
लेखक- मीनू त्रिपाठी
वह जल्दी घर पहुंच कर आकाश को सरप्राइज देना चाहती थी. पर, खुद सरप्राइज्ड हो गई जब बड़ी देर तक घंटी बजाने के बाद आकाश ने दरवाजा खोला. शाम के साढ़े 6 और 7 बजे के बीच आने वाली पत्नी को 2 बजे दरवाजे पर देख कर उस के बोल नहीं फूटे.
रेवती घर के भीतर गई, तो बैडरूम में अपने ही बिस्तर पर अपनी कालोनी की एक औरत को देख गुस्से से पागल हो गई. आकाश और उस औरत के अस्तव्यस्त कपड़े और हुलिए को देखने के बाद किसी सफाई की कोई आवश्यकता नहीं रह गई थी.
आकाश का यह रूप और राज जान कर उस का वह अस्तित्व हिल गया, जिसे सुरक्षित रखने के लिए आकाश उसे नौकरी करने के लिए प्रेरित करता था. नौकरी की प्रेरणा के पीछे इतना घिनौना उद्देश्य जान कर वह विक्षिप्त सी हो गई. जिस आकाश को देख कर वह जीती थी, उस आकाश ने उसे जीतेजी मार दिया था. नौकरी करने वह जाती थी और आजादी आकाश को मिलती थी ऐयाशियां करने की.
रेवती को फूटफूट कर रोते देख सौम्या ने उस के कंधे को पकड़ कर जोर से हिला कर पूछा, ‘‘तू ने इतना घिनौना सच जानने के बाद भी उस के साथ आगे भी रहने का निर्णय क्यों लिया?’’
‘‘मैं ने उस का चुनाव नहीं किया सौम्या, मैं ने उस पदप्रतिष्ठा और बच्चों की शांति व उन के भविष्य का चुनाव किया है, जिस को कमाने में मेरी पूरी उम्र लग गई. दुनिया के सामने वे मेरे आदर्श पति थे और आज भी हैं. जबकि हम एक घर में दो अजनबी हैं. हम दोनों एकदूसरे का इस्तेमाल सामाजिक प्रतिष्ठा के चलते ही करते हैं.’’
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‘‘क्या उसे अपनी गलती का एहसास है?’’
‘‘पकड़े जाने के बाद गलती का एहसास किसे नहीं होगा… उसे भी वही डर है जो मुझे है कि यह बात बाहर आई तो समाज में क्या प्रतिष्ठा रह जाएगी? इसलिए वह अपनी गलती मान कर माफी मांग रहा है. पर मैं कैसे मान लूं कि जिस पति पर आंख मूंद कर मैं ने भरोसा किया, उस ने मेरी पीठ पर छुरा भोंका है, मेरे साथ विश्वासघात किया है. अपने दिल में उस के दिए नागफनी के कांटे ले कर मैं जगहजगह सुकून की तलाश में भटक रही हूं, पर सुकून नहीं मिलता.
‘‘सोतेजागते उस का छल, उस के कुचक्र के कांटे मेरे दिल को घायल कर देते हैं. जिस सुकून के दो शब्द उस से बतियाने को तरसती थी, वो अब ख्वाब बन गए.
‘‘मैं ने अपने फोन के सिम को तोड़ कर फेंक दिया था, इस भय से कि कहीं किसी जानने वाले का फोन न आ जाए. कहीं वह मेरी आवाज से मेरे मन के भीतर चल रहे तूफान को भांप न ले. कहीं भावावेश में मैं वह सब न उगल दूं जिसे छिपाने के लिए हम जद्दोजेहद कर रहे हैं. मेरे स्वाभाविक स्वभाव के विपरीत उपजते कसैलेपन को भांप कर आज लोग, यहां तक कि मेरे अपने बच्चे भी, बढ़ती उम्र की देन मानने लगे हैं.’’
रेवती की आपबीती सुन कर वाकई सौम्या का दिल भर आया था. वह उस के हाथों को सहलाती हुई बोली, ‘‘खुद को शांत रखना अपने हाथों में है. जब साथ रह ही रहे हो, तो जो हो गया उसे भूलने की कोशिश करो.’’
‘‘कहना आसान है. आदत के अनुरूप उस के प्रति अपनत्व कभी उभरता भी है तो अतीत की कंटीली झाडि़यां मुझे लहूलुहान कर देती हैं. मैं दूसरों के सामने हंसतीमुसकराती जरूर हूं पर सच यह है कि मैं जहां भी रहूं, कुछ भी करूं, नागफनी के दंशों की पीड़ा से मुक्ति नहीं पाती हूं. जब भी उस से बात होती है तब… क्यों, कब, कैसे जैसे प्रश्नों में उलझ कर रह जाती हूं. हम जब भी बात करते हैं, अतीत में उलझ कर रह जाते हैं और कड़वा अतीत नासूर बन कर रिसता है,’’ रेवती की मनोदशा देख कर सौम्या ने बात बदलने की चेष्टा करते हुए पूछा, ‘‘यह तो बता कि तुम महाबलेश्वर कैसे आई और कोई है क्या यहां?’’
‘‘अरे, कोई नहीं है यहां. मैं अकसर यहां की शांत वादियों में अपने अशांत मन को सुकून पहुंचाने की कोशिश में आ जाती हूं. आकाश भी चाहता है कि मेरा मन शांत हो, मैं फिर से पहले वाली हो जाऊं.
‘‘उस ने मुझे विश्वास दिलाने की पूरी कोशिश की कि मेरी जगह उस के दिल में वही है, जो पहले थी. तू बता कि मैं इस छलावे को कैसे सच मान लूं. यदि मैं वाकई उस के दिल में होती, तो वह मेरे लिए अपने बहकते कदमों को रोक लेता, पर, मेरी नौकरी में उस ने सुविधा ढूंढ़ कर मेरे साथ छल किया.
‘‘तू बता, उस के लंबे समय तक चले आ रहे सोचेसमझे छल को कैसे भूल जाऊं?’’ रहरह कर रेवती के मन के घाव रिसते रहे.
विगत के दोहराव से छाई मनहूसियत दूर करने के लिए सौम्या ने रेवती के दोनों बच्चों की बातें आरंभ कीं, तो उस के चेहरे पर रौनक आ गई.
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सौम्या को अच्छा लगा कि उस के मन का एक हिस्सा अभी भी जिंदा है. शायद इस हिस्से के भरोसे जीवन बीत जाए. एकदूसरे को अपनीअपनी कहसुन लेने के बाद अब दोनों शांत थीं.
रेवती कौफी बनाने लगी, तो सौम्या की नजर दीवार पर लगी पेंटिंग पर टिक गई.
पेंटिंग में उफनती लहरों के बीच एक स्त्री अकेली नाव खे रही थी.
उस पेंटिंग में नदी के किनारे नहीं दिख रहे थे.
उसे लगा, मानो नाव में रेवती हो और वह अपने जीवन की नैया को किनारे लगाने में पूरी शक्ति झोंक रही हो. किनारा देखते ही उस के चेहरे पर खुशी की झलक आई, थकावट से भरे मनमस्तिष्क, शरीर विश्राम करने को बेकल हो गए, पर नाव का किनारों पर पहुंचना उस की किस्मत में शायद नहीं था. नाव किनारे लगती, उस से पहले ही किनारों ने डूबना आरंभ कर दिया था. उस स्त्री की विडंबना देख सौम्या की आंखों में न चाहते हुए भी आंसू भरते चले गए.
लेखक- मीनू त्रिपाठी
‘आकाश का बस चले, तो रिटायरमैंट के बाद भी मुझे व्यस्त रखें. जबकि, मैं सुकून चाहती हूं. अब तो उस दिन का इंतजार है, जब मेरा फेयरवैल होगा,’ कह कर रेवती अपने फुरसती दिनों की कल्पना में डूब गई.
‘‘क्या हुआ? तुम इतनी चुपचुप सी क्यों हो,’’ सलिल के टोकने पर मन का पक्षी अतीत से वर्तमान में फुदक कर आ गया.
‘‘थकान सी हो रही है सलिल, होटल चल कर आराम करते हैं,’’ सौम्या के कहने पर सलिल उस के साथ वापस होटल में आ गए.
रात को डिनर के लिए डाइनिंग एरिया की ओर जाते समय सहसा ही सलिल के मुंह से निकला, ‘‘अरे, आज तो वाकई इत्तफाक का दिन है.’’
सलिल के इशारे पर सौम्या की नजरें उठीं, तो वह बुरी तरह चौंक गई. कौरीडोर में रेवती अपने रूम का लौक खोलती दिखी. पीठ उन की तरफ होने से रेवती सौम्या और सलिल को देख नहीं पाई.
सलिल उस की बेचैनी देख कर बोले, ‘‘अगर तुम्हें लगता है कि वह तुम्हें एवौयड कर रही है, तो समझदारी इसी में है कि तुम उस की भावनाओं का खयाल करते हुए उसे शर्मिंदा न करो.’’
पर, सौम्या को चैन कहां था. रात 9 बजे वह रेवती के कमरे का दरवाजा खटखटा दिया.
दरवाजा खुलते ही विस्मय, शर्मिंदगी और हड़बड़ाहटभरे भाव लिए खड़ी रेवती को परे धकेलती वह बेधड़क अंदर आ गई और नाराजगीभरे भाव में व्यंग्यात्मक स्वर में बोली, ‘‘तू तो अपने रिश्तेदार के यहां आई है. वहां जगह नहीं होगी, तभी शायद होटल में रुकी है. वह भी उस होटल में, जिस में हम ठहरे हैं. शायद वे… तू तो आज निकलने वाली थी न?’’
‘‘तू क्या लेगी, चाय बनाऊं?’’ रेवती के कहने पर सौम्या उस का हाथ पकड़ कर कहने लगी, ‘‘इतने दिनों बाद मुझ से मिली है. क्या मन नहीं करता बातें करने का? जान सकती हूं, वजह क्या है मुझे एवौयड करने की?’’
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वह सकपकाते हुए बोली, ‘‘ऐसी कोई बात नहीं है यार. क्यों एवौयड करूंगी तुझे? रिश्तेदार से मिलने जरूर आई थी, पर रुकी होटल में हूं. इस में कौन सी बड़ी बात है.’’
यह सुन कर दो पल के लिए सौम्या रेवती को घूरती रही, फिर सहसा ही उस का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘क्या हुआ है तुझे, सब ठीक तो है न?’’
‘‘हां, हां बिलकुल ठीक है.’’
‘‘सच बता, अकेले आई है क्या?’’
‘‘हां, बिलकुल.’’
‘‘बच्चे और पति कहां हैं?’’
‘‘बताया तो… बेटी रिया की शादी हो गई और बेटा रोहन एमबीए कर के फैमिली बिजनैस में है.
‘‘और पति आकाश?’’
‘‘बिलकुल बढि़या हैं आकाश.’’
उस के बाद कुछ पल के लिए चुप्पी छा गई, एक अनावश्यक सी चुप्पी. सौम्या उस के चेहरे को ध्यान से देखने लगी. दोपहर बाद की चंद पलों की मुलाकात में वह हंसी तो थी, पर उस की हंसी आंखों तक नहीं पहुंची थी.
अजीब सी गंभीरता ओढ़े, मुरझाया चेहरा और सूखी भावहीन आंखें, औपचारिकता में लिपटा रूखासूखा व्यवहार देख कर वह फुसफुसाई, ‘‘चेहरा कैसा मुरझा गया है. कहां गया तेरा सुकून वाला फंडा. मैं समझती हूं कि एक बार काम करने की आदत पड़ जाए न, तो घर बैठना बिलकुल नहीं सुहाता. आकाशजी अपने बिजनैस में व्यस्त होंगे और तू खालीपन सा महसूस करती होगी.’’
यह सब सुन कर रेवती मुसकराती रही. उसे ध्यान से देख कर सौम्या बोली, ‘‘मत मुसकरा इतना, कुछ चल रहा है तेरे दिल में तो बता दे.’’
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इतना सुन मुसकराती रेवती के भीतर जमा दर्द, सखी के स्नेहिल स्पर्श से, आंखों में आंसू बन कर झरझर छलकने लगे. सौम्या उसे रोते देख हैरान रह गई, फिर बिना कुछ कहे उसे सीने से लगा लिया.
कुछ देर तक दोनों सहेलियां मौन रहीं. फिर कुछ देर बाद रेवती बोली, ‘‘क्या कहूं तुझ से, और कह के भी क्या फायदा?’’
‘‘मन हलका होगा और क्या,’’ सौम्या के कहते ही जब दर्द का गुबार निकला, तो वह सन्न रह गई, लगा जैसे पैरों के नीचे से धरती सरक गई.
रेवती ने अतीत के अवांछित प्रसंग को उस के साथ साझा किया…
रेवती के औफिस का आखिरी दिन था. वह बड़ी उमंगों से भरी घर से निकली. औफिस पहुंचने पर उस का जोरदार स्वागत हुआ.
भावभीनी विदाई की पार्टी के बाद तकरीबन 12 बजे बौस ने कहा, ‘मुझे अलवर में कुछ काम है. तुम चाहो तो मैं तुम्हें घर छोड़ सकता हूं, लेकिन तुम को अभी निकलना होगा.
फूलों के हार, बुके और गिफ्ट को देखते हुए उसे बौस के साथ जाने में ही समझदारी लगी. आखिरी दिन उस को जल्दी घर जाने की छूट मिलना कौंप्लीमैंट्री था. उस ने झट से हां कर दी.
लेखक- मीनू त्रिपाठी
दुनिया कितनी छोटी है, इस का अंदाजा महाबलेश्वर में तब हुआ जब बारिश में भीगने से बचने के लिए दुकान के टप्परों के नीचे शरण लेती रेवती को देखा. जयपुर में वह और रेवती एक ही औफिस में काम करती थीं.
आज काफी समय बाद पर्यटन स्थल की अनजान जगह पर रेवती से मिलना एक इत्तफाक और रोमांचकारी था. खुशी से बौराती सौम्या रेवती के गले लगते हुए बोली, ‘‘कहां रही इतने दिन? कितना फोन लगाया तुझ को, लगता ही नहीं था. कैसी हो तुम?’’
‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं. हां, इधर बहुत व्यस्त रही. बेटी रिया की शादी में मुझे होश ही नहीं था.’’
‘‘बड़ी अजीब हो, बेटी की शादी में निमंत्रण तक नहीं भेजा,’’ सौम्या ने शिकायत की तो वह मुसकरा दी.
‘‘आप लोग बातें करो, मैं गरमागरम भुट्टे ले आता हूं,’’ सौम्या के पति सलिल ने भुट्टे के बहाने दोनों सहेलियों को अकेले छोड़ना बेहतर समझा.
‘‘हाय, कितने दिनों बाद मिले हैं, समझ नहीं आ रहा, कहां से बातें शुरू करूं. यहां कब तक हो और कैसे आई हो?’’
‘‘आज ही निकलना है. मैं कैब का इंतजार कर रही हूं. दरअसल, यहां एक रिश्तेदार के पास आई थी, फंक्शन था.’’
‘‘अकेले?’’ सौम्या ने आश्चर्य से पूछा.
‘‘और क्या, इन के पास समय कहां है, जब देखो बिजनैस. अब बेटे ने संभाल लिया है, तो इन्हें कुछ आराम है.’’
‘‘सुन न रेवती, मेरे होटल चलते हैं, गप्पें मारेंगे.’’
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‘‘नहीं यार सौम्या, बिलकुल समय नहीं है,’’ कहती हुई वह मोबाइल पर अपनी कैब की लोकेशन देखने लगी और हड़बड़ा कर बोली, ‘‘कैब आ गई.’’ रेवती मोबाइल से कैब वाले को अपनी लोकेशन बताने लगी.
‘‘हां भैया, लोकेशन पर ही हूं. हां, हां, बस, थोड़ा सा आगे आइए, मैं आप को देख रही हूं,’’ अपने कैब ड्राइवर को दिशानिर्देश देती हुई रेवती को सौम्या ने अजीब नजरों से देखा.
सौम्या की ओर देखे बगैर ही रेवती ने बैग में अपने मोबाइल को सरकाते हुए कहा, ‘‘यहां की चाय ले जाना और स्ट्राबेरी भी. वैसे, कहांकहां घूमी हो, छोटी सी तो जगह है. बरसात में तो लगता है हम बादलों में हैं,’’ कह कर वह कैब की ओर देखने लगी.
सौम्या उस से ढेर सारी बातें करना चाहती थी, पर दोनों सहेलियों के बीच वह कैब ड्राइवर किसी खलनायक सा आ गया.
कैब ड्राइवर के आते ही रेवती उस के कंधे पर हाथ रखती हुई, ‘‘चलो, फिर मिलते हैं.’’ कह कर चलती बनी.
अरसे बाद मिलने पर क्या कैब छोड़ी नहीं जा सकती थी, यह क्षोभ मिलने की खुशी पर भारी पड़ गया.
‘‘अरे, तुम अकेली खड़ी हो, तुम्हारी सहेली कहां गई?’’ दोनों हाथों में भुट्टा पकड़े सलिल पूछ रहे थे.
‘‘चली गई, उसे कुछ ज्यादा ही जल्दी थी.’’
‘‘चलो, तुम दोनों भुट्टे खा लो,’’ कहते हुए सलिल ने उसे भुट्टा पकड़ाया.
बारिश थम चुकी थी. सलिल आसपास के खूबसूरत नजारों में खो गए. पर, सौम्या का व्यथित मन रेवती के उदासीन व्यवहार का आकलन करने में लगा हुआ था. संपर्कसूत्र का आदानप्रदान हुए बगैर कब मिलेंगे, कैसे मिलेंगे जैसे अनुत्तरित प्रश्न उस के पाले में डाल कर यों हड़बड़ी में निकल जाना उसे बड़ा अजीब लगा. लगा ही नहीं, कभी दोनों में घनिष्ठता थी. न कुछ जानने की ललक, न बताने की उत्सुकता. रेवती का अतिऔपचारिक व्यवहार सौम्या को अच्छा नहीं लगा.
जयपुर से दिल्ली शिफ्ट होने के बाद वह जब भी रेवती को फोन करती, पूरे उत्साह के साथ अपने सुखदुख उस से साझा करती. फोन पर लंबीलंबी बेतकल्लुफ बातचीत में जहां सौम्या दिल्ली जैसी नई जगह पर मन न लगने का रोना रोती, वहीं रेवती अपनी नौकरी की व्यस्तता की भागादौड़ी के बारे में बताती थी.
रिटायरमैंट का समय नजदीक आने पर लोग जहां भविष्य की चिंता में डूबते हैं, वहीं रेवती खुश थी कि रिटायरमैंट के बाद खूब आराम करेगी. रिटायरमैंट के पलों को सुकून से जिएगी और अपने पति आकाश के साथ खूब घूमेगी. इधर कुछ सालों से रेवती से उस का संपर्क टूट गया था. जो नंबर उस के पास था, उस से उस का फोन नहीं लगता था.
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सौम्या को पुराने दिन याद आए. उस के और रेवती के बीच कितनी अच्छी मित्रता थी. दोनों एकदूसरे के सुखदुख की साझीदार थीं.
जब सलिल का ट्रांसफर दिल्ली हुआ, तो वह बहुत दुखी हुई. उस वक्त रेवती ने उसे समझाया, ‘परिस्थितियोंवश हमें कोई निर्णय लेना हो, तो उस के पीछे खुश होने के कारण ढूंढ़ लेने चाहिए.
‘अब देखो न, आकाश मेरे घर में खाली बैठने के खिलाफ हैं. उन का मानना है कि काम सिर्फ पैसों के लिए नहीं किया जाता. काम करने से क्रियाशीलता बनी रहती है.
‘आकाश औरत की आजादी के पक्ष में हैं. क्या इतना मेरे लिए काफी नहीं. उन की सकारात्मक सोच के चलते मैं अलवर से जयपुर अपडाउन कर पाती हूं.
‘मैं खुश हूं कि आकाश खुले विचारों के हैं. वहीं दूसरी ओर तुझे नौकरी छोड़नी पड़ रही है, क्योंकि सलिल को दूसरे शहर में तबादले पर जाना है. इस समझौते के पीछे सकारात्मक सोच यह होनी चाहिए कि सलिल और तुम्हें टुकड़ोंटुकड़ों में जीवन जीने को नहीं मिलेगा.’
‘तुम कुछ भी कहो, मैं तो खालिस समझौता ही कहूंगी. एक मिनट को मेरी बात छोड़ दो. आकाश क्या चाहते हैं, यह भी छोड़ दो. बस, दिल से कहो, अपने लिए तुम्हारा अपना मन क्या कहता है,’ सौम्या की यह बात सुन कर रेवती फीकी हंसी हंसी और बोली, ‘इस भागदौड़ में क्या रखा है. कहने को आजाद हूं. आकाश जैसी खुली विस्तृत सोच वाला पति मिला है, फिर भी जीवन आसान कहां है. 60-65 किलोमीटर रोज के आनेजाने में कब दिन शुरू होता है, कब खत्म, पता ही नहीं चलता.
‘कभीकभी मन में कसक उठती है कि कब वह दिन आएगा जब मैं रिटायरमैंट के बाद उन्मुक्त जीवन जिऊंगी. चिडि़यों की चहचहाहट सुनूंगी. चाय के कप से धीमेधीमे चुसकियां भरूंगी. बरसती बूंदों की टपटप सुनूंगी. जानपहचान के लोगों से संपर्क बढ़ाऊंगी. कुछ छूटा हुआ समेटूंगी. कुछ बेवजह यों ही छोड़ दूंगी. जब बच्चे हायर स्टडीज के लिए बाहर हैं… आकाश के साथ बिना प्लानिंग कहीं निकल जाऊंगी. एकदूसरे का अकेलापन दूर करते हुए सुकून से जिऊंगी.
अगले दिन जब वे मुख्य डाकघर पहुंचे तो पता चला कि इस बाबत पूछने के लिए दो लड़कियां पहले ही आ चुकी हैं.
‘‘वही होगी संध्या,’’ मदन फुसफुसाया.
‘‘अबे, उसी की तो सारी शरारत है, सबकुछ उस की जानकारी में ही हुआ है.’’
‘‘वह कैसे हो सकती है?’’ परिमल बोला, ‘‘वह जो इतना तैश खा रही थी न… वह सब दिखावा था.’’
‘‘लेकिन गुरु, उस का तो नाम खुद ही सूची में है,’’ मदन बोला.
‘‘यही तो तरीके होते हैं डबल क्रौस करने के,’’ परिमल बोला, ‘‘एक तरफ अपना नाम डाक्टर अमितोज से जोड़ कर अपनी दबीढकी भावनाएं जाहिर कर दीं, दूसरी तरफ दूसरों को बदनाम भी कर दिया.’’
डाकघर की काउंटर क्लर्क ने जब यह बताया कि उन दोनों लड़कियों में से एक ने नजर का चश्मा लगाया हुआ था और दूसरी के बाल कटे हुए थे तो तीनों को अति प्रसन्नता हुई, क्योंकि संध्या के न तो बाल कटे हुए थे और न ही वह नजर का चश्मा लगाती थी.
‘‘देखा मैं ने कहा था न कि संध्या नहीं हो सकती, वह क्यों पूछने आएगी. वे जरूर सोनाली और दीपिका होंगी क्योंकि वे दोनों ही इस में सब से ज्यादा इनोसैंट हैं. दीपिका तो बेचारी किताबों के अलावा किसी को देखती तक नहीं और सोनाली की अगले माह ही शादी है.’’
‘‘हां, मुझे अच्छी तरह उन लड़कों के चेहरे याद हैं,’’ काउंटर क्लर्क बोली, ‘‘चूंकि वे सभी लिफाफे महाविद्यालय में एक ही पते पर जाने थे अत: मैं ने ही उन्हें सलाह दी थी कि इन सभी को अलगअलग लिफाफों में पोस्ट करने के बजाय इस का सिर्फ एक लिफाफा बनाने से डाक व्यय कम लगेगा. इस पर उन में से एक लड़का जो थोड़ा सांवले रंग का था, भड़क उठा. कहने लगा, ‘‘आप को पता है ये कितने गोपनीय पत्र हैं, हम पैसे चुका रहे हैं इसलिए आप अपनी सलाह अपने पास रखिए.’’
मुझे उस का बोलने का लहजा बहुत अखरा, मैं उस की मां की उम्र की हूं परंतु वह बहुत ही बदतमीज किस्म का लड़का था, जबकि उस के साथ आया गोरा लड़का जिस ने नजर का चश्मा लगाया हुआ था बहुत शालीन था. उस ने मुझ से माफी मांगते हुए जल्दी काम करने की प्रार्थना की. गुस्से में वह सांवला लड़का बाहर दरवाजे पर चला गया जहां उन का तीसरा साथी खड़ा था. उस का चेहरा मैं देख नहीं सकी क्योंकि काउंटर की तरफ उस की पीठ थी, लेकिन मैं इतना विश्वास के साथ कह सकती हूं कि वे 3 थे, जिन में से 2 को मैं अब भी पहचान सकती हूं.’’
यह जानकारी एक बहुत बड़ी सफलता थी क्योंकि इस से जांच का दायरा मात्र उन छात्रों तक सीमित हो गया जो नजर का चश्मा लगाते थे और सांवले रंग के थे. परिमल स्वयं नजर का चश्मा लगाता था लेकिन वह नहीं हो सकता था क्योंकि डाकखाने की क्लर्क से उस ने खुद बात की थी. विपक्ष का नेता मदन भी सांवले रंग का था, लेकिन वह भी साथ था. महाविद्यालय के हिंदी विभाग में 50 छात्रछात्राओं में से 32 छात्र और 18 छात्राएं थीं और मात्र 12 छात्र नजर का चश्मा लगाते थे. परिमल को अगर छोड़ दिया जाए तो मात्र 11 छात्र बचते थे.
जब यह जानकारी हिंदी विभाग में पहुंची तो नजर का चश्मा लगाने वाले सभी छात्र संदेहास्पद हो गए. आरोपप्रत्यारोप का माहौल फिर गरम हो गया. नजर का चश्मा लगाने वालों की पहचान परेड उस क्लर्क के सामने कराई जाए. संध्या और सभी छात्राएं इस सूची को लिए फिर विभागाध्यक्ष डाक्टर अमितोज के कमरे में विरोध प्रदर्शन के लिए पहुंच गईं, ‘‘सर, अब यह साफ हो चुका है कि इन 11 में से ही कोई है जिस ने यह गंदी हरकत की है. आप इन सभी को निर्देश दें कि वे पहचान परेड में शामिल हों.’’
डाक्टर अमिजोत ने मुश्किल से उन्हें शांत कराया और आश्वासन दिया कि वे इन सभी को ऐसा करने के लिए कहेंगे हालांकि उन्होंने साथसाथ यह मत भी जाहिर कर दिया कि यह सारा काम किसी शातिर दिमाग की उपज है और वे खुद इन पत्रों को डाकखाने जा कर पोस्ट करने की बेवकूफी नहीं कर सकता.
आनंद, जिस का नाम सोनाली से जोड़ा गया था और जो नजर का चश्मा लगाता था, ने इस पहचान परेड में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया, ‘‘मैं कोई अपराधी हूं जो इस तरह पहचान परेड कराऊं.’’
उस के इस इनकार ने फिर माहौल गरमा दिया. संध्या इस बात पर उस से उलझ पड़ी और तूतड़ाक से नौबत हाथापाई तक आ गई. आनंद ने सीधेसीधे संध्या पर आरोप जड़ दिया, ‘‘सारा तेरा किया धरा है. डाक्टर अमितोज के साथ तेरे जो संबंध हैं न, उन्हें कौन नहीं जानता. उसी मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए तू ने औरों को भी बदनाम किया है ताकि वे लोग तुझ पर छींटाकशी न कर सकें. तू सोनाली की हितैषी नहीं है बल्कि उसे भी अपनी श्रेणी में ला कर अपने मुद्दे से सभी का ध्यान हटाना चाहती है.’’
परिमल ने उस समय तो बीचबचाव कर मामला सुलझा दिया, परंतु सरेआम की गई इस टिप्पणी ने संध्या को अंदर तक आहत कर दिया. कुछ छात्रों का मानना था कि आनंद के आरोप में सचाई भी हो सकती है.
‘‘यार, तेरी बात में दम है. सब जानते हैं कि जब से यह पत्र आया है सब से ज्यादा यही फुदक रही है,’’ संध्या के जाते ही परिमल ने आनंद को गले लगा लिया और कहने लगा कि पहला पत्र जिस में केवल संध्या और डाक्टर अमितोज का नाम था वह किसी और ने लिखा था. उस से इस की जो बदनामी हुई उसी से ध्यान बंटाने के लिए इस ने इस पत्र में औरों को घसीटा है ताकि लगे कि हमाम में सभी नंगे हैं. परिमल ने संध्या को बदनाम करने के लिए इस जलते अलाव या की वजह से उस के छात्राओं के काफी वोट जो कट जाते थे.
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Mamta Mehta
दोपहर बिस्तर पर लोटपोट होने के बाद सोच कर कि चल कर जरा हौल की सैर कर आऊं, दरवाजा खोल कर बाहर कदम रखा कि किसी चीज से पैर टकराया. मुंह से चीख निकली और मैं बम जैसे फटा, ‘‘यह क्या हाल बना रखा है, घर के आदमी के चलनेफिरने लायक जगह तो छोड़ा कम से कम?’’
उधर से भी जवाबी धमाका हुआ, ‘‘दिनभर सोने से फुरसत मिल गई हो तो थोड़ा काम खुद भी कर लो.’’
मैं भिनभिनाया, ‘‘अभी तो तुम भी दिनभर घर में ही क्यों नहीं थोड़ा साफसफाई पर ध्यान दे लेती.’’
वह तमतमाई, ‘‘आप भी तो दिनभर बिस्तर पर ही हैं, आप ही क्यों नहीं थोड़ी साफसफाई कर लेते?’’
मैं सीना फुलाया, ‘‘यह मेरा काम नहीं है, मैं मर्द हूं.’’
सुमि पास आ गई, ‘‘अच्छा, यह कौन सी किताब में लिखा है कि यह काम मर्दों का नहीं है.’’
मैं ने तन कर कहा, ‘‘मेरी अपनी किताब में.’’
सुमि ने कमर पर हाथ रखे, ‘‘तो कौन से काम मर्दों के करने के हैं, ये भी लिखा होगा तो बता दो जरा?’’
मैं ने बांहें फैला दीं, ‘‘हां, लिखा है न आओ, बताऊं?’’
सुमि के चेहरे पर ललाई दौड़ गई जिसे उस ने तमतमाहट में छिपा लिया, ‘‘क्वारंटाइन में हो डिस्टैंस मैंटेन करो.’’
मैं ने आहें भरी, ‘‘वही तो कर रहा हूं और कितना करूं? 24 घंटे का साथ फिर भी दूरियां…’’
मैं सुमि की तरफ बढ़ा सुमि ने बीच में ही रोक दिया.
‘‘ये फालतू काम करने के बजाय कुछ काम की बात करो.’’
‘‘ये भी काम का ही काम है.’’
‘‘नहीं अभी बरतन मांजना ज्यादा काम का काम है, आओ जरा बरतन मांज दो.’’
‘‘कहा न यह मेरा काम नहीं है…’’
सुमि तिनक कर बोली, ‘‘यह मेरा काम नहीं वह मेरा काम नहीं कहने से काम नहीं चलेगा. चुपचाप बरतन मांज दो वरना पुलिस को फोन कर दूंगी कि यहां एक कोरोना का मरीज है.’’
मैं थोड़ा डरा पर ऊपर से बोला, ‘‘यह गीदड़ भभकियां किसी और देना. तुम फोन कर सकती हो तो क्या मैं फोन नहीं कर सकता? मैं भी फोन कर के बोल दूंगा कि यहां एक कोरोना की मरीज है.’’
सुमि इत्मीनान से बोली, ‘‘बोल दो, बढि़या है. वे मेरी जांच करेंगे जांच में कुछ निकलेगा नहीं पर मुझे 14 दिन का आराम मिल जाएगा. यहां घर में सारे काम आप करना. अभी तो पकापकाया मिल रहा है. बड़े ठाठ हैं नवाब साहब के फिर खुद पकाना, खुद खाना और बरतन भी मांजना.’’
अब मैं वाकई डर गया, ‘‘छोड़ो न यार मैं तो मजाक कर रहा था, देखो बरतनवरतन मांजना तो अपने बस का है नहीं, मैं सफाई का काम कर देता हूं.’’
मैं ने डब्बू, डिंगी को आवाज लगाई, ‘‘चलो बच्चो मम्मी की हैल्प करते हैं. थोड़ी सफाई कर लेते हैं आ जाओ…’’
सुमि ने टोका, ‘‘कोई जरूरत नहीं है, सफाईवफाई करने की जैसा पड़ा है पड़े रहने दो. आप से जो कह रही हूं वह करो बस.’’
मैं ने जिद की, ‘‘अरे यार सफाई करना मेरे लिए ज्यादा इजी रहेगा. करने दो न देखो, कितनी गंदगी पड़ी है हर जगह कितना पसरा पड़ा है.’’
सुमि ने जैसे अल्टीमेटम देते हुए कहा, ‘‘न सफाई करनी है न करवानी है… जैसे पड़ा है पड़ा रहने दो, आप अपनी मर्दानगी इन बरतनों पर दिखाओ इन्हें चमका कर.’’
मैं फिर चिनमिनाया, ‘‘देखो एक तो यह सब मेरे काम नहीं हैं फिर भी मैं करने को तैयार हूं तो जो काम मैं कर सकता हूं वही करने दो न.’’
सुमि फिर तुनकी, ‘‘एक बार कह तो दिया सफाई नहीं करनी तो नहीं करनी क्यों पीछे पड़े हैं…’’
मैं भी जोर से बोला, ‘‘क्यों नहीं करनी? इतनी गंदगी में तुम कैसे रह सकती हो. तुम्हें आदत होगी तो होगी इतनी गंदगी में रहने की पर मुझे नहीं है तो मैं तो सफाई ही करूंगा.’’
सुमि ने मुंह बिचकाया,‘‘आए बड़े मिस्टर क्लीन. जैसे पहले व्हाइट हाउस में ही रहते थे… मैं भी कोई पाइप में रहती नहीं आई हूं पर अभी मुझे सफाई में नहीं रहना बस.’’
मैं ने भौंहें चढ़ाई, ‘‘क्यों पर क्यों नहीं रहना, क्यों नहीं करनी सफाई? इतने गंदे पसरे वाले घर में मन लग जाएगा तुम्हारा? अभी तो 24 घंटे तुम भी घर में ही हो…’’
सुमि ने होंठ टेढ़े किए, ‘‘हां तो इसी घर में रहना चाहती हूं, कहीं और नहीं जाना चाहती और यह भी चाहती हूं कि आप और बच्चे भी इसी घर में रहें कहीं किसी के घर न जाए.’’
मेरा सिर चकराया, ‘‘कमाल है, सफाई का इस घर या कहीं जाने से क्या संबंध है?
तुम भी न कुछ का कुछ कहीं का कहीं जोड़ती रहती हो.’’
सुमि बोली, ‘‘संबंध कैसे नहीं हैं,
बिलकुल संबंध हैं, सौलिड संबंध हैं, जबरदस्त संबंध हैं.’’
मैं ने कहा, ‘‘वही तो पूछ रहा हूं, क्या संबंध है? तुम्हारी डेढ़ अक्ल ने निकाला है तो बता भी दो…’’
सुमि ने कंधे उचकाए, ‘‘इस में डेढ़ अक्ल, ढाई अक्ल वाली कोई बात नहीं है, सीधीसीधी बात है, देखो जितनी गंदगी होगी उतना इम्युनिटी सिस्टम अच्छा होगा. इम्युनिटी सिस्टम अच्छा होगा तो कोरोना का प्रभाव कम होगा. हम ऐसी गंदगी में रहेंगे तो न कोरोना होगा न हम कहीं और जाएंगे.’’
मेरा दिमाग घूम गया, ‘‘ये क्या लौजिक है, किस ने कहा गंदगी में रहने से कोरोना नहीं आएगा?’’
सुमि ने अत्यधिक विश्वास से कहा, ‘‘आप खुद देखो न, कोरोना के सब से ज्यादा मरीज कहां थे और कहां पर मरे?’’
मैं ने कहा, ‘‘स्पेन, इटली में…’’
‘‘और?’’
‘‘यूएसए, फ्रांस, ब्रिटेन…’’
‘‘तो देखो ये सभी देश साफस्वच्छ देशों में आते हैं कि नहीं. जितने साफ सुथरे थे उतना कोरोना का प्रभाव बढ़ता गया, लोगों की सांसें घटती गई.
‘‘एशियाई देशों में देखो चीन को छोड़ कर, कोरोना के कितने मरीज हैं? हमारे यहां भी देखो जो शहर साफसुथरे थे वहां कोरोना छाती ताने घूमता फिर रहा है, पर जो देश और शहर गंदगी को अहमियत देते रहे आज उतना ही कम कोरोना से जूझ रहे हैं. हमारे यहां भी देखो, रोज ही तो लोकल न्यूज चैनल पर दिखा रहे हैं कि शहर में कितनी गंदगी हो रही है. अभी पूरा शहर खाली पड़ा है आराम से सफाई हो सकती है पर कोई ध्यान दे रहा क्या?
‘‘नहीं न, वह इसलिए कोरोना गंदगी देख कर पलट जाए, तो आप घर की सफाई भी रहने दो, जितना हम गंदगी में रहेंगे हमारी इम्युनिटी पावर बढे़गी और कोरोना से लड़ने की शक्ति भी. बाद की बाद में देखेंगे. आप तो अभी बरतन मांजो बस.’’
मैं मुंह खोले बेवकूफ सा उस की बात सुनता रहा. समझ नहीं पा रहा था इस का क्या जवाब दूं? बेचारे हमारे नेता स्वच्छ भारत मिशन चला कर देश को साफसुथरा बनाने में जीजान से कोशिश कर रहे हैं. यहां इस का यह नया ही फंडा.
क्या वाकई यह सही कह रही है? सफाई से कोरोना प्रभावशाली व शक्तिशाली हो जाता है? इस पर रिसर्च बाद में करूंगा, फिलहाल तो सिंक के पास खड़ा सोच रहा हूं कि बरतन कैसे मांजू?
क्लीनर भी आंखें फाड़ कर देखने लगा. टक्कर की तेज आवाज सुन कर मेरी छाती भी धड़कने लगी. मोटर- साइकिल रास्ते के समीप के गड्ढे में जा गिरी. ट्रक कुछ आगे जा कर रुका. जीप वाले को गाली देते हुए नईम ट्रक से उतरा. मैं भी उस के पीछे उतरा. मोटरसाइकिल पर सवार दोनों व्यक्ति काफी दूर जा कर गिरे थे. चालक के सिर पर काफी चोट लगी थी और उस में से खून बह रहा था. उस के पीछे बैठा व्यक्ति दर्द से बिलख रहा था.
‘‘उस्मान, पानी की बोतल ला,’’ नईम चिल्लाया. उस्मान ने पानी की बोतल ला कर दी तो उस ने पानी की धार जख्मी व्यक्ति के मुंह में डाली. तभी एक दूध वाले की मोटरसाइकिल आ कर खड़ी हुई.
‘‘कौन तात्याभाई?’’ वह चिल्लाया.
‘‘किस ने ठोकर मार दी?’’ दूध वाले ने पूछा. पास आ कर उस दूध वाले ने उस जख्मी व्यक्ति को पहचाना. वह उसी के गांव का रहने वाला था. वह ट्रक और ड्राइवर की ओर देख कर चिल्लाया, ‘‘तुम ने टक्कर मारी इस मोटरसाइकिल को?’’
‘‘अरे भाई, इस को जीप वाले ने ठोकर मारी है. मैं तो इंसानियत के नाते इसे पानी पिला रहा हूं. वरना इस सुनसान रास्ते पर इसे कौन देखेगा? चाहो तो तुम पूछ लो इस जख्मी से.’’
नईम ने अपनी सफाई पेश की. मैं ने भी नईम की बात का समर्थन किया.
उसी समय जख्मी व्यक्ति चिल्लाने लगा, ‘‘उस जीप वाले को पकड़ो, उसी ने टक्कर मारी है.’’
‘‘अब तो आप को यकीन हुआ?’’ नईम ने उस दूध वाले से पूछा.
इसी बीच उस रास्ते पर 2-3 और मोटरसाइकिल वाले भी आ गए. सब अपनीअपनी हांक रहे थे. जख्मी को तुरंत अस्पताल पहुंचाना जरूरी था. पुलिस को खबर करने की जरूरत थी. वहां आया दूध वाला जख्मी मोटरसाइकिल चालक के घर खबर देने चला गया.
‘‘ऐसा करते हैं कि जख्मी को हम ट्रक में डाल कर चोपड़ा ले जाते हैं और वहां सरकारी अस्पताल में भरती करा देते हैं.’’
नईम के इस प्रस्ताव को सब ने मान लिया. जख्मी को उठा कर ट्रक में डाल कर नईम ने तेजी के साथ ट्रक भगाया. 2 लोग हमारे साथ आए और बाकी वहीं रुक गए.
‘बेचारे की जान बचनी चाहिए,’ नईम बड़बड़ाने लगा.
10-15 मिनट में ट्रक सरकारी अस्पताल पहुंच गया. जख्मी को अस्पताल में भरती करवाया गया. तब तक पुलिस भी वहां पहुंच गई. इस चक्कर में मुझे देर होती जा रही थी. नईम को भी जल्दी पहुंचना था क्योंकि उस के ट्रक में केले लदे थे. इस दुर्घटना के चलते अब घंटे भर की और देरी हो गई थी.
ड्राइवर नईम को लग रहा था कि जख्मी को भरती कराने के बाद उसे छुट्टी मिल जाएगी, लेकिन पुलिस ने उसे ट्रक रोकने के लिए कहा.
‘‘ट्रक भगाने की कोशिश मत करो,’’ एक हवलदार ने उसे डांट दिया.
‘‘हम ने इंसानियत के नाते इसे यहां पहुंचाया है,’’ नईम ने हाथ जोड़ कर पुलिस से अपनी सफाई पेश की.
‘‘इसे किसी जीप वाले ने ठोकर मारी है यह हम कैसे मान लें?’’
पुलिस वाले के तर्क के सामने नईम कुछ बोल नहीं पाया, फिर भी अपनी सफाई पेश करने की कोशिश की.
‘‘साहब, हम ने कौन सा बुरा काम किया है?’’
‘‘झूठ मत बोलो, इसे तुम्हारे ट्रक ने ही ठोकर मारी है.’’
एक पुलिस वाला उसे डांटने लगा. मैं खामोशी से उन की बातचीत सुन रहा था.
‘‘साहब, आप चाहें तो इन से पूछ लो, ये हमारे पैसेंजर हैं,’’ नईम गिड़गिड़ाया.
‘‘वह मैं कुछ नहीं जानता. ट्रक में माल भरा जाता है या पैसेंजर. इस मामले की पूरी छानबीन होने तक हम तुम्हें जाने नहीं देंगे. तुम ट्रक को पुलिस थाने में छोड़ दो.’’
हवलदार की बात से नईम घबरा गया. बोला, ‘‘मेरा केले का ट्रक है, जाने दीजिए. और मैं ने कोई बुरा काम नहीं किया है.’’
‘‘अपनी बात तू साहब को बताना, मैं कुछ नहीं जानता. ट्रक को तो पुलिस स्टेशन में ही जमा करवाना पड़ेगा.’’
हवलदार की बात से नईम की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. उसे लगा फिर वह क्यों इस झमेले में फंसा. होश आने पर जख्मी मोटरसाइकिल वाला जब तक बयान नहीं देता तब तक उसे छुटकारा मिलने की कोई गुंजाइश नहीं थी, क्योंकि पुलिस की नजर में नईम ही गुनाहगार था.
‘‘अगर उस ने होश में आ कर बयान दिया कि जीप वाले ने ही उसे टक्कर मारी है तब तुम जा सकोगे,’’ उसे डांट कर हवलदार डाक्टर के कैबिन में चला गया. नईम और मैं बाहर ही खड़े रहे.
‘‘देखो साहब, मैं ने कौन सा बुरा काम किया है?’’
तब तक दूसरे जख्मी को ऐंबुलैंस में डाल कर अस्पताल में लाया गया. डाक्टर ने उस की जांच कर के उसे ‘ब्राट डैड’ घोषित कर दिया और पोस्टमार्टम के लिए रवाना कर दिया. तब तक रात के 12 बज चुके थे. अस्पताल में रोने और चीखनेचिल्लाने की आवाजें बढ़ने लगीं. डाक्टर और नर्सों की दौड़धूप जारी थी. नईम बेचैनी के साथ इधरउधर चक्कर काट रहा था. जख्मी के रिश्तेदारों ने उस के ट्रक का घेराव कर लिया था. इस से नईम और भी घबरा गया.
‘‘साहब, मैं अपने सेठ को फोन कर के आता हूं,’’ कह कर वह फोन के बूथ की ओर बढ़ा तो मैं उस के पीछेपीछे चल दिया. क्लीनर गाड़ी छोड़ कर पहले ही भाग चुका था.
‘‘हैलो, बाबू सेठ. मैं नईम बोल रहा हूं. मैं अभी चोपड़ा में हूं.’’
‘‘अभी तक तू चोपड़ा में क्या कर रहा है? कब अहमदाबाद पहुंचेगा?’’
‘‘नहीं, बाबू सेठ, यहां रास्ते में एक ऐक्सीडैंट हो गया है.’’
‘‘अपनी गाड़ी का?’’
‘‘अपनी गाड़ी का नहीं. एक जीप वाले ने मोटरसाइकिल सवार को टक्कर मार दी…मैं जख्मी मोटरसाइकिल वाले को अस्पताल में ले आया था इसलिए देर हो रही है.’’
नईम ने अपने मालिक बाबू सेठ को समझाने की कोशिश की लेकिन सेठ को नईम पर बहुत गुस्सा आया.
रात के 2 बजे तक भी उस जख्मी को होश नहीं आया. मैं ने भी घर फोन कर के बता दिया कि मैं देरी से घर लौटूंगा. घर पर सभी चिंतित हो गए.
नईम ने एक पुलिस वाले को 50 रुपए का नोट दे कर ट्रक के सामने की भीड़ कम करने के लिए कहा. पुलिस हवलदार ने नोट जेब में डाल कर हाथ की लाठी पटक कर ट्रक के सामने जमा भीड़ को कम कर दिया.
नईम मेरी ओर देख कर कहने लगा, ‘‘साहब, आप मेरा साथ नहीं छोड़ना, आप तो मेरे गवाह हो. मैं ने कोई बुरा काम नहीं किया है और एक आदमी की जान बचाने से कोई बड़ा काम नहीं हो सकता,’’ फिर वह अपने हाथ में मेरा हाथ ले कर बोला, ‘‘पुलिस का कोई भरोसा नहीं. वे यह आरोप मुझ पर डाल देंगे.’’
‘‘नहीं, ऐसा नहीं होगा,’’ मैं ने नईम को धीरज बंधाने की कोशिश की.
मैं उस का हाथ पकड़ कर जख्मी के बिस्तर की ओर बढ़ गया. जख्मी व्यक्ति की सांस ठीक चल रही थी.
उसी समय 5-7 औरतें चीखती- चिल्लाती आईं. एक औरत अपना सिर पीटपीट कर रो रही थी और दूसरी 2 औरतें उसे धीरज बंधाने की कोशिश कर रही थीं. कोलाहल बढ़ने लगा तो एक नर्स ने आ कर उन सब को वहां से हटा दिया.
नईम और मैं मुरझाए चेहरे से वहीं खड़े थे. अब 4 बजने वाले थे. हम अस्पताल के मुख्यद्वार की ओर बढ़े तो हवलदार ने हमें वापस बुला लिया. हार कर हम मरीजों के वार्ड में जा कर बैठ गए.
थोड़ी ही देर में घायल मरीज को होश आ गया. नईम के चेहरे का तनाव कुछ कम हुआ. मैं ने उस का हाथ पकड़ कर दिलासा देने का प्रयास किया. पलभर में हवलदार आ गया और मरीज के रिश्तेदार भी पलंग के चारों ओर जमा हो गए.
‘‘तुम्हारी मोटरसाइकिल को किस ने टक्कर मारी?’’ हवलदार ने पूछा.
घायल मरीज ने बड़ी मुश्किल से अपना मुंह खोला और बताया, ‘‘यावल से आने वाली जीप ने हमें टक्कर मार दी,’’ उस के चेहरे से असहनीय वेदना झलक रही थी.
इधर नईम का चेहरा खिल गया क्योंकि एक बड़ी मुसीबत से उस का छुटकारा होने वाला था.
‘‘देखा साहब, अब तो आप को यकीन आ गया होगा,’’ नईम ने धीरे से अपनी बात हवलदार से कही.
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आज का दिन बहुत अच्छा था. सुबहसुबह जल्दी तैयार हो कर दोस्तों के साथ पाल के रास्ते पर हम निकल पड़े थे. इस सफर के लिए आरक्षित मिनी बस तो ठीक 5 बजे आ गई थी लेकिन सफर पर जाने वाले साथी 6 बजे तक ही आ पाए थे. सुबह के समय सब लोग प्रसन्न थे और बातचीत करते हुए हम सफर पर निकल पड़े थे.
रास्ते में एक ऐतिहासिक मंदिर की वास्तुकला देख कर हम सब वहां से आगे पाल जाने के लिए चल पड़े. हम पाल पहुंचे तो शाम के 5 बज रहे थे. हमारी योजना जल्दी घर लौट कर रात का खाना घर पर ही खाने की थी. बस का ड्राइवर जल्दी मचा रहा था क्योंकि उस के घर पर कुछ मेहमान आए हुए थे, अत: उसे घर जा कर उन्हीं के साथ भोजन करना था. मैं ने भी अपने घर बता दिया था कि रात तक अमलनेर पहुंच जाऊंगा.
पाल में हम सब ने काफी मौजमस्ती की. वहां के पार्क में हिरणों के साथ फोटो भी खिंचवाए. एक लैक्चरर साथी ने अलगअलग तरह की वनस्पतियों की जानकारी दी. वहां के फूलों का नजारा देखने के बाद जल्दी से घर लौटने के लिए सब लोग बस में बैठ गए.
ड्राइवर को भी घर पहुंचने की जल्दी थी. अत: उस ने पूरी तेजी के साथ बस दौड़ाई. करीब साढ़े 6 बजे हम सावदा पहुंचे. हमारे कुछ साथी वहां चाय पीना चाहते थे. उन्होंने इस के लिए ड्राइवर से आधे घंटे का समय मांगा. कुछ लोग चाय पीने के लिए निकल पड़े. हम भी ड्राइवर को ले कर चाय पीने लगे.
चाय पीते 1 घंटा बीत चुका था. घड़ी की ओर देखते हुए ड्राइवर मुझ से बोला, ‘‘मैं ने पहले ही कहा थाकि खानेपीने के शौकीन लोग एक बार बैठ गए तो फिर हिलने का नाम नहीं लेंगे. उन्हें दूसरों के समय की फिक्र ही नहीं है.’’
ड्राइवर बेचैन हो रहा था. हमारी ट्रिप शानदार रही थी, लेकिन खानेपीने वालों की वजह से अब 2 घंटे की देरी हो गई थी.
रात के 9 बजे हम यावल पहुंचे. सब को घर जाने की जल्दी थी अत: वे खामोश बैठे थे. उसी समय बस के इंजन से काफी मात्रा में धुआं निकलने लगा. ड्राइवर ने बस रोक दी. सब लोग बस से नीचे उतर पड़े.
‘‘क्या हुआ?’’ सब की जबान पर एक ही सवाल था.
‘‘इंजन में कुछ खराबी है,’’ ड्राइवर गुस्से से बोला.
ड्राइवर की बात सुन कर दूसरी गाड़ी ढूंढ़ने के लिए मैं ने बस में से अपना सामान निकाल लिया और दूसरी गाड़ी ढूंढ़ने लगा. मुझे देख कर कुछ साथी हंसीमजाक करने लगे तो कुछ लोग मैकेनिक ढूंढ़ने में ड्राइवर की सहायता करने लगे.
रास्ते पर काफी आवाजाही थी. मुझे अमलनेर पहुंचना था, इसलिए हर जाने वाली गाड़ी को हाथ दिखा कर रोकने का प्रयास कर रहा था. केलों से लदा एक ट्रक कुछ आगे जा कर रुक गया. मैं बड़ी आशा के साथ उस तरफ बढ़ गया. उस ट्रक में पहले से 15-20 मजदूर बैठे थे. उन में से 2 लोग वहां उतर गए. ड्राइवर ने मेरी ओर देख कर पूछा, ‘‘कहां जाना है?’’
‘‘अमलनेर,’’ मैं ने कहा.
‘‘ठीक है, गाड़ी अमलनेर हो कर अहमदाबाद जाएगी. इधर कैसे फंस गए?’’
‘‘भाई साहब, हमारी गाड़ी का इंजन फेल हो गया है. उस में हमारे कुछ और साथी भी थे,’’ मैं अपनी बात पूरी कर ड्राइवर के कैबिन में घुस गया.
पलभर में ही ट्रक पूरी तेजी के साथ सड़क पर दौड़ने लगा. मुझे इस उम्मीद से खुशी हुई कि 11 बजे तक अमलनेर अपने घर पहुंच जाऊंगा. मेरे नजदीक सब मजदूर एकदूसरे से चिपक कर बैठे थे. ड्राइवर ने टेप रिकौर्डर शुरू कर दिया.
ड्राइवर ने अभी बातचीत शुरू की ही थी कि सामने टौर्च का उजाला आया. ड्राइवर ने ट्रक की रफ्तार धीमी कर दी.
‘‘इसे भी अभी ही आना था. किसी के पास 5 रुपए हैं क्या?’’ ड्राइवर ने कैबिन में बैठे यात्रियों से पूछा.
मैं ने अपनी जेब से 5 का नोट निकाल कर उसे दे दिया. ड्राइवर ने अपने बगल की खिड़की से हाथ निकाल कर 5 का नोट हवलदार के हाथ में दिया और ट्रक की स्पीड बढ़ा दी.
‘‘अब देखो साहब, अगले पौइंट पर मैं सिर्फ 2 रुपए का सिक्का दूंगा. ये सब भिखारी लोग हैं. खाकी वरदी वाले डाकू हैं. साहब, असली डाकू तो यही हैं. चोरडाकू तो कभीकभी डाका डालते हैं, लेकिन ये लोग तो हर दिन जनता को लूटते हैं.’’
ड्राइवर मेरी ओर देख कर बोल रहा था. ट्रक में लगे टेप रिकौर्डर पर गाना चालू था. तभी सामने 2 हवलदार खड़े दिखाई दिए. ट्रक एक तरफ रोक कर ड्राइवर नीचे उतरा और एक पुलिस वाले के सामने जा कर खड़ा हो गया.
‘‘क्या साहब, हमारा रोज का आनाजाना है.’’
‘‘तो दादा, हम कहां ज्यादा मांगते हैं,’’ पुलिस वालों का स्वर धीमा और लाचारी से भरा था.
ड्राइवर ने धीरे से जेब से 2 रुपए का सिक्का निकाल कर उस के हाथ में टिकाया और पल भर में ट्रक चला दिया.
आगे चौक पर ट्रक रुका तो कई मजदूर फटाफट छलांग लगा कर उतर गए.
‘‘उस्मान, सब से भाड़ा बराबर लेना. आगे भी पुलिस वालों की जेबें गरम करनी पड़ेंगी,’’ ड्राइवर ने हिदायत दी, ‘‘और उस्मान, ट्रक का अगलापिछला टायर ठीक से देख लेना.’’
ट्रक स्टार्ट कर ड्राइवर ने स्टेयरिंग व्हील पर हाथ रखते हुए पूछा, ‘‘साहब, आप अमलनेर में नौकरी करते हो क्या?’’
‘‘मैं टैलीफोन विभाग में हूं. क्या आप अमलनेर आते रहते हैं?’’
‘‘मैं बचपन में अमलनेर में रहता था. वहां स्कूल में पढ़ता था. नईम नाम है मेरा. क्या आप वहां के कालू मिस्त्री को पहचानते हैं?’’
‘‘हां, वे अच्छे कारीगर हैं और कसाली में रहते हैं,’’ मैं ने बताया.
‘‘अरे, आप तो हमारी पहचान के निकले.’’
हम दोनों की बातचीत का सिलसिला चल पड़ा.
‘‘साहब, 20 साल से मैं ड्राइविंग कर रहा हूं. मुंबई, अहमदाबाद हर रोज केले ले जाने का ट्रिप लगता है. 20 साल से एक ही मालिक के पास काम कर रहा हूं. वे मुझे छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं.’’
‘‘ईमानदारी से काम करने वाले को कोई आदमी कैसे छोड़ेगा?’’
‘‘अरे साहब, आप ईमानदारी की बात कर रहे हैं… मैं ने 20 साल में पैसा नहीं कमाया लेकिन नाम कमाया है, इज्जत कमाई है. इस रास्ते पर हवलदार भी मुझे सलाम करते हैं.’’
तब तक क्लीनर ने ट्रक पर सवार हो कर कहा, ‘‘चलो, नईम चाचा.’’
ट्रक चल पड़ा. रास्ते में हम दोनों की बातचीत फिर शुरू हो गई.
‘‘आप को क्या बताऊं साहब, अगर सामने से इलाके का विधायक भी आ जाए तो वह गाड़ी खड़ी कर के मुझ से 2 मिनट बात जरूर करेगा. हम ने इतनी इज्जत कमाई है.’’
‘‘हम अमलनेर कितनी देर में पहुंचेंगे?’’
‘‘1 घंटे में.’’
उसी समय एक जीप ने पूरी तेजी से हमारे ट्रक को ओवरटेक किया. सामने से एक मोटरसाइकिल आ गई. जीप का ड्राइवर कंट्रोल खो बैठा और उस ने मोटरसाइकिल सवार को टक्कर मार दी. ट्रक का ड्राइवर रफ्तार कम करते हुए चिल्ला पड़ा, ‘‘अरे, मारा गया बेचारा.’’
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पहली बार हवलदार ने उस की तरफ नरमी से देखा. वह घायल मरीज का बयान ले कर पंचनामा करने लगा.
‘‘देखो साहब, अब हमें बहुत देरी हो गई है. ट्रक में केला भरा है, अब हमें जाने दो,’’ नईम ने दूसरे हवलदार से अपनी बात कही.
‘‘ऐसे कैसे जाने दूं? बड़े साहब आएंगे, उन से पूछ कर फिर जाना.’’
‘‘हवलदार साहब, अब काहे को लफड़े में डाल रहे हो. कहो तो आप के चायपानी का इंतजाम कर दूं.’’
‘‘पूरी रात जागता रहा तो किसी ने हमें चायपानी के लिए नहीं पूछा,’’ हवलदार ने नरमी से मेरी ओर देखा.
नईम ने जेब से 50 रुपए का नोट निकाल उस के हाथ में पकड़ाया.
‘‘तू क्या हम को भीख दे रहा है?’’ हवलदार ने गुस्से का नाटक किया.
‘‘नईम दादा, जाने दो. हिसाब से दे दो. हम यहां कब तक पड़े रहेेंगे?’’
मेरी बात पर हवलदार मुसकराया. नईम ने जेब में हाथ डाल कर 50 रुपए का एक और नोट हवलदार की हथेली पर रखा.
हवलदार ने जरा नाराज हो कर सिर हिला दिया और नोट जेब में ठूंस लिए. मैं ट्रक की ओर बढ़ने लगा. नईम ने उस्मान को आवाज दे कर अपने पास बुलाया तो वह दीवार के पीछे से निकल कर वापस आ गया.
‘‘चल, बैठ गाड़ी में.’’
जब हम सभी ट्रक पर सवार हो कर चलने लगे तब सुबह के 5 बज चुके थे. सड़क पर आवाजाही शुरू हो गई थी. ‘‘साहब, 2 मिनट रुको, मैं अपने बाबू सेठ को फोन कर के आता हूं,’’ कह कर वह फोन बूथ पर गया और जल्दी में नंबर घुमाया. फोन पर सेठ बिना रुके उसे डांटे जा रहा था. नईम अपने सेठ की बात बड़ी शांति से सुनता रहा. उस की बात खत्म होने के बाद शुरू हुई हमारी बाकी बची यात्रा.
ट्रक पूरी तेजी के साथ अमलनेर की ओर बढ़ा. सुबह की ठंडक में भी नईम का चेहरा पसीने से तरबतर था. वह सावधान हो कर तेजी से ट्रक दौड़ाने लगा. मैं ने घबराते हुए नईम की ओर देखा. ट्रक चलाते हुए बकबक करने वाला ट्रक ड्राइवर अब बड़ी शांति से ट्रक चला रहा था. ट्रक की स्पीड इतनी ज्यादा थी कि पीछे कौन सा गांव जा रहा है इस का भी पता नहीं चल रहा था. सावरखेड़ा का पुल तो कब का पीछे छूट चुका था. आखिर मैं ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘क्या दादा, तुम्हारे सेठ ने क्या बोला?’’
‘‘सेठ बहुत नाराज हो गया है. यार, वह कह रहा था कि आइंदा कभी ऐसा ऐक्सीडैंट हो जाए और मरने वाला प्यास के मारे तड़पता हो तो उस तड़पते आदमी की तरफ देखना भी नहीं.’’
हमारा ट्रक अब रेल फाटक पार कर के आगे बढ़ रहा था. रास्ता खुला था. थोड़ी देर में हम एस.टी. स्टैंड पर पहुंच गए. मैं ने उतरने की तैयारी की.
‘‘नईम दादा, अब तो हमें वैसे ही काफी देर हो गई है. चलो, थोड़ीथोड़ी चाय पी ली जाए.’’
उस ने एक छोटे से ढाबे पर गाड़ी रोकी. साढ़े 5 बज चुके थे. हम होटल में गए. वहां मैं ने चाय का और्डर दिया. चाय वाले ने हमारे सामने 2 कप चाय ला कर रखी. चाय का कप उठा कर नईम बोला, ‘‘जाने दो साहब, हम ने कोई बुरा काम नहीं किया. एक इंसान मर रहा था, उस को बचाना हमारा फर्ज था. इसी को इंसानियत कहते हैं.’’
‘‘हां भाई, यही नेकी तुम्हारे बालबच्चों के काम आएगी,’’ मैं सिर्फ इतना ही बोल पाया.
चाय पी कर मैं अपने घर की ओर जाने लगा तो वह भी ट्रक की ओर चल दिया. कल की पूरी रात मैं ने जाग कर बिताई थी. इस एक रात में इंसानी स्वभाव के अलगअलग पहलू देखने के अवसर मिले थे.
नईम की इस इंसानियत की कहानी किसी इतिहास में नहीं लिखी जाएगी, लेकिन टिमटिमाते दीए की तरह इंसानियत अब भी जिंदा है यह सोच कर ही मैं उत्साहित था.