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अशोकजी शाम को अपने घर की छत पर टहल रहे थे. एक मोटरसाइकिल सवार गेट के सामने आ कर रुका, जिस का चेहरा हैलमेट में ढका हुआ था. उस ने पहले अपनी जैकट की जेब से एक लिफाफा निकाल कर लैटर बौक्स में डाला, फिर सिर उठा कर अशोकजी की ओर देखा और हाथ हिलाने के बाद चला गया.

उस लिफाफे में अशोकजी को एक पत्र मिला जिस में लिखा था, ‘सर, आप के डर के कारण आप की बेटी अलका मुझ से रिश्ता नहीं जोड़ रही है. उस की तरह मैं भी 2 महीने बाद नौकरी करने अमेरिका जा रहा हूं. वहां मेरा सहारा पा कर वह सुरक्षित रहेगी. ‘मेरी आप से प्रार्थना है कि आप अलका से बात कर उस का भय दूर करें. आप ने हमारे रिश्ते को स्वीकार करने में अड़चनें डालीं तो जो होगा उस के जिम्मेदार सिर्फ आप ही होंगे.

‘मैं अलका का सहपाठी हूं. अपना फोन नंबर मैं ने नीचे लिख दिया है. आप जब चाहेंगे मैं मिलने आ जाऊंगा. आप के आशीर्वाद का इच्छुक-रोहन.’ पत्र पढ़ कर अशोकजी बौखला गए. उन के लिए रोहन नाम पूरी तरह से अपरिचित था. उन की इकलौती संतान अलका ने कभी किसी रोहन की चर्चा नहीं छेड़ी थी.

पत्र में जो धमकी का भाव मौजूद था उस ने अशोकजी को चिंतित कर दिया. अलका का मोबाइल नंबर मिलाने के बजाय उन्होंने अपने हमउम्र मित्र सोमनाथ का नंबर मिलाया. अशोकजी के फौरन बुलावे पर सोमनाथ 15 मिनट के अंदर उन के पास पहुंच गए. रोहन का पत्र पढ़ने के बाद उन्होंने चिंतित स्वर में टिप्पणी की, ‘‘यह तो इश्क का मामला लगता है मेरे भाई. अलका बेटी ने कभी इस रोहन के बारे में तुम से कुछ नहीं कहा?’’

‘‘एक शब्द भी नहीं,’’ अशोकजी भड़क उठे, ‘‘मुझे लगता है कि यह मजनू की औलाद मेरी बेटी को जरूर तंग कर रहा है. अलका ने इस के प्यार को ठुकराया होगा तो इस कमीने ने यह धमकी भरी चिट्ठी भेजी है.’’ ‘‘दोस्त, यह भी तो हो सकता है कि अलका भी उसे चाहती…’’

सोमनाथ की बात को बीच में काटते हुए अशोकजी बोले, ‘‘अगर ऐसा होता तो मेरी बेटी जरूर मुझ से खुल कर सारी बात कहती. तू तो जानता ही है कि तेरी भाभी की मृत्यु के बाद अपनी बेटी से अच्छे संबंध बनाने के लिए मैं ने अपने स्वभाव को बहुत बदला है. वह मुझ से हर तरह की बात कर लेती है, तो इस महत्त्वपूर्ण बात को क्यों छिपाएगी?’’ ‘‘अब क्या करेगा?’’

‘‘तू सलाह दे.’’ ‘‘इस रोहन के बारे में जानकारी प्राप्त करनी पड़ेगी. अगर यह गलत किस्म का युवक निकला तो इस का दिमाग ठिकाने लगाने को पुलिस की मदद मैं दिलवाऊंगा.’’

सोमनाथ से हौसला पा कर अशोकजी की आंखों में चिंता के भाव कुछ कम हुए थे.

रोहन के बारे में जानकारी प्राप्त करने की जिम्मेदारी अशोकजी ने अपने भतीजे साहिल को सौंपी. उस की रिपोर्ट मिलने तक उन्होंने अलका से इस बारे में कोई बात न करने का निर्णय किया था. ‘‘अंकल, रोहन सड़क छाप मजनू नहीं बल्कि बहुत काबिल युवक है,’’ साहिल ने 2 दिन बाद अशोकजी को बताया, ‘‘अलका दी और रोहन कक्षा के सब से होशियार विद्यार्थियों में हैं. तभी दोनों को अमेरिका में अच्छी नौकरी मिली है. पहले इन दोनों के बीच अच्छी दोस्ती थी पर करीब 2 सप्ताह से आपस में बोलचाल बंद है, रोहन के घर का पता इस कागज पर लिखा है.’’

साहिल ने एक कागज का टुकड़ा अशोकजी को पकड़ा दिया था. ‘‘तुम ने मालूम किया कि रोहन के घर में और कौनकौन हैं?’’

‘‘बड़ी बहन की शादी हो चुकी है और वह मुंबई में रहती है. रोहन अपनी विधवा मां के साथ रहता है. उस के पिता की सड़क दुर्घटना में जब मृत्यु हुई थी तब वह सिर्फ 10 साल का था.’’ ‘‘और किसी महत्त्वपूर्ण बात की जानकारी मिली?’’ अशोकजी ने साहिल से पूछा.

‘‘नहीं, चाचाजी, मैं ने जिस से भी पूछताछ की है, उस ने रोहन की तारीफ ही की है. हमारी जातबिरादरी का न सही पर लड़का अच्छा है. मेरी राय में अगर रिश्ते की बात उठे तो आप हां कहने में बिलकुल मत झिझकना,’’ अपनी राय बता कर साहिल चला गया था. उस शाम अशोकजी ने जब अलका से इस विषय पर बातचीत आरंभ की तो सोमनाथ भी वहां मौजूद थे.

सारी बात सुन कर अलका ने साफ शब्दों में अपना मत उन दोनों के सामने जाहिर कर दिया, ‘‘पापा, रोहन से मैं प्यार नहीं करती. फिर ऐसी कोई बात होती तो मैं आप को जरूर बताती.’’ ‘‘बेटी, क्या तुम किसी और से प्यार करती हो?’’ सोमनाथजी ने सचाई जानने का मौका गंवाना उचित नहीं समझा था.

‘‘नहीं, अंकल, अभी तो अपना अच्छा कैरियर बनाना मैं बेहद महत्त्वपूर्ण मानती हूं.’’ ‘‘यह रोहन तुम्हें तंग करता है क्या?’’ अशोकजी की आंखों में गुस्से के भाव उभरे.

‘‘मुझे जैसे ही इस बात का एहसास हुआ कि वह मुझ से अलग तरह का रिश्ता बनाना चाहता है, तो मैं ने उस से बोलचाल बंद ही कर दी. उस ने मेरा इशारा न समझ आप को पत्र भेजा, इस बात से मैं हैरान भी हूं और परेशान भी.’’ ‘‘तू बिलकुल परेशान मत हो, अलका. कल ही मैं उस से बात करता हूं. उस ने तुझे परेशान किया तो गोली मार दूंगा उस को,’’ अशोकजी का चेहरा गुस्से से भभक उठा.

‘‘यार, गुस्सा मत कर…नहीं तो तेरा ब्लड प्रेशर बढ़ जाएगा,’’ सोमनाथ ने अशोकजी को समझाया पर वह रोहन को ठीक करने की धमकियां देते ही रहे. ‘‘पापा,’’ अचानक अलका जोर से चिल्ला पड़ी, ‘‘आप शांत क्यों नहीं हो रहे हैं. एक बार हाई ब्लड पे्रशर के कारण नर्सिंग होम में रह आने के बाद भी आप की समझ में नहीं आ रहा है? आप फिर से अस्पताल जाने पर क्यों तुले हैं?’’

अपनी बेटी की डांट सुन कर अशोकजी चुप तो जरूर हो गए पर रोहन के प्रति उन के दिल का गुस्सा जरा भी कम नहीं हुआ था. रोहन ने उस रात सोने से पहले अपनी मां मीनाक्षी को शर्मीली सी मुसकान होंठों पर ला कर जानकारी दी, ‘‘कल लंच पर मैं ने अलका और उस के पापा को बुलाया है. उन की अच्छी खातिरदारी करने की जिम्मेदारी आप की है.’’

‘‘यह अलका कौन है?’’ खुशी के मारे मीनाक्षी एकदम से उत्तेजित हो उठीं. ‘‘मेरे साथ पढ़ती है, मां.’’

‘‘प्यार करतेहो तुम दोनों एकदूसरे से?’’ रोहन ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘उस के पापा को तुम ने मना लिया तो रिश्ता पक्का समझो. वह गुस्सैल स्वभाव के हैं और अलका उन से डरती है.’’

‘‘अपने बेटे की खुशी की खातिर मैं उन्हें मनाऊंगी शादी के लिए. तू फिक्र न कर, मुझे अलका के बारे में बता,’’ मीनाक्षी की प्रसन्नता ने उन की नींद को कहीं दूर भगा दिया था.

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