Emotional Story: ऐसा शब्द मां, जिसे पुकारने के लिए बच्चा तड़प उठता है. मां के बिना जिंदगी अधूरी है. यों तो हर इनसान जी लेता है, पर मां की कमी उसे जिंदगी के हर मोड़ पर खलती है. हर इनसान को मां की ममता नसीब नहीं होती.
मां की कमी का दर्द वह ही बयां कर सकता है, जो मां की ममता से दूर रहा हो. हम दुनिया में भले ही कितनी तरक्की कर लें, पर मां की कमी हमें कभी न कभी किसी न किसी मोड़ पर रुला ही देती है. किसी दिन का कोई लम्हा ऐसा गुजरता होगा, जब हम अपनी मां को याद न करते हों.
यह भी इत्तिफाक ही है कि किस्मत से मेरे पापा का बचपन बिन मां के गुजरा. उस के बाद मेरा और मेरे बच्चों को भी मां का प्यार नसीब न हुआ.
हम सब छोटीछोटी तमन्नाओं को मार कर जीए. खानेपहनने, घूमने या फिर जिद करने की, वह मेरे पापा मुझ से और मेरे बच्चों से कोसों दूर रही, क्योंकि मेरे पापा, मैं और मेरे बच्चे ही क्या दुनिया में लाखों इनसान बिन मां के जिंदगी गुजारते हैं.
लेकिन मां की कमी का दर्द वह ही समझ सकता है, जिस के पास उस की मां न हो. जिन की मां बचपन में ही उन्हें छोड़ दे, उस पर क्या बीतती है, वह मुझ से बेहतर कौन जानता होगा.
मेरे पापा की मम्मी तो बचपन में ही इस दुनिया से चली गई थीं. उस के बाद मेरी मां भी बचपन में ही मुझे छोड़ कर चली गईं.
लेकिन मेरे बच्चों का नसीब देखो कि उन की मां अभी इस दुनिया में हैं, पर वह अपनी जिंदगी बेहतर और अपनी मरजी से जीने के लिए इन मासूम बच्चों को रोताबिलखता छोड़ कर चली गई, जिस से इन मासूमों का बचपना भी छिना, प्यार भी छिना और उन का भविष्य भी अंधकारमय हो कर रह गया.
दुनिया में कोई कितना भी मुहब्बत का दावा कर ले, लेकिन मां की ममता कोई नहीं दे सकता. वह सिर्फ सगी मां ही दे सकती है, जो बच्चों की एक आह पर तड़प उठती है.
आज से 30 साल पहले मैं ने अपनी मां को खोया था. मां को खोने के बाद मैं कितना तड़पा था, यह मैं ही जानता हूं. मेरी छोटीछोटी तमन्नाएं अधूरी रह गईं. मेरा खेलना, मेरा बचपना सबकुछ खामोशी में तबदील हो कर रह गया.
मां के गुजर जाने के बाद मेरे पापा ने दूसरी शादी नहीं की. उन्हें डर था कि कहीं सौतेली मां बच्चों के साथ फर्क न करे, उन्हें मां की ममता से दूर रखा, उन की पढ़ाई बंद करवा दी और उन्हें बचपन से ही मजदूरों की तरह काम करना पड़ा, वह भी भूखेप्यासे, क्योंकि नई बीवी के आने से दादाजी तो उन के पल्लू से बंध कर रह गए और वह अपने इन नए बच्चे जो मेरे पापा की नई मां से पैदा हुए थे, उन पर ही अपना प्यार लुटाने लगे और अपनी पहली बीवी के बच्चों को भूल गए.
नई मां ने उन का बचपन मजदूर में तबदील कर दिया. उन की पढ़ाई जहां की तहां रुक गई. खेलनेकूदने की उम्र में उन्हें उन की औकात से ज्यादा काम दिया जाने लगा.
यही वजह थी कि मेरे पापा की उम्र उस वक्त महज 40 साल थी, लेकिन फिर भी उन्होंने दूसरी शादी नहीं की, क्योंकि वे अपने बच्चों पर दूसरी मां का साया नहीं डालना चाहते थे.
पापा के इस बलिदान से हम सब भाई पढ़े भी और जिंदगी में कामयाबी भी हासिल की, पर मैं एक ऐसा शख्स था, जो मां की ममता के लिए हमेशा तड़पता रहा. मुझे न पढ़ाई अच्छी लगी और न ही घर में रहना. वैसे, जैसेतैसे मैं ने एमकौम कर लिया था, पर मां के जाने के बाद मैं मां की ममता के लिए एक साल अपनी चाची के पास रहा. वहां मुझे प्यार तो मिला, लेकिन सिर्फ इतना जितना मैं उन के घर का काम करता था. उन के घर का झाडूपोंछा, उन के छोटेछोटे बच्चों को खिलाना ही मेरी जिंदगी का हिस्सा बन कर रह गया था.
खाना उतना मिल जाता था, जिस से मैं जी सकता था. पत्राचार द्वारा ही मैं पढ़ा. उस का खर्च मेरे पापा उठाते रहे और समझाते रहे कि बेटा, अपने घर आ जाओ, लेकिन मां की मुहब्बत की चाह में मैं ने अपनी चाची के घर एक साल निकाल दिया.
इस एक साल में मैं अच्छी तरह समझ चुका था कि मां की ममता सिर्फ सगी मां ही दे सकती है और कोई नहीं. इस एक साल में मैं छोटीबड़ी हर बीमारी, हर जरूरत से खुद ही लड़ा. किसी को मेरी फिक्र नहीं थी. सब अपने सगे बच्चों को ही अहमियत देते हैं, दूसरों की औलाद को तो यतीम होने का ताना देते हैं और यतीम होने के नाते ही खाना देते हैं.
ये शब्द मैं ने कई बार अपनी चाची से सुने. उन्होंने तो बस सिर्फ अपने घर का काम करने और बच्चों की देखभाल के लिए मुझे रखा था. यही वजह थी कि मैं अपना गांव छोड़ कर मुंबई आ गया और सब रिश्तों से दूर हो गया.
यहां आ कर मैं ने एक बेकरी में काम किया. मेहनत बहुत थी, पर मैं ने हिम्मत नहीं हारी. भूख के वक्त या ज्यादा थक जाने के बाद मैं तन्हा बैठ कर रोता था और अपनी मां को याद करता था, लेकिन मेहनत करता रहा. यही वजह थी कि मैं जल्दी ही कामयाबी के रास्ते पर बढ़ता गया और कुछ ही साल में अपनी बेकरी ले ली और मुंबई यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन ऐंड जर्नलिज्म का कोर्स कर लिया. कहानी लिखना मेरा शौक था, जो मैं ने जारी रखा.
कई साल बाद मैं अपने गांव गया और वहां मैं ने भी शादी कर ली. मुझे काफी खूबसूरत बीवी मिली. उस की खूबसूरती की जितनी तारीफ की जाए, कम थी. उस की और मेरी उम्र में 10 साल का फर्क था. उस की खूबसूरती ऐसी थी, मानो जन्नत से कोई हूर उतर कर जमीन पर आ गई हो. उस की बड़ीबड़ी आंखें, गुलाबी गाल, सुर्ख होंठ और काले घने लंबे बाल किसी भी इनसान को अपना दीवाना बनाने के लिए काफी थे.
यही वजह थी कि पहली ही नजर में मैं उस का दीवाना हो गया था और उस का हर हुक्म मानने के लिए हर वक्त तैयार रहता था. इस वजह से शादी के एक महीने बाद ही मैं उसे अपने साथ मुंबई ले आया और शादी के एक साल बाद ही मैं एक बच्ची का बाप बन गया.
हम दोनों एकदूसरे से काफी मुहब्बत करते थे. यही वजह थी कि शादी के हर एक साल बाद वह मां बनती रही और इस तरह मैं 3 बेटी और एक बेटे यानी 4 बच्चों का बाप बन गया.
शादी के 7 साल कैसे गुजर गए, हमें पता ही नहीं चला. मेरी बीवी और मैं अपने बच्चों से बेहद प्यार करते थे, लेकिन मेरी बीवी मुझ से ज्यादा बच्चों से प्यार करती थी. किसी के अंदर इतनी हिम्मत न थी कि कोई उस के बच्चों को तू भी कह सके. वह अपने बच्चों की हर छोटीबड़ी जरूरत का ध्यान रखती थी और अपने बच्चों को अपनी जान से ज्यादा प्यार करती थी.
वक्त गुजरता गया. फिर आखिर वह वक्त भी आ गया, जिस ने हमारी जिंदगी में तूफान ला खड़ा किया था और मेरे बच्चे तिनकों की तरह बिखर गए थे. उन की मां उन्हें तन्हा छोड़ कर चली गई थी. उन का बचपन, उन की पढ़ाई, सब अंधकारमय हो कर रह गया था और वे मां की ममता के लिए तड़पतड़प कर जीने को मजबूर हो गए.
इन बच्चों की इस तड़प के लिए जिम्मेदार कोई और नहीं, बल्कि वह मां थी, जिसे ममता की देवी कहा जाता है. जिस के साए में बच्चे अपनेआप को सुरक्षित महसूस करते हैं. जिस का प्यार पाने के लिए बच्चे बेचैन हो उठते हैं.
वह ‘मां…’ शब्द को शर्मसार कर के बच्चों को तन्हा छोड़ कर अपनी जिंदगी बनाने या यह समझ कि वह अपनी जवानी और खूबसूरती का फायदा उठा कर अकेले जीने के लिए चली गई.
कभीकभी इनसान गलत संगत में पड़ कर अपना घर बरबाद तो कर ही लेता है, लेकिन वह यह नहीं सोचता कि उस की इस गलती का खमियाजा कितने लोगों को भुगतना पड़ेगा, कितने लोगों की जिंदगी तबाह हो कर रह जाएगी.
मेरे और मेरे बच्चे के साथ भी यही हुआ था. हमारी खुशहाल जिंदगी में मेरी बीवी की दोस्त और उस की चचेरी बहन ने ऐसा ग्रहण लगाया कि मेरे बच्चे मां के लिए तरस कर रह गए.
दरअसल, हुआ यह कि मेरी बीवी की चचेरी बहन मुंबई घूमने आई थी और हमारे ही घर पर रुकी थी. मैं उस के बारे में ज्यादा नहीं जानता था और न ही मुझे जानने का वक्त था, क्योंकि मैं अपने कामों में बिजी रहता था.
मेरी बीवी की चचेरी बहन बिंदास, खुले विचारों वाली एक मौडर्न लड़की थी. उस ने कई बौयफ्रैंड बना रखे थे.
30 साल की होने के बावजूद उस ने अभी तक शादी नहीं की थी, क्योंकि वह अपनी मरजी की जिंदगी जीने वाली लड़की थी.
उसे शादी के बंधन में बंध कर अपनी आजादी खत्म नहीं करनी थी. वह जिंदगी के हर लम्हे का मजा लेना चाहती थी. उस का यह कहना था कि जिंदगी बारबार नहीं मिलती, एक बार मिलती है तो क्यों न उस का मजा लिया जाए. अपने हिसाब से जिया जाए, क्यों शादी के बंधन में बंध कर अपनी जिंदगी के मजे खराब कर के बच्चे पैदा किए जाएं और किचन में जा कर अपनी खूबसूरती पति और बच्चों के लिए बरबाद की जाए.
उस की इस मौडर्न जिंदगी ने मेरी बीवी को इतना प्रभावित किया कि वह यह भूल गई कि वह 4 बच्चों की मां है और किसी की बीवी भी है.
वह चचेरी बहन मेरी बीवी के सामने ही अपने बौयफ्रैंड से बातें करती रहती थी और जल्द ही उस ने मुंबई में भी कई बौयफ्रैंड बना लिए थे और उन के साथ होटलों में खाना, घूमना और उन से महंगेमहंगे गिफ्ट लेना और मेरी बीवी को दिखाना, उसे रिझाना और यह कहना कि तुम इतनी खूबसूरत हो कर क्या जिंदगी जी रही हो, कह कर ताने मारना शुरू कर दिया था.
बस, उस चचेरी बहन की बातें सुन कर मेरी बीवी ने पहले तो जिम ज्वाइन किया, उस के बाद उस ने भी जींस और टौप पहनना शुरू कर दिया, लेकिन वह इस पर भी न रुकी और जल्द ही उस ने घर का काम करना बंद कर दिया. वह अपनी चचेरी बहन के साथ देर रात आने लगी. उस का बच्चों से भी लगाव कम होता गया.
यहां तक कि वह डिस्को भी जाने लगी और अब उसे मुझ में भी कोई रुचि न रही. उसे तो अब मौडर्न बनने का भूत सवार हो चुका था. उस के जिम की कई मौडर्न सहेली भी घर पर ही आने लगीं, जो बारबार मेरी बीवी को भी यह तंज कसतीं कि तुम इतनी मौडर्न, इतनी खूबसूरत और तुम्हारा पति तो तुम्हारी पैर की जूती के बराबर भी नहीं.
मैं यह सुन कर चुप रहता, क्योंकि अपनी बीवी के सामने बात करने या कोई शिकायत करने की हिम्मत मैं आज तक न जुटा पाया था.
मैं उसे जितनी इज्जत दे रहा था, उतना ही वह मुझ से नफरत कर रही थी, क्योंकि उस के दिमाग में तो अब आजादी का भूत सवार हो चुका था. मैं इतना समझ गया था कि जब तक इस की चचेरी बहन यहां से नहीं जाएगी और इस का जिम जाना बंद नहीं होगा, तब तक इस का बच्चों पर न ध्यान रहेगा और न ही यह मुझे तवज्जुह देगी.
मैं यही दुआ कर रहा था कि इस की चचेरी बहन अपने घर चली जाए. उसे आए हुए एक महीना हो गया था, जल्द ही मेरी यह दुआ कबूल हो गई और उस ने घर जाने की तैयारी कर ली.
मैं यह सोच रहा था कि अब मेरी बीवी में जरूर कुछ बदलाव आएगा, पर मेरा यह सोचना गलत साबित हुआ. अब वह अपनी नई मौडर्न सहेलियों के साथ ज्यादातर वक्त बाहर गुजारने लगी. उसे न बच्चों की चिंता थी और न ही मेरी. आएदिन कोई न कोई फोटोग्राफर घर पर आने लगा. वह अपनी मौडलिंग की तैयारी में कभी बेहूदा फोटो खिंचवाती, तो कभी उन के साथ बाहर शूट करने चली जाती.
एक दिन अचानक मेरी बीवी घर छोड़ कर चली गई. मैं ने उसे फोन किया, तो उस ने नहीं उठाया. काफी
देर बाद उस का ही फोन आया और उस ने कहा कि मुझे ढूंढ़ने की कोशिश मत करना. अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहती.
मैं ने रोते हुए उस से कहा कि इन बच्चों का क्या होगा?
उस ने दोटूक जवाब दिया कि बच्चे तुम्हारे हैं, तुम समझ. मैं इन्हें अपने साथ घर से थोड़े ही लाई थी. अगर तुम ने थाने में रिपोर्ट की या किसी से भी मेरे लौट आने की सिफारिश की, तो मैं सब के सामने एक ही जवाब दूंगी कि मुझे तुम्हारे साथ नहीं रहना. इस से पहले कि मैं तुम पर कोई आरोप लगाऊं या तुम्हें नामर्द बोल कर बेइज्जत करूं, तुम खुद समझदार हो. मुझे ऐसा कुछ करने पर मजबूर मत करना. तुम अपनी मरजी की जिंदगी जीओ और मुझे भी अपनी जिंदगी जीने दो. तुम दूसरी शादी कर लो, मुझे कोई एतराज नहीं है. यह मेरी तुम से आखिरी बातचीत है. इस के बाद न मैं भविष्य में कभी तुम से बात करूंगी और न ही तुम्हारी जिंदगी में दखल दूंगी.
एक साल तक उस का इंतजार करने के बाद मैं पुलिस थाने में जा कर रिपोर्ट दर्ज कराने गया कि मेरी बीवी मेरे साथ नहीं रहती. एक साल से मुझे उस की कोई खबर भी नहीं है.
पुलिस ने मेरी बात सुनी और कहा कि तुम उसे ढूंढ़ना चाहते हो या नहीं. मैं ने उन से कहा कि ऐसी हालत में मुझे क्या करना चाहिए?
पुलिस ने कहा कि जब वह तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहती तो उसे ढूंढ़ना बेकार है. वह अब नहीं आएगी. तुम अपनी शिकायत दर्ज करा दो कि उस के किसी भी गलत कदम का मैं जिम्मेदार नहीं हूं, क्योंकि वह एक साल से मुझ से अलग है.
मैं ने यह शिकायत लिख कर उस की एक कौपी अपने पास रख ली और मैं अपने बच्चों की परवरिश में लग गया.
मेरे लिए बच्चों की अकेले देखभाल करना बड़ा ही मुश्किल था, क्योंकि कामकाज का भी ध्यान रखना जरूरी था, ताकि बच्चों की अच्छी परवरिश हो सके.
मेरे दोस्तों ने मुझे दूसरी शादी करने की सलाह दी. बीवी के जाने के 2 साल बाद मैं ने एक बेवा से दूसरी शादी कर ली. उस के भी 2 बच्चे थे और मेरे भी 4 बच्चे थे.
इस तरह मेरे बच्चों को नई मां मिल गई. उस ने मेरे बच्चों का अच्छा खयाल रखा, लेकिन मेरे बच्चों को वह मां की मुहब्बत न मिल सकी, जो एक सगी मां से मिलती है. उन की पढ़ाई की जिम्मेदारी, उन के खानेपीने की जिम्मेदारी उन्हें नई मां से तो मिल गई, पर वह मां न मिल सकी, जो और बच्चों को मिलती है. दोष भी किस को दूं, जब सगी मां ने ही उन की परवाह न की तो किसी और से उम्मीद क्या की जाए.
मैं अपने बच्चों को दिल से लगाना चाहता हूं. पर अफसोस, मैं अब ऐसा नहीं कर पाता हूं. मैं उन्हें अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहता हूं, पर अब मेरे लिए यह मुमकिन नहीं. मैं उन्हें अच्छा खिलाना चाहता हूं, पर अफसोस, मैं उन्हें नहीं खिला सकता.
मैं उन बच्चों की जिद पूरी करना चाहता हूं, पर नहीं कर सकता, क्योंकि बाप और बच्चों में कुछ फासले पैदा हो गए, जिन्हें लांघना मेरे बस में नहीं और मेरे बच्चे ऐसे बदनसीब बन कर रह गए, जिन की सगी मां ने ही उन का साथ न दिया तो किसी और से क्या उम्मीद की जाए. कम से कम उन्हें दो वक्त का खाना तो मिल ही जाता था.
वह छोटीमोटी जिद तो अपनी इस नई मां से कर ही लेते हैं. उन की नई मां उन की पसंद का खाना तो बना ही देती है. उन की पढ़ाई का कुछ ध्यान तो रखती ही है. उन की सेहत का कुछ ध्यान तो रखती ही है.
बच्चे तो सहमे हुए हैं ही, क्योंकि उन्हें अपनी सगी मां की याद तो आती ही होगी. कभीकभार बंद कमरे में अपनी मां को याद कर के रोते ही हैं. भले ही वे मना करते हैं कि उन्हें अपनी सगी मां की याद नहीं आती.
पर, मैं बाप हूं, उन की आंखों की लाली और उस से टपकते हुए आंसू से इतना तो मालूम चल ही जाता है कि उन के बेवजह रोने की वजह क्या है? चुपचाप, शांत गुमसुम रहने की वजह क्या है? कभी खाना न खाने की वजह क्या है? होलीदीवाली या फिर ईद के त्योहार पर उन के गुमसुम रहने की वजह क्या है? वह अपनी मां की मुहब्बत को दिल में छिपाए रहते हैं. उन की हंसी कहां गायब हो गई, यह मैं बेहतर जानता हूं. उन का पढ़ाई में मन न लगना मैं अच्छी तरह सम?ाता हूं. यह सब 2 बड़े बच्चों में मिलता है, जो 7 और 8 साल के हैं. जो छोटे 4 और बच्चे हैं, जो 2 साल के हैं, उन्हें अपनी मां की याद नहीं आती और न ही उस की सूरत पहचानते होंगे, इसलिए वे खुश रहते हैं.
आज उन का भविष्य अधर में है, क्योंकि नई मां उन्हें समझ नहीं पाती. उन्हें अच्छी तालीम नहीं दे पाती. वह समझती है कि अगर वह कुछ कहेगी, तो मुझे बुरा लगेगा, इसलिए उस ने उन के खानेपीने, पढ़ाईलिखाई, अच्छाबुरा सब उन के ऊपर छोड़ दिया है. कोई खाए या नहीं, कोई पढ़े या नहीं, उसे सिर्फ मुझ से ताल्लुक है. वह सिर्फ मुझे खुश रखने की कोशिश करती है. पर, उसे क्या मालूम कि मेरी खुशी कहां है, मेरा सुकून कहां है, मेरी जिंदगी का मकसद क्या है. बच्चे ही मेरी जिंदगी हैं. काश, वह बीवी के साथसाथ एक जिम्मेदार मां भी बन जाए.
मुझे आज भी वह वक्त याद है, जब बच्चों की मां गलत संगत में नहीं पड़ी थी. किस तरह बच्चों की पढ़ाईलिखाई, उन के खानेपीने का ध्यान रखती थी. घर में कितनी खुशहाली थी, बच्चे कितने खुश थे, कितने साफसुथरे रहते थे.
मां के जाने के बाद बच्चों की जिंदगी थम सी गई. वे गुमसुम हो कर रह गए. ऐसा लगता जैसे उन का सबकुछ तबाह हो गया हो. वे सिसकसिसक कर जी रहे हैं. असल में तो वे उसी वक्त मर गए थे, जब उन की मां उन्हें बेसहरा छोड़ कर चली गई थी.
मां तो मां ही होती है, पर समझ में नहीं आता कि ऐसी भी मां होती है, जो सिर्फ अपने लिए जीती है.
फिर भी मेरे बच्चों के पास मां तो है, जो उन का खयाल रखती है. मेरे बच्चे तन्हा तो नहीं हैं. कोई तो है उन की फिक्र करने वाला. हर बच्चे को सबकुछ तो नहीं मिलता, फिर भी मेरे बच्चे हजारों से बुरे हैं तो लाखो से बेहतर भी हैं, क्योंकि उन के पास उन की नई मां जो है.