‘‘जरा रुको बहू,’’ सासूजी की आवाज पर अनुराधा रुक गई. सारा जरूरी सामान उस ने रात को ही पैक कर लिया था.
आगरा जाने के लिए सुबह में ट्रेन थी. इस छोटे से स्टेशन पर ट्रेनों का स्टोपेज बहुत कम था. अगर यह ट्रेन छूट गई, तो फिर शाम को मिलती और आगरा पहुंचने पर उसे रात हो जाती.
आगरा के जिस महल्ले में अनुराधा का पति मलय रहता था, उस के बारे में उसे बहुत कम पता था. मलय का टैलीफोन नंबर तो उसे मालूम था, लेकिन वह उस की इच्छा के खिलाफ वहां जा रही थी, इसलिए वह उसे स्टेशन लेने आएगा या नहीं, उसे नहीं पता था.
अनुराधा ने रात में फोन पर मलय को बता दिया था कि अब वह सासससुर के साथ गांव में नहीं रह सकती, क्योंकि उसे कंपीटिशन की तैयारी करनी है और यहां उस का सारा समय सासससुर की देखभाल में ही लग जाता है. उसे पढ़ने का मौका ही नहीं मिलता.
अनुराधा की बात सुन कर मलय चुप हो गया था. उस ने कहा था कि दूसरे दिन वह सुबह वाली ट्रेन पकड़ लेगी. आगरा पहुंचने पर वह उसे फोन करेगी. वह उसे स्टेशन पर आ कर रिसीव कर लेगा.
मलय की चुप्पी ने अनुराधा को असमंजस में डाल दिया था. लेकिन उस ने तय कर लिया था कि अब वह गांव में नहीं रहेगी.
शादी के पहले अनुराधा ने सोचा था कि दिल्ली में रह कर जूडिशियरी सर्विस के लिए इम्तिहान की तैयारी करेगी. जज बनना उस का सपना था और इसीलिए उस ने बीएचयू के ला फैकल्टी से एलएलबी किया था. अभी जूडिशियरी की तैयारी करने के लिए दिल्ली आई ही थी कि पिताजी ने मलय से उस की शादी तय कर दी.
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