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‘‘बेटा, मैं जानता हूं और तुम डाक्टर हो, जानते हो कि देह व्यापार और नशेबाजों के मुकाबले में डाक्टर को एड्स से अधिक खतरा है. खुदगर्ज, निकम्मे व भ्रष्ट लोगों की वजह से अनजाने में ही मेडिकल स्टाफ इस बीमारी की गिरफ्त में आ जाता है. सिरिंजों, दस्तानों की रिसाइक्ंिलग, हमारी लापरवाही, अस्पतालों में आवश्यक साधनों की कमी जैसे कितने ही कारण हैं. लोग ब्लड डोनेट करते हैं, समाज सेवा के लिए मगर उसी सेट और सूई को दोबारा इस्तेमाल किया जाए तो क्या होगा? शायद वही सूई पहले किसी एड्स के मरीज को लगी हो.’’

‘‘सर, मुझे अपनी चिंता नहीं है. मैं मुसकान से क्या कहूंगा? वह तो जीते जी मर जाएगी,’’ सुनील की आवाज कहीं दूर से आती लगी.

‘‘बेटा, हौसला रखो. अभी किसी से कुछ मत कहो. आज पापा का आपरेशन हो जाने दो. 15 दिन तो अभी यहीं लग जाएंगे. घर जा कर मांबाप की सलाह से अगला कदम उठाना. जीवन को एक चुनौती की तरह लो. सकारात्मक सोच से हर समस्या का हल मिल जाता है. मुसकान से मैं बात करूंगा पर अभी नहीं.’’

‘‘सर, उसे अभी कुछ मत बताइए, मुझे सोचने दीजिए,’’ कह कर सुनील अपने कमरे में आ गया था.

पर वह क्या सोच सकता है? एड्स. क्या मुसकान सुन सकेगी? नहीं, वह सह नहीं सकेगी. मैं उसे तलाक दे दूंगा, कहीं दूर चला जाऊंगा, नहीं…नहीं…वह तो अपनी जान दे देगी…नहीं…इस से अच्छा वह मर जाएगा पर मांबाप सह नहीं पाएंगे. नहीं…विपदा का हल मौत नहीं. सर ने ठीक कहा था कि सब को एक न एक दिन मरना है पर मरने से पहले जीना सीखना चाहिए.

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अचानक उसे ध्यान आया, आपरेशन का टाइम होने वाला है. मुसकान परेशान हो रही होगी…कम से कम जब तक पापा ठीक नहीं होते, मैं उस का ध्यान रख सकता हूं…इतने दिन कुछ सोच भी सकूंगा.

वह जल्दी कमरा बंद कर के वार्ड में आ गया.

‘‘अब कैसी तबीयत है?’’ उसे देखते ही मुसकान पूछ बैठी.

‘‘मैं ठीक हूं. मुसकान, तुम थोड़ी स्ट्रांग बनो. मैं तुम्हें परेशान देख कर बीमार हो जाता हूं.’’

12 बजे राजकुमार को आपरेशन के लिए ले गए. वह तीनों आपरेशन थियेटर के बाहर बैठ गए. मुसकान को सुनील की खामोशी खल रही थी पर समय की नजाकत को देखते हुए चुप थी. शायद पापा के कारण ही सुनील परेशान हों.

आपरेशन सफल रहा. अगले दिन घर से भी सब लोग आ गए थे. मां ने दोनों को गेस्ट रूम में आराम करने को भेज दिया.

कमरे में जाते ही सुनील लेट गया.

‘‘मुसकान, तुम भी थोेड़ी देर सो लो, रात भर जागती रही हो. मुझे भी नींद आ रही है,’’ कहते हुए वह मुंह फेर कर लेट गया. मुसकान भी लेट गई.

शादी के बाद पहली बार दोनों अकेले एक ही कमरे में थे. इस घड़ी में सुनील का दिल जैसे अंदर से कोई चीर रहा हो. उस का जी चाह रहा था कि मुसकान को बांहों में भर ले पर नहीं, वह उसे और सपने नहीं दिखाएगा. वह उस की जिंदगी बरबाद नहीं होने देगा.

मुसकान मायूस सी किसी हसरत के इंतजार में लेट गई. कुछ कहना चाह कर भी कह नहीं पा रही थी. सुनील पास हो कर भी दूर क्यों है? शायद कई दिनों से भागदौड़ में ढंग से सो नहीं पाया. पर दिल इस पर यकीन करने को तैयार नहीं था. उस ने सोचा, सुनील थोड़ी देर सो ले तब तक मैं वार्ड में चलती हूं. जैसे ही वह दरवाजा बंद करने लगी कि सुनील उस का नाम ले कर चीख सा पड़ा.

‘‘क्या हुआ,’’ वह घबराई सी आई तो देखा कि सुनील का माथा पसीने से भीगा हुआ था.

‘‘एक गिलास पानी देना.’’

उस ने पानी दिया और उसे बेड पर लिटा दिया.

‘‘कहीं मत जाओ, मुसकान. मैं ने अभीअभी सपना देखा है. एक लालपरी बारबार मुझे दिखाई देती है. मैं उसे छूने के लिए आगे बढ़ता हूं पर छू नहीं पाता, एक पहाड़ आगे आ जाता है. वह उस के पीछे चली जाती है. मैं उस पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश करता हूं तो नीचे गिर जाता हूं,’’ इतना कह कर सुनील मुसकान का हाथ जोर से पकड़ लेता है.

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‘‘कैसी बहकीबहकी बातें कर रहे हो? सपने भी क्या सच होते हैं? चलो, चुपचाप सो जाओ. तुम्हारी लालपरी तुम्हारे पास बैठी है.’’

वह धीरेधीरे उस के माथे को सहलाने लगी. सुनील ने आंखें बंद कर लीं. थोड़ी देर बाद मुसकान ने सोचा, वह सो गया है. वह चुपके से उठी और वार्ड की तरफ चल पड़ी. वह उसे डिस्टर्ब नहीं करना चाहती थी.

वार्ड में पहुंचते ही उस का सामना

डा. परमिंदर से हो गया, ‘‘गुडमार्निंग, सर.’’

‘‘गुडमार्निंग, बेटा. कैसी हो?’’

‘‘फाइन, सर.’’

‘‘अच्छा, 10 मिनट बाद मेरे आफिस में आना,’’ कह कर डाक्टर परमिंदर सिंह चले गए.

10 मिनट बाद वह डा. परमिंदर के सामने थी.

‘‘बैठो बेटा. सुनील कहां है?’’

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