‘मैं क्या कहूं, मैं ने तो अपनी बेटी आप को दी है. आप जैसा उचित समझें, करें,’ वह बेहद भावुक हो कर बोलीं.
‘आप इसे कुछ दिनों के लिए अपने साथ ले जाइए. वहां थोड़ा इस का मन तो बहल जाएगा,’ मम्मी ने कुछ सोचते हुए कहा.
‘नहीं, मम्मीजी, मैं इस घर को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी. मैं इस घर में बहू बन कर आई थी और यहीं से मेरी अंतिम विदाई भी होगी,’ भाभी धीरे से बोलीं.
‘तुम्हें यहां से कौन भेज रहा है बहू. मैं तो कह रही हूं कि कुछ दिनों के लिए मायके चली जाओ. वैसे तुम इस बात को भी ध्यान से सोचना कि तुम्हारे सामने सारी उम्र पड़ी है. तुम पहाड़ जैसा जीवन किस के सहारे काटोगी.’
‘मुन्ना है न, उसी में मैं उन का रूप देखती हूं,’ कहतेकहते भाभी की आंखें भर आईं.
‘बेटी, मुझे अपने बेटे के खोने से ज्यादा गम तुम्हारा है, क्योंकि मुझे तुम से हमदर्दी भी है और आत्मीयता भी. हम भला कब तक तुम्हारा साथ देंगे. एकल परिवारों की अपनी जन्मजात मुश्किलें हैं. कल अंकित की शादी होगी. उस की अपनी गृहस्थी बनेगी. हमारे जाने के बाद कौन कैसा व्यवहार करेगा...’
‘बहनजी, वैसे तो यह आप का पारिवारिक मामला है पर यदि अंकित की कहीं और बात नहीं चली हो तो संगीता भी तो...घर की बात घर में ही बन जाएगी और आप भी चिंतामुक्त हो जाएंगी. आप सोच लीजिए...’
उन के यह शब्द सुन कर मैं एकदम सकते में आ गया. मुझे लगा यदि मैं ने कोई कदम फौरन नहीं उठाया तो शायद किसी परेशानी में न फंस जाऊं.
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