सौजन्य- सत्यकथा
मीनाक्षी के जाने के बाद थानाप्रभारी ने मामले की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम और अपने वरिष्ठ अधिकारियों को देने के साथ ही तुरंत पूरे शहर की नाकेबंदी करा दी.
शहर के पुलिस महकमे में नवीन पटेल के अपहरण की सूचना फैल गई. इस की जानकारी व्यापारी वर्ग को भी लग गई, किंतु वे पुलिस की हिदायत के मुताबिक शांत बने रहे.
पुलिस ने सब से पहले निशांत की तलाशी का लक्ष्य बनाया, ताकि अपहरण का कोई सुराग हाथ लग सके. उस के मोबाइल फोन की ट्रैकिंग की जाने लगी.
अपहरण कांड की सूचना पा कर अगले दिन गोवा के डीजीपी मुकेश कुमार मीणा और एसपी शोभित सक्सेना ने थानाप्रभारी विजय चोडणखर के साथ मिल कर घटनास्थल यानी नवीन पटेल के शोरूम का जा कर निरीक्षण किया.
आसपास के शोरूम वालों से पूछताछ करने पर उन्हें कोई विशेष जानकारी नहीं मिली.
शोरूम के कुछ कर्मचारियों ने घटना के दिन शटर बंद करने और चाकू की नोंक पर नवीन को गाड़ी में जबरन बिठाने के अलावा अधिक बातें नहीं बताईं. उन्होंने इस कांड में 5 लोगों के शामिल होने के साथसाथ दोपहर 12 से एक बजे के बीच शोरूम के सामने सफेद एसयूवी कार खड़ी होने की बात कही.
निशांत के बारे में पूछने पर कर्मचारियों ने कहा कि उस रोज वह छुट्टी पर था. इस छानबीन के बाद पुलिस अधिकारी अपने औफिस लौट आए. थाने आ कर थानाप्रभारी ने शोरूम के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज की भी जांच की.
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जल्द ही उन्हें उन फोन नंबरों की काल डिटेल्स भी मिल गई, जिस से पता चला कि घटना के वक्त उन की लोकेशन घटनास्थल के आसपास थी. इस के बाद नए सिरे से मामले की रूपरेखा तैयार कर तफ्तीश के लिए पुलिस की 4 टीमों का गठन किया गया. सभी टीमें गोवा के अलगअलग इलाकों में फैल गईं.
इस मामले में गोवा के आगशी और अगाकैन पुलिस की भी मदद ली गई. अपहर्त्ताओं के मोबाइल फोन की सर्विलांस से मालूम हुआ कि वे नंबर पुराने गोवा सांताक्रुज केवसा के इलाके से एक्टिव करवाए गए थे. उस का आईएमईआई नंबर गोवा के एक व्यक्ति के मोबाइल का था.
पुलिस की जांच टीम उस के सहारे आगशी और अगाकैन पुलिस को सतर्क करती हुई उस व्यक्ति के पते पर पहुंच गई. वहां जा कर मालूम हुआ कि जिन फोन नंबरों से फिरौती की रकम मांगी गई थी, वह फोन दिहाड़ी मजदूरों के थे, जो एक दिन पहले ही कार सवार युवकों ने छीन लिए थे.
उन की कार उन युवकों के हुलिया के बारे में पुलिस ने मजदूरों से पूछा तो उन के बारे में उस का हुलिया सीसीटीवी की तसवीरों वाले कार से मेल खाने जैसी थी.
उस वक्त वे मेनरोड से अपने घर लौट रहे थे. तभी उन के पास एक कार आ कर रुकी थी, जिस में 5 लोग बैठे थे.
एक रास्ता पूछने के लिए बाहर निकला था. उस ने यह भी बताया कि कार में एक आदमी सिर झुकाए 2 लोगों के बीच बैठा हुआ था. दोनों उसे पीछे से हाथ किए ऐसे पकड़ रखे थे, जैसे वे गिरने वाले हों.
मजदूर के बताए गए बदमाशों के हुलिए से जांच टीम को काफी राहत मिली. अपहरण कांड के तार एकदूसरे से जुड़ने लगे थे, लेकिन सब से अहम था अपहर्त्ताओं का पकड़ा जाना और नवीन पटेल को सकुशल बरामद करना.
पुलिस ने गोवा में घटित हाल की आपराधिक वारदातों में शामिल लोगों की जानकारी निकलवाई. उस के आधार पर सब से पहला नाम राहजनी और वाहन चोरी के कई गंभीर इलजाम वाले वीरेंद्र कुमार बिहारी का सामने आया.
इस नई जानकारी के बाद पुलिस टीम की तफ्तीश वीरेंद्र कुमार बिहारी की तरफ घूम गई. पुलिस टीम ने जब वीरेंद्र के ठिकाने पर छापा मारा तो वह हाथ नहीं लगा, लेकिन उस का एक साथी पुलिस टीम के हत्थे चढ़ गया.
उसे पुलिस टीम थाने ले आई. उस से पूछताछ शुरू होने के साथ ही पुलिस को एक और महत्त्वपूर्ण सुराग मिल गया. वीरेंद्र का पकड़ा गया साथी कोई और नहीं, नवीन पटेल का कर्मचारी निशांत था.
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पहले तो उस ने अपहरण कांड से अनजान और और खुद को बेकुसूर बताया, लेकिन सख्ती से पूछताछ करने पर उस ने सच कुबूल लिया.
उस ने अपने अन्य साथियों के नाम भी बता दिए और यह भी बताया कि वह अपहृत नवीन को कहीं छिपा कर रखने का इंतजाम करने के लिए कमरे पर आया था.
पुलिस को अपहर्त्ताओं तक पहुंचने के लिए इतनी जानकारी काफी थी. पुलिस टीम नवीन पटेल को उन के चंगुल से छुड़ाने के लिए निशांत को साथ ले कर उस के बताए अनुसार उस ठिकाने पर जा पहुंची, जहां वे मीनाक्षी को काल कर पैसे मांग रहे थे.
वे सभी पुराने गोवा में एक जर्जर इमारत में थे. पुलिस ने वहां बंधक बना कर रखे गए नवीन पटेल को अपहर्त्ताओं के चंगुल से सकुशल बरामद कर लिया.
नवीन पटेल को सकुशल आजाद करवाने के बाद तीनों थाने के अधिकारियों की मदद से नवीन पटेल अपहरण कांड में शामिल सभी आरोपियों को निशांत मोगन की निशानदेही पर गिरफ्तार कर लिया गया.
थाने ला कर जब उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम वीरेंद्र कुमार बिहारी, सुरजीत केसकर, सुभाष भोसले और मंजूनाथ कारवार बताए.
सभी से अपहरण से संबंधित मोबाइल फोन और चाकू बरामद कर लिया. उन के खिलाफ नवीन पटेल के अपहरण का मुकदमा दर्ज कर दिया गया. दूसरे दिन उन्हें गोवा मेट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर गोवा की सेंट्रल जेल भेज दिया गया.
कथा लिखे जाने तक आगे की तफ्तीश गोवा कोतवाली के थानाप्रभारी विजय चोडणखर कर रहे थे.