Crime: दोस्ती, अश्लील फोटो वाला ब्लैक मेलिंग!

आज समय है सावधान रहने का! सावधानी चाहे वह युवती हों, पुरुष हों या उम्रदराज महिलाएं अगर आपकी मित्रता… फ्रेंडशिप जिसका आज कल बड़ा चलन में है, थोड़ी भी चुक नहीं हुई कि सामने वाला भयादोहन या फिर ब्लेक मेलिंग पर उतर आता है.

इसलिए आपको सावधान करते हुए एक ऐसी रिपोर्ट हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं जो आपको सचेत करती है और बताती है कि कैसे आजकल समाज में ब्लैक मेलिंग का खेल धड़ल्ले से चल रहा है. अक्सर लोग इतने सफल हो जाते हैं. कुछ ही मामले ऐसे होते हैं जिनमें ब्लैकमेल करने वाले पुलिस गिरफ्त में आ पाते हैं.

पहला घटनाक्रम-

एक ब्लैकमेलर ने पहले महिला पर चिकनी चुपड़ी बातों से प्रेम जाल फेंका. जब महिला प्रेम जाल में फंसी गई, तो दोनों अक्सर बातचीत करने लगे. आरोपी ने मौका देखकर महिला को ब्लैकमेल किया. महिला से तकरीबन साढ़े 5 लाख रुपये ठग लिया. महिला ने तंग आकर राजहरा थाने में शिकायत दर्ज कराई.

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दूसरा घटनाक्रम-

छत्तीसगढ़ के न्यायधानी कहे जाने वाले बिलासपुर में एक महिला ने पुरुष से संबंध बनाएं और वीडियो बनाकर अपने साथियों के साथ भयादोहन पर उतर आई.शिकायत के पश्चात पुलिस ने जांच की और दोषी पाया.

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तीसरा घटनाक्रम-

छत्तीसगढ़ के जिला अंबिकापुर में एक युवक ने कई लड़कियों से दोस्ती गांठी और लड़कियों के अश्लील वीडियो, फोटो बनाएं लाखों रुपए की ब्लेक मेलिंग की अंततः जेल की सलाखों में पहुंच गया.
इस तरह अनेक घटनाएं हमारे आसपास घटित हो रही हैं. दरकार है समझदारी और विवेक की . अगर हम और हमारे आस-पास कोई मित्र, संबंधी जरा भी भटका नहीं की, ब्लैक मेलिंग का शिकार हुआ समझिए.

वीडियो कॉल बना, ब्लैक मेलिंग का जरिया…

छत्तीसगढ़ के राजहरा में घटित एक सनसनीखेज घटना इन दिनों चर्चा में है. यहां एक युवक ने एक युवती से मित्रता की फिर उसका एक वीडियो कॉल के दरमियान अश्लील फोटो बना लिया और शुरू हो गया ब्लैकमेल करने.

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आरोपी आकाश जायसवाल उर्फ गोल्डी ने पहले बीमार होने का बहाना किया. फिर महिला से 3 लाख 60 हजार रुपये ले लिया. कुछ दिनों के बाद महिला ने रकम वापस मांगी. तो आरोपी ने महिला की अश्लील तस्वीर उसके सामने रखकर “सोशल मीडिया” पर वायरल करने की धमकी देने लगा. यही नहीं कथित आरोपी ने फिर 1 लाख 90 हजार रुपये महिला से वसूल लिया. कुल मिलाकर आरोपी ने साढ़े 5 लाख रुपये और जेवरात ठग लिया.

आरोपी ने महिला से लिए सोने के जेवरात को 50 हजार रुपये में एक बैंक में गिरवी रख दिया था, जिसे पुलिस ने बैंक के लॉकर से बरामद किया है. वही आरोपी ने महिला से मिली रकम से एक अदद कार भी खरीदी थी, जिसकी कीमत 4 लाख 50 हजार रुपये बताई जा रही है.

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यहां सबसे सनसनीखेज तथ्य यह सामने आया है

महिला की आरोपी ने वीडियो कॉल के दौरान अश्लील फोटो ले ली थी. यानी महिला को पता ही नहीं चला और वह शिकार बन गई.आगे आरोपी फोटो वायरल करने की बार-बार धमकी दे कर जान से मारने की धमकी भी देता था.

Manohar Kahaniya- राम रहीम: डेरा सच्चा सौदा के पाखंडी को फिर मिली सजा- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

हनीप्रीत के पूर्व पति विश्वास गुप्ता ने बाबा की गिरफ्तारी के बाद मीडिया को बताया था कि शादी के 2 या 3 दिन बाद बाबा राम रहीम ने उसे हनीप्रीत के साथ डेरे में मुलाकात के लिए बुलाया था. तब बाबा ने कहा था कि तुम हमारे साथ बाहर यात्राओं पर जाती हो, अगर बच्चा हुआ तो उस के स्कूल जाने और लालनपालन के चलते हमारी सेवा नहीं कर पाओगी, इसलिए बच्चा पैदा न करो.

बाबा ने कहा था कि हम तुम्हें बेटा मानते हैं, उसी तरह हनीप्रीत भी हमारी बेटी है. हम उसे भी उतना ही प्यार देंगे.

विश्वास गुप्ता ने आरोप लगाया था कि बाबा हर सप्ताह हनीप्रीत और उसे डेरे में बुलाने लगा. वह गुफा के अंदर बने बैडरूम में हनीप्रीत को बुलाता था और उसे लिविंग रूम में ही बैठने को कहता था.

पूछने पर बाबा कहता था कि बेटी अकेले में ससुराल के हर सुखदुख बता सके, इसलिए उस से अकेले में हालचाल पूछता हूं. विश्वास गुप्ता ने आरोप लगाए थे कि राम रहीम और हनीप्रीत की सभी मुलाकातें हर बार एक से डेढ़ घंटे तक होती थीं. इस दौरान बाबा के चेले और दूसरे सेवादार विश्वास गुप्ता को बातों और कुछ कामों में उलझाए रखते थे. बाद में बाबा ने विश्वास गुप्ता को सप्ताह में 2 दिन पत्नी के साथ गुफा में रहने का आदेश दिया.

बताते हैं कि उसी दौरान एक रात जब  विश्वास गुप्ता डेरे में बाबा की गुफा के लिविंग रूम में सो रहा था तो उस ने रात के वक्त बाबा के बैडरूम में अपनी पत्नी हनीप्रीत व बाबा को कामक्रीड़ा करते देखा. बस इसी के बाद से बाबा और हनीप्रीत से उस का मोहभंग हो गया.

बाद में हनीप्रीत और विश्वास गुप्ता के संबध बिगड़ने लगे तथा दोनों में अकसर तकरार होने लगी.

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विश्वास गुप्ता और हनीप्रीत का रिश्ता केवल 11 साल चला. बाबा राम रहीम ने साल 2009 में हनीप्रीत को बेटी के रूप में गोद ले लिया. जिस के बाद हनीप्रीत बाबा के साथ डेरे की गुफा में ही रहने लगी. हनीप्रीत को गोद लेने के बाद गुप्ता से हनी के मतभेद और गहरे हो गए.

गुप्ता ने जब हनीप्रीत पर घर वापस चलने का दबाव डाला तो उस के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज करवा दिया गया, जिस में उसे जेल की हवा खानी पड़ी. बाद में जेल से रिहा होने पर  साल 2011 में विश्वास गुप्ता ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में मुकदमा दायर कर राम रहीम के कब्जे से अपनी पत्नी यानी हनीप्रीत को मुक्त कराने की मांग की थी. अदालत में दी गई याचिका में विश्वास गुप्ता ने राम रहीम पर हनीप्रीत के साथ अवैध संबंध होने का भी आरोप लगाया था.

डेरे के सारे फैसले लेने लगी हनीप्रीत

बताते हैं कि बाद में डेरे के कुछ प्रभावशाली लोगों के दबाव के कारण विश्वास गुप्ता के परिवार वालों ने हनीप्रीत से उस का तलाक करवा दिया. लेकिन इस दौरान गुप्ता परिवार को बाबा के ऊंचे रसूख के कारण कई तरह की प्रताड़नाओं का शिकार होना पड़ा.

विश्वास गुप्ता से तलाक के बाद हनीप्रीत पूरी तरह बाबा के लिए समर्पित हो गई.

हनीप्रीत डेरा के हर महत्त्वपूर्ण फैसले लेने लगी. बाबा राम रहीम के साथ वह साए की तरह चौबीसों घंटे रहने लगी. बाबा हर फैसला हनीप्रीत से सलाह ले कर ही करता था.

इतना ही नहीं, बाबा ने हनीप्रीत की फिल्मों में काम करने की ख्वाहिश को देखते हुए ‘एमएसजी’ नाम से एक फिल्म कंपनी बनाई जिस के तहत बनी फिल्म ‘एमएसजी’, ‘जट्टू इंजीनियर’, ‘द वारियर लायन हार्ट’ समेत दूसरी और भी फिल्मों का निर्देशन हनीप्रीत ने ही किया. एमएसजी नाम की फिल्म में तो बाबा ने खुद हीरो के रूप में काम भी किया.

बाबा की बेबी हनीप्रीत इतनी ताकतवर हो चुकी थी कि उसी के हाथ में डेरे की सभी चाबियां रहती थीं. पैसे से ले कर हर वो फैसला जो डेरे से संबंधित होता था, वह हनीप्रीत ही करती थी.

हनीप्रीत भले ही दिखावे के लिए बाबा की बेबी रही हो, लेकिन लोग अब खुली जुबान से कहते हैं कि वह बाबा की हनी थी. शायद यही वजह थी कि गुरमीत राम रहीम की अपनी बीवी और बेटेबहू से दूरियां रहती थीं.

राम रहीम को अपने तौरतरीकों से चलाने वाली हनीप्रीत जेल जाने तक उस के साथ नजर आई थी और बाद में उसी ने डेरे का प्रबंध अपने हाथों में लिया.

गुरमीत राम रहीम की गिरफ्तारी के बाद 600 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाले उस के एमएसजी प्रोडक्ट्स की कमान भी बाद में हनीप्रीत के हाथों में आ गई. एमएसजी के सिरसा में 5 बड़े शोरूम थे, जिन में करीब 150 से ज्यादा प्रोडक्ट्स बेचे जाते थे.

हालांकि बाबा की गिरफ्तारी के बाद एमएसजी का यह कारोबार आर्थिक संकट का शिकार हो कर बंद हो गया, जिस से इस में निवेश करने वाले लगभग 10 हजार लोगों की रकम भी डूब गई.

साध्वियों के साथ रामचंद्र छत्रपति के परिवार को इंसाफ मिल चुका था, लेकिन राम रहीम के दामन पर लगे डेरा प्रेमी रणजीत सिंह की हत्या के दागों का इंसाफ होना अभी बाकी था.

18 अक्तूबर, 2021 को रणजीत सिंह हत्याकांड में पंचकूला की विशेष सीबीआई अदालत के जज सुशील कुमार ने राम रहीम समेत 5 लोगों को दोषी ठहरा कर उम्रकैद की सजा सुनाई. 19 साल तक अदालत में चले इस मामले की 250 पेशी हुई और 61 गवाही के बाद अदालत ने 5 आरोपियों को दोषी माना.

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रणजीत सिंह एक समय राम रहीम के डेरे का मैनेजर और उस का भक्त हुआ करता था, लेकिन 10 जुलाई, 2002 को अचानक रणजीत सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. हत्या का रहस्य बहुत गहरा था. हत्या के आरोप में राम रहीम के साथ उस का सहयोगी कृष्ण लाल भी फंसा था.

रणजीत सिंह हत्याकांड में 3 गवाह महत्त्वपूर्ण थे. इन में 2 चश्मदीद गवाह सुखदेव सिंह और जोगिंद्र सिंह थे. इन का कहना था कि उन्होंने आरोपियों को रंजीत सिंह पर गोली चलाते हुए देखा था.

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Satyakatha: फौजी की सनक का कहर- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

राय सिंह को उस के अनैतिक रिश्ते की गंध समझते देर नहीं लगी. उस का शक विश्वास में बदल गया कि सुनीता के कृष्णकांत के साथ मधुर संबंध हैं. उस समय उसे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन शांत बने रहा.

यह घटना तो घट गई थी, लेकिन राव राय सिंह के मन में उठने वाले सवाल उसे रात को सोने नहीं दे रहे थे. वह लगातार चिंतित रहने लगा. उसे यह भी चिंता सताने लगी कि कहीं सुनीता उस के बेटे को धोखा न दे दे.

सुनीता और कृष्णकांत के बीच कोई अनैतिक रिश्ता तो नहीं? इस घटना के बाद वह अपनी बहू और कृष्णकांत को शक की नजरों से देखने लगा.

हालांकि उस ने इस का जिक्र किसी से नहीं किया था. अपनी पत्नी तक को नहीं बताया था. जबकि राय सिंह मन ही मन यह सब सोच कर कुढ़ता रहता था. वह सुनीता के मिजाज को अच्छी तरह जानता था, इसलिए उस पर दबाव नहीं बना पा रहा था. उसे पता था कि उस के खिलाफ कुछ भी बोलने का मतलब बेइज्जत होना है.

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उसी बीच फरवरी, 2021 में सुनीता फिर अपने मायके चली गई. एक महीने बाद कोरोना की दूसरी लहर ऐसी आई कि लौकडाउन और कर्फ्यू के चलते लोगों का कहीं आनाजाना मुहाल हो गया.

मई, 2021 में कृष्णकांत के गांव से उन के पिता के बीमार होने का फोन आया. उन्हें सपरिवार आननफानन अपने गांव जाना पड़ा. गांव से वह वापस गुरुग्राम आ तो गए लेकिन उन की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो चुकी थी.

एक तरफ उन की नौकरी छूट गई थी, दूसरी तरफ मकान का किराया 7 महीने का बाकी हो गया था. किराए को ले कर राय सिंह से कृष्णकांत की कई बार बहस भी हो चुकी थी.

गांव में अपने पिता की देखभाल करने के 3 महीने बाद अगस्त में रक्षाबंधन के ठीक 5 दिन पहले लौटे थे. राय सिंह ने तब किराया न देने पर उन्हें खूब खरीखोटी सुनाई थी.

वह पहले से ही अपनी बहू को ले कर परेशान था. उस ने सोचा कि किराए के बहाने कमरा खाली करवा लेने पर कृष्णकांत से उस की बहू का संबंध खत्म हो जाएगा. कृष्णकांत ने कुछ समय की मोहलत मांगी.

उसी बीच 19 अगस्त को सुनीता भी मायके से गुड़गांव लौट आई. राय सिंह के किराया मांगने पर उस ने कृष्णकांत और परिवार की तरफदारी की. उस ने कहा वह खराब हालत में कहां जाएंगे.

सुनीता की बातों से राय सिंह के दिल को ठेस लगी. उस ने कृष्णकांत के सामने ही यह बात कही थी, जिस से उस ने बेइज्जती महसूस की थी. उस वक्त तो राय सिंह खून का घूंट पी कर रह गया, लेकिन मन ही मन में एक संकल्प भी ले लिया.

सुनीता द्वारा कृष्णकांत का पक्ष लिए जाने का कारण वह समझ रहा था. उन के रिश्तों को ले कर पहले से ही शक का कीड़ा मन में कुलबुला रहा था. सुनीता की तरफदारी से कीड़ा रेंगने लगा था.

एक दिन रात को अचानक उन की नींद खुल गई और पेड़पौधों की कटाईछंटाई करने वाले गंडासे की धार तेज करने लगा. पत्नी ने रात को ऐसा करते देख कर पूछा तब उस ने बहाना बनाते हुए कहा कि उसे कई पेड़ों की छंटाई करनी है. गंडासा की धार तेज करने का सिलसिला 19 अगस्त से 23 अगस्त तक चला.

23 तारीख की शाम को 7 बजे राव सिंह का बेटा आनंद यादव अपने कुछ दोस्तों के साथ खाटू श्याम मंदिर में दर्शन करने के लिए चला गया था. राय सिंह ने उसी रात अपनी योजना को अंजाम देने का मन बना लिया.

रात के 12 बजे के बाद राय सिंह पहले की तरह उठा और गंडासा निकाल कर छत की सीढि़यां चढ़ने लगे. उस की पत्नी विमलेश की नींद खुल गई, लेकिन उस ने समझा वे गंडासे की धार तेज करने गए होंगे. किंतु मोबाइल की रोशनी से घड़ी देखी तो ढाई बजे का समय देख कर चौंक गई.

उस के मन में कुछ आशंका हुई और दबेपांव छत पर जाने लगी. सीढि़यों पर अंधेरा था, जिस से वापस लौट कर अपने कमरे में आ कर लेट गई. उधर राय सिंह ने पहली मंजिल पर पहुंच कर अपनी बहू का कमरा खटखटाया.

2-3 बार दरवाजा खटखटाने के बाद अंदर से सुनीता ने गहरी नींद में दरवाजा खोला. इस से पहले कि सुनीता को कुछ पता चलता, राय सिंह ने उस के सिर पर गंडासे से जोरदार वार कर दिया.

सुनीता वहीं चीख कर गिर पड़ी. उस के गिरते ही राय सिंह ने दनादन शरीर पर कई वार कर दिए. उस के सिर से ले कर शरीर के कई हिस्से से खून बहने लगा.

नीचे राय सिंह की पत्नी विमलेश सुनीता की चीख सुन कर भागीभागी पहली मंजिल पर जा पहुंची. वहां पति के हाथ में खून से सने गंडासे को देख कर डर गई और उल्टे पांव अपने कमरे में आ कर लेट गई.

सुनीता को मौत के घाट उतारने के बाद वह सीधे दूसरी मंजिल पर जा पहुंचा. संयोग से कृष्णकांत ने अंदर से कुंडी बंद नहीं की थी. अंधेरे में हलकी फैली हुई रोशनी में राव सिंह ने कृष्णकांत और उस के पूरे परिवार को नीचे जमीन पर ही लेटे पाया.

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समय बरबाद नहीं करते हुए सब से पहले कृष्णकांत के सिर पर गंडासे से वार किया. पहला हमला ही इतना जोरदार था कि कृष्णकांत पहले ही वार से अपनी गहरी नींद से जाग ही नहीं पाए. वह बेसुध हो गए.

राव सिंह ने कृष्णकांत पर अपना आपा खोते हुए करीब 7 वार लगातार किए. कृष्णकांत की मौके पर ही मौत हो गई. तब तक थोड़ी दूरी पर सोई अनामिका नींद से जाग गई थी. जख्मी पति को देख कर उस ओर जैसे ही आने की कोशिश की, राय सिंह ने उस के सिर पर भी गंडासे का एक जोरदार वार कर दिया.

तब तक बच्चे जाग गए थे. वे अपने मांबाप को बेसुध हालत में देख कर कहने लगे, ‘‘अंकल माफ कर दीजिए. इन्हें मत मारिए. इन्हें छोड़ दीजिए.’’

तब तक राय सिंह अपना आपा खो चुका था. अनामिका पर एक के बाद एक कई वार करने के बाद बच्चों पर भी गंडासे से हमला बोल दिया और फिर अपने कमरे में आ कर बाथरूम में घुस गया.

इस जघन्य हत्याकांड के बाद राव सिंह बाथरूम में घुस कर नहाया. अपने कमरे में वह पंखे के नीचे बैठा. नए कपड़े पहने और करीब साढ़े 4 बजे उठ कर डेली रूटीन में व्यस्त हो गया. मूकदर्शक बनी जड़वत पत्नी विमलेश को ठहर कर देखा और पार्क की ओर सैर पर निकल पड़ा.

उसी दिन सुबह करीब साढ़े 6 बजे जब वह पार्क से अपने घर लौटा और दोबारा लाशों को जा कर देख आया. फिर हाथ में गंडासा लहराते हुए थाने चला गया. इस बात की पुष्टि बाद में इलाके के 3 सीसीटीवी कैमरों में कैद हो चुकी फुटेज से हुई.

उस के कपड़े और उस औजार पर खून के छींटों की जांच के बाद उस के द्वारा हत्या किए जाने की भी पुष्टि हो गई.

इस हत्याकांड की सुनीता के भाई अशोक यादव ने भी राजेंद्र पार्क पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई. उन्होंने रिपोर्ट में राव राय सिंह के परिवार पर सुनीता से पैसों की मांग का आरोप लगाया. इस कारण वह अकसर सासससुर से झगड़ कर मायके आ जाती थी.

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कथा लिखे जाने तक केस को सुलझाने के लिए गुरुग्राम की राजेंद्र पार्क पुलिस ने हर पहलू को ध्यान में रखते हुए परिवार के सभी सदस्यों के बयान ले लिए थे.

आरोपी राव राय सिंह को न्यायिक हिरासत में ले लिया गया था. इस पूरे हत्याकांड में एकमात्र बची हुई पीडि़त 6 साल की विधि तिवारी की हालत में लिखे जाने तक सुधार हो रहा था. उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भरती करवाया गया था.

Manohar Kahaniya- किडनैपिंग: चंबल से ऐसे छूटा अपहृत डॉक्टर- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

कार रुकते ही युवती अंजलि कार से उतर गई. 4 युवक दनदनाते हुए कार में घुस आए. उन्होंने डाक्टर को 2 थप्पड़ मारे और उन को कार की पिछली सीट पर बैठा दिया. 2 बदमाश आगे बैठ गए, जबकि 2 बदमाशों ने डाक्टर को पीछे की सीट पर बीच में बैठा लिया.

उन का मोबाइल बदमाशों ने गाड़ी में ही छीन कर बंद कर दिया. उस समय रात के साढ़े 8 बज रहे थे. अंजलि के साथी डाक्टर को ले गए थे चंबल के बीहड़ में उस के साथ ही बदमाशों ने उन की आंखों पर पट्टी बांध दी. डाक्टर इस घटना से बेहद घबरा गए. वे समझ गए कि उन का अपहरण हो गया है. इस बीच अंजलि 2 साथियों के साथ बाइक पर बैठ कर चली गई. रास्ते में एक बदमाश उतर कर चला गया.

बदमाश सैयां से गांव के रास्ते होते हुए 2 घंटे तक गाड़ी चलाते रहे. वे सैयां टोल क्रौस को छोड़ कर इरादत नगर से होते हुए धौलपुर इलाके में चले ले गए. डाक्टर को कार से उतार लिया. बदमाशों के पास हथियार भी थे. डर के कारण डाक्टर जैसा बदमाश कहते रहे, वैसा वे करते रहे.

रात में उन्हें बाइक से एक जगह ले जा कर उन्हें खाना खिलाया. फिर 3-4 किलोमीटर पैदल चलने के बाद बीहड़ में ले आए. डाक्टर को धौलपुर के दिहोली क्षेत्र में चंबल नदी के पास रात भर एक खेत में हाथपैर बांध कर रखा.

डाक्टर को कार से उतारने के बाद बदमाश ने अपने साथी पवन को कार ठिकाने लगाने की जिम्मेदारी सौंप दी, लेकिन वह पुलिस चैकिंग में पकड़ा गया.

डाक्टर को दिन में बीहड़ में ले जा कर ऊंचे चबूतरे पर हाथ बांध कर बैठा दिया. बदमाशों ने डाक्टर से 5 करोड़ रुपए की फिरौती देने को कहा, वरना उस की मौत निश्चित है.

60 वर्षीय डाक्टर ने बदमाशों से कहा कि वह बीमार हैं, उन का हार्ट का औपरेशन हो चुका है. इतनी रकम उन के पास नहीं है. फिर भी बदमाश धमकाते रहे.

डाक्टर ने कहा कि वह बिना दवा खाए बीमार हो जाएंगे. बाजार से दवा लाने के लिए दवाओं के नाम भी बताए. लेकिन बदमाशों ने दवा ला कर नहीं दी. मांगने पर खाना और पानी दिया. बदमाशों के पास मोबाइल नहीं थे.

वहां की स्थिति देख कर डाक्टर को नहीं लग रहा था कि उन्हें बदमाशों से छुटकारा मिल पाएगा. बदमाश उन्हें लगातार धमका रहे थे. डाक्टर के बहुत कहने पर एक बदमाश दवाई लाने चला गया, जबकि 2 खाने के इंतजाम में पास के गांव में चले गए.

संयोग से एक डाक्टर को छोड़ कर शौच के लिए गया ही था कि तब तक पुलिस अकेले निढाल पड़े डाक्टर को अपने कब्जे में ले कर निकलने में सफल रही.

डाक्टर को अपने प्रेमजाल में फंसाने वाली युवती अंजलि का असली नाम मंगला पाटीदार है. वह महाराष्ट्र के गोंदिया जिले की रहने वाली है.

उस की 16 साल पहले शादी हुई थी. पति और 14 साल के बेटे के साथ भोपाल में रहती थी. वहीं धागा फैक्ट्री में काम करती थी. एक साल पहले हादसे में पति की मौत हो गई. इस के बाद वह महाराष्ट्र चली गई.

बदन सिंह गैंग ने कराया था अपहरण

भोपाल में जिस फैक्ट्री में वह काम करती थी, उसी में मथुरा की एक महिला भी काम करती थी. उस ने काम दिलाने के लिए 4 महीने पहले मथुरा बुलाया था. बेटे को वह मां के पास छोड़ आई थी. मथुरा आने पर सहेली ने बदन सिंह तोमर से उस का परिचय कराया.

बदन सिंह काम दिलाने के नाम पर आगरा लिवा लाया. लगभग एक महीना पहले उस ने आगरा के सदर में नैनाना जाट में किराए पर घर लिया. तब से वह बदन सिंह के साथ यहीं रह रही थी.

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बदन सिंह ने उसे लालच दिया कि वह काम क्या करेगी, एक बार में ही उसे इतने रुपए दिलवा देगा कि जिंदगी आराम से कट जाएगी. वह उस के लालच में फंस गई और डाक्टर के अपहरण की सूत्रधार बन गई. वह गैंग के सरगना बदन सिंह तोमर के लिए काम कर रही थी. उसे इस काम के लिए 25 हजार रुपए देने की बात कही गई थी.

अपहरण के बाद युवती को गैंग ने ठिकाने लगाने की साजिश रच रखी थी. संयोग से पुलिस ने उसे पकड़ लिया. इस से अंजान युवती बदमाश के साथ बाइक पर सवार हो चल दी थी. यह बात तब सामने आई, जब धौलपुर पुलिस के सिपाही दयालचंद ने युवती को पकड़ा. युवती का बाइक सवार साथी भाग गया, लेकिन उस का मोबाइल गिर गया. मोबाइल पर कुछ देर बाद फोन आया. सिपाही ने आवाज बदल कर बात की.

काल करने वाला बोला, ‘‘कहां रह गया, जल्दी आ जा. लड़की को बीहड़ में ले कर आना. उसे ठिकाने भी लगाना है. रात में ही ये काम करना है.’’

हनीट्रैप में डा. उमाकांत गुप्ता को फंसा कर उन का अपहरण करने वाले गैंग का सरगना बदन सिंह तोमर पुलिस के हाथ नहीं आ रहा था. उस की गिरफ्तारी के लिए पुलिस चंबल के किनारे स्थित गांवों में दबिश दे रही थी.

इसी दौरान पुलिस की मेहनत रंग लाई और 21 जुलाई की रात को एक लाख के ईनामी बदमाश बदन सिंह तोमर और उस के साथी अक्षय उर्फ चंकी पांडे को पुलिस ने गांव कछूपुरा में मुठभेड़ में मार गिराया.

पकड़े गए साथी पवन के अनुसार बदन सिंह तोमर उस का दोस्त था. बदन सिंह तोमर ने डा. गुप्ता का अपहरण पूरी तैयारी के साथ कराया था. वहीं डकैत केशव गुर्जर अपहरण करने के लिए कुख्यात है. कहने को धौलपुर पुलिस उसे 2 बार गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी है. लेकिन पिछले 4 साल से वह धौलपुर व आगरा की पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ है.

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2017 में डा. निखिल का अपहरण बदन सिंह तोमर ने ही किया था. यह पकड़ केशव गुर्जर को सौंप दी थी. उस ने ही फिरौती वसूली थी. डा. निखिल के अपहरण के मामले में बदन सिंह जेल गया था. पुलिस ने सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

Satyakatha: खूंखार प्यार- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

सभी पहलुओं पर जांच करने के बाद कई  पेचीदा तथ्य सामने आते चले गए. सब से महत्त्वपूर्ण था दीप्ति सोनी के पिता कृष्ण कुमार सोनी का बयान. उन्होंने पुलिस को बताया कि वह वर्तमान में बिलासपुर के निवासी हैं और कोरबा जिले के भारत अल्युमिनियम कंपनी में कार्यरत थे. दीप्ति उन की दूसरे नंबर की बेटी थी, जिस का प्रेम विवाह देवेंद्र सोनी से हुआ था.

उन्होंने कहा कि विवाह के बाद देवेंद्र दीप्ति को अकसर प्रताडि़त किया करता था और मायके के लोगों से भी मिलने नहीं देता था. उस ने साफसाफ यह लकीर खींच दी थी कि अपने मायके वालों से उसे कोई संबंध नहीं रखना है.

दीप्ति ने उस के इस अत्याचार को भी एक तरह से स्वीकार कर लिया था और लंबे समय से मायके वालों से कोई संबंध नहीं रख रही थी. यहां तक कि अपनी बड़ी बहन सीमा और जीजा राजेश से भी कभी भी बात नहीं करती थी. क्योंकि देवेंद्र इस से नाराज हो जाता और उस ने बंदिशें लगा रखी थीं.

उन्होंने अपने बयान में यह शक जाहिर किया कि हो सकता है देवेंद्र का दीप्ति की हत्या में हाथ हो. कृष्ण कुमार सोनी ने जांच अधिकारियों से आग्रह किया कि मामले की निष्पक्ष जांच की जाए और आरोपियों को किसी भी हालत में न छोड़ा जाए.

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इस महत्त्वपूर्ण बयान के बाद पुलिस की निगाह में देवेंद्र सोनी संदिग्ध के रूप में सामने आ गया. पुलिस ने इस दृष्टिकोण से जांचपड़ताल शुरू की. साथ ही देवेंद्र के दिए गए बयान की सूक्ष्म पड़ताल की गई.

देवेंद्र ने थानाप्रभारी को जो बयान दिया था, उस में कहा था कि घटना के समय 2 लोगों ने अचानक हमला किया था, वह लघुशंका के लिए कुछ कदम आगे चला गया था. इसी दरमियान गाड़ी में लूटपाट की घटना हुई और उन लोगों ने दीप्ति के गले में रस्सी डाल कर के हत्या कर दी.

जब वह पास आया था तो उस के भी हाथ बांध दिए गए थे, मगर उस ने एक लात मार कर भाग कर अपनी जान बचाई थी.

देवेंद्र ने यह भी बताया था कि किसी एक ने उस की कनपटी पर पिस्टल रख कर के धमकी भी दी थी. इन सारी

बातों की विवेचना जब पुलिस ने की तो देवेंद्र सोनी की बातों में विरोधाभास दिखा.

सब से बड़ा सवाल यह था कि जब लूटपाट करने वालों के पास पिस्टल थी तो उन्होंने दीप्ति को नायलोन की रस्सी से क्यों मारा? और मोबाइल के सिम को क्यों निकाला था?

पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि देवेंद्र अपने बयान में कहीं झूठ बोल रहा है और उस की बातों की सत्यता जानने के लिए अब पुलिस को देवेंद्र से पूछताछ करनी थी. पुलिस ने पत्नी के अंतिम संस्कार के लिए उसे रात को घर भेज दिया गया था, साथ ही यह निर्देश भी दिए कि जरूरत पड़ने पर बयान के लिए फिर से थाने आना होगा.

दीप्ति के अंतिम संस्कार के बाद अगले दिन 16 जून को जब देवेंद्र को जांच अधिकारी अविनाश कुमार श्रीवास ने फोन लगाया तो उस का फोन दिन भर बंद  मिला. देवेंद्र का फोन बंद हो जाने से पुलिस का शक और भी गहरा  गया.

अंतत: बिलासपुर जिला पुलिस के सहयोग से थाना पंतोरा और बलौदा की पुलिस टीम ने देर शाम को देवेंद्र सोनी का मोबाइल ट्रैक कर के उसे बिलासपुर से हिरासत में ले लिया.

जांजगीर ला कर उस से पूछताछ शुरू की गई तो पहले तो वह कुछ भी कहने से गुरेज करता रहा. पुलिस ने जब उस के मोबाइल की जांच की तो पता चला कि घटना के कुछ समय पहले वह लगातार शालू सोनी नाम की एक महिला से बात करता रहा था.

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पुलिस ने उस से शालू के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि प्रदीप सोनी उस के रिश्तेदार के यहां नौकर है और शालू प्रदीप की पत्नी है.

पुलिस ने दूसरे दिन प्रदीप सोनी और उस की पत्नी शालू सोनी, जो अपने घर से गायब थे, को जिला मुंगेली के एक मकान से हिरासत में लिया और पूछताछ के लिए थाने ले आए.

प्रदीप ने पुलिस के समक्ष घबरा कर अपना  अपराध स्वीकार कर लिया और दोनों पतिपत्नी ने जो कहानी बताई, उस से दीप्ति हत्याकांड से परदा उठता चला गया.

अपनेअपने इकबालिया बयान में दोनों ने बताया कि वे सरकंडा बंगाली पारा में झोपड़ी में रहते हैं और देवेंद्र सोनी ने उन्हें डेढ़ लाख रुपए देने की बात कह कर के इस हत्याकांड में शामिल किया था.

शालू ने बताया देवेंद्र अकसर उस के साथ हंसीमजाक किया करता था और एक दिन बातोंबातों में कहने लगा, ‘‘तुम लोग आखिर कब तक इस तरह नौकरी करते रहोगे. कुछ अपना भविष्य भी बनाओगे कि नहीं.’’

इस पर शालू सोनी ने कहा, ‘‘भैया, इन की तबीयत तो हमेशा खराब रहती है. आखिर हमारा क्या होगा यह

पता नहीं.’’

इस पर देवेंद्र ने मासूमियत से कहा, ‘‘देखो, तुम चाहो तो अपनी तकदीर खुद बना सकती हो. कहो तो मैं तुम्हें एक तरकीब बताऊं, तुम्हें एकडेढ़ लाख रुपए तो यूं ही मिल जाएगा.’’

देवेंद्र ने उन से कहा, ‘‘बस, तुम्हें किसी भी तरीके से मेरी पत्नी दीप्ति को मेरे रास्ते से हटाना है.’’

पहले तो शालू और प्रदीप ने इंकार कर दिया, मगर जब डेढ़ लाख रुपए की एक बड़ी रकम उन की आंखों के आगे झूलने लगी तो वे लालच के फंदे में फंस गए और दीप्ति हत्याकांड की पटकथा बुनी जाने लगी.

एक दिन देवेंद्र ने ही कहा कि सोमवार, 14 जून की रात को दीप्ति के साथ कोरबा से बिलासपुर की तरफ आऊंगा. इस रास्ते में जिला जांजगीर चांपा का घनघोर छाता जंगल पड़ता है. जहां हम दीप्ति का काम तमाम कर  सकते हैं.

इस तरह देवेंद्र ने पूरी हत्याकांड की पटकथा बनाई. 3 दिन पहले ही पंतोरा के वन बैरियर के पास रैकी कर के घटना को अंजाम देने की प्लानिंग कर ली गई थी. जिसे उन्होंने 14 जून की रात को अंजाम दे दिया था.

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जब प्रदीप और शालू सोनी से पुलिस ने देवेंद्र का सामना कराया तो देवेंद्र टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि हत्या उसी ने करवाई है क्योंकि अकसर उन का झगड़ा होता रहता था.

उस ने पुलिस को बताया कि दीप्ति हमेशा उस पर शक किया करती थी. दूसरी तरफ उसे दीप्ति पर शक था और एक बार उस ने दीप्ति को किसी गैरमर्द के साथ रंगेहाथों पकड़ भी लिया था. मगर इस का कोई सबूत देवेंद्र पुलिस को नहीं दे सका.

पुलिस ने जांच के बाद दोनों मोबाइल फोन, जो प्रदीप सोनी ने फेंक दिए थे, बरामद कर लिए. लैपटौप देवेंद्र सोनी के घर से ही बरामद कर लिया गया. आरोपी प्रदीप सोनी और शालू ने जिस स्कूटी को घटना के लिए इस्तेमाल किया था, उसे भी पुलिस ने जब्त कर लिया गया.

घटना के खुलासे के बाद जिला चांपा जांजगीर की एसपी पारुल माथुर ने देर शाम एक पत्रकारवार्ता आयोजित कर वारदात का खुलासा कर दिया.

पुलिस ने थाना पंतोरा में भादंवि की धारा 397, 302 के  तहत मुख्य आरोपी देवेंद्र सोनी, प्रदीप सोनी तथा शालू सोनी को 17 जून, 2021 को गिरफ्तार कर चांपा जांजगीर के प्रथम न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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सौजन्य- मनोहर कहानियां

मिली जानकारी के अनुसार सुरेंद्र सिंह नेमावर में एक अच्छे धमकदार परिवार का था. उस के दादा होकम सिंह के अलावा उस के पिता लक्ष्मण सिंह भी नामदार रहे हैं. कुछ साल पहले इस परिवार की जमीन हाइवे निर्माण के लिए शासन ने अधिग्रहीत कर ली थी. बदले में परिवार को मुआवजे की मोटी रकम मिली थी.

पैसा आने पर सुरेंद्र और उस के छोटे भाई वीरेंद्र का समाज में रौबरुतबा बढ़ गया था. दोनों भाई शराब की लत के लिए भी चर्चित हो गए थे.

पुलिस सुरेंद्र के बारे में हर स्तर की जानकारियां जुटाने में लगी हुई थी, जबकि लापता रूपाली, ममता, दिव्या, पवन और पूजा का डेढ़ महीने से अधिक समय गुजर जाने के बावजूद कुछ नहीं पता चल पाया था.

इंस्टाग्राम की पोस्ट ने बढ़ाया शक

एक दिन सुरेंद्र के बारे में एक नई जानकारी मिली. वह जानकारी सोशल मीडिया की तरफ से मिली थी. इंस्टाग्राम पर सुरेंद्र की मंगेतर को ले कर एक पोस्ट किया गया था. उस के जरिए रूपाली द्वारा आपत्ति जताई गई थी.

यह पोस्ट सुरेंद्र की शादी नसरूलागंज निवासी एक युवती के साथ तय होने के जवाब के तौर पर की गई थी. इस से स्पष्ट था कि सुरेंद्र के रूपाली से संबंध टूट गए थे.

इस जानकारी के आधार पर इंसपेक्टर शिवमुराद यादव ने रूपाली के लापता होने के मामले को सुरेंद्र की सगाई से जोड़ कर देखा. उन्होंने अपने सहकर्मियों को पता लगाने के लिए कहा कि जिस रोज रूपाली और उस के परिवार के दूसरे 4 सदस्य लापता हुए, उस रोज सुरेंद्र कहां था?

संयोग से उसी दौरान एक ऐसी घटना घटी, जिस से मामले में पूरी तरह से सुरेंद्र का हाथ होने का शक और मजबूत हो गया.

पुलिस ने पाया कि भारती और संतोष के मोबाइल पर बारबार रूपाली के मोबाइल से आने वाले मैसेज जांच की दिशा भटकाने के लिए किए जा रहे थे. 40 दिन बाद आए मैसेज को टारगेट कर इंसपेक्टर यादव ने मोबाइल की लोकेशन मालूम की, जो चोरल डैम के इलाके की थी.

चोरल डैम नेमावर से बहुत नजदीक नहीं तो बहुत दूर भी नहीं है. लोग वहां घूमने जाते हैं. पुलिस ने अब पूरा मामला एक बड़ी साजिश में उलझा हुआ महसूस किया. उस दिशा में नेमावर पुलिस ने अपनी जांच और भी तेज कर दी.

कुछ दिनों बाद ही पुलिस को एक ढाबे पर कुछ लोगों के द्वारा रूपाली के परिवार के गायब होने की बात करने की जानकारी मिली. उन में 2 लोग सुरेंद्र के खेत पर काम करते थे.

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पुलिस संदेह के आधार पर उन्हें थाने लाई. उन से पूछताछ के क्रम में सुरेंद्र के 2 करीबी दोस्तों विवेक तिवारी और राकेश के बारे में भी जानकारी मिली. उन्हें भी थाने बुलवा लिया गया. आखिर में पुलिस सुरेंद्र और उस के भाई वीरेंद्र को भी पूछताछ के लिए थाने ले आई.

इंसपेक्टर यादव ने दोनों भाइयों से अलगअलग पूछताछ की और उन के दोस्तों के बयान के साथ तार जोड़ा, तब यह समझते देर नहीं लगी कि लापता परिवार के पीछे इन्हीं लोगों का हाथ है.

उन पर जब सख्ती बरती गई और सच छिपाने एवं झूठे बयान देने की भी सजा का डर दिखाया गया, तब वे टूट गए.

उन से मिली अहम जानकारियों के आधार पर पुलिस के आला अधिकारी जेसीबी मशीन ले कर सुरेंद्र के खेत पर जा पहुंचे. तब तक गांव वालों की काफी भीड़ वहां जमा हो गई थी. कुछ ही देर में खेत की खुदाई शुरू की गई.

जैसेजैसे बड़े गड्ढे से मिट्टी निकलती गई, वैसेवैसे अपराधियों का कृत्य सामने आता चला गया. कुछ देर में ही जो मंजर सामने आया, सब की रूह कांप उठी. खेत में से एक के बाद एक कर सड़ेगले 5 लाशों के कंकाल निकाले गए.

उन की पहचान ममता, रूपाली, दिव्या, पूजा और पवन के रूप में हुई. पुलिस को हैरत हुई कि जिस के मोबाइल से लगातार मैसेज आ रहे थे, उस की मौत हो चुकी थी.

इस नृशंस हत्याकांड को ले कर पूरे मध्य प्रदेश में सनसनी फैल गई. सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक दलों ने इसे दलित अत्याचार का रंग देने की कोशिश की.

हालांकि मामला कैसे अलग तरह का था, इस का खुलासा आरोपियों ने गहन पूछताछ के बाद किया. इस दिल दहला देने वाले सनसनीखेज हत्याकांड की कहानी इस प्रकार सामने आई—

रूपाली के पिता मूलरूप से खंडवा स्थित खलावा के रहने वाले थे. लेकिन पूरा परिवार काम की तलाश में देवास जिले के नेमावर के वार्ड नंबर 10 में आ कर बस गया था.

रूपाली के घर के बिलकुल नजदीक सुरेंद्र सिंह का मकान था. रूपाली के भाई संतोष से उस की दोस्ती थी. दोनों एक ही उम्र के थे. दोस्ती होने के कारण सुरेंद्र का रूपाली के घर आनाजाना लगा रहता था.

रूपाली किशोरावस्था की उम्र लांघ चुकी थी. वह काफी आकर्षक और सुंदर दिखने लगी थी. उस की सुंदरता को देख कर सुरेंद्र दंग था. मन ही मन वह उसे अपना दिल दे बैठा था. किसी न किसी बहाने से वह संतोष के घर जाने लगा था.

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कुछ समय बाद रूपाली की बड़ी बहन भारती, पिता और संतोष खराब आर्थिक स्थिति के चलते रोजगार के सिलसिले में पीथमपुर जा कर रहने लगे. जबकि रूपाली अपनी मां और बहन के साथ वहीं नेमावर में ही रहती थी.

सुरेंद्र के साथ लिवइन में रहने लगी रूपाली

संतोष के जाने के बाद सुरेंद्र ही एक तरह से उन की देखभाल करने वाला बन गया था. वह छोटीमोटी मदद भी कर दिया करता था

रूपाली भी सुरेंद्र के हावभाव को समझ गई थी. ऊपर से वह पैसे वाला संपन्न परिवार से था. रूपाली ने महसूस किया कि उस की मनमांगी मुराद पूरी होने वाली है.

अगले भाग में पढ़ें- सुरेंद्र को बदनाम करने लगी  रूपाली 

Crime Story: नई दुल्हन का खूनी खेल

लेखक- अशोक शर्मा

थाणे जिले का एक प्रमुख रेलवे जंक्शन है कल्याण. उत्तर और दक्षिण को जाने वाली सभी रेलगाडि़यां यहां हो कर आतीजाती

हैं. कल्याण का एक उपनगर है विट्ठलवाड़ी, जिस के परिसर में दुर्गा का मंदिर है. मंदिर के ठीक सामने यशवंत अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 9 में जगदीश सालुंखे अपने बड़े भाई कांचन सांलुखे के परिवार के साथ रहता था.

जगदीश अंबरनाथ की एक फार्मास्युटिकल कंपनी में नौकरी करता था. उस की शादी एक चंचल शोख हसीना और महत्त्वाकांक्षी युवती वृशाली ठाकरे से हुई थी. शादी के बाद जगदीश सालुंखे ने अपने भाई का घर छोड़ दिया और उसी सोसायटी में किराए का एक फ्लैट ले कर पत्नी के साथ रहने लगा.

जगदीश सालुंखे और वृशाली की शादी को अभी 3 महीने भी नहीं हुए थे कि जगदीश की मौत हो गई. 6 मार्च, 2019 को रात के लगभग 11 बजे वृशाली ने वहीं पास में रहने वाले जगदीश सालुंखे के मामा नंदलाल सौदाणे को फोन किया. वह घबराई हुई लग रही थी.

फोन नई बहू वृशाली ने किया था, फोन सुन कर नंदलाल के होश उड़ गए. वृशाली उन से मदद मांगते हुए कह रही थी कि मामाजी यहां घर में बहुत बड़ी चोरी हुई है. चोरों ने जगदीश को मार दिया है. प्लीज मामाजी, आप जल्दी घर पर आ जाएं.

यह सारी बातें वृशाली ने रोते हुए एक ही सांस में नंदलाल को बता दी थीं. नंदलाल ने वृशाली को धीरज बंधाते हुए कहा कि वह तुरंत उस के घर पहुंच रहे हैं. जगदीश के घर के पास ही उस का बड़ा भांजा यानी जगदीश का बड़ा भाई कांचन सालुंखे रहता था. नंदलाल ने यह जानकारी कांचन को भी दे दी. वह भी अपने मामा के साथ तत्काल घटनास्थल पहुंच गया.

थोड़ी सी देर में यह खबर जंगल की आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई. आसपड़ोस के लोगों के साथसाथ जगदीश सालुंखे के जानपहचान वालों और नातेरिश्तेदारों की भीड़ एकत्र हो गई.

उन की नजर घर के अंदर गई तो उन्होंने देखा कि जगदीश सालुंखे बैड पर पड़ा था. घर का सारा सामान इधरउधर बिखरा हुआ था. जगदीश सालुंखे की पत्नी वृशाली पति के शरीर से लिपट कर रो रही थी.

जगदीश सालुंखे के घर पहुंच कर उस के भाई कांचन सालुंखे और मामा नंदलाल सौदाणे ने पड़ोसियों की मदद से वृशाली को जगदीश से अलग किया और एक आटो की मदद से पास ही गुलाबराव पाटिल के दवाखाने ले कर गए, जहां से उन्हें किसी दूसरे अस्पताल में ले जाने के लिए कहा गया.

इस पर वे जगदीश सालुंखे को डा. भुजबल के अस्पताल ले कर गए. लेकिन वहां भी निराशा ही हाथ लगी. वहां डाक्टरों ने जगदीश सालुंखे की स्थिति देख कर उसे रुक्मिणी बाई अस्पताल रैफर कर दिया. वहां के डाक्टरों ने जगदीश को देखते ही मृत घोषित कर दिया. इस के साथ ही साथ अस्पताल की ओर से इस मामले की जानकारी स्थानीय पुलिस थाने के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी गई.

जिला अस्पताल से सूचना मिलते ही थाना कोलसेवाड़ी में रात्रि ड्यूटी पर मौजूद एसआई एस.एस. तड़वी 2 कांस्टेबलों के साथ जिला अस्पताल पहुंच गए. इस की जानकारी उन्होंने सीनियर पीआई शाहूराजे सालवे को दे दी थी.

अस्पताल पहुंच कर वह अभी मृतक के परिवार से पूछताछ कर ही रहे थे कि उसी समय थाणे के डीसीपी संजय शिंदे, एसीपी पवार, सीनियर पीआई शाहूराजे सालवे, पीआई मधुकर भोंगे, एपीआई सुनीता राजपूत, एसआई नलावड़े, हेडकांस्टेबल हनुमंत शिर्के, अभिनाश काले, प्रकाश मुंडे के साथ अस्पताल पहुंच गए.

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मामला चोरी का नहीं था

डाक्टरों से बात करने के बाद पुलिस अधिकारियों ने सरसरी निगाह से मृतक जगदीश सालुंखे के शव का निरीक्षण किया. वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के चले जाने के बाद सीनियर पीआई शाहूराजे सावले ने अस्पताल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर जगदीश सालुंखे का शव पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया.

इस के बाद वह सीधे घटनास्थल पर गए. घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने के बाद वह थाने लौट गए.

थाने लौट कर जब उन्होंने अपने सहायकों  के साथ इस मामले पर गंभीरता से विचार किया तो उन्हें चोरी और जगदीश सालुंखे की हत्या की कडि़यों में कई पेंच नजर आए. मामला वैसा नहीं था जैसा कि बताया जा रहा था. मामले की तह में जाने के लिए जगदीश सालुंखे की पत्नी वृशाली का बयान जरूरी था.

लेकिन उस समय वृशाली बयान देने की स्थिति में नहीं थी. इसलिए सीनियर पीआई शाहूराजे ने पूछताछ करने के लिए वृशाली को दूसरे दिन थाने बुलाया और मामले की तफ्तीश पीआई मधुकर भोंगे और एपीआई सुनीता राजपूत को सौंप दी.

वृशाली ने अपने बयान में बताया कि घर में सागसब्जी नहीं थी. उस ने पति जगदीश सालुंखे को फोन पर इस बात की जानकारी दी. लेकिन वह काम से लौटते समय खाली हाथ आ गए. इस पर वह सीधे बाजार चली गई. बाजार से लौट कर जब वह घर आई तो घर की स्थित देख कर उस के होश उड़ गए. भाग कर जब वह पति जगदीश के पास पहुंची तो वह बेहोश पड़े थे.

यह देख कर वह बुरी तरह डर गई. उस की शादी के सारे जेवर चोर ले गए थे. उस की समझ में कुछ नहीं आया तो उस ने पति के मामा नंदलाल सौदाणे को फोन पर सारी जानकारी दे दी.

हालांकि पुलिस ने वृशाली सालुंखे के बयान पर भादंवि की धारा 174 के तहत अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज कर तफ्तीश शुरू कर दी. लेकिन जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पुलिस का शक वृशाली पर गया. वह सीधेसीधे पुलिस के राडार पर आ गई. जगदीश सालुंखे के परिवार वालों ने उस की मौत को गहरी साजिश बताया था.

परिवार वालों के बयान के अनुसार वृशाली जगदीश के साथ हुई अपनी शादी से खुश नहीं थी. शादी के पहले वह 2 बार जगदीश सालुंखे से शादी करने के लिए मना कर चुकी थी. यह शादी उसे उस के घर वालों के भारी दबाव के कारण करनी पड़ी थी.

पुलिस टीम ने जब इन सब बातों की सच्चाई जानने के लिए वृशाली से पूछताछ की तो पहले तो उस ने पुलिस को घुमाने की कोशिश की. लेकिन पुलिस के सवालों के चक्रव्यूह में वह कुछ इस तरह फंसी कि उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

23 वर्षीय जगदीश सालुंखे सुंदर स्वस्थ युवक था. वह मूलरूप से जनपद जलगांव के तालुका रावेर का रहने वाला था. उस के पिता गोकुल सालुंखे सीधेसादे व्यक्ति थे. गांव में उन की थोड़ीबहुत काश्तकारी थी. इस के अलावा रावेर में उन की हेयरकटिंग की दुकान भी थी. परिवार में उन की पत्नी के अलावा सिर्फ 2 बेटे थे. बडे बेटे कांचन सालुंखे की शादी हो चुकी थी. वह अपनी पत्नी के साथ कल्याण के उपनगर कोलसेवाड़ी में रहता था.

जबकि छोटा बेटा जगदीश सालुंखे पढ़ाई कर रहा था. गोकुल सालुंखे अपनी काश्तकारी और दुकान से परिवार की गाड़ी पूरी जिम्मेदारी से चला रहे थे. जगदीश को ले कर मातापिता का सपना था कि उन का छोटा बेटा उन के साथ रह कर घर की पूरी जिम्मेदारियां संभाले. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

पढ़ाई पूरी करने के बाद जगदीश का मन गांव में नहीं लगा तो उस ने शहर की राह पकड़ ली. शहर आ कर वह अपने बड़े भाई कांचन सालुंखे और भाभी के साथ रहने लगा. जल्दी ही उसे अंबरनाथ स्थित एक फार्मास्युटिकल कंपनी में नौकरी मिल गई. जगदीश सालुंखे जब नौकरी करने लगा तो परिवार वाले उस की शादी की सोचने लगे.

गोकुल सालुंखे ने जब बेटे की शादी की बात अपने नातेरिश्तेदारों और जानपहचान वालों के बीच चलाई तो जगदीश के लिए मलाड के रहने वाले ठाकरे परिवार की वृशाली ठाकरे का रिश्ता आया.

22 वर्षीय वृशाली ठाकरे अपने परिवार की इकलौती बेटी थी. उस के पिता की मृत्यु हो चुकी थी. घर में एक भाई सतीश ठाकरे और मां थी. घर की पूरी जिम्मेदारी सतीश ठाकरे के कंधों पर थी. इसलिए उस ने अभी तक शादी नहीं की थी. वृशाली जितनी सुंदर थी उतनी ही वह चंचल और हंसमुख भी थी. जगदीश सालुंखे को वह पहली नजर में भा गई.

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वृशाली ने घर वालों को यह रिश्ता बहुत पसंद आया. ऊपर से उन का पुराना पारिवारिक रिश्ता भी निकल आया. इसलिए ठाकरे परिवार वृशाली की शादी जल्द से जल्द कर देना चाहता था. जगदीश सालुंखे और वृशाली के देखादेखी के बाद दोनों परिवार और उन के नातेरिश्तेदारों ने मिल कर वृशाली और जगदीश सालुंखे की सगाई कर दी और साथ ही शादी की तारीख भी तय हो गई.

आज के जमाने में लोग सगाई को आधी शादी मानते हैं. और अपने बच्चों को खुली छूट दे देते हैं. लड़का और लड़की दोनों बातचीत के साथसाथ मिलनेजुलने और घूमनेफिरने लगते हैं. ऐसा ही कुछ वृशाली और जगदीश सालुंखे के साथ भी हुआ था.

वृशाली और जगदीश सालुंखे भी एकदूसरे से मिलनेजुलने और बातचीत करने लगे थे. उन का यह सिलसिला लगभग 6 महीने तक चलता रहा. जगदीश सालुंखे वृशाली से शादी तय होने से खुश था. दूसरी तरफ आधुनिक विचारों वाली वृशाली 6 महीने में ही जगदीश सालुंखे से बोर हो गई थी.

सीधेसादे नहीं, हीरो या मौडल

जैसे पति की दरकार

वृशाली को एक सीधासादा नहीं हीरो, मौडल जैसा स्मार्ट पति चाहिए था, जो उस के इशारों पर चले और उस की सारी इच्छाएं पूरी करे. शादी के 20 दिन पहले वृशाली ने जगदीश सालुंखे को फोन कर मुंबई के दादर रेलवे स्टेशन पर बुलाया और बुझे मन से कहा कि वह उस के साथ शादी जैसे पवित्र बंधन में नहीं बंधना चाहती. क्योंकि दोनों के आचारविचार एकदूसरे से नहीं मिलते. अगर दोनों की शादी हो गई तो वह खुश नहीं रह पाएगी. इस से अच्छा है कि वह शादी से इनकार कर दे.

वृशाली ठाकरे की इस बात से जगदीश सालुंखे के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. वजह यह कि उस के घर वालों ने शादी की पूरी तैयारी कर ली थी. सारे नातेरिश्तेदारों को शादी के कार्ड भी भेज दिए गए थे. जगदीश ने जब यह बात वृशाली को समझाने की कोशिश की. लेकिन उस ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि अगर उस की शादी जबरन की गई तो वह जहर खा कर आत्महत्या कर लेगी. तब उस का क्या अंजाम होगा, वह सोच ले. वृशाली की इस धमकी से जगदीश सालुंखे बुरी तरह डर गया. उस ने वृशाली की सारी बातें अपने परिवार वालों को बता दीं.

इस बात की खबर जब वृशाली के घर वालों को लगी तो वे भी सकते में आ गए. उन्होंने वृशाली को आड़े हाथों लिया. अपने परिवार के दबाव में वृशाली ने अपनी गलती मानी और जगदीश से शादी करने के लिए तैयार हो गई. लेकिन जगदीश सालुंखे के परिवार वालों को वृशाली की बातों पर यकीन नहीं था.

वह वृशाली के परिवार वालों की विनती पर शादी के लिए तैयार हो गए. लेकिन उन्होंने साफ कह दिया कि अगर भविष्य में वृशाली ने कोई गलत कदम उठाया तो जिम्मेदारी उन की नहीं होगी, इस के लिए उन्होंने अलग से गारंटी और माफी पत्र लिखवा कर अपने पास रख लिया. इस के बाद वह शादी की तैयारी में जुट गए.

घर परिवार वालों के दबाव में आ कर आखिर वृशाली जगदीश सालुंखे से शादी के लिए तैयार हो गई. लेकिन उस के मन में जगदीश सालुंखे को ले कर असमंजस की स्थिति थी. जगदीश सालुंखे को वह पति के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रही थी. यही कारण था कि वह अपनी शादी के लिए टालमटोल कर रही थी.

शादी के सप्ताह भर पहले वृशाली ने जगदीश सालुंखे को एक होटल में बुलाया और वही पुरानी बातें दोहराते हुए कहा कि वह इतनी जल्दी शादी नहीं करना चाहती. उसे ब्यूटीशियन का कोर्स करना है. कोर्स कर के पहले अपना कैरियर बनाएगी. फिर शादीविवाह के बारे में सोचेगी. तब तक के लिए वह शादी की तारीखों को आगे बढ़वा दे. जब कैरियर बन जाएगा तो शादीविवाह तो कभी भी कर सकते हैं.

इस बार जगदीश सालुंखे ने वृशाली को समझाने की कोशिश नहीं की. बल्कि उस ने सख्त लहजे में कहा, ‘‘यह बात तुम अपने परिवार वालों से क्यों नहीं कहती हो. मुझ से यह सब नहीं होगा.’’ इतना कह कर जगदीश सालुंखे गुस्से में वहां से उठ कर चला गया.

जगदीश सालुंखे के इस रवैये से वृशाली जलभुन गई थी. इस समस्या से निपटने के लिए अब उसे ही कुछ करना था. वह सोचने लगी कि ऐसा क्या करे कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

घर जाने के बाद वह सारी रात अपनी समस्या को ले कर सोचती रही, करवटें बदलती रही. और सुबह तक उस ने समस्या का जो हल निकला, वह काफी खतरनाक था. दूसरी ओर दोनों परिवार वृशाली और जगदीश सालुंखे की शादी को ले कर उत्साहित थे.

वृशाली का पहला अटैक

वृशाली की शादी हो रही थी. इस बात को ले कर उस की सहेलियों और दोस्तों में खुशी की लहर थी. वह सब वृशाली से शादी की बैचलर पार्टी की मांग कर रहे थे. जिसे वृशाली आजकल कह कर टाल रही थी. वृशाली ने शादी के 2-4 दिन पहले अपने घर में छोटी सी पार्टी रखी और इस से खासतौर पर जगदीश को भी बुलाया था.

वृशाली के बुलाने पर जगदीश पार्टी में आया तो जरूर था पर उस ने पार्टी में एंजौय नहीं किया. घर लौटते समय वृशाली ने बड़े प्यार से जगदीश के लिए खाने का टिफिन तैयार किया और उसे घर पहुंच कर खाने के लिए कह दिया.

लेकिन जगदीश ने टीफिन का खाना नहीं खाया. घर जाने के बाद उस ने टिफिन खोला तो उस में से एक अजीब सी गंध आई, जिस की वजह से जगदीश ने खाना फेंक दिया. उस खाने में वृशाली ने बड़ी चालाकी से जहर डाला था.

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अंतत: 29 दिसंबर, 2018 को बड़ी धूमधाम से वृशाली ठाकरे और जगदीश सालुंखे की शादी हो गई. शादी के बाद वे दोनों घूमने के लिए हिल स्टेशन चले गए. इस शादी से जगदीश सालुंखे तो बहुत खुश था और वृशाली के सारे गिलेशिकवे भूल गया था. लेकिन वृशाली शादी से खुश नहीं थी.

शादी के नाम पर उस ने सिर्फ एक समझौता किया था. जैसेजैसे समय बीत रहा था वैसेवैसे वृशाली के व्यवहार में परिवर्तन आता जा रहा था. वह बातबात पर जगदीश और उस के परिवार वालों से लड़ाई करने लगी थी. इस से तंग आ कर जगदीश सालुंखे के परिवार वालों ने उसे कहीं अलग रहने की सलाह दी. अंतत: जगदीश उसी परिसर में किराए का एक फ्लैट ले कर वृशाली के साथ रहने लगा.

वृशाली को घरगृहस्थी नहीं चाहिए थी

वृशाली यही चाहती भी थी कि कोई उसे रोकनेटोकने वाला न हो. नए घर में आने के बाद वह पूरी तरह से आजाद हो गई. वह सारासारा दिन मोबाइल फोन से चिपकी रहती थी. जगदीश जब इस पर ऐतराज करता, तो वह उस से उलझ जाती थी. बात आगे न बढ़े इस के लिए जगदीश सालुंखे खुद ही चुप हो जाता था.

लोग शादी के बाद अपने दांपत्य जीवन की गाड़ी हंसीखुशी के साथ चलाते हैं. लेकिन जिस दांपत्य जीवन की नींव रेत पर खड़ी हो वह भला कितने दिनों तक चल सकता है. और यही जगदीश सालुंखे के साथ भी हुआ. उस की शादी को अभी 3 महीने भी पूरे नहीं हुए थे कि अपनी आजादी के लिए वृशाली सालुंखे ने जो रास्ता चुना, वह सीधा जेल में जा कर खुलता था.

घटना के दिन वृशाली काफी खुश थी. उस ने काम से लौट कर आए जगदीश सालुंखे से प्यार भरी बातें कीं और अपनी योजना के अनुसार उस के खाने में चूहे मारने की दवा मिला दी.

खाना खाने के बाद जगदीश जब सोने के लिए अपने बैड पर गया तो उस का मन व्याकुल होने लगा. इस के पहले कि वह उठ कर बाथरूम में जाता, वृशाली ने उस के गले में नायलोन की रस्सी डाल कर पूरी ताकत से उस का गला घोंट दिया. वृशाली को जब इस बात का पूरा यकीन हो गया कि पति मर गया है. तब उस ने ड्रामा करते हुए जगदीश के मामा नंदलाल सौदाणे को फोन कर दिया.

वृशाली ने परिवार वालों और पुलिस को गुमराह करने की काफी कोशिश की. लेकिन वह सफल नहीं हो पाई. शादी से आजादी पाने के चक्कर में वह एक ऐसी खाई में जा गिरी, जहां से उस का निकलना संभव नहीं था.

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पीआई मधुकर भोंगे और उन की टीम ने वृशाली सालुंखे से विस्तृत पूछताछ करने के बाद उसे भादंवि की धारा 302 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया गया. कथा लिखे जाने तक वृशाली सालुंखे जेल में थी. पीआई मधुकर भोंगे और उन की टीम इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रही है कि मामला सिर्फ पति के न पसंद होने का था या फिर हकीकत कुछ और थी.द्य

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Manohar Kahaniya: जुर्म की दुनिया की लेडी डॉन- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

किडनैपिंग क्वीन अर्चना शर्मा

अनुराधा जुर्म की दुनिया की छोटी मछली थी, जिस का हल्ला मीडिया ने ज्यादा मचाया क्योंकि आमतौर पर औरतों के बहुत ज्यादा क्रूर होने की उम्मीद कोई नहीं करता. लेकिन वक्तवक्त पर महिलाएं जुर्म की दुनिया में आ कर लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचती रही हैं. ऐसा ही एक नाम अर्चना शर्मा का है, जिसे किडनैपिंग क्वीन के खिताब से नवाज दिया गया.

अर्चना की कहानी एकदम फिल्मों सरीखी है. उज्जैन में एक मामूली पुलिस कांस्टेबल बालमुकुंद शर्मा के यहां जन्मी अर्चना भी अनुराधा की तरह पढ़ाईलिखाई में तेज थी, इसलिए सैंट्रल स्कूल के स्टाफ की चहेती भी थी.

4 भाईबहनों में सब से बड़ी अर्चना पेंटिंग की शौकीन थी और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी. रामलीला में सीता का रोल निभाना उसे बहुत भाता था. सभी लोगों को उम्मीद थी कि महत्त्वाकांक्षी और बहुमुखी प्रतिभा की धनी यह लड़की एक दिन नाम करेगी.

अर्चना ने नाम किया, लेकिन जुर्म की दुनिया में. जिसे जान कर हर कोई दांतों तले अंगुली दबा लेता है. एक दिन अचानक उस ने पढ़ाई छोड़ देने का ऐलान कर दिया, जिस से घर वाले हैरान रह गए, उन्होंने उसे समझाया लेकिन वह टस से मस नहीं हुई.

असल में वह पिता की तरह पुलिस विभाग में नौकरी करना चाहती थी, जो उस ने कर भी ली. लेकिन जल्द ही वह इस नौकरी से ऊब गई और नौकरी छोड़ भी दी, जिस से गुस्साए घर वालों ने उस से नाता तोड़ लिया.

पुलिस की छोटे ओहदे की नौकरी में मेहनत के मुकाबले पगार कम मिलती थी, जबकि अर्चना का सोचना था कि वह इस से ज्यादा डिजर्व करती है. कुछ कर गुजरने की चाह लिए वह उज्जैन से भोपाल आ गई और वहां एक छोटी नौकरी कर ली.

यहीं से उस के जुर्म की दुनिया में दाखिले के द्वार खुले. अब अर्चना घरेलू बंदिशों से आजाद थी. लिहाजा बेरोकटोक अपनी जिंदगी खुद जीने लगी और उसे एक छोटे नेता से प्यार हो गया. लेकिन यह परवान नहीं चढ़ पाया, क्योंकि इस नेता की मंशा केवल एक खूबसूरत लड़की के साथ टाइम पास करने की थी.

पहले ही प्यार में धोखा खाई अर्चना को समझ आ गया कि न तो छोटी नौकरी से उस के सपने पूरे होने वाले और न ही रोमांटिक ख्वावों से जिंदगी का मकसद पूरा होने वाला. लिहाजा वह भोपाल छोड़ कर मुंबई चली गई.

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लेकिन जिंदगी का मकसद क्या है, यह वह खुद भी तय नहीं कर पा रही थी. मुंबई में उस ने बाबा सहगल का आर्केस्ट्रा ग्रुप जौइन कर लिया और प्रोग्राम देने खाड़ी देशों

तक गई और जल्द ही ऐक्ट्रेस बनने के सपने देखने लगी.

लेकिन उसे यह भी समझ आ गया कि मुंबई में जम पाना कोई हंसीखेल नहीं है. इसी दौरान अर्चना को अहमदाबाद के एक कारोबारी से प्यार हो गया, लेकिन यहां भी उसे नाकामी मिली.

उस कारोबारी ने प्यार नहीं, बल्कि कारोबार ही किया था और खुद अर्चना की भी मंशा किसी पैसे वाले को फांस कर सेटल हो जाने की थी, जोकि पूरी नहीं हुई.

देखा जाए तो अर्चना एक भटकाव का शिकार हो चुकी थी. एक दिन यही भटकाव उसे यूं ही दुबई ले गया, जहां उस की मुलाकात अंडरवर्ल्ड के सरगनाओं से हुई, इन में से एक नाम अपने दौर के चर्चित अपराधी बबलू श्रीवास्तव का भी था.

बहुत जल्द अर्चना को तीसरी बार प्यार हुआ. बबलू श्रीवास्तव भी उस पर जान छिड़कने लगा था. लेकिन कुख्यात बबलू को यह पसंद नहीं था कि अर्चना किसी से हंसेबोले इस को ले कर अपने ही साथियों से कई बार उस का झगड़ा भी हुआ.

आजाद जिंदगी जीने की आदी हो चली अर्चना को प्यार का यह तरीका और बबलू का पजेसिव नेचर नागवार गुजरने लगा. कुछ दिनों बाद बबलू उसे ले कर नेपाल चला आया. यहां अर्चना को चौथी बार प्यार हुआ राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के नेता दिलशाद बेग से.

अब तक अर्चना किस्मकिस्म के मर्दों से मिल चुकी थी और उन की कमजोरियां भी समझने लगी थी. दिलशाद पर उस ने अपने हुस्न और प्यार का जादू चलाया तो वह भी बबलू की तरह उस पर मरने लगा.

असल में अर्चना की मंशा दिलशाद को मोहरा बना कर बबलू से छुटकारा पाने की थी. दोनों को वह मैनेज करती रही.

साल 1994 में बबलू गिरफ्तार हुआ तो अर्चना भारत वापस चली आई और बबलू का गिरोह संभालने लगी.

अब वह एक पेशेवर मुजरिम बन चुकी थी और जुर्म की दुनिया में लेडी डौन का खिताब हासिल कर चुकी थी.

कई उद्योगपतियों को अगवा कर उस ने मोटी फिरौती वसूली. इस काम की वह स्पैशलिस्ट हो गई थी.

धीरेधीरे बबलू और उस का साथ छूट गया और अर्चना देश के कई गिरोहों के संपर्क में आई, जिन में गैंगस्टर हिंदू सिंह यादव का नाम भी शामिल था.

आए दिन अर्चना पुलिस से आंखमिचौली खेलने लगी और मध्य प्रदेश को अपना गढ़ बनाने की कोशिश करने लगी, पर बना नहीं पाई. क्योंकि पुलिस उस के पीछे थी.

अब अर्चना कहां है, यह किसी को नहीं मालूम क्योंकि उस की गतिविधियां बंद हैं और अफवाह यह भी उड़ी थी कि वह तो साल 2010 में बांग्लादेश में मारी गई. अर्चना को ले कर पुलिस कितनी परेशान थी, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक वक्त में पुलिस ने उस की बाबत 40 देशों को अलर्ट जारी किया था.

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जेनाबाई, जिस के इशारे पर अंडरवर्ल्ड डौन भी नाचते थे. अनुराधा और अर्चना तो अभी सुर्खियों में हैं, क्योंकि उन के मामले ताजेताजे हैं लेकिन देश में लेडी डौन की लिस्ट काफी लंबी है, जिन के कारनामे भी हैरतंगेज हैं और दिलचस्प भी. इस लिस्ट को देख कर लगता है कि औरतों का अंडरवर्ल्ड से पुराना नाता है और वे समयसमय पर जुर्म की दुनिया में अपनी हाजिरी दर्ज कराती रही हैं.

माफिया क्वीन जेनाबाई दारू वाली आज जिंदा होती तो उस की उम्र 100 साल होती, जिस का नाम आज भी एक मिसाल के तौर पर लिया जाता है. जेनाबाई दूसरी महिला डौनों की तरह किसी जरायमपेशा के इशारों पर कभी नहीं नाची, बल्कि उस ने कई नामी अपराधियों को इशारों पर नचाते लंबे वक्त तक राज किया.

सांप्रदायिक हिंसा और दीगर अपराधों के लिए जाने जाने वाले मुंबई के बदनाम डोंगरी इलाके, जहां की एक चाल में उस का परिवार रहता था, से शराब की तसकरी करने वाली यह लेडी डौन आला दिमाग की मालकिन और चालाक थी.

दाऊद इब्राहिम, हाजी मस्तान और करीम लाला जैसे मुंबइया डौन जिन के नाम और खौफ के सिक्के चलते थे. वे महारथी अगर किसी के इशारे पर नाचते थे तो वह जेनाबाई दारू वाली थी, जिस के दरबार में मुंबई क्राइम ब्रांच के छोटेबड़े अफसर भी सिर नवा कर दाखिल होते थे.

जेना थी तो एक दुस्साहसी और असाधारण महिला, जो आजादी की लड़ाई में भी शरीक हुई थी. उस का पति उसे छोड़ कर पाकिस्तान चला गया था, लेकिन 5 बच्चों की जिम्मेदारी जेना पर छोड़ गया था.

गरीब जेना ने पहले चावल और फिर शराब की तसकरी शुरू कर दी. कई बार वह पकड़ी गई, लेकिन छूट भी गई. इस परेशानी से बचने के लिए जेना पुलिस की मुखबिर बन गई.

उस का एक बेटा गैंगवार में मारा गया तो जुर्म से उस का जी उचट गया और वह धर्मकर्म करने लगी और 1994 में उस की मौत हो गई.

अगले भाग में पढ़ेंखतरनाक सायनाइड किलर केमपंमा

Crime Story: कातिल बहन की आशिकी

इस साल गणतंत्र दिवस की बात है. अन्य शहरों की तरह इस मौके पर उत्तर प्रदेश के इटावा शहर में भी स्कूल, कालेज, व्यापारिक प्रतिष्ठान व मुख्य चौराहों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया जा रहा था. शहर का ही सराय एसर निवासी श्याम सिंह यादव भी अपने स्कूल में मौजूद था
और बच्चों के रंगारंग कार्यक्रम को तन्मयता से देख रहा था. श्याम सिंह यादव एक प्राइवेट स्कूल में वैन चालक था. वैन द्वारा सुबह के समय बच्चों को स्कूल लाना फिर छुट्टी होने के बाद उन्हें उन के घर छोड़ना उस का रोजाना का काम था.
स्कूल में चल रहे सांस्कृतिक कार्यक्रम समाप्त होने के बाद श्याम सिंह ने स्कूल के बच्चों को घर छोड़ा, फिर वैन को स्कूल में खड़ा कर के वह दोपहर बाद अपने घर पहुंचा. घर में उस ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो उसे बड़ी बेटी पूजा तो दिखाई पड़ी, लेकिन छोटी बेटी दीपांशु उर्फ रचना दिखाई नहीं दी. रचना को घर में न देख कर श्याम सिंह ने पूजा से पूछा, ‘‘पूजा, रचना घर में नहीं दिख रही है. कहीं गई है क्या?’’
‘‘पापा, रचना कुछ देर पहले स्कूल से आई थी, फिर सहेली के घर चली गई. थोड़ी देर में आ जाएगी.’’ पूजा ने बताया.

श्याम सिंह ने बेटी की बात पर यकीन कर लिया और चारपाई पर जा कर लेट गया. लगभग एक घंटे बाद उस की नींद टूटी तो उसे फिर बेटी की याद आ गई. उस ने पूजा से पूछा, ‘‘बेटा, रचना आ गई क्या?’’
‘‘नहीं पापा, अभी तक नहीं आई.’’ पूजा ने जवाब दिया.
‘‘कहां चली गई जो अभी नहीं आई.’’ श्याम सिंह ने चिंता जताते हुए कहा.
इस के बाद वह घर से निकला और पासपड़ोस के घरों में रचना के बारे में पूछा. लेकिन रचना का पता नहीं चला. फिर उस ने रचना के साथ पढ़ने वाली लड़कियों से उस के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि रचना आज स्कूल गई ही नहीं थी.

श्याम सिंह का माथा ठनका. क्योंकि पूजा कह रही थी कि रचना स्कूल से वापस आई थी. श्याम सिंह के माथे पर चिंता की लकीरें खिंचने लगीं. उस के मन में तरहतरह के विचार आने लगे. श्याम सिंह की पत्नी सर्वेश कुमारी अपने बेटे विवेक के साथ कहीं रिश्तेदारी में गई हुई थी. श्याम सिंह ने रचना के गुम होने की जानकारी पत्नी को दी और तुरंत घर वापस आने को कहा.
शाम होतेहोते 17 वर्षीय दीपांशी उर्फ रचना के गुम होने की खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई. कई हमदर्द लोग श्याम सिंह के साथ रचना की खोज में जुट गए. जब कोई जवान लड़की घर से गायब हो जाती है तो तमाम लोग तरहतरह की कानाफूसी करने लगते हैं. श्याम सिंह के पड़ोस की महिलाएं भी कानाफूसी करने लगीं.

श्याम सिंह ने लोगों के साथ तमाम संभावित जगहों पर बेटी को तलाशा, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. इटावा के रेलवे स्टेशन, रोडवेज व प्राइवेट बसअड्डे पर भी रचना को ढूंढा गया. लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं लगा.
जब रचना का कुछ भी पता नहीं चला, तब श्याम सिंह थाना सिविल लाइंस पहुंचा. उस ने वहां मौजूद ड्यूटी अफसर आर.पी. सिंह को अपनी बेटी दीपांशी उर्फ रचना के गुम होने की जानकारी दी. थानाप्रभारी ने दीपांशु उर्फ रचना की गुमशुदगी दर्ज कर ली. इस के बाद उन्होंने इटावा जिले के सभी थानों में रचना के गुम होने की सूचना हुलिया तथा उम्र के साथ प्रसारित करा दी.

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बड़ी बेटी पर हुआ शक

रात 10 बजे तक श्याम सिंह की पत्नी सर्वेश कुमारी बेटे के साथ अपने घर पहुंच गई. पतिपत्नी ने सिर से सिर जोड़ कर परामर्श किया तो उन्हें बड़ी बेटी पूजा पर शक हुआ. उन्हें लग रहा था कि रचना के गुम होने का रहस्य पूजा के पेट में छिपा है. इसलिए श्याम सिंह ने पूजा से बड़े प्यार से रचना के बारे में पूछा.
लेकिन जब पूजा ने कुछ नहीं बताया तो श्याम सिंह ने उस की पिटाई की. इस के बाद भी पूजा ने अपनी जुबान नहीं खोली. रात भर श्याम सिंह व सर्वेश कुमारी परेशान होते रहे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर रचना कहां गुम हो गई.

अगले दिन 27 जनवरी की सुबह गांव के कुछ लोग तालाब की तरफ गए तो उन्होंने तालाब के किनारे पानी में एक बोरी पड़ी देखी. बोरी को कुत्ते पानी से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे थे. बोरी को देखने से लग रहा था कि उस में किसी की लाश है.

यह तालाब श्याम सिंह के घर के पिछवाड़े था, इसलिए बहुत जल्द उसे भी तालाब में संदिग्ध बोरी पड़ी होने की जानकारी मिल गई. खबर पाते ही वह तालाब किनारे पहुंच गया. उस ने बोरी पर एक नजर डाली फिर तमाम आशंकाओं के बीच बदहवास हालत में थाना सिविल लाइंस पहुंचा. थानाप्रभारी जे.के. शर्मा को उस ने तालाब किनारे मुंह बंद बोरी पड़ी होने की सूचना दी और आशंका जताई कि उस में कोई लाश हो सकती है.

सूचना मिलने पर थानाप्रभारी जे.के. शर्मा पुलिस टीम के साथ सराय एसर गांव के उस तालाब के किनारे पहुंचे, जहां संदिग्ध बोरी पड़ी थी. उन्होंने 2 सिपाहियों की मदद से बोरी को तालाब से बाहर निकलवाया. बोरी का मुंह खुलवा कर देखा गया तो उस में एक लड़की की लाश निकली.

लाश बोरी से निकाली गई तो उसे देखते ही श्याम सिंह फफक कर रो पड़ा. लाश उस की 17 वर्षीय बेटी दीपांशी उर्फ रचना की थी. रचना की लाश मिलने की खबर पाते ही उस की मां सर्वेश कुमारी रोतीबिलखती तालाब किनारे पहुंच गई.

इधर थानाप्रभारी जे.के. शर्मा ने रचना की लाश मिलने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ देर में एसएसपी अशोक कुमार त्रिपाठी तथा एडीशनल एसपी डा. रामयश सिंह घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और मृतका के पिता श्याम सिंह से इस बारे में पूछताछ की.

श्याम सिंह ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि रचना की हत्या का राज उन की बड़ी बेटी पूजा के पेट में छिपा है जो इस समय घर में मौजूद है. अगर उस से सख्ती से पूछताछ की जाए तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी.

अपनी ही बेटी पर छोटी बेटी की हत्या का आरोप लगाने की बात सुन कर एसएसपी त्रिपाठी भी चौंके. उन्होंने पूछा, ‘‘बड़ी बहन अपनी छोटी बहन की हत्या आखिर क्यों कराएगी?’


‘‘साहब, मेरी बड़ी बेटी के लक्षण ठीक नहीं हैं. हो सकता है इस हत्या में पड़ोस का अनिल और उस का दोस्त अवध पाल भी शामिल रहे हों.’’ श्याम सिंह ने बताया.

श्याम सिंह की बातों से एसएसपी को मामला प्रेम प्रसंग का लगा. अत: उन्होंने थानाप्रभारी को निर्देश दिया कि वह डेडबौडी को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाने के बाद आरोपियों को हिरासत में ले कर उन से पूछताछ करें. इस के बाद थानाप्रभारी जे.के. शर्मा ने मौके की काररवाई पूरी करने के बाद रचना का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

फिर उन्होंने महिला पुलिस के सहयोग से मृतका की बड़ी बहन पूजा यादव को हिरासत में ले लिया. इस के अलावा आरोपी अनिल व उस के दोस्त अवध पाल को भी सरैया चुंगी के पास से पकड़ लिया गया.

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थाने में एडीशनल एसपी डा. रामयश सिंह की मौजूदगी में पुलिस ने सब से पहले श्याम सिंह की बड़ी बेटी पूजा यादव से पूछजाछ शुरू की. शुरू में तो पूजा अपनी बहन की हत्या से इनकार करती रही लेकिन जब थोड़ी सख्ती की गई तो उस ने बताया कि छोटी बहन रचना से उस का झगड़ा हुआ था. झगडे़ के बाद उस ने कमरा बंद कर फांसी लगा ली थी. इस से वह बुरी तरह डर गई. इसलिए शव को उस ने बोरी में भरा और साइकिल पर लाद कर घर से थोड़ी दूर स्थित तालाब में फेंक आई.

थानाप्रभारी जे.के. शर्मा ने अवध पाल से पूछताछ की तो उस ने पूजा से प्रेम संबंधों को तो स्वीकार कर लिया, पर हत्या व लाश ठिकाने लगाने में शामिल होने से साफ मना कर दिया. अनिल ने भी वारदात में शामिल होने से इनकार किया. उस ने कहा कि अवध पाल उस का दोस्त है. अवध पाल व पूजा की दोस्ती को मजबूत करने में उस ने बिचौलिए की भूमिका निभाई थी. लेकिन रचना की हत्या के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है.

पूजा के इस कथन पर पुलिस को यकीन तो नहीं हुआ, फिर भी जांच करने के लिए पुलिस पूजा के घर पहुंची. पुलिस ने कमरे में लगे पंखे को देखा, उस पर धूल जमी थी और उस के ब्लेड जैसे के तैसे थे. रस्सी या दुपट्टा भी नहीं मिला. कमरे में पुलिस को कोई ऐसा सबूत नहीं था, जिस से साबित होता कि रचना ने फांसी लगाई थी.

पुलिस को लगा कि पूजा बेहद शातिर है. वह पुलिस से झूठ बोल रही है. लिहाजा महिला पुलिसकर्मियों ने पूजा से सख्ती से पूछताछ की तो जल्द ही उस ने सच्चाई उगल दी. उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही अपनी बहन रचना की हत्या कर डेडबौडी खुद ही तालाब में फेंकी थी. पूजा से पूछताछ के बाद उस की छोटी बहन की हत्या की जो कहानी सामने आई, चौंकाने वाली निकली—

उत्तर प्रदेश के इटावा शहर के सिविल लाइंस थाना क्षेत्र में एक गांव है सराय एसर. शहर से नजदीक बसे इसी गांव में श्याम सिंह यादव अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सर्वेश कुमारी के अलावा एक बेटा था विवेक तथा 2 बेटियां थीं पूजा और दीपांशी उर्फ रचना. श्याम सिंह यादव शहर के एक प्राइवेट स्कूल में वैन चलाता था. स्कूल से मिलने वाले वेतन से उस के परिवार का भरणपोषण हो रहा था.
श्याम सिंह के बच्चों में पूजा सब से बड़ी थी. चेहरेमोहरे से वह काफी सुंदर थी. पूजा जैसेजैसे सयानी होने लगी, उस के रूपलावण्य में निखार आता गया. उस के हुस्न ने बहुतों को दीवाना बना दिया था. अवध पाल भी पूजा का दीवाना था.

अवध पाल ने पूजा पर डाले डोरे

अवध पाल यादव, सरैया चुंगी पर रहता था. उस के भाई वीरपाल की दूध डेयरी थी. अवध पाल भी भाई के साथ दूध डेयरी पर काम करता था. अवध पाल का एक दोस्त अनिल यादव था जो सराय एसर में रहता था. अनिल, पूजा के परिवार का था और पूजा के घर के पास ही रहता था. अवध पाल का अनिल के घर आनाजाना था. उस के यहां आतेजाते ही अवध पाल की नजर पूजा पर पड़ी थी. वह उसे मन ही मन चाहने लगा था.

अवध पाल भाई के साथ खूब कमाता था, इसलिए वह खूब बनठन कर रहता था. अवध पाल जिस चाहत के साथ पूजा को देखता था, उसे पूजा भी समझती थी. उस की नजरों से ही वह उस के मन की बात भांप चुकी थी. धीरेधीरे पूजा भी उस की दीवानी होने लगी. उस के मन में भी अवध पाल के प्रति आकर्षण पैदा हो गया.

पूजा पंचशील इंटर कालेज में पढ़ती थी. इसी कालेज में उस की छोटी बहन दीपांशी उर्फ रचना भी पढ़ती थी. पूजा इंटरमीडिएट की छात्रा थी जबकि दीपांशी 10वीं में पढ़ रही थी. पूजा घर से पैदल ही स्कूल जाती थी.

अवध पाल ने जब से पूजा को देखा था, तब से उस ने उसे अपने दिल में बसा लिया था. पूजा के स्कूल आनेजाने के समय वह उस के पीछेपीछे स्कूल तक जाता था. पूजा भी उसे कनखियों से देखती रहती थी.
पूजा की इस अदा से अवध पाल समझ गया कि पूजा भी उसे चाहने लगी है. दोनों के दिलों में प्यार की हिलोरें उमड़ने लगीं. प्यार के समंदर को भला कौन बांध कर रख सका है. वैसे भी कहते हैं कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है.

अवध पाल को पीछे आते देख कर एक दिन पूजा ठिठक कर रुक गई. उस का दिल जोरों से धड़क रहा था. पूजा के अचानक रुकने से अवध पाल भी चौंक कर ठिठक गया. आखिर उस से रहा नहीं गया और वह लंबेलंबे डग भरता हुआ पूजा के सामने जा कर खड़ा हो गया.
‘‘तुम आजकल मेरे पीछे क्यों पड़े हो?’’ पूजा ने माथे पर त्यौरियां चढ़ा कर अवध पाल से पूछा.
‘‘तुम से एक बात कहनी थी पूजा.’’ अवध पाल ने झिझकते हुए कहा.

‘‘बताओ, क्या कहना चाहते हो?’’ पूजा ने उस की आंखों में देखते हुए पूछा.
तभी अवध पाल ने अपनी जेब से कागज की एक परची निकाली और पूजा को थमा कर बोला, ‘‘घर जा कर इसे पढ़ लेना, सब समझ में आ जाएगा.’’
मन ही मन मुसकराते हुए पूजा ने वह कागज ले लिया और बिना कुछ बोले अपने घर चली गई. हालांकि पूजा को इस बात का अहसास था कि उस परची में क्या लिखा होगा, फिर भी वह उसे पढ़ कर अपने दिल की तसल्ली कर लेना चाहती थी. घर पहुंच कर पूजा ने अपने कमरे में जा कर अवध पाल का दिया हुआ कागज निकाल कर पढ़ा. उस पर लिखा था, ‘मेरी प्यारी पूजा, आई लव यू. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हें देखे बगैर मुझे चैन नहीं मिलता. इसीलिए अकसर स्कूल तक तुम्हारे पीछे आता हूं. तुम अगर मुझे न मिली तो मैं जिंदा नहीं रह पाऊंगा. तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा अवध पाल सिंह.’

पत्र पढ़ कर पूजा के दिल के तार झनझना उठे. उस की आकांक्षाओं को पंख लग गए. उस दिन पूजा ने उस पत्र को कई बार पढ़ा. पूजा के मन में सतरंगी सपने तैरने लगे थे. उसी दिन रात को पूजा ने अवध पाल के नाम एक पत्र लिखा.
पत्र में उस ने सारी भावनाएं उड़ेल दीं, ‘प्रिय अवध पाल, मैं भी तुम से इतना प्यार करती हूं जितना कभी किसी ने नहीं किया होगा. कह इसलिए नहीं सकी कि कहीं तुम बुरा न मान जाओ. तुम्हारे बिना मैं भी जीना नहीं चाहती. मैं तो चाहती हूं कि हर समय तुम्हारी बांहों के घेरे में बंधी रहूं. तुम्हारी पूजा.’
उस दिन मारे खुशी के पूजा को नींद नहीं आई. अगली सुबह वह कालेज जाने के लिए घर से निकली तो अवध पाल उसे पीछेपीछे आता दिखाई दिया. दोनों की नजरें मिलीं तो वे मुसकरा दिए. पूजा बेहद खुश नजर आ रही थी. सावधानी से पूजा ने अपना लिखा खत जमीन पर गिरा दिया और आगे चली गई.
पीछेपीछे चल रहे अवध पाल ने इधरउधर देखा और उस पत्र को उठा कर दूसरी तरफ चला गया. एकांत में जा कर उस ने पूजा का पत्र पढ़ा तो खुशी से झूम उठा. जो हाल पूजा के दिल का था, वही अवध पाल का भी था. पूजा ने पत्र का जवाब दे कर उस का प्यार स्वीकार कर लिया था.

शुरू हो गई प्रेम कहानी

दोपहर बाद जब कालेज की छुट्टी हुई तो पूजा ने गेट पर अवध पाल को इंतजार करते पाया. एकदूसरे को देख कर दोनों के दिल मचल उठे. वे दोनों एक पार्क में जा पहुंचे.
पार्क के सुनसान कोने में बैठ कर दोनों ने अपने दिल का हाल एकदूसरे को कह सुनाया. पार्क में कुछ देर प्यार की अठखेलियां कर के दोनों घर लौट आए. दोनों के बीच प्यार का इजहार हुआ तो मानो उन की दुनिया ही बदल गई. फिर दोनों अकसर मिलने लगे.
पूजा और अवध पाल के दिलोदिमाग पर प्यार का ऐसा जादू चढ़ा कि उन्हें एकदूजे के बिना सब कुछ सूनासूना लगने लगा. जब भी मौका मिलता, दोनों एकांत में साथ बैठ कर अपने ख्वाबों की दुनिया में खो जाते. इसी प्यार के चलते दोनों ने साथसाथ जीनेमरने की कसमें भी खा लीं. एक बार मन से मन मिले तो फिर तन मिलने में भी देर नहीं लगी.
पूजा और अवध पाल ने लाख कोशिश की कि उन के प्रेम संबंधों का पता किसी को न चले. लेकिन प्यार की महक को भला कोई रोक सका है. एक दिन पूजा की छोटी बहन दीपांशी उर्फ रचना ने पूजा और अवध पाल को रास्ते में हंसीठिठोली करते देख लिया. रास्ते में तो उस ने कुछ नहीं कहा, लेकिन घर आ कर उस ने पापा और मम्मी के कान भर दिए.
कुछ देर बाद पूजा कालेज से घर आई तो मांबाप की त्यौरियां चढ़ी हुई थीं. श्याम सिंह ने गुस्से में उस से पूछा, ‘‘रास्ते में किस के साथ हंसीठिठोली कर रही थी? कौन है वह, जो हमारी इज्जत को नीलाम करना चाहता है? सचसच बता वरना…’’

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पिता का गुस्सा देख कर पूजा सहम गई. वह जान गई कि उस के प्यार का भांडा फूट गया है, इसलिए झूठ बोलने से कुछ नहीं होगा. अत: वह सिर झुका कर बोली, ‘‘पापा, वह लड़का है अवध पाल. सरैया चुंगी में रहता है. वह अपने बड़े भाई वीरपाल के साथ डेयरी चलाता है. हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’
पूजा की बात सुनते ही श्याम सिंह का गुस्सा सीमा लांघ गया. उस ने पूजा की जम कर पिटाई की और उसे हिदायत दी कि आइंदा वह अवध पाल से न मिले. पूजा की मां सर्वेश कुमारी ने भी उसे खूब समझाया. पूजा पर लगाम कसने के लिए सर्वेश ने उस का कालेज जाना बंद करा दिया, साथ ही उस पर निगरानी भी रखने लगी. पूजा पर निगाह रखने के लिए श्याम सिंह और उस की पत्नी ने छोटी बेटी रचना को भी लगा दिया. पूजा जब भी कालेज जाने की बात कहती तो रचना उस के साथ होती और उस की हर गतिविधि पर नजर रखती.
पाबंदी लगी तो पूजा व अवध पाल का मिलनाजुलना बंद हो गया. इस से दोनों परेशान रहने लगे. अवध पाल ने अपनी परेशानी अपने दोस्त अनिल को बताई और इस मामले में मदद मांगी. अनिल रचना का नातेदार था और पास में ही रहता था. वह दोनों के प्यार से वाकिफ था, सो मदद करने को राजी हो गया.
इस के बाद अवध पाल ने अनिल को एक मोबाइल फोन दे कर कहा, ‘‘दोस्त, तुम पूजा के पड़ोसी हो. पूजा तुम्हारे परिवार की है. तुम उस के घर वालों पर नजर रखो और जब भी पूजा घर में अकेली हो तो उसे फोन दे कर मेरी बात करा दिया करना.’’
इस के बाद अनिल पूजा और अवध पाल के प्यार का राजदार बन गया. पूजा जब भी घर में अकेली होती तो अनिल उसे मोबाइल दे कर अवध पाल से बात करा देता. प्यार भरी बातें करने के बाद पूजा अनिल को मोबाइल वापस कर देती. कभीकभी पूजा बहाना कर के अनिल के घर चली जाती और मोबाइल से देर तक प्रेमी अवध पाल से बतिया कर वापस आ जाती.

परंतु पूजा और अवध पाल का मोबाइल पर बतियाना ज्यादा समय तक राज न रह सका. एक रोज रचना ने पूजा को बतियाते सुन लिया. यही नहीं, उस ने अनिल को मोबाइल वापस करते भी देख लिया. इस की जानकारी उस ने मांबाप को दी तो पूजा की पिटाई हुई.
इस के बाद तो यह सिलसिला बन गया. रचना जब भी पूजा को बतियाते हुए देख लेती तो मांबाप को बता देती. फिर उस की पिटाई होती. पूजा अब रचना को अपने प्यार का दुश्मन समझने लगी थी. वह प्रतिशोध की आग में जल रही थी.
24 जनवरी, 2019 को श्याम सिंह की पत्नी बेटे विवेक के साथ किसी काम से चरुआभानी, मैनपुरी रिश्तेदारी में चली गई. इस की जानकारी अनिल को हुई तो वह पूजा और अवध पाल का मिलाप कराने का प्रयास करने लगा, लेकिन रचना की कड़ी निगरानी की वजह से वह मिलाप न करा सका.
गुस्सा बना रचना की मौत की वजह

26 जनवरी, 2019 को गणतंत्र दिवस था. लगभग साढ़े 7 बजे श्याम सिंह यादव अपनी ड्यूटी चला गया. श्याम सिंह के जाने के बाद अनिल पूजा के घर पहुंच गया और उसे मोबाइल दे गया. कुछ देर बाद रचना भी किसी काम से पड़ोसी के घर चली गई. इसी बीच पूजा को मौका मिल गया और वह मोबाइल पर प्रेमी अवध पाल से बतियाने लगी.
पूजा, प्रेमी से रसभरी बातें कर ही रही थी कि रचना आ गई. उस ने मोबाइल पर बहन द्वारा बात करने का विरोध किया और धमकी देते हुए कहा कि आने दो पापा को तुम्हारे प्यार का भूत न उतरवाया तो मेरा नाम रचना नहीं.
रचना की धमकी से पूजा का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा और दोनों में कहासुनी होने लगी. इसी कहासुनी के बीच रचना ने पूजा के हाथ से मोबाइल छीन कर जमीन पर पटक दिया, जिस से वह टूट गया. इस के अलावा उस ने ऐसे गंदे शब्दों का प्रयोग किया, जिस से पूजा का गुस्सा और बढ़ गया. वह नफरत की आग में जल उठी.
पूजा ने लपक कर रचना के गले में पड़ा स्कार्फ दोनों हाथों से पकड़ा और पूरी ताकत से उसे खींचने लगी. नफरत की आग में जल रही पूजा भूल गई कि जिस का वह गला कस रही है, वह उस की छोटी बहन है. पूजा के हाथ तभी ढीले हुए जब रचना की आंखें फट गईं और वह जमीन पर गिर पड़ी.
पूजा को यकीन नहीं हो रहा था कि उस की छोटी बहन की सांसें थम गई हैं. वह उसे हिलानेडुलाने लगी. नाम ले कर पुकारने लगी, ‘‘उठो रचना, उठो. मुझे माफ कर दो.’’
लेकिन रचना कैसे उठती. उस की तो दम घुटने से मौत हो चुकी थी. पूजा कुछ देर तक लाश के पास बैठी पछताती रही. फिर पकड़े जाने के डर से वह घबरा गई. पुलिस से बचने के लिए उस ने गले में लिपटा स्कार्फ निकाला और बक्से में छिपा दिया. फिर रचना के शव को प्लास्टिक की बोरी में तोड़मरोड़ कर भरा और बोरी का मुंह बंद कर दिया.

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घर के पिछवाड़े कुछ ही कदम की दूरी पर तालाब था. घर के कमरे का एक दरवाजा इसी तालाब की ओर खुलता था. पूजा ने दरवाजा खोला, आवाजाही की टोह ली और फिर शव को साइकिल पर लाद कर तालाब किनारे फेंक दिया. फिर दरवाजा बंद कर साइकिल जहां की तहां खड़ी कर दी. टूटे मोबाइल को उस ने कबाड़ में फेंक दिया और घर साफसुथरा कर दिया.
दोपहर बाद जब श्याम सिंह घर आया तो उसे रचना नहीं दिखी. तब उस ने पूजा से पूछा. पूजा ने उसे गुमराह कर दिया. श्याम सिंह देर रात तक रचना की खोज में जुटा रहा. जब वह नहीं मिली तब वह वह थाना सिविल लाइंस चला गया और पुलिस जांच के बाद प्यार में बाधक बनी छोटी बहन की बड़ी बहन द्वारा हत्या किए जाने की सनसनीखेज घटना सामने आई.
पूजा से पूछताछ के बाद पुलिस ने 28 जनवरी, 2019 को उसे इटावा की अदालत में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया. अनिल व अवध पाल के खिलाफ पुलिस को कोई साक्ष्य नहीं मिला, जिस से उन्हें छोड़ दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Manohar Kahaniya: सुपरस्टार के बेटे आर्यन खान पर ड्रग्स का डंक- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां 

लंबीचौड़ी मारधाड़ और गोलीबारी के बाद प्रेमनाथ, अजीत और अमजद खान जैसे ड्रग स्मगलर हेलीकाप्टर में चढ़ने से पहले ही धर लिए जाते थे. उन के साथ टाम अल्टर या बौब क्रिस्टो, जो मूलत: अंगरेज हैं, को भी दिखा दिया जाता था जिस से सिद्ध हो जाता था कि ड्रग्स तसकरी बगैर विदेशी स्मगलरों के मुमकिन नहीं.

ड्रग्स की तिलिस्मी दुनिया का शिकार बन रहे हैं युवा

पिछले 2 दशक में नशे और खासतौर से ड्रग्स पर जो फिल्में बनीं वे कोई समाधान नहीं देतीं, बल्कि यह बताती हैं कि युवा नशा क्यों करते हैं और नशा होने के बाद कैसा लगता है.

आर्यन खान संभव है यही अनुभव लेने गया हो कि भविष्य में कभी ड्रग एडिक्ट युवा का रोल करना पड़ा तो उस में बिना नशे को समझे वास्तविकता कैसे आएगी.

गोवा नशेडि़यों की जन्नत है, इस हकीकत को साल 2013 में प्रदर्शित फिल्म ‘गो गोवा गान’ में दिखाया गया था. 3 दोस्त एक रेव पार्टी में गोवा जाते हैं और गलत ड्रग्स लेने पर जांबी बन जाते हैं. हालांकि फिल्म का उत्तरार्द्ध पौराणिक किस्से कहानियों और कौमिक्स जैसा था, लेकिन पूर्वार्द्ध में मुद्दे की बात आ गई थी.

प्रियंका चोपड़ा और कंगना रनौत अभिनीत मधुर भंडारकर निर्देशित ‘फैशन’ फिल्म साल 2008 में आई थी, जिस में कस्बाई युवतियों की मानसिकता को खूबी से उकेरा गया था कि वे मुंबई आ कर कैसे ड्रग्स की मायावी और तिलिस्मी दुनिया का शिकार हो जाती हैं.

ये युवतियां कामयाब तो अपनी प्रतिभा के दम पर होती हैं लेकिन ड्रग्स सेवन को फैशन मानते बरबाद हो जाती हैं और फिर कभी मीना कुमारी, नरगिस, हेमामालिनी, श्रीदेवी, रेखा या माधुरी दीक्षित नहीं बन पातीं यानी ड्रग्स का कारोबार कस्बाई प्रतिभाओं को कामयाब होने से रोकने की भी एक साजिश के तौर पर देखा जा सकता है.

यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि कभी बड़े नामी सितारे ड्रग्स लेते नहीं पकड़े जाते. अपवाद स्वरूप ही संजय दत्त रोशनी में आए थे, वह भी इसलिए कि वह नशे के इतने आदी हो चुके थे कि सुबह उठ कर ब्रश बाद में करते थे, ड्रग्स पहले लेते थे.

2009 में प्रदर्शित हुई फिल्म ‘देव डी’ भी ड्रग्स प्रधान थी, लेकिन यह भी मकसद से भटकी हुई फिल्म थी. धर्मेंद्र के एक बड़े भाई हैं अजीत सिंह देओल, जो फिल्म निर्माता और निर्देशक हैं. इन्हीं के बेटे हैं अभय देओल. अभय देओल ने ही इस फिल्म में कामचलाऊ एक्टिंग की थी जो नशे में डूबे नाकाम आशिक के किरदार में थे.

फिर इस के 2 साल बाद आई अभिषेक बच्चन अभिनीत ‘दम मारो दम’ फिल्म, जिस में एक भूमिका राजबब्बर और स्मिता पाटिल के अभिनेता बेटे प्रतीक बब्बर की भी थी.

प्रतीक बब्बर रियल लाइफ में भी आला दरजे के नशेड़ी रह चुके हैं, जिन्हें इलाज के लिए कई बार नशा मुक्ति केंद्र में भरती होना पड़ा था. हालांकि एक्टिंग के मामले में वह संजय दत्त पर बनी बायोपिक ‘संजू’ में संजय दत्त का रोल अदा कर रहे रणबीर कपूर के सामने उन्नीस ही रहे थे.

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‘दम मारो दम’ में निर्देशक रोहन सिप्पी ने कोशिश जरूर की थी कि ड्रग्स स्मगलिंग और रैकेट्स का खुलासा करें लेकिन वह भी सिमट कर रह गए थे.

इस फिल्म की शूटिंग भी ड्रग्स का स्वर्ग कहे जाने वाले शहर गोवा में हुई थी. इस से कुछकुछ हकीकत का एहसास तो हुआ था पर यह सब पुरानी हिंदी फिल्मों की कौपी थी, जिन में पुलिस और तस्कर ढाई घंटे तक चोर पुलिस का खेल खेला करते हैं.

इस फिल्म की इकलौती खूबी यह बताना थी कि हरेक किरदार के तार ड्रग माफियाओं से जुड़े हुए दिखाए गए हैं. लेकिन वे ठीक वैसे ही हैं जैसे आर्यन खान के हैं जिस से यह उम्मीद करना बेवकूफी की बात है कि वह सीधा इस धंधे के बौस से ड्रग ले कर आया हो.

2016 में आई ‘उड़ता पंजाब’ फिल्म अपने शीर्षक के चलते काफी चर्चित रही थी, क्योंकि पंजाब में ड्रग्स की दखल तब तक अहम बहस का विषय बन चुकी थी. ड्रग्स पर बनी यह इकलौती फिल्म थी, जिस में यह बताया गया था कि फैक्ट्रियों में ड्रग्स कैसे बनती हैं.

निर्देशक अभिषेक चौबे यह बताने में भी कामयाब रहे थे कि इस में राजनेता भी लिप्त रहते हैं. शाहिद कपूर, करीना कपूर और आलिया भट्ट जैसे सितारों से सजी यह फिल्म विवादों से भी घिरी थी.

ड्रग्स कितनी आसानी से उपलब्ध हो जाती है और इस के दुष्प्रभाव कैसे होते हैं, यह असरदार तरीके से दिखाना भी फिल्म की खूबी थी.

आर्यन कोई नादान बच्चा नहीं

ड्रग्स अकेले पंजाब या मुंबई में ही नहीं बल्कि पूरे देश में सहजता से मिल जाती हैं जिस के लिए इकलौती खूबी या जरूरत तलब लगना है.

यह तलब जब लगती है तो लोग मल खाने तक को भी तैयार हो जाते हैं, लड़कियां देह व्यापार करने को मजबूर हो जाती हैं, युवा अपनी गैरत और करिअर भूल जाते हैं. इस से ज्यादा ड्रग्स की लत के बारे में ज्यादा कुछ और कहा भी नहीं जा सकता.

इस में भी कोई शक नहीं कि फिल्म इंडस्ट्री के कई कलाकार इस लत के शिकार हैं, जिन के नाम वक्तवक्त पर उजागर होते भी रहे हैं. लेकिन न पकड़े गए फिल्मकारों की लिस्ट उन से कई गुना ज्यादा लंबी है.

आर्यन के बहाने एक बार फिर यह सच उजागर हुआ कि कुछ भी मुमकिन है, क्योंकि एक 24 साल के नौजवान को इतना भोला भी नहीं कहा और माना जा सकता कि वह यह न जानता हो कि ड्रग्स सेहत के लिए तो नुकसानदायक हैं ही, साथ ही इन का सेवन व खरीदफरोख्त यहां तक कि इन्हें अपने पास रखना भी गैरकानूनी है.

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आर्यन से पहले जो फिल्मकार ड्रग्स के मामले में पकड़े गए हैं, उन में छोटे परदे की टुनटुन कही जाने वाली कामेडियन भारती सिंह, सुशांत सिंह की प्रेमिका रही रिया चक्रवर्ती, आज की कामयाब अभिनेत्री दीपिका पादुकोण और बी ग्रेड की ऐक्ट्रेस रकुलप्रीत सिंह के नाम प्रमुखता से शामिल हैं. फरदीन खान और ममता कुलकर्णी भी इस लिस्ट की शोभा बढ़ा चुके हैं.

आर्यन का क्या होगा, इस पर हर किसी की निगाह है क्योंकि वह कोई आम लड़का नहीं बल्कि शाहरुख खान का बेटा है. अगर उस पर आरोप साबित हुए तो उसे कम से कम एक साल की सजा होनी तय है.

हालफिलहाल तो वह आर्थर रोड नाम की जेल में है जिस में संजय दत्त सहित जुर्म की दुनिया के कई दिग्गजों ने अपने दुर्दिन गुजारे थे.

सच यह भी है कि आर्यन को इतनी शोहरत फिल्मों में काम करने से पहले ही मिल चुकी है कि कोई भी निर्माता उस पर अरबों का दांव खेलने का जोखिम उठा सकता है. एक बहस पेरेंट्स की भूमिका की भी हुई कि क्यों न उन्हें भी बच्चों की ड्रग की लत का जिम्मेदार ठहराया जाए.

आर्यन के गिरफ्तार होते ही शाहरुख खान का एक वीडियो तेजी से वायरल हुआ था, जिस में अभिनेत्री सिम्मी ग्रेवाल को दिए इंटरव्यू में वह यह कहते नजर आ रहे थे कि वह चाहते हैं कि उन का बेटा भी ड्रग्स ट्राई करे और जब आर्यन ने उन की बात मान ही ली तो एक आम पिता की तरह रोतेझींकते और बेटे के लिए तड़पते नजर आए.

यह सोचना भी बेमानी है कि आर्यन के पकड़े जाने से ड्रग्स की समस्या खत्म हो गई है. उलटे यह गिरफ्तारी और उस के बाद का ड्रामा यह सोचने को जरूर मजबूर करता है कि यह समस्या कितनी विकराल हो गई है.

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