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मालवा अपने इतिहास के लिए प्रसिद्ध है. जो लोग मालवा के इतिहास को जानते हैं, उन्हें आज भी यहां की मिट्टी में सौंधीसौंधी गंध आती है. इसी मालवा का सुप्रसिद्ध शहर है इंदौर.

पिछले 50-55 सालों में नगरोंमहानगरों ने बहुत तरक्की की है. स्थिति यह है कि एक नगर में 2-2 नगर बन गए हैं. एक नया, दूसरा पुराना. इंदौर की स्थिति भी यही है. शहरों या महानगरों में अंदर पुराने शहरों की स्थितियां भी अलग होती हैं. छोटेछोटे घर, पतली गलियां और इन गलियों के अपने अलग मोहल्ले.

खास बात यह कि इन गलियोंमोहल्लों में लोग एकदूसरे को जानते भी हैं और मानते भी हैं. जरूरत हो तो मोहल्ले के लोगों से हर किसी का खानदानी ब्यौरा मिल जाएगा. राय साहब का बंगला पुराने इंदौर के बीचोबीच जरूर था, लेकिन छोटा नहीं, बहुत बड़ा. बाद में बसे मोहल्ले ने बंगले को घेर जरूर लिया था. लेकिन उस की शानोशौकत में कोई कमी नहीं आई थी. वैसे एक सच यह भी था कि जो लोग बंगले के आसपास आ कर बसे थे, उन्हें जमीन राय साहब ने ही बेची थी.

राय साहब के बंगले की अपनी अलग ही खूबसूरती थी, ऐसा लगता था जैसे अथाह समुद्र में कोई टापू उग आया हो. तरहतरह के फूलों के अलावा कई किस्म के फलों के पेड़ भी थे. इस लंबेचौड़े खूबसूरत बंगलों में कुल मिला कर 3 लोग रहते थे, राय साहब, उन की पत्नी दामिनी और एक गार्ड. राय दंपति का एकलौता बेटा श्रेयस राय लंदन में पढ़ रहा था.

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गार्ड का कोई खास काम नहीं था, इसलिए रात को वह घर चला जाता था. हां, राय साहब के पास 2 लग्जरी कारें थीं, जब उन्हें कहीं जाना होता था तो गार्ड ही ड्राइवर बन जाता था. वह नहीं होता तो दामिनी कार ड्राइव करती थीं.

सामाजिक और आर्थिक रूप से उच्चस्तरीय लोगों के यहां पार्टियां वगैरह होना मामूली बात है. कभीकभी ऐसी पार्टियां केवल दोस्तों तक ही सीमित होती हैं. राय साहब भी पार्टियों के शौकीन थे. वह पार्टियों में जाते भी थे और समयसमय पर बंगले पर पार्टियां करते भी थे.

एक बार दामिनी के साथ वह एक पार्टी में गए तो वहां मालिनी मिल गई. वह लंदन में उन के साथ पढ़ती थी. दोनों में अच्छीभली दोस्ती थी. हां, पारिवारिक स्तर पर दोनों में से कोई भी एकदूसरे को नहीं जानता था.

राय साहब मन ही मन मालिनी को पसंद करते थे. उन्होंने उस से प्रेम निवेदन भी किया था, लेकिन रूपगर्विता मालिनी ने उन का प्रेम निवेदन ठुकरा दिया था. इस से राय साहब को दिली चोट पहुंची थी.

बाद में राय साहब जब भारत लौट आए तो शाही अंदाज में उन की शादी दामिनी से हो गई थी. दामिनी मालिनी से कहीं ज्यादा खूबसूरत थीं, उस में शाही नफासत भी थी. इस के बावजूद वह मालिनी को नहीं भूल सके. कभीकभी उन के दिल में मालिनी नाम का कांटा चुभ ही जाता था. यही वजह थी कि 25-30 साल बाद अचानक मालिनी को देख राय साहब को पुरानी बातें याद आ गईं.

पार्टी में राय साहब ने मालिनी को देखा जरूर, लेकिन अपनी ओर से कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. मालिनी हाथ में शराब का जाम थामे खुद ही उन के पास आ गई. राय साहब उस की ओर से अनभिज्ञ बने रहे. उसी ने नजदीक आ कर उन के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘कैसे हैं शांतनु साहब?’’

मालिनी को नशा तो नहीं हुआ था, लेकिन उस की नशीली आंखों में ऐसा कुछ जरूर था, जो पल भर के लिए राय साहब को अंदर तक विचलित कर गया.

‘‘अच्छा हूं मालिनी, तुम बताओ इतने बरसों बाद यहां?’’

‘‘काम के सिलसिले में आई थी. लंबे समय बाद मुलाकात हो रही है, कभी अपने घर बुलाना.’’ मालिनी ने निस्संकोच कहा.

इस से पहले कि वह या राय साहब कुछ कहते, दामिनी ने आ कर राय साहब के हाथों में हाथ डाल दिए. फिर बोली, ‘‘अब घर चलो, कितनी देर हो गई है, आज आप ने पी ज्यादा ली है.’’

दामिनी के आने पर राय साहब ने मालिनी से दामिनी का परिचय कराया. औपचारिक बातों के बाद पतिपत्नी वहां से चले गए. राय साहब वहां से चले तो गए लेकिन मालिनी की यादों को साथ ले गए. मालिनी को भी लगा जैसे बरसों बाद कोई अपना मिला हो.

लेकिन यह जुदाई नहीं बल्कि मुलाकातों की शुरुआत थी. दोनों आए दिन पार्टियों वगैरह में मिलने लगे. एक बार मालिनी ने ताना मारा तो राय साहब ने उसे घर आने का निमंत्रण दे दिया. इस के बाद मालिनी यदाकदा बंगले पर आने लगी. अविवाहित मालिनी को राय साहब के ठाठबाठ, शानोशौकत, इतना बड़ा बंगला देख कर दामिनी की किस्मत से रश्क होने लगा. उस के मन में एक टीस सी उठी कि काश उस ने राय साहब के प्रस्ताव को ठुकराया न होता, तो आज दामिनी की जगह वह होती.

मालिनी के आनेजाने से राय साहब के दिल में दबी चिंगारी सुलगने लगी, जिसे मालिनी ने भी महसूस किया. यही भावना दोनों को एकदूसरे की तरफ खींचने लगी. नतीजतन दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं.

उम्र के इस पड़ाव पर भी दोनों पारस्परिक आकर्षण, ताजगी, रोमांस और रूमानियत से जीवन में रंग भरने लगे. धीरेधीरे मालिनी का बंगले पर आना बढ़ गया. उस ने दामिनी से भी अपनत्व भरी मित्रता कर ली थी.

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बढ़ते हुए कदमों ने मालिनी व राय साहब को एकदूसरे के बिलकुल नजदीक ला दिया था. दोनों प्रेम में घायल पंछियों की तरह खुले आसमान में उड़ान भरना चाहते थे. यह जानते हुए भी कि यह संभव नहीं है. एक दिन मौका मिला तो मालिनी ने राय साहब से कहा, ‘‘शांतनु, ऐसा कब तक चलेगा, अब दूरियां बरदाश्त नहीं होतीं.’’

राय साहब ने तो कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन किस्मत ने जल्दी दोनों को मौका दे दिया.

उस दिन राय साहब ने बंगले पर छोटी सी पार्टी रखी थी, दोस्तों के लिए. मालिनी को भी बुलाया था. देर रात तक चली पार्टी का नशा पूरे शबाब पर था.

मालिनी ने चुपके से दामिनी के ड्रिंक में नींद की गोलियां मिला दीं. अधूरी तमन्नाओं और रात रंगीन करने की चाहत ने उसे अंधा बना दिया था.

जब नशे का असर शुरू होने लगा तो वह दामिनी को उस के कमरे में ले गई. राय साहब ने देखा तो पीछेपीछे आ कर पूछा, ‘‘दामिनी को क्या हुआ?’’

मालिनी ने उन्हें चुप कराते हुए कहा, ‘‘पार्टी खत्म करो, फिर बात करेंगे. सब ठीक है.’’

पलभर रुक कर उस ने राय को सब कुछ बता कर कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो. उसे कुछ नहीं होगा. बस नशा थोड़ा ज्यादा हो गया है. अब वह सुबह तक नहीं उठेगी. बस रात की ही बात है.’’ कहते हुए मालिनी राय साहब के गले लग गई.

लेकिन तभी अचानक दामिनी उठ गई, वह नशे में थी. यह देख मालिनी डर गई. जल्दी में कुछ नहीं सूझा तो उस ने दामिनी को धक्का दे दिया, जिस से वह पलंग से टकरा कर वहीं लुढ़क गई.

नशे में चूर राय साहब के लिए उस वक्त आंख और कान मालिनी बनी हुई थी, इसलिए वह इस मामले की गहराई में नहीं गए. उन्होंने वही माना जो मालिनी ने कहा.

पार्टी खत्म हो गई. विदा ले कर सब चले गए. राय साहब ने वेटरों को भी मेहनताना दे कर भेज दिया.

सुबह जब नशे की खुमारी उतरी तो राय साहब को अपनी गलती का अहसास हुआ. वह लंबे डग भरते हुए अपने कमरे की तरफ भागे. लेकिन दामिनी कमरे में नहीं थी.

उन्होंने बाथरूम का दरवाजा खोला तो मुंह से चीख निकल गई. दामिनी बाथटब के अंदर पानी में पड़ी थी. राय साहब ने उसे बाथटब से बाहर निकाल कर पेट से पानी निकालने का प्रयास किया. मुंह से सांस देने की कोशिश की, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. दामिनी का शरीर ठंडा पड़ चुका था.

राय साहब की चीख सुन कर मालिनी दौड़ी आई. दामिनी को निस्तेज देख कर उस ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, ये सब कैसे हो गया?’’ बात उस के गले में अटक रही थी. आंखें डबडबाने को थीं.

दामिनी के शव को देख उस ने रुआंसी हो कर कहा, ‘‘मैं ने ड्रिंक में सिर्फ नींद की गोलियां मिलाई थीं. मैं इस की जान नहीं लेना चाहती थी.’’

राय साहब ने उसे गुस्से में परे धकेल दिया. फिर चीख कर बोले, ‘‘जाओ, जल्दी से किसी डाक्टर को बुलाओ. यह नहीं होना चाहिए था.’’

मालिनी के चेहरे पर भय उतर आया था. फिर भी उस ने राय साहब को शांत करने की कोशिश की.

राय साहब गुस्से में बड़बड़ा रहे थे. मालिनी ने उन के कंधे पर हाथ रख कर सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘तुम शांत हो जाओ, इस की सांस बंद हो चुकी है. डाक्टर से क्या कहोगे? पुलिस केस बनेगा. तहकीकात होगी. बात का बतंगड़ बन जाएगा. शाम को चुपचाप दाह संस्कार कर देंगे, इसी में हमारी भलाई है.

‘‘इन परेशानियों से बचने के लिए हमारा चुप रहना ही ठीक रहेगा. मैं तुम्हारे साथ हूं, चिंता मत करो. मैं रात को आऊंगी. गार्ड छुट्टी पर है, कलपरसों तक आएगा. किसी को पता नहीं चलेगा.’’ मालिनी ने राय साहब को शांत कराने की कोशिश की.

मालिनी की बात से सहमत होने के अलावा राय साहब के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था. उन्हें समझाने के बाद मालिनी बोली, ‘‘अब मैं जा रही हूं. शाम को आऊंगी. तुम्हारी गाड़ी ले जा रही हूं. चाबी दे दो.’’

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राय साहब से कार की चाबी ले कर मालिनी बाहर निकल गई. राय साहब उसे छोड़ने बाहर आए. वह कार ले कर निकल गई तो मुख्य गेट उन्होंने ही बंद किया.

राय साहब ने किसी तरह दिन काटा और शाम को मालिनी के आने का इंतजार करने लगे. मन को बहलाने के लिए वह टीवी पर समाचार सुन रहे थे, तभी एक खबर ने उन्हें चौंका दिया. देश में कोरोना महामारी फैलने की वजह से जनता कर्फ्यू लगा दिया गया था.  किसी को भी घर से बाहर निकलने की मनाही थी. बात साफ थी आज रात वे दामिनी के शव के साथ बाहर नहीं जा सकते थे.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

 

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