चटनी यह नया अफसर कस्तूरी की समझ में ही नहीं आ रहा था. पिछले 5 बरसों में 6-7 अफसरों से उस का पाला पड़ चुका था, पर इस नए अफसर जैसा अभी तक एक भी नहीं मिला था. इसे यहां आए 4-5 महीने हो गए थे, पर यह अभी भी पहले दिन जैसा ही था.
इस के पहले वाला वह लंबू अफसर भी शुरूशुरू में चुपचाप ही रहा, पर जैसजैसे दिन बीतते गए थे, वह खुलता गया.
ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. अफसर लोग और उन के घर वाले आते ही कस्तूरी में दिलचस्पी लेने लगते थे. मेमसाहबों से छिप कर वे उसे निहारा करते और जब तक मेमसाहब घर में न हों, हर तरह की छेड़छाड़ करते थे.
एक ने पूछा था, ‘‘क्यों री कस्तूरी, तू ने कितने आदमी करे अभी तक?’
कस्तूरी मुसकराते हुए नजरें झुकाए काम किए जाती थी, मगर साहब काम बंद करवा कर उस के पीछे ही पड़ जाते थे, ‘‘बता, कितने आदमी करे तू ने अभी तक?’’
कस्तूरी को जवाब देना ही पड़ता था, ‘‘3…’’
‘‘और साहब लोग कितने?’’ एक ने पूछ लिया था.
‘‘साहब, जितने साहब पिछले
6 सालों में आए, सभी के साथ मैं ने वही किया, जो 3 के साथ किया था.’’
आमतौर पर साहब लोग रस लेले कर कस्तूरी की लीलाओं को सुनते थे. कस्तूरी मुसकरा कर किस्से सुनाती रहती कि कौन साहब कैसा था.
एक बार वह एक आदमी के साथ पकड़ी गई. पुलिस वाले ने जो करना था, किया.
साहब ने पूछा था, ‘‘कहां गिरफ्तार किया था तुम को?’’
कस्तूरी को अपनी रासलीला के बारे में बताना ही पड़ता था. वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘सिनेमा में. उस में नंगी वाली फिल्म लगी थी न.’’
‘‘तो तुम दोनों ऐसावैसा सिनेमा देखने गए थे?’’
‘‘हां, मेला देखने के बाद सिनेमा देखने चले गए थे.’’
‘‘फिर क्या हुआ?’’
‘‘थाने में ले गई पुलिस… सभी लोगों को वहीं रातभर बंद रखा.’’
‘‘क्यों री, उस रात पुलिस ने तुझे क्या छोड़ा होगा? तेरी इज्जत भी पुलिस ने ली होगी?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘क्यों झूठ बोल रही हो? ऐसे में पुलिस कहीं छोड़ती है? सच बता?’’
‘‘बच गई… एक तो हमजैसी 4-5 साथ थीं और फिर होटल वाले और सिनेमा वाले ने पैसे दिए. वह होटल वाला साथ था न.’’
‘‘अच्छा, फिर क्या हुआ?’’
‘‘फिर क्या… मेरे मांबाप आए सुबह और मुझे छुड़ा कर ले गए.’’
‘‘पुलिस ने यों ही छोड़ दिया…?’’
‘‘यों ही कैसे…? होटल वाले ने 500 रुपए दिए, तब छोड़ा.’’
‘‘ये 500 रुपए तो पुलिस वालों ने ले लिए. पर तेरे मांबाप ने भी कुछ रुपए लिए होंगे न?’’
‘‘हां, लिए थे.’’
‘‘वह क्या कहते हैं इस को… तुम लोगों में?’’
‘‘इज्जत के पैसे.’’
‘‘हां, इज्जत के पैसे… इज्जत गई उस का मुआवजा.’’
साहब ने कहसुन कर मामला बंद करवाया. वह कस्तूरी को कहां छोड़ना चाहते थे. मेमसाहब भी उस से खुश थीं.
लेकिन यह नया साहब तो इन मामलों में कोई दिलचस्पी ही नहीं लेता था. हां, मेमसाहब ही कभीकभार कस्तूरी से उस की जिंदगी के बारे में पूछ लेती थीं. पर ऐसे समय भी वह भला आदमी कभी इधर कान नहीं देता था.
शुरूशुरू में कस्तूरी ने यह सोचा कि यह नया साहब भी शायद अपनी मेमसाहब से डरता होगा, इसीलिए वह उस की तरफ नजर नहीं डालता. पहले भी एक साहब ऐसा आया था. उस की मेमसाहब जब तक बंगले में रहीं, तब तक उस ने कस्तूरी पर आंख उठा कर नहीं देखा था, पर मेमसाहब के भीतर जाते ही वह भूखे भेडि़ए की तरह कस्तूरी पर टूट पड़ा था.
पर इस मुए नए साहब में तो कस्तूरी को यह बात भी नजर नहीं आई थी. इस की मेमसाहब 2 बार अपनी रिश्तेदारी में गई थीं. यह बंगले में अकेला ही रह गया था, पर फिर भी इस में कुछ बदलाव नहीं आया था. पहले की तरह यह बस इतनी बातें करता रहा था कि कस्तूरी, कौफी लाओ… कस्तूरी, खाना लगाओ… वगैरह.
इसीलिए तो कस्तूरी को यह नया साहब कुछ अजीब सा लग रहा था. यह किस मिट्टी का बना है, उस की समझ में नहीं आ रहा था. ऐसा साहब उसे आज तक नहीं मिला था. जितने भी साहबों से उस का पाला पड़ा था, वे सभी उसे तकरीबन एकजैसे लगे थे. स्वाद बदलने के लिए वे लोग चटनी की तरह कस्तूरी का इस्तेमाल करते रहते थे.
इस अनोखे साहब से पहले जो साहब यहां था, उस ने तो इसीलिए उस का नाम ‘चटनी’ रख दिया था. वह मुआ अपनी मेमसाहब के सामने ही पुकारता था, ‘चटनी.’
इस नाम से कस्तूरी खुश ही हुई थी. दूसरे साहबों की तरह वह नाटक तो नहीं करता था. अपनी मेमसाहब तक से उस ने कुछ नहीं छिपाया था.
मगर यह नया साहब तो जाने कैसा था, अपनी मेमसाहब के सिवा कस्तूरी पर भरपूर नजर भी नहीं डालता था. अपने चश्मे के पीछे से उड़ती नजर ही कस्तूरी पर डाल कर हुक्म दे देता था. दूसरे नौकरों में और कस्तूरी में उस के लिए जैसे कोई फर्क ही नहीं था.
इस नए साहब के ऐसे अनोखे बरताव से कस्तूरी को डर सा लगने लगा था. डर इस बात का कि इस साहब ने कहीं उसे नापसंद तो नहीं कर दिया. यह उसे वापस फार्म तो नहीं भेज रहा है? फार्म की कोई दूसरी मजदूरनी कहीं इस की नजरों में नहीं चढ़ गई है? उसे यहां ला कर कस्तूरी को हटाने का इरादा तो नहीं है इस का?
राइटर- चंद्रशेखर