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‘‘हां.’’

घर आया तो टैक्सी से उतरते हुए अवंतिका बोली, ‘‘चाय पी कर जाना.’’

‘‘तुम कहती हो तो जरूर पीऊंगा. तुम्हारे हाथ की अदरक वाली चाय पिए हुए 8 वर्ष हो गए हैं.’’

चाय तो क्या पी विशाल ने वह रात भी वहीं बिताई और वह भी एकदूसरे की बांहों में. आखिर पतिपत्नी तो वे थे ही. तलाक तो अभी हुआ नहीं था.

सुबह उठे तो दोनों में दांपत्य का खुमार जोरों पर था. पत्नी को बांहों में लेते हुए विशाल बोला, ‘‘अब अकेले नहीं रहेंगे. तलाक को मारो गोली.’’

अवंतिका ने भी सिर हिला कर हामी भर दी.

‘‘अगर हम बेवकूफी न करते तो अभी तक हमारे घर में 2-3 बच्चे होते. खैर, कोई बात नहीं…अब सही. क्यों?’’ विशाल बोला.

‘‘बिलकुल,’’ अवंतिका ने जवाब दिया, ‘‘अब पारिवारिक सुख रहेगा, श्री और श्रीमती विशाल स्वरूप और उन के रोतेठुनकते बच्चे, बच्चों के स्कूल टीचरों की चमचागीरी आदि. क्यों प्रिये, तुम घबरा तो नहीं गए?’’

‘‘घबराऊं और वह भी जब तुम्हारा साथ रहे? नामुमकिन.’’

घड़ी पर निगाह पड़ी तो विशाल बोला, ‘‘अरे, घंटे भर में मुझे आफिस पहुंचना है. अवंतिका प्लीज, मेरे स्नान के लिए पानी गरम कर दो.’’

अवंतिका जैसे ही रसोई में पानी गरम करने गई विशाल ने विवेक को फोन लगाया, ‘‘यार, मैं अवंतिका के घर से बोल रहा हूं. वह मान गई है और हमारे घर की बगिया में फिर से बहार आ गई है.’’

विशाल कपडे़ पहन कर बाहर निकला तो देखा अवंतिका फोन पर किसी से बात कर रही थी, ‘‘नहीं पल्लवी, आज मैं हड़ताल में नारे लगाने नहीं आऊंगी, क्योंकि वहां पुलिस मुझे गिरफ्तार कर सकती है और आज मेरे लिए बहुत अहम दिन है.’’

विशाल पूछ बैठा, ‘‘अवंतिका, यह गिरफ्तार होने का क्या मामला है?’’

‘‘बात यह है विशाल कि बड़ी तेल कंपनियां अपने उत्पाद का दाम बढ़ाए जा रही हैं…मुझे इस के विरुद्ध हड़ताल करने वालों का साथ देना था.’’

‘‘क्या बेवकूफी की बातें करती हो. आखिर तेल कंपनियों को भी तो कमाना है, और अगर जनता कीमत दे सकती है तो वे दाम क्यों न बढ़ाएं?’’

‘‘मिस्टर, मुझे अर्थशास्त्र नहीं सिखाओ,’’ गुस्से में अवंतिका बोली और एक प्लेट उठाई तो वार से बचने के लिए विशाल सीढि़यों से नीचे दौड़ पड़ा.

‘‘नमस्कारम्,’’ विशाल को देख हेमंत मुसकराया.

उधर विशाल की तरफ प्लेट फेंकते हुए अवंतिका चीखी, ‘‘निकल जाओ मेरे घर से.’’

आफिस पहुंचते ही विशाल ने विवेक को बताया, ‘‘अभी मैं ने फोन पर जो कहा था वह भूल जाओ. उस बेवकूफ की औंधी खोपड़ी अभी भी वैसी ही है. ऐसी नकचढ़ी युवती के साथ मैं नहीं रह सकता.’’

विवेक फोन पर बात कर रहा था. उस ने चोगा विशाल को थमा दिया और फुसफुसाया, ‘‘मुंशी साहब.’’

मुंशी साहब का फोन कान से लगाने के बाद विशाल के मुंह से केवल ये शब्द ही निकले, ‘जी हां सर,’ ‘बहुत अच्छा सर,’ ‘बिलकुल ठीक सर’ और ‘धन्यवाद सर.’

फोन रख कर विशाल ने ठंडी सांस ली, ‘‘अंतर्राष्ट्रीय शाखा का प्रबंधक होने का मतलब जानते हो विवेक. लंदन, पेरिस व रोम में अब मेरा आफिस होगा. निजी वायुयान, वर्ष में डेढ़ महीने की छुट्टी. कंपनी के खर्चे पर दुनिया घूमने का अवसर. मुंशी साहब ने तो छप्पर फाड़ कर मेरी झोली भर दी.’’

विवेक हंस पड़ा, ‘‘अब बीवी का क्या होगा?’’

‘‘तुम चिंता न करो. उस बेवकूफ को मना लूंगा. वार्षिक आम सभा में कितने दिन बाकी हैं?’’

‘‘10 दिन.’’

आफिस से विशाल टैक्सी ले कर  सीधे अवंतिका के घर की ओर भागा. देखा, वह एक टैक्सी पर सवार हो कर कहीं जा रही थी. उस ने अपने टैक्सी चालक के सामने 500 का नोट रखते हुए कहा, ‘‘भैया, वह जो टैक्सी गई है उसे पकड़ना है.’’

अवंतिका की टैक्सी हवाई अड्डे की ओर दौड़ रही थी. विशाल ने सोचा, जरूर वह तलाक लेने विदेश जा रही है. तभी हवाई अड्डे के पास की बत्ती लाल हो गई और दोनों टैक्सियां एकदूसरे के आगेपीछे रुकीं. विशाल उतर कर दौड़ा और अवंतिका का हाथ थाम लिया, ‘‘डार्लिंग, तुम्हें जो करना है करो. मैं कभी तुम्हें रोकूंगा नहीं, क्योंकि तुम से प्रेम जो करता हूं.’’

अवंतिका भी अपनी टैक्सी से उतरी और उस की बांहों में समा गई. बाद में वे दोनों वापस अपने आशियाने की ओर चल पडे़. विशाल ने विवेक को फोन किया, ‘‘भाई, किला फतह हो गया.’’

राह में अवंतिका ने समझाया, ‘‘विशाल, अभी हम दोनों को अपना प्रेम मजबूत करना है इसलिए मैं तुम से अलग दूसरे कमरे में सोती हूं.’’

विशाल क्या करता. चुपचाप मान गया.

रात में बिस्तर में जब विशाल ने करवट बदली तो एक बदन से हाथ टकरा गया. सोचा, अवंतिका का दिल द्रवित हो गया होगा और पास आ कर सो गई होगी. जब मुंह पर हाथ फेरा तो बढ़ी हुई दाढ़ी मिली. बत्ती जलाई तो देखा हेमंत साहब आराम से खर्राटे ले रहे हैं.

वह उठ कर दूसरे कमरे में पहुंचा तो अवंतिका के पलंग पर नारी का खुशबूदार बदन था. अंधेरे में चादर उठा कर जब विशाल उस में घुसा तो वह चीखी. उसे छोड़ कर जब विशाल अपने बिस्तर में फिर घुसा तो हेमंत ने करवट बदली और विशाल के मुंह पर हाथ फेर धीरे से बोला, ‘‘तुम्हें ठंड तो नहीं लग रही है, प्रिये.’’

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