इंद्रपत्नी की मृत्यु के बाद बेटी के साथ अमेरिका चले गए थे. 65 साल की आयु में जब पत्नी विमला कैंसर के कारण उन का साथ छोड़ गई तो उन की जीवननैया डगमगा उठी. इसी उम्र में तो एकदूसरे के साथ की जरूरत अधिक होती है और इसी अवस्था में वह हाथ छुड़ा कर किनारे हो गई थी.
पिता की मानसिक अवस्था को देख कर अमेरिकावासी दोनों बेटों ने उन्हें अकेला छोड़ना उचित नहीं समझा और जबरदस्ती साथ ले गए. अमेरिका में दोनों बेटे अलगअलग शहर में बसे थे. बड़े बेटे मनुज की पत्नी भारतीय थी और फिर उन के घर में 1 छोटा बच्चा भी था, इसलिए कुछ दिन उस के घर में तो उन का मन लग गया. पर छोटे बेटे रघु के घर वे 1 सप्ताह से अधिक समय नहीं रह पाए. उस की अमेरिकन पत्नी के साथ तो वे ठीक से बातचीत भी नहीं कर पाते थे. उन्हें सारा दिन घर का अकेलापन काटने को दौड़ता था. अत: 2 ही महीनों में वे अपने सूने घर लौट आए थे.
अब घर की 1-1 चीज उन्हें विमला की याद दिलाती और वे सूने घर से भाग कर क्लब में जा बैठते. दोस्तों से गपशप में दिन बिता कर रात को जब घर लौटते तो अपना घर ही उन्हें बेगाना लगता. अब अकेले आदमी को इतने बड़े घर की जरूरत भी नहीं थी. अत: 4 कमरों वाले इस घर को उन्होंने बेचने का मन बना लिया. इंद्र ने सोचा कि वे 2 कमरों वाले किसी फ्लैट में चले जाएंगे. इस बड़े घर में तो पड़ोसी की आवाज भी सुनाई नहीं पड़ती, क्योंकि घर के चारों ओर की दीवारें एक दूरी पैदा करती थीं. फ्लैट सिस्टम में तो सब घरों की दीवारें और दरवाजे इतने जुड़े हुए होते हैं कि न चाहने पर भी पड़ोसी के घर होते शोरगुल को आप सुन सकते हैं.
सभी मित्रों ने भी राय दी कि इतने बड़े घर में रहना अब खतरे से भी खाली नहीं है. आए दिन समाचारपत्रों में खबरें छपती रहती हैं कि बूढ़े या बूढ़ी को मार कर चोर सब लूट ले गए. अत: घर को बेच कर छोटा फ्लैट खरीदने का मन बना कर उन्होंने धीरेधीरे घर का अनावश्यक सामान बेचना शुरू कर दिया. पुराना भारी फर्नीचर नीलामघर भेज दिया. पुराने तांबे और पीतल के बड़ेबड़े बरतनों को अनाथाश्रम में भेज दिया. धोबी, चौकीदार, नौकरानी और ड्राइवर आदि को जो सामान चाहिए था, दे दिया. अंत में बारी आई विमला की अलमारी की. जब उन्होंने उन की अलमारी खोली तो कपड़ों की भरमार देख कर एक बार तो हताश हो कर बैठ गए. उन्हें हैरानी हुई कि विमला के पास इतने अधिक कपड़े थे, फिर भी वह नईनई साडि़यां खरीदती रहती थी.
पहले दिन तो उन्होंने अलमारी को बंद कर दिया. उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था कि इतने कपड़ों का वे क्या करेंगे. इसी बीच उन्हें किसी काम से मदुरै जाना पड़ा. वे अपनी कार से निकले थे. वापसी पर एक जगह उन की कार का टायर पंक्चर हो गया और उन्हें वहां कुछ घंटे रुकना पड़ा. जब तक कोई सहायता आती और कार चलने लायक होती, वे वहां टहलने लगे. पास ही रेलवे लाइन पर काम चल रहा था और सैकड़ों मजदूर वहां काम पर लगे हुए थे. काम बड़े स्तर पर चल रहा था, इसलिए पास ही मजदूरों की बस्ती बस गई थी.
इंद्र ने ध्यान से देखा कि इन मजदूरों का जीवन कितना कठिन है. हर तरफ अभाव ही अभाव था. कुछ औरतों के शरीर के कपड़े इतने घिस चुके थे कि उन के बीच से उन का शरीर नजर आने लगा था. एक युवा महिला के फटे ब्लाउज को देख कर उन्हें एकदम से अपनी पत्नी के कपड़ों की याद हो आई. वे मन ही मन कुदरत पर मुसकरा उठे कि एक ओर तो जरूरत से ज्यादा दे देती है और दूसरी ओर जरूरत भर का भी नहीं. इसी बीच उन की गाड़ी ठीक हो गई और वे लौट आए.
दूसरे दिन तरोताजा हो कर इंद्र ने फिर से पत्नी की अलमारी खोली तो बहुत ही करीने से रखे ब्लाउज के बंडलों को देखा. जो बंडल सब से पहले उन के हाथ लगा उसे देख कर वे हंस पड़े. वे ब्लाउज 30 साल पुराने थे. कढ़ाई वाले उस लाखे रंग के ब्लाउज को वे कैसे भूल सकते थे. शादी के बाद जब वे हनीमून पर गए तो एक दिन विमला ने यही ब्लाउज पहना था. उस ब्लाउज के हुक पीछे थे. विमला को साड़ी पहनने का उतना अभ्यास नहीं था. कालेज में तो वह सलवारकमीज ही पहनती थी तो अब साड़ी पहनने में उसे बहुत समय लगता था. उस दिन जब वे घूमने के लिए निकलने वाले थे तो विमला को तैयार हो कर बाहर आने के लिए कह कर वे होटल के लौन में आ कर बैठ गए. कुछ समय तो वे पेपर पढ़ते रहे और कुछ समय इधरउधर के प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेते रहे. आधे घंटे से ऊपर समय हो गया, मगर विमला बाहर नहीं आई. वे वापस कमरे में गए तो कमरे का दृश्य देख कर जोर से हंस पड़े. कमरे का दरवाजा खोल कर विमला दरवाजे की ओट में हो गई. और वह चादर ओढ़े थी.
वे बोले, ‘‘अरे, अभी तक तैयार नहीं हुईं?’’
‘‘नहीं. मैं तुम्हारा इंतजार कर रही थी. तुम्हें कैसे बुलाऊं, समझ में नहीं आ रहा था.’’
‘‘क्यों, क्या हुआ?’’
‘‘ब्लाउज बंद नहीं हो रहा.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘हुक पीछे हैं और मुझ से बंद नहीं हो रहे.’’
‘‘तो कोई दूसरी ड्रैस पहन लेतीं.’’
‘‘पहले यह उतरे तो… मैं तो इस में फंसी बैठी हूं.’’
विमला की स्थिति देख कर वे बहुत हंसे थे. फिर उन्होंने उस के ब्लाउज के पीछे के हुक बंद कर दिए थे. तब कहीं जा कर उस ने साड़ी पहनी थी. ब्लाउज के हुक बंद करने का उन का यह पहला अनुभव था और वे इतना रोमांचित हो गए कि विमला के ब्लाउज के हुक उन्होंने फिर से खोल दिए. वह कहती ही रह गई कि इतनी मुश्किल से साड़ी बांधी है और तुम ने सारी मेहनत बेकार कर दी. उस के बाद जब भी वह इस ब्लाउज को पहनती थी तो दोनों खूब हंसते थे.
मगर आज हंसने वाली बहुत दूर जा चुकी थी. हनीमून के दौरान पहना गया हर ब्लाउज उन्हें याद आने लगा. सफेद मोतियों से सजा काला ब्लाउज तो विमला के गोरे रंग पर बेहद खिलता था. जिस दिन विमला ने यह ब्लाउज पहना था उस की उंगलियां उस की गोरी पीठ पर ही फिसलती रहीं.
तब वह खीज उठी और बोली, ‘‘बस करो सहलाना गुदगुदी होती है.’’
‘‘अरे, अपनी बीवी की ही तो पीठ सहला रहा हूं.’’
‘‘मैं ने कहा न गुदगुदी होती है.’’
‘‘अरे, तुम्हारी तो पीठ में गुदगुदी हो रही है यहां तो सारे शरीर में गुदगुदी हो रही है.’’
‘‘बस करो अपनी बदमाशी.’’