Manohar Kahaniya: पुलिस अधिकारी का हनीट्रैप गैंग- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

यह सुनीता ठाकुर के साथ मिला हुआ था. जय कुमार ने कोतवाली के 4 पुलिसकर्मियों के साथ मिल कर एक गैंग तैयार कर लिया था. इस गैंग का काम वसूली करना ही था. भोलेभाले लोगों को डराधमका कर ये रुपयों की वसूली करते थे.

होशंगाबाद थाने के एसआई जयकुमार नलवाया का भ्रष्टाचार व अन्य विवादित मामलों से पुराना नाता रहा है.

करीब एक साल पहले रेत की अवैध वसूली के आरोप भी उन पर आरोप लगे थे. तब इटारसी के रामपुर थाने से एसआई नलवाया को हटाया गया था.

अवैध वसूली को ले कर लोकायुक्त पुलिस ने रामपुर थाने के कुछ स्टाफ को रिश्वत लेते पकड़ा था. इस में जय नलवाया का नाम ले कर कुछ पुलिसकर्मी ढाबे वाले से रुपए वसूल रहे थे.

इस घटनाक्रम का वीडियो जब सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो इस आधार पर जय कुमार नलवाया को रामपुर से हटा कर पुलिस लाइन में अटैच कर दिया था.

बाद में वह होशंगाबाद के सिटी थाने में तैनात किया गया. अभी भी लोकायुक्त भोपाल में केस का फैसला नहीं हुआ है.

बहनभाई दोनों पुलिसकर्मी थे इस गैंग में थाने की महिला हैडकांस्टेबल ज्योति मांझी और कांस्टेबल मनोज वर्मा (मांझी) दोनों रिश्ते में भाईबहन हैं. लंबे समय से दोनों होशंगाबाद जिला मुख्यालय पर ही तैनात हैं.

ज्योति मांझी का पति अशोक मांझी भी पुलिस में है. हनीट्रैप गैंग में हैडकांस्टेबल ज्योति मांझी आरोपी सुनीता ठाकुर के साथ मिली हुई थी. वह भी सुनीता की हर गतिविधि पर नजर रखती थी.

ज्योति की छवि होशंगाबाद में एक दबंग पुलिसकर्मी की बनी हुई थी. जब भी हनीट्रैप मामले में लोग फंसते दिखते थे, उन पर ज्योति दबाव बनाती थी. महिला पुलिसकर्मी देख कर हनीट्रैप के शिकार युवक डर जाते और मनमाने रुपए दे देते.

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कांस्टेबल मनोज वर्मा भी गैंग का सदस्य था. वह ज्यादातर पुरुषों को डराधमका कर रुपए वसूल करता था. जो रुपए मिलते थे, उन का आपस में वंटवारा होता था.

हैडकांसटेबल ताराचंद जाटव भी इस गैंग के लिए काम करता था, परंतु वह चतुराई के साथ सुनीता से दूरियां बना कर केवल हिस्से के माल से मतलब रखता था.

सुनीता ठाकुर की हनीट्रैप गैंग में 4 पुलिसकर्मियों के नाम सामने आने से पुलिस की छवि धूमिल हो गई. इस से पुलिस महकमे में हड़कंप मचा गया. आईजी, डीआईजी, एसपी तीनों अधिकारी इस हरकत से नाराज हो गए.

एसपी संतोष सिंह गौर ने हनीट्रैप मामले में पुलिसकर्मियों के शामिल होने की जांच करने का जिम्मा महिला सेल के प्रभारी डीएसपी आशुतोष पटेल को सौंप दिया. जांच कर रहे डीएसपी आशुतोष पटेल ने ब्लैकमेल हुए पीडि़त व चारों पुलिसकर्मियों के बयान लिए.

इस मामले की जांच के लिए सुनीता के दलाल रिशिपाल पीयूष राठौर, सतीश राजपूत, योगेश कैथवास, देहात पुलिस थाना के आरक्षक सतीश चैरे समेत लगभग 50 लोगों के बयान लिए गए.

सुनीता ठाकुर के बयान और मोबाइल फोन की काल डिटेल्स की बारीकी से जांच करने पर इस बात के पक्के सबूत मिल गए कि आरोपी पुलिसकर्मियों की शह पर ही सुनीता ठाकुर हनीट्रैप की घटनाओं को अंजाम दे रही थी.

होशंगाबाद में युवाओं के वीडियो, फोटो बना कर उन्हें ब्लैकमेल करने की गैंग थाने से ही एसआई जय नलवाया चला रहा था. इस में महिला हैडकांस्टेबल ज्योति मांझी और कांस्टेबल मनोज वर्मा और एक महिला सुनीता शामिल थी.

पुलिस थाने की मोहर लगे उन 7 शिकायती पत्रों की भी जांच की, जो सुनीता ने टीआई को सौंपे थे. वह सब एक जैसे कागज पर लिखे थे. शिकायती पत्रों पर न तारीख का उल्लेख और न शिकायत करने वाले के ठीक तरह से हस्ताक्षर थे.

महिला ने जिन की शिकायत की, उन पर शोषण करने और रुपए न देने के आरोप लगाए थे. शिकायती पत्रों पर थाने की सील अंकित थी, लेकिन उन शिकायती पत्रों का रिकौर्ड थाने में नहीं मिला.

थाने के बाहर इन शिकायत पत्रों के माध्यम से ब्लैकमेलिंग गैंग की महिला और चारों पुलिसकर्मी युवाओं को डरा कर रुपए वसूलते थे.

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शिकायती पत्रों की जांच में यह बात खुल कर सामने आ गई कि सुनीता ठाकुर जाल में फंसे लोगों को ब्लैकमेल करने के लिए अपने हाथ से कागज पर लिख कर शिकायत करती थी. इन पर आरोपी पुलिसकर्मी रिसीव लिख कर और उन पर थाने की सील लगा कर सुनीता को दे देते थे. शिकायत पत्र की पावती को सुनीता उन लोगों को वाट्सऐप कर के धमकाती थी.

सभी पुलिसकर्मी किए बरखास्त

सुनीता के जाल में फंसे लोग पुलिस काररवाई के नाम पर डर जाते थे. इस का फायदा उठा कर पुलिस वाले उन लोगों से वसूली करते थे. वसूली के हिस्से से सुनीता को उस का हिस्सा मिल जता था.

होशंगाबाद में पुलिसकर्मियों के साथ मिल कर हनीट्रैप गैंग चला रही आरोपी ब्लैकमेलर सुनीता को 18 जून, 2021 की शाम को कोर्ट में पेश किया. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट हिमांशु कौशल ने महिला की जमानत निरस्त कर जेल भेजने के आदेश दिए.

ब्लैकमेलर महिला सुनीता ठाकुर कथा लिखे जाने तक होशंगाबाद जेल में थी. ब्लैकमेलिंग मामले में हनीट्रैप गैंग में एसआई सहित 3 पुलिसकर्मियों के नाम सामने आने के बाद भोपाल पुलिस हेडक्वार्टर से भी जल्द काररवाई का दबाव होशंगाबाद पुलिस पर बढ़ गया था.

इसी दौरान मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल के ट्वीट ने पुलिस अधिकारियों पर दबाब बढ़ा दिया. कृषि मंत्री कमल पटेल ने कहा, ‘‘जो भी पुलिसकर्मी इस में शामिल हैं उन के विरुद्ध काररवाई की जाएगी.

‘‘रक्षक ही जब भक्षक बन जाएं तो दुर्भाग्यपूर्ण है. जिन पुलिसकर्मियों का नाम मामले में सामने आया है, उन के विरुद्ध एफआईआर होनी चाहिए. इस के अलावा जो भी अधिकारी शामिल हैं उन के खिलाफ भी काररवाई होनी चाहिए. ऐसे लोग नौकरी करने के लायक नहीं हैं.’’

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हनीट्रैप को ले कर कृषि मंत्री का बयान सामने आने के बाद लोगों को हनीट्रैप में फंसा कर रुपयों की उगाही करने और पुलिस महकमे को बदनाम करने वाले एसआई जयकुमार नलवाया, हैडकांस्टेबल ज्योति मांझी, ताराचंद जाटव, कांस्टेबल मनोज वर्मा को नौकरी से बरखास्त कर दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों और मीडिया रिपोर्ट पर आधारित

Manohar Kahaniya: पुलिस में भर्ती हुआ जीजा, नौकरी कर रहा साला!- भाग 3

वह जानता था कि सरकारी नौकरी में इतनी बड़ी हेराफेरी करना इतना आसान काम नहीं. फिर वैसे भी वह पुलिस की नौकरी करने के लिए अनट्रेंड था. ऐसे में उस से कहीं भी चूक हुई तो उसे सीधे जेल की हवा ही खानी पड़ेगी.

अपनी जगह साले को भेजा ड्यूटी पर

इस के बाद भी अनिल ने सुनील को साहस बंधाते हुए कहा, ‘‘तू इतना परेशान क्यों होता है. ड्यूटी कराने से पहले तुझे मैं इतनी ट्रेनिंग दे दूंगा कि कोई भी तुझे पकड़ नहीं पाएगा.’’

अनिल उस समय भी शिक्षा विभाग में नौकरी पाने की पूरी कोशिश में लगा हुआ था. उस ने बीएड करने के बाद यूपी टेट की परीक्षा भी पास कर ली थी. उसी दौरान बेसिक शिक्षा विभाग में प्राइमरी टीचर की जगह निकलीं तो अनिल ने आवेदन कर दिया.

आवेदन करने के बाद उस का जिला सीतापुर में प्राइमरी टीचर में नंबर आ गया. उस के बाद उस ने सीतापुर में ही काउंसलिंग भी करा दी थी.

अनिल की काउंसलिंग हो जाने के बाद उस ने मन में पूरी तरह से ठान लिया था कि चाहे जैसे भी हो वह पुलिस की नौकरी सुनील को ही दे देगा.

उस के बाद उस ने सुनील को किसी तरह से पुलिस की नौकरी करने के लिए तैयार कर लिया. उस ने उसे घर पर ही प्रशिक्षित करना शुरू किया. उस ने पुलिस में नौकरी करने वाले सारे हथकंडे सुनील को बता दिए. उस ने इस ट्रेनिंग में अफसरों को सैल्यूट करने का तरीका, हथियार पकड़ने और उसे चलाने की विधि के साथ ही साथ सारी कानून संबंधी जानकारियां उसे दीं.

जब अनिल को पूरा विश्वास हो गया कि सुनील पुलिस की नौकरी करने के लिए तैयार हो चुका है तो उस ने उसे अपनी जगह पर भेजने की स्क्रिप्ट भी तैयार कर ली थी.

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फरजी सिपाही बन कई साल की ड्यूटी

उसी वक्त अनिल की पोस्टिंग डायल 112 में थाना बिलारी में चलने वाली पीआरवी पर हो गई. अनिल को लगा कि इस से बढि़या मौका भविष्य में आने वाला नहीं. अनिल ने सुनील को हिम्मत बंधाते हुए अपने स्थान पर बिलारी के अंतर्गत संचालित पीआरवी पर भेज दिया.

अनिल ने सुनील को हिदायत दी कि आज के बाद यह बात अपने पल्लू से बांध लेना कि तू सुनील नहीं बल्कि अनिल है.

अनिल ने सुनील को अपनी जगह नौकरी पर लगाते हुए उसे समझाया था कि आज के बाद उसे इंटरनेट मीडिया से कोसों दूर रहना होगा. अनिल की जगह पर नौकरी कर रहा सुनील हर रोज अपने काम की जानकारी उसे देता रहता था.

जब सुनील को फरजी सिपाही की नौकरी करते हुए काफी टाइम हो गया तो अनिल ने राहत की सांस ली. हालांकि इस वक्त नौकरी सुनील कर रहा था. लेकिन सैलरी अनिल के खाते में ही आती थी.

सुनील की परेशानी को देखते हुए अनिल ने उसे खर्च के लिए हर महीने 8 हजार रुपए देने शुरू किए. अनिल ने सुनील से कहा था कि जब वह टीचर की नौकरी जौइन कर लेगा तो उस के महीने की सैलरी भी बढ़ा देगा.

सुनील को अनिल पर पूरा विश्वास था. सुनील यह भी जानता था कि वह शादी करेगा तो उस की बहन से ही. वर्ष 2017 में सुनील को अपनी जगह पर नौकरी देने के बाद से ही उस ने उस की बहन शालू से शादी करने वाली बात पर भी जोर डालना शुरू कर दिया था.

सुनील ने इस बारे में अपने परिवार वालों से बात की तो उस के परिवार वाले उस के साथ शालू की शादी करने के लिए तैयार हो गए. अनिल और शालू की इच्छानुसार ही वर्ष 2017 में सामाजिक रीतिरिवाज से शादी कर दी गई.

अनिल और शालू की शादी होने के बाद दोनों दोस्तों का रिश्ता भी बदल गया था. दोनों दोस्त अब जीजासाले बन गए थे.

पुलिस में कई साल तक नौकरी करने के बाद सुनील बेखौफ हो गया था. उसे लगने लगा था कि अब उस का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. यही कारण था कि वह जब भी अपने गांव आता तो पुलिस की वरदी में ही आने लगा था.

वह पिछले कई सालों से पुलिस की वरदी का रौब दिखा कर मौज मार रहा था. जीजा साले का फरजीवाड़ा न जाने कब तक यूं ही चलता रहता. लेकिन सुनील की एक लापरवाही ने सारा खेल बिगाड़ दिया.

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ले डूबा प्रोफाइल स्टेटस

उसी दौरान गांव में अनिल का किसी से किसी बात पर विवाद हो गया. उस के गांव वालों के साथसाथ उस के कुछ रिश्तेदारों को पता था कि अनिल उत्तर प्रदेश पुलिस में भरती हो गया है.

लेकिन उन के लिए सब से हैरत वाली बात यह थी कि अनिल पुलिस में भरती होने के बावजूद भी अकसर घर पर ही रहता था. जबकि पुलिस विभाग में इतनी ज्यादा सामान्य छुट्टियां मिलती कहां हैं.

उस की यही बात किसी को हजम नहीं हो पा रही थी. कुछ दिन बाद ही सुनील ने अपनी वाट्सऐप प्रोफाइल पर अपना एक फोटो अपडेट कर दिया. उस की फोटो देख कर लोगों को लगने लगा था कि जरूर दाल में कुछ काला है.

इस फोटो में उस ने पुलिस वरदी के साथसाथ अपने हाथ में एक फिल्मी स्टाइल में पिस्टल ले रखी थी. उस की प्रोफाइल फोटो देख कर कुछ ही दिनों में किसी ने एसएसपी से उस की शिकायत कर दी.

शिकायत मिलते ही पुलिस विभाग में हलचल पैदा हो गई थी. एसएसपी पंकज कुमार ने सीओ (ठाकुरद्वारा) को इस मामले की सच्चाई का पता लगाने के निर्देश दिए. जिस के बाद जीजासाले का खेल सामने आ गया.

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इस सच्चाई के सामने आते ही पुलिस ने 19 जून, 2021 को भादंवि की धारा 109, 170, 171, 419, 120बी के तहत अनिल कुमार और सुनील कुमार को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने दोनों को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेजने के आदेश दिए. लेकिन कोविड प्रोटोकाल के मद्देनजर अनिल और सुनील को मुरादाबाद की अस्थाई जेल में 15 दिन के लिए क्वारंटीन कर दिया गया था.

एसएसपी पंकज कुमार को शक है कि जीजासाले के इस इस बड़े फरजीवाड़े में किसी न किसी पुलिस अधिकारी की संलिप्तता जरूर रही होगी. उन्होंने इस के जांच के आदेश दिए हैं. उन्होंने कहा है कि इस मामले में जिस किसी की भी लापरवाही सामने आई, उस के खिलाफ काररवाई जरूर की जाएगी.

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सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

इस दोहरे हत्याकांड की जांच की शुरुआत थानाप्रभारी ने रवि को थाने बुला कर की. उन्होंने उस से घर में चोरी हुए सामान के बारे में पूछा. लेकिन रवि बता नहीं सका कि घर में क्याक्या सामान चोरी हुआ है.

इस के बाद उन्होंने उस से उस की दिनचर्या के बारे में पूछा. तब रवि ने बताया, ‘‘सर, मैं एक कंपनी के लिए कलेक्शन एजेंट का काम करता हूं और साथ में हमारी परचून की दुकान भी है. मैं रोजाना सुबह 6 बजे से 9 बजे तक पहले अपनी दुकान खोलता हूं. उस के बाद वहीं से औफिस के लिए निकल जाता हूं.

‘‘दोपहर को एकदो घंटों के लिए मैं घर आता हूं. फिर शाम को कुछ देर दुकान खोले रखने के बाद रात को वापस घर आ जाता हूं.’’

कुछ देर बाद वह फिर बोला, ‘‘सर, मैं आज दोपहर को घर वापस नहीं आया था बल्कि औफिस से अपनी दुकान चला गया था. कुछ देर दुकान में बैठने के बाद मैं अपनी दुकान के ऊपर बने कमरे में चला गया, जहां मैं ने अपने दोस्तों के साथ ताश खेला और जब शाम को

6 बज गए तो मैं वहां से घर के लिए निकल गया.’’

थानाप्रभारी मदनपाल सिंह ने इस केस से जुड़े कुछ और सवाल रवि से पूछे फिर उसे थाने से घर भेज दिया. एक तरफ पुलिस की एक टीम रवि से पूछताछ कर रही थी तो वहीं दूसरी टीम रवि के घर के आसपास के लोगों से इस मामले में पता कर रही थी.

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पुलिस की तीसरी टीम रवि की दुकान के आसपास के लोगों से तहकीकात कर रही थी. इसी तरह से पुलिस की कई टीमें एक ही समय पर इस मामले को सुलझाने में लगी थीं.

रवि ने अपने बयान में यह कहा था कि वह दोपहर को औफिस से दुकान आ गया था, जब पुलिस ने दुकान के आसपास रहने वाले लोगों से इस बात की पुष्टि की तो उन्होंने दोपहर को दुकान के खुले होने से साफ इनकार कर दिया.

वहीं रवि के घर के आसपास के लोगों ने पुलिस को बताया कि रवि का अकसर अपने मातापिता के साथ झगड़ा होता रहता था, ये झगड़ा या तो पैसों को ले कर होता था या संपत्ति को ले कर या फिर रवि की पत्नी सुमन को ले कर होता था.

इस के अलावा पड़ोसियों से यह भी पता चला कि रवि अकसर शराब पी कर घर आता था, जो उस के माता पिता को बिलकुल भी पसंद नहीं था.

एएसपी इरज राजा ने सुरेंद्र सिंह ढाका और संतोष देवी के शव गौर से देखे तो उन्होंने पाया कि दोनों शव अकड़े हुए थे, जोकि सामान्य रूप से मृत्यु के 8 से 10 घंटों बाद ही होता है. उन्होंने फोरैंसिक टीम की सहायता से यह पता लगा लिया कि इस हत्या को सुबह 10 बजे के आस पास ही अंजाम दिया गया था.

उधर पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी हत्या का समय अनुमान किए गए समय के आसपास ही बताया गया था. यह सभी जानकारी पुलिस के लिए बहुत जरूरी साबित हुई और पुलिस के शक के रडार पर अब रवि आ गया था.

अगले दिन मृतकों के दाह संस्कार के बाद जब रवि अपने घर वापस पहुंचा ही था की उसे पुलिस ने फोन कर फिर से थाने आने के लिए कहा.

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वह जल्दी से नहाया और फटाफट कपड़े पहन कर अपने घर पर सभी कमरों में ताला लगा कर थाने जाने के लिए निकल गया.

थाने पहुंचने के बाद पुलिस ने उस के वारदात वाले दिन दुकान न खोलने, उस के घर पर उस के मातापिता के साथ झगड़ा होने, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतकों की हत्या का समय सुबह के समय

होने इत्यादि चीजों को ले कर उस से सवाल किए.

इन सवालों को सुन कर रवि बुरी तरह से हकला गया. वह डरते हुए और हकलाते हुए पुलिस के इन सवालों के जवाब देने लगा.

उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. जब थानाप्रभारी द्वारा उस पर दबाव बनाया गया तो रवि ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

हत्या का जुर्म स्वीकार करने के बाद पुलिस ने तसल्ली से उसे एक शांत कमरे में बैठाया और उस से हत्या करने की वजह और उस ने किस तरह से इस घटना को अंजाम दिया, उस के बारे में पूछताछ की.

इस के बाद उस ने अपने मातापिता की हत्या करने की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

70 वर्षीय सुरेंद्र सिंह ढाका गाजियाबाद के लोनी में एक पौश इलाके बलराम नगर में रहते थे. मूलरूप से बागपत उत्तर प्रदेश के रहने वाले सुरेंद्र ढाका कई साल पहले ही गाजियाबाद में रहने लगे थे.

उन के साथ इस घर में उन की पत्नी संतोष देवी और 2 बेटों का परिवार रहता था. सुरेंद्र सिंह ढाका का परिवार आर्थिक रूप से संपन्न था. सुरेंद्र सिंह की इलाके में परचून की दुकान थी और वह लोगों को ब्याज पर पैसा देने का काम

किया करते थे. उन की पत्नी संतोष देवी स्वास्थ्य विभाग में एएनएम के पद से रिटायर थीं.

बड़े बेटे रवि ढाका उर्फ नीलू की शादी साल 2009 में हो गई थी. लेकिन शादी के साल भर बाद ही रवि के साथ उस की पत्नी का अकसर झगड़ा होना शुरू हो गया था. कभी पैसों को ले कर तो कभी रिश्तों को ले कर.

रवि और उस की पत्नी के बीच झगड़े बढ़ने लगे. वे दोनों एकदूसरे के साथ किसी तरह से एडजस्ट कर के रह रहे थे. अंत में साल 2014 में रवि और उस की पहली पत्नी के बीच तलाक हो गया.

तलाक के बाद रवि की मुसीबतें बढ़ने लगीं. उस को अपनी जिंदगी बड़ी मुश्किल लगने लगी. और इसी बीच उस की मुलाकात सुमन देवी से हुई. सुमन रवि के गांव बागपत की ही रहने वाली थी. कुछ समय में एक दूसरे को जानने के बाद उन दोनों के बीच प्यार हो गया और रवि ने बिना अपने मातापिता को बताए सुमन से साल 2016 में शादी कर ली.

इस बात से रवि के मातापिता सुरेंद्र और संतोष देवी बड़े खफा हुए. उन की नाराजगी इस बात से ज्यादा थी कि रवि की दूसरी पत्नी सुमन देवी उन की बिरादरी की नहीं थी.

उसी दिन से रवि के मातापिता उस से खीझने लगे थे. वे उसे बातबात पर टोकते थे, छोटी से छोटी बात पर रवि और उस की पत्नी सुमन से झगड़े किया करते थे, वे उन्हें बातबात पर ताने दिया करते थे.

इस तरह से कुछ समय गुजरने के बाद साल 2019 में सुरेंद्र सिंह के छोटे बेटे गौरव ढाका की एक सड़क हादसे में मौत हो गई. गौरव ढाका की शादी हो चुकी थी और उस के 2 बच्चे भी थे. इस मौत का भार ढाका परिवार के लिए सहन कर पाना बेहद मुश्किल था क्योंकि गौरव के दोनों बच्चे बेहद छोटे थे.

ऐसी स्थिति को देखते हुए रवि के माता पिता का झुकाव गौरव की पत्नी और उस के बच्चों के प्रति ज्यादा हो गया था, जिस का होना स्वाभाविक भी था. गौरव की पत्नी और बच्चों की देखभाल का जिम्मा उन्होंने उठा लिया था.

सुरेंद्र और संतोष देवी गौरव की पत्नी और बच्चों के लिए हमेशा तैयार रहते थे. लेकिन वहीं दूसरी ओर रवि, उस की पत्नी और उस के बच्चे को वे दरकिनार किया करते थे.

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ऐसे ही एक दिन जब रवि की बरदाश्त करने की क्षमता पार हो गई तो उस दिन उस का उस के पिता के साथ झगड़ा हो गया. उसी दौरान उस के पिता ने सभी घर वालों की मौजूदगी में ये ऐलान कर दिया कि उन की संपत्ति का पूरा हिस्सा वह गौरव की पत्नी और उस के बच्चों के नाम कर देंगे.

यह सुन कर रवि ने भी गुस्से और आवेश में अपने पिता से कह दिया कि यदि वह ऐसा करेंगे तो वह ऐसा हरगिज होने नहीं देगा.

अगले भाग में पढ़ें-  हत्या के एक दिन पहले रवि का फिर से अपने मांबाप के साथ झगड़ा हो गया 

Crime Story: कुटीर उद्दोग जैसा बन गया सेक्सटॉर्शन- भाग 4

टिंडर ऐप से भी चल रहा है सैक्सटौर्शन

दिलचस्प बात यह है कि इस रैकेट को चलाने वाली लड़की और उस के दोनों साथी सौफ्टवेयर इंजीनियर थे. वे अपने महंगे शौक पूरा करने और लग्जरी लाइफ के लिए इस अपराध को अंजाम दे रहे थे.

ये लोग पहले सोशल मीडिया ऐप टिंडर के जरिए अमीर लोगों को लड़की के जाल में फंसाते. उस के बाद हनीट्रैप के खेल में फंसाने के बाद उन से मोटी रकम वसूली जाती थी.

दरअसल, हुआ यूं कि दिल्ली पुलिस को एक करोड़ रुपए की रंगदारी की शिकायत मिली थी, जिस में शिकायतकर्ता ने कहा कि पिछले कुछ दिनों से एक अज्ञात व्यक्ति काल कर रहा था और उस से एक करोड़ रुपए की मांग कर रहा था. उस की अश्लील तसवीरें वायरल करने की धमकी भी दी जा रही थी.

इस शिकायत के आधार पर दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने रंगदारी की एफआईआर दर्ज कर ली. इंसपेक्टर अरुण सिंधू और दिनेश कुमार के नेतृत्त्व में एक टीम बनाई गई. फोन की सर्विलांस और दूसरे टैक्नीकल तरीकों से जब पुलिस टीम ने काफी सारी जानकारी जुटा ली, तो उस के बाद छापेमारी की गई.

पुलिस टीम ने गुड़गांव से राजकिशोर सिंह को पकड़ लिया. उस ने सब कुछ उगल दिया और उस के बाद उस के 2 साथियों शालिनी और आर्यन को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

उन के पास से स्पाई कैम लगे 2 हैंडबैग, मेमोरी कार्ड्स, यूएसबी पैन ड्राइव, लैपटौप जिस में पीडि़तों की तसवीरें/वीडियो थे. इस के अलावा 6 मोबाइल फोन भी बरामद कर लिए गए.

पूछताछ में पता चला कि इस रैकेट का मास्टरमाइंड राजकिशोर सिंह है, जोकि पेशे से सौफ्टवेयर इंजीनियर था. राजकिशोर सिंह सन 2012 में दिल्ली आया था.

वह रोजगार तलाश कर ही रहा था कि साल 2013 में कनाट प्लेस में एक लड़की को छेड़ने और धमकाने के आरोप में वह पुलिस के हत्थे चढ़ कर जेल चला गया.

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यहीं से उस की जिंदगी बदल गई. जेल से निकल कर उस ने तय कर लिया कि अब जिंदगी में शार्टकट रास्ते से बहुत दौलत कमानी है. बस ऐशभरी जिंदगी जीने और उस के लिए होने वाले खर्चों को पूरा करने के लिए वह बुरी संगत में पड़ गया. उस ने गुड़गांव में एक स्पा (बौडी मसाज) खोल कर अपने पेशे से अलग तरह का धंधा शुरू कर दिया.

इस काम के लिए कालगर्ल्स की भरती की. उस के बाद लड़कियों का इस्तेमाल एस्कौर्ट सर्विस के लिए करने लगा. बाद में उस ने लड़कियों का इस्तेमाल अमीर लोगों को हनीट्रैप में फंसाने के लिए करना शुरू कर दिया.

उस ने अपने गिरोह की कालगर्ल्स के जरिए कई कारोबारियों को झूठे रेप केस में फंसाने की धमकी दे कर बड़ी रकम ऐंठी थी.

गुड़गांव के सेक्टर-67 की रहने वाली शालिनी जिंदगी में कुछ बड़ा करना चाहती थी. आईटी के फील्ड में नौकरी करती थी. पिछले साल उसे प्रमोशन की उम्मीद थी, मगर अचानक कोविड-19 आ गया. पहले सैलरी कम हुई और फिर नौकरी चली गई.

पैसों के लिए परेशान रहने लगी तो उस ने अपनी परेशानी अपने दोस्त आर्यन दीक्षित (28) को सुनाई. बी-269, छतरपुर एनक्लेव- टू का रहने वाला आर्यन दीक्षित एमबीए है और वर्तमान में उस का अपना औनलाइन गारमेंट्स का व्यवसाय है.

शालिनी ने जब आर्यन से कहा कि यार कोई भी काम बताओ पैसों की बड़ी जरूरत है तो आर्यन ने उसे राजकिशोर से मिलवा दिया.

आर्यन ने एक बार राजकिशोर से स्पा की सर्विस ली थी. इसलिए दोनों में जानपहचान हो गई थी. जल्द ही आर्यन भी राजकिशोर के धंधे में ही उतरने की योजना बनाने लगा.

जब शालिनी ने आर्यन से ईजी मनी कमाने का तरीका पूछा तो आर्यन ने राजकिशोर से शालिनी को मिलवा दिया. राजकिशोर ने बता दिया कि उस का धंधा थोड़ा टेढ़ा है, लेकिन इस में पैसा बहुत है.

राजकिशोर ने जब शालिनी को अपने धंधे के बारे में बताया तो थोड़ा हिचकने के बाद शालिनी मान गई और राजकिशोर ने उसे अपने गैंग में शामिल कर लिया.

शालिनी को 2-4 दिन तक धंधे की ट्रेनिंग और अमीरों को फंसाने के टिप्स दिए गए. उस के बाद शालिनी का टिंडर पर प्रोफाइल बना दिया गया. बस इस के बाद वह 40-50 साल की उम्र वाले बिजनैसमैन को राइट स्वैप करने लगी.

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होटल में बुला कर उन की तसवीरें उतार लेती. फिर आर्यन और राजकिशोर उस कारोबारी को धमका कर उस से पैसे वसूलने लगे. पैसा आना शुरू हुआ तो शालिनी के हौसले बुलंद हो गए.

वह टिंडर पर राइट स्वैप करने के बाद लोगों से चैट करती. कुछ दिनों बाद होटल में मुलाकात फिक्स हो जाती. उस के बाद होटल के कमरे में हैंडबैग या अन्य चीजों में छिपाए गए स्पाईकैम के जरिए अपने शिकार की आपत्तिजनक तसवीरें ले ली जातीं.

कुछ दिन बाद टारगेट से सोशल मीडिया पर संपर्क कर के शिकार को उस की न्यूड तसवीरें/वीडियो दिखाई जाती और 10 लाख से ले कर एक करोड़ रुपए तक की डिमांड की जाती. पैसा नहीं देने पर वीडियो पब्लिक करने या परिवार में किसी को भेजने की धमकी दी जाती. अपनी इज्जत बचाने के डर से अधिकतर पीडि़त सौदेबाजी के बाद पैसे दे कर मामला खत्म कर लेते थे. मगर उन के आखिरी टारगेट ने पुलिस में शिकायत कर दी.

जिस के बाद टिंडर ऐप से चल रहा सैक्सगटौर्शन का ये रैकेट पकड़ा गया. पुलिस ने राजकिशोर सिंह, शालिनी और आर्यन को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से जेल भेज दिया गया.

देश के हिंदीभाषी राज्यों में लगभग सभी जिलों में इस तरह के मामले कुछ महीनों में तेजी से बढ़े हैं. अनुमान है कि पिछले 6 महीनों के दौरान ही इन सभी जगहों पर पुलिस को 5 हजार से ज्यादा ऐसे मामलों की शिकायतें मिली हैं.

(कथा पुलिस सूत्रों, निजी शोध व पड़ताल तथा पीडि़तों से मिली जानकारी पर आधारित. कथा में जितेंद्र सिंह नाम परिवर्तित है)

ठगी से कैसे बचें और फंसने पर क्या करें

अपनी लोकेशन को शेयर करने की आदत छोड़ दें. इस से आप के विरोधियों को यह पता चल जाता है कि आप किस जगह पर हैं. ऐसे में वह अपनी सुविधा के अनुसार आप को ठग लेते हैं.

व्यक्तिगत बातें फेसबुक पर शेयर न करें. इस से आप की गोपनीयता भंग होती है.

फोटो शेयर करते समय यह समझ लें कि किन लोगों को आप फोटो दिखाना चाहते हैं और किस को नहीं. फेसबुक पर अनजान लोगों से बातचीत करते समय सावधान रहें.

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फेसबुक पर आने वाली हर पोस्ट सही नहीं होती. यह ध्यान रखें, बिना सोचेसमझे झांसे में न आएं. किसी भी अनजान महिला की फ्रैंड रिक्वेस्ट को जांचपरखने के बाद ही स्वीकार करें.

साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल बताते हैं कि लौकडाउन साइबर क्रिमिनल के लिए गोल्डन एज रहा है. इस के अलावा सोशल मीडिया पर लोग अपनी प्रोफाइल की सुरक्षा को ले कर सजग नहीं हैं.

अपनी प्रोफाइल को लौक करें, जिस से उसे कोई सर्च न कर सके. यदि सैक्सटौर्शन का शिकार होते हैं तो सब से पहले उस अकाउंट का लिंक या नंबर सेव करें क्योंकि इस की मदद से पुलिस उस आईपी एड्रेस तक पहुंच सकती है, जहां से ब्लैकमेलर्स औपरेट कर रहे हैं.

सैक्सटौर्शन का शिकार होने पर तुरंत लोकल साइबर सेल या नजदीक के थाने में शिकायत दर्ज कराएं. राष्ट्रीय हेल्पलाइन नंबर 155260 पर शिकायत कर सकते हैं.

ऐसे मामलों में शिकायत करने वालों की पहचान पूरी तरह गोपनीय रखी जाती है. ब्लैकमेलर्स नंबर बदलबदल कर फोन करते हैं, तो इन सभी की पूरी जानकारी पुलिस  को दें. कई बार पुलिस पीडि़त से ही सवालजवाब करती है. ऐसे सवालों से परेशान न हों, अपनी एफआईआर दर्ज कराने पर जोर दें. ऐसे मामलों में आईटी एक्ट, धोखाधड़ी (धारा 420) और आईपीसी की कुछ अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाता है.

पुलिस से एफआईआर  की कौपी जरूर लें. अगर पुलिस की काररवाई में जरा सी भी ढील लगे तो तुरंत किसी वकील की मदद लें.

Best of Manohar Kahaniya: लिवइन पार्टनर की मौत का राज

सौजन्य-मनोहर कहानियां

9 सितंबर, 2019 को अनीता अपनी सहेली से मिलने ग्रेटर नोएडा गई थी. अगले दिन अपराह्न 2 बजे जब वह दिल्ली के लाजपत नगर में स्थित अपने फ्लैट में पहुंची तो वहां का खौफनाक मंजर देखते ही उस के मुंह से चीख निकल गई. उस के पैर दरवाजे पर ही ठिठक गए.

उस के लिवइन पार्टनर सुनील तमांग की लहूलुहान लाश फर्श पर पड़ी थी. उस की गरदन से खून निकल कर पूरे फर्श पर फैल चुका था, जो अब जम चुका था. अनीता ने सब से पहले अपने फ्लैट के मालिक ए.के. दत्ता को फोन कर इस घटना की जानकारी दी. ए.के. दत्ता पास की ही एक दूसरी कालोनी में रहते थे. लिहाजा कुछ देर में वह अपने लाजपत नगर वाले फ्लैट पर पहुंचे, जहां बुरी तरह घबराई अनीता उन का इंतजार कर रही थी.

सुनील की खून से सनी लाश देखने के बाद उन्होंने घटना की जानकारी दिल्ली पुलिस के कंट्रोल रूम को दी तो कुछ ही देर के बाद थाना अमर कालोनी के थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए और घटनास्थल की जांच में जुट गए. उन्होंने डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया.

घटनास्थल की फोटोग्राफी और वहां पर मौजूद खून के धब्बों के नमूने एकत्र करने के बाद थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन ने तहकीकात शुरू की. मृतक सुनील की गरदन पर पीछे की तरफ से किसी तेज धारदार हथियार से जोरदार वार किया गया था, जिस से ढेर सारा खून निकल कर फर्श पर फैल गया था.

कमरे के सभी कीमती सामान अपनी जगह मौजूद थे, जिसे देख कर लगता था कि यह हत्या लूटपाट के लिए नहीं बल्कि रंजिशन की गई होगी. उन्होंने अनीता से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह और सुनील पिछले एक साल से इस फ्लैट में लिवइन पार्टनर के रूप में रह रहे थे. वह एक ब्यूटीपार्लर में काम करती थी, जबकि सुनील एक रेस्टोरेंट में कुक था. लेकिन कई महीने पहले किसी वजह से उस की नौकरी छूट गई थी.

कल रात साढ़े 11 बजे किसी जरूरी काम से वह अपनी सहेली से मिलने ग्रेटर नोएडा गई थी. रात को वह वहीं रुक गई थी. रात में उस ने फोन पर काफी देर तक सुनील से बातें की थीं.

आज दोपहर को वह यहां पहुंची तो देखा फ्लैट का दरवाजा खुला था और अंदर प्रवेश करते ही उस की नजर सुनील की लाश पर पड़ी थी. इस के बाद उस ने अपने मकान मालिक को फोन कर इस घटना के बारे में बताया तो उन्होंने यहां पहुंचने के बाद इस घटना की सूचना पुलिस को दी.

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थानाप्रभारी ने मकान मालिक ए.के. दत्ता से भी पूछताछ की तो उन्होंने भी वही बातें बताईं जो अनीता ने बताई थीं.

सारी काररवाई से निपटने के बाद थानाप्रभारी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और थाने लौट कर सुनील की हत्या का मामला दर्ज कर लिया.

इस केस की गुत्थी सुलझाने के लिए दक्षिणपूर्वी दिल्ली के डीसीपी चिन्मय बिस्वाल ने कालकाजी के एसीपी गोविंद शर्मा की देखरेख में एक टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन, एसआई अभिषेक शर्मा, ईश्वर, आर.एस. डागर, एएसआई जगदीश, कांस्टेबल राजेश राय, मनोज, सज्जन आदि शामिल थे.

विरोधाभासी बयानों से हुआ शक

अगले दिन थानाप्रभारी ने घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवाई, ताकि वारदात की रात फ्लैट के आसपास घटने वाली सभी गतिविधियों की बारीकी से जांच की जा सके. साथ ही मृतक सुनील तमांग और अनीता के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स और सीसीटीवी फुटेज की बारीकी से जांचपड़ताल करने के बाद थानाप्रभारी ने गौर किया कि अनीता के बयान विरोधाभासी थे. इसलिए अनीता को पुन: पूछताछ के लिए अमर कालोनी थाने बुलाया गया. उस से सघन पूछताछ की गई तो अनीता यही कहती रही कि वह रात साढ़े 11 बजे अपनी सहेली से मिलने ग्रेटर नोएडा गई थी, लेकिन वह वहां देर रात को क्यों गई, इस की वजह नहीं बता पाई.

पुलिस को लग रहा था कि वह झूठ पर झूठ बोल रही है. उस ने उस रात जिनजिन नंबरों पर बात की थी, उन के बारे में भी वह संतोषजनक जवाब नहीं दे सकी. लिहाजा उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गई और सुनील तमांग की हत्या में खुद के शामिल होने का जुर्म स्वीकार कर लिया.

उस ने बताया कि इस हत्याकांड में उस का भाई विजय छेत्री तथा जीजा राजेंद्र छेत्री भी शामिल थे. ये दोनों पश्चिम बंगाल के कालिंपोंग शहर के रहने वाले थे. अनीता द्वारा अपने लिवइन पार्टनर की हत्या में शामिल होने की बात स्वीकार करने के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

बाकी आरोपियों विजय छेत्री और राजेंद्र छेत्री को गिरफ्तार करने के लिए थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन ने एसआई अभिषेक शर्मा के नेतृत्व में एक टीम गठित की. यह टीम 13 सितंबर, 2019 को वेस्ट बंगाल के कालिंपोंग शहर पहुंच गई. स्थानीय पुलिस के सहयोग से दिल्ली पुलिस ने विजय छेत्री और राजेंद्र छेत्री को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया.

दोनों से जब सुनील तमांग की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उन दोनों ने पुलिस को बरगलाने की काफी कोशिश की लेकिन बाद में जब उन्हें बताया गया कि अनीता गिरफ्तार हो चुकी है और उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया है, तो उन दोनों ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.

वेस्ट बंगाल की स्थानीय कोर्ट में पेश करने के बाद दिल्ली पुलिस दोनों आरोपियों को ट्रांजिट रिमांड पर ले कर दिल्ली लौट आई.

अनीता, विजय और राजेंद्र से की गई पूछताछ तथा पुलिस की जांच के आधार पर इस हत्याकांड के पीछे की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है –

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अनीता मूलरूप से पश्चिम बंगाल के कालिंपोंग की रहने वाली थी. करीब 5 साल पहले वह अपने पति से अनबन होने पर उसे छोड़ कर अपने सपनों को पंख लगाने के मकसद से दिल्ली आ गई थी. यहां उस की एक सहेली थी, जो बहुत शानोशौकत से रहती थी. वह सहेली जरूरत पड़ने पर उस की मदद भी कर दिया करती थी.

दरअसल, अनीता स्कूली दिनों से ही खुले विचारों वाली एक बिंदास लड़की थी. वह जिंदगी को अपनी ही शर्तों पर जीना चाहती थी, जबकि उस का पति एक सीधासादा युवक था. उसे अनीता का ज्यादा फैशनेबल होना तथा लड़कों से ज्यादा मेलजोल पसंद नहीं था.

विपरीत स्वभाव होने के कारण शादी के थोड़े दिनों बाद ही वे एकदूसरे को नापसंद करने लगे थे. बाद में जब बात काफी बढ़ गई तो एक दिन अनीता ने पति को छोड़ दिया और वापस अपने मायके चली आई. कुछ दिन तो वह मायके में रही, फिर बाद में उस ने अपने पैरों पर खडे़ होने का फैसला कर लिया. और वह दिल्ली आ गई.

वह ज्यादा पढ़ीलिखी तो नहीं थी, महज 8वीं पास थी. छोटे शहर की होने और कम शिक्षित होने के बावजूद उस का रहने का स्टाइल ऐसा था, जिसे देख कर लगता था कि वह काफी मौडर्न है.

दिल्ली पहुंचने के बाद अनीता ने अपनी उसी सहेली की मदद से ब्यूटीशियन की ट्रेनिंग ली. इस के बाद वह एक ब्यूटीपार्लर में नौकरी करने लगी. नौकरी करने से उस की माली हालत अच्छी हो गई और जिंदगी पटरी पर आ गई.

इसी दौरान एक दिन उस की मुलाकात सुनील तमांग नाम के युवक से हुई जो नेपाल का रहने वाला था. उस की मां कुल्लू हिमाचल प्रदेश की थी. 28 वर्षीय सुनील दक्षिणी दिल्ली के साकेत में स्थित एक रेस्टोरेंट में कुक था.

दोनों एकदूसरे को चाहने लगे

कुछ दिनों तक दोस्ती के बाद वह सुनील को अपना दिल दे बैठी. सुनील अनीता की खूबसूरती पर पहले से ही फिदा था. एक दिन सुनील ने अनीता को अपने दिल की बात बता दी और कहा कि वह उसे दिलोजान से प्यार करता है. इतना ही नहीं, वह उस से शादी रचाना चाहता है.

अनीता उस के दिल की बात जान कर खुशी से झूम उठी. उस ने सुनील से कहा कि पहले कुछ दिनों तक हम लोग साथ रह लेते हैं. फिर घर वालों की रजामंदी से शादी कर लेंगे. इस की एक वजह यह भी थी कि अभी पहले पति से अनीता का तलाक नहीं हुआ था. तलाक के बाद ही दूसरी शादी संभव हो सकती थी.

कोई 4 साल पहले अनीता ने सुनील तमांग के साथ चिराग दिल्ली में किराए का मकान ले कर रहना शुरू कर दिया. दोनों एकदूसरे को पा कर बेहद खुश थे. सुनील अनीता का काफी खयाल रखता था. अनीता भी सुनील के साथ लिवइन में रह कर खुद को भाग्यशाली समझती थी.

सुनील न केवल देखने में स्मार्ट था, बल्कि एक अच्छे पार्टनर की तरह उस की प्रत्येक छोटीछोटी बात का विशेष ध्यान रखता था. अनीता भी सुनील की खुशियों का खूब खयाल रखती थी. वह अपनी तरफ से कोई ऐसा काम नहीं करती थी, जिस से सुनील की कोई भावना आहत हो.

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अनीता और सुनील 3 सालों तक चिराग दिल्ली स्थित इस मकान में रहे. इस बीच जब अनीता की पगार अच्छी हो गई तो वह चिराग दिल्ली से लाजपत नगर आ गई. यहां वह ए.के. दत्ता के फ्लैट में किराए पर रहने लगी. यहां उस का फ्लैट तीसरी मंजिल पर था.

इतने दिनों तक लिवइन रिलेशन में रहने के कारण दोनों के परिवार वाले भी उन के संबंधों से परिचित हो गए थे. अनीता का भाई विजय छेत्री जबतब कालिंपोंग से दिल्ली में उस के पास आता रहता था. उसे सुनील का व्यवहार पसंद नहीं था.

विजय ने अनीता की पसंद पर ऐतराज तो नहीं जताया लेकिन एक दिन उस ने सुनील की गैरमौजूदगी में अपने मन की बात अनीता को बता दी. चूंकि अनीता सुनील से प्यार करती थी, इसलिए उस ने भाई से सुनील का पक्ष लेते हुए कहा कि सुनील दिल का बुरा नहीं है लेकिन फिर भी अगर सुनील की कोई बात उसे अच्छी नहीं लगती है तो वह उसे कह कर इस में सुधार लाने का प्रयास करेगी.

विजय ने जब देखा कि उस की बहन ने उस की बात को ज्यादा तवज्जो नहीं दी है तो उस ने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी. सुनील और अनीता को विजय की बातों से जरा भी फर्क नहीं पड़ा था.

लेकिन कहते हैं कि हर आदमी का वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता है. सुनील तमांग के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. किसी बात को ले कर सुनील की रेस्टोरेंट से नौकरी छूट गई. नौकरी छूट जाने की वजह से वह परेशान तो हुआ लेकिन अनीता अच्छा कमा रही थी, इसलिए घर का खर्च आराम से चल जाता था.

हालांकि कुछ दिन बाद अनीता सुनील को समझाबुझा कर जल्दी कहीं नौकरी खोजने का दबाव बना रही थी, मगर 6 महीने तक सुनील को उस के मनमुताबिक नौकरी नहीं मिली.

धीरेधीरे अनीता को ऐसा लगने लगा जैसे सुनील जानबूझ कर नौकरी नहीं करना चाहता है और अब वह उस के ही पैसों पर मौज करना चाहता है. ऐसा विचार मन में आते ही उस ने एक दिन तीखे स्वर में सुनील से कहा, ‘‘सुनील, या तो तुम जल्दी कहीं पर नौकरी ढूंढ लो अन्यथा मेरा साथ छोड़ कर यहां से कहीं और चले जाओ.’’

हालांकि अनीता ने यह बात सुनील को समझाने के लिए कही थी, लेकिन उस दिन के बाद सुनील के तेवर बदल गए. उस ने अनीता से कहा कि वह उसे छोड़ कर कहीं नहीं जाएगा और फिर भी अगर वह उसे जबरन खुद से दूर करने की कोशिश करेगी तो उस के पास अंतरंग क्षणों के कई फोटो मोबाइल पर पड़े हैं, जिन्हें वह उस के सगेसंबंधियों के मोबाइल पर भेज देगा, जिस के बाद वह कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी.

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रुपयों की तंगी तथा सुनील की धमकी को सुन कर अनीता कांप उठी. इस घटना के कुछ दिनों बाद तक अनीता ने सुनील को नौकरी ढूंढने पर जोर देती रही, लेकिन सुनील पर इस का कोई फर्क नहीं पड़ा.

अंत में अनीता ने कालिंपोंग स्थित अपने भाई विजय को अपनी मुसीबत के बारे में बताया तो विजय गुस्से से भर उठा. उस ने अनीता से कहा कि वह जल्द ही सुनील नाम के इस कांटे को उस की जिंदगी से निकाल फेंकेगा.

भाई ने बनाया हत्या का प्लान

भाई की बात सुन कर अनीता को राहत महसूस हुई. विजय को सुनील पहले से नापसंद था. अब जब अनीता खुद ही उस से छुटकारा पाना चाहती थी तो उस ने अपने रिश्ते के बहनोई राजेंद्र के साथ मिल कर सुनील को मौत की नींद सुलाने की योजना तैयार कर ली. इस के बाद उस ने अनीता को अपनी योजना के बारे में बताया तो अनीता ने दोनों को दिल्ली पहुंचने के लिए कह दिया.

7 सितंबर, 2019 को विजय छेत्री और राजेंद्र छेत्री पश्चिम बंगाल के कालिंपोंग से नई दिल्ली पहुंचे और पहाड़गंज के एक होटल में रुके. अनीता फोन से बराबर भाई के संपर्क में थी. लेकिन सुनील अनीता और विजय के षडयंत्र से अनजान था. उसे सपने में भी गुमान नहीं था कि अनीता उस की ज्यादतियों से तंग आ कर उस का कत्ल भी करवा सकती है.

9 सितंबर को विजय छेत्री और राजेंद्र छेत्री पूर्वनियोजित योजना के अनुसार रात के 10 बजे अनीता के फ्लैट पर पहुंचे. अनीता दोनों से ऐसे मिली जैसे उन्हें पहली बार देखा हो. सुनील भी उन से घुलमिल कर बातें करने लगा.

साढ़े 11 बजे उस ने अचानक सब को बताया कि उसे अभी इसी वक्त अपनी सहेली से मिलने ग्रेटर नोएडा जाना है. इस के बाद वह तैयार हो कर फ्लैट से बाहर निकल गई.  रात में अनीता सुनील के मोबाइल पर काल कर के उस से 2-3 घंटे तक मीठीमीठी बातें करती रही.

तड़के करीब 4 बजे जैसे ही सुनील सोया, तभी विजय ने राजेंद्र के साथ मिल कर उस की गरदन पर चाकू से वार किया. थोड़ी देर तड़पने के बाद जब उस का शरीर ठंडा पड़ गया तो दोनों वहां से आनंद विहार के लिए निकल गए, क्योंकि वहां से उन्हें कालिंपोंग के लिए ट्रेन पकड़नी थी.

आनंद विहार जाने के दौरान रास्ते में विजय ने खून से सना चाकू एक सुनसान जगह पर फेंक दिया. आनंद विहार स्टेशन से रेलगाड़ी द्वारा वे कालिंपोंग पहुंच गए.

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इन से विस्तार से पूछताछ करने के बाद अगले दिन 16 सितंबर, 2019 को थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन ने सुनील तमांग की हत्या के आरोप में उस की लिवइन पार्टनर अनीता, विजय छेत्री तथा राजेंद्र छेत्री को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से तीनों को तिहाड़ जेल भेज दिया गया.

मामले की जांच थानाप्रभारी अनंत कुमार गुंजन कर रहे थे.

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सौजन्य- मनोहर कहानियां

5 नवंबर, 2017 की सुबह 9 बजे नवी मुंबई के उपनगर एवं थाना खांदेश्वर में ड्यूटी पर तैनात एआई गजानंद घाड़गे को बालासाहेब माने ने फोन कर के बताया कि साईंलीला हाउसिंग सोसायटी की इमारत के कमरा नंबर 12 से बहुत तेज दुर्गंध आ रही है. कमरे में बाहर से ताला बंद है. दुर्गंध से लगता है कि अंदर कोई लाश सड़ रही है.

गजानंद घाड़गे ने यह बात थानाप्रभारी अमर देसाई और इंसपेक्टर विजय वाघमारे को बताई. उन्होंने तत्काल इस मामले की डायरी तैयार कराई और एआई संतोष जाधव, गजानंद घाड़गे, सिपाही पांडुरंग सूर्यवंशी, अबू जाधव, सोमनाथ रणदिवे, संजय पाटिल और अभय जाधव को साथ ले कर घटनास्थल पर जा पहुंचे.

जिस कमरे से दुर्गंध आ रही थी, उस के सामने भीड़ लगी थी. पुलिस को देखते ही भीड़ एक किनारे हो गई. कमरे के सामने पहुंच कर पुलिस ने सूचना देने वाले उस कमरे के मालिक बालासाहब माने से पूछताछ की. पता चला कि उस कमरे में अंजलि पवार रहती थी. वह 5 महीने पहले ही वहां रहने आई थी. उसे यह कमरा उस की सहेली माया ने एक प्रौपर्टी डीलर के मार्फत दिलाया था. माया उस के सामने वाले 10 नंबर के कमरे में अपने एक पुरुष मित्र के साथ रहती थी. लेकिन वह 3-4 दिन से बाहर गई हुई थी.

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चूंकि उस कमरे की चाबी किसी के पास नहीं थी. इसलिए मजबूर हो कर दरवाजा तोड़ा गया. दरवाजा टूटते ही अंदर से बदबू का ऐसा झोंका आया, जिस से वहां खड़े लोगों का सांस लेना मुश्किल हो गया. पुलिस कमरे में घुसी तो फर्श पर जगहजगह खून के धब्बे नजर आए. बाथरूम का दरवाजा खुला था. उसी में बैडशीट में लपेट कर लाश रखी थी, जो कमरे के अंदर आते ही दिखाई दे गई थी. उसे कमरे में ला कर खोला गया तो उस में जो लाश निकली, वह उस कमरे में रहने वाली अंजलि पवार की थी. उस के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था. शरीर पर कई गहरे घाव थे, दोनों हाथों की नसें भी कटी थीं.

लाश देख कर यही लगता था कि मृतका की हत्या 3-4 दिन पहले की गई थी. मामला हत्या का था, इसलिए थानाप्रभारी अमर देसाई ने इस बात की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम को देने के साथसाथ वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी थी. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी सूचना दी गई. सूचना पा कर थोड़ी ही देर में क्राइम टीम के साथ नवी मुंबई के डीसीपी विश्वास पांढरे और एसीपी प्रकाश निलेवाड़ घटनास्थल पर पहुंच गए.

क्राइम टीम का काम निपट गया तो अमर देसाई ने घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए पनवेल के ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र भिजवा दिया. इस के बाद थाने लौट कर हत्या के इस मामले की जांच इंसपेक्टर विजय वाघमारे को सौंप दी.

विजय वाघमारे ने थानाप्रभारी अमर देसाई से सलाहमशविरा कर के जांच की रूपरेखा तैयार की और अपनी एक टीम बना कर हत्यारों तक पहुंचने की कोशिश शुरू कर दी. दूसरी ओर नवी मुंबई के सीपी हेमंत नगराले और जौइंट सीपी मधुकर पांडेय के निर्देश पर नवी मुंबई क्राइम ब्रांच-2 की टीम भी हत्या के इस मामले की जांच में लग गई.

जांच का निर्देश मिलते ही क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर एस.पी. कोल्हटकर ने भी घटनास्थल का निरीक्षण कर के मामले की जानकारियां जुटाईं. कोल्हटकर की नजर मृतका की सहेली माया पर थी, इसलिए माया को क्राइम ब्रांच ने अपने औफिस बुला लिया. उस से की गई पूछताछ में जो पता चला, उस से क्राइम ब्रांच को उस के प्रेमी राजकुमार उर्फ राज पर शक हुआ. क्योंकि पुलिस को माया की बातों से राजकुमार शातिर प्रवृत्ति का लगा था. शंका की एक वजह यह भी थी कि वह उसी दिन से गायब था, जिस दिन अंजलि की हत्या हुई थी.

पुलिस ने माया से राजकुमार का मोबाइल नंबर ले कर सर्विलांस पर लगा दिया. इस का परिणाम भी मनचाहा मिला. सर्विलांस की मदद से राजकुमार को 14 नवंबर, 2016 को तलौजा के नावड़ा फाटक के पास से गिरफ्तार कर लिया गया.

28 साल का राजकुमार उत्तर प्रदेश के जिला आजमगढ़ के रहने वाले आदिनाथ पांडेय का बेटा था. आदिनाथ पांडेय काफी पहले रोजीरोटी के चक्कर में महाराष्ट्र के जिला रायपुर आ कर वहां की तहसील खालापुर के गांव शिवनगर में रहने लगे थे. गुजरबसर के लिए उन्होंने शिवनगर के बसस्टौप पर पान का खोखा रख लिया था. राजकुमार उन की एकलौती संतान था.

अधिक लाड़प्यार की वजह से वह बिगड़ गया था. आदिनाथ घर से सुबह जल्दी निकल जाते थे और देर रात लौटते थे, इसलिए वह बेटे पर ध्यान नहीं दे पाते थे. यही वजह थी कि जैसेजैसे वह बड़ा होता गया, वैसेवैसे उस की आदतें बिगड़ती गईं. पिता को समय नहीं मिलता था, मां कुछ कह नहीं पाती थी, इसलिए उसे न किसी का डर था न लिहाज. वह अपनी मनमरजी करने लगा. उस ने दोस्ती भी अपने जैसे लड़कों से कर ली, जिन्होंने उसे और बिगाड़ दिया.

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कमउम्र में ही वह शराब के साथसाथ शबाब का भी शौकीन हो गया. बाप की इतनी कमाई नहीं थी कि वह उस के जायजनाजायज खर्च पूरे करते, इसलिए अपने नाजायज खर्चे पूरे करने के लिए वह चोरियां और लूट करने लगा. लड़कियों के शौक ने ही उस की मुलाकात माया से करा दी. माया उस अड्डे की सब से खूबसूरत युवती थी, इसलिए उस की कीमत भी सब से ज्यादा थी. वह कभीकभी ही धंधे के लिए अड्डे पर आती थी. उस की ज्यादातर बुकिंग उन ग्राहकों के साथ ही होती थी, जो उसे होटल या गेस्टहाउस ले जाते थे.

माया का भाव बहुत ज्यादा था, जिसे अदा करना राजकुमार के वश में नहीं था. माया उसे भा जरूर गई थी, पर उस के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह उस के पास जा पाता. ऐसे में उस की दाल कहां गलने वाली थी. पर उस ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने मन ही मन तय कर लिया कि एक न एक दिन वह माया को अपनी बना कर रहेगा.

समय अपनी गति से चलता रहा. राजकुमार ने जब से माया को देखा था, तब से उस का दीवाना हो चुका था. माया उस के दिमाग में कुछ इस तरह छा गई थी कि सोतेजागते वह उसी के बारे में सोचा करता था. इस बीच उस ने कई बार माया के पास जाने की कोशिश की, लेकिन माया ने बिना पैसे के उसे भाव नहीं दिया, क्योंकि वह आदमी की नहीं, पैसों की कद्र करती थी.

राजकुमार को जब लगा कि बिना पैसों के वह माया तक नहीं पहुंच सकता तो पैसों के लिए उस ने एक बड़ी योजना बनाई. उस ने ज्वैलथीफ विनोद सिंह की तरह काम किया, जिस में वह सफल भी रहा. विनोद ने अकेले ही मुंबई और बंगलुरु की गहनों की कई दुकानों में सेंधमारी की थी. आजकल वह जेल में बंद है.

विनोद सिंह की तर्ज पर राजकुमार के पास पैसा आया तो उसे माया के पास पहुंचने में देर नहीं लगी. वह आए दिन माया के पास जाने लगा. धीरेधीरे दोनों के बीच की दूरियां खत्म हुईं तो दोनों एकदूसरे से अपना दुखदर्द बांटने लगे. राजकुमार माया को पहले से प्यार करता था, अब वह उस से विवाह के बारे में सोचने लगा. माया जिस मजबूरी के तहत उस अंधेरी गली में आई थी, उस मजबूरी को हल कर के वह उसे उजाले में लाने की कोशिश करने लगा.

दरअसल, माया यवतमाल के एक छोटे से गांव की रहने वाली थी. उस की पारिवारिक स्थिति काफी खराब थी. भाईबहनों में वह सब से बड़ी थी. उस के पिता को टीबी हो गई थी, जिस के इलाज के लिए उसे पैसों की जरूरत थी. वह जिस के भी पास नौकरी या पैसों के लिए गई, उसी ने उसे काम देने के बजाय उस की सुंदरता पर ज्यादा ध्यान दिया.

मजबूर हो कर उस ने सोचा कि लोग उस की सुंदरता का फ्री में लाभ उठाएं, उस से अच्छा है कि वही क्यों न अपनी सुंदरता का लाभ उठाए. इस के बाद माया गांव के बिगड़े शरीफजादों के पास खुद ही जाने लगी. उन्हें वह अपना तन सौंपती और बदले में उन से अच्छा पैसा लेती. धीरेधीरे उस के देहव्यापार की बात गांव में फैलने लगी तो वह गांव छोड़ कर मुंबई आ गई.

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माया खुद अपनी मरजी से देहव्यापार में आई थी, इसलिए कोठा मालकिन ने उसे अपना धंधा स्वतंत्र रूप से करने की इजाजत दे दी. उस से वह सिर्फ अपने कोठे का किराया लिया करती थी. पहले तो माया ने राजकुमार की ओर ध्यान नहीं दिया. वह उसे अपना शरीर सौंप कर बदले में उस से कीमत लेती रही. लेकिन जब उसे लगा कि राजकुमार उसे सचमुच प्यार करता है तो उस का भी झुकाव उस की ओर होने लगा. वह भी उस से प्यार करने लगी.

अब दोनों के बीच शरीर और पैसों की बात खत्म हो गई. उन्हें जब भी मौका मिलता, वे शहर से बाहर घूमने निकल जाते, राजकुमार चोरी के पैसे से माया की जरूरतें पूरी कर रहा था.

जब राजकुमार को विश्वास हो गया कि माया भी उस से प्यार करने लगी है तो उस ने उस के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया. लेकिन यह बात माया को उचित नहीं लगी, इसलिए उस ने इंतजार करने को कहा.

माया ने राजकुमार को शादी के लिए भले ही इंतजार करने के लिए कहा था, लेकिन वह उस के साथ लिवइन में रहने लगी. रहते भले ही दोनों साथ थे, लेकिन दोनों किसी के काम में हस्तक्षेप नहीं करते थे. जबकि दोनों को परिणामों के बारे में अच्छी तरह पता था.

आखिर एक दिन मुंबई क्राइम ब्रांच ने राजकुमार को सेंधमारी की योजना बनाते हुए पकड़ लिया. इस मामले में उसे 6 महीने की सजा हुई. कुछ दिनों जेल में रहने के बाद 28 अक्तूबर, 2016 को वह पैरोल पर बाहर आया तो फिर लौट कर जेल नहीं गया. अंजलि और माया सहेलियां थीं. माया की तरह वह भी देह के धंधे में लिप्त थी. राजकुमार के जेल जाने के बाद अंजलि की माया से मुलाकात एक पिकनिक पौइंट पर हुई तो जल्दी ही दोनों में गहरी दोस्ती हो गई.

27 साल की स्वस्थ और सुंदर अंजलि अतिमहत्त्वाकांक्षी युवती थी. वह गुजरात के जिला बलसाड़ की रहने वाली थी. साधारण परिवार में जन्मी अंजलि के सपने काफी बड़े थे. लेकिन उस की शादी एक औटोचालक विपिन पवार से हो गई थी. वह नवी मुंबई के उपनगर खांदेश्वर में किराए पर औटो ले कर चलाता था.

इसे अपनी बदनसीबी समझ कर अंजलि विपिन के साथ रह रही थी. लेकिन उस की कमाई से वह खुश नहीं थी. क्योंकि आधी से अधिक कमाई की तो वह शराब ही पी जाता था, जो बचता था, उस से  घर का खर्च चलाना मुश्किल था.

कुछ दिनों तक तो अंजलि यह सब झेलती रही, लेकिन जब उस ने देखा कि अगर वह पति के सहारे रही तो इसी तरह घुटघुट कर मर जाएगी. इसलिए उस ने कुछ करने का विचार किया.

वह जिस बस्ती में रहती थी, वहां की कई लड़कियां और महिलाएं बीयरबारों में काम करती थीं. वे काफी सुखी थीं. अंजलि ने उन से बात की और उन के साथ जाने लगी.

बीयरबार में काम करतेकरते वह अधिक कमाई के लिए देहव्यापार भी करने लगी. इस काम में उसे अच्छी कमाई होने लगी. साथ ही वह ग्राहकों के साथ घूमने भी जाने लगी. ऐसे में ही उस की मुलाकात माया से हुई तो एक ही राह की राही होने की वजह से दोनों में दोस्ती हो गई. दोस्ती इतनी गहरी थी कि वे एकदूसरे के घर भी आनेजाने लगी थीं. पैसा आने लगा तो अंजलि के रहनसहन में पूरी तरह बदलाव आ गया. इस बदलाव की असलियत की जानकारी उस के पति विपिन को हुई तो उस ने अंजलि को समझाने के साथसाथ धमकाया भी, पर अंजलि को जो सुख इस काम में मिल रहा था, वह भला उसे कैसे छोड़ती.

घर में लड़ाईझगड़ा शुरू हुआ तो रोजरोज की किचकिच से तंग आ कर उस ने पति को ही छोड़ दिया. पति को छोड़ कर वह माया द्वारा दिलाए गए किराए के मकान में रहने लगी.

पैरोल पर जेल से छूट कर आया राजकुमार माया के पास पहुंचा तो अंजलि को देख कर उस पर मर मिटा. जब उसे पता चला कि अंजलि भी माया की तरह देहधंधा करती है तो उसे अपनी राह आसान नजर आई. उस ने सोचा कि वह जब चाहेगा, पैसे के बल पर या ऐसे ही उसे पा लेगा. अब वह उसे पाने का मौका ढूंढने लगा.

3 नवंबर, 2016 को माया अपने किसी ग्राहक के साथ गोवा चली गई. उसे बस पर बैठा कर राजकुमार लौट रहा था तो अपना खाना और शराब की बोतल साथ ले आया. शराब पीने के बाद उसे नशा चढ़ा तो उसे अंजलि की याद आई. उस की याद में वह खाना भूल गया.

उस समय तक रात के 12 बज चुके थे. सोसाइटी के लगभग सभी लोग सो चुके थे. धीरे से माया के घर से निकल कर उस ने अंजलि का दरवाजा खटखटाया तो उस ने दरवाजा खोल दिया. अंजलि के दरवाजा खोलते ही राजकुमार उस के कमरे में आ गया. अंजलि उस समय रात वाले आरामदायक कपड़ों में थी.

उसे उन कपड़ों में देख कर राजकुमार उत्तेजित हो उठा. उस ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘अंजलि, तुम्हारी सहेली मुझे अकेला छोड़ कर गोवा चली गई, जबकि इस समय मुझे उस की सख्त जरूरत महसूस हो रही है. सोचा, माया नहीं है तो उस की सहेली ही सही. तुम उस की कमी पूरी कर दो.’’

राजकुमार की मंशा भांप कर अंजलि ने उसे अपने कमरे में जाने को कहा तो वापस जाने के बजाए राजकुमार अंदर से दरवाजा बंद कर के उस के साथ जबरदस्ती करने लगा. अंजलि ने खुद को बचाने की बहुत कोशिश की, लेकिन हट्टेकट्टे राजकुमार से वह खुद को बचा नहीं सकी. आखिर राजकुमार मनमानी कर के ही माना.

मनमानी कर के राजकुमार जाने लगा तो अंजलि ने कहा, ‘‘तुम ने मेरे साथ जो किया है, ठीक नहीं किया. आने दो माया को, मैं उसी से नहीं, पुलिस से भी तुम्हारी शिकायत करूंगी.’’

अंजलि की इस धमकी से राजकुमार डर गया. नशे में वह था ही, फलस्वरूप अच्छाबुरा नहीं सोच सका. वह एक खतरनाक फैसला ले कर किचन में गया और वहां से सब्जी काटने वाली छुरी ला कर यह सोच कर अंजलि पर हमला कर दिया कि न यह रहेगी और न शिकायत करेगी.

अंजलि की हत्या कर के वह बाहर आया और दरवाजे पर ताला लगा कर माया के कमरे पर आ गया. अगले दिन वह तलौजा में रहने वाले अपने एक पुराने दोस्त के यहां चला गया, जहां से क्राइम ब्रांच की टीम ने उसे गिरफ्तार कर लिया था.

पूछताछ के बाद क्राइम ब्रांच पुलिस ने राजकुमार को थाना खांदेश्वर पुलिस के हवाले कर दिया, जहां इंसपेक्टर विजय वाघमारे ने उस के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उसे जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Best of Manohar Kahaniya: मिल ही गई गुनाहों की सजा

सौजन्य- मनोहर कहानियां

चंडीगढ़ के एडीशनल सेशन जज एस.के. सचदेवा ने अभियोजन पक्ष के गवाहों की सूची पर नजर  डाली, 16 गवाह थे. इन में पुलिस वालों के बयान तो लगभग एक जैसे थे कि लाश मिलने पर उन्होंने कौनकौन सी काररवाई की थी. अभियुक्तों की निशानदेही पर कैसे क्या बरामद किया गया था.

इस के अलावा गवाह के रूप में पेश हुए जनकदेव ने अजीब सा बयान दिया तो उसे मुकरा हुआ गवाह घोषित कर दिया गया. गुरमेल सिंह ने अपने बयान में बताया था कि सेक्टर-56 स्थित उस की दुकान पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, जिन की फुटेज उस ने पुलिस वालों को मुहैया करवाई थी.

संतोष कुमार का कहना था कि वह बद्दी (हिमाचल प्रदेश) की एक फैक्ट्री में मैकेनिक था और रिश्ते में अजय कुमार का साला था. 14 मई, 2016 को उसे उस की मौसी ने फोन कर के अजय की लाश मिलने की बात बताई थी. वह अगले दिन चंडीगढ़ के सिविल अस्पताल की मोर्चरी में अजय की लाश देखने गया था. तब पुलिस ने उस से लाश की लिखित शिनाख्त करवाई थी.

डा. ज्योति बरवा ने डा. रिशु जिंदल के साथ मिल कर लाश का पोस्टमार्टम किया था. डा. संजीव ने अदालत के सामने पेश हो कर मृतक की ब्लड ग्रुप संबंधी रिपोर्ट पेश की थी.

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अभियोजन पक्ष के गवाहों को निपटाने में अदालत को कई महीने का समय लग गया था. उस के बाद बचावपक्ष के गवाहों की बारी थी, जो 5 थे. दिनेश सिंह, बृजेश कुमार यादव, बलविंदर सिंह, किरन तथा खुशबू.

इन लोगों ने अपने बयान में क्या कहा, यह जानने से पहले इस मामले के बारे में जान लेना ठीक रहेगा.

रूबी कुमारी मूलरूप से बिहार की रहने वाली थी. जब वह 16 साल की थी, तभी उस की शादी अजय कुमार से हो गई थी. वह भी बिहार का ही रहने वाला था. लेकिन नौकरी की वजह से वह चंडीगढ़ में रहता था. शादी के बाद उस ने रूबी को गांव में ही मांबाप के पास छोड़ दिया था.

चंडीगढ़ से सटे मोहाली में वह गत्ता बनाने वाली एक फैक्ट्री में नौकरी करता था और चंडीगढ़ के सेक्टर-56 में छोटा सा मकान ले कर अकेला ही रहता था. साल में 2 बार 10-10 दिनों की छुट्टी ले कर वह गांव जाया करता था.

देखतेदेखते 13 साल का लंबा अरसा गुजर गया. इस बीच वह 3 बच्चों का पिता बन गया था. सन 2015 में अजय बीवीबच्चों को चंडीगढ़ ले आया. उस ने बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूल में करवा दिया.

रूबी शरीर से चुस्तदुरुस्त थी. गांव में उस के पास साइकिल थी. चंडीगढ़ आ कर उस ने स्कूटर चलाना सीख लिया तो अजय ने उसे एक्टिवा स्कूटी दिलवा दी. अजय सुबह लोकल बस से नौकरी पर चला जाता. रूबी तीनों बच्चों को स्कूल पहुंचाती. इस के बाद खाना बना कर दोपहर को टिफिन ले कर वह स्कूटी से पति को फैक्ट्री में दे आती. शाम को छुट्टी के बाद अजय बस से घर आ जाता.

रूबी ने पति को कभी किसी तरह की शिकायत का मौका नहीं दिया था. अजय पत्नी से बहुत खुश था. वह अकसर कहता रहता था कि उस की जैसी पत्नी खुशनसीब इंसान को ही मिलती है. रूबी सुंदर भी थी, पति को रिझाने की उसे हर कला आती थी. पासपड़ोस की बुजुर्ग महिलाएं अपनी बहुओं को रूबी की मिसाल दिया करती थीं.

खैर, अजय का समय परिवार के साथ बहुत अच्छे से बीत रहा था. बुरे वक्त की उस ने कल्पना भी नहीं की थी, पर अचानक उस का बुरा वक्त आ गया.

14 मई, 2016 की सुबह एक बुजुर्ग सैर करते हुए सैक्टर-56 के सरकारी स्कूल के पास से गुजरे तो उन की नजर एक जगह वीराने में सीवरेज गटर के पास पड़े सफेद रंग के बोरे पर पड़ी. बोरे के पास पहुंच कर उन्होंने उसे टटोला तो उस में लाश होने की आशंका हुई.

उन्होंने तुरंत इस बात की सूचना 100 नंबर पर दे दी. थोड़ी ही देर में एक पीसीआर वैन वहां आ पहुंची. पुलिसकर्मियों ने उस बुजुर्ग से बात कर के इस बात की सूचना पलसौरा चौकी को दे दी. थोड़ी ही देर में हवलदार कुलदीप सिंह, 2 सिपाही परवीन कुमार और दविंदर सिंह के साथ इंसपेक्टर अमराओ सिंह मौके पर आ पहुंचे.

बोरा खोला गया तो उस में से एक लाश निकली, जिस की शिनाख्त अजय कुमार के रूप में हुई. अमराओ सिंह की तहरीर पर थाना सेक्टर-39 में इस मामले में भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. थानाप्रभारी इंसपेक्टर दिलशेर सिंह ने भी मौके पर जा कर मामले की जांच की.

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लाश की पहचान मोहाली की गत्ता फैक्ट्री में काम करने वाले अजय कुमार के रूप में हुई थी. वहां संपर्क करने पर पता चला कि वह चंडीगढ़ के सेक्टर-56 के मकान नंबर 589 में रहता था और पिछले 2 दिनों से ड्यूटी पर नहीं आया था.

पुलिस ने पंचनामा तैयार कर लाश मोर्चरी में रखवा दी. इस के बाद इंसपेक्टर दिलशेर के नेतृत्व में एक पुलिस टीम मृतक के पते पर पहुंची. वहां उन की मुलाकात अजय की पत्नी रूबी से हुई. उस के तीनों बच्चे भी घर पर थे. अजय के बारे में पूछने पर रूबी ने बताया कि उस के पति 12 मई की सुबह तैयार हो कर ड्यूटी पर जाने के लिए घर से निकले थे लेकिन अभी तक वापस नहीं आए.

पुलिस के यह पूछने पर कि उस ने इस बारे में पति की फैक्ट्री में पता किया था या फिर पुलिस चौकी में मिसिंग रिपोर्ट लिखाई थी, तो उस ने मना करते हुए कहा कि किसी बात पर उस का पति से झगड़ा हो गया था. नाराज हो कर वह पैदल ही घर से चले गए थे. उस ने सोचा कि गुस्सा ठंडा हो जाएगा तो खुद ही वापस आ जाएंगे.

‘‘वह 2 दिनों तक घर नहीं लौटे तो तुम्हें उन की कोई फिक्र नहीं हुई?’’ इंसपेक्टर दिलशेर सिंह ने पूछा.

‘‘फिक्र करने से क्या होता. वैसे भी वह कोई बच्चे तो थे नहीं. न मैं ने उन से झगड़ा किया था. झगड़ा उन्होंने ही शुरू किया था.’’ रूबी ने कहा.

तभी पास खड़ी उस की बड़ी बेटी ने कहा, ‘‘पापा तो मम्मी को समझा रहे थे, झगड़ा मम्मी ने ही शुरू किया था. पहले भी मम्मी पापा से लड़ती रहती थी.’’

पुलिस वालों का ध्यान उस लड़की की ओर गया. दिलशेर सिंह ने उस से प्यार से पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारी मम्मी पापा से किस बात के लिए लड़ती थी?’’

‘‘सुमन भैया की वजह से. पापा उन्हें पसंद नहीं करते थे, जबकि मम्मी ने उन्हें सिर चढ़ा रखा था.’’ लड़की ने बताया.

वह कुछ और कहती, इस से पहले रूबी ने उस के मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘सुमन रिश्ते में हमारा भतीजा है सर. कभीकभार हम लोगों से वह मिलने आ जाता था जबकि मेरे पति को उस का यहां आना पसंद नहीं था. बस, इसी बात को ले कर हमारा कभीकभार झगड़ा हो जाता था. जब भी झगड़ा होता, वह नाराज हो कर चले जाते थे, फिर 2-3 दिनों बाद खुद ही वापस आ जाते थे.’’

‘‘पर इस बार वह नहीं लौटेंगे,’’ दिलशेर सिंह ने कहा. इस के बाद वह रूबी को अपने साथ जनरल अस्पताल ले गए, जहां मोर्चरी में रखा शव निकलवा कर उसे दिखाया तो वह उस की पहचान अपने पति के रूप में कर के छाती पीटपीट कर रोने लगी.

इस के बाद वह बेहोश सी हो कर जमीन पर लेट गई. अब तक सारा मामला दिलशेर सिंह की समझ में आ चुका था. मगर बिना किसी पुख्ता सबूत के वह किसी पर हाथ डालना नहीं चाहते थे. उन्होंने रूबी को अस्पताल से दवा दिलवा कर वापस घर भिजवा दिया.

इस के बाद उन्होंने रूबी के घर के आसपास की दुकानों के बाहर लगे सीसीटीवी फुटेज की जांच की. इन में रूबी 13 व 14 मई की रात में 12 बज कर 14 मिनट 16 सेकेंड पर एक आदमी को अपनी स्कूटी पर बिठा कर ले जाती दिखाई दी. स्कूटी के पीछे बैठे व्यक्ति ने अपने हाथों से गोल सी कोई चीज संभाल रखी थी.

इस सबूत के मिलते ही पुलिस ने उसी शाम रूबी को उस के घर से उठा लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ शुरू की गई तो उस ने अपना गुनाह मानते हुए इस अपराध में 2 और लोगों के शामिल होने की बात बताई.

उस की निशानदेही पर पुलिस ने उसी रात सुमन कुमार और कुलप्रकाश नाम के लोगों को भी गिरफ्तार कर लिया.

अगले दिन तीनों आरोपियों को अदालत में पेश कर के पुलिस ने उन का पुलिस रिमांड ले लिया. इस के बाद उन से विस्तार से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में यह बात सामने आई कि रूबी जब बिहार में अपनी ससुराल में पति के बिना रहती थी तो उस के अपने से 6 साल छोटे सुमन कुमार से अवैध संबंध बन गए थे. दूर की रिश्तेदारी में सुमन अजय कुमार का भतीजा लगता था. लिहाजा इन दोनों के संबंधों पर कभी किसी को शक नहीं हुआ. इस बात का दोनों ही फायदा उठाते रहे.

अजय जब रूबी को अपने साथ चंडीगढ़ ले आया तो दोनों प्रेमी बिछुड़ गए. लिहाजा दोनों को ही एकदूसरे की याद सताने लगी. सुमन का जीजा कुलप्रकाश भी चंडीगढ़ में नौकरी करता था. वह उसी मकान की ऊपरी मंजिल में रहता था, जिस में रूबी अपने पति व बच्चों के साथ रह रही थी. नौकरी तलाश करने के बहाने सुमन अपने जीजा के पास आ गया.

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इस तरह वह और रूबी फिर से एकदूसरे के करीब हो गए. जब बच्चे स्कूल और बड़े अपने काम पर चले जाते तो सुमन और रूबी को मिलने का मौका मिल जाता था. रूबी चालाक और बातूनी थी. वह पति को खुश रखने का हरसंभव प्रयास करती. इस के अलावा उस ने पासपड़ोस में भी अपना अच्छा प्रभाव बना रखा था.

वैसे तो दोनों ही मिलने में बड़ी होशियारी दिखाते थे लेकिन एक दिन अजय घर पर जल्दी आ गया. उस दिन अजय ने दोनों को आपत्तिजनक अवस्था में पकड़ लिया. सुमन को डांट कर भगाने के बाद उस ने रूबी की खूब खबर ली. पतिपत्नी के बीच शुरू हुआ यह झगड़ा उन के बच्चों के स्कूल से आने के बाद तक चलता रहा.

अजय को पत्नी की हकीकत पता लग चुकी थी इसलिए अब वह टाइमबेटाइम घर आने लगा. घर पर उसे सुमन भले ही न मिलता लेकिन पतिपत्नी के बीच झगड़ा फिर से शुरू हो जाता. अजय के सक्रिय हो जाने पर रूबी और सुमन की मुलाकातों पर पहरा लग गया था. ऊपर से रोजरोज के झगड़े से रूबी भी आजिज आ गई थी. एक दिन रूबी ने सुमन से मुलाकात कर के इस समस्या का हल निकालने को कहा.

उस ने रूबी को बताया कि अजय को रास्ते से हटाने के अलावा दूसरा कोई हल नहीं है. इस के बाद दोनों ने अजय को मौत के घाट उतारने की योजना बना ली. योजना के अनुसार, 12 मई, 2016 की छुट्टी के बाद रूबी तीनों बच्चों को कोई बहाना कर के अपने एक परिचित के यहां छोड़ आई.

दरअसल, उस दिन अजय को बुखार था. दवा दिलवाने के बाद रूबी ने उसे सुला दिया. उसी रात सुमन चाकू ले कर उन के यहां आ पहुंचा. उस वक्त अजय गहरी नींद में था. रूबी ने नींद में सोए पति के गले पर चाकू से वार किए.

जब वह तड़पने लगा तो उस ने और सुमन ने उस के गले में दुपट्टा डाल कर कस दिया. जब उन्हें इत्मीनान हो गया कि यह मर चुका है तो उन्होंने उस के शव को मोटे कपड़े में लपेट कर घर में पड़े सफेद रंग के बोरे में ठूंस दिया. इस के बाद दोनों मौजमस्ती में डूब गए.

वे शव को ठिकाने लगाने का मौका ढूंढते रहे. पूरे दिन शव उन के घर में ही पड़ा रहा. 13 मई की रात में चंडीगढ़ में जबरदस्त आंधीतूफान आया था.

इस भयावह मौसम की परवाह न कर के रूबी ने आधी रात में अपनी स्कूटी नंबर सीएच04 6538 निकाली और पति के शव वाले बोरे के साथ सुमन को ले कर घर से निकल गई. एक गटर के पास उस ने स्कूटी रोक दी.

उन की योजना शव को गटर में फेंकने की थी मगर उन दोनों से उस का ढक्कन नहीं खुल पाया. तब वे उस बोरे को वहीं छोड़ कर वापस घर आ गए. घर लौट कर उन्होंने अपनी रासलीला रचाई.

कुलप्रकाश का कसूर यह था कि उसे सुमन और रूबी के संबंधों की जानकारी थी. अजय की हत्या के बाद सुमन उसे बुला कर लाया था तो उस ने न केवल शव को पैक करने में मदद की थी, बल्कि खूनआलूदा कपडे़ व चाकू वगैरह भी ले जा कर अलगअलग जगहों पर छिपा दिए थे, जो बाद में पुलिस ने उस की निशानदेही पर बरामद कर लिए थे.

पुलिस रिमांड की अवधि समाप्त होने पर तीनों को फिर से अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.

निर्धारित समयावधि में दिलशेर सिंह ने केस का चालान तैयार कर निचली अदालत में पेश कर दिया, जहां से सेशन कमिट हो कर यह केस अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश एस.के. सचदेवा की अदालत में पहुंचा. अदालत में इस की विधिवत सुनवाई शुरू हुई. अभियोजन पक्ष के गवाहों को सुनने के बाद विद्वान जज ने बचाव पक्ष के गवाहों को सुनना शुरू किया.

दिनेश एक ठेकेदार था. कुलप्रकाश उस का मातहत था. बचावपक्ष के गवाह के रूप में दिनेश ने अदालत को बताया कि 14 मई, 2016 को वह कुलप्रकाश व 2 अन्य लोगों के साथ चंडीगढ़ के सेक्टर-9डी के शोरूम नंबर 26, 27 में काम कर रहा था कि दिन के साढ़े 10-पौने 11 बजे पल्सौरा चौकी की पुलिस आ कर कुलप्रकाश को पकड़ ले गई थी.

एक गवाह बृजेश कुमार यादव ने बताया कि वह मोहाली की उस गत्ता फैक्ट्री में नौकरी करता था, जहां मृतक काम करता था. 14 मई, 2016 को पुलिस ने गत्ता फैक्ट्री में पहुंच कर अजय के बारे में बृजेश से औपचारिक पूछताछ की थी.

बलविंदर मृतक अजय का पड़ोसी था, किरण कुलप्रकाश की पत्नी थी और खुशबू अजय की बेटी. कोर्ट में इन सभी के बयान दर्ज हुए. इन के बयानों में भी ऐसा कुछ खास नहीं था जो आरोपियों के बचाव के लिए कुछ करता.

इस के बाद दोनों पक्षों में बहस का दौर चला. इस जिरह में भाग लिया था पब्लिक प्रौसीक्यूटर मनिंदर कौर, सुमन के वकील विशाल गर्ग नरवाना, रूबी कुमारी की वकील प्रतिभा भंडारी एवं कुलप्रकाश के वकील पी.सी. राना ने.

विद्वान जज ने दोनों पक्षों को पूरी तवज्जो दे कर सुना. तमाम साक्ष्यों का निरीक्षण कर के अजय कुमार की हत्या में उक्त तीनों अभियुक्तों को दोषी पाते हुए न्यायाधीश ने 18 सितंबर, 2017 को अपना फैसला सुना दिया.

उन्होंने अपने फैसले में सुमन कुमार और रूबी कुमारी को भादंवि की धारा 302, 34 के तहत दोषी ठहराते हुए उम्रकैद के अलावा डेढ़ लाख रुपए जुरमाने की सजा सुनाई. उन्होंने कहा कि जुरमाना अदा न करने की सूरत में 6 महीने की सश्रम कैद और बढ़ा दी जाएगी.

इन दोनों को भादंवि की धारा 201 के तहत 3 साल की सश्रम कैद और 50 हजार रुपए जुरमाने की सजा सुनाई. जुरमाना अदा न कर पाने की स्थिति में एक महीने की अतिरिक्त सश्रम कैद की सजा भुगतने का आदेश दिया.

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न्यायाधीश ने कुलप्रकाश को भादंवि की धारा 302, 34 के अंतर्गत बामशक्कत उम्रकैद की सजा के अलावा डेढ़ लाख रुपए का जुरमाना अथवा 6 महीने की सश्रम कैद का फैसला सुनाया. सजा सुनाने के बाद तीनों दोषियों को चंडीगढ़ की बुड़ैल जेल भेज दिया गया.

कथा तैयार करने तक तीनों दोषी बुड़ैल जेल में बंद थे.

 -कथा अदालत के फैसले पर आधारित

Crime Story in Hindi: वह नीला परदा- भाग 3: आखिर ऐसा क्या देख लिया था जौन ने?

Writer- Kadambari Mehra

क्रिस्टी ने पुलिस फाइल के विशेष कार्यक्रम में कंपनी द्वारा भेजे गए परदों को टैलीविजन पर प्रस्तुत किया और जनता से अपील की कि अगर वे किसी को जानते हों, जिस के पास ऐसे परदे हों तो वे पुलिस की सहायता करें. उस ने किसी खोई हुई स्त्री का पता देने की भी मांग की. परदा 6 फुट लंबा था, जो किसी ऊंची खिड़की या दरवाजे पर टंगा हो सकता है.

एपसम में एक कार बूट सेल लगती है. दूरदूर से लोग अपने घरों का पुराना सामान कार के बूट में भर कर ले आते थे और कबाड़ी बाजार में बेच कर लौट जाते हैं. अकसर इस में कुछ पेशेवर कबाड़ी भी होते हैं. ऐसी ही एक कबाड़ी थी मार्था. उस का आदमी बिके हुए सामान खरीद लेता था. उस की एक सहेली थी शीला. शीला भी यही काम करती थी, मगर वह बच्चों के सामान यानी पुरानी गुडि़यां, फर के खिलौने, बच्चों के कपड़े आदि की खरीदारी करती थी.

पुलिस फाइल का प्रोग्राम लगभग सभी स्त्रियां देखती हैं. मार्था 1 हफ्ते की छुट्टी पर ग्रीस चली गई थी. लौट कर आई तो शीला का फोन आया, ‘‘मार्था, तू बड़ी खुश हो रही थी न कि तेरे पुराने परदे 10-10 पाउंड में बिक गए. ले देख, उन का क्या किया किसी खरीदार ने. पुलिस को तलाश है उन की. साथ ही, किसी खोई हुई औरत की भी. मुझे तो लगता है जरूर कोई हत्या का मामला है.’’

‘‘परदों से हत्या का क्या संबंध, अच्छेभले तो थे लेबल तक लगा हुआ था. मैं ने बेचे तो क्या गुनाह किया?’’

‘‘नहीं, वह तो ठीक है, मगर पुलिस क्यों पूछेगी? कुछ गड़बड़ तो है. तुझे फोन कर के उन्हें बताना चाहिए.’’

‘‘मैं ने बेच दिए, बाकी मेरी बला से. खरीदने वाला उन को क्यों खरीद रहा है, मुझे इस से क्या मतलब? चाहे वह उस का गाउन बना कर पहने, चाहे पलंग पर बिछाए, चाहे घर में टांगे उस की मरजी.’’

अगली बार फिर पुलिस फाइल पर अपील की गई. अब मार्था विचलित हो उठी. उस ने फोन उठा कर दिए हुए नंबर पर फोन मिलाया.

बात करने वाला कोई बेहद शालीन मृदुभाषी व्यक्ति था. मार्था ने बताया, ‘‘कुछ महीने पहले उस ने बिलकुल ऐसे ही 6 फुट लंबे परदे बेचे थे. खरीदने वाली कोई औरत थी और दूर से आई थी. उस ने परदे के दामों पर हुज्जत की थी, इसलिए मुझे कुछकुछ याद है.’’

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‘‘बता सकती हो वह देखने में कैसी थी?’’

‘‘रंग गोरा था और उस ने सिर पर रूमाल बांधा हुआ था. शायद तुर्की या ईरानी होगी. उस ने यह भी कहा था कि वह दूर से आई थी शायद बेसिंग स्टोक से.’’

‘‘बहुतबहुत शुक्रिया, इतना भी क्लू मिल जाए तो हमारा काम आसान हो जाता है. आप इस बारे में चुप रहें तो अच्छा. कोई भी तहकीकात चुपचाप ही की जाती है.’’

‘‘मैं अब चैन से सो सकूंगी,’’ कह कर मार्था ने फोन रख दिया.

क्रिस्टी ने अपनी खोज बेसिंग स्टोक और उस के आसपास के इलाके में सीमित कर ली. परदों के बेचने का समय हत्या के समय से लगभग मिलता था.

फिर भी यह भूसे के ढेर में सूई ढूंढ़ने जैसा ही था. तथ्यों से अभी वह कोसों दूर था. कैनवास अभी गीला ही था. किसी भी रंग की लकीर खींचो वह फैल कर गुम हो रही थी.

फिर से जौन का फोन आ गया. पूछा, ‘‘डेविड क्रिस्टी है क्या?’’

‘‘बोल रहा हूं. कौन है?’’

‘‘मैं जौन, पहचाना?’’

‘‘अरे हां, खूब अच्छी तरह, ठीक हो?’’

‘‘नहीं, अस्पताल में रह कर आया हूं.

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मुझे फिर से वही बेचैनी और फोबिया तंग कर रहा था. डाक्टर ने मुझे ट्रैंक्विलाइजर पर रखा कुछ दिन और मेरा सुबह का घूमना बंद करवा दिया. अब मैं करीब 10-11 बजे डोरा के साथ टहलने जाता हूं, वह भी भरे बाजार में. कुत्ते को ले कर डोरा जाती है या चर्च का कोई जानने वाला. नया शहर है यह, तो भी न जाने कैसी दहशत बैठ गई है.’’

‘‘देखो, मैं इसी पर काम कर रहा हूं. तुम बेफिक्र रहो.’’

डेविड क्रिस्टी मार्था की बातें सोचता रहा. अगले पुलिस फाइल के प्रोग्राम में उस ने एक खिड़की का अनुमानित चित्र पेश किया, जिस पर नेट का परदा लगा था और दोनों ओर हूबहू वैसे ही नीले परदे डोरी से बंधे सुंदरता से लटक रहे थे.

इस फोटो के साथ ही उस ने जनता से अपील की कि यदि वह ऐसी किसी खिड़की को देखा हो तो उसे सूचित करें.

इस प्रोग्राम के बाद उसे एक स्त्री का फोन आया. इत्तफाक से वह बेसिंग स्टोक से ही बोल रही थी, ‘‘इंस्पैक्टर क्रिस्टी, मैं आप से मिलना चाहती हूं.’’

बेसिंग स्टोक का नाम सुनते ही क्रिस्टी तुरंत उठ खड़ा हुआ. फौरन अपनी सेक्रेटरी मौयरा को ले कर वह बताए हुए पते पर पहुंच गया.

वह एक सुंदर सा मकान था, जो 3 ओर से बगीचे से घिरा हुआ था. चौथी ओर फेंस यानी बांस की चटाईनुमा दीवार थी.

क्रिस्टी ने घंटी बजाई तो किसी ने थोड़ा सा दरवाजा खोला और पूछा, ‘‘कौन है?’’

‘‘मैं इंस्पैक्टर क्रिस्टी और यह है मेरी सहायिका मौयरा. हमें बुलाया गया है,’’

कह कर क्रिस्टी ने अपना पुलिस का बैज दिखाया.

उत्तर में स्त्री ने दरवाजा पूरा खोल दिया और स्वागत की मुद्रा में एक ओर सरक गई, ‘‘प्लीज, कम इन. मैं जैनेट हूं. पेशे से नर्स हूं.’’

क्रिस्टी और मौयरा अंदर दाखिल हुए. जैनेट ने उन्हें बैठाया.

‘‘आप ने मुझे फोन क्यों किया?’’

‘‘इंस्पैक्टर, मैं बिलकुल अकेली रहती हूं. नर्स हूं और फ्रीलांस काम करती हूं, एजेंसी के माध्यम से. अकसर मुझे यूरोप भी जाना पड़ता है. कईकई महीने मुझे बाहर रहना पड़ता है. आप तो देख ही रहे हैं कि मेरा घर 3 तरफ से यह पूरी तरह असुरक्षित है. इसलिए मेरे मित्रों ने सलाह दी कि मैं कोई किराएदार रख लूं ताकि घर की सुरक्षा रहे.’’

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‘‘वाजिब बात है. ऐसा तो अनेक लोग करते हैं.’’

‘‘इसलिए मैं ने अखबार में इश्तिहार दे दिया था. जवाब में जो लोग आए उन में एक स्मार्ट सी एशियन लड़की भी थी, जो काफी पढ़ीलिखी थी. वह भी बिलकुल अकेली थी. बातचीत से वह भली लगी, इसलिए मैं ने उसे चुन लिया. उस का नाम फैमी था और वह मोरक्को की रहने वाली थी. यहां वह स्टूडैंट बन कर आई थी, फिर यहीं नौकरी मिल गई और स्थाई रूप से बस गई. पिछले क्रिसमस पर वह अपने देश छुट्टियां मनाने गई, मगर वापस नहीं लौटी.’’

‘‘उस का कोई पत्र आया आप के पास?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘उस ने जाते समय अपने घर का पता दिया था आप को?’’

‘‘नहीं, वह कम बोलने वाली और खुशमिजाज लड़की थी. शायद वह वहीं रह गई हो सदा के लिए.’’

‘‘ऐसा कम ही होता है पर चलो मान लेते हैं. लेकिन आप ने मुझे क्यों बुलाया?’’

‘‘दरअसल, जब वह नहीं लौटी तो मैं ने कमरा खाली कर दिया और उस का सारा सामान इकट्ठा कर के रख दिया. आजकल उस कमरे में एक फ्रैंच स्टूडैंट रहता है.’’

‘‘सब कुछ ठीक है. इस में इतना घबराने और पुलिस को बुलाने की क्या जरूरत पड़ गई?’’

‘‘आप लोगों ने जो खिड़की का फोटो और नीला परदा दिखाया था, उसी को देख कर मैं ने फोन किया. फैमी का जो सामान मैं ने पैक कर के बक्से में रखा, उस में उस का एक चित्र भी है, जिस में वह 2-3 साल के एक बच्चे के साथ वैसी ही खिड़की या दरवाजे के पास बैठी है. आप का चित्र देख कर मैं ने फोन कर दिया.’’

‘‘क्या वह चित्र दिखा सकती हैं मुझे?’’

‘‘हां, मैं ने सामान नीचे उतरवा लिया था.’’

Crime Story in Hindi: सोने का घंटा- भाग 4: एक घंटे को लेकर हुए दो कत्ल

प्रस्तुति : शकीला एस. हुसैन

वह दिमाग पर जोर देते हुए बोला, ‘‘करीब 6-7 महीने पहले की बात है. मैं रंजन की दुकान पर खड़ा था. तभी नजीर वहां यह घंटा ले कर आया था. उस का रंग उस वक्त काला था और मिट्टी में लिथड़ा हुआ था. मेरे सामने ही रंजन ने उसे तराजू में डाला और तौल कर कुछ रुपए नजीर के हाथ पर रख दिए. उस के बाद मैं वहां से चला गया. पता नहीं फिर उन दोनों के बीच क्या बात हुई.’’

यह एक सनसनीखेज खबर थी कि लाखों का घंटा कौडि़यों में बिक गया और बेचने वाला दानेदाने को मोहताज था. गरीब नजीर जेल में बंद था. मैं फौरन सुगरा के घर पहुंचा, लेकिन घर बंद था. लोगों का खयाल था कि भूख और गरीबी से तंग आ कर रोजी की तलाश में वह किसी और कस्बे में चली गई होगी.

मुझे बेहद अफसोस हो रहा था. उस के मासूम बच्चे याद आ रहे थे. उसे तलाश करने का हुक्म दे कर मैं थाने आ गया. वहां से घंटा ले कर अमृतसर के लिए रवाना हो गए. क्योंकि नजीर अमृतसर में ज्यूडीशियल रिमांड पर जेल में था. मैं ने उसे कपड़े में लिपटा हुआ घंटा दिखा कर पूछा, ‘‘क्या यह घंटा कुछ महीने पहले तुम ने रंजन को बेचा था. इसे लाए कहां से थे?’’

‘‘हां बेचा था. मैं अपने घर से लाया था. बैसाखी के पहले की बात है साहब, एक दिन तेज बारिश हुई. मेरे घर की दीवार गिर गई. जब दोबारा दीवार उठाने के लिए बुनियाद रखी तो यह घंटा मिला.

बच्चे मचलने लगे मिठाई खाएंगे. मैं इसे ले कर रंजन के पास गया. उस ने इसे 50 रुपए में मुझ से खरीद लिया. मैं बच्चों के लिए मिठाई ले कर आ गया. कुछ घर का सामान खरीदा. पर साहब, आप यह सब क्यों पूछ रहे हैं?’’ मैं ने उसे टाल दिया और सिपाही से कह दिया कि सुगरा आए तो मुझ से जरूर मिलाए.

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दूसरी दिन सुबह मैं अस्पताल पहुंचा. दरवाजे के करीब ही मुझे स्टै्रचर पर लहना सिंह की लाश मिल गई. बेचारा बेवजह मारा गया. चौधरी श्याम सिंह अब दोहरे कत्ल का दोषी था.

लहना सिंह के आखिरी बयान और हवेली से घंटा मिलने से वह पूरी तरह फंस गया था. अब यह बात भी समझ में आ गई थी कि रंजन सिंह सुगरा के खानदान पर मेहरबान क्यों था? क्यों उन की मदद करता था. क्योंकि वह उन्हीं के पैसे पर ऐश कर रहा था.

लोगों ने उस की बिना बात के बदनामी फैला दी थी. मैं ने सुगरा की तलाश में 2 लोग लगा दिए, पर उस का कोई पता नहीं चला. लहना सिंह के बयान के बाद सुगरा और नजीर बेकसूर साबित हो गए.

रंजन के पेट से मिलने वाली नींद की गोली का मसला भी हल हो गया था. वह उस ने खुद खरीद कर खाई थी. पहले बेटी के सामने वह नींद की गोली नहीं लाता था, पर बाद में लेने लगा. इसलिए उस की बेटी ने नहीं कहा था.

श्याम सिंह ने जोरा सिंह से रंजन का कत्ल  इसलिए करवाया था कि वह उस का सोने का घंटा हासिल कर सके. जब जोरा सिंह रंजन के घर घंटे को ढूंढ रहा था तो रंजन की आंख खुल गई. वह हिम्मत कर के जोरा सिंह पर टूट पड़ा. एक जमाने में वह पहलवानी करता था और चंदर के नाम से जानाजाता था.

उस ने अपने बाजूओं में उसे बुरी तरह से जकड़ लिया था. जरा सी छूट मिलते ही जोरा सिंह ने अपनी कृपाण से उस के सीने पर वार कर दिया. जब वह गिर गया तो छाती पर चढ़ कर उसे खत्म कर दिया. उसे मारने के बाद उस ने हवेली से घंटा ढूंढ लिया.

इस सारे मामले में सुगरा और नजीर शुरू से आखिर तक बेकसूर थे. उस वक्त के कानून के मुताबिक बरामद होने वाली चीज की हैसियत एंटीक ना हो और किसी का मालिकाना हक ना साबित हो पाए तो यह चीज उस शख्स की मानी जाती थी, जिस के घर से वह बरामद हुई हो.

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वह घंटा नजीर के घर की टूटी दीवार से बरामद हुआ था. अगर सरकार मामले को हमदर्दी से देखती तो यह घंटा नजीर और सुगरा का था, भले ही वह उस की कीमत न समझ सके थे.

नजीर के जमानत पर रिहा होने के बाद सुगरा की तलाश और जोर पकड़ गई. मुझे कहीं से खबर मिली कि मरनवाल नाम के गांव में जो ढाब से करीब 20 किलोमीटर दूर था, वहां सुगरा के हुलिए की एक औरत दिखाई दी थी.

हम लोग वहां पहुंचे तो पता चला वह एक रिटायर्ड हवलदार के यहां काम कर रही थी. उस के घर पूछताछ करने पर उस ने बताया कि एक औरत 3 बच्चों के साथ उस के यहां पनाह लेने आई थी. उस ने उसे रख भी लिया था. फिर एक दिन चोरी करते पकड़ी गई तो मैं ने उसे निकाल दिया.

आसपास के लोगों से पता चला कि वह झूठ बोल रहा था. हवलदार की नीयत सुगरा पर खराब हो गई थी. सुगरा ने शोर मचा दिया. लोगों के पहुंचने पर उस ने सुगरा को मारपीट कर निकाल दिया. किसी ने बताया वह रामपुर की तरफ गई थी. उस बेगुनाह मजबूर औरत की तलाश में हम रामपुर पहुंचे और जगहजगह उस की तलाश करते रहे.

रामपुर के छोटे से अस्पताल में हमें सुगरा मिल गई, लेकिन वह जिंदा नहीं लाश की सूरत में मिली. उस के बच्चे वहीं बैठे रो रहे थे. उस की मौत दिमाग की नस फटने से हुई थी. इतने दुख और गरीबी की मार सह कर उस का बच पाना मुश्किल ही था. सुगरा की लाश ढाब पहुंची. पूरा कसबा जमा हो गया. सभी की आंखों में आंसू थे. नजीर रोरो कर पागल हो रहा था. अब लोग सुगरा की तारीफें कर रहे थे.

चौधरी श्याम सिंह और जोरा सिंह पर दोहरे कत्ल का इलजाम साबित हुआ. एक सुबह वह दोनों और उन के 2 साथियों की डिस्ट्रिक्ट जेल के अहाते में फांसी दे दी गई.

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नजीर अपने तीनों बच्चों के साथ ढाब छोड़ कर चला गया. अब उस के पास इतनी रकम थी कि सारी उम्र बैठ कर खा सकता था. 3 सेर सोने के घंटे में से सरकार ने अपना तयशुदा सरकारी हिस्सा काटने के बाद बाकी नकद रकम नजीर के हवाले कर दी थी. इस के बाद 2-3 बार नजीर के घर की खुदाई की गई पर एक खोटा सिक्का नहीं मिला.

इस घटना के सालों बाद भी मैं उस मासूम और मरहूम सुगरा को नहीं भूल सका.

Crime Story in Hindi: वर्चस्व का मोह- भाग 2: आखिर किसने दादजी की हत्या की?

‘‘ठीक है, मैं औफिस से निकलने से पहले तुम्हें फोन कर दूंगा ताकि तुम किरण से मुलाकात का जुगाड़ भिड़ा सको.’’

अगले दिन जब देव नीना को लेने पहुंचा तो वह किरण और सोनिया के ड्राइंगरूम में बैठी हुई थी.

‘‘अरे सर, आप?’’ किरण चौंकी.

‘‘आप यहां कैसे वकीलनीजी?’’ देव ने भी उसी अंदाज में कहा, फिर नीना और सोनिया की ओर देख कर बोला, ‘‘मेरे एक नाटक में यह वकील की पत्नी बनी थी तब से मैं इसे वकीलनीजी ही बुलाता हूं. चूंकि मैं नाटक का निर्देशक और सीनियर था सो किरण तो मुझे सर कहेगी ही. लेकिन सोनिया, तुम ने कभी जिक्र ही नहीं किया कि तुम्हारी जीजी अखिल भारतीय नाटक प्रतियोगिता जीत चुकी हैं.’’

‘‘नीना ने भी कभी आप के बारे में कहां बताया? इन लड़कियों को किसी और के बारे में बात करने की फुरसत ही नहीं है,’’ किरण बोली, ‘‘सर, मुझे आप से कुछ सलाह लेनी है. कभी थोड़ा समय निकाल सकेंगे मेरे लिए?’’

‘‘कभी क्यों, अभी निकाल सकता हूं बशर्ते आप 1 कप चाय पिला दें,’’ कह देव मुसकराया.

‘‘चाय पिलाए बगैर तो हम ने आप को वैसे भी नहीं जाने देना था भैया,’’ सोनिया बोली, ‘‘मैं चाय भिजवाती हूं. आप इतमीनान से दीदी के कमरे में बैठ कर बातें कीजिए. मांपापा रोटरी कल्ब की मीटिंग में गए हैं, देर से लौटेंगे.’’

‘‘और बताओ वकीलनीजी, अपने मुंशीजी, मेरा मतलब है आलोक कहां है आजकल?’’ देव ने किरण के कमरे में आ कर पूछा.

किरण ने गहरी सांस ली, ‘‘हैं तो यहीं पड़ोस में, लेकिन मुलाकात कम ही होती है…’’

‘‘क्यों? बहुत व्यस्त हो गए हो तुम दोनों या कुछ खटपट हो गई है?’’ देव ने बात काटी.

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‘‘इतने व्यस्त भी नहीं हैं और न ही हमारी जानकारी के अनुसार कोई खटपट हुई है. मुझे ही कोई गलतफहमी हो गई है शायद.’’ किरण हिचकिचाते हुए बोली, ‘‘उसी बारे में आप से बात करना चाह रही थी. आप के बारे में अकसर पढ़ती रहती हूं. कई बार आप से मिलना भी चाहा, मगर समझ नहीं आया कैसे मिलूं. सर, मुझे लगता है आलोक ने अपने दादाजी की हत्या की है.’’

देव चौंक पड़ा कि तो यह वजह है शादी न करने की. लेकिन किरण से पूछा, ‘‘शक की वजह?’’

‘‘जिस रात दादाजी की हत्या हुई मुझे लगता है मैं ने आलोक को छत से कूद कर भागते हुए देखा था. लेकिन आलोक का कहना है कि वह उस समय पिछली सड़क पर हो रही अपने दोस्त की शादी के मंडप में था. दादाजी की हत्या की सूचना भी उसे वहीं मिली थी.’’

‘‘लेकिन तुम्हें लगता है कि भागने वाला आलोक ही था?’’

‘‘जी, सर हत्या का कोई मकसद भी सामने नहीं आया. न तो कुछ चोरी हुआ था और न ही दादाजी की किसी से कोई दुश्मनी थी.’’

‘‘हत्या से किसी को व्यक्तिगत लाभ?’’

‘‘सिर्फ आलोक को जो केवल मुझे मालूम है क्योंकि दूसरों की नजरों में तो दादाजी वैसे ही सबकुछ उस के नाम कर चुके थे.’’

‘‘जो तुम्हें मालूम है या जो भी तुम्हारा अंदाजा है, मुझे विस्तार से बताओ किरण. मैं वादा करता हूं मैं जहां तक हो सकेगा तुम्हारी मदद करूंगा?’’

‘‘मां का कहना था कि मुझे प्रवक्ता की नौकरी न करने दी जाए, क्योंकि  फिर मैं अपने दादाजी के फ्रिज और टीवी के शोरूम में बैठने वाले आलोक से शादी करने को मना कर दूंगी. पापा ने उन्हें समझाया कि आलोक खुद ही फ्रिज और टीवी बेचने के बजाय विदेशी कंप्यूटर की एजेंसी लेना चाह रहा है. इसी सिलसिले में कानूनी सलाह लेने उन के पास आया था. उस में कोई कानूनी अड़चन नहीं है. आलोक को बड़ी आसानी से एजेंसी मिल जाएगी और कंप्यूटर विके्रता से शादी करने में उन की लैक्चरार बेटी को कोई एतराज नहीं होगा.

‘‘मां ने फिर शंका जताई कि दादाजी अपनी बरसों पुरानी चीजों को छोड़ कर कंप्यूटर बेचने से रहे तो पापा ने बताया कि शोरूम तो दादाजी आलोक के नाम कर ही चुके हैं सो वह उस में कुछ भी बेचे, उन्हें क्या फर्क पड़ेगा. मां तो आश्वस्त हो गईं, लेकिन पापा का सोचना गलत था. दादाजी कंप्यूटर की एजेंसी लेने के एकदम खिलाफ थे. वे कंप्यूटर को फ्रिज या टीवी की तरह रोजमर्रा के काम आने वाली और धड़ल्ले से बिकने वाली चीज मानने को तैयार ही नहीं थे.

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‘‘दादाजी ने शोरूम जरूर आलोक के नाम कर दिया था, लेकिन उसे चलाते अभी भी वे खुद ही थे, अपनी मनमरजी से. जिस ग्राहक को जितना चाहा उतनी छूट या किश्तों की सुविधा दे दी, कौन सा मौडल या ब्रैंड लेना बेहतर रहेगा, इस पर वे हरेक ग्राहक के साथ घंटों सलाहमशवरा और बहस किया करते थे. कंप्यूटर की एजेंसी लेने से तो उन की अहमियत ही खत्म हो जाती, जिस के लिए वे बिलकुल तैयार नहीं थे. उन्होंने आलोक से साफ कह दिया कि उन के जीतेजी तो उन के शोरूम में जो आज तक बिकता रहा है वही बिकेगा. कुछ दूसरा बेचने के लिए आलोक को उन की मौत का इंतजार करना होगा.

‘‘आलोक ने मुझे यह बात बताते हुए कहा था कि दादाजी के इस अडि़यल रवैए से मेरा कंप्यूटर विक्रेता बनने का सपना कभी पूरा नहीं होगा. मैं दादाजी का शोरूम संभालने को तैयार ही इस लालच में हुआ था कि आईबीएम की एजेंसी लूंगा वरना पापा और अशोक भैया की तरह मैं भी चार्टर्ड अकाउंटैंट बन कर उन के औफिस में बैठा रहूंगा. वैसे अभी भी मैं फ्रिजटीवी बेच कर तो रोटी कमाने से रहा. जब तक मैं अपने कैरियर का चुनाव न कर लूं किरण, मैं सगाईशादी के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता.

‘‘मुझे उस की बात सही लगी और मैं ने उसे भरोसा दिलाया कि मैं किसी तरह सगाई टलवा दूंगी. इस से पहले कि मैं कोई बहाना खोज पाती, आलोक फिर आया. वह बहुत सहज लग रहा था. उस ने कहा कि मुझे परेशान होने की जरूरत नहीं है, सब ठीक हो जाएगा. कुछ रोज बाद हमारे सहपाठी रवि की शादी थी. आलोक उस की बारात में मेरे साथ खूब नाचा. खाने के बाद आलोक ने कहा कि रवि के सभी दोस्त उसे मौरल सपोर्ट देने को बिदाई तक रुक रहे हैं सो वह भी रुकेगा. उस ने मुझे भी ठहरने को कहा, मगर मुझे कुछ कापियां जांचनी थीं सो मैं घर वालों के साथ वापस आ गई.

‘‘आलोक के घर में एक जामुन का पेड़ है, जिस की शाखाओं ने हमारी आधी छत को घेरा हुआ है. मैं तब ऊपर छत वाले कमरे में रहती थी. आलोक और दादाजी का कमरा भी उन की छत पर था. दादाजी के सोने के बाद पेड़ की डाल के सहारे आलोक अकसर मेरे कमरे में आया करता था.’’

‘‘आया करता था यानी अब नहीं आता?’’ देव ने बात काटी.

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