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निशा दोपहर की वारदात से बहुत ज्यादा डरी हुई थी, पर उस में बहुत हिम्मत बाकी थी. वह उदास सी कच्चे मकान की तीसरी मंजिल पर पलंग पर लेटी हुई थी. उसे हलका बुखार था. माथा दर्द से फटा जा रहा था. कभीकभी तो निशा अपने दोनों हाथों से सिर को इस तरह पकड़ लेती मानो उसे दबा कर निचोड़ देना चाहती हो. उस के बाल इधरउधर बिखर गए थे. वह बहुत बेचैन थी. उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. अचानक निशा ने अपने दिल की आवाज सुनी, ‘निशा, तू इस शहरगांव, देश को छोड़ दे,’ और उस ने मरने की ठान ली. उस का चेहरा धीरेधीरे सख्त होने लगा. अचानक वह उठ कर बैठ गई. मगर जैसे ही उस ने उठना चाहा, बगल वाले टूटे पलंग पर लेटे पिता पर उस की नजर पड़ गई.

निशा ने जब गौर से पिता की नंगी पीठ देखी, तो उस के कानों में एमएलए कृपाल सिंह के आदमियों के डंडों की सरसराहट और पिता की चीखें गूंजने लगीं. उसे लगा मानो एमएलए की धमकी भरी तेज आवाज से उस का घर चरमरा कर गिर पड़ेगा. उस की आंखों से आंसू बहने लगे. वह अपने दोनों हाथों से चेहरा छिपा कर रोने लगी. निशा और राजन एकसाथ कोचिंग क्लासों में मिले थे. निशा के पास कुछ नहीं था, पर उस के हर ऐग्जाम में 98 फीसदी मार्क्स आते थे. राजन ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया. राजन पहले मौजमस्ती वाला लड़का था, पर निशा के पढ़ाने पर कोचिंग के मौक टैस्टों में अब वह भी 90 फीसदी मार्क्स लाने लगा था. मार्क्स ही नहीं मिले, दिल भी मिले और बदन भी. अब दोनों को अलग करना मुश्किल था. अचानक निशा के दिल ने फिर आवाज दी, ‘धीरज रखो निशा, सब ठीक हो जाएगा. अगर तुम भाग जाओगी तो पिता का क्या होगा? उस राजन का क्या होगा, जो तुम्हारे प्यार में अपना सबकुछ छोड़ने को तैयार है? तुम्हारे प्यार को ही वह अपनी मंजिल मानता है.

और जब तुम ही नहीं रहोगी तो वह कहां जाएगा? तब शायद वह भी मर जाएगा.’ राजन की बातें निशा के कानों में गूंजने लगीं, ‘नहीं निशा, तुम्हें कुछ नहीं होगा. मुझ पर यकीन करो. मैं इस ऊंचनीच की दीवार को तोड़ कर एक दिन इस सारी बस्ती की क्या सारे शहर के सामने तेरी मांग में सिंदूर भरूंगा. मरने की बात मत करो. अगर तुम्हें कुछ हो गया, तो मैं खुद को आग लगा दूंगा.’ निशा बड़बड़ाने लगी, ‘‘मुझे कुछ नहीं होगा राजन… मैं तुम्हारे साथ हूं… मैं भी लड़ूंगी इस समाज से भी, पुलिस से भी, मैं भी लड़ूंगी…’’ अचानक निशा ने देखा कि उस के पिता उसी की तरफ आ रहे हैं. वह आंखें बंद कर के सोने का नाटक करने लगी. मगर पिता तो पिता होता है, वे बेटी की हर हरकत को भांप चुके थे. वे उस के टूटे से पलंग पर बैठ गए. उस के गालों पर आंसू देख कर पहले तो सहमे, फिर प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले, ‘‘तेरा बाप हूं… तेरी हालत को मैं जानता हूं. मगर मैं ऐसा बाप हूं,

जो तेरी इच्छा को जानते हुए भी तेरे लिए कुछ नहीं कर पा रहा हूं. मैं बेसहारा हूं. ‘‘बेटी, मेढ़क अगर चांद के पास जाना चाहे तो वह फुदकफुदक कर जान दे देगा, फिर भी वह चांद तक नहीं पहुंच पाएगा. हम उसी मेढ़क की तरह हैं. बेटी, भूल जा राजन को. ‘‘मैं मानता हूं कि प्यार करना कोई जुर्म नहीं है. मगर तुम्हारा सब से बड़ा जुर्म यह है कि तुम मेरी बेटी हो… एक हरिजन की बेटी. राजन इस इलाके के एमएलए के बेटे हैं, राजपूत खानदान के एकलौते वारिस हैं. वे ऊंची जाति वाले लोग हम हरिजनों को अपने आंगन में बैठा कर खाना तक नहीं खिलाते… अपना बेटा कहां से देंगे? ‘‘यह दुनिया फूलों की सेज नहीं है बेटी, बहुत कांटे हैं इस में. अपनी जिंदगी बचा लो, भूल जाओ राजन को. पोंछ लो आंसू… पत्थर आंसुओं से कभी नहीं पिघला करते. पत्थरों से सिर टकराने से अपना ही सिर फूटता है बेटी.’’ निशा जो अब तक चुप थी, फफक कर रो पड़ी. उस ने अपने पिता के सीने में अपना चेहरा छिपा लिया. कुछ देर तक बापबेटी एकदूसरे की बांहों में सुबकते रहे. फिर किसी तरह अपनेआप को संभालते हुए पिता बोले, ‘‘बेटी, इतना याद रखो कि हम हरिजन हैं… छोटी जाति के हैं. तुम…’’ बात को बीच में ही काटते हुए निशा बोली, ‘‘मगर बापू, आज जमाना बदल गया है. आप भी जानते हो और राजन भी जानता है कि यह कच्ची बस्ती का मकान हम जल्दी छोड़ देंगे. मुझे जरा इंजीनियरिंग करने दो, मैं लाखों कमाऊंगी. अब कोई हमारे रास्ते को जाति के नाम पर नहीं रोक सकता.

‘‘पर जब मेरे नंबर पता चलते हैं, तो चकरा जाते हैं, इसीलिए राजन इस फर्क को नहीं मानता.’’ ‘‘मैं जानता हूं बेटी, राजन का दिल साफ है. मगर जातपांत और ऊंचनीच की दीवारों को तोड़ना आसान नहीं है. विधायक कृपाल सिंह और वह भी सत्ताकद पार्टी का, किसी भी शर्त पर एक हरिजन की बेटी को अपनी बहू बनाना कबूल नहीं करेगा. यह बात दूसरी है कि वोट मांगने वह घरों में घुसता हो, पर बहू मांगने इस मकान में कभी नहीं आएगा.’’ कुछ देर बाद पिता उठे और अपने पलंग पर जा कर लेट गए. निशा चुपचाप बुत बनी वहीं बैठी रही. उसे कुछ सूझ नहीं रहा था. एक तरफ राजन का प्यार था, तो वहीं दूसरी तरफ जातपांत की दीवार थी. आखिर वह क्या करे? धीरे से निशा भी लेट गई और राजन के बारे में सोचने लगी. राजन तो दिल का राजा था. आज के जमाने में ऊंचनीच और जातपांत को न मानने वाला वह नौजवान सचमुच दिल का बादशाह था. यही वजह थी कि एक हरिजन की बेटी को वह अपना दिल दे बैठा था. उसे उस के कुछ दोस्तों ने कहा था कि नंबरों पर मत जा, औकात देख. निशा को एक दिन की बात याद आ गई, जब राजन उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा कर शहर से काफी दूर निकल गया था.

मोटरसाइकिल पर पीछे बैठी निशा ने राजन को कस कर पकड़ा हुआ था कि कहीं वह गिर न जाए. कभीकभी राजन जब अचानक ब्रेक लगा देता, तो निशा पूरी तरह उस पर झुक जाती. तब शरमाते हुए वह सिर्फ इतना ही कह पाती, ‘ठीक से चलाओ न.’ जब दोनों काफी दूर निकल आए तो निशा से नहीं रहा गया और पूछ बैठी कि वे कहां जा रहे हैं? मगर राजन मुसकरा कर बारबार अनसुनी कर देता. आखिर निशा अचानक जोर से बोली, ‘गाड़ी रोकिए.’ राजन मोटरसाइकिल रोक कर निशा की तरफ मुड़ा और मुसकराते हुए बोला कि वह एक रिजौर्ट में पूरा दिन बिताने ले जा रहा?है. पहले तो वह मना करती रही, मगर राजन की बात को ठुकरा नहीं पाई थी. वह निशा को पहली बार इतने शानदार रिजौर्ट में ले कर आया था. निशा ने छक कर खाया. दोनों ने बाद में एक कमरे में पूरा दिन बिताया. राजन निशा की गोद में सिर रख कर लेट गया. तब निशा प्यार से उस के माथे पर हाथ फेरते हुए बोली थी, ‘थक गए क्या?’ राजन भी निशा की आंखों में झांकते हुए प्यार से बोला था,

‘नहीं निशा, इस समय मुझे ऐसा लग रहा है, जैसे मुझे दुनियाभर की खुशियां मिल गई हैं.’ निशा कुछ नहीं बोली, तो राजन ने कहा, ‘चुप क्यों हो?’ ‘डरती हूं.’ ‘क्यों?’ हिचकिचाते हुए निशा ने कहा, ‘आप विधायक के बेटे, ऊंची जाति के…’ ‘और तुम एक हरिजन की बेटी… यही कहना चाहती हो न तुम?’ राजन थोड़े गुस्से से बोला था. निशा खामोश ही रही. फिर बड़े प्यार से राजन ने अपने दोनों हाथों से उस का चेहरा सामने करते हुए कहा, ‘मैं तुम से कितनी बार कह चुका हूं कि इस तरह की बातें मत किया करो. मैं जो कुछ भी हूं सिर्फ तुम्हारा हूं और तुम मेरी होने वाली पत्नी हो.

मैं तो इतना ही जानता हूं कि अगर तुम नहीं तो मैं भी नहीं.’ निशा अपने बीते हुए दिनों में खोई हुई थी कि अचानक पीछे की छोटी सी खिड़की से कोई कूदा. वह डर गई. घबराते हुए वह पलंग से उठने लगी. फिर जैसे ही बोलने के लिए उस ने मुंह खोलना चाहा, उस साए ने उस का मुंह बंद कर दिया और धीरे से कहा, ‘‘मैं हूं निशा, राजन, तुम्हारा राजन.’’ निशा राजन की बांहों में समा गई. उस के सीने में अपना चेहरा छिपा कर सुबकने लगी. राजन ने उस के बालों पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘मुझे सब मालूम हो गया निशा, लेकिन अब सब ठीक हो जाएगा.

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