4 दिन बाद ही अचानक पवन ने काम पर जाना छोड़ दिया. कहने लगे कि मालिक ड्राइविंग के नाम पर सामान उठवाता है तो मैं काम नहीं करूंगा. एक हफ्ते अपने मांबाप के आगे गिड़गिड़ा कर पैसे मांगे और जब पैसे खत्म हो गए तो शुरू हुई हमारी लड़ाइयां.
‘मेरे पास पैसे नहीं हैं,’ पवन ने मेरी ओर देखते हुए कहा.
‘अब तो मालकिन के दिए पैसे भी नहीं हैं मेरे पास,’ मैं ने जवाब दिया.
‘मैं खुद को बेच सकता तो बेच देता, क्या करूं मैं...’ पवन की आंखों में आंसू थे.
‘घर खर्च के लिए पैसे नहीं हैं तो क्या हुआ, मम्मीपापा दे देंगे हमें.’
‘बात वह नहीं है,’ पवन ने थोड़ा झिझकते हुए कहा.
‘फिर क्या बात है?’ मैं ने हैरानी से पूछा.
‘वह... वह... मैं ने जुआ खेला है.’
‘जुआ...’ मैं तकरीबन चीख पड़ी.
‘हां, 10,000 रुपए हार गया मैं... कर्जदार आते ही होंगे. मुझे माफ कर दे पुष्पा, मुझे माफ कर दे. आज के बाद न मैं शराब पीऊंगा, न जुआ खेलूंगा, तेरी कसम.’
‘मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं,’ मैं ने बेबस हो कर कहा.
‘तुम्हारे कुंडल और अंगूठी तो हैं.’
एक पल को तो मुझे समझ नहीं आया कि क्या करूं, लेकिन हैं तो वे मेरे पति ही, उन का कहा मैं कैसे झुठला सकती हूं. आखिर अब सिर पर परेशानी आई है तो बोझ भी तो दोनों को उठाना है. साथ भी तो दोनों को ही निभाना है.
मैं ने जिस खुशी से अपने कानों में वे कुंडल और उंगलियों में वे अंगूठियां पहनी थीं, उतने ही दुख से उन्हें उतार कर पवन के सामने रख दिया.
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