Hindi Story: आंगन में बैठा प्रीतम ध्यान से हरी दूब और रंगबिरंगे फूलों में खो जाना चाहता था. मोना के इंतजार में दोपहर से शाम होने को आई थी. कभीकभार एकाध बादल आसमान पर आ जाता, तो उसे यों लगने लगता जैसे बादल उसे ही खिजा रहा है. कभीकभार हवा भी सरसराती कोई सवाल पूछती थी. शाम ने काजल लगा लिया था.

चश्मा उठा कर प्रीतम भी भीतर आ गया. बत्ती जलाई और टैलीविजन देखने लगा. किसी सीरियल में एक रोमांटिक सीन चल रहा था. प्रीतम ने चैनल नहीं बदला, मगर वह सीन गौर से देखा भी नहीं. उसे मोना याद आ रही थी. 4 बजे स्कूल की छुट्टी हो जाती है. अब 7 बजने को आए हैं, मगर उस का कुछ अतापता नहीं.

प्रीतम ने पिछले हफ्ते बुखार और जुकाम होने पर डाक्टर की सलाह ली थी.

‘यह इंफैक्शन भी हो सकता है. आप घर पर भी मास्क लगाओ. दफ्तर मत जाओ. औरों को भी मुसीबत में मत डालो. 7 दिन बाद एक दफा मिल लेना. अगर मैं ठीक समझूंगा तो दफ्तर चले जाना,’ डाक्टर ने अपना फैसला सुनाया.

सचमुच वह राय नहीं फैसला ही हुआ करता था. पिछले 8 साल से प्रीतम उन डाक्टर की ही शरण में जाता था. प्रीतम पर उन का इलाज तुरंत असर करता था.

न जाने किधर खोया हुआ प्रीतम अभी भी आशा की ज्योति जलाए हुए था कि मोना फोन तो करेगी कम से कम.

प्रीतम मन ही मन गुस्सा हो रहा था कि तभी अचानक मोना आई और कुरसी पर पसर गई. प्रीतम का जुकामबुखार कुछ नहीं पूछा. सीधा बोली, ‘‘अभी बाहर से खाना मंगवा लेती हूं. तुम में तो अब सुधार है. दाल मंगवा रही हूं. खा तो लोगे न...?’’ जवाब सुने बगैर उस ने खाना और्डर कर दिया.

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