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कई बार निवेदिता खुद से पूछती कि उस में उस का कुसूर क्या था कि वह सुंदर थी, स्मार्ट थी. लोगों के बीच जल्द ही आकर्षण का केंद्र बन जाती थी या उस की मित्रता सब से हो जाती थी. वरना पत्नी के प्रति दुराव की क्षुद्र मानसिकता के मूल कारण क्या हो सकते थे? शरीर के रोगों को दूर करने वाले तेजेश्वर यह क्यों नहीं समझ पाए कि इनसान अपने मृदु और सरल स्वभाव से ही तो लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बनता है.

दिनरात की नोकझोंक और चिड़- चिड़ाहट से दुखी हो उठी थी निवेदिता. सोचा, क्या रखा है इन घरगृहस्थी के झमेलों में?

एक दिन अपनी डिगरियां और सर्टिफिकेट निकाल कर तेज से बोली, ‘घर में बैठेबैठे मन नहीं लगता, क्यों न मैं कोई नौकरी कर लूं?’

‘और यह घरगृहस्थी कौन संभालेगा?’ तेज ने आंखें तरेरीं.

‘घर के काम तो चलतेफिरते हो जाते हैं,’ दृढ़ता से निवेदिता ने कहा तो तेजेश्वर का स्वर धीमा पड़ गया.

‘निवेदिता, घर से बाहर निकलोगी तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा.’

‘क्यों…’ लापरवाही से पूछा था उस ने.

‘लोग न जाने तुम्हें कैसीकैसी निगाहों से घूरेंगे.’

कितना प्यार करते हैं तेज उस से? यह सोच कर निवेदिता इतरा गई थी. पति की नजरों में, सर्वश्रेष्ठ बनने की धुन में वह तेजेश्वर की हर कही बात को पूरा करती चली गई थी, पर जब टांग पर टांग चढ़ा कर बैठने में, खिड़की से बाहर झांक कर देखने में, यहां तक कि किसी से हंसनेबोलने पर भी तेज को आपत्ति होने लगी तो निवेदिता को अपनी शुरुआती भावुकता पर अफसोस होने लगा था.

निरी भावुकता में अपने निजत्व को पूर्ण रूप से समाप्त कर, जितनी साधना और तप किया उतनी ही चतुराई से लासा डाल कर तेजेश्वर उस की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को ही बाधित करते चले गए.

दर्द का गुबार सा उठा तो निवेदिता ने करवट बदल ली. यादों के साए पीछा कहां छोड़ रहे थे. विवाह की पहली सालगिरह पर मम्मीपापा 2 दिन पहले ही आ गए थे. मित्र, संबंधी और परिचितों को आमंत्रित कर उस का मन पुलक से भर उठा था लेकिन तेजेश्वर की भवें तनी हुई थीं. निवेदिता के लिए पति का यह रूप नया था. उस ने तो कल्पना भी नहीं की थी कि इस खुशी के अवसर को तेज अंधकार में डुबो देंगे और जरा सी बात को ले कर भड़क जाएंगे.

‘मटरमशरूम क्यों बनाया? शाही पनीर क्यों नहीं बनाया?’

छोटी सी बात को टाला भी जा सकता था पर तेजेश्वर ने महाभारत छेड़ दिया था. अकसर किसी एक बात की भड़ास दूसरी बात पर ही उतरती है. तेज का स्वभाव ही ऐसा था. दोस्ती किसी से करते नहीं थे, इसीलिए लोग उन से दूर ही छिटके रहते थे. आमंत्रित अतिथियों से सभ्यता और शिष्टता से पेश आने के बजाय, लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ही उन्होंने वह हंगामा खड़ा किया था. यह सबकुछ निवेदिता को अब समझ में आता है.

2 दिन तक मम्मीपापा और रहे थे. तेज इस बीच खूब हंसते रहे थे. निवेदिता इसी मुगालते में थी कि मम्मीपापा ने कुछ सुना नहीं था पर अनुभवी मां की नजरों से कुछ भी नहीं छिपा था.

घर लौटते समय तेज का अच्छा मूड देख कर उन्होंने मशविरा दिया था, ‘जिंदगी बहुत छोटी है. हंसतेखेलते बीत जाए तो अच्छा है. ज्यादा ‘वर्कोहोलिक’ होने से शरीर में कई बीमारियां घर कर लेती हैं. कुछ दिन कहीं बाहर जा कर तुम दोनों घूम आओ.’

इतना सुनते ही वह जोर से हंस दी थी और उस के मुंह से निकल गया था, ‘मां, कभी सोना लेक या बटकल लेक तक तो गए नहीं, आउट आफ स्टेशन ये क्या जाएंगे?’

मजाक में कही बात मजाक में ही रहने देते तो क्या बिगड़ जाता? लेकिन तेज का तो ऐसा ईगो हर्ट हुआ कि मारपीट पर ही उतर आए.

हतप्रभ रह गई थी वह तेज के उस व्यवहार को देख कर. उस दिन के बाद से हंसनाबोलना तो दूर, उन के पास बैठने तक से घबराने लगी थी निवेदिता. कई दिनों तक अबोला ठहर जाता उन दोनों के बीच.

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