प्रियांशु ने कुछ न कहा. वह पिताजी की बहुत इज्जत करता था. उन के हर आदेश का पालन करना अपना फर्ज समझता था. वह उन की भावनाओं को चोट नहीं पहुंचाना चाहता था. उसे अपनी बहन से भी उतना ही लगाव था.
पर उसे क्या मालूम था कि जिन मातापिता और बहन की वह इतनी इज्जत करता था उन के लिए उस की भावनाओं का कोई मोल नहीं था. उस ने कई मौकों पर नैनी का जिक्र किया था. उस की तारीफ की थी.
एक समझदार मातापिता और बहन के लिए इतना इशारा कम न था. कई बार उस ने सरला से शादी न करने की इच्छा जाहिर की थी. इस के बावजूद उन्होंने उस की शादी सरला से तय कर दी थी. सच तो यह था कि कहीं उस की शादी तय नहीं हुई थी, उसे सरेबाजार बेचा गया था.
रात में पिताजी ने साथ खाने पर बुलाया. उन्होंने खबर भिजवा कर बेटी को भी बुलवा लिया था. उस का छोटा भाई महीप भी आ गया था. सब के सामने पिताजी सगाई की तारीख तय करना चाहते थे.
जब सभी इकट्ठा हुए तो पिताजी ने बात छेड़ी. अब तक गांव में कई लोगों से उन्होंने प्रियांशु की बात की थी. लायक बेटे की यही पहचान है. पिता ने जो फैसला ले लिया, उस पर बेटे ने कोई टिप्पणी नहीं की. गांव के लोग ऐसे ही उस के परिवार को आदर्श नहीं मानते.
‘‘तो प्रियांशु, तुम को कब छुट्टी मिलेगी? उसी समय सगाई की तारीख तय करूंगा,’’ पिता ने कहा.
‘‘लेकिन पिताजी, आप ने भैया से पूछ लिया है या खुद ही रिश्ता तय कर दिया,’’ छोटे भाई महीप ने पूछा.
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