जानकारी: डॉक्टर से ऑनलाइन परामर्श कैसे लें

औनलाइन डाक्टरी परामर्श से आप अपने मर्ज का निदान पा सकते हैं. डाक्टर की सलाह से आप पूरी तरह संतुष्ट होना चाहते हैं, तो परामर्श लेने से पहले क्या और कैसे पूछना है, यह आप को पता होना चाहिए.

डाक्टर्स ऐप की शुरुआत लोगों की व्यस्त जीवनशैली को देखते हुए की गई थी. बिना किसी अपौइंटमैंट के आप अपनी हैल्थ के बारे में घर बैठे डाक्टर से औनलाइन परामर्श ले सकते हैं.

आज कोरोना संक्रमण के कारण अस्पताल जाने के बारे में सोचते हुए ही लोगों के मन में दहशत सी होने लगती है. कारण साफ है, एक तो अस्पताल जाना अपनेआप को संक्रमण से ग्रसित होने की दावत देने के समान है, दूसरा, अस्पतालों में मरीजों की भीड़ और अव्यवस्थित स्थिति है.

ऐसी हालत में यही बेहतर लगता है कि घर बैठे ही डाक्टर से सलाह ले कर उपचार कर लिया जाए. ऐसा सोचना बिलकुल सही है. लेकिन, यहां भी एक समस्या सामने आती है, वह यह है कि औनलाइन डाक्टर के सामने आने के बाद मरीज कई बार अपनी समस्या पूरी तरह से डाक्टर के सामने रख नहीं पाता. ऐसा लगता है डाक्टर को अपनी प्रौब्लम पूरी तरह से समझा नहीं पाए और दूर बैठा डाक्टर फिजिकल एग्जामिन कर के मर्ज को जान ले, ऐसा हो नहीं सकता. इसलिए महसूस होता है कि पता नहीं उपचार सही मिला भी है या डाक्टर हमारी बात समझा भी है या नहीं. बेकार ही हम ने रुपए डाक्टर परामर्श के नाम पर बरबाद कर दिए.

सो, डाक्टर के साथ औनलाइन सलाह लेने पर इन बातों का ध्यान अवश्य रखें.

आप को जो भी तकलीफ महसूस हो रही है उसे किसी पेपर पर नोट कर लें ताकि डाक्टर जब पूछे तो बताना न भूलें. कई बातें बहुत छोटी लगती हैं लेकिन बताने में झिझकें नहीं, डाक्टर से खुल कर अपनी बात कहें.

यदि आप की कोई केस हिस्ट्री है तो शुरुआत उसी से कीजिए और बाद में अपनी करंट सिचुएशन के बारे में विस्तार से बताएं. क्योंकि सर्दीजुकाम, पेटदर्द, छोटीमोटी चोट लगना आम बात है लेकिन किडनी रोग, डायबिटीज, कैंसर ऐसी गंभीर बीमारियां हैं जिन की बीमारी को समझने व समझाने में थोड़ा समय लगता है. इसलिए ऐसे मरीजों को जब कोई तकलीफ होती है और वे औनलाइन डाक्टरी परामर्श लें तो अपनी हिस्ट्री जरूर बताएं.

बारबार डाक्टर न बदलें. यदि एक डाक्टर के उपचार से फायदा हुआ है तो अगली बार उसी से संपर्क करें. डाक्टर आप की मैडिकल प्रौब्लम जान चुका होता है तो उसे भी उपचार करने में आसानी रहती है और आप भी डाक्टर से बात करने में कम्फर्टेबल महसूस करते हैं. हां, यह दूसरी बात है यदि आप को लगता है कि फलां डाक्टर से अच्छा इलाज नहीं मिल रहा है तो डाक्टर बदल लें.

यदि आप औनलाइन सलाह लेने में घबरा रहे हैं तो आप को एक बार पहले चैकअप करवा लेना चाहिए. ऐसा करने से आप डाक्टर को अपनी समस्या मिल कर बता सकते हैं और आप के मन को संतुष्टि भी हो जाती है. ऐसा करने के बाद आप डाक्टर से औनलाइन सलाह लेने में खुद को परेशान नहीं पाएंगे.

लोगों की बढ़ती व्यस्त जीवनशैली ने औनलाइन प्लेटफौर्म को काफी बढ़ावा दिया है. एक डाक्टर से औनलाइन सलाह लेना भविष्य में और भी तेजी से बढ़ेगा. जब आप वास्तव में यह समझेंगे कि यह आप का कितना समय बचाता है तब आप खुद इसे अपनाने लगेंगे.

डाक्टर ऐप के फायदे

आप को कहीं भी जाने की जरूरत नहीं होती और घर बैठेबैठे ही हैल्थ प्रौब्लम का ट्रीटमैंट करा सकते हैं.

डाक्टर ऐप पर डाक्टर की फीस उन की क्लीनिक फीस से बहुत कम होती है. अगर आप डाक्टर ऐप के जरिए डाक्टर से सलाह लेते हैं तो 60 फीसदी तक सेविंग कर सकते हैं.

यहां आप को स्पैशलिस्ट डाक्टर मिलते हैं जो एमडी और एमबीबीएस होते हैं. डाक्टर से मिलने के बाद आप उन की प्रोफाइल भी पढ़ कर उन के बारे में पूरी जानकारी ले सकते हैं.

डाक्टर से की गई आप की हैल्थ ऐडवाइज 3 दिनों तक वैलिड होती है और उस के बाद वह खुदबखुद बंद हो जाती है. लेकिन अगर आप को डाक्टर से कोई और प्रश्न करना है तो पुरानी चैट में जा कर उन से दोबारा बात भी कर सकते हैं.

डाक्टर ऐप का प्रयोग करने के लिए आप की उम्र 18+ होनी जरूरी है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इस उम्र में व्यक्ति को अपनी प्रौब्लम के बारे में अच्छी तरह से पता होता है और अच्छी तरह से दूसरे को समझा भी सकता है.  साथ ही, डाक्टर के परामर्श को गहन रूप से समझ सकता है. व्

माहवारी- मर्ज पर भारी

तकरीबन 15 साल की सुमन डाक्टर के सामने बैठी थी. डाक्टर ने उस से पूछा, ‘‘क्या तुम शादीशुदा हो?’’

सुमन ने सवालिया नजरों से अपनी मां की तरफ देखा. तबीयत खराब होने से भला शादी का क्या कनैक्शन? उस ने ‘नहीं’ में सिर हिलाया.

डाक्टर ने सुमन को बाहर भेज कर मां से धीमी आवाज में कुछ पूछा. इस से आसपास बैठे दूसरे मरीजों में खुसुरफुसुर होने लगी.

दरअसल, पिछले 2 महीने से सुमन की माहवारी मिस हो रही थी. उस ने यह बात अपनी मां को बताई और घबराई मां उसे ले कर डाक्टर के पास आ पहुंची.

छोटे से कसबे की रहने वाली सुमन इस बात से बिलकुल बेखबर थी कि वहां मौजूद बाकी लोग उसे कैसी नजरों से देख रहे थे. उस के जेहन में बारबार यही सवाल उठ रहा था कि डाक्टर ने ऐसा क्यों पूछा कि शादी हुई है या नहीं?

लड़कियों से ऐसे सवाल सिर्फ गांवों या छोटे शहरों में ही नहीं पूछे जाते हैं, बल्कि बड़े शहरों का भी यही हाल है.

‘‘मैं एक सिंगल लड़की हूं. पिछले दिनों मेरे पीरियड्स मिस हो गए और मैं डाक्टर के पास गई. मैं यह उम्मीद ले कर गई थी कि डाक्टर मेरी परेशानी का हल बताएंगी, मु झे दवाएं देंगी, मेरी मदद करेंगी, लेकिन हुआ उलटा.

‘‘उन्होंने मुझ से अजीब से सवाल किए. जैसे कि क्या मेरी शादी हो गई है? क्या मेरा बौयफ्रैंड है? क्या मैं सैक्स करती हूं? क्या मेरे मातापिता को इस बारे में मालूम है? मैं डाक्टर के इस रवैए से हैरान थी.’’

यह वाकिआ सीमा के साथ हुआ. वह इस से बेहद खफा है और चाहती है कि डाक्टर कुंआरी या सिंगल लड़कियों से ऐसे सवाल न पूछें और न ही उन्हें ‘नैतिकता’ का पाठ पढ़ाएं.

सैक्सुअल हैल्थ से जुड़ी परेशानी  पर डाक्टर अकसर ही शादी से जुड़े  सवाल करती हैं. कायदे से यह पूछा जाना चाहिए कि क्या आप सैक्सुअली ऐक्टिव हैं?

गाइनोकोलौजिस्ट डाक्टर विमला जयपुर के वात्सल्य हैल्थ सैंटर में मरीजों को देखती हैं. उन के यहां शहरी के साथसाथ जयपुर के गांवदेहात के इलाकों से भी मरीज आते हैं.

डाक्टर विमला का मानना है कि डाक्टरों के लिए मरीज की सैक्स लाइफ और सैक्सुअल ऐक्टिविटी के बारे में जानना जरूरी होता है.

वे यह भी मानती हैं कि मरीज शादीशुदा है या नहीं, वह सैक्सुअली कितनी ऐक्टिव है, ऐसी बातों से डाक्टर का बहुत ज्यादा मतलब नहीं होना चाहिए.

उन्होंने आगे बताया, ‘‘मैं अपने यहां आने वाली लड़कियों को सेफ सैक्स की सलाह देती हूं. एक बालिग लड़की ‘सही’ और ‘गलत’ का फैसला खुद ले सकती है. लड़कियों की माहवारी मिस हो जाना ही सैक्सुअल हैल्थ से जुड़ा मसला नहीं है. इस के अलावा भी कई दिक्कतें हो सकती हैं, जैसे अंग के इंफैक्शन से फैलने वाली बीमारियां.’’

डाक्टरों का ऐसा बरताव निजी क्लिनिकों और छोटे अस्पतालों तक सिमटा हुआ नहीं है, बल्कि बड़े अस्पतालों में भी लड़कियों को इस तरह के सवालों का सामना करना पड़ता है.

23 साल की सोनम बताती है कि डाक्टर यह मान कर चलते हैं कि कोई सैक्स तभी करता है, जब उस की शादी हो जाती है.

जयपुर में रहने वाली 25 साल की सोनम अपने अनुभव सा झा करते हुए कहती है, ‘‘वेजाइनल इंफैक्शन होने पर मैं एक गाइनोकोलौजिस्ट के पास गई. मैं ने उन से पूछा कि कहीं यह एसटीडी तो नहीं है?’’

उस की बात सुन कर डाक्टर ने कहा, ‘‘अगर तुम शादीशुदा नहीं हो, तो एसटीडी का सवाल ही नहीं उठता.’’

सोनम कहती है कि डाक्टर यह मान कर चलते हैं कि कोई सैक्स तभी करता है, जब उस की शादी हो जाती है. मु झे उन के बरताव पर बहुत गुस्सा आया और मैं ने इस बारे में अपना गुस्सा जाहिर करते हुए सोशल मीडिया पर एक पोस्ट भी लिख डाली.

जयपुर के कांवटिया हौस्पिटल में तैनात डाक्टर आरके चिरानियां ने काफी समय तक ऐसे मामलों को हैंडल किया है. वे कहते हैं, ‘‘गाइडलाइंस की बात करें तो छोटीमोटी दिक्कतों के लिए हमें मरीज के अलावा किसी और से बात करने की जरूरत नहीं होती. लेकिन बात अगर बच्चा ठहरने तक पहुंच जाए, तो लड़की के पार्टनर या किसी करीबी को बताना जरूरी हो जाता है.

‘‘कई बार गांवों की ऐसी लड़कियां मेरे पास आती थीं, जिन्हें पता ही नहीं होता था कि वे पेट से हैं. उन्हें बस इतना पता होता था कि उन के पेट में दर्द हो रहा है. ऐसे में उन के मातापिता से बात करना मजबूरी हो जाती थी.’’

डाक्टर आरके चिरानियां इस के पीछे तर्क देते हैं कि किसी को बिना बताए बच्चा गिराना खतरनाक होता है. इस में मौत का डर भी होता है.

‘मर्दाना कमजोरी का शर्तिया इलाज’, ‘सैक्स रोगी मिलें’, ‘जवानी में भूल की है तो न पछताएं’ जैसे इश्तिहार गांवकसबों और बड़े शहरों में जगहजगह दीवारों पर देखने को मिल जाते हैं. लेकिन जहां बात लड़कियों  की आती है, तो हर तरफ चुप्पी छा जाती है या फिर इशारों में बातें होने लगती हैं.

हमारे डाक्टर भी उसी समाज से आते हैं, जहां से हम. मैडिकल साइंस और विज्ञान उन्हें इस काबिल तो बनाता है कि वे बीमारी पहचान सकें, इलाज कर सकें, लेकिन शायद वे यह सम झने में नाकाम होते हैं कि उन का काम यहीं तक है, फैसले सुनाने या मोरल साइंस पर लैक्चर देने का नहीं.

अब यह सवाल उठता है कि क्या हम ऐसे समाज की कल्पना कर सकते हैं, जहां लड़कियां बेझिझक हो कर अपनी सैक्स से जुड़ी तकलीफों के बारे में बात कर पाएं? कम से कम वे डाक्टरों से अपनी तकलीफ खुल कर बता पाएं?

हाई ब्लड प्रेशर से बचने के लिए 5 चीजों को करें परहेज

अगर हाई ब्लड प्रेशर से आप भी परेशान हैं तो अपने खाने में कुछ चीजों को परहेज करना होगा. इससे आप इस समस्या से बच सकते हैं. हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों को बहुत सी खाने पीने की चीजों से परहेज होता है.

हाई ब्लड प्रेशर का अगर समय पर इलाज नहीं किया जाता है, तो यह हार्ट समस्याओं को पैदा कर सकता है. आज आपको ऐस ही फूड्स के बारे में बार में बताना जा  रहे हैं जिनका सेवन हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों को नहीं करना चाहिए.

  1. मसाले

अधिक मसाले वाला खाना ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए नुकसानदायक हो सकता है. खाने में इस्तेमाल होने वाला मसाला ब्लड प्रेशर की समस्या को और बढ़ा सकता है.

2. नमक

हाई ब्लड प्रेशर के मरीज अपने खाने में नमक का कम सेवन करनें. हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए नमक का अधिक सेवन उच्च रक्तचाप और हार्ट समस्याओं का कारण बन सकता है.

3. कैफीन

हाई ब्लड प्रेशर के मरीज कैफीन वाली चीजों से दूर ही रहें तो बेहतर. चाय, कॉफी और सोडा जैसे ड्रिंक नुकसानदेह साबित हो सकते हैं.

4. पैक फूड्स

हाई ब्लड प्रेशर के रोगियों को पैक फूड्स से भी बचकर रहना चाहिए. डिब्बाबंद और पैक किए गए स्टाक में सोडियम की मात्रा अधिक होती है. सोडियम हाई ब्लड प्रेशर की समस्या को बढ़ा सकता है.

5. शुगर

हाई ब्लड प्रेशर के रोगियों को शुगर या मीठी चीजों से बचना चाहिए. शुगर का अधिक सेवन करने से मोटापा बढ़ सकता है, जो हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए हानिकारक हो सकता है.

स्ट्रोक होने पर जा सकती है आपकी जान, लक्षण पहचानें और तुरंत कराएं इलाज

आज कल के तनाव भरे माहौल से पुरूषों को स्ट्रोक जैसी बिमारियां होने लगी हैं. आसान शब्दों में स्ट्रोक को ब्रेन अटैक भी कहा जाता है. वैसे तो स्ट्रोक पुरूष या महिलाओं में से किसी को भी हो सकता है. स्ट्रोक के चलते इंसान के ब्रेन को सही मात्रा में ब्लड और औक्सीजन नहीं पहुंच पाता है जिसके कारण इंसान के दिमागी सैल्स खत्म होने लगते हैं. यह स्थिति इंसान के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकती है क्योंकि इसकी वजह से इंसान फिजिकली चैलेंज हो सकता है और तो और इस स्थिति में जान जाने का खतरा भी बना रहता है. स्ट्रोक होने पर कुछ लक्षण दिखाई देने लगते हैं और समय रहते अगर उन लक्षणों को पहचान कर इलाज करवाया जाए को हम इसे बढ़ने से रोक सकते हैं.

आज हम आपको बताएंगे स्ट्रोक के कुछ लक्षण, तो अगर आपको इन लक्षणों मे से एक भी लक्षण अपने अंदर महसूस होते हैं को बिना देरी किए अपने डौक्टर से जरूर चैक अप कराएं.

सबसे पहले आता है फास्ट (FAST) स्ट्रोक टेस्ट-

अपने आप में या किसी और में स्ट्रोक के सबसे लक्षणों की जांच के लिए FAST टेस्ट का इस्तेमाल कर सकते हैं. (FAST) यानी- F(face), A (arm), S (speech), T (time).

  • F(face) फेसः मुंह का तिरछा/टेढ़ा हो जाना.
  • A (arm) आर्मः एक या दोनों हाथों का बेजान व कमजोर हो जाना.
  • S (speech) स्पीचः बोलने में परेशानी, जुबान लड़खड़ाने लगना या फिर पूरी तरह से आवाज का चले जाना.
  • T (time) टाइमः स्ट्रोक में समय बिलकुल व्यर्थ ना करें और समय नोट कर तुरंत इलाज के लिए अपने डौक्टर को दिखाएं.

इसके अलावा शरीर के अन्य अंगों पर भी स्ट्रोक का असर पड़ सकता है जैसे कि,

  • देखने में परेशानी हो सकती है.
  • शरीर का कमजोर या सुन्न पड़ना.
  • तेज सिर दर्द होना.
  • अचानक चक्कर आना व चलने में परेशानी आना.

स्ट्रोक के लक्षण होना इस बात पर निर्भर करता है कि यह आपके दिमाग के किस हिस्से पर असर कर रहा है. स्ट्रोक का अक्सर दिमाग के सिर्फ बाएं या दाएं हिस्से को पर असर पड़ता है. तो अगर आपको इन में से कोई एक भी लक्षण अपने अंगर महसूस होते हैं तो बिल्कुल देरी नो करें और डौक्टर को दिखाएं क्योंकि इस केस में लापरवाही करना आपकी जान ले लकता है.

जामुन: फल एक, सेहत से जुड़ें फायदे अनेक

बारिश में जहां एक ओर गरमागरम पकोड़े और भजिएं लोगों की पहली पसंद होते है जो आपकी सेहत के लिए बीमारी का घर बन सकता है. वही इस मौसम के फल आपके शरीर को कई बीमारी से दूर रखने में काफी असरकारक हो सकते है. बारिश के मौसम में सबसे ज्यादा दिखने वाले फलों में जामुन है, जो बारिश में ही देखने को नसीब होता है.खट्टे-मीठे स्वाद के कारण जामुन की कई डिशेज बनाई जाती हैं. वैसे तो जामुन खाने के ढेर सारे फायदे हैं। मगर डायबिटीज रोगियों के लिए जामुन विशेष फायदेमंद होता है. जामुन खाने से ब्लड शुगर घटता है और इंसुलिन की मात्रा नियंत्रित रहती है. इस सिजनेबल फल को जितना हो सके आपने खाने में इस्तेमाल करें.

 पौष्टिक तत्वों से भरपूर है जामुन

जामुन में कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, फास्फोरस, पोटैशियम जैसे मिलिरल्स है जिसकी समय समय पर हमारे शरीर को जरुरत होती है. इसके अलावा जामुन में विटामिन्स और फाइबर भी भरपूर पाए जाते हैं. जामुन में ग्लूकोज और फ्रक्टोज पाया जाता है, मगर फाइबर होने के कारण यह बहुत धीरे-धीरे खून में घुलता है.

 पेट संबंधी समस्या और कैंसर के लिए भी फायदेमंद

जामुन खाने से आपका डाईजेशन अच्छा होता है साथ ही  जामुन खाने से पेट सं‍बंधित समस्या कम होती हैं. शुगर के उपचार के लिए जामुन बहुत ही फायदेमंद माना जाता है. शुगर के रोगी को जामुन की गुठलियों को सुखाकर, पीसकर उनका सेवन करें. इससे शुगर लेवल कंट्रोल में रहता है. आपको जानकर हैरानी होगी पर जामुन में कैंसर से भी निपटने की क्षमता है. कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी के बाद जामुन खाना चाहिए, इससे फायदा होता है.

पथरी और छालों को रखें दूर

जामुन खाने से पथरी में फायदा होता है. जामुन की गुठली के चूर्ण को दही के साथ मिलाकर खाने से पथरी में फायदा होता है वही मुंह में छाले होने पर जामुन के रस का प्रयोग करने से लाभ होता है.

खूनी दस्त में है रामवाण

दस्त या खूनी दस्त होने पर जामुन का सेवन करना चहिए. दस्त होने पर जामुन के रस को सेंधानमक के साथ मिलाकर खाने से दस्त बंद हो जाता है.

प्रदूषण से बढ़ती हैं एलर्जी, जानें उपाय

प्रदूषण चाहे हवा का हो, पानी का हो या जमीन का, रोगों के पनपने का बड़ा कारण है. यह प्रकृति के नियमों में परिवर्तन करता है, प्रकृति के क्रियाकलाप में बाधा डालता है. प्रदूषण हवा, पानी, मिट्टी, रासायनिक पदार्थ, शोर या ऊर्जा किसी रूप में भी हो सकता है. इन सभी तत्त्वों का हमारे परिस्थितिकी तंत्र पर बुरा असर  पड़ता है जिस का प्रभाव मनुष्य के साथसाथ जानवरों और पेड़पौधों पर भी पड़ता है. चूंकि बच्चे और बुजुर्ग ज्यादा संवेदनशील होते हैं, इसलिए इन जहरीले तत्त्वों का असर उन पर सब से अधिक पड़ता है.

प्रदूषण कई प्रकार के होते हैं, जैसे वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मिट्टी का प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण. इन से कई प्रकार की खतरनाक बीमारियां और एलर्जी भी होती है.

वायु प्रदूषण की मार

वायु प्रदूषण में सौलिड पार्टिकल्स और कई तरह की गैसें शामिल होती हैं. दरअसल, एयर पौल्युटैंट हमारे शरीर में रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट (श्वास नली) और लंग्स (फेफड़ों) द्वारा प्रवेश करते हैं. इन्हें रक्तवाहिकाएं सोख लेती हैं, जो शरीर के अन्य अंगों तक प्रसारित हो जाते हैं.

वायु प्रदूषण कई रोगों का कारण बनता है जिस की शुरुआत एलर्जी के रूप में आंख, नाक, मुंह और गले में साधारण खुजली या एनर्जी लेवल के कम होने, सिरदर्द आदि से हो सकती है. इस से गंभीर समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं.

  1. रेस्पिरेटरी और लंग्स डिजीज : किसी व्यक्ति में वायु प्रदूषण के चलते समस्या शुरू हो गई है तो उसे रेस्पिरेटरी और लंग्स डिजीज अपनी चपेट में ले सकती हैं.

इन के अंतर्गत अस्थमा अटैक, क्रोनिक औब्सट्रैक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), लंग्स का कम काम करना, पल्मोनरी कैंसर, (एक खास तरह का लंग कैंसर मेसोथेलियोमा जिस का संबंध आमतौर पर एस्बेस्टोस की चपेट में आने से है आमतौर पर इस की चपेट में आने के 20-30 साल बाद यह नजर आता है), निमोनिया आदि बीमारियां आती हैं.

2. कार्डियोवैस्क्युलर डिजीज, हार्ट डिजीज और स्ट्रोक : सैकंडहैंड स्मोक के बारे में देखा गया है कि यह हृदय रोग को बढ़ाता है. कार्बन मोनोऔक्साइड और नाइट्रोजन डाईऔक्साइड भी इस में सहयोग देते हैं. वायु प्रदूषण को हृदय रोग का एक प्रमुख कारण माना जाता है क्योंकि एयर पौल्युटैंट लंग्स में प्रवेश करते हैं और रक्तवाहिकाओं में घुल जाते हैं जो इंफ्लेमेशन का कारण बनते हैं और हृदय की गति को बढ़ाते हैं. ये अस्थमा और लंग्स व सांस की एलर्जी का कारण बनते हैं.

3. न्यूरो बिहेवियरल (शारीरिक और मानसिक) डिसऔर्डर : वायु में उपस्थित विषाक्त तत्त्व जैसे मरकरी आदि न्यूरोलौजिकल समस्याएं और विकास में बाधा का कारण बनते हैं.

4. लिवर और दूसरे तरह का कैंसर : कार्सिनोजेनिक वोलाटाइल कैमिकल में सांस लेने से लिवर की समस्या और कैंसर हो सकता है. यह भी वायु प्रदूषण के चलते ही होता है.

एक अध्ययन के मुताबिक, धुएं और विभिन्न कैमिकल्स के चलते होने वाले वायु प्रदूषण के चलते प्रतिवर्ष लगभग 30 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है.

जल प्रदूषण के खतरे

जीवन के लिए जल जितना आवश्यक है उतना ही प्रदूषित जल हमारे जीवन के लिए खतरनाक साबित होता है. जल प्रदूषण से कई खतरनाक बीमारियां और एलर्जी होती हैं जो अकसर जानलेवा भी साबित होती हैं.

इंफेलाइटिस, पेट में मरोड़ और दर्द, उलटी, हेपेटाइटिस, रेस्पिरेटरी एलर्जी, लिवर का डैमेज होना आदि बीमारियां जल प्रदूषण के चलते हो सकती हैं. प्रदूषित जल में पाए जाने वाले कैमिकल्स के संपर्क की वजह से किडनी भी खराब हो सकती है.

दूषित जल के प्रयोग से कई प्रकार की एलर्जी भी हो सकती है जिस में त्वचा में जलन, लाल चकत्ते पड़ना और फुंसियां होना आम बात है.

  1. न्यूरोलौजिकल समस्याएं : पानी में आमतौर पर पैस्टिसाइड्स  (जैसे डीडीटी) जैसे कैमिकल्स की उपस्थिति के कारण नर्वस सिस्टम क्षतिग्रस्त हो सकता है.

2. प्रजनन संबंधी समस्या : प्रदूषित पानी के सेवन के चलते जिस्म के अंदरूनी तंत्र के क्षतिग्रस्त होने से लैंगिक विकास में बाधा, बांझपन, इम्यून फंक्शन का कमजोर होना, उर्वरता की क्षमता कम होना जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं.

जल प्रदूषण बढ़ने की वजह से मलेरिया का ब्रीडिंग ग्राउंड बन जाता है. यह मच्छरों द्वारा फैलता है. इसकी वजह से दुनियाभर में प्रतिवर्ष लगभग 10.2 लाख लोगों की मौत हो जाती है.

जल प्रदूषण के कारण कुछ सामान्य रोग भी होते हैं जो ज्यादा गंभीर नहीं होते, जैसे समुद्र प्रदूषित पानी में नहाना जिस से कई प्रकार की एलर्जी हो सकती है, जैसे रैशैज, कान में दर्द, आंखों का लाल होना आदि.

मिट्टी के प्रदूषण

हैवी मैटल्स, पैस्टिसाइड्स, सौल्वैंट्स और दूसरे मानव निर्मित कैमिकल्स, लेड और तेल की गंदगी आदि कुछ सामान्य तत्त्व हैं जो मिट्टी को प्रदूषित करने में अपना योगदान देते हैं. मिट्टी का प्रदूषण मिट्टी की प्राकृतिक गुणवत्ता को नष्ट कर देता है, उपयोगी सूक्ष्मजीवों को मार देता है और एक प्रकार से पैथोजैनिक सौइल इनवायरमैंट का निर्माण करता है.

मिट्टी प्रदूषण से होने वाले रोग प्रत्यक्षरूप से इस को प्रदूषित करने वाले तत्त्वों के संपर्क में आने से होते हैं, जैसे वायु में उत्पन्न तत्त्व में सांस लेना, फसलों पर ऐसे पानी का छिड़काव या ऐसी मिट्टी में फसल उगाना आदि. हालांकि मिट्टी प्रदूषण की चपेट में आना वायु और जल प्रदूषण की चपेट में आने जितना गंभीर नहीं होता. इसका खतरनाक असर बच्चों पर हो सकता है जो आमतौर पर जमीन पर खेलते हैं और इन जहरीले तत्त्वों के सीधे संपर्क में होते हैं.

प्रदूषित मिट्टी के कारण कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, जैसे सिरदर्द, चक्कर आना, थकान के अलावा त्वचा पर रैशेज, आंखों में खुजली और बाद में इन की गंभीर स्थिति वाली एलर्जी भी हो सकती है.

  1. मस्तिष्क को क्षति : जब बच्चे लेड से प्रभावित मिट्टी के संपर्क में आते हैं तो उन के मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम में क्षति हो सकती है. इस से उन के मस्तिष्क और न्यूरोमस्क्यूलर विकास प्रभावित होते हैं.

2. किडनी और लिवर को क्षति : मिट्टी में लेड की मिलावट लोगों को किडनी डैमेज के खतरे में डालती है. ऐसी मिट्टी के संपर्क में आना जिस में मरकरी और साइक्लोडाइन्स का मिश्रण हो, तो वह कभी न ठीक होने वाले किडनी रोग का कारण बन सकता है.

3. मलेरिया : जिन  क्षेत्रों में ज्यादा बारिश होती है और वहां पानी निकलने की ठीक से व्यवस्था नहीं होती तो वहां पानी के साथ मिट्टी मिल जाती है जिस से वहां के लोगों का प्रत्यक्षरूप से मलेरिया के संपर्क में आना सामान्य बात है. मलेरिया प्रोटोजोआ के कारण होता है जो मिट्टी में पैदा होता है. बरसात का पानी प्रोटोजोआ और मच्छरों को आगे बढ़ाने में मदद करता है जिस का परिणाम मलेरिया होता है.

ध्वनि प्रदूषण के साइड इफैक्ट्स

ध्वनि प्रदूषण मनुष्य को चिड़चिड़ा बना देता है. ध्वनि प्रदूषण का मनुष्य पर कई रूपों में प्रभाव पड़ता है.

  1. दक्षता की कमी : कई तरह के शोधों के बाद यह बात साबित हुई है कि मनुष्य के काम करने की क्षमता शोर के कम होने से ज्यादा बढ़ती है. कारखानों का शोर अगर कम कर दिया जाए तो वहां के काम करने वालों की दक्षता को बढ़ाया जा सकता है. इस से यह साबित होता है कि मनुष्य के काम करने की दक्षता का संबंध शोर से है.

2. एकाग्रता में कमी : कार्य के बेहतर परिणाम के लिए एकाग्रता की आवश्यकता होती है. तेज आवाज की वजह से ध्यान भंग होता है. बड़े शहरों में आमतौर पर दफ्तर मुख्य मार्गों पर स्थित होते हैं, ट्रैफिक का शोर या विभिन्न प्रकार के हौर्न्स की तेज आवाजें दफ्तर में काम करने वाले लोगों की एकाग्रता को भंग करती हैं.

3. थकान : ध्वनि प्रदूषण के कारण लोग अपने काम में एकाग्रता नहीं ला पाते. परिणामस्वरूप उन्हें अपना काम पूरा करने में ज्यादा वक्त लगता है जिस की वजह से उन्हें थकान महसूस होती है.

4. गर्भपात : गर्भावस्था के दौरान शांत और सुकून देने वाला वातावरण आवश्यक होता है. अनावश्यक शोर किसी भी महिला को चिड़चिड़ा बना सकता है. कई बार शोर गर्भपात की भी वजह बनता है.

5. ब्लडप्रैशर : शोर व्यक्ति पर कई प्रकार से हमला करता है. यह व्यक्ति के मस्तिष्क की शांति पर हमला करता है. आधुनिक जीवनशैली के चलते पहले से तनाव में रह रहे व्यक्ति के शोर तनाव को बढ़ाने का काम करता है. तनाव की वजह से कई प्रकार के रोग पैदा होते हैं, जैसे ब्लडप्रैशर, मानसिक रोग, डायबिटीज के अलावा दिल की बीमारी आदि. इसलिए तनाव से व्यक्ति को दूरी बना लेने में ही भलाई है.

6. अस्थायी या स्थायी बहरापन : मैकेनिक्स, लोकोमोटिव ड्राइवर्स, टैलीफोन औपरेटर्स आदि सभी को कानों में तेज ध्वनि सुननी पड़ती है. हम सभी लगातार शोर की चपेट में रहते हैं. 80 से 100 डैसिबिल की ध्वनि असुरक्षित होती है. तेज आवाज अस्थायी या स्थायी बहरेपन का कारण भी बन सकती है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से कराए गए एक अध्ययन के अनुसार, हृदय रोगों के लिए जिम्मेदार कारकों में से एक ध्वनि प्रदूषण को माना जाता है. इस के अलावा ध्वनि प्रदूषण के कारण अनिद्रा और गंभीर चिड़चिड़ापन जैसे रोग भी होते हैं. एक अध्ययन के अनुसार, हर प्रकार के संक्रामक रोग में से 80 प्रतिशत जल प्रदूषण के कारण होते हैं. जल प्रदूषण के कारण दुनियाभर में लगभग 2.5 करोड़ लोगों की मौत हो जाती है.

प्रदूषण के जानलेवा आंकड़े

वायु प्रदूषण के चलते प्रतिवर्ष 30 लाख लोगों की मौत होती है.

– 80 से 100 डैसिबिल की ध्वनि, ध्वनि प्रदूषण की खतरनाक श्रेणी में आती है.

– दुनिया में हर साल 2.5 करोड़ लाख लोगों की मौत के पीछे की वजह जल प्रदूषण है.

– लगातार ध्वनि प्रदूषण की चपेट में रहने से शरीर में स्ट्रैस हार्मोंस जैसे एड्रेनालाइन, नोराड्रेनालाइन और कार्टीसोल का स्तर बढ़ जाता है. स्ट्रैस, जैसा कि माना जाता है, हार्ट फेलियर, इम्यूनिटी समस्या, हाइपरटैंशन और स्ट्रोक का कारण बनता है.

टोंड या फुल क्रीम: जानें सेहत के लिए कौन सा दूध है बेहतर

मार्केट में जब भी दूध लेने जाते है तो तरह तरह के दूध वहा मौजूद होते है. कई लोग तो इस के अंतर और फायदे को जानते है पर ज्यादातर लोग इस बात से अनजान रहते है की फूल क्रीम और टोंड मिल्‍क में क्या अंतर होता है. वजन बढ़ने और अन्‍य कई समस्‍याओं के लिए हमेशा फुल क्रीम दूध को दोष दिया जाता है, लेकिन क्‍या ये सही है. इन्ही सब के चलते आज हम दूध से जुड़े कुछ ऐसी बाते बताएंगे जो आपके जानना जरुरी है. तो चलिए जानते है..

क्या आप जानते है फैक्ट

फुल-फैट वाले डेयरी उत्पाद वास्तव में आपके वजन घटाने के लक्ष्यों को पूरा करने में आपकी मदद कर सकते हैं, जबकि लोग ऐसा नहीं मानते हैं. 18,000 मिडिल एज की स्वस्थ वजन वाली महिलाओं पर किए गए दस साल के लंबे रिसर्च में पाया गया कि जिन महिलाओं ने अधिक दूध का सेवन किया और पूर्ण फैट वाले डेयरी उत्पादों का सेवन किया, उनमें उन महिलाओं की तुलना में अधिक वजन और मोटापे की संभावना कम थी, जिन्होंने पूर्ण फैट वाले डेयरी का सेवन नहीं किया था.

फुल क्रीम दूध की दैनिक खपत ने प्रतिभागी के एचडीएल कोलेस्ट्रौल (अच्छे कोलेस्ट्रौल) के स्तर में वृद्धि की, जबकि टोंड मिल्‍क पीने वाली महिलाओं ये लाभ नहीं दिखा। कुछ अन्य अध्ययनों में पाया गया कि जो बच्चे फुल क्रीम दूध का सेवन करते हैं, उनमें बाकी बच्‍चों (जो कम फैट वाले दूध पीते हैं) के मुकाबले विटामिन डी का स्तर बेहतर था. शोधकर्ताओं ने पाया कि दूध में पाई जाने वाला फैट शरीर को अधिक विटामिन डी अवशोषित करने में मदद करती है.

फैट-फ्री और स्किम मिल्क संतोषजनक नहीं होते हैं और फैट रहित दही अतिरिक्त शर्करा से भरे होते हैं और ये हमें फैट वाले डेयरी उत्‍पादों से मिलने वाले स्वास्थ्य लाभों से भी वंचित रखते हैं. जब लोग फैट को कम करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो वे विकल्प के रूप में ज्‍यादा रिफाइंड कार्ब्‍स और शुगर खाने लगते हैं, जिसके अपने कई स्वास्थ्य जोखिम होते हैं.

आखिर कहां से आया टोंड मिल्क का कौनसेप्ट

1990 के दशक के दौरान, पोषण विशेषज्ञों और स्वास्थ्य पेशेवरों ने लोगों को अपने आहार से फैट में कटौती करने की सलाह दी जिसमें दूध और अन्‍य डेयरी उत्‍पाद शामिल थे. जिसके कारण अधिक से अधिक लोग कम फैट और फैट रहित डेयरी उत्‍पादों का विकल्प चुनने लगे. इसके बाद डेयरी उत्‍पाद के निर्माताओं ने अपने उत्पादों में आर्टीफिशियल इंग्रीडिएंट और चीनी मिलाना शुरू कर दिया, ताकि लोगों को बेहतर स्वाद मिल सके. इसके कारण हमें फ्लेवर्ड दूध, मीठी दही और अन्‍य उत्‍पाद मार्केट में मिलने लगे.

जानें क्या है एओर्टिक स्टेनोसिस, ये हैं इस बीमारी के लक्षण

एओर्टिक स्टेनोसिस क्या है?

जब हृदय पंप करता है तो दिल के वौल्व खुल जाते हैं जिस से रक्त आगे जाता है और हृदय की धड़कनों के बीच तुरंत ही वे बंद हो जाते हैं ताकि रक्त पीछे की तरफ वापस न आ सके. एओर्टिक वौल्व रक्त को बाएं लोअर चैंबर (बायां वैंट्रिकल) से एओर्टिक में जाने के निर्देश देते हैं.

एओर्टिक मुख्य रक्तवाहिका है जो बाएं लोअर चैंबर से निकल कर शरीर के बाकी हिस्सों में जाती है. अगर सामान्य प्रवाह में व्यवधान पड़ जाए तो हृदय प्रभावी तरीके से पंप नहीं कर पाता. गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस यानी एएस में एओर्टिक वौल्व ठीक से खुल नहीं पाते.

मेदांता अस्पताल के कार्डियोलौजिस्ट डा. प्रवीण चंद्रा कहते हैं कि गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस की स्थिति में आप के हृदय को शरीर में रक्त पहुंचाने में अधिक मेहनत करनी पड़ती है. समय के साथ इस वजह से दिल कमजोर हो जाता है. यह पूरे शरीर को प्रभावित करता है और इस वजह से सामान्य गतिविधियां करने में दिक्कत होती है. जटिल एएस बहुत गंभीर समस्या है. अगर इस का इलाज न किया जाए तो इस से जिंदगी को खतरा हो सकता है. यह हार्ट फेल्योर व अचानक कार्डिएक मृत्यु का कारण बन सकता है.

लक्षण पहचानें

एओर्टिक स्टेनोसिस के कई मामलों में लक्षण तब तक नजर नहीं आते जब तक रक्त का प्रवाह तेजी से गिरने नहीं लगता. इसलिए यह बीमारी काफी खतरनाक है. हालांकि यह बेहतर रहता है कि बुजुर्गों में सामने आने वाले विशिष्ट लक्षणों पर खासतौर से नजर रखनी चाहिए. ये लक्षण छाती में दर्द, दबाव या जकड़न, सांस लेने में तकलीफ, बेहोशी, कार्य करने में स्तर गिरना, घबराहट या भारीपन महसूस होना और तेज या धीमी दिल की धड़कन होना हैं.

बुजुर्ग लोगों को एओर्टिक स्टेनोसिस का बहुत रिस्क रहता है क्योंकि इस का काफी समय तक शुरुआती लक्षण नहीं दिखता. जब तक लक्षण, जैसे कि छाती में दर्द या तकलीफ, बेहोशी या सांस लेने में तकलीफ, विकसित होने लगते हैं तब तक मरीज की जीने की उम्र सीमित हो जाती है. ऐसी स्थिति में इस का इलाज सिर्फ वौल्व का रिप्लेसमैंट करना ही बचता है. हाल ही में विकसित ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वौल्व रिप्लेसमैंट (टीएवीआर) तकनीक की मदद से गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस रोगियों का इलाज प्रभावी तरीके से किया जा सकता है जिन की सर्जरी करने में बहुत ज्यादा जोखिम होता है.

एओर्टिक वौल्व रिप्लेसमैंट

टीएवीआर से उन एओर्टिक स्टेनोसिस रोगियों को बहुत लाभ मिलेगा जिन्हें ओपन हार्ट सर्जरी करने के लिए अनफिट माना गया है. इस उपचार की सलाह उन मरीजों को दी जाती है जिन का औपरेशन रिस्कभरा होता है. इस से उन के जीने और कार्यक्षमता में बहुत सुधार होता है.

गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस में जान जाने का खतरा रहता है और अधिकतर मामलों में सर्जरी की ही जरूरत पड़ती है. कुछ सालों तक इस बीमारी का इलाज ओपन हार्ट सर्जरी ही थी. लेकिन टीएवीआर के आने से अब काफी बदलाव हो रहे हैं. टीएवीआर मिनिमल इंवेसिव सर्जिकल रिप्लेसमैंट प्रक्रिया है जो गंभीर रूप से पीडि़त एओर्टिक स्टेनोसिस रोगियों और ओपन हार्ट सर्जरी के लिए रिस्की माने जाने वाले रोगियों के लिए उपलब्ध है. इस के अलावा जो रोगी कई तरह की बीमारियों से घिरे हुए हैं, उन के लिए भी यह काफी प्रभावी और सुरक्षित प्रक्रिया है.

टीएवीआर ने दी नई जिंदगी

देहरादून के 53 साल के संजीव कुमार का वजन 140 किलो था और वे हाइपरटैंशन व डायबिटीज से पीडि़त थे. इस के साथ उन्हें अनस्टेबल एंजाइना की समस्या थी जिस में रोगी को अचानक छाती में दर्द होता है और अकसर यह दर्द आराम करते समय महसूस होता है.

संजीव को कई और बीमारियां जैसे कि नौन क्रीटिकल क्रोनोरी आर्टरी बीमारी (सीएडी), औबस्ट्रैक्टिव स्लीप अपनिया (सोते समय सांस लेने में तकलीफ), उच्च रक्तचाप, क्रोनिक वीनस इनसफिशिएंसी (बाएं पैर), ग्रेड 2 फैटी लीवर (कमजोर लीवर), हर्निया और गंभीर एलवी डायफंक्शन के साथ खराब इंजैक्शन फ्रैक्शन 25 फीसदी (हृदय के पंपिग करने की कार्यक्षमता) थीं.

संजीव की स्थिति दिनबदिन गंभीर होती जा रही थी और उन का पल्स रेट 98 प्रति मिनट (सामान्य से काफी ज्यादा) था. सीटी स्कैन और अन्य परीक्षणों के बाद खुलासा हुआ कि वे गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस से भी पीडि़त थे.

इतनी बीमारियों के कारण डाक्टर ने मोेटापे से ग्रस्त संजीव का इलाज ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वौल्व रिप्लेसमैंट (टीएवीआर) से किया. हालांकि जब फरवरी 2016 में उन पर यह प्रक्रिया अपनाई गई, तब तक वे 25-30 किलो वजन कम कर चुके थे और जिंदगी को ले कर उन का नजरिया काफी सकारात्मक हो गया था.

समय पर चैकअप जरूरी

गौरतलब है कि एएस की बीमारी आमतौर पर जब तक गंभीर रूप नहीं ले लेती तब तक इस बीमारी के लक्षणों का पता नहीं चलता. इसलिए नियमित चैकअप कराने की सलाह दी जाती है. उम्र बढ़ने के साथ एएस के मामले भी बढ़ते जाते हैं. इसलिए बुजुर्ग रोगियों को वौल्व फंक्शन टैस्ट के बारे में डाक्टर से पूछना चाहिए और गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस के इलाज की आधुनिक तकनीकों की जानकारी भी लेते रहना चाहिए.

क्या आप जानते हैं

भारत में लगभग 15 लाख लोग गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस से पीडि़त हैं. उन में से 4.5 लाख रोगी सर्जरी के लिए अनफिट हैं.

अगर समय पर एओर्टिक वौल्व रिप्लेस न किए जाएं तो पाया गया है कि 50 फीसदी एओर्टिक स्टेनोसिस रोगी दिल का दौरा पड़ने पर 2 साल और छाती में दर्द के साथ 5 साल तक ही जीवित रह पाते हैं.

चोट व जले के दर्द से राहत देता है पान, जानें इसके कई अन्य फायदे

शादी सहित अन्य समारोह में भोज पान के बिना अधूरा है. ज्यादतर लोग स्वाद के लिए पान खाते हैं लेकिन उनको पता नहीं होता कि पान खाने से उनको कई अन्य फायदे भी होते हैं. पान के पत्ते में कई ऐसे तत्व होते हैं जो बैक्टीरिया के प्रभाव को कम करने में सहायक होते हैं. जिन लोगों के मुंह से बदबू आती है उनके लिए भी पान का सेवन काफी फायदेमंद होता है. इसमें इस्तेमाल होने वाले मसाले जैसे लौंग, कत्था और इलायची भी मुंह को फ्रेश रखने में सहायक होते हैं. पान खाने वालों के लार में एस्कॉर्बिक एसिड का स्तर भी सामान्य बना रहता है, जिससे मुंह संबंधी कई बीमारियां होने का खतरा कम हो जाता है.

पान में अल्प मात्रा में कपूर की मात्रा के साथ 3-4 बार चबाने से पायरिया दूर होता है. लेकिन यह बात ध्यान रखें की पान की पीक पेट में नहीं जानी चाहिए. अगर आपको खांसी आ रही हो तो आप पान के पत्ते में अजवाइन डालकर चबाएं. इससे आपको खांसी से भी आराम मिलेगा. किडनी खराब होने पर भी आप पान का सेवन कर सकते हैं. पान खाने से किडनी खराब होने का खतरा कम होता है.

मसूड़ों में सूजनपर या गांठ आ जाने पर

मसूड़े में गांठ या फिर सूजन हो जाने पर पान का इस्तेमाल काफी फायदेमंद होता है. पान में पाए जाने तत्व इन उभारों को कम करने का काम करते हैं. मुंह में छाले पड़ जाने पर पान के रस को देशी घी से लगाने पर प्रयोग करने से फायदा होता है.


पाचन में सहायक

पान खाना पाचन क्रिया के लिए फायदेमंद है. ये सैलिवरी ग्लैंड को सक्रिय करके लार बनाने का काम करता है जोकि खाने को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने का काम करता है. कब्ज की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए भी पान की पत्ती चबाना काफी फायदेमंद है. गैस्ट्र‍िक अल्सर को ठीक करने में भी पान खाना काफी फायदेमंद है.

 

साधारण बीमा‍रियों और चोट लगने पर

अगर आपको सर्दी हो रखी है तो ऐसे में पान के पत्ते आपके लिए फायदेमंद रहेंगे. इसे शहद के साथ मिलाकर खाने से फायदा होता है. साथ ही पान में मौजूद एनालजेसिक गुण सिर दर्द में भी आराम देता है. चोट लगने पर पान का सेवन घाव को भरने में मदद करता है. चोट पर पान को गर्म करके बांध लेना चाहिए. इससे दर्द में आराम मिलता है. जले हुए जगह पर पान लगाने से भी फायदा मिलता है.

कामोत्तेजना बढ़ाने में

पान के पत्ते कामोत्तेजना बढ़ाने में भी सहायक होते हैं. अंतरंग पलों को और खुशनुमा बनाने के लिए आप पान के पत्तों को इस्तेमाल कर सकते हैं.

जिस ‘बीमारी’ से परेशान थे आयुष्मान, क्या आपको पता है उसके बारे में ?

आपने आयुष्मानखुराना की फिल्म “शुभ मंगल सावधान” तो देखी होगी उसमें उनको एक एक हेल्थ प्रौब्लम होती  हैं जिसके चलते उनकी शादी तो खतरे में पड़ती ही है साथ ही उनको शर्मिंदगी का सामना भी करना पड़ता  हैं, वो समस्या हैं….शीघ्रपतन (Premature ejaculation) .

आमतौर पर देखा जाता है की सेक्स से जुड़ी समस्या को लोग किसी को  भी जल्दी नही बताते. इसका कारण या तो शर्म होती है या फिर मन की झिझक, पर इस समस्या को जितना छिपाया जाता है उतनी ही परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं. इन्हीं समस्याओं मे से एक समस्या है शीघ्रपतन (Premature ejaculation) . आम भाषा में कहे तो शीघ्रपतन का मतलब होता है वीर्य का जल्दी निकलना.

सेक्स के दौरान या पहले पुरुषों का वीर्य स्‍खलित हो जाना शीघ्रपतन कहलाता है. स्‍त्री की कामोत्‍तेजना (Orgasm) शांत होने से पहले या हस्‍तमैथुन  (Masturbation) क्रिया के दौरान यदि पुरुषों का वीर्य स्‍खलित हो जाता है तो इसका मतलब है कि वह शीघ्रपतन की समस्‍या से गुजर रहा है.

इस समस्या को लेकर लोग डाक्टर के पास भी नहीं जाते पर देखा जाए तो शीघ्रपतन कोई बड़ी समस्या नहीं है और इसका उपचार भी हो सकता है. तो आज हम आपको शीघ्रपतन के बारे में विस्‍तार से बता रहे हैं, जिससे आपको काफी हद तक इस समस्‍या का समाधान मिल सके.

 क्यों होता है शीघ्रपतन

शीघ्रपतन के दो कारण है- लाइफ लौन्ग (प्राइमरी), एक्वायर्ड (सेकेंडरी). शीघ्रपतन की समस्‍या पहली बार या किसी नए पार्टनर के साथ संभोग करने के दौरान कामोउत्तेजना के ज्यादा प्रवाह होने के चलते भी ये हो सकता है. अगर लंबे समय के बाद संभोग किया जाए तो भी शीघ्रपतन की समस्‍या हो सकती है. इसके अलावा अपनी पार्टनर के बीच के रिश्‍तों के बारे में तनाव या ज्‍यादा सोचना भी शीघ्रपतन का कारण है.

क्या है इसके लक्षण

  • बार-बार प्रयास करने पर भी संभोग (sexual intercourse) के दौरान 1 मिनट तक ना रोक पाना.
  • सेक्स को टालना.
  • सेक्स करने के बाद पार्टनर को संतुष्ट नहीं कर पाना.
  • सेक्स से पहले मन में शीघ्रपतन का डर आना.

क्या है इसका उपचार

शीघ्रपतन कोई लाइलाज बीमारी नही है इसका इलाज सम्भव है. जहां तक स्‍टेमिना की बात है तो यह हर स्वस्थ पुरूष में नेचुरली रहती है जिसे वे ठीक तरह से महसूस नहीं कर पाते. यदि वे सेक्स के समय सहवास, भोजन के समय भोजन के बारे में सोचें तो उनकी स्‍टेमिना में फर्क साफ दिखेगा. यानी आप जब जो काम करें उसे अच्छे से करें. दिन-रात केवल सहवास के विषय में ही सोचते रहने से तथा अपनी स्‍टेमिना पर अकारण ही शंका करते रहने से वास्तविक यौन शक्ति पर मानसिक रूप से नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. जो धीरे-धीरे शारीरिक रूप से भी कमजोर कर देती है.

खाने पर दें ध्यान

शीघ्रपतन ठीक करने और ऊर्जा व स्फूर्ति को कायम रखने के लिए खान-पान का भी ध्यान रकना जरुरी है.  शाकाहारी भोजन प्राकृतिक गुणों से परिपूर्ण व सुपाच्य होता है. ऐसे भोजन को पचाने के लिए शरीर की अतिरिक्त ऊर्जा भी खर्च नहीं होती तथा व्यक्ति को यौन शक्ति भी अनुकूल बनी रहती है. ताजे मौसमी फल, कच्ची सब्जियां, अंकुरित आनाज, दूध, शहद, लस्सी आदि निरोगी पदार्थ हैं जिनके सेवन से शरीर शक्ति से भरपूर निरोग बना रहता है.

इसके अलावा  आपसे हमारी यही सलाह होगी की जैसे ही आपको लगे की आप इस समस्या से जूझ रहे है तो फौरन डाक्टर की सलाह ले और शर्माएं नही.

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