‘‘मैं शादी नहीं करना चाहती हूं,’’ अंजलि रुंधी आवाज में बोली.
‘‘तो मत करना, पर घर आए मेहमान का स्वागत करने तो चलो,’’ और अरुण उस का हाथ पकड़ कर ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़ा. अंजलि की आंखों में चिंता और बेचैनी के भाव और बढ़ गए थे.
ड्राइंगरूम में नीरज को तीनों छोटे बच्चों ने घेर रखा था. उस के सामने उन्होंने कई पैंसिलें और ड्राइंगपेपर रखे हुए थे. नीरज चित्रकार था. वे सब अपनाअपना चित्र पहले बनवाने के लिए शोर मचा रहे थे. उन के खुले व्यवहार से यह साफ जाहिर हो रहा था कि नीरज ने उन तीनों के दिल चंद मिनटों की मुलाकात में ही जीत लिए थे.
अरुण की 6 वर्षीय बेटी महक ने चित्र बनवाने के लिए गाल पर उंगली रख कर इस अदा से पोज बनाया कि कोई भी बड़ा व्यक्ति खुद को हंसने से नहीं रोक पाया.
अंजलि ने हंसतेहंसते महक का माथा चूमा और फिर हाथ जोड़ कर नीरज का अभिवादन किया.
‘‘यह तुम्हारे लिए है,’’ नीरज ने खड़े हो कर एक चौड़े कागज का रोल अंजलि के हाथ
में पकड़ाया.
‘‘आप की बनाई कोई पेंटिंग है इस में?’’ अरुण की पत्नी मंजु ने उत्सुकता से पूछा.
‘‘जी, हां,’’ नीरज ने शरमाते हुए जवाब दिया.
‘‘हम सब इसे देख लें, दीदी?’’ अंजलि के छोटे भाई अजय की पत्नी शिखा ने प्रसन्न लहजे में पूछा.
अंजलि ने रोल शिखा को पकड़ा दिया.
वह अपनी जेठानी की सहायता से गिफ्ट पेपर खोलने लगी.
नीरज ने अंजलि को उसी का रंगीन पोर्ट्रेट बना कर भेंट किया था. तसवीर बड़ी सुंदर बनी थी. सब मिल कर तसवीर की प्रशंसा करने लगे.
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