‘‘कुमुद, तुम ने अंगरेजी विषय ही क्यों चुना एम.ए. के लिए?’’ एक दिन उस से पूछा. वह हिंदी और अंगरेजी के उपन्यास समान रूप से ले जा कर पढ़ने लगी थी.
‘‘कई कारण हैं. एक तो यह कि यहां के महिला महाविद्यालय में प्राचार्या ने वचन दिया है कि यदि एम.ए. में मेरी प्रथम श्रेणी आई तो बी.ए. की कक्षाओं को पढ़ाने के लिए फिलहाल वह मुझे रख लेंगी. दूसरा कारण, अपने महाविद्यालय में अंगरेजी के जो विभागाध्यक्ष हैं वह मुझे बहुत मानने लगे हैं. कह रहे थे, शोध करा देंगे. यदि पीएच.डी. करने का अवसर मिल गया तो एक प्रकार से मेरी शिक्षा पूरी हो जाएगी और कहीं ठीकठाक जगह नौकरी मिल जाएगी. तीसरा कारण, अंगरेजी पढ़ी लड़की को नौकरी आसानी से मिल जाती है.’’
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‘‘असली कारण तो तुम ने बताया ही नहीं,’’ भेद भरी मुसकान के साथ मैं बोला.
‘‘कौन सा?’’ उस की आंखों में भी शरारत थी.
‘‘अंगरेजी पढ़ी लड़की को अच्छा घर और वर भी मिल जाता है,’’ कह कर मैं हंस दिया. झेंप गई वह.
कुमुद कंप्यूटर सीखने जाने लगी थी. कई बार वह फीस के बारे में पूछ चुकी थी, पर उसे फीस न संस्थान मालिक ने बताई, न मैं ने. वह पढ़ती रही. काफी सीख भी गई.
एक दिन बोली, ‘‘अगर कहीं से आप सेकंड हैंड कंप्यूटर दिलवा दें तो मैं घर पर कुछ जौब वर्क कर सकती हूं.’’
अगले दिन अपने संस्थान से ही एक नया असंबल किया हुआ कंप्यूटर ले कर उस के घर पहुंच गया, ‘‘तुम्हारे जन्मदिन का तोहफा, कुमुद.’’
वह एकदम खिल सी गई, ‘‘आप को कैसे पता चला कि आज मेरा जन्मदिन है?’’
‘‘कंप्यूटर संस्थान में तुम ने अपना फार्म भरा था, उस में तुम्हारा बायोडाटा देखा था.’’
‘‘आप सचमुच जासूस किस्म के व्यक्ति हैं…क्राइम रिपोर्टर हैं, कहीं कोई क्राइम तो नहीं करेंगे?’’ वह हंसतीहंसती एकदम चुप हो गई थी क्योंकि उस की मां वहां आ गई थीं. उस ने कंप्यूटर अपनी मां को दिखाया. फिर मेरे लिए चाय बनाने चली गई.
कुमुद की मां वहां रह गई थीं. संकोच भरे स्वर में कुछ हिचकती सी बोलीं, ‘‘आप की बहुत तारीफ करती है कुमुद. सचमुच आप ने उसे बहुत सहारा दिया है. हम आप का अहसान हमेशा मानेंगे.’’
मैं समझ रहा था, यह किसी अन्य बात को कहने की भूमिका है. यों ही कोई किसी की प्रशंसा नहीं करता. हर बात, हर व्यवहार आदमी बहुत चालाकी से, अपने मतलब के अनुसार करता है. अखबारी दुनिया में रहने से आदमी को अच्छी तरह समझने लगा हूं. पहले यह समझ नहीं थी.
कुछ रुक कर चेहरा झुकाए हुए वह बोलीं, ‘‘कुमुद जहां बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने जाती है, आप की गली वाले जयेंद्रजी के घर…’’ इतना कहती हुई वह हिचकीं फिर बोलीं, ‘‘एक दिन वह यहां आए थे… बड़े आदमी हैं…आप भी जानते होंगे उन्हें…2 बच्चे हैं. पत्नी की बीमारी से मृत्यु हो गई है. मुझे कुछ खास उम्र नहीं लगी उन की…बस, शक्लसूरल जरा अच्छी नहीं है पर पैसे वाले आदमी की शक्लसूरत कहां देखी जाती है…कुमुद का हाथ मांग रहे थे…कह रहे थे कि बच्चे कुमुद से बहुत हिलमिल गए हैं…अगर कुमुद राजी हो जाए तो वह उस से शादी कर लेंगे…इस बारे में आप की क्या राय है?’’
मैं सन्नाटे में आ गया था. लगा, जैसे किसी ने चहकती चिडि़यों वाले बेर के विशाल पेड़ पर पूरी ताकत से बांस जड़ दिया है और सारी चिडि़यां एकाएक फुर्र हो गई हैं. बाहरभीतर का सारा चहकता शोर एकदम थम गया है. मैं भौचक्का उन की तरफ ताकता रह गया. मन हुआ, कंप्यूटर उठा ले जाऊं और कुमुद चाय ले कर आए उस से पहले ही इस घर से बाहर निकल जाऊं, पर ऐसा किया नहीं. काठ बना ज्यों का त्यों बैठा रहा.
कुमुद चहकती चिडि़या की तरह खुश थी. उसे कंटीला ही सही एक ऊंचा बेर का वृक्ष मिल गया था. वह बेखौफ उस घने वृक्ष पर अपना घोंसला बना सकती थी.
घर आ कर सारी स्थितियों पर मैं ने गंभीरता से सोचाविचारा. कुमुद ने मेरी अपेक्षा जयेंद्र को क्यों पसंद किया? मैं अपनी असफलता पर बहुत दुखी ही नहीं, एक तरह से अपनेआप से क्षुब्ध और असंतुष्ट भी था. एक बार को मन हुआ कि बाजार से सल्फास की गोलियां ले आऊं और रात को खा कर सो जाऊं. फिर लगा कि यह तो कायरता होगी. आखिर इतना पढ़ालिखा हूं, समझ है, क्या इस तरह की बातें मुझे सोचनी चाहिए? इस में कुमुद का दोष कहां है? उस ने जो किया, जो सोचा, उस में उस की गलती कहां है? कोई भी चतुर और समझदार लड़की यही करती जो उस ने किया. आखिर जयेंद्र की तुलना में वह मुझे क्यों चुनती?
फिर मैं ने अपने मन की बात उस से कभी खुल कर कही भी नहीं. हो सकता है, वह सिर्फ एक दोस्त के रूप में ही मुझे देखतीमानती और समझती रही हो. जरूरी कहां है कि जो दोस्त है, उसे वह अपने जीवन का साथी भी बनाए? क्यों बनाए? सिर्फ दोस्त भी तो मान सकती है. कभी उस ने अपना ऐसा मन भी जाहिर नहीं किया कि वह मुझे इस रूप में पसंद करती है. फिर कुमुद के इस फैसले से मैं खिन्न क्यों हूं? गुस्से से क्यों भभक रहा हूं?
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गलती खुद मुझ से हुई है. अगर दोस्ती से आगे बढ़ कर उसे चाहने लगा था तो मुझे उस से अपने मन की बात कहनी चाहिए थी. चूक उस से नहीं, मुझ से हुई है. उस से कहा क्यों नहीं? संकोच था, झिझक थी कि अगर इनकार कर दिया तो? और इनकार करने के कारण भी थे… 2 हजार की अखबार में क्राइम रिपोर्टर की मामूली नौकरी. 3 कमरों का साधारण घर. किराए पर उठी 3 दुकानें. मेरी आर्थिक हैसियत क्या है?
मन की बात कहने पर अगर वह इनकार कर देती तो बहुत संभव था, मैं अपनेआप को रिजेक्टिड मान कर क्रोध में भड़क उठता और कोई गलत फैसला कर बैठता.
कुमुद मुझे बहुत अच्छी लगती है. मैं उस का बहुत सम्मान करता हूं. अच्छी दोस्त है वह मेरी. उस की एक झलक पाने के लिए, उस की एक मुसकान देखने के लिए, उस के गालों पर प्रीति जिंटा जैसे डिंपलों को देखने के लिए, मैं चकोर बना उस की ओर ताकता रहता हूं.
‘‘क्यों, चिडि़या हाथ नहीं आई?’’ कंप्यूटर संस्थान के मालिक ने मेरी स्थिति से असली मामला भांप लिया.