लेखक- शांता शास्त्री
मेरे दिमाग में अचानक लाल बत्ती जल उठी. यानी जो कुछ हो रहा था वह केवल एक संयोग नहीं था...दिल ने कहा, ‘अरे, यार राकेश, तुम नौजवान हो, सुंदर हो, अमेरिका में तुम्हारी नौकरी है. तुम से अधिक सुयोग्य वर और कौन हो सकता है? लड़कियों का तांता लगना तो स्वाभाविक है.’
मैं चौंक उठा. तो मेरे खिलाफ षड्यंत्र रचा जा रहा है. पता लगाना है कि इस में कौनकौन शामिल हैं. मगर कैसे? हां, आइडिया. मैं ने मधु को अकेले में बुलाया और उसे उस की पसंद की अंगरेजी मूवी दिखाने का वचन दिया. उसे कुछ कैसेट खरीदने के लिए पैसे भी दिए तब कहीं मुश्किल से राज खुला.
‘‘भैया, जिस दिन सुसन के बारे में तुम्हारा पत्र आया था उस दिन से ही घर में हलचल मची हुई है. दोस्तों, नातेरिश्तेदारों में यह खबर फैला दी गई है कि तुम भारत आ रहे हो और शायद शादी कर के ही वापस जाओगे.’’
तो यह बात है. सब ने मिल कर मेरे खिलाफ षड्यंत्र रचा और सब अपना- अपना किरदार बखूबी निभा रहे हैं. तो अब आप लोग भी देख लीजिए कि मैं अकेले अभिमन्यु की तरह कैसे आप के चक्रव्यूह को भेदता हूं,’’ मन ही मन मैं ने भीष्म प्रतिज्ञा ली और अगले ही क्षण से उस पर अमल भी करने लगा.
मधु और चांदनी ने मिल कर घर का नक्शा ठीक किया. मम्मी और मामीजी ने मिल कर तरहतरह के पकवान बनाए. मेहमानों की अगवानी के लिए मैं भी शानदार सूट पहन कर अभीअभी आए अमेरिकन छैले की तरह तैयार हो गया.
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