Manohar Kahaniya: 2 महिलाओं की बलि देकर बच्चा पाने का ऑनलाइन अनुष्ठान- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

पुलिस उन की कहानी सुन कर दंग रह गई. उन्होंने सिर पर हाथ रख लिया कि टेस्ट ट्यूब से बच्चा पैदा होने के जमाने में भी ऐसा अंधविश्वास लोगों के जेहन में भरा हुआ है.

इस अंधविश्वास के कारण हुए अपराध की कहानी की जड़ में संतान की चाहत निकली. जिस का फायदा उठाने वाले ढोंगी बाबा की भी भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण थी, जिस की वजह से एक नहीं बल्कि 2-2 महिलाओं की बलि दी गई थी.

भाभी ममता की गोद भरना चाहती थी मीरा

भावनात्मक दावपेंच और तांत्रिक अनुष्ठान के लिए अपनाए गए भयभीत करने वाले तरीके के प्रवाह में 5 लोग बह गए. उन में मीरा राजावत, उस का भाई बेटू भदौरिया, भाभी ममता, प्रेमी नीरज परिहार और तांत्रिक गिरवर था. इस में शिकार बनने वाली अनजान महिला आरती और नीरू थीं.

इस का पूरा तानाबाना मीरा द्वारा ही बुना गया था. उसी ने अपने निस्संतान भाईभौजाई को इस के लिए उकसाया था. हत्या का जुर्म स्वीकारने के बाद पछतावे में रोती हुई मीरा बोली, ‘‘साहब, भाई का घर आबाद करने की चाहत में तांत्रिक के कहने पर ही आरती और नीरू की बलि देनी पड़ी थी.’’

यह सब कैसे हुआ, उस की दिलचस्प मगर सवाल खड़ा करने के साथसाथ सावधान करने वाली कहानी इस प्रकार है—

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ग्वालियर के मोतीझील इलाके में रहने वाले मीरा के बड़े भाई बेटू भदौरिया की शादी 18 साल पहले ममता भदौरिया के साथ हुई थी. बेटू ट्रक ड्राइवर था. अभी तक वे निस्संतान थे. काफी डाक्टरी इलाज और मन्नतों के बावजूद ममता की गोद सूनी थी. एक दिन ममता ने अपनी संतानहीनता की पीड़ा मीरा को सुनाई. किसी भी तरह कहीं से कोई बच्चा गोद लेने या दूसरा उपाय करने के लिए कहा.

मीरा खुद तो अविवाहित थी, लेकिन वह संतानहीनता की पीड़ा को समझती थी. उस की जानपहचान कई तरह के लोगों से थी. ममता को उस के प्रेमी नीरज की अच्छी जानपहचान होने के बारे में भी मालूम था. इस कारण ममता ने मीरा को नीरज या किसी और के जरिए उपाय करने की गुजारिश की.

ममता के काफी अनुरोध के बाद मीरा ने इस बारे में नीरज से बात की. नीरज ने छूटते ही बताया कि वह एक ऐसे तांत्रिक को जानता है, जो कइयों की मनमानी संतान की चाहत को पूरा करवा चुका है, लेकिन इस पर वह मोटी फीस वसूलता है.

नीरज की विश्वास भरी बातें सुन कर मीरा को लगा जैसे उस के भाईभाभी की मुराद बस पूरी होने ही वाली है. उस ने तुरंत तांत्रिक से बात करने के लिए कहा.

अगले रोज ही नीरज ने मीरा को जानकारी दी कि हमें इस के लिए भैयाभाभी को तांत्रिक गिरवर यादव नाम के तांत्रिक के यहां ले कर जाना होगा. वहीं उन की जन्म कुंडलियों को देखने के बाद उपाय के बारे में सब कुछ तय किया जाएगा.

मीरा ने तुरंत यह जानकारी अपनी भाभी ममता को दी, ममता ने अपने पति बेटू को इस के लिए राजी कर लिया. इस पर आने वाले खर्च के बारे में बेटू ने जानना चाहा. मीरा कोई निश्चित राशि तो नहीं बता पाई, लेकिन इतना जरूर कहा कि नीरज के मुताबिक लाख, सवा लाख में उपाय हो जाना चाहिए.

इसी के साथ मीरा ने बेटू को 10-15 हजार रुपए साथ ले कर चलने को भी कहा, ताकि तांत्रिक की पैरपुजाई के तौर पर कुछ पेशगी दी जा सके.

तांत्रिक ने बताया संतान प्राप्ति का तरीका

चारों लोग तांत्रिक के पास गए. तांत्रिक ने बेटू और ममता की जन्मकुंडलियां देखने के बाद ध्यान लगा कर बताया कि ममता की किस्मत में औलाद सुख बहुत ही कमजोर है. थोड़ीबहुत उम्मीद की किरण बेटू में दिखती है. उसे ममता के करीब लाने के लिए एक तांत्रिक अनुष्ठान करना होगा.

तांत्रिक ने अनुष्ठान का समय भी निर्धारित कर दिया. बताया कि दोनों को औलाद सिर्फ उसी सूरत में हो सकती है, जब वे शरद पूर्णिमा की आधी रात में किसी निस्संतान महिला की बलि बगैर रक्त बहे दे दें.

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अनुष्ठान तक की बात सभी के लिए किसी उम्मीद की किरण से कम नहीं थी, लेकिन बलि की बात सुन कर सभी हैरानी में पड़ गए. जबकि तांत्रिक ने स्पष्ट कहा कि इस के बगैर वे संतान की उम्मीद छोड़ दें.

मीरा और नीरज ने इस के लिए तुरंत हामी भर दी. उस के बाद ममता और बेटू ने भी अपनी स्वीकृति दे दी. उन्होंने इस पर आने वाले खर्च और आगे की तैयारी के बारे में पूछा.

तांत्रिक गिरवर यादव ने बताया कि पूरे आयोजन पर कुल डेढ़ लाख रुपए का खर्च आएगा. बलि के लिए किसी को तैयार करने का खर्च और इंतजाम उन का होगा. इस काम के लिए वह श्मशान में लगातार 3 घंटे तक मंत्रजाप  अकेले करेंगे.

तांत्रिक की शर्त पर ममता, बेटू, मीरा और नीरज ने एक साथ हामी कर दी. अनुष्ठान के लिए समय मात्र एक हफ्ते का बचा था. महत्त्वपूर्ण तैयारी किसी वैसी निस्संतान औरत के तलाश की थी, जो उन की बिरादरी की न हो. इस के लिए नीरज को लगा दिया गया.

उस ने अपने जानने वालों से गुप्त तरीके से इस पर काम करना शुरू कर दिया. उसी क्रम में उसे पहचान वाली रोशनी से मदद मिल गई. उस ने आरती के बारे में बताया.

संयोग से आरती को नीरज पहले से जानता था. जल्द ही उन के बीच बात बन गई और नीरज ने आरती को 10 हजार रुपए में धार्मिक आयोजन में सहयोग करने के लिए तैयार कर लिया. नीरज आरती को एडवांस पैसा देने के बाद 20 अक्तूबर, 2021 की शाम 8 बजे के करीब आटो में बिठा कर बेटू की पुरानी छावनी स्थित आवास पर ले गया. वहां गिनेचुने लोग ही थे. उसे मिला कर कुल 5 लोग.

एक कमरे में अनुष्ठान की तैयारी की गई थी. आरती की खातिरदारी के साथसाथ उस के लिए खरीदे गए उपहार के कपड़े और सामान दिखाए गए, जो उसे आयोजन के बाद दिए जाने थे. आरती यह सब देख कर खुश हो गई.

औनलाइन अनुष्ठान में दी गई महिला की बलि

मीरा ने आरती को आयोजन के उद्देश्य और तरीके के बारे में समझाया. उस ने कहा कि उस के सहयोग से उस के भाईभाभी के घर में किलकारी गूंज उठेगी. इस का लाभ भविष्य में हम सभी को मिलेगा, ऐसा पुजारी ने कहा है. उसे एक धार्मिक अनुष्ठान में बेटू और ममता के साथ एक अनुष्ठान करने वाले महत्त्वपूर्ण सदस्य के तौर पर बैठना है.

अनुष्ठान का सारा काम औनलाइन होगा. पुजारी दूर रह कर हवन आदि के साथ मंत्रजाप करेंगे. यहां से हमें मोबाइल पर उन की आवाज के साथ सहयोग का जयकारा लगाना होगा.

इन तैयारियों के साथ अनुष्ठान का आयोजन रात के 11 बजे शुरू हो गया. तांत्रिक ने बलि देने का समय रात के एक बजे का तय किया था. आरती को इस का जरा भी आभास नहीं हुआ कि उस की बलि दी जानी है.

अगले भाग में पढ़ें- बाइक से सड़क पर गिर गई लाश

Manohar Kahaniya: बहन के प्यार का साइड इफेक्ट- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

Writer- आर. के. राजू

गगन अभी कुछ बोलता इस से पहले ही ममता बोली, ‘‘मैं हर्बल पार्क घूमने आई थी. पार्क की सुंदरता देख कर तुम्हारे साथ यहां गुजारे पुराने दिन याद आ गए. आ जाओ यहीं पार्क के रेस्तरां में एक बार फिर मिलते हैं. साथ बैठते हैं…’’

बीते दिनों की कई पुरानी बातें बता कर ममता ने गगन को काफी भावुक कर दिया था. वह ममता की बातें सुन कर पुराने दिनों के हसीन लम्हों में खो गया. ममता गगन का पहला प्यार थी.

गगन को ममता के साथ बिताए पल अचानक झिलमिलाने लगे थे. वह ममता से बोला,‘‘तुम बुलाओ और हम न आएं, ऐसा नहीं हो सकता.’’

थोड़ी देर में ही गगन हर्बल पार्क पहुंच गया. ममता जींस टौप पहने बेसब्री से उस का इंतजार कर रही थी.

गगन ने आते ही ममता को बाहों में भर लिया. ममता उस से छूटते ही बोली, ‘‘तुम अभी भी वही पुराने वाले गगन, जरा भी नहीं बदले…लेकिन अब तुम शादीशुदा हो आगे से ध्यान रखना हां. …अच्छा चलो पार्क के बाहर झाडि़यों की ओर चलते हैं. वहीं बैठ कर कुछ बातें करेंगे, आराम से.’’

गगन को झाडि़यों में ले गई ममता

गगन ने महसूस किया कि ममता में कोई बदलाव नहीं आया है, वही पहले की तरह चंचल अदाएं, कसक और अपनापन….

‘‘ थोड़ा रुको यार, बहुत दिनों बाद मिले हो तुम्हारे लिए कोल्ड ड्रिंक्स और नमकीन लाती हूं. वहीं पार्क में बैठ कर साथसाथ पीएंगे.’’

ममता के बोलने पर गगन बोला, ‘‘हांहां क्यों नहीं.’’

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‘‘ बस मैं कैंटीन गई और अभी आई.’’ बोलती हुई ममता कैंटीन की ओर जाने लगी.

तभी गगन हाथ खींचते हुआ बोला, ‘‘यह काम तुम्हारा नहीं मेरा है.’’

‘‘देखो मैं ने तुम्हें बुलाया है. समझो कि आज तुम हमारे मेहमान हो.’’ ममता कहती हुई गगन से हाथ छुड़ा कर तेजी से कैंटीन की ओर दौड़ी चली गई. गगन उसे देखता रह गया.

ममता यह सब योजना के मुताबिक कर रही थी. ममता की जिद के आगे गगन कुछ नहीं कर पाया. वह केवल ममता के साथ गुजारे पुराने लम्हों को ही याद करता रह गया.

‘‘ आओ चलें…’’ ममता बोली.

गगन एक बार फिर सपनों की दुनिया से बाहर आया. ममता के हाथ से कोल्ड ड्रिंक अपने हाथ में ले ली. ममता डिसपोजल गिलास और नमकीन का पैकेट संभालती हुई झाडि़यों की ओर बढ़ गई. कुछ पल में ही दोनों पार्क के मुख्य मार्ग से नजर नहीं आने वाली झाडि़यों के पीछे थे. गगन टायलेट का इशारा करते हुए उस ओर चला गया.

ममता के लिए इस से अच्छा मौका और क्या हो सकता था. उस ने तुरंत दोनों डिसपोजल गिलास निकाले. उन में दोतिहाई कोल्ड ड्रिंक भरा और अपने साथ लाई नशीले पदार्थ की पुडि़या एक गिलास में डाल दी. गगन के आते ही उस ने अपने बाएं हाथ का गिलास उस की ओर बढ़ा दिया.

‘‘नहींनहीं, इस हाथ से नहीं दाएं हाथ वाला दो. तुम्हारी बाएं हाथ से किसी को सामन देने की आदत अभी तक गई नहीं है.’’ गगन बोला.

‘‘क्या करूं गगन, मेरा दायां हाथ चलता ही नहीं है. तुम्हारे साथ शादी हो जाती तब  शायद यह आदत छूट जाती. अच्छा लो इसे पकड़ो.’’ कहती हुई ममता ने अपने दाएं हाथ का कोल्ड ड्रिंक भरा गिलास आगे कर दिया. गगन ने गिलास हाथ में ले लिया.

उस से एक घूंट पीने के बाद ममता मंदमंद मुसकराई. उस की मुसकान में कुटिलता छिपी थी, कारण वह अपनी योजना में कामयाब हो रही थी. नशीला पदार्थ मिला कोल्ड ड्रिंक का गिलास गगन के हाथ में था और वह नमकीन के साथसाथ घूंटघूंट कर चुस्की लेने लगा था.

कुछ समय में ही गगन बोला. ‘‘ममता… म… ममता,  मुझे तुम्हारा चेहरा साफ क्यों नहीं दिख रहा.’’ गगन की आवाज में लड़खड़ाहट थी. ममता समझ गई कि उस पर नशा हावी हो रहा है.

ममता ने प्रेम भरी हमदर्दी दर्शाते हुए उस का सिर अपनी गोद में ले लिया. उस के बालों में अंगुलियां घुमाने लगी. कुछ पल में ही गगन पूरी तरह से बेहोश हो चुका था. ममता ने तुरंत थोड़ी दूर दूसरी झाड़ी के पीछे छिपे वीरू को इशारा किया.

इशारा पाते ही ताक में बैठा वीरू ममता के पास आ गया. ममता वहां से उठती हुई बोली, ‘‘शिकार को संभालो, मैं ने अपना काम कर दिया, आगे का काम तुम्हारा.’’

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उस के बाद नंदिनी और प्रदीप को भी इस की जानकारी दे दी कि उस का काम पूरा हो चुका है. हालांकि तब तक गगन के मुंह से केवल एक ही बड़बड़ाने की आवाज निकल रही थी, ‘‘ममता क्या हुआ है मुझे…’’

‘‘कुछ नहीं तुम्हें थोड़ा चक्कर आ गया है, अभी तुम्हें डाक्टर के यहां ले जाने का इंतजाम करवाती हूं.’’ ममता बोली. ममता उसे सहारा देते हुए वीरू के साथ उस की मोटरसाइकिल तक ले गई. वहां प्रदीप पहले से मौजूद था.

गगन को प्रदीप और वीरू ने पकड़ कर मोटरसाइकिल पर बिठा दिया. वीरू मोटरसाइकिल चलाने के लिए बैठ गया, जबकि प्रदीप गगन को गिरने से थामे हुए था.

वीरू और प्रदीप गगन को जयंतीपुर ले गए. वहां एक खाली प्लौट में उन दोनों ने गगन को जबरदस्ती शराब पिलाई. फिर गगन के गले में पड़े गमछे से गला घोंट कर उस की हत्या कर दी.

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Satyakatha: पुलिसवाली ने लिया जिस्म से इंतकाम- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

शीतल के इंस्टाग्राम पर पुलिस को एक मर्द का चेहरा और एक पोस्ट नजर आई, जिस का नाम धनराज यादव था. पुलिस ने शीतल के परिचितों को खंगालना शुरू किया तो जानकारी मिली कि धनराज यादव पेशे से एक बस ड्राइवर है.

शीतल की इंस्टाग्राम पर धनराज से दोस्ती हुई थी. लेकिन हैरानी की बात यह थी कि शीतल ने धनराज से दोस्ती करने के 5 दिनों बाद ही उस से शादी कर ली. यह बात 2019 के आखिर की है.

यह अपने आप में हैरानी की बात जरूर थी. इंसपेक्टर लांडगे को लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं धनराज यादव ने ही अपनी पत्नी के साथ हुए यौन शोषण का बदला लेने के लिए शिवाजी की सड़क हादसा कर हत्या कर दी हो. वह पेशे से ड्राइवर भी था.

पुलिस को लगने लगा कि कातिल अब उस से एक हाथ की दूरी पर है. गुपचुप तरीके से शीतल के जानकारों से पुलिस ने पता कर लिया कि धनराज तमिलनाडु का रहने वाला है. शादी के सिर्फ एक महीने बाद ही धनराज रहस्यमय तरीके से अचानक शीतल को छोड़ कर तमिलनाडु चला गया. उस के बाद धनराज को किसी ने नहीं देखा.

डीसीपी शिवराज पाटिल को केस की इस नई जानकारी का पता चलने पर एक टीम को तमिलनाडु भेज दिया गया. एक सप्ताह तक सुरागरसी करतेकरते पुलिस टीम आखिर तमिलनाडु में धनराज के घर तक पहुंच गई और उसे पकड़ कर मुंबई ले आई.

हालांकि पुलिस ने नैनो कार में बैठे जिन 2 लोगों की सीसीटीवी फुटेज हासिल की थी, उन से धनराज का चेहरा कहीं भी मेल नहीं खाता था. लेकिन फिर भी उस से पूछताछ का सिलसिला शुरू हुआ तो नई जानकारी मिली.

उस ने कुबूल कर लिया कि उस ने इंस्टाग्राम पर कांस्टेबल शीतल से दोस्ती करने के बाद 5 दिनों में ही शादी कर ली थी, लेकिन एक महीने के बाद ही वह शीतल को छोड़ कर अपने गांव चला गया था.

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‘‘क्यों, ऐसा क्यों किया तुम ने?’’ इंसपेक्टर लांडगे ने सवाल किया.

‘‘सर, मैं बहुत डर गया था. पहले तो दोस्ती करने के बाद इतनी जल्द मेरे जैसे ड्राइवर से एक पुलिस वाली के शादी करने का राज ही मेरी समझ में नहीं आया था. लेकिन शादी के 5 दिन बाद ही जब शीतल ने मुझ से एक खतरनाक काम करने के लिए कहा तो मेरी समझ में आ गया कि उस ने अपना काम कराने के लिए मुझ से शादी की है और मुझे हथियार बनाना चाहती है.’’ धनराज ने सहमते हुए एकएक राज उगलना शुरू कर दिया.

उस ने बताया कि शीतल ने उसे शिवाजी सानप द्वारा अपने यौनशोषण की कहानी सुना कर भावुक कर दिया था. इस के बाद शीतल ने उस से कहा कि अगर वह उस से प्यार करता है तो वह अपनी पत्नी के साथ हुई नाइंसाफी का बदला ले और शिवाजी को ट्रक से कुचल कर मार दे.

यह सुन कर धनराज बहुत डर गया. क्योंकि वह मुंबई शहर में रोजीरोटी कमाने के लिए आया था. ऐसे में एक कत्ल वह भी पुलिस वाले का… ऐसा सुनते ही धनराज के रोंगटे खड़े हो गए.

उस ने शीतल को समझाया, ‘‘शीतल, जो हुआ उसे भूल जाओ. यह सब जान कर भी तुम्हारे लिए मेरा प्यार कम नहीं हुआ है. वैसे भी यह काम बहुत रिस्क वाला है मैं ने जीवन में कभी ऐसा काम नहीं किया है. सोचो मैं ने यह काम कर भी दिया तो एक न एक दिन भेद खुल जाएगा. फिर मैं और तुम दोनों ही पकड़े जाएंगे.’’

लेकिन शायद शीतल के ऊपर शिवाजी से इंतकाम लेने का जुनून इस कदर सवार था कि वह आए दिन धनराज पर दबाव डालने लगी कि चाहे जैसे भी हो, उसे शिवाजी की हत्या करनी ही होगी.

वह तो पेशे से ड्राइवर है इसलिए किसी को भी शक नहीं होगा. अगर पकड़े भी गए तो केवल लापरवाही से हुई दुर्घटना का केस चलेगा.

इसी तरह 3 सप्ताह गुजर गए. धनराज अजीब पशोपेश में था. क्योंकि वह दिल से नहीं चाहता था कि ऐसा गलत काम करे. उसे अब इस बात का भी डर सताने लगा था कि अगर वह लगातार शीतल का काम करने से मना करता रहा तो वह कहीं उसे पुलिस विभाग में अपनी तैनाती का फायदा उठा कर किसी झूठे आरोप में फंसवा कर जेल न भिजवा दें.

उस के सामने अब यह भी साफ हो गया था कि शीतल ने उस से शादी अपना यह काम करवाने के लिए ही की थी. लिहाजा एक दिन डर की वजह से धनराज अपनी नौकरी छोड़ कर सारा सामान समेट कर अपने गांव तमिलनाडु भाग गया.

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धनराज से पूछताछ के बाद पुलिस एक बार फिर अंधेरे मोड़ पर खड़ी हो गई. क्योंकि पुलिस पहले ही तसदीक कर चुकी थी कि 2019 में तमिलनाडु जाने के बाद धनराज कभी अपने राज्य से बाहर या मुंबई नहीं गया था.

‘‘अच्छा, तुम ये दोनों फोटो देख कर बताओ कि इन में से किसी को पहचानते हो? ये उस कार में बैठे लोगों की फोटो हैं जिस से शिवाजी का ऐक्सीडेंट हुआ था.’’

धनराज से पूछताछ के बाद निराश इंसपेक्टर लांडगे ने धनराज को सीसीटीवी से हासिल हुई दोनों संदिग्धों की फोटो दिखाईं तो धनराज बोला, ‘‘अरे सर, ये तो विशाल है. 2019 में शीतल से शादी के बाद मैं जिस सोसाइटी में रहता था, उसी सोसाइटी के चौकीदार बबनराव का बेटा है ये.’’

पूरी तरह से निराश हो चुके इंसपेक्टर लांडगे के चेहरे पर धनराज का जवाब सुनते ही अचानक चमक आ गई. अब उन्हें लगने लगा कि शिवाजी सानप हत्याकांड की गुत्थी सुलझ जाएगी.

धनराज की इस गवाही से जब डीसीपी पाटिल को अवगत कराया गया तो उन्होंने तत्काल पुलिस कमिश्नर को इस पूरे केस की जानकारी दे कर शीतल की गिरफ्तारी का आदेश हासिल कर लिया.

12 सितंबर की रात पुलिस ने ताबड़तोड छापेमारी कर पहले शीतल को हिरासत में लिया, उस के बाद उसी रात विशाल बबनराव जाधव को. उन दोनों से पूछताछ के बाद गणेश लक्ष्मण चव्हाण उर्फ मुदावथ को भी हिरासत में ले लिया.

इन लोगों के पास से पुलिस ने 3 मोबाइल फोन, एक कार और कुछ कपड़े बरामद किए. तीनों ने कड़ी पूछताछ में शिवाजी सानप की हत्या का गुनाह कुबूल कर लिया. शिवाजी माधवराव सानप की सड़क दुर्घटना में मौत का मामला पनवेल पुलिस ने भादंसं की धारा 302 व 201 में दर्ज कर लिया.

अगले दिन तीनों को कोर्ट में पेश करने के बाद 7 दिन की पुलिस रिमांड पर लिया गया. इस दौरान पुलिस ने घटना की एकएक कडि़यों को जोड़ कर तीनों आरोपियों के खिलाफ कड़े सबूत एकत्र करने का काम किया.

इन से की गई पूछताछ के बाद इस अपराध की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

शीतल पंचारी महाराष्ट्र के जलगांव की रहने वाली थी. स्नातक की पढ़ाई करने के बाद उसे महाराष्ट्र पुलिस में नौकरी मिल गई. 28 साल की शीतल 4 साल नौकरी के बाद जब 2018 में नेहरू नगर थाने में तैनात हुई तो उस की दोस्ती जल्द ही अपने ही थाने में तैनात हैडकांस्टेबल शिवाजी माधवराव सानप से हो गई.

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दोनों की दोस्ती जल्द ही प्यार में बदल गई और दोनों के बीच जिस्मानी रिश्ता भी कायम हो गया. दोनों के बीच लंबे समय तक प्यार की कहानी चली.

उन दोनों के रिश्ते के बारे में अब विभाग में भी चर्चा होने लगी थी. शीतल के साथ काम करने वाले साथी पुलिसकर्मी भी अब उसे शिवाजी का माल कह कर चिढ़ाने लगे थे.

ऐसे में बदनामी बढ़ती देख एक दिन शीतल ने शिवाजी से कहा कि हम दोनों के संबंधों को ले कर अब लोग अंगुलियां उठाने लगे हैं, इसलिए हमें अब शादी कर लेनी चाहिए.

यह सुनते ही शिवाजी को झटका लगा. क्योंकि वह तो पहले से ही शादीशुदा था, उस के 2 बच्चे भी थे. लिहाजा शादी की बात सुनते ही शिवाजी ने शीतल को डपट दिया और बोला, ‘‘संबध रखने हैं तो रखो नहीं तो छोड़ दो. लेकिन मैं किसी भी हालत में शादी नहीं कर सकता. क्योंकि मैं अपनी पत्नी से बेहद प्यार करता हूं.’’

शादी से इंकार की बात सुनते ही शीतल शिवाजी पर बिफर पड़ी. क्योंकि शिवाजी ने ऐसी कड़वी बात कह दी थी, जिस ने शीतल के तन, मन और आत्मा को बुरी तरह झुलसा दिया था.

शिवाजी ने तंज कसा था, ‘‘शादी से पहले जो औरत एक हैडकांस्टेबल के नीचे लेट सकती है वह अपना काम निकलवाने के लिए तो न जाने कितने बड़े अफसरों के नीचे लेटेगी. अपनी प्यार करने वाली बीवी को छोड़ कर ऐसी औरत से कौन शादी करेगा?’’

उस दिन शिवाजी और शीतल में खूब लड़ाई हुई और उसी दिन से दोनों के बीच दूरियां बढ़ गईं.

चूंकि शीतल के शिवाजी से संबंधों की बात पूरे थाने को और विभाग के दूसरे लोगों को भी पता थी. इसलिए खुद को पाकसाफ दिखाने के लिए शीतल ने पहले उस के खिलाफ उसी नेहरू नगर थाने में छेड़छाड़ की धारा 354 तथा उस के बाद कल्याण थाने में बलात्कार की धारा 376 में शिकायत दर्ज करवा दी थी.

Satyakatha- दिल्ली: शूटआउट इन रोहिणी कोर्ट- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

24सितंबर, 2021. शुक्रवार का दिन था. दोपहर के करीब एक बजे का टाइम था. दिल्ली में स्थित रोहिणी की कोर्ट में हर दिन की तरह ही काम हो रहा था. हर कोर्टरूम में अदालती काररवाई चल रही थी. कोर्ट परिसर की बिल्डिंग के अंदर और बाहर दोनों ही एरिया में वकीलों, पीडि़तों, फरियादियों, पुलिस वालों इत्यादि की भीड़ जमा थी. हर कोई अपनेअपने काम में व्यस्त था.

बिल्डिंग के अंदर कोर्ट रूम नंबर 207 के बाहर भी ऐसा ही कुछ माहौल था. दोपहर करीब सवा बजे के आसपास एडिशनल सेशन जज गगनदीप सिंह अपने कोर्टरूम में दाखिल हुए तो रूम में बैठे सभी लोग उन के सम्मान में खड़े हुए और धीमी आवाज में हो रही खुसफुसाहट एकदम से शांत हो गई.

रूम में दाखिल होते ही उन्होंने कोर्टरूम में सभी लोगों पर अपनी नजर घुमाई और ये सुनिश्चित किया कि सब ठीक तो है.

नजर घुमाने के बाद न्यायाधीश ने अपनी जगह पर बैठते हुए सभी लोगों को हाथ से बैठने का इशारा किया और अपनी कुरसी पर बैठ गए. उस समय कोर्टरूम में बाएं और दाएं दोनों ओर कठघरों के पास वकील की ड्रैस पहने 2 व्यक्ति चुपचाप खड़े थे.

कमरे के बीचोबीच नीले रंग की कमीज और काली पैंट में एक शख्स 2 पुलिस वालों के साथ खड़ा था. उस के हाथों में हथकडि़यां लगी थीं और वह ठीक न्यायमूर्ति के सामने ही खड़ा था.

यह शख्स मशहूर गैंगस्टर जितेंद्र मान उर्फ गोगी था, जिस पर दिल्ली और हरियाणा पुलिस ने एक समय पर कुल मिला कर 6 लाख रुपए का ईनाम घोषित किया हुआ था. गोगी पर जून 2018 में दिल्ली पुलिस ने मकोका एक्ट लगा दिया था, जिस की सुनवाई उस दिन होने वाली थी. गोगी इतना बड़ा और खतरनाक गैंगस्टर था कि उसे स्पैशल सेल और थर्ड बटालियन की कस्टडी में कोर्ट में लाया गया था.

करीब 2 मिनट के बाद सामने कुरसियों पर बैठे लोगों में से एक वकील अपने हाथों में एक भारीभरकम मोटी सी फाइल लिए अपनी कुरसी से उठा और अपनी फाइल में से केस का वारंट निकाल कर जज साहब की ओर आगे बढ़ा दिया.

उस का दिया वारंट अभी जज के हाथों में पहुंचा ही था कि दोनों कठघरों के पास खड़े काले कोट में वकील जैसे दिखाई देने वाले दोनों लोग अचानक से गोगी की तरफ आगे बढ़े और अपनी कमर में पीछे की ओर से पिस्तौल निकाल कर गोगी की छाती पर तान दी.

उन्होंने गोगी की छाती पर अपनी पिस्तौल तान कर गोली चला दी. वकील के काले कोट में दोनों लोगों ने एकएक कर करीब कुल मिला कर आधा दरजन गोलियां चला कर उस के शरीर को भेद दिया, जिस से वह वहीं ढेर हो कर जमीन पर गिर पड़ा.

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ये सब अचानक से और इतनी जल्दी हुआ कि किसी को संभलने का मौका तक नहीं मिला. कोर्टरूम में अचानक से अफरातफरी का माहौल बन गया. सब के दिलों में दहशत फैल गई थी. कोर्टरूम के आगे और पीछे के गेट से जितने लोग अपनी जान बचाने के लिए निकल सकते थे, वे जल्दीजल्दी निकल गए.

लेकिन कोर्टरूम में अभी भी गोलियां चलाने वाले दोनों हमलावर, पुलिस की टीम (जो गोगी को कोर्टरूम में ले कर आए थे), अन्य पुलिसकर्मी, न्यायमूर्ति गगनदीप सिंह और उन

के साथ कुछ और लोग कोर्टरूम में ही फंसे थे.

दोनों हमलावर कोर्टरूम से भाग कर निकल न सकें, इस के लिए अंदर मौजूद पुलिसकर्मियों ने कोर्टरूम के दोनों दरवाजों को बंद कर दिया. कोर्टरूम में हर कोई खुद को सुरक्षित करने के लिए जिसे जहां जगह मिली, वह उसी के पीछे या नीचे छिप कर चलने वाली गोलियों से खुद को बचाने लगा. न्यायाधीश गगनदीप सिंह भी अपनी जान बचाने के लिए अपनी डेस्क के नीचे छिप गए.

हमलावरों ने गोगी पर गोलियां चलाने के बाद भागने के लिए जब कोर्टरूम के दरवाजों पर नजर घुमाई तो देखा कि दोनों गेट बंद थे. यह देख कर वे और भी अंधाधुंध गोलियां बरसाने लगे. ऐसे में रूम में मौजूद पुलिसकर्मियों ने भी जवाबी काररवाई करते हुए उन दोनों हमलावरों पर गोलियां चलाईं.

पुलिस की गोलियों से बचने के लिए दोनों हमलावरों ने अपनेअपने कोनों में कुरसियों के पीछे छिप कर पोजीशन बना और पुलिस पर गोलियां चलाने लगे थे. पुलिसकर्मी भी खुद को सुरक्षित रखते हुए और बाकी लोगों की जान बचाने के लिए जल्द से जल्द उन हमलावरों को ढेर कर देना चाहते थे.

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उधर दूसरी ओर कोर्टरूम के बाहर और पूरे अदालत परिसर में गोलियों की आवाजें गूंजने लगी थीं. लोग अपनी जेब से मोबाइल फोन निकाल कर उस घटना का वीडियो बनाने को आतुर थे. अदालत परिसर में जहांजहां तक गोलियां चलने की आवाजें पहुंच रही थीं, लोग उसे रिकौर्ड कर रहे थे.

जो रिकौर्ड नहीं कर रहे थे, वह जल्द से जल्द अदालत से बाहर निकल कर खुद की जान बचाना चाहते थे. उस समय गोलियों की धायंधायं आवाजें सुन कर जिला अदालत रोहिणी कोर्ट के हर कोने में हर व्यक्ति के दिल में दहशत फैल गई थी.

वहीं कोर्टरूम में गोलियां चलने की आवाजें थमने का नाम ही नहीं ले रही थीं. हमलावर और पुलिसकर्मी दोनों ओर से एकदूसरे पर फायरिंग की जा रही थी.

अगले भाग में पढ़ें- 17 साल की उम्र में एक दुर्घटना में उस का दाहिना कंधा घायल हो गया था

Manohar Kahaniya: आस्था की चोट- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

Writer- शाहनवाज 

लेकिन अब जब अरुण हर रात को सोने अपनी फैक्ट्री चला जाता था तो आस्था को भी अरुण पर शक होने लगा था. आस्था के मन में पति के खिलाफ शक उठता कि अरुण का भी कहीं बाहर कोई चक्कर तो नहीं चल रहा.

आस्था के मन में पति के खिलाफ शक पैदा होने के बाद से बीच में कुछ समय के लिए उन दोनों के बीच झगड़े होने बंद हो गए थे. लेकिन अरुण उस के बावजूद भी रात को सोने के लिए अपनी फैक्ट्री में ही चला जाता था.

उसे फैक्ट्री में सोने, शराब पीने, सिगरेट फूंकने इत्यादि की मानो लत सी लग गई थी. उस के ऐसा करने पर आस्था के मन में अरुण के लिए और भी ज्यादा संदेह पैदा होने लगा था.

इस बीच वह अरुण को उस की संपत्ति अपने बच्चों और उस के नाम करने के लिए दबाव बनाने लगी. आस्था को लगता था कि यदि अरुण का बाहर किसी और लड़की से संबंध हुआ तो कहीं वह उसे और उस के बच्चों को बेदखल न कर दे.

दोस्त से करा दी पति की पिटाई

संपत्ति ट्रांसफर करने की बात से अरुण खीझ उठता था. वह जीते जी यह नहीं चाहता था कि उस की मेहनत से कमाई हुई संपत्ति को वह आस्था के नाम कर दे.

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इन सारी बातों को ले कर आस्था और अरुण के बीच एक बार फिर से 28 सितंबर, 2021 की रात को झगड़ा हुआ. दोनों के बीच झगड़ा इतना ज्यादा बढ़ गया कि अरुण ने आस्था की पिटाई कर दी.

उसी रात डा. आस्था ने अपने उसी दोस्त को फोन कर के अरुण के साथ हुई मारपीट के बारे में सब कुछ बता दिया और वह भी अरुण के सामने.

यह देख कर अरुण पूरी तरह से अपने होश खो चुका था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. देखते ही देखते कुछ ही पलों में आस्था का प्रेमी उन के घर पहुंच गया और उस ने बच्चों के सामने आस्था पर हाथ उठाने के लिए अरुण को खूब मारापीटा.

इस घटना के बाद अरुण का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने मन ही मन आस्था को जान से मारने का फैसला कर लिया. मार खा कर वह फैक्ट्री में विकास से मिला और उसे सारी घटना बताते हुए आस्था को जान से मारने के अपने विचार के बारे में भी बताया.

विकास बेशक काम सिक्युरिटी गार्ड का करता था लेकिन वह कई कौन्ट्रैक्ट किलर्स को जानतापहचानता था, जो पैसों के लिए किसी की भी जान ले सकते थे.

विकास ने अरुण को 2 कौन्ट्रैक्ट किलर्स से मिलवाया, अशोक उर्फ टशन और पवन. दोनों से बातचीत कर अरुण ने एक लाख रुपए में पत्नी को जान से मारने का कौन्ट्रैक्ट दे दिया.

अरुण ने 60 हजार रुपए एडवांस में दे कर दिन और टाइम तय कर लिया. 13 अक्तूबर, 2021 की रात को वे चारों लोग अरुण की गाड़ी में सवार हो कर उस के घर पहुंचे.

उस के बाद अरुण ने बच्चों को डराधमका कर टीवी वाले कमरे में बंद कर के टीवी का वौल्यूम बढ़ा दिया और तीनों के साथ मिल कर पत्नी आस्था की गला दबा कर हत्या कर दी. हत्या करने के बाद उन्होंने उस की लाश छत के हुक से लटका दी ताकि मामला आत्महत्या का लगे.

हत्या के बाद हत्यारे अपनेअपने रास्ते निकल गए और अरुण बच्चों को ले कर घर पर ताला लगा कर अपने भाई तरुण के घर पहुंच गया. उस ने अपने बड़े भाई तरुण को आस्था की हत्या की बात बता दी और अपने बच्चों और चाबियां सौंप कर दिल्ली के लिए निकल गया.

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कौन्ट्रैक्ट किलर्स को बाकी के पैसे उसे वहीं देने थे. पैसे देने के बाद उस के पास अपने पैसे खत्म हो गए थे. वह पैसे लेने के लिए कासिमपुर आया था और विकास को फोन करने के लिए अपना फोन चालू किया, तभी उस की लोकेशन पुलिस को पता चल गई और वह पकड़ा गया.

अभी तक डा. आस्था अग्रवाल की हत्या के 4 आरोपी पकड़े जा चुके हैं. पहले तरुण अग्रवाल, फिर अरुण अग्रवाल, सिक्युरिटी गार्ड विकास और कौन्ट्रैक्ट किलर पवन. पांचवां आरोपी अशोक उर्फ टशन अभी भी पुलिस की गिरफ्त में नहीं आ पाया, वह कथा लिखे जाने तक फरार था.

Satyakatha: ऑपरेशन करोड़पति- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

वीरेंद्र कुमार (25 वर्ष) को गोवा के लोग वीरेंद्र बिहारी कहते थे. कारण वह बिहार के मधुबनी के एक गांव का रहने वाला था. उस के घर की आर्थिक स्थिति बहुत ही बिगड़ी हुई थी. पढ़ाई के नाम पर वह 8वीं पास था. उसे किसी भी तरह की नौकरी मिलने की उम्मीद कतई नहीं थी. काम के नाम पर वह खेतीकिसानी जानता था. इसलिए कुछ महीने पहले ही रोजीरोटी की तलाश में वह गोवा आया था.

गोवा के उत्तरी इलाके में वह अपने कुछ परिचितों के यहां रह रहा था. उन की मदद से ही वह गाडि़यों की देखरेख के लिए एक गैरेज में लग गया था.

वीरेंद्र की सीखने की ललक थी. किसी भी काम को वह बहुत जल्द सीख लेता था. गाडि़यों की देखरेख करते हुए, गाड़ी से संबंधित वह कई तरह के काम करने में माहिर हो गया था. कुछ ही सालों में उसे गाडि़यों की अच्छी जानकारी भी हो गई थी. गाड़ी खोलना, गाड़ी चलाना आदि से ले कर इंजन की आवाज पहचान कर उस की खराबी के बारे मालूम कर लेना अच्छी तरह जान गया था.

उस ने ड्राइविंग लाइसैंस भी बनवा लिया था. उस के बाद मानो उस के सपनों को पंख लग गए थे. गैरेज का काम छोड़ कर टैंपो की ड्राइवरी करनी शुरू कर दी थी.

इस काम की वजह से उस की जानपहचान निशांत मोगन कैंडोलिम से हो गई थी. वह भी उसी की उम्र का था. वह मंगलूर का रहने वाला था. शहर के चर्चित एक शोरूम आशीर्वाद के मालिक नवीन पटेल के यहां कई सालों से काम कर रहा था.

निशांत को हमेशा माल लानेपहुंचाने के लिए टैंपो की जरूरत पड़ती थी. इसी कारण वह वीरेंद्र के संपर्क में आया. उस ने वीरेंद्र का टैंपो किराए पर लेना शुरू कर दिया. उस का काम, समय की पाबंदी और स्वभाव मालिक को पसंद आया.

इस तरह वीरेंद्र भी शोरूम या गोदाम में अकसर सामान की डिलीवरी के लिए जाने लगा. उन में गहरी दोस्ती होने का यही कारण था. जब कभी मौका मिलता तो दोनों इकट्ठे बैठते थे. खातेपीते थे. मौजमस्ती करते थे. एकदूसरे से अपनी बातें शेयर किया करते थे.

निशांत के अलावा 25 वर्षीय सुरजीत केसकर, 28 वर्षीय मंजूनाथ और 51 वर्षीय सुभाष भोसले भी कभीकभार वीरेंद्र बिहारी के टैंपो किराए पर लिया करते थे. सुभाष और सुजीत महाराष्ट्र में कोल्हापुर के रहने वाले थे.

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इन के परिवार में पुश्तैनी काश्तकारी का काम होता था, जिस से गुजरबसर करना मुश्किल हो रहा था. इस कारण वे भी कामधंधे की तलाश में गोवा आ गए थे. उन का तीसरा साथी मंजूनाथ दक्षिणी गोवा के कांदोली गांव का रहने वाला था.

उसे गोवा के चप्पेचप्पे की अच्छी जानकारी थी. दुर्गम से दुर्गम और निर्जन दूरदराज के इलाके के बारे में अच्छी तरह से जानता था. वह भी अच्छी कमाई के मकसद से गांव छोड़ कर गोवा शहर आया था.

पांचों की दोस्ती के केंद्र में वीरेंद्र बिहारी था. सभी उसे इसलिए भी पसंद करते, क्योंकि वह उन्हें पैसा कमाने के नएनए आइडिया देता था. वह खुद भी खूब पैसा कमाना चाहता था.

जब कभी पांचों मिलते तब पैसे कमाने की योजना बनाया करते थे. कोरोना के कहर से गोवा भी तबाह हो गया था. शहर की स्थिति खराब हो गई थी. शहर के अधिकतर कामधंधे और रोजगार ठप पड़ गए थे.

इस का सब से अधिक प्रभाव दिहाड़ी पर काम करने वालों पर पड़ा था. काफी लोग अपने गांव चले गए, किंतु कोरोना कम होने के बाद जब वे वापस लौटे तब उन में से कुछ को ही काम मिल पाया. काम नहीं पाने वालों में ये पांचों दोस्त भी थे.

वीरेंद्र बिहारी शातिर दिमाग का था. जब उसे कोई ढंग का काम नहीं मिला, तो उस ने वाहन की चोरियां और राहजनी का काम शुरू कर दिया, जिस से उस के खिलाफ थाने में कई शिकायतें भी दर्ज हो गई थीं.

एक के बाद एक जब कई शिकायतें उस के खिलाफ थानों में दर्ज हुईं तो वह कई बार गिरफ्तार भी हुआ. लेकिन किसी तरह जमानत पर छूट कर जेल से बाहर आ गया. इस से वह समझ गया था कि किस तरह के मामले में कैसे छूटा जा सकता है और किस में कितना खर्च कर बचा जा सकता है.

वीरेंद्र बिहारी के मन में एक लंबा हाथ मारने का विचार आया. लेकिन यह काम उस के अकेले के वश का नहीं था. उस की योजना के मुताबिक उसे और लोगों की जरूरत थी.

वह अपनी योजना को सही तरह से सफल बनाने के लिए एक टीम बनाना चाहता था. इस बारे में उस ने सब से पहले निशांत से बात की. उस ने उसे अपनी योजना के बारे में बताया.

पहले तो निशांत उस की योजना सुनते ही घबरा गया. उस ने इनकार कर दिया. कहा कि इस काम में उस का बनाबानाया काम छूट जाएगा.

तब वीरेंद्र ने उस से कहा, ‘‘हमें इस काम में मोटे पैसे एक बार में ही मिल जाएंगे तो कोई दूसरा काम करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.’’ यह बात निशांत की समझ में आ गई और उस ने इस काम में हामी भर दी.

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उस के बाद दोनों ने मिल कर टीम को पूरा करने का काम शुरू किया. उन्होंने बाकी के 3 दोस्तों से बात की. सभी उन की योजना सुन कर निशांत की तरह ही घबरा गए थे. लेकिन जब उन्हें समझाया गया कि इस में कानून और पुलिस से कैसे बचा जा सकता है, तब वे भी राजी हो गए. फिर उन्हें एक झटके में लाखों रुपए आने का लालच भी था.

इस तरह से पूरी योजना की तैयारी के बाद उन्हें एक ऐसी पार्टी की तलाश थी, जो मालदार हो और उन की थोड़ी सी धमकी पर ही आसानी से बात मान ले. उन की योजना किसी का अपहरण कर मोटी फिरौती वसूलने की थी.

ऐसे में घूमफिर कर के उन की नजर में जिस व्यक्ति की तसवीर उभर कर सामने आई, वह निशांत के मालिक नवीन पटेल की थी.

निशांत कई सालों से उन के यहां काम कर रहा था. इसलिए उसे उन के घर, परिवार के लोगों के अलावा उन की अमीरी के बारे में अच्छी जानकारी थी.

योजना के अनुसार, उन्होंने नवीन पटेल के औफिस की अच्छी तरह से रेकी की. इस काम को निशांत ने किया. साथ में वीरेंद्र की भी मदद ली. रेकी के बाद दिन और समय तय कर वीरेंद्र बिहारी ने एक एसयूवी कार किराए पर ली

अगले भाग में पढ़ें- मीनाक्षी कांपती आवाज में क्या बोली

Crime Story: पति पत्नी का परायापन

लेखक- प्रफुल्लचंद्र सिंह

पीं.इसी प्रयास में शारदा प्रसाद मिश्रा नाम के व्यक्ति से बात हुई. उस ने बताया कि यह नंबर उस के भाई पंकज मिश्रा का है जो नोएडा के भंगेल गांव में रहता है. पुलिस ने उसे अस्पताल बुला लिया ताकि लाश की शिनाख्त हो सके. शारदा प्रसाद अस्पताल पहुंच गया. पुलिस ने जब उसे उस युवक की लाश दिखाई तो उस ने उस की शिनाख्त अपने छोटे भाई पंकज मिश्रा के तौर पर कर दी. उस ने पूछताछ के दौरान थानाप्रभारी भुवनेश कुमार को बताया कि पंकज जेपी कौसमोस सोसायटी में इलैक्ट्रिशियन का काम करता था और घटना के समय अपने काम पर जा रहा था. शिनाख्त हो जाने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल भेज दी गई.

इस के बाद थानाप्रभारी भुवनेश कुमार फिर से वारदात वाली जगह सेक्टर-132 पहुंचे. उन्होंने आसपास के लोगों से पूछताछ की तो कुछ लोगों ने बताया कि बाइक सवार 2 लोगों ने साइकिल सवार एक युवक को गोली मारी थी.

थानाप्रभारी भुवनेश कुमार ने शारदा प्रसाद मिश्रा की शिकायत पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ पंकज मिश्रा की हत्या का मामला दर्ज कर लिया. एसएसपी वैभवकृष्ण के निर्देश पर थानाप्रभारी भुवनेश कुमार टीम के साथ केस की जांच करने में जुट गए.

पुलिस ने शुरू की जांचपड़ताल

केस की गुत्थी सुलझाने के लिए उन्होंने जांचपड़ताल शुरू की. क्योंकि बदमाशों ने उस से किसी प्रकार की लूटपाट नहीं की थी, इसलिए इस संभावना को बल मिल रहा था कि शायद पंकज से किसी की कोई पुरानी रंजिश रही होगी, जिस के कारण मौका ताड़ कर उसे मौत के घाट उतार दिया गया.

पंकज भंगेल में एक किराए के मकान में रहता था. थानाप्रभारी पूछताछ के लिए उस के घर पर पहुंच गए. घर पर मृतक पंकज की पत्नी शैली मिश्रा मिली. थानाप्रभारी ने शैली मिश्रा से पंकज की दुश्मनी के बारे में पूछा तो उस ने किसी भी व्यक्ति के साथ रंजिश से साफ इनकार कर दिया.

मृतक के भाई शरदा प्रसाद मिश्रा से भी किसी से रंजिश आदि के बारे में पूछा गया. उस ने भी ऐसी किसी दुश्मनी से अनभिज्ञता जाहिर की. यह सब देख कर पुलिस ने हत्यारों तक पहुंचने के लिए अन्य संभावित कारणों के बारे में जांचपड़ताल की.

मृतक पंकज की पत्नी शैली मिश्रा से थानाप्रभारी ने और भी कई तरह के सवाल किए तो उस के बयानों में कुछ विरोधाभास मिला. इस पर पुलिस ने पंकज और शैली मिश्रा के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर गहन जांचपड़ताल की. पता चला कि शैली मिश्रा की एक मोबाइल नंबर पर अकसर बातें होती थीं.

जब उस मोबाइल नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई तो वह सुरेश सिधवानी नाम के एक युवक का निकला जो नोएडा के सेक्टर-82 में रहता था. पुलिस ने शैली से कुछ नहीं कहा, बल्कि सुरेश सिधवानी को पूछताछ के लिए उस के घर से उठा लिया. थाने में उससे सख्ती से उस के और शैली मिश्रा के बारे में पूछा गया तो उस ने सारा सच उगल दिया.

उस ने बताया कि पिछले 2 सालों से उस के और शैली मिश्रा के बीच गहरी दोस्ती है, जो अवैध संबंधों में बदल गई थी. उस ने और शैली ने योजना बना कर पंकज को रास्ते से हटाया है.

इस के बाद पुलिस ने शैली मिश्रा को भी भंगेल स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. वहां उस ने पहले से हिरासत में लिए गए सुरेश सिधवानी को देखा तो उस के चेहरे का रंग उतर गया. अब उस के सामने सच बोलने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. लिहाजा पूछताछ में शैली ने भी स्वीकार कर लिया कि पंकज की हत्या उसी के इशारे पर की गई थी.

दोनों से विस्तार से पूछताछ करने पर पंकज की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला अयोध्या का रहने वाला पंकज मिश्रा पिछले कई सालों से अपनी पत्नी शैली और 7 साल के बेटे के साथ नोएडा के भंगेल गांव में रह रहा था. वह जेपी कौसमोस सोसायटी में इलैक्ट्रिशियन का काम करता था. वहां से उसे जो तनख्वाह मिलती थी, उस से उस के परिवार का गुजारा मुश्किल से हो पाता था.

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घरगृहस्थी चलाने में आ रही दुश्वारियों से दोनों हमेशा परेशान रहते थे. शैली सुंदर होने के साथसाथ कुछ पढ़ीलिखी भी थी. उस ने सोचा कि बेटे को स्कूल छोड़ने के बाद वह दिन भर घर में अकेली पड़ीपड़ी बोर होती रहती है, इसलिए उसे कहीं पर दिन की नौकरी मिल जाए तो काफी कुछ दुश्वारियां कम हो जाएंगी.

घर से निकलने पर बहक गई शैली

उस दिन जब पंकज अपनी ड्यूटी करने के बाद घर लौटा तो शैली ने उस से अपने मन की बात कही. शैली की बात सुन कर पंकज सोच में डूब गया. उस का दिल इस बात की गवाही नहीं दे रहा था कि शैली घर की दहलीज लांघ कर कहीं नौकरी करने जाए.

लेकिन घर की परिस्थितियां इस बात की ओर इशारा कर रही थीं कि उस की तनख्वाह में घर बड़ी मुश्किलों से चलता है. कई बार मुश्किलें आने पर उसे अपनी जानपहचान वालों से रुपए उधार मांगने पड़ते हैं, जिन्हें बाद में चुकाना भी काफी कठिन हो जाता है.

शैली को एकटक देखते हुए उस ने कहा, ‘‘शैली, मैं चाहता तो नहीं हूं कि तुम कहीं काम करो, लेकिन हालात को देखते हुए तुम से नौकरी करने के लिए कहना पड़ रहा है. अगर तुम्हें नौकरी करनी ही है तो कहीं पास में ही नौकरी तलाश करो.’’पति को चिंतित देख शैली ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘तुम मेरी चिंता मत करो, अपना अच्छाबुरा मैं अच्छी तरह जानती हूं.’’

इस के बाद वह अगले दिन से ही अपने लिए नौकरी की तलाश में जुट गई. थोड़ी कोशिश के बाद उसे एक बिल्डर के यहां नौकरी मिल गई. अब वह भी नौकरी पर जाने लगी. पत्नी के नौकरी करने से पंकज की आर्थिक स्थिति ठीक होने लगी. पैसे आए तो दोनों के चेहरों पर खुशी की लाली थिरकने लगी.

कुछ महीने तक तो पंकज के घर में सब कुछ ठीक था, परंतु एक साल गुजरने के बाद शैली के रंगढंग में काफी कुछ बदलाव आ गया. उस के रहनसहन और पहनावे को देख कर लगता था कि वह मौडर्न घराने से ताल्लुक रखती है.

औफिस से घर आने में वह कई बार लेट भी हो जाती थी. पंकज ने इस दौरान महसूस किया था कि शैली की चालढाल अब वैसी नहीं रही जैसी पहले थी. अब उस के पास महंगा मोबाइल फोन आ गया था, जिस पर वह हमेशा व्यस्त रहती थी. एक दिन पंकज शैली के मोबाइल का वाट्सऐप देख रहा था. उसे वहां कुछ ऐसे फोटो देखने को मिले, जिस में वह एक अपरिचित आदमी के साथ काफी खुश नजर आ रही थी. उस फोटो के बारे में पूछने के लिए पंकज ने शैली को अपने पास बुलाया तो उस के चेहरे की रंगत उड़ गई.

वह कहने लगी कि यह औफिस में ही काम करने वाला व्यक्ति है. मगर पंकज को उस की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. इस के बाद उन दोनों के बीच किसी न किसी बात को ले कर नोकझोंक होने लगी. अब तक पंकज को पूरी तरह यकीन हो गया था कि शैली फोटो में जिस व्यक्ति के साथ है, उस से उस के अवैध संबंध होंगे.

एक दिन तो हद ही हो गई. उस रात शैली देर से घर लौटी थी. पंकज ने उस पर आरोप लगाया कि वह अपने प्रेमी के साथ गुलछर्रे उड़ा रही होगी, तभी घर आने में देर हो गई. पंकज ने उस समय उसे काफी भलाबुरा कहा था. शैली भी कहां चुप रहने वाली थी. उस ने भी कह दिया कि तुम मेरे ऊपर इतना शक करते हो तो मुझे तलाक दे दो. मेरी तुम्हारे साथ अब नहीं निभ सकती.

शैली की बात सुन कर पंकज सन्न रह गया. उसे उम्मीद नहीं थी कि शैली कभी उसे छोड़ कर सदा के लिए उस से दूर जाने का इरादा बना लेगी. लड़झगड़ कर उस रात दोनों सो गए. लेकिन उस दिन के बाद शैली हर 2-4 दिनों के बाद पंकज से तलाक ले कर अलग रहने पर दबाव बनाने लगी.

सुरेश सिधवानी से हो गए संबंध

दरअसल, शैली जहां नौकरी करती थी, उस की बगल में सेक्टर-82 निवासी सुरेश सिधवानी की दुकान थी. सुरेश सिधवानी मूलरूप से राजस्थान का रहने वाला था. वह शादीशुदा था लेकिन अपनी पत्नी से अधिक शैली को प्यार करता था. जब उस की पत्नी को शैली के साथ उस के अवैध संबंधों की जानकारी हुई तो उस ने उसे रोकने की कोशिश की.

लेकिन सुरेश सिधवानी के सिर पर शैली के इश्क का भूल चढ़ा था, इसलिए उस ने पत्नी की बात एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल दी. आखिर वह सुरेश को छोड़ कर चली गई.

पत्नी के घर छोड़ चले जाने के बाद सुरेश ने शैली को अपने पति से तलाक लेने पर जोर डालना शुरू कर दिया, ताकि दोनों हमेशा के लिए एक हो कर रह सकें. लेकिन पंकज मिश्रा इस के लिए राजी नहीं हुआ. उसे अपने बेटे और खानदान की इज्जत अधिक प्यारी थी.

जब शैली को लगा कि पंकज उसे तलाक नहीं देगा तब उस ने सुरेश से कहा, ‘‘सुरेश, अगर तुम मुझे सच में प्यार करते हो और हमेशा के लिए अपना बनाना चाहते हो तो पहले पंकज को खत्म करना होगा.’’

सुरेश भी यही चाहता था, इसलिए उस ने कहा कि तुम अब परेशान मत होना, मैं इस का इंतजाम कर दूंगा.

सुरेश सिधवानी के पास नगला चरणजीतदास का रहने वाला मोटर मैकेनिक इंद्रजीत आता रहता था. वह उस का विश्वासपात्र भी था. सुरेश ने पंकज की हत्या के बारे में उस से बात की. साथ ही यह भी कहा कि इस काम के एवज में वह उसे 10 लाख रुपए देगा.

हत्या की दे दी सुपारी

इतनी बड़ी रकम के लालच में इंद्रजीत तैयार हो गया. उस ने पंकज की हत्या करने के लिए 50 हजार रुपए की पेशगी भी ले ली.

पंकज की हत्या करने की सुपारी लेने के बाद इंद्रजीत इस काम के लिए अपने दोस्त ककराला फेज-2 निवासी मोनू से मिला. उस ने मोनू से सारी बात तय कर के उसे .32 बोर की एक पिस्तौल तथा 3 गोलियां सौंप दीं.

मोनू ने गेझा, नोएडा निवासी अपने दोस्त सूरज तंवर को अपने साथ लिया. इस के बाद वे सभी पंकज की रेकी करने लगे. उन्होंने पता लगा लिया कि पंकज अपनी ड्यूटी के लिए किस रास्ते से आताजाता है. पूरी योजना बनाने के बाद 20 जून, 2019 को ये लोग पंकज का पीछा करने लगे. जैसे ही पंकज एक सुनसान जगह पर पहुंचा तो उसे रोकने के बाद गोली मार दी, जिस से घटनास्थल पर ही पंकज की मृत्यु हो गई.

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पुलिस ने उन दोनों से पूछताछ के बाद इंद्रजीत, मोनू और सूरज को भी गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर वारदात में इस्तेमाल पिस्तौल और बिना नंबर प्लेट वाली मोटरसाइकिल भी बरामद हो गई.

थानाप्रभारी भुवनेश कुमार ने पंकज हत्याकांड के पांचों आरोपियों सुरेश सिधवानी, शैली मिश्रा, इंद्रजीत, मोनू और सूरज तंवर को गौतमबुद्धनगर की अदालत में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

सूरज तंवर की उम्र 19 साल है और वह गेझा गांव के स्कूल में 12वीं का छात्र है. वह अपनी गर्लफ्रैंड की जरूरतों को पूरा करने के लालच में इस हत्याकांड में शामिल हुआ था. पंकज की हत्या और शैली मिश्रा के जेल चले जाने के बाद पंकज का 7 वर्षीय बेटा अपने चाचा के पास था.

Satyakatha: फौजी की सनक का कहर- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

सुबहसुबह साढ़े 7 बजे के करीब गुरुग्राम के राजेंद्र पार्क इलाके में जब सायरन बजाती पुलिस की गाडि़यां आईं, तब अपनी दिनचर्या की शुरुआत करते हुए लोग चौंक पड़े. कोई बाथरूम में फ्रैश हो रहा था, तो कोई अपनी बालकनी में ब्रश कर रहा था तो कोई अपने फूलों के गमलों की देखरेख में लगा हुआ था.

कई घरों के किचन से कुकर की सीटियां बजने लगी थीं. कोई अपने पालतू कुत्ते के साथ सैर पर था, जबकि कुछ लोग वहीं छोटे से पार्क में जौगिंग और एक्सरसाइज कर रहे थे. हर दिन की तरह ही 24 अगस्त को साफ आसमान और सूरज की चमकदार किरणों वाले दिन की शुरुआत हो चुकी थी.

सायरन की आवाज सुन कर अचानक सभी लोगों का ध्यान उस ओर चला गया. उस वक्त गली में भी कुछ लोगों का आनाजाना शुरू हो चुका था. गाडि़यां उन के बीच से गुजरती हुई एक घर के आगे रुकीं. गाडि़यों से पुलिसकर्मियों को उतरते देख आसपास के लोग धीमी आवाज में बातें करने लगे थे. कुछ लोग अपनीअपनी छतों पर या बालकनी में भी आ गए थे.

पुलिसकर्मी जब एक घर के आगे खड़े हो कर अपने हाथों में रबर के ग्लव्स पहनने शुरू किए, तब वहां मौजूद लोगों के मन में जानने की उत्सुकता बढ़ गई. जिस घर के आगे इकट्ठे हुए थे, वह घर रिटायर्ड फौजी राव राय सिंह का था.

गुरुग्राम थाने के थानाप्रभारी इंसपेक्टर सुरेंदर गाड़ी से उतरे. उन्होंने भी अपने हाथों में रबर का ग्लव्स पहन लिया और 10-12 पुलिसकर्मियों का नेतृत्व करते हुए सब से पहले मकान में प्रवेश किया.

पुलिस की टीम मकान में जा कर 2 हिस्सों में बंट गई. एक ऊपर की मंजिलों पर चली गई, जबकि दूसरी इंसपेक्टर सुरेंदर के साथ ग्राउंड फ्लोर पर बनी रही. वहां कई कमरे थे, पुलिस ने सभी का एकएक कर दरवाजा खटखटाया.

अधिकतर कमरों के दरवाजे बाहर से ही बंद या भिड़े हुए थे. कहीं किसी कमरे में कुछ नहीं मिला. बस एक में बुजुर्ग महिला कुरसी पर बैठी दिखी. पास ही एक लड़की पलंग पर सोई हुई थी.

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पुलिस ने उस बुजुर्ग महिला को बाहर निकलने का इशारा किया. वह सो रही लड़की को जगा कर कुछ मिनट बाद कमरे से बाहर आई. लड़की उस की पोती थी और उस ने खुद को राव राय सिंह की पत्नी विमलेश यादव बताया.

ग्राउंड फ्लोर के साथसाथ पहली मंजिल पर भी सूचना के मुताबिक गहन छानबीन जारी थी. कुछ सेकेंड बाद टीम के एक सदस्य ने आवाज लगा कर थानाप्रभारी को पुकारा. वह तुरंत भागते हुए सीढि़यों से पहली मंजिल पर जा पहुंचे. उस कमरे में घुसे जहां से उन्हें आवाज लगाई गई थी.

कमरे में घुसते ही थानाप्रभारी कमरे का दृश्य देख कर अवाक रह गए. कमरे के फर्श पर एक महिला का शव पड़ा था. पूरे कमरे के फर्श पर खून फैल चुका था. शव पर गहरे जख्म का निशान था, उस में से खून रिस रहा था.

थानाप्रभारी अभी वहां का मुआयना कर ही रहे थे कि दूसरी मंजिल से एक अन्य पुलिसकर्मी ने चीखने जैसी आवाज लगाई. थानाप्रभारी तुरंत भागेभागे दूसरी मंजिल के उसी कमरे में जा पहुंचे, जहां से उन्हें आवाज दी गई थी.

कमरे में पहुंचते ही थानाप्रभारी हक्केबक्के रह गए. कमरे के फर्श पर एकदो नहीं, बल्कि 4 लाशें पड़ी हुई थीं. वहां का दृश्य देख कर पुलिसकर्मियों के माथे से पसीना छूटने लगा था. उन 4 लाशों में 2 छोटीछोटी बच्चियां थीं.

सभी लाशों के बारे में प्राथमिक जानकारी जुटाई गई. उस के मुताबिक पहली मंजिल के कमरे से बरामद लाश सुनीता यादव की थी. वह राव राय सिंह की बहू थी. इसी तरह दूसरी मंजिल के कमरे से मिली लाशों में एक लाश वहां रहने वाले किराएदार कृष्णकांत तिवारी (40), दूसरी तिवारी की पत्नी अनामिका तिवारी (32) और बाकी दोनों लाशें उन की बेटियों सुरभि तिवारी (9) और विधि तिवारी (6) की थी. सभी के शरीर पर एक जैसे गहरे जख्म के निशान थे.

मकान में मौजूद पुलिस की टीम ने लाशों को निकालने का काम शुरू किया. इसी क्रम में पता चला कि 6 साल की विधि की सांसें चल रही हैं. पुलिस टीम तुरंत उसे नजदीकी अस्पताल ले गई.

राव राय सिंह के घर के बाहर लाशों को देख कर लोग हैरान थे. वे समझ नहीं पर रहे थे कि आखिर इतनी लाशें कैसे और क्यों? साथ ही सभी की आंखें राव राय सिंह को भी तलाश रही थीं. वह नजर नहीं आ रहा  था.

इलाके के लोगों को पता था कि पहली मंजिल पर राय सिंह की बहू सुनीता यादव और दूसरी मंजिल पर किराएदार कृष्णकांत तिवारी अपने परिवार के साथ रहते थे. सभी लाशों को देख कर यह तो स्पष्ट हो गया था कि उन की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी.

उन की हत्या कैसे और किस ने की होगी, इन सवालों के साथसाथ एक सवाल और था कि आखिर राव राय सिंह कहां है?

उसी दोरान जांच में पता चला कि इस जघन्य हत्याकांड की नींव में एक मकान मालिक और उस के किराएदार के बीच आपसी रिश्ते के मिठास और खटास के साथ उस में भर चुकी कड़वाहट की कहानी शामिल है, जो वीभत्स हत्या का मुख्य कारण बन गई.

बिहार में सीवान के रहने वाले कृष्णकांत तिवारी ने करीब ढाई साल पहले राव राय सिंह के मकान में दूसरी मंजिल पर किराए का कमरा लिया था. वह गुरुग्राम की एक कंपनी में काम करते थे.

उस से पहले वह पास में ही लक्ष्मण विहार में किराए के कमरे में रहते थे. उन्होंने बिहार से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी और दिल्ली आने पर शुरुआत से ही गुरुग्राम में अपने परिवार के साथ रहते थे.

कृष्णकांत जब राव राय सिंह के मकान में आए, तब वहां बहुत जल्द मकान मालिक के सभी सदस्यों के प्रिय बन गए. इस कारण उन्हें काफी अपनापन सा महसूस होता था. उन के बच्चे छोटे थे और पत्नी अनामिका की राय सिंह की बहू सुनीता यादव के साथ अच्छी पटती थी.

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राय सिंह के एकलौते बेटे आनंद यादव, जो गुड़गांव की जिला अदालत में वकील थे, की पत्नी सुनीता यादव अलग मिजाज की औरत थी. वह अपनी ही दुनिया में मस्त रहती थी.

अपनी मरजी से अकसर मायके चली जाती थी. उस की इन्हीं आदतों से न केवल पति, बल्कि ससुर राय सिंह और सास तक परेशान रहते थे.

सुनीता और अनामिका हमउम्र होने के चलते आपस में अपनी बातें शेयर करती थीं. उन के बीच हंसीमजाक चलता रहता था. वह अनामिका के कमरे में बेधड़क आयाजाया करती थी.

इसी क्रम में वह कृष्णकांत से भी बातचीत करने में काफी खुली हुई थी.

राय सिंह की पहचान इलाके में सब से शांत व्यवहार रखने वाले लोगों में थी.

फौज से रिटायर हो जाने के बाद उन्होंने प्रौपर्टी का काम कर रखा था. उस के लिए अपने घर के नीचे ही औफिस बना लिया था.

जब एकएक कर 5 लाशें उन के घर से निकल रही थीं, उस वक्त राय सिंह दिखाई नहीं दिया. लोग सोच रहे थे कि वह अचानक कहां चला गया, जबकि उन्हें बीते दिन की शाम को लोगों ने देखा था. यहां तक कि कुछ लोगों ने उसे सुबह पार्क में भी मौर्निंग वाक करते देखा था.

दूसरी तरफ गुरुग्राम थाने की पुलिस 24 अगस्त की सुबह अलसाई हुई बैठी थी. थानाप्रभारी इस बात से निश्चिंत थे कि रात शांति से गुजरी. इलाके में किसी तरह की कोई अप्रिय घटना नहीं हुई. उन्होंने एक कांस्टेबल को चाय लाने के लिए कहा और खुद फ्रैश होने चले गए.

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Satyakatha: डॉक्टर की बीवी- रसूखदार के प्यार का वार- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

वहां एक मकान की सीसीटीवी फुटेज में दोनों बदमाश अपने एक साथी के साथ निकलते देखे गए. तीनों बदमाश उसी मकान में किराए पर रह रहे थे, जिस मकान की सीसीटीवी फुटेज में तीनों कैद हुए थे. पुलिस ने 22 सितंबर, 2021 को तीनों शूटर्स को गिरफ्तार कर लिया. उन से पूछताछ के बाद डाक्टर दंपति को गिरफ्तार कर लिया गया.

शूटर्स को पैसा देने वाला मिहिर सिंह था, जोकि खुशबू का पुराना बौयफ्रैंड था. पूरे मामले की मास्टरमाइंड खुशबू थी. मिहिर घर से भाग कर दिल्ली चला गया था. पुलिस ने परिवार पर दबाव डाला तो मिहिर दिल्ली से फ्लाइट से वापस आ गया. 23 सितंबर की शाम 5 बज कर 20 मिनट पर फ्लाइट से पटना में उतरते ही पुलिस ने मिहिर को गिरफ्तार कर लिया.

23 सितंबर की ही शाम साढे़ 6 बजे एसएसपी उपेंद्र कुमार शर्मा ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर के पूरे मामले का खुलासा किया.

राजधानी पटना की पाटलिपुत्र कालोनी में रहते थे राजधानी के मशहूर फिजियोथैरेपिस्ट डा. राजीव सिंह और उन की पत्नी खुशबू. उन के 2 छोटे बच्चे थे. डा. राजीव सिंह साईंकेयर सेंटर नाम से अपना क्लिनिक चलाते थे. वह पेज थ्री की जमात में शामिल थे. हर रोज वह अखबार की सुर्खियों में बने रहते थे.

उन का रसूखदार नेताओं, अधिकारियों के साथ उठनाबैठना होता था.  वह जनता दल यूनाईटेड (जेडीयू) के डाक्टर्स विंग के प्रदेश उपाध्यक्ष बना दिए गए. चिकित्सा के क्षेत्र में होने के कारण पैसों की कमी तो थी नहीं, अब राजनीतिक पार्टी के नेता बन गए तो पावर भी आ गई.

फरवरी, 2020 में राजीव के संपर्क में विक्रम आया. विक्रम से संपर्क बना, उस के काम के बारे में जाना तो डा. राजीव ने विक्रम को बच्चों की डांस की टे्रनिंग के लिए लगा लिया. इसी बीच कोरोना के चलते लौकडाउन लग गया तो विक्रम राजीव के घर जा कर बच्चों को डांस सिखाने लगा.

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डा. राजीव काफी व्यस्त रहते थे. घर पर कम ही रह पाते थे. बच्चों के अलावा उन की पत्नी खुशबू ही घर पर होती थी. बच्चों को डांस सिखाते विक्रम पर खुबसूरत खुशबू की निगाहें ठहरने लगीं.

खुशबू हाई सोसायटी के लोगों में से थी, जो शादी के बाद भी पराए मर्दों से अफेयर करने को बुरा नहीं मानते. यह एक तरह से इस सोसायटी का चलन होता है. खुशबू भी इस से अछूती नहीं थी.

उस के 5 साल से मिहिर सिंह नाम के युवक से प्रेम संबंध थे. हाल में ही मिहिर के साथ उस का ब्रेकअप हुआ था.

खुशबू घर में हो या बाहर, सिर्फ अपनी ही चलाना चाहती थी. वह अपनी जिंदगी के फैसले हो किसी दूसरे के, खुद ही लेना पसंद करती थी. वह काफी जिद्दी थी. इसलिए खुशबू की अपने पति राजीव से भी पटरी

नहीं खाती थी. उस से जबतब झगड़ा होता रहता था.

इस बार खुशबू और राजीव में इतनी अनबन हो गई कि मामला थाने तक पहुंच गया. खुशबू ने बुद्धा कालोनी थाने में शिकायत कर दी थी. पुलिस ने बड़ी मशक्कत के बाद दोनों के बीच सुलह कराई थी.

विक्रम काफी खूबसूरत था और मौडलिंग और अभिनय के क्षेत्र में नाम कमा रहा था. वह और भी कई विधाओं में पारंगत था. सब से बड़ी बात कुंवारा था. खुशबू की नजर में वह चढ़ गया. वह जब भी घर पर आता तो खुशबू उस पर ही निगाहें गड़ाए रखती. उस के करीब आने के लिए खुशबू को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी.

विक्रम जिम ट्रेनर था. इसलिए खुशबू ने उस से जिम की टे्रनिंग घर पर लेने की सोच ली. विक्रम से उस ने कहा तो विक्रम ने सहमति दे दी. लौकडाउन के कारण जिम बंद चल रहे थे, इसलिए विक्रम ने मना नहीं किया.

व्यायाम के दौरान खुशबू स्किन टाइट शार्ट्स पहनती थी. उस में उस के शरीर के हर अंग का आकार साफ नजर आता था. विक्रम उसे देखता जरूर लेकिन कुछ कहता नहीं था.

व्यायाम के दौरान शार्ट्स ही पहने जाते हैं, इसलिए अपनी तरफ से उस ने टोकना मुनासिब नहीं समझा. वजन उठाने के दौरान विक्रम को खुशबू के पीछे बहुत नजदीक खड़ा होना पड़ता था, जिस से वजन उठाने में खुशबू को कोई परेशानी हो तो वह वजन को

पकड़ ले, अन्यथा खुशबू को चोट भी लग सकती थी.

खुशबू मर मिटी जिम ट्रेनर विक्रम पर

खुशबू इस का भरपूर फायदा उठाती थी. वजन उठाने के दौरान उठतेबैठते समय अपना शरीर जानबूझ कर विक्रम से सटा देती, जिस से विक्रम के कुंवारे शरीर में करंट सा दौड़ने लगता. लेकिन अगले ही पल उसे खूबसूरत धोखा मान कर भुला देता.

लेकिन बारबार खुशबू के द्वारा ऐसा किया जाने लगा तो विक्रम को खुशबू की मंशा समझते देर नहीं लगी. पहले उस ने सोचा कि खुशबू 2 बच्चों की मां है और धनाढ्य परिवार से है, वह अपनी अच्छी बसीबसाई गृहस्थी में आग क्यों लगाएगी, वह भी उस जैसे मिडिल क्लास लड़के के लिए.

लेकिन खुशबू की हरकतें उस की इस सोेच को गलत साबित कर रही थीं. उस ने सुन रखा था कि हाईसोसायटी की महिलाएं रंगीनमिजाज होती हैं. पति के अलावा भी वह दूसरोंं से संबंध रखती हैं. खुशबू भी उन्हीं महिलाओं की तरह है.

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यह सोच कर वह भी खुशबू में इंटरेस्ट लेने लगा. वह भी उस से प्यार भरी बातें करता और उस के बदन से चिपकने लगा. खुशबू को भी समझ में आ गया कि विक्रम भी उस की चाहत में बहक गया है.

एक दिन दोनों के तन सटे तो दोनों ने एकदूमरे को बांहों में भर लिया और अपने प्यार का इजहार कर दिया. दोनों के संबंधों का सिलसिला अनवरत चलने लगा.

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Satyakatha- सुहागन की साजिश: सिंदूर की आड़ में इश्क की उड़ान- भाग 2

सौजन्य: सत्यकथा

आखिर पति की खुशी को रीता ने भी स्वीकार कर लिया. वह पति की सीमित आमदनी में ही खुश रहने लगी. लेकिन यह खुशी शायद ज्यादा दिनों तक कायम न रह सकी. रीता पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा.

हुआ यह कि एक दिन किसी काम से हरगोविंद अकबरपुर कस्बा गया. शाम को लौटते समय बाराजोड़ के पास उस का एक्सीडेंट हो गया.

गंभीर चोट लगने से उस की मौके पर ही मौत हो गई. उस की मौत की खबर घर पहुंची तो घर में कोहराम मच गया. रीता बिलखबिलख कर रोने लगी. घर वालों ने उसे किसी तरह संभाला. यह बात वर्ष 2012 की है.

समय बीतते जब दुख के बादल छंटने लगे तो रीता को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी. वह सोचने लगी कि आखिर वह पहाड़ सी जिंदगी पुरुष के सहारे के बिना कैसे गुजारेगी. मायके में रह कर वह विधवा का जीवन नहीं बिताना चाहती थी. रीता की चिंता से घर वाले भी परेशान थे. लेकिन उन्हें कोई उपाय नहीं सूझ रहा था.

रीता के देवर का नाम शिवगोविंद था. रीता और शिवगोविंद की उम्र में लगभग 10 साल का अंतर था. रीता जब से ब्याह कर ससुराल आई थी, शिवगोविंद से उस की खूब पटरी खाती थी.

पति की मौत का जहां रीता को गम था, वहीं शिवगोविंद भी बड़े भाई की मौत पर दुखी था. अब शिवगोविंद ही रीता की देखभाल करता था और उस के गमों को बांटता था.

रीता को भी मिल गया सहारा

30 वर्षीय रीता विधवा जरूर हो गई थी, लेकिन खूबसूरत व जवान थी. शिवगोविंद भी 20 वर्षीय गबरू जवान था. धीरेधीरे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं और दिलों में चाहत जाग उठी.

शिवगोविंद ने अपनी चाहत को एक दिन उजागर भी कर दिया, ‘‘रीता भाभी, मैं तुम से प्यार करता हूं और तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं.’’

‘‘सोच लो देवरजी. मैं विधवा हूं और विधवा से ब्याह रचाना तो दूर, उस से हंसनाबोलना भी यह समाज गुनाह मानता है.’’ रीता ने शंका प्रकट की.

‘‘भाभी, मुझे समाज की नहीं, तुम्हारी चिंता है. मैं तुम्हारी मांग में सिंदूर भर कर विधवा होने का कलंक मिटाना चाहता हूं.’’ शिवगोविंद ने अपनी मंशा जाहिर की.

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‘‘तुम्हें मेरी चिंता है तो मैं साथ देने को तैयार हूं.‘‘ रीता ने रजामंदी दे दी.

रीता राजी हो गई तो इस बाबत शिवगोविंद ने अपने मंझले भाई बालगोविंद तथा भाभी ममता से बातचीत की. पहले तो दोनों चौंके, फिर आमनेसामने बिठा कर रीता तथा शिवगोविंद से बात की.

उस के बाद उन्होंने उन दोनों को शादी करने की इजाजत दे दी. गांव में भी चर्चा आम हो गई कि शिव अपनी विधवा भाभी से ब्याह रचा रहा है.

घर वालों की रजामंदी हुई तो एक दिन शिवगोविंद व रीता मंदिर पहुंचे, वहां शिवगोविंद ने रीता की मांग में सिंदूर भर कर उसे विधवा से सुहागिन बना दिया. इस के बाद रीता, शिवगोविंद की पत्नी बन कर उस के साथ रहने लगी.

शिवगोविंद का प्यार मिला तो रीता पहले पति की यादें भुला बैठी. हंसीखुशी से 4 साल बीत गए. इस बीच रीता एक बेटी राधा की मां बन गई. राधा के जन्म से घर की खुशियां और बढ़ गईं.

लगभग 5 साल तक रीता और शिवगोविंद का जीवन आनंदपूर्वक बीता. उस के बाद उन के बीच विवाद शुरू हो गया. विवाद की कोई बड़ी वजह नहीं थी.

शिवगोविंद रनिया स्थित एक फैक्ट्री में काम करता था. फैक्ट्री में उसे कभी काम मिलता तो कभी नहीं मिलता. रीता खर्चीली थी. कंजूसी उस का मिजाज न था. जरूरत और शौक के आगे उस के लिए पैसे का महत्त्व न था. यही कारण था कि वह शिवगोविंद से पैसे की मांग करती रहती.

पत्नी की मांग सुन कर शिवगोविंद झुंझला उठता, ‘‘रीता मेरा वेतन ज्यादा नहीं है, इसलिए तुम अपने खर्चों पर कंट्रोल करो. मुझे किसी के आगे हाथ फैलाने को मजबूर मत करो.’’

‘‘जितना कर सकती थी कर लिया, अब और कंट्रोल नहीं,’’ रीता भी झुंझला कर जवाब देती, ‘‘पत्नी के खर्चे पति नहीं पूरे करेगा तो क्या पड़ोसी करेंगे?’’

‘‘रीता, मेरी कमाई उतनी नहीं है कि मैं तुम्हारे महंगे शौक पूरे कर सकूं.’’

‘‘पहले आमदनी बढ़ाते, फिर मेरी मांग में सिंदूर भरते,’’ रीता का जवाब पैना तथा द्विअर्थी होता, ‘‘हर रात तुम्हें मुझ से तो अपनी खुशी चाहिए, मेरे खर्च उठाने की तुम्हें परवाह नहीं. तुम्हारा शौक मैं पूरा करती हूं तो तुम्हें भी मेरे शौक पूरे करने होंगे.’’

‘‘तुम्हें खर्च में कटौती भी करनी पड़ेगी और हालात से समझौता भी करना होगा.’’

‘‘हरगिज नहीं करूंगी,’’ रीता ने झुंझला कर जवाब दिया.

बस इसी मुद्दे पर विवाद बढ़ता गया. शिवगोविंद महसूस करने लगा कि उस ने रीता की मांग सिंदूर से सजा कर जबरदस्त गलती की है, तो रीता महसूस करने लगी कि शिव से प्रेम विवाह कर के उस ने स्वयं अपना मुकद्दर फोड़ लिया है.

दिलों की बढ़ गईं दूरियां

दिल में गांठ पड़ जाए तो वह कम नहीं होती, निरंतर बढ़ती जाती है. रीता व शिव भी एकदूसरे को अपने जीवन की गलती मान कर धीरेधीरे एकदूजे से दूरियां बढ़ाने लगे.

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शिवगोविंद सुबह काम पर चला जाता, देर रात को घर आता. काम से इतना थका होता कि अकसर खाना खाते ही सो जाता. रीता की हसरतें प्यासी ही रह जातीं.

रीता अकेलापन महसूस करने लगी तो उस का मन बहकने लगा. मन बहका तो वह पति से विश्वासघात करने पर उतारू हो गई.

वह भूल गई कि जिस इंसान ने उसे विधवा से सुहागन बनाया, मांग में सिंदूर भर कर समाज में सम्मान दिलाया, उसी के साथ वह विश्वासघात करने का मंसूबा पाल रही है. मांग का सिंदूर भी उसे बेमानी लगने लगा.

रीता ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो उस की नजर दीपक उर्फ लल्ला पर टिक गई. दीपक उस के पति शिवगोविंद का दोस्त था और पड़ोस में ही रहता था.

उस का आनाजाना घर में लगा रहता था. खासकर उस रोज जब शिवगोविंद घर पर रहता था. दोनों में खूब गपशप होती तथा खानेपीने का दौर चलता था.

रीता के मन में पाप समाया तो उस ने दीपक को खुली छूट दे दी. उन दोनों के बीच हंसीठिठोली भी होने लगी. रीता जहां गबरू जवान दीपक पर फिदा हो गई थी, वहीं दीपक उर्फ लल्ला भी मतवाली भाभी रीता का दीवाना बन गया था.

सहयोगी : जय कुमार मिश्र

अगले भाग में पढ़ें- पति बना इश्क में रोड़ा

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