बरात जब वापस आई थी, तब शाम का धुंधलका फैलने लगा था. ज्यादातर बराती रास्ते से ही अपनेअपने घर जा चुके थे. कुछ खास रिश्तेदार ही रह गए थे. रस्में पूरी करने के बाद बहू को घर की औरतों ने बस से उतारा. उतरने वालों में से वह सब से आखिरी थी. पूरे घर में खुशी और उमंग का माहौल था. दहेज में मिली चीजों को बस से उतार कर बाहर की बैठक में सजा दिया गया, जिसे देखने के लिए अड़ोसपड़ोस के औरतमर्दों का तांता लगा हुआ था. लोगों के ध्यान बहू के बजाय उन की चीजों की ओर ज्यादा थे. बहू को अंदर वाले एक कमरे के कोने में बैड पर बैठा दिया गया.
छोटीबड़ी लड़कियां समीक्षा के चारों तरफ मंडरा रही थीं. सुबह होते ही पूरे घर में कुहराम मच गया. जितने मुंह उतनी बातें. ‘‘औनलाइन तो सब ने देखा था? इतना भी नहीं दिखाई दिया?’’ जवाब मिला, ‘‘औनलाइन चेहरा दिखता है. बदन या कमर नहीं.’’ ‘‘बेचारे किशन की तो जिंदगी ही बेकार हो गई. कहीं ले जाने लायक भी नहीं?है.’’ ‘‘देखो तो सही, कमर कितनी पीछे की ओर निकल जाती है, कूबड़ है कूबड़.’’ ‘‘जब हम खुद देखने गए थे, तब इस ने शाल ओढ़ रखी थी, इसलिए तब कुछ पता ही नहीं लगा,’’ किशन के पिता ने सफाई दी, क्योंकि शादी से पहले समीक्षा को बेटे के साथ देखने वह भी गए थे. अब औनलाइन एजेंसी को क्या कहें. वे लोग तो पूरे 10,000 रुपए डकार गए थे पहले ही दिन रजिस्ट्रेशन के नाम पर. अब यह कोई शहर तो था नहीं कि किशन और समीक्षा को कहीं बाहर घूमने दिया गया.
बिहार का पिछड़ा सा गांव ही तो था. घर में एक कमरे में मेज पर एक तरफ समीक्षा बैठी थी, वहीं दूसरी ओर किशन की मां एक तरफ बैठ कर इस होनी पर आंसू बहा रही थीं. औरतें समीक्षा के मायके वालों को उलाहने देते हुए किशन की मां को ढांढस बंधा रही थीं. जिन्हें दहेज का सामान देख कर जलन होने लगी थी, वे भी इस समय घडि़याली आंसू बहाने की कोशिश कर रहे थे. किशन की हालत तो सब से अधिक खराब थी. लोगों की बातें उस के दिल में तीर की तरह उतर रही थीं. वह अपनी रुलाई को बड़ी मुश्किल से रोक पा रहा था. 2 दिन हो गए. सभी रिश्तेदार जा चुके थे, केवल परिवार के सदस्य ही रह गए थे.
किसी ने ढंग से खाना नहीं खाया था. इन 2 दिनों में केवल ताने ही दिए जाते रहे. कभी समीक्षा को, तो कभी उस के मायके वालों को. बेचारी समीक्षा. उस ने तो शादी से पहले ही अपने घर वालों से कहा था कि लड़के वालों को पूरी बातें सचसच बता दें, लेकिन उस की किसी ने एक न सुनी. वे बेचारे करते भी क्या? पिछले 4 साल में समीक्षा के इस कूबड़पन के चलते न जाने कितने ही रिश्ते ठुकरा दिए गए थे. वे लोग अस्पताल में भी दिखा चुके थे. उस का फिजियोथैरेपी के भी कुछ सैशन लिए थे, पर गरीब घर के पास न तो निजी अस्पताल जाने के साधन थे, न वहां स्पैशलिस्टों को दिखाने के लिए. आखिर में समीक्षा के परिवार वालों ने यही फैसला किया था
कि समीक्षा का यह दोष छिपा दिया जाए. शादी के बाद यह बात आईगई हो जाएगी. समीक्षा की सास ज्यादा कड़े दिल वाली तो नहीं थी, लेकिन बेटे की पूरी जिंदगी की बात थी, इसलिए एक दिन किशन के पिता से बोलीं, ‘‘इस मुसीबत से छुटकारा पाने का कोई उपाय तो खोजो.’’ ‘‘अब क्या किया जा सकता है? जो होना था सो हो गया,’’ किशन के पिता ने सांस छोड़ते हुए कहा. ‘‘क्या कहते हो? क्या हम अपने लड़के की जिंदगी यों ही बरबाद हो जाने दें?’’ किशन की मां आंखें फैलाते हुए बोलीं. ‘‘तो तुम ही कोई उपाय बताओ.’’ ‘‘आजकल तलाक तो लिया जा सकता है,’’ किशन की मां ने कड़ी आवाज में कहा. यह सुन कर किशन के पिता अवाक रह गए. आज तक उन्होंने किशन की मां का ऐसा रूप नहीं देखा था. उन की देह में बिजली सी दौड़ गई. समीक्षा का कूबड़पन जो समीक्षा के खड़े होने पर तकरीबन गायब हो जाता था, को अगर नजरअंदाज कर दिया जाए तो वह काफी सुंदर और गुणवती औरत कही जा सकती थी. फिजियोथैरेपी कराने के अलावा उस ने सैल्फ डिफैंस की ट्रेनिंग भी ली थी. उसे उम्मीद थी कि वह शहर में विकलांग कोटे में कोई नौकरी ले जाएगी,
पर पिता ने शादी करना ही ज्यादा ठीक समझा. शुरू में समीक्षा की ससुराल का कोई भी आदमी उस से बात तक करना पसंद नहीं करता था. समीक्षा ने आपा नहीं खोया. वह हमेशा अपने को काम में लगाए रखती और कोशिश करती कि उस का कोई भी कदम उस के परिवार के लोगों को परेशानी न दे. 2-3 महीने में लोगों को उस की आदत होने लगी. धीरेधीरे सबकुछ ठीक होता जा रहा था. एक रात करीब 2 बजे जब घर के सभी लोग सो रहे थे, समीक्षा की नींद खुली. उसे लगा कि आंगन में जैसे कोई गड़बड़ है. उस ने सोचा कि शायद घर का कोई आदमी पेशाब करने के लिए जागा होगा. वह फिर आंखें बंद कर के सोने की कोशिश करने लगी. दोबारा फिर खटरपटर सी हुई.
समीक्षा जमीन पर ही चटाई पर सो रही थी. बराबर में समीक्षा का बैड था, जो दहेज में मिला था. वह उठ कर बैठ गई. किशन खर्राटे भर रहा था. समीक्षा हिम्मत कर के उठी और कमरे के दरवाजे की ओट में खड़ी हो कर आंगन का जायजा लेने लगी. अंधेरी रात थी. फिर भी समीक्षा को आंगन में 2 परछाइयां साफ दिख रही थीं. एक ने अपने कंधे पर काफी बड़ा थैला लटका रखा था. समीक्षा के दिमाग में बिजली कौंध गई. उस के सामने पूरी हालत साफ थी. समीक्षा ने देखा, उन्होंने दीवार के सहारे एक सीढ़ी लगा रखी थी, जिस के द्वारा एक आदमी दीवार के ऊपर पहुंच गया था. गांव वालों को मालूम था कि किशन के पिता 2 दिन पहले ही फसल बेच कर 2 लाख रुपए लाए थे. वे घर में ही थे.
लगता है, किसी गांव वाले ने ही हाथ साफ करने की कोशिश की है. दूसरे ने चढ़ने के लिए सीढ़ी पर पैर ही रखा था कि समीक्षा बिना एक पल की भी देरी किए बड़ी फुरती के साथ उस पर टूट पड़ी और उसे धक्के से गिरा दिया. दूसरे की टांगों के बीच उस ने जोर से पैर मारे और फिर पहले की दाएं बाजू में अपने पैने दांत गड़ा दिए. वह दर्द से बिलबिला पड़ा. दूसरे ने दीवार पर चढ़ कर भागने की कोशिश की, पर समीक्षा ने उसे घसीट लिया. एक चोर ने अपनी जेब से चाकू निकाल कर समीक्षा पर हमला कर दिया. वह समीक्षा की बाएं बाजू पर लगा. वह दूसरी बार चाकू चलाता, इस के पहले ही घर के लोग शोर सुन कर जाग गए. दोनों चोरों को दबोच चुके थे. समीक्षा की बांह से खून बह रहा था. वह वहीं बेहोश हो कर गिर पड़ी. किशन की छोटी बहन तुरंत पट्टी ले कर आई.
उस की मां ने समीक्षा की बाजू पर उसे लपेट दिया. चोर की खूब पिटाई की गई. फिर उन्हें रस्सी से बांध कर गांव वालों ने रात में ही पास के थाने में पुलिस को दे दिया. सुबह होते ही समीक्षा को शहर के अस्पताल में इलाज के लिए दाखिल किया गया. घाव ज्यादा गहरा भी नहीं था, इसलिए वह कुछ दिनों में ठीक हो गई. इस घटना के बाद घर के लोगों के बरताव में बदलाव आ गया. सासससुर तो उस की तारीफ करते थकते नहीं थे. किशन भी अब समीक्षा को दिल से चाहने लगा था. समीक्षा ने अपना पहले जैसा ही बरताव रखा था. वह पहले ही की तरह सभी की सेवा करती थी. अब पड़ोसी भी कहते कि ‘बहू हो तो समीक्षा जैसी’. दिन बड़े आराम से खुशीखुशी बीत रहे थे. पहला सावन आया तो समीक्षा के मायके वाले उसे अपने साथ ले जाने के लिए पहुंचे. हालांकि समीक्षा ने उन्हें चिट्ठी में सबकुछ बता दिया था, फिर भी वे समीक्षा की ससुराल आने से डर रहे थे.
समीक्षा की ससुराल आ कर उन लोगों ने जो कुछ देखा, उस की कल्पना भी उन लोगों ने नहीं की थी. समीक्षा के पिता को अपनी बेटी पर फख्र हो रहा था. अगली रात किशन और समीक्षा एक ही बैड पर सोए और समीक्षा किसी भी तरह की अधूरी नहीं लगी. किशन ने उस की पीठ वाले हिस्से को भी खूब चूमा और आगे वाले को भी. समीक्षा भी कहीं पीछे नहीं थी. किशन की रातें बहुत अच्छी बीत रही थीं. कुछ दिन बाद समीक्षा मायके जाने के लिए विदा हो कर अपने भाइयों और पिता के साथ चली गई. आज समीक्षा को मायके गए हुए तीसरा दिन था. समीक्षा की याद में किशन का मन किसी भी काम में नहीं लगता था. समीक्षा के मीठेमीठे बोल उस के कानों में गूंजते रहते. किशन की मां और पिताजी को भी समीक्षा की गैरहाजिरी अखर रही थी. सोच रहे थे कि जितनी जल्दी हो सके समीक्षा को उस के मायके से बुलवा लिया जाए. उन्होंने पूछा भी किशन से कि उसे मैसेज करे, पर वह शरमा गया कि पत्नी क्या सोचेगी. दोपहर के तकरीबन 2 बजे होंगे.
किशन घर के बाहर नीम के पेड़ के नीचे पड़ी चारपाई पर पड़ापड़ा ऊंघ रहा था. एक आदमी बाइक से वहां उतरा. गरमी में बाइक से चल कर आने के चलते उस की देह पसीने से तरबतर थी. उस ने बाइक खड़ी की और किशन की तरफ मुखातिब हो कर बोला, ‘‘क्यों भैया, ललितपुरा से जो ब्याहे हैं, उन का घर यही है?’’ किशन चारपाई से उठा और ललक कर बोला, ‘‘हां… हां… कहिए क्या बात है? आइए बैठिए.’’ ‘‘नहीं भैया, बैठना नहीं है. जरा भीतर जा कर खबर दे दो कि कल रात इन की वाइफ समीक्षा को सांप ने काट लिया और आज सुबह उस ने दम तोड़ दिया.’’ यह सुनते ही किशन की आंखों के आगे अंधेरा छाता चला गया. वह धम्म से चारपाई पर बैठ गया. जब यह खबर परिवार के लोगों को मिली, तो घर में कुहराम मच गया. ‘समीक्षा, हाय समीक्षा,’ सभी चिल्ला रहे थे, लेकिन अब समीक्षा कहां थी. अब तो सिर्फ उस की यादों का कूबड़ ही था, जो पूरे परिवार के लोगों के कलेजे से चिपक गया था.