पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- बुद्धि का इस्तेमाल: भाग 1
लेखिका- रेखा विनायक नावर
‘‘कैसी हो सुरभि, अब अच्छा लग रहा है न?’’
सिर हिलाते हुए उस ने हाथ से चौकलेट ली और हलके से मुसकराई.
‘‘मोरू, यह हंस रही है क्या? अब देख, उस डाक्टर ने सुरभि को 15 दिन के लिए गोवा बुलाया है, वहीं इस का इलाज होगा.’’
‘‘अरे बाप रे... यानी 15 दिन तक उसे अस्पताल में रहना होगा. मैं इतना खर्च नहीं उठा पाऊंगा,’’ मोरू ने कहा.
‘‘चुप बैठ. मेरा घर अस्पताल के नजदीक ही है. तेरी भाभी भी आई है. 2 दिन के लिए मैं सुरभि को ले कर जा रहा हूं. वह हर रोज इसे अस्पताल ले जाएगी. इलाज 15 दिन तक चलेगा. नतीजा देखने के बाद ट्रीटमैंट शुरू रखने के बारे में सोचेंगे.’’
‘‘ट्रीटमैंट क्या होगा?’’ भाभी ने घबराते हुए पूछा.
‘‘वह डाक्टर तय करेंगे. लेकिन आपरेशन बिलकुल नहीं.’’
सुरभि का ट्रीटमैंट तकरीबन 20 दिन चला. इस बीच मोरू और भाभी 2 बार गोवा आ कर गए. 20 दिन बाद आनंद और उस की पत्नी सुरभि को ले कर सावंतबाड़ी गए.
‘‘सुरभि बेटी, मां को बुलाओ,’’ आनंद ने कहा.
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सुरभि ने आवाज लगाई ‘‘आ... आ...’’ उस की आवाज सुन कर भाभी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.
‘‘सुरभि, अपने पापा को नहीं बुलाओगी?’’
फिर उस ने ‘पा... पा...’ कहा. यह सुन कर दोनों की आंखों में खुशी के आंसू आ गए.
‘‘भैयाजी, सुरभि बोलने लगी है, पर अभी ठीक से नहीं बोल पा रही है,’’ सुरभि की चाची ने कहा.
‘‘भाभी, इतने दिनों तक उस के गले से आवाज नहीं निकली. अभीअभी आई है तो प्रैक्टिस करने पर सुधर जाएगी.’’
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