Writer- जीतेंद्र मोहन भटनागर
‘‘ऐसा मत बोल मेरी प्यारी बेटी. तू ही तो मेरे जीने की एक वजह है,’’ कह कर जानकी ने झींगुरी को कस कर अपनी छाती से चिपका लिया.
अपनी मां की छाती से लगी हुई झिंगुरी बोली, ‘‘लेकिन मां, एक बात मेरी समझ में नहीं आई कि हम चारों को गांव में छोड़ कर पिताजी शहर क्यों चले गए? और गए तो इतने साल बाद क्यों लौटे? क्या उन्हें हमारी याद तक न आई होगी? किसनी दीदी के बारे में सुन कर भी वे ऐसे बोले जैसे उन का भाग जाना बहुत छोटी सी बात हो?’’
‘‘तू इतना ज्यादा मत सोच. अब तो तेरे बापू लौट आए हैं. अब तू सो जा.’’
‘‘सो तो जाऊंगी, पर मां, मैं बापू को परिवार की जिम्मेदारियों से मुंह छिपा कर शहर तब तक जाने नहीं दूंगी, जब तक वे मेरी पसंद के लड़के से शादी कर के मुझे विदा नहीं कर देंगे.
‘‘अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया, तो मैं भी उन के साथ इस बार शहर जा कर रहूंगी. भले ही मुझे भी वहां गारामिट्टी ढोना पड़े.’’
‘‘तो क्या तू ने गारामिट्टी ढोने के लिए पढ़ाई की है?’’
‘‘तुम ने भी तो हालात के आगे हार मान कर अपने शरीर को क्या इसलिए एक ऐसे इनसान को सौंप दिया था कि वह तुम्हें मजदूरन बना कर खुद शहर चला जाए?
‘‘मां, किसनी के प्रति उन के बदलाव को देख कर आज मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है. तुम तो कहती थीं कि वह अपने परिवार की अच्छी परवरिश और बेटियों के सुखद भविष्य के लिए खूब सारे रुपए कमाने शहर गए हैं.’’
‘‘हां बेटी, कह कर तो यही गए थे.’’
‘‘लेकिन मां, अगर बापू ने रुपया कमाया होता, तो हम बहनों के लिए ढंग के कपड़े और तुम दोनों के लिए सोने के गहने ले कर आए होते. जैसे कपड़े वे शहर से ले कर आए हैं, वे तो यहां गांव में भी मिल जाते हैं.’’
बड़ी देर तक झींगुरी जानकी से ऐसी ही बातें करती रही. उसे गुस्सा आ रहा था कि पता नहीं, क्यों बड़की अम्मां और मां उस के पिता को परमेश्वर का दर्जा देती हैं? क्या कोई बाप अपनी लड़की को ऐसी नजरों से घूरता है, जैसे उस का बापू घूर रहा था?
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ऐसी नजरों से तो उसे गोपाल ने आज तक नहीं घूरा, जो उसे जीजान से प्यार करता है और हमेशा कहता है कि वह उस से शादी कर के अपनी दुलहन के रूप में विदा करा कर ले जाएगा.
ऐसी ही बहुत सी बातें सोचतेसोचते झींगुरी सो गई. जानकी की तो न जाने कब की आंख लग गई थी.
अगले दिन सवेरे खेलावन ने चायनाश्ता किया और फिर दोपहर का खाना खा कर गांव के अपने पुराने दोस्तों से मिलने चला गया.
झींगुरी सोचती ही रह गई कि अब वह अपने बापू से बहुत सारे सवाल पूछेगी. क्या किसनी के भाग जाने का उन्हें कोई मलाल नहीं है? क्या वे उसे ढूंढ़ने की भी कोशिश नहीं करेंगे…’’
रात को जब खेलावन लौटा, तो नशे झूम रहा था. आते ही उस ने आंगन में पड़े तख्त पर बैठ कर जानकी को आवाज लगाई, ‘‘बहुत तेज भूख लगी है, खाना लगाओ.’’
रात के 9 बज चुके थे. चूंकि सालों बाद खेलावन घर लौटा था, तो मानकी ने पूरीकचौरी के साथ खेलावन की पसंद की बहुत सी चीजें बना डाली थीं.
झींगुरी लगातार बड़की अम्मां के साथ रसोई में जुटी रही थी. वैसे भी किसनी के भाग जाने के बाद से वह ज्यादातर समय उन्हीं के साथ गुजारती.
आज सवेरे ही बड़की अम्मां ने झींगुरी को समझा दिया था कि कल रात को तेरा बापू थकाहारा शहर से लौटा था, तो मेरे कमरे में सो गया, इसलिए तुझे अपनी मां के पास सोना पड़ा, लेकिन आज वह तेरी मां के कमरे में समय बिताएगा, इसलिए तुम मेरे पास रहना. जानकी वाले कमरे में मत जाना.
झींगुरी ने मन ही मन कहा, ‘अरे बड़ी अम्मां, अब हम भी जवान हो गए हैं और खूब समझ रहे हैं कि कल बापू क्यों तुम्हारे कमरे में सोए और आज क्यों अम्मां के कमरे में सोएंगे.’
खाना खा कर एक मस्त डकार लेता हुआ खेलावन जा कर जानकी के कमरे में लेट गया. वह जातेजाते जानकी को हिदायत दे गया, ‘‘तू भी जल्दी से खाना खा कर कमरे में आजा.’’
झींगुरी ने गौर किया कि उस की मां ने उस हिदायत को सुन कर ठीक से खाना भी नहीं खाया और उसे व बड़की मां को खाते हुए छोड़ कर जल्दी से हाथ धो कर खेलावन के पास चली गई.
झींगुरी मन मसोस कर रह गई.
उधर जानकी के साथ बिस्तरबाजी के बाद खेलावन बोला, ‘‘तुम्हारे साथ तो आज भी पहले जैसा मजा आया.’’
जानकी ने पहले तो कोई जवाब नहीं दिया, पर बाद में वह बोली, ‘‘तुम तो हम सब को ऐसे छोड़ कर गए कि पिछले
5 सालों तक हमारा कोई हालचाल नहीं लिया?
‘‘तुम्हारे जाने के बाद परिवार के भरणपोषण के लिए मजदूरी करतेकरते यह देखो मेरे उन नाजुक हाथों का क्या हाल हो गया, जिन्हें तुम शुरू में चूमते नहीं थकते थे.
‘‘मेरे साथसाथ किसनी भी मजदूरी कर के कमाई करने लगी थी. उस ने अपनी सारी कमाई अपनी मां के इलाज में खर्च कर डाली.
‘‘इधर दीदी तपेदिक रोग से ठीक हुईं, उधर एक रात जवान मिस्त्री जीवन किसनी को चुपचाप भगा कर ले गया. तब से झींगुरी बहुत बेचैन रहने लगी है.’’
झींगुरी का नाम आते ही खेलावन ने पलंग के पीछे की दीवार पर अपनी पीठ टिकाते हुए कहा, ‘‘जानकी, अपनी झींगुरी को सवेरे तो मैं देखता ही रह गया था. बिलकुल तुम्हारी ही तरह सुंदर चेहरा और शरीर की उठान…’’
‘‘लेकिन, तुम उस समय झींगुरी को इतने गुस्से से क्यों घूर रहे थे… सच बताओ कि किसनी के भाग जाने की सुन कर तुम्हें बुरा नहीं लगा.’’
‘‘इस में बुरा लगने वाली क्या बात है. हम उस के लिए लड़का ढूंढ़ते, उस ने खुद अपना जीवनसाथी ढूंढ़ लिया.’’
‘‘लेकिन उस की शादी हम विधिविधान से करते तो शायद इस घर पर मेरे चलते लगा एक पुराना कलंक मिट जाता,’’ कह कर जानकी उस समय में चली गई, जब वह गांव में सौत के नाम से जानी जाने लगी थी.
कुछ देर बाद अपनेआप को सामान्य करते हुए जानकी खेलावन से बोली, ‘‘किसनी तो भाग गई, लेकिन उस समय हमें लोगों के कितने ताने सुनने पड़े और हम पर क्या गुजरी, यह तुम नहीं समझ पाओगे,’’ इतना सुन कर खेलावन ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘तू इन गांव वालों की बातों को दिल पर न ले. अरे, ये तो ऐसे ही बकते रहते हैं. इन्होंने कभी शहर देखा हो तो समझ में आए कि वहां कौन क्या कर रहा है, कहां जा रहा है, किस से मिल रहा है. इन सब बातों पर कोई ध्यान ही नहीं देता.’’
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इतना कह कर खेलावन चुप हो कर जानकी को गौर से देखने लगा. एक बार उस के मन में फिर हवस का ज्वार उठा और वह जानकी से फिर लिपट गया…
कुछ देर बाद खेलावन के खर्राटे कमरे में गूंजने लगे, लेकिन जानकी को नींद नहीं आई. वह खेलावन के पास से हट कर नीचे बिछी दरी पर लेट गई.