Crime- डर्टी फिल्मों का ‘राज’: राज कुंद्रा पोनोग्राफी केस- भाग 3

बाद में जब पत्नी ऊषा रानी खर्च में हाथ बंटाने के लिए चश्मे की दुकान में काम करने लगीं. तो धीरेधीरे पैसा जुड़ने लगा. उन के 4 बच्चे थे 3 बेटियां और इकलौता बेटा राज.

कुछ साल की मेहनत के बाद बाल कृष्ण कुंद्रा ने पैसे जोड़जोड़ कर बाद में एक ग्रौसरी की दुकान खोल ली. दुकान ठीक चल गई. जिस के मुनाफे से उन्होंने एक पोस्ट औफिस खरीद लिया. इंग्लैंड में पोस्ट औफिस खरीदा जा सकता है.

बाल कृष्ण एक व्यापार से दूसरे व्यापार में घुसने में ज्यादा देर नहीं लगाते थे. जैसे ही वह देखते कि इस धंधे में गिरावट आने के आसार हैं, वह उस धंधे को बेच दूसरे बिजनैस में चले जाते थे.

इसी बिजनैस सेंस और अपनी मेहनत की बदौलत बाल कृष्ण कुंद्रा कुछ सालों में एक सफल मिडिल क्लास बिजनैसमैन बन कर उभरे. बच्चों के जवानी में कदम रखने तक उन का परिवार आर्थिक रूप से समृद्ध हो चुका था.

लंदन से ही इकौनामिक्स  में ग्रैजुएशन करने के बाद जब राज 18 साल के हुए तब उस के पिता का रेस्तरां का बिजनैस था. पिता ने राज को अल्टीमेटम दे दिया कि या तो वह उन के रेस्तरां को संभाले या वो उन्हें 6 महीने में कुछ कर के दिखाए. राज सारी जिंदगी रेस्तरां में नहीं बिताना चाहता था.

लिहाजा पिता से बिजनैस करने के लिए 2000 यूरो ले कर वह हीरों का कारोबार करने के लिए दुबई चला गया. लेकिन दुबई में बात बनी नहीं. इसी बीच किसी काम से राज को नेपाल जाना पड़ा. वहां घूमते हुए राज को पश्मीना शाल नजर आए. वहां ये शाल बहुत कम कीमत में मिल रहे थे. लेकिन राज को पता था कि इन शालों की कीमत इस से बहुत ज्यादा है.

राज के पास जो रकम बची थी उस से तकरीबन 100 से ऊपर शाल खरीद लिए और लंदन वापस आ गया. लंदन आ कर बड़ेबड़े क्लोथिंग ब्रांड्स के दरवाजे खटखटाने लगा. इन ब्रांड्स को पश्मीना शाल बहुत पसंद आए और देखते ही देखते पश्मीना शाल इंग्लैंड में फैशन ट्रेंड बन गया.

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फिर क्या था नेपाल से सस्ते पश्मीना शाल ला कर लंदन में महंगी कीमत में बेचने का कुंद्रा का बिजनैस ऐसा फलाफूला कि उस साल उस के बिजनैस का टर्नओवर 20 मिलियन यूरो छू गया. वो भी सिर्फ शाल बेच कर.

3-4 साल बाद राज ने शाल का व्यापार छोड़ दिया और वापस दुबई जा कर हीरे की ट्रेडिंग का काम ही करने लगा. पिता की ही तरह राज भी किसी एक धंधे को जीवन भर नहीं करना चाहता था.

जब किसी धंधे में घाटा दिखाई देता तो वह दूसरा मुनाफे का धंधा शुरू कर देता. किस्मत अच्छी थी कि वह जिस कारोबार में हाथ भर डालता, वह चल पड़ता.

बाद में उस ने हीरों के अलावा रियल एस्टेट, स्टील स्क्रैप का भी काम शुरू कर दिया. इन दिनों वह 10 कंपनियों का मालिक था. लंदन में उस ने करीब 100 करोड़ की कीमत का एक पैलेसनुमा मेंशन बनवाया हुआ था.

2005 में राज कुंद्रा की शादी कविता नाम की युवती से हुई थी. इन दोनों की एक बेटी भी हुई. लेकिन मात्र 2 साल बाद 2007 में राज और कविता का तलाक हो गया और कोर्ट ने उन की बेटी की कस्टडी भी कविता को ही दे दी.

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हालांकि राज दुनिया के सामने हमेशा यही कहता रहा कि कविता से उस के तलाक की वजह उस की बहन रीना के पति से उस के अवैध संबध होना था. इसी कारण से उस की बहन ने भी अपने पति को तलाक दिया था.

लेकिन राज की पत्नी कविता ने कई बार मीडिया को बताया कि अभिनेत्री और मौडल शिल्पा शेट्टी के कारण राज कुंद्रा ने उसे तलाक दिया था.

साल 2007 की ही बात है जब शिल्पा शेट्टी के साथ राज कुंद्रा की नजदीकियां बढ़ने लगी थीं. राज के पास करोड़ों की दौलत तो थी लेकिन शोहरत के नाम पर तब तक उसे कोई ज्यादा लोग नहीं जानते थे. लेकिन शिल्पा से मिलने के बाद शोहरत भी उस के करीब आ गई.

शिल्पा और राज की मुलाकात भी कम फिल्मी नहीं है. जैसे इंडिया में लोग ‘बिग बौस’ के दीवाने हैं, वैसे ही इंग्लैंड के लोग इसी शो के संस्करण ‘बिग ब्रदर’ के दीवाने हैं. इसी शो में 2007 में शिल्पा शेट्टी ने शिरकत की थी और इसे जीता भी था.

जिस के बाद शिल्पा इंग्लैंड में खूब लोकप्रिय हो गईं. राज कुंद्रा के घर में भी ‘बिग ब्रदर’ बिना मिस किए देखा जाता था. राज भी देखता था और इंडियन कनेक्शन होने के नाते शिल्पा के लिए वोट भी किया करता था.

संयोग से शिल्पा के यूके में बिजनैस मैनेजर से राज की अच्छीखासी पहचान हो गई थी. शिल्पा शेट्टी के ‘बिग ब्रदर’ जीतने के बाद उन्हें बहुत सी यूके फिल्मों के औफर आ रहे थे. इसी सिलसिले में सलाह लेने के लिए शिल्पा के मैनेजर ने राज को एक दिन फोन किया.

राज ने उन से कहा कि अभी तो शिल्पा लोकप्रिय हैं, लेकिन जब तक फिल्म बन कर रिलीज होगी उन की इंग्लैंड में लोकप्रियता घट चुकी होगी. इसलिए फिल्म बनाने में घाटा होगा. उस से अच्छा है कि उन के नाम से परफ्यूम ब्रैंड लौंच किया जाए.

कुंद्रा ने शिल्पा शेट्टी के नाम से परफ्यूम ब्रांड लौंच करने का औफर भी दिया. जब मैनेजर ने औफर की जानकारी शिल्पा की मां को दी तो उन्होंने राज को बताया कि उन के पास ऐसा औफर पहले ही आ चुका है.

ये सुन कर राज ने उन्हें डबल पेमेंट का औफर दे दिया. राज को पता था कि यह घाटे की डील थी. लेकिन वह शिल्पा के साथ वक्त बिताना चाहता था. करीब आना चाहता था और दोस्ती करना चाहता था.

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इसलिए उस ने एक तरीके से दोगुने पैसे दे कर वक्त खरीद लिया था, दरअसल जब से  राज ने शिल्पा को बिग ब्रदर शो में देखा था तभी से उसे पहली नजर का शिल्पा से प्यार हो गया था.

खैर, राज जिस कारोबार में हाथ डालता था, वो खूब चलता था. शिल्पा के नाम से लौंच हुआ परफ्यूम भी खूब बिका. इंग्लैंड में परफ्यूम मार्केट में नंबर एक पर रहा. शिल्पा  को दोगुने पैसे दे कर की गई डील भी उस के लिए फायदेमंद ही रही.

एक तो परफ्यूम खूब बिका. दूसरा इस दौरान शिल्पा से इतनी घनिष्ठता हो गई कि शिल्पा भी उस के करीब आ गईं और 2009 में दोनों की शादी हो गई.

अगले भाग में पढ़ें- राज कुंद्रा हो या शिल्पा शेट्टी पोर्नोग्राफी रैकेट के अलावा पहले भी दोनों सुखिर्यो में रह चुके हैं

Crime Story: पीपीई किट में दफन हुई दोस्ती- भाग 2

27 जून, 2021 को परिजनों को जैसे ही पता चला कि सचिन की हत्या उस के कुछ नजदीकी दोस्तों ने कर दी है तो घर में कोहराम मच गया. परिजनों का रोरो कर बुरा हाल  हो गया. सचिन अपने घर का इकलौता चिराग था, जिसे दोस्तों ने ही बुझा दिया था.

पुलिस की कड़ी पूछताछ में सभी आरोपी टूट गए. सभी ने स्वीकार किया कि उन्होंने सचिन का अपहरण कर उस की हत्या कर दी और लाश का अंतिम संस्कार पीपीई किट पहना कर करने के बाद उस की अस्थियां भी यमुना में विसर्जित कर दीं.

28 जून, 2021 को प्रैस कौन्फ्रैंस में एसएसपी मुनिराज जी. ने इस सनसनीखेज हत्याकांड का परदाफाश कर दिया.

सचिन की मौत की पटकथा एक महीने पहले ही लिख ली गई थी. आरोपियों ने पहले ही तय कर रखा था कि सचिन का अपहरण कर हत्या कर देंगे. उस के बाद 2 करोड़ रुपए की फिरौती उस के पिता से वसूलेंगे.

पुलिस पूछताछ में हत्यारोपियों द्वारा सचिन के अपहरण और हत्या के बाद उस के शव का दाह संस्कार करने की जो कहानी सामने आई, वह बड़ी ही खौफनाक थी—

मूलरूप से बरहन कस्बे के गांव रूपधनु निवासी सुरेश चौहान आगरा के दयाल बाग क्षेत्र की जयराम बाग कालोनी में अपने परिवार के साथ रहते हैं. उन का गांव में ही एस.एस. आइस एंड कोल्ड स्टोरेज है.

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इस के अलावा वह आगरा और हाथरस में जिला पंचायत की ठेकेदारी भी करते हैं. लेखराज चौहान भी उन के गांव का ही है. दोनों ने एक साथ काम शुरू किया. दोनों ठेकेदारी भी साथ करते थे. उन दोनों के बीच पिछले 35 सालों से बिजनैस की साझेदारी चल रही थी. सुरेश चौहान का बेटा सचिन व लेखराज का बेटा हर्ष भी आपस में अच्छे दोस्त थे और एक साथ ही व्यापार व ठेकेदारी करते थे.

दयाल बाग क्षेत्र की कालोनी तुलसी विहार का रहने वाला सुमित असवानी बड़ा कारोबारी है. 2 साल पहले तक वह अपनी पत्नी व 2 बेटों के साथ चीन में रहता था. वहां उस का गारमेंट के आयात और निर्यात का व्यापार था. लेकिन 2019 में चीन में जब कोरोना का कहर शुरू हुआ तो वह परिवार सहित भारत आ गया.

दयालबाग में ही सौ फुटा रोड पर उस ने सीबीजेड नाम से स्नूकर और स्पोर्ट्स क्लब खोला. सुमित महंगी गाड़ी में चलता था. वहीं वह रोजाना दोस्तों के साथ पार्टी भी करता था. उस के क्लब में हर्ष और सचिन भी स्नूकर खेलने आया करते थे. इस दौरान सुमित की भी उन दोनों से गहरी दोस्ती हो गई.

बताया जाता है कि हर्ष चौहान के कहने पर सुमित असवानी ने धीरेधीरे सचिन चौहान को 40 लाख रूपए उधार दे दिए. जब उधारी चुकाने की बारी आई तो सचिन टालमटोल कर देता. जबकि उस के खर्चों में कोई कमी नहीं आ रही थी. कई बार तकादा करने पर भी सचिन ने रुपए नहीं लौटाए. यह बात सुमित असवानी को नागवार गुजरी. तब उस ने मध्यस्थ हर्ष चौहान पर भी पैसे दिलाने का दबाव बनाया, क्योंकि उस ने उसी के कहने पर सचिन को पैसे दिए थे.

हर्ष के कहने पर भी सचिन ने उधारी की रकम नहीं लौटाई. यह बात हर्ष को भी बुरी लगी. इस पर एक दिन सुमित असवानी ने हर्ष से कहा, ‘‘अब जैसा मैं कहूं तुम वैसा करना. इस के बदले में उसे भी एक करोड़ रुपए मिल जाएंगे.’’

रुपयों के लालच में हर्ष चौहान सुमित असवानी की बातों में आ गया.

दोनों ने मिल कर घटना से एक महीने पहले सचिन चौहान के अपहरण की योजना बनाई. फिर योजना के अनुसार, सुमित असवानी ने इस बीच सचिन चौहान से अपने मधुर संबंध बनाए रखे ताकि उसे किसी प्रकार का शक न हो.

इस योजना में सुमित असवानी ने रुपयों का लालच दे कर अपने मामा के बेटे हैप्पी खन्ना को तथा हैप्पी ने अपने दोस्त मनोज बंसल और उस के पड़ोसी रिंकू को भी शामिल कर लिया.

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उन्होंने यह भी तय कर लिया था कि अपहरण के बाद सचिन की हत्या कर के उस के पिता से जो 2 करोड़ रुपए की फिरौती वसूली जाएगी. उस में से एक करोड़ हर्ष चौहान को, 40 लाख सुमित असवानी को और बाकी पैसे अन्य भागीदारों में बांट दिए जाएंगे.

षडयंत्र के तहत उन्होंने अपनी योजना को अमलीजामा 21 जून को पहनाया. सुमित असवानी ने अपने मोबाइल से उस दिन सचिन चौहान को वाट्सऐप काल की. उस ने सचिन से कहा, ‘‘आज मस्त पार्टी का इंतजाम किया है. रशियन लड़कियां भी बुलाई हैं. बिना किसी को बताए, चुपचाप आ जा.’’

सचिन उस के जाल में फंस गया. घर पर बिना बताए वह पैदल ही निकल आया. वे लोग क्रेटा गाड़ी से उस के घर के पास पहुंच गए और सचिन को कार में बैठा लिया. रिंकू कार चला रहा था. मनोज बंसल उस के बगल में बैठा था. वहीं सुमित और हैप्पी पीछे की सीट पर बैठे थे. सचिन बीच में बैठ गया.

सुमित असवानी व साथी शाम 4 बजे पहले एक शराब की दुकान पर पहुंचे. वहां से उन्होंने शराब खरीदी. इस के बाद सभी दोस्त कार से शाम साढ़े 4 बजे सौ फुटा रोड होते हुए पोइया घाट पहुंचे. हैप्पी के दोस्त की बहन का यहां पर पानी का प्लांट था. इन दिनों वह प्लांट बंद पड़ा था. हैप्पी ने पार्टी के नाम पर प्लांट की चाबी पहले ही ले ली थी.

वहां पहुंच कर सभी पहली मंजिल पर बने कमरे में पहुंचे. शाम 5 बजे शराब पार्टी शुरू हुई. जब सचिन पर नशा चढ़ने लगा, तभी सभी ने सचिन को पकड़ लिया. जब तक वह कुछ समझ पाता, उन्होंने उस के मुंह पर टेप लगा कर चेहरा पौलीथिन से बांध दिया, जिस से सचिन की सांस घुटने लगी. उसी समय सुमित असवानी उस के ऊपर बैठ गया और उस का गला दबा कर हत्या कर दी. इस बीच अन्य साथी उस के हाथपैर पकड़े रहे.

सचिन की हत्या के बाद उस के शव का अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया गया. इस के लिए शातिर दिमाग सुमित असवानी ने पीपीई किट में लाश को श्मशान घाट पर ले जाने का आइडिया दिया ताकि पहचान न हो सके और कोई उन के पास भी न आए.

इस के लिए कमला नगर के एक मैडिकल स्टोर से एक पीपीई किट उन्होंने यह कह कर खरीदी कि एक कोरोना मरीज के अंतिम संस्कार के लिए चाहिए. रिंकू शव को बल्केश्वर घाट पर ले जाने के लिए एक मारुति वैन ले आया.

सचिन के शव को पीपीई किट में डालने के बाद वह बल्केश्वर घाट पर रात साढ़े 8 बजे पहुंचे. वहां उन्होंने बल्केश्वर मोक्षधाम समिति की रसीद कटवाई व अंतिम संस्कार का सामान खरीदा. उन्होंने मृतक का नाम रवि वर्मा और पता 12ए, सरयू विहार, कमला नगर लिखाया था.

अगले भाग में पढ़ें- सबूत मिटाने के लिए अंतिम संस्कार भी पीपीई किट में कर दिया

Crime Story: कुटीर उद्दोग जैसा बन गया सेक्सटॉर्शन- भाग 1

खाने की टेबल पर बैठे जितेंद्र सिंह  फेसबुक मैसेंजर पर आई उस वीडियो काल के बाद अचानक असहज हो गए. क्योंकि सामने बेटी, बेटा, बहू और पत्नी, पोता और पोती सभी डाइनिंग टेबल पर मौजूद थे. उन्होंने फोन को झटपट साइलैंट मोड पर किया. प्लेट में रखे खाने के अंतिम 2 कौर झटपट मुंह में डाले और पानी पी कर झट से उन्हें गले से नीचे उतार कर बोले, ‘‘तुम लोग खाना खाओ, मेरा बाहर से कोई अर्जेंट काल है, उसे अटेंड करता हूं.’’

वह उठे और तेजी के साथ अपने रूम की तरफ बढ़ गए. वे कमरे में घुसते ही सीधे अटैच्ड बाथरूम में गए. फेसबुक की मैसेंजर काल डिस्कनेक्ट हो कर दोबारा शुरू हो चुकी थी. बाथरूम में घुसते ही उन्होंने वीडियो काल अटैंड की.

सामने स्क्रीन पर नजर आ रही खूबसूरत हसीना से फुसफुसाते हुए बोले, ‘‘सौरी जानू… डाइनिंग टेबल पर था और पूरी फैमिली सामने बैठी थी इसलिए काल अटैंड नहीं की.’’

सामने खड़ी हसीना ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं जानेमन, लेकिन अब अगर अकेले हो तो जल्दी से कपड़े उतारो और मेरी प्यास बुझा दो… बहुत देर से तड़प रही हूं… देखो मेरे बदन से कपड़े कैसे उतर रहे हैं… जल्दी करो… मेरी प्यास बुझा दो…’’

और कहते हुए फोन की स्क्रीन पर नजर आने वाली लड़की ने एकएक कर अपने कपड़े उतार कर निर्वस्त्र बदन को इस तरह सहलाना शुरू किया कि उत्तेजना के चरम पर पहुंच चुके जितेंद्र सिंह ने झटपट अपने कपड़े उतार कर अपने अंगों से खेलना शुरू कर दिया.

दूसरी तरफ वीडियो काल पर मौजूद युवती अपने बदन को सहलाते हुए ऐसी कामोत्तेजक आवाजें निकाल कर जितेंद्र को उत्तेजित कर रही थी कि कुछ ही देर में उन का शरीर शिथिल और ठंडा पड़ गया.

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फेसबुक पर 4-5 दिन पहले ही जितेंद्र सिंह की दोस्त बनी रुचिका नाम की इस प्रेमिका ने लगातार दूसरे दिन उन्हें उम्र के उस पड़ाव पर चरम सुख दे कर अपना दीवाना बना लिया था.

60 की उम्र पार कर चुके जितेंद्र सिंह के जीवन में रुचिका कुछ रोज पहले अचानक बहार बन कर आई थी. अचानक चंद रोज पहले फेसबुक पर रुचिका ने उन के मैसेंजर बौक्स में हाय लिख कर दोस्ती करने का निमंत्रण दिया.

रुचिका के प्रोफाइल में उस की निहायत खूबसूरत तसवीरों को देखने के बाद जितेंद्र  खुद को उस की दोस्ती कबूल करने से रोक नहीं सके. रुचिका को दोस्ती का प्रत्युत्तर मिलते ही फेसबुक मैसेंजर पर उन की दोस्ती की चैट का सिलसिला शुरू हो गया. दिन में कई बार बातें होतीं.

रुचिका ने खुद को नौकरीपेशा और हौस्टल में रहने वाली अविवाहित लड़की बताया. 1-2 दिन में जितेंद्र रुचिका से इतनी करीबी महसूस करने लगे कि अपनी फोटो उस के मैसेंजर में भेजने और उस की फोटो मांगने का सिलसिला शुरू हो गया.

2 दिन बाद ही दोनों के बीच वाट्सऐप नंबरों का भी आदानप्रदान शुरू हो गया. इस के बाद शुरू हुआ देर रात तक चैटिंग और वीडियो काल करने का सिलसिला और ऐसी कामुक बातों का दौर जिस ने रहेसहे फासलों की दूरी भी पाट दी.

धीरेधीरे खुलते गए जितेंद्र सिंह

चौथे दिन चैट करते समय रुचिका ने जितेंद्र से अचानक उन के प्राइवेट पार्ट की वीडियो दिखाने की फरमाइश की तो उन्होंने रुचिका से पहले अपना बदन दिखाने को कहा.

रुचिका ने फरमाइश पूरी कर दी तो बेकाबू हुए जितेंद्र ने भी बाथरूम में जा कर वीडियो काल से उसे भी खुद को आदमजात स्थिति में दिखा दिया.

अगले दिन जब वे खाने की टेबल पर थे तो इसी बीच मैसेंजर पर रुचिका का प्रणय निवेदन आया कि वह उन का देखना चाहती है. इसी के बाद जितेंद्र जल्दी से खाना खत्म कर के बाथरूम में पहुंचे और वहां वही सब हुआ, जो पिछली रात को हुआ था.

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दरअसल, पिछले चंद रोज में रुचिका फेसबुक से हुई दोस्ती के बाद उन की जिंदगी में इतनी तेजी से समा गई थी कि वह उन की सोच पर हावी हो गई थी. अपनी उम्र, समाज की ऊंचनीच और भलेबुरे का उन्हें कोई खयाल ही नहीं रहा.

अहसास तो उन्हें तब हुआ जब अचानक उन के फेसबुक वाल पर उन की कुछ न्यूड फोटो किसी ने अपलोड कर दीं. चूंकि जितेंद्र  सिंह सोशल मीडिया पर ज्यादा ही एक्टिव रहते थे, लिहाजा उन्होंने जैसे ही वह अश्लील फोटो देखी तो उन्हें डिलीट कर अपनी फेसबुक वाल को ब्लौक कर दिया ताकि उस पर कोई कुछ भी अपलोड न कर सके. शुक्र था कि अपलोड होने के तुरंत बाद उन्होंने इन्हें डिलीट कर दिया था.

अचानक वह परेशान हो उठे. कहीं उन की ये तसवीरें फेसबुक के किसी फ्रैंड ने देख तो नहीं लीं… यही सोचतेसोचते वह डिप्रेशन में चले गए. बेटियां जवान और शादीशुदा हों और घर में पत्नी के अलावा बेटा, बहू व पोतेपोती हों तो उम्र के इस पड़ाव में बदनामी के डर से परेशान होना लाजिमी होता है.

शुरू हुई ब्लैकमेलिंग

इस घटनाक्रम की परेशानी अभी कम नहीं हुई थी कि उन के वाट्सऐप पर रुचिका की वाइस काल आई, ‘‘जितेंद्रजी, बहुत मजे ले लिए एक मजबूर लड़की से, अब जेल जाने के लिए तैयार हो जाओ… मैं तुम को पूरी दुनिया में इतना बदनाम कर दूंगी कि कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रहोगे.’’

‘‘यार, ये तुम कैसी बातें कर रही हो… हमारे बीच जो कुछ हुआ है वो तो अंडरस्टैंडिंग से हुआ है. और तुम ने मुझ से बात किए बिना मेरी फोटो मेरे फेसबुक पर क्यों डाली?’’ जितेंद्र  सिंह अचानक रुचिका का फोन आने के बाद सहम गए और गिड़गिड़ाते हुए बोले.

‘‘चलो तब बात नहीं की थी तो अब बात कर लेते हैं… बताइए कितना हरजाना देंगे अपनी रुसवाई से बचने के लिए?’’ रुचिका ने अचानक किसी शातिर कारोबारी की तरह बात करनी शुरू कर दी.

‘‘यार, ये तुम कैसी बात कर रही हो… हम दोनों दोस्त हैं. फिर यह हरजाने वाली बात कहां से आ गई.’’ अचानक जितेंद्र रुआंसे हो गए.

उन्हें अपना पूरा अस्तित्व डूबता हुआ सा नजर आने लगा. वह समझ गए कि एक साजिश के तहत वह एक ब्लैकमेलर लड़की के चंगुल में फंस चुके हैं.

उन्होंने समझदारी और चतुराई से काम लिया और बोले, ‘‘देखो यार, मैं कोई अमीर आदमी नहीं हूं और तुम्हारे पास अगर मेरे खिलाफ सबूत हैं तो मेरे पास भी इस बात के सबूत हैं कि तुम ने मुझ से दोस्ती की शुरुआत कर मुझे फंसाया था. तुम शायद मुझे जानती नहीं हो, मेरे कौन्टैक्ट पुलिस के कई अफसरों से हैं.’’

लेकिन साथ ही उन्होंने उसे शांत करने के लिए यह भी बोला, ‘‘हां, अगर तुम कहोगी तो मैं तुम्हारी थोड़ीबहुत हेल्प कर दूंगा. लेकिन मुझे थोड़ा वक्त चाहिए.’’

जितेंद्र सिंह आगे कुछ कह पाते उस से पहले ही रुचिका ने धमकी भरे अंदाज में कहा, ‘‘देख बे ठरकी… तेरे पास केवल 2 दिन का वक्त है 5 लाख रुपए का इंतजाम कर ले, नहीं तो पूरी दुनिया देखेगी कि तेरे जैसे बुड्ढे किस तरह मासूम लड़कियों से फेसबुक पर दोस्ती कर के अपनी ठरक मिटाते हैं. बाकी का हिसाब तुझ से पुलिस अपने आप ले लेगी. मैं बाद में फोन करूंगी. जल्दी से पैसे का इंतजाम कर.’’

फोन कटने के बाद घबराहट में जितेंद्र  की सांसें लोहार की धौंकनी की तरह चलने लगीं.

अगले भाग में पढ़ें- जितेंद्र सिंह ने भी बदले तेवर

Crime Story: पुलिस वाले की खूनी मोहब्बत- भाग 3

संयोग ऐसा रहा कि पूजा और स्वीटी करीब 3 साल पहले एक ही समय गर्भवती हुईं. बाद में स्वीटी ने बेटे को जन्म दिया और पूजा ने बेटी को.

बच्चा होने के कई दिन बाद स्वीटी को अजय की दूसरी शादी के बारे में पता चला. इस बात पर स्वीटी का अजय से झगड़ा होने लगा. दिन पर दिन झगड़ा बढ़ता गया. अजय 2 नावों की सवारी कर रहा था. वह न तो स्वीटी को छोड़ना चाहता था और न ही पूजा को.

स्वीटी से रोज होने वाले झगड़े को देखते हुए अजय ने उस का काम तमाम करने पर विचार किया. किरीट सिंह जड़ेजा अजय का दोस्त था. किरीट के पास पैसा भी था और राजनीतिक प्रभाव भी.

भरूच जिले के अटाली गांव में वह एक होटल बनवा रहा था, लेकिन उस का निर्माण कार्य किसी वजह से बीच में ही अधूरा छोड़ दिया था.

गला घोंट कर की थी स्वीटी की हत्या

एक दिन अजय ने किरीट से एक लाश ठिकाने लगाने के बारे में बात की. अजय ने किरीट को यह नहीं बताया कि लाश किस की होगी.

उस ने बताया कि परिवार में एक महिला के गैर व्यक्ति से संबंध हो गए. इस से वह महिला गर्भवती हो गई है. परिवार के लोग उसे मार कर लाश ठिकाने लगाना चाहते हैं. किरीट सिंह ने दोस्ती में अजय से इस काम में सहयोग करने का वादा किया.

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4 जून, 2021 की रात अजय जब घर पहुंचा, तो पूजा से शादी को ले कर स्वीटी से उस का फिर विवाद हुआ. रोजाना के झगड़े से तंग आ कर अजय ने उसे ठिकाने लगाने का फैसला किया.

वह काफी देर तक इस पर सोचता रहा. स्वीटी जब सो गई तो आधी रात बाद उस ने गला घोंट कर उस को मार डाला.

रात भर वह अपने फ्लैट पर ही रहा. सुबह नहाधो कर तैयार हुआ. उस ने अपने दोस्त किरीट सिंह को फोन कर कहा कि परिवार के लोगों ने रिश्ते की बहन को मार डाला है, अब लाश ठिकाने लगानी है.

किरीट ने इस काम में सहयोग करने का वादा करते हुए कहा कि वह लाश को अटाली गांव में उस के निर्माणाधीन होटल के पिछवाड़े ले जा कर ठिकाने लगा दे.

इस के बाद अजय ने अपने साले जयदीप को फोन कर कहा कि स्वीटी रात एक बजे से सुबह साढ़े 8 बजे के बीच घर से बिना बताए कहीं चली गई है. उस समय लाश घर में थी.

बाद में अजय स्वीटी की लाश को एक एसयूवी कार में रख कर अटाली गांव ले गया और दोस्त किरीट सिंह के निर्माणाधीन होटल के पिछवाड़े रख कर जला दी. इस के लिए उस ने कुछ लकडि़यां और कैमिकल का भी इंतजाम कर लिया था. लाश जलाने के बाद वह वापस अपने घर आ गया. इस के बाद की कहानी आप पढ़ चुके हैं.

पुलिस ने स्वीटी की हत्या के आरोप में अजय और किरीट सिंह जडेजा को रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने

27 जुलाई को स्वीटी की हत्या से ले कर उस की लाश जलाने तक की घटना का रीक्रिएशन किया.

बाद में पुलिस ने अटाली में निर्माणाधीन बिल्डिंग के पिछवाड़े से स्वीटी की अंगुलियों की हड्डियां, जला हुआ मंगलसूत्र, हाथ का ब्रैसलेट, अंगूठी आदि बरामद किए.

परिवार वालों ने मंगलसूत्र स्वीटी का होने की पुष्टि की. पुरानी तसवीरों में भी स्वीटी वही मंगलसूत्र पहने हुए थी.

पुलिस इसे अहम सबूत मान रही है. अजय के पौलीग्राफ टेस्ट और एसडीएस परीक्षण की रिपोर्ट भी पौजिटिव आई है.

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अहम सबूत मिले पुलिस को

रिमांड अवधि पूरी होने पर पुलिस ने अदालत के आदेश पर अजय और किरीट सिंह को न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया. स्वीटी का बेटा अंश पूजा के पास था. सरकार ने भी पुलिस इंसपेक्टर अजय देसाई को सस्पेंड कर दिया.

अजय भले ही पुलिस इंसपेक्टर था. वह 48 दिनों तक पुलिस को छकाता रहा, लेकिन पुरानी कहावत आज भी सच है कि अपराधी कितना भी शातिर हो, वह कोई न कोई सबूत जरूर छोड़ता है. अजय के साथ भी ऐसा ही हुआ. आखिर वह गिरफ्तार हुआ.

अजय एक म्यान में दो तलवारें रखना चाहता था. यह न तो सामाजिक नजरिए से उचित था और न ही उस की सरकारी नौकरी के लिहाज से. उस ने पूजा से शादी करने की बात स्वीटी को नहीं बता कर अलग सामाजिक अपराध किया.

कोई भी महिला अपने पति का बंटवारा नहीं चाहती. पति की दो नावों की सवारी में पूजा बेमौत मारी गई. 2 शादियां करने के बाद भी उसे कफन तक नसीब नहीं हुआ और स्वीटी के दोनों बेटे भी मां की ममता से महरूम हो गए.

Crime Story in Hindi: बहुरुपिया- भाग 1: दोस्ती की आड़ में क्या थे हर्ष के खतरनाक मंसूबे?

हर्ष से मेरी मुलाकात एक आर्ट गैलरी में हुई थी. 5 मिनट की उस मुलाकात में बिजनैस कार्ड्स का आदानप्रदान भी हो गया.

‘‘मेरी खुद की वैबसाइट भी है, जिस में मैं ने अपनी सारी पेंटिंग्स की तसवीरें डाल रखी हैं, उन के विक्रय मूल्य के साथ,’’ मैं ने अपने बिजनैस कार्ड पर अपनी वैबसाइट के लिंक पर उंगली रखते हुए हर्ष से कहा.

‘‘जी, बिलकुल, मैं जरूर आप की पेंटिंग देखूंगा. फिर आप को टैक्स मैसेज भेज कर फीडबैक भी दे दूंगा. आर्ट गैलरी तो मैं अपनी जिंदगी में बहुत बार गया हूं पर आप के जैसी कलाकार से कभी नहीं मिला. योर ऐवरी पेंटिंग इज सेइंग थाउजैंड वर्ड्स,’’ हर्ष ने मेरी पेंटिंग पर गहरी नजर डालते हुए कहा.

‘‘हर्ष आप से मिल कर बड़ा हर्ष हुआ, स्टे इन टच,’’ मैं ने उस वक्त बड़े हर्ष के साथ हर्ष से कहा था. इस संक्षिप्त मुलाकात में मुझे वह कला का अद्वितीय पुजारी लगा था.

बात तो 5 मिनट ही हुई थी पर मैं आधे घंटे से दूर से उस की गतिविधियां देख रही थी. वह हर पेंटिंग के पास रुकरुक कर समय दे रहा था, साथ ही एक छोटी सी डायरी में कुछ नोट्स भी लेता जा रहा था.

‘लगता है यह कोई बड़ा कलापारखी है,’ उस वक्त उसे देख कर मैं ने सोचा था.

हर्ष से हुई इस मुलाकात को 6 महीने बीत चुके थे. इस दौरान न उस ने मुझ से कौंटैक्ट करने की कोशिश की न ही मैं ने उस से. मेरी वैबसाइट से मेरी पेंटिंग्स की बिक्री न के बराबर हो रही थी. मैं हर तरह से उन के प्रचार की कोशिश कर रही थी. मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपनी वैबसाइट का लिंक भेज रही थी. मुझे मतलब नहीं था कि वे मुझे ज्यादा जानते हैं या कम. मुझे तो बस एक जनून था कला जगत में एक पहचान बनाने और नाम कमाने का. इस जनून के चलते मैं ने एक टैक्स मैसेज हर्ष को भी भेज दिया.

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‘‘क्या आज मेरे साथ कौफी पीने आ सकती हो?’’ तत्काल ही उस का जवाब आया.

मेरी हैरानी का ठिकाना नहीं था. 5 मिनट की संक्षिप्त मुलाकात के बाद कोई 6 महीने तक गायब था और जब किसी वजह से मैं ने उसे एक मैसेज भेजा तो सीधे मेरे साथ कौफी पीना चाहता है.

‘अजीब दुनिया है यह,’ मैं मन ही भुनभुनाई और फिर टैक्स मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया. 2 दिन यों ही आने वाली कला प्रदर्शनी की तैयारी में निकल गए और बाद में भी मैं हर्ष के मैसेज को भुला कर अपने स्तर पर अपनी कला को बढ़ावा देने में जुटी रही. कुछ दिनों के बाद अचानक उस का फोन आया फिर से मेरे साथ कौफी पीने के आग्रह के साथ.

‘‘न तुम मुझे जानते हो और न ही मैं तुम्हें, फिर यह बेवजह कौफी पीने का क्या मतलब है? मैं ने तुम्हें किसी वजह से एक मैसेज भेज दिया, इस का यह अर्थ बिलकुल नहीं है कि मैं फालतू में तुम्हारे साथ टाइम पास करने के लिए इच्छुक हूं,’’ मेरा दो टूक जवाब था.

‘‘मैं ने तुम्हारी कला और उस की गहराई को समझा है और उस जरीए से तुम्हें भी जाना है. मैं तुम्हारी उतनी ही इज्जत करता हूं जितनी दुनिया एमएफ हुसैन की करती है. मैं ने जब तुम्हारा नाम पहली बार अपने मोबाइल में डाला था तो उस के आगे पेंटर सफिक्स लिख कर डाला था. अभी भी तुम मानो या न मानो एक दिन तुम कला के क्षेत्र में एमएफ हुसैन को मात दे दोगी. रही बात हमारी जानपहचान की तो वह तो बढ़ाने से ही बढ़ेगी न?’’

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अपनी तारीफ सुनना किसे अच्छा नहीं लगता? हर्ष के शब्दों का मुझ पर असर होने लगा. अपनी तारीफों के सम्मोहन में जकड़ी हुई मैं अब उस से घंटों फोन पर बातें करती. हर बार वह मेरी और मेरी कला की जम कर प्रशंसा करता. उस की बातें मेरे ख्वाबों को पंख दे रही थीं. मन में बरसों से पड़े शोहरत की चाहत के बीज में अंकुर फूटने लगा था.

‘‘मैं तुम्हारी इतनी इज्जत करता हूं, जितनी कि हिंदुस्तान के सवा करोड़ हिंदुस्तानी मिल कर भी नहीं कर सकते. महीनों हो गए तुम्हें कौफी पर आने के लिए कहतेकहते… इतने पर तो कोई पत्थर भी चला आता,’’ एक दिन हर्ष ने कहा.

Manohar Kahaniya: पुलिस अधिकारी का हनीट्रैप गैंग- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

35साल की उम्र, गोरा रंग, तीखे नाकनक्श और गठीले बदन की सुनीता ठाकुर भोपाल के औद्योगिक क्षेत्र मंडीदीप की निवासी थी. अपनी अदाओं से वह लड़कों को दीवाना बना देती थी. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही उस के हुस्न के चर्चे मंडीदीप की गलियों में होने लगे थे.

सुनीता के रंगढंग देख कर उस के पिता मानसिंह ठाकुर ने उस की शादी होशंगाबाद के पास के गांव में रहने वाले गणेश राजपूत से कर दी. सुनीता और गणेश के 3 बेटे और एक बेटी थी.

सन 2013 में सुनीता अपने पति गणेश और बच्चों के साथ गांव से आ कर होशंगाबाद के बालागंज में किराए के मकान में रहने लगी. उस की खूबसूरती देख कर कोई यकीन नहीं कर सकता था कि सुनीता 4 बच्चों की मां भी है.

गणेश की माली हालत अच्छी नहीं थी, मगर सुनीता हालात से समझौता करने वाली लड़की नहीं थी. फैशनपरस्त और मौडर्न खयालों की बिंदास युवती को घरपरिवार की बंदिशें ज्यादा दिनों तक रोक नहीं पाईं और एक दिन पति का घर छोड़ वह वापस मंडीदीप में आ कर रहने लगी.

सुनीता अब तितली की भांति तरहतरह के फूलों की महक लेने लगी. उस ने अपनी ख्वाहिशें पूरी करने के लिए लोगों को अपने प्रेमजाल में फंसा कर ब्लैकमेलिंग का धंधा शुरू कर दिया था. देखते ही देखते वह कार में चलने लगी और उस के हाथों में महंगे स्मार्टफोन रहने लगे.

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सुनीता पहले फेसबुक और सोशल मीडिया के जरिए होशंगाबाद जिले के नौजवानों से दोस्ती करती थी.

नजदीकियां बढ़ने पर वह दोस्तों को होटल में ले जा कर उन के साथ अंतरंग संबंध बना कर मोबाइल फोन में वीडियो बना लेती. फिर ब्लैकमेलिंग का खेल खेल कर युवकों से पैसा वसूल करने लगी.

उस ने इसी तरह से होशंगाबाद जिले के सोहागपुर के एक युवा व्यापारी विनोद रघुवंशी को भी फांस लिया था. 17 मार्च, 2021 की बात है. विनोद रघुवंशी के मोबाइल पर सुनीता ने फोन किया, ‘‘विनोदजी, मुझे आप से जरूरी बात करनी है और आप फोन तक नहीं उठा रहे.’’

‘‘हां बताइए, क्या कहना चाहती हैं आप?’’ विनोद रघुवंशी ने पूछा.

‘‘देखो, इस समय मेरे पास 2-3 लड़कियां हैं. एक रात के 2 हजार रुपए लगेंगे.’’ सुनीता बोली.

विनोद ने सुनीता को डांटते हुए कहा, ‘‘नहीं, मुझे किसी की जरूरत नहीं है, अब मुझे कभी फोन मत करना.’’ विनोद ने फोन कट कर के उस के नंबर को ब्लौक लिस्ट में डाल दिया.

सुनीता ने फांसा विनोद रघुवंशी को

सुनीता तो जैसे विनोद के पीछे ही पड़ गई थी. 21 मार्च को सुनीता ठाकुर सोहागपुर पहुंची और दूसरे नंबर से विनोद रघुवंशी को फोन कर के उस से एक बार मिलने को कहा. सुनीता के बारबार के फोन काल से परेशान हो कर विनोद ने उस से मिलने का फैसला किया और सुनीता से मिलने पहुंच गया. सोहागपुर में नए थाने के सामने एक कार में सुनीता ठाकुर के साथ एक महिला और एक युवक भी था.

जब विनोद रघुवंशी सुनीता ठाकुर से मिला तो सुनीता ने कहा, ‘‘देखो, मेरे पास जो 2 लड़कियां हैं, वो एकदम मस्त हैं. उन से मिलोगे तो खुश हो जाओगे. चाहो तो अभी उन्हें हमारे साथ चल कर देख सकते हो.’’

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‘‘मुझे इस की कोई जरूरत नहीं है.’’ विनोद ने कहा.

सुनीता विनोद पर काफी दबाब बनाती रही, लेकिन उस ने उस की एक न सुनी. उस से जल्द ही पीछा छुड़ा कर वह अपने खेत की तरफ चला गया.

दूसरे दिन 22 मार्च को सुनीता ने दोबारा किसी नए नंबर से विनोद को फोन किया और धमकी दे क र कहने लगी, ‘‘मैं तुम्हारे घर पुलिस ले कर आ रही हूं.’’

यह सुन कर विनोद चौंक गया, ‘‘पुलिस… मैं ने ऐसा क्या कर दिया?’’

विनोद के इतना कहने के बाद सुनीता ने उसे वाट्सऐप से एक शिकायती पत्र की कौपी भेजी. उस पर 22 मार्च की ही होशंगाबाद के सिटी थाने की मोहर भी लगी हुई थी.

थानाप्रभारी को दिए गए उस पत्र में सुनीता ठाकुर ने आरोप लगाया था कि विनोद रघुवंशी ने मेरे साथ शादी का झांसा दे कर 4 दिन

तक गलत काम किया और पचमढ़ी घुमाने ले गया था.

इसे देख कर विनोद डर गया. उस ने सुनीता को फोन लगा कर कहा, ‘‘मैडम, मैं ने ऐसा क्या कर दिया जो तुम ने मेरे खिलाफ पुलिस में यह शिकायत की है.’’

‘‘यह बात तो तुम कोर्ट में कहना. पुलिस जब तुम्हें कूट कर जेल भेज देगी तब कोर्ट में तुम्हें अपनी बात कहने का मौका मिलेगा.’’ सुनीता ने धमकाया.

‘‘मैडम, इस शिकायत को वापस ले लो और इस के बदले में जो चाहती हो बता दो.’’ विनोद गिड़गिड़ाते हुए बोला.

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‘‘अगर तुम पुलिसकचहरी के चक्कर में नहीं पड़ना चाहते तो 2 लाख रुपए दे दो.’’

‘‘2 लाख तो अभी मेरे पास नहीं हैं. अभी मेरे पास 20-25 हजार हैं,’’ वह बोला.

‘‘ठीक है, अभी यह दे दो. बाकी बाद में दे देना.’’ सुनीता ने कहा.

30 मार्च को विनोद सुनीता ठाकुर के बताए स्थान पर पैसे पहुंचाने के लिए सोहागपुर से होशंगाबाद चला गया. वहां पहुंच कर उस ने सुनीता ठाकुर को फोन किया, तो उस का फोन बंद मिला.

काफी देर बाद भी जब उस का फोन नहीं मिला तो विनोद वापस लौट आया. लेकिन उस के मन में सुनीता की उस शिकायत का डर बैठा हुआ था.

रुपए के लेनदेन से मामला हुआ उजागर

इस के बाद वह डरी हुई हालत में विधायक सीताशरण शर्मा से मिलने पहुंच गया. विनोद ने अपने साथ हुई ब्लैकमेलिंग की पूरी कहानी विधायक को बताई. विधायक सीताशरण शर्मा ने विनोद से पूछा, ‘‘तुम ने उस महिला के साथ कोई गलत काम तो नहीं किया?’’

अगले भाग में पढ़ें- वीडियो से हुई ब्लैकमेलिंग

Satyakatha: रिश्तों का कत्ल- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

7 जून को पुलिस को मृतक शैलेंद्र की काल डिटेल्स मिल गई थी. विवेचनाधिकारी सिंह ने काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो उस में एक नंबर ऐसा भी मिला, जिस से काफी बातचीत हुई थी. पुलिस ने मृतक की पत्नी से उस नंबर के बारे में जानकारी मांगी तो वह नंबर मृतक के दामाद पवन कुमार का निकला.

विवेचनाधिकारी सिंह की नजरों में पता नहीं क्यों पवन संदिग्ध रूप में चढ़ गया था. फिर उन्होंने पवन के बारे में सरिता देवी से जानकारी ली. सास सरिता देवी ने उन्हें दामाद पवन के बारे में जो जानकारी दी, सुन कर वह चौंक गए थे.

पता चला कि पवन ने अपनी पत्नी सृष्टि के होते हुए अपने बड़े साले पीयूष की पत्नी निभा से प्रेम विवाह कर लिया था. यही नहीं, एक मोटी रकम को ले कर ससुर शैलेंद्र और दामाद पवन के बीच कई महीनों से रस्साकशी चल रही थी.

दरअसल, बिहारशरीफ रेलवे स्टेशन के पास एक 5 कट्ठे की जमीन थी. वह जमीन शैलेंद्र कुमार को पसंद आ गई थी. दामाद पवन ने उन्हें वह जमीन दिलवाने की हामी भी भर दी थी. दामाद के जरिए 60 लाख में जमीन का सौदा भी पक्का हो गया था.

जमीन मालिक को कुछ पैसे एडवांस दिए जा चुके थे और 17 जून को जमीन का बैनामा छोटे बेटे मनीष के नाम होना तय हो गया था. इसी दौरान शैलेंद्र की हत्या हो गई.

खैर, पुलिस ने पवन के मोबाइल नंबर को सर्विलांस में लगा दिया और मुखबिरों को भी उस के पीछे लगा दिया ताकि उस की गतिविधियों के बारे में सहीसही पता लग सके.

अंतत: पवन वह गलती कर ही बैठा, जिस की संभावना पुलिस को बनी हुई थी. उस गलती के बिना पर पुलिस ने पवन को उस के रामकृष्णनगर स्थित घर से धर दबोचा और उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई.

पुलिस ने पवन से कड़ाई से पूछताछ करनी शुरू की तो पवन एकदम से टूट गया और ससुर की हत्या का जुर्म कुबूल करते हुए कहा, ‘‘हां सर, मैं ने ही सुपारी दे कर ससुर की हत्या कराई थी. मुझे माफ कर दीजिए सर, मैं पैसों के लालच में अंधा हो गया था.’’ कह कर वह रोने लगा.

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‘‘तुम्हारे इस काम में और कौनकौन थे या फिर तुम ने यह सब अकेले ही किया?’’ विवेचनाधिकारी मनोज कुमार ने सवाल किया.

‘‘साहब, मेरे इस काम में मेरी दूसरी पत्नी निभा, छोटा भाई टिंकू और शूटर अमर शामिल थे.’’ उस ने बताया.

‘‘ठीक है तो ले चलो सभी गुनहगारों के पास.’’

इस के बाद पुलिस पवन को कस्टडी में ले कर रामकृष्णनगर पहुंची और उस की पत्नी निभा तथा छोटे भाई टिंकू को गिरफ्तार कर लिया. उसी दिन कंकड़बाग के अशोकनगर कालोनी से शूटर अमर को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

तीनों आरोपियों ने भी अपने जुर्म कुबूल कर लिए. उस के बाद इस हत्या की जो कहानी सामने आई, बेहद चौंकाने वाली थी, जहां पैसों के लालच में अंधे हुए दामाद ने कई रिश्तों का कत्ल कर दिया था. पढ़ते हैं इस कहानी को—

60 वर्षीय शैलेंद्र कुमार सिन्हा मूलत: बिहार के नालंदा जिले के गड़पर प्रोफेसर कालोनी के रहने वाले थे. उन के परिवार में कुल 5 सदस्य थे. पत्नी सरिता देवी और 2 बेटे पीयूष व मनीष और एक बेटी सृष्टि. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी.

भौतिक सुखसुविधाओं की ऐसी कोई चीज नहीं थी, जो उन के घर में मौजूद न हो. उस पर से वह खुद भारतीय स्टेट बैंक के मैनेजर थे. उन की अच्छीभली तनख्वाह थी, इसलिए जिंदगी बड़े मजे से कट रही थी.

शैलेंद्र का बड़ा बेटा पीयूष दिव्यांग था. वह पूरी तरह से चलफिर नहीं सकता था. बेटे की हालत देख कर उन के कलेजे में टीस उठती थी.

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छोटा बेटा मनीष हृष्टपुष्ट और तंदुरुस्त था, शरीर से भी और दिमाग से भी. पढ़ने में वह अव्वल था. अपनी योग्यता और काबिलियत की बदौलत मनीष की बैंक में नौकरी लग गई थी और वह असम के गुवाहाटी में तैनात था.

शैलेंद्र ने समय रहते दोनों बेटों की शादी कर दी थी. जिम्मेदारी के तौर पर एक बेटी बची थी शादी करने के लिए, सो उस के लिए भी वह योग्य वर की तलाश कर रहे थे. उन्होंने रिश्तेदारों के बीच में बात चला दी कि बेटी के योग्य कोई अच्छा वर मिले तो बताएं. रिश्तेदारों के बीच से पटना का रहने वाला पवन कुमार का रिश्ता आया.

पवन राजधानी पटना की पौश कालोनी में कोचिंग सेंटर चलाता था. कोचिंग से उस की अच्छीखाई कमाई हो जाया करती थी. बैंक मैनेजर शैलेंद्र को यह रिश्ता पसंद आ गया. उन्होंने बेटी सृष्टि की शादी पवन से कर के अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर दिया.

पवन कुमार 2 भाई थे. दोनों भाइयों में पवन बड़ा था और टिंकू कुमार छोटा. दोनों में पवन सुंदर और बेहद समझदार था. वह कोचिंग से इतना कमा लेता था कि अपना खर्च निकालने के बाद कुछ बैंक बैलेंस बना लिया था.

खैर, शैलेंद्र को यह रिश्ता पसंद आ गया और उन्होंने बेटी सृष्टि की शादी पवन से कर दी. एक प्रकार से पवन के कंधों पर ससुराल की देखरेख की जिम्मेदारी भी आ गई थी.

वह ऐसे कि बड़ा साला पीयूष दिव्यांग था. छोटा साला मनीष परिवार ले कर नौकरी पर गुवाहाटी में रहता था. घर पर बचे सासससुर. उन की देखरेख के लिए एक व्यक्ति की जरूरत रहती थी, सो दामाद पवन सास और ससुर की सेवा के लिए सदैव तत्पर रहता था.

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दामाद के इस व्यवहार से सासससुर दोनों बहुत खुश रहते थे. वैसे भी बिहार की यह परंपरा है कि बेटी और दामाद घर के मालिक की तरह होते हैं. सास और ससुर बेटी और दामाद की सलाहमशविरा के बिना कोई काम नहीं करते थे.

कोई भी काम होता तो वे दामाद से रायमशविरा लिए बिना नहीं करते थे. बारबार ससुराल आनेजाने से बड़े साले पीयूष की पत्नी निभा, जो रिश्ते में पवन की सलहज लगती थी, दोनों के बीच खूब हंसीठिठोली होती थी.

हंसीठिठोली होती भी कैसे नहीं, उन का तो रिश्ता था ही मजाक का. मजाक का यह रिश्ता दोनों के बीच में कब प्रेम के रिश्ते में बदल गया, न तो पवन जान सका और न ही निभा.

यह रिश्ता प्रेम तक ही कायम नहीं रहा, बल्कि यह जिस्मानी रिश्ते में बदल गया था और पहली पत्नी के रहते पवन ने सलहज निभा से कोर्टमैरिज कर ली और उसे ले कर पटना में रहने लगा था.

अगले भाग में पढ़ें- पवन सलहज से पत्नी बनी निभा को साथ ले कर पटना में रहने लगा था

Crime Story in Hindi: अधूरी मौत- क्यों शीतल ने अनल के साथ खतरनाक खेल खेला?

Crime Story in Hindi- अधूरी मौत: भाग 1- क्यों शीतल ने अनल के साथ खतरनाक खेल खेला?

‘‘मेरे दिल ने जो मांगा मिल गया, जो कुछ भी चाहा मिला.’’ शीतल उस हिल स्टेशन के होटल के कमरे में खुदबखुद गुनगुना रही थी.

‘‘क्या बात है शीतू, बहुत खुश नजर आ रही हो.’’ अनल उस के पास आ कर कंधे पर हाथ रखते हुए बोला.

‘‘हां अनल, मैं आज बहुत खुश हूं. तुम मुझे मेरे मनपसंद के हिल स्टेशन पर जो ले आए हो. मेरे लिए तो यह सब एक सपने के जैसा था.

‘‘पिताजी एक फैक्ट्री में छोटामोटा काम करते थे. ऊपर से हम 6 भाईबहन. ना खाने का अतापता होता था ना पहनने के लिए ढंग के कपड़े थे. किसी तरह सरकारी स्कूल में इंटर तक पढ़ पाई. हम लोगों को स्कूल में वजीफे के पैसे मिल जाते थे, उन्हीं पैसों से कपड़े वगैरह खरीद लेते थे.

‘‘एक बार पिताजी कोई सामान लाए थे, जिस कागज में सामान था, उसी में इस पर्वतीय स्थल के बारे में लिखा था. तभी से यहां आने की दिली इच्छा थी मेरी. और आज यहां पर आ गई.’’ शीतल होटल के कमरे की बड़ी सी खिड़की के कांच से बाहर बनते बादलों को देखते हुए बोली.

‘‘क्यों पिछली बातों को याद कर के अपने दिल को छोटा करती हो शीतू. जो बीत गया वह भूत था. आज के बारे में सोचो और भविष्य की योजना बनाओ. वर्तमान में जियो.’’ अनल शीतल के गालों को थपथपाते हुए बोला.

‘‘बिलकुल ठीक है अनल. हमारी शादी को 9 महीने हो गए हैं. और इन 9 महीनों में तुम ने अपने बिजनैस के बारे में इतना सिखापढ़ा दिया है कि मैं तुम्हारे मैनेजर्स से सारी रिपोर्ट्स भी लेती हूं और उन्हें इंसट्रक्शंस भी देती हूं. हिसाबकिताब भी देख लेती हूं.’’ शीतल बोली.

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‘‘हां शीतू यह सब तो तुम्हें संभालना ही था. 5 साल पहले मां की मौत के बाद पिताजी इतने टूट गए कि उन्हें पैरालिसिस हो गया. कंपनी से जुड़े सौ परिवारों को सहारा देने वाले खुद दूसरे के सहारे के मोहताज हो गए.

‘‘नौकरों के भरोसे पिताजी की सेहत गिरती ही जा रही थी. तुम नई थीं, इसीलिए पिताजी का बोझ तुम पर न डाल कर तुम्हें बिजनैस में ट्रेंड करना ज्यादा उचित समझा. पिताजी के साथ मेरे लगातार रहने के कारण उन की सेहत भी काफी अच्छी हो गई है. हालांकि बोल अब भी नहीं पाते हैं.

‘‘मैं चाहता हूं कि इस हिल स्टेशन से हम एक निशानी ले कर जाएं जो हमारे अपने लिए और उस के दादाजी के लिए जीने का सहारा बने.’’ अनल शीतल के पीछे खड़ा था. वह दोनों हाथों का हार बना कर गले में डालते हुए बोला.

‘‘वह सब बातें बाद में करेंगे. अभी तो 7 दिन हैं, खूब मौके मिलेंगे.’’ शीतल बोली.

अगली सुबह अनल ने कहा, ‘‘देखो, आज 5 विजिटिंग पौइंट्स पर चलना है. 9 बजे टैक्सी आ जाएगी. हम यहां से नाश्ता कर के निकलते हैं. लंच किसी सूटेबल पौइंट पर ले लेंगे.’’

‘‘हां, मैं तैयार होती हूं.’’ शीतल बोली.

‘‘सर, आप की टैक्सी आ गई है.’’ नाश्ते के बाद होटल के रिसैप्शन से फोन आया.

‘‘ठीक है हम नीचे पहुंचते हैं.’’ अनल बोला.

दिन भर घुमाने के बाद ड्राइवर ने दोनों को होटल में छोड़ दिया. शीतल अनल के कंधे का सहारा ले कर टैक्सी से निकलते हुए बोली, ‘‘अनल, जब हम घूम कर लौट रहे थे तब उस संकरे रास्ते पर क्या एक्सीडेंट हो गया था? ट्रैफिक जाम था. तुम देखने भी तो उतरे थे.’’

‘‘एक टैक्सी वाले से एक बुजुर्ग को हलकी सी टक्कर लग गई. बुजुर्ग इलाज के लिए पैसे मांग रहा था. इसीलिए पूरा रास्ता जाम था.’’ अनल ने बताया. ‘‘ऐसा ही एक एक्सीडेंट हमारी जिंदगी में भी हुआ था, जिस से हमारी जिंदगी ही बदल गई.’’ अनल ने आगे जोड़ा.

‘‘हां मुझे याद है. उस दिन पापा मेरे रिश्ते की बात करने कहीं जा रहे थे. तभी सड़क पार करते समय तुम्हारे खास दोस्त वीर की स्पीड से आती हुई कार ने उन्हें टक्कर मार दी. जिस से उन के पैर की हड्डी टूट गई और वह चलने से लाचार हो गए.’’ शीतल बोली.

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‘‘हां, और तुम्हारे पिताजी ने हरजाने के तौर पर तुम्हारी शादी वीर से करने की मांग रखी.’’

‘‘मेरा रिश्ते टूटने की सारी जवाबदारी वीर की ही थी. इसलिए हरजाना तो उसी को देना था न.’’ शीतल अपने पिता की मांग को जायज ठहराते हुए बोली.

‘‘वीर तो बेचारा पहले से ही शादीशुदा था, वह कैसे शादी कर सकता था? मेरी मम्मी की मौत के बाद वीर की मां ने मुझे बहुत संभाला और पिताजी को पैरालिसिस होने के बाद तो वह मेरे लिए मां से भी बढ़ कर हो गईं.

‘‘कई मौकों पर उन्होंने मुझे वीर से भी ज्यादा प्राथमिकता दी. उस परिवार को मुसीबत से बचाने के लिए ही मैं ने तुम से शादी की.

‘‘मेरे बिजनैस की पोजीशन को देखते हुए कोई भी पैसे वाली लड़की मुझे मिल जाती. मैं किसी गरीब घर की लड़की से शादी करने के पक्ष में था ताकि वह पिताजी की देखभाल कर सके.’’

‘‘मतलब तुम्हें एक नौकरानी चाहिए थी जो बीवी की तरह रह सके.‘‘शीतल के स्वर में कुछ कड़वापन था.

‘‘बड़ेबुजुर्गों के मुंह से सुना था कि जोडि़यां स्वर्ग में बनती हैं. मगर हमारी जोड़ी सड़क पर बनी. लेकिन मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं हैं. मैं ने पिछले 9 महीनों में एक नई शीतल गढ़ दी है, जो मेरा बिजनैस हैंडल कर सकती है. बस एक ही ख्वाहिश और है जिसे तुम पूरा कर सकती हो.’’ अनल हसरतभरी निगाहों से शीतल की तरफ देखते हुए बोला.

‘‘अनल, पहाड़ों पर चढ़नेउतरने के कारण बदन दर्द से टूट रहा है. कोई पेनकिलर ले कर आराम से सोते हैं. वैसे भी सुबह 4 बजे उठना पड़ेगा सनराइज पौइंट जाने के लिए. यहां सूर्योदय साढ़े 5 बजे तक हो ही जाता है.’’ शीतल सपाट मगर चुभने वाले लहजे में बोली.

अनल अपना सा मुंह ले कर बिस्तर में दुबक गया.

अगली सुबह ड्राइवर आया तो शीतल उस से बोली, ‘‘ड्राइवर भैया, आज ऐसी जगह ले चलो जो एकदम से अलग सा एहसास देती हो.’’

‘‘जी मैडम, यहां से 20 किलोमीटर दूर है. इस टूरिस्ट प्लेस की सब से ऊंची जगह. वहां से आप सारा शहर देख सकती हैं, करीब एक हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है.

Manohar Kahaniya: पुलिस में भर्ती हुआ जीजा, नौकरी कर रहा साला!- भाग 1

17जून, 2021 को मुरादाबाद जिले के ठाकुरद्वारा के सीओ डा. अनूप सिंह अपने औफिस मे बैठे थे, तभी एसएसपी पंकज कुमार के पीआरओ का उन के पास फोन आया. पीआरओ की तरफ से सीओ साहब को विशेष जानकारी मुहैया कराई गई थी, जिसे सुन कर सीओ साहब सकते में आ गए थे.

सूचना मिली थी कि आप के सर्किल थाना क्षेत्र में मुजफ्फरनगर जनपद के खतौली थानाक्षेत्र के गांव दहौड़ का रहने वाला कांस्टेबल अनिल कुमार पुत्र सुखपाल, 112 पीआरवी 0281 ड्यूटी कर रहा है. लेकिन हमें यह खबर मिली है कि अनिल कुमार तो अकसर अपने घर पर ही मौजूद रहता है. तो फिर उस की जगह नौकरी कौन कर रहा है, यह जांच कराई जाए.

यह सूचना मिलते ही डा. अनूप सिंह ने तुरंत ही ठाकुरद्वारा थानाप्रभारी सतेंद्र सिंह को यह सूचना दे कर जांच करने को कहा. चूंकि अनिल कुमार की ड्यूटी हमेशा ही 112 पीआरवी में ही चलती रहती थी. इसी कारण उस का थाने आनाजाना बहुत ही कम होता था.

इस अहम जानकारी के मिलते ही थानाप्रभारी सतेंद्र सिंह ने सच्चाई जानने के लिए पुलिस रिकौर्ड में दर्ज कांस्टेबल अनिल कुमार के मोबाइल पर काल की.

‘‘जय हिंद सर.’’ फोन कनेक्ट होते ही दूसरी तरफ से आवाज आई.

‘‘आप कौन?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘कांस्टेबल अनिल कुमार रिपोर्टिंग. आदेश कीजिए सर, मेरी लोकेशन ठाकुरद्वारा में ही है सर. मेरी पीआरवी 0281 पर तैनाती है सर.’’ उस ने थानाप्रभारी से कहा.

‘‘अनिल आप फौरन थाने पहुंचो, आप से कुछ जरूरी काम है.’’ थानाप्रभारी ने आदेश दिया.

‘‘ओके सर.’’ कोई 10 मिनट बाद ही होमगार्ड के साथ एक सिपाही थाने पहुंचा.

उस की वरदी पर अनिल कुमार नाम का बैज लगा था. थानाप्रभारी ने युवक को ऊपर से नीचे तक देखा. उस के बाद अनिल कुमार से अपना पूरा परिचय देने को कहा.

थानाप्रभारी की बात सुनते ही एक सिपाही की भांति ही सावधान मुद्रा में अपना परिचय देने लगा. मैं कांस्टेबल 2608 अनिल कुमार पुत्र श्री सुखपाल, थाना खतौली जिला मुजफ्फरनगर के गांव दहौड़ का रहने वाला हूं. वर्ष 2011 बैच का सिपाही हूं. सर, 2016 में बरेली से ट्रांसफर पर मेरी यहां पर नियुक्ति हुई है.’’

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जिस तरह से युवक ने थानाप्रभारी के सामने अपना पूरा परिचय दिया था, उस के आत्मविश्वास को देख कर सतेंद्र सिंह भी चकरा गए. एक बार तो उन्हें लगा कि जिस ने भी कप्तान साहब से उस की शिकायत की है, वह झूठी ही होगी.

सब जानकारी लेने के बाद इंसपेक्टर सतेंद्र सिंह ने अनिल कुमार से आखिरी प्रश्न किया, ‘‘तुम्हारे ट्रांसफर के समय बरेली जिले के कप्तान कौन थे.’’

बस यही प्रश्न ऐसा था कि अनिल कुमार अपने जाल में फंस गया. वह इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दे पाया. फिर भी उन्होंने युवक की चरित्र पंजिका मंगवाई. कागज देख कर सतेंद्र सिंह को विश्वास हो गया कि जरूर कहीं न कहीं कुछ तो गड़बड़ है.

इस से पहले सतेंद्र कुमार कुछ समझ पाते, युवक सब कुछ समझ गया.

‘‘सर, बहुत जोर से लघुशंका आई है, मैं बस एक मिनट में ही फ्रैश हो कर आया.’’ उस युवक ने कहा.

‘‘ठीक है. जल्दी से हो कर आओ.’’ उस के बाद थानाप्रभारी युवक के बाकी कागजात देखने में व्यस्त हो गए.

काफी समय बाद भी वह युवक वापस नहीं आया तो सतेंद्र कुमार ने संतरी से उसे देखने को कहा. लेकिन अनिल नाम का वह सिपाही कहीं भी नजर नहीं आया. उस के बाद थानाप्रभारी को आभास हो गया कि वह सिपाही फरार हो गया.

उस के फरार होने की जानकारी मिलते ही सतेंद्र कुमार ने उसे हर जगह पर  खोजा, लेकिन उस का कहीं भी अतापता नहीं चला. उस के इस तरह से फरार होने से यह तो साबित हो ही गया था कि जिस ने भी उस की शिकायत कप्तान साहब से की थी, वह बिलकुल ही सही थी.

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यह सब जानकारी मिलते ही सीओ डा. अनूप सिंह ने अनिल की गिरफ्तारी के लिए थानाप्रभारी सतेंद्र सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया. अनिल कुमार की गिरफ्तारी के लिए पुलिस टीम तुरंत मुजफ्फरनगर रवाना की गई.

सरकारी कागजों में अनिल का पता मुजफ्फरनगर के गांव दहौड़ का था. पुलिस टीम ने गांव जा कर अनिल के बारे में पूछा तो पता चला कि यहां पर कोई अनिल कुमार पुलिस में नहीं है. एक अनिल कुमार तो है जो अपने को सरकारी टीचर बताता है.

असली सिपाही हुआ गिरफ्तार

पुलिस उसी पते पर पहुंच गई तो उस वक्त अनिल नाम का युवक घर पर ही मिल गया. लेकिन यह वह नहीं था, जो लघुशंका के बहाने से थाने से फरार हो गया था.

अपने घर अचानक पुलिस आई देख अनिल कुमार कुछ नरवस सा हो गया. थानाप्रभारी सतेंद्र कुमार ने उस से पुलिस में तैनात होने के बाबत पूछा तो उस ने साफ कह दिया कि वह तो अध्यापक परीक्षा की तैयारी कर रहा है. पुलिस से उस का कोई मतलब नहीं.

फिर उन्होंने उस से सुनील के बारे में पूछा क्योंकि अनिल की मूल फाइल में सुनील कुमार के नाम से कागज थे.

सुनील का नाम सुनते ही उस के चेहरे का रंग उड़ गया. अनिल से सख्ती से पूछताछ की तो सारी सच्चाई पुलिस के सामने आ गई.

सब से हैरत वाली बात यह थी कि अनिल ने सिपाही बन कर जो खेल खेला था, उस की जानकारी गांव वालों को क्या, उस के परिवार वालों तक को पता नहीं थी.

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जब गांव वालों को अनिल की हकीकत का पता चला तो वे सभी दंग रह गए. अनिल के बड़े भाइयों ने पुलिस पूछताछ में बताया कि उन्हें तो केवल इतना ही मालूम था कि गांव गंगधाड़ी निवासी सुनील मुरादाबाद में अपने जीजा अनिल के पास रह कर कोई काम कर रहा है.

अगले भाग में पढ़ें- पुलिस विभाग की लापरवाही आई सामने

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