पैसों के लालच में बुझ गई ‘रोशनी’

11 नवंबर, 2016 की बात है. रामदुरेश के मंझले बेटे पवन कुमार की 4 दिनों बाद शादी थी. घर में शादी की तैयारियां जोरों पर चल रही थीं. चूंकि वह मूलरूप से बिहार के रहने वाले थे, इसलिए वहां से भी उन के तमाम रिश्तेदार आ चुके थे. पवन का बड़ा भाई रंजन राजेश, जो दुबई में नौकरी करता था, वह भी आ चुका था. दोपहर के करीब 3 बजे रामदुरेश अपनी दोनों पोतियों, रिधिमा और रौशनी को स्टालर पर बैठा कर सड़क पर घुमा रहे थे. उन्हें आए अभी 10 मिनट हुए होंगे कि मोटरसाइकिल से आए 3 युवकों ने उन्हें रोक लिया. उन्होंने मुंह पर कपड़ा बांध रखा था, इसलिए रामदुरेश उन्हें पहचान नहीं सके.

मोटरसाइकिल से आए युवकों में से 2 नीचे उतरे और रामदुरेश को धक्का मार कर गिरा दिया. उन के गिरते ही वे युवक स्टालर से 2 साल की रौशनी को उठा कर फगवाड़ा की ओर भाग गए. यह सब इतनी जल्दी में हुआ था कि रामदुरेश कुछ सोचसमझ ही नहीं पाए. जब तक वह उठ कर खड़े हुए, मोटरसाइकिल सवार काफी दूर जा चुके थे. वह मोटरसाइकिल का नंबर भी नहीं देख पाए.

रामदुरेश ने शोर मचाया तो तमाम लोग इकट्ठा हो गए. घर वाले भी बाहर आ गए. उन्होंने उन से युवकों का पीछा करने को कहा. कई लोग मोटरसाइकिलों से फगवाड़ा की ओर गए, लेकिन किसी को वे युवक दिखाई नहीं दिए. रामदुरेश काफी घबराए हुए थे. उन्हें पानी पिलाया गया. जब वह कुछ सामान्य हुए तो उन्होंने पूरी घटना कह सुनाई

घटना की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम और थाना बहराम पुलिस को फोन द्वारा दी गई. अपहरण की सूचना मिलते ही थाना बहराम के थानाप्रभारी सुरेश चांद दलबल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. दिनदहाड़े बच्ची के अपहरण की बात सुन कर सभी हैरान थे. कुछ ही देर में डीएसपी बगां हरविंदर सिंह, डीएसपी (आई) राजपाल सिंह, सीआईए प्रभारी सुखजीत सिंह, थाना सदर बगां के थानाप्रभारी रमनदीप सिंह भी घटनास्थल पर आ पहुंचे. आधे घंटे बाद एसएसपी नवीन सिंगला भी आ गए थे.

रामदुरेश ने पुलिस अधिकारियों को अपनी पोती रौशनी के अपरहण की बात बता दी. एसएसपी नवीन सिंगला के निर्देश पर 2 जिलों कपूरथला और नवांशहर की पुलिस अपहृत बच्ची की तलाश में जुट गई. थानाप्रभारी सुरेश चांद ने रामदुरेश के बयान के आधार पर अज्ञात अपहर्त्ताओं के खिलाफ रौशनी के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया था.

सुरेश चांद ने रामदुरेश और उन के परिवार वालों से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि उन का किसी से कोई लेनादेना या झगड़ा आदि नहीं था. सभी अपने काम से काम रखते थे.

उन्होंने यह भी बताया कि 4 दिनों बाद उन के यहां लड़के की शादी है. उस का पहला रिश्ता 3 महीने पहले फगवाड़ा के एक परिवार में तय हुआ था, जो बाद में किन्हीं कारणों से उन्होंने तोड़ दिया था. रिश्ता टूटने के बाद उन लोगों ने खूब झगड़ा किया था और देख लेने की धमकी दी थी.

रामदुरेश ने जिन लोगों पर शक जाहिर किया था, सुरेश चांद ने उन लोगों को थाने बुला कर पूछताछ की. लेकिन उन्हें वे लोग बेकसूर लगे. उन का इस वारदात से कोई लेनादेना नहीं था.

डीएसपी हरविंदर सिंह के आदेश पर इलाके के सभी सीसीटीवी कैमरों को खंगाला गया. घटनास्थल के निकट एक कैमरा लगा था, जो काफी समय से खराब था. अन्य जगहों पर लगे कैमरों से भी कोई सुराग नहीं मिला. दोनों जिलों की पुलिस टीमें बच्ची की तलाश में जुटी थीं. लेकिन देर रात तक कोई सुराग नहीं मिला.

रामदुरेश के घर में जो खुशी का माहौल था, वह उदासी में बदल चुका था. रौशनी की मां नेहा का रोरो कर बुरा हाल था.

अगले दिन अपहर्त्ता का फोन आया. उस ने कहा कि बच्ची उस के कब्जे में है और अगर बच्ची चाहिए तो 50 लाख रुपए का इंतजाम कर लो. पैसे कब और कहां पहुंचाने हैं, यह बाद में बता दिया जाएगा. रामदुरेश ने यह बात पुलिस को बता दी. अपहर्त्ताओं के फोन नंबर से पुलिस को उन के पास तक पहुंचने की राह मिल गई थी.

पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन पता की तो पता चला कि वह नंबर कस्बे के ही एक दुकानदार का था. उस की मोबाइल फोन की दुकान थी. दुकानदार ने बताया कि लगभग 2 महीने पहले यह सिम उस की दुकान से चोरी हो गया था. पुलिस ने जब उस से पूछा कि उस की दुकान पर किनकिन लोगों का ज्यादा आनाजाना है और किन लोगों से उस का दोस्ताना व्यवहार है तो उस ने 8 लोगों के नाम बताए.

उन लोगों के नामपते ले कर पुलिस ने उन के बारे में पता किया तो उन में से 5 युवक तो मिल गए, 3 फरार मिले. पुलिस का सीधा शक उन 3 फरार युवकों पर गया. अगले दिन पुलिस ने शहर के सभी छोटेबड़े रास्तों की नाकेबंदी कर दी, साथ ही अपहर्त्ताओं के फोन का भी इंतजार था, पर फोन नहीं आया.

थाना सदर बगां प्रभारी रमनदीप सिंह पौइंट फराला के नाके पर मौजूद थे. उन्होंने गांव मुन्ना की ओर से एक मोटरसाइकिल पर 3 युवकों को आते देखा. लेकिन पुलिस को देख कर उन युवकों ने मोटरसाइकिल वापस घुमा दी थी. रमनदीप सिंह ने बोलेरो जीप से उन का पीछा किया. कुछ दूरी पर ही ओवरटेक कर के उन्हें दबोच लिया गया. तीनों का हुलिया रामदुरेश द्वारा बताए गए अपहर्त्ताओं के हुलिए से मिल रहा था, इसलिए पूछताछ के लिए पुलिस तीनों को थाने ले आई.

उन्होंने अपने नाम गोयल कुमार उर्फ गोरी, हरमन कुमार उर्फ हैप्पी तथा रिशी बताए. रिशी कुमार जिला होशियारपुर के गांव टोडरपुर का रहने वाला था, जबकि गोयल और हरमन रामदुरेश के ही गांव खोथड़ा के रहने वाले थे. तीनों से जब रौशनी के अपहरण के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि रौशनी का अपहरण उन्होंने ही किया था, लेकिन अब वह जीवित नहीं है. उन्होंने उस की हत्या कर लाश जला दी थी.

यह खबर जब रामदुरेश के घर वालों तक पहुंची तो उन के यहां कोहराम मच गया. जब यह खबर पूरे शहर में फैली तो अपहर्त्ताओं को देखने के लिए थाने के बाहर भीड़ लग गई. लोग अपहर्त्ताओं को अपने हवाले करने की मांग करने लगे, ताकि वे उन्हें खुद सजा दे सकें.

तीनों अपहर्त्ताओं की उम्र 18 से 20 साल थी. थाने पर जनता का जमावड़ा और आक्रोश देख कर अतिरिक्त पुलिस बल बुलाना पड़ा. एसएसपी नवीन सिंगला ने आ कर लोगों को समझाया कि कानून के अनुसार दोषियों को सजा दी जाएगी, तब कहीं जा कर भीड़ शांत हुई.

पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने अभियुक्तों की निशानदेही पर होशियारपुर के गांव नडालो के पास से गुजरती ड्रेन के नजदीक एक खेत से ड्यूटी मजिस्ट्रैट भूपिंदर सिंह, तहसीलदार गढ़शंकर और एसएसपी नवीन सिंगला की मौजूदगी में रौशनी की अधजली लाश बरामद कर ली.

जरूरी काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए बगां के सिविल अस्पताल भिजवा दिया गया. चूंकि शव बुरी तरह से जला हुआ था, इसलिए पोस्टमार्टम में तकनीकी दिक्कतें आने के अंदेशों के चलते वहां के डाक्टरों ने अमृतसर के मैडिकल कालेज में पोस्टमार्टम कराने का सुझाव दिया.

इस के बाद डीसी के आदेश पर शव को अमृतसर मैडिकल कालेज भिजवा दिया गया. पुलिस ने भी एफआईआर में भादंवि की धारा 364 को 364ए, 302, 34, 129 जोड़ दिया. आरोपियों से पूछताछ में रौशनी के अपहरण व हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह उन की विकृत मानसिकता और शार्टकट से करोड़पति बनने का नतीजा थी.

रिशी, हैप्पी और गौरी बचपन से ही शातिर और महत्त्वाकांक्षी किस्म के युवक थे. पढ़ाई के दौरान ही वे आवारागर्दी करने लगे थे, जिस से ज्यादा पढ़ नहीं सके. उन के गांव के तमाम युवक विदेशों में रह कर अच्छी कमाई कर रहे थे, जिस से वे भी विदेश जाना चाहते थे, पर पैसे न होने के कारण जा नहीं पा रहे थे. मजबूर हो कर वे घर पर रह कर ही आसानी से मोटी कमाई करने का उपाय खोजने लगे.

गौरी और हैप्पी की ननिहाल रिशी के गांव टोडरपुर में थी, जिस से उन का वहां आनाजाना होता रहता था. इसी वजह से उन की रिशी से दोस्ती भी हो गई थी.

खोथड़ा गांव में ही रामदुरेश का परिवार रहता था. वैसे तो रामदुरेश मूलत: छपरा, बिहार के रहने वाले थे, पर लगभग 35 सालों से वह यहीं रह रहे थे. वह फगवाड़ा की जेसीटी कपड़ा मिल में नौकरी करते थे. उन के 3 बेटे थे, रंजन राजेश, पवन कुमार और पमा कुमार.

रामदुरेश जिस इलाके में रहते थे, वहां शायद ही ऐसा कोई घर होगा, जिस घर का कोई आदमी विदेश में न हो. किसी तरह रामदुरेश ने भी अपने बड़े बेटे राजेश को सन 2005 में दुबई भिजवा दिया था. राजेश की दुबई में नौकरी लगने के बाद रामदुरेश की काया पलट हो गई थी. बेटे द्वारा दुबई से भेजे पैसों से उन्होंने खोथड़ा के सैफर्न एनक्लेव में प्लौट खरीद कर शानदार कोठी बनवाई थी. सन 2010 में उन्होंने उस की शादी कर दी थी.

राजेश 2 बेटियों का पिता बना, जिस में बड़ी बेटी रिधिमा 4 साल की और छोटी रौशनी 2 साल की थी. सन 2014 के अंत में रामदुरेश नौकरी से रिटायर हुए तो उन्हें काफी पैसा मिला. इसी बीच उन का मंझला बेटा पवन भी शादी लायक हो गया.

उन्होंने उस का रिश्ता फगवाड़ा की ही एक लड़की से तय कर दिया, पर किसी वजह से वह रिश्ता टूट गया तो बाद में दूसरी जगह उस का रिश्ता तय हो गया. 16 नवंबर, 2016 को शादी का दिन भी तय कर दिया गया था.

हैप्पी, रिशी और गौरी रामदुरेश की हैसियत जानते थे. उन्हें पता था कि उन का बड़ा बेटा दुबई से मोटी रकम भेजता है, साथ ही यह भी उम्मीद थी कि उन्हें रिटायरमेंट पर भी अच्छा पैसा मिला होगा. यही सब सोच कर उन्होंने उन के घर लूट की योजना बना डाली.

चूंकि रामदुरेश के बेटे पवन की शादी के कुछ ही दिन बचे थे. घर पर तमाम मेहमान जुट गए थे. उधर हैप्पी, रिशी और गौरी योजनानुसार लूट की घटना को अंजाम देने के लिए रैकी कर रहे थे.

कोठी पर रिश्तेदारों की भीड़भाड़ देख कर उन्हें लूट करना रिस्की लगा, इसलिए उन्होंने योजना बदल दी. रिशी ने उन के परिवार से किसी बच्चे का अपहरण करने की सलाह दी. उस की सलाह हैप्पी और गौरी को पसंद आ गई. फिरौती की रकम मांगने के लिए उन्होंने सिम का इंतजाम भी कर लिया, जो उन में से किसी के नाम पर नहीं था.

वह सिमकार्ड उन्होंने मेहली के ललित जुनेजा से साढ़े 3 सौ रुपए में खरीदा था. ललित जुनेजा की फोन एसेसरीज की दुकान थी. वह चोरी के फोन खरीदनेबेचने का भी काम करता था. ललित ने किसी से चोरी का एक मोबाइल खरीदा था, उस के अंदर जो सिमकार्ड निकला था, वही उस ने हैप्पी को बेच दिया था.

रामदुरेश के घर की रैकी करते हुए तीनों उन की पोती का अपहरण करने का मौका तलाशते रहे. इसी चक्कर में वे 11 नवंबर, 2016 को दोपहर 3 बजे उन की कोठी की तरफ आए थे. उन्होंने रामदुरेश को अपनी दोनों पोतियों के साथ देखा तो उन्हें धक्का दे कर वे उन की 2 साल की पोती रौशनी का अपहरण कर ले गए.

उस बच्ची को ले कर वे टोडरपुर पहुंचे और वहां एक खेत में छिप कर बैठ गए. बीचबीच में रिशी अपने घर और बाजार जा कर खानेपीने की चीजें लाता रहा. वहीं खेत से ही उन्होंने रामदुरेश को फिरौती के लिए फोन किया.

भूख की वजह से रौशनी जोरजोर रोने लगी. तीनों ने उसे चुप कराने की बहुत कोशिश की, पर वह चुप नहीं हुई. आसपास के खेतों में काम करने वालों ने खेत में बच्ची के रोने की आवाज सुनी तो उन्हें संदेह हुआ. लोग उधर आने लगे तो वे बच्ची को ले कर दूसरे खेत में पहुंचे. वहां भी हालात वही रहे. वह लगातार रोए जा रही थी.

बच्ची की वजह से वे पकड़े जा सकते थे, इसलिए उन्होंने रौशनी का गला दबा दिया. कुछ ही पलों में उस मासूम ने दम तोड़ दिया. इस के बाद उन्होंने उस की लाश पर पराली डाल कर जला दिया.

लाश ठिकाने लगाने के बाद सभी टोडरपुर में बैठ कर सोचने लगे कि अब क्या किया जाए. अंत में वे मोटरसाइकिल से यह देखने अपने गांव की ओर जा रहे थे कि रामदुरेश और पुलिस इस मामले में क्या कर रही है. पर उन्होंने नाके पर पुलिस देखी तो वहीं से मोटरसाइकिल मोड़ कर भागे, तभी पुलिस ने पीछा कर के उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

इन की निशानदेही पर पुलिस ने चोरी का सिम बेचने वाले ललित जुनेजा को भी गिरफ्तार कर लिया था. रिमांड अवधि खत्म होने के बाद 14 नवंबर, 2016 को थानाप्रभारी सुरेश चांद ने इस हत्याकांड से जुड़े तीनों अभियुक्तों, गोयल उर्फ गौरी, हेमंत उर्फ हैप्पी और रिशी को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक तीनों अभियुक्त जेल में थे. केस की जांच थानाप्रभारी सुरेश चांद कर रहे थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेम के 11 टुकड़े : पति और सास ससुर ने की बहू की हत्या

6 मई, 2017 की बात है. दिन के यही कोई 9 बज रहे थे. नवी मुंबई के उपनगर रबाले के शिलफाटा रोड स्थित एमआईडीसी के बीच से बहने वाले नाले पर एक सुनसान जगह पर काफी लोग इकट्ठा थे. इस की वजह यह थी कि नाले की घनी झाडि़यों के बीच प्लास्टिक का एक बैग पड़ा था. उस में एक मानव धड़ भर कर फेंका गया था. उस का सिर, दोनों हाथ और पैर गायब थे.

यह हत्या का मामला था. इसलिए किसी जागरूक नागरिक ने इस की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी थी.

चूंकि घटनास्थल नवी मुंबई के थाना एमआईडीसी के अंतर्गत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना मिलते ही थानाप्रभारी चंद्रकांत काटकर ने चार्जरूम में ड्यूटी पर तैनात सहायक इंसपेक्टर अमर जगदाले को बुला कर डायरी बनवाई और तुरंत सहायक इंसपेक्टर प्रमोद जाधव, अमर जगदाले और कुछ सिपाहियों को ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

घटनास्थल पर पहुंच कर थानाप्रभारी चंद्रकांत काटकर ने वहां एकत्र भीड़ को हटा कर उस प्लास्टिक के बैग को झाडि़यों से बाहर निकलवाया. बैग में भरा धड़ बाहर निकलवाया गया. वह धड़ किसी महिला का था. हत्या के बाद लाश को ठिकाने लगाने के लिए उस का सिर और हाथपैर काट कर केवल धड़ वहां फेंका गया था. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर चंद्रकांत काटकर ने धड़ को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. लेकिन पोस्टमार्टम के लिए भेजने से पहले उन्होंने डीएनए जांच के लिए सैंपल सुरक्षित करवा लिया था.

मृतका के बाकी अंग न मिलने से पुलिस समझ गई कि हत्यारा कोई ऐरागैरा नहीं, काफी होशियार और शातिर था. खुद को बचाने के लिए उस ने सबूतों को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

धड़ के साथ ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की शिनाख्त हो सकती. धड़ के निरीक्षण में पुलिस को उस की बची बांह पर सिर्फ गणेश भगवान का एक टैटू दिखाई दिया था. इस से यह तो स्पष्ट हो गया था कि मृतका हिंदू थी, लेकिन सिर्फ एक टैटू से शिनाख्त होना संभव नहीं था. फिर भी पुलिस को उम्मीद की एक किरण तो मिल ही गई थी.

घटनास्थल की काररवाई निपटा कर थानाप्रभारी थाने लौटे और सहायकों के साथ बैठ कर विचारविमर्श के बाद इस मामले को सुलझाने की जिम्मेदारी इंसपेक्टर प्रमोद जाधव को सौंप दी थी.

मामले की जांच की जिम्मेदारी मिलते ही प्रमोद जाधव ने तुरंत मुंबई और उस के आसपास के सभी छोटेबड़े थानों को वायरलैस संदेश भिजवा कर यह पता लगाने की कोशिश की कि किसी थाने में किसी महिला की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है. इसी के साथ उन्होंने मृतका की बाजू पर बने गणेश भगवान के टैटू को हाईलाइट करते हुए महानगर के सभी प्रमुख दैनिक अखबारों में फोटो छपवा कर उस धड़ की शिनाख्त की अपील की.

अखबार में छपी इस अपील का पुलिस को फायदा यह मिला कि धड़ की शिनाख्त हो गई. वह धड़ प्रियंका गुरव का था. उस की गुमशुदगी मुंबई के पौश इलाके के थाना वरली में दर्ज थी. ठाणे के डोंबिवली कल्याण की रहने वाली कविता दूधे और उन के भाई गणेश दूधे ने उस धड़ को अपनी छोटी बहन प्रियंका का धड़ बताया था.

अखबार में खबर छपने के अगले दिन सवेरे कविता दूधे अपने भाई गणेश दूधे के साथ थाना एमआईडीसी पहुंची और चंद्रकांत काटकर से मिल कर बांह पर बने गणेश भगवान के टैटू से आशंका व्यक्त की थी कि वह धड़ उन की बहन प्रियंका का हो सकता है. क्योंकि 5 मई, 2017 से वह गायब है.

ससुराल वालों के अनुसार, वह सुबह किसी नौकरी के लिए इंटरव्यू देने घर से निकली थी तो लौट कर नहीं आई थी. कविता ने बरामद धड़ देखने की इच्छा जाहिर की, क्योंकि वह उस टैटू को पहचान सकती थी. प्रियंका ने अपनी बांह पर वह टैटू उसी के सामने बनवाया था.

चंद्रकांत काटकर ने कविता और गणेश को धड़ दिखाने के लिए इंसपेक्टर प्रमोद जाधव के साथ अस्पताल के मोर्चरी भिजवा दिया. धड़ देखते ही कविता और गणेश फूटफूट कर रो पड़े थे. इस से साफ हो गया था कि वह धड़ प्रियंका का ही था. इस तरह धड़ की शिनाख्त हो गई तो जांच आगे बढ़ाने का रास्ता मिल गया.अब पुलिस को यह पता लगाना था कि प्रियंका की हत्या क्यों और किस ने की? पूछताछ में प्रियंका की बहन कविता और भाई गणेश ने बताया था कि प्रियंका ने वर्ली स्थित पीडब्ल्यूडी के सरकारी आवास में अपने परिवार के साथ रहने वाले सिद्धेश गुरव से 30 अप्रैल, 2017 को प्रेम विवाह किया था.

भाईबहन ने प्रियंका को इस विवाह से मना किया था. इस की वजह यह थी कि न सिद्धेश उस से विवाह करना चाहता था और न ही उस के घर वाले चाहते थे कि सिद्धेश प्रियंका से विवाह करे. आखिर वही हुआ, जिस की उन्हें आशंका थी. प्रियंका के हाथों की मेहंदी का रंग फीका होता, उस से पहले ही उस की जिंदगी का रंग फीका हो गया.

इस के बाद पुलिस ने मृतका के पति सिद्धेश और उस के घर वालों को थाने बुला कर पूछताछ की तो उन्होंने भी वही सब बताया, जो कविता और गणेश बता चुके थे. उन का कहना था कि 5 मई की सुबह इंटरव्यू के लिए गई प्रियंका रात को भी घर लौट कर नहीं आई तो उन्हें चिंता हुई. सभी पूरी रात उस की तलाश करते रहे. जब कहीं से भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो उन्होंने अगले दिन यानी 6 मई को थाना वर्ली में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

थाना एमआईडीसी पुलिस तो इस मामले की जांच कर ही रही थी, क्राइम ब्रांच के सीनियर इंसपेक्टर जगदीश कुलकर्णी भी इस मामले की जांच कर रहे थे. प्रियंका की ससुराल वालों ने जो बयान दिया था, उस में उन्हें दाल में कुछ काला नजर आ रहा था. जब उन्होंने प्रियंका के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवाई तो उन्हें पूरी दाल ही काली नजर आई.

ससुराल वालों ने जिस दिन प्रियंका के बाहर जाने की बात बताई थी, मोबाइल फोन की लोकेशन के अनुसार उस दिन पूरे दिन प्रियंका घर पर ही थी. वह घर से बाहर गई ही नहीं थी. इस के अलावा किसी संपन्न परिपवार की बहू विवाह के मात्र 5 दिनों बाद ही नौकरी के लिए किसी कंपनी में इंटरव्यू देने जाएगी, यह भी विश्वास करने वाली बात नहीं थी. उस समय तो वह पति के साथ खुशियां मनाएगी.

मामला संदिग्ध लग रहा था. लेकिन परिवार सम्मनित था, इसलिए उन पर हाथ डालने से पहले इंसपेक्टर जगदीश कुलकर्णी ने अधिकारियों से राय ली. अधिकारियों ने आदेश दे दिया तो वह प्रियंका के पति सिद्धेश, ससुर मनोहर गुरव और मां माधुरी गुरव को क्राइम ब्रांच के औफिस ले आए.

सभी से अलगअलग पूछताछ की गई तो आखिर में प्रियंका की हत्या का खुलासा हो गया. पता चला कि इन्हीं लोगों ने प्रियंका की हत्या की थी. इस पूछताछ में प्रियंका की हत्या से ले कर उस की लाश को ठिकाने लगाने तक की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी.

25 वर्षीय सिद्धेश गुरव का परिवार मुंबई से सटे ठाणे के उपनगर कल्याण बासिंद में रहता था. उस के पिता का नाम मनोहर गुरव और मां का माधुरी गुरव था. परिवार छोटा और सुखी था. मनोहर गुरव सरकारी नौकरी में थे. रहने के लिए सरकारी आवास मिला था. सिद्धेश गुरव उन का एकलौता बेटा था, जिसे पढ़ालिखा कर वह सीए बनाना चाहते थे.

सिद्धेश पढ़ाईलिखाई में तो ठीकठाक था ही, महत्त्वाकांक्षी भी था. वह सीए तो नहीं बन सका, लेकिन पढ़ाई पूरी होते ही उसे मुंबई के विक्रोली स्थित टीसीएस कंपनी में उसे अच्छी नौकरी मिल गई थी. बेटे को नौकरी मिलते ही मनोहर गुरव का भी प्रमोशन हो गया था. इस के बाद उन्हें रहने के लिए मुंबई के वर्ली स्थित पीडब्ल्यूडी कालोनी में बढि़या सरकारी आवास मिल गया. इस के बाद वह अपना बासिंद का घर छोड़ कर वर्ली स्थित सरकारी आवास में रहने आ गए.

22 साल की प्रियंका सिद्धेश के साथ ही पढ़ती थी. खूबसूरत प्रियंका की पहले सिद्धेश से दोस्ती हुई, उस के बाद दोनों में प्यार हो गया. आकर्षक शक्लसूरत और शांत स्वभाव का सिद्धेश प्रियंका को भा गया था. ऐसा ही कुछ सिद्धेश के साथ भी था.

प्रियंका अपनी बड़ी बहन कविता दूधे, भाई गणेश दूधे और बूढ़ी मां के साथ कल्याण के उपनगर दिवा गांव में रहती थी. पिता की बहुत पहले मौत हो चुकी थी. मां ने किसी तरह दोनों बेटियों और बेटे को पालपोस कर बड़ा किया था. कविता सयानी हुई तो मां की सारी जिम्मेदारी उस ने अपने कंधों पर ले ली. उस ने प्रियंका और भाई को पढ़ाया-लिखाया, जबकि वह खुद ज्यादा पढ़लिख नहीं पाई थी. लेकिन वह प्रियंका और गणेश को पढ़ालिखा कर उन्हें अच्छी जिंदगी देने का सपना जरूर देख रही थी.

प्रियंका और सिद्धेश की प्रेमकहानी की शुरुआत 3 साल पहले सन 2014 में हुई थी. उस समय डोंबिवली कालेज में दोनों एक साथ पढ़ रहे थे. दोनों में प्यार हुआ तो साथसाथ जीनेमरने की कसमें भी खाई गईं. इस के बाद दोनों में शारीरिक संबंध भी बन गए.

लेकिन जब सिद्धेश को नौकरी मिल गई और उस के पिता का प्रमोशन हो गया तो वह परिवार के साथ वर्ली रहने चला गया. इस के बाद कुछ दिनों तक तो वह प्रियंका से मिलता रहा और शादी करने की बात करता रहा, लेकिन धीरेधीरे उस ने प्रियंका से मिलनाजुलना कम कर दिया.

इस के बाद वह सिर्फ फोन पर ही प्रियंका से बातें कर के रह जाता था. प्रियंका जब भी उस से मिलने की बात करती, कोई न कोई बहाना बना कर वह टाल देता था. वह शादी की बात करती तो कहता कि अभी शादी की इतनी जल्दी क्या है, जब समय आएगा, शादी भी कर लेंगे.

अचानक प्रियंका को जो जानकारी मिली, उस से उस का सारा अस्तित्व ही हिल उठा. उसे कहीं से पता चला कि सिद्धेश के जीवन में कोई और लड़की आ गई है, जिस में उस के मांबाप की भी सहमति है. इस से वह परेशान हो उठी. जब इस बात की जानकारी उस के घर वालों को हुई तो उन्होंने उसे समझाया कि ऐसे में उस का सिद्धेश से विवाह करना ठीक नहीं है.

लेकिन प्रियंका ने तो ठान लिया था कि वह विवाह सिद्धेश से ही करेगी. क्योंकि वह मर्यादाओं की सारी सीमाएं तोड़ चुकी थी, इसलिए उस ने अपने घर वालों की बात भी नहीं मानी.

निश्चय कर के एक दिन प्रियंका सिद्धेश से मिली और विवाह के बारे में पूछा. सिद्धेश ने यह कह कर टालना चाहा कि वह उस के मांबाप को पसंद नहीं है, इसलिए वह उस से शादी नहीं कर सकता. इस पर प्रियंका ने कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे मांबाप पसंद नहीं करते तो न करें, तुम तो मुझे पसंद करते हो. शादी के बाद हम मांबाप को राजी कर लेंगे.’’

प्रियंका की इस बात का सिद्धेश के पास कोई जवाब नहीं था. कुछ देर तक चुप बैठा वह सोचता रहा, उस के बाद बोला, ‘‘मैं मजबूर हूं. मैं अपने मांबाप के खिलाफ नहीं जा सकता. तुम मुझे भूल जाओ.’’

‘‘तुम मुझे भूल सकते हो, लेकिन मैं तुम्हें नहीं भूल सकती. तुम ने मुझे खिलौना समझ रखा है क्या कि जब तक मन में आया खेला और जब मन भर गया तो फेंक दिया? शादी का वादा कर के मेरे मन और तन से खेलते रहे. देखा जाए तो एक तरह से मेरा यौनशोषण करते रहे. अब तुम्हें कोई दूसरी लड़की मिल गई है तो मुझ से पीछा छुड़ा रहे हो. अगर तुम ने शादी नहीं की तो मैं तुम्हारे खिलाफ शादी का झांसा दे कर यौनशोषण का मुकदमा दर्ज कराऊंगी.’’

प्रियंका की इस धमकी से सिद्धेश और उस के घर वाले घबरा गए. समाज और नातेरिश्तेदारों में बदनामी से बचने के लिए सिद्धेश ने प्रियंका से शादी कर ली. इस में घर वालों ने भी रजामंदी दे दी. इस तरह सिद्धेश और प्रियंका ने प्रेम विवाह कर लिया.

सिद्धेश ने विवाह तो कर लिया, लेकिन यह एक तरह की जबरदस्ती की शादी थी. इसलिए प्रियंका को ससुराल में जो प्यार और सम्मान मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला. सम्मान देने की कौन कहे, उस के पति और सासससुर तो किसी तरह उस से पीछा छुड़ाने की सोच रहे थे.

इस के लिए सिद्धेश और उस के मांबाप ने साजिश रच कर 4-5 मई, 2017 की रात प्रियंका जब गहरी नींद में सो रही थी, तब सिद्धेश ने उस के मुंह पर तकिया रख कर उसे हमेशा के लिए सुला दिया.

प्रियंका की हत्या के बाद जब उस की लाश को ठिकाने लगाने की बात आई तो सिद्धेश और उस के मांबाप ने डोंबिवली के रहने वाले अपने परिचित अपराधी प्रवृत्ति के दुर्गेश कुमार पटवा से संपर्क किया. प्रियंका की लाश को ठिकाने लगाने के लिए उस ने एक लाख रुपए मांगे.

सौदा तय हो गया तो दुर्गेश ने मदद के लिए डोंबिवली के ही रहने वाले अपने मित्र विशाल सोनी को सैंट्रो कार सहित बुला लिया. विशाल के आने पर दुर्गेश ने प्रियंका की लाश को बाथरूम में ले जा कर उस के 11 टुकड़े किए. लाश के टुकड़े करने के लिए हथियार वे अपने साथ लाए थे.

लाश के टुकड़ों को अलगअलग प्लास्टिक के बैग में अच्छी तरह से पैक कर विशाल ने उन्हें कार में रखा और 5-6 मई, 2017 की रात धड़ को रबाले के नाले में तो सिर को ले जा कर शाहपुर के जंगल में फेंका. कमर के नीचे के हिस्से और हाथों को अमरनाथ-बदलापुर रोड के बीच स्थित खारीगांव की खाड़ी में ले जा कर पैट्रोल डाल कर जला दिया.

लाश ठिकाने लग गई तो 6 मई को सिद्धेश अपने मांबाप के साथ थाना वर्ली पहुंचा और प्रियंका की गुमशुदगी दर्ज करा दी. उन्होंने तो सोचा था कि सब ठीक हो गया है, लेकिन 3 दिनों बाद ही सब गड़बड़ हो गया, जब क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर जगदीश कुलकर्णी ने पूछताछ के लिए उन्हें अपने औफिस बुला लिया. मामले का खुलासा होने के बाद उन्होंने सभी को थाना एमआईडीसी पुलिस के हवाले कर दिया.

सिद्धेश, उस के पिता मनोहर तथा मां माधुरी से पूछताछ कर मामले की जांच कर रहे प्रमोद जाधव ने 12 मई, 2017 को दुर्गेश पटवा को डोंबिवली से तो 14 मई को विशाल सोनी को भी उस के घर से सैंट्रो कार सहित गिरफ्तार कर लिया. इन की निशानदेही पर पुलिस ने प्रियंका के सिर तथा बाकी अंगों की राख बरामद कर ली थी.

सबूत जुटा कर पुलिस ने सिद्धेश गुरव, उस के पिता मनोहर गुरव, मां माधुरी गुरव, दुर्गेश कुमार पटवा और विशाल सोनी को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.

  • कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार पर टूटा पंचायत का कहर

बिहार के जिला भागलपुर स्थित कजरैली इलाके का एक गांव है गौराचक्क. वैसे तो इस गांव में सभी जातियों के लोग रहते हैं. लेकिन यहां बहुतायत यादवों की है. यहां के यादव साधनसंपन्न हैं. उन में एकता भी है. उन की एकजुटता की वजह से पासपड़ोस के गांवों के लोग उन से टकराने से बचते हैं.

इसी गांव में परमानंद यादव अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 1 बेटी और 2 बेटे थे. बेटी बड़ी थी, जिस का नाम सोनी था. साधारण शक्लसूरत और भरेपूरे बदन की सोनी काफी मिलनसार और महत्त्वाकांक्षी थी. उस के अंदर काफी कुछ कर गुजरने की जिजीविषा थी.

2 बेटों के बीच एकलौती बेटी होने की वजह से सोनी को घर में सभी प्यार करते थे. उस की हर एक फरमाइश वह पूरी करते थे. सोनी के पड़ोस में हिमांशु यादव रहता था. रिश्ते में सोनी उस की बुआ लगती थी. यानी दोनों में बुआभतीजे का रिश्ता था. दोनों हमउम्र थे और साथसाथ पलेबढे़ पढ़े भी थे.

वह बचपन से एकदूसरे के करीब रहतेरहते जवानी में पहुंच कर और ज्यादा करीब आ गए. यानी बचपन के रिश्ते जवानी में आ कर सभी मर्यादाओं को तोड़ते हुए प्यार के रिश्ते की माला में गुथ गए.

सोनी और हिमांशु एकदूसरे से प्यार करते थे. इतना प्यार कि एकदूसरे के बिना जीने की सोच भी नहीं सकते थे. वे जानते थे कि उन के बीच बुआभतीजे का रिश्ता है. इस के बावजूद अंजाम की परवाह किए बगैर प्यार की पींग बढ़ाने लगे. बुआभतीजे का रिश्ता होने की वजह से घर वालों ने भी उन की तरफ कोई खास ध्यान नहीं दिया.

एक दिन दोपहर का वक्त था. सोनी से मिलने हिमांशु उस के घर गया. कमरे का दरवाजा खुला हुआ था. सोनी सोफे पर अकेली बैठी कुछ सोच रही थी. हिमांशु को देखते ही मारे खुशी के उस का चेहरा खिल उठा. हिमांशु के भी चेहरे पर रौनक आ गई. वह भी मुसकरा दिया. तभी सोनी ने उसे पास बैठने का इशारा किया तो वह उस के करीब बैठ गया.

‘‘क्या बात है सोनी, घर में इतना सन्नाटा क्यों है?’’ हिमांशु चारों तरफ नजर दौड़ाते हुए बोला, ‘‘चाचाचाची कहीं बाहर गए हैं क्या?’’

‘‘हां, आज सुबह ही मम्मीपापा किसी काम से बाहर चले गए. वे शाम तक ही घर लौटेंगे और दोनों भाई भी स्कूल गए हैं.’’ वह बोली.

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‘‘इस एकांत में बैठी तुम क्या सोच रही थी?’’  हिमांशु ने पूछा.

‘‘यही कि सामाजिक मानमर्यादाओं को तोड़ कर जिस रास्ते पर हम ने कदम बढ़ाए हैं, क्या समाज हमारे इस रिश्ते को स्वीकार करेगा?’’ सोनी बोली.

‘‘शायद समाज हमारे इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करेगा.’’ हिमांशु ने तुरंत कहा.

‘‘फिर क्या होगा हमारे प्यार का? मुझे तो उस दिन की सोच कर डर लगता है, जिस दिन हमारे इस रिश्ते के बारे में मांबाप को पता चलेगा तो पता नहीं क्या होगा?’’ सोनी ने लंबी सांस लेते हुए कहा.

‘‘ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, वे हमें जुदा करने की कोशिश करेंगे.’’ सोनी की आंखों में आंखें डाले हिमांशु आगे बोला, ‘‘इस से भी जब उन का जी नहीं भरेगा तो हमें सूली पर चढ़ा देंगे. अरे हम ने प्यार किया है तो डरना क्या? सोनी, मेरे जीते जी तुम्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘सच में इतना प्यार करते हो मुझ से?’’ वह बोली.

‘‘चाहो तो आजमा लो, पता चल जाएगा.’’ हिमांशु ने तैश में कहा.

‘‘ना बाबा ना. मैं ने तो ऐसे ही तुम्हें तंग करने के लिए पूछ लिया.’’

‘‘अच्छा, अभी बताता हूं, रुक.’’ कहते हुए हिमांशु ने सोनी को बांहों में भींच लिया. वह कसमसाती हुई उस में समाती चली गई. एकदूसरे के स्पर्श से उन के तनबदन की आग भड़क उठी. कुछ देर तक वे एकदूसरे में समाए रहे, जब होश आया तो वे नजरें मिला कर मुसकरा पड़े. फिर हिमांशु वहां से चला गया.

लेकिन उन का यह प्यार और ज्यादा दिनों तक घर वालों की आंखों से छिपा हुआ नहीं रह सका. सोनी के पिता को जब जानकारी मिली तो उन के पैरों तले जमीन खिसक गई. परमानंद यादव बेटी को ले कर गंभीर हुए तो दूसरी ओर उन्होंने हिमांशु से साफतौर पर मना कर दिया कि आइंदा वह न तो सोनी से बातचीत करेगा और न ही उन के घर की ओर मुड़ कर देखने की कोशिश करेगा. अगर उस ने दोबारा ऐसी ओछी हरकत करने की कोशिश की तो इस का अंजाम बहुत बुरा होगा.

प्रेम प्रसंग की बातें गांवमोहल्ले में बहुत तेजी से फैलती  हैं. परमानंद ने बहुत कोशिश की कि यह बात वह किसी और के कानों तक न पहुंचे पर ऐसा हो नहीं सका. लाख छिपाने के बावजूद पूरे मोहल्ले में सोनी और हिमांशु की प्रेम कहानी के चर्चे होने लगे. इस से परमानंद का मोहल्ले में निकलना दूभर हो गया.

परमानंद ने सोनी पर कड़ा पहरा बिछा दिया. सोनी के घर से बाहर अकेला जाने पर पाबंदी लगा दी. पत्नी से भी उन्होंने कह दिया कि सेनी को अगर घर से बाहर जाना भी पड़ेगा तो उस के साथ घर का कोई एक सदस्य जरूर जाएगा.

पिता द्वारा पहरा बिठा देने से हिमांशु और सोनी की मुलाकात नहीं हो पा रही थी. सोनी की हालत जल बिन मछली की तरह हो गई थी. उसे न तो खानापीना अच्छा लगता था और न ही किसी से मिलनाजुलना. उस के लिए एकएक पल काटना पहाड़ जैसा लगता था.

सोनी की एक झलक पाने के लिए वह बेताब था. पागलदीवानों की तरह वह यहांवहां भटकता फिरता था. उस की हालत देख कर मां जेलस देवी काफी परेशान रहती थी. मां ने भी बेटे को काफी समझाया कि उस ने जो किया, उसे समाजबिरादरी कभी मान्यता नहीं दे सकती. रिश्ते के बुआभतीजे की शादी को कोई स्वीकार नहीं करेगा. बेहतर है, तुम इसे बुरा सपना समझ कर भूल जाओ.

मगर हिमांशु मां की बात को मानने को तैयार नहीं था. उधर सोनी ने भी अपनी मां से कह दिया कि वह हिमांशु के अलावा किसी और लड़के से शादीनहीं करेगी. मां ने बहुत समझाया लेकिन प्रेम में अंधी सोनी की समझ में नहीं आया. वह अपनी जिद पर अड़ी रही.

मां भी क्या करती, जब समझातेसमझाते वह थक गई तो उस ने कुछ भी कहना छोड़ दिया. काफी देर बाद सोनी की समझ में आया कि उसे आजादी पानी है तो पहले घर वालों को विश्वास दिलाना होगा कि वह हिमांशु को पूरी तरह भूल चुकी है. घर वालों को जब उस पर विश्वास हो जाएगा तब वह इस का फायदा उठा कर हिमांशु तक पहुंच सकती है. अगर एक बार वह उस के पास पहुंच गई तो उसे कोई रोक नहीं पाएगा.

ये दिमाग में विचार आते ही सोनी का चेहरा खिल उठा और वह घडि़याली आंसू बहाते हुए मां की गोद में जा कर समा गई, ‘‘मां मुझे माफ कर दो. वाकई मुझ से बड़ी भूल हो गई थी. मैं ने आप की बात नहीं मानी, इसलिए आप के मानसम्मान को ठेस पहुंची. मेरी ही वजह से आप को और पापा को बेइज्जती का सामना करना पड़ा. पता नहीं ये सब कैसे हो गया. बताओ अब मैं क्या करूं.’’

‘‘देख बेटी, सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते. फिर तू तो मेरा अपना खून है.’’ मां ने सोनी को समझाया, ‘‘मैं तो कहती हूं बेटी कि जो हुआ उसे बुरा सपना समझ कर भूल जा. तेरी शादी मैं अच्छे से अच्छे खानदान में करूंगी.’’

उस के बाद मांबेटी एकदूसरे के गले मिल कर पश्चाताप के आंसू पोंछती रहीं. मां को विश्वास में ले कर सोनी मन ही मन खुश थी. उस के होंठों पर एक अजीब सी कुटिल मुसकान थिरक उठी थी.

मांबाप को भी जब पक्का यकीन हो गया कि सोनी ने हिमांशु से बात तक करनी बंद कर दी है तो उन्होंने धीरेधीरे उस के ऊपर की पाबंदी हटा ली. पिता परमानंद अब उस के लिए लड़का ढूंढने लगे ताकि वह अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो सकें.

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परमानंद को इस बात की जरा भी भनक नहीं थी, उन की बेटी मांबाप की आंखों में धूल झोंक रही है. जबकि उस की योजना प्रेमी के साथ फुर्र हो जाने की है.

योजना मुताबिक, सोनी ने मां के सामने ननिहाल जाने की इच्छा प्रकट की तो मां उसे मना नहीं कर सकी. सोचा कि बेटी ननिहाल घूम आएगी तो मन भी बदल जाएगा. यही सोच कर सितंबर, 2016 में उसे बेटे के साथ ननिहाल भेजवा दिया.

ननिहाल पहुंचते ही सोनी आजाद पंछी की तरह हो गई. उस ने हिमांशु को फोन कर दिया कि वह ननिहाल में आ गई है. यहां उस पर किसी तरह की कोई पाबंदी या बंदिश नहीं है. इसलिए वह यहां आ कर उस से मिल सकता है. यह खबर मिलते ही हिमांशु उस की ननिहाल पहुंच गया.

महीनों बाद दोनों एकदूसरे से मिले थे. उन्होंने पहले जी भर कर एकदूसरे को प्यार किया. उसी वक्त सोनी ने हिमांशु से कह दिया कि वह उस के बिना जी नहीं सकती. वो उसे यहां से कहीं दूर ऐसी जगह ले चले, जहां उन के अलावा कोई तीसरा न हो. हिमांशु भी यही चाहता था कि सोनी को ले कर वह इतनी दूर चला जाए, जहां अपनों का साया तक न पहुंच सके.

सोनी घर से भागने के लिए हिमांशु पर दबाव बनाने लगी. प्यार के सामने विवश हिमांशु यार दोस्तों से कुछ रुपयों का बंदोबस्त कर के उसे ले कर दिल्ली भाग गया. परमानंद को जब पता चला तो वह आगबबूला हो उठा. उस ने हिमांशु और उस के घर वालों के खिलाफ कजरैली थाने में बेटी के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया.

अपहरण का मुकदमा दर्ज होते ही कजरैली  थाने की पुलिस सक्रिय हुई. पुलिस ने हिमांशु के घर पर दबिश दी. हिमांशु घर से गायब मिला तो पुलिस हिमांशु की मां जेलस देवी को थाने ले आई. उस से सख्ती से पूछताछ की लेकिन वह कुछ नहीं बता पाई. तब पुलिस ने जेलस देवी को घर भेज दिया.

कई महीने बाद भी जब सोनी का पता नहीं चला तो पुलिस हिमांशु और सोनी को हाजिर कराने के लिए जेलस देवी पर बारबार दबाव बनाती रही. कहीं से यह बात हिमांशु को पता चल गई कि पुलिस उस की मां को बारबार परेशान कर रही है. तब 8 महीने बाद हिमांशु सोनी को ले कर घर लौट आया.

सोनी ने अदालत में हाजिर हो कर न्यायाधीश के सामने यह बयान दिया कि वह बालिग हो चुकी है. अपनी मनमरजी से कहीं आजा सकती है. उसे अच्छेबुरे का ज्ञान है. अब रही बात मेरे अपहरण करने की तो मैं अपने मरजी से ननिहाल गई थी. वहीं रह रही थी, हिमांशु ने मेरा अपहरण नहीं किया था. बल्कि मैं अपनी मरजी से कहीं गई थी. हिमांशु निर्दोष है.

भरी अदालत में सोनी के बयान सुन कर परमानंद और उन के साथ आए लोग दंग रह गए, क्योंकि उस ने हिमांशु के पक्ष में बयान दिया था. सोनी के बयान के आधार पर अदालत ने उसे मुक्त दिया.

यह सब सोनी की वजह से ही हुआ था. इसलिए परमानंद भीतर ही भीतर जलभुन कर रह गया. उस समय तो उस ने समझदारी से काम लिया. वह सोनी को ले कर घर आ गया और हिमांशु अपने घर चला गया. घर ला कर परमानंद ने सोनी को बंद कमरे में खूब मारापीटा. फिर उसे उसी कमरे में बंद कर के बाहर से ताला लगा दिया.

इस के बाद परमानंद ने ठान लिया कि हिमांशु की वजह से ही पूरे समाज में उस के परिवार की नाक कटी है, इसलिए वह उसे ऐसा सबक सिखाएगा कि सब देखते रह जाएंगे. वह धीरेधीरे गांव के लोगों को भी हिमांशु के खिलाफ भड़काने लगा कि उस की वजह से ही पूरे गांव की बदनामी हुई है.

योजना को अंजाम देने के लिए परमानंद ने एक योजना बनाई. योजना के अनुसार, वह और उस का परिवार एकदम शांति से रहने लगा ताकि हिमांशु को रास्ते से हटाने के बाद सभी को यही लगे कि इस में उस का कोई हाथ नहीं है. परमानंद अभी यह तानाबाना बुन ही रहा था कि एक नई घटना घट गई.

20 अप्रैन, 2017 को सोनी फिर हिमांशु के साथ भाग गई. इस बार हिमांशु के साथ हिमांशु का परिवार भी खड़ा था. दोनों का प्यार देख कर घर वालों ने दोनों की सहमति से मंदिर में शादी करा दी थी. शादी के 15 दिनों बाद हिमांशु और सोनी फिर गांव लौट आए. इस बार सोनी अपने घर के बजाय हिमांशु के घर गई.

हिमांशु और सोनी के लौटने की खबर पूरे गांव में जंगल की आग की तरह फैल गई. गांव वाले दोनों की हिम्मत देख कर हतप्रभ थे कि हिम्मत तो देखिए रिश्तों को कलंकित करते कलेजे को ठंडक नहीं पहुंची जो गांव को बदनाम करने फिर से यहां आ गए. खैर, जैसे ही ये खबर परमानंद को मिली तो उस का खून खौल उठा. वह आपे से बाहर हो गया.

अगले दिन यानी 5 जून, 2017 को सुबह के करीब 10 बजे गांव में पंचायत बुलाई गई. पंचायत परमानंद के दरवाजे के सामने रखी गई. उस में सैकड़ों की तादाद में गांव वालों के अलावा 21 पंच जुटे. सभी पंच परमानंद के पक्ष में खड़े उस की हां में हां मिला रहे थे. पंचायत में हिमांशु के परिवार का कोई भी सदस्य शामिल नहीं था.

पंचायत की अगुवाई गांव का गणेश यादव कर रहा था. एक दिन पहले ही गणेश यादव जेल से जमानत पर रिहा हुआ था. पंचायत में प्रताप यादव सिपाही भी था. वह बक्सर में तैनात था और कुछ दिनों की छुट्टी पर घर आया था. इसी की मध्यस्थता में पंचायत शुरू हुई थी.

10 बजे शुरू हुई पंचायत शाम 5 बजे तक चली. अंत में पंचों ने एकमत हो कर हिमांशु के खिलाफ तुगलकी फरमान सुना दिया कि हिमांशु ने जो किया वह बहुत गलत किया. उस की करतूतों से गांव की भारी बदनामी हुई है. उसे उस की गलती की सजा तो मिलनी ही चाहिए ताकि आइंदा गांव का कोई दूसरा युवक ऐसी जुर्रत करने के बारे में सोच भी न सके.

सभी पंचों ने कहा कि हिमांशु की गलती की सजा मौत है. उसे जान से मार देना चाहिए. इस पर पंचायत के सभी लोग सहमत हो गए. सभी ने लाठी, डंडा, तलवार, पिस्टल, ईंट आदि ले कर उस के घर पर एकाएक हमला बोल दिया.

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हिमांशु यादव घर पर ही था. उस के घर का दरवाजा बंद था. दरवाजे को तोड़ कर लोग उसे घर के भीतर से खींच लाए और उस का शरीर गोलियों से छलनी कर के पूरी भड़ास निकाल दी. इस के बाद महिलाएं उस की गर्भवती पत्नी सोनी को भी कमरे से खींच कर कहीं ले गईं. उस दिन के बाद से आज तक उस का कहीं पता नहीं चला कि वह जिंदा भी है या उस के साथ कोई अनहोनी हो चुकी है.

बेटे और बहू को बचाने गई हिमांशु की मां जेलस देवी भी पंचों के कोप का शिकार बन गई. उसे भी मारमार कर अधमरा कर दिया गया. पंच बने आतताइयों का जब इस से भी जी नहीं भरा तो उन्होंने उस के घर को आग लगा दी और फरार हो गए.

दिल दहला देने वाली घटना की सूचना जैसे ही थाना कजरैली के थानाप्रभारी विजय कुमार को मिली तो उन के हाथपांव फूल गए. वह तत्काल मयफोर्स के घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. मौके पर पहुंचते ही सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी गई. सूचना मिलते ही एसएसपी मनोज कुमार, एसपी (सिटी)  और सीओ गौराचक्क गांव पहुंच गए. पीडि़त परिवार के लोगों से मिलने के बाद पुलिस ने आतताइयों के घर दबिश दी लेकिन वे सभी अपनेअपने घरों से फरार मिले.

पुलिस ने हिमांशु की घायल मां जेलस देवी को इलाज के लिए मायागंज अस्पताल पहुंचवा दिया. हिमांशु की लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. मौके से कई खाली खोखे बरामद हुए. गांव का तनावपूर्ण माहौल देखते हुए एसएसपी ने वहां पीएसी की 2 टुकडि़यां तैनात कर दीं ताकि शांति व्यवस्था बनी रहे.

पुलिस ने अस्पताल में जेलस देवी के बयान लिए तो उस ने पूरी घटना सिलसिलेवार बता दी. उस के बयान के आधार पर कजरैली थाने में हत्या, हत्या का प्रयास और बलवा करने की विभिन्न धाराओं में 21 आरोपियों के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज हुआ.

मामले में बहू सोनी के पिता और मुख्य आरोपी परमानंद यादव सहित सुनील यादव, भितो यादव, सुमन यादव, सीताराम यादव, विवेक यादव, प्रकाश यादव उर्फ विक्की, पूसो यादव, राजा यादव, पंकज यादव, प्रकाश यादव, अधिक यादव, प्रताप यादव (सिपाही), विजय यादव, अजब लाल यादव, गणेश यादव, वरुण यादव, सुमन यादव, अरुण यादव, कुशी यादव और गोपाल यादव को नामजद आरोपी बनाया गया.

हिमांशु यादव की पत्नी सोनी यादव के अपहरण का अलग से मुकदमा दर्ज किया गया. इस मुकदमे में आरोपी आशा देवी, राधा देवी, रुक्मिणी देवी, मनीषा देवी, अंजू देवी, अन्नू देवी, नागो यादव और अब्बो देवी को नामजद दिया गया. यह सब भी अपनेअपने घर से फरार मिलीं. पर 2 हमलावर प्रकाश यादव और राजा यादव पुलिस के हत्थे चढ़ गए. पुलिस ने उन से पूछताछ कर उन्हें जेल भेज दिया. घटना के बाद गांव के लोग 2 खेमों में बंट गए.

धीरेधीरे 10-12 दिन बीत गए. हिमांशु हत्याकांड और सोनी अपहरण के आरोपियों का पुलिस पता तक नहीं लगा सकी. समाचार पत्र इस लोमहर्षक घटना की खबरें छापछाप कर पुलिस की नाक में दम कर रहे थे. दबाव बनाने के लिए पुलिस ने 20 जून, 2017 को न्यायालय से आरोपियों की संपत्ति के कुर्कीजब्ती के आदेश ले लिए.

आरोपियों को जब पता चला कि पुलिस ने न्यायालय से उन की संपत्ति के कुर्कीजब्ती के आदेश ले लिए हैं तो सीताराम यादव, सुनील यादव, विवेक यादव, अरुण यादव, कुशो यादव और सुमन यादव ने 14 जुलाई, 2017 को अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी रंजन कुमार मिश्रा की कोर्ट में सरेंडर कर दिया. कोर्ट से सभी आरोपियों को जेल भेज दिया.

इस के पहले भी 2 आरोपियों ने कोर्ट में सरेंडर किया था और 3 को पुलिस पहले गिरफ्तार कर चुकी थी. बाकी अभियुक्तों को भी पुलिस तलाशती रही. 30 जुलाई, 2017 को मुख्य आरोपी परमानंद यादव को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर बांका जिले से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उस से सोनी के बारे में पूछताछ की तो उस ने अनभिज्ञता जताई.

इस केस में अजब लाल यादव भी आरोपी था. जबकि उस के घर वालों का कहना है कि उस का इस मामले से कोई लेनादेना नहीं है. उस की बेटी अनुष्ठा ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयेग को पत्र लिख कर कहा कि उस के पिता को गलत फंसाया गया है. मानवाधिकार आयोग ने 8 जनवरी, 2018 को एसएसपी मनोज कुमार से हिमांशु हत्याकांड की ताजा रिपोर्ट देने को कहा.

आयोग के सवालों के जवाब देने के लिए एसएसपी ने डीएसपी (सिटी) को अधिकृत कर दिया. कथा लिखे जाने तक जवाब तैयार नहीं हुआ था. अपहृत सोनी का कुछ पता नहीं चल सका था. हिमांशु के घर वालों ने अपहरण कर के सोनी की हत्या की आशंका जताई है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पैसे के लिए वन्यजीवों की तस्करी

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव नजदीक होने की वजह से पुलिस प्रशासन काफी सख्त था. नतीजा यह हुआ कि अन्य राज्यों की सीमाओं से गुजरने वाले वाहनों पर खास नजर रखी जाने लगी. मीरजापुर के एसपी कलानिधि नैथानी ने भी अपने यहां सभी थानाप्रभारियों को सख्त निर्देश दे रखा था कि बाहर से आने वाले वाहनों पर सख्त नजर रखी जाए. 8 जनवरी, 2017 को यातायात प्रभारी देवेंद्र प्रताप सिंह मंगला सिंह, दिनेश यादव, गोविंद चौबे तथा भरूहना चौकीप्रभारी पंकज कुमार राय के साथ भरूहना चौराहे पर आनेजाने वाले वाहनों की जांच कर रहे थे. जांच के दौरान चुनार-वाराणसी की ओर से आने वाली एक इनोवा कार को रोका गया.

इस की वजह यह थी कि उस की नंबर प्लेट पर इस तरह मिट्टी लगाई गई थी ताकि उस का नंबर जल्दी से दिखाई न दे. सिपाहियों ने कार रुकवाई तो उस में ड्राइवर सहित 3 लोग सवार थे. सिपाहियों ने कार में पीछे झांका तो उस में 4-5 बड़ेबड़े कार्टून रखे दिखाई दिए.

सिपाहियों ने नंबर प्लेट की मिट्टी पैर से हटाई तो पता चला कि कार आंध्र प्रदेश की थी. उस में बैठे लोग संदिग्ध लगे तो पुलिस ने कार में बैठे लोगों से कार की डिक्की खोलने को कहा. जब उन लोगों ने डिक्की खोलने में आनाकानी की तो पुलिस का शक बढ़ गया. पुलिस को मामला कुछ गड़बड़ लगा.

मीरजापुर जनपद नक्सल प्रभावित सोनभद्र और चंदौली जिलों से सटा होने के साथसाथ मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड से ले कर छत्तीसगढ़ के नजदीक है, इसलिए मादक पदार्थों, विस्फोटक पदार्थों से ले कर वन्यजीवों की खाल, अवैध शस्त्र आदि के तस्कर इधर से गुजरते हैं.

इन्हीं बातों को ध्यान में रख कर पुलिस ने थोड़ी सख्ती से डिक्की खोलने को कहा तो ड्राइवर बोला, ‘‘साहब, उस में कुछ खास नहीं है. थोड़ा घरेलू सामान है, जिसे हम घर ले जा रहे हैं.’’

‘‘घरेलू सामान है तो दिखाने में क्या हर्ज है. चलो, तुम डिक्की नहीं खोलना चाहते तो हमीं खोल कर देख लेते हैं.’’ कार के पास खड़े एक सिपाही ने कहा ही नहीं, बल्कि आगे बढ़ कर उस ने डिक्की खोल भी दी. इसी के साथ उस ने कार के पिछले हिस्से में रखे कार्टूनों में से जैसे ही एक कार्टून पर पड़ा बोरा उठाया, अंदर से शेर के गुर्राने जैसी आवाज आई. सिपाही डर कर पीछे हट गया.

जानवर के गुर्राने की आवाज वाहनों की जांच में लगे अन्य पुलिसकर्मियों और अधिकारियों ने ही नहीं, वहां खड़े तमाशा देख रहे अन्य लोगों ने भी सुन ली थी. इसलिए पुलिस अधिकारी जहां कार के करीब पहुंच गए, वहीं तमाशबीन भी नजदीक आ गए थे.

पुलिस अधिकारियों ने जब सभी कार्टूनों पर पड़ा बोरा हटाया तो अंदर जो दिखाई दिया, उसे देख कर सब के सब हैरान रह गए. सभी कार्टूनों में पिंजरे रखे थे, जिन में दुर्लभ प्रजाति के जानवर बंद थे. पुलिस उन्हें गौर से देख रही थी कि तभी मौका पा कर गाड़ी में सवार 3 लोगों में से 2 लोग कार की चाबी ले कर भाग निकले. संयोग से एक आदमी पुलिस के हाथ लग गया.

दुर्लभ वन्यजीवों के साथ एक आदमी के पकड़े जाने की सूचना देवेंद्र प्रताप सिंह ने एसपी कलानिधि नैथानी को देने के साथ पुलिस लाइन से क्रेन मंगवा भी ली. क्रेन की मदद से इनोवा कार संख्या एपी28डी सी-3173 को पुलिस लाइन ले जाया गया.

सूचना पा कर डीएफओ के.के. पांडेय, सीओ (नगर) बृजेश कुमार तथा क्राइम ब्रांच प्रभारी विजय प्रताप सिंह भी पुलिस लाइन पहुंच गए. देखतेदेखते शेर जैसे दिखने वाले दुर्लभ जीव के बरामद होने की सूचना पूरे शहर में फैल गई.

इस के बाद पुलिस लाइन के आसपास की सड़कों पर भीड़ लगने लगी. सूचना पा कर एसपी कलानिधि नैथानी, एएसपी आशुतोष शुक्ल, सीओ बी.के. त्रिपाठी भी पुलिस लाइन पहुंच गए थे. अधिकारियों की उपस्थिति में कार से पिंजरे बाहर निकाले गए. कार की तलाशी में 32 बोर का एक रिवौल्वर और कुछ कारतूस भी बरामद हुए.

इस सब से साफ हो गया कि यह दुर्लभ प्रजाति के जानवरों की तस्करी का मामला है. पुलिस ने इन जानवरों के साथ जिस आदमी को पकड़ा था, उस का नाम अब्दुल आरिफ था. वह हैदराबाद का रहने वाला था. पूछताछ में पता चला कि उस के फरार हुए साथियों के नाम फहीम और इमरान थे.

अगले दिन एसपी कलानिधि नैथानी और वन अधिकारियों की उपस्थिति में पकड़े गए वन्यजीव तस्कर अब्दुल आरिफ से विस्तार से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में उस ने वन्यजीवों की तस्करी से जुड़ी चौंकाने वाली जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी—

आंध्र प्रदेश के जिला हैदराबाद के थाना कालापत्थर का एक गांव है ताड़वन. इसी गांव में मोहम्मद अब्दुल वाशिद अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे और 2 बेटियां थीं. अब्दुल वाशिद ने समय से सभी बच्चों की शादी कर के अपनी जिम्मेदारी से मुक्ति पा ली थी.

शादियां हुईं तो परिवार बढ़ा, परिवार बढ़ा तो खर्चे भी बढ़े. ऐसे में अब्दुल वाशिद के 2 बेटे हैदराबाद जा कर रोजीरोजगार से लग गए. लेकिन सब से छोटे बेटे अब्दुल आरिफ को छोटेमोटे कामों से जैसे नफरत थी. वह हमेशा बड़ा आदमी बनने और करोड़ों में खेलने के सपने देखता था. यही वजह थी कि लोग उसे शेखचिल्ली कहने लगे थे.

इसी सब के चलते उस की मुलाकात फिरोज से हुई. दोनों की सोच एक जैसी थी, इसलिए जल्दी ही उन में दोस्ती हो गई. काम की बात चली तो फिरोज ने कहा, ‘‘मेरा कहा मानो तो मैं तुम्हें एक काम बताऊं. उस में थोड़ा रिस्क तो है, लेकिन पैसा बहुत है. अगर चालाकी से काम किया जाएगा तो रिस्क भी खत्म हो जाएगा.’’

‘‘पहले काम तो बताओ. बिना रिस्क के वैसे भी पैसा कहां मिलता है. अगर मोटी कमाई करनी है तो रिस्क तो उठाना ही पड़ेगा.’’ आरिफ ने कहा.

‘‘काम कोई खास मेहनत का नहीं है, उस में सिर्फ सावधानी की जरूरत है. काम करने लगोगे तो पैसों की बरसात होने लगेगी.’’ फिरोज ने कहा.

‘‘यार पहेलियां मत बुझाओ, काम बताओ. मैं पैसों के लिए कुछ भी कर सकता हूं.’’ आरिफ ने उत्तेजित हो कर कहा.

‘‘काम कोई मुश्किल नहीं है, सिर्फ जंगली जानवरों को कार से ले आना है.’’

‘‘तुम कह रहे हो कि काम कोई मुश्किल वाला नहीं है. मैं जंगली जानवरों को कैसे पकड़ कर लाऊंगा?’’ आरिफ ने हैरानी से कहा.

‘‘जंगली जानवरों को तुम्हें पकड़ना नहीं है. पकड़ेगा कोई और, तुम्हें सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह कार से पहुंचाना है. इस के लिए तुम्हें आनेजाने के खर्च के साथसाथ जानवर जरूरत की जगह पहुंचाने के लिए मोटी रकम मिलेगी.’’ फिरोज ने कहा.

फिरोज द्वारा बताया गया यह काम अब्दुल आरिफ को पसंद आ गया तो वह काम करने को तैयार हो गया. इस के बाद फिरोज ने उस की मुलाकात मोहम्मद अब्दुल रहमान से करा दी. वह कालापत्थर के अलीबाग के रहने वाले अब्दुल अजीज का बेटा था. बातचीत के बाद आरिफ काम पर लग गया.

रहमान ने ही आरिफ को फहीम और इमरान के साथ पटना के रहने वाले डब्लू के यहां भेजा. आरिफ और उस के साथी उस इनोवा कार पर वाराणसी से सवार हुए थे. उस कार में जानवर हैं, इस की गंध किसी को न मिले, इस के लिए उस में तेज सुगंध वाला परफ्यूम छिड़क दिया गया था.

इन वन्यजीवों को बिहार से हैदराबाद तक पहुंचाने के लिए आरिफ को 50 हजार रुपए के अलावा रास्ते का पूरा खर्च दिया जाता. इस के अलावा प्रति जानवर 6 हजार रुपए इनाम भी मिलता. लेकिन आरिफ पुलिस को यह नहीं बता सका कि इन जानवरों का क्या किया जाएगा.

पूछताछ के बाद वन्यजीवों को वनविभाग को सौंप दिया गया. आरिफ के बयान के आधार पर देहात कोतवाली में उस के अलावा रहमान, इमरान, डब्लू और फहीम के खिलाफ भादंवि की धारा 9/51, 40, 39डी, 43, 48ए वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत मुकदमा दर्ज कर के आरिफ को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

अब्दुल आरिफ तो पकड़ा गया था, लेकिन उस के साथी फरार हो गए थे. एसपी कलानिधि नैथानी उन्हें भी पकड़ना चाहते थे. उन्हें उन के मोबाइल नंबर आरिफ से मिल गए थे. इसलिए उन्हें पकड़ने के लिए स्वाट, सर्विलांस तथा देहात कोतवाली पुलिस की संयुक्त टीम बना कर उन के पीछे लगा दी गई थी.

इस का नतीजा यह निकला कि 18 जनवरी को भरूहना चौकीप्रभारी पंकज कुमार राय ने आरिफ के साथी फहीम को मीरजापुर रेलवे स्टेशन से पकड़ लिया. पूछताछ के बाद उसे भी जेल भेज दिया गया.

फहीम और आरिफ से पूछताछ में जो जानकारी मिली, उस के अनुसार ये जो जानवर ले जा रहे थे, उन्हें बंगाल के जंगलों से पकड़ा गया था. हैदराबाद इस तरह के जानवरों का बड़ा बाजार है. बिहार और बंगाल के जंगलों से पकड़े गए वन्यजीवों का उपयोग शक्तिवर्धक दवा बनाने में किया जाता है.

इन्हें पकड़ने के लिए पूरा एक रैकेट काम करता है. कुछ वनकर्मियों से भी इन की मिलीभगत होती है. इस रैकेट के बारे में किसी को भी पूरी जानकारी नहीं होती. हर व्यक्ति का काम बंटा होता है और हर आदमी को सिर्फ अपने काम के बारे में जानकारी होती है.

गिरफ्तार आरिफ और फहीम से 6 दुर्लभ प्रजाति के वन्यजीव बरामद हुए थे. इन में 5 कैरेकल कैट (जंगली बिल्ली) तथा 1 लैपर्ड कैट का बच्चा था. इन्हें न्यायालय के आदेश पर लखनऊ स्थित नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान भेज दिया गया था.

इन जंगली जानवरों को हैदराबाद से पानी के जहाज से अन्य देशों में भेजा जाना था. वन्यजीव तस्करों का नेटवर्क भारत ही नहीं, नेपाल तक फैला है. तस्कर अपने एजेंटों के माध्यम से दुर्लभ और खूंखार जानवरों को खरीद कर लाखों कमाते हैं.

खूंखार जंगली जावरों को 10 लाख से एक करोड़ रुपए तक में बेचा जाता है. अब तक ये शेर, कैरेकल (एक प्रकार की जंगली बिल्ली), चीता, तेंदुआ सहित कई अन्य जानवरों की तस्करी कर चुके हैं.

तस्करों के पास से बरामद जंगली बिल्लियां दुर्लभ प्रजाति की थीं. उन की संख्या देश भर में 200 से भी कम है. पता चला है कि कुछ निजी चिडि़याघर चलाने वाले भी ऐसे जानवरों को खरीद कर अपने यहां रखते हैं. इस के लिए वे तस्करों को लाखों रुपए देते हैं.

– कथा पुलिस व मीडिया सूत्रों पर आधारित

प्यार में हुई तकरार, प्राइवेट पार्ट पर वार

29 साला सूर्य भूषण कुमार क्या अब जिंदगी में कभी सैक्स कर पाएगा? इस सवाल का जवाब तो अब उस का इलाज कर रहे डाक्टर कुछ दिन बाद ही दे पाएंगे, क्योंकि उस का प्राइवेट पार्ट तकरीबन 60 फीसदी कट चुका है.

यह सुन कर किसी को भी हैरत के साथ उस से हमदर्दी होना कुदरती बात है, क्योंकि मर्दानगी की निशानी प्राइवेट पार्ट किसी और ने नहीं, बल्कि उम्र में उस से 4 साल छोटी माशूका प्रिया (बदला नाम) ने पूरी बेरहमी से चाकू से काटा था.

आखिर प्रिया ने ऐसा खतरनाक कदम क्यों उठाया और इस से उसे हासिल क्या हुआ? यह समझने के लिए 3 साल पीछे चलना पड़ेगा, जब इन दोनों की लव स्टोरी शुरू हुई थी.

पटना में रह कर पढ़ाई कर रही प्रिया दरभंगा की रहने वाली है. सूर्य कुमार सीतामढ़ी का बाशिंदा है, जिस की तैनाती छत्तीसगढ़ के सुकमा में है. इस नक्सल प्रभावित इलाके में सूर्य कुमार सीआरपीएफ का जवान है. ये दोनों आपस में रिश्तेदार भी हैं. लिहाजा, कभीकभार मेलमुलाकातें होती रहती थीं, लेकिन प्यार कब हो गया, यह दोनों को पूरी तरह उस वक्त पता चला, जब सूर्य कुमार नौकरी पर सुकमा चला गया.

अब यह कहने भर की बात रह गई है कि प्यार में नजदीकियां और रोजरोज या कभी भी मिलना जरूरी है. सूर्य कुमार के सुकमा जाने से इन दोनों के प्यार पर कोई असर नहीं पड़ा, उलटे वह दिनोंदिन बढ़ता ही गया, क्योंकि रोज बात करने के अलावा वीडियो काल भी होते रहे और चैटिंग करने के लिए ह्वाट्सएप है ही, जिस में दोनों घंटों मशगूल रहते थे.

यही इन दोनों के बीच हो रहा था. वादोंइरादों में ही सही जिंदगी मजे में कट रही थी कि एक दिन प्रिया को पता चला कि सूर्य कुमार की शादी उस के घर वालों ने शिवहर की एक लड़की से तय कर दी है और शादी इसी 23 जून को होना तय हुई है, तो वह चोट खाई नागिन की तरह बिफर उठी.

प्रिया किसी भी सूरत में अपने आशिक को किसी दूसरी लड़की का होते नहीं देखना चाहती थी, क्योंकि दोनों शादी का वादा बहुत पहले ही कर चुके थे.

सुहागरात पर काटा प्राइवेट पार्ट

सूर्य कुमार ने लाख सफाई और दुहाई अपने प्यार और वफा की दी, लेकिन प्रिया टस से मस नहीं हुई. उसे अपने प्रेमी की इस बात या दलील से भी कोई मतलब नहीं था कि शिवहर वाली लड़की से शादी उस की मरजी के खिलाफ घर वालों ने तय कर दी है और अब मना किया तो रिश्तेदारी और समाज में काफी बदनामी होगी.

शादी के पहले ही अपना सबकुछ सूर्य कुमार को सौंप चुकी प्रिया खुद को ठगा सा महसूस कर रही थी. उसे अपने आशिक की बुजदिली पर भी गुस्सा आ रहा था. उस ने फोन पर बहुत साफ लहजे में सूर्य कुमार को धौंस सी दी कि तुम पहले पटना आओ, नहीं तो मैं अपनी जान दे दूंगी.

प्रिया जब जिद पर अड़ गई, तो सूर्य कुमार भी पटना आने के लिए राजी हो गया. उस ने सोचा था कि किसी तरह प्रिया को मना लेगा या इस समस्या का कोई दूसरा हल निकाल लेगा.

तयशुदा प्रोग्राम के मुताबिक सूर्य कुमार बीती 3 जून को सुकमा से पटना पहुंचा और गांधी मैदान के पास एक होटल में ठहर गया. वे दोनों होटल में मिले तो फिर वही कलह शुरू हो गई, जिस का आज तक कोई हल नहीं निकला था.

प्रिया ने फिर जिद पकड़ ली कि वादे के मुताबिक मुझ से शादी करो, नहीं तो मैं खुदकुशी कर लूंगी. आगे तुम जानो और तुम्हारा काम जाने.

सूर्य कुमार प्रिया के खतरनाक तेवर देख पहले से ही हलकान था, लिहाजा उसे भलाई इसी बात में लगी कि चुपचाप प्रिया से शादी कर ली जाए, आगे जो होगा देखा जाएगा. दोनों ने 5 जून को पटना सिटी कोर्ट में शादी कर ली और होटल वापस आ गए.

लेकिन शादी के बाद भी वे दोनों टैंशन में थे. सूर्य कुमार यह सोचसोच कर परेशान था कि अब 23 जून को क्या होगा, जब घर वालों और होने वाली ससुराल में प्रिया से उस की शादी की बात आम हो जाएगी? कहीं दोनों पक्षों में घमासान न हो जाए, क्योंकि बात तो दोनों की ही खराब हो रही थी. शादी की तैयारियां भी दोनों घरों में जोरशोर से चल रही थीं और सारी खरीदारी हो चुकी थी.

प्रिया ने अपनी जिद पूरी कर ली थी. अब वह सूर्य कुमार की माशूका नहीं, बल्कि ब्याहता हो गई थी. इस के बाद भी उस के दिल में 23 जून को ले कर खटका था कि कहीं ऐसा न हो कि सूर्य कुमार उस लड़की से भी शादी कर ले. हालांकि, वह यह भी समझ रही थी कि ऐसा होना अब नामुमकिन है. फिर भी वह अपने नएनवेले पति से सौ फीसदी प्यार और वफा की गारंटी चाहती थी.

अब दोनों के पास अपनी टैंशन दूर करने का एक ही तरीका बचा था कि हालफिलहाल तो सबकुछ भूलभाल कर सुहागरात मनाई जाए. रात गहरातेगहराते सूर्य कुमार ने तो पूरे मूड में आते हुए अपने कपड़े भी उतार दिए थे. अब वह केवल बनियान और अंडरवियर में था.

सूर्य कुमार शुरुआत कर पाता, इस के पहले ही प्रिया ने 3 दिनों के अंदर तीसरी जिद यह पकड़ ली कि पहले शिवहर वालों को फोन पर कहो कि तुम ने मुझ से शादी कर ली है.

इस पर झल्लाया सूर्य कुमार नहीं माना तो प्रिया ने तीसरी बार ही उसे खुदकुशी कर लेने की धमकी दे डाली. इस बार उस ने धमकी यह भी दी कि खुद की जान दे दूंगी या फिर तुम्हारी ले लूंगी.

यह धमकी सुनसुन कर आजिज आ चुके सूर्य कुमार ने जब साफतौर पर मना कर दिया और हमबिस्तरी करने की गरज से प्रिया को अपने पास खींचा तो प्रिया ने बिजली की फुरती से अपने साथ लाए बैग में से चाकू निकाला और उस से सूर्य कुमार के प्राइवेट पार्ट को एक झटके में काट डाला.

हड़बड़ाया सूर्य कुमार दर्द से कराहता उसी हालत में कमरे के बाहर निकला और मदद के लिए चिल्लाया तो होटल के मुलाजिम दौड़े आए, लेकिन उस

की तरफ देख कर सकते में आ गए, क्योंकि उस की जांघों के बीच से खून बह रहा था.

ऐसा नजारा जाहिर है उन्होंने जिंदगी में पहली बार देखा था. जैसेतैसे संभलते वे सूर्य कुमार को पीएमसीएच ले गए. खबर मिलने पर पुलिस अस्पताल

पहुंची तो सूर्य कुमार के बयान से सारी कहानी उजागर हुई. प्रिया को पुलिस ने आईपीसी की धारा 326 के तहत गिरफ्तार कर लिया.

सुबह जब बात आम हुई, तो सुनने वाले हैरान रह गए कि सुहागरात पर यह क्या तोहफा पत्नी ने पति को दिया कि उस का प्राइवेट पार्ट ही काट डाला?

प्रिया का गुस्सा और जिद अपनी जगह जायज थे, लेकिन तभी तक जब तक सूर्य कुमार ने उस से शादी नहीं की थी. इस के बाद प्रिया ने गलती नहीं, बल्कि गुनाह ही कर डाला जिस की सजा अदालत से उसे मिलेगी, लेकिन उस ने अपने साथसाथ सूर्य कुमार की भी जिंदगी खराब कर दी है.

ऐसी कुछ अहम घटनाओं पर नजर डालें तो समझ आता है कि माशूका की मंशा आशिक को न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी वाली कहावत की तर्ज पर कहीं न कहीं सबक सिखाने की रहती है. कटे प्राइवेट पार्ट वाला जिंदगीभर कसकता रहेगा और अपने प्यार को कोसते हुए खून के आंसू बहाने पर मजबूर रहेगा. अब ऐसे हिंसक प्यार को किस बिना पर प्यार कहा जाए, यह तय कर पाना और भी मुश्किल काम है.

हादसे ओडिशा के पटना सरीखे ही 2 सनसनीखेज और चर्चित मामले साल 2019 में आदिवासी बाहुल्य राज्य ओडिशा से सामने आए थे. राजधानी भुवनेश्वर से तकरीबन 525 किलोमीटर दूर नवरंगपुर जिले में एक पत्नी को शक था कि उस के पति के किसी और औरत से नाजायज संबंध हैं.

पूछने पर पति सफाई देता था, लेकिन गलत नहीं कहा जाता कि शक का इलाज तो लुकमान हकीम के पास भी नहीं. जनवरी की एक सर्द रात में शक की आग में जलती पत्नी का जब सब्र का बांध टूट गया, तो उस ने गहरी नींद में सोए पति का प्राइवेट पार्ट तेज धारदार हथियार से काट डाला.

पति जब दर्द से बिलबिला कर चिल्लाया, तो पड़ोसी भागेभागे आए और उसे अस्पताल ले गए. पुलिस ने आरोपी औरत को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. यह पति तमिलनाडु में मजदूरी करता था और 3 महीने पहले ही नवरंगपुर आया था.इस हादसे के चंद महीनों बाद ही ओडिशा के क्योंझर जिले में एक औरत ने अपने बौयफ्रैंड का प्राइवेट पार्ट काटा था.

इस मामले में भी बौयफ्रैंड गहरी नींद में सोया हुआ था और इत्तिफाक की बात यह है कि वह भी तमिलनाडु में ही काम करता था. औरत शादीशुदा थी, जिस के नाजायज संबंध इस नौजवान से थे, जो चेन्नई से जब भी क्योंझर आता था, अपनी उम्रदराज माशूका से सैक्स सुख लेने पहुंच जाता था.

हादसे की रात दोनों में किसी बात को ले कर खासी कहासुनी हुई थी, जिस से माशूका को इतना गुस्सा आया कि सोते हुए आशिक का प्राइवेट पार्ट काटने के बाद ही शांत हुआ. खुद सरासर पति से बेवफाई कर रही यह औरत अपने आशिक से वफा चाहने की उम्मीद लगाए बैठी थी.

पहले गला काटा, फिर प्राइवेट पार्ट

छत्तीसगढ़ के दुर्ग के अमलेश्वर की रहने वाली संगीता सोनवानी का दर्द यह था कि पति अनंत सोनवानी उसे प्यार नहीं करता था. वह उसे काली और बदसूरत कहते हुए ताने मारता था और कभीकभी घर से निकल जाने को कहता था.

आएदिन की ही तरह पिछले साल 22 सितंबर को भी उस ने संगीता की जम कर ठुकाई की और फिर सो गया. इस बार संगीता का सब्र टूट गया और उस ने गुस्से में दीवार पर टंगी कुल्हाड़ी उठाई और अनंत की हत्या कर दी. इस पर भी भड़ास पूरी नहीं निकली, तो उस ने पति का प्राइवेट पार्ट काट डाला.

पुलिस ने संगीता को गिरफ्तार किया, तो पता चला कि दोनों की ही यह दूसरी शादी है और अनंत को अपनी पहली पत्नी से 12 साल का एक बेटा भी है. संगीता का गुस्सा अनंत के गले से ज्यादा उस के प्राइवेट पार्ट पर ज्यादा उतरा, जिस के उस ने कई टुकड़े कर दिए थे.

इस ने तो चबा ही डाला पति या प्रेमी के प्राइवेट पार्ट पर गुस्सा उतारने का एक अजब किस्सा मध्य प्रदेश के मुरैना जिले की जौरा तहसील के गांव उम्मेदगढ़ से भी 24 मई, 2023 को सामने आया था. इस मामले में चाकू, कुल्हाड़ी या ब्लेड का इस्तेमाल नहीं किया गया था, बल्कि पति के प्राइवेट पार्ट को पत्नी ने दांतों से ही चबा डाला था.

पीडि़त ने जनसुनवाई में जिला एसपी को अपनी शिकायत में बताया कि उस की बीवी का चालचलन ठीक नहीं है. वह कभी भी अपने दोस्तों को फोन कर के घर बुला लेती है. इस पर टोका तो वह लड़ाईझगड़ा करने लगी और पुलिस में झूठी रिपोर्ट लिखाने की धमकी दी. इतना ही नहीं, उस ने 75 साला बूढ़े ससुर के खिलाफ भी छेड़छाड़ की रिपोर्ट लिखा रखी थी.

घटना के दिन जब उस आदमी ने पत्नी को डांटा, तो मारे गुस्से के वह आपे से बाहर हो गई और गुस्से में ही उस के प्राइवेट पार्ट को दांतों से चबा डाला. पीडि़त जब बेसुध सा हो गया, तो पत्नी ने लातों से भी प्राइवेट पार्ट पर ताबड़तोड़ प्रहार किए. इलाज के लिए उसे ग्वालियर ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उस के प्राइवेट पार्ट के 3 आपरेशन किए.

प्राइवेट पार्ट से बदला क्यों?

ऐसे दर्जनों नहीं, बल्कि सैकड़ों मामले हैं, जिन में औरत का गुस्सा मर्द के प्राइवेट पार्ट पर उतरा. इस से तो लगता है कि एक औरत की नजर में किसी मर्द के लिए यही सब से बड़ी सजा है कि उस का प्राइवेट पार्ट ही काट डाला जाए, जो मूंछों से पहले भी मर्दानगी की निशानी माना जाता है. तमाम मामलों में बीवियां या माशूकाएं गुस्से और नफरत की सारी हदें पार कर चुकी थीं.

इस के अलावा 90 फीसदी मामलों में पति या आशिक का प्राइवेट पार्ट उस वक्त काटा गया, जब वे नींद में थे. मर्दों का प्राइवेट पार्ट बाहर की तरफ निकला हुआ रहता है और नाजुक भी बहुत होता है, इसलिए उसे आसानी से काटा जा सकता है.

इस तरह के बढ़ते मामले पतियों और प्रेमियों के लिए सिगनल हैं कि प्यार और शादीशुदा जिंदगी में उन्हें संभल कर रहना चाहिए. अगर औरत सैक्स सुख दे सकती है, तो उसे हमेशा के लिए छीन भी सकती है.

औरत से बेवफाई, उस की बेइज्जती और अनदेखी उस के गुस्से के चलते इतनी महंगी भी पड़ सकती है कि आप जिंदगीभर सैक्स सुख के लिए तरसते रह सकते हैं.

मसला: जामताड़ा हो या नूह – साइबर क्रिमिनलों का गढ़

झारखंड अपने आदिवासी समाज के साथसाथ कीमती खनिजों और हरेभरे जंगलों के लिए मशहूर है. इस राज्य का एक जिला है जामताड़ा, जिस का मतलब है सांपों का इलाका. दरअसल, जामताड़ा, ‘जामा’ और ‘ताड़’ शब्द से बना है. संथाली भाषा में ‘जामा’ का मतलब होता है सांप और ‘ताड़’ का मलतब होता है घर. वैसे, जामताड़ा को बौक्साइट की खदानों के लिए भी जाना जाता है.

लेकिन कुछ साल पहले यही जामताड़ा एक ऐसे कांड के लिए बदनाम हुआ था, जिस का जहर सांपों के जहर से भी जानलेवा साबित हुआ था. इस में कुछ शातिर लोगों ने भोलेभाले लोगों की मासूमियत का फायदा उठा कर उन्हें चूना लगाया था.

कोई फोन पर ‘हैलो’ बोलता था और सामने वाले के बैंक खाते से रकम सफाचट हो जाती थी. वह फोन इसी जामताड़ा के किसी गांव में बैठे साइबर क्रिमिनल के यहां से आता था, तभी से इस जगह को ‘साइबर ठगी का गढ़’ माना जाता है. ऐसा भी कहा जाता है कि देश में हो रही साइबर ठगी के 80 फीसदी मामले जामताड़ा से जुड़े हुए हैं.

याद रहे कि कुछ साल पहले ‘सदी के महानायक’ अमिताभ बच्चन के बैंक खाते से 5 लाख रुपए गायब हो गए थे. वही अमिताभ बच्चन, जो टैलीविजन पर भारतीय रिजर्व बैंक की साइबर क्राइम से आगाह करती लाइन ‘जानकार बनिए, सतर्क रहिए’ को दोहराते रहते हैं. साइबर ठगों ने उन्हें भी नहीं बख्शा था.

इस गोरखधंधे की शुरुआत तकरीबन 13 साल पहले जामताड़ा के एक गांव सिंदरजोरी में रहने वाला सीताराम मंडल से हुई थी, जो रोजीरोटी की तलाश में मुंबई गया था. वहां उस ने मोबाइल रिचार्ज की दुकान में नौकरी की और अपने शातिर दिमाग से ठगी करना सीखा.

जब सीताराम मंडल अपने गांव लौटा, तो उस ने जाली सिमकार्ड लगा कर, नकली बैंक मैनेजर बन कर ग्राहकों को फोन लगाने की चाल चली. इस के तहत वह लोगों से कहता था कि आप का कार्ड ब्लौक हो गया है. जो लोग उस के झांसे में आ जाते थे, वह उन से एटीएम नंबर, ओटीपी और सीवीवी नंबर जैसी जानकारियां मांग लेता था. फोन कट होतेहोते ग्राहक की जेब भी खाली हो चुकी होती थी.

इस पैसे को सीताराम मोबाइल रिचार्ज रिटेलर की आईडी में ट्रांसफर करता था. उस पैसे का 30 फीसदी अपने पास रख कर रिटेलर उसे बाकी का

70 फीसदी कैश दे देता था. आज उसी सीताराम मंडल के शागिर्दों ने गांव में कई गैंग बना रखे हैं, जो यहीं से देशभर में साइबर ठगी को अंजाम दे रहे हैं.

सीताराम मंडल और उस के गिरोह पर आज क्यों बात हो रही है? क्यों जामताड़ा आज फिर सुर्खियों में है? इन दोनों सवालों का जवाब यह है कि हरियाणा का एक इलाका ‘मिनी जामताड़ा’ के नाम से बदनाम हो रहा है. वहां के बेरोजगार नौजवान सरकार से तो रोजगार पाने की उम्मीद खो चुके हैं, पर सीताराम मंडल की दिखाई राह पर चल कर वे भी जुर्म की दुनिया में घुसपैठ कर चुके हैं.

दरअसल, हरियाणा के नूह इलाके में मई, 2023 में हरियाणा पुलिस ने खुलासा किया था कि वहां से 35 राज्यों के 28,000 लोगों के साथ तकरीबन 100 करोड़ रुपए से ज्यादा की ठगी की गई थी.

पुलिस ने यह भी बताया था कि ये साइबर महाठग फर्जी सिमकार्ड, आधारकार्ड और पैनकार्ड के जरीए देशभर में लोगों के साथ धोखाधड़ी करते थे. इन लोगों ने दिल्ली से अंडमाननिकोबार से ले कर केरल तक के लोगों को साइबर ठगी के अपने जाल में फंसाया था.

हरियाणा के नूह जिले के पुलिस सुपरिंटैंडैंट वरुण सिंगला ने इस कांड का खुलासा करते हुए बताया था कि 27-28 अप्रैल, 2023 की रात 5,000 पुलिस वालों की 102 टीमों ने जिले के 14 गांवों में एकसाथ छापेमारी की थी. इस दौरान तकरीबन 125 हैकरों को हिरासत में लिया गया था. इन में से 66 आरोपियों की पहचान कर उन्हें गिरफ्तार किया गया था.

पुलिस सुपरिंटैंडैंट वरुण सिंगला ने यह भी बताया कि ये महाठग फेसबुक बाजार ओएलऐक्स और दूसरी साइटों पर मोटरसाइकिल, कार, मोबाइल फोन जैसे सामान पर आकर्षक औफर का लालच दे कर धोखाधड़ी को अंजाम देते थे. ये लोग पुराने सिक्के खरीदनेबेचने के बहाने, सैक्सटोर्शन के जरीए, केवाईसी और कार्ड ब्लौक के नाम पर भी ठगी करते थे.

मेवात में ठगी का पुराना चलन

हरियाणा के नूह और मेवात इलाके में ठगी करना नई बात नहीं है. पुलिस के मुताबिक, तकरीबन 20 साल पहले मेवात के नौजवान दूरदराज के लोगों को नकली सोने की ईंट को असली बता कर ठग लिया करते थे.

इस धंधे को आज भी ‘टटलू’ के नाम से जाना जाता है. इस में शिकार को यह यकीन दिलाया जाता है कि वे लोग (ठग) मकान बनाने के लिए बुनियाद खोद रहे थे, यह ईंट उस में मिली है. वे गरीब आदमी हैं, बाजार में इसे बेच नहीं सकते. सोने की नकली ईंट को सस्ते में मिलने के चलते लोग झांसे में आ जाते थे.

जब ऐसे कांड ज्यादा होने लगे, तो ‘टटलू’ गिरोह के खिलाफ हरियाणा और राजस्थान पुलिस ने नकली सोने की ईंट खरीदनेबेचने वालों से सावधान रहने के लिए चेतावनी वाले बोर्ड लगाए थे, जिस से लोग सावधान होने लगे.

इस से ‘टटलू’ का धंधा करने वाले लोगों ने ओएलऐक्स पर ठगी का धंधा शुरू कर दिया. ये ठग ओएलऐक्स पर किसी गाड़ी का फोटो डाल कर सस्ते में बेचने का झांसा देते और खुद को फौजी या कोई बड़ा अफसर बताते. पहले खाते में कुछ पैसे डलवाए जाते, जिस से सौदा पक्का हो जाए. उस के बाद पीडि़त को मेवात बुला कर उस के सारे पैसे, घड़ी, गहने, एटीएम वगैरह छीन कर उसे मारपीट कर भगा देते थे.

जब राजस्थान और मेवात की पुलिस ने ओएलऐक्स पर की गई ठगी करने वालों पर शिकंजा कसा तो, ये लोग अश्लील वीडियो बना कर लोगों को ठगने लगे. जब इस पर भी पुलिस ने शिकंजा कसा, तो ये लोग साइबर ठगी के काले धंधे में उतर आए.

क्या है वजह

झारखंड का जामताड़ा हो या हरियाणा का नूह इलाका, यहां पर गरीबी का ही ज्यादा असर रहा है. जब तक जामताड़ा में साइबर अपराध नहीं होते थे, तब तक वहां के लोग दो वक्त की रोटी के लिए तरसते दिखाई देते थे. कच्चे घरों के गांवों में लोगों के पास एक अदद साइकिल नहीं होती थी.

इसी तरह मेवात एक मुसलिम बहुल इलाका है, जो हरियाणा के पलवल, नूह जिला, राजस्थान के अलवर, भरतपुर और उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले तक फैला है. इस की तकरीबन 70 लाख की आबादी है. यहां पर पढ़ाईलिखाई की कमी है और रोजगार के मौके बेहद कम हैं. यही वजह है कि नौजवान ठगी जैसे अपराध की ओर आसानी से मुड़ जाते हैं.

साइबर क्रिमिनल इसी बात का फायदा उठाते हैं. नूह में जब पुलिस ने साइबर अपराधियों की कारगुजारियों का परदाफाश किया था, तब यह भी खुलासा किया था कि हरियाणा और राजस्थान बौर्डर के साथ लगते गांवों में साइबर क्राइम की ट्रेनिंग दी जाती है. वहां नौजवान केवल एक लैपटौप, एक मोबाइल फोन और फर्जी सिमकार्ड के जरीए साइबर क्राइम की ट्रेनिंग लेते हैं.

नूह में पकड़े गए नौजवानों को राजस्थान के भरतपुर जिले के जुड़वा गांवों जुरेहेरा और घामड़ी में ट्रेंड किया गया था. वे इस के लिए 15,000 रुपए की फीस भी देते थे.

नौजवानों का साइबर क्राइम की ओर यह झुकाव बड़ा ही खतरनाक है. ‘डबल इंजन’ की सरकार इस समस्या पर कोई ध्यान नहीं दे रही है. आपदा में अवसर का यह घिनौना रूप है, जो देश की तरक्की में बहुत बड़ी रुकावट है.

सलाखों में हलाला एक्सपर्ट

24 अगस्त, 2017 को पुलिस की गिरफ्त में आए नीले रंग का लिबास पहने और सिर पर गोल टोपी लगाए उस शख्स की बातें वरदी वालों को हैरान कर रही थीं.

उस का गुनाह इतना था कि वह सजायाफ्ता मुजरिम था और कई सालों से फरार था. उस ने न सिर्फ जादूटोना, तावीजगंडों के नाम पर अपने अंधविश्वासी मुरीदों को लूटा था, बल्कि वह औरतों की आबरू से भी खेलता था और इस काम के पैसे लेता था.

धर्म की आड़ में खुद को वह हलाला ऐक्सपर्ट मौलवी बताता था. अपने पाखंड के जाल व हलाला को उस ने मौजमस्ती व रोजीरोटी का जरीया बना लिया था.

हलाला को बनाया धंधा

दरअसल, पकड़ा गया मौलाना करीम खुद को धर्म का बहुत बड़ा जानकार और तंत्रमंत्र का माहिर बताता था. लोगों को भूतप्रेत व निजी परेशानियों को दूर करने के नाम पर वह तावीजगंडे बांटता था. उस के अंधभक्तों की खासी तादाद थी.

मौलाना करीम मुंबई, सूरत, अजमेर शरीफ, फर्रुखाबाद वगैरह जगहों पर जा कर रुकता था. चेलेचपाटे ही उस का प्रचारप्रसार किया करते थे. बदले में वह उन्हें छल से कमाई दौलत का कुछ हिस्सा देता था.

मौलाना करीम ने 20 साल से ले कर 50 साल तक की औरतों के हलाला किए. हलाला का काम वह कभी लोगों के घर जा कर, तो कभी होटलों में कर दिया करता था.

जिस औरत पर उस का ज्यादा दिल आ जाता, उसे वह कई दिनों तक अपने पास रखता था और मन भर जाने पर उसे उस के परिवार वालों के हवाले कर देता था.

इतना ही नहीं, करीम खुद को धर्मगुरु बताता था. हलाला करने के पहले वह सामने वाले की माली हालत के हिसाब से पैसे लिया करता था. उस ने एकदो नहीं, बल्कि 38 से ज्यादा औरतों का हलाला किया था. चेले खुश रहें, इसलिए वह उन्हें भी औरतों से मजे कराता था.

करीम के चेले बहलाते थे कि जो कोई मौलाना से हलाला कराएगा, उस शख्स को जन्नत नसीब होगी. साथ ही, रिश्ते में कभी कड़वाहट पैदा नहीं होगी.

करीम की सभी मुरादें बैठेबिठाए पूरी हो रही थीं. तंत्रमंत्र और हलाला उस के लिए धंधा था, जिस से होने वाली कमाई वह खुद भी रखता था और अपने चेलों में भी बांटता था.

पुराना अपराधी था पाखंडी

मौलाना करीम का असली नाम आफताब उर्फ नाटे था. न तो वह कोई पहुंचा हुआ धार्मिक गुरु था और न ही तंत्रमंत्र का जानकार, बल्कि वह सजायाफ्ता एक भगौड़ा अपराधी था.

पुलिस से बचने के लिए आफताब उर्फ नाटे ने धर्म का चोला पहना और धार्मिक जगहों को ठिकाना बना कर लोगों की आंखों में धूल झोंकने लगा.

दरअसल, आफताब उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जनपद के शाहगंज थाना इलाके का रहने वाला था. वह जवानी में दबंग व आपराधिक सोच का था.

साल 1981 में आफताब ने एक नौजवान मोहम्मद अजमत की गोली मार कर हत्या कर दी थी. हत्या के इस मामले में पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

एक साल बाद जनपद कोर्ट से उसे हत्या का कुसूरवार पाते हुए उम्रकैद की सजा सुना दी गई. उस के परिवार वालों ने सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की, तो साल 1985 में उसे कुछ समय के लिए जमानत मिल गई.

आफताब जेल की जिंदगी से ऊब चुका था. बाहर आते ही वह हमेशा के लिए फरार हो गया. उस ने अपना नाम बदल कर मौलाना करीम रखा और यह धंधा आबाद करने लगा.

यों आया शिकंजे में

आफताब भले ही धर्म की आड़ में मौज काट रहा था, लेकिन उस के परिवार वालों ने उस के कहने पर पहले तो उस से संबंध न होने की बात फैलाई, फिर कुछ साल बाद यह कहना शुरू कर दिया कि शायद आफताब किसी हादसे का शिकार हो कर मर चुका है. यह सब उस की सािजश का हिस्सा था.

दरअसल, आफताब परिवार की खैरखबर रखता था. वह लगातार मोबाइल फोन के जरीए उन के संपर्क में रहने लगा.

आफताब शातिर था. कुछ ही महीनों में वह सिमकार्ड बदल दिया करता था. वह इलाहाबाद समेत आसपास के जिलों में होने वाले धार्मिक जलसों में पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर घूमता था.

4 साल पहले हाईकोर्ट ने आफताब की फरारी को संज्ञान में ले कर पुलिस से उसे कोर्ट में पेश करने को कहा, तो पता चला कि वह फरार है.

जब पुलिस उसे खोजने में नाकाम रही, तो हाईकोर्ट ने किसी तरह उसे 3 महीने में पेश करने को कहा. उस के बाद इलाहाबाद परिक्षेत्र के आईजी एसवी सावंत ने उसे तलाशने के निर्देश दिए और उस पर 12 हजार रुपए का इनाम भी ऐलान कर दिया.

पुलिस अधीक्षक सिद्धार्थ मीना ने इंस्पैक्टर अनिरुद्ध सिंह समेत पुलिस की टीमों को उस की खोज में लगाया. पुलिस को सूचना मिली कि आफताब कौशांबी के एक प्रोग्राम में आने वाला है. पुलिस ने घेराबंदी की, लेकिन वह चकमा दे कर भाग गया.

पुलिस ने आफताब के परिवार वालों के फोन नंबर सर्विलांस पर ले लिए, जिस से पता चला कि वह एक मजार में शरण लिए हुए है. इस के बाद इंस्पैक्टर अनिरुद्ध सिंह ने खुद को झाड़फूंक करवाने वाला मरीज बता कर उसे गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस अधीक्षक सिद्धार्थ मीना ने बताया, ‘‘आफताब तंत्रमंत्र का ढोंग कर के लोगों से पैसा ऐंठता था. उस ने झांसा दे कर 38 से ज्यादा औरतों का हलाला करवाने की बात कबूल की है. उस की पहचान एक सिद्ध मौलाना के रूप में बन रही थी.’’

सामाजिक कार्यकर्ता ताहिरा हसन कहती हैं कि मुसलिम धर्म में प्रचलित हलाला को ले कर मौलानाओं पर तमाम आरोप लगते रहे हैं, लेकिन यह बड़ी हकीकत खुल कर उजागर हुई है कि हलाला के नाम पर धर्म की आड़ में पाखंडी क्याकुछ नहीं करते हैं.

कोर्ट रूम में क्यों हुई गैंगवार

17 जनवरी, 2018 का दिन था. दोपहर के करीब पौने एक बजे का समय रहा होगा. अजय जैतपुरा अपने कुछ साथियों के साथ राजस्थान के चुरू जिले के सादुलपुर शहर की मुंसिफ अदालत में अपनी तारीख पर आया था. उस दिन जज साहब नहीं आए थे. उन के न आने की वजह से पेशकार मोहर सिंह राठौर ही पेशी पर आने वालों को अगली तारीख दे रहे थे.

अजय जैतपुरा भी अपने वकील के साथ पेशकार के सामने  खड़ा था. उस के वकील रतनलाल प्रजापति ने पेशकार से अगली तारीख मांगी. पेशकार ने अजय जैतपुरा की फाइल निकाली. वह फाइल के पन्ने पलट ही रहे थे, तभी 4-5 युवक अदालत के कमरे में आए. पेशकार ने उन पर उड़ती हुई सी एक नजर डाली. तभी वे युवक अचानक अंधाधुंध फायरिंग करने लगे.

कोर्ट रूम में फायरिंग होने से भगदड़ मच गई. फायरिंग होते देख वह भाग कर बगल में बने जज साहब के चैंबर में घुस गए और दरवाजा बंद कर लिया.

जब फायरिंग की आवाज बंद हो गई तो कोर्टरूम में शोर होने लगा. पेशकार को जब यह यकीन हो गया कि बदमाश जा चुके हैं तो वह जज साहब के चैंबर का दरवाजा खोल कर कोर्ट रूम में आए. कोर्ट रूम का दृश्य देख कर उन की आंखें फटी रह गईं. अजय जैतपुरा लहूलुहान पड़ा था. उस के साथ आए वकील रतनलाल प्रजापति और 2 अन्य लोग प्रदीप व संदीप भी घायल पड़े थे. चारों के गोलियां लगी थीं.

क्रिमिनल ने क्रिमिनल को बनाया निशाना

जिन 4 लोगों को गोलियां लगी थीं, उन में से अजय की हालत सब से ज्यादा गंभीर थी. सभी घायलों को तत्काल अस्पताल ले जाया गया. हालत गंभीर होने की वजह से प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें हरियाणा में हिसार के अस्पताल रैफर कर दिया गया.

अस्पताल पहुंचने पर डाक्टरों ने अजय जैतपुरा को मृत घोषित कर दिया. चूंकि यह पुलिस केस था, इसलिए पोस्टमार्टम के लिए उस का शव हिसार से सादुलपुर भेज दिया गया. बाकी तीनों घायलों को आईसीयू में भरती कर के इलाज शुरू कर दिया गया.

अजय एक हार्डकोर अपराधी था. 12 दिन पहले ही वह जमानत पर जेल से छूटा था. उस के खिलाफ जघन्य अपराधों के 40 से ज्यादा मामले चल रहे थे. अजय ने 23 सितंबर, 2015 को बैरासर गांव में हमीरवास थाने के थानेदार व सिपाहियों को अपनी गाड़ी से कुचलने का प्रयास किया था.

सादुलपुर के अपर जिला एवं सेशन न्यायाधीश की अदालत ने अजय को इस मामले में 14 नवंबर, 2017 को 7 साल की सजा सुनाई थी. इसी साल 5 जनवरी को ही हाईकोर्ट से उस की जमानत हुई थी. इस के 12 दिन बाद ही उस की हत्या हो गई थी.

हरियाणा के अनिल जाट गैंग ने 2 दिन पहले ही अजय जैतपुरा को धमकी दी थी. दरअसल, हरियाणा के 2 लाख रुपए के इनामी बदमाश अनिल जाट को हरियाणा पुलिस ने 25 जून, 2015 को एनकाउंटर में मार गिराया था. यह एनकाउंटर हरियाणा के ईशरवाल गांव में हुआ था.

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अनिल जाट के गिरोह के सदस्यों को शक था कि उन के बौस का एनकाउंटर कराने में अजय जैतपुरा और चूरू जिले के थाना राजगढ़ के सिपाही नरेंद्र का हाथ था. अजय ने ही फोन कर के अनिल को बुलाया था. उस की मुखबिरी पर ही पुलिस ने अनिल को घेर कर मार दिया.

10 हजार रुपए के इनामी बदमाश अजय जैतपुरा को सादुलपुर के तत्कालीन थानाप्रभारी ने अपनी टीम के साथ 12 फरवरी, 2016 को जयपुर के जवाहर सर्किल से गिरफ्तार किया था. वह हमीरवास के थानेदार और सिपाहियों को गाड़ी से कुचलने की कोशिश करने के बाद फरार हो गया था. तब 23 अक्तूबर, 2015 को बीकानेर के तत्कालीन आईजी ने उस पर 10 हजार रुपए का इनाम घोषित किया था.

कहा जाता है कि सन 2006 में मारपीट के मामले में नामजद होने के बाद अजय अपराध की दलदल में फंसता चला गया. इस के बाद उस ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. वह अपराध की दुनिया में अपना नाम कमाने के लिए एक के बाद एक अपराध करता चला गया. सन 2007 में उस की हिस्ट्रीशीट खुली थी.

चुरू जिले के हमीरवास थाना इलाके के गांव जैतपुरा के रहने वाले साधारण परिवार के विद्याधर जाट का बेटा अजय जैतपुरा 2 भाइयों में बड़ा था. उस के छोटे भाई का नाम विजय जैतपुरा है. शादीशुदा अजय का एक बेटा भी है.

कोर्ट रूम में अंधाधुंध गोलीबारी कर के हार्डकोर अपराधी की हत्या करने की वारदात से चुरू जिला मुख्यालय से ले कर जयपुर तक हड़कंप मच गया था. पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए.

पुलिस ने खोजबीन में लगाया पूरा जोर

लोगों से पूछताछ में सामने आया कि हमलावरों के दोनों हाथों में पिस्टल थीं. कोर्ट रूम में फायरिंग के बाद वे हवाई फायर करते हुए मंडी की तरफ के गेट से निकल कर भाग गए.

फायरिंग से लोगों में दहशत फैल गई. लोगों ने पुलिस को बताया कि हमलावरों ने करीब 50 फायर किए थे. भागते समय उन्होंने अदालत परिसर में खड़ी अजय जैतपुरा की स्कौर्पियो गाड़ी पर भी गोलियां चलाई थीं.

पुलिस ने कोर्ट परिसर से एक दरजन से ज्यादा कारतूस के खोखे बरामद किए. ये सभी कारतूस 9 एमएम के थे. मौके पर एक जिंदा कारतूस और एक मैगजीन भी मिली.

पुलिस ने हमलावरों का पता लगाने के लिए अदालत परिसर में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली. थानाप्रभारी भगवान सहाय मीणा ने हिसार जा कर घायलों के बयान लिए.

फायरिंग में घायल हुए जैतपुरा गांव के प्रदीप कुमार स्वामी ने पुलिस को बताया कि उस की और अजय की अदालत में पेशी थी. वे लोग अपने साथियों के साथ स्कौर्पियो व फार्च्युनर गाड़ी से आए थे.

मुंसिफ न्यायालय में जब वे पेशकार के पास खड़े थे, उसी दौरान संपत नेहरा, मिंटू मोडासिया, राजेश, प्रवीण, अक्षय, विपिन, कुलदीप, नवीन, संदीप आदि अपने हाथों में पिस्टल ले कर कोर्ट रूम में घुस आए और उन पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. इस अप्रत्याशित हमले में उस के अलावा अजय जैतपुरा, संदीप गुर्जर व वकील रतन प्रजापति को गोली लगी. बाद में हमलावर हवाई फायर करते हुए भाग गए.

अदालत में मौकामुआयना करने पहुंचे एसपी राहुल बारहठ के समक्ष वकीलों ने वारदात पर आक्रोश जताते हुए अदालत परिसर में पर्याप्त पुलिस सुरक्षा मुहैया कराने और पुलिस चौकी स्थापित करने की मांग की.

वकीलों ने एसपी को बताया कि घटना के दौरान अदालत में चालानी गार्ड मौजूद थे, लेकिन वे निहत्थे होने के कारण हमलावरों का मुकाबला नहीं कर सके.

अजय जैतपुरा की हत्या के दूसरे दिन सादुलपुर के सरकारी अस्पताल में 5 डाक्टरों के मैडिकल बोर्ड ने उस के शव का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम में पता चला कि अजय के शरीर में कुल 7 गोलियां लगी थीं. इन में 5 गोलियां उस के शरीर के आरपार निकल गई थीं और 2 गोलियां उस के शरीर में ही फंसी हुई मिलीं.

इस से पहले अजय के परिजनों ने उस के शव का पोस्टमार्टम कराने से मना कर दिया था. बाद में एसपी राहुल बारहठ को 6 सूत्रीय मांगों का ज्ञापन दे कर पोस्टमार्टम करवाने पर राजी हुए.

इस में अजय के परिवार को 50 लाख रुपए की आर्थिक मदद, उस की पत्नी को सरकारी नौकरी व भाई विजय को शस्त्र लाइसैंस, अजय के परिवार और उस के साथी प्रदीप जांदू के घर पर सुरक्षा गार्ड मुहैया कराने, अजय की हत्या की जांच पुलिस के स्पैशल औपरेशन ग्रुप से कराने तथा मामले के सभी गवाहों को सुरक्षा प्रदान करने की मांग शामिल थी. एसपी ने इन मांगों पर यथासंभव काररवाई करने का आश्वासन दिया.

पोस्टमार्टम के बाद अजय का शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया. वे लोग शव को जैतपुरा गांव की ढाणी ले गए. तनावपूर्ण माहौल को देखते हुए एसपी ने शव के साथ राजगढ़ के थानाप्रभारी को भारी पुलिस बल के साथ जैतपुरा भेज दिया, जिस की मौजूदगी में अजय का अंतिम संस्कार किया गया.

वकील भी उतरे हड़ताल पर

दूसरी ओर सादुलपुर के वकीलों ने अदालत परिसर में घुस कर गोलीबारी करने और अजय के साथ वकील रतनलाल प्रजापति को गोली लगने के विरोध में मिनी सचिवालय परिसर में अनिश्चितकालीन हड़तान शुरू कर दी.

वकीलों का कहना था कि जब अदालत परिसर में ही वकील सुरक्षित नहीं हैं तो आम लोगों की सुरक्षा की उम्मीद कैसे की जा सकती है. इस गोलीबारी के विरोध में चुरू जिला मुख्यालय और कई अन्य शहरों में भी वकीलों ने न्यायिक कार्य स्थगित रखा.

पुलिस की जांच में सामने आया कि अजय की हत्या करने में पंजाब के वांटेड गैंगस्टर संपत नेहरा का हाथ था. चुरू जिले के कालोड़ी गांव के रहने वाले रामचंद्र का बेटा संपत नेहरा पंजाब के कुख्यात लारेंस बिश्नोई से जुड़ा हुआ था. उसे लारेंस का दाहिना हाथ माना जाता था.

लारेंस आजकल राजस्थान की जोधपुर जेल में बंद है. जेल में रहते हुए वह राजस्थान और पंजाब में कई बड़ी वारदातें करवा चुका है. लारेंस और संपत का मकसद एनकाउंटर में आनंदपाल की मौत के बाद राजस्थान में अपना वर्चस्व कायम करना था.

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वकीलों के आंदोलन से पुलिस पर आरोपियों को गिरफ्तार करने का दबाव बढ़ रहा था, इसलिए एसपी राहुल बारहठ ने अभियुक्तों की तलाश में कई टीमें विभिन्न जगहों पर भेजीं. राजस्थान पुलिस ने इस मामले में हरियाणा पुलिस की मदद ली.

हरियाणा पुलिस की स्पैशल टास्क फोर्स ने सादुलपुर पहुंच कर पूरे मामले की जानकारी ली. बीकानेर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक विपिन पांडेय भी दूसरे दिन सादुलपुर आए. उन्होंने न्यायिक अधिकारियों व एसपी के साथ मिल कर वकीलों से भी बात की.

आईजी ने वकीलों को आश्वासन दिया कि कोर्ट परिसर में सशस्त्र गार्ड तैनात किए जाएंगे. उन्होंने यह भी कहा कि अजय जैतपुरा के घर पर भी सुरक्षा गार्ड तैनात किए जाएंगे.

तीसरे दिन भी कई जगह दबिश देने के बावजूद पुलिस को अजय के हत्यारों का सुराग नहीं लगा. इस के बाद चुरू के एसपी ने नामजद 9 आरोपियों में से हरेक पर 5-5 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया.

20 जनवरी को सादुलपुर में बार एसोसिएशन के आह्वान पर वकीलों ने मौन जुलूस निकाला. उन्होंने उपजिला कलेक्टर को ज्ञापन दे कर न्यायालय परिसर को संवेदनशील घोषित करने, घायल वकील रतनलाल प्रजापति को 5 लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने, अदालत परिसर में पुलिस चौकी स्थापित करने आदि की मांग की.

पूर्व मंत्री नटवर सिंह की निकली कार

फायरिंग की घटना के पांचवें दिन 21 जनवरी को पुलिस ने हमलावरों की फार्च्युनर गाड़ी हरियाणा में बरामद कर ली. हमलावर इस गाड़ी से सादुलपुर आए थे और इसी गाड़ी से भागे थे. बदमाश इस गाड़ी को हरियाणा के मौजा लाडावास एवं काकडोली के बीच रोही में छोड़ कर भाग गए थे.

जांच में पता चला कि यह गाड़ी पूर्व केंद्रीय विदेश मंत्री नटवर सिंह की है. 25 दिसंबर, 2017 की शाम को यह गाड़ी उन के चालक से गन पौइंट पर गुरुग्राम के सुशांत लोक इलाके से लूटी गई थी. इस गाड़ी को उन का विधायक बेटा जगत सिंह रखता था.

चालक सेवा सिंह जगत सिंह के यहां पिछले 15 सालों से नौकरी कर रहा है. 25 दिसंबर की शाम को सेवा सिंह व माली रामप्रसाद इस गाड़ी से गुरुग्राम के सुशांत लोक गोल्फ चौक गए थे. इसी दौरान लाल रंग की बोलेरो में सवार 2 युवकों ने गन पौइंट पर उन से मारपीट कर के गाड़ी छीन ली थी. इस की रिपोर्ट सुशांत लोक थाने में दर्ज थी.

24 जनवरी को जिला एवं सैशन जज योगेंद्र पुरोहित सादुलपुर पहुंचे. उन्होंने पिछले 7 दिनों से हड़ताल, धरना व अनशन कर रहे वकीलों की बातें सुनीं. जिला जज ने कहा कि उन्होंने इस घटना को गंभीरता से लिया है. वे पूरी सुरक्षाव्यवस्था को चाकचौबंद करवाने में लगे हैं. फायरिंग में घायल हुए एडवोकेट रतनलाल प्रजापति को पीडि़त पक्षकार स्कीम के तहत अधिकतम राशि दिलवाई जाएगी.

आखिर पुलिस की कोशिश रंग लाई

आखिर 29 जनवरी को पुलिस को इस मामले में नामजद आरोपी संदीप कुमार जाट को गिरफ्तार करने में कामयाबी मिली. वह हरियाणा के लोहारू थानाक्षेत्र के गांव सिंघाणी का रहने वाला था. संदीप के खिलाफ बहल, पिलानी सहित कई अन्य थानों में अनेक मामले दर्ज थे. वह हरियाणा में हुए जाट आंदोलन का भी आरोपी था. उसे हरियाणा की एक अदालत ने भगोड़ा घोषित किया था. संदीप अजय जैतपुरा हत्याकांड में नामजद आरोपी मिंटू मोडासिया का साथी था.

संदीप ने बताया कि सादुलपुर में अजय जैतपुरा की हत्या के बाद सभी आरोपी हरियाणा चले गए और वहां से अलगअलग हो गए. संदीप इस वारदात के बाद बेंगलुरु चला गया था. वह इस से पहले बेंगलुरु में काम कर चुका था.

संदीप हवाईजहाज से बेंगलुरु से दिल्ली आ कर अपने साथी प्रवीण व राजेश के गांव कैर की ढाणी जा रहा था, तभी पुलिस ने उसे रास्ते में धर दबोचा था.

पुलिस की जांच में इस मामले में शार्पशूटर अंकित भादू का नाम और सामने आया. पंजाब के शेरावाला बहाववाला, फाजिल्का निवासी अंकित भादू पर 31 जनवरी, 2018 को चुरू एसपी ने 5 हजार रुपए का इनाम घोषित किया. अजय की हत्या के मुख्य आरोपी संपत नेहरा पर 1 फरवरी को बीकानेर आईजी ने 10 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया. कथा लिखे जाने तक अन्य आरोपी पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े थे.

तलाक के डर से बच्चे की बलि

9 जुलाई, 2017 की शाम 6 बजे के करीब घर के बाहर गली में बच्चों के साथ खेल रहा सुनील का 3 साल का बेटा यश अचानक लापता हो गया. सुनील मध्य प्रदेश के जिला इंदौर के थाना गौतमपुरा के गांव गढ़ी बिल्लौदा का रहने वाला था. बेटे के गायब होने का पता चलते ही वह गांव वालों की मदद से उस की तलाश में लग गया.

काफी खोजबीन के बाद भी जब बेटे का कुछ पता नहीं चला तो सुनील ने गांव के कुछ लोगों के साथ थाना गौतमपुरा जा कर बेटे की गुमशुदगी दर्ज करवा दी थी. सुनील बेटे की गुमशुदगी भले ही दर्ज करवा आया था, लेकिन घर लौट कर उस से रहा नहीं गया. वह पूरी रात बेटे की तलाश में इधरउधर भटकता रहा. जहां भी संभव हो सका, उस ने बेटे को खोजा.

लेकिन सुनील की सारी मेहनत तब बेकार गई, जब सुबह मुंहअंधेरे सुनील के पड़ोसी दिलीप बागरी ने शोर मचाया कि सुनील का बेटा यश उस के आंगन में बेहोश पड़ा है.

दिलीप के शोर मचाते ही पूरा गांव उस के आंगन में जमा हो गया. गांव वालों ने यश को टटोला तो पता चला कि वह मर चुका है. तुरंत इस बात की सूचना थाना गौतमपुरा पुलिस को दी गई.

सूचना मिलते ही थाना गौतमपुरा के थानाप्रभारी हीरेंद्र सिंह राठौर पुलिस बल के साथ गांव गढ़ी बिल्लौदा पहुंच गए. उन्होंने यश को गौर से देखा तो उन्हें भी लगा कि बच्चा मर चुका है. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया तो उसे देख कर ही लग रहा था कि बच्चे के पूरे शरीर में सुई चुभोई गई है. उस के पूरे शरीर से खून रिस रहा था.

बच्चे के मुंह पर भी अंगुलियों के निशान थे, जिस से अंदाजा लगाया गया कि बच्चे का मुंह भी दबाया गया था. संभवत: मुंह दबाने से ही दम घुटने के कारण बच्चे की मौत हुई थी. सुई चुभोने से पुलिस को अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि तंत्रमंत्र में बच्चे की हत्या की गई थी. इस के बाद घटनास्थल की औपचारिक काररवाई पूरी कर हीरेंद्र सिंह राठौर ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

यह साफसाफ तंत्रमंत्र में हत्या का मामला था, इसलिए हीरेंद्र सिंह इस बात पर विचार करने लगे कि आखिर बच्चे की हत्या किस ने की है? तंत्रमंत्र के अलावा हत्या की कोई दूसरी वजह भी नहीं दिखाई दे रही थी. क्योंकि सुनील इतना पैसे वाला आदमी नहीं था कि कोई फिरौती के लिए उस के बेटे का अपहरण करता. उस का कोई ऐसा दुश्मन भी नहीं था कि दुश्मनी में उस के बेटे का कत्ल किया गया हो.

इस के अलावा थानाप्रभारी ने यह भी पता कराया कि सुनील का किसी अन्य औरत से चक्कर तो नहीं था? जिस की वजह से उस ने पत्नी और बेटे से छुटकारा पाने के लिए ऐसा किया हो.

जिस दिलीप बागरी के आंगन में यश का शव मिला था, उस से भी पूछताछ की गई. उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं मासूम बच्चे की हत्या क्यों करूंगा? मैं तो उसे अपने बच्चे की तरह प्यार करता था. रात 12 बजे तक तो मैं सुनील के साथ ही था. उस के बाद घर आ कर सो गया था. बच्चे की चिंता में मैं ने रात में खाना भी नहीं खाया था.’’

दिलीप बागरी ने जिस तरह गिड़गिड़ाते हुए सफाई दी थी, उस से हीरेंद्र सिंह राठौर को लगा कि शयद किसी अन्य ने बच्चे की हत्या कर के इसे फंसाने के लिए लाश इस के आंगन में फेंक दी है. यही सोच कर वह थाने लौट आए. थाने आ कर उन्होंने यश की गुमशुदगी की जगह उस की हत्या का मुकदमा दर्ज कर मामले की खुद ही जांच शुरू कर दी.

कई दिनों तक वह इस मामले की विवचेना करते रहे, पर हत्यारे तक पहुंचने की कौन कहे, वह यह तक पता नहीं कर सके कि मासूम यश की हत्या क्यों की गई थी?

जब हीरेंद्र सिंह राठौर इस मामले में कुछ नहीं कर सके तो आईजी हरिनारायण चारी ने उन का तबादला कर उन की जगह पर गौतमपुरा का नया थानाप्रभारी अनिल वर्मा को बनाया.

अनिल वर्मा थोड़ा तेजतर्रार अधिकारी थे. अब तक की गई हीरेंद्र सिंह की जांच का अध्ययन कर के पूरी बात उन्होंने डीआईजी हरिनारायण चारी, एडिशनल एसपी पंकज कुमावत तथा एसडीओपी अमित सिंह राठौर को बताई तो सभी अधिकारियों ने एक बार फिर दिलीप बागरी से थोड़ा सख्ती से पूछताछ करने का आदेश दिया.

क्योंकि दिलीप बागरी ने भले ही अपनी सफाई में बहुत कुछ कहा था, पर सभी को उसी पर शक था. अनिल वर्मा ने दिलीप से पूछताछ करने से पहले मुखबिरों से उस के बारे में पत कराया. मुखबिरों से उन्हें पता चला कि दिलीप इधर बेटे की चाह में तंत्रमंत्र के चक्कर में पड़ा था. बेटे के लिए ही वह एक के बाद एक कर के 3 शादियां कर चुका है.

बेटे के ही चक्कर में उस की पहली पत्नी की मौत हुई थी. यह जानकारी मिलने के बाद अनिल वर्मा ने दिलीप और उस की दोनों पत्नियों पुष्पा और संतोष कुमारी को थाने बुलवा लिया. थाने में दिलीप और उस की पत्नियों से अलगअलग पूछताछ की जाने लगी तो तीनों के बयानों में काफी विरोधाभास पाया गया.

इस से अनिल वर्मा का संदेह गहराया तो उन्होने दिलीप बागरी से सख्ती से पूछताछ शुरू की. पुलिस की सख्ती के आगे दिलीप टूट गया और उस ने अपनी दोनों पत्नियों संतोष कुमारी और पुष्पा के साथ मिल कर यश की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने यश की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

दिलीप की पहली शादी 17 साल की उम्र मे गौतमपुरा के नजदीक के गांव इंगोरिया की रहने वाली सज्जनबाई से हुई थी. सज्जनबाई नाम से ही नहीं, स्वभाव से भी सज्जन थी. उस ने दिलीप की घरगृहस्थी तो संभाल ही ली थी, समय पर 2 बेटियों को जन्म दे कर उस का घरआंगन महका दिया था.

2 बेटियां पैदा होने के बाद सज्जनबाई और बच्चे नहीं चाहती थी. इसलिए उस ने दिलीप से औपरेशन कराने को कहा. लेकिन दिलीप इतने से संतुष्ट नहीं था. उसे तो बेटा चाहिए था, इसलिए औपरेशन कराने से मना करते हुए उस ने कहा, ‘‘बिना बेटे के इस संसार से मुक्ति नहीं मिलती, इसलिए जब तक बेटा पैदा नहीं हो जाता, तुम औपरेशन के बारे में सोचना भी मत.’’

पति के आदेश की अवहेलना करना सज्जनबाई के वश में नहीं था. क्योंकि दिलीप ने साफ कह दिया था कि उसे एक बेटा चाहिए ही चाहिए. अगर वह उस का कहना नहीं मानेगी तो वह उसे तलाक दे कर दूसरी शादी कर लेगा. दिलीप ऐसा कर भी सकता था, क्योंकि उस की जाति में यह कोई मुश्किल काम नहीं था.

इसलिए सज्जनबाई चुप रह गई. कुछ दिनों बाद सज्जनबाई तीसरी बार गर्भवती हुई. जबकि उस की उम्र तो अभी शादी लायक भी नहीं थी और वह तीसरे बच्चे की मां बनने जा रही थी. दुर्भाग्य से दिलीप का बेटे का बाप बनने का सपना पूरा नहीं हो सका. क्योंकि बच्चे को जन्म देते समय सज्जनबाई ही नहीं, उस के बच्चे की भी मौत हो गई थी.

संयोग से पैदा होने वाला बच्चा बेटा ही था. दिलीप को पत्नी और बेटे की मौत का दुख तो हुआ, लेकिन चूंकि ज्यादा दिनों तक वह अकेला नहीं रह सकता था, फिर उसे बेटा भी चाहिए था, जो दूसरी पत्नी लाने के बाद ही पैदा हो सकता था. इसलिए उस ने उज्जैन के नागदा के नजदीक के गांव उन्हेल की रहने वाली पुष्पा से दूसरी शादी कर ली. पुष्पा के घर आते ही वह बेटा पैदा करने की कोशिश में जुट गया. साल भर बाद ही पुष्पा ने बेटे को जन्म दिया, लेकिन दुर्भाग्य से वह 3 महीने का हो कर गुजर गया.

इस तरह से एक बार फिर दिलीप की आशाओं पर पानी फिर गया. बेटे की मौत से वह काफी दुखी था. लेकिन उसे इस बात का अहसास हो गया था कि पुष्पा से उसे बेटा हो सकता है, इसलिए वह इस दुख को भुला कर एक बार फिर बेटा पैदा करने की कोशिश में लग गया. पुष्पा गर्भवती तो हुई, लेकिन कुछ महीने बाद उस का गर्भपात हो गया.

इस से दिलीप को वहम होने लगा कि जरूर कोई ऐसी बात है, जो उसे बेटे का बाप बनने में बाधा डाल रही है. वह पड़ोस के गांव में रहने वाले तांत्रिक बलवंत से जा कर मिला. पूरी बात सुनने के बाद तांत्रिक बलवंत ने कहा, ‘‘तुझे बेटा कहां से होगा, तेरी पत्नी की कोख में तो डायन बैठी है. वही उस की संतान को खा जाती है.’’

उपाय के नाम पर पुष्पा की झाड़फूंक शुरू हो गई. दिलीप कोई खतरा नहीं उठाना चाहता था, इसलिए उस ने संतोष कुमारी से एक और शादी कर ली. उस का सोचना था कि पुष्पा से बेटा नहीं होगा तो संतोष कुमारी से तो हो ही जाएगा. लेकिन शायद उस की किस्मत ही खराब थी. संतोष कुमारी को बेटा होने की कौन कहे, गर्भ ही नहीं ठहरा.

बेटे के लिए दिलीप तो परेशान था ही, उस की दोनों पत्नियां पुष्पा और संतोष कुमार भी परेशान रहने लगी थीं, उन की परेशानी की वजह यह थी कि बेटे के चक्कर में कहीं दिलीप उन्हें तलाक दे कर चौथी शादी न कर ले. क्योंकि उन्हें पता था कि बेटे के लिए दिलीप कुछ भी कर सकता है.

दिलीप चौथी ही नहीं, बेटे के लिए पांचवीं शादी भी कर सकता था. तलाक के बारे में सोच कर पुष्पा और संतोष परेशान रहती थीं. अपनी परेशानी पुष्पा ने पिता मनोहर सिंह को बताई तो वह भी परेशान हो उठे. क्योंकि वह भी दामाद की सोच को अच्छी तरह जानते थे. दामाद को न वह रोक सकते थे, न उन की बात उस की समझ में आ सकती थी.

इसलिए बेटी का भविष्य खराब न हो, यह सोच कर वह पुष्पा को नागदा के पास स्थित गांव उमरनी के रहने वाले तांत्रिक अंबाराम आगरी के पास ले गए. पुष्पा की पूरी बात सुनने के बाद अंबाराम ने कहा, ‘‘तुम्हारी कोख में जो डायन बैठी है, वह मासूम बच्चे की बलि मांग रही है. जिस बच्चे की बलि दी जाए, वह मांबाप की पहली संतान हो. बलि के बाद तुम्हें जो गर्भ ठहरेगा, वह बेटा ही होगा और जीवित भी रहेगा.’’

तांत्रिक अंबाराम ने जो उपाय बताया था, ससुराल आ कर पुष्पा ने उसे पति दिलीप बागरी और सौत संतोष कुमारी को बताया. दिलीप तो थोड़ा कसमसाया, पर पति के तलाक के डर से संतोष कुमारी राजी हो गई. लेकिन समस्या थी मासूम बच्चे की, जो मांबाप की पहली संतान हो.

लेकिन तीनों ने जब इस विषय पर गहराई से विचार किया तो उन्हें पड़ोस में रहने वाले सुनील का 3 साल का बेटा यश याद आ गया. वह मांबाप की पहली संतान था और पड़ोसी होने के नाते दिलीप के घर आताजाता रहता था.

इस के बाद दिलीप और उस की पत्नियों ने यश की बलि देने का मन बना लिया. मासूम बच्चा मिल गया तो दिलीप ने अंबाराम से मिल कर पूछा कि बलि कब और कैसे देनी है? इस तरह अपने घर का चिराग रोशन करने के लिए दिलीप ने पड़ोसी सुनील के घर का चिराग बुझाने का मन बना लिया. अंबाराम ने बलि देने के लिए अमावस्या या पूर्णिमा का दिन बताया था.

9 जून को पूर्णिमा थी, इसलिए 8 जून को पुष्पा, दिलीप और संतोष कुमारी ने अगले दिन बलि देने की तैयारी कर के यश को अगवा करने की योजना बना डाली. इस के बाद दिलीप रोज की तरह सट्टा खेलने बड़नगर चला गया. शाम को जैसे ही यश दिलीप के घर आया, संतोष कुमारी और पुष्पा ने उसे कमरे में बंद कर के दिलीप को फोन कर के काम हो जाने की सूचना दे दी.

दिलीप उत्साह से गांव के लिए चल पड़ा. जब वह गांव पहुंचा, यश के गायब होने का हल्ला मच चुका था. पूरा गांव मासूम यश की तलाश में लगा था. दिलीप भी गांव वालों के साथ यश की तलाश का नाटक करने लगा. रात एक बजे तक वह गांव वालों के साथ यश की तलाश में लगा रहा.

जब सभी अपनेअपने घर चले गए तो दिलीप भी अपने घर आ गया. इस के बाद दोनों पत्नियों के साथ मिल कर जिस तरह तांत्रिक अंबाराम ने बलि देने की बात बताई थी, उसी तरह सभी बलि देने की तैयारी करने लगे. यश पड़ोसियों की खतरनाक योजना से बेखबर गहरी नींद में सो रहा था. अंबाराम के बताए अनुसार, दिलीप उसे उठा कर कमरे के अंदर ले गया और वहां बिछी रेत पर लिटा कर तांत्रिक के बताए अनुसार, मासूम यश के शरीर में पिनें चुभोने लगा. पीड़ा से बिलबिला कर मासूम यश रोने लगा तो संतोष और पुष्पा ने उस का मुंह दबा दिया.

दिलीप लगातार यश के होंठों, गर्दन और कंधे पर पिन चुभोता रहा. जहां पिन चुभती, वहां से खून रिसने लगता, जो बह कर रेत में समा जा रहा था. इसी तरह करीब 3 घंटे तक दिलीप यश के शरीर में पिन चुभोता रहा, क्योंकि उसे तब तक यह करना था, जब तक उस मासूम की मौत न हो जाए.

लगभग 3 घंटे बाद जब यश की मौत हुई, तब तक करीब साढ़े 3 बज चुके थे. इस के बाद यश की लाश को ला कर आंगन में रख दिया गया, जिस जगह उस मासूम का खून गिरा था, उसी के ऊपर बिना बिस्तर बिछाए दिलीप ने अपनी दोनों पत्नियों पुष्पा और संतोष कुमारी के साथ शारीरिक संबंध बनाए.

क्योंकि तांत्रिक अंबाराम ने दिलीप से कहा था कि मासूम की बलि देने पर जो खून निकलेगा, उस के सूखने से पहले ही उस के ऊपर जितनी भी औरतों से वह शारीरिक संबंध बनाएगा, सभी को 9 महीने बाद बेटा पैदा होगा और वे जीवित भी रहेंगे. इस तरह बेटा पाने की खुशी में दिलीप, पुष्पा और संतोष कुमारी ने जश्न मनाया.

दिलीप, पुष्पा और संतोष कुमारी को तांत्रिक अंबाराम पर इतना भरोसा था कि यश की लाश उन के आंगन में भले मिलेगी, फिर भी पुलिस उन तीनों पर जरा भी संदेह नहीं करेगी. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.

दिलीप और उस की पत्नियों से पूछताछ के बाद अनिल वर्मा ने उज्जैन के रेलवे स्टेशन से तांत्रिक अंबाराम को भी गिरफ्तार कर लिया था. उसे थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस का कहना था कि उस की नीयत दिलीप की दोनों पत्नियों पर खराब हो गई थी.

उस का सोचना था कि बच्चे की हत्या के आरोप में दिलीप जेल चला जाएगा तो बाद में उस की दोनों पत्नियां संतोष और पुष्पा आसानी से उस के कब्जे में आ जाएंगी. इसीलिए उस ने बलि देने के बाद बच्चे की लाश को घर के आंगन में रखने के लिए कहा था, ताकि दिलीप आसानी से कानून के शिकंजे में फंस जाए.

पूछताछ के बाद अनिल वर्मा ने दिलीप, पुष्पा, संतोष कुमारी और तांत्रिक अंबाराम को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. बेटे की चाहत में दिलीप ने अपना घर तो बरबाद किया ही, पड़ोसी के मासूम बेटे की जान ले कर उस के घर का भी चिराग बुझा दिया.

इस में सब से ज्यादा दोषी तो तांत्रिक अंबाराम है, जिस ने अपनी कुंठित भावना को पूरी करने के लिए 2 घर बरबाद कर दिए.

प्यार ऐसे तो नहीं हासिल होता

18 अक्तूबर, 2016 की सुबह साढ़े 5 बजे के करीब पुणे शहर की केतन हाइट्स सोसायटी की इमारत के नीचे एक्टिवा सवार एक महिला और एक आदमी के बीच कहासुनी होते देख उधर से गुजर रहे लोग ठिठक गए थे. औरत से कहासुनी करने वाले आदमी की आवाज धीरेधीरे तेज होती जा रही थी. लोग माजरा समझ पाते अचानक उस आदमी ने जेब से चाकू निकाला और एक्टिवा सवार औरत पर हमला कर दिया. औरत जमीन पर गिर पड़ी और बचाव के लिए चिल्लाने लगी. हमलावर के पास चाकू था, जबकि वहां खड़े लोग निहत्थे थे. फिर भी वहां खड़े लोग उस की ओर बढ़े, लेकिन वे सब उस तक पहुंच पाते, उस के पहले ही वह आदमी महिला पर ताबड़तोड़ चाकू से वार कर के उसी की स्कूटी से भाग निकला था. महिला जमीन पर पड़ी तड़प रही थी. उस की हालत देख कर किसी ने कंट्रोल रूम को फोन कर के घटना की सूचना दे दी थी. चूंकि घटनास्थल थाना अलंकार के अंतर्गत आता था, इसलिए कंट्रोल रूम ने घटना की जानकारी थाना अलंकार पुलिस को दे दी थी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी इंसपेक्टर बी.जी. मिसाल ने घटना की सूचना अपने अधिकारियों को दी और खुद एआई विजय कुमार शिंदे एवं कुछ सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाश और घटनास्थल के निरीक्षण में पुलिस वालों ने देखा कि घायल महिला सलवारसूट पहने थी. उस की उम्र 30-31 साल रही होगी. उस के शरीर पर तमाम गहरे घाव थे, जिन से खून बह रहा था. पुलिस को लगा कि अभी वह जीवित है, इसलिए उसे तत्काल पुलिस वैन में डाल कर इलाज के लिए सेसून अस्पताल ले जाया गया. लेकिन अस्पताल पहुंच कर पता चला कि उस की मौत हो चुकी है. इंसपेक्टर बी.जी. मिसाल अपने सहायकों के साथ घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर रहे थे कि डीएसपी सुधीर हिरेमठ और एएसपी भी फोरैंसिक टीम के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. फोरैंसिक टीम ने जरूरी साक्ष्य जुटा लिए तो अधिकारियों ने भी घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. उस के बाद बी.जी. मिसाल को जरूरी दिशानिर्देश दे कर चले गए. बी.जी. मिसाल ने सहयोगियों की मदद से घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी कीं और उस के बाद अस्पताल जा पहुंचे. डाक्टरों से पता चला कि महिला के शरीर पर कुल 21 घाव थे. अधिक खून बहने की वजह से ही उस की मौत हुई थी. उन्होंने काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए रखवा दिया और थाने आ कर अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर इस मामले की जांच इंसपेक्टर (क्राइम) विजय कुमार शिंदे को सौंप दी.

विजय कुमार शिंदे ने मामले की जांच के लिए अपनी एक टीम बनाई और हत्या के इस मामले की जांच शुरू कर दी. घटनास्थल पर पुलिस को मृतका का पर्स और मोबाइल फोन मिला था. मोबाइल फोन के दोनों सिम गायब थे, इसलिए मृतका की शिनाख्त में उस से कोई मदद नहीं मिल सकी. लेकिन पर्स से उस का ड्राइविंग लाइसैंस मिल गया, जिस से उस की शिनाख्त हो गई. मृतका का नाम शुभांगी खटावकर था और वह कर्वेनगर के श्रमिक परिसर की गली नंबर-5 में रहती थी. उस के पति का नाम प्रकाश खटावकर था. इस के बाद विजय कुमार शिंदे ने लाइसैंस में लिखे पते पर एक सिपाही को भेजा तो वहां मृतका का पति प्रकाश खटावकर मिल गया. सिपाही ने उसे पूरी बात बताई तो वह सिपाही के साथ थाने आ गया.

विजय कुमार शिंदे ने अस्पताल ले जा कर उसे लाश दिखाई तो लाश देख कर वह खुद को संभाल नहीं सका और जोरजोर से रोने लगा. विजय कुमार शिंदे ने किसी तरह उसे चुप कराया तो उस ने एकदम से कहा, ‘‘शुभांगी की हत्या किसी और ने नहीं, मेरे ही परिसर में रहने वाले विश्वास कलेकर ने की है. वह उसे एकतरफा प्रेम करता था. वह उसे राह चलते परेशान किया करता था.’  प्रकाश खटावकर के इसी बयान के आधार पर विजय कुमार शिंदे ने विश्वास कलेकर को नामजद कर के उस की तलाश शुरू कर दी. उस के घर में ताला बंद था. आसपड़ोस वालों से पूछताछ में पता चला कि घटना के बाद से ही वह दिखाई नहीं दिया था. पुलिस को प्रकाश खटावकर से उस का नागपुर का जो पता मिला था, जांच करने पर वह फरजी पाया गया था. इस के बाद उस की तलाश के लिए पुलिस की 2 टीमें बनाई गईं. एक टीम नागपुर भेजी गई तो दूसरी टीम वहां जहां वह रहता और काम करता था. पुलिस ने वहां के लोगों से उस के बारे में पूछताछ की.

दूसरी टीम द्वारा पूछताछ में पता चला कि विश्वास नागपुर का नहीं, बल्कि कोल्हापुर का रहने वाला था. वहां के थाना राजारामपुरी में उस के खिलाफ हत्या का एक मुकदमा दर्ज हुआ था, जिस में वह साल भर पहले बरी हो चुका था. बरी होने के बाद ही वह पुणे आ गया था. इंसपेक्टर विजय कुमार शिंदे के लिए यह जानकारी काफी महत्त्वपूर्ण थी. कोल्हापुर जा कर वह थाना राजारामपुरी पुलिस की मदद से विश्वास को गिरफ्तार कर पुणे ले आए और उसे अदालत में पेश कर के पूछताछ के लिए पुलिस रिमांड पर ले लिया. थाने में अधिकारियों की उपस्थिति में विश्वास कलेकर से शुभांगी की हत्या के बारे में पूछताछ शुरू ही हुई थी कि वह फर्श पर गिर कर छटपटाने लगा. उस के मुंह से झाग भी निकल रहा था. अचानक उस का शरीर अकड़ सा गया. पूछताछ कर रहे सारे पुलिस वाले घबरा गए. उन्हें लगा कि पूछताछ से बचने के लिए विश्वास ने जहर खा लिया है. उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया.

डाक्टरों ने उसे चैक कर के बताया कि इस ने जहर नहीं खाया है, बल्कि इसे मिर्गी का दौरा पड़ा है. यह जान कर पुलिस अधिकारियों की जान में जान आई. इलाज के बाद विश्वास को थाने ला कर पूछताछ की जाने लगी तो उस से सख्ती के बजाय मनोवैज्ञानिक ढंग से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में एकतरफा प्रेम में शुभांगी की हत्या करने की उस ने जो कहानी बताई, वह कुछ इस प्रकार से थी—

शुभांगी महाराष्ट्र के नागपुर के रहने वाले प्रकाश मधुकर खटावकर की पत्नी थी. जिस समय शुभांगी की शादी प्रकाश से हुई थी, उस समय वह बीकौम कर रहा था. शुभांगी जैसी सुंदर, संस्कारी और समझदार पत्नी पा कर वह बहुत खुश था. पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ दिनों तक वह गांव में पिता मधुकर खटावकर के साथ खेती के कामों में उन की मदद करता रहा. खेती की कमाई से किसी तरह परिवार का खर्च तो चल जाता था, पर भविष्य के लिए कुछ नहीं बच पाता था. ऐसे में जब प्रकाश और शुभांगी को एक बच्चा हो गया तो उस के भविष्य को ले कर उन्हें चिंता हुई. दोनों ने इस बारे में गहराई से विचार किया तो उन्हें लगा कि बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए उन्हें गांव छोड़ कर शहर जाना चाहिए.

इस के बाद प्रकाश और शुभांगी घर वालों से इजाजत ले कर पहले मुंबई, उस के बाद पुणे जा कर स्थाई रूप से बस गए थे. पुणे के जेल रोड पर किराए का मकान ले कर उन्होंने रोजीरोटी की शुरुआत की. प्रकाश को एक प्राइवेट कोऔपरेटिव बैंक में नौकरी मिल गई थी तो पति की मदद के लिए शुभांगी कुछ घरों में खाना बनाने का काम करने लगी थी. इस काम से शुभांगी को अच्छे पैसे मिल जाते थे. इस के अलावा वह घर से भी टिफिन तैयार कर के सप्लाई करती थी. इस तरह कुछ ही दिनों में उन की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत हो गई. शुभांगी के पास पैसा आया तो इस का असर उस के रहनसहन पर तो पड़ा ही, उस के शरीर और बातव्यवहार पर भी पड़ा. अब वह पहले से ज्यादा खूबसूरत लगने लगी थी.

जल्दी ही शुभांगी और प्रकाश ने कर्वेनगर के श्रमिक परिसर की गली नंबर-5 में अपना खुद का मकान खरीद लिया था. बच्चे का भी उन्होंने एक बढि़या अंगरेजी स्कूल में दाखिला करा दिया था. शुभांगी को मेहनत ज्यादा करनी पड़ती थी और उस के पास समय कम होता था. उस की भागदौड़ को देखते हुए प्रकाश ने इस के लिए स्कूटी खरीद दी थी. शुभांगी घर और बाहर के सारे काम कुशलता से निपटा रही थी. इस के अलावा वह अपने शरीर का भी पूरा खयाल रखती थी. बनसंवर कर वह स्कूटी से निकलती तो देखने वाले देखते ही रह जाते थे. उस का शरीर सांचे में ढला ऐसा लगता था कि वह कहीं से भी 13 साल के बच्चे की मां नहीं लगती थी. उस की यही खूबसूरती उस के लिए खतरा बन गई.

शुभांगी जिस परिसर में रहती थी, उसी परिसर में 40 साल का विश्वास कलेकर भी एक साल पहले कोल्हापुर से आ कर रहने लगा था. रोजीरोटी के लिए वह वड़ापाव का ठेला लगाता था. एक ही परिसर में रहने की वजह से अकसर उस की नजर शुभांगी पर पड़ जाती थी. खूबसूरत शुभांगी उसे ऐसी भायी कि वह उस का दीवाना बन गया. इस की एक वजह यह थी कि उस की शादी नहीं हुई थी. शायद मिर्गी की बीमारी की वजह से वह कुंवारा ही रह गया था. और जब उसे घर बसाने का मौका मिला तो उस में भी कामयाब नहीं हुआ. जिस लड़की से वह प्यार करता था, उस की हत्या हो गई थी. उस की हत्या का आरोप भी उसी पर लगा था, लेकिन अदालत से वह बरी हो गया था. बरी होने के बाद वह पुणे आ गया था और उसे शुभांगी से प्यार हुआ तो वह हाथ धो कर उस के पीछे पड़ गया. शुभांगी तक पहुंचने के लिए पहले उस ने उस के पति प्रकाश से यह बता कर दोस्ती कर ली कि वह भी उस के गांव के पास का रहने वाला है. इस के बाद जल्दी ही वह शुभांगी के परिवार में घुलमिल गया. शुभांगी के घर आनेजाने में ही उस ने शुभांगी से यह कह कर अपना टिफिन भी लगवा लिया कि दिन भर काम कर के वह इस तरह थक जाता है कि रात को उसे अपना खाना बनाने में काफी तकलीफ होती थी. शुभांगी को भला इस में क्या ऐतराज होता, उस का तो यह धंधा ही था. वह उस का भी टिफिन बना कर पहुंचाने लगी.

समय अपनी गति से सरकता रहा. शुभांगी विश्वास का टिफिन देने आती तो इसी बहाने वह उसे एक नजर देख लेता, साथ ही उसे प्रभावित करने के लिए उस के बनाए खाने की खूब तारीफ भी करता. अपनी तारीफ सुन कर शुभांगी कुछ कहने के बजाय सिर्फ हंस कर रह जाती. इस से विश्वास को लगने लगा कि वह उस के मन की बात जान गई है. शायद इसी का परिणाम था कि एक दिन उस ने अपने मन की बात शुभांगी से कह दी. उस की बातें सुन कर शुभांगी सन्न रह गई. वह संस्कारी और समझदार महिला थी, इसलिए नाराज होने के बजाय उस ने उसे समझाया, ‘‘मैं शादीशुदा ही नहीं, एक बच्चे की मां भी हूं. मेरा अच्छा सा पति है, जिस के साथ मैं खुश हूं. तुम हमारे गांव के पास के हो, इसलिए हम सब तुम्हारी इज्जत करते हैं. तुम अपने मन में कोई ऐसा भ्रम मत पालो, जो आगे चल कर तुम्हें तकलीफ दे.’’ लेकिन शुभांगी के लिए पागल हुए विश्वास पर शुभांगी के समझाने का कोई असर नहीं हुआ. उस ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘शुभांगी, तुम्हारी वजह से मेरी रातों की नींद और दिन का चैन लुट गया है. हर घड़ी तुम मेरी आंखों के सामने रहती हो. मुझे तुम से सचमुच प्यार हो गया है. तुम पति और बच्चे को छोड़ कर मेरे पास आ जाओ. मैं तुम्हें रानी बना कर रखूंगा. तुम्हें कोई काम नहीं करने दूंगा.’’

विश्वास कलेकर की इन बातों से शुभांगी का धैर्य जवाब दे गया. उस ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हें इतना समझाया, फिर भी तुम्हारी समझ में नहीं आया. अगर फिर कभी इस तरह की बातें कीं तो ठीक नहीं होगा. मैं तुम्हारी शिकायत प्रकाश से कर दूंगी. जरूरत पड़ी तो पुलिस से भी कर दूंगी.’’ शुभांगी की इस धमकी से कुछ दिनों तक तो विश्वास शांत रहा. लेकिन एक दिन मौका मिलने पर वह शुभांगी के सामने आ कर खड़ा हो गया और पहले की ही तरह गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘शुभांगी, तुम मेरे साथ चलो. मैं तुम्हें जान से भी ज्यादा प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना मैं जिंदा नहीं रह सकता.’’

शुभांगी ने नाराज हो कर उसे खरीखोटी तो सुनाई ही, उस की इस हरकत की शिकायत प्रकाश से भी कर दी. प्रकाश ने जब उसे समझाने की कोशिश की तो उस की बात को समझने के बजाय वह उलटा उसे ही समझाने लगा. इस के बाद दोनों में कहासुनी हो गई.

परेशानी की बात यह थी कि इस के बाद भी विश्वास अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. अब वह शुभांगी को परेशान करने लगा. जब इस की जानकारी शुभांगी के भाई को हुई तो उस ने विश्वास की पिटाई कर के चेतावनी दी कि अगर उस ने फिर कभी शुभांगी को परेशान किया तो ठीक नहीं होगा.

शुभांगी के भाई द्वारा पिटाई करने से विश्वास इतना आहत हुआ कि उस ने अपनी इस पिटाई और अपमान का बदला लेने के लिए शुभांगी के प्रति एक खतरनाक फैसला ले लिया. उसे शुभांगी के सारे कामों और आनेजाने की पूरी जानकारी थी ही, इसलिए 18 अक्तूबर, 2016 की सुबह 5 बजे जा कर वह केतन हाइट्स सोसायटी के पास खड़े हो कर उस का इंतजार करने लगा. शुभांगी अपने समय पर वहां पहुंची तो उस की स्कूटी के सामने आ कर उस ने उसे रोक लिया. उस की इस हरकत से नाराज हो कर शुभांगी ने कहा, ‘‘यह क्या बदतमीजी है. अभी तुम्हें या हमें चोट लग जाती तो?’’

‘‘कोई बात नहीं, तुम तो जानती ही हो, आशिक मरने से नहीं डरते. अपनी मंजिल पाने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं.’’ विश्वास ने बेशर्मी से मुसकराते हुए कहा, ‘‘आखिर तुम मेरी बात मान क्यों नहीं लेती?’’

‘‘तुम्हारी बकवास सुनने का मेरे पास समय नहीं है, तुम मेरे सामने से हटो और मुझे काम पर जाने दो.’’

‘‘तुम ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया?’’ विश्वास ने कहा.

‘‘मुझे तुम्हारी किसी बात का जवाब नहीं देना.’’ शुभांगी ने गुस्से में कहा.

‘‘तो क्या तुम्हारा यह आखिरी फैसला है?’’ विश्वास ने पूछा.

‘‘हां…हां,’’ शुभांगी ने लगभग चीखते हुए कहा, ‘‘हां, यह मेरा आखिरी फैसला है. तुम मुझे इस जन्म में तो क्या, अगले 7 जन्मों तक नहीं पा सकोगे.’’

शुभांगी के चेहरे पर अपने लिए नफरत और दृढ़ता देख कर विश्वास को गुस्सा आ गया. लंबी सांस लेते हुए उस ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हें कितना समझाया कि तुम मेरी हो जाओ, लेकिन तुम ने मेरी बात नहीं मानी. अब मैं तुम्हारा 7 जन्मों तक इंतजार करूंगा.’’

कह कर विश्वास ने जेब से चाकू निकाला और ताबड़तोड़ वार कर के शुभांगी की हत्या कर दी. इस के बाद जल्दी से उस के मोबाइल फोन के दोनों सिम निकाल कर उसी की स्कूटी से भाग निकला. स्कूटी उस ने पुणे के रेलवे स्टेशन पर पार्किंग में खड़ी कर दी और ट्रेन से कोल्हापुर चला गया.

विस्तृत पूछताछ के बाद विजय कुमार शिंदे ने उस के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस तरह एकतरफा प्यार करने वाला विश्वास अपनी सही जगह पर पहुंच गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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