सौजन्य- मनोहर कहानियां
चंडीगढ़ के एडीशनल सेशन जज एस.के. सचदेवा ने अभियोजन पक्ष के गवाहों की सूची पर नजर डाली, 16 गवाह थे. इन में पुलिस वालों के बयान तो लगभग एक जैसे थे कि लाश मिलने पर उन्होंने कौनकौन सी काररवाई की थी. अभियुक्तों की निशानदेही पर कैसे क्या बरामद किया गया था.
इस के अलावा गवाह के रूप में पेश हुए जनकदेव ने अजीब सा बयान दिया तो उसे मुकरा हुआ गवाह घोषित कर दिया गया. गुरमेल सिंह ने अपने बयान में बताया था कि सेक्टर-56 स्थित उस की दुकान पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, जिन की फुटेज उस ने पुलिस वालों को मुहैया करवाई थी.
संतोष कुमार का कहना था कि वह बद्दी (हिमाचल प्रदेश) की एक फैक्ट्री में मैकेनिक था और रिश्ते में अजय कुमार का साला था. 14 मई, 2016 को उसे उस की मौसी ने फोन कर के अजय की लाश मिलने की बात बताई थी. वह अगले दिन चंडीगढ़ के सिविल अस्पताल की मोर्चरी में अजय की लाश देखने गया था. तब पुलिस ने उस से लाश की लिखित शिनाख्त करवाई थी.
डा. ज्योति बरवा ने डा. रिशु जिंदल के साथ मिल कर लाश का पोस्टमार्टम किया था. डा. संजीव ने अदालत के सामने पेश हो कर मृतक की ब्लड ग्रुप संबंधी रिपोर्ट पेश की थी.
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अभियोजन पक्ष के गवाहों को निपटाने में अदालत को कई महीने का समय लग गया था. उस के बाद बचावपक्ष के गवाहों की बारी थी, जो 5 थे. दिनेश सिंह, बृजेश कुमार यादव, बलविंदर सिंह, किरन तथा खुशबू.
इन लोगों ने अपने बयान में क्या कहा, यह जानने से पहले इस मामले के बारे में जान लेना ठीक रहेगा.
रूबी कुमारी मूलरूप से बिहार की रहने वाली थी. जब वह 16 साल की थी, तभी उस की शादी अजय कुमार से हो गई थी. वह भी बिहार का ही रहने वाला था. लेकिन नौकरी की वजह से वह चंडीगढ़ में रहता था. शादी के बाद उस ने रूबी को गांव में ही मांबाप के पास छोड़ दिया था.
चंडीगढ़ से सटे मोहाली में वह गत्ता बनाने वाली एक फैक्ट्री में नौकरी करता था और चंडीगढ़ के सेक्टर-56 में छोटा सा मकान ले कर अकेला ही रहता था. साल में 2 बार 10-10 दिनों की छुट्टी ले कर वह गांव जाया करता था.
देखतेदेखते 13 साल का लंबा अरसा गुजर गया. इस बीच वह 3 बच्चों का पिता बन गया था. सन 2015 में अजय बीवीबच्चों को चंडीगढ़ ले आया. उस ने बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूल में करवा दिया.
रूबी शरीर से चुस्तदुरुस्त थी. गांव में उस के पास साइकिल थी. चंडीगढ़ आ कर उस ने स्कूटर चलाना सीख लिया तो अजय ने उसे एक्टिवा स्कूटी दिलवा दी. अजय सुबह लोकल बस से नौकरी पर चला जाता. रूबी तीनों बच्चों को स्कूल पहुंचाती. इस के बाद खाना बना कर दोपहर को टिफिन ले कर वह स्कूटी से पति को फैक्ट्री में दे आती. शाम को छुट्टी के बाद अजय बस से घर आ जाता.
रूबी ने पति को कभी किसी तरह की शिकायत का मौका नहीं दिया था. अजय पत्नी से बहुत खुश था. वह अकसर कहता रहता था कि उस की जैसी पत्नी खुशनसीब इंसान को ही मिलती है. रूबी सुंदर भी थी, पति को रिझाने की उसे हर कला आती थी. पासपड़ोस की बुजुर्ग महिलाएं अपनी बहुओं को रूबी की मिसाल दिया करती थीं.
खैर, अजय का समय परिवार के साथ बहुत अच्छे से बीत रहा था. बुरे वक्त की उस ने कल्पना भी नहीं की थी, पर अचानक उस का बुरा वक्त आ गया.
14 मई, 2016 की सुबह एक बुजुर्ग सैर करते हुए सैक्टर-56 के सरकारी स्कूल के पास से गुजरे तो उन की नजर एक जगह वीराने में सीवरेज गटर के पास पड़े सफेद रंग के बोरे पर पड़ी. बोरे के पास पहुंच कर उन्होंने उसे टटोला तो उस में लाश होने की आशंका हुई.
उन्होंने तुरंत इस बात की सूचना 100 नंबर पर दे दी. थोड़ी ही देर में एक पीसीआर वैन वहां आ पहुंची. पुलिसकर्मियों ने उस बुजुर्ग से बात कर के इस बात की सूचना पलसौरा चौकी को दे दी. थोड़ी ही देर में हवलदार कुलदीप सिंह, 2 सिपाही परवीन कुमार और दविंदर सिंह के साथ इंसपेक्टर अमराओ सिंह मौके पर आ पहुंचे.
बोरा खोला गया तो उस में से एक लाश निकली, जिस की शिनाख्त अजय कुमार के रूप में हुई. अमराओ सिंह की तहरीर पर थाना सेक्टर-39 में इस मामले में भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. थानाप्रभारी इंसपेक्टर दिलशेर सिंह ने भी मौके पर जा कर मामले की जांच की.
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लाश की पहचान मोहाली की गत्ता फैक्ट्री में काम करने वाले अजय कुमार के रूप में हुई थी. वहां संपर्क करने पर पता चला कि वह चंडीगढ़ के सेक्टर-56 के मकान नंबर 589 में रहता था और पिछले 2 दिनों से ड्यूटी पर नहीं आया था.
पुलिस ने पंचनामा तैयार कर लाश मोर्चरी में रखवा दी. इस के बाद इंसपेक्टर दिलशेर के नेतृत्व में एक पुलिस टीम मृतक के पते पर पहुंची. वहां उन की मुलाकात अजय की पत्नी रूबी से हुई. उस के तीनों बच्चे भी घर पर थे. अजय के बारे में पूछने पर रूबी ने बताया कि उस के पति 12 मई की सुबह तैयार हो कर ड्यूटी पर जाने के लिए घर से निकले थे लेकिन अभी तक वापस नहीं आए.
पुलिस के यह पूछने पर कि उस ने इस बारे में पति की फैक्ट्री में पता किया था या फिर पुलिस चौकी में मिसिंग रिपोर्ट लिखाई थी, तो उस ने मना करते हुए कहा कि किसी बात पर उस का पति से झगड़ा हो गया था. नाराज हो कर वह पैदल ही घर से चले गए थे. उस ने सोचा कि गुस्सा ठंडा हो जाएगा तो खुद ही वापस आ जाएंगे.
‘‘वह 2 दिनों तक घर नहीं लौटे तो तुम्हें उन की कोई फिक्र नहीं हुई?’’ इंसपेक्टर दिलशेर सिंह ने पूछा.
‘‘फिक्र करने से क्या होता. वैसे भी वह कोई बच्चे तो थे नहीं. न मैं ने उन से झगड़ा किया था. झगड़ा उन्होंने ही शुरू किया था.’’ रूबी ने कहा.
तभी पास खड़ी उस की बड़ी बेटी ने कहा, ‘‘पापा तो मम्मी को समझा रहे थे, झगड़ा मम्मी ने ही शुरू किया था. पहले भी मम्मी पापा से लड़ती रहती थी.’’
पुलिस वालों का ध्यान उस लड़की की ओर गया. दिलशेर सिंह ने उस से प्यार से पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारी मम्मी पापा से किस बात के लिए लड़ती थी?’’
‘‘सुमन भैया की वजह से. पापा उन्हें पसंद नहीं करते थे, जबकि मम्मी ने उन्हें सिर चढ़ा रखा था.’’ लड़की ने बताया.
वह कुछ और कहती, इस से पहले रूबी ने उस के मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘सुमन रिश्ते में हमारा भतीजा है सर. कभीकभार हम लोगों से वह मिलने आ जाता था जबकि मेरे पति को उस का यहां आना पसंद नहीं था. बस, इसी बात को ले कर हमारा कभीकभार झगड़ा हो जाता था. जब भी झगड़ा होता, वह नाराज हो कर चले जाते थे, फिर 2-3 दिनों बाद खुद ही वापस आ जाते थे.’’
‘‘पर इस बार वह नहीं लौटेंगे,’’ दिलशेर सिंह ने कहा. इस के बाद वह रूबी को अपने साथ जनरल अस्पताल ले गए, जहां मोर्चरी में रखा शव निकलवा कर उसे दिखाया तो वह उस की पहचान अपने पति के रूप में कर के छाती पीटपीट कर रोने लगी.
इस के बाद वह बेहोश सी हो कर जमीन पर लेट गई. अब तक सारा मामला दिलशेर सिंह की समझ में आ चुका था. मगर बिना किसी पुख्ता सबूत के वह किसी पर हाथ डालना नहीं चाहते थे. उन्होंने रूबी को अस्पताल से दवा दिलवा कर वापस घर भिजवा दिया.
इस के बाद उन्होंने रूबी के घर के आसपास की दुकानों के बाहर लगे सीसीटीवी फुटेज की जांच की. इन में रूबी 13 व 14 मई की रात में 12 बज कर 14 मिनट 16 सेकेंड पर एक आदमी को अपनी स्कूटी पर बिठा कर ले जाती दिखाई दी. स्कूटी के पीछे बैठे व्यक्ति ने अपने हाथों से गोल सी कोई चीज संभाल रखी थी.
इस सबूत के मिलते ही पुलिस ने उसी शाम रूबी को उस के घर से उठा लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ शुरू की गई तो उस ने अपना गुनाह मानते हुए इस अपराध में 2 और लोगों के शामिल होने की बात बताई.
उस की निशानदेही पर पुलिस ने उसी रात सुमन कुमार और कुलप्रकाश नाम के लोगों को भी गिरफ्तार कर लिया.
अगले दिन तीनों आरोपियों को अदालत में पेश कर के पुलिस ने उन का पुलिस रिमांड ले लिया. इस के बाद उन से विस्तार से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में यह बात सामने आई कि रूबी जब बिहार में अपनी ससुराल में पति के बिना रहती थी तो उस के अपने से 6 साल छोटे सुमन कुमार से अवैध संबंध बन गए थे. दूर की रिश्तेदारी में सुमन अजय कुमार का भतीजा लगता था. लिहाजा इन दोनों के संबंधों पर कभी किसी को शक नहीं हुआ. इस बात का दोनों ही फायदा उठाते रहे.
अजय जब रूबी को अपने साथ चंडीगढ़ ले आया तो दोनों प्रेमी बिछुड़ गए. लिहाजा दोनों को ही एकदूसरे की याद सताने लगी. सुमन का जीजा कुलप्रकाश भी चंडीगढ़ में नौकरी करता था. वह उसी मकान की ऊपरी मंजिल में रहता था, जिस में रूबी अपने पति व बच्चों के साथ रह रही थी. नौकरी तलाश करने के बहाने सुमन अपने जीजा के पास आ गया.
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इस तरह वह और रूबी फिर से एकदूसरे के करीब हो गए. जब बच्चे स्कूल और बड़े अपने काम पर चले जाते तो सुमन और रूबी को मिलने का मौका मिल जाता था. रूबी चालाक और बातूनी थी. वह पति को खुश रखने का हरसंभव प्रयास करती. इस के अलावा उस ने पासपड़ोस में भी अपना अच्छा प्रभाव बना रखा था.
वैसे तो दोनों ही मिलने में बड़ी होशियारी दिखाते थे लेकिन एक दिन अजय घर पर जल्दी आ गया. उस दिन अजय ने दोनों को आपत्तिजनक अवस्था में पकड़ लिया. सुमन को डांट कर भगाने के बाद उस ने रूबी की खूब खबर ली. पतिपत्नी के बीच शुरू हुआ यह झगड़ा उन के बच्चों के स्कूल से आने के बाद तक चलता रहा.
अजय को पत्नी की हकीकत पता लग चुकी थी इसलिए अब वह टाइमबेटाइम घर आने लगा. घर पर उसे सुमन भले ही न मिलता लेकिन पतिपत्नी के बीच झगड़ा फिर से शुरू हो जाता. अजय के सक्रिय हो जाने पर रूबी और सुमन की मुलाकातों पर पहरा लग गया था. ऊपर से रोजरोज के झगड़े से रूबी भी आजिज आ गई थी. एक दिन रूबी ने सुमन से मुलाकात कर के इस समस्या का हल निकालने को कहा.
उस ने रूबी को बताया कि अजय को रास्ते से हटाने के अलावा दूसरा कोई हल नहीं है. इस के बाद दोनों ने अजय को मौत के घाट उतारने की योजना बना ली. योजना के अनुसार, 12 मई, 2016 की छुट्टी के बाद रूबी तीनों बच्चों को कोई बहाना कर के अपने एक परिचित के यहां छोड़ आई.
दरअसल, उस दिन अजय को बुखार था. दवा दिलवाने के बाद रूबी ने उसे सुला दिया. उसी रात सुमन चाकू ले कर उन के यहां आ पहुंचा. उस वक्त अजय गहरी नींद में था. रूबी ने नींद में सोए पति के गले पर चाकू से वार किए.
जब वह तड़पने लगा तो उस ने और सुमन ने उस के गले में दुपट्टा डाल कर कस दिया. जब उन्हें इत्मीनान हो गया कि यह मर चुका है तो उन्होंने उस के शव को मोटे कपड़े में लपेट कर घर में पड़े सफेद रंग के बोरे में ठूंस दिया. इस के बाद दोनों मौजमस्ती में डूब गए.
वे शव को ठिकाने लगाने का मौका ढूंढते रहे. पूरे दिन शव उन के घर में ही पड़ा रहा. 13 मई की रात में चंडीगढ़ में जबरदस्त आंधीतूफान आया था.
इस भयावह मौसम की परवाह न कर के रूबी ने आधी रात में अपनी स्कूटी नंबर सीएच04 6538 निकाली और पति के शव वाले बोरे के साथ सुमन को ले कर घर से निकल गई. एक गटर के पास उस ने स्कूटी रोक दी.
उन की योजना शव को गटर में फेंकने की थी मगर उन दोनों से उस का ढक्कन नहीं खुल पाया. तब वे उस बोरे को वहीं छोड़ कर वापस घर आ गए. घर लौट कर उन्होंने अपनी रासलीला रचाई.
कुलप्रकाश का कसूर यह था कि उसे सुमन और रूबी के संबंधों की जानकारी थी. अजय की हत्या के बाद सुमन उसे बुला कर लाया था तो उस ने न केवल शव को पैक करने में मदद की थी, बल्कि खूनआलूदा कपडे़ व चाकू वगैरह भी ले जा कर अलगअलग जगहों पर छिपा दिए थे, जो बाद में पुलिस ने उस की निशानदेही पर बरामद कर लिए थे.
पुलिस रिमांड की अवधि समाप्त होने पर तीनों को फिर से अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.
निर्धारित समयावधि में दिलशेर सिंह ने केस का चालान तैयार कर निचली अदालत में पेश कर दिया, जहां से सेशन कमिट हो कर यह केस अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश एस.के. सचदेवा की अदालत में पहुंचा. अदालत में इस की विधिवत सुनवाई शुरू हुई. अभियोजन पक्ष के गवाहों को सुनने के बाद विद्वान जज ने बचाव पक्ष के गवाहों को सुनना शुरू किया.
दिनेश एक ठेकेदार था. कुलप्रकाश उस का मातहत था. बचावपक्ष के गवाह के रूप में दिनेश ने अदालत को बताया कि 14 मई, 2016 को वह कुलप्रकाश व 2 अन्य लोगों के साथ चंडीगढ़ के सेक्टर-9डी के शोरूम नंबर 26, 27 में काम कर रहा था कि दिन के साढ़े 10-पौने 11 बजे पल्सौरा चौकी की पुलिस आ कर कुलप्रकाश को पकड़ ले गई थी.
एक गवाह बृजेश कुमार यादव ने बताया कि वह मोहाली की उस गत्ता फैक्ट्री में नौकरी करता था, जहां मृतक काम करता था. 14 मई, 2016 को पुलिस ने गत्ता फैक्ट्री में पहुंच कर अजय के बारे में बृजेश से औपचारिक पूछताछ की थी.
बलविंदर मृतक अजय का पड़ोसी था, किरण कुलप्रकाश की पत्नी थी और खुशबू अजय की बेटी. कोर्ट में इन सभी के बयान दर्ज हुए. इन के बयानों में भी ऐसा कुछ खास नहीं था जो आरोपियों के बचाव के लिए कुछ करता.
इस के बाद दोनों पक्षों में बहस का दौर चला. इस जिरह में भाग लिया था पब्लिक प्रौसीक्यूटर मनिंदर कौर, सुमन के वकील विशाल गर्ग नरवाना, रूबी कुमारी की वकील प्रतिभा भंडारी एवं कुलप्रकाश के वकील पी.सी. राना ने.
विद्वान जज ने दोनों पक्षों को पूरी तवज्जो दे कर सुना. तमाम साक्ष्यों का निरीक्षण कर के अजय कुमार की हत्या में उक्त तीनों अभियुक्तों को दोषी पाते हुए न्यायाधीश ने 18 सितंबर, 2017 को अपना फैसला सुना दिया.
उन्होंने अपने फैसले में सुमन कुमार और रूबी कुमारी को भादंवि की धारा 302, 34 के तहत दोषी ठहराते हुए उम्रकैद के अलावा डेढ़ लाख रुपए जुरमाने की सजा सुनाई. उन्होंने कहा कि जुरमाना अदा न करने की सूरत में 6 महीने की सश्रम कैद और बढ़ा दी जाएगी.
इन दोनों को भादंवि की धारा 201 के तहत 3 साल की सश्रम कैद और 50 हजार रुपए जुरमाने की सजा सुनाई. जुरमाना अदा न कर पाने की स्थिति में एक महीने की अतिरिक्त सश्रम कैद की सजा भुगतने का आदेश दिया.
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न्यायाधीश ने कुलप्रकाश को भादंवि की धारा 302, 34 के अंतर्गत बामशक्कत उम्रकैद की सजा के अलावा डेढ़ लाख रुपए का जुरमाना अथवा 6 महीने की सश्रम कैद का फैसला सुनाया. सजा सुनाने के बाद तीनों दोषियों को चंडीगढ़ की बुड़ैल जेल भेज दिया गया.
कथा तैयार करने तक तीनों दोषी बुड़ैल जेल में बंद थे.
-कथा अदालत के फैसले पर आधारित