औकात से ज्यादा – भाग 3 : क्या करना चाहती थी निशा

पापा तो निशा के जाने से पहले ही काम पर निकल जाते थे, इसलिए नए खरीदे कपड़े पहन कर औफिस जाती निशा का सामना उन से नहीं हुआ. मगर मम्मी तो उसे देख भड़क गईं, ‘‘तू ये कपड़े पहन कर औफिस जाएगी? कुछ शर्मोहया भी है कि नहीं?’’‘‘क्यों? इन कपड़ों में कौन सी बुराई है?’’ निशा ने तपाक से पूछा. ‘‘सारे जिस्म की नुमाइश हो रही है और तुम को इस में कोई बुराई नजर नहीं आ रही. उतारो इन्हें और ढंग के दूसरे कपड़े पहनो,’’ निशा की नौकरी को ले कर पहले से ही नाखुश मम्मी ने कहा. ‘‘मेरे पास इतना वक्त नहीं मम्मी कि दोबारा कपड़े बदलूं. इस समय मैं काम पर जा रही हूं. शाम को इस बारे में बात करेंगे,’’ मम्मी के विरोध की अनदेखी करते निशा घर से बाहर निकल आई. उस दिन घर से औफिस को जाते निशा को लगा कि उस को पहले से ज्यादा नजरें घूर रही हैं. ऐसा जरूर कपड़ों में से दिखाई पड़ने वाले उस के गोरे मांसल जिस्म की वजह से था. शर्म आने के बजाय निशा को इस में गर्व महसूस हुआ. उधर, अपने बदले रंगरूप की वजह से निशा को औफिस में भी खुद के प्रति सबकुछ बदलाबदला सा लगा. बिजलियां गिराती निशा के बदले रंगरूप को देख काम करने वाली दूसरी लड़कियों की आंखों में हैरानी के साथसाथ ईर्ष्या का भाव भी था. यह ईर्ष्या का भाव निशा को अच्छा लगा. यह ईर्ष्याभाव इस बात का प्रमाण था कि वह उन के लिए चुनौती बनने वाली थी.

निशा के अपना रंगरूप बदलते ही निशा के लिए औफिस में भी एकाएक सबकुछ बदलने लगा. अपने केबिन की तरफ जाते हुए संजय की नजर निशा पर पड़ी और इस के बाद पहली बार उस को अकेले केबिन में आने का इंटरकौम पर हुक्म भी तत्काल ही आ गया. केबिन में आने का और्डर मिलते ही निशा के बदन में सनसनाहट सी फैल गई. उस को इसी घड़ी का तो इंतजार था. केबिन में जाने से पहले निशा ने गर्वीले भाव से एक बार दूसरी लड़कियों को देखा. वह अपनी हीनभावना से उबर आई थी. अकेले केबिन में एक लड़की होने के नाते उस के साथ क्या हो सकता था, उस की कल्पना कर के निशा मानसिक रूप से इस के लिए तैयार थी. दूसरे शब्दों में, केबिन की तरफ जाते हुए निशा की सोच बौस के सामने खुद को प्रस्तुत करने की थी. निशा को इस बात से भी कोई घबराहट नहीं थी कि अपने बौस के केबिन में से बाहर आते समय उस के होंठों की लिपस्टिक का रंग फीका पड़ सकता था. वह बिखरी हुई हालत में नजर आ सकती थी. निशा मान रही थी कि बहुत जल्दी बहुतकुछ हासिल करना हो तो उस के लिए किसी न किसी शक्ल में कोई कीमत तो अदा करनी ही पड़ेगी.

निशा जब संजय के केबिन में दाखिल हुई तो उस की आंखों में खुले रूप से संजय के सामने समर्पण का भाव था. संजय की एक शिकारी वाली नजर थी. निशा के समर्पण के भाव को देख वह अर्थपूर्ण ढंग से मुसकराया और बोला, ‘‘तुम एक समझदार लड़की हो, इसलिए जानती हो कि कामयाबी की सीढ़ी पर तेजी से कैसे चढ़ा जाता है? अपने बौस और क्लाइंट को खुश रखो, यही तरक्की का पहला पाठ है. मेरा इशारा तुम समझ रही हो?’’

‘‘यस सर,’’ निशा ने बेबाक लहजे से कहा.

‘‘गुड, तुम वाकई समझदार हो. तुम्हारी इसी समझदारी को देखते हुए मैं इसी महीने से तुम्हारी सैलरी में 2 हजार रुपए की बढ़ोतरी कर रहा हूं,’’ निशा के गदराए जिस्म पर नजरें गड़ाते संजय ने कहा.

‘‘थैंक्यू सर, इस मेहरबानी के बदले में मैं आप को कभी भी और किसी भी मामले में निराश नहीं करूंगी,’’ उसी क्षण खुद को संजय के हवाले कर देने वाले अंदाज में निशा ने कहा. इस पर उस को अपने करीब आने का इशारा करते हुए संजय ने कहा, ‘‘तुम आज के जमाने की हकीकत को समझने वाली लड़की हो, इसलिए तेजी से तरक्की करोगी.’’ इस के बाद कुछ समय संजय के साथ केबिन में बिता कर  अपने होंठों की बिखरी लिपस्टिक को रुमाल से साफ करती निशा बाहर निकली तो वह नए आत्मविश्वास से भरी हुई थी. औकात से अधिक मिलने को ले कर मम्मी जिस आशंका से इतने दिनों से आशंकित थीं उस में से तो निशा गुजर भी गई थी. औकात कम होने पर तरक्की करने का यही तो सही रास्ता था. इसलिए संजय के केबिन के अंदर जो भी हुआ था उस के लिए निशा को कोई मलाल नहीं था.

सैलरी में 2 हजार रुपए की बढ़ोतरी हुई तो बिना देरी किए निशा ने सवारी के लिए स्कूटी भी किस्तों पर ले ली. अपनी स्कूटी पर सवार हो नौकरी पर जाते निशा का एक और बड़ा अरमान पूरा हो गया था. वह जैसे हवा में उड़ रही थी. इस के साथ ही निशा ने घर में यह ऐलान भी कर दिया कि अब से वह अपने काम से देरी से वापस आया करेगी. पापा कुछ नहीं बोले, किंतु मम्मी के माथे पर कई बल पड़ गए, पूछा, ‘‘इस देरी से आने का मतलब?’’

‘‘ओवरटाइम मम्मी, ओवरटाइम.’’

मम्मी ने दुनिया देखी थी, इसलिए उन्होंने कहा, ‘‘मुझ को तुम्हारा देर से घर आना अच्छा नहीं लगेगा.’’ ‘‘तुम को तो मेरा नौकरी पर जाना भी कहां अच्छा लगा था मम्मी, मगर मैं नौकरी पर गई. अब भी वैसा ही होगा. एक बात और, तुम को मुझे मेरी औकात से ज्यादा मिलने पर ऐतराज था. मगर मुझ को 2 महीने में ही मिलने वाली तरक्की ने साबित कर दिया कि मेरी कोई औकात थी.’’ बड़े अहंकार से कहे गए निशा के शब्दों पर मम्मी बोलीं, ‘‘हां, मैं देख रही हूं और समझ भी रही हूं. सचमुच बाहर तेरी औकात बढ़ गई है. मगर मेरी नजरों में तेरी औकात पहले से कम हो गई है.’’ मम्मी के शब्दों की गहराई में जाने की निशा ने जरूरत नहीं समझी. इस के बाद घर देर से आना निशा के लिए रोज की बात हो गई. काफी रात हुए घर आना अब निशा की मजबूरी थी. अपने बौस के साथसाथ क्लाइंट को भी खुश करना पड़ता था. औफिस में निशा की अहमियत बढ़ रही थी मगर घर में स्थिति दूसरी थी. मम्मी लगातार निशा से दूर हो रही थीं, किंतु निशा की कमाई के लालच में पापा अब भी उस के करीब बने हुए थे. निशा के देरसबेर घर आने को वे अनदेखा कर जाते थे. दिन बीतते गए. एक दिन निशा को ऐसा लगा कि अपनी लालसाओं के पीछे भागते हुए वह इतनी दूर निकल आई थी जहां से वापसी मुश्किल थी. अपने फायदे के लिए संजय ने निशा का खूब इस्तेमाल किया था. इस के बदले में उस को मोटी सैलरी भी दी थी. निशा ने बहुतकुछ हासिल किया था, किंतु एक औरत के रूप में बहुतकुछ गंवा कर.

कभीकभी यह चीज निशा को सालती भी थी. ऐसे में उस को मम्मी की कही हुई बातें भी याद आतीं. लेकिन जिस तड़कभड़क वाली जिंदगी जीने की निशा आदी हो चुकी थी उस को छोड़ना भी निशा के लिए अब मुश्किल था. वापसी के रास्ते बंद थे. औफिस की दूसरी लड़कियों के सीने में जलन और ईर्ष्या जगाती निशा काफी समय तक अपने बौस संजय की खास और चहेती बनी रही और सैलरी में बढ़ोतरी करवाती रही. फिर एक दिन अचानक ही निशा के लिए सबकुछ नाटकीय अंदाज में बदला. एक खूबसूरत सी दिखने वाली लीना नाम की लड़की नौकरी हासिल करने के लिए संजय के केबिन में दाखिल हुई और इस के बाद निशा के लिए केबिन में से बुलावा आना कम होने लगा. लीना ने सबकुछ समझने में निशा की तरह 2 महीने का लंबा समय नहीं लिया था और कुछ दिनों में ही संजय की खासमखास बन गई थी. लीना की संजय के केबिन में एंट्री के बाद उपेक्षित निशा को अपनी स्थिति किसी इस्तेमाल की हुई सैकंडहैंड चीज जैसी लगने लगी थी. लेकिन उस के पास इस के अलावा कोई चारा नहीं था कि वह अपनी सैकंडहैंड वाली सोच के साथ समझौता कर ले.

औकात से ज्यादा – भाग 1 : क्या करना चाहती थी निशा

लड़कियों को काम कर के पैसा कमाते देख निशा के अंदर भी कुछ करने का जोश उभरा. सिर्फ जोश ही नहीं, निशा के अंदर ऐसा आत्मविश्वास भी था कि वह दूसरों से बेहतर कर सकती थी. निशा कुछ करने को इसलिए भी बेचैन थी क्योंकि नौकरी करने वाली लड़कियों के हाथों में दिखलाई पड़ने वाले आकर्षक व महंगे टच स्क्रीन मोबाइल फोन अकसर उस के मन को ललचाते थे और उस की ख्वाहिश थी कि वैसा ही मोबाइल फोन जल्दी उस के हाथ में भी हो. निशा के सपने केवल टच स्क्रीन मोबाइल फोन तक ही सीमित नहीं थे.  टच स्क्रीन मोबाइल से आगे उस का सपना था फैशनेबल कीमती लिबास और चमचमाती स्कूटी. निशा की कल्पनाओं की उड़ान बहुत ऊंची थी, मगर उड़ने वाले पंख बहुत छोटे. अपने छोटे पंखों से बहुत ऊंची उड़ान भरने का सपना देखना ही निशा की सब से बड़ी भूल थी. वह जिस उम्र में थी, उस में अकसर लड़कियां ऐसी भूल करती हैं. वास्तव में उन को इस बात का एहसास ही नहीं होता कि सपनों की रंगीन दुनिया के पीछे की दुनिया कितनी बदसूरत व कठोर है.

अपने सपनों की दुनिया को हासिल करने को निशा इतनी बेचैन और बेसब्र थी कि मम्मी और पापा के समझाने के बावजूद 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने आगे की पढ़ाई के लिए कालेज में दाखिला नहीं लिया. वह बोली, ‘‘नौकरी करने के साथसाथ आगे की पढ़ाई भी हो सकती है. बहुत सारी लड़कियां आजकल ऐसा ही कर रही हैं. कमाई के साथ पढ़ाई करने से पढ़ाई बोझ नहीं लगती.’’ ‘‘जब हमें तुम्हारी पढ़ाई बोझ नहीं लगती तो तुम को नौकरी करने की क्या जल्दी है?’’ मम्मी ने निशा से कहा. ‘‘बात सिर्फ नौकरी की ही नहीं मम्मी, दूसरी लड़कियों को काम करते और कमाते हुए देख कई बार मुझ को कौंप्लैक्स  महसूस होता है. मुझे ऐसा लगता है जैसे जिंदगी की दौड़ में मैं उन से बहुत पीछे रह गई हूं,’’ निशा ने कहा. ‘‘देख निशा, मैं तेरी मां हूं. तुम को समझाना और अच्छेबुरे की पहचान कराना मेरा फर्ज है. दूसरों को देख कर कुछ करने की बेसब्री अच्छी नहीं. देखने में सबकुछ जितना अच्छा नजर आता है, जरूरी नहीं असलियत में भी सबकुछ वैसा ही हो. इसलिए मेरी सलाह है कि नौकरी करने की जिद को छोड़ कर तुम आगे की पढ़ाई करो.’’

‘‘जमाना बदल गया है मम्मी, पढ़ाई में सालों बरबाद करने से फायदा नहीं.  बीए करने में मुझे जो 3 साल बरबाद करने हैं, उस से अच्छा इन 3 सालों में कहीं जौब कर के मैं अपना कैरियर बनाऊं,’’ निशा ने कहा. मम्मी के लाख समझाने के बाद भी निशा नौकरी की तलाश में निकल पड़ी. उस के अंदर जबरदस्त जोश और आत्मविश्वास था. उस के पास ऊंची पढ़ाई के सर्टिफिकेट और डिगरियां नहीं थीं, लेकिन यह विश्वास अवश्य था कि अगर अवसर मिले तो वह बहुतकुछ कर के दिखा सकती है. वैसे देखा जाए तो लड़कियों के लिए काम की कमी ही कहां? मौल्स, मोबाइल और इंश्योरैंस कंपनियों, बड़ीबड़ी ज्वैलरी शौप्स और कौस्मैटिक स्टोर आदि पर ज्यादातर लड़कियां ही तो काम करती नजर आती थीं. ऐसी जगहों पर काम करने के लिए ऊंची क्वालिफिकेशन से अधिक अच्छी शक्लसूरत की जरूरत थी जोकि निशा के पास थी. सिर्फ अच्छी शक्लसूरत कहना कम होगा, निशा तो एक खूबसूरत लड़की थी. उस में वह जबरदस्त चुंबकीय खिंचाव था जो पुरुषों को विचलित करता है. कहने वाले इस चुंबकीय खिंचाव को सैक्स अपील भी कहते हैं.

निशा उत्साह और जोश से भरी नौकरी की तलाश में निकली अवश्य, मगर जगह- जगह भटकने के बाद मायूस हो वापस लौटी. नौकरी का मिलना इतना आसान नहीं जितना लगता था. निशा 3 दिन नौकरी की तलाश में घर से निकली, मगर उस के हाथ सिर्फ निराशा ही लगी. इस पर मम्मी ने उस को फिर से समझाने की कोशिश की, ‘‘मैं फिर कहती हूं, यह नौकरीवौकरी की जिद छोड़ और आगे की पढ़ाई कर.’’ निशा अपनी मम्मी की कहां सुनने वाली थी. उस पर नौकरी का भूत सवार था. वैसे भी, बढ़े हुए कदमों को वापस खींचना अब निशा को अपनी हार की तरह लगता था. वह किसी भी कीमत पर अपने सपनों को पूरा करना चाहती थी. फिर एक दिन नौकरी की तलाश में निकली निशा, घर आई तो उस के चेहरे पर अपनी कामयाबी की चमक थी. निशा को नौकरी मिल गई थी. नौकरी के मिलने की खुशखबरी निशा ने सब से पहले अपनी मम्मी को सुनाई थी. निशा को नौकरी मिलने की खबर से मम्मी उतनी खुश नजर नहीं आईं जितना कि निशा उन्हें देखना चाहती थी.

मम्मी शायद इसलिए एकदम से अपनी खुशी जाहिर नहीं कर सकीं क्योंकि एक मां होने के नाते जवान बेटी की नौकरी को ले कर दूसरी तरह की कई चिंताएं थीं. इन चिंताओं को अपनी रंगीन कल्पनाओं में डूबी निशा नहीं समझ सकती थी. बेटी की नौकरी की खबर से खुश होने से पहले मम्मी कई बातों को ले कर अपनी तसल्ली कर लेना चाहती थीं.

‘‘किस जगह पर नौकरी मिली है तुम को?’’ मम्मी ने पूछा.

‘‘शहर के एक बहुत बड़े शेयरब्रोकर के दफ्तर में. वहां पहले भी बहुत सारी लड़कियां काम कर रही हैं.’’

‘‘तनख्वाह कितनी होगी?’’

‘‘शुरू में 20 हजार रुपए, बाद में बढ़ जाएगी,’’ इतराते हुए निशा ने कहा. नौकरी को ले कर मम्मी के ज्यादा सवाल पूछना निशा को अच्छा नहीं लग रहा था. तनख्वाह के बारे में सुन मम्मी का माथा जैसे ठनक गया. उन को सबकुछ असामान्य लग रहा था.  बेटी की योग्यता को देखते हुए 20 हजार रुपए तनख्वाह उन की नजर में बहुत ज्यादा थी. एक मां होने के नाते उन को इस में सब कुछ गलत ही गलत दिख रहा था. वे जानती थीं कि मात्र 7-8 हजार रुपए की नौकरी पाने के लिए बहुत से पढ़ेलिखे लोग इधरउधर धक्के खाते फिर रहे थे. ऐसे में अगर उन की इतनी कम पढ़ीलिखी लड़की को इतनी आसानी से 20 हजार रुपए माहवार की नौकरी मिल रही थी तो इस में कुछ ठीक नजर नहीं आता था. निशा की मम्मी ने दुनिया देखी थी, इसलिए उन को मालूम था कि अगर कोई किसी को उस की काबिलीयत और औकात से ज्यादा दे तो इस के पीछे कुछ मतलब होता है, और औरत जात के मामले में तो खासकर. लेकिन निशा की उम्र शायद अभी इस बात को समझने की नहीं थी. उजालों के पीछे की अंधेरी दुनिया के सच से वह अनजान थी. सोचने और विचार करने वाली बात यह थी कि मात्र दरजा 10+2 तक पढ़ी हुई अनुभवहीन लड़की को शुरुआत में ही कोई इतनी मोटी तनख्वाह कैसे दे सकता था. मम्मी को हर बात में सबकुछ गलत और संदेहप्रद लग रहा था, इसलिए उन्होंने निशा को उस नौकरी के लिए साफसाफ मना किया, ‘‘नहीं, मुझ को तुम्हारी यह नौकरी पसंद नहीं, इसलिए तुम वहां नहीं जाओगी.’’

मम्मी की बात को सुन निशा जैसे हैरानी में पड़ गई और बोली, ‘‘इस में नापसंद वाली कौन सी बात है, मम्मी? इतनी अच्छी सैलरी है. किसी प्राइवेट नौकरी में इतनी बड़ी सैलरी मिलना बहुत मुश्किल है.’’ ‘‘सैलरी इतनी बड़ी है, इस कारण ही तो मुझ को यह नौकरी नापसंद है,’’ मम्मी ने दोटूक लहजे में कहा.

‘‘सैलरी इतनी बड़ी है इसलिए तुम को यह नौकरी पसंद नहीं?’’

‘‘हां, क्योंकि मैं नहीं मानती सही माने में तुम इतनी बड़ी सैलरी पाने के काबिल हो. जो कोई भी तुम को इतनी सैलरी देने जा रहा है उस की मंशा में जरूर कुछ खोट होगी,’’ मम्मी ने अपने मन की बात निशा से कह दी. मम्मी की बात को निशा ने सुना तो गुस्से से उत्तेजित हो उठी, ‘‘आप पुरानी पीढ़ी के लोगों को न जाने क्यों हर अच्छी चीज में कुछ गलत ही नजर आता है. वक्त बदल चुका है मम्मी, अब काबिलीयत का पैमाना सर्टिफिकेटों का पुलिं?दा नहीं बल्कि इंसान की पर्सनैलिटी और काम करने की उस की क्षमता है.’’

‘‘मैं इस बात को नहीं मानती.’’

‘‘मानना न मानना तुम्हारी मरजी है मम्मी, मगर ऐसी बातों का खयाल कर के मैं इतनी अच्छी नौकरी को हाथ से जाने नहीं दे सकती. मैं बड़ी हो गई हूं, इसलिए अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेने का मुझे हक है,’’ निशा के तेवर बगावती थे. उस के बगावती तेवरों को देख मम्मी एकाएक जैसे ठिठक सी गईं, ‘‘एक मां होने के नाते तुम को समझाना मेरा फर्ज था, मगर लगता है तुम मेरी बात मानने के मूड में नहीं हो. अब इस मामले में तुम्हारे पापा ही तुम से कोई बात करेंगे.’’

‘‘मैं पापा को मना लूंगी,’’ निशा ने लापरवाही से कहा. मम्मी के विरोध को दरकिनार कर के निशा ने जैसा कहा, वैसे कर के भी दिखलाया और नौकरी पर जाने के लिए पापा को मना लिया. लेकिन मम्मी निशा से नाराज ही रहीं. मम्मी की नाराजगी की परवा नहीं कर के निशा नौकरी पर चली गई. एक नौकरी उस के कई सपनों को पूरा करने वाली थी, इसलिए वह रुकती तो कैसे रुकती. मगर उस को यह नहीं मालूम था कि कभीकभी अपने कुछ सपनों की अप्रत्याशित कीमत भी चुकानी पड़ती है. संजय शहर का एक नामी शेयरब्रोकर था. पौश इलाके में स्थित उस का एअरकंडीशंड औफिस काफी शानदार था और उस में कई लड़कियां काम करती थीं. शेयरब्रोकर संजय की उम्र तकरीबन 40 वर्ष थी. उस का सारा रहनसहन और जीवनशैली एकदम शाही थी. ऐसा क्यों नहीं होता, एक ब्रोकर के रूप में वह हर महीने लाखों की कमाई करता था. संजय के औफिस में एक नहीं, कई कंप्यूटर थे जिन के जरिए वह दुनियाभर के शेयर बाजारों के बारे में पलपल की खबर रखता था.

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