अनजाना बोझ-भाग 3 : एसपी अमित का क्या था अतीत

‘‘हां भई, पक्का वादा. अब 3 साल में तुम मु झ पर इतना भरोसा तो कर ही सकते हो न,’’ सृष्टि ने अमित का हाथ अपने हाथ में ले कर उस की आंखों में  झांकते हुए कहा.

सृष्टि की आंखों में अपने लिए विश्वास देख कर अमित ने रुंधे गले से 8 वर्ष पूर्व का पूरा घटनाक्रम जस का तस सृष्टि को सुना दिया. ‘‘इस दौरान मैं उस घटना को भूल सा गया था पर आज स्कूल में उस बच्ची के एक प्रश्न ने मु झे फिर मेरी ही नजरों के कठघरे में ला खड़ा किया है,’’ कहते हुए अमित शांत हो कर सृष्टि के चेहरे के भाव पढ़ने का प्रयास करने लगे.

‘‘अमित, तुम्हें पता है हमारे समाज में हो रहे अपराधों का सब से बड़ा कारण आज के युवा की बेरोजगारी है. घर और मातापिता की जिम्मेदारियों के बीच में जब एक युवाओं अथक प्रयास के बाद भी नौकरी प्राप्त नहीं कर पाता या आर्थिक जिम्मेदारियों को उठाने के लायक नहीं हो जाता, तो वह स्वयं को असहाय सा महसूस करने लगता है. और जब यह काफी समय तक होता है तो वह युवा अवसाद से घिरने लग जाता है और उस की यह फ्रस्टे्रशन ही उसे गलत दिशा में मोड़ देती है.

‘‘मैं तुम्हारे इस व्यवहार को सही तो नहीं कह सकती क्योंकि आप कितने ही परेशान क्यों न हो, गलत मार्ग को अपना कर स्वयं पर से नियंत्रण खो देना तो सरासर गलत ही है. पर हां, अपनी गलती की स्वीकारोक्ति ही व्यक्ति की सब से बड़ी सजा होती है. वह तुम्हारा सैल्फरियलाइजेशन ही था जिस के परिणामस्वरूप तुम आज एक आला दर्जे के अधिकारी बन पाए हो. हां, तुम्हें जो आत्मग्लानि है उस से निकलने का एकमात्र रास्ता है कि तुम जा कर उन आंटी से मिल कर माफी मांग लो और उन्हें बताओ कि उस दिन उन के द्वारा तुम्हें दिया गया अभयदान बेकार नहीं गया.’’ ‘‘हां, तुम सही कह रही हो. मैं जब तक उन से मिलूंगा नहीं, चैन से सो नहीं पाऊंगा,’’ कह कर अमित अपनी पुरानी डायरी में आंटी का मोबाइल ढूंढ़ने लगे. उज्जैन से भोपाल की दूरी ही कितनी थी, सो, रविवार के दिन वे भोपाल की अरेरा कालोनी में थे.

‘न जाने वे मु झे माफ करेंगी भी, या नहीं. क्या प्रतिक्रिया होगी उन की मु झे देख कर? पता नहीं उन्हें मैं याद भी होऊंगा या नहीं. परंतु जब तक मैं उन से मिल कर अपने दिल का हाल कह कर माफी नहीं मांग लेता, मेरा प्रायश्चित्त ही नहीं हो पाएगा और मैं ताउम्र तिलतिल कर मरता रहूंगा. एक बार मिलना तो होगा ही. शायद वे मु झे माफ कर सकें,’ सोचतेसोचते वे कब अरेरा कालोनी के ई 7 के कामायनी परिसर में एक एचआईजी मकान के सामने आ कर खड़े हो गए, उन्हें पता ही न चला

उन्होंने धड़कते दिल से घंटी बजाई. दरवाजा आंटी ने ही खोला. अमित ने  झुक कर उन के पैर छू लिए. वे बोलीं, ‘‘अरे, कौन हो भाई? मैं पहचान नहीं पा रही हूं.’’

‘‘आंटी, मैं, अमित.’’

‘‘ओहो अमित, कुछ बन पाए या आज भी…’’ आंटी अपनी याददाश्त पर कुछ जोर डालते हुए बोलीं.

‘‘आंटी, मैं आईपीएस हो गया हूं. पर यकीन मानिए कि आज मैं जो कुछ भी हूं आप के कारण हूं. पर 8 वर्ष पुरानी उस घटना के लिए मैं आज भी क्षमाप्रार्थी हूं. आप ने उस दिन क्रोध में मु झे मेरी असलियत, कर्तव्य और जीवन के मूल्य सम झाए थे. पर आज आप प्यारभरा आशीष मु झे दीजिए तो मैं सम झूंगा कि आप ने सच्चे मानो में मु झे माफ कर दिया है.’’

‘‘वैल डन, वैल डन. उस दिन तुम्हारी आत्मग्लानि देख कर मु झे सम झ आ गया था कि तुम बहक गए हो. तुम्हें माफ कर के मैं ने तुम्हें तुम्हारे हाल पर छोड़ दिया था कि यदि तुम्हें अपने ऊपर वास्तव में पछतावा होगा तो अवश्य जीवन में कुछ बन सकोगे. दरअसल, कभीकभी सजा से अधिक माफ करना आवश्यक होता है क्योंकि हर अपराधी को सजा से नहीं सुधारा जा सकता और न ही हरेक को माफी से. उस समय मैं ने वही किया जो मु झे ठीक लगा.

‘‘मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है. खूब उन्नति करो. पर महिलाओं का सम्मान करना कभी मत छोड़ना,’’ कह कर आंटी ने खुश हो कर उन के ऊपर अपना वरदहस्त रख दिया.

आंटी का प्यारभरा आशीष पा कर अपनी आंखों की कोरों में आए आंसुओं को सिटी एसपी अमित ने धीरे से पोंछ लिया और एक अनजाने बो झ से मुक्त हो कर खुशीखुशी अपने कर्तव्यस्थल की ओर चल दिए.

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