Satyakatha: ऑपरेशन करोड़पति- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

मीनाक्षी के जाने के बाद थानाप्रभारी ने मामले की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम और अपने वरिष्ठ अधिकारियों को देने के साथ ही तुरंत पूरे शहर की नाकेबंदी करा दी.

शहर के पुलिस महकमे में नवीन पटेल के अपहरण की सूचना फैल गई. इस की जानकारी व्यापारी वर्ग को भी लग गई, किंतु वे पुलिस की हिदायत के मुताबिक शांत बने रहे.

पुलिस ने सब से पहले निशांत की तलाशी का लक्ष्य बनाया, ताकि अपहरण का कोई सुराग हाथ लग सके. उस के मोबाइल फोन की ट्रैकिंग की जाने लगी.

अपहरण कांड की सूचना पा कर अगले दिन गोवा के डीजीपी मुकेश कुमार मीणा और एसपी शोभित सक्सेना ने थानाप्रभारी विजय चोडणखर के साथ मिल कर घटनास्थल यानी नवीन पटेल के शोरूम का जा कर निरीक्षण किया.

आसपास के शोरूम वालों से पूछताछ करने पर उन्हें कोई विशेष जानकारी नहीं मिली.

शोरूम के कुछ कर्मचारियों ने घटना के दिन शटर बंद करने और चाकू की नोंक पर नवीन को गाड़ी में जबरन बिठाने के अलावा अधिक बातें नहीं बताईं. उन्होंने इस कांड में 5 लोगों के शामिल होने के साथसाथ दोपहर 12 से एक बजे के बीच शोरूम के सामने सफेद एसयूवी कार खड़ी होने की बात कही.

निशांत के बारे में पूछने पर कर्मचारियों ने कहा कि उस रोज वह छुट्टी पर था. इस छानबीन के बाद पुलिस अधिकारी अपने औफिस लौट आए. थाने आ कर थानाप्रभारी ने शोरूम के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज की भी जांच की.

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जल्द ही उन्हें उन फोन नंबरों की काल डिटेल्स भी मिल गई, जिस से पता चला कि घटना के वक्त उन की लोकेशन घटनास्थल के आसपास थी. इस के बाद नए सिरे से मामले की रूपरेखा तैयार कर तफ्तीश के लिए पुलिस की 4 टीमों का गठन किया गया. सभी टीमें गोवा के अलगअलग इलाकों में फैल गईं.

इस मामले में गोवा के आगशी और अगाकैन पुलिस की भी मदद ली गई. अपहर्त्ताओं के मोबाइल फोन की सर्विलांस से मालूम हुआ कि वे नंबर पुराने गोवा सांताक्रुज केवसा के इलाके से एक्टिव करवाए गए थे. उस का आईएमईआई नंबर गोवा के एक व्यक्ति के मोबाइल का था.

पुलिस की जांच टीम उस के सहारे आगशी और अगाकैन पुलिस को सतर्क करती हुई उस व्यक्ति के पते पर पहुंच गई. वहां जा कर मालूम हुआ कि जिन फोन नंबरों से फिरौती की रकम मांगी गई थी, वह फोन दिहाड़ी मजदूरों के थे, जो एक दिन पहले ही कार सवार युवकों ने छीन लिए थे.

उन की कार उन युवकों के हुलिया के बारे में पुलिस ने मजदूरों से पूछा तो उन के बारे में उस का हुलिया सीसीटीवी की तसवीरों वाले कार से मेल खाने जैसी थी.

उस वक्त वे मेनरोड से अपने घर लौट रहे थे. तभी उन के पास एक कार आ कर रुकी थी, जिस में 5 लोग बैठे थे.

एक रास्ता पूछने के लिए बाहर निकला था. उस ने यह भी बताया कि कार में एक आदमी सिर झुकाए 2 लोगों के बीच बैठा हुआ था. दोनों उसे पीछे से हाथ किए ऐसे पकड़ रखे थे, जैसे वे गिरने वाले हों.

मजदूर के बताए गए बदमाशों के हुलिए से जांच टीम को काफी राहत मिली. अपहरण कांड के तार एकदूसरे से जुड़ने लगे थे, लेकिन सब से अहम था अपहर्त्ताओं का पकड़ा जाना और नवीन पटेल को सकुशल बरामद करना.

पुलिस ने गोवा में घटित हाल की आपराधिक वारदातों में शामिल लोगों की जानकारी निकलवाई. उस के आधार पर सब से पहला नाम राहजनी और वाहन चोरी के कई गंभीर इलजाम वाले वीरेंद्र कुमार बिहारी का सामने आया.

इस नई जानकारी के बाद पुलिस टीम की तफ्तीश वीरेंद्र कुमार बिहारी की तरफ घूम गई. पुलिस टीम ने जब वीरेंद्र के ठिकाने पर छापा मारा तो वह हाथ नहीं लगा, लेकिन उस का एक साथी पुलिस टीम के हत्थे चढ़ गया.

उसे पुलिस टीम थाने ले आई. उस से पूछताछ शुरू होने के साथ ही पुलिस को एक और महत्त्वपूर्ण सुराग मिल गया. वीरेंद्र का पकड़ा गया साथी कोई और नहीं, नवीन पटेल का कर्मचारी निशांत था.

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पहले तो उस ने अपहरण कांड से अनजान और और खुद को बेकुसूर बताया, लेकिन सख्ती से पूछताछ करने पर उस ने सच कुबूल लिया.

उस ने अपने अन्य साथियों के नाम भी बता दिए और यह भी बताया कि वह अपहृत नवीन को कहीं छिपा कर रखने का इंतजाम करने के लिए कमरे पर आया था.

पुलिस को अपहर्त्ताओं तक पहुंचने के लिए इतनी जानकारी काफी थी. पुलिस टीम नवीन पटेल को उन के चंगुल से छुड़ाने के लिए निशांत को साथ ले कर उस के बताए अनुसार उस ठिकाने पर जा पहुंची, जहां वे मीनाक्षी को काल कर पैसे मांग रहे थे.

वे सभी पुराने गोवा में एक जर्जर इमारत में थे. पुलिस ने वहां बंधक बना कर रखे गए नवीन पटेल को अपहर्त्ताओं के चंगुल से सकुशल बरामद कर लिया.

नवीन पटेल को  सकुशल आजाद करवाने के बाद तीनों थाने के अधिकारियों की मदद से नवीन पटेल अपहरण कांड में शामिल सभी  आरोपियों को निशांत मोगन की निशानदेही पर गिरफ्तार कर लिया गया.

थाने ला कर जब उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम वीरेंद्र कुमार बिहारी, सुरजीत केसकर, सुभाष भोसले और मंजूनाथ कारवार बताए.

सभी से अपहरण से संबंधित मोबाइल फोन और चाकू बरामद कर लिया. उन के खिलाफ नवीन पटेल के अपहरण का मुकदमा दर्ज कर दिया गया. दूसरे दिन उन्हें गोवा मेट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर गोवा की सेंट्रल जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक आगे की तफ्तीश गोवा कोतवाली के थानाप्रभारी विजय चोडणखर कर रहे थे.

Manohar Kahaniya- किडनैपिंग: चंबल से ऐसे छूटा अपहृत डॉक्टर- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

दूसरी तरफ परिवार के लोग काफी दहशत में आ गए थे. जैसेजैसे समय बीत रहा था, उन की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. उन्होंने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री कार्यालय तक में ट्विटर के जरिए डा. उमाकांत की रिहाई की गुहार लगाई.

अपहर्त्ताओं से पूछताछ में पता चला कि अपहरण करने वाले 6 बदमाश 2 बाइक से आए थे. उन्होंने डाक्टर का पीछा करने के बाद उन का कार सहित अपहरण करलिया था.

डाक्टर के मोबाइल की लोकेशन के अनुसार डाक्टर की कार को पहले खंदारी, फिर रोहता ले गए थे. बदमाश टोल पर गए बगैर रास्ते से धौलपुर निकल गए थे. सैयां टोल से जाने पर उन्हें पकड़े जाने का डर था.

पुलिस ने की 20 गांवों में कांबिंग

डा. गुप्ता की सकुशल बरामदगी के लिए चंबल के बीहड़ में आगरा और राजस्थान की पुलिस ने संयुक्त रूप से छानबीन शुरू कर दी.

दूसरी तरफ एसपी (धौलपुर) शेखावत और आगरा एसपी (सिटी) प्रमोद पकड़े गए अपहर्त्ताओं से पूछताछ में लग गए थे. उन से पुलिस को कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिलीं. उन्होंने डा. गुप्ता को बीहड़ में छिपाने की जगह बता दी.

इस सूचना पर 14 जुलाई, 2021 को राजस्थान, उत्तर प्रदेश व सीमावर्ती मध्य प्रदेश के लगभग 20 गांवों में पुलिस ने कांबिंग की. इस दौरान चंबल नदी में एक से डेढ़ फीट पानी को भी कई बार पार करना पड़ा. डा. गुप्ता का कोई सुराग नहीं मिल पाया. रात में जांच टीम की तलाश जारी रही.

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जान जोखिम में डाल कर टीम के 22 पुलिसकर्मी बीहड़ में खाक छानने लगे. उस वक्त भी उन्हें निराशा हाथ आई और वे रात 11 बजे वापस आ गए. टीम को डर था कि कहीं बदमाश डाक्टर को मध्य प्रदेश न ले गए हों.

जांच टीम 2 घंटे बाद रात के एक बजे दोबारा बीहड़ में घुसी. उस वक्त उन्हें डाक्टर के बमरौली के पास होने की सूचना थी. करीब 6 किलोमीटर दूर गाडि़यों को छोड़ पुलिस टीम पैदल ही आगे बड़ रही थी. तभी उन्हें टौर्च की रोशनी दिखी.

कुछ पुलिसकर्मी जब कोहनी के बल पर रेंगते हुए रोशनी के पास पहुंचे, तब वहां उन्होंने डा. गुप्ता को बंधा पाया. उन के हाथपांव बंधे थे और मुंह पर कस कर कपड़ा बांध हुआ था.

उस वक्त रात के 2 बज रहे थे. डा. गुप्ता के पास उस समय कोई नहीं था. वह एक छोटी सी दरी पर अधमरे से पड़े थे.

चंबल घाटी से सकुशल बरामद हुए डाक्टर उमाकांत

पुलिस को देख डाक्टर ने समझा कि उन्हें किसी दूसरे गैंग को सौंपा जा रहा है. लेकिन जब एत्माद्दौला के इंसपेक्टर देवेंद्र शंकर पांडेय ने अपना आइडेंटिटी कार्ड दिखाया तब उन्हें भरोसा हुआ.

फिर जांच टीम उन्हें अपने साथ आगरा ले आई. इस तरह से 31 घंटे बाद आगरा पुलिस को दूसरे राज्यों की पुलिस की मदद से सफलता मिल गई.

आगरा और धौलपुर पुलिस की सक्रियता से डा. उमाकांत गुप्ता के 5 करोड़ रुपए बच गए. उन के सकुशल बरामद होने की जानकारी रात को जैसे ही डा. विद्या को मिली वह भागीभागी थाने आईं. उन के साथ परिवार के दूसरे लोग भी थे. सभी की आंखों में खुशी के आंसू थे. परिजनों ने पुलिस के प्रति आभार जताया.

15 जुलाई को पुलिस ने अपहृत डाक्टर की बरामदगी की सूचना मीडिया को दे दी. बदमाशों के कब्जे से मुक्त हुए डाक्टर के अपहरण की कहानी काफी रोमांचक है. पूरे मामले की जानकारी डाक्टर ने पुलिस को विस्तार से दी.

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उन्होंने बताया कि यदि पुलिस उन्हें नहीं मुक्त कराती तो उन की जान बचना मुश्किल थी. बदमाशों के रवैए को देखते हुए उन्होंने छूटने की आस ही छोड़ दी थी. उन्होंने पुलिस को धन्यवाद दिया. इस संबंध में अपहरण की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

डा. उमाकांत गुप्ता सर्जन हैं. उन के परिवार में उन की पत्नी डा. विद्या गुप्ता स्त्रीरोग विशेषज्ञ हैं. 2 बेटे भी चिकित्सक हैं. इन में अभिषेक सर्जन और अभिलाष अस्थिरोग विशेषज्ञ हैं. करीब महीना भर पहले एक युवती ने डाक्टर गुप्ता से फोन पर संपर्क  कर अपने भाई के पेट में लगातार दर्द रहने की बीमारी के बारे में बात की थी. उस के 2 हफ्ते बाद अपने भाई को ले कर नर्सिंग होम आई.

करीब 30 वर्षीया युवती ने अपना नाम  अंजलि बताया. उस ने बताया कि वह मथुरा की रहने वाली है और युवक उस का भाई है. उसे पथरी है. उस का नर्सिंग होम में उपचार शुरू हुआ और उस का औपरेशन कर दिया गया.

डा. गुप्ता ने बताया कि उस के नर्सिंग होम में भरती होने के दरम्यान उस से मिलने कई लोग आते रहते थे. उन्हीं दिनों मरीज की तीमारदारी में लगी अंजलि ने डा. गुप्ता को बताया कि वह विधवा है. उसे वह कहीं नौकरी पर लगवा देंगे तो मेहरबानी होगी.

डा. गुप्ता ने उसे नौकरी दिलाने का दिलासा देते हुए कहा कि उन के अस्पताल में जगह खाली होने पर नौकरी पर रख लेंगे. युवक इलाज करवा कर चला गया. फिर भी अंजलि अकसर फोन से डाक्टर के संपर्क में बनी रही. वह डा. गुप्ता को अकसर मिस काल किया करती थी.

वह डा. गुप्ता को जताती थी कि वह बहुत परेशान है. उन से बात कर के उसे अच्छा लगता है. मिस काल देख कर डाक्टर अपनी ओर से काल कर उस से बातें करने लगे थे. लगातार बातचीत करने के कारण डा. गुप्ता उस पर भरोसा भी करने लगे थे.

बातों में फंसा कर अंजलि ले गई थी डाक्टर को घटना वाले दिन 13 जुलाई को अंजलि ने डा. गुप्ता को काल कर भगवान टाकीज चौराहे पर मिलने के लिए बुलाया. डाक्टर गुप्ता अपनी कार ले कर नर्सिंग होम जाने के बजाय भगवान टाकीज जाने की राह पर आ गए.

पहले उन्होंने अपनी गाड़ी खंदारी की ओर मोड़ी. रास्ते में ट्रैफिक पुलिस ने उन की कार रोकी, कारण डा. गुप्ता हड़बड़ी में सीट बेल्ट लगाना भूल गए थे. उन का चालान हो गया.

फिर जब वे डा. उमाकांत भगवान टाकीज चौराहे पर पहुंचे तो वहां अंजलि को बेसब्री से  अपना इंतजार करते देखा.

वह कार के रुकते ही मुसकराए. अंजलि कार में आ कर बैठ गई. दोनों के बीच बातचीत होने लगी. बातोंबातों में ही उन की कार एमजी रोड पर आ गई.

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अंजलि ने बताया कि अब वह रोहता के पास अपनी सहेली के घर में रहती है. अंधेरा हो गया है. अब अकेले कैसे जाएगी. उस ने डाक्टर साहब से उसे छोड़ने के लिए कहा. भगवान टाकीज से रोहता की दूरी लगभग 10 किलोमीटर है.

डाक्टर उसे छोड़ने को राजी हो गए. रास्ते में उन्हें शक हुआ कि उन की कार का पीछा किया जा रहा है. उन्होंने पीछे मुड़ कर देखा 2 बाइक सवार कार के पीछे चल रहे थे.

तभी अंजलि ने कहा कि डाक्टर साहब, आप अब बड़ी मुसीबत में फंस गए हो. मैं जैसा कहूं वही करते रहना. कार को कहीं रोकना नहीं. मेरे साथी पीछे बाइक से चल रहे हैं.

किसी तरह की होशियारी करने पर आप को जान गंवानी पड़ सकती है. कार में एसी चल रहा था, लेकिन युवती की बात सुन कर उन्हें पसीना आ गया.

रोहता नहर के पास सुनसान इलाका आने पर बदमाशों ने कार के आगे बाइक लगा दी. कार रुकते ही डाक्टर को धमकाते हुए बोले, ‘‘महिला के साथ यहां कैसे घूम रहे हो? वीडियो है हमारे पास. वायरल कर देंगे.’’

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Manohar Kahaniya: जब उतरा प्यार का नशा- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

वह सुरेंद्र में पलकों पर बिठा कर रखने वाले सपनों के राजकुमार की छवि देखने लगी. लगभग 4 साल पहले शुरू हुई दोनों की पे्रम कहानी दिनप्रतिदिन मधुरता से भरती चली गई. इसी बीच सुरेंद्र ने रूपाली से शादी करने का वादा किया. रूपाली ने भी हां करते हुए अपना सब कुछ उसे न्यौछावर कर दिया. दोनों शादी से पहले ही शारीरिक संबंध कायम करते रहे.

रूपाली प्यार के मामले में सुरेंद्र से भी ज्यादा हिम्मती थी. नेमावर छोटी जगह थी, जिस कारण उसे सुरेंद्र से मिलते रहने में बाधा आती थी. इसे देखते हुए रूपाली ने एक योजना के तहत हरदा में एक कमरा किराए पर ले लिया. वहीं वह सुरेंद्र के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी.

उन्हीं दिनों इलाके के हाइवे निर्माण से सुरेंद्र के परिवार को अच्छा मुआवजा मिला. अचानक आए पैसे से सुरेंद्र को शराब की लत लग गई. दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हुए रूपाली चमकदमक और यौनसुख की भूखी बन चुकी थी. उस ने सुरेंद्र के अलावा कई युवकों से दोस्ती कर ली. उन में ज्यादातर युवक हरदा व उस के आसपास के रहने वाले थे.

सुरेंद्र को रूपाली के दूसरे दोस्तों से मिलने वाली बात मालूम थी. फिर भी वह इसलिए चुप रहता था, क्योंकि उस के लिए भी रूपाली महज मनोरंजन का साधन भर थी. वह उस के प्यार से कहीं अधिक वासना के नशे में खोया रहता था. जबकि रूपाली सुरेंद्र के द्वारा किए गए वादे को सच मान बैठी थी.

लेकिन इस कहानी में नया मोड़ तब आया, जब कुछ समय पहले सुरेंद्र के परिवार वाले उस की शादी के लिए तैयारी करने लगे थे. इस बात की जानकारी रूपाली को लगी. इस बात से वह नाराज हो गई और उस ने इंस्टाग्राम पेज पर अपनी अंतरंग तसवीरें पोस्ट कर सुरेंद्र को बदनाम कर दिया.

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वह उस पर दबाव बनाने लगी कि वह अपनी सगाई तोड़ कर उस के साथ ही शादी करे. रूपाली की छोटी बहन दिव्या को भी दोनों के संबंधों की जानकारी थी, इसलिए वह भी रूपाली का ही साथ देती थी.

सुरेंद्र की सगाई तोड़ने के लिए रूपाली ने करीब 20 दिन पहले ही इंस्टाग्राम पर उस की होने वाली पत्नी को काफी गंदी टिप्पणियां कर दी थीं, जब सुरेंद्र ने उसे ऐसा करने से मना किया तो उस का कहना था कि यह तो शुरुआत है. अगर उस के साथ शादी नहीं की तो पूरे परिवार का जीना हराम कर देगी.

उस के द्वारा दी गई धमकियों से सुरेंद्र को लग गया कि वह अपनी बात मनवाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है. इसलिए उस ने उसे खत्म कर देने का फैसला कर लिया. उस ने अपनी योजना में दोस्त विवेक तिवारी के अलावा छोटे भाई वीरेंद्र, राजकुमार, मनोज, करण व राकेश को शामिल कर लिया.

सुरेंद्र ने अपने खेत में ट्रांसफार्मर लगाने के नाम पर गहरा गड्ढा करवा लिया. इस के बाद योजना के अनुसार उस ने 13 मई, 2021 को रूपाली को शाम के समय फोन कर के खेत पर बुलाया.

वह खुशीखुशी अपनी गाड़ी ले कर खेत पर आ गई. उस समय तक सुरेंद्र और उस के साथी शराब के नशे मे चूर हो गए थे. रूपाली ने आते ही शादी की बात शुरू कर दी तो सुरेंद्र ने उसे उसी समय अपने साथ सुहागरात मनाने की जिद की.

रूपाली ने सब के सामने ऐसा करने से मना किया तो सुरेंद्र ने जबरदस्ती सब के सामने उस के साथ संबंध बनाए और जब वह उठ कर अपने कपड़े पहनने लगी. तभी सुरेंद्र ने उस का गला दबा दिया. इस के बाद उन सभी ने लोहे की रौड से पीटपीट कर उस की हत्या कर दी. फिर शव गड्ढे में डाल दिया.

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रूपाली और सुरेंद्र के संबंधों के बारे में उस की मां ममता व बहन दिव्या सब कुछ जानती थीं, इसलिए रूपाली के घर वापस नहीं पहुंचने पर सुरेंद्र को पकड़े जाने का पूरापूरा डर था.

इसलिए उन में से एक व्यक्ति रूपाली के घर जा कर उस की मां और बहन को शादी की बात करने के नाम पर खेत पर ले आया, जहां उन्होंने उन दोनों की भी हत्या कर दी.

सुरेंद्र को यह पता चला कि रूपाली के घर उस की मौसी के बच्चे भी आए हुए हैं. दोनों पुलिस को पूरी कहानी बता सकते थे. इसलिए  मौसी के दोनों बच्चों को खेत पर इस बहाने से बुला लिया कि खेत पर उन्हें उन की मौसी बुला रही हैं. बच्चे खेत पर गए तो उन की भी हत्या कर लाश को गड्ढे में दफन कर दिया. गड्ढे को नमक, यूरिया व मिट्टी डाल कर भर दिया.

धीरेधीरे घटना को डेढ़ माह से अधिक समय बीत जाने पर भी जब पुलिस के हाथ कुछ भी नहीं लगा था. तब सुरेंद्र और उस के साथियों को भरोसा हो गया कि अब पुलिस उन तक नहीं पहुंच पाएगी.

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एसपी (देवास) शिवदयाल के निर्देशन और एएसपी सूर्यकांत शर्मा के नेतृत्व में नेमावर थाने की टीम में शामिल टीआई शिवमुराद यादव, एसआई शिवपाल सिंह, मनीष मीणा के साथ आरक्षक भरत शर्मा व अर्पित जायसवाल की टीम ने दिनरात मेहनत कर आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

पुलिस ने युवती के प्रेमी सुरेंद्र सिंह चौहान व उस के भाई वीरेंद्र सिंह चौहान सहित विनय तिवारी, राजकुमार,  करण, मनोज को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया

Manohar Kahaniya: वीडियो में छिपा महंत नरेंद्र गिरि की मौत का रहस्य- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

‘आनंद गिरि के द्वारा मेरे ऊपर जो आरोप लगाए गए, उस से मेरी और मठ मंदिर की बदनामी हुई. मेरे मरने की संपूर्ण जिम्मेदारी आनंद गिरि, आद्या प्रसाद तिवारी जो मंदिर के पुजारी हैं और आद्या प्रसाद तिवारी के बेटे संदीप तिवारी की होगी. मैं समाज में हमेशा  शान से जीया. आनंद गिरि ने मुझे गलत तरह से बदनाम किया.

‘मुझे जान से मारने का प्रयास भी किया गया. इस से मैं बहुत दुखी हूं. प्रयागराज के सभी पुलिस अधिकारियों और प्रशासनिक अधिकारियों से अनुरोध करता हूं कि मेरी आत्महत्या के जिम्मेदार उपरोक्त लोगों पर कानूनी काररवाई की जाए. जिस से मेरी आत्मा को शांति मिले.

‘प्रिय बलवीर गिरि, मठ मंदिर की व्यवस्था का प्रयास करना. जिस तरह से मैं ने किया, इसी तरह से करना. नितीश गिरि और मणि सभी महात्मा बलवीर गिरि का सहयोग करना. परमपूज्य महंत हरिगोबिंदजी एवं सभी से निवेदन है कि मठ का महंत बलवीर गिरि को बनाना. महंत रवींद्र गिरि जी (सजावटी मढ़ी) आप ने हमेशा साथ दिया. मेरे मरने के बाद बलवीर गिरि का साथ दीजिएगा. सभी को ओम नमो नारायण.

‘मै महंत नरेंद्र गिरि 13 सितंबर को ही आत्महत्या करने जा रहा था, लेकिन हिम्मत नहीं कर पाया. आज हरिद्वार से सूचना मिली कि एकदो दिन में आनंद गिरि कंप्यूटर के द्वारा मोबाइल से किसी लड़की या महिला के साथ मेरी फोटो लगा कर गलत काम करते हुए फोटो वायरल कर देगा.

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‘मैं ने सोचा कहांकहां सफाई दूंगा. एक बार तो बदनाम हो जाऊंगा. मैं जिस पद पर हूं वह गरिमामयी पद है. सच्चाई तो लोगों को बाद में पता चल ही जाएगी, लेकिन मैं तो बदनाम हो जाऊंगा. इसलिए मैं आत्महत्या करने जा रहा हूं.

‘बलवीर गिरि मेरी समाधि पार्क में नीम के पेड़ के पास दी जाए. यही मेरी अंतिम इच्छा है. धनजंय विद्यार्थी मेरे कमरे की चाबी बलवीर महराज को दे देना. बलवीर गिरि एवं पंच परमेश्वर निवेदन कर रहा हूं कि मेरी समाधि पार्क में नीम के पेड़ के नीचे लगा देना.

‘प्रिय बलवीर गिरि ओम नमो नारायण. मैं ने तुम्हारे नाम एक रजिस्टर्ड वसीयत की है. जिस में मेरे ब्रह्मलीन हो जाने के बाद तुम बड़े हनुमान मंदिर एवं मठ बाघंबरी गद्दी के महंत बनोगे. तुम से मेरा अनुरोध है कि मेरी सेवा में लगे विद्यार्थी जैसे मिथिलेश पांडेय, रामकृष्ण पांडेय, मनीष शुक्ला, शिवेष कुमार मिश्रा, अभिषेक कुमार मिश्रा, उज्जवल द्विवेदी, प्रज्जवल द्विवेदी, अभय द्विवेदी, निर्भय द्विवेदी, सुमित तिवारी का ध्यान देना.

‘जिस तरह से हमेशा मेरी सेवा और मठ की सेवा की है उसी तरह से बलवीर गिरि महराज और मठ मंदिर की सेवा करना. वैसे हमें सभी विद्यार्थी प्रिय हैं. लेकिन मनीष शुक्ला, शिवम मिश्रा और अभिषेक मिश्रा मेरे अति प्रिय हैं.

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‘कोरोना काल में जब मुझे कोरोना हुआ मेरी सेवा सुमित तिवारी ने की. मंदिर में मालाफूल की दुकान मैं ने सुमित तिवारी को किरायानामा रजिस्टर किया है. मिथिलेश पांडेय को बड़े हनुमान रुद्राक्ष इंपोरियम की दुकान किराए पर दी है. मनीष शुक्ला, शिवम मिश्रा और अभिषेक मिश्रा को लड्डू की दुकान किराए पर दी है.’

महंत की मौत का हंगामा

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की मौत की खबर जंगल में आग की तरह पूरे देश में छा गई. सोशल मीडिया, टीवी और अखबारों में प्रमुखता के साथ इस को दिखाया जाने लगा.

महंत नरेंद्र गिरि को जानने वाले लोग यह मानने के लिए तैयार नहीं थे कि वह आत्महत्या जैसा कदम उठा सकते थे. महंत की मौत हत्या और आत्महत्या के बीच झूलने लगी और लोग सीबीआई जांच की मांग करने लगे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा नेता अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ ही साथ बसपा नेता मायावती, सपा नेता अखिलेश यादव आदि नेताओं के शोक संदेश ट्विटर पर आने लगे.

पुलिस ने सुसाइड नोट में लिखे नामों को आधार मान कर आनंद गिरि, आद्या तिवारी और संदीप तिवारी को हिरासत में ले लिया. इन पर धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप) लगाया गया.

यह सभी महंत नरेंद्र गिरि के करीबी थे. इधर कुछ दिनों से आपस में इन का विवाद चल रहा था. आनंद गिरि, आद्या तिवारी और संदीप तिवारी का कहना था कि महंतजी से हमारा कोई झगड़ा नहीं था. उन की मौत के बाद हमें फंसा कर दोषियों को बचाने का काम किया जा रहा है.

नरेंद्र सिंह से महंत नरेंद्र गिरि का सफर

बात 1984 की है जब प्रयाग में संगम के किनारे कुंभ का मेला लगा था. लाखोंकरोड़ों की भीड़ रोज गंगा स्नान कर रही थी. 20 साल का युवक भी इस भीड़ का हिस्सा बन कर संगम नहाने के लिए आया. संगम पर संतों की चकाचौंध को देख कर युवक के मन में यहीं बस जाने का मन करने लगा.

वह संगम किनारे निरंजनी अखाडे़ के संत कोठारी दिव्यानंद गिरि के पास आया. यहीं साथ में रह कर उन की सेवा करने लगा. कुंभ खत्म हो गया तो भी युवक अपने घर जाने को तैयार नहीं हुआ. तब दिव्यानंद उस युवक को ले कर हरिद्वार चले गए.

वहां उस का संपूर्ण भाव देख कर दिव्यानंद ने 1985 मे नरेंद्र गिरि को संन्यास की दीक्षा दी और उस का नामकरण नरेंद्र गिरि के रूप में कर दिया. इस के बाद श्रीनिरंजनी अखाड़े के महात्मा व श्रीमठ बाघंबरी गद्दी के महंत बलवंत गिरि ने गुरुदीक्षा दी.

बलवंत गिरि के न रहने के बाद नरेंद्र गिरि 2004 में श्रीमठ  बाघंबरी गद्दी के पीठाधीश्वर तथा बडे़ हनुमान मंदिर के महंत का पद संभाला. इस के बाद वह मठ और मंदिर को भव्य स्वरूप दिलाने का काम करने लगे.

2014 में उन को संतों की सब से बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुन लिया गया. अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि मूलरूप से प्रयागराज के सराय ममरेज के करीब छतौना गांव के रहने वाले थे. उन के पिता का नाम भानुप्रताप सिंह था. वह आरएसएस में थे. पिता का प्रभाव नरेंद्र गिरि पर था. नरेंद्र गिरि का असली नाम नरेंद्र सिंह था.

वह 4 भाई थे. उन के भाइयों के नाम अशोक कुमार सिंह, अरविंद कुमार सिंह और आंनद सिंह थे. नरेंद्र गिरि यानी नरेंद्र सिंह ने बाबू सरजू प्रसाद इंटर कालेज से हाईस्कूल की परीक्षा पास की थी.

1980 में नरेंद्र सिंह 20 साल की उम्र में संन्यासी बन गए थे. वह प्रयाग के निरजंनी अखाडे़ में रहने लगे. अपने मधुर स्वभाव और मेहनती होने के कारण जल्द ही उन का नाम अखाड़े के प्रमुख लोगों में शामिल हो गया. अखाड़े में शामिल होने के 6 साल के अंदर ही नरेंद्र गिरि पदाधिकारी बन गए थे.

निरंजनी अखाड़े का पदाधिकारी बनने के बाद नरेंद्र गिरि ने अखाडे़ के विस्तार पर काम करना शुरू किया. बातचीत में अच्छा होने के कारण जल्द ही वह लोकप्रिय होने लगे. उन के संपर्क के बाद मठ की जायदाद और संपत्ति बढ़ने लगी, जिस की वजह से नरेंद्र गिरि का नाम केवल निरंजनी अखाड़े में ही नहीं, बाकी अखाड़ों में भी सम्मान से लिया जाने लगा.

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1998 में नरेंद्र गिरि का नाम संतों की सब से बड़ी अखाड़ा परिषद के पदाधिकारी के रूप मे लिया जाने लगा. अखाड़ा परिषद का पदाधिकारी बनने के बाद नरेंद्र गिरि की अलग पहचान बनने लगी.

साजिश दर साजिश

नरेंद्र गिरि को सब से बड़ी सफलता तब मिली, जब वर्ष 2014 में अयोध्या निवासी संत ज्ञानदास की जगह पर उन्हें संतों की सब से बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुन लिया गया. उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और नरेंद्र गिरि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के करीबी हो गए.

अगले भाग में पढ़ेंदूसरे शिष्य भी खफा रहते थे आनंद गिरि से

Manohar Kahaniya: डिंपल का मायावी प्रेमजाल- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

डिंपल उन्हें छोड़ने को तैयार नहीं थी. उस का कहना था कि अब वह कहां जाएगी. मेहताजी के चक्कर में उस की जिंदगी बरबाद हो रही है. जबकि मेहताजी से उस ने खुद को कुंवारी बता कर मौजमजे के लिए संबंध बनाने की बात कही थी. लेकिन अब पता चला कि वह शादीशुदा है.

मेहताजी, डिंपल और उस के पति के झगड़े का तमाशा देखने के लिए वहां तमाम लोग इकट्ठा हो गए थे. सभी की सहानुभूति डिंपल के कथित पति और डिंपल के प्रति थी. सभी सारा दोष मेहताजी पर मढ़ रहे थे. वहां इकट्ठा लोग भी यही कर रहे थे कि जब डिंपल का पति उसे रखने को तैयार नहीं है तो मेहताजी को उसे अपने साथ ले जाना होगा.

शोरशराबा सुन कर वहीं पास ही रहने वाले एनसीपी के नेता नटवरभाई उर्फ नटुभाई ठाकोर भी अपने शागिर्दों के साथ वहां आ गए थे. पूरी बात सुनने के बाद पहले तो उन्होंने डिंपल के कथित पति से बात की, उस के बाद डिंपल से बात की.

मेहताजी को धमकाया जाने लगा

फिर उन्होंने मेहताजी को एक किनारे बुला कर कहा, ‘‘मेहताजी, अब आप को डिंपल से शादी करनी होगी. अगर शादी नहीं करोगे तो वह तुम्हारे ऊपर रेप का मुकदमा दर्ज करा देगी. उस के बाद तुम्हारा क्या हाल होगा, शायद यह बताने की जरूरत नहीं है. और

अगर उस से छुटकारा पाना चाहते हो तो एक काम करो. उसे इतना पैसा दे दो कि वह अकेली रह कर भी अपनी गुजरबसर कर ले.’’

यह सुन कर मेहताजी के तो होश ही उड़ गए. अगर डिंपल उन पर रेप का मुकदमा कर देगी तो उन की बदनामी तो होगी, जिंदगी भी बरबाद हो जाएगी. डिंपल के पास उस के साथ शारीरिक संबंध बनाने के सबूत भी थे.

उस ने दोनों के शारीरिक संबंध बनाने के कई वीडियो बना रखे थे. वे वीडियो उस ने मेहताजी को भी भेजे थे. जो वीडियो वह अभी तक मौजमजे के लिए देखते थे, अब वही उन के गले की फांस बन गए थे.

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डिंपल से वह शादी कर नहीं सकते थे. अगर वह उस से शादी करते तो घर वाले उन्हें घर से निकाल तो देते ही, समाज में भी उन की काफी बदनामी होती. इसलिए उन्होंने पैसे दे कर डिंपल से छुटकारा पाने के बारे में विचार किया.

मेहताजी का सोचना था कि लाख, 2 लाख दे कर वह डिंपल से छुटकारा पा जाएंगे इसलिए उन्होंने कहा, ‘‘इस से शादी तो मैं नहीं कर सकता. क्योंकि इस ने झूठ बोल कर मुझ से संबंध बनाया है. ऐसी औरत पर कैसे भरोसा किया जा सकता है. यह जो पैसा लेगी, मैं देने को तैयार हूं.’’

पैसे के लिए ही यह सारी साजिश रची गई थी. इसलिए जैसे ही मेहता ने पैसे की बात की तो एनसीपी नेता नटुभाई ठाकोर ने कहा, ‘‘ठीक है, 50 लाख रुपए दे दो. तुम भी आजाद और डिंपल भी आजाद.’’

‘‘क्या, 50 लाख?’’ 50 लाख सुन कर मेहताजी का मुंह खुला का खुला रह गया.

35 लाख में हुआ समझौता

मेहता को हैरानपरेशान देख कर नटुभाई ने कहा, ‘‘50 लाख तुम्हें ज्यादा लग रहे हैं क्या? किसी की जिंदगी का सवाल है. डिंपल को अब इसी रकम से पूरी जिंदगी बितानी है. पति छोड़ ही चुका है. तुम से जो रकम मिलेगी, उसी से उस का खर्च चलेगा.’’

‘‘फिर भी 50 लाख बहुत होते हैं. बताओ, इतनी बड़ी रकम मैं कहां से लाऊंगा.’’ मेहताजी ने इतना पैसा देने में असमर्थता व्यक्त की.

‘‘तब फिर तुम डिंपल के साथ शादी कर लो या फिर जेल जाने की तैयारी कर लो.’’ नटुभाई ने धमकी दी.

‘‘आप बीच में इतना क्यों उछल रहे

हैं? बात हम तीनों की है. आप बीच में

कहां से आ गए?’’ मेहता ने खीझ कर कहा.

‘‘मैं बीच में अपने आप नहीं आया. मुझे इन दोनों ने यह समझौता कराने के लिए बुलाया है.’’ नटुभाई ने डिंपल और उस के तथाकथित पति की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘अगर तुम्हें विश्वास न हो तो तुम खुद ही इन से पूछ लो.’’

मेहता ने दोनों की ओर देखा तो दोनों ने एक साथ कहा, ‘‘यह ठीक कह रहे हैं. हमारी ओर से यही बात करेंगे.’’

मेहताजी समझ गए कि वह बुरी तरह फंस चुके हैं. अब तक उन की समझ में यह भी आ चुका था कि उन्हें एक साजिश के तहत फंसाया गया है. ये लोग बिना पैसा लिए उसे छोड़ेंगे नहीं और रकम भी मोटी ही लेंगे. उस ने नटुभाई से कहा, ‘‘आप बहुत ज्यादा पैसा मांग रहे हैं. इतना पैसा मेरे पास नहीं है.’’

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‘‘यह सब तो तुम्हें किसी की इज्जत के साथ खिलवाड़ करने के पहले सोचना चाहिए था. मजे लिए हैं तो उस की कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी.’’ नटुभाई ने कहा.

मेहताजी गिड़गिड़ाते रहे, पर वे पैसे कम करने को तैयार नहीं थे. मेहता के बहुत रोनेगिड़गिड़ाने पर उस ने 15 लाख रुपए कम किए. इस तरह 35 लाख रुपए में समझौता हुआ. मेहता ने डिंपल से छुटकारा पाने के लिए 35 लाख रुपए ला कर दिए.

पैसा दे कर मेहता को लगा कि अब वह डिंपल नाम के झंझट से मुक्ति पा गए हैं. पर 10 दिन बाद ही डिंपल का फिर फोन आ गया, ‘‘यार बहुत गड़बड़ हो गई है. मुझे गर्भ ठहर गया है. यह तुम्हारा ही बच्चा है.’’

‘‘तुम यह कैसे कह सकती हो कि यह मेरा ही बच्चा है. तुम्हारा पति भी तो है. उस का भी तो हो सकता है,‘‘ मेहता ने कहा.

‘‘मेरा पति भले है, पर कई महीने से उस से मेरा कोई संबंध नहीं है.’’ डिंपल बोली.

‘‘अगर ऐसी बात है तो बच्चा गिरवा दो.’’

‘‘उस में भी तो खर्च लगेगा. खर्च कौन देगा?’’ डिंपल तुनक कर बोली, ‘‘फिर आजकल गर्भपात भी कराना इतना आसान नहीं है.’’

‘‘खर्च तो मैं दे चुका हूं. उसी में से खर्च करो,’’ मेहता ने कहा.

‘‘वह मेरी जिंदगी बिताने का खर्च है. बच्चा गिरवाने या पालने के लिए नहीं है. बच्चा गिरवाने का खर्च तुम्हें ही देना होगा. और हां, सीधेसीधे दे दो तो ज्यादा अच्छा रहेगा. अगर अंगुली टेढ़ी करनी पड़ी तो बुरे फंस जाओगे.’’ डिंपल ने धमकी दी.

‘‘क्या कर लोगी तुम?’’ मेहता ने भी सख्ती दिखाई. इतना कह कर उस ने फोन काट दिया.

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उस दिन वह शाम को औफिस से निकले तो गेट के बाहर डिंपल खड़ी मिल गई. उस के साथ 4 आदमी भी थे. उन सब को देख कर मेहताजी के हाथपैर फूल गए. सभी ने मेहता को घेर लिया.

डिंपल बोली, ‘‘मेहताजी, पैसा दोगे या यहीं पर अभी शोर मचाऊं?’’

मेहताजी बुरी तरह फंस गए थे. अगर शोरशराबा या किसी तरह का लड़ाईझगड़ा होता तो उन के औफिस के सामने उन की पोल खुल जाती. मजबूरन पैसे देने के लिए उन्हें हामी भरनी पड़ी. इस बार भी मेहताजी को 11 लाख रुपए देने पड़े.

अगले भाग में पढ़ें- ठग मंडली चढ़ गई पुलिस के हत्थे

Crime- हत्या: जर जोरू और जमीन का त्रिकोण

कहते हैं किसी अपराध के पीछे जर, जोरू और जमीन निश्चित रूप से होते हैं. इस प्राचीन सच के एक बार पुनः सत्य होने के प्रमाण मिल गए. जब एक पत्नी ने अपने अधेड़ पति की हत्या कुछ ऐसे ही कारणों से करवाई और अंततः पुलिस के हाथों पकड़े जाने पर आज जेल में हवा खा रही है.

छत्तीसगढ़ के औद्योगिक नगर कोरबा के थाना कटघोरा अंतर्गत वन विभाग में कार्यरत एक डिप्टी रेंजर की हत्या के मामले को आखिरकार सुलझा लिया गया. अवैध संबंधों को लेकर की गयी ये हत्या सुपारी देकर कराइ गई थी. मामले के खुलासे के बाद पुलिस ने सात आरोपियों को गिरफ्तार किया है. सनसनीखेज तथ्य यह की हत्या की ये सुपारी किसी और को नहीं बल्कि देह व्यापार करने वाली एक महिला को दी गई .

इस मामले का खुलासा करते हुए हमारे संवाददाता को एसडीओ पुलिस रामगोपाल करियारे ने बताया – डिप्टी रेंजर कंचराम पाटले कटघोरा वन मंडल में पदस्थ था और ड्यूटी के लिए तो घर से निकला, मगर वापस नहीं लौटा.

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दूसरे दिन उसकी लाश पुराने बैरियर के पास सड़क के किनारे मिली. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में डॉक्टर ने मौत की वजह पॉइजनिंग और रक्तश्राव और बताया. पुलिस जांच में धीरे-धीरे जो तथ्य सामने आए वह चौक आने वाले थे.

‘चुड़िहायी” पत्नी की भूमिका

पुलिस जांच में अंततः छत्तीसगढ़ की चूड़ी प्रथा के अंतर्गत पत्नी बनाकर लाई एक महिला को संदिग्ध पाया गया.

आगे देखिए! किस तरह पत्नी की भूमिका निभा रही महिला ने डिप्टी रेंजर की संपत्ति, उसकी नौकरी यानी कुल मिलाकर पति को रास्ते से हटाने क्या क्या धत्त कर्म किया.

पुलिस को पता चला कि कंचराम पाटले को किसी का फोन आया और वह ड्यूटी पर जाने की बात कहकर निकल पड़ा. पुलिस की साइबर टीम ने पाटले को आये मोबाइल कॉल के आधार पर मृतक कंचराम पाटले की चुड़ियाही पत्नी संतोषी पाटले और उसके जीजा नरेंद्र टंडन को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू की. खुलासा हुआ कि कंचराम पाटले ने अपनी पहली पत्नी की मौत के बाद संतोषी पाटले से चूडियाही विवाह कर लिया था. मगर संतोषी का अपने जीजा नरेंद्र टंडन से पूर्व में ही अवैध संबंध था जिसकी जानकारी कंचराम पाटले को हो गयी थी जिसके पश्चात घर में विवाद की स्थिति रहने लगी थी. प्रदीप जी स्वभाव और हाथ से निकलने से चिंतित संतोषी ने अपने जीजा से मिलकर एक षड्यंत्र बुना.

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कंचराम पाटले और संतोषी के दो बच्चे हुए, वहीँ उसकी पहली पत्नी से एक पुत्री हुई थी जिसकी उम्र 24 वर्ष है, उसकी मिर्गी की बीमारी को लेकर कंचराम पाटले परेशान रहा करता था. वन विभाग में नौकरी करने वाले कंचराम पाटले के पास काफी संपत्ति थी, जिस पर उसके साढ़ू नरेंद्र टंडन की नजर गड़ गई. उसने संतोषी को लालच दिलाया की अगर कंचराम पाटले को रस्ते से हटा दिया जाये तो संतोषी को पेंसन के साथ नौकरी भी मिल जाएगी.

यह बात संतोषी को जच गई और वह अपने ही पति को रास्ते से हटाने के लिए षड्यंत्र बुनती चली गई.
पुलिस ने इस वारदात में लिप्त देह व्यापर से जुडी एक महिला पूर्णिमा साहू को सुपारी किलर का नाम दिया है, जिससे नरेंद्र टंडन के मित्र राजेश जांगड़े उर्फ़ राजू ने संपर्क किया. इसके बाद हत्या का षड्यंत्र रचा गया.महीने भर बाद पूरी कहानी तैयार करके कंचराम पाटले को संतोषी ने कटघोरा आकर फोन किया और कहा कि वह उसकी बेटी के मिर्गी के इलाज के लिए एक वैद्य लेकर आयी है. कंचराम पाटले उसके झांसे में आ गया , और उसके बताये गए जगह पर पहुँच गया. यहाँ योजना के मुताबिक कंचराम पाटले को एक कार में बिठाया गया और उसे पानी में सुहागा घोल कर पिला दिया गयाऔर उसके नाक मुंह को दबा दिया गया. बेहोश होते ही उसे सड़क के किनारे फेंक दिया गया. यहाँ उसके ऊपर टंगिये से हमला किया गया. परिणाम स्वरूप कंचराम की मौत हो गयी.

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झाड़-फूंक कर खात्मे का भरोसा!

हत्या की इस वारदात के मास्टर माइंड नरेंद्र टंडन द्वारा दो लाख पच्चास हजार रूपये में सुपारी किलर पूर्णिमा साहू से सौदा कर हत्या की योजना बनाई गई.

इसके लिए उन्होंने कोरबी बलौदा निवासी राजेश जांगड़े उर्फ राजू 42 वर्ष के जरिए सरकंडा निवासी देहव्यापार में लिप्त पूर्णिमा से संपर्क किया उसने कंचराम के संबंध में पूरी जानकारी लेकर उसे झाड़फूक के जरिए मरवाने का विश्वास दिलाया. अपने प्रेमी कमल कुमार धुरी सरकंडा, ऋषि कुमार उर्फ गुड्‌डू सरकंडा और देह व्यापार में सहयोगी रामकुमार श्रीवास कोनी को योजना में शामिल कर लिया. घटना दिवस की शाम महिला अपने तीनों साथी के साथ कार में बिलासपुर से कटघोरा पहुंची. बाइक में नरेंद्र टंडन और राजेश जांगड़े भी वहां पहुंचे थे. और वारदात को अंजाम दिया.

इस मामले में पुलिस ने मृतक की पत्नी संतोषी पाटले, राजेश कुमार उर्फ़ राजू,कमल कुमार धुरी, ऋषि कुमार उर्फ गुड्डू और रामकुमार श्रीवास को गिरफ्तार करके हत्या के आरोप में जेल भेज दिया है.

Crime Story: आवारा प्रेमी ने तेजाब से खेला खूनी खेल

शिल्पी के आते ही राबिया अम्मी को सलाम कर उस की साइकिल पर पीछे बैठ कर स्कूल के लिए चल पड़ी थी. यह 5 सितंबर, 2016 की बात है. राबिया और शिल्पी उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया की खामपार के बहरोवां गांव की रहने वाली थीं. दोनों खामपार के बखरी चौराहा स्थित सर्वोदय इंटर कालेज में 11वीं में पढ़ती थीं. दोनों घर से कुछ दूर गई थीं कि एक मोटरसाइकिल उन का पीछा करने लगी. मोटरसाइकिल पर 3 लोग सवार थे. मोटरसाइकिल चलाने वाला हेलमेट लगाए था तो उस के पीछे बैठे लोग मुंह पर गमछा बांधे थे. जैसे ही दोनों लड़कियां सुनसान जगह पर पहुंचीं, पीछे चल रही मोटरसाइकिल उन की बराबर में आई. राबिया तथा शिल्पी कुछ समझ पातीं, मोटरसाइकिल पर सवार लोगों में पीछे बैठे आदमी ने राबिया को निशाना बना कर तेजाब फेंक दिया और तेज गति से मोटरसाइकिल चला कर वहां से फरार हो गए.

तेजाब पड़ते ही राबिया जलन से बुरी तरह बिलबिला उठी. उस का चेहरा, गरदन और पीठ बुरी तरह झुलस गई थी. तेजाब के कुछ छींटे शिल्पी के बाएं हाथ और जांघ पर पड़े थे. तेजाब की जलन से साइकिल का बैलेंस बिगड़ गया था, इसलिए दोनों साइकिल सहित गिर गईं. दोनों तेजाब की जलन से चीखनेचिल्लाने लगीं तो उधर से गुजर रहे लोग उन के पास जमा हो गए.

राबिया तो बेहोश हो गई थी. शिल्पी ने जब बताया कि मोटरसाइकिल पर सवार लोग उन पर तेजाब फेंक कर भाग गए हैं तो लोग राबिया को बांहों में उठा कर चौराहे पर स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए. राबिया बुरी तरह झुलसी हुई थी, इसलिए वहां के डाक्टरों ने प्राथमिक उपचार के बाद उसे जिला अस्पताल भिजवाने के साथ घटना की सूचना थाना खामपार पुलिस को दे दी.

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सूचना मिलते ही थानाप्रभारी इंसपेक्टर राजेंद्र प्रताप सिंह पुलिस बल के साथ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंच गए. मामला गंभीर था, इसलिए उन्होंने इस घटना की सूचना एसपी मोहम्मद इमरान को भी दे दी थी. इस के बाद एसपी इमरान भी एसडीएम भाट पाररानी भी पहुंच गए थे. राबिया बयान देने लायक नहीं थी, इसलिए शिल्पी से पूछताछ कर पुलिस ने राबिया और शिल्पी के घर वालों को सूचना भी दे दी थी. सूचना मिलते ही दोनों के घर वाले रोतेबिलखते प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंच गए थे.

कुछ देर बाद जब राबिया थोड़ा सामान्य हुई तो उस ने पुलिस अधिकारियों और एसडीएम भाट पाररानी को जो बताया, वह चौंकाने वाला था. राबिया के बताए अनुसार, पिछले एक महीने से उस के मोबाइल पर किसी अंजान आदमी का लगातार फोन आ रहा था, जो उसे जान से मारने की धमकी दे रहा था. परेशान हो कर घर वालों ने नंबर बदल दिए, फिर भी न जाने कहां से उसे उस का नया नंबर मिल गया और वह उसे पहले से ज्यादा धमकाने और परेशान करने लगे.

राबिया के अब्बा मोहम्मद आलम अंसारी और भाई विदेश में थे. यहां घर में राबिया और उस की अम्मी ही थीं, इसलिए मिलने वाली धमकियों से दोनों बुरी तरह डर गई थीं. राबिया ने फोन कर के यह बात अब्बा को बताई तो उन्होंने पुलिस से शिकायत करने की सलाह दी. लेकिन उस की अम्मी पुलिस के पास जाने से डर रही थीं.

राबिया के बयान से पुलिस को लगा कि इस घटना में कोई अपना शामिल है, जिस की उस के घर में अंदर तक पैठ थी. पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के मामले की जांच एसडीएम भाट पाररानी को सौंप दी, क्योंकि इस तरह के मामलों की जांच एसडीएम स्तर के अधिकारी करते हैं. घटना की मौनिटरिंग आईजी (जोन) मोहित अग्रवाल कर रहे थे.

पुलिस ने राबिया के दोनों मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की तो उस में एक नंबर ऐसा मिला, जो दोनों नंबरों की काल डिटेल्स में था. पुलिस को उसी नंबर पर शक हुआ. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर देवरिया के पूरब लार के रहने वाले इदरीस के बेटे आजाद उर्फ डब्लू का निकला.

पुलिस ने जब राबिया की मां से आजाद के बारे में पूछा तो उस का नाम सुन कर वह हैरानी से पुलिस का मुंह ताकती रह गईं. क्योंकि वह उस का दूर का रिश्तेदार था, जिस की वजह से वह उस के घर भी आताजाता था.

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पुलिस के लिए इतनी जानकारी काफी थी. पूछताछ के लिए उसे थाने लाया गया. थाने आते ही वह इतना घबरा गया कि खुद ही अपना अपराध स्वीकार कर के शुरू से ले कर अंत तक पूरी कहानी सुना दी. उसी ने अपने साथियों के साथ राबिया पर तेजाब फेंका था. इस की वजह यह थी कि वही नहीं, उस के दोनों साथी भी राबिया से प्रेम करते थे. लेकिन राबिया ने उन्हें भाव नहीं दिया तो उन्होंने बदला लेने के लिए उस की दुर्गति कर दी थी.

आजाद की निशानदेही पर पुलिस ने उस के दोनों साथियों रति तिवारी और आनंद कुशवाहा को भी उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया. आजाद को पुलिस हिरासत में देख कर रति तिवारी और आनंद कुशवाहा ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

इस के बाद एसपी मोहम्मद इमरान की उपस्थिति में पुलिस लाइन के सभागार में पत्रकारवार्ता के दौरान तीनों गिरफ्तार आरोपियों आजाद उर्फ डब्लू, रति तिवारी और अरविंद कुशवाहा ने राबिया के ऊपर तेजाब फेंकने की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

22 साल का आजाद उर्फ डब्लू देवरिया जिले की लार के पूरब लार मोहल्ले का रहने वाला था. उस के पिता इदरीस सरकारी नौकरी में थे. नौकरी की वजह से वह परिवार को ज्यादा समय नहीं दे पाए, जिस की वजह से आजाद इंटरमीडिएट से आगे नहीं पढ़ सका. पढ़ाई छोड़ कर वह आवारागर्दी करने लगा था.

रति तिवारी और अरविंद कुशवाहा उस के पक्के दोस्त थे. ये दोनों भी उसी की तरह आवारागर्दी करते थे. रति तिवारी के परिवार की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी थी. उस के पास मोटरसाइकिल थी. उसी से तीनों दिन भर बरखी चौराहे पर घूमते रहते थे और आतीजाती लड़कियों पर फब्तियां कसते रहते थे.

रिश्तेदार होने की वजह से आजाद राबिया के घर आताजाता रहता था. राबिया काफी खूबसूरत थी. घर आनेजाने में आजाद राबिया की सुंदरता पर मर मिटा. उस ने अपने दिल की बात दोनों दोस्तों को बताई तो उन का दिल भी राबिया को देखने के लिए मचल उठा. उन्होंने आजाद से राबिया से मिलवाने को कहा तो एक दिन वह दोनों को ले कर राबिया के घर पहुंच गया. घर पर राबिया और उस की अम्मी ही थीं. उस के अब्बा और भाई विदेश में रहते थे.

जब रति और अरविंद ने भी राबिया को देखा तो उन का भी दिल उस पर आ गया. वे आजाद के साथ लौट तो आए लेकिन दिल का चैन वहीं छोड़ आए. इस तरह राबिया के दीवानों की लिस्ट में 2 नाम और शामिल हो गए थे. आजाद दिल की बात राबिया से कहना चाहता, लेकिन उसे मौका नहीं मिल रहा था. संयोग से एक दिन दोपहर को राबिया के घर पहुंचा तो वह घर में अकेली थी. उस की अम्मी पड़ोस में गई थीं.

राबिया ने आजाद के लिए चाय बनाई और नमकीन के साथ सैंट्रल टेबल पर रख कर उस से बातें करने के लिए बगल वाले सोफे पर बैठ गई. इस मौके का फायदा उठाते हुए आजाद ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘राबिया, मैं तुम से प्यार करता हूं.’’

‘‘अरे, यह क्या, यह गलतफहमी तुम ने कब से पाल ली  छोड़ो मेरा हाथ, आज के बाद इस तरह की हरकत फिर कभी की तो ठीक नहीं होगा.’’

‘‘प्लीज राबिया, ऐसा मत कहो. मैं तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगा. कसम से मैं तुम से बेपनाह मोहब्बत करता हूं.’’ आजाद ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

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‘‘बस आजाद, अब कुछ मत कहना. अगर इस तरह की बातें किसी ने सुन लीं तो मैं बदनाम हो जाऊंगी. मैं नहीं चाहती कि मेरे घर वालों की बदनामी हो. मैं प्यारव्यार में जरा भी यकीन नहीं करती. इसलिए इस तरह की बात तुम दिमाग से निकाल दो. और तुरंत यहां से चले जाओ वरना मैं तुम्हें धक्के दे कर निकाल दूंगी.’’ राबिया ने तैश में आ कर कहा.

राबिया की खरीखोटी सुन कर आजाद हारे हुए जुआरी की तरह उस के घर से निकला. उसे राबिया के जवाब से गहरा आघात लगा था. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि राबिया उसे इस तरह का जवाब देगी. इसलिए उसे उस पर काफी गुस्सा आ रहा था. उस ने यह बात अपने दोस्तों रति और अरविंद को बताई तो ऊपर से तो दोनों ने दुख व्यक्त किया लेकिन मन ही मन दोनों बहुत खुश हुए.

इस की वजह यह थी कि राबिया आजाद से प्यार नहीं करती थी तो उन का दांव लग सकता था. लेकिन राबिया ने उन दोनों को भी उन की औकात बता दी थी. राबिया की बातों से उन के भी सिर से इश्क का भूत उतर गया था.

राबिया द्वारा किए अपमान से तिलमिलाए तीनों जख्मी शेर बन गए. अपमान की आग में जल रहे तीनों ने बातचीत कर के राबिया से बदला लेने का निर्णय लिया. उन्होंने उसे फोन पर धमकाने की योजना बनाई, ताकि डर कर वह हथियार डाल दे. आजाद राबिया के घर के कोनेकोने से वाकिफ था. घर में सिर्फ मांबेटी ही रहती थीं. इसी का फायदा उठा कर उसे लगा कि वह धमकी भरे फोन करेगा तो मांबेटी डर कर मदद के लिए उसी को बुलाएंगी. उस के बाद धीरेधीरे वह उस के करीब आ जाएगी.

योजना के अनुसार, आजाद ने राबिया के घर वाले मोबाइल पर फोन कर के उसे जान से मारने की धमकी दी. इस धमकी से मांबेटी डर तो गईं लेकिन उन्हें लगा कि कोई सिरफिरा सिर्फ फोन कर के डरा रहा है. इसलिए उन्होंने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. लेकिन जब उस ने दोबारा फोन कर के धमकी दी तो मांबेटी परेशान हो गईं.

आजाद बारबार फोन कर के धमकाने लगा तो राबिया की मां ने यह बात अपने पति मोहम्मद आलम अंसारी को फोन कर के बताई. उन्होंने पुलिस के पास जा कर शिकायत करने की सलाह दी, लेकिन राबिया की मां पुलिस के पास यह सोच कर नहीं गई कि इस से उन्हीं की बदनामी होगी. इस के अलावा राबिया पढ़ने जाती थी, कहीं उन बदमाशों ने कोई ऊंचनीच कर दी तो वे कहीं की नहीं रहेंगी. इसलिए पुलिस से शिकायत करने के बजाए उन्होंने फोन नंबर ही बदल दिए.

आजाद और उस के दोस्तों ने जो सोच कर यह खेल खेला था, वह पूरा नहीं हुआ. आजाद को राबिया का नया नंबर भी मिल गया, उस नंबर पर भी वह धमकियां देने लगा था. राबिया और उस की मां ने यह बात अपने तक ही सीमित रखी. मदद के लिए उन्होंने किसी को नहीं बुलाया.

बात बनती न देख आजाद और उस के दोस्तों ने दूसरे तरीके से राबिया से बदला लेने की योजना बनाई. इस बार की योजना पहले से काफी खतरनाक थी. तीनों ने राबिया पर तेजाब डाल कर उस की जिंदगी बरबाद करने की योजना बनाई. योजना बनाने के बाद आजाद ने बखरी चौक कस्बे से एक परिचित की दुकान से तेजाब की 1 लीटर की बोतल यह कह कर खरीदी कि उसे घर का शौचालय साफ करना है. दुकानदार परिचित था, इसलिए विश्वास कर के उस ने तेजाब दे दिया. तेजाब की व्यवस्था हो गई तो तीनों राबिया की दैनिक गतिविधियों पर नजर रखने लगे.

सारी जानकारी जुटा कर 5 दिसंबर, 2016 की सुबह जब राबिया शिल्पी के साथ उस की साइकिल से स्कूल जा रही थी तो तीनों ने मोटरसाइकिल से पीछा कर राबिया पर तेजाब फेंक दिया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने आजाद, रति तिवारी और अरविंद को अदालत में पेश किया, जहां से सबूत जुटाने के लिए तीनों को पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड के दौरान पुलिस ने रति के घर से उस की मोटरसाइकिल तथा तेजाब की बोतल बरामद कर ली थी. रिमांड खत्म होने पर तीनों को दोबारा अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

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बेहतर इलाज से राबिया अब स्वस्थ हो चुकी है, लेकिन राबिया और शिल्पी काफी डरी हुई हैं. दोनों चाहती हैं कि इन आशिकों को ऐसी सजा मिले कि दोबारा कोई आशिक किसी लड़की के साथ ऐसी घिनौनी हरकत करने की हिम्मत न कर सके.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime: प्राइवेट पार्ट, एक गंभीर सवाल

एक गंभीर सवाल कि क्या ऐसे आदमी, आदमी क्या बल्कि हैवान कहना ही ज्यादा सटीक होगा, की कोई इज्जत हो सकती है और वह माफी का हकदार होना चाहिए, जिस ने शक की आग में जलते हुए बेरहमी से अपनी बीवी के प्राइवेट पार्ट को सूईधागे से सिल कर दिल दहला देने वाला काम कर दिया हो?

तय है कि हर किसी का जवाब यही होगा कि नहीं. न तो ऐसे आदमी की कोई इज्जत हो सकती है और न ही उसे किसी भी कीमत पर बख्शा जाना चाहिए. उसे तो कड़ी से कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए, जिस से दूसरे शक्की शौहर सबक लें और बीवियों व उन के प्राइवेट पार्ट पर कहर ढाने से पहले कानून का खौफ खाते हुए हजार बार सोचें.

इस वारदात में वारदात से ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि खुद बीवी पुलिस से गुहार लगाती नजर आई कि साहब, मेरे शौहर को कड़ी सजा मत देना, मामूली डांट लगा कर छोड़ देना. और तो और उस का नाम भी उजागर मत करना, नहीं तो हमारी बदनामी होगी.

बेवकूफी की बात यह कि पुलिस वालों ने उस की बात मान भी ली और अभी तक मुजरिम का नाम उजागर नहीं किया. इस से पुलिस वाले तो कठघरे में हैं ही, लेकिन पीडि़ता भी कम जिम्मेदार नहीं है. वह उन औरतों में से है, जो लातघूंसे खा कर और पति की हैवानियत ?ोल ली है.

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सितम सिंगरौली का

मध्य प्रदेश के सिंगरौली की निशा बाई (बदला नाम) ने 28 अगस्त, 2021 को ससुराल में रह रही अपनी बेटी को आपबीती बताई, तो वह भागीभागी मायके आई और मां को सीधे पुलिस स्टेशन ले गई, जहां निशा बाई की बात सुन और हालत देख कर पुलिस वाले भी सकते में आ गए.

निशा बाई के मुताबिक, उस के शौहर को शक था कि उस के गांव के ही एक आदमी से नाजायज ताल्लुक हैं. इस बात पर आएदिन दोनों में ?ागड़ा हुआ करता था और शौहर उस की जम कर कुटाई करता था.

तकरीबन एक हफ्ता पहले भी ऐसा ही हुआ और पति ने गुस्से में आ कर उस का प्राइवेट पार्ट सूईधागे से सिल दिया था.

निशा बाई दर्द से कराहती और चिल्लाती रही, लेकिन उस राक्षस को रहम नहीं आया. पुख्ता सिलाई के लिए उस ने तांबे के तार का इस्तेमाल किया. चूंकि पति नीमहकीमी भी करता था, इसलिए उस ने दर्द की दवा भी उसे खिला दी.

इस के बाद भी निशा बाई 7 दिनों तक दर्द से छटपटाती रही, लेकिन शौहर के गुस्से का खौफ ऐसा था कि वह घर में पड़ीपड़ी अपनी किस्मत को कोसती रही, पर 8वें दिन जब दर्द बरदाश्त से बाहर हो गया तब कहीं जा कर उस ने बेटी को खबर दी.

पुलिसिया पूछताछ में हैरानी वाली बात यह भी उजागर हुई कि 52 साल की निशा बाई की शादी को तकरीबन  35 साल हो चुके हैं. उस के शौहर की उम्र 57 साल है.

यह जान कर तो लोगों के दिमाग का फ्यूज ही उड़ गया कि पति ने 3 साल में चौथी बार उस का प्राइवेट पार्ट सिला था. लोकलाज के डर से वह खामोशी से जुल्मोसितम सहती जा रही थी और इस बार भी पति के लिए माफी चाहती है, तो उस से हमदर्दी के साथसाथ उस की अक्ल पर तरस भी आता है कि अपने ऊपर हुए अत्याचारों के लिए वह भी कम जिम्मेदार नहीं है.

निशा बाई के बेटेबहुएं और बेटियां भी चाहते हैं कि पिता को कम से कम सजा हो यानी औरत पर अत्याचार के मामले में पूरे परिवार की राय एकसमान है, जो शह देने वाली ही मानी जाएगी.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद निशा को अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उस के प्राइवेट पार्ट के टांके काटते हुए उस का इलाज किया.

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रामपुर की रमा

इस तरह की दरिंदगी का एक और मामला 21 मार्च, 2021 को उत्तर प्रदेश के रामपुर से सामने आया था. जवान रमा (बदला नाम) की शादी 2 साल पहले ही हुई थी.

शादी के बाद से पति रमा पर वही शक करता रहा था, जो निशा पर उस के शौहर ने किया था कि उस के किसी गैरमर्द से नाजायज संबंध हैं. दोनों में रोज कलह इस बात को ले कर होती थी और रोज ही रमा की पिटाई उस का शौहर करता था.

वारदात के दिन तो हद हो गई, जब पति ने रमा की पिटाई के बाद उस का प्राइवेट पार्ट तांबे के तार से सिल दिया और उस में एक कील भी फंसा दी.

मिलक थाना इलाके के ठिरिया विष्णु गांव की रमा थाने पहुंची और पति के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई.

जब रमा को इलाज के लिए अस्पताल मे भरती किया गया, तो पता चला कि वह पेट से है. इस पर लोगों का गुस्सा और बढ़ गया. जिस ने भी सुना, उस ने वहशी पति के लिए कड़ी से कड़ी सजा की मांग की. खुद रमा भी बिफरी हुई थी और पति के लिए सख्त सजा की मांग करती नजर आई.

निशा बाई की तरह उस ने हैवान पति के लिए कोई रहम दिखाने की बात नहीं कही, बल्कि उस का हुक्कापानी भी बंद करने की ख्वाहिश जताई जिस से पति को सम?ा आए कि ऐसे दरिंदों को तो समाज में रहने का हक ही नहीं है.

इस ने तो ताला जड़ा

इन दोनों मामलों ने बरबस ही  10 साल पहले के एक और नृशंस मामले की याद दिला दी, जिस में एक और शौहर ने बीवी रोमा के प्राइवेट पार्ट पर ताला लगा कर रखा था. इंदौर के मुसाखेड़ी में जो हुआ था, उसे सुन कर रोंगटे आज भी खड़े हो जाते हैं.

एक आटो गैराज में काम करने वाला पति सोहनलाल सुबह जब गैराज जाता था, तो पत्नी के प्राइवेट पार्ट पर ताला लगा कर जाता था. ताकि उस की गैरमौजूदगी में बीवी किसी से सैक्स न कर ले. यह सिलसिला 2 साल चला. सिंगरौली और रामपुर के शौहरों ने तार कसा था, लेकिन सोहनलाल ने तो तार डाल कर ताला लगाया था, जिस की चाबी वह अपने साथ ले जाता था.

परेशान हो कर मरती क्या न करती की तर्ज पर रोमा ने एक दिन जहर खा लिया. थोड़ी देर में उसे बेहोश होते देख उस के पांचों बच्चों ने शोर मचा दिया तो पड़ोसी आए.

रोमा की हालत देख कर पड़ोसियों की रूह कांप उठी और तुरंत ही उसे अस्पताल ले जाया गया. पुलिस को भी खबर दी गई. होश में आने के बाद रोमा ने अपनी कहानी सुनाई तो सोहनलाल को गिरफ्तार कर लिया गया.

बीवियां भी ढा रही कहर

8 अगस्त, 2021 को बिहार के पटना के फुलवारीशरीफ में पत्नी वैशाली (बदला नाम) का विवाद आएदिन शौहर से होता रहता था. ये दोनों अलाव कालोनी में रहते हैं.

घटना की रात दोनों साथ सोए थे, लेकिन पति जल्द ही गहरी नींद में चला गया था, क्योंकि वैशाली ने उस के खाने में कुछ मिला दिया था. उस की असल मंशा शौहर का प्राइवेट पार्ट काट कर उसे सबक सिखाने की थी, जो उस ने सिखाया भी और सो रहे पति का अंग चाकू से काट डाला.

दर्द से छटपटाते शौहर की नींद खुली, तो माजरा सम?ा कर उस के होश उड़ गए, क्योंकि हाथ में चाकू लिए वैशाली नागिन सी फुफकार रही थी और इधर उस की लुंगी खून से सनी जा रही थी.

घबराया शौहर दौड़ता हुआ फुलवारीशरीफ थाने पहुंचा और सारा किस्सा बताया. तब तक उस के अंग से काफी खून बह चुका था. पुलिस ने तुरंत ही उसे नजदीकी अस्पताल में इलाज के लिए भेजा और वैशाली को गिरफ्तार कर लिया.

पहले अंग काटा, फिर मार डाला

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के शिकारपुर में 25 जून, 2021 को हाजरा नाम की बीवी ने तो क्रूरता के मामले में मर्दों को भी पछाड़ दिया. उस ने पेशे से वकील अपने शौहर रफीक अहमद का अंग बेरहमी दिखाते हुए चाकू से काट डाला और इस पर भी जी नहीं भरा  तो घायल शौहर को पीटपीट कर मार  ही डाला.

गिरफ्तार होने के बाद हाजरा ने बताया कि रफीक रंगीनमिजाज आदमी था, जिस से वह परेशान रहती थी. बकौल हाजरा, रफीक 2 शादियां कर चुका था और अब तीसरी शादी करने जा रहा था. इस बात से वह दुखी थी. सम?ाने पर रफीक उसे मारतापीटता था, इसलिए गुस्से में उस ने फसाद की जड़ ही खत्म कर दी.

निशाने पर प्राइवेट पार्ट ही क्यों

इन पांचों मामलों में निशाने पर प्राइवेट पार्ट रहा. चूंकि औरत का अंग शरीर के अंदर होता है, इसलिए उसे काटा नहीं जा सकता, तो शौहरों ने उसे सिल दिया या फिर ताला लगा दिया. इस के उलट बीवियों ने आसानी से शौहरों को प्राइवेट पार्ट गाजरमूली की तरह काट डाला, क्योंकि वह बाहर होता है. रोज सब्जीभाजी काटने वाली बीवियों को काटने की खासी प्रैक्टिस थी, इसलिए उन्हें यह रास्ता आसान लगा.

शक हो या गुस्सा ये दोनों ही शादीशुदा जिंदगी को नरक बना देते हैं. शौहर बीवी को अपनी जायदाद सम?ाता है, इसलिए वह शक ज्यादा करता है और बीवी उस की गैरमौजूदगी में किसी और से सैक्स न कर ले, इसलिए उस के प्राइवेट पार्ट को सिलता है और उस पर ताला भी लगाता है, लेकिन यह न केवल जुर्म है, बल्कि वहशीपन और दरिंदगी की हद है.

यही बात बीवियों पर लागू होती है, जो शौहर को सबक सिखाने के लिए उसे नामर्द बनाने की हद तक बेरहम  हो जाती हैं. मकसद उन का भी यही रहता है कि शौहर किसी दूसरी औरत से हमबिस्तरी करने लायक ही न रहे यानी शक्की शौहर और गुस्सैल बीवी प्यार करते हैं, तो केवल प्राइवेट पार्ट से और बदला लेने या सबक सिखाने के लिए उसी को निशाना बनाने लगे हैं, जबकि थोड़ी अक्ल और सब्र से काम लिया जाए तो वे जुर्म से खुद को बचा सकते हैं.

आमतौर पर शक तो फुजूल ही निकलता है, जो बीवी के चालचलन में नहीं, बल्कि शौहर के दिमाग में होता है. कई बार तो यह बचपन से ही दिमाग में पल रहा होता है कि औरत होती ही  चालू है.

कहते हैं कि शक का इलाज तो लुकमान हकीम के पास भी नहीं था, फिर आजकल के शौहरों की औकात क्या, जो शक के चलते बीवी का कत्ल तक आसानी से कर देते हैं.

लेकिन इलाज है. शौहर को शक हो, तो उसे बीवी को छोड़ देना चाहिए. उसे मारनेपीटने से समस्या हल नहीं होती.  उस के किसी से संबंध हैं, यह बात साबित होने पर ही सजा देनी चाहिए, लेकिन खुद हिंसक और हैवान जज बन कर नहीं, बल्कि अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए. वहां थोड़ी देर जरूर लगती है, लेकिन शौहर एक गुनाह करने से बच जाता है.

वैसे भी औरत के प्राइवेट पार्ट को सिलना तालिबानियों जैसी क्रूरता है, फिर उन में और इन में में फर्क क्या. यही बात बीवियों की क्रूरता पर भी लागू होती है.

Manohar Kahaniya: सेक्स चेंज की जिद में परिवार हुआ स्वाहा- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- शाहनवाज

अलग तरह की होती थी फीलिंग

कार्तिक उस के सब से अच्छे दोस्तों में से एक बन गया था. उसे उस के साथ वक्त गुजारना अच्छा लगने लगा. दोनों मिल कर क्लास के बाद दिल्ली के अलगअलग जगहों पर घूमने निकल जाते, अच्छे होटल में खाना खाते. कभी स्टारबक्स, कभी मैकडोनल्डस, कभी केएफसी, कभी बर्गर किंग तरह तरह की जगहों पर अकसर वक्त गुजारते.

वह जब कभी भी कार्तिक के साथ मिलता तो उस के शरीर में एक अलग तरह की सिहरन दौड़ जाती थी. उस का चेहरा और उस की बातें, उस की आंखों और दिल को सुकून देती थीं. कार्तिक के लिए उस के मन में एक अजीब तरह की फीलिंग महसूस होने लगी थी.

अभिषेक मन में कार्तिक को छूने की, उस के करीब रहने की बातें घूमती रहती थीं. वह भी उसे एक अच्छा दोस्त समझता था. लेकिन उसे यह नहीं पता था कि जो फीलिंग्स वह कार्तिक के लिए अपने मन में रखता है, क्या वह भी उसे उसी तरह से देखता है या नहीं.

2 सालों तक वह दिल्ली में कार्तिक के साथ इसी तरह से मिला करता था. लेकिन एक दिन अभिषेक ने कार्तिक को अपने घर पर आने का न्यौता दिया. वह उस के घर पर आया. उस के पूरे परिवार से मिला. उस के घर पर सभी को पता था कि वे दोनों बेहद अच्छे दोस्त हैं.

ऐसे ही एक दिन जब कार्तिक उस के घर पर आया तो वह दोनों लैपटोप पर फिल्म देख रहे थे. वह अभिषेक से चिपक कर बैठा था. उस का ध्यान फिल्म पर बिलकुल भी नहीं था. न जाने उसी वक्त उसे क्या हुआ कि उस ने कार्तिक को उस की गरदन पर चूम लिया.

खुद को लड़की मानता था अभिषेक

अभिषेक की इस हरकत का कार्तिक ने बुरा नहीं माना बल्कि उस ने उस का हाथ पकड़ लिया और उस ने भी अभिषेक की गरदन पर चूम लिया.

इस अहसास को अभिषेक ने इस से पहले कभी महसूस नहीं किया था. कुछ इस तरह से उस के और कार्तिक के बीच संबंध बनने शुरू हुए. जिस के बाद वे दोनों अकसर होटल में मिलते और अपनी जरूरतों को पूरा करते.

3 साल का उन का कैबिन क्रू का कोर्स खत्म हुआ तो अभिषेक अपने घर आ गया. तब उस का दिल्ली जा पाना और कार्तिक से मिलना मुश्किल हो गया. तब वह कार्तिक को मिलने के लिए अकसर रोहतक में बुला लिया करता था.

पहले के मुकाबले उन की मुलाकात अब ज्यादा दिनों में होती. बढ़ते गैप के साथसाथ उन दोनों के मन में एकदूसरे के लिए फीलिंग्स और भी ज्यादा बढ़ने लगीं. कार्तिक के बिना उस के लिए एक पल भी गुजारना मुश्किल होने लगा था. अगर वह नहीं मिल पाते तो घंटों फोन पर एकदूसरे से बातें करते.

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कार्तिक से मिलने के बाद अभिषेक ने खुद को अन्य लोगों से अलग महसूस किया. अकसर उस के मन में आता कि बेशक वह लड़का है, लेकिन अंदर से वह खुद को लड़की मानने लगा था.

घर में अकेले होता था तो वह अपनी बहन नेहा के कपड़े पहन कर और मेकअप कर के देखता कि कैसा दिखाई देता है. वह पूरी तरह से खूद को बदलाबदला सा महसूस करता. अभिषेक की अब हलके और चटक रंग के कपड़ों में दिलचस्पी बढ़ने लगी थी. उस की पसंद में पूरी तरह से बदलाव आ गया था.

ऐसे ही साल 2020 के अगस्त के महीने में अभिषेक ने यह तय कर लिया था कि वह खुद को अंदर से जैसा महसूस करता है, वैसा ही वह हकीकत में बनेगा. यानी वह लड़की बनना चाहता था. इस संबंध में उस ने इंटरनेट पर सर्च करना शुरू कर दिया. उसे पता चला कि औपरेशन के जरिए एक इंसान अपना लिंग बदल सकता है.

अभिषेक इस बारे में पूरी जानकारी हासिल करना चाहता था, इसीलिए वह घंटों इंटरनेट पर इसी के संबंध में सर्च करता रहता, पढ़ता रहता और वीडियोज देखता.

वह भारत में सैक्स चेंज का औपरेशन करने वाले क्लिनिक या हौस्पिटल के बारे में पता करने लगा. धीरेधीरे उस ने इस औपरेशन में आने वाला खर्चा, सारी सावधानियां, सभी ऐहतियात सब के बारे में पता कर लिया.

अब वह अपने जीवन में एक अहम पड़ाव पर आ कर फंस गया था, उसे एक ऐसा फैसला करना था जिस के बाद उस की पूरी जिंदगी बदल जाती. उस ने दिनरात इस के बारे में सोचा. उस ने इस की भनक कार्तिक को बिलकुल भी नहीं होने दी, क्योंकि वह उस के साथ रिश्ते में बंधने के लिए उसे सरप्राइज देना चाहता था.

अंत में उस ने फैसला कर ही लिया कि उसे क्या चाहिए. उस ने अपने लिए खुद को चुना, कार्तिक को चुना क्योंकि वही उस की खुशियां बनने वाला था. उस ने औपरेशन के लिए खुद को तैयार कर लिया, लेकिन उस के लिए उसे पैसों की जरुरत थी.

नए साल 2021 की शुरुआत में ही अभिषेक ने अपने पापा से 5 लाख रुपए मांगे. उसे लगा कि हर बार की तरह वह इस बार भी नहीं पूछेंगे कि उसे इतने पैसे किसलिए चाहिए. लेकिन इस बार इतनी बड़ी रकम मांगने पर उन्होंने उस से पूछ ही लिया कि उसे ये पैसे किसलिए चाहिए.

तब अभिषेक ने उन से झूठ बोला कि उसे किसी काम के लिए चाहिए तो उन्होंने साफ मना कर दिया. फिर अभिषेक ने पैसों के लिए अपनी मम्मी के पास जा कर एप्रोच किया. मम्मी उसे पैसों के लिए कभी भी मना नहीं करती थीं, लेकिन इतनी बड़ी रकम सुन कर उन्होंने भी मना कर दिया था.

बहन को बता दी मन की बात

वह पैसों का जुगाड़ नहीं कर पा रहा था. उसे इस औपरेशन के लिए जल्द से जल्द पैसे चाहिए थे. कार्तिक से दूरी वह अब बरदाश्त नहीं कर पा रहा था. हार मान कर उस ने यह बात अपनी बहन नेहा को बता दी कि उसे किसलिए पैसों की जरूरत है.

अभिषेक को लगा कि एक लड़की और मेरी बहन होने के नाते वह उस की फीलिंग्स की कदर करेगी और उस की बातों को समझेगी. लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ.

जिस रात उस ने नेहा को पैसे मांगने का कारण बताया उस के अगले दिन नेहा ने उस की गैरमौजूदगी में पापा और मम्मी को ये बात बता दी कि अभिषेक पैसे किसलिए मांग रहा है.

उस दिन अभिषेक बाहर किसी काम से निकला था, लेकिन जब वह घर लौटा तो पापा और मम्मी का चेहरा देख कर उसे अंदाजा हो गया था कि नेहा ने इन्हें सब कुछ बता दिया है. पापा और मम्मी ने उसे अपने कमरे में बुलाया और उन्होंने उसे यह खयाल अपने दिमाग से निकाल देने की नसीहत दी.

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लेकिन अभिषेक नहीं माना. उस ने उन के सामने ही उन की बातों को मानने से इंकार कर दिया. गुस्से में मम्मी तो कमरे से निकल गईं, लेकिन पापा ने उस दिन उसे बहुत मारा. इस के साथ ही उन्होंने अपनी सारी प्रौपर्टी नेहा के नाम कर देने की धमकी भी दे डाली.

पापा ने कभी भी अभिषेक पर हाथ नहीं उठाया था लेकिन जब उन्होंने उस दिन उसे पीटा तो उस ने उसी दिन यह तय कर लिया था कि उसे अब किसी भी हालत में अपना सैक्स बदलना है.

उस दिन के बाद अभिषेक पर घर में हर काम के लिए बंदिशें लगने लगीं. उसे अपने कमरे के दरवाजे को अंदर से बंद करने के लिए मना कर दिया गया. कुछ दिनों के लिए उस का फोन छीन लिया गया. घर में इंटरनेट कनेक्शन भी कटवा दिया गया. इतना ही नहीं, उस ने सारे दोस्तों को घर पर आनेजाने के लिए मना कर दिया गया. उसे घर पर हर कोई अजीब नजरों से देखने लगा. यहां तक कि नानी को भी इसलिए बुलाया गया था ताकि वह उसे इस के लिए समझाए कि सैक्स चेंज कराना अच्छी बात नहीं है.

अभिषेक को उस के ही घर में ऐसी पैनी और शक भरे अंदाज में देखा जाता था जैसे उस ने यह सोच कर ही कोई बहुत बड़ा गुनाह कर लिया हो. उसे अपने ही घर में घुटन होने लगी थी.

अगले भाग में पढ़ें- पिता की पिस्तौल ही बनी कालदूत

Crime Story: पत्नी ने घूंघट नहीं निकाला तो बेटी को मार डाला

बात साल 2019 की है. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जयपुर में हुए एक कार्यक्रम में लोगों से सवाल पूछा था कि समाज को किसी महिला को घूंघट में कैद करने का क्या अधिकार है? जब तक घूंघट नहीं हटेगा, महिलाएं कभी आगे नहीं बढ़ पाएंगी.

नारी अधिकारों के लिए काम कर रहे एक संगठन के उस कार्यक्रम में अशोक गहलोत ने आगे कहा था कि कुछ ग्रामीण इलाकों में महिलाएं अब भी घूंघट करती हैं. महिलाओं को हिम्मत और हौसले के साथ आगे बढ़ना पड़ेगा. सरकार आप के साथ खड़ी मिलेगी.

पर राजस्थान के अलवर जिले के गादोज गांव में दकियानूसी सोच वाले एक आदमी को शायद मुख्यमंत्री की ऐसी बातें पसंद नहीं थीं, तभी तो उस ने पत्नी के घूंघट नहीं निकालने की बात पर ?ागड़ा किया और अपनी 3 साल की मासूम बेटी को पीटने लगा.

मां उसे बचाने लगी तो उस दरिंदे ने मासूम बेटी को जमीन पर पटक कर उस की हत्या कर डाली.

इतना ही नहीं, आरोपी और उस के परिवार वालों ने तड़के सुबह बिना किसी को खबर हुए बच्ची का अंतिम संस्कार भी कर डाला.

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यह घटना मंगलवार, 17 अगस्त, 2021 की रात की थी. अगले दिन मायके वालों के आने पर बच्ची की मां मोनिका यादव बहरोड़ थाने पहुंची और अपने पति प्रदीप यादव के खिलाफ मामला दर्ज कराया.

मोनिका ने रिपोर्ट में बताया कि उस का पति प्रदीप यादव घर के भीतर हमेशा घूंघट निकालने की कहता है और वह घूंघट भी करती है. मगर कभी जरा घूंघट कम हो तो ?ागड़ा और मारपीट करने लगता है.

मंगलवार की रात को भी घूंघट निकालने को ले कर प्रदीप ने मोनिका से ?ागड़ा शुरू कर दिया और बाद में अपनी 3 साल की बेटी प्रियांशी को थप्पड़

मार दिया.

मोनिका ने विरोध किया, तो उस की गोद से बच्ची को खींच कर कमरे में ले गया. वहां पीटने के बाद उसे उछाल कर कमरे के आंगन में फेंक दिया.

बच्ची ने फर्श पर गिरते ही दम तोड़ दिया. इस के बाद पति और ससुराल वालों ने बुधवार तड़के सुबह उस का अंतिम संस्कार कर दिया. आरोपी वारदात के बाद फरार हो गया.

पीडि़ता मोनिका ने पुलिस को आगे बताया कि साल 2013 में उस की शादी प्रदीप यादव के साथ हुई थी. वह एक फैक्टरी में काम करता है और 12वीं जमात तक पढ़ा है. शादी में मोनिका के परिवार ने जरूरी सामान के साथ ही एक मोटरसाइकिल भी दी थी, लेकिन प्रदीप दहेज की मांग को ले कर अकसर ही उस से ?ागड़ा करता था.

मोनिका और प्रदीप यादव की  2 बेटियां थीं. जब साल 2018 में छोटी बेटी प्रियांशी का जन्म हुआ था, तब मोनिका के मायके वालों ने घर में कलह खत्म करने के लिए प्रदीप को कार दी थी. इस के बावजूद वह नहीं सुधरा, तो रेवाड़ी में 2 बार मामले दर्ज कराए गए. हालांकि बाद में इन में सम?ाता हो गया था.

राजस्थान में यह कोई एकलौता मामला नहीं है, जब किसी महिला, चाहे वह छोटी बच्ची हो या बड़ी औरत, के साथ किसी तरह का जुल्म न हुआ हो.

साल 2020 के पहले 8 महीनों में प्रदेश में महिलाओं से मारपीट, शोषण, बलात्कार और महिला संबंधी दूसरे अपराधों के 22,000 से भी ज्यादा मुकदमे दर्ज हुए थे. 339 दहेज हत्याएं भी हुई थीं, जो पिछले सालों की तुलना में कहीं ज्यादा थीं.

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दहेज के लिए परेशान करने पर खुदकुशी करने या खुदकुशी की कोशिश करने के 125 मुकदमे दर्ज हो चुके थे.

महिलाओं पर अत्याचार करने और उत्पीड़न के 8,500 मुकदमे दर्ज हुए थे. साल 2019 की तुलना में ये कम थे, लेकिन साल 2018 की तुलना में कहीं ज्यादा थे. बलात्कार के 3,500 और छेड़छाड़ और जबरदस्ती करने के 5,800 मुकदमे दर्ज हुए थे. अपहरण और दूसरी तरह के अपराधों की संख्या 3,800 से भी ज्यादा थी.

नैशनल क्राइम ब्यूरो रिपोर्ट के आंकड़ों का हवाला देते हुए भारतीय जनता पार्टी के नेता राज्यवर्धन सिंह राठौर ने राज्य सरकार पर हमला करते हुए कहा कि आज महिलाओं के ऊपर अत्याचार के मामलों में राजस्थान देश में पहले नंबर पर पहुंच गया है.

अब दोबारा घूंघट पर बात करें, तो राजस्थान सरकार ने इस सामाजिक बुराई को रोकने के लिए ‘अबै घूंघट नी’ नाम की एक मुहिम चलाई थी, पर करणी सेना ने इस का विरोध कर दिया.

करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुखदेव सिंह गोगामड़ी ने इस मुद्दे पर अपनी राय रखते हुए कहा, ‘घूंघट एक प्रथा है. हम महिलाओं से जबरदस्ती नहीं करवाते हैं. वे सिर्फ आंखों की शर्म के लिए घूंघट लगाती हैं. जेठ, ससुर जहां होते हैं, वहां पर महिलाएं घूंघट करती हैं. इस घूंघट और हमारी संस्कृति को देखने के लिए विदेशी पर्यटक दूरदूर से आते हैं.’

इतना ही नहीं, सुखदेव सिंह गोगामड़ी ने आगे कहा, ‘अशोक गहलोत को परदा हटाना है, तो पहले मुसलिम महिलाओं का बुरका हटाओ. घूंघट लगा कर आज तक एक भी वारदात नहीं  हुई है, जबकि बुरका पहन कर तो आतंकवादी गतिविधियां हुई हैं.’

घूंघट मामले पर राजपूत सभा के अध्यक्ष गिर्राज सिंह लोटवाडा का कहना है कि यह निजी सोच का मसला है. घूंघट को ले कर समाज में किसी तरह की अनिवार्यता नहीं है. सरकार अगर इसे ले कर अभियान चलाती है तो चलाए, लेकिन अभी ऐसे अभियानों से ज्यादा जरूरत दूसरे कई विषयों की है, जिन पर सरकार को ध्यान देना चाहिए, जिन में से बड़ी बात शिक्षा और रोजगार की है.

जब प्रदेश के रसूखदार लोगों की घूंघट पर ऐसी राय है, तो गांवदेहात के उन लोगों का क्या कहा जाए, जो औरत को पैर की जूती सम?ाते हैं.

प्रदीप यादव ऐसे ही लोगों की भीड़ का हिस्सा हैं, जो पत्नी को अपने इशारों पर चलाने को ही मर्दानगी सम?ाते हैं. उस की पत्नी ने गलती से परदा नहीं किया तो उस ने घर में बवाल मचा दिया. यहां तक कि अपनी बेटी को ही मार डाला.

उस की कहीं यह सोच तो नहीं थी कि बेटी ही तो है, मामला गरम है तो इसे ही बलि का बकरा बना दो. पहले पढ़ाईलिखाई और बाद में शादी का खर्च कम हो जाएगा. 2 में से एक बेटी कम हो जाएगी. राजस्थान में बेटी पैदा होना भी मर्दानगी पर धब्बा माना जाता है. क्यों?

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