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विवाह के बाद का 1 महीना कब बीत गया, शिवानी को पता ही नहीं चला. बनारस के जानेमाने समृद्घ, स्नेहिल, सभ्य परिवार की इकलौती बहू बन कर शिवानी खुद पर नाज करती थी. बीएचयू में ही मंच पर एक कार्यक्रम पेश करते हुए वह कब गौतम दंपती के मन में उन के इकलौते बेटे अजय की दुलहन के रूप में जगह बना गई, किसी को पता ही न चला.

यह रिश्ता बिना किसी अवरोध के तय हो गया. शिवानी भी अपने अध्यापक मातापिता रमेश और सुधा की इकलौती संतान थी. गौतम का अपना बिजनैस था. परिवार में पत्नी उमा, बेटा अजय, उन के छोटे भाई विनय और उन की पत्नी लता सब एकसाथ ही रहते थे. उमा और लता में बहनों जैसा प्यार था. विनय और लता बेऔलाद थे. अपना सारा स्नेह अजय पर ही लुटा कर उन्हें चैन आता था.

गौतम परिवार में शिवानी का स्वागत धूमधाम से हुआ था. अजय पिता और चाचा के साथ ही बिजनैस संभालता था. लंबाचौड़ा बिजनैस था, जिस में टूअर पर जाने का काम अजय ने संभाल रखा था. विवाह के बाद की चहलपहल में समय जैसे पलक झपकते ही बीत गया.

एक दिन औफिस से आ कर अजय ने शिवानी से कहा, ‘‘अगले हफ्ते मुझे इंडिया से बाहर कई जगह टूअर पर जाना है.’’

यह सुन कर शिवानी एकदम उदास हो गई, पूछा, ‘‘मुझे भी ले जाओगे?’’

‘‘अभी तो तुम्हारा पासपोर्ट भी नहीं बना है. पहले तुम्हारा पासपोर्ट बनवा लेते हैं, फिर अगली बार साथ चलना.’’

घर में शिवानी की उदासी सब ने महसूस की. उमा ने कहा, ‘‘विवाह की भागदौड़ में ध्यान ही नहीं रहा कि पासपोर्ट की जरूरत पड़ सकती है. कोई बात नहीं बेटा, अगली बार साथ चली जाना. इस के तो टूअर लगते ही रहते हैं… ये दिन हम सासबहू मिल कर ऐंजौय करेंगे.’’

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उमा के स्नेहिल स्वर पर अपनी उदासी एकतरफ रख शिवानी को मुसकराना ही पड़ा.

लता ने भी कहा, ‘‘अब इस के लिए अच्छेअच्छे गिफ्ट्स लाना… भरपाई तो करनी पड़ेगी न.’’

सभी शिवानी का मूड ठीक करने के लिए हंसीमजाक करते रहे. शिवानी भी फिर धीरेधीरे हंसतीमुसकराती रही.

रात को एकांत मिलते ही अजय ने कहा, ‘‘मेरा भी मन तो नहीं लगेगा तुम्हारे बिना पर मजबूरी है… अब बाहर के काम मैं ही संभालता हूं. जल्दी निबटाने की कोशिश करूंगा. तुम बिलकुल उदास मत होना. आराम से घूमनाफिरना और फिर हम टच में तो रहेंगे ही. विवाह के बाद अपने दोस्तों से भी नहीं मिली हो न… सब से मिलती रहना. मैं जल्दी आ जाऊंगा.’’

शिवानी का मन उदास तो बहुत था पर अजय के स्पर्श से मन को ठंडक भी पहुंच रही थी. अजय की बाहों के सुरक्षित घेरे में वह बहुत देर तक चुपचाप ऐसे ही बंधी पड़ी रही. 2 दिन बाद अजय चला गया. शिवानी को लगा जैसे वह अकेली हो गई है. वह सोचने लगी कि कैसा होता है पतिपत्नी का रिश्ता. जो कुछ दिन पहले तक अजनबी था, आज उसी के बिना एक पल भी रहना मुश्किल लगता है, सब कुछ उसी के इर्दगिर्द घूमता रहता है.

उमा और लता ने उसे कुछ उदास सा देखा, तो उमा ने कहा, ‘‘जाओ बहू, अपने मम्मीपापा के पास कुछ दिन रह आओ, लोकल मायके में अकसर रहने को नहीं मिलता है… जब भी गई हो थोड़ी देर में लौट आई हो. अब कुछ दिन रह लो. टाइमपास हो जाएगा.’’

शिवानी को मायके आ कर अच्छा लगा. रमेश और सुधा बेटी की ससुराल से पूरी तरह संतुष्ट थे.

सुधा ने कहा भी, ‘‘बेटा, वे बहुत अच्छे लोग हैं. उन के साथ तुम हमेशा प्यार से रहना. बहुत ही कम लड़कियों को ऐसा घरवर मिलता है.’’

अजय फोन पर तो शिवानी के संपर्क में रहता ही था. 2 दिन हुए थे. शिवानी के दोस्तों जिन में लड़केलड़कियां दोनों शामिल थे, सब ने शिवानी के लिए एक पार्टी रखी.

उस की सहेली रेखा ने कहा, ‘‘तुम्हारे लिए ही रखी है पार्टी. आजकल बोर हो रही हो न? कुछ टाइमपास करेंगे. खूब धमाल करेंगे.’’

शिवानी ने अजय को फोन पर पार्टी के बारे में बताया, तो वह खुश हुआ. बोला, जरूर जाना…ऐंजौय करो.

पिता रमेश ने तो सुन कर ‘‘हां, जाओ,’’ कहा पर मां सुधा ने मना करते हुए कहा ‘‘दिन भर जहां मन हो, घूमफिर लो, पर रात में रुकना मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘अरे मम्मी, संजय के फार्महाउस पर पार्टी है और अब तो मैं मैरिड हूं. आप चिंता न करें. सब पुराना गु्रप ही तो है.’’

‘‘नहीं शिवानी, मुझे इस तरह रात में रुकना पसंद नहीं है.’’

सुधा शिवानी के रात भर बाहर रुकने के पक्ष में बिलकुल नहीं थीं पर शिवानी ने जाने की तैयारी कर ही ली. तय समय पर वह तैयार हो कर रेखा के घर गई. वहां अनिता, सुमन, मंजू, सोनिया, रीता, संजय, अनिल, कुणाल, रमन सब पहले से मौजूद थे. सब पुराने सहपाठी थे. सब की खूब जमती थी. संजय का फार्महाउस बनारस से बाहर 1 घंटे की दूरी पर था. 2 कारों में सब 1 घंटे में फार्महाउस पहुंच गए.

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इन सब में रीता, रमन और शिवानी विवाहित थे. सब मिल कर चहक उठे थे. 6 बज रहे थे. सब से पहले कोल्ड ड्रिंक्स का दौर शुरू हुआ. सब एकदूसरे का गिलास भरते रहे. खूब हंसीमजाक के बीच भी शिवानी को अपना सिर भारी होता महसूस हुआ. वह थोड़ा शांत हो कर एक तरफ बैठ गई. उस के बाद म्यूजिक लगा कर सब थिरकने लगे. सब लोग कालेज स्टूडैंट्स की तरह मस्ती के मूड में थे. वहीं एक सोफे पर शिवानी निढाल सी बैठी थी.

रेखा ने कहा, ‘‘तू किसी रूम में जा कर थोड़ा लेट ले.’’

‘‘हां ठीक है.’’

संजय के फार्महाउस की देखभाल माधव काका और उन की पत्नी करते थे. बहुत पुराने लोग थे. संजय ने उन्हें आवाज दी, ‘‘काकी, शिवानी को एक रूम में ले जाओ और आराम करने देना इसे. इस की तबीयत ठीक नहीं है.’’

रेखा भी साथ जा कर शिवानी को लिटा आई. फिर सब के साथ डांस में व्यस्त हो गई. सब ने जम कर धमाल किया. खूब डांस कर के थक गए तो माधव और जानकी ने सब का खाना लगा दिया. सब डिनर के लिए शिवानी को उठाने गए पर वह गहरी नींद में बेसुध थी.

रेखा ने कहा, ‘‘इसे सोने दो. उठेगी तो खा लेगी. यह तो शादी के बाद कुछ ज्यादा ही नाजुक हो गई है?’’

सब इस मजाक पर हंसने लगे.

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