नोटों की बारिश का झांसा

हमारे आसपास बहुत से लोग सज्जन और भोलेभाले होते हैं, जो किसी की भी बातों में आ जाते हैं और ठगी का शिकार हो जाते हैं. हाल ही में ऐसी अनेक घटनाएं घटी हैं.

पहली घटना

छत्तीसगढ़ के रतनपुर, बिलासपुर में लड़कियों को दैवीय शक्ति से पैसों की बारिश होने का झांसा दे कर पूजापाठ करने के नाम पर ठगी की गई.

दूसरी घटना

‘चांदी ले कर आओ उसे हम सोना बना देंगे,’  कह कर जिला कोरबा के पाली थाना इलाके में 2 लोगों ने कई औरतों को ठग लिया.

तीसरी घटना

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के कटोरा तालाब थाना इलाके के तहत रुपयों को दोगुना बनाने का झांसा दे कर ठगी कर ली गई.

ये कुछ घटनाएं बताती हैं कि आज के पढ़ेलिखे समाज में भी लगातार ठगी की घटनाएं हो रही हैं. इस का सीधा सा मतलब यह है कि 21वीं सदी में भी वही हालात हैं, जो कई साल पहले हुआ करते थे. आखिर इस के पीछे वजह क्या है और इसे कैसे रोका जा सकता है?

रुपए की बरसात

2 नाबालिग लड़कियों को दैवीय शक्ति से पैसों की बारिश होने का झांसा दे कर पूजापाठ करने और फिर रेप करने वाले 4 आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया. पुलिस की अपील है कि झांसा देने वाले ऐसे लोगों से सभी को सावधान रहना चाहिए, जिस से भविष्य में ऐसी घटना न हो.

दरअसल, हुआ यह था कि छत्तीसगढ़ के रतनपुर थाना इलाके के तहत 14 फरवरी, 2024 को पीडि़ता के परिवार द्वारा रिपोर्ट दर्ज की गई कि उन के गांव के 2 लोगों द्वारा उन्हें बताया गया था कि एक ठाकुर बाबा हैं, जो कुंआरी कन्याओं के साथ पूजापाठ करते हैं, जिस से पैसा बरसने लगता है.

इस झांसे में आ कर वे लोग रतनपुर के मदनपुर इलाके में एक घर में आए, जहां पूजापाठ के बाद बाबा द्वारा उन बच्चियों को अकेले कमरे में ले जा कर  जिस्मानी शोषण किया गया. अपने घर जाने पर उन बच्चियों ने यह बात अपने परिवार वालों को बताई, जिस पर उन के द्वारा थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई.

थाना रतनपुर में पुलिस टीम गठित कर संदेहियों को लोकल मुखबिर के आधार पर आरोपियों का पता लगाकर गिरफ्तारी के लिए 3 अलगअलग टीमें बनाई गईं और 4 आरोपियों को बालपुर, भाठागांव थाना सरसींवा जिला सारंगढ़, बिलाईगढ़ व लिगिंयाडीह और मदनपुर जिला बिलासपुर से गिरफ्तार किया गया.

पुलिस से यह भी जानकारी मिली कि सारंगढ़ बिलाईगढ़ जिले के बाशिंदे धनिया बंजारे और हुलसी रात्रे तकरीबन 2 महीने पहले से 2 अलगअलग जगह की नाबालिग बच्चियों और उन के मातापिता को कुंआरी लड़की की पूजा करा कर और उस के ऊपर दैवीय शक्ति बैठाने से लाखोंकरोड़ों रुपए की बारिश होती है कह कर अपने विश्वास में लिया गया.

11 फरवरी, 2024 को उन 2 नाबालिग बच्चियों को उन के परिवार के साथ बिलासपुर बसस्टैंड ले कर गए और वहां पूजा करने वाले पंडित कुलेश्वर राजपूत उर्फ पंडित ठाकुर और उन के साथी कन्हैया से मिलवा कर उन के द्वारा ही पूजापाठ करा कर पैसे बरसाने वाली बता कर मुलाकात कराई गई, जहां से वे लोग उन दोनों नाबालिग बच्चियों को मदनपुर रानीगांव के पास गणेश साहू के मकान में ले कर गए. वहां सभी ने गणेश साहू के घर खाना खाया.

बाद में पंडित कुलेश्वर ठाकुर उन दोनों नाबालिग बच्चियों में से एक बच्ची को मकान के अंदर कमरे में ले गए और पूजा के बहाने उस लड़की के साथ जबरदस्ती जिस्मानी संबंध बनाया और उस घटना के बारे में किसी को बताने पर जान से मारने की धमकी देते हुए कमरे के बाहर छोड़ दिया.

इसी तरह दूसरी नाबालिग लड़की को भी पूजा कराने के बहाने अंदर कमरे में ले जा कर जबरदस्ती रेप किया. इस के बाद पंडित कुलेश्वर ठाकुर द्वारा उन लड़कियों के परिवार वालों को बताया गया कि पूजापाठ से महज 2-4 हजार रुपए की ही बारिश हो पाई है और पैसे दे दिए.

दोनों नाबालिग बच्चियां इस घटना से इतनी ज्यादा डरीसहमी थीं कि वे अपने परिवार वालों को कुछ भी नहीं बता पाईं.

पर बाद में बिलासपुर बसस्टैंड से अपने घर लौटते समय इस घटना के संबंध में दोनों नाबालिग लड़कियों ने अपने परिवार को बताया. रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने भारतीय दंड विधान की धाराओं के तहत मामला बना कर आरोपियों को गिरफ्तार कर उन्हें जेल भेज दिया.

 

जुनून में हो रहे खून

महाराष्ट्र के पुणे शहर में 21 जनवरी, 2024 को एक सिरफिरे आशिक ने प्यार का विरोध करने पर अपनी प्रेमिका की मां की गला घोंट कर हत्या कर दी. कत्ल के लिए उस ने कुत्ते की बैल्ट का इस्तेमाल किया. प्रेमिका की शिकायत पर पुलिस ने केस दर्ज कर के आरोपी को गिरफ्तार कर लिया.

यह वारदात पुणे के पाषाण सुस रोड पर बनी एक सोसाइटी में हुई. वहां 58 साल की वर्षा अपनी 22 साल की बेटी मृण्मयी के साथ रहती थीं. जनवरी महीने की पहली तारीख को वर्षा के पति की मौत हो गई थी. उन की बेटी एक कंप्यूटर इंजीनियर है, लेकिन 1 जनवरी को पिता की मौत के बाद उस ने अपनी नौकरी छोड़ दी थी.

मृण्मयी की तकरीबन 7 महीने पहले एक डेटिंग एप पर शिवांशु के साथ मुलाकात हुई थी. फिर वे दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे थे, लेकिन कुछ महीने बाद ही मृण्मयी को पता चला कि उस का प्रेमी डिलीवरी बौय है.

मृण्मयी की मां वर्षा उन दोनों के रिश्ते के खिलाफ थीं. वे लड़के की नौकरी और माली हालत को अपनी हैसियत के बराबर नहीं समझाती थीं, इसलिए उन्होंने अपनी बेटी मृण्मयी से इस रिश्ते से बाहर निकलने के लिए कहा.

पिता को खो चुकी मृण्मयी ने अपनी मां की बात मान ली. उस ने शिवांशु से ब्रेकअप कर लिया और उस से मिलनाजुलना भी बंद कर दिया. इस बात से नाराज शिवांशु एक रात मृण्मयी के घर पहुंच गया.

मृण्मयी की मां वर्षा शिवांशु को पहले से जानती थीं, इसलिए उन्होंने दरवाजा खोल कर उसे अंदर बुला लिया. घर में घुसने के बाद शिवांशु ने पहले तो मां को शादी के लिए मनाने की कोशिश की, लेकिन जब वे नहीं मानीं, तो उस ने कुत्ते की बैल्ट से गला घोंट कर उन की हत्या कर दी.

इसी तरह दिल्ली के रोहिणी इलाके में एक 24 साल के लड़के ने अपनी 19 साल की प्रेमिका की गला रेत कर हत्या करने की कोशिश की. बाद में खुद की भी जान ले ली.

दरअसल, अमित नाम का यह सिरफिरा आशिक उसी दफ्तर में काम करता था, जिस में लड़की काम करती थी. उसे लड़की से एकतरफा प्यार हो गया था. परेशान हो कर लड़की ने अमित से बात करना बंद कर दिया.

अमित यह बेरुखी सह नहीं सका. उस ने चाकू से लड़की पर हमला किया और उस का गला रेतने की कोशिश की. लेकिन औफिस के दूसरे लोगों ने उसे बचा लिया. फिर अमित ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया और फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली.

इस तरह के अपराध होने की वजह क्या है? दरअसल, आजकल हमारे पास अच्छी सोच विकसित करने के लिए कोई जरीया नहीं है. न हमारे पास वैसे लेखक हैं, जो समाज को सुधारने की बातें कहते हों या जिन के लेखन में कोई पैनापन झलकता हो. न हमारे पास पढ़ने के लिए वैसी किताबें हैं, जो हमें अच्छा नागरिक बनाएं.

हम बस विश्वास या कहें कि अंधविश्वास के सहारे चल रहे हैं. तभी हम कहते हैं कि धर्म ने ऐसा कहा, इसलिए यही सही है या प्यार ऐसे ही होता है और हम ऐसे ही प्यार करेंगे. इसी पर हमारा विश्वास है.

आज हमारे पास देखने के लिए जो फिल्म या सीरियल की कहानियां हैं, उन में तिकड़मबाजी, लालच और जबरदस्ती दिखाई जाती है. कुछ गिनीचुनी किताबें जो हम पढ़ते हैं, उन की कहानियों में भी आज इसी तरह के ही किरदार दिखाई देते हैं.

आज हमारे पास पढ़ने को बचा क्या है? लेदे कर एक मोबाइल है, जो सब के हाथों में होता है. हम उस में आंखें गड़ाए रखते हैं. उस में जो भी बेसिरपैर की बातें पढ़ने को मिलती हैं, वही हमारे मन में बैठती जाती हैं.

मोबाइल में ऐसी बेहूदा चीजें भी होती हैं, जिन का हमारी जिंदगी पर नैगेटिव असर पड़ता है. मगर हम उसे ही फौरवर्ड किए जाते हैं. इस में केवल विश्वास को बढ़ावा दिया जाता है. बस, इसी विश्वास के आधार पर हमारी सोच विकसित होती है. हम वैसा ही करने लग जाते हैं, जैसा हमें समझाया जा रहा है.

गलती हमारी नहीं, बल्कि गलती है हमारे माहौल की. गलती है समाज के बदलते हुए नजरिए की जिस ने हमें तिकड़मबाजी, लालच, बेईमानी जैसी बुराइयां सिखाई हैं.

आज कुछ पत्रिकाएं हैं, जो अच्छी सोच को समाज सुधारने का आधार मानती हैं. दिल्ली प्रैस की पत्रिकाएं ऐसी ही हैं, मगर समस्या यह है कि हम पढ़ने के लिए समय ही नहीं निकालते हैं. हम मोबाइल में लगे रहते हैं.

जब तक हम मोबाइल के जंजाल से पीछा नहीं छुड़ाएंगे, तब तक कुछ भी सही होने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?

पति-पत्नी के रिश्ते को किया बदनाम

दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना शाहीनबाग के अंतर्गत नई बस्ती ओखला के रहने वाले कपिल की ससुराल उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के आसफाबाद में थी.

करीब 3 साल पहले किसी बात को ले कर उस का अपनी पत्नी खुशबू से विवाद हो गया था. तब खुशबू अपने मायके चली गई थी और वापस नहीं लौटी थी. इतना ही नहीं, ढाई साल पहले खुशबू ने फिरोजाबाद न्यायालय में कपिल के खिलाफ घरेलू हिंसा व गुजारा भत्ते का मुकदमा दायर कर दिया था.

कपिल हर तारीख पर फिरोजाबाद कोर्ट जाता था और तारीख निपटा कर देर रात दिल्ली लौट आता था. 10 फरवरी, 2020 को भी वह इसी मुकदमे की तारीख के लिए दिल्ली से फिरोजाबाद आया था. वह रात को घर नहीं पहुंचा तो घर वालों ने उसे 11 फरवरी की सुबह फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद मिला. इस से घर वाले परेशान हो गए. उन्होंने 11 फरवरी की शाम तक कपिल का इंतजार किया. इस के बाद उन की चिंता और भी बढ़ गई.

12 फरवरी को कपिल की मां ब्रह्मवती, बहन राखी, मामा नेमचंद और मौसी सुंदरी फिरोजाबाद के लिए निकल गए. कपिल की ससुराल वाला इलाका थाना रसूलपुर क्षेत्र में आता है, इसलिए वे सभी थाना रसूलपुर पहुंचे और कपिल के रहस्यमय तरीके से गायब होने की बात बताई.

थाना रसूलपुर से उन्हें यह कह कर थाना मटसैना भेज दिया गया कि कपिल कोर्ट की तारीख पर आया था और कोर्ट परिसर उन के थानाक्षेत्र में नहीं बल्कि थाना मटसैना में पड़ता है. इसलिए वे सभी लोग उसी दिन थाना मटसैना पहुंचे, लेकिन वहां भी उन की बात गंभीरता से नहीं सुनी गई. ज्यादा जिद करने पर मटसैना पुलिस ने कपिल की गुमशुदगी दर्ज कर ली. गुमशुदगी दर्ज कर के उन्हें थाने से टरका दिया. इस के बाद भी वे लोग कपिल की फिरोजाबाद में ही तलाश करते रहे.

इसी बीच 15 फरवरी की दोपहर को किसी ने थाना रामगढ़ के बाईपास पर स्थित हिना धर्मकांटा के नजदीक नाले में एक युवक की लाश पड़ी देखी. इस खबर से वहां सनसनी फैल गई. कुछ ही देर में भीड़ एकत्र हो गई. इसी दौरान किसी ने इस की सूचना रामगढ़ थाने में दे दी.

कुछ ही देर में थानाप्रभारी श्याम सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने शव को नाले से बाहर निकलवाया. मृतक के कानों में मोबाइल का ईयरफोन लगा था.

पुलिस ने युवक की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन वहां मौजूद लोगों में से कोई भी उसे नहीं पहचान सका. पुलिस ने उस अज्ञात युवक की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय फिरोजाबाद भेज दी.

कपिल की मां ब्रह्मवती और बहन राखी उस समय फिरोजाबाद में ही थीं. शाम के समय जब उन्हें बाईपास स्थित नाले में पुलिस द्वारा किसी अज्ञात युवक की लाश बरामद किए जाने की जानकारी मिली तो मांबेटी थाना रामगढ़ पहुंच गईं. उन्होंने थानाप्रभारी श्याम सिंह से अज्ञात युवक की लाश के बारे में पूछा तो थानाप्रभारी ने उन्हें फोन में खींचे गए फोटो दिखाए.

फोटो देखते ही वे दोनों रो पड़ीं, क्योंकि लाश कपिल की ही थी. इस के बाद थानाप्रभारी ब्रह्मवती और उस की बेटी राखी को जिला अस्पताल की मोर्चरी ले गए. उन्होंने वह लाश दिखाई तो दोनों ने उस की शिनाख्त कपिल के रूप में कर दी. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने भी राहत की सांस ली.

थानाप्रभारी ने शव की शिनाख्त होने की जानकारी एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह को दे दी और उन के निर्देश पर आगे की काररवाई शुरू कर दी.

थानाप्रभारी श्याम सिंह ने मृतक कपिल की मां ब्रह्मवती और बहन राखी से बात की तो उन्होंने बताया कि कपिल की पत्नी खुशबू चरित्रहीन थी.

इसी बात पर कपिल और खुशबू के बीच अकसर झगड़ा होता था, जिस के बाद खुशबू मायके में आ कर रहने लगी थी. राखी ने आरोप लगाया कि खुशबू ने ही अपने परिवार के लोगों से मिल कर उस के भाई की हत्या की है.

पुलिस ने राखी की तरफ से मृतक की पत्नी खुशबू, सास बिट्टनश्री, साले सुनील, ब्रजेश, साली रिंकी और सुनील की पत्नी ममता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

चूंकि रिपोर्ट नामजद थी, इसलिए पुलिस आरोपियों की तलाश में जुट गई. पुलिस ने मृतक की पत्नी खुशबू व उस की मां को हिरासत में ले लिया. उन से कड़ाई से पूछताछ की गई. खुशबू से की गई पूछताछ में पुलिस को कोई खास जानकारी हाथ नहीं लगी, बस यही पता चला कि कपिल पत्नी के चरित्र पर शक करता था.

फिर भी पुलिस यह समझ गई थी कि एक अकेली औरत कपिल का न तो मर्डर कर सकती है और न ही शव घर से दूर ले जा कर नाले में फेंक सकती है. पुलिस चाहती थी कि कत्ल की इस वारदात का पूरा सच सामने आए.

इस बीच जांच के दौरान पुलिस को एक अहम सुराग हाथ लगा. किसी ने थानाप्रभारी को बताया कि खुशबू चोरीछिपे अपने प्रेमी चंदन से मिलती थी. दोनों के नाजायज संबंधों का जो शक किया जा रहा था, उस की पुष्टि हो गई.

जाहिर था कि हत्या अगर खुशबू ने की थी तो कोई न कोई उस का संगीसाथी जरूर रहा होगा. इस बीच पुलिस की बढ़ती गतिविधियों और खुशबू को हिरासत में लिए जाने की भनक मिलते ही खुशबू का प्रेमी चंदन और उस का साथी प्रमोद फरार हो गए.

इस से उन दोनों पर पुलिस को शक हो गया. उन की सुरागरसी के लिए पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. मुखबिर की सूचना पर घटना के तीसरे दिन पुलिस ने खुशबू के प्रेमी चंदन व उस के साथी प्रमोद को कनैटा चौराहे के पास से हिरासत में ले लिया. दोनों वहां फरार होने के लिए किसी वाहन का इंतजार कर रहे थे.

थाने ला कर दोनों से पूछताछ की गई. थाने में जब चंदन और प्रमोद से खुशबू का आमनासामना कराया गया तो तीनों सकपका गए. इस के बाद उन्होंने आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया.

अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने खुशबू, उस के प्रेमी चंदन उर्फ जयकिशोर निवासी मौढ़ा, थाना रसूलपुर, उस के दोस्त प्रमोद राठौर निवासी राठौर नगर, आसफाबाद को कपिल की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.

उन की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त रस्सी, मोटा सरिया व मोटरसाइकिल बरामद कर ली. खुशबू ने अपने प्यार की राह में रोड़ा बने पति कपिल को हटाने के लिए प्रेमी व उस के दोस्त के साथ मिल कर हत्या का षडयंत्र रचा था. खुशबू ने पति की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी-

दक्षिणपूर्वी दिल्ली की नई बस्ती ओखला के रहने वाले कपिलचंद्र  की शादी सन 2015 में खुशबू के साथ हुई थी. शादी के डेढ़ साल तक सब कुछ ठीकठाक रहा. कपिल की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. करीब 3 साल पहले जैसे उस के परिवार को नजर लग गई. हुआ यह कि खुशबू अकसर मायके चली जाती थी. इस से कपिल को उस के चरित्र पर शक होने लगा. इस के बाद पतिपत्नी में तकरार शुरू हो गई.

पतिपत्नी में आए दिन झगड़े होने लगे. गुस्से में कपिल खुशबू की पिटाई भी कर देता था. गृहक्लेश के चलते खुशबू अपने बेटे को ले कर अपने मायके में आ कर रहने लगी. ढाई साल पहले उस ने कपिल पर घरेलू हिंसा व गुजारा भत्ते के लिए फिरोजाबाद न्यायालय में मुकदमा दायर कर दिया.

मायके में रहने के दौरान खुशबू के अपने पड़ोसी चंदन से प्रेम संबंध हो गए थे. हालांकि चंदन शादीशुदा था और उस की 6 महीने की बेटी भी थी. कहते हैं

प्यार अंधा होता है. दोनों एकदूसरे को दिलोजान से चाहने लगे थे. मायके में रहने के दौरान चंदन खुशबू के पति की कमी पूरी कर देता था. लेकिन ऐसा कब तक चलता.

एक दिन खुशबू ने चंदन से कहा, ‘‘चंदन, हम लोग ऐसे चोरीछिपे आखिर कब तक मिलते रहेंगे. तुम मुझ से शादी कर लो. मैं अपने पति से पीछा भी छुड़ाना चाहती हूं. लेकिन वह मुझे तलाक नहीं दे रहा. अगर तुम रास्ते के इस कांटे को हटा दोगे तो हमारा रास्ता साफ हो जाएगा.’’

दोनों एकदूसरे के साथ रहना चाहते थे. चंदन को खुशबू की सलाह अच्छी लगी. इस के बाद खुशबू व उस के प्रेमी चंदन ने मिल कर एक षडयंत्र रचा.

मुकदमे की तारीख पर खुशबू और कपिल की बातचीत हो जाती थी.

खुशबू ने चंदन को बता दिया था कि कपिल हर महीने मुकदमे की तारीख पर फिरोजाबाद कोर्ट में आता है. 10 फरवरी को अगली तारीख है, वह उस दिन तारीख पर जरूर आएगा. तभी उस का काम तमाम कर देंगे.

कपिल 10 फरवरी को कोर्ट में अपनी तारीख के लिए आया. कोर्ट में खुशबू व कपिल के बीच बातचीत हो जाती थी. कोर्ट में तारीख हो जाने के बाद खुशबू ने उसे बताया, ‘‘अपने बेटे जिगर की तबीयत ठीक नहीं है. वह तुम्हें बहुत याद करता है. उस से एक बार मिल लो.’’

अपने कलेजे के टुकड़े की बीमारी की बात सुन कर कपिल परेशान हो गया और तारीख के बाद खुशबू के साथ अपनी ससुराल पहुंचा.

कपिल शराब पीने का शौकीन था. खुशबू के प्रेमी व उस के दोस्त ने कपिल को शराब पार्टी पर आमंत्रित किया. शाम को ज्यादा शराब पीने से कपिल नशे में चूर हो कर गिर पड़ा.

कपिल के गिरते ही खुशबू ने उस के हाथ पकड़े और प्रेमी चंदन व उस के साथी प्रमोद ने साथ लाई रस्सी से कपिल के हाथ बांधने के बाद उस के सिर पर मोटे सरिया से प्रहार कर उस की हत्या कर दी.

कपिल की हत्या इतनी सावधानी से की गई थी कि पड़ोसियों को भी भनक नहीं लगी. हत्या के बाद उसी रात उस के शव को मोटरसाइकिल से ले जा कर बाईपास के किनारे स्थित नाले में डाल दिया गया. 15 फरवरी को शव से दुर्गंध आने पर लोगों का ध्यान उधर गया.

एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह ने बताया कि कपिल की हत्या के मुकदमे में नामजद आरोपियों की भूमिका की जांच की जा रही है. जो लोग निर्दोष पाए जाएंगे, उन्हें छोड़ दिया जाएगा.

पुलिस ने तीनों हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने के बाद न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया. निजी रिश्तों में आई खटास के चलते खुशबू ने अपनी मांग का सिंदूर उजाड़ने के साथ पतिपत्नी के पवित्र रिश्ते को कलंकित कर दिया. वहीं कांच की चूडि़यों से रिश्तों को जोड़ने के लिए मशहूर सुहागनगरी फिरोजाबाद को रिश्तों के खून से लाल कर दिया.

इलाज का बहाना, दैहिक शोषण जारी

शहर हो या गांव चिकित्सा के नाम पर झाड़-फूंक ओझा गिरी और कभी चिकित्सा,  कभी ज्योतिष के नाम पर महिलाओं का दैहिक शोषण करने वाले नर पिशाच कम नहीं है. यह एक ऐसा पेशा बन चुका है जिसकी आड़ में अक्सर महिलाऔ के साथ यौन शोषण होता रहता है. ऐसी ही घटनाएं छत्तीसगढ़ के जिला कोरबा और जिला चांपा जांजगीर में घटित हुई है.

चांपा जांजगीर जिला के बम्हनीडीह थाना क्षेत्र के ग्राम पीपरदा में बद्री पटेल 30 वर्ष से अधिक समय से आसपास के लोगों का इलाज करता आ रहा था. इलाज के नाम पर झाड़-फूंक करना और मनोवैज्ञानिक ढंग से अशिक्षित गरीब आवाम को मूर्ख बनाना  पैसे ऐठना उसका काम था. इसके साथ ही इलाज के दरमियान मानसिक रूप से टूट चुके लोगों की आस्था और विश्वास का लाभ उठा वह महिलाओं, लड़कियों के साथ यौन शोषण करने लगा.

मामले पर से पर्दा 18 जून 2019 को उठा,जब चांपा जांजगीर जिला के नगरदा थाना की एक युवती इलाज के लिए बद्री पटेल के पिपरदा स्थित आवास पर पहुंची. युवती प्रभा ( काल्पनिक नाम ) अपने परिजनों के साथ पहुंची तो तो बद्री पटेल के घर पर इलाज कराने वालों की भीड़ जुटी हुई थी आस -पास के अनेक लोग जो की अधिकांश ग्रामीण अंचल के ही थे और जो चिकित्सकों बड़े -बड़े डॉक्टरों की फीस अदा करने में लाचार से यहां आए हुए थे.

प्रभा और उसके परिवार वालों ने सुना था बद्री पटेल लंबे समय से इलाज करता चला आ रहा है और उसके पास ऐसी दैविय शक्ति है कि झाड़-फूंक कर जो भी चीज देता है उसका सेवन करने से रोगी स्वस्थ हो जाता है. प्रभा को डौक्टरों ने किडनी प्रॉब्लम बताया था जो बहुत खर्च मांगता था और उसका मध्यवर्गीय परिवार किडनी के इलाज का लाखों रुपए खर्च करने बखत नहीं रखता था. सो बडी बड़ी आशा विश्वास लेकर बद्री पटेल के आवास पहुंचा था.

पूर्व मैं आ चुके मरीजों का यथा इलाज करके बद्री पटेल ने प्रभा की ओर रुख किया और पूछा – तुम्हें कैसा लग रहा है?

प्रभा  जैसा जवाब डौक्टरों को देती थी वैसा ही बताया बहुत कमजोरी हो गई है…

परिजनों ने भी बद्री पटेल को बताया डॉक्टर बता रहे हैं किडनी प्रौब्लम है… हम लोग बड़ा नाम सुनकर आपके पास आए हैं.

बद्री पटेल ने प्रभा की आंखें, नब्ज देखने के बाद घोषणा की-चिंता की कोई बात नहीं… मे इस लड़की को ठीक कर दूंगा.

उसके परिजनों ने यह सुना तो उनके चेहरे खिल उठे. बद्री पटेल बोला-मुझे इसके लिए साधना करनी होगी कुछ समय लड़की के साथ कमरे में एकांत में रहना होगा. यह ठीक हो जाएगी.

बद्री पटेल से प्रभावित परिजनों ने तत्काल स्वीकृति दे दी. वहीं पास के कमरे में प्रभा को ले गया और कमरा बंद कर दिया और उसके बाद उसने अपना असली चेहरा दिखाना प्रारंभ कर दिया. प्रभा को इलाज के नाम पर बहला फुसलाया और ठीक करने का आश्वासन देते हुए उसके कपड़े उतारने लगा.थोड़ी ही देर में वह समझ गई कि बुड्ढे की नीयत ठीक नहीं है तो उसने प्रतिकार किया. यह देख बद्री बोला तुम्हें इलाज कराना है कि नहीं…. प्रभा सहम गई इधर बद्री पटेल ने फिर प्रभा के कपड़े उतारने प्रारंभ कर दिए प्रभा ने विरोध किया तो उसका मुंह दबा दिया टीवी शुरू कर दिया ताकि शोर बाहर ना पहुंचे. प्रभा के लाख मना करने के बाद भी बद्री पटेल ने प्रभा का बलात्कार किया और आश्वस्त करता हुआ बोला,- देखो… लड़की यह इलाज की शुरुआत है जो हुआ किसी को नहीं बताना….

मगर जैसे ही प्रभा परिजनों के बीच पहुंची उसने साथ आई अपनी भाभी से सारी घटना रोते हुए बता दी. बद्री पटेल के हाथ पांव फूल गए इधर परिजनों ने उसे बहुत गालियां दी और थाना पहुंच थाना प्रभारी राजेश श्रीवास्तव से पूरी घटना को विस्तार पूर्वक बताया. पुलिस ने बद्री पटेल को तत्काल हिरासत में ले लिया और प्रभा की चिकित्सालीय जांच कराई गई. बम्हनीडीह थाना प्रभारी राजेश श्रीवास्तव ने हमारे संवाददाता को बताया- बुजुर्ग बद्री लंबे अरसे से झाड़ फूंक और इलाज कर रहा था. उसकी कुछ शिकायतें और भी मिली थी मगर सबूतों के अभाव में कभी एक्शन नहीं लिया गया. लड़की किडनी प्रॉब्लम से जूझ रही है उसके परिजनों ने साहस का परिचय देते हुए प्राथमिकी दर्ज कराई और पुलिस ने इलाज के नाम पर यौन शोषण करने वाले शख्स बद्री पटेल को जेल के सीखचों के पीछे भेज दिया है.

ऐसी ही घटना कोरबा जिला के कटघोरा थाना अंतर्गत ग्राम घरीपाखना में घटित हुई जहां एक झाड़ फूंक करने वाले बाबा बजरंगी दास ने झाड़-फूंक के नाम पर 6 वर्षों तक महिला के साथ अनाचार किया और जब महिला की नौकरी छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिला में लग गई तो उसकी नजर महिला की 16 वर्षीय लड़की पर गई जो कोरबा के हौस्टल में रहते हुए पढ़ाई कर रही थी. बजरंगी दास ने परिचय का लाभ उठाते हुए रमा  (काल्पनिक नाम)को अपने घर घुमाने के नाम पर ले गया और उसे डरा धमकाकर शारीरिक शोषण किया. महिला के घर लौटने पर रमा ने मां को सारी आपबीती बताई पीड़ित महिला बेटी को लेकर थाना कटघोरा पहुंची तो जांच के नाम पर उसे लौटा दिया अंततः महिला ने पुलिस अधीक्षक जिलाधीश से मिलकर संपूर्ण घटनाक्रम से अवगत कराया तब जाकर मामला दर्ज हुआ और बजरंगी को पुलिस ने गिरफ्त में ले लिया.

लालची मामा का शिकार हुई एक भांजी

मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले की सोहागपुर तहसील में जमीनों के दाम उम्मीद से कहीं ज्यादा बढ़े हैं, क्योंकि यह सैरसपाटे की मशहूर जगह पचमढ़ी के नजदीक है. इस के अलावा सोहागपुर से चंद किलोमीटर की दूरी पर एक और जगह मढ़ई तेजी से सैलानियों की पसंद बनती जा रही है. इस की वजह वाइल्ड लाइफ का रोमांच और यहां की कुदरती खूबसूरती है. सैलानियों की आवाजाही के चलते सोहागपुर में धड़ल्ले से होटल, रिसोर्ट और ढाबे खुलते जा रहे हैं.

दिल्ली के पौश इलाके वसंत विहार की रहने वाली 40 साला लीना शर्मा का सोहागपुर अकसर आनाजाना होता रहता था, क्योंकि यहां उस की 22 एकड़ जमीन थी, जो उस के नाना और मौसी मुन्नीबाई ने उस के नाम कर दी थी.

लीना शर्मा की इस जमीन की कीमत करोड़ों रुपए में थी, लेकिन इस में से 10 एकड़ जमीन उस के रिश्ते के मामा प्रदीप शर्मा ने दबा रखी थी. 21 अप्रैल, 2016 को लीना शर्मा खासतौर से अपनी जमीन की नपत के लिए भोपाल होते हुए सोहागपुर आई थी.

23 अप्रैल, 2016 को पटवारी और आरआई ने लीना शर्मा के हिस्से की जमीन नाप कर उसे मालिकाना हक सौंपा, तो उस ने तुरंत जमीन पर बाड़ लगाने का काम शुरू कर दिया.

दरअसल, लीना शर्मा 2 करोड़ रुपए में इस जमीन का सौदा कर चुकी थी और इस पैसे से दिल्ली में ही जायदाद खरीदने का मन बना चुकी थी. 29 अप्रैल, 2016 को बाड़ लगाने के दौरान प्रदीप शर्मा अपने 2 नौकरों राजेंद्र कुमरे और गोरे लाल के साथ आया और जमीन को ले कर उस से झगड़ना शुरू कर दिया.

प्रदीप सोहागपुर का रसूखदार शख्स था और सोहागपुर ब्लौक कांग्रेस का अध्यक्ष भी. झगड़ा इतना बढ़ा कि प्रदीप शर्मा और उस के नौकरों ने मिल कर लीना शर्मा की हत्या कर दी.

हत्या चूंकि सोचीसमझी साजिश के तहत नहीं की गई थी, इसलिए इन तीनों ने पहले तो लीना शर्मा को बेरहमी से लाठियों और पत्थरों से मारा और गुनाह छिपाने की गरज से उस की लाश को ट्रैक्टरट्रौली में डाल कर नया कूकरा गांव ले जा कर जंगल में गाड़ दिया.

लाश जल्दी गले, इसलिए इन दरिंदों ने उस के साथ नमक और यूरिया भी मिला दिया था. हत्या करने के बाद प्रदीप शर्मा सामान्य रहते हुए कसबे में ऐसे घूमता रहा, जैसे कुछ हुआ ही न हो. जाहिर है, वह यह मान कर चल रहा था कि लीना शर्मा के कत्ल की खबर किसी को नहीं लगेगी और जब उस की लाश सड़गल जाएगी, तब वह पुलिस में जा कर लीना शर्मा की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा देगा. लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया.

लीना शर्मा की जिंदगी किसी अफसाने से कम नहीं कही जा सकती. जब वह बहुत छोटी थी, तभी उस के मांबाप चल बसे थे, इसलिए उस की व उस की बड़ी बहन हेमा की परवरिश मौसी ने की थी.

मरने से पहले ही मौसी ने अपनी जमीन इन दोनों बहनों के नाम कर दी थी. बाद में लीना शर्मा अपनी बहन हेमा के साथ भोपाल आ कर परी बाजार में रहने लगी थी.

लीना शर्मा खूबसूरत थी और होनहार भी. लिहाजा, उस ने फौरेन ट्रेड से स्नातक की डिगरी हासिल की और जल्द ही उस की नौकरी अमेरिकी अंबैसी में बतौर कंसलटैंट लग गई. लेकिन अपने पति से उस की पटरी नहीं बैठी, तो तलाक भी हो गया. जल्द ही अपना दुखद अतीत भुला कर वह दिल्ली में ही बस गई और अपनी खुद की कंसलटैंसी कंपनी चलाने लगी.

40 साल की हुई तो लीना शर्मा ने दोबारा शादी करने का फैसला कर लिया, लेकिन शादी के पहले वह सोहागपुर की जमीन के झंझट को निबटा लेना चाहती थी, पर रिश्ते के मामा प्रदीप शर्मा ने उस के मनसूबों पर पानी फेर दिया.

लीना शर्मा की हत्या एक राज ही बन कर रह जाती, अगर उस के दोस्त उसे नहीं ढूंढ़ते. जब लीना शर्मा तयशुदा वक्त पर नहीं लौटी और उस का मोबाइल फोन बंद रहने लगा, तो भोपाल में रह रही उस की सहेली रितु शुक्ला ने उस की गुमशुदगी की खबर पुलिस कंट्रोल रूम में दी.

पुलिस ने मामले को गंभीरता से लेते हुए प्रदीप शर्मा से संपर्क किया, तो वह घबरा गया और भांजी के गुम होने की रिपोर्ट सोहागपुर थाने में लिखाई, जबकि वही बेहतर जानता था कि लीना शर्मा अब इस दुनिया में नहीं है. देर से रिपोर्ट लिखाए जाने से प्रदीप शर्मा शक के दायरे में आया और जमीन के झगड़े की बात सामने आई, तो पुलिस का शक यकीन में बदल गया.

मामूली सी पूछताछ में प्रदीप शर्मा ने अपना जुर्म कबूल कर लिया, लेकिन शक अब लीना शर्मा की बहन हेमा पर भी गहरा रहा है कि वह क्यों लीना शर्मा के गायब होने पर खामोश रही थी? कहीं उस की इस कलयुगी मामा से किसी तरह की मिलीभगत तो नहीं थी? इस तरफ भी पुलिस पड़ताल कर रही है, क्योंकि अब उस पर सच सामने लाने का दबाव बढ़ता जा रहा है.

लीना शर्मा के दिल्ली के दोस्त भी भोपाल आ कर पुलिस के आला अफसरों से मिले और सोहागपुर भी गए. हेमा के बारे में सोहागपुर के लोगों का कहना है कि वह एक निहायत ही झक्की औरत है, जिस की पागलों जैसी हरकतें किसी सुबूत की मुहताज नहीं. खुद उस का पति भी स्वीकार कर चुका है कि वह एक मानसिक रोगी है.

अब जबकि आरोपी प्रदीप शर्मा अपना जुर्म कबूल कर चुका है, तब कुछ और सवाल भी मुंहबाए खड़े हैं कि क्या लीना शर्मा का बलात्कार भी किया गया था, क्योंकि उस की लाश बिना कपड़ों में मिली थी और उस के जेवर अभी तक बरामद नहीं हुए हैं?

आरोपियों ने यह जरूर माना कि लीना शर्मा का मोबाइल फोन उन में से एक ने चलती ट्रेन से फेका था. लाश चूंकि 15 दिन पुरानी हो गई थी, इसलिए पोस्टमार्टम से भी बहुत सी बातें साफ नहीं हो पा रही थीं. दूसरे सवाल का ताल्लुक पुश्तैनी जायदाद के लालच का है कि कहीं इस वजह से तो लीना शर्मा की हत्या नहीं की गई है?

प्रदीप शर्मा ने अपनी भांजी के बारे में कुछ नहीं सोचा कि उस ने अपनी जिंदगी में कितने दुख उठाए हैं और परेशानियां भी बरदाश्त की हैं. लीना शर्मा अगर दूसरी शादी कर के अपना घर बसाना चाह रही थी तो यह उस का हक था, लेकिन उस की दुखभरी जिंदगी का खात्मा भी दुखद ही हुआ.

जब सलाखों के पीछे पहुंचा मृतक

कमरे में गहरा सन्नाटा पसरा था. कमरे में सिर्फ 3 लोग बैठे थे, एसपी (देहात) डा. ईरज राजा के सामने लोनी सर्किल के सीओ रजनीश कुमार उपाध्याय और लोनी बौर्डर थाने के थानाप्रभारी सचिन कुमार थे. पिछले 24 घंटे में उस पेचीदा मामले ने 3 अफसरों के दिमाग को हिला कर रख दिया था.

कत्ल की उस वारदात में कई ऐसे पेंच थे, जिस ने सवालों का अंबार खड़ा कर दिया था. उन्हीं उलझी हुई कडि़यों को जोड़ने के लिए तीनों अधिकारी माथापच्ची कर रहे थे. लेकिन अभी तक कोई ऐसा क्लू हाथ नहीं आ रहा था, जिस से कत्ल की इस वारदात का अंतिम सिरा हाथ आ सके.

20 नवंबर को लोनी के ए-105 इंद्रापुरी में रहने वाले मनीष त्यागी ने लोनी बौर्डर थाने में आ कर सूचना दी कि उस के घर के सामने खाली प्लौट में एक लाश पड़ी है.

इस सूचना पर लोनी बौर्डर थानाप्रभारी सचिन कुमार जब अपनी टीम के साथ वहां पहुंचे तो देखा कि वह किसी पुरुष की लाश थी. लाश बुरी तरह से जली हुई थी. खासकर लाश का चेहरा इतनी बुरी तरह तरह जला हुआ था कि उसे देख कर मरने वाले की पहचान कर पाना भी मुमकिन नहीं था.

पुलिस ने सब से पहले आसपास रहने वाले लोगों को बुला कर लाश की पहचान कराने की कोशिश की. लोगों से यह भी पूछा गया कि किसी घर से कोई लापता तो नहीं है.

लोगों ने लाश के कपड़ों व कदकाठी से उस की पहचान करने की कोशिश की, मगर पुलिस को इस काम में कोई सफलता नहीं मिली.

लाश की सूचना मिलने पर लोनी क्षेत्र के सीओ रजनीश कुमार उपाध्याय और एसपी (देहात) डा. ईरज राजा भी घटनास्थल पर पहुंच चुके थे.

सभी ने एक खास बात नोट की थी कि हत्यारे ने लाश के चेहरे व ऊपरी भाग को ही जलाने का प्रयास किया था. धड़ से नीचे का हिस्सा व उस पर पहने हुए कपड़े सहीसलामत थे.

लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने से पहले पुलिस ने जब उस के पहने हुए कपड़ों की तलाशी ली तो आश्चर्यजनक रूप से उस में से डेढ़ सौ रुपए तथा एक आधार कार्ड बरामद हुआ.

आधार कार्ड मिलने के बाद पुलिस वालों की आंखें चमक उठीं. मृतक की जेब से जो आधार कार्ड मिला था, उस के मुताबिक मृतक 40 वर्षीय सुदेश कुमार पुत्र रामपाल था, जिस के निवास का पता मकान नंबर 331, गली नंबर 4, फेस -4 शिवविहार, करावल नगर, पूर्वी दिल्ली था.

एसपी (देहात) के आदेश पर एसएसआई प्रदीप शर्मा के नेतृत्व में पुलिस की एक टीम को उत्तरपूर्वी दिल्ली के करावल नगर में उक्त पते पर भेजा.

पुलिस को वहां सुदेश की पत्नी अनुपमा मिली. पुलिस ने जब अनुपमा से उस के पति के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के पति एक दिन पहले किसी काम से बाहर गए हैं और अब तक लौट कर नहीं आए.

आशंकित अनुपमा ने जब पुलिस से इस पूछताछ का कारण जानना चाहा तो पुलिस को बताना पड़ा कि उन्हें लोनी बौर्डर के इंद्रापुरी इलाके में एक जली हुई लाश मिली है जिस की जेब में वह आधार कार्ड मिला है जिस की वजह से वो उनके घर पहुंची है.

‘‘हांहां, लाश उन्हीं की होगी, क्योंकि वह आधार कार्ड हमेशा अपनी जेब में रखते थे.’’ कहते हुए अनुपमा ठीक उसी तरह दहाड़ें मार कर रोने लगी, आमतौर पर जैसे एक औरत अपने पति की मौत के बाद विलाप करती है.

‘‘देखिए, आप रोना बंद कीजिए क्योंकि मरने वाले की जेब से जो आधार कार्ड मिला है वह आप के पति का है इसलिए पहले आप लाश की पहचान कर दीजिए. …हो सकता है जो शव मिला है वह आप के पति का न हो,’’ कहते हुए दिलासा दे कर एसएसआई प्रदीप शर्मा अनुपमा व उस के बेटे को अपने साथ ले गए.

तब तक थानाप्रभारी सचिन कुमार, एसपी (देहात) डा. ईरज राजा व सीओ उपाध्याय के कहने पर शव का पंचनामा तैयार कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. एसएसआई प्रदीप शर्मा अनुपमा व उस के बेटे को ले कर वहीं पहुंच गए.

उन्होंने जब अनुपमा को जली हुई अवस्था में मिला शव दिखाया तो अनुपमा का विलाप और भी बढ़ गया, क्योंकि उस ने शव देखते ही हृदयविदारक ढंग से रोना शुरू कर दिया था.

अब जबकि लाश की पहचान सुदेश कुमार के रूप में हो चुकी थी और उस की पत्नी ने ही पहचान की थी, इसलिए पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए डाक्टरों के सुपुर्द कर दिया. उसी दिन शव का पोस्टमार्टम हो गया और पुलिस ने सुदेश का शव उस की पत्नी अनुपमा के सुपुर्द कर दिया. अनुपमा ने उसी शाम अपने परिजनों व जानपहचान वालों की मौजूदगी में शव का अंतिम संस्कार भी कर दिया.

सवाल था कि सुदेश की हत्या क्यों और किस ने की है और शव को इतनी दूर ले जा कर ठिकाने लगाने व उस की पहचान मिटाने का काम किस ने किया है? इस गुत्थी को सुलझाने के लिए गहन जांचपड़ताल की जरूरत थी.

इसलिए डा. ईरज राजा ने सीओ रजनीश कुमार उपाध्याय के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. टीम में थानाप्रभारी सचिन कुमार, एसएसआई प्रदीप शर्मा, एसआई अमरपाल सिंह, ब्रजकिशोर गौतम, कृष्ण कुमार, हैडकांस्टेबल उदित कुमार, राजीव कुमार, अरविंद कुमार, महिला कांस्टेबल कविता, एसओजी के हैडकांस्टेबल अरुण कुमार, नितिन कुमार, पंकज शर्मा व अनिल सिंह आदि को शामिल किया गया.

पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू कर दी थी, इस के लिए सब से पहले पुलिस टीम ने सुदेश कुमार की जन्म कुंडली खंगालनी शुरू की. क्योंकि आमतौर पर जब कातिल गुमनाम हो तो कत्ल का सुराग मरने वाले की जन्म कुंडली में ही छिपा होता है.

पुलिस की टीम ने सुदेश कुमार की पत्नी, उस के बेटे व आसपड़ोस के लोगों से जा कर पूछताछ शुरू की तो चौंकाने वाली जानकारी सामने आई. दरअसल, जिस सुदेश के कातिल को पुलिस तलाश कर रही थी, उस के बारे में जानकारी मिली कि वो तो खुद एक कातिल है और इस समय पैरोल पर है.

दरअसल अपने घर में ही परचून की दुकान चलाने वाले सुदेश के परिवार में पत्नी अनुपमा के अलावा 2 बच्चे थे. 17 साल का बड़ा बेटा सुनील और 13 साल की एक बेटी वंशिका. लेकिन बेटी इलाके के खराब माहौल के कारण गंदी सोहबत का शिकार हो गई और कम उम्र में ही उस के इलाके के किशोर लड़कों से प्रेम संबध बन गए.

सुदेश व उस की पत्नी ने बेटी को कई बार डांटफटकार कर उसे समझाना चाहा, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ. एक दिन ऐसा हुआ कि सुदेश की बेटी इलाके के एक युवक के साथ घर से भाग गई.

इस के कारण इलाके में उन की बहुत बदनामी हुई. काफी भागदौड़ के बाद बेटी घर तो वापस आ गई, लेकिन अपमान का घूंट सुदेश से पिया नहीं गया.

उस ने इस घटना के बाद मार्च 2018 में वंशिका की हत्या कर उस के शव को मंडोला में आवासविकास कालोनी के पास खाली जमीन में फेंक दिया. इस के बाद उस ने करावल नगर थाने में बेटी की गुमशुदगी की भादंवि की धारा 363 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

बाद में वंशिका का शव बरामद होने के बाद पुलिस ने जांचपड़ताल के बाद सुदेश को अपनी बेटी की हत्या के आरोप में जेल भेज दिया था. तभी से सुदेश मंडोली जेल में बंद था.

लेकिन 2021 को कोरोना की दूसरी लहर में जब सरकार ने विचाराधीन कैदियों को पैरोल पर छोड़ने का फैसला किया तो 21 मई को सुदेश को भी अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया गया था. उसी वक्त से सुदेश अपने बच्चों के बीच था.

21 नवंबर को सुदेश की पैरोल अवधि खत्म हो गई थी. वह जेल में पेश होने के लिए गया, मगर वहां किसी कानूनी अड़चन के कारण उसे जेल में नहीं लिया गया और उसे 22 दिसंबर, 2021 दूसरी डेट पर जेल में पेश होने के लिए कहा गया.

लेकिन इसी बीच किसी ने बेदर्दी से सुदेश की हत्या कर दी. ऐसा कौन था, जिस से सुदेश की ऐसी दुश्मनी थी कि वह उस की इतनी बेदर्दी के साथ हत्या कर देगा.

यह सब जानने के लिए पुलिस ने सुदेश की पत्नी व उस के जानपहचान वालों से खूब कुरेद कर पूछताछ की, मगर सुदेश की हत्या का कारण व उस के कातिल का कोई सुराग नहीं मिल सका.

पुलिस को न तो किसी से सुदेश की दुश्मनी का सुराग मिल रहा था, न ही किसी से लेनदेन के विवाद की खबर मिल रही थी. लेकिन एक ऐसी बात जरूर थी, जिस के कारण जांच की कवायद से जुड़े एसपी देहात डा. ईरज राजा, सीओ रजनीश उपाध्याय और थानाप्रभारी सचिन कुमार उस पर घंटों से माथापच्ची कर रहे थे.

दरअसल, गहराई से पड़ताल करने के बाद कुछ ऐसे सवाल उभरे थे जिन का पुलिस को जवाब ढूंढना था. पुलिस को लाश की जेब से सुदेश कुमार का आधार कार्ड तो मिल गया था, लेकिन जो एक बात हैरान कर रही थी, वह यह कि लाश बेशक बुरी तरह जली हुई थी, लेकिन जेब में पड़ा आधार कार्ड बिलकुल सहीसलामत था, जिसे देखने से लगता था कि शायद यह कार्ड किसी ने आग बुझने के बाद लाश की जेब में डाल दिया हो.

बस यही बात थी जो पुलिस को लगातार खटक रही थी. क्योंकि अगर किसी ने सुदेश की हत्या करने के बाद उस के चेहरे को इसलिए जलाया था कि उस की पहचान न हो सके तो भला वह कातिल उस की जेब में आधार कार्ड क्यों छोड़ेगा.

दोनों ही बातें एकदम विरोधाभासी लग रही थीं और शक पैदा कर रही थीं. शक का एक दूसरा कारण और भी था. क्योंकि सुदेश की मौत के बाद जब उस के शव का पोस्टमार्टम हो गया तथा उस का अंतिम संस्कार हो गया तो 3 दिन बाद से ही उस की पत्नी लोनी बौर्डर थाने में आ कर पुलिस से सुदेश की मौत का डेथ सर्टिफिकेट देने की मांग करने लगी.

जिस महिला के पति की मौत होती है वह तो महीनों तक अपने गम व सदमे से उबर नहीं पाती, लेकिन दूसरी तरफ अनुपमा हर रोज थाने आ कर पुलिस से अपने पति की मौत का सर्टिफिकेट देने की मांग कर रही थी.

पुलिस के लिए उस का व्यवहार बड़ा अटपटा था. पुलिस ने जब उस से कारण पूछा तो वह कहने लगी कि उसे मंडोली जेल में सर्टिफिकेट देना है और उन्हें सुदेश के सरेंडर करने की डेट से पहले यह बताना है कि उस की मौत हो चुकी है.

अनुपमा का यह रवैया भी हैरान कर रहा था. इसलिए एसपी देहात ने इस केस की तफ्तीश को आगे बढ़ाने के लिए टैक्निकल सर्विलांस टीम के साथसाथ मुखबिरों की मदद लेने का फैसला किया. क्योंकि उन्हें लगने लगा था कि सुदेश की हत्या के पीछे कोई गहरी साजिश हो सकती है.

सीओ उपाध्याय के निर्देश पर पुलिस की एक टीम ने गोपनीय ढंग से सुदेश के घर के आसपास लगे सीसीटीवी फुटेज को खंगालने का काम शुरू किया ताकि पता लगाया जा सके कि वारदात से पहले सुदेश कब और किस के साथ घर से गया था और उस ने कौन से कपड़े पहने थे.

संयोग से सुदेश के घर से कुछ ही दूर लगे एक सीसीटीवी कैमरे में ऐसी फुटेज मिल गई, जिस ने पूरे केस की तसवीर ही बदल दी.

सीसीटीवी कैमरे में 19 नवंबर, 2021 की रात को एक संदिग्ध शख्स नजर आया. यह शख्स एक साइकिल पर एक बड़ी सी बोरी ले कर जा रहा था. पुलिस ने सीसीटीवी में दिख रहे इस शख्स की पहचान पता करने की कोशिश की और मुखबिरों को भी यह तसवीर दिखाई. तब आसपास के लोगों ने पुलिस को बताया कि वह शख्स कोई और नहीं बल्कि खुद सुदेश कुमार था.

इस का मतलब था कि सुदेश कुमार मरा नहीं, बल्कि अब भी जिंदा है. तो फिर उस की साइकिल पर जो बोरी लदी थी, उस में वह क्या ले कर जा रहा था?

सीसीटीवी में सब से हैरान करने वाली बात यह दिखी कि आखिरी बार देर रात को करीब 11 बजे अपने घर से निकले सुदेश के शरीर पर वह कपड़े भी नहीं थे जो इंद्रापुरी में जली हालत में मिली लाश के शरीर पर थे, जिसे अनुपमा ने अपने पति की बताया था.

राज बहुत गहरा था. इसीलिए इस की तह में जाने के लिए पुलिस की टीम ने आसपास में रहने वाले कुछ लोगों को अपने विश्वास में ले कर सुदेश के घर पर नजर रखने के लिए लगा दिया.

पुलिस को 1-2 दिन में ही जानकारी मिली कि सुदेश वाकई मरा नहीं जिंदा है और अकसर देर रात में अपने घर चोरीछिपे आता है ताकि किसी को भनक न लग सके.

इतनी जानकारी मिलने के बाद पुलिस समझ गई कि यह एक बड़ी साजिश है इसीलिए पुलिस ने अब सुदेश की पत्नी के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा दिया.

पुलिस को फोन की सर्विलांस लगाने का फायदा मिला और एक ऐसा संदेश मिला जिस से पता चला कि सुदेश न सिर्फ जिंदा है बल्कि चोरीछिपे अपने परिवार से भी मिलता है.

इसी क्रम में वह 10 दिसंबर, 2021 की रात को अपने घर आया था और आसपास जाल बिछा कर खड़ी पुलिस टीम ने सुदेश को दबोच लिया. पुलिस ने उस की पत्नी अनुपमा को भी हिरासत में ले लिया.

दोनों को थाने ला कर उच्चाधिकारियों के सामने जब पूछताछ शुरू हुई तो एक ऐसे हत्याकांड की ऐसी कहानी सामने आई, जिस में मृतक मान कर पुलिस उस के कातिल को पकड़ने के लिए दिनरात एक कर रही थी लेकिन पता चला वह न सिर्फ जिंदा है बल्कि उस ने खुद को मरा साबित करने के लिए किसी और की हत्या कर उसे अपनी पहचान दे दी थी. और इस काम में उस की पत्नी ने उस की पूरी मदद की थी.

सुदेश व उस की पत्नी से पूछताछ में पता चला कि 22 दिसंबर को इसे वापस जेल जाना था. जब वह जेल में था तो उसे साथी कैदियों ने बताया था कि जिस तरीके के सबूत उस के खिलाफ हैं, उस के मुताबिक उसे सजा मिलनी तय थी और कम से कम उसे उम्रकैद की सजा मिलेगी.

जब 21 नवंबर को उसे जेल में नहीं लिया गया तो उस ने सोचा कि शायद ऊपर वाला भी नहीं चाहता कि वह जेल जाए. इस के बाद से ही उस ने इस बात पर दिमाग लगाना शुरू कर दिया कि कैसे जेल जाने से बचा जाए. कई दिन तक खूब दिमाग लगाया, लेकिन कोई तरकीब नहीं सूझी.

अचानक एक दिन टीवी पर एक फिल्म देख कर आइडिया मिल गया, जिस में जेल से भागे एक कैदी ने किसी आदमी की हत्या कर उसे अपने कपड़े पहना कर उस के चेहरे को जला दिया और पुलिस ने मान लिया कि कैदी मारा गया है.

यह आइडिया आते ही सुदेश ने दिमाग लगाना शुरू कर दिया कि वह खुद को इसी तरह जेल जाने से बचा सकता है. सुदेश ने जब अपनी पत्नी को दिल की बात बताई तो थोड़ी नानुकुर के बाद अनुपमा को भी यह बात पसंद आ गई. वैसे भी कौन पत्नी नहीं चाहेगी कि उस का पति जेल जाने से बच जाए.

काफी विचारविमर्श के बाद सुदेश व अनुपमा ने इस काम के लिए एक मजदूर का इंतजाम करने के लिए अपनी छत को ठीक कराने का बहाना बनाया. इस के लिए सुदेश 18 नवंबर, 2021 को लेबर चौक गया और अपनी कदकाठी के एक मजदूर, जिस का नाम दोमन रविदास था और वह बिहार के गया जिले के अतरी का रहने वाला था, को ले आया.

18 नवंबर को सुदेश ने पहले दिन अपनी छत की स्लैब डलवाई. मजदूर रविदास के कपडे़ काफी पुराने व फटी हालत में थे लिहाजा सुदेश ने उसे अपना ट्रैकसूट पहनने के लिए दे दिया जिस की जर्सी कौफी कलर की थी और लोअर नीले रंग का था.

अगले दिन भी काम होना था, इसलिए सुदेश ने रविदास को अगले दिन फिर आने के लिए कहा.

19 नवंबर को दोमन रविदास उसी के कपड़े पहन कर फिर काम पर आया. शाम होतेहोते जब काम खत्म हो गया तो शाम को दारू पार्टी के बहाने रोक लिया. दोनों ने शराब पीनी शुरू कर दी. इस दौरान सुदेश खुद कम शराब पीता रहा जबकि उस ने रविदास को बड़ेबड़े पैग पिलाने शुरू कर दिए.

रात करीब 9 बजे रविदास को खूब नशा हो गया. इस दौरान सुदेश और उस अनुपमा ने पहले ही तय कर लिया था कि उन्हें क्या करना है. इस दौरान उन्होंने चारपाई के पाये से रविदास के सिर पर ताबड़तोड़ वार कर हत्या कर दी.

यह बात बेटे सुनील को पता नहीं चले इसलिए उस ने सुनील को अपनी परचून की दुकान पर बैठने के लिए भेज दिया था.

सुदेश ने पहले ही तय कर लिया था कि वे रविदास की हत्या कर उसे सुदेश के रूप में अपनी पहचान देगा. इसीलिए एक दिन पहले उस ने अपना ट्रैकसूट रविदास को पहनने के लिए दिया था. खुद को वह दुनिया की निगाहों में मुर्दा करार दे सके, इस के लिए भी उस ने पूरी प्लानिंग कर ली थी.

सुदेश व अनुपमा को जब इत्मीनान हो गया कि रविदास की मौत हो चुकी है तो कमरे को पानी से साफ कर उस के शव को पहले एक पन्नी में लपेटा. उस के बाद उसे बोरी में भर दिया.

रात को करीब 11 बजे जब इलाके में सन्नाटा पसर गया और उस का बेटा भी सो गया तो सुदेश बोरे में भरे रविदास के शव को साइकिल पर रख कर लोनी बौर्डर थाना क्षेत्र की इंद्रापुरी कालोनी में खाली प्लौट में ले गया.

वहां शव को बोरी से निकाल कर उस के चेहरे और शरीर के ऊपरी हिस्से पर अखबार के कागज व टाट की बोरी रख कर जला दिया ताकि शव की पहचान न हो सके.

शव की पहचान सुदेश के रूप में कराने के लिए उस ने अपना आधार कार्ड रविदास की जेब में रख दिया था. पहले से तय योजना के मुताबिक सुदेश अपने घर गया और पत्नी को आ कर बताया कि जब पुलिस उस से रविदास के शव की शिनाख्त कराए तो वह उस की पहचान कर ले.

सुदेश की पूरी प्लानिंग थी कि वह रविदास को सुदेश साबित कर दे, इसलिए पत्नी के साथ बनी योजना के तहत वह इस के बाद चोरीछिपे देर रात में ही घर आता और इस के अलावा इधरउधर छिप कर अपना वक्त बिताता था.

10 दिसंबर को सुदेश ने अपनी पत्नी को फोन कर के कहा कि वह रात को घर आएगा घर की लाइट जला कर रखना. यदि सब कुछ ठीक हो तो गेट पर सफेद कपड़ा डाल देना. यह बात पुलिस ने सर्विलांस के दौरान सुन ली और पुलिस पहले से आरोपी की तलाश में उस के घर पहुंच गई और लाइट जला कर गेट पर सफेद कपड़ा डाल दिया.

सुदेश के पहुंचते ही पुलिस ने आरोपी व उस की पत्नी को दबोच लिया.

पूछताछ में सुदेश ने बताया कि जेल और सजा से बचने के लिए उस ने खौफनाक घटना को अंजाम दिया था. जेल जाने से बचने के लिए उस ने अपनी पत्नी के साथ मिल कर यह साजिश रची थी. लेकिन उस ने पहली भूल यह कर दी कि काफी प्रयास के बाद भी अपने ही कदकाठी के मजदूर को नहीं तलाश सका था.

सुदेश और अनुपमा की साजिश यह थी कि इस साजिश के पूरा होने पर वे दिल्ली छोड़ कर चले जाएंगे, लेकिन आखिरकार उस के बिना जले आधार कार्ड, सीसीटीवी कैमरे की तसवीरों और दूसरे सबूतों ने उस की खौफनाक साजिश का खुलासा कर दिया.

इस दौरान पुलिस ने करावल नगर थाने और मंडोली जेल से रिकौर्ड निकलवा कर पता कर लिया था कि सुदेश की हाइट 5 फुट 6 इंच है जबकि इंद्रापुरी इलाके में जो शव मिला था, उस की हाइट 5 फुट 3 इंच थी यानी 3 इंच कम.

इसी के बाद पुलिस ने सुदेश के घर की निगरानी शुरू की. उस की पत्नी के फोन को सर्विलांस पर लगाया और वह पुलिस की गिरफ्त में आ गया.

पुलिस ने सुदेश के साथ उस की पत्नी को भी डोमन रविदास की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर हत्या में प्रयुक्त चारपाई का पाया व शव को ठिकाने लगाने वाली साइकिल बरामद कर ली.

सुदेश व अनुपमा की गिरफ्तारी के बाद मुकदमे में भादंवि की धारा 201, 419, 420 व 120बी जोड़ कर उन्हें अदालत में पेश कर दिया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

दूसरी तरफ लोनी बौर्डर पुलिस ने मृतक मजूदर डोमन रविदास की करावल नगर थाने में दर्ज गुमशुदगी को अपने यहां ट्रांसफर करवा ली. रविदास के साथियों के साथ जा कर रविदास के बेटे ने थाना करावल नगर दिल्ली में जा कर घटना के 3 दिन बाद गुमशुदगी दर्ज कराई थी.

—कथा पुलिस की जांच और आरोपियों तथा पीडि़त परिवार से बातचीत पर आधारित

शोला बनी जवानी की आग

गीता की शादी शिवराज पाल से हो जरूर गई थी, लेकिन वह उस की जवानी की आग को बुझा नहीं पाता था. जब यह आग शोला बन कर भड़की तो…

उस दिन तारीख थी 10 मई, 2021. सुबह के 8 बज रहे थे. जालौन जिले के थाना रामपुरा प्रभारी इंसपेक्टर जे.पी. पाल थाने में ही मौजूद थे. उसी समय एक युवक ने थाने में प्रवेश किया. उस के बाल बिखरे थे और चेहरा तमतमाया हुआ था.  हाथ भी खून से सने थे. उसे उस हालत में देख कर जे.पी. पाल ने पूछा, ‘‘कहां से आए हो और तुम्हारे हाथ में यह खून कैसा?’’

‘‘ साहब, मैं रामपुरा कस्बा के सुभाष नगर में रहता हूं. मेरा नाम शिवराज पाल है. मैं ने अपनी पत्नी गीता का कत्ल कर दिया है. उस की लाश घर में पड़ी है. मैं अपना गुनाह कुबूल करने थाने आया हूं. आप मुझे गिरफ्तार कर लें.’’

कत्ल का नाम सुनते ही थानाप्रभारी चौंक पड़े. उन्होंने तत्काल उसे कस्टडी में ले लिया. फिर उस से पूछा, ‘‘तुम ने अपनी पत्नी का कत्ल क्यों किया?’’

‘‘साहब, वह बदचलन थी. हवस का भूत उस पर सवार रहता था. उस ने घर की इज्जत को दांव पर लगा दिया था. बीती शाम मैं पड़ोस के गांव में गया था. वहां रिश्तेदार के घर शादी थी. सुबह 4 बजे घर आया तो घर का दरवाजा अंदर से बंद था. कुंडी खटखटाई और आवाज लगाई. लेकिन पत्नी ने दरवाजा नहीं खोला.

‘‘बारबार कुंडी खटखटाने पर भी जब उस ने दरवाजा नहीं खोला तो मुझे उस पर शक हुआ. आधे घंटे बाद उस ने दरवाजा खोला, तो उस के चेहरे की रंगत उड़ी हुई थी. उस के बाल बिखरे थे. मैं समझ गया कि यार के साथ रंगरलियां मना रही थी. मैं ने उस से सवालजवाब किया तो वह मुझ से ही भिड़ गई. तब गुस्से में मैं ने उसे चापड़ से काट डाला.’’

चूंकि मामला जवान महिला की हत्या का था, अत: थानाप्रभारी जे.पी. पाल ने कत्ल की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी. उस के बाद कातिल शिवराज पाल को साथ ले कर उस के सुभाष नगर स्थित घर पहुंचे.  उस समय वहां भीड़ जुटी थी. घर के बाहर निर्माणाधीन मकान में मृतका गीता की लाश पड़ी थी. उस का कत्ल बड़ी बेरहमी से किया गया था. गरदन, पेट व पीठ पर 3 जख्म थे, जिस से खून रिस रहा था. मृतका की उम्र 33 साल के आसपास थी और उस का शरीर स्वस्थ था. शव के पास ही खून सना चापड़ पड़ा था, जिस से गीता की हत्या की गई थी. पुलिस ने आलाकत्ल चापड़ सुरक्षित कर लिया.

इंसपेक्टर जे.पी. पाल घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर जालौन के एसपी यशवीर सिंह, एएसपी राकेश सिंह तथा डीएसपी विजय आनंद आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा कातिल शिवराज से पूछताछ की. इस के अलावा पड़ोसियों तथा घर के अन्य लोगों से भी जानकारी ली. निरीक्षण तथा पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने थानाप्रभारी जे.पी. पाल को आदेश दिया कि वह शव का पंचनामा भर कर तत्काल पोस्टमार्टम भेजें तथा कातिल के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जेल भेजें.

आदेश पाते ही थानाप्रभारी ने मृतका गीता के शव का पंचनामा भरा, खून आलूदा मिट्टी का नमूना रासायनिक परीक्षण हेतु सुरक्षित किया और फिर शव को पोस्टमार्टम हेतु जालौन के जिला अस्पताल भिजवा दिया. चूंकि पत्नी के कातिल शिवराज पाल ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था और आला कत्ल चापड़ भी बरामद हो गया था.  अत: थानाप्रभारी जे.पी. पाल ने स्वयं वादी बन कर भादंवि की धारा 302 के तहत शिवराज पाल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उसे न्याय सम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में पति द्वारा बदचलन पत्नी की हत्या करने की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.

उत्तर प्रदेश के जनपद जालौन के कालपी कस्बा निवासी राजेश पाल की सब से छोटी बेटी थी गीता. गीता से बड़ी 2 बहनें थीं, उन का ब्याह हो चुका था. गीता अपनी दोनों बहनों से ज्यादा खूबसूरत थी.  युवावस्था में कदम रखते ही उस की सुंदरता में गजब का निखार आ गया था. यौवन के बोझ से लदी जब वह घर से गुजरती तो युवक उस की अदाओं पर मर मिट जाते थे.

18 बसंत पार करने के बाद राजेश पाल ने गीता की शादी जालौन जिले के कस्बा रामपुरा के मोहल्ला सुभाषनगर निवासी सूरज पाल के बेटे शिवराज पाल के साथ कर दी. शिवराज पाल औसत कदकाठी का सामान्य युवक था. शिवराज भी पिता के साथ खेतीबाड़ी करता था. सामान्य युवक को अगर चांद सी खूबसूरत बीवी मिल जाए तो उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ते. गीता को पा कर शिवराज भी फूला नहीं समा रहा था. सुहागरात को उस ने बीवी का घूंघट उठाया तो गीता का हसीन चेहरा अपलक निहारता रह गया.

सांचे में ढला गीता का शरीर इतना मादक था कि शिवराज सब्र न रख सका. वह बीवी के नाजुक अंगों को इस तरह चूमने लगा, जैसे अंधे के हाथ बटेर लग गई हो. फिर वह बिना बीवी की भावनाओं को जगाए उस के शबाब के सागर में उतर गया. जल्दबाजी का परिणाम यह हुआ कि गीता को अभी कामना के झोंकों ने छुआ ही था कि शिवराज के यौवन के पेड़ से झरझरा कर पत्ते गिर गए. गीता के सारे सपने रेत के महल की तरह ढह गए. शिवराज तो तृप्त हो गया, लेकिन गीता अतृप्त ही रह गई.

आने वाली अगली रातों में भी ऐसा ही होता रहा. गीता का बदन शीतल ही पड़ा रहता और शिवराज तब तक हांफ चुका होता. इस से गीता समझ गई कि पति उस के तन की प्यास बुझाने के काबिल नहीं है. समय धीरेधीरे आगे बढ़ने लगा. शिवराज की बांहों में गीता खुद को आधाअधूरा ही पाती थी. इसी तरह दिन बीतने लगे. इस बीच एक के बाद एक गीता ने 2 बेटों अनुज और वरुण को जन्म दिया. बच्चों के जन्म के बाद घर का खर्च बढ़ा तो शिवराज को उन के पालनपोषण की चिंता सताने लगी.  वह कस्बे में रह कर वह खेतीबाड़ी करता था. उस की आमदनी बहुत कम थी. खेतीकिसानी के बलबूते वह मनचाही जिंदगी नहीं जी सकता था. वह चाहता था कि कस्बे के अन्य युवकों की तरह वह भी शहर जा कर पैसा कमाए.

शिवराज पाल का एक रिश्तेदार राजू दिल्ली स्थित मदर डेयरी में काम करता था. एक बार राजू जब घर आया तो शिवराज ने उस से अपनी नौकरी लगवाने की बात कही. राजू अपने साथ उसे ले गया और मदर डेयरी में मजदूर के तौर पर उस की नौकरी लगवा दी.

शिवराज 10 हजार रुपए महीने में कमा लेता था. अपना खर्चा निकाल कर 5 हजार रुपए हर महीने बचा लेता था. यह पैसा वह गीता के हाथ पर रख देता था. इन पैसों से गीता बच्चों की पढ़ाई तथा घर का खर्च चलाती थी. गीता भी अब खुश थी. लेकिन उसे यह आधीअधूरी खुशी महीने 2 महीने में सिर्फ 2-3 दिन ही मिलती थी. शिवराज महीने 2 महीने में 2-3 दिन के लिए ही घर आता था. वे 2-3 रातें ही गीता को पति की बांहों में मचलने को मिलती थी. उन रातों में भी शिवराज ठीक से उस के शरीर को शीतल नहीं कर पाता था.

एक तो पति से मिलने वाला आधाअधूरा सुख, दूसरा लंबी जुदाई. गीता का मन बहकने लगा. वह अपनी देह की ख्वाहिशें पूरी करना चाहती थी. उस ने इस बारे में गहराई से विचार किया तो यह निर्णय लिया कि उसे अपनी कामनाओं का साथी किसी ऐसे युवक को बनाना चाहिए, जो एक तो उम्र में उस से छोटा हो, दूसरा उन के रिश्ते पर कोई शक न कर सके. गीता ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो अजय उस की नजरों में चढ़ गया.

अजय शिवराज का चचेरा भाई था. पड़ोस में ही रहता था. वह अविवाहित होने के साथ शरीर से हृष्टपुष्ट था. अजय गीता का बहुत सम्मान करता था और उस का कोई भी काम बिन कहे ही कर देता था. शिवराज के घर उस का बेधड़क आनाजाना था. 25 वर्षीय अजय दूध का व्यवसाय करता था. वह दूध डेयरी पर बैठता था और दूध की खरीदफरोख्त करता था. इस व्यवसाय से उसे अच्छी कमाई थी. वह बनसंवर कर रहता था और खूब खर्च करता था. गीता के बच्चे भी उस के साथ हिलमिल गए थे.

गीता की नजरों में देवर चढ़ा तो वह उस के साथ खूब हंसीमजाक करने लगी. अजय भी चंचल भाभी की बातों में खूब रस लेता. कभीकभी गीता हंसीमजाक में ऐसी बात कह देती, जिस से अजय झेंप जाता.  गीता के मन में पाप समाया तो वह अजय से कुछ ज्यादा ही खुलती चली गई. भाभी की आंखों में एक अजीब सी प्यास देख अजय भी समझ गया कि वह उस से कुछ चाहती है.

गीता ने उस की नजरों की भाषा पढ़ी तो नारी तन के गूढ़ रहस्य को जानने को उतावले अजय को बहाने से वह अपने शबाब की झलक दिखाने लगी.  कभी आंचल गिरा कर वक्षों की दूधिया घाटियां दिखा देती तो कभी गोरीगोरी रानें. जवानी का पहला फल चखने को उत्साहित अजय भाभी के शबाब की झलक देखता तो उस की आंखें सुलग उठतीं. गीता यही तो चाहती थी कि देवर की देह में आग भड़के.

जब गीता को लगा कि देवर भाभी की वासना का चूल्हा फूंकने को तैयार है तो उस ने एक प्लान बनाया. एक दोपहर जब बच्चे बुआ के घर गए थे और वह घर में अकेली थी तो उस ने अजय को फोन कर के घर बुलाया.  अजय भाभी के घर पहुंचा तो पाया वह चादर ओढ़े बैड पर लेटी है. अजय के अंदर आते ही गीता ने कहा, ‘‘अजय दरवाजा अंदर से बन्द कर दो.’’

अजय ने दरवाजा बंद किया और धड़कते दिल से भाभी के बगल में बैठ गया. गीता ने प्यार से अजय का हाथ पकड़ा और फिर प्यासे स्वर में बोली, ‘‘अजय, तुम्हारे भाई ने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी. जमीन की प्यास तभी बुझती है, जब उस पर हल चले और बरसात की तेज फुहारें पड़ें. तुम्हारे भाई से कुछ नहीं होता. मैं ब्याहता हो कर भी आधीअधूरी ही हूं. वह आग तो लगा देते हैं, लेकिन बुझा नहीं पाते. इसलिए तुम्हारी मदद मांग रही हूं.’’

अजय हतप्रभ था. भाभी इस अंदाज में पेश आएगी, उसे उम्मीद न थी. वह कुछ सोच पाता उस के पहले ही गीता फुसफुसाई, ‘‘देखो तो मेरे पास क्या नहीं है. लेकिन तुम्हारे भैया कभी भी मेरी प्यास नहीं बुझा सके. बताओ, मैं कहां जाऊं. घर की बात घर में ही रहेगी. इसलिए अपना दर्द तुम्हें सुना रही हूं.’’ कहने के साथ गीता अजय से लिपट गई.

जवानी के पायदान पर कदम रख चुके अजय के लिए तो यह सुनहरा मौका था. वह उस वक्त कुछ भी सोचने की स्थिति में नहीं था. एक प्यासी जवान देह उस से लिपटी हुई थी और कामनाओं की भीख मांग रही थी.  उस से भी रहा नहीं गया. अजय ने भी उसे बांहों में भर लिया. फिर तो कमरे में सीत्कार की आवाजें गूंजने लगीं और पूर्ण तृप्ति के बाद ही दोनों एकदूसरे से अलग हुए.

उस रोज के बाद देवरभाभी पाप की राह पर चलने लगे. गीता खेलीखाई थी तो अजय नौजवान. बिस्तर पर वह उसे जैसे नचाती थी, वह वैसा ही नाचता था. लगभग 2 साल तक दोनों का वासना का खेल बिना बाधा के चलते रहा.  कहते हैं पाप ज्यादा दिन छिपता नहीं है. गीता और अजय के साथ भी ऐसा ही हुआ. गीता को दिन में अजय का साथ पाने का मौका कम मिलता था, अत: वह रात को उसे घर बुला लेती थी.

एक रोज जेठानी सरला ने रात में अपनी छत से गीता और अजय को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. उस ने यह बात अपने पति मनोज तथा घर की अन्य महिलाओं को बताई. औरतों में कानाफूसी हुई तो कलयुगी भाभी की पापलीला की चर्चा पूरे मोहल्ले में होने लगी. शिवराज पाल को जब बीवी की बेहयाई पता चली तो उस ने गीता से जवाब तलब किया. उस ने त्रिया चरित्र का सहारा लिया, ‘‘जिन के पति परदेश में होते हैं, उन की पत्नियों को इसी तरह बदनाम किया जाता है. अजय घर आताजाता है, हमारा छोटामोटा काम कर देता है, मुझ से हंसबोल लेता है. बस जलने वालों के दिल पर सांप लोट गया और तुम्हारे कान भर दिए. वह मेरा रिश्ते में देवर है. क्या मुझे रिश्तों की समझ नही है?’’

शिवराज के पास कोई ठोस प्रमाण नहीं था. उसे बीवी की बात सुन कर चुप रह जाना पड़ा. लेकिन शक ऐसी चीज है, जो एक बार पैदा हो गई तो फिर मन को मथती रहती है. शिवराज ने भी बीवी और चचेरे भाई के रिश्ते की असलियत जानने की ठान ली.  वह बीवी पर निगरानी रखने लगा. वह दोनों को रंगेहाथ पकड़ना चाहता था. इसलिए जल्दीजल्दी घर आने लगा. घर आने की सूचना वह बीवी को नहीं देता था.

एक रोज शिवराज पाल ने गीता और अजय को अमर्यादित स्थिति में पकड़ लिया. शिवराज ने दोनों की खूब पिटाई की और उन्हें धमकी दी कि भविष्य में यदि दोनों ने यह दोहराया तो वह दोनों को चापड़ से काट देगा. उस वक्त जान बचाने के लिए दोनों ने माफी मांगते हुए शिवराज को वचन दिया कि वे आइंदा गलती नहीं करेंगे. वासना की लत ऐसी लत है जिस के लिए इंसान किसी अंजाम की परवाह नहीं करता. शिवराज पाल की इस धमकी का न तो गीता पर असर पड़ा और न ही अजय पर. हां, इतना जरूर हुआ कि अब दोनों मिलन में सावधानी बरतने लगे.

दिन के वक्त अजय ने गीता के घर जाना बंद कर दिया था, ताकि पासपड़ोस के लोगों को शक न हो. रात में जब सब सो जाते, तब गीता अजय के मोबाइल पर मिस्ड काल दे देती, जो इस बात का संकेत होता कि आज की रात मस्ती का मौका मिस नहीं करना है. अजय दबे पांव भाभी के घर में पहुंच जाता, फिर सारी रात भाभी की वासना का चूल्हा फूंकता रहता.

इसी बीच गीता के जेठ मनोज को भी उस की बदचलनी की जानकारी हो गई. उस ने अजय के पिता को समझाया कि वह बेटे पर नजर रखे. अपने छोटे भाई शिवराज से भी कहा कि अगर बीवी को सुधारना है तो वह नौकरी छोड़ कर घर आ जाए या गीता को अपने साथ दिल्ली ले जाए. आग और फूस साथ रहेंगे तो अनीति की आग लगेगी ही.  लेकिन शिवराज की मजबूरी यह थी कि न वह नौकरी छोड़ सकता था, न बीवी को साथ ले जा सकता था. वह समझ चुका था कि गीता ने देवर से अपनी यारी नहीं छोड़ी है.

अत: जब भी वह घर आता, बीवी का मोबाइल चैक करता. उस में उसे अजय की काल या मैसेज नजर आ जाते. गुस्से में आ कर एक रोज शिवराज ने बीवी का मोबाइल ही तोड़ कर फेंक दिया. फिर उसे साफ शब्दों में चेतावनी भी दे डाली, ‘‘सुधर जा, वरना अंजाम अच्छा न होगा.’’  जेठ तथा पति की पाबंदियां बढ़ीं तो गीता का प्रेमी से मिलना बंद हो गया. वह मिलन के लिए छटपटाने लगी. उधर अजय भी भाभी की बांहों में बंधने को तरसने लगा था. वह भी तड़प रहा था.

अब तक शिवराज के दोनों बेटे 8 और 10 साल के हो चुके थे. शिवराज बच्चों को बेहद प्यार करता था. दोनों बेटे कस्बे के स्कूल में पढ़ने भी लगे थे. बड़ा बेटा तेज दिमाग का था. वह पिता को घर में आनेजाने वालों के बारे में जानकारी देता रहता था. बड़े बेटे ने शिवराज को जानकारी दी थी कि अजय चाचा अकसर घर आते हैं. आते ही वह हमें घर के बाहर भेज देते हैं. जाने से वह इनकार करता है तो पैसों का लालच दे कर घर के बाहर कर देते हैं और दरवाजा बंद कर लेते हैं. बच्चे तो अनजान थे. लेकिन शिवराज जानता था कि बंद दरवाजे के भीतर गीता और अजय क्या गुल खिलाते थे.

2 मई, 2021 को शिवराज पाल एक हफ्ते की छुट्टी ले कर दिल्ली से अपने घर आ गया. दरअसल पड़ोसी गांव रैपुरा में शिवराज पाल के रिश्तेदार संजय पाल की बेटी रोशनी की 9 मई को बारात आनी थी. इसी शादी में उसे शामिल होना था. वह छुट्टी ले कर घर आ गया था. शिवराज के आ जाने से गीता और अजय का मिलन बंद हो गया था. यहां तक कि उन की मोबाइल फोन पर भी बात नहीं हो पाती थी. गीता पति की सेवा में ऐसी जुटी रहती थी, जैसे वह बहुत बड़ी पतिव्रता हो. हालांकि मन ही मन वह पति से कुढ़ती थी. उसे शादी के एक सप्ताह पहले पति का घर आना अच्छा नहीं लगा था.

9 मई, 2021 की शाम 5 बजे शिवराज पाल सजधज कर शादी में शामिल होने पड़ोसी गांव रैपुरा चला गया. पति के जाने के बाद गीता ने घर का काम निपटाया फिर रगड़रगड़ कर स्नान किया. इस के बाद सजसंवर कर उस ने अजय को फोन किया, ‘‘देवरजी, आज मौजमस्ती करने का अच्छा मौका है. तुम्हारे भैया शादी में शामिल होने रैपुरा गांव गए हैं. अब वह कल ही आ पाएंगे. आज की पूरी रात हमारी है. हम दोनों बिस्तर पर खूब धमाल मचाएंगे. रात 10 बजे तक घर जरूर आ जाना.’’

‘‘ठीक है भाभी. मैं जरूर आ जाऊंगा. तुम्हारी बांहों में मचलने के लिए मैं कई हफ्तों से तड़प रहा था.’’

गीता की ननद शिवानी सुभाष नगर मोहल्ले में ही अपने पति के साथ रहती थी. बच्चे मिलन में बाधा न बनें, इसलिए वह अनुज व वरुण को उन की बुआ के घर छोड़ आई. बहाना बनाया कि उस की तबियत खराब है. उस ने खाना नहीं बनाया और बच्चे भूखेप्यासे हैं.

रात 10 बजे अजय बनसंवर कर गीता के घर पहुंच गया. गीता उस का ही इंतजार कर रही थी. मौका अच्छा देख कर अजय गीता से छेड़खानी करने लगा फिर उसे कमरे में ले आया. दोनों के पास अच्छा मौका था.  अजय ने दरवाजा बंद किया फिर गीता को बांहों में भर लिया. दोनों कई सप्ताह से मिलन नहीं कर पाए थे. अत: गीता लता की भांति अजय से लिपट गई. चरम सुख प्राप्त कर दोनों निढाल हो कर सो गए.

इधर शिवराज पाल को सवारी का साधन मिल गया तो वह उस से सुबह 4 बजे ही घर आ गया. उस ने दरवाजे की कुंडी खटखटाई तो गीता ने दरवाजा नहीं खोला. कई बार कुंडी खटखटाने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो शिवराज समझ गया कि गीता अपने यार के साथ रंगरलियां मना रही है.

वह दरवाजा तोड़ने ही जा रहा था कि भड़ाक से दरवाजा खुला. सामने पति को देख कर गीता का चेहरा पीला पड़ गया. वह बोली, ‘‘आप कुंडी खटखटा रहे थे. मैं तो गहरी नींद में थी.’’

‘‘गहरी नींद सो रही थी या फिर यार के साथ रंगरलियां मना रही थी.’’ शिवराज ने गुस्से से पूछा.

‘‘कैसी बात कर रहे हो. शक का कीड़ा तुम्हारे दिमाग में हर समय कुलबुलाता है.’’ गीता भी ऊंची आवाज में बोली.  शिवराज गीता को परे ढकेल कर घर के अंदर पहुंचा. उस ने घर का कोनाकोना छान मारा, लेकिन घर में कोई दूसरा न था. शिवराज समझ गया कि गीता ने पहले अजय को भगाया, उस के बाद ही दरवाजा खोला है.  वैसे भी गीता की घबराहट, उस के बिखरे बाल और तख्त के बिस्तर की सिलवटें चुगली कर रही थीं कि रात में बिस्तर पर वासना का खेल खेला गया था. बच्चों के विषय में पूछा तो गीता ने बताया कि बच्चे बुआ के घर हैं.

इस के बाद तो शिवराज को समझते देर नहीं लगी कि गीता ने मिलन में बाधा न पडे़, इसलिए बच्चों को बुआ के घर भेज दिया था. शिवराज गीता से सच्चाई कुबूलवाना चाहता था, लेकिन गीता सच्चाई पर परदा डाल रही थी. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा होने लगा. झगड़े के दौरान गीता ने शिवराज से ऐसी बात कह दी, जिसे वह बरदाश्त न कर सका. गुस्से में कमरे में रखा चापड़ उठा लिया और गीता की ओर लपका.

पति के रूप में साक्षात मौत को देख कर गीता दरवाजे की ओर भागी. लेकिन शिवराज ने उसे बरामदे में ही पकड़ लिया और चापड़ के वार से उसे वहीं ढेर कर दिया. कुछ देर तक शिवराज बीवी के शव के पास ही बैठा रहा. फिर वह थाना रामपुरा पहुंचा और थानाप्रभारी जे.पी. पाल के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची तब मोहल्ले के लोग वहां जुटे थे.

11 मई, 2021 को पुलिस ने शिवराज पाल को जालौन कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. मां की मौत और पिता के जेल जाने से उस के दोनों बच्चे गुमसुम हैं. वह अपनी बुआ रोशनी के संरक्षण में थे.

—कथा पुलिस सूत्रोंं पर आधारित

चसका पराई औरत का

नंदू का अपने गांव की विधवा कमला से जिस्मानी संबंध अब लोगों में चर्चा की बात बन चुका है. नंदू की बीवी तारा इस वजह से अपने बच्चों को ले कर 2 महीने से मायके में बैठी हुई है.

सारा समाज नंदू की इस हरकत पर थूथू कर रहा है, लेकिन नंदू है कि विधवा कमला से अपने जिस्मानी संबंध तोड़ने को तैयार नहीं है.

मायके जाने से पहले नंदू की बीवी तारा भी कमला को समझाने और पति नंदू से जिस्मानी रिश्ता तोड़ लेने की गुहार लगाने कमला के पास गई थी, लेकिन कमला ने उस की एक नहीं सुनी और कहा, ‘‘तू अपने मर्द को बांध कर रख ले. मैं उस के पास नहीं जाती, वही मेरे पास आता है.’’

शबनम की शादीशुदा जिंदगी भी बुरी तरह गुजर रही है. वजह, शबनम का शौहर शब्बीर अपने चाचा की बीवी तनाज की जवानी में खोया रहता है. शब्बीर अपने घर न रह कर अकसर चाचा के घर ही पड़ा रहता है और वहां तनाज के जिस्मानी रूप का जाम पीता रहता है. चाचा की रोकटोक नहीं होने और तनाज की हामी के चलते शब्बीर की ये करतूतें मजे से चल रही हैं.

शब्बीर ने अपनी सारी दौलत तनाज को खुश करने में लुटा रखी है. तनाज की अदाओं के सामने शब्बीर अपनी बीवी को भी भुला बैठा है.

शब्बीर ने समाज के बंधनों को भी ताक पर रख दिया. बस, तनाज और उस के जिस्मानी रिश्तों को वह अपनी जिंदगी मानने लगा है और तनाज है कि शब्बीर को बेवकूफ बना कर उसे दोनों हाथों से लूट रही है.

दूसरे की औरत सभी मर्दों को अच्छी लगती है. पराई बीवी में मर्द को जवानी और जोश का सैलाब दिखता है. पराई औरत को भोगने की इच्छा तकरीबन सभी मर्दों में पाई जाती है. इस के लिए वे इज्जत को ताक पर रख जिस्मानी मजा लेने के लिए उतावले हो जाते हैं.

कुछ मर्दों को दूसरे की बीवी के ब्लाउज से झाकते उभार पसंद आते हैं, तो किसी को उस के हिलते हुए कूल्हे. कोई गैर की बीवी के कसे हुए जिस्म पर मरता है, तो कोई उस की नशीली अदाओं का शिकार हो जाता है.

ऐसा दर्शन पा कर उस पर लट्टू मर्द को अपनी बीवी बेकार लगने लगती है. उसे तब अपनी बीवी में न जवानी दिखती है और न ही सैक्सी अदाएं नजर आती हैं.

बदमाश किस्म की औरतें ऐसे मर्दों की तलाश में रहती हैं, जो उन के हुस्न पर पैसा लुटाए और जरूरत पड़ने पर उन की जिस्मानी प्यास को भी बुझाए.

इन औरतों का अपना कोई दीनईमान नहीं होता है. जब तक उन्हें पराए मर्द से पैसा मिलता है, तब तक वे उन के करीब रहती हैं. कंगाल मर्द को वे दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल कर बाहर फेंक देती हैं.

सच यही है कि दूसरे की बीवी के चक्कर में पड़ने के बाद वह अपनी बीवी और समाज की नजर में गिर जाता है. बीवी भी अपने मर्द को दिल से माफ नहीं कर पाती है.

पराई औरत से जिस्मानी रिश्तों के चक्कर में ऐसे मर्दों को आखिर में बदनामी ही मिलती है. उन्हें हमेशा गलत नजर से देखने की जो आदत पड़ जाती है, वह भी आसानी से नहीं छूटती है.

दूसरे की बीवी से जिस्मानी रिश्ता बनाने के चलते मर्दों को कई अंदरूनी बीमारियों का शिकार होते भी देखा गया है. अनजाने में उस मर्द की बीवी भी शिकार हो जाती है. बीमारी के बढ़ने पर ही पता चलता है, लेकिन तब तक देर हो चुकी होती है.

गैर की बीवी गैर की ही होती है. सबकुछ लुटा देने के बाद भी वह गैर की रहती है. ऐसे में उस के लिए अपना घरपरिवार और जिंदगी बरबाद करना समझदारी वाली बात नहीं है. जो सुख पराई बीवी देती है, उस से कहीं ज्यादा मजा खुद की बीवी दे सकती है, फिर क्यों घर से बाहर दूसरे की बीवी में जिस्मानी सुख तलाशा जाए?

अच्छी बात तो यह होगी कि दूसरे की बीवी को अपनी बांहों में भरने की गलत आदत को छोड़ें. अपनी बीवी को प्यार करें, ताकि बीवी तो खुश रहे ही, घरपरिवार में भी सुख बना रहे.

जिस्मानी रिश्तों को अपनी जिंदगी से ज्यादा अहमियत न दें. दूसरे की बीवी अगर गलत इरादे से करीब आना चाहे, तो उस से दूरी बना कर रखें.

पटना ट्रिपल मर्डर, कैसे बना वह हथौड़े वाला हत्यारा

सुबह के 10 बज रहे थे. 50 साला अलीना सिंह अपनी दोनों बेटियों को स्कूल और कालेज भेज कर घर का काम निबटा रही थीं. उस समय घर में उन का सौतेला बेटा देवेश कुमार उर्फ रिंटू ही मौजूद था. अचानक देवेश कुमार ने अलीना के चेहरे पर कपड़ा लपेट दिया और सिर पर हथौड़ा मारमार कर उन्हें जान से मार डाला.

11 बजे अलीना की 11 साला छोटी बेटी पूर्णिमा स्कूल से घर आई, तो देवेश ने दरवाजा खोला. उस के बाद उस ने पूर्णिमा के सिर पर भी चादर लपेट कर हथौड़ा मारमार उस की जान ले ली.

दोपहर 1 बजे अलीना की 18 साला मझली बेटी सोनाली कालेज से घर लौटी और डोरबैल बजाई. देवेश ने दरवाजा खोला और उस का भी वही हाल किया, जो अलीना और पूर्णिमा का किया था.

15 दिसंबर को पटना के इंद्रपुरी महल्ले के जीरो नंबर रोड पर एक के बाद एक 3 कत्ल करने के बाद देवेश कुमार अपने पिता गोपाल शरण सिंह के पास पहुंचा.

दरअसल, देवेश ने ही गोपाल को सुबह 8 बजे उन के दोस्त धर्मपाल महतो के घर भेज दिया था.

देवेश ने गोपाल से कहा कि दिल्ली चलना है. जल्दी तैयार हो जाइए. उस के बाद दोनों पटना जंक्शन पहुंचे. देवेश ने किसी तरह से पटनादिल्ली राजधानी ऐक्सप्रैस ट्रेन में टिकट का इंतजाम किया और दोनों दिल्ली की ओर चल पड़े.

जब ट्रेन कानपुर के पास पहुंची, तो देवेश ने अपने पिता से कहा कि उस ने अपनी सौतेली मां समेत दोनों बहिनों को मार डाला.

गोपाल को तो पहले बेटे की इस हैवानियत पर यकीन नहीं हुआ, लेकिन जब सारा मामला उन्हें समझ में आया, तो वे जोरजोर से रोने लगे.

देवेश ने अपने हाथों से उन का मुंह दबा कर कहा कि वे रोएं नहीं, वरना वह पकड़ा जाएगा. इस के बाद देवेश ट्रेन से नीचे उतर गया.

ट्रेन जब दिल्ली पहुंची, तो गोपाल अपने छोटे बेटे ओंकार सिंह उर्फ चिंटू के कालकाजी इलाके में बने घर पहुंचे और उसे सारा माजरा बताया.

दिल्ली से ही गोपाल ने पटना में अपने पड़ोसी जोगिंदर को फोन कर के कहा कि वह उन के घर जा कर देखें कि वहां कुछ गड़बड़ तो नहीं है, क्योंकि घर में कोई भी फोन नहीं उठा रहा है.

जोगिंदर जब गोपाल के घर पहुंचा, तो चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था. गेट खोल कर वह अंदर गया, तो कमरे में पड़ी 3 लाशों को देख कर वह सन्न रह गया.

हड़बड़ी में वह भाग कर बाहर निकला और गोपाल को फोन कर सारा माजरा बताया. इस के बाद उस ने महल्ले वालों से बात कर पाटलीपुत्र थाने में खबर दी.

पटना के एसएसपी अमृतराज ने बताया कि हत्या करने का क्रूर तरीका बता देता है कि हत्यारा अलीना, सोनाली और पूर्णिमा से काफी नफरत करता था. हत्या को लूट का रंग देने के लिए उस ने कमरे में रखे बक्सों को उलटपुलट कर रख दिया था. इस मर्डर केस की जड़ में जायदाद का झगड़ा ही है.

रिटायर्ड क्लर्क गोपाल शरण सिंह का पटना के इंद्रपुरी महल्ले में डेढ़ कट्ठा यानी तकरीबन 2 हजार वर्ग फुट जमीन पर मकान बना हुआ है, जिस की कीमत तकरीबन 80 लाख रुपए है. इस के अलावा कटिहार के राजपूताना इलाके में 55 कट्ठा जमीन भी है, जिस की कीमत भी करोड़ों रुपए की आंकी गई है.

देवेश चाहता था कि पिता गोपाल शरण सिंह अपनी जायदाद का बंटवारा कर दें. पिता गोपाल बंटवारे को तैयार थे, पर अलीना इस के लिए तैयार नहीं थीं. वे चाहती थीं कि सोनाली और पूर्णिमा की शादी के बाद ही जायदाद का बंटवारा हो.

अलीना ने जमीन और मकान के सारे कागजात अपने कब्जे में कर रखे थे. इस मामले को ले कर अकसर घर में हल्लाहंगामा होता रहता था.

गोपाल के पड़ोसी बताते हैं कि गोपाल की पहली बीवी की मौत 20-22 साल पहले हो गई थी. इस के बाद उन्होंने अलीना से दूसरी शादी की. अलीना से उन की 3 बेटियां हुईं, जबकि पहली बीवी से 2 बेटे थे.

अलीना जब ब्याह कर घर आईं, तो उसी समय से उन्होंने गोपाल के बेटों को परेशान करना शुरू कर दिया. इस को ले कर अलीना और गोपाल में अकसर बकझक होती रहती थी. हार कर गोपाल ने अपने दोनों बेटों को हौस्टल में भेज दिया था. शुरुआती पढ़ाई करने के बाद गोपाल ने दोनों बेटों को पढ़ने के लिए दिल्ली भेज दिया था. दोनों भाई पिछले 12 सालों से दिल्ली में रह रहे थे.

कई पड़ोसियों ने बताया कि अलीना काफी सख्त मिजाज की औरत थीं और गोपाल उन के सामने घुटने टेके रहते थे. अलीना ने दोनों बेटों की शादी में भी गोपाल को नहीं जाने दिया था.

सौतेली मां और 2 बेटियों की हत्या करने में हैवानियत की हद पार कर देवेश फरार है. उस की शादी हो चुकी है और पिछले महीने ही वह बाप बना था.

मनोविज्ञानी अनिल पांड्या कहते हैं कि अपने परिवार के लोगों का कत्ल कर के देवेश हैवानियत की तमाम हदें पा कर गया. इस से पता चलता है कि उस के मन में अलीना को ले कर इस कदर नफरत थी कि वह उस की बेटियों को भी नहीं देखना चाहता होगा.

घरेलू झगड़ों के बढ़ते मामलों के बीच परिवार वालों को देखना समझना होगा कि ऐसे झगड़ों को तूल न पकड़ने दें और न ही ऐसे मामलों को लटका कर रखें.

valentine Special- तू आए न आए : शफीका का प्यार और इंतजार

मैं इंगलैंड से एमबीए करने के लिए श्रीनगर से फ्लाइट पकड़ने को घर से बाहर निकल रहा था तो मुझे विदा करने वालों के साथसाथ फूफीदादी की आंखों में आंसुओं का समंदर उतर आया. अम्मी की मौत के बाद फूफीदादी ने ही मुझे पालपोस कर बड़ा किया था. 2 चाचा और 1 फूफी की जिम्मेदारी के साथसाथ दादाजान की पूरी गृहस्थी का बोझ भी फूफीदादी के नाजुक कंधों पर था. ममता का समंदर छलकाती उन की बड़ीबड़ी कंटीली आंखों में हमारे उज्ज्वल भविष्य की अनगिनत चिंताएं भी तैरती साफ दिखाई देती थीं. उन से जुदाई का खयाल ही मुझे भीतर तक द्रवित कर रहा था.

कार का दरवाजा बंद होते ही फूफीदादी ने मेरा माथा चूम लिया और मुट्ठी में एक परचा थमा दिया, ‘‘तुम्हारे फूफादादा का पता है. वहां जा कर उन्हें ढूंढ़ने की कोशिश करना और अगर मिल जाएं तो बस, इतना कह देना, ‘‘जीतेजी एक बार अपनी अम्मी की कब्र पर फातेहा पढ़ने आ जाएं.’’

फूफीदादी की भीगी आवाज ने मुझे भीतर तक हिला कर रख दिया. पूरे 63 साल हो गए फूफीदादी और फूफादादा के बीच पैसिफिक अटलांटिक और हिंद महासागर को फैले हुए, लेकिन आज भी दादी को अपने शौहर के कश्मीर लौट आने का यकीन की हद तक इंतजार है.

इंगलैंड पहुंच कर ऐडमिशन की प्रक्रिया पूरी करतेकरते मैं फूफीदादी के हुक्म को पूरा करने का वक्त नहीं निकाल पाया, लेकिन उस दिन मैं बेहद खुश हो गया जब मेरे कश्मीरी क्लासफैलो ने इंगलैंड में बसे कश्मीरियों की पूरी लिस्ट इंटरनैट से निकाल कर मेरे सामने रख दी. मेरी आंखों के सामने घूम गया 80 वर्षीय फूफीदादी शफीका का चेहरा.

मेरे दादा की इकलौती बहन, शफीका की शादी हिंदुस्तान की आजादी से ठीक एक महीने पहले हुई थी. उन के पति की सगी बहन मेरी सगी दादी थीं. शादी के बाद 2 महीने साथ रह कर उन के शौहर डाक्टरी पढ़ने के लिए लाहौर चले गए. शफीका अपने 2 देवरों और सास के साथ श्रीनगर में रहने लगीं.

लाहौर पहुंचने के बाद दोनों के बीच खतों का सिलसिला लंबे वक्त तक चलता रहा. खत क्या थे, प्यार और वफा की स्याही में डूबे प्रेमकाव्य. 17 साल की शफीका की मुहब्बत शीर्ष पर थी. हर वक्त निगाहें दरवाजे पर लगी रहतीं. हर बार खुलते हुए दरवाजे पर उसे शौहर की परछाईं होने का एहसास होता.

मुहब्बत ने अभी अंगड़ाई लेनी शुरू ही की थी कि पूरे बदन पर जैसे फालिज का कहर टूट पड़ा. विभाजन के बाद हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच खतों के साथसाथ लोगों के आनेजाने का सिलसिला भी बंद हो गया.

शफीका तो जैसे पत्थर हो गईं. पूरे 6 साल की एकएक रात कत्ल की रात की तरह गुजारी और दिन जुदाई की सुलगती भट्टी की तरह. कानों में डाक्टर की आवाजें गूंजती रहतीं, सोतीजागती आंखों में उन का ही चेहरा दिखाई देता था. रात को बिस्तर की सिलवटें और बेदारी उन के साथ बीते वक्त के हर लमहे को फिर से ताजा कर देतीं.

अचानक एक दिन रेडियो में खबर आई कि हिंदुस्तान-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच होगा. इस मैच को देखने जाने वालों के लिए वीजा देने की खबर इक उम्मीद का पैगाम ले कर आई.

शफीका के दोनों भाइयों ने रेलवे मिनिस्टर से खास सिफारिश कर के अपने साथसाथ बहन का भी पाकिस्तान का 10 दिनों का वीजा हासिल कर लिया. जवान बहन के सुलगते अरमानों को पूरा करने और दहकते जख्मों पर मरहम लगाने का इस से बेहतरीन मौका शायद ही फिर मिल पाता.

पाकिस्तान में डाक्टर ने तीनों मेहमानों से मिल कर अपने कश्मीर न आ सकने की माफी मांगते हुए हालात के प्रतिकूल होने की सारी तोहमत दोनों देशों की सरकारों के मत्थे मढ़ दी. उन के मुहब्बत से भरे व्यवहार ने तीनों के दिलों में पैदा कड़वाहट को काई की तरह छांट दिया. शफीका के लिए वो 9 रातें सुहागरात से कहीं ज्यादा खूबसूरत और अहम थीं. वे डाक्टर की मुहब्बत में गले तक डूबती चली जा रही थीं.

उधर, उन के दोनों भाइयों को मिनिस्टरी और दोस्तों के जरिए पक्की तौर पर यह पता चल गया था कि अगर डाक्टर चाहें तो पाकिस्तान सरकार उन की बीवी शफीका को पाकिस्तान में रहने की अनुमति दे सकती है. लेकिन जब डाक्टर से पूछा गया तो उन्होंने अपने वालिद, जो उस वक्त मलयेशिया में बड़े कारोबारी की हैसियत से अपने पैर जमा चुके थे, से मशविरा करने के लिए मलयेशिया जाने की बात कही.

साथ ही, यह दिलासा भी दिया कि मलयेशिया से लौटते हुए वे कश्मीर में अपनी वालिदा और भाईबहनों से मिल कर वापसी के वक्त शफीका को पाकिस्तान ले आएंगे. दोनों भाइयों को डाक्टर की बातों पर यकीन न हुआ तो उन्होंने शफीका से कहा, ‘बहन, जिंदगी बड़ी लंबी है, कहीं ऐसा न हो कि तुम्हें डाक्टर के इंतजार के फैसले पर पछताना पड़े.’

‘भाईजान, तलाक लेने की वजह दूसरी शादी ही होगी न. यकीन कीजिए, मैं दूसरी शादी तो दूर, इस खयाल को अपने आसपास फटकने भी नहीं दूंगी.’ 27 साल की शफीका का इतना बड़ा फैसला भाइयों के गले नहीं उतरा, फिर भी बहन को ले कर वे कश्मीर वापस लौट आए.

वापस आ कर शफीका फिर अपनी सास और देवरों के साथ रहने लगीं. डाक्टर की मां अपने बेटे से बेइंतहा मुहब्बत करती थीं. बहू से बेटे की हर बात खोदखोद कर पूछती हुई अनजाने ही बहू के भरते जख्मों की परतें उधेड़ती रहतीं.

शफीका अपने यकीन और मुहब्बत के रेशमी धागों को मजबूती से थामे रहीं. उड़तीउड़ती खबरें मिलीं कि डाक्टर मलयेशिया तो पहुंचे, लेकिन अपनी मां और बीवी से मिलने कश्मीर नहीं आए. मलयेशिया में ही उन्होंने इंगलैंड मूल की अपनी चचेरी बहन से निकाह कर लिया था. शफीका ने सुना तो जो दीवार से टिक कर धम्म से बैठीं तो कई रातें उन की निस्तेज आंखें, अपनी पलकें झपकाना ही भूल गईं. सुहागिन बेवा हो गईं, लेकिन नहीं, उन के कान और दिमाग मानने को तैयार ही नहीं थे.

‘लोग झूठ बोल रहे हैं. डाक्टर, मेरा शौहर, मेरा महबूब, मेरी जिंदगी, ऐसा नहीं कर सकता. वफा की स्याही से लिखे गए उन की मुहब्बत की शीरीं में डूबे हुए खत, उस जैसे वफादार शख्स की जबान से निकले शब्द झूठे हो ही नहीं सकते. मुहब्बत के आसमान से वफा के मोती लुटाने वाला शख्स क्या कभी बेवफाई कर सकता है? नहीं, झूठ है. कैसे यकीन कर लें, क्या मुहब्बत की दीवार इतनी कमजोर ईंटों पर रखी गई थी कि मुश्किल हालात की आंधी से वह जमीन में दफन हो जाए? वो आएंगे, जरूर आएंगे,’ पूरा भरोसा था उन्हें अपने शौहर पर.

शफीका के दिन कपड़े सिलते, स्वेटर बुनते हुए कट जाते लेकिन रातें नागफनी के कांटों की तरह सवाल बन कर चुभतीं. ‘जिन की बांहों में मेरी दुनिया सिमट गई थी, जिन के चौड़े सीने पर मेरे प्यार के गुंचे महकने लगे थे, उन की जिंदगी में दूसरी औरत के लिए जगह ही कहां थी भला?’ खयालों की उथली दुनिया के पैर सचाई की दलदल में कईकई फुट धंस गए. लेकिन सच? सच कुछ और ही था. कितना बदरंग और बदसूरत? सच, डाक्टर शादी के बाद दूसरी बीवी को ले कर इंगलैंड चला गया. मलयेशिया से उड़ान भरते हुए हवाईजहाज हिमालय की ऊंचीऊंची प्रहरी सी खड़ी पहाडि़यों पर से हो कर जरूर गुजरा होगा? शफीका की मुहब्बत की बुलंदियों ने तब दोनों बाहें फैला कर उस से कश्मीर में ठहर जाने की अपील भी की होगी. मगर गुदाज बीवी की आगोश में सुधबुध खोए डाक्टर के कान में इस छातीफटी, दर्दभरी पुकार को सुनने का होश कहां रहा होगा?

शफीका को इतने बड़े जहान में एकदम तनहा छोड़ कर, उन के यकीन के कुतुबमीनार को ढहा कर, अपनी बेवफाई के खंजर से शफीका के यकीन को जख्मी कर, उन के साथ किए वादों की लाश को चिनाब में बहा दिया था डाक्टर ने, जिस के लहू से सुर्ख हुआ पानी आज भी शफीका की बरबादी की दास्तान सुनाता है.

शफीका जारजार रोती हुई नियति से कहती थी, ‘अगर तू चाहती, तो कोई जबरदस्ती डाक्टर का दूसरा निकाह नहीं करवा सकता था. मगर तूने दर्द की काली स्यायी से मेरा भविष्य लिखा था, उसे वक़्त का ब्लौटिंगपेपर कभी सोख नहीं पाया.’

शफीका के चेहरे और जिस्म की बनावट में कश्मीरी खूबसूरती की हर शान मौजूद थी. इल्म के नाम पर वह कश्मीरी भाषा ही जानती थी. डाक्टर की दूसरी बीवी, जिंदगी की तमाम रंगीनियों से लबरेज, खुशियों से भरपूर, तनमन पर आधुनिकता का पैरहन पहने, डाक्टर के कद के बराबर थी.

इंगलैंड की चमकदमक, बेबाकपन और खुद की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए हाथ आई चाचा की बेशुमार दौलत ने एक बेगर्ज मासूम मुहब्बत का गला घोंट दिया. शफीका ने 19 साल, जिंदगी के सब से खूबसूरत दिन, सास के साथ रह कर गुजार दिए. दौलत के नशे में गले तक डूबे डाक्टर को न ही मां की ममता बांध सकी, न बावफा पत्नी की बेलौस मुहब्बत ही अपने पास बुला सकी.

डाक्टर की वादाखिलाफी और जवान बहन की जिंदगी में फैलती वीरानी और तनहाई के घनघोर अंधेरे के खौफ से गमगीन हो कर शफीका के बड़े भाई ने अपनी बीवी को तलाक देने का मन बना लिया जो डाक्टर की सगी बहन थी. लेकिन शफीका चीन की दीवार की तरह डट कर सामने खड़ी हो गई, ‘शादी के दायित्व तो इन के भाई ने नहीं निभाए हैं न, दगा और फरेब तो उन्होंने मेरे साथ किया है, कुसूर उन का है तो सजा भी उन्हें ही मिलनी चाहिए. उन की बहन ने आप की गृहस्थी सजाई है, आप के बच्चों की मां हैं वे, उस बेकुसूर को आप किस जुर्म की सजा दे रहे हैं, भाई जान? मेरे जीतेजी यह नहीं होगा,’ कह कर भाई को रोका था शफीका ने.

खौफजदा भाभी ने शफीका के बक्से का ताला तोड़ कर उस का निकाहनामा और डाक्टर के साथ खींची गई तसवीरों व मुहब्बतभरे खतों को तह कर के पुरानी किताबों की अलमारी में छिपा दिया था. जो 15 साल बाद रद्दी में बेची जाने वाली किताबों में मिले. भाभी डर गई थीं कि कहीं उन के भाई की वजह से उन की तलाक की नौबत आ गई तो कागजात के चलते उन के भाई पर मुकदमा दायर कर दिया जाएगा. लेकिन शफीका जानबूझ कर चुपचाप रहीं.

लंबी खामोशी के धागे से सिले होंठ, दिल में उमड़ते तूफान को कब तक रोक पाते. शफीका के गरमगरम आंसुओं का सैलाब बड़ीबड़ी खूबसूरत आंखों के रास्ते उन के गुलाबी गालों और लरजाते कंवल जैसे होंठों तक बह कर डल झील के पानी की सतह को और बढ़ा जाता. कलैंडर बदले, मौसम बदले, श्रीनगर की पहाडि़यों पर बर्फ जमती रही, पिघलती रही, बिलकुल शफीका के दर्दभरे इंतजार की तरह.

फूलों की घाटी हर वर्ष अपने यौवन की दमक के साथ अपनी महक लुटा कर वातावरण को दिलकश बनाती रही, लेकिन शफीका की जिंदगी में एक बार आ कर ठहरा सूखा मौसम फिर कभी मौसमेबहार की शक्ल न पा सका. शफीका की सहेलियां दादी और नानी बन गईं. आखिरकार शफीका भी धीरेधीरे उम्र के आखिरी पड़ाव की दहलीज पर खड़ी हो गईं.

बड़े भाईसाहब ने मरने से पहले अपनी बहन के भविष्य को सुरक्षित कर दिया. अपनी पैंशन शफीका के नाम कर दी. पूरे 20 साल बिना शौहर के, सास के साथ रहने वाली बहन को छोटे भाईभाभी ले आए हमेशा के लिए अपने घर. बेकस परिंदे का आशियाना एक डाल से टूटा तो दूसरी डाल पर तिनके जोड़तेजोड़ते

44 साल लग गए. चेहरे की चिकनाई और चमकीलेपन में धीरेधीरे झुर्रियों की लकीरें खिंचने लगीं.

प्यार, फिक्र और इज्जत, देने में भाइयों और उन के बच्चों ने कोई कमी नहीं छोड़ी. भतीजों की शादियां हुईं तो बहुओं ने सास की जगह फूफीसास को पूरा सम्मान दिया. शफीका के लिए कभी भी किसी चीज की कमी नहीं रही, मगर अपने गर्भ में समाए नुकीले कंकड़पत्थर को तो सिर्फ ठहरी हुई झील ही जानती है. जिंदगी में कुछ था तो सिर्फ दर्द ही दर्द.

अपनी कोख में पलते बच्चे की कुलबुलाहट के मीठे दर्द को महसूस करने से महरूम शफीका अपने भतीजों के बच्चों की मासूम किलकारियों, निश्छल हंसी व शरारतों में खुद को गुम कर के मां की पहचान खो कर कब फूफी से फूफीदादी कहलाने लगीं, पता ही नहीं चला.

शरीर से एकदम स्वस्थ 80 वर्षीया शफीका के चमकते मोती जैसे दांत आज भी बादाम और अखरोट फोड़ लेते हैं. यकीनन, हाथपैरों और चेहरे पर झुर्रियों ने जाल बिछाना शुरू कर दिया है लेकिन चमड़ी की चमक अभी तक दपदप करती हुई उन्हें बूढ़ी कहलाने से महफूज रखे हुए है.

पैरों में जराजरा दर्द रहता है तो लकड़ी का सहारा ले कर चलती हैं, लेकिन शादीब्याह या किसी खुशी के मौके पर आयोजित की गई महफिल में कालीन पर तकिया लगा कर जब भी बैठतीं, कम उम्र औरतों को शहद की तरह अपने आसपास ही बांधे रखतीं.

उन के गाए विरह गीत, उन की आवाज के सहारेसहारे चलते चोटखाए दिलों में सीधे उतर जाते. शफीका की गहरी भूरी बड़ीबड़ी आंखों में अपना दुलहन वाला लिबास लहरा जाता, जब कोई दुलहन विदा होती या ससुराल आती. उन की आंखों में अंधेरी रात के जुगनुओं की तरह ढेर सारे सपने झिलमिलाने लगते. सपने उम्र के मुहताज नहीं होते, उन का सुरीला संगीत तो उम्र के किसी भी पड़ाव पर बिना साज ही बजने लगता है.

एक घर, सजीधजी शफीका, डाक्टर का चंद दिनों का तिलिस्म सा लगने वाला मीठा मिलन, बच्चों की मोहक मुसकान, सुखदुख के पड़ाव पर ठहरताबढ़ता कारवां, मां, दादी के संबोधन से अंतस को सराबोर करने वाला सपना…हमेशा कमी बन कर चुभता रहता. वाकई, क्या 80 साल की जिंदगी जी या सिर्फ जिंदगी की बदशक्ल लाश ढोती रहीं? यह सवाल खुद से पूछने से डरती रहीं शफीका.

शफीका ने एक मर्द के नाम पूरी जिंदगी लिख दी. जवानी उस के नाम कर दी, अपनी हसरतों, अपनी ख्वाहिशों के ताश के महल बना कर खुद ही उसे टूटतेबिखरते देखती रहीं. जिस्म की कसक, तड़प को खुद ही दिलासा दे कर सहलाती रहीं सालों तक.

रिश्तेदार, शफीका से मिलते लेकिन कोई भी उन के दिल में उतर कर नहीं देख पाता कि हर खुशी के मौके पर गाए जाने वाले लोकगीतों के बोलों के साथ बजते हुए कश्मीरी साजों, डफली की हर थाप पर एक विरह गीत अकसर शफीका के कंपकंपाते होंठों पर आज भी क्यों थिरकता जाता है-

‘तू आए न आए

लगी हैं निगाहें

सितारों ने देखी हैं

झुकझुक के राहें

ये दिल बदगुमां है

नजर को यकीं है

तू जो नहीं है

तो कुछ भी नहीं है

ये माना कि महफिल

जवां है हसीं है.’

अब आज पूरे 3 महीनों बाद मुझे अचानक डायरी में फूफीदादी का दिया हुआ परचा दिखाई दिया तो इंटरनैट पर कश्मीरी मुसलमानों के नाम फिर से सर्च कर डाले. पता वही था, नाम डा. खालिद अनवर, उम्र 90 साल. फोन मिलाया तो एक गहरी लेकिन थकी आवाज ने जवाब दिया, ‘‘डाक्टर खालिद अनवर स्पीकिंग.’’

‘‘आय एम फ्रौम श्रीनगर, इंडिया, आई वांट टू मीट विद यू.’’

‘‘ओ, श्योर, संडे विल बी बैटर,’’ ब्रिटिश लहजे में जवाब मिला.

जी चाहा फूफीदादी को फोन लगाऊं, दादी मिल गया पता…वैसे मैं उन से मिल कर क्या कहूंगा, अपना परिचय कैसे दूंगा, कहीं हमारे खानदान का नाम सुन कर ही मुझे अपने घर के गेट से बाहर न कर दें, एक आशंका, एक डर पूरी रात मुझे दीमक की तरह चाटता रहा.

निश्चित दिन, निश्चित समय, उन के घर की डौरबैल बजाने से पहले, क्षणभर के लिए हाथ कांपा था, ‘तुम शफीका के भतीजे के बेटे हो. गेटआउट फ्रौम हियर. वह पृष्ठ मैं कब का फाड़ चुका हूं. तुम क्या टुकड़े बटोरने आए हो?’ कुछ इस तरह की ऊहापोह में मैं ने डौरबैल पर उंगली रख दी.

‘‘प्लीज कम इन, आई एम वेटिंग फौर यू.’’ एक अनौपचारिक स्वागत के बाद उन के द्वारा मेरा परिचय और मेरा मिलने का मकसद पूछते ही मैं कुछ देर तो चुप रहा, फिर अपने ननिहाल का पता बतलाने के बाद देर तक खुद से लड़ता रहा.

अनौपचारिक 2-3 मुलाकातों के बाद वे मुझ से थोड़ा सा बेबाक हो गए. उन की दूसरी पत्नी की मृत्यु 15 साल पहले हो चुकी थी. बेटों ने पाश्चात्य सभ्यता के मुताबिक अपनी गृहस्थियां अलग बसा ली थीं. वीकैंड पर कभी किसी का फोन आ जाता, कुशलता मिल जाती. महीनों में कभी बेटों को डैड के पास आने की फुरसत मिलती भी तो ज्यादा वक्त फोन पर बिजनैस डीलिंग में खत्म हो जाता. तब सन जैसी सफेद पलकें, भौंहें और सिर के बाल चीखचीख कर पूछने लगते, ‘क्या इसी अकेलेपन के लिए तुम श्रीनगर में पूरा कुनबा छोड़ कर यहां आए थे?’

हालांकि डाक्टर खालिद अनवर की उम्र चेहरे पर हादसों का हिसाब लिखने लगी थी मगर बचपन से जवानी तक खाया कश्मीर का सूखा मेवा और फेफड़े में भरी शुद्ध, शीतल हवा उन की कदकाठी को अभी भी बांस की तरह सीधा खड़ा रखे हुए है. डाक्टर ने बुढ़ापे को पास तक नहीं फटकने दिया. अकसर बेटे उन के कंधे पर हाथ रख कर कहते हैं, ‘‘डैड, यू आर स्टिल यंग दैन अस. सो, यू डौंट नीड अवर केयर.’’ यह कहते हुए वे शाम से पहले ही अपने घर की सड़क की तरफ मुड़ जाते हैं.

शरीर तो स्वस्थ है लेकिन दिल… छलनीछलनी, दूसरी पत्नी से छिपा कर रखी गई शफीका की चिट्ठियां और तसवीरों को छिपछिप कर पढ़ने और देखने के लिए मजबूर थे. प्यार में डूबे खतों के शब्द, साथ गुजारे गिनती के दिनों के दिलकश शाब्दिक बयान, 63 साल पीछे ले जाता, यादों के आईने में एक मासूम सा चेहरा दिखलाई देने लगता. डाक्टर हाथ बढ़ा कर उसे छू लेना चाहते हैं जिस की याद में वे पलपल मरमर कर जीते रहे. बीवी एक ही छत के नीचे रह कर भी उन की नहीं थी. दौलत का बेशुमार अंबार था. शानोशौकत, शोहरत, सबकुछ पास में था अगर नहीं था तो बस वह परी चेहरा, जिस की गरम हथेलियों का स्पर्श उन की जिंदगी में ऊर्जा भर देता.

मेरे अपनेपन में उन्हें अपने वतन की मिट्टी की खुशबू आने लगी थी. अब वे परतदरपरत खुलने लगे थे. एक दिन, ‘‘लैपटौप पर क्या सर्च कर रहे हैं?’’

‘‘बेटी के लिए प्रौपर मैच ढूंढ़ रहा हूं,’’ कहते हुए उन का गला रुंधने लगा. उन की यादों की तल्ख खोहों में उस वक्त वह कंपा देने वाली घड़ी शामिल थी, जब उन की बेटी का पति अचानक बिना बताए कहीं चला गया. बहुत ढूंढ़ा, इंटरनैशनल चैनलों व अखबारों में उस की गुमशुदगी की खबर छपवाई, लेकिन सब फुजूल, सब बेकार. तब बेटी के उदास चेहरे पर एक चेहरा चिपकने लगा. एक भूलाबिसरा चेहरा, खोयाखोया, उदास, गमगीन, छलछला कर याचना करती 2 बड़ीबड़ी कातर आंखें.

किस का है यह चेहरा? दूसरी बीवी का? नहीं, तो? मां का? बिलकुल नहीं. फिर किस का है, जेहन को खुरचने लगे, 63 साल बाद यह किस का चेहरा? चेहरा बारबार जेहन के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. किस की हैं ये सुलगती सवालिया आंखें? किस का है यह कंपकंपाता, याचना करता बदन, मगर डाक्टर पर उस का लैशमात्र भी असर नहीं हुआ था. लेकिन आज जब अपनी ही बेटी की सिसकियां कानों के परदे फाड़ने लगीं तब वह चेहरा याद आ गया.

दुनियाभर के धोखों से पाकसाफ, शबनम से ज्यादा साफ चेहरा, वे कश्मीर की वादियां, महकते फूलों की लटकती लडि़यों के नीचे बिछी खूबसूरत गुलाबी चादर, नर्म बिस्तर पर बैठी…खनकती चूडि़यां, लाल रेशमी जोड़े से सजा आरी के काम वाला लहंगाचोली, मेहंदी से सजे 2 गोरे हाथ, कलाई पर खनकती सोने की चूडि़यां, उंगलियों में फंसी अंगूठियां. हां, हां, कोई था जिस की मद्धम आवाज कानों में बम के धमाकों की तरह गूंज रही थी, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी खालिद, हमेशा.

लाहौर एयरपोर्ट पर अलविदा के लिए लहराता हाथ, दिल में फांस सी चुभी कसक इतनी ज्यादा कि मुंह से बेसाख्ता चीख निकल गई, ‘‘हां, गुनहगार हूं मैं तुम्हारा. तुम्हारे दिल से निकली आह… शायद इसीलिए मेरी बेटी की जिंदगी बरबाद हो गई. मेरे चाचा के बहुत जोर डालने पर, न चाहते हुए भी मुझे उन की अंगरेज बेटी से शादी करनी पड़ी. दौलत का जलवा ही इतना दिलफरेब होता है कि अच्छेअच्छे समझदार भी धोखा खा जाते हैं.

‘‘शफीका, तुम से वादा किया था मैं ने. तुम्हें लाहौर ला कर अपने साथ रखने का. वादा था नए सिरे से खुशहाल जिंदगी में सिमट जाने का, तुम्हारी रातों को हीरेमोती से सजाने का, और दिन को खुशियों की चांदनी से नहलाने का. पर मैं निभा कहां पाया? आंखें डौलर की चमक में चौंधिया गईं. कटे बालों वाली मोम की गुडि़या अपने शोख और चंचल अंदाज से जिंदगी को रंगीन और मदहोश कर देने वाली महक से सराबोर करती चली गई मुझे.’’

अचानक एक साल बाद उन का दामाद इंगलैंड लौट आया, ‘‘अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा. आप की बेटी के साथ ही रहूंगा. वादा करता हूं.’’

दीवानगी की हद तक मुहब्बत करने वाली पत्नी को छोड़ कर दूसरी अंगरेज औरत के टैंपरेरी प्यार के आकर्षण में बंध कर जब वह पूरी तरह से कंगाल हो गया तो लौटने के लिए उसे चर्चों के सामने खड़े हो कर वायलिन बजा कर लोगों से पैसे मांगने पड़े थे.

पति की अपनी गलती की स्वीकृति की बात सुन कर बेटी बिलबिला कर चीखी थी, ‘‘वादा, वादा तोड़ कर उस फिनलैंड वाली लड़की के साथ मुझ पत्नी को छोड़ कर गए ही क्यों थे? क्या कमी थी मुझ में? जिस्म, दौलत, ऐशोआराम, खुशियां, सबकुछ तो लुटाया था तुम पर मैं ने. और तुम? सिर्फ एक नए बदन की हवस में शादी के पाकीजा बंधन को तोड़ कर चोरों की तरह चुपचाप भाग गए. मेरे यकीन को तोड़ कर मुझे किरचियों में बिखेर दिया.

‘‘तुम को पहचानने में मुझ से और मेरे बिजनैसमैन कैलकुलेटिव पापा से भूल हो गई. मैं इंगलैंड में पलीपढ़ी हूं, लेकिन आज तक दिल से यहां के खुलेपन को कभी भी स्वीकार नहीं कर सकी. मुझ से विश्वासघात कर के पछतावे का ढोंग करने वाले शख्स को अब मैं अपना नहीं सकती. आई कांट लिव विद यू, आई कांट.’’ यह कहती हुई तड़प कर रोई थी डाक्टर की बेटी.

आज उस की रुलाई ने डाक्टर को हिला कर रख दिया. आज से 50 साल पहले शफीका के खामोश गरम आंसू इसी पत्थरदिल डाक्टर को पिघला नहीं सके थे लेकिन आज बेटी के दर्द ने तोड़ कर रख दिया. उसी दम दोटूक फैसला, दामाद से तलाक लेने के लिए करोड़ों रुपयों का सौदा मंजूर था क्योंकि बेटी के आंसुओं को सहना बरदाश्त की हद से बाहर था.

डाक्टर, शफीका के कानूनी और मजहबी रूप से सहारा हो कर भी सहारा न बन सके, उस मजलूम और बेबस औरत के वजूद को नकार कर अपनी बेशुमार दौलत का एक प्रतिशत हिस्सा भी उस की झोली में न डाल सके. शफीका की रात और दिन की आह अर्श से टकराई और बरसों बाद कहर बन कर डाक्टर की बेटी पर टूटी. वह मासूम चेहरा डाक्टर को सिर्फ एक बार देख लेने, एक बार छू लेने की चाहत में जिंदगी की हर कड़वाहट को चुपचाप पीता रहा. उस पर रहम नहीं आया कभी डाक्टर को. लेकिन आज बेटी की बिखरतीटूटती जिंदगी ने डाक्टर को भीतर तक आहत कर दिया. अब समझ में आया, प्यार क्या है. जुदाई का दर्द कितना घातक होता है, पहाड़ तक दरक जाते हैं, समंदर सूख जाते हैं.

मैं यह खबर फूफीदादी तक जल्द से जल्द पहुंचाना चाहता था, शायद उन्हें तसल्ली मिलेगी. लेकिन नहीं, मैं उन के दिल से अच्छी तरह वाकिफ था. ‘मेरे दिल में डाक्टर के लिए नफरत नहीं है. मैं ने हर लमहा उन की भलाई और लंबी जिंदगी की कामना की है. उन की गलतियों के बावजूद मैं ने उन्हें माफ कर दिया है, बजी,’ अकसर वे मुझ से ऐसा कहती थीं.

मैं फूफीदादी को फोन करने की हिम्मत जुटा ही नहीं सका था कि आधीरात को फोन घनघना उठा था, ‘‘बजी, फूफीदादी नहीं रहीं.’’ क्या सोच रहा था, क्या हो गया. पूरी जिंदगी गीली लकड़ी की तरह सुलगती रहीं फूफीदादी.

सुबह का इंतजार मेरे लिए सात समंदर पार करने की तरह था. धुंध छंटते ही मैं डाक्टर के घर की तरफ कार से भागा. कम से कम उन्हें सचाई तो बतला दूं. कुछ राहत दे कर उन की स्नेहता हासिल कर लूं मगर सामने का नजारा देख कर आंखें फटी की फटी रह गईं. उन के दरवाजे पर एंबुलैंस खड़ी थी. और घबराई, परेशान बेटी ड्राइवर से जल्दी अस्पताल ले जाने का आग्रह कर रही थी. हार्टअटैक हुआ था उन्हें. हृदयविदारक दृश्य.

मैं स्तब्ध रह गया. स्टेयरिंग पर जमी मेरी हथेलियों के बीच फूफीदादी का लिखा खत बर्फबारी में भी पसीने से भीग गया, जिस पर लिखा था, ‘बजी, डाक्टर अगर कहीं मिल जाएं तो यह आखिरी अपील करना कि वे मुझ से मिलने कश्मीर कभी नहीं आए तो मुझे कोई शिकवा नहीं है लेकिन जिंदगी के रहते एक बार, बस एक बार, अपनी मां की कब्र पर फातेहा पढ़ जाएं और अपनी सरजमीं, कश्मीर की खूबसूरत वादियों में एक बार सांस तो ले लें. मेरी 63 साल की तपस्या और कुरबानियों को सिला मिल जाएगा. मुझे यकीन है तुम अपने वतन से आज भी उतनी ही मुहब्बत करते हो जितनी वतन छोड़ते वक्त करते थे.’

गुनाहों की सजा तो कानून देता है, लेकिन किसी का दिल तोड़ने की सजा देता है खुद का अपना दिल.

‘तू आए न आए,

लगी हैं निगाहें

सितारों ने देखी हैं

झुकझुक के राहें…’

इस गजल का एकएक शब्द खंजर बन कर मेरे सीने में उतरने लगा और मैं स्टेयरिंग पर सिर पटकपटक कर रो पड़ा.

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