
यह जान कर कि राहुल किसी छोटे से स्कूल में टीचर है, अमित उस से मिलने के लिए बेचैन ही हो उठा. अब तो अपनी हार का बदला लेने का अवसर उस को साफसाफ नजर आ रहा था.
अगले दिन ही अमित ने अपनी बीएमडब्लू निकाली और बिजनौर की तरफ चल दिया. राहुल का स्कूल ढूंढ़ने में उसे ज्यादा दिक्कत नहीं हुई. वह स्कूल के गेट पर पहुंचा तो वौचमैन से राहुल के बारे में पूछा. वौचमैन ने अमित को ऊपर से नीचे तक देखा और बोला, ‘‘बिलकुल, यहीं तो काम करते हैं हमारे राहुल सर. आप कौन हैं वैसे?’’
सवाल के जवाब में अमित ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘हम एक ही स्कूल के हैं.’’
‘‘अरे, आप राहुल सरजी के दोस्त हैं. आइए न, मैं ले चलता हूं आप को उन तक.’’
‘‘नहींनहीं, मैं इंतजार कर कर लूंगा, कोई बात नहीं,’’ अमित ने कहा और वह वहीं खड़ा हो कर स्कूल की छुट्टी होने का इंतजार करने लगा.
दोपहर बाद स्कूल की छुट्टी हो गई और थोड़ी देर बाद राहुल भी स्कूल से बाहर आता दिखाई दिया. साधारण से कपड़े पहने राहुल अपनी स्कूटी पर बैठा ही था कि अमित उस के सामने आ गया.
‘‘हाय राहुल. कैसे हो? पहचाना?’’ अमित ने राहुल की तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा.
महंगे सूटबूट पहने अमित को एक क्षण के लिए तो राहुल पहचान ही नहीं पाया.
‘‘अरे यार, मैं अमित. हम लोग डीपीएस में साथ पढ़ते थे,’’ अमित ने राहुल को याद दिलाते हुए कहा.
‘‘अरे, अमित, तुम यहां? सौरी इतने दिनों बाद देखा तो एकदम से पहचान नहीं पाया,’’ राहुल ने अमित का हाथ अपने हाथों में लेते हुए बड़ी खुशी से कहा.
‘‘वह मैं जरा अपनी कंपनी के काम से चांदपुर आया था. फैसल ने बताया था तुम आजकल बिजनौर में ही रहते हो, तो सोचा मिलता चलूं,’’ अमित ने ‘अपनी कंपनी’ पर जोर देते हुए कहा. राहुल बात का जवाब देता, उस से पहले ही उस का फोन बज उठा.
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राहुल ने फोन उठा लिया और ‘हैलो’ कहते ही रुक कर सुनने लगा और फिर बोला, ‘‘सब ठीक है यहां, तुम बताओ,’’ फिर रुक कर कहा, ‘‘हां, तुम मेल भेज दो मैं आगे फौरवर्ड कर दूंगा.’’
अमित राहुल की बात ध्यान से सुन रहा था, बोला, ‘‘स्कूल का काम?’’
‘‘अरे नहीं, एक स्टूडैंट है सिंगापुर में रहता है, प्रोफैसर है. जिस कालेज में वह पढ़ाता है वहां एक हिंदी के प्रोफैसर के लिए जगह खाली है उसी के लिए पूछ रहा था. मैं हिंदी के प्रोफैसर को मेल सैंड करने की बात कर रहा था.’’
‘‘अच्छा,’’ अमित ने कहा.
पिछली छोड़ी हुई बात को आगे बढ़ाते हुए राहुल ने कहा, ‘‘यहां आ कर तुम ने बहुत अच्छा किया. चलो, बाकी बातें घर चल कर करेंगे.’’
राहुल अमित से मिल कर बहुत खुश नजर आ रहा था.
‘‘अरे, भाभी को परेशान करने की क्या जरूरत है. चलो, आज तुम्हें किसी फाइवस्टार होटल में लंच कराता हूं,’’ अमित के दिल को धीरेधीरे बड़ा आनंद आ रहा था.
‘‘परेशानी कोई नहीं है. और यहां बिजनौर में तुम्हें कोई फाइवस्टार होटल नहीं मिलेगा,’’ राहुल ने हंसते हुए कहा.
‘‘अरे यार, तुम्हारे घर तक मेरी गाड़ी चली भी जाएगी या नहीं?’’ अमित ने व्यंग्य का एक और तीर फेंका.
‘‘हां, यह प्रौब्लम तो है. चलो, तुम्हारी गाड़ी मैं अपने एक मित्र के घर खड़ी करा दूंगा. उस का घर पास ही है,’’ राहुल अमित के व्यंग्य को सम?ा नहीं पाया.
‘‘अच्छा, चलो आओ, बैठो, चलते हैं,’’ अमित ने अपनी नई कार की ओर अहंकार से देखते हुए कहा.
‘‘लेकिन मेरा स्कूटर…चलो छोड़ो, इसे बाद में ले जाऊंगा.’’
अमित और राहुल कार में बैठे और आगे बढ़ गए. रास्ते में राहुल और अमित स्कूल के क्लासमेट्स की बातें कर रहे थे कि बगल में पुलिस की गाड़ी चलती दिखाई दी. गाड़ी से एक पुलिस वाले ने राहुल की तरफ हाथ हिलाया तो राहुल ने अमित को कार साइड में रोकने के लिए कहा. पुलिस की गाड़ी भी साथ में आ कर रुक गई. गाड़ी में से 2 पुलिस वाले बाहर निकले. उन में एक ठाटबाट वाला सीनियर इंस्पैक्टर और एक हवलदार था. दोनों ने राहुल को देखा और कहा, ‘नमस्ते, राहुल सर.’
‘‘कैसे हो, बहुत दिन बाद मिले हो,’’ फिर अमित का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘ये मेरे दोस्त हैं अमित, विदेश में बड़ी कंपनी में उच्च अधिकारी हैं.’’
‘नमस्ते,’ सीनियर इंस्पैक्टर ने अमित से कहा और फिर राहुल की तरफ मुखरित हो कर बोला, ‘‘सर, बेटे का एडमिशन आप के स्कूल में कराना है, सोचा, एक बार खुद ही आप से कह कर सुनिश्चित कर लूं कि आप ही उसे पढ़ाएंगे. आप ने मु?ो पढ़ालिखा कर यहां तक पहुंचा दिया है, तो मेरे बेटे को भी आप से सीखने का मौका मिले, इस से ज्यादा अच्छा और क्या हो सकता है.’’
‘‘अरे, तुम मु?ो यह कौल कर के कह देते,’’ राहुल ने कहा.
‘‘बिलकुल नहीं, ऐसा अनादर कैसे कर सकता हूं मैं. मैं तो कल आने वाला था आप से मिलने, पर आप आज ही दिख गए.’’
‘‘अच्छा, चलो यह भी सही ही हुआ.’’
कुछ देर घरबार की बात कर राहुल अमित के साथ वापस कार में बैठ गया.
अमित ने सब ध्यान से सुना और राहुल का इतना आदर देख कर थोड़ा चौंका भी.
राहुल के दोस्त की गली में जब अमित की लंबीचौड़ी व महंगी कार पहुंची तो लोगों की नजरें भी कार के साथसाथ चलने लगीं. अमित के चहरे पर अत्यंत खुशी के भाव उभरने लगे थे. कार राहुल के दोस्त के घर से बाहर निकली तो लोग और बच्चे ‘नमस्ते राहुल सर’ कहते हुए आनेजाने
लगे. अमित ने कार खड़ी की और राहुल के साथ उस के घर की तरफ बढ़ने लगा.
Writer- जीतेंद्र मोहन भटनागर
चमकी को फंसा लाने के बाद से जब बांके ने पीछे खुले हिस्से और आगे बरामदे के साथ 2 कमरों वाली इस झुग्गी में जब प्रवेश किया था तब सबकुछ कच्चा था और छत पर खपरैल था.
बाद में रेलवे ट्रैक के समीप होने का फायदा उठाते हुए और आसपास बनते फ्लैटों से चुराई गई सीमेंट और ईंटों से उस ने धीरेधीरे अपनी पक्की झुग्गी बना ली.
शराब पीने की बुरी लत के साथ, साथ में काम करने वाली महिला लेबर पर हमेशा बांके की बुरी नीयत रहती थी और वह हमेशा उन्हें किसी भी तरह फंसाने की कोशिश में लगा रहता था.
आजकल उस की नजर बिंदा पर थी. गरीब बिंदा का पति मर चुका था और एक साल के बच्चे को ले कर वह काम पर आती थी.
ब्रदी चूंकि बांके के चरित्र से अच्छी तरह वाकिफ था, इसलिए उस ने नई लेबर होने के चलते बिंदा को अपने साथ लगा लिया था, जिस के चलते बद्री से लड़झगड़ कर वह घर चला आया था.
आते समय उस ने रास्ते में पड़ने वाले शराब के ठेके पर बैठ कर खूब शराब पी…
चूंकि बिंदा के प्रति बहुत गंदे खयाल उस के दिमाग में उमड़घुमड़ रहे थे और शराब पूरी तरह असर कर चुकी थी, इसलिए जब महुआ उस के सामने पड़ी तो वह उसे देख कर बांके ने अपने होशहवास खो दिए.
यह तो महुआ की किस्मत अच्छी थी जो श्याम सुंदर उसे बुलाने आ गया, वरना पता नहीं महुआ का क्या होता.
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क्या अपनी इज्जत गंवाने के बाद वह भी फिरोजा की तरह खुदकुशी कर लेती या फिर पिता को मार डालती.
उसे अपनी मां चमकी से तो अपने बचाव की कोई उम्मीद नहीं थी और अब जब उसे अपने पिता की गंदी नीयत का पता चल गया है तो उसे जल्दी ही कोई फैसला लेना था.
एक घसीटे ही ऐसा है, जो उस के बारे में अच्छा सोचता?है, उसे चाहता भी है इसलिए उसे इस घर के माहौल से अपने को निकालना होगा.
दिनभर वह यही सब सोचती रही. 3 बजे जब मां आई तो वह टैलीविजन देख रही थी.
मां ने आते ही रोज की तरह पूछा, ‘‘क्या करती रही दिनभर?’’
उस का मन तो हुआ की पिता की आज वाली हरकत वह मां को विस्तार से बता दे पर वह जानती थी कि उस की मां उसी से कहेगी कि ‘‘तू क्यों उधड़े कपडों में उन के सामने गई?’’ तुझे खुद पिता से बच कर रहना चाहिए.’’
और अगर हिम्मत कर के वह, अपने पति बांके से ऐसी हरकत अपनी बच्ची से करने की वजह पूंछेगी तो सिवा पिटने के उसे कुछ भी हासिल नहीं होगा. इसलिए उस ने रोज वाला ही जवाब दिया, ‘‘बस घर के काम निबटाती रही और रात के भोजन की तैयारी कर के रख दी है.’’
आज, बिंदा पर डोरे डालने की अपनी कामयाबी पर खुश होने के चलते बांके का मूड अच्छा था और आज वह दारू पी कर नहीं आया था, बलिक ले कर आया था. साथ में पकापकाया मांस और रोटियां भी ले लाया था.
वह आते ही बोला, ‘‘आज तुम दोनों को खाना बनाने की फुरसत… लो थैला पकड़ो और खाना लगाओ सब मिल कर खाते हैं.’’
‘‘लेकिन मेरा पेट गड़बड़ है. मैं आज मांस नहीं खाऊंगी. मैं लौकी की सब्जी बना कर खाऊंगी,’’ महुआ के मुंह से ऐसा सुन कर बांके के मुंह से गाली निकलनी शुरू हो गई, बड़ी हो गई है तो इस के नखरे नहीं मिलते. कहती है कि मांस नहीं खाऊंगी. कितने मन से इस के लिए मैं मांस लाया था…’’ कहते हुए वह उठ कर महुआ को पीटने के लिए लपका तो चमकी उस के बचाओ के लिए, बीच में आ गई. बोली, उस के पेट में बहुत दर्द है. उस के हिस्से का रख देंगे वह कल खा लेगी… आप की बच्ची है.’’
‘कल’ शब्द सुन कर उसे याद आया कि कल से तो महुआ को उसे ठेकेदार के घर ले कर जाना है.
‘‘ठीक?है, इस समय मैं इसे छोड़ता हूं पर कल से इसे ठेकेदार के घर काम पर जाना है. कोई भी बहाना सवेरे मैं नहीं सुनूंगा… समझीं.’’
‘‘5,000 रुपए महीने पर उन्होंने इसे घर पर काम करने के लिए रख लिया है सवेरे इसे 9 बजे पहुंच कर ठेकेदारनी के कहे मुताबिक काम निबटाने हैं शाम 5 बजे तक इस की छुट्टी हो जाएगी. तुम इसे तैयार कर देना कल यह मेरे साथ ही काम पर जाएगी.’’
‘‘ठीक है, कल यह आप के साथ काम पर चली जाएगी और अपनी मालकिन को कोई शिकायत का मौका नहीं देगी,’’ चमकी ने कहा.
महुआ ने चौके में पहुंच कर अपने लिए खाना बनाया और 4 रोटियां घसीटा के लिए भी सेंक के रख लीं. अपने और घसीटे के लिए सिंकी रोटियां और सब्जी, प्याज, नमक, हरी मिर्च वगैरह ले कर उस के उन थैलों में उन्हें रख लिया जिन में घसीटा मटन और रोटी लाया था.
उस ने कमरे के बाहर से ही, बांके और चमकी को दारू पीते और मटन के साथ रोटियों तोड़ते मस्ती में देखा, तो धीरे से उस ने खाने की पोटली अपने साथ ले जाने वाले कपड़े के थैले में रख ली और अपने कमरे में आ कर लेट गई.
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महुआ को नींद तो आनी ही नहीं थी, उसे तो 2 बजे गुजरने वाली ट्रेन का इंतजार था. वह जाने क्याक्या सोचते हुए करवटें बदलती रही.
कई बार उस के मन ने उसे कई तरह से डराया, ‘कैसे रहेगी अनजान शहर में’, ‘घसीटा क्या जिंदगीभर साथ निभाएगा’, ‘इतने दिनों मांबाप के साथ रही है, क्या उन के बिना रह पाएगी?’
लेकिन उसे तो हमेशा के लिए इस घर से निकलना है. पिता पर उसे बिलकुल भी भरोसा नहीं रह गया है और मां ने भी उसे कितना प्यार दिया था. उसे भागना ही होगा. इतनी कमजोर हो कर वह ये सब क्यों सोच रही है.
बारबार घसीटा का साथ होना ही उस में हिम्मतभर रहा था. घसीटा ने ही उस के मन की सुन ली है.
घसीटा के शब्द उस के कानों में गूंजने लगे, ‘‘जब भी भागना हो तो रात का समय चुनना जब सब गहरी नींद में होते हैं. रात के 2 बजे जो ट्रेन रोज गुजरती है बस उसी समय तुम निकलना…
‘‘मैं चूंकि बाहरी बरामदे में ही सोता हूं, इसलिए मैं बाहर निकल आऊंगा और फिर हम भाग चलेंगे.’’
‘‘और अगर हम पकड़े गए तो? तब अचानक महुआ पूछ बैठी थी.’’
इस पर बांके बोला, ‘‘तब की तब देखी जाएगी. अपने पे भरोसा रखे.’’
इन्हीं सब बातों को याद करते हुए और दिल में बांके पर पूरा विश्वास करते हुए वह बिस्तरे से उठी. बहुत हौले से पिताजी के कमरे में झांका चमकी और बांके गहरी नींद में सो रहे थे.
दोनों चूंकि नशे में धुत्त थे इसलिए नींद भी गहरी भी. उस ने अपने दो जोड़ी कपड़े, उसी थैली में रख लिए जिस में खाने की पोटली रखी थी.
ठेकेदार के दिए गए 5,000 रुपयों को, उस ने पहली हुई चोली में खोंसा, फिरोजा का दिया हुआ बुरका पहन कर, रात के 2 बजे गुजरने वाली ट्रेन की आवाज के साथ ही वह धीरे से सांकल खोल कर झुग्गी से बाहर आ गई.
दरवाजे को धीरे से बंद कर के वह बांके के घर की तरफ बढ़ चली. बुरका पहन कर बहन जाने क्यों अपने को सुरक्षित महसूस कर रही थी. रहरह कर उसे अपनी सहेली फिरोजा का खयाल आ रहा था.
कुछ देर बाद महुआ घसीटे के साथ ऊपर रेलवे ट्रैक पर थी जहां कोई पैसेंजर ट्रेन हरे सिग्नल के इंतजार में मानो उन के लिए ही खड़ी थी. वे दोनों एक डब्बे में चढ़ गए. उन के चढ़ते ही ट्रेन एक दिशा में धीरे से आगे बढ़ गई.
उस डब्बे के गलियारे में ही दोनों, साथ लाई चादर बिछा कर बैठ गए. महुआ ने अपनी दोनों हथेलियों में, अपनी तरफ वाली घसीटा की भुजा को कस कर पकड़ लिया और उस का सिर अपनेसाथ ही उस के कंधे पर टिक गया.
ट्रेन ने अपनी पूरी रफ्तार पकड़ ली थी.
Writer- ब्रजेंद्र सिंह
निर्मल को पता था कि अगर वह हिम्मत कर के अपने पिता के सामने सुमन से शादी की बात छेड़ता तो उस के पिता का बदला हुआ स्वरूप क्या होगा. वे कभी नहीं मानते कि वे जाति के आधार पर रिश्ता ठुकरा रहे हैं. पर वह अपने मन की बात छिपा कर कुछ ऐसे बोलते, ‘निर्मल बेटे, मु?ो इस शादी से कोई एतराज नहीं है. आखिरकार लड़की तुम्हारी पसंद की है. उस में कई गुण होंगे. पर यह सोचो कि लोग क्या कहेंगे. सुधीर पांडे, करोड़ों का मालिक, शहर का सब से बड़ा उद्योगपति, वह अपने एकमात्र बेटे की शादी एक छोटे से दुकानदार की बेटी से करवा रहा है. जरूर दाल में कुछ काला है. लड़के ने लड़की के साथ कुछ गड़बड़ की होगी और इसी कारण मजबूरन यह शादी करनी पड़ रही है. निर्मल बेटे, तुम लोगों के मुख को बंद नहीं कर सकोगे. इस तरह की दर्जनों अफवाहें फैलेंगी. तुम्हारी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी, साथसाथ मेरे भी नाम और इज्जत के चिथड़े हो जाएंगे.’
सोचतेसोचते निर्मल को एक नया खयाल आया. ‘जरा धीरेधीरे चल मिस्टर’ उस के दिमाग ने उसे टोका. ‘तुम इतने आगे कैसे निकल गए? तुम्हें पक्का यकीन है कि सुमन तुम से शादी करना चाहेगी? तुम ने अभी तक उस से पूछा तक नहीं है और तुम चले हो उस के बारे में अपने पिता से बात करने. अगर तुम अपने पिता को किसी तरह मनवा ही लो और फिर सुमन तुम से शादी करने के लिए इनकार करे तो फिर तुम कहां के रहोगे?’ मन ही मन में निर्मल ने निर्णय लिया कि जब वह अगली बार सुमन से मिलेगा तो उस के सामने शादी का प्रस्ताव अवश्य रखेगा.
दो दिनों बाद निर्मल और सुमन फिर मिले. निर्मल डर रहा था कि कहीं सुमन बुरा मान कर उसे डांट न दे. डर के मारे वह हकलाने लगा.
‘‘क्या बात है निर्मल?’’ सुमन ने पूछा. ‘‘तुम ऐसे तो पहले कभी नहीं बात करते थे. लगता है तुम कुछ सोच रहे हो और बोल कुछ और रहे हो. सचसच बताओ तुम कहना क्या चाहते हो.’’
निर्मल ने अपनी पूरी हिम्मत इकट्ठी की और बोल ही दिया ‘‘सुमन मैं तुम से प्यार करता हूं और शादी करना चाहता हूं.’’
सुमन चौंकी पर थोड़ी देर चुप रही. वह कुछ सोच रही थी.
निर्मल को चिंता होने लगी. तब सुमन ने जवाब दिया. ‘‘मैं तुम्हारी पत्नी बनने से इनकार नहीं करूंगी. मु?ो इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं है. मैं तुम्हें काफी अच्छी तरह जानती हूं और तुम मु?ो भले आदमी लगते हो. पर तुम तो जानते हो कि मैं एक हिंदुस्तानी लड़की हूं. मेरे खयालात इतने आधुनिक नहीं हैं कि मैं अपनी मनमरजी से शादी के लिए हां कर दूं. मु?ो अपने मातापिता से बात कर के उन की आज्ञा लेनी होगी.’’
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‘‘मैं तुम्हारी बात सम?ाता हूं,’’ निर्मल ने कहा. दोनों के बीच कुछ देर और बात हुई और यह तय हो गया कि दोनों अपनेअपने मातापिता से बात करने के बाद ही मामला आगे बढ़ाएंगे.
निर्मल को यह पता नहीं था कि सुमन को अपने मातापिता को मनाने में कितनी दिक्कत होगी, पर उस को पक्का यकीन था कि उस के अपने सामने जो समस्या थी, उसे सुल?ाना तकरीबन असंभव था.
निर्मल को एक पूरा दिन लगा एक संभव योजना बनाने में, जिस से शायद सुमन से शादी का रास्ता खुल जाए.
उस दिन शाम को जब वह अपने मातापिता के साथ खाना खाने बैठा तो बातोंबातों में उस ने आकस्मिक स्वर में कहा, ‘‘हमारे यहां एक बहुत सुंदर रूसी लड़की है. उस का नाम मारिया है और वह तैराकी की कोच है. वैसे तो उस की उम्र 35 साल है पर देखने में 20-22 साल की लगती है. मैं उसे बहुत पसंद करता हूं और हम दोनों एकदूसरे से लंबीलंबी बात करते रहते हैं.’’
निर्मल ने देखा कि उस के पिता और उस की माता एकदूसरे से नजर मिला रहे थे. उस ने आगे कुछ और नहीं कहा और अपने खाना खाने में व्यस्त हो गया. उस के मातापिता भी चुप ही रहे. अगले दिन प्रशिक्षण के दौरान निर्मल सुमन से मिला.
‘‘मैं तुम्हारे लिए अच्छी खबर लाई हूं,’’ सुमन ने उस से कहा. ‘‘मैं ने अपने मातापिता से तुम्हारे बारे में बातचीत की. शुरूशुरू में तो वे कुछ हैरान थे और शायद नाखुश भी कि मैं ने अपना वर स्वयं चुन लिया था. काफी बहस के बाद मैं ने उन को यकीन दिला दिया कि मामला कुछ गड़बड़ी का नहीं है और उन को तुम्हारे मातापिता से मिलने को राजी किया. तुम कहां तक पहुंचे हो?’’
‘‘मैं कोशिश कर रहा हूं,’’ निर्मल ने जवाब दिया, ‘‘मु?ो थोड़ा और समय चाहिए. पर तुम चिंता मत करो, मु?ो पक्का विश्वास है कि मेरे मातापिता तुम्हें बहू के रूप में स्वीकार कर लेंगे.’’
उस दिन शाम को निर्मल ने अपनी योजना के अनुसार अगला कदम उठाया. खाना खाते हुए उस ने कहा, ‘‘आज उस रूसी लड़की मारिया और मेरी काफी लंबीचौड़ी और गहराई में बातचीत हुई. हम अपने भविष्य के बारे में काफी देर तक विवेचन करते रहे. पिताजी, मैं उसे जल्दी ही यहां बुलाना चाहता हूं ताकि वह आप लोगों से मिले.’’
‘‘निर्मल,’’ उस के पिता ने गुस्से भरी आवाज में उसे टोका. ‘‘मैं आशा करता हूं कि तुम इस लड़की से शादी करने की नहीं सोच रहे हो, क्योंकि अगर तुम्हारा ऐसा इरादा है तो मैं इसे कभी मंजूरी नहीं दूंगा. मेरे खानदान का लड़का एक विदेशी लड़की से शादी करे, वह भी जो शायद ईसाई धर्म की है और मेरे लड़के से अधिक उम्र की है. मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगा. लोग मेरा हंसीमजाक उड़ाएंगे. मैं तुम्हें उस लड़की से फिर मिलने से मना करता हूं.’’
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निर्मल के दिल में खुशी हुई. उसे लग रहा था कि उस की योजना सफलता के रास्ते पर थी. पर उस ने मुख ऐसे बनाया जैसे वह कच्चा करेला खा रहा था. खाने को बीच में छोड़ कर वह खड़ा हो गया. ‘‘मैं और नहीं खाऊंगा,’’ कहते हुए वह अपने कमरे की ओर चला.
‘‘निर्मल बेटे…’’ उस की मां ने करुण स्वर में उसे रोकने की कोशिश की, पर निर्मल ने उन की ओर देखा तक नहीं.
‘‘जाने दो,’’ उस के पिता ने कहा. ‘‘अगर आज रात भूखा रहेगा तो शायद उस के दिमाग में कुछ अक्ल आएगी.’’
उन चारों ने भी अभी और आने वाले दोस्तों के बारे में कुछ नहीं बताया. वे घर के बाकी सदस्यों का अभिवादन कर आराम से ड्राइंगरूम में बैठ गए. शिवानी को चारों ने गुड न्यूज सुनाने की बधाई दी. शिवानी का मन फिर उदास हो गया. पल भर के लिए चारों को देख कर उस अनहोनी को भूल गई थी. अजय भी आ गया था.
इतने में रेखा, अनिता, सुमन, मंजू, सोनिया, रीता, संजय, अनिल और कुणाल भी आ गए. तब शिवानी को समझ आया अजय ने उस का मन ठीक करने के लिए उस के दोस्तों को इन्वाइट किया है. सब को सामने देख कर शिवानी को उस रात की याद आ गई जब इन्हीं में से किसी ने उस के साथ विश्वासघात किया था.
उस की उड़ी रंगत को सब ने प्रैगनैंसी का कारण समझा. सब मस्ती के मूड में थे. हंसीमजाक शुरू हो गया था. लता और उमा मेड माया के साथ मिल कर सब को वैलकम ड्रिंक्स और स्नैक्स सर्व कर रही थीं. गौतम और विनय भी आ गए. सब ने उन का अभिवादन किया. फिर सब को थोड़ी आजादी देते हुए गौतम, विनय, लता और उमा सब अंदर चले गए. अजय सब से हिलमिल चुका था.
शिवानी के दिल में एक बवंडर सा उठ रहा था. वह रमन, कुणाल, संजय और अनिल का चेहरा बारबार देखती, अंदाजा लगाती कहीं संजय तो नहीं, नहींनहीं संजय तो उस का बालसखा है, उस ने कभी कोई हरकत नहीं की थी. अनिल या फिर कुणाल या रमन नहीं, रमन तो मैरिड है, अनिल, कुणाल तो बहुत ही मर्यादा में रहने वाले दोस्त हैं. बचपन से घर आतेजाते रहे हैं, फिर इन में से कौन था उस रात. सोचतेसोचते शिवानी को सिर की नसें फटती महसूस हो रही थीं.
उसे चैन नहीं आ रहा था. उस का मन कर रहा था चीखचीख कर पूछे इन लड़कों से कौन था उस रात… इन में से किस का अंश पल रहा है उस की कोख में, उसे तो कुछ पता ही नहीं है.
सब खाना खा कर वाहवाह कर ही रहे थे कि शिवानी अपनी मनोदशा को नियंत्रण में रखने की कोशिश करते हुए भी निढाल होती चली गई, उठने की कोशिश की पर बेहोश होती चली गई. पास बैठी रेखा ने ही उसे फौरन संभाला. अजय को आवाज दी, सब बहुत परेशान हो गए. पल भर में ही माहौल बदल गया. लता ने कहा, ‘‘फौरन डाक्टर मनाली को बुलाओ अजय.’’
अजय फोन करने के बाद शिवानी को उठा कर बैडरूम तक ले गया. सब परेशान चुपचाप खड़े थे. संजय भी चुपचाप खड़ा था. उस रात के बाद वह शिवानी से आज ही मिला था. उसे यह नहीं पता था कि शिवानी के गर्भ में उस की संतान है. वह अपनी हरकत के लिए जरा भी शर्मिंदा नहीं था.
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डाक्टर मनाली ने आ कर शिवानी का चैकअप किया, फिर कहा, ‘‘उमा, शिवानी का ब्लडप्रैशर हाई है. क्या यह किसी टैंशन में है?’’
अजय ने कहा, ‘‘नहीं तो. सब हंसबोल रहे थे पर अचानक पता नहीं क्या हुआ. कैसे आजकल बहुत सुस्त रहती है.’’
दवाइयां और कुछ निर्देश दे कर डाक्टर चली गईं. सब दोस्तों ने भी फिर मिलते हैं, कहते हुए विदा ली.
घर के सदस्य शिवानी की हालत पर दुखी थे. उमा कह रही थीं, ‘‘क्या हो गया इसे. किस चिंता में रहती है… पता नहीं क्या सोचती रहती है.’’
लता ने कहा, ‘‘आप परेशान न हों, आराम करेगी तो ठीक हो जाएगी.’’
शिवानी ने आंखें खोलीं, पर बोली कुछ नहीं. एक उदास सी नजर सब के चेहरे पर डाली. मन ही मन और दुखी हुई. सब से सच छिपाने का अपराधबोध और हावी हो गया. आंखों की कोरों से आंसू बह चले तो उमा जैसे तड़प उठीं, ‘‘न बेटा, दुखी मत हो. ऐसी हालत में तबीयत कभी ठीक, कभी खराब चलती रहती है. कोई चिंता न करो. बस, खुश रहो.’’
शिवानी खुद को संभाल कर मुसकराई तो सब के चेहरे पर भी मुसकान उभरी.
रात को सोने के समय अजय शिवानी के सिर को सहलाते हुए उस का मन बहलाने के लिए उस के दोस्तों की बातें करने लगा तो वह कहने लगी, ‘‘अजय, मुझ से बस अपनी बात करो, बस अपनी. किसी और की नहीं.’’
‘‘अच्छा ठीक है, पर शिवानी मुझे सचसच बताओ कि तुम्हें कुछ टैंशन है क्या?’’
‘‘नहीं अजय, बस बहुत सुस्त रहती है तबीयत आजकल, पर तुम चिंता न करो. मैं अपना ध्यान रखूंगी,’’ कहते हुए शिवानी ने अपना सिर अजय के कंधे से सटा लिया.
अजय शिवानी की उदासी का कारण खराब तबीयत समझ कर शांत हो गया.
जैसेजैसे समय बीत रहा था, घर में तैयारियों की बात होती रहती थी. रमेश और सुधा भी अकसर उस से मिलने आते रहते थे. शिवानी अकेले में सोचती, ‘यह कैसी गर्भावस्था है, कैसे इस बच्चे को पालूंगी, मुझे तो जरा भी ममता का एहसास नहीं हो रहा.’
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उस की कितनी ही रातें रोते बीत रही थीं, कोई कितना रो सकता है, इस का अनुभव उसे स्वयं न था.
देखतेहीदेखते उस के हौस्पिटल जाने का दिन आ गया. गौतम ने रमेश और सुधा को भी सूचना दे दी. गर्भावस्था का पूरा समय शिवानी ने जिस तनाव में बिताया था और पूरे परिवार का जो स्नेह उसे मिलता आया था, वह सब शिवानी को याद आ रहा था. शारीरिक और मानसिक, तीव्र पीड़ा के पलों को झेलते हुए उस ने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया. लता तो खुशी के मारे रो ही पड़ी. सब ने एकदूसरे को गले लगा कर बधाई दी. सुधा ने फौरन कुछ पैसे अजय को देते हुए कहा, ‘‘हमारी तरफ से मिठाई लानी है, बेटा.’’
अजय, ‘‘अच्छा, लाता हूं,’’ कह कर मुसकराते हुए चला गया. नवजात शिशु सब के आकर्षण का केंद्र बन गया था.’’
उमा ने बच्चे को देखते हुए कहा, ‘‘अरे, यह तो बिलकुल अजय पर गया है.’’
लता ने कहा, ‘‘नहीं, शिवानी की झलक दिखाई देती है.’’
गौतम हंसे, ‘‘मुझे तो यह दादी पर लग रहा है.’’
सब हंस रहे थे. शिवानी के मन में अब तक बच्चे को देखने का जरा भी उत्साह नहीं था. वह चुपचाप निढाल पड़ी थी. अजय मिठाई ले आया था. सब एकदूसरे का मुंह मीठा करवा रहे थे. उमा ने डाक्टर, नर्स और आसपास के लोगों को भी मिठाई खिलाई. शिवानी के दिल पर पत्थर सी चोट लग रही थी.
शिवानी के चेहरे पर नजर डालते हुए अजय ने कहा, ‘‘ठीक हो न?’’
‘‘हां.’’
‘‘अब सारी तबीयत ठीक हो जानी चाहिए. अब कोई उदासी नहीं चलेगी, समझीं,’’ हंसते हुए अजय ने कहा तो लता भी बोलीं, ‘‘हां, अब सारी तबीयत ठीक हो जानी चाहिए, पहले की तरह खुश रहना, बेटा.’’
शिवानी फीकी सी हंसी हंस दी. वह यही सोच रही थी कि ये सब इस बच्चे की इतनी खुशियां मना रहे हैं जिस के पिता का भी मुझे नहीं पता, कौन है. यह बच्चा तो मुझे हमेशा उस धोखे की याद दिलाता रहेगा जो मैं ने अपने परिवार को दिया है. कैसे पालूंगी इसे…
तभी बाहर अजीब सा शोर सुनाई दिया, तो सभी बाहर चल दिए.
शिवानी को अभी बहुत कमजोरी थी. वह चुपचाप आंखें बंद कर लेटी थी. बराबर ही पालने में बच्चा लेटा था. थोड़ी देर बाद एक नर्स अंदर आई तो शिवानी ने पूछा, ‘‘क्या हुआ है?’’
‘‘कल से एक लड़की दाखिल थी. रात ही उस ने बेटे को जन्म दिया था. अब वह लड़की बच्चे को छोड़ कर गायब है. उस के दिए पते पर, फोन पर सब देख लिया, सब फर्जी जानकारी थी. पता नहीं कौन थी. बच्चा पैदा कर छोड़ कर गायब हो गई. अभी एक बेऔलाद पतिपत्नी यहां किसी को देखने आए थे. सारी बात सुन कर उस बच्चे को गोद लेने के लिए तैयार हैं.’’
‘‘एक सगी मां बच्चे को पैदा करते ही छोड़ कर चली गई, अब 2 पराए लोग उस
बच्चे के लिए इतने उतावले हैं कि पूछो मत. दोनों इतने खुश हैं, मैडम कि शादी के 10 साल बाद उन के जीवन में एक नन्हीं खुशी आ ही गई. उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि वह किस का होगा, दोनों बस उस बच्चे को गोद लेने के लिए छटपटा रहे हैं. पता नहीं कौन थी क्या मजबूरी थी.’’
शिवानी सांस रोके नर्स की बात सुन रही थी. नर्स चली गई तो जैसे शिवानी की आंखें खुलीं. वह जैसे होश में आई. एक दंपती किसी गैर के बच्चे के लिए तरस रहे हैं और वह अपने बच्चे से पीठ फेरे लेटी है.
इस का पिता जो भी हो, मां तो वही है न. उस का भी तो अंश है बच्चा. मां के हिस्से की ममता पर तो इस का हक है ही न. और मां का ही क्यों, हर रिश्ते के स्नेह का पात्र बनने वाला है यह. दादादादी, नानानानी, अजय, सब की खुशियों का कारण बना है यह. फिर वह मां की ममता से ही क्यों दूर रहे और इस बच्चे का कुसूर भी तो नहीं है कोई… उस अजनबी दंपती के बारे में, अपने बच्चे के बारे में सोचतेसोचते पिछले कई महीनों का उस का मानसिक संताप दूर होता चला गया.
वह धीरे से उठी. बच्चे का चेहरा देखते हुए झुक कर उसे गोद में उठाया. नर्ममुलायम सा स्पर्श कई महीनों से जलतेतपते तनमन को सहलाता चला गया.
Writer- Madhu Sharma Katiha
कल रात औफ़िस से ‘वर्क फ़्रौम होम’ का मेल मिला तो खुशी से मेरा दिल यूं बाग-बाग हो गया, मानो सुबह दफ़्तर जाते हुए मैट्रो में चढ़ते ही खाली सीट मिल गयी हो. एक तो पिछले कुछ दिनों से धर्मपत्नी, दिव्या का कोरोना पर कर्णभेदी भाषण और फिर हाल-चाल पूछने के बहाने मेरे औफ़िस पहुंचने से पहले ही लगातार कौल करने का नया ड्रामा ! उस पर आलम यह कि मुझे हल्की सी खांसी हुई नहीं कि क्वारंटिन का हवाला दे मेरी सांसों को अटका देना ! मेरी हालत किसी बौलीवुड हीरोइन की ज़ीरो फ़िगर से भी पतली हो गयी थी. वैसे वर्क फ़्रौम होम मेरे लिए भी उस गुलाबजामुन की तरह था, जिसे किसी दूसरे की प्लेट में देखकर मैं हमेशा लार टपकाता रहता था. इस और्डर से मेरे भीतर की प्रसन्नता उछल-उछल कर बाहर आ रही थी.
सुबह की बैड-टी के बाद आज के काम पर विचार कर ही रहा था कि “प्लीज़ आज ब्रैकफ़ास्ट आप बनाओ न!” कहते हुए दिव्या ने मधुर मुस्कान के साथ एक फ्लाइंग किस मेरी ओर उछाल दिया. यह बात अलग है कि मुझे वह चुम्मा ज़हर बुझे तीर सा लगा और घनी पीड़ा देता हुआ सीने में चुभ गया. अच्छा बहाना कि रोज़ एक वर्षीय बेटे नोनू की नींद टूट जाने के डर से पांच मिनट में नहाकर आ जाती हूं, आज फुल बौडी एक्सफोलिएशन करते हुए नहाऊंगी तो कम से कम आधा घंटा तो लग ही जायेगा.
औफ़िस में बौस के आगे सिर झुकाने की आदत का लाभ हुआ और मैं बिना किसी ना-नुकुर के नाश्ता बनाने को राज़ी हो गया. मैंने औफ़िस में हर काम शोर्टकट में निपटा डालने वाला अपना दिमाग यहां भी लगाया और कम से कम परिश्रम और समय में तैयार रेसिपीज़ खोजने के लिए इंटरनैट खंगालना शुरू कर दिया. मेरी मेहनत रंग ले ही आयी और पोहा बनाने की विधि देख मेरी आंखें ऐसे चमक उठीं जैसे किसी छात्र के प्रश्न-पत्र में वही प्रश्न आये हों, जिसकी चिट बनाते हुए उसने पूरी रात नैनों में काट दी हो.
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नाश्ते के बाद लैपटौप लेकर दूसरे कमरे में बैठा ही था कि मेरे बौस का फ़ोन आ गया. आवाज़ सुन दिव्या उस कमरे में चली आई और कुछ देर वहां ठहरने के बाद माथे पर त्योरियां चढ़ा मुझे घूरती हुई वापिस निकल ली. ढेर सारा काम देकर बौस ने फ़ोन काट दिया. मुझे मदद के लिए अपने असिस्टेंट को फ़ोन करना था. बेग़म डिस्टर्ब न हों इसलिए मैंने दरवाज़े को आधा बंद कर दिया, लेकिन वह भी अपने कान मेरे कमरे में लगाये थी. फ़ौरन कमरे का दरवाज़ा खोल भीतर झांकती हुई बोली, “काम कर लो न ! क्यों गप्पें मारकर अपना समय ख़राब कर रहे हो?”
“अरे, काम की ही बात कर रहा हूं.” मोबाइल को अपने मुंह से दूर करते हुए मैं बोला.
तिरछी नज़रों से मेरी और देखते हुए अपनी हथेली मुंह पर रख खी-खी करती हुई वह कमरे से चली गयी. उसकी भाव-भंगिमाएं कह रही थीं कि ‘आज पता लगा आप औफ़िस में भी कुछ काम नहीं करते !’
फ़ोन पर असिस्टेंट को काम समझाते हुए अपना दिमाग आधा खाली करवाने के बाद मैं लैपटौप में खो गया. दोपहर हुई और पेट में चूहे मटरगश्ती करने लगे. दिव्या को पुकारा तो वह गोदी में नोनू को लिए अन्दर घुसी. न जाने क्यों नोनू मुझे देख ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा. मैंने पुचकारते हुए अपने हाथ उसकी और बढ़ाये तो दिव्या बोल उठी, “आपको इस समय घर पर देख नोनू डर गया है.”
“क्यों सन्डे को भी तो होता हूं घर पर.”
“इस समय आप कुछ ज़्यादा ही टैंशन में हो, शक्ल तो बिल्कुल ऐसी लग रही है जैसे डेली सोप की किसी संस्कारी बहू की सास के चिल्लाने पर हो जाती है. ऐसा करो, या तो लंच आप तैयार करो या फिर मैं जब तक खाना बनाती हूं आप नोनू के खिलौनों में से किसी कार्टून करैक्टर का मास्क लेकर लगा लो. तभी खुश होकर खेलेगा यह आपके साथ !”
मरता क्या न करता ! दौड़कर बैडरूम में गया और दरवाज़े के पीछे लगे खूंटों से शिनचैन का मास्क उतराकर चेहरे पर लगा लिया.
खाना खाकर जितनी देर दिव्या किचन समेटती रही मैं मास्क पहनकर शिनचैन की आवाज़ में नोनू को हंसाता रहा. नोनू को मैंने अपने असली चेहरे की ओर इतने अपनेपन से ताकते हुए कभी नहीं देखा था. उसकी खिलखिलाहट देख जी चाह रहा था कि अब से मैं शिनचैनी पापा ही बनकर रहूं.
घड़ी की सुई तीन पर आने ही वाली थी. याद आया कि मैनेजर ने वीडियो-कौनफ्रैंस रखी थी, जिसमें मुझे अपनी प्रेज़ेन्टेशन दिखानी थी. किचन में जाकर नोनू को दिव्या की गोद में दे मैं हांफते हुए कमरे में आ गया और लैपटौप खोल मीटिंग के लिए लौग-इन कर लिया. मैनेजर और बाकी दो साथी पहले ही आ चुके थे. मेरे जौइन करते ही सब ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे. ‘यह औफ़िस की मीटिंग है या लौफ्टर क्लब की?’ सोचकर सिर खुजलाते हुए हंसी के इस सैशन में मैं उनका साथ देने ही वाला था कि मैनेजर बोल पड़ा, “राहुल, बाज़ार से मास्क खरीद लाते. वैसे घर में रहते हुए मास्क लगाना इतना ज़रूरी भी नहीं कि तुम शिनचैन का मास्क लगाकर बैठ गये!” सब लोगों का मुझ पर हंसना जारी था. पूरी मीटिंग में मैं खिसियानी सूरत लेकर बैठा रहा.
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मीटिंग ख़त्म होने पर आते-जाते बैडरूम में झांक बैड को ललचाई दृष्टि से देखता रहा, लेकिन मजाल कि दो घड़ी भी चैन से लेटने को मिले हों.
रात को सोते हुए जहां रोज़ अगले दिन की प्रेज़ेन्टेशन के विषय में सोचा करता था, आज सोच रहा हूं कि कल नाश्ते में क्या बनाऊंगा? यह वर्क फ़्रौम होम का लड्डू भी शादी जैसा ही है, जिसने खाया वह भी पछताया और नहीं खाने वाले को इसने ख़ूब तरसाया !
सरकार ने 21 दिन का लॉकडाउन घोषित किया है. ऐसे में स्कूलकॉलेज, ऑफिस, मॉल, मेट्रो, बस, गाड़ी सब कुछ बंद है. बच्चों के पास होमवर्क नहीं. जो थे वे भी उन्होंने दोचार दिनों में निपटा लिए . अब उन का पूरा दिन घर में खेलते, टीवी देखते, खाते, सोते और होहल्ला करते बीतने लगा है . जाहिर है मेरा काम बहुत बढ़ गया है .
इधर पति महोदय सारा दिन लैपटॉप ले कर बैठे रहते हैं. उन के पास जाओ और कोई काम बताओ तो बस यही नारा उन की जुबान पर रहता है,” देखती नहीं हो मैं वर्क फ्रॉम होम कर रहा हूं . कितना काम है मेरे पास. प्लीज़ डिस्टर्ब मत करो मुझे. कितने सारे ईमेल करने है, क्लाइंटस से बातें करनी है, रिपोर्ट बनानी है, एक नये प्रोजेक्ट पर भी काम कर रहा हूं और तुम हो कि घर के काम का बोझ भी मेरे ऊपर डालना चाहती हो.”
मुझे पति की बातों में दम लगता. दोचार दिन मैं ने उन्हें बिल्कुल भी डिस्टर्ब नहीं किया. मैं चाहती थी कि वे अच्छे से अपने ऑफिस का काम निपटाए. आखिर रोज ऑफिस में पूरे दिन यानी करीब 10 घंटे काम करते हैं तो घर में भी 8 -10 घंटे का काम तो करना ही पड़ेगा.
अब पति महोदय अपने कमरे में बंद रहने लगे. केवल दोपहर में बाहर आ कर खाना खा जाते. इधर मै पूरे दिन घर के घर के कामों ओर बच्चों के झगड़े निपटाने में व्यस्त हो गई .
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बच्चे हर दोतीन घंटे पर खाने की डिमांड करते, पूरे दिन घर गंदा करते और मैं पूरा दिन किचन और घर के काम संभालती रह जाती. थोड़ा वक्त निकाल कर अपना पसंदीदा सीरियल देखने को सोचती तो बच्चे रिमोट ले कर चैनल बदल देते. बड़ा बेटा यानी हर्ष कहता, ” क्या ममा बोरिंग सीरियल देख रही हो. हमें गाना सुनना है और फिर गाना बजा कर दोनों बच्चे बिस्तर पर कूदते हुए डांस करने लगते . तब तक परी यानी छोटी बिटिया रिमोट ले कर कार्टून लगा लेती .
इस तरह शुरुआती दिन मेरे लिए मुश्किल भरे रहे. उस दिन दोपहर में 2 बजे के करीब परी आ कर मुझ से बोली,” पापा लैपटॉप पर जो इंग्लिश मूवी देख रहे हैं न वह मुझे भी देखनी है.”
” पापा मूवी नहीं देख रहे बेटा ऑफिस का काम कर रहे हैं. “मैं ने उस की बात सुधारनी चाही तो वह भड़क उठी, “क्या ममा मुझे बुद्धू समझा है? पापा मूवी ही देख रहे हैं और कल भी वे इस समय मूवी ही देख रहे थे. कल कोई हिन्दी मूवी थी मगर आज तो धांसू मूवी है. ”
चुप कर, बेटी के मुंह से ऐसी बात सुन कर मैं सकते में आ गई थी. कहां मैं यह सोच कर पति के कमरे में भी नहीं जाती थी कि वे डिस्टर्ब ना हो जाएं और कहां वे मुझे बेवकूफ बना कर खुद मूवी के मजे ले रहे हैं .
मैं उन के कमरे की तरफ बढ़ गई इधर परी पीछे से लगातार बोल रही थी,
” मैं पापा की पूरी रूटीन जानती हूं ममा. पापा सुबह 1 घंटे काम करते हैं फिर 10 से 12 बजे तक सोते हैं. दोपहर 12 से 3 मूवी देखते हैं और 3 से 5 यानी 2 घंटे फिर से काम करते हैं . बाकी बीचबीच में दोस्तों से गप्पे भी मारते हैं.”
” बेटा वे गप्पे नहीं मारते बल्कि क्लाइंट्स से बातें करते हैं.”
अब तक हर्ष भी आ गया था. वह हंसता हुआ बहन की बात का समर्थन करने लगा,” अरे मम्मी पापा ने आप को बुद्धू बनाया है और आप बन गए. कोई क्लाइंट वाइंट से नहीं दोस्तों से बातें करते हैं वह भी चटपटी बातें.”
“…और जानती हो मम्मी यह सब बातें आप से न बताने के लिए उस दिन पापा ने मुझे रिश्वत भी दी जब मैं ने चुपके से उन के कमरे में पहुंच कर उन की चोरी पकड़ ली थी .” परी ने इठलाते हुए कहा.
अब तो मेरे होश फाख्ता उड़ गए थे. मन में झंझावात चल रहा था. तो क्या मिस्टर घर के कामों से बचने और मस्ती करने के लिए ऑफिस के काम का बहाना बना रहे हैं. मैं ने खुद को समझाया, ऐसा नहीं हो सकता. पहले अपनी आंखों से सब कुछ देख लूं फिर यदि सच निकला तो उन के ऊपर बम फोड़ दूंगी.
उस दिन पूरे समय मैं ने उन की जासूसी की. सुबह नाश्ता चाय ले कर वे अपने कमरे में चले गए. मुश्किल से आधाएक घंटा काम कर बिस्तर पर लुढ़क गए. उन्हें सोता देख में अपना आपा खो बैठी और पूरा एक गिलास पानी भर कर उन के ऊपर उड़ेल दिया.
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वे सकपका कर उठ बैठे और हड़बड़ाते हुए फाइलें संभालते हुए बोले,” अरे मैं सो कैसे गया? लगता है तबीयत ठीक नहीं है. नेहा जरा चाय बना कर ला दो.”
” जरूर अभी लाती हूं. आप काम करने बैठो परी के हाथ से भिजवाती हूं.” कह कर मैं बाहर आ गई. चाय भी भेज दी. इस के बाद कुछ देर तक वे काम करते रहे.
दोपहर में खाना खा कर वे फिर अपने कमरे में घुस गए. कुछ देर बाद मैं ने अंदर झांका तो वाकई वे लैपटॉप पर कोई फिल्म देख रहे थे और मोबाइल पर किसी से हंस कर बातें भी कर रहे थे.
मेरा पारा चढ़ गया मगर खुद को कंट्रोल करते हुए मैं उन्हें मजा चखाने का प्लान बनाने लगी.
अगले दिन सुबह ही बाथरूम से निकलते समय मैं ने गिरने का बहाना किया और जोर से चिल्ला पड़ी,” हाय मैं मर गई. पैर टूट गया मेरा. हाय सुनते हो ….”
मेरे चिल्लाने की आवाजें सुन कर पति और बच्चे दौड़े आए. घुटने के नीचे और पंजे के ऊपर वाले हिस्से को हाथों से ढकते हुए मैं चिल्ला रही थी,” हाय गिरते समय पैर उलट गया मेरा. बहुत दर्द हो रहा है. कहीं हड्डियां न टूट गई हो.”
पति महोदय ने जल्दी से मुझे गोद में उठाया और बिस्तर पर लिटा दिया. वे बहुत फ़िक्रमंद नजर आ रहे थे. जल्दी से मूव ले कर आए और मेरे पैरों में लगाने लगे. बर्फ से सिकाई भी की. डॉक्टर को बुलाने की बात कहने लगे तो मैं ने यह कह कर रोक दिया कि सिकाई से थोड़ा आराम मिल रहा है. पति महोदय जितने भी घरेलू नुस्खे जानते थे वह सब आजमा रहे थे.
तब तक बच्चे भूखभूख कहने लगे तो मैं ने पति महोदय को लपेटे में लिया,” . मुझ से पैर जरा भी हिलाया नहीं जा रहा. आज तुम ऑफिस का काम बाद में कर लेना. पहले सब के लिए नाश्ता बना लो और बच्चों को खिला दो. उन्हें नहला भी देना और फिर उन पर नजर भी रखना. बहुत शैतानी करते हैं. घर में झाड़ूपोछा भी लगा देना. इन दिनों घर की सफाई होनी बहुत जरूरी है न और समय मिले तो कपड़े भी धो कर सुखा देना. मेरी उठने की हिम्मत नहीं हो रही है.
पति महोदय का चेहरा बन गया था . फिर भी मुझे लेटने को कह कर वे किचन में चले गए और काम में जुट गए.
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मुझे बहुत हंसी आ रही थी. परी ने मुझे हंसते हुए देख लिया था बोली,” आप नाटक कर रहे हो ना ममा ”
”हां बेटा जरा पापा को मजा चखा लूं . यह ले तेरा रिश्वत. पापा से कुछ न कहना. ”
मैं ने परी को 2 डेयरी मिल्क दिए और कंबल ओढ़ कर सो गई.
ठाणे के विधायक दिवाकर की कार में ड्राइवर के अलावा पिछली सीट पर दिवाकर उन की पत्नी मालिनी थीं. पीछे वाली कार में उन के दोनों युवा बच्चे पर्व और सुरभि और दिवाकर का सहायक विकास थे. आज दिवाकर को एक स्कूल का उद्घाटन करने जाना था.
दिवाकर का अपने क्षेत्र में बड़ा नाम था. पर्व और सुरभि अकसर उन के साथ ऐसे उद्घाटनों में जा कर बोर होते थे, इसलिए बहुत कम ही जाते थे. पर कारमेल स्कूल की काफी चर्चा हो रही थी, काफी बड़ा स्कूल बना था, सो आज फिर दोनों बच्चे आ ही गए. वैसे, उद्घाटन तो किसी न किसी जगह का दिवाकर करते ही रहते थे. पर स्कूल का उद्घाटन पहली बार करने गए थे.
विकास ने भाषण तैयार कर लिया था. मीडिया थी ही वहां. मालिनी भी उन के साथ कम ही आती थी, पर आज बच्चे उसे भी जबरदस्ती ले आए थे. वैसे भी स्कूल की प्रबंध कमेटी ने दिवाकर को सपरिवार आने के लिए बारबार आग्रह किया था. विकास का भी यही कहना था ‘सर, ऐसे संपर्क बढ़ेंगे तो पार्टी के लिए ठीक रहेगा. टीचर्स होंगे, अभिभावक होंगे, आप का सपरिवार जाना काफी प्रभाव डालेगा.’
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कार से उतरते ही दिवाकर और बाकी सब का स्वागत जोरशोर से हुआ. स्कूल की पिं्रसिपल विभा पारिख, मैनेजर सुदीप राठी और प्रबंधन समिति के अन्य सदस्य सब का स्वागत करते हुए उन्हें गेट पर लगे लाल रिबन तक ले गए. दिवाकर ने उसे काटा तो तालियों की आवाज से एक उत्साहपूर्ण माहौल बन गया. दिवाकर स्टेज पर चले गए. दर्शकों की पंक्ति में सब से आगे रखे गए सोफे पर मालिनी विकास और बच्चों के साथ बैठ गई.
विभा पारिख ने दिवाकर को सपरिवार आने के लिए धन्यवाद देते हुए एक बुके दे कर उन का अभिनंदन किया. फिर उन्होंने अपने स्कूल के बारे में काफीकुछ बताया. अभिभावकगण बड़ी संख्या में थे. स्कूल की बिल्ंिडग वाकई बहुत शानदार थी. कैमरों की लाइट चमकती रही. दिवाकर से भी दो शब्द बोलने का आग्रह किया गया.
दिवाकर माइक पर खड़े हुए. शिक्षा के महत्त्व शिक्षा के विकास, नए बने स्कूल की तारीफ कर के भाषण खत्म कर ही रहे थे कि एक मीडियाकर्मी ने पूछ लिया, ‘‘सर, आप ने शिक्षा के संदर्भ में बहुत अच्छी बातें कहीं, आप प्लीज अपनी शिक्षा के बारे में भी आज बताना पसंद करेंगे?’’
शर्मिंदगी का एक साया दिवाकर के चेहरे पर आ कर लहराया. उन की नजरें मालिनी और अपने बच्चों से मिलीं तो उन की आंखों में भी अपने लिए शर्मिंदगी सी दिखी. नपेतुले, सपाट शब्दों में उन्होंने कहा, ‘‘अपने बारे में फिर कभी बात करूंगा, आज इस नए स्कूल के लिए, इस के सुनहरे भविष्य के लिए मैं शुभकामनाएं देता हूं. बच्चे यहां ज्ञान अर्जित करें, सफलता पाएं.’’
तालियों की गड़गड़ाहट से सभा समाप्त हुई पर शर्मिंदगी का जो एक कांटा आज दिवाकर के गले में अटका था, लौटते समय कुछ बोल ही नहीं पाए, चुप ही रहे. मालिनी को घर छोड़ा और विकास के साथ अपने औफिस निकल गए. विकास दिवाकर के साथ सालों से काम कर रहा था. दोनों के बीच आत्मीय संबंध थे. दिवाकर के तनाव का पूरा अंदाजा विकास को था. वह सम झ रहा था कि अपनी शिक्षा पर उसे सवाल दिवाकर को शर्मिंदा कर गए हैं. पूरे रास्ते दिवाकर गंभीर विचारों में डूबे रहे, विकास भी चुप ही रहा.
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औफिस पहुंचते ही विकास ने उन के लिए जब कौफी मंगवाई इतनी देर में वे पहली बार हलके से मुसकराए. कहा, ‘‘तुम्हें सब पता है, मु झे कब क्या चाहिए,’’ विकास भी हंस दिया, ‘‘चलो सर, आप ने कम से कम कुछ बोला तो. आप इतने परेशान न हों. खोदखोद कर सवाल पूछना मीडिया का काम ही है. और यह पहली बार तो हुआ नहीं है. पर आज आप इतने सीरियस क्यों हो गए? एक ठंडी सांस ली दिवाकर ने. ‘‘बहुत कुछ सोच रहा था, विकास मु झे तुम्हारी हैल्प चाहिए.’’
‘‘हुक्म दीजिए सर.’’
‘‘तुम तो जानते हो, बहुत गरीबी में पलाबढ़ा हूं. गांव से काम की तलाश में यहां आया था और अपने ही प्रदेश के यहां के विधायक के लिए काम करता था. उन की मृत्यु के बाद बड़ी मेहनत से यहां पहुंचा हूं. आज लोगों की नजरों में अपने लिए उस समय एक उपहास सा देखा तो बड़ा दुख हुआ. अपने परिवार की नजरों में भी अपने लिए एक शर्मिंदगी सी देखी, तो मन बड़ा आहत हुआ. सच तो यही है कि इतने बड़े स्कूल के उद्घाटन में जा कर स्वयं कम शिक्षित रह कर शिक्षा के महत्त्व और विकास पर बड़ीबड़ी बातें करना खुद को ही एक खोखलेपन से भरता चला जाता है. आज मैं ने सोच लिया है कि मैं किसी दूसरे राज्य से पत्राचार के जरिए आगे पढ़ाई करूंगा. यहां किसी को बताऊंगा ही नहीं, मालिनी और बच्चों तक को नहीं.’’
विकास को जैसे एक करंट लगा, ‘‘सर, यह क्या कह रहे हैं? यह तो बहुत ज्यादा मुश्किल है, असंभव सा है.’’
‘‘कुछ भी असंभव नहीं है. मैं आगे पढ़ूंगा, तुम इस में मेरी मदद करोगे और किसी को भी इस बात की खबर नहीं होनी चाहिए.’’
‘‘सर, कैसे होगा? पढ़ाई कहां होगी? बुक्स, कालेज?’’
Writer- जीतेंद्र मोहन भटनागर
घसीटा ऐसे ही दिल मसोस कर रह जाता. उसे कहीं राहत मिलती तो महुआ के करीब पहुंच कर. एक वही थी, जिस का प्यार पा कर वह सबकुछ भूल जाता, इसलिए जब भी अपने घर से निकलता तो साइकिल की घंटी बजाता हुआ ही निकलता और महुआ के घर के सामने घंटी बजाने की रफ्तार तेज हो जाती.
एक दिन दूर से ही घंटी की आवाज सुन कर महुआ बाहरी दरवाजे पर
खड़ी हो गई और उस से बोली, ‘‘अरे, तुम से एक जरूरी काम है. तुम अंदर
आ जाओ.’’
महुआ उसे अपने कमरे में ले गई और पूछा, ‘‘क्या तुम मुझ से प्यार करते हो?’’
‘‘हां, बहुत ज्यादा… और तुम से ही शादी करना चाहता हूं, पर पता नहीं पिताजी और भैयाभाभी तैयार होंगे
या नहीं.’’
‘‘तुम ऐसा क्यों कह रहे हो?’’ जब महुआ ने पूछा, तो वह बोला, ‘‘अरे महुआ, मेरी भाभी बहुत तेज हैं. घर में उन की ही चलती है. मुझ से तो कई बार कह चुकी है कि तुम कहीं और न मुंह मार देना देवरजी, मैं तुम्हारी शादी अपनी छोटी बहन से ही करवाऊंगी, लेकिन मुझे उन की छोटी बहन बिलकुल पसंद नहीं है,’’ कहतेकहते जब घसीटा चुप हुआ, तो महुआ बोली, ‘‘और इधर मेरा
बाप मेरी शादी किसी से भी नहीं होने देगा, जबकि मैं तुम को ही अपना मान चुकी हूं.’’
‘‘तो फिर…?’’ घसीटा ने चिंता जताई.
‘‘हमें हर हाल में भाग कर शादी करनी होगी. बोलो, इस के लिए तुम तैयार हो?’’
घसीटा सोच में पड़ गया. कुछ देर बाद वह बोला, ‘‘मान लो, हम भाग भी जाते हैं, तो जाएंगे कहां?’’
‘‘इतनी बड़ी दुनिया है, कहीं भी. फिर मैं घरों का काम कर के कमाऊंगी और तुम फल बेच कर कमाई करना. बस, यह सोच लो कि हमें इस दलदल से निकलना है,’’ महुआ की बात में दम था.
‘‘हमें इस गंदी बस्ती से दूर जाना है,’’ इतना कह कर उस ने घसीटा को अपनी बांहों में भर लिया और उसे प्यार करने लगी.
घसीटा ने भी उसे अपने प्यार से भर दिया.
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ऐसे ही घसीटा का महुआ से मिलनाजुलना होने लगा. हर बार महुआ का खाली घर ही काम आया.
अपने घर के करीब स्थायी रूप से घसीटा के आ कर बस जाने पर सब से ज्यादा कोई खुश था, तो वह थी महुआ. पर घसीटा के घर जा कर उस से मिल पाना इतना आसान नहीं था.
फिर उस की भाभी के बारे में सुन कर तो वह और भी नहीं जाना
चाहती थी, इसलिए महुआ ने हिम्मत दिखाते हुए खुद आगे बढ़ कर यह रास्ता चुना था.
उस दलित बस्ती में अपनेअपने हिसाब से रेलवे ट्रैक के पास की जमीन पर दलितों ने झुग्गीझोंपडि़यां बना कर ऐसा तगड़ा कब्जा कर रखा था कि उन्हें अब हटाना मुश्किल था.
सब के राशनकार्ड बने हुए थे, वोटर आईकार्ड के साथसाथ अब तो आधारकार्ड भी बन गए थे. तकरीबन सभी झुग्गियों की छतों पर डिश एंटीना लगा दिख जाता था. बहुतों के पास मोबाइल फोन भी थे.
लाइन से बनी झुग्गियों से बाहर आ कर गिरने वाले गंदे पानी के लिए दूर तक एक पतली नाली बनी हुई थी, जो आगे जा कर रेलवे ट्रैक के बराबर बहने वाले गंदे, बदबूदार बहते नाले में मिल जाती थी.
नाले के सामने ही रेलवे की खाली, प्लास्टिक की पन्नियों वाले गंदे कूड़े से पटी हुई जमीन और उसी जमीन की उठान पर रेलवे का यह एक बना ट्रैक था, जहां से रोज ही कई रेलगाडि़यां गुजरा करती थीं.
पहले तो भोर होते ही बस्ती के सभी आदमीऔरत, लड़केलड़कियां, बूढ़ेबच्चे सभी उस रेलवे ट्रैक पर शौच के लिए बैठ जाते थे, पर इधर जब से दलित बस्ती के लिए शौचालय बन गए, तब से उस ट्रैक का इस्तेमाल बंद तो नहीं हुआ, पर कम जरूर हो गया था.
चमकी को फंसा लाने के बाद से जब बांके पीछे खुले हिस्से और आगे बरामदे के साथ 2 कमरों वाली इस झुग्गी में आया था, तब सबकुछ कच्चा था और छत पर खपरैल था.
बाद में रेलवे ट्रैक के नजदीक होने का फायदा उठाते हुए और आसपास बनते फ्लैटों से चुराई गई सीमेंट और ईंटों से उस ने धीरेधीरे अपनी पक्की झुग्गी बना ली.
शराब पीने की बुरी लत के साथसाथ काम करने वाली औरतों पर हमेशा बांके की बुरी नीयत रहती थी और वह हमेशा उन्हें किसी भी तरह फंसाने की कोशिश में लगा रहता था.
आजकल उस की नजर बिंदा पर थी. गरीब बिंदा का पति मर चुका था और एक साल के बच्चे को ले कर वह काम पर आती थी.
चूंकि बांके के चरित्र से बद्री अच्छी तरह वाकिफ था, इसलिए उस ने नई लेबर होने के चलते बिंदा को अपने साथ लगा लिया था, जिस के चलते बद्री से लड़झगड़ कर वह घर चला आया था.
आते समय उस ने रास्ते में पड़ने वाले शराब के ठेके पर बैठ कर खूब शराब पी…
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चूंकि बिंदा के प्रति बहुत गंदे खयाल उस के दिमाग में उमड़घुमड़ रहे थे और शराब पूरी तरह असर कर चुकी थी, इसलिए जब महुआ उस के सामने पड़ी तो उसे देख कर बांके ने अपने होशोहवास खो दिए.
यह तो अच्छा हुआ, जो श्याम सुंदर उसे बुलाने आ गया, वरना पता नहीं महुआ का क्या होता.
उस के जाने के बाद महुआ बहुत देर तक सोचविचार में खोई रही. क्या अपनी इज्जत गंवाने के बाद वह भी फिरोजा की तरह खुदकुशी कर लेती या फिर पिता को मार डालती?
Writer- डा. भारत खुशालानी
हवाई जहाज दुर्घटना- भाग 1: आकृति का मन नकारात्मकता से क्यों घिर गयाआकृति ने अपना ध्यान विमान को नियंत्रित रखने पर केंद्रित किया और रनवे पर लगी बत्तियों को सामने के शीशे के बीचोंबीच रखने का प्रयास किया. उस ने ऊंचाईसूचक यंत्र की तरफ जल्दी से नजर डाली. यंत्र की सूई 500 फुट से गिर कर 400 फुट हुई, फिर 300 फुट, फिर 200 फुट और फिर 100 फुट.
100 फुट के बाद आकृति ने विमान को रनवे की रोशनियों के सहारे बिलकुल बीच में लाने का प्रयास किया. यंत्र की सूई 50 फुट तक आई, फिर 25, फिर 10 और फिर विमान तीव्रता से रनवे से आ कर मिला. एक गतिरोधक के ऊपर से गुजरने वाली वेदना के साथ विमान ठोस धरती से टकराया और रनवे पर दौड़ने लगा.
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विमान की उतरन बदसूरत थी. आकृति ने जोर से ब्रेक दबाए. उस ने तेज गति से और झटके से विमान को मोड़ा, ताकि विमान के पंख अपने निर्धारित रनवे की रेखाओं के अंदर आ जाएं. अगर उतरने के बाद भी विमान को काबू में न रखा गया तो वह आसपास के रनवे पर जा कर दूसरी चीजों से टकरा सकता था.
विमान सुरक्षित तो नीचे उतर गया था, लेकिन उतरने के बाद जोर से ब्रेक लगने और झटके से मुड़ने के कारण वह रनवे पर अस्थिर रूप से इधरउधर दौड़ रहा था.
आकृति ने अपना हौसला नहीं खोया. इंजन में आग लग जाने के बावजूद भी वह विमान को सुरक्षित तरीके से नीचे ले आने में कामयाब हो पाई थी, इस बात से उस का आत्मविश्वास अब काफी हद तक बढ़ गया था. उस ने जोत को कस कर पकड़ लिया और उसे एकदम सीधे मजबूती से पकड़ कर रखा. इस से विमान की लहरदार चाल पर लगाम लग गई और विमान धीरेधीरे कर के रनवे के बीच की रेखा में सीधा आ गया.
जोर से ब्रेक लगाने के कारण विमान ने रनवे पर अपनी निश्चित सीमा का उल्लंघन नहीं किया और रनवे खत्म होने से पहले ही अपनी दौड़ को विराम दिया.
जब विमान पूरी तरह से स्थिर हो कर खड़ा हो गया तो आकृति ने अपने हाथ जोत पर से हटाए, अपने माथे को जोर से रगड़ा और दो पल के लिए अपना सिर नीचे की ओर झुकाया.
आज की अविश्वसनीय घटना आकृति ने दूसरों से होती हुई सुनी थी, लेकिन जिंदगी में कभी भी यह नहीं सोचा था कि किसी दिन उस के साथ भी ऐसा होगा.
विमान के बाहर अग्निशामक दस्ते दौड़ते हुए विमान की तरफ आ रहे थे. मई की भीषण गरमी में बदन को झुलसाती इस विमान में लगी आग. विमान के अंदर कोरोना से बचने के लिए मास्क काफी नहीं था, यात्रियों को ऊपर से गिरा औक्सीजन का मास्क भी पहनना पड़ा था.
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विमान के इंजन में आग लगते ही औक्सीजन के मास्क नीचे आ गए थे और एयरहोस्टेस ने यात्रियों की मदद की थी औक्सीजन मास्क पहनने में, हालांकि यात्रियों से थोड़ा सा दूर रह कर. जब एक के ऊपर एक आपदाएं आती हैं, तो उन सब से एकसाथ निबटने के लिए नए आयामों को ईजाद करना पड़ता है.
यात्रियों ने विमान के जमीन पर उतरते ही एक नए जीवन को अपने भीतर जाते हुए महसूस किया. विमान के पूरी तरह से स्थिर हो जाने के बाद भी तब तक खतरा बना हुआ था, जब तक सभी यात्रियों को सुरक्षित बाहर नहीं निकाल लिया जाता. एक तरफ आग को काबू में लाने के लिए पानी की बौछारें बरसाई जा रही थीं, तो वहीं दूसरी तरफ यात्रियों को सुरक्षित नीचे उतारने के लिए सीढि़यां पीछे के दरवाजे पर लगाई जा रही थीं.
आकृति अपना सिर नीचे झुकाए बैठी थी. उस की आंखों में आंसू आ गए थे. वह अपनेआप को ही इस विपदा का कारण सम झने लगी थी, ‘मेरी ही गलत सोच थी यह, जिस ने ऐसी परिस्थितियों को पैदा किया, जिस से विमान के इंजन में आग लग गई. अगर मेरी सोच सकारात्मक होती तो विमान के इंजन में आग कभी नहीं लगती,’ यही सोच आकृति को खाए जा रही थी. वह यह भूल गई कि अगर उस की जगह कोई और होता तो शायद विमान उसी प्रकार की दुर्घटना का शिकार हो गया होता, जैसे 2 दिन पहले कराची में हुआ था.