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पिछले अंक में आप ने पढ़ा था :

सरकारी नौकरी कर रही नमिता का बौस भूषण राज उसे पाना चाहता था. नमिता ने यह बात अपनी एक साथी प्रीति को बताई कि भूषण राज केबिन में बुला कर उसे यहांवहां छूता है. प्रीति ने पहले तो गुस्सा दिखाया पर कुछ दिनों बाद वह नमिता से बोली कि तुम्हें भी रुपएपैसे के साथसाथ जवानी का मजा उठाना चाहिए. यह सुन कर नमिता हैरान रह गई.

अब पढि़ए आगे…

प्रीति ने तुरंत एतराज किया, ‘‘नहींनहीं, मेरा यह मतलब नहीं… मैं एक आम बात कह रही थी. तुम्हारे जैसी लड़कियां आजकल कहां मिलती हैं. आज बाहर की दुनिया में इतनी चमक है और पैसों की इतनी खनक है कि इस सब के लिए कोई भी लड़की अपनी इज्जत बेचने के लिए आमादा रहती है.

‘‘तुम बुरा मत मानो, मैं सच कहती हूं, आजकल की पढ़ीलिखी लड़कियों के लिए कुंआरापन बेकार का शब्द है. मौजमस्ती करना, ढेर सारा रुपया कमाना, चाहे जिस रास्ते से और समाज में एक हैसियत बनाना उन का मकसद होता है.’’

‘‘मैं क्या करूं?’’ नमिता ने अपने हाथ मलते हुए पूछा.

प्रीति मुसकराते हुए बोली, ‘‘हताश होने की जरूरत नहीं है, कुदरत किसी को भी इतना कमजोर नहीं बनाती कि उस के जिंदा रहने के सारे रास्ते बंद कर दे. जो उम्मीद का दामन उलट हालात में भी थामे रहते हैं, वे अपना लक्ष्य जरूर हासिल करते हैं.’’

प्रीति की बातों से नमिता को भले ही कोई राहत न मिली हो, पर बाद में उस ने जो सलाह दी, उस से नमिता को धुंधले अंधेरे में रोशनी की किरण दिखाई देने लगी. फिर भी एक डर बना रहा.

नमिता ने पूछा, ‘‘अगर मैं तबादले की अर्जी देती हूं तो उसे औफिस में ही देना पड़ेगा न? तब यह बौस का बच्चा क्यों उसे आगे भेजेगा?’’

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‘‘बात तो तुम्हारी सही है, पर एक रास्ता फिर भी है. अर्जी की एक प्रति हम रजिस्टर्ड डाक से सीधे डायरैक्टर को भेज सकते हैं. दूसरी प्रति प्रौपर चैनल के जरीए भेजने के लिए औफिस में देंगे. झक मार कर उसे हैडर्क्वाटर भेजना पड़ेगा,’’ प्रीति ने बताया.

उन दोनों ने बहुत सोचसमझ कर एकएक शब्द चुन कर तबादले की अर्जी बनाई. एक प्रति डाक से हैडक्वार्टर भेज दी. हालांकि वह दिल्ली में ही था. दूसरी प्रति उसी दिन उस ने औफिस में जमा कर दी… धड़कते दिल से कि जब उस की अर्जी भूषण राज के सामने होगी तो वह क्या सोचेगा? क्या वह भड़क उठेगा और उसे बुला कर अनापशनाप कुछ सुनाएगा या फिर शांत रह कर कोई ऐसी चाल चलेगा कि नमिता धराशायी हो जाएगी और उस की उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा?

उस दिन नमिता बहुत बेचैन रही. औफिस के साथियों से बातें करती थी, पर मन कहीं और अटका हुआ था. न उस के दिल की धड़कन की रफ्तार कम हो रही थी, न उस की बेचैनी. रहरह कर मन भूषण राज के इर्दगिर्द ही घूमने लगता था.

दुष्ट आदमी चाहे ऊपर से कितना ही मीठा दिखाई देता हो, प्यारीप्यारी बातें करता हो, पर अपनी दुष्टता से कभी बाज नहीं आता.

नमिता की अर्जी को देखते ही भूषण राज की नसों में खून की जगह आग बहने लगी. थोड़ी देर बाद ही उस ने नमिता को अपने चैंबर में बुलाया. वह डरतीकांपती उस के सामने पहुंची…

अपनी नजरों से नमिता के सारे बदन को नंगा करता हुआ वह बोला, ‘‘तो उड़ने का ख्वाब देख रही हो…’’

डर के मारे नमिता अपनी आंखें नहीं उठा पा रही थी.

‘‘तुम यह अवार्ड देने से पहले यह क्यों भूल गई कि तुम्हारी हालत पिंजरे में कैद पंछी की तरह है. बाज तुम्हारी रखवाली कर रहा है. पिंजरे का दरवाजा खुल भी जाएगा तो बाज की तेज निगाहों और उस की तेज रफ्तार से खुद को कैसे बचा पाओगी?’’

नमिता की रूह कांप कर रह गई. उस की आंखों के सामने अंधेरा सा छाता जा रहा था. उस की समझ में कुछ नहीं आया तो लरजती आवाज में उस ने दया की भीख मांगी, ‘‘मैं आप की बेटी जैसी हूं, मुझ पर दया कीजिए.’’

‘‘दया… क्या तुम मुझ पर दया कर सकती हो? बोलो, तुम भी एक लड़की हो, तुम्हारे पास भी भावनाएं हैं. क्या तुम मेरे दिल का हाल नहीं समझ सकती? तुम अपनी थोड़ी सी दया और प्यार की एक छोटी बूंद मेरे ऊपर टपका दो, फिर देखो, मैं तुम्हारे ऊपर दया की इतनी बारिश करूंगा कि तुम्हारी जिंदगी बदल जाएगी. बोलो, मंजूर है?’’ कह कर वह हंसा.

नमिता के पास उस की बात का कोई जवाब नहीं था. वह चुपचाप उस के चैंबर से बाहर निकल आई.

नमिता को हैडक्वार्टर में बैठे अफसरों पर पूरा भरोसा था. वहां के सारे अफसर पत्थरदिल नहीं हो सकते थे. संबंधित अफसर उस की अर्जी पर जरूर विचार करेंगे.

कई दिन बीत गए. नमिता की चिंता बढ़ती जा रही थी. वह औफिस का काम भी ढंग से नहीं कर पाती थी. भूषण राज उस की हालत को समझ रहा था. नमिता अभी मर्यादा की बाढ़ में बह रही थी. वह जानता था कि बाढ़ का पानी एक न एक दिन कम जरूर होगा.

नमिता की परेशानी के मद्देनजर भूषण राज ने उसे एक दिन समझाते हुए कहा, ‘‘क्यों अपनी जान सुखा रही हो तुम? कंचन काया को पत्थर मत बनाओ. मेरा कहना मान लो, तुम्हारा कुछ बिगड़ेगा नहीं…’’

नमिता फिर भी नहीं समझी. वह समझ कर भी नहीं समझना चाहती थी.

एक महीने बाद नमिता को पता चला कि बौस ने उस की अर्जी को हैडक्वार्टर भेज तो दिया है, लेकिन नोट में जोकुछ लिखा है, उसे सुन कर नमिता के पैरों तले जमीन ही खिसक गई. वह इनसान जो उस से प्यार करने का दावा करता था, उस के शरीर को भोगना चाहता था, बौस के मन में उस के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने और उसे पूरी तरह से बरबाद कर देने के लिए ये विचार किस तरह आए होंगे, यह नमिता की समझ से परे था.

प्रीति ने फाइल देखने के बाद नमिता को बताया था कि बौस ने उस की अर्जी पर क्या नोट दिया था. नमिता के कानों में कुछ शब्द पड़े, कुछ नहीं… वह बेहोश सी हो गई थी…

बस इतना समझ में आया कि वह कामचोर थी, अपना काम ढंग से नहीं कर पाती थी. अंगरेजी अच्छी नहीं थी. स्टेनोग्राफर होने के बावजूद डिक्टेशन नहीं ले पाती थी. टाइपिंग में भी ढेर सारी गलतियां करती थी. उसे सुधारने और ढंग से काम करने के तमाम मौके मुहैया कराए गए, पर वह अपने काम में सुधार लाने के बजाय और ज्यादा लापरवाही बरतने लगी थी.

शायद वह किसी अनजान लड़के के प्यार में गिरफ्तार थी, जिस से हमेशा मोबाइल फोन पर बातें करती रहती थी.

बौस ने आगे अपने नोट में लिखा था कि समझाने के साथसाथ उसे काम में सुधार लाने के तरीके भी सुझाए गए थे, पर सारी कोशिशें नाकाम हो गईं और नमिता में जरूरी सुधार नहीं आने के बाद उसे चेतावनी दी जाने लगी, जिस से घबरा कर उस ने दूसरे दफ्तर में अपने तबादले के लिए अर्जी दे दी थी.

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नमिता की उम्मीद के सारे चिराग बुझ गए. दफ्तर के सारे साथियों की हमदर्दी उस के साथ थी, पर वे भी नमिता की तरह लाचार थे.

बौस के दुष्ट स्वभाव, गंदी हरकतों और भेडि़ए जैसी चालाकी से परिचित थे. उस ने बड़े अफसरों को अपनी मुट्ठी में कर रखा था. बेईमान था, पर अकेला सब माल हजम नहीं करता था. नियमित रूप से हैड औफिस जा कर अफसरों की सेवा करता रहता था. पैसे के बल पर सभी को उस ने अपने वश में कर रखा था. सालों से वह एक ही दफ्तर में जमा हुआ था. जिस के बारे में जो कुछ लिखता था, हैड औफिस के अफसर तुरंत उसे मान लेते थे.

नमिता के मामले में भी यही हुआ. एक हफ्ता भी नहीं बीता था कि हैड औफिस से नमिता की अर्जी का जवाब आ गया. उस के तबादले की अर्जी को खारिज करते हुए उस के खिलाफ विभागीय जांच शुरू कर दी गई थी और मजे की बात यह कि जांच अफसर भूषण राज को ही बनाया गया था.

नमिता इतनी थक चुकी थी कि वह बीमार रहने लगी थी. 2-3 दिनों तक वह औफिस नहीं आई. पर उस से क्या फायदा होगा? बीमारी के बहाने वह कितनी छुट्टी ले सकती थी. छुट्टी भी तो भूषण राज को ही मंजूर करनी थी. वह कोई और अड़ंगा लगा देता तो… नमिता के हाथ में क्या था? वह क्या कर सकती थी?

3 दिन तक छुट्टी पर रहने पर नमिता ने बहुतकुछ सोचा और बहुतकुछ समझने की कोशिश की. घर में किसी से बात नहीं की. पर क्या ज्यादतियों की कोई सीमा नहीं है… उस की भी कोई सीमा होगी. कोई किसी पर कितना जुल्म कर सकता है. हम जुल्म सहते चले जाते हैं, इसीलिए हमें और ज्यादा जुल्मों का सामना करना पड़ता है. अगर हम उस का मुकाबला डट कर करें तो शायद इस से छुटकारा मिल जाए. तुरंत नहीं तो थोड़े समय बाद…

जब नमिता 3 दिन बाद वापस दफ्तर आई तो खुश लग रही थी. मन को काफी हद तक उस ने काबू में कर लिया था. खुद को उस ने समझा लिया था कि चिंता करने से किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता था.

प्रीति ने नमिता को समझाया, ‘‘देखो नमिता, हालात अब गंभीर हो चुके हैं. भेडि़ए को ही अगर भेड़ की रखवाली के लिए नियुक्त किया जाए तो तुम समझ सकती हो कि भेड़ का क्या हश्र होगा. यहां तो भेडि़ए को भेड़ के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए कहा गया है.’’

‘‘तब…?’’ नमिता ने प्रीति से पूछा, शायद वह कोई राह बता सके. प्रीति पर वह बहुत ज्यादा यकीन करने लगी थी.

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‘‘समझदारी से काम लो नमिता… अगर तुम नौकरी छोड़ती हो या जांच के बाद तुम्हें नौकरी से निकाल दिया जाता है तो दोनों में फर्क क्या है? दोनों हालात में तुम बेरोजगार हो जाओगी. तब तुम्हारे घर का सुखचैन, दो जून की रोटी, भाईबहनों की पढ़ाईलिखाई, तुम्हारी शादी, एक सुखभरी जिंदगी… सब खटाई में पड़ सकता है,’’ प्रीति बहुत धीरेधीरे उसे समझाने के अंदाज में बता रही थी.

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