
‘‘आ प गांव वालों के सारे कष्ट दूर करने आ रहे हैं अकरोना बाबा. कल से गांव के स्कूल के मैदान में सुबह 10 बजे से कथा शुरू होगी,’’ एक मोटा सा आदमी एक दाढ़ी वाले बाबा का फोटो लगा कर रिकशे पर बैठा पूरे गांव में घूमघूम कर मुनादी कर रहा था.
‘‘याद रहे… अकरोना बाबा की कथा में सब को नहाधो कर आना है. लोग सामाजिक दूरी के साथ बैठेंगे. सब से जरूरी बात यह कि अकरोना बाबा की कथा में आप सब लोगों को मास्क मुफ्त में बांटे जाएंगे…’’
‘मुफ्त मिलेगा’ के नाम पर कई गांव वालों के कान खड़े हो गए थे.
‘‘आप सब लोगों को बता दें, जो लोग अकरोना बाबा की कथा में आएंगे, उन को कोरोना वायरस का संक्रमण नहीं सताएगा… बोलो अकरोना बाबा की जय.’’
‘‘अरे भैया… बाबा की कथा में हम लोगों को मुफ्त में क्या मिलेगा?’’ एक ने दूसरे से पूछा.
‘‘अरे पांडे यार… तुम भी एकदम बुड़बक ही हो… मास्क यानी मुंह को ढकने वाली चीज… जैसे हमारे पास होता है न यह गमछा… बस… उसी का शहरी रूप है मास्क…’’ दूसरे ने ज्ञान बघारा.
‘‘हां, पर वे मुफ्त में दे रहे हैं… तब तो हम बाबाजी का आशीर्वाद लेने जरूर जाएंगे.’’
पूरे गांव में अकरोना बाबा के चर्चे छाए हुए थे और हर कोई बाबा को ले कर उतावला हो गया था.
‘‘पर, बाबा का नाम तो बड़ा अजीब ?है,’’ एक गांव वाले ने चर्चा छेड़ी.
‘‘हां… हां क्यों नहीं… अरे, उन के बारे में मैं ने सुना है कि उन का जन्म ही कोरोना नामक विषाणु रूपी राक्षस को मारने के लिए हुआ है.
‘‘अरे, मैं ने तो उन की बहुत सी कथाएं सुनी हैं. और तो और मैं तो उन से मिल भी चुका हूं,’’ एक नौजवान ने शेखी बघारते हुए कहा.
‘‘वाह भैया, तुम तो बड़े किस्मत वाले हो… तनिक हमारा भी जुगाड़ लगवाओ,’’ दूसरा गांव वाला मिन्नतें करने लगा.
‘‘हांहां, तुम को भी मिलवा ही देंगे, पर जरा कथा शुरू तो होने दो,’’ शेखी बघारने वाला लड़का शान से अकड़ा हुआ था.
शाम तक गांव के हर घर में अकरोना बाबा की ही बातें हो रही थीं और लोग अकरोना बाबा को देखने
के लिए बड़े उतावले हो रहे थे.
अगले दिन के सूरज उगने के साथ ही गांव में पानी का खर्चा अचानक से बढ़ गया था. हर घर में सभी लोगों का नहानाधोना चल रहा था, क्योंकि आज सभी को अकरोना बाबा के प्रवचन सुनने जाना था.
स्कूल के अहाते में एक तरफ 3 कारें खड़ी थीं, जो देखने में बहुत महंगी लग रही थीं.
अकरोना बाबा के आने का समय 10 बजे था, पर वे किसी बड़े नेता की तरह 12 बजे आए.
लंबी दाढ़ी, एक सफेद सा चोंगा, होंठों पर मुसकान और हाथों में सोने का ब्रैसलैट पहने हुए अकरोना बाबा का जलवा देखते ही बनता था.
बाबा ने मंच पर आते ही कहा, ‘‘भक्तजनो, आज पूरी दुनिया में कोरोना नामक बीमारी फैल रही है. लाखों लोग इस बीमारी की चपेट में आ गए हैं…पर, आप सब लोगों को इस बीमारी से डरने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि आप लोग मेरी शरण में आ गए हैं.
‘‘वैसे मैं बता दूं कि आप लोगों के गांव में एक चुड़ैल की प्यासी आत्मा घूम रही है. वह कभी भी किसी के सिर पर सवार हो सकती है, पर जो मेरी शरण में आएगा वह महफूज रहेगा,’’ बाबा बोले जा रहे थे और भक्त मोहित हो कर सुन रहे थे.
तभी बाबा के समर्थकों ने जयकारा लगाया, ‘‘बोलो अकरोना बाबा की जय.’’
जयकारे के साथ ही भीड़ में से एक गांव वाला निकला और मंच के पास जा कर 100 रुपए का एक नोट चढ़ा दिया.
‘‘सुनें… एक बात अच्छी तरह से समझ लें… ये बाबा सब जानते हैं और ऐसे लोग पैसे को हाथ भी नहीं लगाते. वैसे भी नोटों को छूने में इस समय हमारे देश की सरकार भी एहतियात बरतने को कह रही है, इसलिए मेरा आप लोगों से कहना है कि अगर कुछ चढ़ाना चाहें
तो वह या तो सोने की हो या चांदी की कोई चीज… कृपया रुपयापैसा चढ़ा कर स्वामीजी की बेइज्जती न करें.
उस के बाद स्वामीजी ने कोई भजन शुरू कर दिया. इस की धुन पर सभी गांव वाले मस्त हो कर नाचने लगे.
जब सब गांव वाले नाचनाच कर थक गए, तो उन सब को एकएक मास्क यह कह कर दिया गया कि यह अकरोना बाबा का प्रसाद है.
अकरोना बाबा के एक चेले ने घोषणा की, ‘‘जिन लोगों की कोई पारिवारिक, सामाजिक या आर्थिक समस्या?है, तो वे अपना समय ले लें.’’
दुनिया में शायद ही कोई ऐसा आदमी हो, जिस को कोई समस्या न हो, इसलिए बाबा के शिविर में तो अपनी समस्याओं का समाधान पाने वालों
का तांता लगने लगा.
अकरोना बाबा वैसे तो सब की समस्याएं सुनते थे, पर महिला भक्तों पर कृपा थोड़ी ज्यादा ही बरसती थी.
‘‘अकरोना बाबा की जय हो,’’ एक बहुत खूबसूरत औरत ने प्रवेश किया.
‘‘कहो ठकुराइन, क्या बात है?’’ बाबा ने आंखें बंद किए हुए ही कहा.
‘‘क्या बताऊं बाबाजी, मेरे कंधों में दर्द रहता है… कोई उपाय बताइए.’’
‘‘तुम पिछले जन्म में किसी राज्य की राजकुमारी थी और तुम ने लुटेरों के चंगुल से बचने के लिए वह खजाना कहीं गाड़ दिया था… उस खजाने का बोझ अब भी तुम्हारे कंधों पर है, उसे हटाना होगा,’’ अकरोना बाबा ने कहा.
‘‘पर, कैसे बाबा?’’
‘‘हमें वह खजाना ढूंढ़ना होगा,’’ बाबा ने कहा.
‘‘पर खजाना मिलेगा कहां बाबा?’’
‘‘खजाना तुम्हारे घर में ही है… हमें वहीं आ कर खुदाई करनी होगी. और क्योंकि तुम राजकुमारी थी, इसलिए तुम्हें हमारे काम में सहयोग भी देना होगा,’’ अकरोना बाबा ने कहा.
‘‘मैं तैयार हूं बाबा,’’ ठकुराइन बोलीं.
अगले दिन सुबह ठकुराइन के घर पूजा होनी थी. अकरोना बाबा ने इसे बेहद राज रखने को कहा था, सिर्फ बाबा और उस के 2 साथी ही वहां पहुंचे थे.
‘‘भाई, हमारे साथ पूजा में सिर्फ राजकुमारी… मेरा मतलब है कि ठकुराइन ही रहेंगी. किसी को कोई एतराज तो नहीं? क्यों ठाकुर?’’ अकरोना बाबा ने उन की ओर देखते हुए कहा.
‘‘अरे नहीं… नहीं, बाबाजी… हमें कोई दिक्कत नहीं है. बस हमारी पत्नी के कंधे का दर्द दूर होना चाहिए.’’
‘‘जरूर दूर होगा,’’ बाबा ने हुंकार भरी.
पूजा शुरू हुई. उस कमरे में अकरोना बाबा ने ठकुराइन से ध्यान लगाने को कहा. ठकुराइन ने ऐसा ही किया. अकरोना बाबा एक मंत्र पढ़ रहा था कि अचानक से ठकुराइन बेहोश हो कर गिर गईं. क्योंकि आग से उठता हुआ धुआं नशीला था.
फिर क्या था, ठकुराइन के गिरते ही अकरोना बाबा अपने असली रंग में आ गया. उस ने ठकुराइन के साथ उसी बेहोशी में बलात्कार किया और उस के फोटो भी उतारे.
बेचारी ठकुराइन को जब होश आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी. वे किसी से कुछ कह भी नहीं सकती थीं. और अगर बाबा की करतूत अपने पति को भी बतातीं तो भी उन की शादीशुदा जिंदगी को खतरा हो सकता था, इसलिए सब आगापीछा सोच कर वे चुप ही रहीं.
अब तक अकरोना बाबा समझ चुका था कि ठकुराइन अपना मुंह नहीं खोलेंगी, इसलिए उस ने फिर से एक नाटक खेला. कमरे का दरवाजा खोल कर ठाकुर को एक मिट्टी की हांड़ी दिखाई और बोला, ‘‘राजकुमारी ने खजाना तो सोने के घड़े में छिपाया था, पर किसी बेकुसूर को सजा देने के चलते राजकुमार को पाप मिला और राजकुमारी का वह खजाना अपनेआप मिट्टी में बदल गया… और अब कुछ नहीं हो सकता.’’
‘‘कोई बात नहीं अकरोना बाबा, आप ने इन को इतना टाइम दिया, यही हमारे लिए बहुत बड़ी बात है… आप का बहुत शुक्रिया है,’’ ठाकुर ने कहा.
अब अकरोना बाबा ने गांव में भोलीभाली जनता को बेवकूफ बनाना शुरू कर दिया और जब गांव के बाकी लोगों ने जाना कि बाबा प्रवचन करने के साथसाथ समस्याएं भी सुलझाते हैं, तो अकरोना बाबा के पास लोगों की भीड़ बढ़ने लगी.
और अब तो कभी हरिया, कभी किसना, तो कभी राघव, तो कभी मंगलू जैसे लोग बाबा के पास अपनी समस्या का इलाज कराने जाने लगे.
जिस तरह से अकरोना बाबा ने ठकुराइन के साथ किया, कुछ वैसा ही वह मंगलू के घर पर करने वाला था. उस बंद कमरे में मंगलू की पत्नी के अलावा बाबा और उस के 2 चेले थे.
मंगलू और उस के परिवार की आर्थिक समस्या सही करने के लिए अकरोना बाबा मंत्र पढ़ रहा था.
मंगलू की पत्नी अभी बेहोश नहीं हुई थी और बाबा ज्यादा ही उतावला हो रहा था. अकरोना बाबा मंगलू की पत्नी की पीठ सहलाने लगा और धीरेधीरे उस के हाथ मंगलू की पत्नी के सीने की तरफ बढ़ने लगे.
मंगलू की पत्नी अकरोना बाबा की नीयत भांप गई और उस का विरोध कर के बाहर निकल आई. उस ने शोर मचा कर सब को इकट्ठा कर लिया.
वह जोरजोर से कहने लगी, ‘‘देखो…देखो यह ढोंगी बाबा… यह मेरे साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश कर रहा है… देखो देखो.’’
मंगलू की पत्नी के इस तरह चीखने पर उस का पति व आसपास के लोग जमा हो गए, वे सभी उस की बातों को सुन ही रहे थे कि अंदर के कमरे से अकरोना बाबा मुसकराते हुए बाहर निकला और बोला, ‘‘देखो गांव वालो, मैं ने तुम लोगों को तो बहुत पहले ही उस चुड़ैल की आत्मा के बारे में बता दिया था… देखो, आज उसी चुड़ैल की आत्मा इस औरत के अंदर आ गई है और हमारे पास इसे सजा देने का मौका भी है… इसे मेरे शिविर में ले चलो… हम सब मिल कर इसे सजा देंगे.’’
मंगलू की पत्नी चीखती रह गई थी, पर उस गांव में भला उस की सुनने वाला कौन था. गांव के लोग तो उसे चुड़ैल समझ कर मारने पर आमादा थे.
अब मंगलू की पत्नी अकरोना बाबा के चंगुल में थी.
अकरोना बाबा आया और बोला ‘‘क्या फायदा मिला तुझे… देख लिया न, तेरे ही लोग तुझे यहां छोड़ कर गए हैं मेरे लिए… अगर तू चुपचाप रहती तो इतना नाटक नहीं करना पड़ता… तू भी खुश रहती और मैं भी खुश रहता… अब अपनी नासमझी का अंजाम भुगत.’’
और उस के बाद अकरोना बाबा और उस के चेलों ने जी भर कर उस के जिस्म से कई दिनों तक अपनी प्यास बुझाई.
अकरोना बाबा का परदा सब गांव वालों की आंखों पर पड़ चुका था. बाबा औरतों और लड़कियों के जिस्म से तो खेलता ही था, उन के पैसे भी मार रहा था.
धीरेधीरे अकरोना बाबा ने पूरे गांव पर अपने छोटेमोटे चमत्कार या हाथ की सफाई दिखा कर गांव वालों के मन में जगह बना ली थी और गांव वाले उसे पूजने लगे थे.
बाबा की नजर जिस लड़की या औरत पर पड़ जाती, उसे वह किसी पूजा या अनुष्ठान के बहाने अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश करता और अगर वह विरोध करती तो उसे प्यासी चुड़ैल बता कर अपनी हवस का शिकार भी बनाता.
गांव की कुछ औरतों ने जोरजुल्म सहने के बाद भी जब इस बाबा की पोल खोलने की कोशिश की तो अकरोना बाबा ने गांव वालों को बताया कि ये प्यासी चुड़ैल हैं और अगर इन्हें मारा नहीं गया तो ये गांव वालों के बच्चों को ही खाने लगेंगी, इसलिए बहुत सी औरतों को तो गांव के कुछ दबंग, ऊंची जाति और पैसे वाले लोगों ने पेड़ के तने से बांध कर मारा, इतना मारा जब तक कि वे मर नहीं गईं.
एक दिन की बात है. अकरोना बाबा के पास एक जोड़ा आया और चांदी की भेंट चढ़ाई.
‘‘बाबा के चरणों में हमारा प्रणाम.’’
‘‘हां… कल्याण हो तुम लोगों का… पर देखने में तुम लोग तो इस गांव के नहीं लगते,’’ अकरोना बाबा बोला.
‘‘बाबाजी ने सही पहचाना, हम लोग पास के गांव से आए हैं और हमारी समस्या यह है कि मेरी बीवी को बच्चा नहीं ठहरता और इसीलिए हम शादी के कई साल बाद भी बेऔलाद हैं.’’
उस आदमी ने हाथ जोड़ कर अकरोना बाबा से विनती की.
बाबा ने औरत की नब्ज टटोली. थोड़ी देर मौन रहने के बाद वह बोला, ‘‘खेत में खाली हल चलाने से फसल अच्छी नहीं होती… बीज अच्छा हो तो ही अच्छी फसल मिलती है…
‘‘और तुम्हारे माथे की रेखाएं बता रही हैं कि तुम ने पिछले जन्म में किसी बच्चे को मारा है, इसीलिए उस जन्म की सजा तुम्हें इस जन्म में मिल रही?है.
‘‘चलो, कोई बात नहीं है, अब तुम सही जगह पर आ गए हो. अब तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे…
‘‘हां, पर हमें संतान प्राप्ति तंत्रमंत्र करना होगा और हो सकता है कि उस बच्चे की आत्मा तुम्हारे पति पर आ जाए, तो होशियार रहना… घबराना बिलकुल मत. और हमारा अनुष्ठान आज रात को ही शुरू हो जाएगा.’’
वे औरतों के आश्रम में ही रुक गए थे. बाबा की तरह उन्हें भी शाम होने का बेसब्री से इंतजार था.
शाम हुई, तो उस जोड़े को एक कमरे में ले जाया गया. वहां अकरोना बाबा सिर्फ एक लंगोटी बांधे आंखें बंद किए बैठा था.
‘‘इस अनुष्ठान में सिर्फ औरत ही बैठेगी… मर्द को बाहर जाना होगा,’’ अकरोना बाबा ने कहा और उस की आज्ञा मान कर उस औरत के साथ आया आदमी बाहर आ कर बैठ गया.
अकरोना बाबा ने अनुष्ठान शुरू किया और पता नहीं क्या बुदबुदाने लग गया.
कुछ देर बाद अकरोना बाबा ने उस आई हुई औरत का हाथ पकड़ लिया. औरत ने कोई विरोध नहीं किया.
‘‘बाबाजी, मुझे आप के बारे में सब पता है. दरअसल, मेरी एक सहेली भी आप से यही वाला अनुष्ठान कराने आई थी और इसी तरह आप ने उसे बच्चा पैदा करने वाली कृपा की थी और जिस का मजा मेरी सहेली को भी आया था, इसलिए मेरे साथ आप को कोई नाटक करने की जरूरत नहीं है.’’
‘‘अरे वाह, तुम तो बहुत समझदार निकली, तो फिर आओ हम आराम से बिस्तर पर लेट कर जिस्मानी मजा लेते हैं,’’ बाबा ने कहा.
‘‘जिस्मानी मजा, पर वह क्यों?’’ उस औरत ने पूछा.
‘‘अरे, अभी तो तुम ने ही कहा था कि तुम मेरा तरीका जानती हो. तब तो तुम यह भी जानती होगी कि मैं औरत के साथ जबरन जिस्मानी रिश्ता बनाता हूं. अगर वे नानुकुर करती हैं तो मैं उन को चुड़ैल की आत्मा घोषित कर देता हूं. और फिर मुझे कुछ भी करने की जरूरत नहीं पड़ती, बाकी का काम उस के गांव वाले खुद ही कर डालते हैं…’’ हंसने लगा था अकरोना बाबा, क्योंकि उस ने अपना राज खुद ही खोल दिया था.
‘‘बस, अब तेरा खेल खत्म हुआ… अकरोना बाबा,’’ उस औरत ने अपने बैग से पिस्तौल निकालते हुए कहा.
‘‘क्या मतलब? कौन हो तुम?’’
‘‘मैं एक पुलिस इंस्पैक्टर हूं…’’
‘‘और यह मेरी साथी है,’’ बाहर बैठा हुआ वह आदमी अंदर आते हुए बोला.
‘‘हां तो तुम पुलिस हो… तो मैं क्या करूं… मैं ने किया क्या है,’’ अकरोना बाबा ने कहा.
‘‘औरतों के रेप के आरोप में हम तुम्हें गिरफ्तार करते हैं. हमें कई बार तुम्हारे खिलाफ गुमनाम फोन द्वारा शिकायतें मिल रही थीं, पर सुबूत की कमी में हम कुछ कर नहीं पा रहे थे और इसीलिए हम ने यह प्लान बनाया.
‘‘और हम ने तुम्हारी इस दाढ़ी के पीछे छिपे चेहरे को भी पहचान लिया है. तुम एक शातिर ठग विजय हो जो जेल से भाग कर अपना वेश बदल
कर यह काम करने लगा था,’’ इंस्पैक्टर ने कहा.
‘‘पर, सुबूत क्या है तुम लोगों के पास?’’ अकरोना बाबा चीख रहा था.
‘‘सारा सुबूत इस के अंदर है,’’ उस महिला इंस्पैक्टर ने अपने बैग में छिपा एक खुफिया कैमरा दिखाते हुए कहा.
‘‘और मेरे उकसाने पर तुम ने खुद ही अपनी सारी बातें मुंह से उगली है, अब बाकी की जिंदगी जेल में कैदियों का कोरोना भगाने में लगाना,’’ महिला इंस्पैक्टर ने अकरोना बाबा को हथकड़ी पहनाते हुए कहा.
और इस तरह से एक ठग, जो अकरोना बाबा बना फिरता था, पहुंच गया सलाखों के पीछे. सही कहा गया है कि बुरे काम का बुरा नतीजा.
‘हत्यारे को फांसी दो… फांसी दो… फांसी दो…’ भीड़ में लगातार नारे बुलंद हो रहे थे. ऐसा लग रहा था कि लोगों में गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था?
थाने के सामने प्रदर्शन होते देख वहां पत्रकारों की फौज जमा हो गई थी, जिस में प्रिंट मीडिया के कई पत्रकार धड़ाधड़ प्रदर्शनकारियों के फोटो खींच रहे थे, तो इलैक्ट्रौनिक मीडिया के बहुत से पत्रकार विजुअल ले कर माइक आईडी लगा कर प्रदर्शनकारियों के बयान ले रहे थे. कुछ पत्रकारों का कैमरा उस की ओर भी घूमता दिखाई दे रहा था.
जान मोहम्मद हंगामा देख कर थाने के गेट के सामने ही खड़ा हो कर प्रदर्शनकारियों को हैरानी से देख रहा था. प्रदर्शनकारियों के हंगामे की खबर सुन कर किसी भी अनहोनी के डर को ले कर एसपी साहब के आदेश पर सिक्योरिटी के नजरिए से कई थानों की पुलिस उस के थाने पर भेज दी गई थी.
‘‘जान मोहम्मद, तुम्हारी एक नादानी की वजह से आज यह हंगामा हो रहा है. तुम्हें कितनी बार सम?ाया है कि तुम एक तो मुसलिम हो और साथ ही, तुम ज्यादा ईमानदार और इमोशनल हो कर ड्यूटी मत किया करो, लेकिन तुम मानते ही नहीं. देख लिया इस का नतीजा.
अब भुगतो,’’ जान मोहम्मद का दारोगा साथी फिरोज उस से नाराजगी जाहिर करते हुए बोला.
फिरोज की बात को सुन कर जान मोहम्मद खामोश ही रहा. वह अच्छी तरह जानता था कि यह हंगामा उसी के लिए हो रहा है. सुबह से ही इस छोटे से कसबे में कर्फ्यू लगने जैसा माहौल हो गया था. एक पनवाड़ी की दुकान भी नहीं खुली हुई थी कि कोई पान भी खरीद कर खा ले. पूरे कसबे में घूमघूम कर इन प्रदर्शनकारियों ने ही दुकानदारों से बोल कर दुकानें बंद करा दी थीं.
जान मोहम्मद यह तो समझ गया था कि यह सब उस विधायक नेतराम के इशारों पर हो रहा है, वरना एक अपराधी की मौत पर यह सब नहीं हो रहा होता, बल्कि लोग खुशियां मना रहे होते. प्रदर्शनकारियों को समझाने के लिए थाने पर ड्यूटी कर रहे उस के सभी सहयोगी लगातार कोशिश कर रहे थे, लेकिन वे लोग मान ही नहीं रहे थे.
‘‘आप सभी लोग शांत हो जाएं. बस, कुछ ही देर में एसपी साहब पहुंच रहे हैं. वे आप से बात करेंगे. आप सभी लोग तब तक सभागार में जा कर बैठें,’’
तभी सिपाही बलवंत ने बाहर आ कर प्रदर्शनकारियों से कहा.
‘‘हत्यारे को फांसी दो…’’ तभी प्रदर्शनकारियों की भीड़ में से एक आवाज दोबारा हवा में गूंज उठी.
जान मोहम्मद ने देखा कि सामने संदीप खड़ा था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि समय बदलने के साथसाथ इनसान की सोच क्या से क्या हो गई है. पैसों के आगे लोगों की सोचनेसमझाने की ताकत खत्म हो जाती है और फिर उन को जिस तरह से चाहो, इस्तेमाल कर लो. वह यह बात बखूबी सम?ा रहा था कि पैसे के लालच के आगे भीमा जैसे अपराधी को हीरो बनाने में ये सब कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे.
पुलिस की ट्रेनिंग में अकसर जहां उन को ईमानदारी से अपने फर्ज को अंजाम देना सिखाया जाता था, वहीं इस के अलावा अकसर सम?ाया जाता था कि अपराधी एक दीमक की तरह होता है, उसे अगर समय रहते खत्म न करो, तो वह समाज को अंदर से खोखला बना देता है और 2 दिन पहले उस ने भी यही किया था. एक अपराधी का ऐनकाउंटर कर समाज को खोखला होने से बचा लिया था.
जान मोहम्मद को अचरज हो रहा था कि कुछ महीने पहले ही संदीप की बहन के साथ उसी अपराधी ने रेप जैसी घिनौनी हरकत की थी और आज वही संदीप अपराधी भीमा की मौत को ले कर प्रदर्शन कर रहा था.
यही नहीं, प्रदर्शनकारियों की उस भीड़ में वे चेहरे ही उसे ज्यादा दिखाई दे रहे थे, जिन्हें भीमा सब से ज्यादा परेशान करता था.
जब से जान मोहम्मद इस कसबे में पोस्टिंग हो कर आया था, तभी से उस ने कसबे में अपराधियों के हौसले पस्त कर दिए थे और कसबे में अपराध न के बराबर हो गए थे, क्योंकि उस ने ज्यादातर अपराधियों को जेल की हवा खिला दी थी, तो कुछ अपराधी उस के खौफ से कसबे से भागने पर मजबूर हो गए थे.
और हां, कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने मामले को निबटाने को ले कर जान मोहम्मद को रिश्वत देनी चाही थी, पर उन्हें भी उस ने अच्छा सबक सिखाया था, जिस के चलते वह अब कुछ लोगों की आंखों में कांटे की तरह चुभने लगा था.
जान मोहम्मद को इतना समय हो गया था पुलिस की ड्यूटी करते हुए, लेकिन आज तक उस की वरदी पर रिश्वत खाने जैसा भद्दा दाग नहीं लगा था. जहां उस के साथी छोटेमोटे झगड़े निबटाने के एवज में भी मोटी रकम दोनों पक्षों से वसूल करते थे. एक वह था, जो छोटेमोटे झगड़ों को आपस में ही समझाबुझा कर निबटा देता था. गंभीर मामलों में वह बहुत ही सख्त रहता था और आरोपियों पर कड़ी कार्यवाही करता था.
‘यार जान मोहम्मद, तुम ज्यादा ईमानदार न बना करो, क्योंकि आजकल ईमानदारी में कुछ नहीं मिलता. हमें देखो… मोटा पैसा भी कमाते हैं और साहब लोगों की ज्यादा झिकझिक भी नहीं सुननी पड़ती…’ एक बार जब जान मोहम्मद ने पड़ोसियों के आपसी झगड़े को बिना कुछ लिएदिए ही निबटा दिया था, तो यह देख कर उस के साथी दारोगा विजय ने उस से कहा था.
लेकिन जान मोहम्मद चुप ही रहा था. कुछ लोग उसे वैसे भी ‘सनकी दारोगा’ कहने लगे थे, जिस के चलते उस के ज्यादातर तो ट्रांसफर ही होते रहे थे. पहले उस की पोस्टिंग शहर के थाने में हुई थी.
हर रोज की तरह जान मोहम्मद उस दिन भी अपने औफिस में बैठा हुआ था कि तभी किसी अनजान नौजवान का उस के पास फोन आया कि कुछ गुंडे एक लड़के की बेरहमी से पिटाई कर रहे हैं. उस ने उस नौजवान से जगह का नाम पूछा और फौरन 2 सिपाहियों के साथ मौके पर जा पहुंचा.
जान मोहम्मद के पहुंचते ही उन लोगों ने उस लड़के को पीटना बंद कर दिया, लेकिन तब तक उस की मौत हो चुकी थी.
जान मोहम्मद ने देखा, यह वही लड़का राहुल था, जो हर समय लोगों की मदद करता नजर आता था. राहुल की पिटाई होते देख कर भी कोई उस की मदद करने नहीं आया था.
जान मोहम्मद राहुल की लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के कागजात तैयार कर सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर थाने ले आया था. बाद में उसे पता चला कि वे सभी आरोपी किसी बड़े नेता के गुंडे थे.
जान मोहम्मद के सीनियर दारोगा साथी ने उसे आरोपियों को छोड़ने के लिए कहा था, वरना बेवजह ही उस का ट्रांसफर यहां से कहीं दूर कर दिया जाएगा, लेकिन उस ने आरोपियों को छोड़ने से मना कर दिया और जल्द ही राहुल के परिवार द्वारा मिली तहरीर के आधार पर सभी आरोपियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर कागजी कार्यवाही भी पूरी कर दी.
लेकिन, जान मोहम्मद आरोपियों को जेल भेजने की कवायद पूरी करता, इस के पहले ही उस का ट्रांसफर इस छोटे से कसबे पलिया में कर दिया गया था.
यहां आ कर भी जान मोहम्मद ने अपराध को काबू में करने के लिए अहम रोल निभाया था, लेकिन अपराध और अपराधियों के लिए इतना सख्ती बरतने के बावजूद अभी भी विधायक नेतराम का दायां हाथ भीमा जैसा खतरनाक अपराधी उस की पकड़ से दूर था. उस ने कई बार भीमा को गिरफ्तार करने की सोचा था, लेकिन उस के खिलाफ कोई भी मामला नहीं मिल पाया था.
अभी हाल ही में जान मोहम्मद ने रेप जैसे संगीन मामले में भीमा को गिरफ्तार भी किया था. राधेश्याम नाम के एक आदमी की बेटी के साथ भीमा ने घर में घुस कर रेप किया था, जिस की तहरीर भीमा के खिलाफ थाने में दी गई थी.
जान मोहम्मद को भीमा को गिरफ्तार किए कुछ ही समय हुआ था कि उस के पास साहब लोगों के फोन आने शुरू हो गए और उसे मजबूरी में भीमा को छोड़ना पड़ा था. यहीं नहीं, पीड़िता द्वारा की गई शिकायत को भी चंद घंटे में वापस करा लिया गया था और जब शिकायत वापस लेने आए राधेश्याम से उस ने मना किया था, तो उस के सीनियर दारोगा ने उसे बताया कि विधायक नेतराम ने मामले को लेदे कर निबटा लिया है.
यह सुन कर जान मोहम्मद हैरान रह गया, लेकिन 2 दिन बाद ही उसे सूचना मिली कि राधेश्याम की बेटी ने खुदकुशी कर ली है.
इस कांड के बाद न जाने क्यों विधायक नेतराम के प्रति जान मोहम्मद का गुस्सा बढ़ता जा रहा है कि भीमा जैसे अपराधियों का वह साथ दे रहा था. उसे तो यह समझ नहीं आ रहा था कि ये कैसे नेता हैं, जो एक वोट लेने के लिए जनता से बड़ेबड़े दावे करते हैं और जिस जनता के दिए हुए वोटों से चुने जाते हैं, उसी जनता को बाद में कुछ नहीं समझाते हैं, क्योंकि राजनीति का दंश जान मोहम्मद के पूरे परिवार ने भी झोला था.
जब जान मोहम्मद छोटा ही था कि एक जमीनी झगड़े में उस के अम्मीअब्बू और बड़ी बहन की हत्या करा दी गई थी, लेकिन कुछ नेता उस के परिवार की हत्या करने वालों को बहुत ही सफाई से बचा ले गए थे. मुकदमे में धाराएं इतनी हलकी करा दी गई थीं कि 3-4 महीने में ही सब की जमानत हो गई थी.
अम्मीअब्बू के इंतकाल के बाद जान मोहम्मद को रफीक चाचा ने पालपोस कर बड़ा किया था. वह बड़ा हो कर पुलिस अफसर बनना चाहता था, जिस से कि वह अपराध और अपराधी को खत्म कर सके और उस के इस सपने को पूरा करने के लिए उस के चाचा ने पूरा जोर लगा दिया था. पढ़ाई में पैसा कम पड़ा, तो चाचा ने अपनी जमीन भी बेच दी थी.
जब जान मोहम्मद पुलिस अफसर बना तो महकमे में फैले भ्रष्टाचार को देख कर उसे एक बार लगा कि शायद उस ने नौकरी जौइन कर के गलत किया है, लेकिन उसे अपने वादे को पूरा करना था और इस के लिए उसे वरदी पहनना जरूरी था.
ड्यूटी जौइन करने के बाद जान मोहम्मद अपना फर्ज बखूबी निभाने लगा. जल्द ही उस कीचर्चा दूरदूर तक होने लगी और अपराधी तो जैसे उस के नाम से कांप से जाते थे. उस की कड़ी कार्यवाही को देखते हुए शासन के आदेश पर उस का ट्रांसफर जल्द ही एक थाने से दूसरे थाने पर कर दिया जाता था, जिस के चलते आज वह पलिया कसबे में पहुंचा था.
अभी 2 दिन पहले ही जान मोहम्मद के मुखबिर ने सूचना दी थी कि भीमा एक लड़की के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश कर रहा है. यह सुन कर उस का खून खौल उठा और वह सिपाहियों के साथ गाड़ी ले कर मौके पर पहुंच गया.
जान मोहम्मद ने देखा कि भीमा कसबे की ही एक 17-18 साल की लड़की को उठा लाया था. यह देख कर उस ने भीमा को लड़की को छोड़ने के लिए कहा, लेकिन भीमा के मना करने पर उस ने गुस्से में आ कर भीमा को अपनी पिस्तौल से गोली मार दी, जिस से उस की मौके पर ही मौत हो गई थी.
भीमा की जान मोहम्मद द्वारा ऐनकाउंटर किए जाने की खबर कुछ पलों में ही कसबे में आग की तरह फैल गई. तभी से विधायक के इशारे पर यह सब बवाल होना शुरू हो गया था.
‘‘जय हिंद सर,’’ तभी किसी की आवाज पर जान मोहम्मद की सोच भंग हो गई. उस ने देखा कि एसपी साहब पहुंच गए थे, जिन को देख कर सिपाही कुलदीप ने सैल्यूट किया था.
जान मोहम्मद ने भी एसपी साहब को देख कर तुरंत ही सैल्यूट किया. एसपी साहब ने उसे एक नजर देखा और सभागार की ओर बढ़ गए.
एसपी साहब को देख कर जान मोहम्मद को सुकून मिला था कि वे जायज ही फैसला करेंगे, क्योंकि उन के बारे में अकसर यह कहा जाता था कि वे अपराधियों के प्रति काफी कठोर हैं, उन्हें अपराध और अपराधियों से सख्त नफरत है.
‘‘सर, आप को सस्पैंड कर दिया गया है और आप पर हत्या का मुकदमा भी दर्ज कर दिया गया है,’’ कुछ देर के बाद सिपाही बलवंत ने आ कर जान मोहम्मद को बताया.
यह सुन कर जान मोहम्मद को ऐसा लगा कि उसे अपने फर्ज की कीमत चुकानी पड़ी है और उसे सजा ए मौत दी जा रही है.
क्या थी ‘‘बस, समझ लो कि इस घर में यह मेरा आखिरी खाना था,’’ लंबी डकार ले कर धनपत ने पेट पर हाथ फेरते हुए कहा.
यह सुनते ही सुमति के हाथ बरतन समेटते अचानक रुक गए. उस ने गौर से अपने पति के चेहरे का मुआयना किया और पूछा, ‘‘क्या मतलब…?’’
‘‘कल से मैं संन्यास ले रहा हूं,’’ धनपत ने सहज भाव से कहा.
जोरदार धमाका हुआ. सुमति ने सारे बरतन सामने दीवार पर दे मारे और चिल्ला कर कहा, ‘‘तू फिर संन्यास लेगा?’’
चारों बच्चे चौके के दरवाजे पर आ खड़े हुए. 2-2 के झुंड में दाएंबाएं हो कर भीतर झांकने लगे, जैसे किसी बड़े मनोरंजक नाटक के तंबुओं को फाड़ कर बिना पैसे के देख कर मजे ले रहे हों.
सुमति उचक कर अलमारी के ऊपर चढ़ी और चीनी मिट्टी के बरतन से नीबू का अचार निकाल कर धनपत के मुंह में जबरन ठूंसने लगी और चिल्ला कर बोली, ‘‘ले खा चुपचाप.’’
‘‘क्या है?’’ धनपत ने ऐसे पूछा जैसे ये रोजमर्रा की बातें हों.
‘‘नीबू का अचार है. मुए, तेरी भांग का नशा उतार कर रहूंगी.’’
‘‘भांग नहीं, भंग,’’ झूमते हुए धनपत ने संशोधन किया.
‘‘तू आज फिर उन रमसंडों के डेरे पर गया था?’’ सुमति ने गरज कर पूछा.
‘‘रमसंडे नहीं, साधुमहात्मा,’’ धनपत ने अचार चबाते हुए कहा.
सुमति अपना माथा पकड़ कर चूल्हे के पास बैठ गई. महीने 2 महीने में संन्यासी होने का दौरा धनपत पर पड़ता था. जब भी शहर में साधुओं की टोली आती थी, धनपत दिनदिन भर उन्हीं के साथ बैठा रहता और मुफ्त की भांग और गांजा पीता रहता.
धनपत एक सेठ की दुकान पर मुनीमगीरी करता था. वह अब तक
8 बार नौकरी से निकाला जा चुका था और फिर वापस ले लिया गया था. सेठ धनपत की होशियारी और ईमानदारी की वजह से उसे वापस ले लिया करता था.
सुमति धनपत की इन हरकतों से परेशान थी. तनख्वाह में धनपत को मिले रुपए से घर का खर्च चलता नहीं था, लिहाजा वह 4 घरों में चौकाबरतन करने लगी थी. बड़ा बेटा शंकर अखबार बेच कर 15-20 रुपए रोज कमा लिया करता था, जिस से खुद उस की और छोटे भाईबहनों की पढ़ाई ठीकठाक चल
जाती थी.
धनपत पहले भी 2-3 बार घर से भाग चुका था. काशी, हरिद्वार और इलाहाबाद में साधुसंन्यासियों की संगत में रह कर फिर घर लौट आता. हर
बार जाने से पहले वह ऐसी ही बहकीबहकी बातें किया करता था.
अब भी सुमति को यही चिंता लगी थी. शहर में पिछले 4 दिनों से कुछ साधुओं ने रामलीला मैदान में डेरा जमा रखा था. जरूर उन लोगों ने ही इसे बरगलाया होगा, इसीलिए यह फिर संन्यास लेने की बात कह
रहा है.
हालांकि सुमति जानती थी कि जब अंटी के पैसे खत्म हो जाएंगे, तो धनपत चुपचाप घर लौट आएगा. मुनीमगीरी करेगा और फिर कसमें खाएगा कि अब संन्यास नहीं लेगा. फिर भी वह इस बात पर चिंतित थी कि बेहद सीधे स्वभाव वाले उस के पति को कुछ हो न जाए. जमाना खराब चल रहा है. जबजब ये बातें उस के दिमाग में आतीं, तबतब वह सिहर उठती. धनपत आखिर जैसा भी है, उस का पति है.
बाहर खड़े बच्चों ने मातापिता को चुपचाप कुछ सोचते हुए देखा, तो ‘शो’ जल्दी खत्म हो जाने की वजह से वे निराश हो कर अपने दड़बेनुमा कमरे की तरफ बढ़ चले.
इस बस्ती में छोटेछोटे घरों में कईकई लोग भेड़बकरियों की तरह ठुंसे रहते थे. धनपत के घर पर ही 6 लोग थे. कम आमदनी में शहर में परिवार पालना बहुत बड़ी समस्या थी. फिर धनपत तो भांग और गांजे का सेवन करता था. कर्जा चढ़ा था, सो अलग.
रात गहराती जा रही थी. साथ ही साथ सुमति की चिंता बढ़ती जा रही थी कि वह धनपत को कैसे रोके.
‘‘अच्छा, तो सुमति देवी, मुझे इजाजत दो. कहासुना माफ करना,’’ धनपत की आवाज से सुमति की सोच का सिलसिला टूटा.
सुमति ने एक पल उसे देखा, फिर भयंकर तेवर अपनाते हुए गरज कर बोली, ‘‘क्या कहा, माफ कर दूं? आज तू एक कदम भी घर से बाहर रख
कर देख. मैं उतारती हूं तेरे संन्यास
की सनक.’’
अगर और कोई वक्त होता, तो धनपत भी तूतूड़ाक करने लगता, लेकिन अभी वह भांग की तरंग में था, इसलिए दार्शनिकों के अंदाज में वह बोला, ‘‘आज मुझे मत रोको सुमति देवी. तुम नहीं जानती कि संन्यासी जीवन में कितनी शांति है.’’
सुमति गरज कर बोली, ‘‘इतना अचार चबाने के बाद भी तेरी भांग नहीं उतरी. बच्चे, घरगृहस्थी, कर्जा ये सब एक औरत के ऊपर छोड़ कर जाते हुए तुझे शर्म नहीं आती?’’
‘‘जिस आदमी के दिल में वैराग्य की भावना पैदा हो गई हो, उसे इन सब बातों से क्या मतलब…? और फिर बच्चे, घर वगैरह तो मोहमाया की बातें हैं. रही बात तुम्हारी, तो इतिहास गवाह है कि बुद्ध भी इसी तरह ज्ञान पाने के लिए घर से निकले थे,’’ धनपत ने तर्क दिए.
सुमति के पास इन बातों का कोई जवाब शायद नहीं था, पर फिर भी वह घायल शेरनी की तरह दहाड़ी, ‘‘तू जिन बुद्ध की बातें कह रहा है, वे राजामहाराजा थे. तेरे पास कौन सी जागीर है, जिस के सहारे तू हमें छोड़े
जा रहा है? और ये औलादें क्या
अकेले मैं ने पैदा की थीं? सीधे क्यों
नहीं बोलता कि जिम्मेदारियों से घबरा गया है और संन्यास के नाम पर बारबार घर से भाग जाता है,’’ कहतेकहते वह हांफने लगी.
‘‘कुछ भी हो, मैं ने संन्यास लेने का फैसला लिया है. अब संसार की कोई भी ताकत मुझे रोक नहीं सकती,’’ कुछ रुक कर धनपत अकड़ कर बोला.
पति की ये बातें सुनने के बाद सुमति का कलेजा मुंह तक आ गया. वह इस बात को समझ गई कि अब यह नहीं रुकने वाला है. वह चिल्लाचिल्ला कर रोने लगी और धनपत को पकड़ कर दरवाजे पर धकियाते हुए बोली, ‘‘जा भाग, लेले संन्यास, मांग भीख, लेकिन अब फिर कभी इस घर में अपने पैर
मत रखना.’’
सुबहसुबह सुमति की तेज आवाजें सुन कर उस के पड़ोस के लोग भी घरों से बाहर आ कर मुफ्त के मनोरंजन का मजा लेने लगे. हालांकि उन्हें मन ही मन सुमति से हमदर्दी थी.
सुमति अब भी चिल्ला रही थी, ‘‘मैं चला लूंगी गृहस्थी, पाल लूंगी बालबच्चों को. तू भाग यहां से…’’
तभी धनपत का बड़ा बेटा शंकर साइकिल से घर के पास आ कर रुका. वह अखबार बेच कर घर आया था. अपने घर के बाहर उस ने भीड़ और सुमति को चीखतेचिल्लाते देखा. माजरा उस की समझ में नहीं आया.
शंकर को देखते ही सुमति को कुछ राहत मिली. वह चीखचीख कर उस से कहने लगी, ‘‘देख बेटा, तेरा बाप बुजदिलों की तरह घर छोड़ कर जा रहा है, संन्यास ले रहा है, उसे रोक.’’
शंकर ने एक सरसरी निगाह पहले पड़ोसियों पर और फिर धनपत पर डाली. उस के बाद सुमति की बांह पकड़ घर के अंदर ले जाते हुए उस ने कहा, ‘‘इन्हें जाने दे मां. तू भीतर चल.’’
यह बात सुन कर सुमति को
लगा मानो कोई पहाड़ टूट पड़ा हो. वह बोली, ‘‘क्या…? तू भी ऐसी बातें कह रहा है?’’
सुमति की बातों का कोई जवाब दिए बिना शंकर जबरदस्ती उसे घर में ले गया और भड़ाक से दरवाजा बंद कर लिया.
बाहर खड़े लोग अपनेअपने ढंग से सोचते रहे. धनपत रामलीला मैदान की तरफ चल पड़ा.
अंदर सुमति फूटफूट कर रो रही थी.
‘‘खाना दो मां,’’ शंकर ने ऐसे कहा, मानो उसे इन बातों से कुछ लेनादेना ही नहीं था.
‘‘खाना दूं? उधर तेरा बाप घर छोड़ कर चला गया और इधर तुझे भूख लगी है? रोका क्यों नहीं?’’ सुमति ने गुस्से में उबल कर कहा.
‘‘कुछ नहीं होगा. अब संन्यास का भूत हमेशा के लिए उन के सिर पर से उतर जाएगा. अभी थोड़ी देर में वे लौट आएंगे,’’ शंकर ने कहा.
सुमति ने हैरानी से बेटे की तरफ सवालिया नजर से देखा.
‘‘वे साधु, जिन के साथ बाबूजी जाने वाले हैं, अब हवालात में बंद हैं,’’ शंकर ने कहा.
‘‘क्या…? क्यों…?’’ रोतीसिसकती सुमति ने चौंक कर पूछा.
‘‘हां…’’ अपना सिर झुकाए शंकर ने बताया, ‘‘कल शाम को उन में से एक साधु एक लड़की को पकड़ कर जबरदस्ती करने लगा था. लड़की की चीखपुकार सुन कर वहां काफी लोग इकट्ठा हो गए थे. पुलिस के आने तक उन लोगों ने उस की धुनाई की. अब बाबूजी को सही बात पता चलेगी, तो शायद उन की आंखें खुल जाएंगी.’’
यह सुन कर सुमति आंसू पोंछ कर मन ही मन खुश हुई और पति के लौट आने की आस में चुपचाप बैठ गई.
सचमुच धनपत 2 घंटे बाद घर लौट आया. दूसरे दिन से वह मुनीमगीरी करने लगा. उस के बाद उस ने संन्यास की बात कभी नहीं कही. उलटे उसे ऐसी बातों से चिढ़ ही होने लगी थी.
शकील दुकान पर बैठेबैठे बेवजह सिगरेट पर सिगरेट फूंकता जा रहा था. उस की दुकान में सिगरेट का कसैला धुआं भर गया था, जिस वजह से उस की दुकान पर आने वाले ग्राहकों ने भी नाराजगी दिखाई थी. लेकिन, फिर भी वह लगातार सिगरेट पीता जा रहा था.
शकील के सिगरेट पीने की वजह थी उस की बीवी शायना, जिस पर उसे आज काफी गुस्सा आ रहा था. उस का मन कर रहा था कि वह शायना को तलाक दे दे.
शकील की बीवी शायना खुद को कुछ ज्यादा ही स्मार्ट समझने लगी है. जरा सा पढ़ीलिखी है, तो वह उस के सिर पर सवार होगी और गैरमुसलिम की तरह एक बच्चा होने के बाद आपरेशन कराने की बात करेगी, इसीलिए गुस्से में उस ने शायना को 2-3 तमाचे जड़ दिए थे. बात आगे बढ़े, इस से पहले ही उस का दोस्त जाबिर घर पहुंच गया और उसे समझाबुझा कर दुकान पर ले आया.
अभी कल की ही बात थी. रात को दुकान बंद कर के शकील घर पहुंचा. खानापीना निबटने के बाद जब वह और शायना सोने के लिए बिस्तर पर पहुंचे, तो शायना ने बताया, ‘‘आप अब्बू बनने वाले हो.’’
‘‘मुबारक हो,’’ कहते हुए शकील ने शायना को अपनी बांहों में भर लिया था. बाप बनने की खबर सुन कर उस की खुशी का ठिकाना न था. उस ने शायना के साथ पूरी रात जश्न में ही गुजार दी. उस की और शायना की यह दूसरी सुहागरात बन गई.
7 महीने पहले ही शकील की शादी शायना से हुई थी. शायना पढ़ीलिखी और काफी समझदार लड़की थी. शायना के अब्बू ने ही शकील को पसंद किया था.
शकील केवल उर्दूअरबी ही पढ़ा था. वह मदरसे के अलावा कभी स्कूल गया ही नहीं था. उस की बाजार में ही किराने की दुकान थी और जो काफी अच्छी चलती थी. उस ने 2 कमरे बनवा लिए थे और उस का खानाखर्चा काफी अच्छे से चल रहा था.
शकील के बारे में सबकुछ जानने के बावजूद शायना ने बिना अपने अब्बू से कुछ कहे शकील से निकाह कर लिया था. घर में आने के बाद वह काफी अच्छे से बहू और बीवी बनने का फर्ज निभा रही थी.
लेकिन आज सुबह होते ही शायना ने शकील का सारा मूड खराब कर दिया. उस ने कहा, ‘‘इस बच्चे के
बाद मुझे और बच्चे नहीं चाहिए. मैं आपरेशन करा लूंगी, क्योंकि एक बच्चा होगा, तो हम इतनी महंगाई
में भी उस की अच्छी परवरिश कर सकेंगे और उसे पढ़ालिखा कर कुछ बना सकेंगे.’’
यह सुनते ही शकील गुस्से से लाल हो गया और उस ने 2-3 तमाचे शायना के गाल पर मार दिए, जिस से उस की आंखों में आंसू आ गए थे.
‘‘मुझे तुम से यह उम्मीद नहीं थी. तुम पढ़लिख गई हो तो इतना बड़ा गुनाह करोगी. तुम अल्लाह की नेमतों को दुनिया में आने से रोकना चाहती हो.
मुझे अभी 4-5 बच्चे और चाहिए… समझी?
‘‘सब अपनी किस्मत का खाते हैं. उन की किस्मत में जो होगा वही होगा. इस में हम क्या करेंगे…’’ शकील ने गुस्से में शायना से कहा.
‘‘लेकिन, इस में गलत क्या है. अगर हमारा एक बच्चा होगा, तो कम से कम पढ़लिख कर कुछ बन जाएगा और अगर कल को आप का कामधंधा चौपट हो जाए, तो भी हम उस की आराम से परवरिश कर सकते हैं.
‘‘अगर हमारे ज्यादा बच्चे होंगे, तो उन की परवरिश कैसे करेंगे? फिर कोई रिकशा चलाएगा, तो कोई किसी के यहां मामूली सी नौकरी करेगा,’’ शायना शकील को समझाते हुए बोली. लेकिन शकील के ऊपर तो जैसे बच्चों का भूत सवार था. उस की गुस्से से चीखने की आवाज सुन कर कई लोग उस के घर आ गए थे. तभी उस का दोस्त जाबिर सारा माजरा जान कर शकील को दुकान पर ले आया था.
‘‘अरे शकील मियां, सिगरेट का धुआं क्यों उड़ा रहे हो… कुछ पता है भी कि नहीं?’’ तभी दुकान पर पहुंचे पड़ोसी उस्मान ने शकील से पूछा.
‘‘क्या हुआ?’’ शकील धीरे से बोला.
अभीअभी खबर मिली है कि मेराज ने अपने 5 बच्चों का गला दबा कर मार डाला और खुद ने भी फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली है,’’ उस्मान ने उसे बताया.
यह खबर सुनते ही शकील को जैसे बिजली का तेज झटका लगा. वह एकदम से उछल पड़ा, ‘‘क्या… लेकिन… आखिर मेराज ने ऐसा कदम
क्यों उठाया?’’ शकील ने चौंकते हुए उस्मान से पूछा.
‘‘सुना है कि रहमत की मौत के बाद मेराज काफी परेशान थी. बच्चे छोटे थे, इस वजह से आमदनी का कोई जरीया नहीं था. घरखर्च के लिए पहले जेवर बिके, फिर दूसरा सामान बिकना शुरू हो गया. घर में भुखमरी जैसे हालात हो गए.
‘‘अगर 1-2 बच्चे होते, तो शायद मेराज मेहनतमजदूरी कर के उन्हें पाल भी लेती, लेकिन इतने बच्चों को पालने के लिए बेचारी करती भी तो क्या करती. परेशान हो कर उस ने सभी बच्चों को जहर दे कर खुद भी फांसी पर झूल गई,’’ उस्मान ने अफसोस जाहिर करते हुए उसे बताया.
तभी शकील की दुकान पर कुछ ग्राहक आ गए, तो उस्मान ही अपनी दुकान पर चला आया.
रहमत शकील का काफी अच्छा दोस्त था और वह दूसरे महल्ले में ही रहता था. वे दोनों साथसाथ ही मदरसे में पढ़ाई किया करते थे.
रहमत काफी पैसे वाला था. इस वजह से उस की शादी भी जल्दी हो गई थी. लेकिन शकील के घर के हालात कुछ सही नहीं थे और फिर उसे अपनी 2 छोटी बहनों की भी शादी करनी थी. उस के अब्बू अकसर बीमार रहते थे, इसलिए अब्बू की दुकान उस ने ही संभाल ली थी.
आज शकील की दुकान काफी अच्छी चल रही है, जिस से उस ने अपनी बहनों की भी शादी बहुत धूमधाम से कर दी है और वे खुशी से अपनेअपने परिवार के साथ जिंदगी बिता रही हैं.
जब तक शकील की शादी हुई, तब तक रहमत 5 बच्चों का बाप बन चुका था और छठा बच्चा भी जल्दी आने वाला था.
इसी बीच रहमत काफी बीमार हो गया, जिस के चलते उस का दवादारू में भी काफी पैसा खर्च होने लगा था. फिर धीरेधीरे उस का कारोबार बिलकुल खत्म हो गया.
इसी बीच रहमत का इंतकाल भी हो गया था और पूरी जिम्मेदारी मेराज पर आ चुकी थी.
एक दिन शकील को जानकारी लगी थी कि रहमत के जाने के बाद घर में भुखमरी जैसे हालात से मेराज भाभी को जूझना पड़ रहा था.
एक बार शकील खुद मेराज भाभी से मिलने उन के घर पहुंचा था तो देखा कि घर में एकएक रोटी के लिए बच्चे कैसे आपस में छीनाझपटी कर रहे थे, लेकिन उस ने यह सोचा था कि यह सब खुदा को मंजूर होगा और शायद बच्चों की किस्मत में यही लिखा था. फिर वह मेराज भाभी को कुछ रुपए दे कर वापस आ गया था.
‘रहमत को गुजरे हुए अभी 6 महीने भी नहीं हुए थे और यह सब हो गया. क्या बीती होगी भाभी पर, जब उन्होंने अपने हाथों से बच्चों का गला दबाया होगा,’ यह सोच कर ही शकील को झुरझुरी आ गई. तभी उसे शायना की याद आ गई. यही बात शायना उसे समझाने की कोशिश कर रही थी.
शकील सोच रहा था कि अगर उस के 5-6 बच्चे हो गए और उसे कुछ हो गया, तो क्या शायना भी…
‘‘नहींनहीं, मैं कभी ऐसा नहीं करूंगा,’’ अचानक शकील मन ही मन बुदबुदाया और उठ कर दुकान बढ़ाने लगा, क्योंकि उसे पहले मेराज भाभी के यहां जाना था और फिर वहां से सीधा घर पहुंच कर शायना से माफी भी मांगनी थी. आज उसे ऐसा लग रहा था, जैसे वह बहुत बड़े गुनाह से बच गया है.
57 साल की उम्र में भले ही नरेश की जिंदगी में अकेलापन था, पर दिल में एक गुमान भी था कि वह शरीफ है. उस ने सोच रखा था कि अकेलापन दूर करने के लिए वह किसी के साथ संबंध नहीं बनाएगा और जिस्मानी जरूरतों को पूरा करने के लिए किसी के साथ पैसे दे कर सैक्स नहीं करेगा, क्योंकि उस का मानना है कि सैक्स सिर्फ 2 जिस्मों का मिलन नहीं है, बल्कि यह तो भावनाओं से जुड़ा होता है.
रात में नरेश का अकेलापन और भी ज्यादा बढ़ जाता था. सोशल मीडिया जैसे ह्वाट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम को देखतेदेखते जब मन ऊब जाता, तो उसे मोनिका का गदराया बदन याद आ जाता और मन करता कि आज वह साथ होती.
हालांकि, उन दोनों की दूसरी शादी थी, लेकिन साथ में तकरीबन 8 साल ही बिताए थे. मोनिका नरेश से 10 साल छोटी थी, लेकिन जिस्मानीतौर पर मैच्योर थी, इसलिए बिस्तर पर दोनों की बौंडिंग बहुत अच्छी थी. बिस्तर के अलावा उन दोनों ने अजनबियों की तरह 8 साल गुजार दिए थे.
शाम को जब मन में बेचैनी होती, तो नरेश शराब के 3 पैग पेट में उड़ेल देता. शराब की एकएक घूंट का मजा लेता और ह्विस्की को मुंह में भर कर पूरे मुंह में घुमाता, फिर धीरेधीरे उसे अपने गले तक उतारता.
नरेश का ह्विस्की के साथ ऐसे अठखेलियां करना भी उसे मोनिका के मांसल बदन के साथ की गई मस्ती को याद दिलाता था. उस ने मोनिका के साथ भी बिस्तर पर ह्विस्की के साथ ही अनेक प्रयोग किए थे. कभी मोनिका शराब का घूंट मुंह में ले कर नरेश के ऊपर उड़ेल देती और फिर अपनी जीभ से उस के पूरे बदन पर पड़ी शराब को साफ करती थी, तो कभी वह मोनिका की थुलथुली जांघों पर वाइन की एक घूंट डाल कर अपनी जीभ से शराब और जांघों का मजा लेता था.
हालांकि, नरेश शराब के साथ कुछ खाता नहीं था, जैसे लोग काजू, सलाद, नमकीन चखना के रूप में लेते हैं. कुछ तो सोड़ा या कोलड्रिंक के साथ शराब पीते हैं, पर नरेश सिर्फ पानी के साथ शराब लेता है. लेकिन आज शराब के पैग बनाते हुए न जाने क्यों उसे मोनिका क्यों याद आ रही है.
शादी के बंधन में बंधने के समय नरेश और मोनिका ने यह तय किया था कि वे बच्चे नहीं करेंगे… सिर्फ साथ में रहेंगे और अपने अकेलेपन को दूर करेंगे.
मोनिका को जो कहना होता, वह खुल कर कहती, ‘मु?ो भरपूर सैक्स चाहिए और तुम्हारा साथ भी. हम दोनों कभी अलग नहीं होंगे और जिंदगीभर साथ रहेंगे…’
मोनिका के जिंदगी से चले जाने के बाद नरेश की जिंदगी में 2-3 औरतें आईं भी और चली भी गईं… वह तो हर औरत में मोनिका को ढूंढ़ता रहा. कभीकभार मन करता और दोस्त भी कहा करते थे कि चाहो तो तुम रोज मोनिका जैसी औरत के साथ रात बिता सकते हो, लेकिन वह मोनिका की यादों से कभी बाहर निकल ही नहीं पाया.
अकेले आदमी की सब से बड़ी परेशानी तो यही है कि अकेले खाना बनाना, अकेले खाना. खाने के लिए खुशामद करने वाला कोई नहीं होता है. मन करता है कि काश, सुबह एक कप चाय मिल जाती. लेकिन, सुबह चाय भी खुद ही बनानी पड़ती है.
एक दिन कंप्यूटर पर काम करतेकरते अचानक नरेश की कमर में दर्द शुरू हो गया. अस्पताल जा कर डाक्टर को दिखाया. सीटी स्कैन किया तो पता चला कि किसी नस में दिक्कत है. दर्द से नजात पाने के लिए नरेश के मन में आता कि अगर मोनिका होती, तो उस की मालिश कर देती.
फिजियोथैरेपिस्ट ने ऐक्सरसाइज भी कराई, लेकिन आराम नहीं हो रहा था. ऐसे में नरेश का मन करता कि किसी मसाज सैंटर में जा कर पूरे शरीर की फुल
मसाज करा कर मजा लिया जाए. मसाज आजकल ज्यादा प्रचलित शब्द है, क्योंकि मालिश शब्द अब देहाती हो गया है. सोशल मीडिया पर मसाजपार्लर के इश्तिहार आते रहते हैं.
एक दिन नरेश ने बड़ी हिम्मत कर के एक मसाजपार्लर में फोन कर दिया.
सामने से एक लड़की की आवाज आई, ‘‘हैलो, फिटनैस मसाज सैंटर में आप का स्वागत है. मैं आप की क्या हैल्प कर सकती हूं?’’
फोन पर सारी बातचीत होने के
बाद तय हुआ कि नरेश को अगली दोपहर 12 बजे मसाज सैंटर जाना है.
अगले दिन नरेश ठीक 12 बजे मसाज सैंटर चला गया. वहां उसे एक कम रोशनी वाले कमरे में ले जाया गया. कुछ देर बाद चेहरे पर मास्क पहने एक लड़की कमरे में आई और अपनी अदाएं दिखाते हुए उस से बोली, ‘‘आप घबराइए नहीं, फुल मजा दूंगी. बौडी टू बौडी मसाज करूंगी.’’
नरेश घबराया, क्योंकि मोनिका भी बौडी से बौडी मसाज करती थी. उस लड़की ने मिनी स्कर्ट पहनी थी, जो अब वह उतार चुकी थी और नरेश के जिस्म के साथ हरकत करने लगी थी.
नरेश ने कहा, ‘‘मु?ो सिर्फ मसाज करानी है, यह सब नहीं…’’
पर वह लड़की नहीं रुकी. कुछ देर में अचानक वह लड़की खड़ी हो कर कपड़े पहनने लगी और बोली, ‘‘जल्दी से कपड़े पहनो, क्योंकि पुलिस की रेड पड़ चुकी है.’’
पुलिस आई और सब को थाने में ले गई. थाने में उस लड़की के चेहरे से नकाब हटाने पर मोनिका की नजर नरेश पर गई और रोने लगी.
नरेश ने कहा, ‘‘आखिर बेवफा कौन? तुम या मैं…? मैं तो मसाज कराने आया था. दर्द है मेरी कमर में, लेकिन तुम तो यह सब…’’
मोनिका ने अपनी आपबीती बताई और कहा, ‘‘मैं तुम से ऊब कर ऐसे आदमी के साथ चली गई थी, जिस ने वफा के सपने दिखा कर मु?ो बेवफा बनने पर मजबूर कर दिया.’’
‘‘भाई साहब, यह ब्रीफकेस आप का है क्या?’’ सनतकुमार समाचार- पत्र की खबरों में डूबे हुए थे कि यह प्रश्न सुन कर चौंक गए.
‘‘जी नहीं, मेरा नहीं है,’’ उन्होंने प्रश्नकर्त्ता के मुख पर प्रश्नवाचक दृष्टि डाली. उन से प्रश्न करने वाला 25-30 साल का एक सुदर्शन युवक था.
‘‘फिर किस का है यह ब्रीफकेस?’’ युवक पुन: चीखा था. इस बार उस के साथ कुछ और स्वर जुड़ गए थे.
‘‘किस का है, किस का है? यह पूछपूछ कर क्यों पूरी ट्रेन को सिर पर उठा रखा है. जिस का है वह खुद ले जाएगा,’’ सनतकुमार को यह व्यवधान अखर रहा था.
‘‘अजी, किसी को ले जाना होता तो इसे यहां छोड़ता ही क्यों? यह ब्रीफकेस सरलता से हमारा पीछा नहीं छोड़ने वाला. यह तो हम सब को ले कर जाएगा,’’ ऊपरी शायिका से घबराहटपूर्ण स्वर में बोल कर एक महिला नीचे कूदी थीं, ‘‘किस का है, चिल्लाने से कोई लाभ नहीं है. उठा कर इसे बाहर फेंको नहीं तो यह हम सब को ऊपर पहुंचा देगा,’’ बदहवास स्वर में बोल कर महिला ने सीट के नीचे से अपना सूटकेस खींचा और डब्बे के द्वार की ओर लपकी थीं.
‘‘कहां जा रही हैं आप? स्टेशन आने में तो अभी देर है,’’ सनतकुमार महिला के सूटकेस से अपना पैर बचाते हुए बोले थे.
‘‘मैं दूसरे डब्बे में जा रही हूं…इस लावारिस ब्रीफकेस से दूर,’’ महिला सूटकेस सहित वातानुकूलित डब्बे से बाहर निकल गई थीं.
‘लावारिस ब्रीफकेस?’ यह बात एक हलकी सरसराहट के साथ सारे डब्बे में फैल गई थी. यात्रियों में हलचल सी मच गई. सभी उस डब्बे से निकलने का प्रयत्न करने लगे.
‘‘आप क्या समझती हैं? आप दूसरे डब्बे में जा कर सुरक्षित हो जाएंगी? यहां विस्फोट हुआ तो पूरी ट्रेन में आग लग जाएगी,’’ सनतकुमार एक और महिला को भागते देख बोले थे.
‘‘वही तो मैं कह रहा हूं, यहां से भागने से क्या होगा. इस ब्रीफकेस का कुछ करो. मुझे तो इस में से टकटक का स्वर भी सुनाई दे रहा है. पता नहीं क्या होने वाला है. यहां तो किसी भी क्षण विस्फोट हो सकता है,’’ एक अन्य शायिका पर अब तक गहरी नींद सो रहा व्यक्ति अचानक उठ खड़ा हुआ था.
‘‘करना क्या है. इस ब्रीफकेस को उठा कर बाहर फेंक दो,’’ कोई बोला था.
‘‘आप ही कर दीजिए न इस शुभ काम को,’’ सनतकुमार ने आग्रह किया था.
‘‘क्या कहने आप की चतुराई के. केवल आप को ही अपनी जान प्यारी है… आप स्वयं ही क्यों नहीं फेंक देते.’’
‘‘आपस में लड़ने से क्या हाथ लगेगा? आप दोनों ठीक कह रहे हैं. इस लावारिस ब्रीफकेस को हाथ लगाना ठीक नहीं है. इसे हिलानेडुलाने से विस्फोट होने का खतरा है,’’ साथ की शायिका से विद्याभूषणजी चिल्लाए थे.
‘‘फिर क्या सुझाव है आप का?’’ सनतकुमार ने व्यंग्य किया था.
‘‘सरकार की तरह हम भी एक समिति का गठन कर लेते हैं. समिति जो भी सुझाव देगी उसी पर अमल कर लेंगे,’’ एक अन्य सुझाव आया था.
‘‘यह उपहास करने का समय है श्रीमान? समिति बनाई तो वह केवल हमारे लिए मुआवजे की घोषणा करेगी,’’ विद्याभूषण अचानक क्रोधित हो उठे थे.
‘‘कृपया शांति बनाए रखें. यदि यह उपहास करने का समय नहीं है तो क्रोध में होशहवास खो बैठने का भी नहीं है. आप ही कहिए न क्या करें,’’ सनतकुमार ने विद्या- भूषण को शांत करने का प्रयास किया था.
‘‘करना क्या है जंजीर खींच देते हैं. सब अपने सामान के साथ तैयार रहें. ट्रेन के रुकते ही नीचे कूद पड़ेंगे.’’
चुस्तदुरुस्त सुदर्शन नामक युवक लपक कर जंजीर तक पहुंचा और जंजीर पकड़ कर लटक गया था.
‘‘अरे, यह क्या? पूरी शक्ति लगाने पर भी जंजीर टस से मस नहीं हो रही. यह तो कोई बहुत बड़ा षड्यंत्र लगता है. आतंकवादियों ने बम रखने से पहले जंजीर को नाकाम कर दिया है जिस से ट्रेन रोकी न जा सके,’’ सुदर्शन भेद भरे स्वर में बोला था.
‘‘अब क्या होगा?’’ कुछ कमजोर मन वाले यात्री रोने लगे थे. उन्हें रोते देख कर अन्य यात्री भी रोनी सूरत बना कर बैठ गए. कुछ अन्य प्रार्थना में डूब गए थे.
‘‘कृपया शांति बनाए रखें, घबराने की आवश्यकता नहीं है. बड़ी सुपरफास्ट ट्रेन है यह. इस का हर डब्बा एकदूसरे से जुड़ा हुआ है. हमें बड़ी युक्ति से काम लेना होगा,’’ विद्याभूषण अपनी बर्थ पर लेटेलेटे निर्देश दे रहे थे.
तभी किसी ने चुटकी ली, ‘‘बाबू, आप को जो कुछ कहना है, नीचे आ कर कहें, अब आप की बर्थ को कोई खतरा नहीं है.’’
‘‘हम योजनाबद्ध तरीके से काम करेंगे,’’ नीचे उतर कर विद्याभूषण ने सुझाव दिया, ‘‘सभी पुरुष यात्री एक तरफ आ जाएं. हम 5 यात्रियों के समूह बनाएंगे.
‘‘मैं, सनतकुमार, सुदर्शन, 2 और आ जाइए, नाम बताइए…अच्छा, अमल और धु्रव, यह ठीक है. हम सब इंजन तक चालक को सूचित करने जाएंगे. दूसरा दल गार्ड के डब्बे तक जाएगा, गार्ड को सूचित करने, तीसरा दल लोगों को सामान के साथ तैयार रखेगा, जिस से कि ट्रेन के रुकते ही सब नीचे कूद जाएं. महिलाओं के 2 दल प्राथमिक चिकित्सा के लिए तैयार रहें,’’ विद्याभूषण अपनी बात समाप्त करते इस से पहले ही रेलवे पुलिस के 2 सिपाही, जिन के कंधों पर ट्रेन की रक्षा का भार था, वहां आ पहुंचे थे.
‘‘आप बिलकुल सही समय पर आए हैं. देखिए वह ब्रीफकेस,’’ विद्याभूषणजी ने पुलिस वालों को दूर से ही ब्रीफकेस दिखा दिया था.
‘‘क्या है यह?’’ एक सिपाही ने अपनी बंदूक से खटखट का स्वर निकालते हुए प्रश्न किया था.
‘‘यह भी आप को बताना पड़ेगा? यह ब्रीफकेस बम है. आप शीघ्र ही इसे नाकाम कर के हम सब के प्राणों की रक्षा कीजिए.’’
‘‘बम? आप को कैसे पता कि इस में बम है?’’ एक पुलिसकर्मी ने प्रश्न किया था.
‘‘अजी कल रात से ब्रीफकेस लावारिस पड़ा है. उस में से टिकटिक की आवाज भी आ रही है और आप कहते हैं कि हमें कैसे पता? अब तो इसे नाकाम कर दीजिए,’’ सनतकुमार बोले थे.
‘‘अरे, तो जंजीर खींचिए…बम नाकाम करने का विशेष दल आ कर बम को नाकाम करेगा.’’
‘‘जंजीर खींची थी हम ने पर ट्रेन नहीं रुकी.’’
‘‘अच्छा, यह तो बहुत चिंता की बात है,’’ दोनों सिपाही समवेत स्वर में बोले थे.
‘‘अब आप ही हमारी सहायता कर सकते हैं. किसी भी तरह इस बम को नाकाम कर के हमारी जान बचाइए.’’
‘‘काश, हम ऐसा कर सकते. हमें बम नाकाम करना नहीं आता, हमें सिखाया ही नहीं गया,’’ दोनों सिपाहियों ने तुरंत ही सभी यात्रियों का भ्रम तोड़ दिया था.
कुछ महिला यात्री डबडबाई आंखों से शून्य में ताक रही थीं. कुछ अन्य बच्चों के साथ प्रार्थना में लीन हो गई थीं.
‘‘हमें जाना ही होगा,’’ विद्याभूषण बोले थे, ‘‘सभी दल अपना कार्य प्रारंभ कर दीजिए. हमारे पास समय बहुत कम है.’’
डरेसहमे से दोनों दल 2 विभिन्न दिशाओं में चल पड़े थे और जाते हुए हर डब्बे के सहयात्रियों को रहस्यमय ब्रीफकेस के बारे में सूचित करते गए थे.
बम विस्फोट की आशंका से ट्रेन में भगदड़ मच गई थी. सभी यात्री कम से कम एक बार उस ब्रीफकेस के दर्शन कर अपने नयनों को तृप्त कर लेना चाहते थे. शेष अपना सामान बांध कर अवसर मिलते ही ट्रेन से कूद जाना चाहते थे.
कुछ समझदार यात्री रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था को कोस रहे थे, जिस ने हर ट्रेन में बम निरोधक दल की व्यवस्था न करने की बड़ी भूल की थी.
गार्ड के डब्बे की ओर जाने वाले दल को मार्ग में ही एक मोबाइल वाले सज्जन मिल गए थे. उन्होंने चटपट अपने जीवन पर मंडराते खतरे की सूचना अपने परिवार को दे दी थी और परिवार ने तुरंत ही अगले स्टेशन के स्टेशन मास्टर को सूचित कर दिया था.
फिर क्या था? केवल स्टेशन पर ही नहीं पूरे रेलवे विभाग में हड़कंप मच गया. ट्रेन जब तक वहां रुकी बम डिस्पोजल स्क्वैड, एंबुलैंस आदि सभी सुविधाएं उपस्थित थीं.
ट्रेन रुकने से पहले ही लोगों ने अपना सामान बाहर फेंकना प्रारंभ कर दिया और अधिकतर यात्री ट्रेन से कूद कर अपने हाथपांव तुड़वा बैठे थे.
गार्ड के डब्बे की ओर जाने वाले दस्ते का काम बीच में ही छोड़ कर सनतकुमारजी का दस्ता जब वापस लौटा तो उन की पत्नी रत्ना चैन से गहरी नींद में डूबी थीं.
सनतकुमार ने घबराहट में उन्हें झिंझोड़ डाला था :
‘‘तुम ने तो कुंभकर्ण को भी मात कर दिया. किसी भी क्षण ट्रेन में बम विस्फोट हो सकता है,’’ चीखते हुए अपना सामान बाहर फेंक कर उन्होंने पत्नी रत्ना को डब्बे से बाहर धकेल दिया था.
‘‘हे ऊपर वाले, तेरा बहुतबहुत धन्यवाद, जान बच गई, चलो, अब अपना सामान संभाल लो,’’ सनतकुमार ने पत्नी को आदेश दे कर इधरउधर नजर दौड़ाई थी.
घबराहट में ट्रेन से कूदे लोगों को भारी चोटें आई थीं. उन की मूर्खता पर सनतकुमार खुल कर हंसे थे.
इधरउधर का जायजा ले कर सनतकुमार लौटे तो रत्ना परेशान सी ट्रेन की ओर जा रही थीं.
‘‘कहां जा रही हो? ट्रेन में कभी भी विस्फोट हो सकता है. वैसे भी ट्रेन में यात्रियों को जाने की इजाजत नहीं है. पुलिस ने उसे अपने कब्जे में ले लिया है.’’
‘‘सारा सामान है पर उस काले ब्रीफकेस का कहीं पता नहीं है.’’
‘‘कौन सा काला ब्रीफकेस?’’
‘‘वही जिस में मैं ने अपने जेवर रखे थे और आप ने कहा था कि उसे अपनी निगरानी में संभाल कर रखेंगे.’’
‘‘तो क्या वह ब्रीफकेस हमारा था?’’ सनतकुमार सिर पकड़ कर बैठ गए.
‘‘क्या हुआ?’’
‘‘क्या होना है, तुम और तुम्हारी नींद, ट्रेन में इतना हंगामा मचा और तुम चैन की नींद सोती रहीं.’’
‘‘मुझे क्या पता था कि आप अपने ही ब्रीफकेस को नहीं पहचान पाओगे. मेरी तो थकान से आंख लग गई थी ऊपर से आप ने नींद की गोली खिला दी थी. पर आप तो जागते हुए भी सो रहे थे,’’ रत्ना रोंआसी हो उठी थीं.
‘‘भूल जाओ सबकुछ, अब कुछ नहीं हो सकता,’’ सनतकुमार ने हथियार डाल दिए थे.
‘‘क्यों नहीं हो सकता? मैं अभी जा कर कहती हूं कि वह हमारा ब्रीफकेस है उस में मेरे 2 लाख के गहने हैं.’’
‘‘चुप रहो, एक शब्द भी मुंह से मत निकालना, अब कुछ कहा तो न जाने कौन सी मुसीबत गले पड़ेगी.’’
पर रत्ना दौड़ कर ट्रेन तक गई थीं.
‘‘भैया, वह ब्रीफकेस?’’ उन्होंने डब्बे के द्वार पर खड़े पुलिसकर्मी से पूछा था.
‘‘आप क्यों चिंता करती हैं? उस में रखे बम को नाकाम करने की जिम्मेदारी बम निरोधक दस्ते की है. वे बड़ी सावधानी से उसे ले गए हैं,’’ पुलिसकर्मी ने सूचित किया था.
रत्ना बोझिल कदमों से पति के पास लौट आई थीं. ट्रेन के सभी यात्रियों को उन के गंतव्य तक पहुंचाने का प्रबंध किया गया था. सनतकुमार और रत्ना पूरे रास्ते मुंह लटाए बैठे रहे थे. सभी यात्री आतंकियों को कोस रहे थे. पर वे दोनों मौन थे.
विस्फोट हुआ अवश्य था पर ट्रेन में नहीं सनतकुमार और रत्ना के जीवन में.
राजघराने भी उन गगनचुंबी इमारतों की तरह होते हैं, जिन के बनने में लाखों लोगों की खूनपसीने की कमाई ही नहीं, बल्कि उन की जिंदगी भी लगी होती है.
ये राजघराने न जाने कितने मासूमों का खून पीपी कर राक्षसों जैसे विकराल हुए हैं. इन के इतिहास के पन्नों पर जुल्मोसितम ढहाने की ढेरों कहानियां बिखरी पड़ी हैं.
इन की काली करतूतों को बड़ी होशियारी के साथ परदे के पीछे दफन कर दिया गया है और सामने रंगमंच पर सिर्फ और सिर्फ शोहरत नाच रही होती है.
आदमी कपड़े बदल सकता है, पर तन नहीं बदल सकता. ठीक ऐसे ही व्यवस्थाओं को बदला जा सकता है, लेकिन मन और सोच को नहीं.
जटपुर के राजघराने के साथ भी कुछ ऐसा ही चल रहा था. सदियां गुजर गईं, मगर राजघराने न बदले. आजादी के बाद नई व्यवस्था में राजघरानों के पास उन के महल और हवेलियां तो रह गईं, लेकिन उन की हजारोंहजारों बीघा जमीनों को सरकार ने ले लिया. फिर भी राजघरानों के वारिसों ने अपने परिवार के सदस्यों, नातेरिश्तेदारों के नाम जोत की जमीनें लिखा कर चालबाजी से अपने पास सैकड़ों बीघा जमीनें रख लीं.
जटपुर इलाके के रियासतदार राजा राजप्रताप सिंह के पास आजादी के 75 साल बाद भी राजमहल और हवेलियों के अलावा भी 300 बीघा जोत की जमीन थी. कितने ही आलीशान बंगले और तमाम प्रोपर्टी उन्होंने दिल्ली, देहरादून, शिमला, चंडीगढ़ और नैनीताल में इकट्ठी कर रखी थीं.
राजा राजप्रताप सिंह ने हरिद्वार में भी बड़ी महंगी जमीन पर एक आश्रम खोल रखा था. कितने ही बागबगीचे उन के नाम थे.
आजादी के बाद सरकारी फरमान से भले ही राजशाही का खात्मा सरकारी पन्नों में हो गया हो, लेकिन हकीकत में राजशाही न केवल जिंदा है, बल्कि बड़ी बेशर्मी के साथ वह दिन दूनी रात चौगुनी फलफूल रही है.
कितने ही नवाब और राजेरजवाड़े आज भी मूंछों पर ताव देते घूम रहे हैं. अंगरेजों के पिट्ठू ये ज्यादातर राजेरजवाड़े आज भी ऐसे ही राज कर रहे हैं जैसे पहले कर रहे थे, बल्कि और मजबूती से बेदाग हो कर, विधानसभाओं और संसद में जनता के नुमाइंदे बन कर. सरकारें भी इन से थर्राती थीं, इसलिए उन की भी हिम्मत इन से इन के महल छीनने की नहीं हुई.
राजा राजप्रताप सिंह के पुरखे भी आजादी के बाद से लोकशाही में भी कभी संसद, तो कभी विधानसभाओं में जनता की नुमाइंदगी करते आ रहे थे. उन्होंने जता दिया था कि शहंशाह तो शहंशाह ही रहता है और जनता जनता
ही रहती है. उन के खिलाफ किसी ने सिर उठाने की हिमाकत नहीं की और जिस ने की, उन के सिर कुचल दिए गए. सिर कुचलने की उन की आदत पुरानी थी.
एक बार आजादी के बाद लोकशाही के जोश में कोई जनता का रहनुमा बन कर राजा राजप्रताप सिंह के इलाके से विधायक बन गया था, तब उन के दादा वंशप्रताप ने उस विधायक को अपनी घुड़साल में उलटा लटका कर उस पर खूब हंटरों की बरसात कराई थी. बेचारे उस विधायक ने अगले ही दिन अपनी विधायकी से इस्तीफा दे दिया था.
इस मामले में शासनप्रशासन ऐसे चुप रहा था, जैसे जटपुर राजघराने का गुलाम हो. अखबारों की कलम चिल्लाई, लेकिन कब तक चिल्लाती, उसे भी चुप कर दिया गया.
राजा राजप्रताप सिंह हमेशा सत्ता के साथ रहते थे. कभी विपक्ष में भी रहना पड़ा, तो उन की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता था. जनप्रतिनिधि होने के नाते जिले के डीएम और एसपी सब उन के दरबार में हाजिरी लगाते थे. वजह, राजा राजप्रताप सिंह उन्हें कीमती तोहफे देते रहते थे.
अफसर भी राजमहल में अपनी हाजिरी लगाने के लिए ऐसे ही उतावले रहते थे, जैसे नईनवेली दुलहन अपने पिया के पास जाने के लिए बेताब रहती है.
ऐसे राजघरानों को कभी यह एहसास ही नहीं हुआ कि देश में राजशाही का खात्मा हो गया है और अब लोकशाही का दौर है. वे राजशाही में तो राजा थे ही, लेकिन लोकशाही में भी उन का वजूद राजा से कम नहीं था.
सभी राजा राजप्रताप सिंह को ‘राजा साहब’ और उन के 23 साल के बेटे सूर्यप्रताप को ‘कुंवरजी’ कह कर पुकारते थे.
राजा राजप्रताप सिंह की सुनसान जंगल में एक हवेली थी, जिसे ‘काली कोठी’ के नाम से जाना जाता था. वहां पर सभी तरह की काली करतूतों को अंजाम दिया जाता था. इस कोठी पर राजा राजप्रताप सिंह के कुछ विश्वासपात्र मुस्टंडे तैनात थे. इन में भी दिलावर और शौकीन खास थे.
काली कोठी की रातें हमेशा रंगीन हुआ करती थीं. विदेशी शराब से ले कर विदेशी हसीनाएं यहां बड़े लोगों को बड़ी शिद्दत के साथ परोसी जाती थीं.
इसी काली कोठी के पास एक बड़ी झाल थी और इस झाल में राजा राजप्रताप सिंह ने खतरनाक मगरमच्छ पाल रखे थे. अगर कोई राजा राजप्रताप सिंह के इलाके में उन के खिलाफ बोलने लगता था या फिर उन के गहरे राज जान जाता था, तो उस आदमी को ठिकाने कैसे लगाना है, इस के लिए राजा राजप्रताप सिंह के कारिंदों को बस इशारा भर चाहिए होता था.
हां, कुछ खतरनाक विरोधियों को झाल के मगरमच्छों के हवाले भी कर दिया जाता था, जिस से उन की लाश भी नहीं मिलती थी. ऐसे केस कम होते थे.
एक तरह से काली कोठी राजा राजप्रताप सिंह का हरम था. वहां वेश्याओं को पाला जाता था. सब को इस की जानकारी थी, लेकिन किसी की क्या मजाल, जो काली कोठी पर उंगली भी उठा दे. लेकिन कभीकभी एक छोटी सी चिनगारी भी बड़े जंगल को खाक कर देती है.
राजो अपनी मां विमला के साथ बचपन से ही इस काली कोठी पर आती रहती थी. वह इस के चप्पेचप्पे से वाकिफ थी. सब जानते थे कि राजो के बाप कलवा ने अपनी नईनवेली दुलहन विमला को काली कोठी पर भेजने से मना कर दिया था.
राजा राजप्रताप सिंह में उस समय जवानी का जोश था, नाफरमानी उन्हें पसंद नहीं थी.
इस नाफरमानी पर कलवा को झाल में मगरमच्छों के सामने फिंकवा दिया था. उस की लाश कभी नहीं मिली. वह पुलिस की फाइलों में आज भी लापता है. लेकिन सब जानते थे कि कलवा के साथ क्या हुआ था.
विमला राजो को हमेशा उस के बाप के बारे में बताती आई थी, ‘‘राजो, तेरा बापू झूले में गिर गया था और ?ाल के मगरमच्छों ने उसे अपना निवाला बना लिया था. उस समय तू मेरे पेट में थी. तब ‘राजा साहब’ ने ही मु?ो सहारा दिया था और काली कोठी की रसोई में मुझे काम पर लगाया था.’’
लेकिन विमला ने राजो से वह सच छिपा लिया था कि कलवा के मरने के बाद उस के साथ काली कोठी पर
क्या हुआ था. काली कोठी के हरम में राजा राजप्रताप सिंह की प्यास बुझाने के साथ उस ने कितनों की प्यास बुझाई थी और अब भी 37 साल की विमला को कभी भी काली कोठी बुला लिया जाता है.
अब राजो भी 17 साल की हो गई थी और ‘राजा साहब’ को बता दिया गया था कि उन के चखने के लिए एक कली तैयार हो रही है.
लेकिन, जैसा बाप वैसा ही बेटा भी. राजा राजप्रताप सिंह का बेटा कुंवर सूर्यप्रताप भरी जवानी में था. वह तो ऐसे मामलों में अपने बाप से भी एक कदम आगे था. उस की उम्र के हिसाब से उसे तकरीबन हर रात शराब और शबाब दोनों चाहिए होता था. वह कुछ नए खयालों का था और अपना ज्यादातर समय वह अलगअलग शहरों में बने अपने बंगलों में गुजारता था.
कुंवर सूर्यप्रताप गोरी चमड़ी का गुलाम था और विदेशी औरतें उसे ज्यादा लुभाती थीं. रूसी औरतों का तो वह रसिया था और वे उसे आसानी से मिल भी जाती थीं.
राजो खूबसूरत तो नहीं थी, लेकिन जवानी की दहलीज पर हर लड़की हवस के भेडि़यों को हूर की परी ही नजर आती है. उस ने अपनी मां को सजधज कर वक्तबेवक्त काली कोठी जाते देखा था.
मां से पूछने पर उसे हमेशा यही जवाब मिलता था, ‘‘राजो, महल या काली कोठी पर सजधज कर ही जाना पड़ता है, नहीं तो ‘राजा साहब’ नाराज हो जाते हैं.’’
लेकिन अब राजो कोई छोटी बच्ची तो रह नहीं गई थी. वह इन सब बातों को खूब समझती थी और अब वह मां को रात को कहीं भी जाने से रोकती थी.
इस बात से तंग आ कर एक दिन विमला ने राजा राजप्रताप सिंह से हाथ जोड़ कर गुजारिश की, ‘‘राजा साहब, अब मुझे बख्श दो. मेरी बेटी राजो बड़ी हो गई है. अब वह रात को मुझे कहीं भी जाने से रोकती है.’’
यह सुन कर राजा राजप्रताप सिंह चहक उठे. उन्होंने सिगरेट का धुआं विमला के चेहरे पर उड़ाते हुए कहा, ‘‘वाह विमला वाह, तुम ने तो बड़ी अच्छी खुशखबरी सुनाई. तुम्हारे घर में घोड़ी जवान हो रही है और हम बूढ़ी होती घोड़ी की ही सवारी किए जा रहे हैं. आगे से तुम अपनी जगह उसे भेज दिया करना.’’
यह सुन कर विमला के तनबदन में आग लग गई. इस समय उस के हाथ में दरांती होती, तो वह राजा राजप्रताप सिंह के सीने में घोंप देती, लेकिन वह उन के स्वभाव को अच्छे से जानती थी. वह अपने पति को तो बहुत पहले खो चुकी थी, अब उस ने जरा सी भी गलती की तो बेटी को खोने का भी पूरा डर था और वह राजो को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी. वह तो जी ही उस के लिए रही थी.
विमला संभल कर बोली, ‘‘अभी मेरी बेटी इतनी भी बड़ी नहीं हुई है कि वह आप को खुश कर सके. जैसे भी होगा, अभी तो मैं ही आप की सेवा में आती रहूंगी,’’ कह कर विमला राजा राजप्रताप सिंह के कमरे से बाहर आ गई.
विमला राजा राजप्रताप सिंह का न तो मुकाबला कर सकती है और न ही कुछ बोल सकती है. उस की रूह यह याद कर के ही कांप गई कि कैसे उस के आदमी कलवा को राजा राजप्रताप सिंह ने मगरमच्छों के सामने झल में फेंक दिया था.
उस दिन से विमला बहुत निराश और परेशान रहने लगी. अपनी मां की यह हालत देख कर राजो ने पूछा, ‘‘मां, क्या बात है? तुम आजकल इतनी परेशान क्यों रहती हो?’’
बेटी के मुंह से ये शब्द सुनते ही विमला फफकफफक कर रो पड़ी, फिर उस ने राजो को सारी बात बता दी.
‘‘इस का मतलब यह है कि मां, यह मेरे पिता का हत्यारा है और तुम सजधज कर उस के पास जाती हो…’’
‘‘बेटी, मैं क्या करती? तू मेरे पेट में थी. मैं तुझे बचाना चाहती थी. लेकिन, जब कोई औरत एक बार इस दलदल में गिर जाती है, तो उस का बाहर आना नामुमकिन सा हो जाता है. समाज उसे स्वीकार नहीं करता. मैं तब भी मजबूर थी और अब भी…’’
‘‘नहीं मां, हम ने अपनी कमजोरी को मजबूरी बना रखा है, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा.’’
राजो के तेवर देख कर विमला डर गई. वह तो सोचती थी कि पूरी कहानी सुन कर राजो डर जाएगी, लेकिन राजो तो पूरा लाल अंगारा बन गई थी.
‘‘मां देखना कि कैसे मैं राजप्रताप सिंह से अपने पिता की हत्या का बदला लेती हूं. और मां, तुम तो मजबूरी के चलते कुछ न कर सकीं, लेकिन मैं तुम्हारी बेइज्जती का बदला लूंगी. वह होगा राजा अपने घर का, लेकिन मेरी जूती की नोक पर.’’
‘‘शांत हो जा राजो, शांत हो जा. दीवारों के भी कान होते हैं. मुझे तुझे ये सब बातें नहीं बतानी चाहिए थीं.’’
‘‘मां, अगर तुम मुझे ये सब बातें नहीं बतातीं, तो मैं भी एक दिन तुम्हारी तरह काली कोठी पहुंच जाती और सारी जिंदगी के लिए उसी दलदल में फंस जाती. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. देखना, अब मैं क्या करती हूं.’’
राजो की बातें सुन कर विमला के अंदर डर और हिम्मत की भावना एकसाथ जागी. उसे लगा कि अगर इस समय राजा राजप्रताप सिंह उस के सामने होता, तो अपने पति की हत्या का बदला लेने के लिए वह अभी दरांती से उस का गला उड़ा देती. वह सोचने लगी कि उस के अंदर यह हिम्मत अभी तक क्यों नहीं आई थी?
आज की रात मांबेटी के लिए तूफानी रात थी. बाहर सन्नाटा पसरा हुआ था, लेकिन विमला और राजो के मन में तूफान उमड़घुमड़ रहा था.
कुछ दिन बाद कुंवर सूर्यप्रताप शिमला से जटपुर के महल में अपना जन्मदिन मनाने के लिए आया. शाम को वह काली कोठी पहुंच गया और दिलावर से बोला, ‘‘दिलावर, मेरे जन्मदिन पर क्या गिफ्ट दे रहे हो?’’
‘‘आप आदेश तो कीजिए…’’ कुंवर सूर्यप्रताप की मंशा भांपते हुए दिलावर ने कहा.
‘‘आज हमारा जन्मदिन है तो उपहार भी कुछ स्पैशल ही होना चाहिए,’’ कुंवर सूर्यप्रताप ने मुसकराते हुए कहा.
‘‘बिलकुल कुंवरजी, आप चिंता न करें,’’ दिलावर ने राजो को अपने ध्यान में लाते हुए कहा.
कुंवर सूर्यप्रताप सिंह इन बातों को खूब समझता था. दिलावर को सब बता दिया गया कि उपहार किस समय पेश करना है.
दिलावर रात के अंधेरे में अपने साथियों के साथ जीप में बैठ कर विमला के घर गया. वह तो यह सोच रहा था कि विमला से बात कर के ही आसानी से सब काम बन जाएगा, लेकिन आज तो विमला का दूसरा ही रूप था.
दिलावर के इरादे जान कर विमला दरांती ले कर उस पर ?ापटी. लेकिन इस से पहले कि वह उस पर वार करती, दिलावर के साथ आए शौकीन ने विमला के सिर पर लाठी का वार कर दिया. इस से विमला नीचे गिर पड़ी.
राजो अपनी मां की मदद के लिए आई, तो दिलावर के आदमियों ने उसे पकड़ लिया. शिकारियों को शिकार मिल चुका था. वे बेसुध विमला को वहीं छोड़ कर राजो को उठा ले गए. रात के अंधेरे में दिलावर ने जीप काली कोठी की ओर दौड़ा दी.
राजो ने होशियारी से काम लिया. वह यह बात जान गई थी कि ताकत दिखाने और विरोध करने से कुछ नहीं होने वाला. उस ने कहा, ‘‘दिलावर चाचा, हमारा तो पेशा ही यही है. पहले मां करती थीं, अब मुझे करना है. फिर इतनी जोरजबरदस्ती भी क्यों?’’
दिलावर को यकीन ही नहीं था कि राजो इतनी आसानी से मान जाएगी. उस ने कहा, ‘‘हम ने कहां जोरजबरदस्ती की राजो, तुम ने देखा नहीं कि तुम्हारी मां कैसे मेरी तरफ दरांती ले कर दौड़ी थी?’’
‘‘दिलावर चाचा, बुरा मत मानना. तुम्हारी बेटी के साथ अगर ऐसा ही होता तो तुम क्या करते?’’
‘‘मैं तो उसे गोली से उड़ा देता,’’ दिलावर ने राजो की बात सुनते ही गुस्से में कहा.
‘‘तो फिर मेरी मां ने क्या गलत किया चाचा? अपनी बेटी के लिए इतना गुस्सा और दूसरों की बेटियों को कोठे पर ले जाने में जरा भी शर्म नहीं.’’
यह सुन कर दिलावर का चेहरा फक पड़ गया.
इस पर राजो ने कहा, ‘‘छोड़ो चाचा, इन सब बातों को और अब यह बताओ कि मुझे क्या करना है?’’
दिलावर ने राजो को सारी बातें समझ दीं और राजो को मेकअप करने के लिए काली कोठी के मेकअप रूम में भेज दिया. वहां उसे तैयार करने के लिए एक औरत पहले से ही थी. उस ने राजो को दुलहन की तरह सजाया और पहनने के लिए एक झना सा गुलाबी नाइट गाउन दिया.
तब तक कुंवर सूर्यप्रताप नशे में चूर हो चुका था. राजो को देख कर वह उतावला हो गया, लेकिन तभी राजो ने डरने का नाटक करते हुए कांपते हुए कहा, ‘‘कुंवरजी, हमें तो घबराहट हो रही है. हम ने ऐसा काम पहले कभी नहीं किया है.’’
‘‘ओह, इन नई लड़कियों के साथ यही परेशानी होती है. पहले इन्हें तैयार करना पड़ता है, नहीं तो सारा मूड खराब कर देती हैं.’’
इसी बीच राजो ने सोच लिया था कि उसे क्या करना है. उस की नजर कांच की बोतलों पर थी. उस ने मन बना लिया था कि कुंवर के नंगा होते ही वह एक बोतल को तोड़ कर उसे उस के पेट में घुसेड़ देगी और माचिस से आग लगा कर यहां से भाग जाएगी.
लेकिन तभी कुंवर सूर्यप्रताप ने कहा, ‘‘राजो, 10 मिनट मेरे साथ झील के किनारे घूमो, तुम्हारा सारा डर छूमंतर हो जाएगा.’’
‘‘जैसी आप की मरजी, हम आज आप को अपनी जिंदगी की सब से बेशकीमती चीज सौंपने जा रहे हैं. हमारा डर दूर करना आप की जिम्मेदारी है.’’
‘‘ओह, तुम तो बातें भी बहुत बनाती हो. आओ, झील के किनारे घूमने में तुम्हारे साथ खूब मजा आएगा,’’ कुंवर सूर्यप्रताप ने राजो के गले में हाथ डालते हुए कहा.
काली कोठी से नीचे उतरते ही जब वे दोनों किसी प्रेमी जोड़े की तरह आगे बढ़े, तो दिलावर और शौकीन कुंवर सूर्यप्रताप की सुरक्षा के लिए उन के पीछे चले. तभी राजो ने कहा, ‘‘कुंवरजी, ये कबाब में 2-2 हड्डी…’’
राजो का इशारा सम?ाते ही कुंवर सूर्यप्रताप ने दिलावर और शौकीन को वहीं रुकने के लिए कहा. फिर कुंवर सूर्यप्रताप और राजो एकदूसरे के हाथों में हाथ डाले झील के किनारे पहुंच गए.
माहौल पूरा रूमानी था. कुंवर के पैर नशे में लड़खड़ा रहे थे और जबान फिसल रही थी.
‘‘राजो, मन तो मेरा भी यह कर रहा है कि इसी रूमानी माहौल में सबकुछ कर डालें.’’
‘‘कुंवरजी, अभी इतनी जल्दी भी क्या है?’’ राजो ने कहा.
झील के गहरे पानी को देख राजो का मन बदलने लगा. उसे अपने पिता की याद आ गई, जिन्हें कुंवर के पिता राजप्रताप सिंह ने इसी झील में मगरमच्छों के सामने फिंकवा दिया था. राजो के मन में आया कि क्यों न कुंवर सूर्यप्रताप का भी वही अंजाम किया जाए, जो उस के पिता के साथ हुआ था. इस से बेहतरीन बदला तो कोई और हो नहीं सकता.
यही सोच कर राजो कुंवर सूर्यप्रताप को बिलकुल झील के किनारे ले गई और मौका पाते ही पिछवाड़े पर लात मार कर उसे झील में मगरमच्छों के हवाले कर दिया. ‘छपाक’ की आवाज के साथ ही मगरमच्छ कुंवर सूर्यप्रताप पर टूट पड़े.
राजो ने अपने पिता की मौत का बदला ले लिया था. अब उसे अपनी मां की बेइज्जती का बदला लेना था.
राजो चिल्लाते हुए काली कोठी की ओर दौड़ी, ‘‘कुंवरजी झील में गिर गए, कुंवरजी झील में गिर गए…’’
राजो की आवाज सुन कर दिलावर और शौकीन समेत काली कोठी का पहरेदार और दूसरे लोग भी झील की तरफ दौड़े, लेकिन राजो अपने इरादों को अंजाम तक पहुंचाने के लिए काली कोठी के अंदर गई. उस ने अपना नाइट गाउन उतार फेंका और अपने कपड़े पहने.
राजो काली कोठी के रसोईघर में गई, गैस को औन किया, माचिस की जलती तीली फेंकी. ‘भक’ से आग लगी और राजो वहां से चलती बनी. उस ने उस बदनाम काली कोठी को ही आग के हवाले कर दिया था, जहां आएदिन उस की मां की अस्मत को रौंदा जाता था.
काली कोठी ‘धूंधूं’ कर जलने लगी. झील पर पहुंचे कारिंदे अब काली कोठी की ओर दौड़े, लेकिन सिलैंडर फटने के तेज धमाकों ने उन के कदम पीछे ही रोक दिए.
तब तक विमला भी होश में आ चुकी थी. काली कोठी से उठती आग की लपटें देख वह समझ गई कि उस की बहादुर बेटी ने अपने इरादों को अंजाम तक पहुंचा दिया है.
कुंवर सूर्यप्रताप के खात्मे के साथ ही राजा राजप्रताप सिंह के वंश का आखिरी चिराग बुझ गया.
राजा राजप्रताप सिंह इस सदमे को बरदाश्त न कर सके. पागलपन के एक दौरे में 3 दिन बाद उन्होंने उसी
झील में कूद कर खुदकुशी कर ली. वे अपने ही पाले हुए मगरमच्छों का शिकार बन गए.
राजो 17 साल की नाबालिग थी. उस का मामला जुवैनाइल कोर्ट में चला. उस के खिलाफ कोई सुबूत तो नहीं था, लेकिन रसूखदार की जड़ें उखाड़ने की सजा तो उसे मिलनी ही थी.
शातिर वकीलों की फौज ने जैसेतैसे उसे काली कोठी को आग लगाने के इलजाम में फंसा दिया. उसे 3 साल के लिए बाल सुधारगृह भेज दिया गया, जहां राजो ने सिलाईकढ़ाई, पढ़ाई के साथसाथ कंप्यूटर चलाना भी सीख लिया.
जेल से छूटने के समय तक राजो इस काबिल बन गई थी कि वह अपना और अपनी मां का पेट आसानी से पाल सकती थी.
‘‘अ री ओ गीता, उठ जा बेटी. आज स्कूल नहीं जाना है क्या? देख, दिन चढ़ आया है,’’ अपनी मां की आवाज सुनते ही गीता मानो सिहर कर उठ बैठी. जैसे उस ने कोई बुरा सपना देखा था. वह पसीने से तरबतर थी.
14 साल की गीता 8वीं जमात में पढ़ती थी. वह उम्र से पहले ही बड़ी दिखने लगी थी. शरीर ऐसे भर गया था मानो 18 साल की हो. कपड़े छोटे होने लगे थे और नाजुक अंग बड़े.
गीता अपने मातपिता और एक छोटे भाई के साथ राजस्थान के पाली जिले के एक गांव में रहती थी. वह और उस का छोटा भाई रवि सरकारी स्कूल में पढ़ते थे.
रवि 5वीं क्लास में था, पर था बड़ा होशियार. वह अपनी उम्र से ज्यादा बड़ी और समझदारी की बातें करता था और अपनी बहन से बहुत ज्यादा प्यार करता था.
गीता के पड़ोस में एक किराने की दुकान थी, जिसे रमेश नाम का अधेड़ आदमी चलाता था. उस की बीवी को मरे 5 साल हो गए थे. उस की कोई औलाद नहीं थी.
दिन में तो रमेश का अपनी दुकान में समय कट जाता था, पर रात को बिस्तर और अकेलापन उसे काटने को दौड़ता था. वह औरत के जिस्म की चाह में मरा जा रहा था.
रमेश को जब भी किसी औरत की चाह होती थी, तो उस का मुंह सूखने लगता था. वह दाएं हाथ से अपनी बाईं कांख खुजलाने लगता था, पर चूंकि उस की अपने महल्ले में अच्छी इमेज बनी हुई थी, तो वह मौके की तलाश में घात लगा कर बैठा रहता था.
पिछले हफ्ते की ही बात है. गीता रमेश चाचा की दुकान से नमक लेने गई थी. उस ने तंग सूट पहना हुआ था, जो एक साइड से उधड़ा हुआ था. उस का एक उभार वहां से ?ांक रहा था.
‘‘चाचा, जल्दी से नमक देना. मां ने सब्जी गैस पर चढ़ा रखी है,’’ गीता ने रमेश को पैसे देते हुए कहा.
वैसे तो रमेश के मन में तब तक कोई घटियापन सवार नहीं था, पर गीता के झांकते उभार ने उस की मर्दानगी को जगा दिया.
अब रमेश को गीता में भरीपूरी औरत नजर आने लगी. वह उसे बिस्तर पर ले जाने को उतावला हो गया. उस का मुंह सूखने लगा और वह अपने दाएं हाथ से बाईं कांख खुजलाने लगा.
‘‘अरे चाचा, जल्दी से नमक दो न,’’ गीता ने दोबारा कहा, तो रमेश अपनी फैंटेसी से जागा. उस ने हड़बड़ाते हुए कहा, ‘‘जा, भीतर से नमक की थैली ले ले. वहां चौकलेट का एक डब्बा भी रखा है. उस में से एक चौकलेट ले लेना.’’
यह सुन कर गीता खुश हो गई और भाग कर भीतर चली गई. तब गली सुनसान थी. रमेश भी दबे पैर गीता के पीछे चला गया और बहाने से उसे छूने लगा.
पहले तो गीता को ज्यादा पता नहीं चला, पर जब उसे लगा कि चाचा उसे अब गलत तरीके से छू रहे हैं, तो वह सावधान हो गई और नमक की थैली उठा कर अपने घर भाग गई.
तब से गीता को रोज रात को सपने में रमेश चाचा की वह गंदी छुअन दिखाई देती थी और वह गुमसुम सी रहने लगी थी.
आज सुबह जब मां ने गीता को स्कूल जाने के लिए उठाया, तो उस का मन किया कि घर पर ही रहे, पर अपने भाई रवि के जोर देने पर वह स्कूल जाने के लिए तैयार हो गई.
गीता इतना ज्यादा घबराई हुई थी कि उस ने रमेश की किराने की दुकान की तरफ देखा भी नहीं.
‘‘दीदी, आज आप ने मुझे टौफी नहीं दिलाई,’’ रवि ने शिकायत की.
‘‘आज के बाद तुझे कोई टौफी नहीं मिलेगी,’’ गीता ने आंखें दिखाते हुए बात बदलनी चाही.
‘‘क्या हुआ दीदी? आप टौफी के नाम पर बिदक क्यों गईं?’’ रवि ने पूछा.
‘‘कुछ नहीं, जल्दी चल, नहीं तो स्कूल में लेट हो जाएगा,’’ गीता ने कहा.
रवि समझ गया था कि दाल में कुछ काला है. लंच टाइम में जब वे दोनों खाना खा रहे थे, तब रवि ने पूछा, ‘‘दीदी, बात क्या है? देखो, अगर मन में कोई बात है, तो मुझे बता दो. मेरे पास हर समस्या का हल है.’’
‘‘अच्छा, मेरे छोटे बहादुर भाई.
क्या तू हर समस्या का हल निकाल सकता है?’’
‘‘और नहीं तो क्या. रवि के पास हर मर्ज की दवा है,’’ रवि बोला.
‘‘भाई, पता नहीं क्यों, मुझे रमेश चाचा अब अच्छे नहीं लगते हैं. जिस दिन मैं नमक लेने गई थी, वे मुझे गलत ढंग से छू रहे थे. मैं डर गई थी. मां से कहने की हिम्मत नहीं हुई.’’
रवि छोटा जरूर था, पर उसे गुड टच और बैड टच की समझ थी. वह जान गया था कि रमेश चाचा की गंदी नजर उस की बहन पर है, पर कोई उन की बात को समझ नहीं पाएगा या समाज का डर दिखा कर गीता को चुप करा दिया जाएगा.
पर रवि चुप रहने वालों में से नहीं था. वह समझ गया कि रमेश चाचा की नीयत सही नहीं है. तभी उसे अपनी क्लास में पढ़ने वाली माया की याद आई. माया ने बताया था कि उस के चाचा मनोज पुलिस में सिपाही हैं.
रवि उसी शाम को माया के घर जा पहुंचा. मनोज चाचा भी उस समय घर पर ही थे. रवि ने अकेले में मनोज चाचा को सारी बात बताई.
मनोज को सम?ा आ गया कि गीता किस तनाव से गुजर रही है. वह रमेश किराने वाले को रंगे हाथ पकड़ना चाहता था, ताकि किसी तरह की गलतफहमी न रहे.
अगले दिन शाम को मनोज और रवि ने गीता से अकेले में बात की. पहले तो गीता सब बताने से डर रही थी, पर मनोज के समझाने पर उस ने नमक वाली घटना बता दी.
इस के बाद मनोज सादा कपड़ों में रमेश पर निगरानी रखने लगा. रमेश की हरकतें सही नहीं थीं. वह हर आतीजाती औरत और लड़की को ताड़ता था. उन के उभारों को देख कर उस की नजरों में अलग सी चमक आ जाती थी.
एक दिन मनोज ने गीता से कहा, ‘‘गीता, कल दिन में तुम फिर से रमेश की दुकान पर जाना और अगर वह तुम्हें भीतर बुलाए, तो चली जाना. मैं थोड़ी ही देर में वहां आ जाऊंगा और उसे सबक सिखा दूंगा.’’
गीता ने पहले तो नानुकर की, पर उसे मनोज चाचा पर पूरा भरोसा था, तो बाद में मान गई.
अगले दिन जब गली सुनसान थी, तब गीता रमेश की दुकान पर गई.
‘‘बड़े दिनों के बाद आई हो. क्या हुआ?’’ रमेश ने गीता को गंदी नजरों से घूरते हुए पूछा.
‘‘अरे चाचा, उस दिन मैं चौकलेट लेना भूल गई थी. आज दे दो.’’
रमेश का मुंह सूखने लगा और वह अपने दाएं हाथ से बाईं कांख खुजलाने लगा. उस की हवस जाग गई थी. उस ने कहा, ‘‘जा, भीतर जा कर ले ले.’’
गीता ने बाहर की तरफ देखा. दूर मनोज चाचा खड़े थे. वह हिम्मत दिखा कर भीतर चली गई. उस के पीछेपीछे रमेश भी हो लिया.
गीता को पता था कि रमेश जरूर कुछ करेगा, तो वह सावधान थी. तभी रमेश ने बहाने से गीता के कूल्हे पर हाथ फिराया, तो गीता सहम गई.
पर रमेश तो अब सरकारी सांड़ बन गया था. उस ने गीता को तकरीबन दबोच लिया और उसे बोरी पर गिरा दिया और बोला, ‘‘बस, थोड़ा सा मजा करने दे, मैं तुझे 5 चौकलेट दूंगा.’’
गीता को लगा कि अगर मनोज चाचा नहीं आए, तो यह दरिंदा उसे रौंद देगा. पर तभी मनोज चाचा वहां आ गए और उन्होंने बिना देरी किए रमेश को धर दबोचा. रमेश को सपने में भी गुमान नहीं था कि उस की हवस का यह नतीजा निकलेगा.
थोड़ी देर में रमेश हवालात में था. वहां इंस्पैक्टर दीपक रावत ने जब यह पूरा किस्सा सुना, तो वे हैरान रह गए. उन्होंने रमेश से कहा कि अब उस की खैर नहीं, फिर मनोज की चतुराई पर उसे बधाई दी.
पर, मनोज का मन अभी भी गीता के साथ हुई इस हरकत से दुखी था. इंस्पैक्टर दीपक रावत ने इस की वजह पूछी.
सिपाही मनोज ने कहा, ‘‘अरे साहब, किसकिस पर नजर रखें, यहां तो हर घर की रखवाली चोर को दे रखी है.’’
‘‘मैं समझ नहीं. साफसाफ कहो कि माजरा क्या है? क्या कोई और भी कांड हुआ है?’’ इंस्पैक्टर दीपक रावत ने पूछा.
‘‘साहब, एक मामला हाल ही का है. गुजरात का. वहां एक 6 साल की मासूम छात्रा ने यौन शोषण कर रहे प्रिंसिपल को रोकने की कोशिश की, तो उस की जान ले ली गई.
‘‘यह कांड दाहोद जिले का है. उस इलाके के पुलिस सुपरिंटैंडैंट राजदीप सिंह जाला ने बताया कि जब छात्रा ने खुद को बचाने की कोशिश की, तो उस प्रिंसिपल गोविंद नट ने उस का गला घोंट दिया.
‘‘साहब सोचिए कि 50 साल का एक बूढ़ा महज 6 साल की लड़की में सैक्स ढूंढ़ रहा था और जब हवस
नहीं मिटी, तो उस की हत्या कर दी,’’ सिपाही मनोज ने अपनी मुट्ठियां भींचते हुए कहा.
‘‘मुझे पूरा मामला तफसील से बताओ मनोज.’’
‘‘साहब, पुलिस वालों ने रविवार,
22 सितंबर, 2024 को यह जानकारी दी थी. पुलिस के एक अफसर ने बताया कि बृहस्पतिवार, 19 सितंबर को सिंगवाड़ तालुका के एक गांव में स्कूल परिसर के अंदर बच्ची की लाश मिलने के बाद जांच शुरू की गई थी.
‘‘पुलिस सुपरिंटैंडैंट राजदीप सिंह जाला ने मीडिया को बताया कि बृहस्पतिवार को सुबह 10 बज कर
20 मिनट पर प्रिंसिपल अपनी कार से वहां से गुजर रहे थे. उन्होंने बच्ची की मां के कहने पर उसे अपनी गाड़ी में स्कूल ले जाने के लिए हां की, जबकि छात्राओं और टीचरों ने पुलिस को बताया कि बच्ची उस दिन स्कूल नहीं पहुंची थी.
‘‘पूछताछ के दौरान प्रिंसिपल ने शुरू में इस बात पर जोर दिया कि उस ने अपनी कार में छात्रा को बिठाने के बाद उसे स्कूल में छोड़ा था. हालांकि, बाद में उस ने बच्ची की हत्या करने की बात कबूल कर ली.
‘‘स्कूल के रास्ते में प्रिंसिपल ने छात्रा का यौन उत्पीड़न करने की कोशिश की, लेकिन उस के चिल्लाने पर उस ने (प्रिंसिपल) बच्ची का मुंह और नाक दबा दी, जिस से वह बेहोश हो गई.
‘‘प्रिंसिपल स्कूल पहुंचा और अपनी कार पार्क की, जिस में बच्ची की लाश थी. शाम के 5 बजे उस ने लाश
को बाहर निकाला और स्कूल की इमारत के पीछे फेंक दिया. इस के बाद उस ने छात्रा का स्कूल बैग और चप्पलें उस की क्लास में रख दीं.
‘‘पुलिस ने बताया कि बच्ची की लाश मिलने के एक दिन बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उस की मौत
गला घोंटने से हुई है. बच्ची जब स्कूल का समय खत्म हो जाने के बाद घर
नहीं लौटी, तो उस के मातापिता और रिश्तेदारों ने उस की तलाश शुरू की और उसे स्कूल की इमारत के पीछे के परिसर में बेहोशी की हालत में पड़ा पाया. उन्होंने बताया कि बच्ची को लिमखेड़ा सिविल अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मरा हुआ बता दिया.’’
इंस्पैक्टर दीपक रावत ने पूछा, ‘‘पुलिस को प्रिंसिपल पर शक कैसे हुआ?’’
‘‘दरअसल, प्रिंसिपल ने पुलिस को बताया था कि वह शाम 5 बजे स्कूल से निकला था, लेकिन उस की फोन लोकेशन से पता चला कि वह शाम के 6 बज कर 10 मिनट तक स्कूल में था. पुलिस ने कहा कि स्कूल के किसी भी बच्चे ने लड़की को प्रिंसिपल की कार से उतरते नहीं देखा था. उस के साथ पढ़ने वाले बच्चों ने भी कहा कि वह उस दिन क्लास में नहीं आई थी.’’
‘‘मनोज, मैं तुम्हारा गुस्सा और बेबसी समझ सकता हूं, पर कोई इनसान कितना गिरा हुआ है या उस के मन में क्या चल रहा है, इस का पता लगाने की कोई मशीन नहीं बनी है.
‘‘उस लड़की की मां को क्या पता था कि वह जिस आदमी के साथ अपनी लाड़ली को अकेले कार से भेज रही है, वही राक्षस निकलेगा.’’
‘‘सर, गीता तो बच गई, पर हमारे देश में न जाने कितने दरिंदे घूम रहे हैं, जो हवस के पुजारी हैं, पर उन के चेहरे पर अच्छे आदमी होने का मुखौटा लगा होता है. आप ने कहा कि ऐसी कोई मशीन नहीं बनी है, जो लोगों का मन
पढ़ सके, पर क्या यह हम लोगों की ही जिम्मेदारी नहीं बनती है कि अगर देश और समाज को बेहतर करना है, तो हमें अपनी भावनाओं पर कंट्रोल करना सीखना होगा.
‘‘अगर बच्चा किसी वजह से चुपचुप रहता है, जराजरा सी बात पर चिढ़ जाता है, पढ़ने पर ध्यान नहीं दे पा रहा है, तो उस से बात करनी चाहिए, उस की समस्या को ध्यान से सुन कर सुल?ाना चाहिए. शायद यही एक तरीका है अपने बच्चों को महफूज रखने का.’’
‘‘तुम सही कह रहे हो मनोज, पर यह मत भूलो कि आज तुम्हारी वजह से गीता की इज्जत पर दाग लगने से बचा है. तुम ने एक अच्छे इनसान और अपनी वरदी के प्रति वफादार होने का सुबूत दिया है. वैलडन. आगे भी ऐसे ही काम करते रहना,’’ इंस्पैक्टर दीपक रावत ने मनोज की पीठ थपथपाते हुए कहा.‘‘अ री ओ गीता, उठ जा बेटी. आज स्कूल नहीं जाना है क्या? देख, दिन चढ़ आया है,’’ अपनी मां की आवाज सुनते ही गीता मानो सिहर कर उठ बैठी. जैसे उस ने कोई बुरा सपना देखा था. वह पसीने से तरबतर थी.
14 साल की गीता 8वीं जमात में पढ़ती थी. वह उम्र से पहले ही बड़ी दिखने लगी थी. शरीर ऐसे भर गया था मानो 18 साल की हो. कपड़े छोटे होने लगे थे और नाजुक अंग बड़े.
गीता अपने मातपिता और एक छोटे भाई के साथ राजस्थान के पाली जिले
के एक गांव में रहती थी. वह और उस का छोटा भाई रवि सरकारी स्कूल में पढ़ते थे.
रवि 5वीं क्लास में था, पर था बड़ा होशियार. वह अपनी उम्र से ज्यादा बड़ी और समझादारी की बातें करता था और अपनी बहन से बहुत ज्यादा प्यार करता था.
गीता के पड़ोस में एक किराने की दुकान थी, जिसे रमेश नाम का अधेड़ आदमी चलाता था. उस की बीवी को मरे 5 साल हो गए थे. उस की कोई औलाद नहीं थी.
दिन में तो रमेश का अपनी दुकान में समय कट जाता था, पर रात को बिस्तर और अकेलापन उसे काटने को दौड़ता था. वह औरत के जिस्म की चाह में मरा जा रहा था.
रमेश को जब भी किसी औरत की चाह होती थी, तो उस का मुंह सूखने लगता था. वह दाएं हाथ से अपनी बाईं कांख खुजलाने लगता था, पर चूंकि उस की अपने महल्ले में अच्छी इमेज बनी हुई थी, तो वह मौके की तलाश में घात लगा कर बैठा रहता था.
पिछले हफ्ते की ही बात है. गीता रमेश चाचा की दुकान से नमक लेने गई थी. उस ने तंग सूट पहना हुआ था, जो एक साइड से उधड़ा हुआ था. उस का एक उभार वहां से झांक रहा था.
‘‘चाचा, जल्दी से नमक देना. मां ने सब्जी गैस पर चढ़ा रखी है,’’ गीता ने रमेश को पैसे देते हुए कहा.
वैसे तो रमेश के मन में तब तक कोई घटियापन सवार नहीं था, पर गीता के झांकते उभार ने उस की मर्दानगी को जगा दिया.
अब रमेश को गीता में भरीपूरी औरत नजर आने लगी. वह उसे बिस्तर पर ले जाने को उतावला हो गया. उस का मुंह सूखने लगा और वह अपने दाएं हाथ से बाईं कांख खुजलाने लगा.
‘‘अरे चाचा, जल्दी से नमक दो न,’’ गीता ने दोबारा कहा, तो रमेश अपनी फैंटेसी से जागा. उस ने हड़बड़ाते हुए कहा, ‘‘जा, भीतर से नमक की थैली ले ले. वहां चौकलेट का एक डब्बा भी रखा है. उस में से एक चौकलेट ले लेना.’’
यह सुन कर गीता खुश हो गई और भाग कर भीतर चली गई. तब गली सुनसान थी. रमेश भी दबे पैर गीता के पीछे चला गया और बहाने से उसे छूने लगा.
पहले तो गीता को ज्यादा पता नहीं चला, पर जब उसे लगा कि चाचा उसे अब गलत तरीके से छू रहे हैं, तो वह सावधान हो गई और नमक की थैली उठा कर अपने घर भाग गई.
तब से गीता को रोज रात को सपने में रमेश चाचा की वह गंदी छुअन
दिखाई देती थी और वह गुमसुम सी रहने लगी थी.
आज सुबह जब मां ने गीता को स्कूल जाने के लिए उठाया, तो उस का मन किया कि घर पर ही रहे, पर अपने भाई रवि के जोर देने पर वह स्कूल जाने के लिए तैयार हो गई.
गीता इतना ज्यादा घबराई हुई थी कि उस ने रमेश की किराने की दुकान की तरफ देखा भी नहीं.
‘‘दीदी, आज आप ने मुझे टौफी नहीं दिलाई,’’ रवि ने शिकायत की.
‘‘आज के बाद तुझे कोई टौफी नहीं मिलेगी,’’ गीता ने आंखें दिखाते हुए बात बदलनी चाही.
‘‘क्या हुआ दीदी? आप टौफी के नाम पर बिदक क्यों गईं?’’ रवि ने पूछा.
‘‘कुछ नहीं, जल्दी चल, नहीं तो स्कूल में लेट हो जाएगा,’’ गीता ने कहा.
रवि समझ गया था कि दाल में कुछ काला है. लंच टाइम में जब वे दोनों खाना खा रहे थे, तब रवि ने पूछा, ‘‘दीदी, बात क्या है? देखो, अगर मन में कोई बात है, तो मुझे बता दो. मेरे पास हर समस्या का हल है.’’
‘‘अच्छा, मेरे छोटे बहादुर भाई.
क्या तू हर समस्या का हल निकाल सकता है?’’
‘‘और नहीं तो क्या. रवि के पास हर मर्ज की दवा है,’’ रवि बोला.
‘‘भाई, पता नहीं क्यों, मुझे रमेश चाचा अब अच्छे नहीं लगते हैं. जिस दिन मैं नमक लेने गई थी, वे मझे गलत ढंग से छू रहे थे. मैं डर गई थी. मां से कहने की हिम्मत नहीं हुई.’’
रवि छोटा जरूर था, पर उसे गुड टच और बैड टच की समझ थी. वह जान गया था कि रमेश चाचा की गंदी नजर उस की बहन पर है, पर कोई उन की बात को समझ नहीं पाएगा या समाज का डर दिखा कर गीता को चुप करा दिया जाएगा.
पर रवि चुप रहने वालों में से नहीं था. वह समझ गया कि रमेश चाचा की नीयत सही नहीं है. तभी उसे अपनी क्लास में पढ़ने वाली माया की याद आई. माया ने बताया था कि उस के चाचा मनोज पुलिस में सिपाही हैं.
रवि उसी शाम को माया के घर जा पहुंचा. मनोज चाचा भी उस समय घर पर ही थे. रवि ने अकेले में मनोज चाचा को सारी बात बताई.
मनोज को समझ आ गया कि गीता किस तनाव से गुजर रही है. वह रमेश किराने वाले को रंगे हाथ पकड़ना चाहता था, ताकि किसी तरह की गलतफहमी न रहे.
अगले दिन शाम को मनोज और रवि ने गीता से अकेले में बात की. पहले तो गीता सब बताने से डर रही थी, पर मनोज के सम?ाने पर उस ने नमक वाली घटना बता दी.
इस के बाद मनोज सादा कपड़ों में रमेश पर निगरानी रखने लगा. रमेश की हरकतें सही नहीं थीं. वह हर आतीजाती औरत और लड़की को ताड़ता था. उन के उभारों को देख कर उस की नजरों में अलग सी चमक आ जाती थी.
एक दिन मनोज ने गीता से कहा, ‘‘गीता, कल दिन में तुम फिर से रमेश की दुकान पर जाना और अगर वह तुम्हें भीतर बुलाए, तो चली जाना. मैं थोड़ी ही देर में वहां आ जाऊंगा और उसे सबक सिखा दूंगा.’’
गीता ने पहले तो नानुकर की, पर उसे मनोज चाचा पर पूरा भरोसा था, तो बाद में मान गई.
अगले दिन जब गली सुनसान थी, तब गीता रमेश की दुकान पर गई.
‘‘बड़े दिनों के बाद आई हो. क्या हुआ?’’ रमेश ने गीता को गंदी नजरों से घूरते हुए पूछा.
‘‘अरे चाचा, उस दिन मैं चौकलेट लेना भूल गई थी. आज दे दो.’’
रमेश का मुंह सूखने लगा और वह अपने दाएं हाथ से बाईं कांख खुजलाने लगा. उस की हवस जाग गई थी. उस ने कहा, ‘‘जा, भीतर जा कर ले ले.’’
गीता ने बाहर की तरफ देखा. दूर मनोज चाचा खड़े थे. वह हिम्मत दिखा कर भीतर चली गई. उस के पीछेपीछे रमेश भी हो लिया.
गीता को पता था कि रमेश जरूर कुछ करेगा, तो वह सावधान थी. तभी रमेश ने बहाने से गीता के कूल्हे पर हाथ फिराया, तो गीता सहम गई.
पर रमेश तो अब सरकारी सांड़ बन गया था. उस ने गीता को तकरीबन दबोच लिया और उसे बोरी पर गिरा दिया और बोला, ‘‘बस, थोड़ा सा मजा करने दे, मैं तुझे 5 चौकलेट दूंगा.’’
गीता को लगा कि अगर मनोज चाचा नहीं आए, तो यह दरिंदा उसे रौंद देगा. पर तभी मनोज चाचा वहां आ गए और उन्होंने बिना देरी किए रमेश को धर दबोचा.
रमेश को सपने में भी गुमान नहीं था कि उस की हवस का यह नतीजा निकलेगा.
थोड़ी देर में रमेश हवालात में था. वहां इंस्पैक्टर दीपक रावत ने जब यह पूरा किस्सा सुना, तो वे हैरान रह गए. उन्होंने रमेश से कहा कि अब उस की खैर नहीं, फिर मनोज की चतुराई पर उसे बधाई दी. पर, मनोज का मन अभी भी गीता के साथ हुई इस हरकत से दुखी था. इंस्पैक्टर दीपक रावत ने इस की वजह पूछी.
सिपाही मनोज ने कहा, ‘‘अरे साहब, किसकिस पर नजर रखें, यहां तो हर घर की रखवाली चोर को दे रखी है.’’
‘‘मैं समझ नहीं. साफसाफ कहो कि माजरा क्या है? क्या कोई और भी कांड हुआ है?’’ इंस्पैक्टर दीपक रावत ने पूछा.
‘‘साहब, एक मामला हाल ही का है. गुजरात का. वहां एक 6 साल की मासूम छात्रा ने यौन शोषण कर रहे प्रिंसिपल को रोकने की कोशिश की, तो उस की जान ले ली गई.
‘‘यह कांड दाहोद जिले का है. उस इलाके के पुलिस सुपरिंटैंडैंट राजदीप सिंह जाला ने बताया कि जब छात्रा ने खुद को बचाने की कोशिश की, तो उस प्रिंसिपल गोविंद नट ने उस का गला घोंट दिया.
‘‘साहब सोचिए कि 50 साल का एक बूढ़ा महज 6 साल की लड़की में सैक्स ढूंढ़ रहा था और जब हवस
नहीं मिटी, तो उस की हत्या कर दी,’’ सिपाही मनोज ने अपनी मुट्ठियां भींचते हुए कहा.
‘‘मुझे पूरा मामला तफसील से बताओ मनोज.’’
‘‘साहब, पुलिस वालों ने रविवार,
22 सितंबर, 2024 को यह जानकारी दी थी. पुलिस के एक अफसर ने बताया कि बृहस्पतिवार, 19 सितंबर को सिंगवाड़ तालुका के एक गांव में स्कूल परिसर के अंदर बच्ची की लाश मिलने के बाद जांच शुरू की गई थी.
‘‘पुलिस सुपरिंटैंडैंट राजदीप सिंह जाला ने मीडिया को बताया कि बृहस्पतिवार को सुबह 10 बज कर
20 मिनट पर प्रिंसिपल अपनी कार से वहां से गुजर रहे थे. उन्होंने बच्ची की मां के कहने पर उसे अपनी गाड़ी में स्कूल ले जाने के लिए हां की, जबकि छात्राओं और टीचरों ने पुलिस को बताया कि बच्ची उस दिन स्कूल नहीं पहुंची थी.
‘‘पूछताछ के दौरान प्रिंसिपल ने शुरू में इस बात पर जोर दिया कि उस ने अपनी कार में छात्रा को बिठाने के बाद उसे स्कूल में छोड़ा था. हालांकि, बाद में उस ने बच्ची की हत्या करने की बात कबूल कर ली.
‘‘स्कूल के रास्ते में प्रिंसिपल ने छात्रा का यौन उत्पीड़न करने की कोशिश
की, लेकिन उस के चिल्लाने पर उस ने (प्रिंसिपल) बच्ची का मुंह और नाक दबा दी, जिस से वह बेहोश हो गई.
‘‘प्रिंसिपल स्कूल पहुंचा और अपनी कार पार्क की, जिस में बच्ची की लाश थी. शाम के 5 बजे उस ने लाश
को बाहर निकाला और स्कूल की इमारत के पीछे फेंक दिया. इस के बाद उस ने छात्रा का स्कूल बैग और चप्पलें उस की क्लास में रख दीं.
‘‘पुलिस ने बताया कि बच्ची की लाश मिलने के एक दिन बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उस की मौत
गला घोंटने से हुई है. बच्ची जब स्कूल का समय खत्म हो जाने के बाद घर नहीं लौटी, तो उस के मातापिता और रिश्तेदारों ने उस की तलाश शुरू की और उसे स्कूल की इमारत के पीछे के परिसर में बेहोशी की हालत में पड़ा पाया. उन्होंने बताया कि बच्ची को लिमखेड़ा सिविल अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मरा हुआ बता दिया.’’
इंस्पैक्टर दीपक रावत ने पूछा, ‘‘पुलिस को प्रिंसिपल पर शक कैसे हुआ?’’
‘‘दरअसल, प्रिंसिपल ने पुलिस को बताया था कि वह शाम 5 बजे स्कूल से निकला था, लेकिन उस की फोन लोकेशन से पता चला कि वह शाम के 6 बज कर 10 मिनट तक स्कूल में था. पुलिस ने कहा कि स्कूल के किसी भी बच्चे ने लड़की को प्रिंसिपल की कार से उतरते नहीं देखा था. उस के साथ पढ़ने वाले बच्चों ने भी कहा कि वह उस दिन क्लास में नहीं आई थी.’’
‘‘मनोज, मैं तुम्हारा गुस्सा और बेबसी समझ सकता हूं, पर कोई इनसान कितना गिरा हुआ है या उस के मन में क्या चल रहा है, इस का पता लगाने की कोई मशीन नहीं बनी है.
‘‘उस लड़की की मां को क्या पता था कि वह जिस आदमी के साथ अपनी लाड़ली को अकेले कार से भेज रही है, वही राक्षस निकलेगा.’’
‘‘सर, गीता तो बच गई, पर हमारे देश में न जाने कितने दरिंदे घूम रहे हैं, जो हवस के पुजारी हैं, पर उन के चेहरे पर अच्छे आदमी होने का मुखौटा लगा होता है. आप ने कहा कि ऐसी कोई मशीन नहीं बनी है, जो लोगों का मन
पढ़ सके, पर क्या यह हम लोगों की ही जिम्मेदारी नहीं बनती है कि अगर देश और समाज को बेहतर करना है, तो हमें अपनी भावनाओं पर कंट्रोल करना सीखना होगा.
‘‘अगर बच्चा किसी वजह से चुपचुप रहता है, जराजरा सी बात पर चिढ़ जाता है, पढ़ने पर ध्यान नहीं दे पा रहा है, तो उस से बात करनी चाहिए, उस की समस्या को ध्यान से सुन कर सुल?ाना चाहिए. शायद यही एक तरीका है अपने बच्चों को महफूज रखने का.’’
‘‘तुम सही कह रहे हो मनोज, पर यह मत भूलो कि आज तुम्हारी वजह से गीता की इज्जत पर दाग लगने से बचा है. तुम ने एक अच्छे इनसान और अपनी वरदी के प्रति वफादार होने का सुबूत दिया है. वैलडन. आगे भी ऐसे ही काम करते रहना,’’ इंस्पैक्टर दीपक रावत ने मनोज की पीठ थपथपाते हुए कहा.
‘‘दे खोजी, मैं साहब के यहां बरतन मांजने नहीं जाऊंगी,’’ रामकली अपनी भड़ास निकालते हुए जरा गुस्से से बोली.
‘‘क्यों नहीं जाएगी तू वहां?’’ जगदीश ने सवाल किया.
‘‘बस, कह दिया मैं ने कि नहीं जाऊंगी तो नहीं जाऊंगी.’’
‘‘मगर, क्यों नहीं जाएगी?’’ जगदीश जरा नाराज हो कर बोला.
‘उन साहब की नीयत जरा भी अच्छी नहीं है.’’
‘‘तू नहीं जाएगी तो साहब मुझे परमानैंट नहीं करेंगे…’’ इस समय जगदीश की आंखों में गुजारिश थी. पलभर बाद वह दोबारा बोला, ‘‘देख रामकली, जब तक ये साहब हैं, तू काम छोड़ने की मत सोच. साहब मेरी नौकरी परमानैंट कर देंगे, फिर मत मांजना बरतन.’’
‘‘देखोजी, मुझे वहां जाने को मजबूर मत करो. औरत एक बार सब की हो जाती है न…’’ पलभर बाद वह बोली, ‘‘खैर, जाने दो. आप कहते हैं तो मैं नहीं छोड़ूंगी. यह जहर भी पी जाऊंगी.’’
‘‘सच रामकली, मुझे तुझ से यही उम्मीद थी,’’ कह कर जगदीश का चेहरा खिल उठा.
रामकली कोई जवाब नहीं दे पाई. वह चुपचाप मुंह लटकाए रसोईघर के भीतर चली गई.
जब से ये नए साहब आए हैं तब से इन्हें बरतन मांजने वाली एक बाई की जरूरत थी. जगदीश उन के दफ्तर में काम करता है. 15 साल बीत गए, पर परमानैंट नहीं हुआ है. कितने ही साहब आए, सब ने परमानैंट करने का भरोसा दिया और परमानैंट किए बिना ही ट्रांसफर हो कर चले गए.
ये साहब भी अपना परिवार इसलिए ले कर नहीं आए थे कि उन के बच्चे अभी पढ़ रहे हैं, इसलिए यहां एडमिशन दिला कर वे रिस्क नहीं उठाना चाहते थे.
बंगले में चौकीदार था. रसोइया भी था. मगर बरतन मांजने के लिए उन्हें एक बाई चाहिए थी. साहब एक दिन जगदीश से बोले थे, ‘बरतन मांजने वाली एक बाई चाहिए.’
‘साहब, वह तो मिल जाएगी, मगर उस के लिए पैसा क्यों खर्च करें…’ जगदीश ने सलाह दी थी, ‘मैं गुलाम हूं न, मैं ही मांज दिया करूंगा बरतन.’
‘नहीं जगदीश, मुझे कोई बाई चाहिए,’ साहब इनकार करते हुए बोले थे. तब जगदीश ने सोचा था कि मौका अच्छा है. बाई की जगह वह अपनी लुगाई को क्यों न रखवा दे. साहब खुश होंगे और उसे परमानैंट कर देंगे.
जगदीश को चुप देख कर साहब बोले थे, ‘कोई बाई है तुम्हारी नजर में?’
‘साहब, मेरी घरवाली सुबहशाम आ कर बरतन मांज दिया करेगी,’ जगदीश ने जब यह कहा, तब साहब बोले थे, ‘नेकी और पूछपूछ… तू अपनी जोरू को भेज दे.’
‘ठीक है साहब, उसे मैं तैयार करता हूं,’ जगदीश ने उस दिन साहब को कह तो दिया था, मगर लुगाई को मनाना इतना आसान नहीं था. उसे कैसे मनाएगा. क्या वह आसानी से मान जाएगी?
रामकली के पास आ कर जगदीश बोला था, ‘रामकली, मैं ने एक वादा किया है?’ ‘वादा… कैसा वादा और किस से?’ रामकली ने हैरान हो कर पूछा था.
‘साहब से?’ ‘कैसा वादा?’
‘अरे रामकली, उन्हें बरतन मांजने वाली एक बाई चाहिए थी. मैं ने कहा कि चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. इस के लिए रामकली है न.’
‘हाय, तू ने मुझ से बिना पूछे ही साहब से वादा कर दिया.’
‘हां रामकली, इस में भी मेरा लालच था?’
‘लालच, कैसा लालच?’ रामकली आंखें फाड़ कर बोली थी.
‘देख रामकली, तू तो जानती है कि मैं अभी परमानैंट नहीं हूं. परमानैंट होने के बाद मेरी तनख्वाह बढ़ जाएगी. इन साहब ने मुझ से वादा किया है कि वे मुझे परमानैंट कर देंगे. तुम साहब के यहां जा कर बरतन मांजोगी तो साहब खुश हो जाएंगे, इसलिए मैं ने तेरा नाम बोल दिया.’
‘अरे, तू ने हर साहब के घर का इतना काम किया. बरतन भी मांजे, पर किसी भी साहब ने खुश हो कर तुझे परमानैंट नहीं किया. इस साहब की भी तू कितनी भी चमचागीरी कर ले, यह साहब भी परमानैंट करने वाला नहीं है,’ कह कर रामकली ने अपनी सारी भड़ास निकाल दी थी.
जगदीश बोला था, ‘देख रामकली, इनकार मत कर, नहीं तो यह मौका भी हाथ से निकल जाएगा. तब फिर कभी परमानैंट नहीं हो सकूंगा. छोटी सी तनख्वाह में ही मरतेखपते रहेंगे.
‘‘मैं अपनी भलाई के लिए तु?ा पर यह दबाव डाल रहा हूं. इनकार मत कर रामकली. साहब को खुश करने के लिए सब करना पड़ेगा.’
‘ठीक है, तुम कहते हो तो मैं चली जाया करूंगी. हम तो छोटे लोग हैं. साहब बहुत बड़े आदमी हैं,’ कह कर रामकली ने हामी भर दी थी.
इस के बाद रामकली सुबहशाम साहब के बंगले पर जा कर बरतन मांजने लगी थी.
रामकली 3 बच्चों की मां होते हुए भी जवान लगती थी. गठा हुआ बदन और उभार उस की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे.
रामकली के ऐसे रूप पर साहब भी फिदा हो गए थे. जब भी वह बरतन मांजती, किसी न किसी बहाने भीतर आ कर उस के उभारों को एकटक देखते रहते थे.
रामकली सब समझ जाती और अपने उभारों को आंचल में छिपा लेती थी. वे उस की लाचारी का फायदा उठाएं, उस के पहले ही वह सचेत रहने लगी थी.
यह खेल कई दिनों तक चलता रहा था. आखिरकार मौका पा कर साहब उस का हाथ पकड़ते हुए बोले थे, ‘रामकली, तुम अभी भी ताजा फूल हो.’
‘साहब, आप बड़े आदमी हैं. हम जैसे छोटों के साथ ऐसी नीच हरकत करना आप को शोभा नहीं देता है,’ अपना विरोध दर्ज कराते हुए रामकली बोली थी.
क्या छोटा और क्या बड़ा, यह ऐसी आग है कि न छोटा देखती है और न बड़ा. आज मेरे भीतर की लगी आग बुझ दो रामकली,’ कह कर साहब की आंखों में हवस साफ दिख रही थी.
साहब अपना कदम और आगे बढ़ाते, इस से पहले रामकली जरा गुस्से से बोली, ‘देखो साहब, आप मेरे मरद के साहब हैं, इसलिए लिहाज कर रही हूं. मैं गिरी हुई औरत नहीं हूं. मेरी भी अपनी इज्जत है. कल से मैं बरतन मांजने नहीं आऊंगी,’ इतना कह कर वह बाहर निकल गई थी.
आज रामकली ने जगदीश से साहब के घर न जाने की बात कही, तो वह नाराज हो गया. कहता है कि मुझे परमानैंट होना है. साहब को खुश करने के लिए उस का बरतन मांजना जरूरी है, क्योंकि ऐसा करना उन्हीं साहब के हाथ में है.
जगदीश अगर परमानैंट हो जाएगा, तब उस की तनख्वाह भी बढ़ जाएगी. फिर किसी साहब के यहां जीहुजूरी नहीं करनी पड़ेगी. क्या हुआ, साहब ही तो हैं. उन को खुश करने से अगर जगदीश को फायदा होता है तो क्यों सन एक बार खुद को उन्हें सौंप दे. वैसे भी औरत का शरीर तो धर्मशाला होता है. उस के साथ सात फेरे लेने वाले पति के अलावा दूसरे मर्द भी तो लार टपकाते हैं.
उस ने कई ऐसी औरतें देखी हैं, जो अपने मर्द के होते दूसरे मर्द से लगी रहती हैं. फिर आजकल सुप्रीम कोर्ट ने भी तो फैसला दिया है कि अगर कोई औरत अपने मर्द के अलावा दूसरे मर्द से जिस्मानी संबंध बना भी लेती है, तब वह अपराध नहीं माना जाएगा. फिर वह तो अपने जगदीश के फायदे के लिए जिस्म सौंप रही है.
जिस्म सौंपने से पहले साहब को साफसाफ कह देगी. इस शर्त पर यह सब कर रही हूं कि जगदीश को परमानैंट कर देना. इस मामले में मर्द औरत का गुलाम रहता है. इस तरह रामकली ने अपनेआप को तैयार कर लिया.
‘‘देखो रामकली, एक बार मैं फिर कहता हूं कि तुम साहब के यहां बरतन मांजने जरूर जाओगी,’’ जगदीश ने फिर यह कहा तो रामकली बोली, ‘‘हां बाबा, जा रही हूं. तुम्हारे साहब को खुश रखने की कोशिश करूंगी. और मैं भी उन से सिफारिश करूंगी कि वे तुझे परमानैंट कर दें,’’ कह कर रामकली साहब के बंगले पर चली गई.
अभी हफ्ताभर भी नहीं बीता था कि जगदीश ने घर आ कर रामकली को बताया, ‘‘साहब ने काम से खुश हो कर मेरा परमानैंट नौकरी का और्डर निकाल दिया है. तनख्वाह भी बढ़ जाएगी.’’
‘‘क्या सचमुच तुझे परमानैंट कर दिया?’’ खुशी से उछलती रामकली ने पूछा.
‘‘हां रामकली, साहब कह रहे थे कि तू ने भी सिफारिश की थी,’’ जगदीश ने जब यह कहा, तब रामकली ने कोई जवाब नहीं दिया. वह जानती है कि साहब से उस के जिस्म के बदले यह वचन लिया था. उसी वचन को साहब ने पूरा किया, तभी तो इतनी जल्दी आदेश निकाल दिया.
उसे चुप देख जगदीश फिर बोला, ‘‘अरे रामकली, तुझे खुशी नहीं हुई?’’
‘‘मुझे तो तुझ से ज्यादा खुशी हुई. मैं ने जोर दे कर साहब से कहा था,’’ रामकली बोली, ‘‘उन्होंने मेरे वचन को पूरा कर दिया.’’
‘‘अब तुझे बरतन मांजने की जरूरत नहीं है. मैं साहब के लिए दूसरी औरत का इंतजाम करता हूं.’’
‘‘नहीं जगदीश, जब तक ये साहब हैं, मैं बरतन मांजने जाऊंगी. मैं ने यही तो साहब से वादा किया है. चलती हूं साहब के यहां,’’ कह कर रामकली घर से बाहर चली गई.