‘नमस्ते,’ इस बार उस ने अंकल नहीं कहा. या कहा हो, मैं ने सुना नहीं. यदि मैं न सुनना चाहूं तो कौन सुना सकता है. लेकिन उस ने कहा नहीं शायद.
‘नमस्ते,’ मैं ने कहा, मेरे दिल की धड़कनें तेज होने लगीं.’’
‘‘कहां?’’ मैं ने पूछा यह जानते हुए भी कि वह कालेज जा रही है.
‘‘कालेज,’’ उस ने धीरे से मुसकराते हुए कहा.
‘‘और आप?’’
मैं हड़बड़ा गया. कोई उत्तर देते नहीं बना. क्या कहूं कि तुम से मिलने, तुम से बात करने के लिए तुम्हारे पीछे आता हूं. लेकिन कह न सका.
‘‘बस, यों ही टहलने.’’
‘‘रोज, इसी समय.’’
उस की इस बात पर मु झे लगा कि वह निश्चिततौर पर सम झ चुकी है मेरे टहलने का मकसद. मैं धीरे से मुसकराया. ‘‘हां, तुम्हें क्या लगा?’’ उफ यह क्या बेवकूफाना प्रश्न कर दिया मैं ने.
‘‘नहीं, मु झे लगा.’’ और वह चुप हो गई.
‘‘तुम्हें क्या लगा?’’ मैं ने बात को पटरी पर लाने की कोशिश करते हुए कहा.
‘‘कुछ नहीं’’ कह कर वह चुप रही.
‘‘कौन सी क्लास में पढ़ती हो?’’ बात आगे बढ़ाने के लिए कुछ तो पूछना ही था.
‘‘एमए प्रीवियस.’’
‘‘किस विषय से?’’
‘‘समाजशास्त्र से.’’
‘‘बढि़या सब्जैक्ट है.’’
दोनों तरफ थोड़ी देर के लिए फिर शांति छा गई. मैं सोच रहा था, क्या बात करूं. कालेज निकट आ रहा है. यही समय है अपनी बात कहने का. पहली बार इतना अच्छा मौका मिला है.
‘‘पढ़ाई मैं कोई दिक्कत हो तो बताना,’’ मैं ने कहा.
‘‘नहीं, सरल विषय है. दिक्कत नहीं होती.’’
‘‘यदि हो तो?’’
‘‘जी, जरूर बताऊंगी.’’
‘‘मैं ने इसलिए कहा, क्योंकि इसी विषय में मैं ने भी पीएचडी की हुई है.’’
‘‘मैं जानती हूं,’’ उस ने कहा, ‘‘आप प्रोफैसर हैं समाजशास्त्र के?’’
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