से यह प्लान फेल हो गया था.

जांच में पता चला कि मंसूर खान ने लोन के लिए एक बैंक का रुख किया था. बैंक को मंसूर खान के खिलाफ जारी धोखाधड़ी के नोटिस के बारे में जब पता चला तो उस ने उसे अनापत्ति प्रमाणपत्र लाने को कहा. मंसूर ने अपनी ऊंची पहुंच के चलते इस एनओसी का जुगाड़ भी कर लिया था.

एनओसी पर प्रमुख सचिव स्तर के आईएएस अधिकारी के दस्तखत होने बाकी थे. आईएएस अधिकारी को मंसूर खान की जालसाजी के बारे में पहले ही पता चल गया था. उन्होंने अपनी सूझबूझ का परिचय दिया और दस्तावेजों पर साइन करने से साफ इनकार कर दिया.

इस पर मंत्री ने उन पर काफी दबाव बनाया, मगर उन पर इस दबाव का कोई असर नहीं हुआ. अधिकारी की सूझबूझ के चलते 600 करोड़ का एक और चूना लगतेलगते बच गया था.

जांच के दौरान 4 हजार करोड़ रुपए की ठगी किए जाने का मामला सामने आया है. आगे की जांच की प्रक्रिया जारी है. कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी ने कहा है कि आईएमए के मामले को गंभीरता से लिया जा रहा है. सरकार निवेशकों की स्थिति समझती है. इस मुद्दे पर गृहमंत्री एम.बी. पाटिल से भी बात की तो उन्होंने बताया कि यह मामला सेंट्रल क्राइम ब्रांच (सीसीबी) को सौंप दिया गया है. दोषियों पर काररवाई की जाएगी.

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कथा लिखे जाने तक ईडी मंसूर खान के खिलाफ रेड कौर्नर नोटिस जारी करने की तैयारी में जुटी थी.

पुलिस के मुताबिक, मंसूर खान दुबई भागने से पहले अपने परिवार को पहले ही दुबई में शिफ्ट करा चुका था ताकि उस के देश छोड़ कर भागने पर पुलिस परिवार को परेशान न कर सके. देखना है कि क्या पुलिस ठग मंसूर खान को दुबई से भारत वापस ला पाती है या नहीं.

गिरफ्त में आया मंसूर खान

इसलाम में सूद को हराम माना जाता है, भले ही वह किसी भी माध्यम से आए. ज्यादातर मुसलमान इस बात को मानते भी हैं और अमल भी करते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है कि मुसलिम समुदाय ज्यादा आय का पक्षधर न हो. हर कोई चाहता है कि उस की नियमित आय के अतिरिक्त भी आय का कोई साधन हो. हराम माने जाने वाले सूद के पैसे को अपने तरीके से हलाल बता कर हैदराबाद की डाक्टर नौहेरा शेख ने देशविदेश के मुसलिम निवेशकों से 3000 करोड़ रुपए की ठगी की थी.

भले ही नौहेरा पकड़ी गई हो, लेकिन निवेशकों की खूनपसीने की कमाई का पैसा तो मिलने से रहा. इसी तरह इसलामिक बैंक (आई मोनेटरी एडवाइजरी) के नाम पर 4000 करोड़ रुपए की ठगी करने वाला मंसूर खान पल्ला झाड़ कर 8 जून, 2019 को दुबई भाग गया था. जाने से पहले उस ने एक वीडियो जारी कर के सुसाइड करने की धमकी भी दी थी. उस के खिलाफ जांच कर रही एसआईटी और ईडी ने लुकआउट सरकुलर भी जारी किया था.

एसआईटी ने दुबई में अपने सूत्रों से उस का पता लगा कर उस से कहा कि वह भारत लौट आए और खुद को कानून के हवाले कर दे. गनीमत है कि इस चेतावनी पर 19 जुलाई को वह भारत लौट आया. अब एसआईटी और ईडी उस से पूछताछ भी करेंगी और उस की धोखाधड़ी की जांच भी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

(कहानी सौजन्य मनोहर कहानी)

गलत राह का राहीं

लीना नहीं मानी तो उस ने संगीता को पटाया और उसे पुलिस की वरदी पहना कर लीना के नाम पर लोगों से पैसा बटोरना शुरू कर दिया. लेकिन…

जितेंद्र एक दिन अपनी पत्नी लीना के साथ एक दोस्त के परिवार में आयोजित शादी समारोह में शामिल होने आया था. समारोह में वह पत्नी के साथ औपचारिकता भर निभा रहा था, क्योंकि उस की पत्नी से बनती नहीं थी. उसी दौरान जितेंद्र की नजर समारोह में मौजूद एक युवती पर पड़ी तो वह उसे देखता रह गया, मानो किसी दूसरी दुनिया में खो गया हो. जितेंद्र उस की खूबसूरती पर ऐसा फिदा हुआ कि कुलांचें भरता मन बस उसी के इर्दगिर्द घूम रहा था. जितेंद्र ने उसे पहले कभी नहीं देखा था. वह उस युवती से बात करने के लिए उतावला हुए जा रहा था.

पत्नी लीना को सहेलियों के बीच छोड़, वह आत्ममुग्ध हो कर उस युवती की ओर बढ़ चला. जब तक वह उस के पास पहुंचा, तब तक युवती उस के दोस्त राजेश के साथ खड़ी बातें करने लगी. जितेंद्र इस मौके को खोना नहीं चाहता था. वह राजेश के पास पहुंच गया. बातें करतेकरते उस ने युवती की तरफ इशारा करते हुए राजेश से पूछा, ‘‘यह कौन है भाई?’’  ‘‘अरे यार यह मेरी मुंह बोली बहन संगीता है.’’ कहते हुए राजेश ने जितेंद्र का परिचय संगीता से करवाया. जितेंद्र यही चाहता भी था. जितेंद्र ने संगीता से बातचीत करनी शुरू कर दी. संगीता ने उस से पूछा, ‘‘आप क्या करते हैं?’’

यह सुन कर जितेंद्र मुसकराया और कंधे उचकाते हुए बोला, ‘‘मैं पुलिस का दामाद हूं.’’

‘‘अच्छा,’’ कह कर संगीता हंस पड़ी.

राजेश ने बताया, ‘‘जितेंद्र की पत्नी लीना मध्य प्रदेश पुलिस में है. जब बीवी पुलिस में है तो इस का तो कहना ही क्या, इस की तो मौज ही मौज है, हरफरनमौला आदमी है यह.’’

संगीता कुछ समझी, कुछ नहीं समझी. मगर जितेंद्र के व्यक्तित्व और पुलिसिया दामाद होने की बातें सुन कर वह उस से प्रभावित हो गई. दोनों बातें करने लगे. इसी बीच राजेश

वहां से हटा तो जितेंद्र ने संगीता को इंप्रेस करने की हर कोशिश करनी शुरू कर दी. लच्छेदार बातें कर उसे वह मानो एक ही पल में अपने आगोश में लेने को आतुर हो उठा. वह बोला, ‘‘संगीताजी, मैं आप से एक बात कहूं.’’

‘‘जरूर कहिए, आप बड़े दिलचस्प व्यक्ति हैं, ऐसा लगता है कि आप से आज अभी की नहीं, वर्षों पहले की मुलाकात हो.’’ संगीता ने कहा.

जितेंद्र के सामने सुनहरा मौका था, उस ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि चाहे जो भी हो, संगीता के लिए उसे सारे संसार से लड़ना भी पड़ा तो लड़ेगा. उस ने थोड़ा झिझकने का नाटक करते हुए कहा, ‘‘आप से एक बात कहनी है, बुरा तो नहीं मानेंगी?’’

संगीता उस की बातों और नजरों से कुछकुछ भांप चुकी थी कि वह क्या कहना चाहता है. उस ने सहजता से कहा, ‘‘आप कहिए, मैं बुरा नही मानूंगी.’’

जितेंद्र को हिम्मत मिली तो उस ने पहली मुलाकात में ही इश्क का इजहार कर दिया. उस की बात सुन कर संगीता की आंखें फटी रह गईं. मगर वह नाराज नहीं हुई. तभी जितेंद्र ने कहा, ‘‘संगीता जी, मैं आप की खातिर सारे संसार को छोड़ने को तैयार हूं.’’ संगीता आ गई जितेंद्र की बातों में संगीता को यह पता चल चुका था कि जितेंद्र शादीशुदा है. वह खुद भी किसी की अमानत थी. उस वक्त उस की मांग में सिंदूर, और गले में मंगलसूत्र था. संगीता ने जितेंद्र की बातें सुन आत्मीय स्वर में कहा, ‘‘आप तो शादीशुदा हैं न?’’

‘‘हां, मगर मैं ने आप को देखते ही अलग तरह का आकर्षण महसूस किया. रही बात मेरी पत्नी लीना की, तो उस के साथ मैं कैदी जैसी जिंदगी जी रहा हूं.’’ जितेंद्र बोला. उस की आंखों में आंसू झिलमिलाने लगे थे.

संगीता भी कम नहीं थी. उस से बिना मौका छोड़े तत्काल कहा, ‘‘अभी तो खुद को सरकारी दामाद बता कर खुश भी थे और गर्व भी महसूस कर रहे थे. इतनी सी देर में क्या हो गया?’’

‘‘दिल का दर्द हर किसी के सामने नहीं छलकता. पता नहीं दिल ने आप में ऐसा क्या देखा कि…’’

जितेंद्र की बात सुन और उस की आंखों में आंसू देख संगीता को महसूस हआ कि वह मन का सच्चा आदमी है. संगीता भी अपने पति राकेश से कहां खुश थी. उस ने सुन रखा था कि दुनिया में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो वैवाहिक जीवन में खुश नहीं होते. शायद जितेंद्र भी उन्हीं में हो. राकेश का गुस्सैल चेहरा संगीता की आंखों के आगे घूमने लगा. बातबात में प्रताड़ना, मारपीट, गालीगलौज उस के लिए आम बात थी. वह राकेश से भीतर ही भीतर नफरत करती थी, फिर भी पत्नी धर्म का निर्वहन कर रही थी.

उस ने जितेंद्र की ओर आत्मीय दृष्टि डालते हुए कहा, ‘‘आप जल्दबाजी मत कीजिए. अभी मेरी तरफ से हां भी है और ना भी, मुझे सोचने का कुछ वक्त दीजिए.’’ जितेंद्र संगीता की बातें सुन मन ही मन खुश हुआ, उस ने कहा, ‘‘बिलकुल, लेकिन हम जल्दी ही मिलेंगे न?’’

सुन कर संगीता मुसकराई. दोनों ने अपने मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे दिए. जितेंद्र राय और संगीता सुसनेर की यह पहली मुलाकात लगभग 5 साल पहले सन 2014 में हुई थी.

दोनों के बीच फोन पर बातें होने लगीं. दोनों को अपने जीवनसाथियों से परेशानियां थीं, इसलिए अपनाअपना दुखड़ा सुनातेसुनाते एकदूसरे के करीब आ गए.  जल्दी ही दोनों का इंदौर के मोती गार्डन में मिलना तय हुआ. जितेंद्र समय से पहले पहुंच गया. समय बीत रहा था और संगीता का कहीं अतापता नहीं था. वह बेचैन हो उठा. तभी संगीता सामने आ कर खड़ी हो गई. दोनों एकदूसरे को देख कर खुश थे. एक बेंच पर बैठ कर दोनों ने बातचीत शुरू की. जितेंद्र ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘संगीता, मैं तो घबरा गया था. अगर तुम नहीं आती तो…’’

संगीता ने मुसकरा कर उस पर तिरछी नजर डाली फिर कहा, ‘‘ओह, फिर तो मुझ से बड़ी भूल हो गई.’’

चाहत का कर दिया इजहार

इस के बाद दोनों खिलखिला कर हंस पडे़. कुछ देर तक इधरउधर की बातें होती रहीं. दोनों के बीच मुलाकात का सिलसिला शुरू हुआ तो दोनों एकदूसरे से मिलने लगे.

एक दिन जितेंद्र ने उस से कहा, ‘‘मैं ने आज एक निर्णय लिया है, मुझे बस तुम्हारा साथ चाहिए.’’

‘‘हांहां, कहो.’’ संगीता ने कहा.

‘‘मैं लीना को छोड़ रहा हूं, मैं आज ही उस से संबंध खत्म कर दूंगा.’’

‘‘क्यों?’’ संगीता ने मासूमियत से पूछा.

‘‘मैं तुम्हें चाहता हूं. आखिर हम कब तक अलग रहेंगे. तुम्हारे लिए मैं दुनिया से भी टकरा जाऊंगा.’’ जितेंद्र ने संगीता की आंखों में आंखें डाल कर कहा.  यह सुन कर संगीता मन ही मन खुश थी कि कोई तो है संसार में जो उसे इतना चाहता है. उस ने बचपन से ही दुख झेले थे. पति के घर आई तो वहां भी लड़ाईझगड़ा और अवसाद भरी जिंदगी. उस ने जितेंद्र के हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘मैं तुम्हारे साथ हूं जितेंद्र. मैं भी तुम्हें चाहने लगी हूं. तुम्हारी खातिर सब कुछ छोड़ दूंगी.’’

संगीता का समर्थन मिला तो जितेंद्र की बांछें खिल गईं, वह बोला, ‘‘लेकिन तुम्हें एक काम करना होगा, मेरे पास हमारे सुनहरे दिनों की प्लानिंग है.’’

‘‘वह क्या?’’ संगीता ने सहजता से पूछा.

‘‘आज शाम को मैं एक चीज ले कर आऊंगा, उसे तुम्हें पहननना होगा.’’ जितेंद्र ने रहस्यमय स्वर में कहा.

‘‘क्या, मंगलसूत्र?’’ संगीता ने भोलेपन से पूछा.

जितेंद्र हंस पड़ा, ‘‘नहीं, वह तो मैं पहनाऊंगा ही, लेकिन एक चीज और है.’’

‘‘क्या, बताओ भी न.’’ संगीता इठलाई.

‘‘तुम्हें लीना की वरदी पहननी है?’’ जितेंद्र ने दिल की बात बता दी.

‘‘क्यों, इस से क्या होगा?’’ संगीता ने आश्चर्य पूछा.

‘‘मैं तुम्हें ऐसी दुनिया दिखाऊंगा कि तुम सोच में पड़ जाओगी. जानती हो, एक पुलिसवाली जब डंडा ले कर निकलती है तो तमाम लोग उसे सलाम ठोकते हैं.’’

‘‘तुम यह सब मेरे लिए क्यों कर रहे हो और फिर मैं लीना की वरदी कैसे पहन सकती हूं?’’

‘‘सब ठीक हो जाएगा, तुम वरदी पहनना, मैं फोटो ले लूंगा तुम्हारा आईडी कार्ड भी बन जाएगा.’’ जितेंद्र ने कहा.

‘‘अच्छा ठीक है, अगर तुम कह रहे हो तो… पर मुझे कुछ अटपटा लग रहा है.’’

जितेंद्र ने संगीता पर फेंका जाल

उस शाम जब जितेंद्र राय संगीता से मिलने आया तो उस के बैग में लीना की पुलिस की वरदी थी. उस ने वरदी निकाल कर संगीता के सामने रख दी और आत्मविश्वास से लबरेज स्वर में बोला, ‘‘संगीता इसे पहन कर दिखाओ, देखूं तो कैसी दिखती हो.’’

संगीता ने उस के सामने ही लीना राय की लाई पुलिस वरदी पहन ली. जितेंद्र ने प्रसन्न भाव से कहा, ‘‘तुम बहुत सुंदर लग रही हो, मानो इस वरदी के लिए ही बनी हो.’’

संगीता वरदी पहन कर इठला रही थी. जितेंद्र ने उस के कुछ फोटो लिए और बताया, ‘‘जल्द ही तुम्हारा आईडी कार्ड बन जाएगा, फिर हमारी तकदीर खुल जाएगी.’’

संगीता विस्मय से जितेंद्र की ओर देखने लगी, उसे अच्छा भी लग रहा था और बुरा भी.

जितेंद्र के प्यार में पड़ कर संगीता ने किसी और की पुलिस वरदी पहन तो ली लेकिन आगे चल कर वह एक ऐसे भंवर जाल में फंसती चली गई जो उस की जिंदगी को तबाह करने के लिए काफी था.

जितेंद्र राय और लीना राय का विवाह हुए 8 साल हो चुके थे. जितेंद्र एक ट्रैवल कंपनी में ट्रैवल एजेंट था उस की पत्नी लीना राय मध्य प्रदेश पुलिस में प्रधान आरक्षक थी. फिलहाल उस की ड्यूटी पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में थी. लेकिन दोनों के विचार नहीं मिलते थे, जिस की वजह से उन के बीच खटास बनी रहती थी.

जितेंद्र के बड़ेबड़े ख्वाब थे जिन्हें वह साकार करना चाहता था. आननफानन में लखपति बनने के बारे में वह पत्नी को बताता रहता था. वह लीना को पुलिस वरदी की महत्ता बताता और कहता, इस वरदी में बड़ी ताकत है. अगर इस वरदी का सही इस्तेमाल किया जाए तो उन की मुफलिसी दूर हो जाएगी.

मगर लीना राय वरदी की मर्यादा समझती थी. इसलिए वह नहीं चाहती थी कि पैसों के लिए वह किसी आपराधिक गतिविधि में शामिल हो. इसलिए वह प्यार से पति को समझाती कि वह ऐसी बातें न तो सोचे, और न ही उसे करने के लिए कहे.

जितेंद्र तरहतरह के तर्क देता कुछ पुलिस वालों के उदाहरण भी बताता, लेकिन लीना ने उस की बात नहीं मानी.

जितेंद्र का मन लीना से उचट गया तो वह संगीता के प्यार की नैय्या में बैठ कर आगे की योजना बनाने लगा.

जितेंद्र ने अपना घर छोड़ा और संगीता ने अपने पति का घर छोड़ा. दोनों इंदौर महानगर के मूसाखेड़ी कस्बे में किराए के एक मकान में रहने लगे. जितेंद्र ने टै्रवल एजेंट का काम छोड़ दिया और अपनी वर्षों की कल्पना को साकार करने की दिशा में कदम बढ़ा दिए. उस ने निश्चय कर लिया कि संगीता को फरजी पुलिसवाली बना कर आगे की जिंदगी खुशहाली से व्यतीत करेगा.

जितेंद्र ने पत्नी लीना के आईडी कार्ड पर संगीता का फोटो लगा कर फरजी आईडी कार्ड भी बनवा दिया.  जितेंद्र ने लीना को नजदीक से देखा था, उस के हर गुणधर्म को वह जज्ब कर चुका था. उस ने संगीता को एकएक बात प्रेम से समझानी शुरू की. उसे बताया कि लीना कैसे चलती है कैसे बातें करती है. जितेंद्र ने संगीता को कुछ फिल्में भी दिखाईं ताकि पुलिस का रौब पैदा करना आ जाए. पुलिस वाली बन कर वह लोगों को डराधमका कर उन से मोटी रकम ऐंठ सके.

जितेंद्र जब पत्नी लीना को छोड़ कर संगीता के साथ रहने लगा तो लीना मन मसोस कर रह गई. उस ने एक दिन जितेंद्र से बात की और कहा, ‘‘तुम जो कर रहे हो, क्या यह ठीक है. जानते हो, लोग क्या कहेंगे, समाज क्या कहेगा और मेरा क्या होगा?’’

ठगी के लिए छोड़ा पत्नी को

लीना की बातें सुन जितेंद्र कुछ क्षण मौन रहा फिर कहा, ‘‘लीना, कितना अच्छा होता तुम मेरी जिंदगी में नहीं आती. अब मुझे भूल जाओ.’’

लीना तड़प कर बोली, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो, क्या शादीविवाह गुड्डेगुडि़यों का खेल है, जो भूलने की बात कह रहे हो.’’

‘‘जब हमारे आचारविचार नहीं मिलते तो हम एक साथ क्यों रहें. तुम्हारे साथ रहने पर मुझे घुटन होती है.’’ जितेंद्र ने कहा.

जितेंद्र को लीना ने समझाने का पूरा प्रयास किया, घर परिवार की दुहाई दी मगर उस ने उस की एक नहीं सुनी. वह संगीता के साथ मूसाखेड़ी में रहने लगा. लीना एकाकी जीवन  यापन करने लगी. जबकि जितेंद्र संगीता के साथ खुश था क्योंकि संगीता लीना से ज्यादा सुंदर थी. इतना ही नहीं वह उस की एकएक बात मानती थी. साथ ही उस की अवैध और गैरकानूनी गतिविधियों में उस की सहभागी भी बन गई थी.

दोनों ने महानगर इंदौर के लोगों को ठगना शुरू कर दिया. संगीता पुलिस की वरदी पहन कर जितेंद्र के साथ कहीं भी पहुंच जाती और धौंस दे कर लोगों से रुपए वसूल करती. इस तरह दोनों मोटी कमाई कर के ऐश की जिंदगी जीने लगे.

दोनों ने थोड़े समय में ही पुलिस की वरदी की आड़ में लाखों रुपए की कमाई कर ली. जितेंद्र अवैध काम करने वालों पर पैनी निगाह रखता, उस ने कुछ ऐसे लोग से मित्रता कर रखी थी जो उसे अवैध काम करने वालों के ठिकाने बताते थे. इस के बदले में वह उन्हें अवैध वसूली में से कमीशन देता था.

नकली घी बनाने वाले एक व्यापारी से संगीता ने पुलिसिया रौब झाड़ कर 2 लाख रुपए की रकम वसूल की थी. कई जगह से अवैध वसूली के बाद संगीता की हिम्मत बढ़ गई थी. अब वह और भी निर्भीक हो कर अवैध काम करने वालों को धमकाती थी.

जितेंद्र को एक दिन पता चला कि शहर के एक इलाके में नामी कंपनी के नाम का नकली कोल्ड ड्रिंक बनाने की फैक्ट्री चल रही है. संगीता वरदी पहन कर जितेंद्र के साथ उस जगह पहुंच गई. फैक्ट्री संचालक को हड़का कर दोनों ने उस से 2 लाख रुपए ऐंठ लिए.

जितेंद्र और संगीता की गतिविधियां बढ़ती जा रही थीं. यह सब करतेकरते संगीता यह तक भूल गई कि वह फरजी पुलिस वाली है. लेकिन वरदी और आईडी कार्ड होने की वजह से वह खुद को असली पुलिसकर्मी ही समझती थी.

वह समझती थी कि इंदौर इतना बड़ा महानगर है कि वह जितेंद्र के साथ इसी तरह लोगों को ब्लैकमेल कर के आनंदपूर्वक जीवन यापन करती रहेगी. एक दिन लीना राय अपने औफिस में थी कि एक शख्स उसे बारबार देखता और चला जाता, 2-3 बार जब उस ने ऐसा ही किया तो लीना ने उसे पास बुला कर पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम बारबार मुझे इतने गौर से क्यों देख रहे हो?’’

उस ने डरते हुए पूछा, ‘‘मैडम क्या आप ही लीना राय हैं?’’

लीना ने उस की ओर देखते हुए कहा, ‘‘हां, कहो क्या बात है?’’

‘मैडम, मैं ने एकांत नगर में लीना राय नाम की जो महिला देखी थी, वह तो कोई दूसरी थी.’’ उस ने बताया.  ‘‘क्या मतलब?’’ लीना ने पूछा. उस व्यक्ति ने बताया कि उस का नाम रमन गुप्ता है और वह गल्ले किराने का थोक व्यापारी है. रमन गुप्ता ने लीना को जो कुछ बताया, उसे सुन कर लीना राय चौंकी. उस ने बताया कि पिछले महीने  लीना  राय नाम की एक महिला पुलिस वरदी में उस के पास आई थी और उस से एक लाख रुपए ले गई थी. उस पुलिस वाली ने उसे बताया था कि वह पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में बैठती है. कोई भी काम हो तो वहां आ जाना. इसलिए उन्हें ढूंढता हुआ यहां चला आया.

खबर पहुंच गई लीना तक

रमन गुप्ता की बात सुन कर लीना समझ गई कि जरूर यह काम उस के पति जितेंद्र के साथ रहने वाली संगीता का होगा, क्योंकि उसे और भी कई लोगों ने बताया था कि संगीता पुलिस वरदी पहन कर जितेंद्र के साथ घूमती है. रमन गुप्ता के जाने के बाद लीना ने तय कर लिया कि कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा. नहीं तो जितेंद्र की गतिविधियां उस के गले की फांस बन सकती है. लीना उसी शाम जितेंद्र को ढूंढती हुई मूसाखेड़ी पहुंच गई. मगर घर में ताला लगा था. उस ने उस के मोबाइल पर संपर्क करने की कोशिश की तो भी बातचीत नहीं हो सकी. उस दिन वह घर लौट आई. लेकिन एक दिन फिर से उस के यहां गई तो जितेंद्र घर पर मिल गया.

जितेंद्र ने अपनी ब्याहता लीना को देखा तो चौंका, ‘‘अरे लीना तुम.’’

लीना मुसकराई, ‘‘जितेंद्र तुम मुझे भूल सकते हो मगर मैं तुम्हें कैसे भूल सकती हूं.’’ लीना ने प्रेम भरे अल्फाजों में कहा तो जितेंद्र की सांस में सांस आई.

कुछ बातचीत करने के बाद लीना ने घर में इधरउधर नजरें दौड़ाईं तो संगीता नहीं दिखी. उस ने जितेंद्र से पूछा, ‘‘वह कहां है?’’

‘‘कौन, संगीता!’’ जितेंद्र ने कहा, ‘‘संगीता बाजार गई है सब्जी लाने.’’

‘‘यह तो बड़ा अच्छा हुआ. हम आराम से बैठ कर बातें कर सकते हैं.’’ लीना ने प्यार जताते हुए जितेंद्र से कहा, ‘‘क्या तुम मुझे चाय नहीं पिलाओगे.’’ लीना जानती थी कि जितेंद्र रसोई के काम भलीभांति कर लेता है और वह उसे अकसर चाय बना कर पिलाया करता था.

जितेंद्र मुसकरा कर उठा और चाय बनाने चला गया. जितेंद्र का मोबाइल वहीं रखा था. लीना ने झट से मोबाइल उठा लिया और फोन की गैलरी देखने लगी. गैलरी में संगीता के कुछ फोटो मिले, जिस में वह पुलिस की वरदी पहने हुई थी.

लीना ने उन फोटो को तुरंत अपने वाट्सएप में सेंड कर लिया. इस तरह उसे एक बड़ा सबूत मिल गया. वह समझ गई संगीता पुलिस वाली बन कर क्या कर रही है. इस का मतलब रमन गुप्ता सही कह रहा था. जितेंद्र के कमरे में रखे सामान देख कर वह समझ गई कि फरजी पुलिस वाली बन कर संगीता मोटा पैसा कमा रही है.

जितेंद्र चाय ले कर आया तो लीना वहां से जा चुकी थी. लीना सीधे एएसपी अमरेंद्र सिंह के पास पहुंची और उस ने संगीता द्वारा फरजी पुलिस बन कर लोगों से पैसे ऐंठने वाली बात उन्हें बता दी.

एएसपी अमरेंद्र सिंह ने आजाद नगर के टीआई संजय शर्मा को मामले की जांच कर सख्त काररवाई करने के आदेश दिए. टीआई संजय शर्मा ने 13 जुलाई, 2019 को जितेंद्र राय और संगीता के घर दबिश डाल कर दोनों को ही गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर दोनों से विस्तार से पूछताछ की गई तो उन्होंने तमाम लोगों से मोटी रकम ऐंठने की बात स्वीकार कर ली. उन्होंने संगीता सुसनेर और जितेंद्र राय के खिलाफ भादंवि की धारा 419, 420, 467, 468, 469, 471, 380, 120बी के तहत केस दर्ज कर के दोनों को गिरफ्तार कर लिया.

उन की निशानदेही पर पुलिस ने पुलिस की वरदी, कैप, आईडी कार्ड बरामद कर लिया. 14 जुलाई, 2019 को दोनों आरोपियों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.द

(कहानी सौजन्य मनोहर कहानी) 

भविष्य की नीव में दफन 2 लाशें

लेखक- दिनेश बैजल ‘राज’

उस ने यह बात प्रिंसिपल विजय कुमार को बताई तो उन्होंने 7 स्कूलों के संचालक सुरेंद्र लवानिया से सिफारिश कर के उसे 3 हजार रुपए महीना किराए पर स्कूल दिला दिया. लेकिन धीरज के मन में लालच आ गया और उस ने…

आगरा जनपद के थाना सिकंदरा की ओम विहार कालोनी निवासी सुरेंद्र लवानिया के सैनिक भारती इंटर  कालेज समेत 7 स्कूल हैं. इस के अलावा वह एक एफएम चैनल 90.8 के भी निदेशक हैं. उन का एक स्कूल थाना ताजगंज क्षेत्र के कौलक्खा में है. डा. बी.आर. अंबेडकर नाम के इस जूनियर हाईस्कूल को उन्होंने सेमरी निवासी धीरज को किराए पर दे रखा था.

धीरज ही इस स्कूल को चला रहा था. लेकिन पिछले 2 सालों से धीरज ने स्कूल के मालिक सुरेंद्र लवानिया को किराया नहीं दिया था. जब भी वह किराया मांगते तो धीरज कोई न कोई बहाना बना देता था.

28 जून, 2019 शुक्रवार की सुबह लगभग साढ़े 10 बजे इस स्कूल के संचालक धीरज ने सुरेंद्र कुमार लवानिया को फोन कर के कहा, ‘‘कहीं से मेरे पास पैसे आ गए हैं, आप स्कूल आ कर सारा किराया ले जाएं. आप अपने साथ प्रिंसिपल विजय कुमार को भी बुला लाएं गुरुजी के सामने पैसे दिए जाएंगे तो ठीक रहेगा.’’

धीरज विजय कुमार को गुरुजी कहता था. वह सुरेंद्र कुमार लवानिया के ही सैनिक भारती इंटर कालेज, उर्खरा में प्रिंसिपल थे और आगरा की इंदिरापुरम कालोनी में सपरिवार रहते थे. धीरज से किराए के पैसे मिलने की बात सुन कर सुरेंद्र लवानिया खुश हुए.

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उन्होंने उसी समय अपने एक कालेज के प्रिंसिपल विजय कुमार को फोन कर के कहा कि मैं धीरज के पास कौलक्खा पहुंच रहा हूं. तुम भी घर से सीधे धीरज के पास पहुंच जाओ. इस के बाद वह अपनी वरना कार से धीरज के पास जाने के लिए निकल गए.

पिं्रसिपल विजय कुमार उस समय सैनिक भारती इंटर कालेज में चौकीदार से सफाई कार्य करा रहे थे, क्योंकि पहली जुलाई को स्कूल खुलना था.

मूलरूप से दरभंगा, बिहार निवासी प्रिंसिपल विजय कुमार झा 25 साल पहले आगरा आए थे. सुरेंद्र लवानिया से उन का परिचय हुआ तो उन्होंने झा को सैनिक भारती इंटर कालेज का प्रिंसिपल बना दिया था. ईमानदार व मिलनसार स्वभाव के चलते बाद में विजय ही लवानिया के सभी स्कूलों की देखरेख की जिम्मेदारी संभालने लगे.

उन का बेटा मानवेंद्र उर्फ दीपक सीए की तैयारी कर रहा था. बेटी की वह शादी कर चुके थे. उन्होंने अपने बेटे से बता दिया था कि वे लवानिया साहब के साथ धीरज के पास जा रहे हैं. फिर वह बाइक ले कर निकल गए.

स्कूल मालिक और प्रिंसिपल  की रहस्यमय गुमशुदगी

शाम हो गई लेकिन न तो लवानिया साहब अपने घर लौटे और न ही विजय कुमार. सुरेंद्र लवानिया के घर वालों ने कई बार उन्हें फोन मिलाया लेकिन फोन स्विच्ड औफ था. उधर विजय कुमार का बेटा भी कई बार पिता का नंबर मिला चुका था पर उन का फोन स्विच्ड औफ होने की वजह से नहीं मिला. देर शाम सुरेंद्र लवानिया की पत्नी सुशीला ने प्रिंसिपल विजय के घर फोन किया.

विजय की पत्नी शीला ने उन्हें बताया कि उन के पति भी सुबह बाइक ले कर धीरज से मिलने की बात कह कर निकले थे, लेकिन उन का मोबाइल भी स्विच्ड औफ है. उन से संपर्क भी नहीं हो पा रहा है. शीला ने यह भी बताया कि धीरज को फोन किया था, घंटी जाने के बाद भी उस ने काल रिसीव नहीं की.

दोनों के घर वालों को चिंता हुई. उन्होंने अपने परिचितों को भी फोन कर के उन के बारे में पूछा. फिर उन्हें संभावित जगहों पर तलाश करने लगे. लेकिन दोनों का कोई सुराग नहीं लगा. तलाश में भटक रहे परिजन दूसरे दिन शनिवार 29 जून को ताजगंज थाने पहुंचे.

स्कूल मालिक सुरेंद्र लवानिया व प्रधानाचार्य विजय कुमार के परिजनों ने सुरेंद्र लवानिया के गायब होने की बात सुन कर थानाप्रभारी भी हैरान रह गए, क्योंकि शिक्षा जगत में सुरेंद्र लवानिया बड़ा नाम था. जिले में उन के 7 स्कूल और कालेज थे. 5 साल पहले उन्होंने खंदारी में एक एफएम चैनल भी शुरू किया था.

वह सपरिवार आगरा के सिकंदरा क्षेत्र की ओमविहार कालोनी में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सुशीला के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा था. बड़ी बेटी की वह शादी कर चुके थे. सुरेंद्र लवानिया उत्तर प्रदेश शिक्षण संस्थान प्रबंधक परिषद के सदस्य भी थे. वे संगठन की प्रत्येक गतिविधि में हिस्सा लेते थे.

स्कूल स्वामी सुरेंद्र लवानिया व प्रधानाचार्य विजय कुमार के परिजनों ने थानाप्रभारी को घटना से अवगत कराया. मामला गंभीर था, इसलिए थानाप्रभारी ने सुरेंद्र और विजय की गुमशुदगी दर्ज कर के इस घटना की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. दोनों के लापता होने की सूचना मिलते ही पुलिस महकमे में खलबली मच गई. हालात को देख कर अपहरण की आशंका थी. एसएसपी जोगेंद्र कुमार ने इस मामले की कमान खुद संभाल ली. इस के तुरंत बाद पुलिस दोनों की खोज में लग गई.

वैसे सुरेंद्र लवानिया मूलरूप से मंसा की मढैया, धिमिश्री, शमसाबाद के रहने वाले थे. उन का 400 वर्ग गज में बना डा. बी.आर. अंबेडकर जूनियर हाईस्कूल, कौलक्खा, थाना ताजगंज में था. 2 साल पहले यह स्कूल ताजगंज के गांव सेमरी निवासी धीरज जाटव ने 3 हजार रुपए मासिक किराए पर लिया था.

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धीरज को यह स्कूल विजय कुमार झा ने ही सुरेंद्र लवानिया से सिफारिश कर के किराए पर दिलवाया था. धीरज ने 2 साल से स्कूल का किराया नहीं दिया था. सुरेंद्र लवानिया जब भी उस से किराया मांगते तो वह टालमटोल कर देता था. 28 जून, 2019 को धीरज ने लवानिया साहब को फोन कर के किराया ले जाने के लिए बुलाया था.

29 जून, 2019 की सुबह जब शीला ने धीरज को फोन किया तो धीरज ने फोन उठा लिया. विजय के बारे में पूछने पर धीरज ने शीला को बताया कि प्रिंसिपल साहब और  लवानियाजी उस के पास आए ही नहीं थे.

इस के कुछ देर बाद धीरज शीला के घर  पहुंच गया. वहां उस ने चाय भी पी. शीला ने धीरज से कहा, ‘‘बेटा, यदि तुम से कोई गलती हो गई है तो कोई बात नहीं है. हम तुम्हें बचा लेंगे. उन के साथ कुछ करना मत.’’ शीला ने यह बात कहते हुए मन ही मन सोचा था कि यदि धीरज ने किसी वजह से दोनों का अपहरण कर लिया होगा तो वह समझाने पर मान जाएगा.

इस पर धीरज ने कहा, ‘‘आप कैसी बात कर रही हैं? वह मेरे गुरु हैं, मेरे अन्नदाता हैं. मैं कभी उन के साथ गलत नहीं कर सकता.’’

इस बीच धीरज पर शक होने पर शीला ने पुलिस को सूचना दे दी. कुछ ही देर में पुलिस वहां पहुंच गई. शीला के घर से निकलते ही पुलिस ने धीरज को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर उस से सुरेंद्र लवानिया और विजय कुमार के बारे में पूछताछ की गई.

धीरज ने पुलिस से कहा, ‘‘उन दोनों के लापता होने के पीछे मेरा कोई हाथ नहीं है. हो सकता है कि उन का अपहरण हो गया हो, आप उन के मोबाइल को सर्विलांस पर लगवा दें, शायद उन की लोकेशन का पता चल जाए.’’

उधर पुलिस को दोनों के ही घर वालों ने बताया था कि सुरेंद्र लवानिया धीरज के बुलावे पर ही घर से अपनी वरना कार से धीरज से किराया लेने निकले थे, दूसरी ओर विजय कुमार झा अपनी बाइक से गए थे. दोनों के अपहरण के कयास पर पुलिस दोनों के वाहनों की सरगर्मी से तलाश में जुट गई.

गांव वालों से मिली संदेहास्पद जानकारी

पुलिस अधिकारियों को लग रहा था कि या तो दोनों का अपहरण हुआ है या फिर उन के साथ कोई अनहोनी हो गई है. एसएसपी जोगेंद्र कुमार ने सीओ (सदर) विकास जायसवाल के नेतृत्व में 3 टीमें बनाईं. एक टीम का नेतृत्व इंसपेक्टर (ताजगंज) अनुज कुमार को करना था, दूसरी टीम को इंसपेक्टर (सदर) कमलेश सिंह के साथ करना था, इन के साथ एक टीम क्राइम ब्रांच की भी थी. एसपी (सिटी) प्रशांत वर्मा को तीनों टीमों की मौनिटरिंग करनी थी.

इस बीच पुलिस ने विजय और सुरेंद्र के मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया था पता चला कि दोनों फोन नंबर घटना वाले दिन दोपहर 2 बजे से बंद हैं. यह बात भी सामने आई कि दोपहर 2 बजे मृतकों व धीरज के मोबाइलों की लोकेशन कौलक्खा स्थित स्कूल में ही थी.

पुलिस ने गांव वालों से पूछताछ की तो कुछ लोगों ने बताया कि उन्होंने सफेद रंग की एक कार स्कूल तक आती देखी थी. पुलिस को यह भी पता चला कि धीरज स्वयं को डा. बी.आर. अंबेडकर जूनियर हाईस्कूल का मालिक बताता था.

इन सब बातों से पुलिस को शक हुआ कि धीरज जरूर ही कुछ छिपा रहा है. पुलिस धीरज से प्यार से पूछताछ कर चुकी थी पर उस ने कुछ नहीं बताया था. लिहाजा उस के साथ सख्ती जरूरी थी. पुलिस की सख्ती के आगे धीरज टूट गया और उस ने सब उगल दिया.

उस ने बताया कि उस ने उन दोनों की गला घोंट कर हत्या करने के बाद उन के शवों को स्कूल परिसर में ही गड्ढा खोद कर दफन कर दिया है.

दोहरे हत्याकांड की बात सुन कर पुलिस अधिकारी सन्न रह गए. पुलिस ने दोनों के घर वालों को केस खुलने की सूचना दे दी. हत्या की जानकारी होते ही दोनों के परिवार में कोहराम मच गया. पुलिस ने धीरज के साथ हत्या में शामिल 3 अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया. आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस स्कूल पहुंच गई और रात में ही खुदाई का काम शुरू कर दिया.

खुदाई कर पुलिस ने निकाली लाशें

आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने 3 घंटे की खुदाई के बाद स्कूल के कमरे के बाहर गड्ढे से दोनों शव बरामद कर लिए. मौके की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने सुरेंद्र लवानिया और विजय कुमार के शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. एसपी (सिटी) प्रशांत वर्मा ने अभियुक्तों से पूछताछ की तो सुरेंद्र लवानिया और विजय कुमार की हत्या की जो कहानी सामने आई, कुछ इस तरह थी—

करीब 2 साल पहले प्रिंसिपल विजय कुमार झा की सिफारिश पर सुरेंद्र कुमार लवानिया ने 3 हजार रुपए प्रतिमाह किराए पर अपना एक स्कूल धीरज को दे दिया था. धीरज बीएससी करने के बाद बीएड कर रहा था. वह महत्वकांक्षा था. 2 माह पैसा देने के बाद उस ने किराया देना बंद कर दिया था.

किराया मांगने पर वह टालमटोल कर देता था. स्कूल के मालिक सुरेंद्र कुमार लवानिया उस पर किराया देने का दबाव बना रहे थे. उन्होंने कह दिया था कि किराया दो नहीं तो इस साल जुलाई से हम स्कूल वापस ले लेंगे.

लेकिन धीरज की नीयत खराब हो चुकी थी. वह स्कूल को कब्जाने के साथ ही किराया भी नहीं देना चाहता था. इस के लिए उस ने अपने भाइयों संदीप, नीरज और गांव के ही दोस्त विजय के साथ मिल कर एक खतरनाक योजना बना ली थी.

योजना के अनुसार उस ने स्कूल के मालिक लवानिया साहब को फोन पर किराया देने की बात कही. उस ने उन से कहा कि आप अपने साथ प्रिंसिपल विजय को भी ले आए ताकि उन के सामने रुपए दिए जाएंगे तो ठीक रहेगा. इस के साथ ही धीरज अपने भाइयों संदीप, धीरज और नीरज के साथ स्कूल पहुंच गया. पूर्वाह्न 11 बजे से पहले प्रधानाचार्य विजय कुमार झा अपनी बाइक से स्कूल पहुंच गए. उन्होंने स्कूल के औफिस में बैठ कर में धीरज से किराए के रुपए मांगे. इसी बीच धीरज और प्रिंसिपल विजय में कहासुनी हो गई. जिस के चलते दोनों में हाथापाई होने लगी. तभी धीरज ने अपने भाइयों और दोस्त की मदद से विजय को दबोच लिया और गला घोंट कर हत्या कर दी.

कुछ ही देर में स्कूल मालिक सुरेंद्र लवानिया भी धीरज के पास पहुंच गए. तब तक आरोपियों ने विजय की लाश कमरे में ही परदे के पीछे छिपा दी थी.

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सुरेंद्र ने धीरज से पूछा कि विजय कुमार झा अभी नहीं आए. तब धीरज ने मना कर दिया कि अभी नहीं आए. इस बीच हत्यारों ने विजय की बाइक भी छिपा दी थी.

बारीबारी से मार डाला दोनों को

सुरेंद्र लवानिया ने धीरज से किराए के रुपए मांगे तो धीरज फिर टालमटोल करने लगा. इस पर लवानिया भड़क गए. उन्होंने कहा कि तुम ने फोन पर रुपए देने की बात कही थी. यदि तुम रुपए नहीं दोगे तो स्कूल नहीं चला पाओगे. इस पर धीरज उन से भिड़ गया और हाथापाई करने लगा.

सुरेंद्र लवानिया अकेले थे और आरोपी 4 थे. इस बीच सुरेंद्र फर्श पर गिर गए. गिरने के दौरान उन्हें परदे के पीछे छिपी विजय की लाश दिखाई दी तो उन के मुंह से चीख निकल गई.

इस के बाद धीरज और उस के भाइयों के सिर पर खून सवार हो गया. भेद खुलने के डर से उन लोगों ने सुरेंद्र को पकड़ लिया और धीरज ने एक कपड़े से उन का गला घोंट दिया.

घटना के बारे में धीरज के पिता पप्पूराम को जानकारी हुई तो वह भी स्कूल आ गया. सुरेंद्र की कार हुंडई वरना को धीरज और उस का पिता पप्पूराम ले गए. कार को ये लोग सैंया में लादूखेड़ा के पास राजस्थान बार्डर पर खड़ी कर आए.

बाइक को संदीप का दोस्त विजय अपने साथ ले गया. इस के बाद 9 बजे धीरज और उस के भाई फिर स्कूल पहुंचे और 4 फीट लंबा और 4 फीट गहरा गड्ढा खोद कर दोनों शवों को उस में दफन कर दिया.

29 जून की सुबह एक टै्रैक्टर ट्रौली मिट्टी मंगवा कर स्कूल के कमरों के सामने डाल दी. जिस से किसी को शक न हो. मोबाइल, पर्स व अन्य कागजात भी आरोपियों ने जला कर शवों के साथ गडढे में दबा दिए थे. पुलिस ने जले मोबाइल फोन, कार, बाइक, गला घोंटने वाला कपड़ा, फावड़ा आदि भी बरामद कर लिए.

इस दोहरे हत्याकांड का परदाफाश करने वाली टीम में क्राइम ब्रांच प्रभारी अरुण बालियान, एसआई अशोक कुमार, रमित कुमार, प्रदीप कौशिक, अरुण, कांस्टेबल हृदेश, आदेश त्रिपाठी, अजीत, करणवीर, विवेक, प्रशांत कुमार, पंकज, दीपू शामिल थे. गुमशुदगी की रिपोर्ट को हत्या की रिपेर्ट  में तरमीम कर पुलिस ने चारों हत्यारोपियों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.   द्य

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

(कहानी सौजन्य मनोहर कहानी)

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