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प्रिंसिपल गंगाधर शास्त्री ध्यान से एकएक शब्द पढ़ते जा रहे थे. उन की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे. उन्होंने आखिरी लाइन को 2-3 बार पड़ा, ‘पापा, अगर आप होते तो मुझे ढेर सारी किताबें ला कर देते, फिर मैं पड़ोस की रानी की तरह स्कूल जाती और खूब पढ़ती…

’गंगाधर शास्त्री ने अपनी जेब से रूमाल निकाला और आंखों को साफ किया, फिर टेबल पर रखी घंटी को दबाया.

घंटी की आवाज कमरे के बाहर तक गूंजने लगी. थोड़ी देर में चपरासी अपने हाथों में चाय का प्याला ले कर हाजिर हो गया, ‘‘जी सर…’’

‘‘अरे, चाय नहीं… सविता को बुलाओ…

’’सविता मैम ने ही प्रिंसिपल गंगाधर शास्त्री को वह परची पढ़ने को दी थी.

जब वे उन की ओर परची बढ़ा रही थीं, तब उन की आंखों में भी आंसू झिलमिला रहे थे.

‘‘किस ने लिखी है यह परची?’’

सविता मैम पूरी तरह कमरे में दाखिल भी नहीं हो पाई थीं कि गंगाधर शास्त्री ने उन के सामने यह सवाल कर दिया.‘‘गुडि़या ने…’’

सविता मैम ने कमरे के अंदर आतेआते ही जवाब दिया.

‘‘कौन गुडि़या…? वह किस क्लास में पढ़ती है?’’

‘‘वह हमारे स्कूल की स्टूडैंट नहीं है सर… पर,

मैं उसे 5वीं क्लास में ऐसे ही बैठा लेती हूं…’’

‘‘क्या मतलब…?’’‘‘उस का नाम दर्ज नहीं है,

पर वह पढ़ना चाहती थी ऐसा उस की मां ने मुझ से बोला था,

तो मैं ने उसे क्लास में बैठने की इजाजत दे दी थी,’’

सविता मैम को लगा शायद सर अब उन से नाराज होंगे, क्योंकि संस्था के नियम के मुताबिक किसी ऐसे बच्चे को क्लास में बैठाया ही नहीं जा सकता था, जिस का नाम संस्था में दर्ज न हो. पर सविता मैम करतीं भी क्या, उन से गुडि़या और उस की मां की आंखों में झांक रही बेचारगी देखी नहीं गई.

गुडि़या की मां गांव में साफसफाई का काम करती थी और 4 बच्चों का पेट भरती थी. पति था नहीं, तो वह चाह कर भी गुडि़या को स्कूल में नहीं भेज पा रही थी.वैसे तो गुडि़या की मां जानती थी कि अब सरकारी स्कूलों मे फीस नहीं लगती, किताबें भी स्कूल से ही मिल जाती हैं,

पर इस के अलावा भी तो खर्चे होते हैं… खर्चे ही नहीं, स्कूल में जो बड़े घरों के बच्चे पढ़ते हैं, उसे उन से डर था…गांव में कोई भी तो उन के साथ संबंध नहीं रखता.

सरकार भले ही कहे कि उस ने छुआछूत मिटा दी है…

पर सरकार गांव में आ कर देख ले कि यहां तो अभी भी पुराना राज ही चल रहा है.मां को तो गुडि़या में पढ़ाई की लगन देख कर खुशी होती थी. गुडि़या ने ही जिद की थी,

‘मां, मैं पढ़ना चाहती हूं. आप मुझे स्कूल में भेज दो न…’

रोजरोज की जिद के आगे मां एक दिन गुडि़या को सविता मैम के घर ले गई.

वह तो सविता मैम के घर के बाहर के मैदान में झाड़ू लगाती थी, इस वजह से उन से कुछ पहचान सी हो गई थी.सविता मैम ने भी मां का हौसला बढ़ाया था, ‘‘अरे, आप इसे स्कूल भेजें.

देखो, सरकार पढ़ने वाले बच्चों की कितनी मदद कर रही है…

आप भेज दें इसे…’’‘‘मैम, मैं चाहती हूं कि अभी गुडि़या ऐसे ही स्कूल जाए.

2-4 दिनों में ही उस का स्कूल जाने का भूत उतर जाएगा… और नहीं उतरा तो अगले साल उस का नाम लिखवा दूंगी,’’

गुडि़या की मां बोली.सविता मैम ने गुडि़या को क्लास में बैठने की इजाजत दे दी.अब प्रिंसिपल गंगाधर शास्त्री के सामने खड़ी सविता मैम के चेहरे पर न जाने कितने भाव आजा रहे थे…

उन्हें लग रहा था कि कहीं प्रिंसिपल सर नाराज न हो जाएं. उन्होंने गुडि़या का लिखा वह कागज इसलिए उन को पढ़ने के लिए दिया था, ताकि वे उस की पढ़ाई की ललक को खुद भी महसूस कर सकें.बहुत देर तक प्रिंसिपल गंगाधर शास्त्री अपने हाथों में लिए कागज को उलटतेपुलटते रहे.

सविता मैम का सब्र टूटता जा रहा था,

‘‘सर, मुझ से गलती हो गई…

मुझे आप से पूछे बगैर उसे क्लास में नहीं बैठाना चाहिए था…’’

‘अरे नहीं… तुम ने तो बिलकुल सही किया…

हमें कम से कम एक पढ़ने वाले बच्चे का भविष्य संवारने का मौका तो मिला…

सभी को पढ़ालिखा बनाना हमारी जिम्मेदारी है…’’‘‘पर सर… वह…

’’ सविता मैम कुछ कहना चाहती थीं, पर प्रिंसिपल गंगाधर शास्त्री ने बीच में ही उन की बात को काट दिया, ‘‘एक काम करो, तुम उसे मेरे पास भेजो…’’

‘‘जी सर…’’‘‘उस की मां क्या करती हैं?’’

‘‘सर, वे दलित समाज से हैं और सफाई का काम करती हैं…’’यह सुन कर प्रिंसिपल गंगाधर शास्त्री के चेहरे पर न जाने कितने रंग उतर आए…

‘दलित समाज से… सफाई का काम करती हैं…’

उन के कानों में गूंजने लगा.प्रिंसिपल गंगाधर शास्त्री ठहरे शुद्ध ब्राह्मण. वे सिर पर चोटी रखते थे और माथे पर तिलक लगाते थे. उन के कंधे पर जनेऊ लहराता रहता था.

अच्छेखासे लंबे और मजबूत कदकाठी थी उन की.सविता जानती थी कि प्रिंसिपल गंगाधर शास्त्री बहुत धार्मिक और पुराने विचारों के थे. वे अपना पानी घर से ले कर आते थे.

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