बिस्तर पर लेटते ही फिर मुझे महेश की याद सताने लगी और बारबार मेरे सामने उस का चेहरा घूमने लगा. कितना समझाया था सुबह मैं ने, लेकिन मेरी एक न मानी और दोस्तों के साथ ऐसी खतरनाक सोच ले कर वह घर से बाहर निकल गया. पता नहीं, आज वह कहांकहां, क्याक्या गुल खिलाएगा और मेरी बनीबनाई इज्जत में दाग लगाएगा.
अभी मैं इन्हीं बातों में उलझा हुआ था कि मेरे खयाल गुजरे हुए कल की तरफ भागने लगे. हमारी 10 साल की शादीशुदा जिंदगी में सैकड़ों बार रानो ने मुझे दूसरी शादी करने की सलाह दी थी. लेकिन मैं हमेशा उसे तसल्ली दिया करता, ‘‘रानो, हिम्मत रखो, तुम्हारी गोद जरूर हरी होगी.’’ आखिर इतने सालों के बाद महेश की शक्ल में एक खूबसूरत लड़के ने जन्म लिया. उस वक्त हमारी खुशियों का कोई ठिकाना न था और घर वाले तो फूले न समा रहे थे. लेकिन रानो को ये खुशियां रास न आईं और वह 2 साल के महेश को हमारे बीच छोड़ कर इस जहान से कूच कर गई. इस भरीपूरी दुनिया में मैं अपनेआप को अकेला महसूस करने लगा, पर महेश ने मुझे कभी कुछ सोचने नहीं दिया. तभी तो दोस्तों के मशवरे के बावजूद मैं ने दोबारा शादी करने से इनकार कर दिया.
महेश की परवरिश करते हुए हंसतेखेलते मेरा वक्त गुजरने लगा… अभी मैं यह सोच ही रहा था कि रात के सन्नाटे में अचानक दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनाई दी. मैं बुरी तरह चौंक गया, क्योंकि कई दिनों से शहर में दंगों के से हालात हो रहे थे. दोबारा जब दरवाजा खटखटाने की आवाज आई, तो मैं उठ कर दरवाजे तक पहुंच गया. ज्यों ही दरवाजा खोला, सामने एक औरत को देख हैरान रह गया. अभी मैं उस से कुछ पूछता कि उस ने बिना झिझक कमरे में दाखिल हो कर दरवाजा बंद कर लिया और मेरे सामने बिलखबिलख कर रोने लगी. ‘‘किसी तरह मेरे पति को बचा लीजिए. मेरी मदद कीजिए,’’ कहते हुए उस ने मेरी ओर देखा. ‘‘क्या हुआ?है आप के शौहर को? और कहां हैं वह, कुछ तो बताइए?’’ ‘‘मेरे पति जख्मी हालत में उधर झाडि़यों के पास पड़े हैं,’’
उस ने इशारे से बताया. ‘‘बैठ जाओ. घबराने की कोई बात नहीं,’’ मैं ने उसे दिलासा दिया. ‘‘चाचाजी, पहले उन्हें ले आइए. मुझे बहुत डर लग रहा है, कहीं कोई आ न जाए,’’ उस की घबराहट अपनी जगह ठीक थी और मैं भी यही सोच रहा था कि कहीं महेश आ न जाए. क्योंकि मैं जानता था कि वह भी दंगा करने वालों के साथ शामिल हो गया है. कुछ देर मैं खड़ा सोचता रहा, फिर उस के साथ दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया और उस के शौहर को सहारा दे कर कमरे में ले आया. वह ज्यादा जख्मी नहीं था, लेकिन अपने होशोहवास खोए हुए था. मैं ने उसे बिस्तर पर लिटा दिया. फिर घर में रखी दवा निकाल कर मरहमपट्टी करने लगा. फिर मैं उस औरत से बोला, ‘‘घबराने की कोई बात नहीं है. तुम्हारा शौहर अभी ठीक हो जाएगा.’’ ‘‘सच…? मेरे खाविंद ठीक हो जाएंगे?’’
उस की आवाज के साथ पहली दफा मैं ने उस औरत का भरपूर जायजा लिया, तो पता चला कि वह ज्यादा से ज्यादा 22-23 साल की होगी. वह साड़ी में थी और पेट से थी. मैं कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘आप ने बड़ी हिम्मत की, जो यहां आ गईं… आप ने कैसे यकीन कर लिया कि आप को यहां पनाह मिल जाएगी?’’ ‘‘मुझे मालूम है कि आप कौन हैं? कई सालों तक आप पलामू में हमारे पड़ोसी थे. पिछले हफ्ते ही मैं यहां आई हूं… तब से आप से मिलना चाह रही थी. ‘‘कल इन पर दफ्तर से आते हुए हमला हो गया, जिस से ये जख्मी हो गए. वह तो इन के आटोरिकशा के ड्राइवर की मेहरबानी थी कि उस ने किसी तरह इन्हें बचा कर अपने घर में रखा. फिर अंधेरा होते ही उस ने हमारे कहने पर यहां तक पहुंचा दिया. अब मैं आप के सामने हूं. शायद आप ने मुझे पहचाना नहीं चाचा, मैं आप के पड़ोसी रहमान की बेटी आयशा हूं.’’ इतना सुनते ही मैं ने उसे सीने से लगा लिया और भरे गले से बोला, ‘‘इतनी बड़ी हो गई बिटिया… मैं ने तो तुझे पहचाना ही नहीं. बैठोबैठो, आराम से बैठो.’’ तभी मुझे याद आया कि शायद ये लोग भूखे होंगे, इसलिए आयशा से बोला, ‘‘तुम आराम से यहां बैठो. मैं तुम्हारे लिए खाने का बंदोबस्त करता हूं… और हां, अंदर से दरवाजा बंद कर लो और जब तक मैं न कहूं, दरवाजा मत खोलना.’’
इतना सुनते ही वह घबरा कर बोली, ‘‘कोई आने वाला है क्या?’’ ‘‘नहीं, कोई नहीं. हो सकता है महेश लौट आए.’’ ‘‘अरे महेश भाई… तब तो मेरी परेशानी यों ही दूर हो जाएगी.’’ मैं दिल ही दिल में सोचने लगा कि इसे कैसे बताऊं कि मुझे इस वक्त खतरा महसूस हो रहा है तो सिर्फ महेश से ही. मैं इन्हीं खयालों में उलझा हुआ रसोई की तरफ चला गया. अभी मैं आमलेट बना ही रहा था कि दरवाजे पर स्कूटर के रुकने की आवाज सुन कर एकदम घबरा गया. इस से पहले कि महेश दरवाजा खटखटाता, मैं ने किवाड़ खोल दिए. ‘‘क्या बात है बापू, आप बहुत परेशान नजर आ रहे हैं?’’ महेश अंदर दाखिल होते ही मुझ से बोला. ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. तुम सारा दिन घर से गायब रहे, इसीलिए परेशान था.’’ ‘‘शायद यही वजह है कि आप मेरे कमरे की खिड़कियां बंद करना भूल गए? अच्छा, पहले मैं आप के कमरे की खिड़की बंद कर दूं, फिर बातें करेंगे.’’ ‘‘मैं बंद कर देता हूं.
तुम जरा रसोई में आमलेट देख लो.’’ महेश जैसे ही रसोई की तरफ गया, मैं ने धीरे से कहा, ‘‘आयशा बेटी, दरवाजा खोलो.’’ जैसे ही आयशा ने दरवाजा खोला, इस से पहले कि मैं भीतर दाखिल होता, महेश तेजी से पलट कर दरवाजे के दोनों पट खोल कर मेरे सामने खड़ा हो गया. ‘‘तो यह बात है… आप ने जालिमों की संतानों को यहां छिपा रखा है?’’ कह कर महेश मुझे घूरने लगा. अचानक आयशा बोल पड़ी, ‘‘अरे महेश भाई, आप ने मुझे पहचाना नहीं? मैं आप ही की मुंहबोली बहन आयशा हूं.’’ ‘‘मेरी कोई बहनवहन नहीं. तुम विधर्मी की औलाद मेरी बहन कैसे हो सकती हो?’’ फिर वह चीख कर मुझ से बोला, ‘‘आप ने अपने घर में एक मुसलिम को पनाह दे कर अच्छा नहीं किया. मैं इसे जिंदा नहीं छोड़ूंगा,’’
वह छुरा निकाल कर मेरे सामने खड़ा हो गया. यह देख कर आयशा के मुंह से चीख निकल गई और वह भाग कर मेरे पीछे चली आई. मैं महेश के सामने गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘इस ने तुम्हारी मां की कोख से जन्म तो नहीं लिया, लेकिन इस का बचपन मेरी ही गोद में गुजरा था…’’ ‘‘कुछ भी हो बापू, यह है तो एक मुसलिम की औलाद ही. इन्होंने हमारे कितने ही मंदिरों को तोड़ा है, हमारी कौम का खून बहाया है. हमारे मंदिरों की दौलतों को दोनों हाथों से लूटा है. मैं इसे कैसे जिंदा छोड़ सकता हूं?’’ मैं जानता था कि यह महेश रोज ऐसे लोगों में उठताबैठता है, जो रातदिन हिंदूमुसलिम करते रहते हैं. पुलिस वाले डर के मारे उन्हें कुछ नहीं कहते. किसी से भी कुछ भी छीन लेते हैं, कभी चंदे के नाम पर, कभी गाय के नाम पर. होटलों में मुफ्त खाना खाते हैं. पैसे मांगने पर धमकी देते हैं, शोर मचा देंगे कि मीट में गौमांस मिला है. ‘‘बेकार की बातें मत करो महेश. देखते नहीं,
इस का शौहर जख्मी है और आयशा की हालत भी देखो बेटे, इसे तो मजहबी नजर से भी रहम और पनाह चाहिए. इन दोनों पर तुम रहम खाओ,’’ मैं ने उसे समझाने की कोशिश की. ‘‘नहीं बापू, इस से पहले कि इस धरती पर एक और विधर्मी जन्म ले, मेरी कौम का एक और कातिल पैदा हो, मैं इस का वजूद मिटा दूंगा. आप सामने से हट जाइए.’’ आयशा मेरे पीछे छिपी थरथर कांप रही थी. मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था. एक तरफ एकलौती औलाद थी और दूसरी तरफ मेरे उसूल थे. मेरे दिलोदिमाग में एक हलचल सी मची हुई थी. मैं ने एक बार फिर महेश को समझाने की कोशिश की, ‘‘अगर इन्हें मारना है तो पहले मुझे मारो, क्योंकि मेरे दादा ने भी आजादी की जंग में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था और इस के दादा ने भी. हिंदुस्तान के बंटवारे पर दोनों ने आंसू बहाए थे और इस के पूरे खानदान के पाकिस्तान चले जाने के बावजूद ये लोग मेरी वजह से पलामू में वतन की मिट्टी से चिपटे रहे. ‘‘महेश, इन्हें अपनी धरती मां से बहुत प्यार है रे, इन्होंने हिंदुस्तान इसीलिए नहीं छोड़ा,
क्योंकि ये मजहब की बुनियाद पर दिलों का बंटवारा नहीं चाहते थे. हिंदू और मुसलमान दोनों ही मुझे अजीज हैं. यही सोच मैं ने तुम्हें भी दी, लेकिन न जाने मेरी परवरिश में कहां कमी रह गई कि तुम्हारे जीने का नजरिया ही न जाने किन लोगों के बीच बैठ कर बदल गया.’’ मेरी इतनी बात सुन कर वह सकते में आ गया. लेकिन थोड़ी देर बाद मुझे महसूस हुआ कि उस की दीवानगी में कोई कमी नहीं आई है. फिर न जाने मुझ में कहां से अचानक ताकत सी पैदा हो गई. मैं ने लपक कर महेश के हाथ से छुरा छीन लिया और चीख कर बोला, ‘‘आयशा को अगर हाथ भी लगाया, तो मुझ से बुरा कोई न होगा.’’ मेरी बात सुन कर महेश ने एक जोरदार ठहाका लगाया, ‘‘तो क्या आप एक मुसलिम को बचाने की खातिर अपने एकलौते बेटे को मारेंगे?’’ और फिर वह हंसने लगा,
‘‘यह तो आप कभी कर ही नहीं पाएंगे. मैं इसे जिंदा नहीं छोड़ूंगा.’’ यह कहते हुए वह आहिस्ताआहिस्ता आयशा की तरफ बढ़ा, ‘‘छुरा आप के पास है तो क्या हुआ, मैं अपने हाथों से इस का गला घोंट दूंगा.’’ जैसे ही महेश आयशा की तरफ बढ़ा, मैं ने छुरा चला दिया. इस से पहले कि वह आयशा को हाथ लगाता, एक दर्दनाक चीख की आवाज गूंज उठी और दूसरे ही पल महेश चकरा कर मेरे कदमों में गिर पड़ा. कुछ पलों तक मैं वहीं खामोश खड़ा खून में लथपथ उस को देखता रहा, फिर बोला, ‘‘आयशा बेटी, ऐसी वहशी औलाद से बेऔलाद रहना बेहतर है.’’ फिर महेश की लाश पर निगाह डाल कर मैं आयशा के साथ दूसरे कमरे में चला गया.