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यद्यपि कपिल ने कई बार प्रेरणा से बात करने की कोशिश की पर संकोच ने हर बार प्रेरणा को आगे बढ़ने से रोक दिया. कभी रास्ते में आतेजाते अगर कपिल पे्ररणा के करीब आता भी तो प्रेरणा का दिल तेजी से धड़कने लगता और तुरंत वह वहां से चली जाती. जोरजबरदस्ती कपिल को भी पसंद नहीं थी.

प्रेरणा की अल्हड़ जवानी के हसीन खयालों में कपिल ही कपिल समाया था. सारीसारी रात वह कपिल के बारे में सोचती और उस की बांहों में झूलने की तमन्ना अकसर उस के दिल में रहती थी पर कपिल के करीब जाने का साहस प्रेरणा में न था. स्वभाव से संकोची प्रेरणा बस सपनों में ही कपिल को छू पाती थी.

वह होली की सुबह थी. चारोें तरफ गुलाल ही गुलाल बिखर रहा था. लाल, पीला, नीला, हरा…रंग अपनेआप में चमक रहे थे. सभी अपनेअपने दोस्तों को रंग में नहलाने में जुटे हुए थे. इस कालोनी की सब से अच्छी बात यह थी कि सारे त्योहार सब लोग मिलजुल कर मनाते थे. होली के त्योहार की तो बात ही अलग है. जिस ने ज्यादा नानुकर की वह टोली का शिकार बन जाता और रंगों से भरे ड्रम में डुबो दिया जाता.

प्रेरणा अपनी टोली के साथ होली खेलने में मशगूल थी तभी प्रेरणा की मां ने उसे आवाज दे कर कहा था :

‘प्रेरणा, ऊपर छत पर कपड़े सूख रहे हैं, जा और उतार कर नीचे ले आ, नहीं तो कोई भी पड़ोस का बच्चा रंग फेंक कर कपड़े खराब कर देगा.’

प्रेरणा फौरन छत की ओर भागी. जैसे ही उस ने मां की साड़ी को तार से उतारना शुरू किया कि किसी ने पीछे से आ कर उस के चेहरे को लाल गुलाल से रंग दिया.

प्रेरणा ने घबरा कर पीछे मुड़ कर देखा तो कपिल को रंग से भरे हाथों के साथ पाया. एक क्षण को प्रेरणा घबरा गई. कपिल का पहला स्पर्श…वह भी इस तरह.

‘‘यह क्या किया तुम ने? मेरा सारा चेहरा…’’ पे्ररणा कुछ और बोलती इस से पहले कपिल ने गुनगुनाना शुरू कर दिया…

‘‘होली क्या है, रंगों का त्योहार…बुरा न मानो…’’

कपिल की आंखों को देख कर लग रहा था कि आज वह प्रेरणा को नहीं छोड़ेगा.

‘‘क्या हो गया है तुम्हें? भांगवांग खा कर आए हो…’’ घबराई हुई प्रेरणा बोली.

‘‘नहीं, प्रेरणा, ऐसा कुछ नहीं है. मैं तो बस…’’ प्रेरणा का इस तरह का रिऐक्शन देख कर एक बार तो कपिल घबरा गया था.

पर आज कपिल पर होली का रंग खूब चढ़ा हुआ था. तार पर सूखती साड़ी का एक कोना पकड़ेपकड़े कब वह प्रेरणा के पीछे आ गया इस का एहसास प्रेरणा को अपने होंठों पर पड़ती कपिल की गरम सांसों से हुआ.

इतने नजदीक आए कपिल से दूर जाना आज प्रेरणा को भी गवारा नहीं था. साड़ी लपेटतेलपेटते कपिल और प्रेरणा एकदूसरे के अंदर समाए जा रहे थे.

कपिल के हाथ प्रेरणा के कंधे से उतर कर उस की कमर तक आ रहे थे…इस का एहसास उस को हो रहा था. लेकिन उन्हें रोकने की चेष्टा वह नहीं कर रही थी.

कपिल के बदन पर लगे होली के रंग धीरेधीरे प्रेरणा के बदन पर चढ़ते जा रहे थे. साड़ी में लिपटेलिपटे दोनों के बदन का रंग अब एक हो चला था.

शारीरिक संबंध चाहे पहली बार हो या बारबार, प्रेमीप्रेमिका के लिए रसपूर्ण ही होता है. जब तक प्रेरणा कपिल से बचती थी तभी तक बचती भी रही थी पर अब तो दोनों ही एक होने का मौका ढूंढ़ते थे और मौका उन्हें मिल भी जाता था. सच ही है जहां चाह होती है वहां राह भी मिल जाती है.

पर इस प्रेमकथा का अंत इस तरह होगा, यह दोनों ने नहीं सोचा था.

कपिल और प्रेरणा की लाख दुहाई देने पर भी कपिल की रूढि़वादी दादी उन के विवाह के लिए न मानीं और दोनों प्रेमी जुदा हो गए. घर वालों के खिलाफ जाना दोनों के बस की बात नहीं थी. 2 घर की छतों से शुरू हुई सालों पुरानी इस प्रेम कहानी का अंत भी दोनों छतों के किनारों पर हो गया था.

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