डेल्टा प्लस पर यूपी के विशेषज्ञ डॉक्टरों रहे तैयार : सीएम योगी

लखनऊ . सुनियोजित नीति से कोरोना की पहली और दूसरी लहर पर लगाम लगाने वाले सीएम योगी आदित्यनाथ ने नई चुनौतियों का सामना करने के लिए यूपी में व्‍यवस्‍थाओं को सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं. दूसरे कई राज्यों में कोरोना वायरस के नए वैरिएंट ‘डेल्टा प्लस’ से संक्रमित मरीजों की पुष्टि होने से सीएम ने अधिकारियों को अलर्ट मोड पर काम करने के निर्देश दिए हैं. जिसके तहत अब प्रदेश में कोविड के डेल्टा प्लस वैरिएंट की गहन पड़ताल के लिए अधिकाधिक सैम्पल की जीनोम सिक्वेंसिंग की जाएगी. प्रदेश में जीनोम सिक्वेंसिंग की सुविधा के लिए केजीएमयू और बीएचयू में सभी जरूरी व्यवस्थाएं उपलब्ध कराने के निर्देश सीएम ने आला अधिकारियों को दिए हैं. बता दें कि साल 2021 की शुरुवात में ही सरकार ने कोरोना संक्रमण के नए स्‍ट्रेन को ध्यान में रखते हुए लखनऊ के किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍वविद्यालय (केजीएमयू) में जीन सीक्‍वेंसिंग की जांच को शुरू करने का फैसला लिया था. वायरस के नए स्‍ट्रेन की पहचान समय से करने के लिए जीन सीक्‍वेंसिंग की जांच केजीएमयू में जनवरी में ही शुरू कर दी गई थी.

प्रदेश में आने वाले सभी यात्रियों के आरटीपीसीआर टेस्ट के सैंपल से जीन सिक्वेंसिंग कराई जाएगी. रेलवे, बस , वायु मार्ग से प्रदेश में आ रहे लोगों के सैम्पल लेकर जीन सिक्वेंसिंग टेस्ट किया जाएगा. इसके साथ ही प्रदेश के जिलों से भी कोरोना वायरस के नए वैरिएंट ‘डेल्टा प्लस’ के सैंपल लिए जाएंगे. रिपोर्ट के परिणाम स्वरूप डेल्टा प्लस प्रभावी क्षेत्रों की मैपिंग कराई जाने के आदेश सीएम ने दिए हैं.

डेल्टा प्लस पर विशेषज्ञ डॉक्टरों ने तैयार की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश में विशेष सतर्कता बरतते हुए समय रहते ही सरकार ने ठोस रणनीति बना ली है. विशेषज्ञों के अनुसार इस बार का वैरिएंट पहले की अपेक्षा कहीं अधिक खतरनाक है. राज्य स्तरीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ परामर्श समिति ने इससे बचाव के लिए विस्तृत अनुशंसा रिपोर्ट तैयार की है. राज्य स्तरीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ परामर्श समिति की रिपोर्ट के अनुसार दूसरे आयु वर्ग के लोगों की अपेक्षा इस नए वैरिएंट का दुष्प्रभाव बच्चों पर कहीं अधिक हो सकता है. सीएम ने विशेषज्ञों के परामर्श के अनुसार बिना देर किए सभी जरूरी कदम उठाए जाने के आदेश अधिकारियों को दिए हैं. राज्य स्तरीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ परामर्श समिति के सदस्यों व अन्य वरिष्ठ चिकित्सकों के जरिए जनजागरूकता का कार्य भी किया जाएगा.

बीएचयू और केजीएमयू ने संभाली कमान

किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍वविद्यालय केजीएमयू के साथ ही बनारस के बीएचयू में जीन सीक्‍वेंसिंग की जांच शुरू की गई है. यूपी में अभी तक जीन सीक्‍वेंसिंग जांच के लिए सैंपल को पुणे भेजा जाता था पर अब प्रदेश में जांच शुरू होने से प्रदेश के बाहर स्थ्ति दूसरे संस्‍थानों में सैंपल नहीं भेजने पड़ेंगे. बता दें कि यूपी की पहली कोरोना टेस्‍ट लैब भी केजीएमयू में शुरू हुई थी.

जीन सीक्‍वेंसिंग अनिवार्य, दो हफ्तों में आएगी रिपोर्ट

अभी तक यूपी में आने वाले यात्रियों की  एंटीजन और आरटीपीसीआर जांच कोरोना वायरस की पुष्टि के लिए कराई जा रही थी पर अब प्रदेश के सभी यात्रियों के आरटीपीसीआर सैंपल से जीनोम सिक्वेंसिंग कर ‘डेल्टा+’ की जांच को अनिवार्य कर दिया गया है. पॉजिटिव मरीज में कौन सा स्‍ट्रेन मौजूद है इसकी जांच के लिए जीन सीक्‍वेंसिंग की जांच को अनिवार्य किया गया है. ‘डेल्टा प्लस’ की रिपोर्ट दो हफ्तों में आती है.

11 देशों में पाए गए 197 केस, भारत में आठ

जून 16 तक दुनिया के 11 देशों में 197 केस सामने आए जिसमें ब्रिटेन, भारत, कनाडा, जापान,नेपाल, पोलैंड,तौरकी यूएस समेत अन्य देश शामिल हैं. जिसमें भारत में आठ केस की पुष्टि की गई है.

माइक्रोबायोलॉजी विभाग की अध्‍यक्ष डॉ अमिता जैन ने बताया कि प्रदेश में मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ के निर्देशानुसार लैब को एडवांस बनाते के लिए पहले से उपलब्‍ध संसाधनों के जरिए नई जांच को सबसे पहले केजीएमयू में शुरू किया गया था. संस्‍थान की जीन सीक्‍वेंसर मशीन से इस जांच से सिर्फ वायरस के स्‍ट्रेन की पड़ताल की जाएगी. इसके लिए लैब में कोरोना पॉजिटिव आए मरीजों के रैंडम सैंपल लिए जाएंगे.

रोजगार देने में देश में नंबर वन साबित हुईं यूपी की एमएसएमई योजना

लखनऊ. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मिशन रोजगार सरकारी नौकरियों से लेकर निजी क्षेत्र में भी कारगर साबित हो रहा है. कोरोना काल के बावजूद पिछले एक साल में देश में प्रदेश की सूक्ष्म, लघु, और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) इकाईयों ने प्रदेश में सबसे ज्यादा रोजगार दिया है. सरकार ने इन इकाईयों को 140 करोड़ रुपए की सब्सिडी भी दी है.

सीएम योगी ने कोरोना काल में मानवता को बचाने के लिए जीवन और जीविका दोनों को प्राथमिकता दी थी. इसके लिए पिछले साल प्रदेश के इतिहास में सबसे ज्यादा लोन उद्योगों को दिए गए थे. इससे पहले भी पूर्व की सरकारों की तुलना में योगी सरकार ने उद्योगों को प्राथमिकता पर रखकर लोन उपलब्ध कराया था. प्रदेश सरकार के समन्वय से बैंकों ने पिछले चार साल में 55 लाख 45 हजार 147 एमएसएमई को लोन दिया था, जिसमें तीन लाख आठ हजार 331 इकाइयों के सैंपल सर्वे में नौ लाख 51 हजार 800 लोगों को रोजगार देने की भौतिक रूप से पुष्टि हुई थी. जबकि 55 लाख 45 हजार 147 इकाइयों में औसतन डेढ़ करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार मिला है.

ऐसे ही इकाईयों को विभिन्न योजनाओं में प्रदेश सरकार की ओर से सब्सिडी भी दी गई है. प्रदेश में पिछले साल 4571 इकाईयों में 45,166 लोगों को रोजगार दिया गया है. इन इकाईयों को सरकार की ओर से 140 करोड़ रुपए की सब्सिडी दी है. देश में दूसरे नंबर पर गुजरात की 1437 इकाईयों ने 32,409 लोगों को रोजगार दिया है और उन्हें सौ करोड़ रुपए सब्सिडी दी गई है. तीसरे नंबर पर मध्य प्रदेश की 3362 इकाईयों ने 30,565 लोगों को रोजगार दिया है और 88 करोड़ की सब्सिडी दी गई है.

चार साल में दिए 55 लाख 45 हजार एमएसएमई को लोन

वित्त वर्ष 2016-17 में सपा सरकार के दौरान 6,35,583 एमएसएमई को लोन दिया गया था. जबकि 2017 में सत्ता परिवर्तन होते ही योगी सरकार में वित्त वर्ष 2017-18 में 7,87,572 एमएसएमई को लोन दिया गया. वित्त वर्ष 2018-19 में 10,24,265 उद्यमियों और 2019-20 में 17,45,472 लोन दिए गए हैं. वित्त वर्ष 2020-21 में एक अप्रैल 2020 से 18 मार्च 2021 तक 13 लाख 52 हजार 255 उद्यमियों को लोन दिए गए हैं. इसमें नौ लाख 13 हजार 292 एमएसएमई को 32 हजार 321 करोड़ 31 लाख रुपए लोन दिए हैं. इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम (ईसीएलजीएस) में चार लाख 39 हजार 310 इकाइयों को 12 हजार 69 करोड़ 57 लाख रुपए का लोन दिया गया है. ऐसे में कुल 55 लाख 45 हजार 147 एमएसएमई को लोन दिया गया है.

तीसरी लहर से बचाव के लिए प्रो-एक्टिव नीति

लखनऊ. प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर पर काबू पाने के बाद योगी सरकार ने तीसरी लहर से निपटने के लिए चक्रव्यूह तैयार कर लिया है. राज्यस्तरीय स्वास्थ्य परामर्श समिति ने तीसरी लहर को ध्यान में रख्रते हुए अपनी रिर्पोट यूपी सरकार को सौंप दी है. प्रदेशवासियों को कोरोना की तीसरी लहर से बचाने के लिए सरकार ने हर जिले की सुरक्षा के लिए चक्रव्यूह तैयार कर लिया है. मुख्यमंत्री यागी आदित्यनाथ ने महामारी से बचाव और इलाज के संबंध में राज्यस्तरीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ परामर्श समिति की संस्तुतियों पर गंभीरता से काम करने के निर्देश दिए हैं.

कोरोना संक्रमण की संभावित तीसरी लहर और संचारी रोगों पर नियंत्रण के लिए सभी जिलों में पूरी सक्रियता से सरकार ने प्रयास शुरू कर दिए हैं. तीसरी लहर से निपटने के लिए प्रदेश सरकार ने स्वच्छता, सैनिटाइजेशन, पीकू नीकू और मेडिकल मेडिसिन किट इस चक्रव्यूह का हिस्सा बनाया है. प्रदेश में युद्ध्स्तर पर पीकू नीकू की स्थापना और मेडिकल मेडिसिन किट के वितरण की व्यव्स्थाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है. जून के अंत तक प्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेज में 100 बेड वाले पीकू नीकू और सीएचसी और पीएचसी में 50 नए बेड की व्यवस्था कर दी जाएगी.

27 जून से घर-घर वितरित की जाएंगी दवाएं

कोरोना की तीसरी लहर को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने बच्चों की स्वास्थ्य, सुरक्षा को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से घर-घर मेडिकल किट वितरण का विशेष अभियान शुरू किया है. जिसके तहत 27 जून से दवाएं घर-घर वितरित की जाएंगी. गांव से लेकर शहर तक प्रत्येक गली-कूचे और घर-घर तक पहुंच बनाने वाली निगरानी समितियों ने सरकार की योजनाओं का लाभ प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचाने का बड़ा काम किया है. यही कारण भी है कि सरकार ने मेडिकल किट वितरण की जिम्मेदारी भी निगरानी समिति के सदस्यों को सौंपी है. तीसरी लहर का डट कर मुकाबला करने के लिए प्रदेश की 3011 पीएचसी और 855 सीएचसी को सभी अत्याधुनिक संसाधनों से लैस किया गया है. मेडिकल-किट में उपलब्ध दवाईयां कोविड-19 के लक्षणों से बचाव के साथ 18 साल से कम उम्र के बच्चों का मौसमी बीमारियों से भी बचाएंगी. तीसरी लहर से बचाव के लिए सरकार ने प्रदेश में 75000 निगरानी समितियों को जिम्मेदारी सौंपी हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में मेडिकल मेडिसिन किट के वितरण को गति देने के लिए 60 हजार से अधिक निगरानी समितियों के चार लाख से अधिक सदस्यों को लगाया गया है.

प्रत्येक जरूरतमंद तक पहुंचेगी योगी सरकार की मदद

कोरोना प्रबंधन में निगरानी समितियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है. ऐसे में अब तीसरी लहर को ध्यान में रखते हुए योगी सरकार ने इन समितियों  को विशेष जिम्मेदारी सौंपी है. गांवों में भ्रमण करते समय निगरानी समितियां यह भी सुनिश्चित करेंगी कि कोई जरूरतममंद राशन से वंचित न रहे.

तीसरी लहर से बचाव के लिए अपनाई जा रही प्रो-एक्टिव नीति

प्रदेश में विशेषज्ञों के आंकलन के अनुसार कोरोना की तीसरी लहर से बचाव के संबंध में योगी सरकार प्रो-एक्टिव नीति अपना रही है. सभी मेडिकल कॉलेजों में पीआईसीयू और एनआईसीयू की स्थापना को तेजी से पूरा किया जा रहा है.

मदरसा छात्रों को आधुनिक शिक्षा से जोड़ रही है योगी सरकार

लखनऊ . योगी सरकार द्वारा मदरसों के आधुनिकीकरण की मुहिम के क्रम में  छात्रों की ऑनलाइन शिक्षा को लेकर प्रदेश के प्रशासनिक अधिकारी, शिक्षाविद और आईआईएम व आईआईटी के दिग्‍गज  मदरसा शिक्षकों को ट्रेनिंग देंगे. बाकायदा स्‍पेशल क्‍लासेज के जरिए शिक्षकों को बताया जाएगा कि ऑनलाइन पढ़ाई कैसे कराई जाए.

मदरसा बोर्ड की ओर से  ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इसमें भाषा समिति के सदस्‍य दानिश आजाद, रजिस्‍ट्रार मदरसा बोर्ड आरपी सिंह समेत कई जिलों के अल्‍पसंख्‍यक कल्‍याण अधिकारी व शिक्षाविद शामिल रहे.

प्रदेश की योगी सरकार ने मदरसों का आधुनिककरण शुरू कर दिया है. कोरोना काल में मदरसो में छात्रों की ऑनलाइन पढ़ाई चालू हो गई है. यूपी मदरसा बोर्ड भाषा समिति के सहयोग से मंडलवार शिक्षकों को ट्रेनिंग देकर बच्‍चों को पढ़ाने के लिए तैयार कर रहा है. इसमें माध्‍यमिक शिक्षा परिषद से जुड़े शिक्षाविद व काउंसर और कई डीएमओ मदरसा शिक्षकों को विषय ट्रेनिंग दे रहे हैं.

खासकर शिक्षकों को बताया कि वह सरल तरीके से बच्‍चों को कैसे पढ़ाएं. दानिश आजाद बताते हैं कि मदरसा शिक्षकों को ऑनलाइन पढ़ाई की ट्रेनिंग देने के लिए आईआईटी व आईआईएम वर्तमान व पूर्व छात्रों से बात की गई है. कई छात्रों ने  शिक्षकों के ट्रेनिंग प्रोग्राम में शामिल होने की हामी भर दी है. विश्‍वविद्यालयों के पूर्व कुलपति, रिटायर्ड प्रशासनिक अधिकारी भी इस ट्रेनिंग प्रोग्राम से जुड़ने को तैयार हैं.

भाषा समिति के सदस्‍य दानिश आजाद बताते हैं कि उपनिदेशक संजय कुमार मिश्र व जगमोहन सिंह, मदरसा बोर्ड के रजिस्‍ट्रार आरपी सिंह व मदरसा शिक्षक एसोसिएशन की ओर से ऑनलाइन ट्रेनिंग प्रोग्राम का आयोजन किया गया. इसमें डीएमओ कानपुर वर्षा अग्रवाल, असमत मलिक प्रशिक्षक माध्‍यमिक शिक्षा परिषद, डीएमओ अमरोहा नरेश यादव व उर्दू और दीनीयात एक्‍सपर्ट डॉ एजाज अंजुम ने शिक्षकों को ऑनलाइन पढ़ाई की बारिकियों के बारे में बताया. उन्‍होंने कहा कि कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई ही जारी रहेगी. ऐसे में शिक्षकों को इसके लिए अपनी तैयारी करना चाहिए. दानिश आजाद ने बताया कि कौन-कौन सी ऑनलाइन एप के जरिए वह छात्रों से सीधे जुड़ सकते हैं. दानिश आजाद बताते हैं कि अभी हाल में मुलाकात के दौरान मुख्‍यमंत्री ने मदरसा छात्रों की ऑनलाइन पढ़ाई शुरू करने के निर्देश दिए थे.

सीरो सर्वे से पता लगेगा कितने लोगों में बन चुकी है एंटीबॉडी

लखनऊ . उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण की गहन पड़ताल के लिए 04 जून से सीरो सर्वे शुरू किया जा रहा है. सभी 75 जिलों में होने वाले इस सर्वे के माध्यम से यह पता लगाया जाएगा कि किस जिले के किस क्षेत्र में कोरोना का कितना संक्रमण फैला और आबादी का कितना हिस्सा संक्रमित हुआ. यही नहीं, इससे यह भी सामने आएगा कि कितने लोगों में कोरोना से लड़ने के लिए एंटीबाडी बन चुकी है.

सोमवार को राज्य स्तरीय टीम-09 की बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सीरो सर्वे को लेकर हो रही तैयारियों की जानकारी ली. अपर मुख्य सचिव, स्वास्थ्य अमित मोहन प्रसाद ने बताया कि 04 जून से शुरू हो रहे इस सर्वे को लेकर कार्ययोजना तैयार हो चुकी है. सैम्पलिंग कर लिंग और आयु सहित विभिन्न मानकों पर सर्वेक्षण की रिपोर्ट तैयार की जाएगी. जिलेवार सर्वे करने वाले कार्मिकों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इसके परिणाम जून के अंत तक आने को संभावना है.

पहली लहर में भी हुआ था सीरो सर्वे:

कोरोना की पहली लहर के दौरान पिछले साल सितंबर में 11 जिलों में सीरो सर्वे कराया गया था. यह सर्वे लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, गोरखपुर, आगरा, प्रयागराज, गाजियाबाद, मेरठ, कौशांबी, बागपत व मुरादाबाद में हुआ था. उस समय सीरो सर्वे में 22.1 फीसद लोगों में एंटीबाडी पाई गई थी.

कोरोना काल में योगी सरकार ने तोड़े गेंहू खरीद रिकार्ड

लखनऊ . उत्तर प्रदेश में किसानों को लाभ पहुंचाने वाली योगी सरकार प्रत्येक दिन नए मुकाम हासिल कर रही है. सूबे में अभी तक कुल 39.58 लाख मी.टन गेहं खरीद की जा चुकी है. इसके माध्यम से 828697 किसानों को सीधा लाभ मिला है. जबकि पिछले साल आज तक 23.92 लाख मी. टन गेहूं खरीद ही हो पाई थी. कोरोना की लड़ाई में पूरी ताकत से जुटी योगी सरकार किसानों के हित में हर संभव प्रयास करने में जुटी है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर किसानों की बकाया 7817.68 करोड़ की राशि में से 6029.27 करोड़ का भुगतान किया जा चुका है. सरकार की ओर से किये जा रहे प्रयासों से यूपी के किसान काफी खुश है. उनका कहना है कि पिछली सरकारों में कभी उनको इतनी सहूलियत नहीं मिली थीं.

यह पहला मौका है जब उत्तर प्रदेश में गेहूं खरीद के दौरान किसानों को भुगतान भी तेजी से किया जा रहा है. मात्र 72 घंटों के भीतर पैसा सीधे किसानों के एकाउंट में पहुंच रहा है. इतना ही नहीं ई-पॉप मशीनों का इस्तेमाल होने से मंडियों में बिचौलिये भी खत्म हो गये हैं. वर्षा की चेतावनी को देखते हुए सरकार हर सावधानी बरत रही है. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने गेहूं खरीद में क्रांति लाते हुए पहली बार मंडियों में न केवल अत्याधुनिक सुविधाओं को बढ़ाया बल्कि किसानों के लिये मंडियों में पानी, बैठने के लिये छायादार व्यवस्था के सख्त निर्देश भी दिये.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पहली बार किसानों को उनके खेत के 10 किमी के दायरे में गेहूं खरीदकर उनकी दिक्कतों को समाप्त करने का बड़ा काम किया है. इससे यूपी के किसानों को गेहूं खरीद में काफी राहत मिली है. जीवन और जीविका को बचाने के उद्देश्य से योगी सरकार ने कोरोना काल में मंडियो में कोविड प्रोटोकाल का पूरा पालन कराने के निर्देश दिये. जिसके बाद से खरीद केंद्रों पर ऑक्सीमीटर, इफ्रारेड थर्मामीटर की व्यवस्था भी की गई है.

इथेनॉल के जरिए गन्ने को ग्रीन गोल्ड बनायेगी यूपी सरकार

लखनऊ . प्रदेश सरकार अब इथेनॉल के जरिए गन्ने को ग्रीन गोल्ड बनाने की मुहिम में जुट गई है. इसके तहत राज्य में गन्ने से इथेनॉल बनाने के 54 और चावल, गेहूं, जौ, मक्का तथा ज्वार से इथेनॉल बनाने के सात प्रोजेक्ट लगाए जाने की कार्रवाई चल रही हैं. गन्ने से इथेनॉल बनाने के 54  प्रोजेक्ट में से 27 प्रोजेक्ट पूरे हो गए हैं, जबकि 27 प्रोजेक्ट निर्माणाधीन हैं, आगामी सितंबर के अंत तह यह भी पूरे हो जायंगे. चावल, गेहूं, जौ, मक्का तथा ज्वार से इथेनॉल बनाने संबंधी प्रोजेक्ट में भी अगले चंद महीनों में उत्पादन शुरू हो जाएगा. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गन्ने से इथेनॉल बनाने संबंधी प्रोजेक्टों की समीक्षा करते हुए इनमें जल्द से जल्द इनमें उत्पादन शुरू करने के निर्देश हैं. उत्पादन शुरू करने के लिए एनओसी जारी करने में को विलंब ना हो, यह भी मुख्यमंत्री ने कहा है.

गन्ना राज्य के किसानों की एक मुख्य नगदी फसल है. बुन्देलखंड को छोड़ कर राज्य के हर जिले में किसान गन्ने की पैदावार होती हैं. कुछ समय पहले तक चीनी मिले, खंडसारी और गुड के कारोबारी ही गन्ने पैदावार के खरीददार थे लेकिन अब गन्ने से इथेनॉल भी बनाई जाने लगी हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही पहल पर राज्य में इथेनॉल उत्पादन के क्षेत्र में निवेश करने के लिए लोगों ने रूचि दिखाई है. जिसके चलते अब किसानों को चीनी मिलों या खांडसारी करोबारियों के भरोसे नहीं रहना पड़ेगा. प्रदेश सरकार ने इथेनॉल उत्पादन को बढ़ाने की शुरुआत कर अब गन्ने को ग्रीन गोल्ड सरीखा बना दिया है. इस क्षेत्र में अब भारी निवेश हो रहा है. राज्य में गन्ने तथा अन्य अनाजों के जरिए इथेनॉल बनाने के लिए 61 प्रोजेक्ट लगाने के लिए लोगों का आगे आना इसका सबूत है. निवेश के इन प्रस्तावों के सूबे में आने से अब गन्ना उत्पादन में इजाफा होगा. सूबे के कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में राज्य में गन्ने तथा अन्य अनाजों से इथेनॉल बनाने संबंधी लगाए जा रहे कुल 61 प्रोजेक्टों से 25 लाख से अधिक किसानों को लाभ होगा.

इन विशेषज्ञों का कहना है कि इथेनॉल के उत्पादन को बढ़ाने तथा उसके इस्तेमाल को बढ़ावा देने संबंधी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इस योजना से किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी क्योंकि इथेनॉल गन्ने,  मक्का और कई दूसरी फसलों से बनाया जाता है. ये विशेषज्ञों कहते हैं कि दो माह पहले केंद्र सरकार ने इथेनॉल को स्टैंडर्ड फ्यूल घोषित किया है. ऐसे में अब इथेनॉल की मांग में इजाफा होगा. जिसका संज्ञान लेते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने उचित समय पर इथेनॉल बनाने संबंधी प्रोजेक्ट लगाने में तेजी दिखाई है. प्रदेश सरकार के इस प्रयास से उत्तर प्रदेश इथेनॉल के उत्पादन सबसे अन्य राज्यों से बहुत आगे निकल जाएगा. अभी भी उत्तर प्रदेश से हर वर्ष 126.10 करोड़ लीटर इथेनॉल की आपूर्ति की जाती है. राज्य में करीब 50 आसवानियां इथेनॉल बना रही हैं. इस वर्ष इथेनॉल बनाने संबंधी नए प्रोजेक्टों में उत्पादन शुरू होने से इथेनॉल उत्पादन में प्रदेश देश में सबसे ऊपर होगा और राज्य के किसानों को भी इसका लाभ मिलेगा. क्योंकि इन प्रोजेक्ट में गन्ना देने वाले किसानों को उनके गन्ने का भुगतान पाने के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना होगा. और किसान गन्ना की फसल बोने से संकोच नहीं करेंगे. गन्ना किसानों के किए सोने जैसा खरा साबित होगा. इसी सोच के तहत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गन्ने से इथेनॉल बनाने संबधी प्रोजेक्ट पर विशेष ध्यान देते हुए उनके शुरू करने की कार्रवाई तेज करने के निर्देश दिया हैं.

क्या होता है  इथेनॉल  :

अगर आसान शब्दों में कहें तो इथेनॉल एक तरह का अल्कोहल है जिसे पेट्रोल में मिलाकर गाड़ियों में फ्यूल की तरह इस्तेमाल किया जाता है. एथेनॉल का उत्पादन वैसे तो गन्ने से होता है लेकिन अब प्रदेश सरकार ने चावल, गेहूं, जौ, मक्का तथा ज्वार से भी इसे तैयार करने के सात प्रोजेक्ट स्थापित करने की अनुमति दी है. पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार राज्य में स्थापित और नए लग रहे प्रोजेक्ट से उत्पादित इथेनॉल को पेट्रोल में मिलाकर 35 फीसदी तक कार्बन मोनोऑक्साइड कम किया जा सकता है. साथ ही, इससे सल्फर डाइऑक्साइड को भी किया जा सकता है. मौजूदा समय में केंद्र सरकार सरकार ने 2030 तक 20 फीसदी इथेनॉल पेट्रोल में मिलाने का लक्ष्य रखा है.पिछले साल सरकार ने 2022 तक पेट्रोल में 10 फीसदी इथेनॉल ब्लेंडिंग का लक्ष्य रखा था. सरकार के इस फैसले से आम लोगों को प्रदूषण से राहत मिलेगी. इथेनॉल का उत्पादन बढ़ने से गन्ना किसानों को सीधा फायदा होगा. क्योंकि शुगर मिलों के पास आसानी से पैसा उपलब्ध हो जाएगा.

रेहड़ी दुकानदारों की आर्थिक मदद करेगी उत्तर प्रदेश सरकार

लखनऊ . उत्तर प्रदेश सरकार कोविड से लड़ने के साथ ही साथ कोविड के बाद आने वाले हालतों को देखते हुए दूरदर्शी फैसले लेने का काम तेजी से कर रही हैं.

कोविड संक्रमण से मुक्त कुछ लोगों में ब्लैक फंगस नाम की नई बीमारी के प्रसार की जानकारी भी मिली है. राज्य स्तरीय स्वास्थ्य विशेषज्ञों की परामर्शदात्री समिति से संवाद बनाते हुए इसके उपचार हेतु आवश्यक गाइडलाइंस आज ही जारी कर दी जाएं. आवश्यक दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए. उत्तर प्रदेश को इस मामले में प्रो-एक्टिव रहना होगा.इसके बचाव, उपचार आदि की समुचित व्यवस्था पूरी तत्परता के साथ किया जाए.

ब्लैक फंगस बीमारी के उपचार सम्बंध में प्रशिक्षण आवश्यक है. सभी मेडिकल कॉलेजों, सीएमओ, इलाज में संलग्न अन्य चिकित्सकों को एसजीपीजीआईपीजीआई से जोड़ते हुए इस सम्बन्ध में आवश्यक चिकित्सकीय प्रशिक्षण कराने की कार्यवाही तत्काल कराई जाए.

कतिपय जनपदों में कुछ निजी कोविड अस्पतालों द्वारा सरकार द्वारा तय दर से अधिक की वसूली करने की शिकायतें मिल रही हैं. लखनऊ में ऐसे ही कुछ अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई की गई है. सभी जिलाधिकारी यह सुनिश्चित करें कि मरीज और उसके परिजनों का किसी भी प्रकार उत्पीड़न न हो. ऐसे असंवेदनशील अस्पतालों से मरीजों को अन्यत्र शिफ्ट करके, अस्पताल के विरुद्ध नियमानुसार कार्रवाई की जाए.

बहुत से मरीज कोविड संक्रमण से मुक्त हो चुके हैं किंतु अभी भी उन्हें चिकित्सकीय निगरानी को जरूरत होती है. ऐसे मरीजों को उनकी मेडिकल कंडीशन के.आधार पर एल-1 हॉस्पिटल में ऑक्सीजन युक्त बेड पर भर्ती जरूर कराया जाए. उनके सेहत की पूरी देखभाल हो.

कोविड प्रबंधन में निगरानी समितियों की भूमिका अति महत्वपूर्ण है और इन समितियों ने  प्रशंसनीय कार्य किया है. इन्हें और प्रभावी बनाने के लिए बेहतर मॉनीटरिंग की जरूरत है. प्रत्येक जिले के लिए सचिव अथवा इससे ऊपर स्तर के एक-एक अधिकारी को नामित किया जाए. जबकि न्याय पंचायत स्तर पर जनपद स्तरीय अधिकारियों को सेक्टर प्रभारी के रूप में तैनात किया जाए. यह प्रभारी अपने क्षेत्र में मेडिकल किट वितरण, होम आइसोलेशन व्यवस्था, क्वारन्टीन व्यवस्था, कंटेनमेंट ज़ोन को प्रभावी बनाने तथा आरआरटी की संख्या बढाने के लिए सभी जरूरी प्रयास करेंगे. जो अधिकारी हाल ही में कोविड संक्रमण से मुक्त होकर स्वस्थ हुआ हो, उनकी तैनाती इस कार्य में न की जाए.

कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ने और गांवों को कोरोना से सुरक्षित रखने के उद्देश्य से वर्तमान में 97,000 से अधिक राजस्व गांवों में वृहद टेस्टिंग अभियान संचालित किया जा रहा है. इस अभियान के सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा नीति आयोग ने भी हमारे इस अभियान की सराहना की है. व्यापक जनमहत्व के इस अभियान को कोरोना कर्फ्यू की पूरी अवधि में तत्परता के साथ संचालित किया जाए. हर लक्षणयुक्त/संदिग्ध व्यक्ति की एंटीजन जांच की जाए. आरआरटी टीम की संख्या बढ़ाई जाए.

कोविड मरीजों के लिए बेड बढ़ोतरी की दिशा में प्रयास और तेज किए जाने की आवश्यकता है. मार्च से अब तक 30000 से अधिक बेड बढ़ाये गए हैं. हर दिन इसमें बढ़ोतरी हो रही है. बीते 24 घंटे में विभिन्न जिलों में करीब 250 बेड और बढ़े हैं. भविष्य की जरूरत को देखते हुए बेड बढ़ोतरी के लिए सभी विकल्पों पर ध्यान देते हुए कार्यवाही की जाए. चिकित्सा शिक्षा मंत्री स्तर से इसकी दैनिक समीक्षा की जाए.

ऑक्सिजन प्लांट की स्थापना की कार्यवाही तेजी से की जाए. भारत सरकार द्वारा स्थापित कराए जा रहे प्लांट के संबंध में मुख्य सचिव सतत अनुश्रवण करते रहें. पीएम केयर्स के अतर्गत लग रहे ऑक्सीजन प्लांट लखनऊ, जौनपुर, फिरोजाबाद, सिद्धार्थ नगर आदि में जल्द ही क्रियाशील हो जाएंगे. सहारनपुर में प्लांट चालू हो चुका है. सीएसआर की मदद और राज्य सरकार द्वारा स्थापित कराए जा रहे प्लांट्स की कार्यवाही तेज की जाए.  कोविड के उपचार हेतु एयर सेपरेटर यूनिट, ऑक्सीजन प्लांट की स्थापना आदि के संबंध में सांसद/विधायक निधि से सहयोग लिया जा सकता है.

निगरानी समितियां जिन्हें मेडिकल किट दे रही हैं, उनका नाम और फोन नम्बर आइसीसीसी को उपलब्ध कराएं. आइसीसीसी इसका पुनरसत्यापन करे. इसके अतिरिक्त जिलाधिकारी के माध्यम से इसकी एक प्रति स्थानीय जनप्रतिनिधियों को उपलब्ध कराया जाए, ताकि सांसद/विधायकगण मेडिकल किट प्राप्त कर स्वास्थ्य लाभ कर रहे लोगों से संवाद कर सकें. इससे व्यवस्था का क्रॉस वेरिफिकेशन भी हो सकेगा. हर संदिग्ध लक्षणयुक्त व्यक्ति की एंटीजन टेस्ट जरूर हो.

सभी जिलों में वेंटिलेटर और ऑक्सीजन कंसंट्रेटर उपलब्ध कराए गए हैं. एसीएस स्वास्थ्य, प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा प्रत्येक दशा में इन उपकरणों को क्रियाशील होना सुनिश्चित कराएं. संबंधित जिलों से संपर्क कर इस संबंध में उनकी समस्याओं का निराकरण कराएं. इसके उपरांत भी यदि वेंटिलेटर/ऑक्सीजन कंसंट्रेटर क्रियाशील न होने की सूचना प्राप्त हुई तो संबंधित डीएम/सीएमओ की जवाबदेही तय की जाएगी.

आंशिक कोरोना कर्फ्यू को दृष्टिगत रखते हुए रेहड़ी, पटरी, ठेला व्यवसायी, निर्माण श्रमिक, पल्लेदार आदि के भरण-पोषण की समुचित व्यवस्था की जाए. सभी जिलों में कम्युनिटी किचेन संचालित किए जाएं. निजी स्वयंसेवी संस्थाओं से भी सहयोग प्राप्त करना उचित होगा.

‘सफाई, दवाई, कड़ाई, के मंत्र के अनुरूप प्रदेशव्यापी स्वच्छता, सैनीताइजेशन का अभियान चल रहा है. लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करने की जरूरत है. कोरोना कर्फ्यू को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए. स्वच्छता, सैनिटाइजेशन से जुड़े कार्यों का दैनिक विवरण स्थानीय जनप्रतिनिधियों को भी उपलब्ध कराया जाए. ताकि आवश्यकतानुसार वह भौतिक परीक्षण कर सकें.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी सराहा ‘यूपी मॉडल’

लखनऊ. उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण से लोगों तथा बच्चों को बचाने और कोरोना महामारी पर अंकुश लगाने के लिए प्रदेश की सरकार ने जो मॉडल अपनाया है उसका अब बॉम्बे हाईकोर्ट भी कायल हो गया हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) और देश का नीति आयोग कोविड प्रबंधन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के ‘यूपी मॉडल’ की तारीफ कर चुका है. आयोग ने यूपी के इस मॉडल को अन्य राज्यों के लिए नज़ीर बताया है. वही बॉम्बे हाईकोर्ट ने यूपी मॉडल के तहत बच्चों को कोरोना से बचाने के लिए किए गए प्रबंधों का जिक्र करते हुए वहां की सरकार से यह पूछा है कि महाराष्ट्र सरकार यहां ऐसा करने पर विचार क्यों नहीं करती?

यूपी सरकार ने कोरोना संक्रमण से बच्चों का बचाव करने के लिये सूबे के हर बड़े शहर में 50 से 100 बेड के पीडियाट्रिक बेड (पीआईसीयू) बनाने का फैसला किया है. यूपी सरकार के इस फैसले को डॉक्टर बच्चों के लिये वरदान बता रहे हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बच्चों को बीमारी से बचाने को लेकर हमेशा ही बेहद गंभीर रहे हैं. इंसेफेलाइटिस जैसी जानलेवा बीमारी से बच्चों को बचाने के लिए उन्होंने इस बीमारी के खात्मे को लेकर जो अभियान चलाया उससे समूचा पूर्वांचल वाकिफ हैं.

इसी क्रम में जब मुख्यमंत्री कोरोना संक्रमण से लोगों को बचाने के लिए ट्रिपल टी यानि ट्रेस, टेस्ट और ट्रीट की रणनीति तैयार करा रहे थे, तब ही उन्होंने कोरोना संक्रमण से बच्चों को बचाने के लिए चिकित्सा विशेषज्ञों को अलग से एक योजना तैयार करने का निर्देश दिया. जिसके तहत ही चिकित्सा विशेषज्ञों ने उन्हें बताया कि कोरोना संक्रमण से बच्चों बचाने और उनका इलाज करने के लिए हर जिले में आईसीयू की तर्ज पर सभी संसाधनों से युक्त पीडियाट्रिक बेड की व्यवस्था अस्पताल में की जाए. चिकित्सा विशेषज्ञों की इस सलाह पर मुख्यमंत्री ने सूबे के सभी बड़े शहरों में 50 से 100 बेड के पीडियाट्रिक बेड (पीआईसीयू) बनाने के निर्देश दिये हैं. यह बेड विशेषकर एक महीने से ऊपर के बच्चों के लिए होंगे. इनका साइज छोटा होगा और साइडों में रेलिंग लगी होगी. गंभीर संक्रमित बच्चों को इसी पर इलाज और ऑक्सीजन की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी.

सूबे में बच्चों के इलाज में कोई कमी न आए इसके लिए सभी जिलों को अलर्ट मोड पर रहने के लिये कहा गया है. इसके तहत ही मुख्यमंत्री अधिकारियों को बच्चों के इन अस्पतालों के लिए मैन पावर बढ़ाने के भी आदेश दिये हैं. मुख्यमंत्री ने कहा है कि जरूरत पड़े तो इसके लिए एक्स सर्विसमैन, रिटायर लोगों की सेवाएं ली जाएं. मेडिकल की शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों को ट्रेनिंग देकर उनसे फोन की सेवाएं ले सकते हैं. लखनऊ में डफरिन अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सलमान खान ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से तत्काल सभी बड़े शहरों में 50 से 100 पीडियाट्रिक बेड बनाने के निर्णय को बच्चों के इलाज में कारगर बताया है. उन्होंने बताया कि एक महीने से ऊपर के बच्चों के लिए पीआईसीयू (पेडरिएटिक इनटेन्सिव केयर यूनिट), एक महीने के नीचे के बच्चों के उपचार के लिये एनआईसीयू (नियोनेटल इनटेन्सिव केयर यूनिट) और महिला अस्पताल में जन्म लेने वाले बच्चों के लिये एसएनसीयू (ए सिक न्यू बार्न केयर यूनिट) बेड होते हैं. जिनमें बच्चों को तत्काल इलाज देने की सभी सुविधाएं होती हैं.

बच्चों के इलाज को लेकर यूपी के इस मॉडल का खबर अखबारों में छपी. जिसका बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी की खंडपीठ ने संज्ञान लिया. और बीते दिनों  इन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने कहा कि यूपी में कोरोना की तीसरी लहर में बच्चों को खतरा होने की आशंका के चलते एक अस्पताल सिर्फ बच्चों के लिए आरक्षित रखा गया है. महाराष्ट्र सरकार यहां ऐसा करने पर विचार क्यों नहीं करती. महाराष्ट्र में दस साल की उम्र के दस हजार बच्चे कोरोना का शिकार हुए हैं. जिसे लेकर हो रही सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने यह महाराष्ट्र सरकार से यह सवाल पूछा हैं.

जाहिर है कि हर अच्छे कार्य की सराहना होती हैं और कोरोना से बच्चों को बचाने तथा उनके इलाज करने की जो व्यवस्था यूपी सरकार कर रही है, उसे बॉम्बे हाईकोर्ट ने उचित माना और उसका जिक्र किया. ठीक इसी तरह से विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और नीति आयोग ने भी कोविड प्रबंधन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के ‘यूपी मॉडल’ की जमकर तारीफ की है. इस दोनों की संस्थाओं ने कोरोना मरीजों का पता लगाने और संक्रमण का फैलाव रोकने के किए उन्हें होम आइसोलेट करने को लेकर चलाए गए ट्रिपल टी (ट्रेस, टेस्ट और ट्रीट) के महाअभियान और यूपी के ऑक्सीजन ट्रांसपोर्ट ट्रैकिंग सिस्टम की खुल कर सराहना की. नीति आयोग ने तो यूपी के इस मॉडल को अन्य राज्यों के लिए भी नज़ीर बताया है. यह पहला मौका है जब डब्लूएचओ और नीति आयोग ने कोविड प्रबंधन के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की देखरेख में तैयार कराए गए यूपी मॉडल की सराहना की है. और उसके बाद अब बॉम्बे हाईकोर्ट बच्चों का इलाज करने को लेकर यूपी मॉडल’  का कायल हुआ है.

ब्लैक फंगस से निपटने को योगी सरकार ने कसी कमर

लखनऊ . उत्तर प्रदेश में कोविड संक्रमण की धीमी होती रफ्तार के बीच पैर-पसारते ब्लैक फंगस नाम की बीमारी से बचाव की तैयारी सरकार ने शुरू कर दी है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर एसजीपीजीआई, लखनऊ में ब्लैक फंगस के मरीजों के उपचार की दिशा तय करने के लिए 12 सदस्यीय वरिष्ठ चिकित्सकों की टीम गठित कर दी गई है. इस टीम से अन्य चिकित्सक मार्गदर्शन भी ले सकेंगे.

एसजीपीजीआई के निदेशक डॉ. आरके धीमन की अध्यक्षता में विशेष टीम ने प्रदेश के विभिन्न सरकारी व निजी मेडिकल कॉलेजों, अस्पतालों के डॉक्टरों को इलाज के बारे में प्रशिक्षण दिया. ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यशाला में डॉक्टरों को ब्लैक फंगस के रोगियों की पहचान, इलाज, सावधानियों आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई.

इंतजाम में देरी नहीं: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में ब्लैक फंगस की स्थिति की जानकारी लेते हुए इस मामले में ‘प्रो-एक्टिव’ रहने के निर्देश दिए है. सीएम योगी ने कहा कि विशेषज्ञों के मुताबिक कोविड से उपचारित मरीजों खासकर अनियंत्रित मधुमेह की समस्या से जूझ रहे लोगों में ब्लैक फंगस की समस्या देखने मे आई है. उन्होंने स्वास्थ्य विभाग और चिकित्सा शिक्षा विभाग को निर्देश दिए कि विशेषज्ञों के परामर्श के अनुसार इसके उपचार में उपयोगी दवाओं की उपलब्धता तत्काल सुनिश्चित कराई जाए. उन्होंने कहा है कि लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए आवश्यक गाइडलाइन जारी कर दी जाएं. सभी जिलों के जिला अस्पतालों में इसके उपचार की सुविधा दी जाए.

प्लास्टिक सर्जन डॉ. सुबोध कुमार सिंह बताते हैं कि म्यूकर माइकोसिस अथवा ब्लैक फंगस, चेहरे, नाक, साइनस, आंख और दिमाग में फैलकर उसको नष्ट कर देती है. इससे आँख सहित चेहरे का बड़ा भाग नष्ट हो जाता है और जान जाने का भी खतरा रहता है. इसके लक्षण दिखते ही तत्काल उचित चिकित्सकीय परामर्श लेना बेहतर है. लापरवाही भारी पड़ सकती है.

इन मरीजों को बरतनी होगी खास सावधानी:

1- कोविड इलाज के दौरान जिन मरीजों को स्टेरॉयड दवा जैसे, डेक्सामिथाजोन, मिथाइल प्रेड्निसोलोन इत्यादि दी गई हो.

2- कोविड मरीज को इलाज के दौरान ऑक्सीजन पर रखना पड़ा हो या आईसीयू में रखना पड़ा हो.

3.डायबिटीज का अच्छा नियंत्रण ना हो.

4.कैंसर, किडनी ट्रांसप्लांट इत्यादि के लिए दवा चल रही हो.

यह लक्षण दिखें तो तुरंत लें डॉक्टरी सलाह:-

1.बुखार आ रहा हो, सर दर्द हो रहा हो, खांसी हो, सांस फूल रही हो.

2. नाक बंद हो. नाक में म्यूकस के साथ खून आ रहा हो.

3. आँख में दर्द हो. आँख फूल जाए, एक वस्तु दो दिख रही हो या दिखना बंद हो जाए.

4. चेहरे में एक तरफ दर्द हो , सूजन हो या सुन्न हो (छूने पर छूने का अहसास ना हो)

5. दाँत में दर्द हो, दांत हिलने लगें, चबाने में दर्द हो.

6. उल्टी में या खांसने पर बलगम में खून आये.

क्या करें :-

कोई भी लक्षण होने पर तत्काल सरकारी अस्पताल में या किसी अन्य विशेषज्ञ डॉक्टर से तत्काल परामर्श करें. नाक, कान, गले, आँख, मेडिसिन, चेस्ट या प्लास्टिक सर्जरी विशेषज्ञ से संपर्क कर तुरंत इलाज शुरू करें.

बरतें यह सावधानियां :-

  1. स्वयं या किसी गैर विशेषज्ञ डॉक्टर के, दोस्त मित्र या रिश्तेदार की सलाह पर स्टेरॉयड दवा कतई शुरू ना करें.

2. लक्षण के पहले 05 से 07 दिनों में स्टेरॉयड देने से दुष्परिणाम होते हैं. बीमारी शुरू होते ही स्टेरॉयड शुरू ना करें.

इससे बीमारी बढ़ जाती है.

3. स्टेरॉयड का प्रयोग विशेषज्ञ डॉक्टर कुछ ही मरीजों को केवल 05-10 दिनों के लिए देते हैं, वह भी बीमारी शुरू होने के 05-07 दिनों बाद केवल गंभीर मरीजों को. इसके पहले बहुत सी जांच आवश्यक है.

4. इलाज शुरू होने पर डॉक्टर से पूछें कि इन दवाओं में स्टेरॉयड तो नहीं है. अगर है, तो ये दवाएं मुझे क्यों दी जा रही हैं?

5. स्टेरॉयड शुरू होने पर विशेषज्ञ डॉक्टर के नियमित संपर्क में रहें.

6. घर पर अगर ऑक्सीजन लगाया जा रहा है तो उसकी बोतल में उबाल कर ठंडा किया हुआ पानी डालें या नार्मल सलाइन डालें. बेहतर हो अस्पताल में भर्ती हों.

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