Family Story : सुभि को इस बार होली का बेहद बेसब्री से इंतजार था. इस बार उसे कई सालों बाद अपने घर यह त्योहार मनाने जाना था.

सुभि कई महीने पहले से ही होली पर अपने गांव जाने की तैयारी में जुट गई थी. अपने पति राकेश को उस
ने टिकट कराने के लिए बोल दिया था, पर औफिस में ज्यादा काम होने के चलते वह टिकट लेने के लिए जा ही नहीं सका था.

राकेश ने अपने दोस्त रमेश को यह बात बताई. फिर क्या था. रमेश बोला, ‘‘यार, तुम भी कौन सी दुनिया में जी रहे हो...? अब टिकट खरीदने के लिए रेलवे स्टेशन जाना जरूरी नहीं है. यह काम तो यहां बैठेबैठे औनलाइन भी हो सकता है.’’

रमेश ने पलक झपकते ही अपने आईडी पासवर्ड के साथ आईआरसीटीसी की साइट पर पटना जाने की ट्रेन खोजना शुरू कर दिया. पर सूरत से पटना के लिए किसी भी ट्रेन में एक भी सीट खाली नही दिख रही थी. फिर भी कम वेटिंग वाली टिकट राकेश ने अपने और सुभि के लिए बुक करवा दी. उस के कंफर्म होने की उम्मीद ज्यादा थी, ऐसा रमेश ने कहा था.

दिन बीतते जा रहे थे. सुभि अपने गांव जाने की तैयारी में जुटी थी, पर राकेश हर दिन टिकट का वेटिंग चैक करता था, पर वेटिंग संख्या में कोई खास कमी नहीं आई थी और हर बीतते दिन के साथ राकेश की दुविधा बढ़ती जा रही थी. वह सुभि और अपने बच्चे के चेहरे पर छाए जोश को टिकट कंफर्म नहीं होने के चलते खत्म नहीं करना चाहता था. किंतु वह अंदर ही अंदर घुट रहा था. फ्लाइट की टिकट खरीदना उस के बस में नहीं था और रेल के तत्काल के टिकट का भी कोई ठिकाना नहीं था.

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