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दोस्ती क्या है? दोस्ती किसी कहानी के उन खयालों की तरह है, जिस के एकएक पैराग्राफ एकदूसरे से जुड़े रहते हैं. एक भी पैराग्राफ छूटा, तो आगे की कहानी समझना बहुत मुश्किल है. उस दोस्ती में से कुछ दोस्त पैराग्राफ के उन मुश्किल पर्यायवाची शब्दों की तरह होते हैं, जिन्हें याद रखने की कोशिश करतेकरते हम भूलते चले जाते हैं. जिंदगी हमें इतना परेशान करती है कि उन की यादें धुंधली हो जाती हैं. फिर कभी कहीं किसी रोज उन का जिक्र आ जाने से या किसी के द्वारा उन की बात छेड़ देने से उन की यादें उन पर्यायवाची शब्दों की तरह ताजा हो जाती हैं.

ऐसा ही एक दोस्त था. कहां से शुरू करूं उस के बारे में... धुंधलीधुंधली सी यादें हैं उस की... एक साधारण सा दुबलापतला हाफ पैंट में लड़का, जिस के लंबे घने बाल, जिन में सरसों का तेल लगा रहता था और पूरे चिपकू के जैसे अपने बालों को चिपका कर रखता था. उस के घर वाले कहते थे कि पढ़ने में बहुत ही होशियार है, इसलिए गांव से शहर ले आए हैं. यहां अच्छी पढ़ाई मिलेगी, तो शायद कुछ कर ले. एकदम गुमसुम और खामोश... शायद कुछ छूट गया हो या खो गया हो.

गांव से शहर आने की वजह से उसे बगैर किसी काम के घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी, पर धीरेधीरे उस का बाहर निकलना शुरू हुआ. कभी मसजिद में नमाज पढ़ने जाने, तो कभी कुछ राशन लाने या फिर दुकान पर बीड़ी पहुंचाने के बहाने से. कुछ दिनों के बाद वह हाफ पैंट छोड़ लुंगी पहनने लगा, जिसे देख कर महल्ले के सारे हमउम्र लड़के उस का मजाक उड़ाने लगे. इतनी कम उम्र में लुंगी पहनने की वजह से पूरे महल्ले के लोग उसे पहचानने लगे थे.

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