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‘‘क्या हुआ...?’’ देवराज ने बदहवास जयप्रकाश को देखते हुए पूछा.

‘‘बचा ले मुझे देव. आज तू ही मेरा सहारा है,’’ जयप्रकाश देवराज के पैर दबाने लगा.

‘‘बता तो सही, हुआ क्या? तेरी बात समझ में नहीं आ रही है.’’

‘‘दोनों मेरे पीछे लगी हुई हैं. कभी भी यहां पहुंच सकती हैं. आज तो मेरी शामत है.’’

‘‘कौन दोनों...?’’

‘‘और कौन? दुर्गा और काली.’’

देवराज समझ गया कि जयप्रकाश अपनी 2 पत्नियों की बात कर रहा है. एक को दुर्गा और दूसरी को काली कह रहा है.

देवराज पुरानी गाड़ी खरीदनेबेचने का काम करता है और जयप्रकाश परिवहन विभाग में इंस्पैक्टर है. देवराज का गाडि़यों की खरीदफरोख्त के सिलसिले में नाम ट्रांसफर, फिटनैस, लाइसैंस के लिए परिवहन विभाग में काम पड़ता रहता है.

कागजों पर जयप्रकाश ने दस्तखत करने होते हैं या उस के किसी साथी ने. परिवहन विभाग में हर काम के लिए रकम खर्च करनी पड़ती है. हर रोज काम हो तो दोस्ती हो जाती है.

हमउम्र देवराज और जयप्रकाश की दोस्ती पक्की हो गई. देवराज फोन कर देता, जयप्रकाश देवराज के घर से कागज ले जाता और अगले दिन सुबह काम कर के कागज दे जाता. काम फटाफट हो जाता, इसलिए दूसरे कार डीलर भी देवराज की मारफत काम करवाते.

दोनों में अच्छा तालमेल, दोस्ती हो गई. एकदूसरे के घर आनाजाना, सुखदुख बांटना... कई सालों से पक्की दोस्ती हो गई थी.

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परिवहन विभाग में कोई भी काम बिना रिश्वत के होता नहीं है, जयप्रकाश ने मोटी रकम जमा कर ली थी.  2 मकान, कारें, बैंक बैलैंस, सोनाचांदी, सबकुछ अनगिनत.

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