Manohar Kahaniya: करोड़ों की चोरियां कर बना रौबिनहुड- भाग 4

सौजन्य- मनोहर कहानियां

इंसान में कुछ खूबियां होती हैं तो कुछ बुरी लतें भी होती हैं. इरफान की 2 बीवी तथा  4 प्रेमिकाएं हैं. चोरी में मोटा माल हाथ लगने के बाद सब से पहले किसी प्रेमिका के पास ही जाता था. दोनों बीवियों के अलावा वह अपनी इन प्रेमिकाओं पर भी दिल खोल कर पैसा खर्च करता था.

इन में से अलीगढ़ में रहने वाली प्रेमिका रूपाली को तो कविनगर पुलिस ने गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. जबकि उस की दूसरी माशूकाएं आगरा, सवाई माधोपुर तथा बंगलुरु की रहने वाली हैं. चोरी की रकम से वह इन्हें महंगे उपहार देता था. बदले में वे उसे न सिर्फ छिपने में मदद करतीं बल्कि उस की अय्याशी का सामान भी बनतीं.

इरफान मुंबई, चंडीगढ़, बंगलुरु और दिल्ली के लाउंज व बारों में जम कर मौजमस्ती करता व रुपए उड़ाता था. महंगी कारों, डिजाइनर कपड़ों और विलासितापूर्ण जीवन का शौकीन इरफान बार में एकएक गाने की फरमाइश पूरी करने पर 10-10 हजार रुपए उड़ाता था.

भोजपुरी फिल्मों की एक अभिनेत्री मुंबई में रहने के दौरान उस की दोस्त बन गई थी, जो मुंबई में रहती थी, जब भी चोरी की बड़ी वारदात को अंजाम देता तो पहले गांव जाता, वहां लोगों की मदद करने के लिए जो भी पैसा खर्च करना होता करता.

कुछ रोज अपनी पत्नी गुलशन के साथ गुजरता, उस के बाद वह मुंबई चला जाता और अपनी भोजपुरी फिल्मों की अभिनेत्री प्रेमिका के साथ रह कर जम कर मौजमस्ती करता.

उस की पहचान एक पैसे वाले के रूप में होने लगी. अपनी फिल्मी माशूका पर दिल खोल कर पैसे खर्च करता और जब पैसा खत्म होने लगता तो किसी दूसरे शिकार की तलाश में मोटा हाथ मारने के लिए किसी दूसरे शहर का रुख कर लेता. बाद में उस ने इस एक्ट्रैस से शादी कर ली.

उस की कमजोरी थी फेसबुक, जिस पर इरफान अपनी विलासितापूर्ण जिदंगी की फोटो और वीडियो अपलोड करता रहता था.

इरफान ने एक साल पहले ही अपनी पत्नी के नाम से महंगी जगुआर कार खरीदी थी, जिस से इलाके में उस की शान और भी बढ़ गई. शोएब नाम के अपने ड्राइवर के साथ वह कार में चलता था.

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जब वह दूसरे महानगरों में चोरी करने के लिए जाता तो अकसर अपने ड्राइवर व गाड़ी को ले कर चोरी करने जाता था. इतनी महंगी कार होने के कारण कोई भी उस पर शक नहीं करता था. वह महंगे होटलों में रुकता है. जब वह कार से चोरी करने नहीं जाता तो बिहार से दूसरे शहरों में आनेजाने के लिए हवाई जहाज से सफर करता था.

धीरेधीरे जब दूसरे राज्यों की पुलिस उसे गिरफ्तार करने गांव पहुंचने लगी तो गांव वालों को पता चल गया कि वह एक कुख्यात चोर है. लेकिन तब तक वह गांव वालों के बीच अपनी छवि एक फरिश्ते के रूप में गढ़ चुका था. पुलिस कुछ भी कहती, लेकिन लोग उस के खिलाफ न तो कुछ बोलते न ही उस के बारे में गलत सुनने को तैयार होते थे.

चोरी के पैसों से उस ने धीरेधीरे अपने गांव व आसपास के लोगों को सहयोग करना शुरू कर दिया. अपने गांव की नाली खडं़जे से ले कर जर्जर सड़कों को भी बनवाना शुरू कर दिया. धीरेधीरे लोग उस के पास मदद मांगने आने लगे तो उसे भी अपनी तारीफें सुनने के कारण उन की मदद करने का चस्का लग गया. वह कभी किसी गरीब की बेटी की शादी करा देता तो कभी गांव में किसी बीमार के इलाज का खर्च उठा लेता.

जरूरतमंदों की खुले रूप से करता था आर्थिक मदद

उस की छवि गांव में रौबिनहुड जैसी बन गई. सामाजिक काम में इरफान किस कदर सक्रिय हो चुका था, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2 साल पहले अपने पड़ोस में रहने वाली एक गरीब लड़की के कैंसर के औपरेशन पर उस ने 20 लाख रुपए खर्च कर दिए थे.

वह अपने गांव में हर महीने चिकित्सा शिविर का आयोजन करता था. गांव के लोगों को अब पता था कि वह बड़े शहरों का महाचोर है. इस के बावजूद गांव के लोगों के लिए वह फरिश्ता ही था, जो उन की जिंदगी में उजाला भरने के लिए चोरी कर अपनी जिंदगी दांव पर लगा रहा था. इसीलिए लोग उस के नाम के आगे उजाला लगाने लगे थे.

इरफान जब लोगों की मदद करता तो इस में वह ये नहीं देखता था कि मदद मांगने वाला किस मजहब का है. इरफान के मुसलिम बहुल गांव जोगिया में केवल 4 हिंदू परिवार रहते हैं. वहां के जोगिंदर राम की भी उजाला ने मदद की है.

उस ने 3 महीने पहले ही जोगिंदर की बेटी की शादी में 4 हजार रुपए से मदद की तो कुछ साल पहले लीवर इंफेक्शन के औपरेशन के लिए उसे 5 हजार रुपए दिए थे. इसी गांव में रहने वाली रामसती का 2 साल पहले बच्चेदानी का औपरेशन कराने के लिए इरफान उर्फ उजाला ने उसे 10 हजार रुपए दिए थे.

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सामाजिक काम कर के फरिश्ते के रूप में बनाई गई छवि के कारण गांव तथा आसपास के इलाकों के लोग अब इरफान पर दबाव डालने लगे कि अगर वह राजनीति में आ जाएगा तो उन की जिंदगी संवर जाएगी. इरफान भी जानता था कि राजनीति में आने के बाद ही वह अपनी कौम और लोगों की मदद कर सकता है.

लोगों ने उस पर ज्यादा दबाव डाला तो उस ने गांव व आसपास के क्षेत्र में और तेजी से सामाजिक कार्य शुरू कर दिए. उस ने राजनीति में कदम रखने के लिए अपनी पत्नी गुलशन परवीन को आगे कर दिया.

वह गांव और इलाके की राजनीति से राजनीति में आगे बढ़ना चाहता था. इसलिए उस ने कुछ दिन पहले ही पुपरी के जिला परिषद क्षेत्र संख्या 34 से अपनी पत्नी को प्रत्याशी बनाया. नामांकन से ले कर चुनाव प्रचारप्रसार में उस ने दिल खोल कर रुपए खर्च किए.

हालांकि इस दौरान पुलिस ने गुलशन को गिरफ्तार कर के जेल भी भेजा, लेकिन जेल से निकलने के बाद उस ने नामांकन किया और लोगों ने जम कर उस के प्रचार में साथ दिया.

इसे इरफान की पत्नी की मेहनत कहें या इरफान की सामाजिक कामों से मिली शोहरत, उस की पत्नी भारी मतों से चुनाव जीत गई. दरअसल, चुनाव से कुछ दिन पहले ही इरफान ने करीब डेढ़ करोड़ रुपया खर्च कर के 7 गांवों की सड़कें बनवाई थीं. इस से इलाके के लोगों को लगने लगा कि वह चुनाव जीतने से पहले इतना विकास कर सकती है तो चुनाव जीतने के बाद इलाके को जन्नत बना देगी.

कविनगर पुलिस ने इरफान व उस के पकड़े गए साथियों से अब तक चोरी में प्रयुक्त की जाने वाली स्कौर्पियो व जगुआर समेत एक करोड़ की कीमत से अधिक के सोने व हीरे के जेवर बरामद किए हैं. उस के खिलाफ विभिन्न प्रदेशों में चोरी के 25 मामले दर्ज हैं. तथा उस ने अब तक करीब 20 करोड़ से अधिक की चोरियां की हैं.

उस ने अपनी पत्नी गुलशन परवीन से चुनाव जीतने के बाद चोरी न करने का वायदा किया था. उस की पत्नी अब जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीत चुकी है. लेकिन रौबिनहुड बनने का उस का ख्वाब उसे जरायम की दुनिया से दूर नहीं रख पाया.

—कथा पुलिस की जांचपड़ताल व आरोपियों से हुई पूछताछ पर आधारित

Manohar Kahaniya: आस्था की चोट- भाग 2

Writer- शाहनवाज 

सौजन्य- मनोहर कहानियां

आरोपियों को जल्द से जल्द पकड़ने के लिए सीओ श्वेताभ पांडेय ने कई टीमों का गठन कर लिया. टैक्निकल टीम की मदद से पुलिस ने इलाके के सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालनी शुरू की.

इलाके में हत्या के दिन की फुटेज पर कई घंटों की मेहनत के बाद पुलिस को अरुण के घर के सामने 3 संदिग्ध लोगों के भटकने की फुटेज मिल गई. फुटेज में उन तीनों संदिग्धों के साथ अरुण भी मिलते हुए नजर आ रहा था.

यह पता चलने के बाद पुलिस ने जल्द काररवाई करते हुए अरुण को ढूंढने की प्रक्रिया और तेज कर दी. सीओ श्वेताभ पांडेय ने मामले के मुख्य आरोपी अरुण अग्रवाल को पकड़ने के लिए अलीगढ़ में 2 स्वाट टीमों की सहायता भी ली. एसआई संजीव कुमार और एसआई संदीप कुमार के नेतृत्व में स्वाट टीमें पूरे अलीगढ़ में अरुण को ढूंढने में जुट गईं.

अरुण को ढूंढने के पुलिस के सारे तरीके फेल साबित हो रहे थे, क्योंकि अरुण का फोन बंद आ रहा था. लगातार प्रयास करने के बाद पुलिस को तब सफलता हासिल हुई, जब अरुण का फोन अचानक से 17 अक्तूबर की रात को औन हुआ.

अरुण का फोन औन होते ही पुलिस की टैक्निकल टीम को उस की लोकेशन का पता चल गया. वह अलीगढ़ के कासिमपुर क्षेत्र की थी. पता चला कि वहां उस का औक्सीजन प्लांट था.

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सूचना मिलते ही पुलिस जल्द ही वहां पहुंच गई और 18 अक्तूबर की सुबहसुबह अरुण को उस की फैक्ट्री इलाके से गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तारी के बाद अरुण ने पुलिस पूछताछ में आस्था की हत्या की जो वजह पुलिस को बताई, हैरान करने वाली थी.

आखिर अरुण ने अपनी डाक्टर पत्नी को क्यों मारा

आज से लगभग 13 साल पहले सन 2007 में आस्था की शादी अरुण अग्रवाल से हुई थी. इन की अरेंज मैरिज नहीं बल्कि लवमैरिज थी. वे दोनों एकदूसरे को अपने कालेज के दिनों से ही जानते थे.

कालेज में मुलाकात हुई, दोनों के बीच दोस्ती हुई, कुछ समय साथ रहने के बाद दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई और उस के बाद दोनों की शादी भी हो गई. उन की शादी पर दोनों के ही परिवारों में से किसी को भी कोई आपत्ति नहीं हुई थी.

अरुण का परिवार सुखीसंपन्न था. अरुण के परिवार की ओर से शादी के समय भी किसी तरह की कोई मांग (दहेज) नहीं थी. दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे.

मैडिकल परीक्षा पास करने के बाद आस्था ने डाक्टरी की पढ़ाई की और शादी के बाद ही आस्था की गवर्नमेंट जौब भी लगी थी. वह स्वास्थ्य विभाग में संविदा (कौन्ट्रैक्ट) पर मैडिकल औफिसर के रूप में नियुक्त हो गई. डा. आस्था की इस कामयाबी पर दोनों परिवार बहुत खुश हुए.

आस्था की इस नियुक्ति के बाद अरुण ने भी अलीगढ़ के कासिमपुर में राधिका नाम से औक्सीजन प्लांट खोल लिया था और इस काम के लिए डा. आस्था ने अपने पति अरुण का पूरा सहयोग भी किया था.

समय के साथ आस्था के 2 बच्चे हुए. 10 वर्षीय बेटा अर्नव और 8 वर्षीय बेटी आन्या उन के जीवन में नई खुशियां ले कर आई. लेकिन उन दोनों के जीवन में खुशियां ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाईं.

अरुण ने पुलिस की पूछताछ के दौरान बताया कि 2 साल पहले जब उन के जीवन में सब कुछ सही चल रहा था, उस समय आस्था के जीवन में एक और व्यक्ति ने कदम रखा. उस के आने के बाद से ही उन के संबंधों में दरार पैदा होना शुरू हो गई.

डा. आस्था के जीवन में इस नए व्यक्ति के आने के बाद से वह हर समय खोईखोई सी नजर आया करती थी. वह अकसर रात को घंटों तक फोन पर किसी युवक से बात किया करती थी. यदि आस्था से पूछा जाता कि वह किस से बात कर रही है तो उस के जवाब में वह कहती कि अपने कालेज की फ्रैंड्स से बात कर रही है.

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डा. आस्था की बदल गईं एक्टिविटीज

डा. आस्था अपने घर से निकलती तो काम के लिए ही थी, लेकिन वह अकसर अपने अस्पताल में पहुंचती ही नहीं थी. समय के साथसाथ उस का काम से घर पर आने के नियत टाइम में इजाफा होने लगा था.

जो आस्था पहले अपने परिवार के साथ, अपने बच्चों के साथ समय गुजारने में विश्वास किया करती थी, उस का हर दिन काम पर जाना, छुट्टी न लेना, वीकेंड और हौलिडे वाले दिन भी काम पर जाना इत्यादि की वजह से आस्था पर अरुण का शक बढ़ने लगा था. यहां तक कि आस्था उस नए युवक को अपने घर पर भी बुलाया करती थी, जब अरुण घर पर नहीं होता था.

अरुण को यह बात तब पता चली जब पड़ोस के एक दोस्त ने फोन कर के इस बात की सूचना उसे दी थी. शक बढ़ने के साथसाथ इन दोनों के बीच प्यार की जगह झगड़े ने ले ली थी.

वह लगभग हर दिन एकदूसरे के साथ इसी बात को ले कर झगड़ते थे. उन के आपस का यह झगड़ा बच्चों से भी नहीं छिपा था. बच्चों पर उन के झगड़े का बहुत असर पड़ने लगा था. अर्नव और आन्या दोनों अकसर एक साथ ही कमरे में खेलते थे, उन का अपने मांबाप से मिलनाजुलना, खेलना, बातें करना इत्यादि लगभग खत्म ही हो गया था.

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समय के साथसाथ इस दंपति के बीच होने वाला जुबानी झगड़ा मारपीट में तब्दील होने लगा था. झगड़े के बाद अरुण अकसर रात को अपनी फैक्ट्री में सोने के लिए चला जाया करता था. वह लगभग हर दिन ही अपनी फैक्ट्री में सोता था.

उन के बीच इस झगड़े की खबर फैक्ट्री में सिक्युरिटी गार्ड विकास को भी थी. क्योंकि झगड़ा करने के बाद विकास हर रात दारू की बोतल ले कर आता था, अपने गार्ड के साथ बैठ कर दारू पीतेपीते अपने दुखदर्द को बयान करता था और वहीं सो जाता था.

अगले भाग में पढ़ेंदोस्त से करा दी पति की पिटाई

Satyakatha: विदेशियों से साइबर ठगी- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

काल सेंटर के इशारे पर ऐसा करने वाले युवाओं को इस का जरा भी अंदेशा नहीं था कि उन के द्वारा पुष्कर में बैठ कर सात समंदर पार के लोगों को चूना लगाया जा रहा है और इस जालसाजी की आंच में वे भी झुलस जाएंगे.

औनलाइन ठगी का कारनामा ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया. कारण स्मार्ट टेक्नोलौजी की वजह से  पुलिस के इंटेलिजेंस और साइबर सेल को इस की भनक लगने में जरा भी देरी नहीं हुई. ठगे गए विदेशियों की शिकायत पर पुलिस के दोनों सेल ने तत्परता दिखाई.

इंटेलिजेंस के डीजी उमेश मिश्रा और पुलिस आईजी एस. सेंगाथिर ने इस पर गहन विचारविमर्श के बाद मामले की तह तक जाने के लिए अजमेर के एसपी जगदीश चंद्र शर्मा को काररवाई करने का निर्देश दे दिया.

इंटेलिजेंस और पुलिस के आला अधिकारियों के निर्देश पर इंटेलिजेंस के इंसपेक्टर महेंद्र शर्मा और प्रशिक्षु आईपीएस सुमित महरड़ा के नेतृत्व में पुलिस टीमों का गठन किया गया. जिन में पुष्कर थाने के थानाप्रभारी सुनील बेड़ा के साथ एसआई मुकेश यादव, नरेंद्र सिंह, पवन शर्मा, हैडकांस्टेबल सरफराज आदि शामिल किए गए.

इस के अलावा जयपुर की इंटेलिजेंस टीम में इंसपेक्टर महेंद्र शर्मा, एसआई गंगा सिंह गौड़, हैडकांस्टेबल विजय खंडेलवाल, सिपाही राजेंद्र तोगड़ा, फिरोज भाटी के साथ अजमेर के इंसपेक्टर नरेंद्र शर्मा, पुष्कर के एएसआई शक्ति सिंह भी शामिल थे.

पुलिस की दोनों टीमों ने 2 दिनों तक सेंटर के गिरोह पर कड़ी नजर रखी और फिर उन्हें धर दबोचा. बाद में एक अन्य अरोपी सौरभ शर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया.

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पुलिस ने जिन लोगों को गिरफ्तार किया, पूछताछ में उन के नाम यश खन्ना, झिलमिल कालोनी, नई दिल्ली. रवि कुमार मल्हार, लोघी कालोनी, नई दिल्ली. अभिषेक मीणा, दक्षिणपुरी, नई दिल्ली. तुषार बारोदिया, श्रीनाथपुरम, कोटा. कृष शुक्ला, वंदना एन्कलेव, गाजियाबाद. स्वाति सिलश्वाल, संगम विहार, नई दिल्ली. विकास समारिया, उद्योग नगर कोटा. विकास राजपुरोहित, खाती टिब्बा, मकराना, नागौर. राहुल जुल्हा, हौज खास, नई दिल्ली. राहुल राज, बिहार. लक्ष्मण राउत, भायंदर ईस्ट, मुंबई. दर्शन दवे, आनंद, गुजरात. रोहन यादव, मीरा रोड, मुंबई. बाबर शेख, मीरा रोड ईस्ट, मुंबई. कमल राठौड़, गोकुल धाम, मुंबई. राहुल राज, प्रगति विहार, अजमेर. विनीत उर्फ विक्की, लोहा खान अजमेर. तेजदीप, जवाहर नगर.

सभी आरोपियों के खिलाफ पुष्कर थाने में आईपीसी की धारा 419, 420,120बी और आईटी ऐक्ट की धारा 46 , 65, 66सी, 66डी में मुकदमे दर्ज कर दिए गए. उन्हें कोर्ट में पेश कर रिमांड पर ले लिया गया. उन से कड़ी पूछताछ की गई.

पूछताछ में सभी आरोपियों ने अपनेअपने राज खोले. उन्हीं में गिरोह का सरगना दिल्ली निवासी राहुल ने भी राज खोलते हुए बताया कि उस ने किन वजहों से ऐसा किया.

राहुल ने बताया कि कोरोना काल में उस के बिजनैसमैन पिता की मौत हो गई थी और 15 लाख रुपए के कर्ज में आ गया था. उसे चुकाने के लिए उसे आमदनी का कोई जरिया नहीं सूझ रहा था. उस के बाद ही उस ने पुष्कर में काल सेंटर खोला था.

करीब साढ़े 3 महीने से होटल में कमरा बुक कर रखा था. सेंटर चलाने के लिए दोनों होटल के सभी कमरे बुक कर लिए थे, ताकि वहां वे अपना काम बेरोकटोक कर सके.

इस तरह से काम शुरू होते ही आय होने लगी और कुछ महीने में ही उस ने 40 लाख रुपए से अधिक की रकम जुटा ली. पकड़े जाने तक वह करीब साढ़े 3 करोड़ रुपए की ठगी कर चुका था.

काल सेंटर चलाने के लिए राहुल ने स्थानीय लोगों को जानबूझ कर स्टाफ नहीं बनाया, बल्कि स्टाफ के जानकार की मदद से ही उस की संख्या बढ़ाई.

कुछ लोगों को औनलाइन वैकेंसी के जरिए जौब मिला था. उन्हें अपने स्तर से एक सप्ताह की ट्रेनिंग दी और काम के मुताबिक ब्रेनवाश कर दिया.

विदेशियों से क्या बात करनी है, कैसे समझाना है, कैसे पेश आना आदि की वाकायदा एक स्क्रिप्ट तैयार की गई थी. इस के अलावा औनलाइन डाटा मुहैया करवाने वाली कंपनियों से उस ने अमेरिका और आस्ट्रेलिया के आम नागरिकों के डाटा खरीद लिए थे.

यश की तरह काम करने वाले सभी कर्मचारी अनजाने में सेंटर से जुड़ गए थे. सभी में एक समानता थी कि वे बेरोजगार थे और कोरोना काल की वजह से उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिल रही थी.

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वे सैलरी और इंसेंटिव के लालच में आ कर हजारों किलोमीटर दूर जा कर भी काल सेंटर में काम करने को राजी हो गए थे. पुलिस ने सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद उन्हें जेल भेज दिया.

फरजी काल सेंटर में काम करने वाले 17 युवकों और एक युवती ने भले ही बेरोजगारी दूर करने के लिए द नेचर स्ट्रीट को चुना हो, लेकिन उन्हें मोहरा बना कर कंपनी ने विदेशियों को जिस तरह से चूना लगाया गया, वह बेरोजगारों के लिए भी एक सबक बन गया. कथा लिखे जाने तक आरोपियों को जमानत नहीं मिल पाई थी.

Manohar Kahaniya: सेक्स चेंज की जिद में परिवार हुआ स्वाहा- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- शाहनवाज

रोहतक का रहने वाला 20 साल का अभिषेक जब दिल्ली में स्किल कोर्स करने गया तो उस की दोस्ती समलैंगिक कार्तिक से हुई. यह दोस्ती प्यार में बदल गई. कार्तिक से शादी करने के लिए अभिषेक ने अपना लिंग चेंज कराने की ठान ली. लेकिन उस के मातापिता ने अपने इकलौते बेटे को इस की इजाजत नहीं दी. तब समलैंगिक प्यार में अंधे हो चुके अभिषेक ने अपने घर वालों को कुछ इस तरह से सजा दी कि सब की रूह कांप गई.

हरियाणा में रोहतक के विजय नगर में रहने वाला मलिक परिवार, इलाके के संपन्न परिवारों में से

एक था. घर के मुखिया प्रदीप मलिक को रोहतक का हर इंसान जानता था. पेशे से वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम किया करते थे और हर कोई उन्हें बबलू पहलवान के नाम से जानता था. उन के छोटे से हंसतेमुसकराते  परिवार में उन की पत्नी संतोष देवी उर्फ बबली, उन का एकलौता बेटा अभिषेक मलिक उर्फ मोनू और एकलौती बेटी तमन्ना उर्फ नेहा ही थी.

मलिक परिवार में कभी भी किसी भी सदस्य को किसी भी चीज की कमी नहीं थी. घर के दरवाजे पर एक गाड़ी खड़ी रहती, बच्चों के हाथों में उन के मनमुताबिक एप्पल के मोबाइल फोन और तो और दोनों बच्चों के पास एप्पल के ही लैपटौप थे.

इतना संपन्न परिवार होने के बावजूद मलिक परिवार में बीते कुछ समय से अशांति बनी हुई थी. बीते कुछ समय से अभिषेक घर में अपने घर वालों से 5 लाख रुपयों की मांग कर रहा था.

हालांकि उस के पिता बबलू पहलवान ने उसे पैसे देने से इंकार नहीं किया था, लेकिन घर में अशांति तब पैदा हुई जब घर वालों को अभिषेक के 5 लाख रुपयों की मांग करने की असली वजह पता चली.

घर वालों के लिए ये बात इतनी गंभीर थी कि उन्होंने अभिषेक पर घर में कई तरह की पाबंदियां तक लगा दीं. आखिर वह वजह क्या थी?

27 अगस्त, 2021 के दिन जब अभिषेक को लगा कि उस पर घर वालों के द्वारा लगाई गई पाबंदियां कुछ ढीली पड़ी हैं, तो उस ने तय किया कि वह बाहर घूम कर आएगा. आखिर वह पिछले 20 दिनों से घर में किसी कैदी की तरह रहने को मजबूर था जिस के साथ कोई भी ढंग से बात करने को राजी नहीं था. यहां तक कि उस की मां और बहन भी उस से नजरें नहीं मिलाते थे. घर में अभिषेक को समझानेबुझाने के लिए उस की नानी रोशनी देवी भी आई थीं. सिर्फ उस की नानी ही उस से इन दिनों बात किया करतीं और उस का खयाल रखा करती थीं.

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27 अगस्त को घर में हर कोई मौजूद था. उस के पापा भी उस दिन काम से नहीं निकले थे. करीब सुबह 11 बजे के आसपास अभिषेक ने घर में किसी को कुछ नहीं बताया और घर से थोड़ा टहलने के लिए निकल गया. विजय नगर के पास ही एक जगह पर उस का दोस्त कार्तिक दिल्ली से उस से मिलने आया था तो अभिषेक वहीं चला गया. जब वह अपने पक्के यार कार्तिक से मिल कर दोपहर को ढाई बजे के करीब घर पर लौटा तो उस ने देखा कि घर में सभी कमरे बाहर से बंद थे.

उस ने कमरा खटखटाया लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. उस ने अपनी बहन नेहा को फोन मिलाया लेकिन घंटी बजती रही. अभिषेक ने उस के बाद अपनी मां के नंबर पर फोन किया. इस बार रिंगटोन जोर से बजी और ये समझ आया कि फोन घर पर ही है लेकिन किसी ने भी नहीं उठाया.

हार मान कर उस ने अपने पिता के नंबर पर फोन किया लेकिन वही हुआ जो अभी तक होता आ रहा था, किसी ने फोन नहीं उठाया और कोई जवाब नहीं मिला. घर के सदस्यों को लगातार फोन करने का सिलसिला काफी देर तक चलता रहा लेकिन जब अभिषेक को कुछ गड़बड़ होने का अंदेशा हुआ तो उस के दिल में घबराहट पैदा हो गई.

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अभिषेक ने बिना किसी देरी के अपने पापा के साथ प्रौपर्टी डीलिंग में पार्टनर और उस के मामा प्रवीण, जोकि सांपला के रहने वाले थे, को फोन मिलाया. उस ने हड़बड़ाते हुए कहा, ‘‘मामा, घर पर कोई फोन नहीं उठा रहा, दरवाजा भी लौक हो रखा है. मुझे समझ नहीं आ रहा है कि क्या हुआ है. अंदर से किसी की आवाज नहीं आ रही है..’’

उस के मामा प्रवीण ने उसे हौसला रखने को कहा, ‘‘अरे चिंता मत कर, मैं देखता हूं एक बार.’’

अगले भाग में पढ़ें- घर के बाहर जुट गई भीड़

Satyakatha- इश्क का जुनून: प्यार को खत्म कर गई नफरत की आग- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक-  दिनेश बैजल ‘राज’/संजीव दुबे

पुलिस ने प्रेमी युगल की खोजबीन करते हुए 24 अगस्त को नेहा के पिता देवीराम को शक के आधार पर हिरासत में ले लिया. पुलिस को किसी अनहोनी का शक था क्योंकि देवीराम ने अपनी नाबालिग बेटी के लापता होने के संबंध में थाने में कोई रिपोर्ट दर्ज क्यों नहीं कराई थी?

पुलिस ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने अपना जुर्म कुबूल करते हुए कहा, ‘‘बेटी नेहा के अपने प्रेमी उत्तम के साथ भाग जाने से उस के परिजन काफी नाराज थे. इस कृत्य से बेटी ने परिवार की नाक कटवा दी.’’

इस सनसनीखेज अपहरण व हत्याकांड का रहस्योद्घाटन करते हुए पुलिस को देवीराम ने जो खौफनाक जानकारी दी, वह रोंगटे खड़ी कर देने वाली थी.

देवीराम ने बताया कि 31 जुलाई, 2021 को नेहा जब उत्तम के साथ घर से भाग गई तो सभी लोग उस के लिए परेशान हो गए. इस बीच उन की खोजबीन की गई. इसी दौरान दोपहर को उत्तम के दोस्त वीनेश निवासी कुतुकपुर ने फोन पर उसे सूचना दी कि दोनों पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हैं. तब उस ने वीनेश से कहा कि वह किसी तरह वीनेश को वहीं रोके रहे. वह दिल्ली पहुंच रहा है. वीनेश ने ऐसा ही किया.

उधर देवीराम कुछ लोगों को साथ ले कर कार से दिल्ली के लिए निकल गया और पुरानी दिल्ली पहुंच गया. पिता और अन्य को देख कर नेहा डर गई. प्रेमी युगल समझ नहीं पा रहा था कि उन के साथ अब क्या होगा.

देवीराम नेहा और उत्तम को रात करीब 2 बजे थाना नसीरपुर स्थित बांकलपुर भट्ठे पर ले आया. यहां दोनों को समझाने का प्रयास किया. लेकिन वे नहीं माने.

उन के न मानने पर उस ने अपने साथ आए लोगों को घर भेज दिया. इस के बाद फोन कर अपने भाई शिवराज को इस घटनाक्रम की जानकारी दी.

शिवराज आगरा जिले के पिनाहट स्थित बाबा बर्फानी कोल्ड स्टोर पर मुनीम की नौकरी करता था. शिवराज कार ले कर भट्ठे पर आ गया. यहां से नेहा और उत्तम को कार में बैठा कर वे नौरंगी घाट पहुंचे.

उन्होंने पहले बेटी नेहा की गला दबा कर हत्या कर लाश यमुना में फेंक दी. इस बीच उत्तम ने शोर मचाया. तब उत्तम की भी गला दबा कर हत्या कर उस की लाश भी उसी स्थान पर यमुना में फेंक दी. शिवराज गाड़ी ले कर पिनाहट चला गया. जबकि देवीराम पैदल ही गांव पहुंचा.

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इस के बाद एसएसपी अशोक कुमार शुक्ला ने आगरा पुलिस से संपर्क किया. प्रेमी युगल के शवों की तलाश के लिए गोताखोरों की टीम बुलाई गई.

26 अगस्त को पीएसी के गोताखोर स्टीमर ले कर बटेश्वर के नौरंगी घाट पहुंचे और देवीराम द्वारा यमुना में शव फेंके जाने वाले स्थान व आसपास कई किलोमीटर के क्षेत्र में शवों की तलाश शुरू की गई.

19 घंटे तक पुलिस के गोताखोरों ने तलाशे शव

19 घंटे की तलाश के बाद भी युवक व किशोरी नेहा के शव बरामद नहीं हुए. एसपी अशोक कुमार शुक्ला के अनुसार शवों को फेंके हुए काफी समय हो चुका है. ऐसे में शवों के बह कर जाने और जलीय जंतुओं द्वारा खाने से भी इनकार नहीं किया जा सकता है. हालांकि पुलिस ने हार नहीं मानी और शवों की अपने स्तर से यमुना व आसपास के क्षेत्रों में तलाश जारी रखी.

जबकि वास्तविक कहानी कुछ और ही निकली. जहांगीरपुर गांव का यह प्रेमी जोड़ा औनर किलिंग का शिकार तो हुआ था. लेकिन पूरे मामले के तार उत्तर प्रदेश सहित दिल्ली, राजस्थान व मध्य प्रदेश से जुड़े निकले.

राजस्थान व मध्य प्रदेश में एक युवक और एक किशोरी के शव मिलने के बाद इस मामले में 42 दिन बाद चौंकाने वाला खुलासा हुआ.

प्रेमी युगल का देवीराम व घरवालों ने दिल्ली से अपहरण कर दोनों की हत्या कर शव राजस्थान व मध्य प्रदेश में फेंक दिए थे. देवीलाल पुलिस को गुमराह कर दोनों के शवों को बटेश्वर स्थित नौरंगी घाट स्थित यमुना में फेंकने की बात कहता रहा.

इस घटना का खुलासा दूसरे आरोपी शिवराज, जोकि नेहा का चाचा है, ने पुलिस रिमांड के दौरान किया. नामजद आरोपी शिवराज ने 3 सितंबर को कोर्ट में सरेंडर कर दिया था. जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

पुलिस ने उस की रिमांड के लिए 13 सितंबर को प्रार्थनापत्र दिया. इस पर कोर्ट ने 14 सितंबर को 48 घंटे का रिमांड स्वीकृत किया.

थाना सिरसागंज के थानाप्रभारी प्रवेंद्र कुमार व आईओ एसएसआई मोहम्मद खालिद आरोपी शिवराज को ले कर थाने आए और उस से पूछताछ की. इस संबंध में जो असली कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

31 जुलाई, 2021 को नेहा व उत्तम गांव से भाग कर दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचे थे. वहां पहुंच कर उत्तम ने रहने के लिए कमरा किराए पर लेने का निर्णय लिया. इस काम में मदद के लिए उस ने कुतुकपुर निवासी अपने करीबी दोस्त वीनेश को फोन किया.

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वीनेश के पिता विनोद दिल्ली में काम करते हैं. वीनेश दिल्ली आताजाता रहता था. वीनेश उस समय अपने गांव में था. उसे उत्तम ने पूरी बात बताई और दिल्ली में रहने के लिए कमरा किराए पर दिलाने की बात कही.

वीनेश ने यह जानकारी नेहा के पिता देवीराम को दे दी. जानकारी मिलते ही देवीराम ने कहा, ‘‘वीनेश, तुम उसे वहीं रोक कर रखो.’’

इस पर वीनेश ने उत्तम से कहा, ‘‘तुम मैट्रो पर ही मिलना. मैं दिल्ली आ रहा हूं. वहां तुम्हें कमरा दिलवा दूंगा.’’

यह सुन कर उत्तम और नेहा को तसल्ली हुई. वे वीनेश के आने का इंतजार करने लगे.

देवीराम अपने भाई शिवराज व गांव के श्याम बिहारी, रोहित, राहुल, अमन उर्फ मोनू व कुतुकपुर के वीनेश व गुंजन ड्राइवर के साथ ईको कार से 31 जुलाई को ही दिल्ली के लिए रवाना हो गए. रास्ते में बीचबीच में वीनेश उत्तम से मोबाइल पर बात करता रहा.

दिल्ली पहुंच कर वीनेश ने उत्तम से संपर्क किया. अचानक वीनेश के साथ अपने घरवालों को देख कर नेहा व उत्तम डर गए. लेकिन देवीराम ने दोनों को प्यार से समझाते हुए कहा, ‘‘तुम लोगों को इस तरह नहीं भागना चाहिए था. इस से दोनों ही परिवारों की गांव में बदनामी होगी. तुम लोग घर चलो.’’

बहलाफुसला कर वे दोनों को दिल्ली से अपने साथ ले आए. रात करीब एक बजे वे लोग थाना नसीरपुर स्थित बांकलपुर भट्ठे पर पहुंचे. यहां दोनों को समझाते रहे कि वे एकदूसरे को भूल जाएं. लेकिन दोनों एक साथ रहने की जिद पर अड़े रहे. उन्होंने कहा कि वे शादी करना चाहते हैं और शादी के बाद वे गांव नहीं आएंगे.

दगाबाज निकला जिगरी दोस्त वीनेश

उत्तम ने जिस जिगरी दोस्त वीनेश से सिर छिपाने के लिए मकान दिलाने को कहा था. वही दोस्त प्रेमी युगल की जान का दुश्मन बन गया. उस ने फोन कर नेहा के पिता देवीराम को दोनों के ठिकाने की जानकारी दे कर दिल्ली ले जा कर उन्हें धोखे से पकड़वा दिया. दोस्त यदि दगा न करता तो आज प्रेमी युगल जिंदा होता.

तभी देवीराम के भाई शिवराज ने अपने परिचित जितेंद्र शर्मा को फोन कर आलू व्यापारी सुनील की बोलेरो ले कर आने को कहा. कुछ देर बाद जितेंद्र शर्मा सुनील के साथ उस की बोलेरो ले कर रात 3 बजे भट्ठे पर पहुंच गया.

उत्तम और नेहा को भट्ठे से पिनाहट स्थित कोल्ड स्टोरेज पर ला कर शिवराज ने एक कमरे में दोनों के हाथपैर बांध कर बंधक बना कर 2 दिन यानी 2 व 3 अगस्त को रखा. यहां देवीराम ने अपने भाई व अन्य के साथ एक खौफनाक साजिश रची.

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इस के बाद देवीराम ने अपने परिचित बालकराम को फोन कर मध्य प्रदेश के भिंड शहर में मिलने के लिए कहा. 3 अगस्त की रात साढ़े 10 बजे देवीराम उस का भाई शिवराज, देवीराम का भतीजा जैकी, सुनील प्रेमी युगल नेहा व उत्तम को ले कर भिंड पहुंच गए. वहां उन्हें बालकराम मिल गया. वह भी गाड़ी में बैठ गया. गाड़ी झांसी ग्वालियर मार्ग होते हुए ग्वालियर जिले के डबरा पहुंची.

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Crime: एक सायको पीड़ित की अजब दास्तां

माता-पिता बच्चों को पढ़ने के लिए  भेजते हैं मगर एक युवक की साइबर पुलिस द्वारा कथित खुलासे के बाद यह तथ्य चिंता का सबब बन गया है कि जब कोई युवा मानसिक रूप से पीड़ित होकर अश्लील हरकतें करने लगे और माध्यम सोशल मीडिया को बनाए तो आसपास की महिलाएं और लड़कियां को कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

पुलिस ने एक एक अलग ही आरोपी एक आईआईटी छात्र को पटना, बिहार से गिरफ्त में लिया  है. जिस पर आरोप है  राजधानी दिल्ली के एक नामी स्कूल की पचास से अधिक छात्राओं और महिला शिक्षकों को -“सोशल नेटवर्किंग साइट” के द्वारा भयादोहन अर्थात ब्लैक मेलिंग करने लगा था.पुलिस के मुताबिक महावीर पटना के खाजेकला थाना इलाके के गुजरी बाजार का रहवासी है. लंबी तफ्तीश के पश्चात गिरफ्तार कर लिया.

दरअसल संपूर्ण घटनाक्रम के पश्चात जो कहानी सामने आई है उसके अनुसार सिविल लाइंस स्थित स्कूल की तरफ से पुलिस को अगस्त माह में शिकायत मिली थी कोई अंजान शख्स ऑनलाइन कक्षाओं में अवैध तौर पर घुस जाता है. वह छात्राओं को ब्लैकमेल करता है और स्कूल के व्हाट्सएप ग्रुप के प्रोफाइल लोगो एवं अन्य सेटिंग्स में परिवर्तन कर अश्लील हरकतें कर रहा  है. अपने आप में विचित्र सच्ची घटना थी पुलिस ने जब यह मामला हाथ में लिया तो उसके सामने एक बड़ी चुनौती थी कि इस अजब गजब मामले का पटाक्षेप कैसा होगा.आखिरकार  इंस्पेक्टर संजीव कुमार की देखरेख में साइबर सेल प्रभारी एसआई रोहित सारस्वत को जांच सौंपी गई. इस दरमियान एक छात्रा ने भी थाने में शिकायत दी कि उसके साथ कोई अश्लील हरकतें कर रहा है. फिर एसआई रोहित सारस्वत और एसआई रोहित भारद्वाज ने स्कूल की छात्राओं से बात की तो कुछ आईपी एड्रेस मिले.

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पुलिस ने व्हाट्सएप से भी आईपी एड्रेस प्राप्त किए. इस सब के आधार पर पुलिस महावीर कुमार तक अंततः पहुंच गई. एसआई प्रवीन यादव और एसआई रोहित ने  पटना से आरोपी को गिरफ्तार कर लिया. महावीर धातु विज्ञान से बीटेक की पढ़ाई कर रहा है.

अश्लील फोटो और ब्लैकमेल

आरोपी महावीर के इकबालिया बयान के मुताबिक वह कोटा, राजस्थान में 2018 में इंजीनियरिंग की तैयारी करने के लिए जब गया था वहां  सिविल लाइंस दिल्ली स्थित स्कूल की पूर्व छात्रा से मुलाकात हुई जिसके कहने पर उसने इंस्टाग्राम पर प्रोफाइल बनाकर  बातचीत  शुरू की. आगे उसने इंस्टाग्राम पर संबंधित स्कूल की छात्राओं को ढूंढना शुरू किया. फिर उसने मोबाइल नंबर लेकर बात करनी शुरू की. एक छात्रा से उसकी दूसरी सहेली का नंबर लेकर बात करना शुरू किया. इस बीच उसके आचरण से नाराज़ छात्राओं ने बात करना बंद कर दिया तो उसने परेशान करने का निर्णय लिया.

सबसे पहले महावीर ने छेड़छाड़ कर छात्राओं की अश्लील फोटो बनाई. इसके जरिए छात्राओं को भयभीत और ब्लैकमेल करने लगा. वह डरा धमकाकर स्कूल के व्हाट्सएप ग्रुप और ऑनलाइन कक्षाओं के लिंक मंगा लिया करता था. फिर इन ग्रुप में कभी फोटो बदल देता तो कभी अश्लील फोटो डाल देता. यही नहीं बदला लेने के लिए महावीर ने आवाज बदलने वाले एप का इस्तेमाल किया. वह इस एप के जरिए एक छात्रा को दूसरे छात्रा के प्रति भड़काता था.

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यही नहीं स्कूल में शिक्षकों को फोन कर छात्राओं की शिकायत करता था. वह स्कूल की महिला टीचर से भी अभद्रता करता था. इसकी वजह से आठ छात्राओं को स्कूल की ऑनलाइन कक्षाओं से निकाल भी दिया गया था. मगर आखिरकार महावीर को पुलिस ने पकड़ ही लिया और आज वो जेल की हवा खा रहा है.
संगीत के द्वारा मनोविकारों की गुत्थी सुलझाने वाले शिक्षक घनश्याम तिवारी के मुताबिक आमतौर पर ऐसे ही युवक मनो विकारों से ग्रस्त होते हैं और इसके लिए जहां उन्हें चिकित्सा की आवश्यकता होती है वही संगीत के माध्यम से भी स्वास्थ्य गत लाभ संभव है. दरअसल ऐसे युवक एक ऐसे समय से गुजर रहे होते हैं जब उन्हें सही सलाह की आवश्यकता होती है उन्हें यह बताना आवश्यक होता है कि आप की सीमाएं क्या है.

पुलिस अधिकारी विवेक शर्मा के मुताबिक ऐसे ही कुछ मामलों में विवेचना की है जिसमें मैंने यह पाया है कि कम उम्र के युवक अश्लील मनोभावों से ऐसी हरकतें करने लगते हैं उन्हें कानून की जानकारी नहीं होती और अति आत्मविश्वास के कारण वे गलत दिशा में आगे बढ़ जाते हैं फिर बाद में पछताना पड़ता है.

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Manohar Kahaniya- राम रहीम: डेरा सच्चा सौदा के पाखंडी को फिर मिली सजा- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

हरियाणा पुलिस ने हिंसा फैलाने के आरोप में राम रहीम की गोद ली बेटी और उस की कथित प्रेयसी कहीं जाने वाली हनीप्रीत को भी चंडीगढ़ से गिरफ्तार कर लिया. हनीप्रीत हिंसा होने के बाद से ही फरार थी.

फ्रीज हुए डेरा के 90 बैंक एकाउंट

साध्वियों से बलात्कार मामले में गुरमीत राम रहीम का सजा होने व गिरफ्तारी के बाद से ही डेरा सच्चा सौदा के रहस्य लोक की कहानियां सार्वजनिक होने लगीं.

इधर, डेरा सर्मथकों की हिंसा के बाद डेरा के 90 बैंक खाते फ्रीज कर दिए गए. गुरमीत राम रहीम के खिलाफ एन्फोर्समेंट डायरेक्टोरेट (ईडी) ने भी जांच शुरू कर दी. क्योंकि डेरा की 700 करोड़ की संपत्ति में मनी लांड्रिंग की आशंका नजर आ रही थी.

गुरमीत राम रहीम को रेप मामले में सजा होने के बाद पंचकूला और सिरसा के अलावा करीब 5 राज्यों में हिंसक प्रर्दशन हुए थे. इस मामले में दरजनों केस दर्ज हुए. चंडीगढ़ व पंचकूला में हिंसा फैलाने के मामले में डेरा प्रवक्ता दिलावर सिंह को भी देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया.

दिलावर सिंह एमएसजी ग्लोरियस इंटरनैशनल स्कूल सिरसा का एडमिनिस्ट्रेटर था. उस ने डेरामुखी के गनमैन ओमप्रकाश सिंह, डेरा सर्मथक दान सिंह व चमकौर सिंह के साथ मिल कर पंचकूला में आगजनी की घटनाओं को अंजाम दिया था. करीब 177 से अधिक मामले दर्ज किए गए और 1137 आरोपियों को अरेस्ट किया गया था.

बहरहाल, गुरमीत राम रहीम के पापों की कलई खुलनी शुरू हो चुकी थी और कानून ने सख्त रुख अपना लिया था. उस के खिलाफ मुंह न खोलने वाले लोग भी अब अदालत में सच बयां कर रहे थे.

एक तरफ राम रहीम साध्वियों से बलात्कार के मामले में जेल से बाहर आने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा रहा था कि 17 जनवरी, 2019 को पंचकूला की विशेष सीबीआई के जज जगदीप सिंह  ने सिरसा के स्थानीय पत्रकार रामचंद्र छत्रपति हत्या के मामले में भी गुरमीत राम रहीम को उम्रकैद की सजा सुना दी.

इस मामले में डेरा प्रमुख के साथ 3 अन्य लोगों कुलदीप सिंह, निर्मल सिंह और कृष्ण लाल को भी दोषी ठहराया गया था. इन्हें भी उम्रकैद की सजा सुनाई गई.

दरअसल, सिरसा के स्थानीय पत्रकार रामचंद्र छत्रपति वकालत छोड़ कर ‘पूरा सच’ नाम से एक अखबार निकालते थे. रामचंद्र अपने अखबार के नाम की तरह ही पत्रकारिता के लिए जाने जाते थे. निर्भीक छवि के रामचंद्र छत्रपति की हत्या का मामला कहीं न कहीं साध्वियों के दुष्कर्म से ही जुड़ा था.

2002 में रामचंद्र छत्रपति के हाथ वह चिट्ठी लग गई, जो गुमनाम साध्वी ने लिखी थी. रामचंद्र ने उस चिट्ठी को अपने अखबार में छाप दिया. इसी अखबार में छपी खबर के बाद लोगों को डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख राम रहीम द्वारा डेरे में साध्वियों के साथ दुष्कर्म करने की जानकारी मिली थी. इस खबर के छपने के बाद छत्रपति को जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं.

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आखिरकार 19 अक्तूबर, 2002 की रात छत्रपति को घर के बाहर गोली मारी गई. इस के बाद 21 अक्तूबर को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में उन की मौत हो गई.

हालांकि इस दौरान छत्रपति होश में आए लेकिन राजनीतिक दबाव के कारण छत्रपति का बयान तक दर्ज नहीं किया गया.

दरअसल, छत्रपति अपने अखबार में डेरा सच्चा सौदा की अच्छी और बुरी खबरों को छापते थे, जिस कारण उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलती रहती थीं. यह बात सिरसा के सभी पत्रकार जानते थे.

मृतक पत्रकार के बेटे अंशुल ने हाईकोर्ट में दायर की थी याचिका

जनवरी, 2003 में मृतक के बेटे अंशुल ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर मामले को सीबीआई को सौंपने की मांग की. इस याचिका में डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के  भी इस में संलिप्त होने के आरोप लगाए. सोशल मीडिया में रामचंद्र छत्रपति को इंसाफ दिए जाने की मांग जोर पकड़ने लगी.

इसी दौरान डेरामुखी पर डेरे के एक पूर्व मैनेजर रंजीत सिंह की हत्या के भी आरोप लगने लगे. इस मामले में भी पीडि़तों की तरफ से अदालत का दरवाजा खटखटाया गया.

हाईकोर्ट ने पत्रकार छत्रपति और डेरा मैनेजर रंजीत सिंह की हत्या के मामलों को जोड़ते हुए 10 नवंबर, 2003 को सीबीआई को एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया.

सीबीआई ने दिसंबर, 2003 में मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी. मामला दर्ज होते ही डेरा की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर जांच पर रोक लगाने की अपील की गई, जिस के बाद उस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की और मामले की जांच पर उस वक्त रोक लगा दी गई.

लेकिन नवंबर, 2004 में दूसरे पक्ष की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने डेरा की याचिका को खारिज कर दिया और सीबीआई जांच को जारी रखने के आदेश दिए.

सीबीआई ने दोबारा दोनों मामलों की जांच शुरू की और डेरा प्रमुख समेत कइयों को अभियुक्त बनाया. इसी मामले में सीबीआई कोर्ट ने गुरमीत राम रहीम समेत 4 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई.

साध्वी रेप केस मामले और पत्रकार छत्रपति हत्याकांड की सजा काट रहे डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के जेल जाने के बाद से उस की खास राजदार हनीप्रीत सब से ज्यादा सुर्खियों में रही है. उस पर भी पंचकूला में दंगा भड़काने, राजद्रोह और राम रहीम को पुलिस कस्टडी से भगाने की साजिश रचने के आरोप लगे और बाद में उसे गिरफ्तार किया गया.

हालांकि कुछ महीने बाद हनीप्रीत को अदालत से जमानत मिल गई और उस के बाद हनीप्रीत ने डेरा सच्चा सौदा की कमान अपने हाथों में ले ली. लेकिन सवाल उठता है कि आखिर हनीप्रीत कौन है, जो गुरमीत राम रहीम के बाद डेरा सच्चा सौदा की सब से ताकतवर बनी है.

आखिर इतना बड़ा परिवार होते हुए राम रहीम क्यों हर वक्त हनीप्रीत को याद करता रहा और हनीप्रीत से उस का क्या खास रिश्ता है.

हनीप्रीत इंसां का जन्म 21 जुलाई, 1980 को हरियाणा के फतेहाबाद में हुआ था. उस का स्कूली नाम प्रियंका तनेजा है.  प्रियंका तनेजा का पूरा परिवार करीब ढाई दशक से डेरे का अनुयायी था.

हनीप्रीत के दादा ने पाकिस्तान से आ कर हरियाणा के सिरसा में कपड़े की दुकान खोली थी. जहां गुरमीत राम रहीम के गुरु शाह मस्तानाजी आते रहते थे. तभी से उन की फैमिली डेरे की अनुयायी हो गई.

कुछ ही दिनों में हनीप्रीत के दादा डेरे के प्रशासक बन गए और वहां खजाने से संबंधित काम देखने लगे थे. 1996 में प्रियंका के दसवीं पास करते ही दादा ने उस का एडमिशन डेरे के ही स्कूल में करवा दिया.

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हनीप्रीत के पिता रामानंद तनेजा पहले पुरानी दिल्ली एमआरएफ टायर्स का ‘सर्च टायर्स’ नाम से शोरूम चलाते थे. लेकिन बाद में उन्होंने डेरे में ही एक बड़ा सीड प्लांट डाल लिया. बाद में गुरमीत राम रहीम ने उस के पिता रामानंद तनेजा को डेरा की पर्चेजिंग कमेटी का हेड बना दिया, जो डेरे के सारे सामान की खरीदफरोख्त का काम देखने लगे.

प्रियंका के भाई साहिल तनेजा को भी गुरमीत का आशीर्वाद मिल गया और वह भी डेरे में बड़े स्तर पर कारोबार करने लगा. बाद में प्रियंका की छोटी बहन नीशू तनेजा की गुरुग्राम में जो शादी हुई, उस में भी बाबा का खास योगदान रहा.

हनीप्रीत के चाचा और मामा समेत दूसरे कई रिश्तेदार सिरसा के मुख्य मार्गों पर टायरों का कारोबार करते हैं. आज भी डेरे में कई बड़े प्रोजेक्ट हनीप्रीत के नाम से चल रहे हैं.

बताते हैं कि गुरमीत राम रहीम 1996 में डेरे के स्कूल में जब छात्राओं को आशीर्वाद देने गया था तो वहां उस की नजर पहली बार प्रियंका तनेजा पर पड़ी थी. बस उसी के बाद बाबा ने कुछ ऐसा चक्कर चलाया कि वह प्रियंका को अपना खास आशीर्वाद देने के लिए डेरे में अपने निजी कक्ष में बुलाने लगा.

बाबा की खासमखास बन गई हनीप्रीत

कुछ ही दिनों में प्रिंयका पूरी तरह बाबा के वश में हो गई. कुछ समय बाद बाबा ने उस का नया नामकरण किया और उस का नाम हनीप्रीत इंसां रख दिया. क्योंकि डेरे में सभी राजदारों व साधुसाध्वियों को ‘इंसां’ सरनेम दिया जाता है.

उम्र का काफी फासला होने के बावजूद धीरेधीरे गुरमीत राम रहीम और हनीप्रीत इंसा के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं.

जल्द ही हनीप्रीत बाबा की खास बन गई और उस की पहुंच बेरोकटोक बाबा के बैडरूम तक होने लगी. हनीप्रीत ने 12वीं तक की पढ़ाई डेरे के स्कूल में ही की. बाबा ने उस का डेरे से बाहर आनाजाना बंद करा दिया. डेरे में उस के लिए एक खास आवास की व्यवस्था कर दी गई और वहीं पर उस के टीचर उसे पढ़ाने के लिए आते.  इतना ही नहीं, बाबा ने हनीप्रीत के लिए एक विशेष जिम बनवा दिया. हनीप्रीत के नाम पर डेरे के अंदर एक बुटीक भी खोल दिया गया.

बताते हैं कि धीरेधीरे हनीप्रीत और राम रहीम की नजदीकियां कुछ इस तरह बढ़ गईं कि हनीप्रीत बाबा के हर राज की राजदार हो गई. हनीप्रीत अब गुरमीत की सब से करीबी बन गई थी. गुरमीत उस पर इतना मेहरबान था कि उस ने हनीप्रीत के नाम पर डेरे में कई बड़े कारोबार शुरू किए.

बताते हैं कि डेरे के अंदर बाबा और हनीप्रीत के रिश्ते को ले कर हमेशा लोगों के मन में सवाल रहते थे. लेकिन बाबा के डर से कोई अपनी जबान नहीं खोलता था, क्योंकि बाबा राम रहीम उसे लोगों के सामने अपनी बेटी, अपनी ‘परी’ कहता था. लेकिन हकीकत यह थी कि वो बाबा की ‘परी’ नहीं बल्कि बाबा की ‘हनी’ थी.

बताते हैं कि जब बाबा को लगा कि एक अविवाहित लड़की इस तरह उस की सेवा में रहेगी तो इस से उस की छवि और प्रतिष्ठा पर सवाल खड़े हो सकते हैं. इसलिए उस ने 14 फरवरी, 1999 वैलेनटाइंस डे के दिन हनीप्रीत की शादी विश्वास गुप्ता से करा दी. हनीप्रीत के परिवार की तरह करनाल के रहने वाले विश्वास गुप्ता का परिवार भी बाबा का अनुयायी था. बाबा ने ही शादी की सारी व्यवस्थाएं कराई थीं. राम रहीम ने हनीप्रीत की शादी तो गुप्ता से करा तो दी, लेकिन दोनों को आदेश दिया कि वे बच्चा पैदा न करें.

अगले भाग में पढ़ें- डेरे के सारे फैसले लेने लगी हनीप्रीत

Manohar Kahaniya: पत्नी की मौत की सुपारी- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

उस दिन मई 2021 की 18 तारीख थी. रात के 8 बज रहे थे. बिधनू थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह इलाके में गश्त पर निकलने वाले थे, तभी उन के मोबाइल फोन पर काल आई. उन्होंने काल रिसीव की तो फोनकर्ता ने चौंकाने वाली सूचना दी. उस ने बताया कि करसुई पुल के पास जो हनुमान मंदिर है, वहां एक महिला की लाश पड़ी है. उस की हत्या गोली मार कर की गई है.

चूंकि मामला महिला की हत्या का था, अत: थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने गश्त पर जाने के बजाय उस जगह जाना जरूरी समझा जहां महिला की लाश पड़े होने की उन्हें सूचना मिली थी. इस से पहले उन्होंने घटना की खबर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी.

फिर पुलिस बल के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो लिए. थाना बिधनू से करसुई नहर पुल की दूरी करीब 3 किलोमीटर थी. इसलिए पुलिस को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा.

घटनास्थल पर उस समय कुछ लोग खड़े थे. उन्होंने महिला की लाश का मुआयना किया. मृतक महिला की उम्र 35 साल के आसपास थी. गोली मार कर उस की हत्या की गई थी. पीठ पर 2 तथा सीने पर एक गोली दागी गई थी.

महिला जींस व कमीज पहने थी. उस की मांग में सिंदूर तथा पैरों में बिछिया थे. स्पष्ट था कि वह विवाहित थी. शव के पास ही सड़क किनारे उस की स्कूटी लुड़की पड़ी थी, जिस का नंबर यूपी78 जीएफ 3398 था. वहीं पर मृतका का पर्स व मोबाइल फोन पड़ा था, जिसे पुलिस ने सुरक्षित कर लिया.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (आउटर) अष्टभुजा प्रसाद सिंह तथा डीएसपी विकास पांडेय घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और वहां मौजूद कुछ लोगों से पूछताछ की.

वहां मौजूद एक युवक ने पुलिस को बताया कि वह मंदिर में हनुमानजी के दर्शन करने आया था. तभी उसे फायर की आवाज सुनाई दी. वह वहां पहुंचा तो महिला मृत पड़ी थी. उस ने 2 हत्यारों को मोटरसाइकिल से भागते हुए देखा था. दोनों हेलमेट लगाए थे. उस ने ही पुलिस को सूचना दी थी.

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अब तक महिला के शव को अनेक लोग देख चुके थे, लेकिन कोई उसे पहचान न सका था. तब पुलिस ने मौके की काररवाई पूरी कर शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भिजवा दिया. महिला की स्कूटी भी थाने भिजवा दी.

घटनास्थल से मृत महिला का पर्स व मोबाइल फोन बरामद हुआ था. इस मोबाइल फोन को थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने खंगाला तो उस में उस के पिता का फोन नंबर सेव था. थानाप्रभारी ने उस नंबर पर बात की तो पता चला कि वह नंबर बिरला नगर ग्वालियर के रहने वाले अनिल कुमार शर्मा का है. उन्होंने अनिल से पूछा कि जिस मोबाइल नंबर से वह बात कर रहे हैं, वह किस का है?

‘‘यह नंबर मेरी बेटी आरती शर्मा का है. लेकिन आप कौन है? मेरी बेटी का मोबाइल फोन आप के पास कैसे आया?’’ अनिल शर्मा ने घबराते हुए पूछा.

‘‘देखो शर्माजी, मैं कानपुर नगर के थाना बिधनू से इंसपेक्टर विनोद कुमार सिंह बोल रहा हूं. एक महिला के शव के पास से मुझे यह मोबाइल फोन मिला था. आप जल्दी से थाना बिधनू आ जाइए. तब शव की शिनाख्त भी हो सकेगी.’’

19 मई की सुबह 8 बजे अनिल कुमार शर्मा अपने साढू मनोज के साथ थाना विधनू पहुंच गए. इस के बाद थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह उन्हें पोस्टमार्टम हाउस ले गए. यहां महिला की लाश देख कर अनिल शर्मा फफक कर रो पड़े. उन्होंने बताया कि लाश उन की बेटी आरती की है.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने अनिल कुमार शर्मा को धैर्य बंधाया और फिर पूछताछ की. अनिल कुमार ने बताया कि उन्होंने कई साल पहले आरती की शादी हमीरपुर जिले के भरुआ सुमेरपुर कस्बा निवासी श्यामशरण शर्मा के साथ की थी.

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लेकिन दामाद और बेटी में पटरी नहीं खाती थी सो दोनों के बीच अकसर झगड़ा होता था. श्यामशरण को शक था कि आरती का किसी के साथ चक्कर चल रहा है. इसी को ले कर वह आरती को प्रताडि़त करता था.

अनिल शर्मा ने नामजद लिखाई रिपोर्ट

अनबन होने पर आरती मायके में रहने लगी थी. दिसंबर 2020 में दोनों के बीच समझौता कराने का प्रयास किया था. लेकिन असफल रहा. समझौते के दौरान ही दोनों झगड़ा करने लगे थे. उसी समय गुस्से में श्यामशरण ने आरती का सिर फोड़ दिया था. लोकलाज के कारण हम ने दामाद के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज नहीं कराई थी.

इस झगड़े के बाद आरती कानपुर के नौबस्ता थाना अंतर्गत सागरपुरी, गल्लामंडी में किराए का मकान ले कर रहने लगी थी. जिस मकान में वह रहती थी, उसी में उस ने एक आइसक्रीम फैक्ट्री शुरू कर दी थी. शादियों के सीजन में आइसक्रीम की डिमांड खूब हो रही थी.

आरती पति से अलग जरूर रहती थी, लेकिन पति श्यामशरण उस पर निगरानी रखता था. फोन पर वह उसे धमकाता भी था. अनिल ने आरोप लगाया कि उस की बेटी आरती की हत्या उस के पति श्यामशरण तथा जेठ रामशरण ने की है.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने अनिल कुमार शर्मा की तरफ से भादंवि धारा 302 आईपीसी के तहत श्यामशरण शर्मा व रामशरण के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और जांच में जुट गए.

इधर महिला उद्यमी आरती हत्याकांड की खबर अखबारों में छपी तो आईजी (कानपुर जोन) मोहित अग्रवाल तथा एडीजी भानु भास्कर ने मामले को गंभीरता से लिया और घटनास्थल का निरीक्षण कर मृतका के पिता अनिल शर्मा से पारिवारिक जानकारी हासिल की.

इस के बाद उन्होंने एसपी (आउटर) अष्टभुजा प्रसाद की देखरेख में पुलिस टीम गठित कर दी. केस का खुलासा करने वाली टीम को 50 हजार रुपए का पुरस्कार भी घोषित कर दिया.

गठित पुलिस टीम ने 3 बिंदुओं पर जांच शुरू की. पहली अवैध संबंधों की, दूसरी पति से अनबन तथा तीसरी व्यापारिक प्रतिस्पर्धा.

टीम ने सब से पहले आरती शर्मा के पति श्यामशरण तथा जेठ रामशरण को भरुआ सुमेरपुर कस्बा में स्थित उन के घर से उठाया फिर दोनों को बिधनू थाने ला कर पूछताछ की. लेकिन दोनों ने जुबान नहीं खोली.

पुलिस टीम ने आरती शर्मा के मोबाइल फोन को खंगाला तो उस में एक ऐसा वीडियो मिला, जिस में वह दोस्तों के साथ ड्रिंक कर रही थी और अश्लील हंसीमजाक कर रही थी.

टीम को समझते देर नहीं लगी कि आरती रंगीनमिजाज महिला थी. इसी मोबाइल में एक ऐसा नंबर भी था, जिस पर आरती की घटना से पहले बात हुई थी. इस नंबर को खंगाला गया तो पता चला कि यह नंबर प्रतापगढ़ के भौलपुर गांव निवासी जितेंद्र का है.

पुलिस टीम ने जितेंद्र को उस के गांव से हिरासत में ले लिया और बिधनू थाने लाई. यहां उस से कड़ाई से पूछताछ हुई तो उस ने बताया कि उस का मोबाइल खो गया था. किसी ने गलत इस्तेमाल किया है. पुलिस को भी लगा कि जितेंद्र निर्दोष है, अत: उसे थाने से जाने दिया.

पुलिस टीम को पक्का यकीन था कि आरती की हत्या का रहस्य उस के पति के पेट में ही छिपा है. अत: टीम ने श्यामशरण शर्मा से कड़ाई से पूछताछ की. पुलिस की सख्ती से श्यामशरण टूट गया. उस ने बताया कि आरती की हत्या उस ने शूटरों से कराई थी. मौत का सौदा उस ने 3 लाख 20 हजार रुपए में किया था, जिस में से 1 लाख 40 हजार शूटरों के खाते में ट्रांसफर कर दिए थे.

श्यामशरण ने शूटरों के नाम शाहरुख खान निवासी इमलिया बाड़ा कस्बा भरुआ सुमेरपुर तथा नईम उर्फ भोलू निवासी ईदगाह कस्बा भरुआ सुमेरपुर जिला हमीरपुर बताया.

20 मई, 2021 को पुलिस टीम ने भरुआ सुमेरपुर थाना पुलिस की मदद से शाहरुख खान के घर पर छापा मारा. लेकिन वह घर से फरार था. दबाव बनाने के लिए पुलिस ने उस की पत्नी रूबी, मां परवीन खातून तथा बहन रुखसार को हिरासत में ले लिया.

आरोपियों के घरवालों से की पूछताछ

इस के बाद पुलिस ने ईदगाह निवासी नईम उर्फ भोलू के घर छापा मारा. वह भी घर से फरार था. पुलिस ने भोलू की मां शमीम, बहन रोजी तथा एक अन्य को हिरासत में ले लिया.

सभी को थाना बिधनू लाया गया. दबाव बना कर पुलिस अधिकारियों के समक्ष उन से पूछताछ की गई और शाहरुख तथा नईम के ठिकानों की जानकारी जुटाई गई. पूछताछ के बाद उन्हें छोड़ दिया गया.

23 मई को थानाप्रभारी वी.पी. सिंह को खबरी के जरिए पता चला कि शाहरुख खान अपनी पत्नी रूबी से मिलने घर आया है. इस पर उन्होंने दबिश दे कर शाहरुख को उस के घर से दबोच लिया और थाने ले आए. इस के बाद उन्होंने उसे बिधनू पुलिस को सौंप दिया.

अगले भाग में पढ़ें- आरती दोस्तों के साथ करती थी मौजमस्ती

Satyakatha- केरला: अजब प्रेम की गजब कहानी- भाग 3

सौजन्य: सत्यकथा

Writer- शाहनवाज

यह सुन कर साजिता को धक्का तो लगा लेकिन उस ने रहमान के साथ रहने के लिए पहले से ही खुद को तैयार कर लिया था. अब वह पीछे मुड़ कर वापस अपने घर पर नहीं जाना चाहती थी.

ऐसे में उसी रात रहमान साजिता को अपने घर ले आया और अपने कमरे में साजिता को छिपा लिया.

वह रात किसी तरह से गुजर गई लेकिन अगली सुबह साजिता के परिवार वालों को साजिता अपने कमरे में नहीं मिली तो वे परेशान हो गए. सुबह तक साजिता के गुम हो जाने की खबर पूरे गांव में फैल चुकी थी.

साजिता के पिता वेलायुधन और मां शांता दोनों साजिता को पागलों की तरह इधरउधर ढूंढने लगे. समय बीतने के साथसाथ साजिता के घर वालों ने नेम्मारा थाने में उस की गुमशुदगी की सूचना भी लिखवाई.

साजिता को ढूंढने के लिए पुलिस ने भी एड़ीचोटी का जोर लगा दिया लेकिन साजिता का कहीं नामोनिशान नहीं मिला.

इधर रहमान ने भी साजिता को छिपाने का पूरा बंदोबस्त कर के रखा था. इलैक्ट्रीशियन होने की वजह से उस ने अपने कमरे के दरवाजे पर एक ऐसा सर्किट लगा दिया था, जिस से उस के कमरे में घुसने वाले हर इंसान को बिजली के हलके वोल्ट के झटके लगते थे.

रहमान की खुराक अचानक से बढ़ गई थी, जोकि जाहिर सी बात है वह साजिता के लिए खाना लिया करता था. यहां तक कि जो रहमान पहले अपने परिवार के साथ बैठ कर खाना खाया करता था, वह अब थाली ले कर अपने कमरे में घुस जाया करता और खाना खा कर थाली धो कर लौटता था.

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रहमान ने जानबूझ कर अपने मिजाज में बदलाव कर लिया था, उस ने अचानक से परिवार वालों के प्रति अपने व्यवहार को बदल लिया था. वह सिर्फ इसलिए कि उस के घर वाले उसे मानसिक रूप से बीमार समझें और उस पर ज्यादा ध्यान न दें.

रहमान ज्यादा से ज्यादा समय अपने कमरे में बिताने लगा था, उस ने अपने कमरे में एक पुराना टीवी भी लगवा लिया था. जब रहमान घर पर नहीं रहता तब कमरे में साजिता टीवी देख कर या फिर फोन में गेम्स खेल कर अपना टाइम पास किया करती थी.

इसी तरह से एक साल, 2 साल नहीं बल्कि 11 साल बीत गए. इस बीच रहमान अपनी कमाई का एक हिस्सा अपने घर देता तो वहीं पाईपाई कर के उस ने अपने और साजिता के लिए पैसे जोड़ने भी शुरू कर दिए थे.

साजिता को भी अब उस चारदीवारी में रहने की आदत हो गई थी. वह शौच करने के लिए सिर्फ रात को निकलती जब रहमान के घर वाले सो जाते थे. यही नहीं, 11 सालों के दौरान साजिता एक बार भी बीमार नहीं पड़ी. यहां तक कि उसे एक छींक तक नहीं आई.

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इसी तरह से 11 साल बीत गए और मार्च 2021 में जब रहमान और साजिता दोनों को लगा कि उन के पास इतने पैसे इकट्ठे हो गए हैं कि शहर में जा कर वे कुछ समय तक किराए के कमरे में बिना काम किए रह सकते हैं तो 8 मार्च, 2021 की रात को रहमान अपने साथ साजिता को ले कर पास के शहर विथानासेरी चला गया.

जिस के बाद अचानक से रहमान अपने घर से एक दिन लापता हो गया और 3 महीने बाद बड़े भाई बशीर को उस जगह पर दिखाई दिया, जहां से वह बाइक चलाते हुए अपने कमरे पर लौट रहा था.

यह पूरी कहानी सुनने के बाद माननीय न्यायाधीश ने रहमान और साजिता को साथ में रहने की इजाजत दे दी है. अब रहमान और साजिता दोनों के घर वालों ने उन के रिश्ते को मंजूरी दे दी है और अब रहमान पत्नी साजिता के साथ हंसीखुशी से अपने घर रह रहा है.

Manohar Kahaniya: वीडियो में छिपा महंत नरेंद्र गिरि की मौत का रहस्य- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

महंत नरेंद्र गिरि का शिष्य आनंद गिरि बेहद शातिर था. उस की नजर मठ बाघंबरी गद्दी के साथसाथ मठ की करोड़ों की संपत्ति पर थी. तभी तो वह अपने गुरु महंत नरेंद्र गिरि को मानसिक रूप से प्रताडि़त करता रहता था. लेकिन अब उस के पास अपने गुरु का ऐसा कौन सा वीडियो था, जिस के वायरल होने से पहले ही महंत नरेंद्र गिरि ने दुनिया ही छोड़ दी.

शिष्यों और महंतों के बीच तिकड़म को ले कर अयोध्या में एक संत ने कविता लिखी थी, ‘पैर दबा कर

संत बने और गला दबाए महंत’. उन की कविता शिष्यों और महंतों के बीच आए दिन होने वाले विवादों पर पूरी तरह से खरी उतरती है.

मंदिर हो, मठ हो या आश्रम, सभी जगहों पर जमीन, जायदाद और सैक्स को ले कर षडयंत्र चलते रहते हैं. महंत नरेंद्र गिरि को डर था कि किसी लड़की के साथ उन की फोटो लगा कर बदनाम किया जा सकता है.

इस के पहले भी वह डांस करने वाली लड़कियों पर पैसे लुटाते चर्चा में आ चुके थे. मानसम्मान का डर महंत की मौत का कारण बना. धर्म के नाम पर जहां जनता अपनी मेहनत का पैसा चढ़ावे में चढ़ाती है, वहां के लोग उस का किस तरह से भोग करते हैं, महंत की मौत के पीछे की कहानी से इसे समझा जा सकता है.

‘‘प्रकाश, महंतजी अभी अपने कमरे से बाहर नहीं आए. देख तो क्या बात है,’’ बाघंबरी मठ के सेवादार बबलू ने अपने साथी से कहा.

बाघंबरी मठ प्रयागराज के अल्लापुर में स्थित है. यह प्रयागराज का सब से प्रभावशाली मठ है. प्रकाश और बबलू यहां सेवादार के रूप में काम करते हैं. ये दोनों अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और 75 वर्षीय महंत नरेंद्र गिरि के बारे में बात कर रहे थे. यह 20 सितंबर, 2021 के शाम लगभग 5 बजे की बात है.

‘‘बबलू, मैं कमरे के पास गया और आवाज दी. पर महंतजी ने कमरा नहीं खोला, न ही अंदर से कोई आवाज आ रही है.’’ प्रकाश वापस आ कर बोला.

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इस के बाद प्रकाश और बबलू अपने कुछ और सेवादार साथियों से इस बात को ले कर बात करने लगे.

सेवादार साथी सोच रहे थे कि एसी की आवाज में महंतजी बाहर की आवाजें नहीं सुन पा रहे होंगे. इन लोगों ने सोचा कि यदि कमरे का एसी बंद कर दिया जाए तो शायद महंतजी उठ सकते हैं.

यही सोच कर उन्होंने महंतजी के कमरे का एसी बाहर से बंद कर दिया. इस के बाद भी जब कोई हलचल कमरे के अंदर से नहीं हुई तो एक शिष्य बोला, ‘‘मंहतजी के मोबाइल पर काल करो.’’

‘‘नहीं, ऐसा मत करो, क्योंकि महंतजी ने फोन करने से मना किया था.’’ दूसरा साथी बोला.

‘‘कोई बात नहीं, अब उन के मोबाइल पर फोन कर के ही उन्हें जगाने का रास्ता बचता है. कहीं महंतजी किसी दिक्कतपरेशानी में न हों.’’ कह कर एक शिष्य ने उन के मोबाइल पर काल की. इस के बाद भी कोई जवाब नहीं मिला. ऐसे में अब शिष्यों के लिए धैर्य रखना संभव नहीं था.

महंत नरेंद्र गिरि हर दोपहर करीब 12 बजे अपने शिष्यों के साथ पंगत करते थे. इस के बाद वह आश्रम में जाते थे. शाम 5 बजे वह वापस आते थे. 20 सितंबर, 2021 को भी यही सब हुआ था. शिष्यों  के साथ पंगत के बाद नरेंद्र गिरि अपने आश्रम में गए.

वहां उन्होंने कुछ कागज लिए. अपने शिष्यों से कहा कि उन से मिलने कोई गेस्टहाउस में आ रहा है. इसलिए उन्हें फोन कर के परेशान न किया जाए.

दोपहर में सभी को लगा कि वह आराम कर रहे होंगे. जब शाम करीब 5 बजे तक उन का कोई हाल नहीं मिला तो मंदिर में खलबली मचने लगी. फोन करने पर कोई जवाब नहीं मिला. पहले शिष्यों ने दरवाजा खटखटाया. बाहर से एसी बंद कर दिया.

इस के बाद भी जब वह बाहर नहीं निकले तो कमरे के दरवाजे को धक्का दे कर खोल दिया गया. कमरे का दृश्य देख कर शिष्यों की चीख निकल गई.

कमरे के अंदर छत में लगे हुक में रस्सी के सहारे महंतजी लटके हुए थे. थोड़ी देर में वहां सन्नाटा छा गया. शिष्य बदहवास हालत में इधर से उधर भागने लगे. शिष्यों ने महंतजी के शव को शीघ्र ही उतार कर जमीन पर लिटा दिया, ताकि उन के जीवित बचने की संभावना तलाशी जा सके.

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इस के बाद पुलिस को सूचना दी गई. करीब साढ़े 5 बजे वहां भारी संख्या में पुलिस पहुंच गई. आश्रम का मुख्यद्वार बंद कर दिया गया. महंत नरेंद्र गिरि के गले में फांसी के फंदे का निशान था.

डीएम और एसएसपी ने पंचनामा कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. जार्जटाउन थाने के इंसपेक्टर महेश सिंह ने बताया कि मठ से सूचना मिलने पर पुलिस आई.

शव के पास ही पुलिस को सल्फास की गोलियां रखी मिलीं. उसे खोला नहीं गया था. शव के पास ही 13 पन्ने का एक सुसाइड नोट वसीयत की तरह लिखा मिला, जिसे पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया.

महंत नरेंद्र गिरि बहुत पंहुच वाले व्यक्ति थे. ऐसे में आईजी के.पी. सिंह, डीआईजी सर्वश्रेष्ठ त्रिपाठी और डीएम संजय खत्री भी वहां पहुंच गए थे. 6 बजे तक पूरे शहर और शहर के बाहर यह सूचना फैल गई थी.

वहां डेढ़ घंटे तक पुलिस ने छानबीन की. सुसाइड नोट के बारे में पुलिस ने बताया कि इस में महंतजी ने अपने सम्मान से जीने की बात कही है. महंत नरेंद्र गिरि का सुसाइड नोट मीडिया में वायरल हो गया.

वसीयतनुमा सुसाइड नोट

महंत नरेंद्र गिरि का यह सुसाइड नोट अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के लेटरहैड पर लिखा गया था. पहले 13 सितंबर, 2021 की तारीख लेटरहैड पर पड़ी थी. बाद में इसे काट कर नीचे 20 सितंबर किया गया था. टूटीफूटी हिंदी में यह लिखा गया था. इस में कई जगहों पर कटिंग भी हुई थी.

अपने सुसाइड नोट में महंत नरेंद्र गिरि ने लिखा, ‘मैं महंत नरेंद्र गिरि मठ बाघंबरी गद्दी, बड़े हनुमान मंदिर (लेटे हनुमानजी) वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अपने होशोहवास में बगैर किसी दबाव के यह पत्र लिख रहा हूं.

‘जब से आंनद गिरि ने मेरे ऊपर असत्य, मिथ्या और मनगढं़त आरोप लगाए हैं, तब से मैं मानसिक दबाव में जी रहा हूं. जब भी मैं एकांत में रहता हूं, मर जाने की इच्छा होती है. आनंद गिरि, आद्या तिवारी और उन के बेटे संदीप तिवारी ने मिल कर मेरे साथ विश्वासघात किया है.

‘सोशल मीडिया, फेसबुक और समाचार पत्रों में आनंद गिरि ने मेरे चरित्र पर मनगढं़त आरोप लगाए हैं. मैं मरने जा रहा हूं. सत्य बोलूंगा. मेरा घर से कोई संबंध नहीं है. मैं ने एक भी पैसा घर पर नहीं दिया है. मैं ने एकएक पैसा मंदिर और मठ में लगाया है. 2004 में मैं महंत बना. 2004 से अब तक मंदिर मठ का जो विकास किया, सभी भक्त जानते हैं.

अगले भाग में पढ़ें- जायदाद और जमीन से जुडे़ विवाद

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